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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

Prime
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Itachi_Uchiha

अंतःअस्ति प्रारंभः
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भाग:–38







किस–किस ने एडियाना का मकबरा नही तलाशा। जब वहां से हारे फिर लोपचे के भटकते मुसाफिर की तलाश शुरू हुई, क्योंकि वह पहला और आखरी खोजी था जो एडियाना के मकबरे तक पहुंचा था। लेकिन वहां भी सभी को निराशा हाथ लगी। दुनिया में केवल 2 लोग, आर्यमणि और निशांत ही ऐसा था, जिसे पता था कि ऐडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित अंगूठी नही है। बाकी दुनिया को अब भी यही पता था कि एडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित पत्थर, बिजली का खंजर और बहरूपिया चोगा है, जिस तक पहुंचने का राज लोपचे का भटकता मुसाफिर है। अब एडियाना से पहले लोपचे के भटकते मुसाफिर को तलाश किया जाने लगा।


कइयों ने कोशिश किया और सबके हाथ सिर्फ नाकामी लगी। और जो किसी को नही मिला वह भटकते हुये 2 अबोध बालक आर्यमणि और निशांत को गंगटोक के घने जंगलों से मिल गया।


बात शायद 12-13 साल पुरानी होगी। एक के बाद एक कई सारे कांड हो चुके थे। पहले आर्यमणि और उसकी पहली चाहत मैत्री लोपचे का बड़ा भाई सुहोत्र से लड़ाई। लड़ाई के कुछ दिनों बाद ही शिकारियों द्वारा लोपचे के कॉटेज को ही पूरा जला देना। कुछ लोग जो किसी तरह अपनी जान बचा सके, वह गंगटोक से भागकर जर्मनी पहुंच गये, जिनमे से एक मैत्री भी थी। और उसके कुछ वक्त बाद ही वर्धराज कुलकर्णी यानी की आर्यमणि के दादा जी का निधन।


मैत्री और वर्धराज कुलकर्णी, दोनो ही आर्यमणि के काफी करीबी थे। इन सारी घटनाओं ने आर्यमणि को ऐसा तोड़ा था कि उसका ज्यादातर वक्त अकेले में ही कटता था। वो तो निशांत और चित्रा थी, जिनकी वजह से आर्यमणि कुछ–कुछ आगे बढ़ना सिखा था। उन्ही दिनों निशांत की जिद पर सुरक्षा कर्मचारी उन्हे (निशांत और आर्यमणि) घने जंगलों में घुमाने ले जाते थे। आर्यमणि जब भी घायल जानवरों को दर्द से बिलखते देखता, उसकी भावना कहीं न कहीं आर्यमणि से जुड़ जाती। कोई भी घायल जानवर के पास से आर्यमणि तबतक नही हटता था, जबतक रेंजर की बचाव टुकड़ी वहां नही पहुंच जाती।


कुछ वक्त बाद तो जबतक घायल जानवरों का इलाज पूरा नही हो जाता, तबतक आर्यमणि और निशांत पशु चिकित्सालय से घर नही जाते थे। और उसके थोड़े वक्त बाद तो दोनो घायल जानवरों की सेवा करने में भी जुट गये। लगभग १२ वर्ष की आयु जब हुई होगी, तबसे तो दोनो अकेले ही जंगल भाग जाते। उन्ही दिनों इनका सामना एक शेर से हो गया था और आस–पास कोई भी नही। दोनो अपनी जान बचाने के लिये लोपचे के खंडहर में छिप गए। उस दिन जब जान पर बनी, फिर दोनो दोस्त की हिम्मत नही हुई कि जंगल की ओर देखे भी।


लेकिन वक्त जैसे हर मरहम की दवा हो। कुछ दिन बीते तो फिर से इनका जंगल घूमना शुरू हो गया। कई बार कोई रेंजर मिल जाता तो उसके साथ घूमता, तो कई बार सैलानियों के साथ। अब इसमें कोई २ राय नहीं की इन्हे घर पर डांट ना पड़ती हो, वो सब बदस्तूर जारी था, लेकिन इनका अकेले जंगल जाना कभी बंद नहीं हुआ। कुछ रेंजर्स द्वारा सिखाये गए तकनीक, कुछ खुद के अनुभव के आधार पर दोनो जंगल के विषम परिस्थितियों का सामना करना अच्छे से सिख रहे थे।


कुछ और वर्ष बीता। दोनो (आर्यमणि और निशांत) की आयु १४ वर्ष की हो चुकी थी। जंगल के विषम परिस्थिति से निकलने में दोनो ने डॉक्टोरियट डिग्री ले चुके थे। अब तो दोनो किसी खोजकर्ता की तरह कार्य करते थे। उन्ही दिनों एक घटना हुई। यह घटना जंगल के एक प्रतिबंधित क्षेत्र की थी, जहां रेंजर भी जाने से डरते थे। दोनो एक छोटी सी घाटी के नीचे पहुंचे थे और जंगल में कुछ दूर आगे बढ़े ही होंगे, कि आंखों के सामने एक शेर। शेर किसी हिरण पर घात लगाये था और जैसे उसके हाव–भाव थे, वह किसी भी वक्त हिरण पर हमला कर सकता था। आर्यमणि ने जैसे ही यह देखा, पास पड़े पत्थर को हिरण के ऊपर चलाकर हिरण को वहां से भाग दिया। पत्थर के चलते ही हिरण तो भाग गया लेकिन शेर की खौफनाक आवाज वहां गूंजने लगी।


शेर की खौफनाक आवाज सुनकर आर्यमणि और निशांत दोनो सचेत हो गये। निशांत तुरंत ही अपना बैग उठाकर भागा और सबसे नजदीकी पेड़ पर चढ़ गया। पेड़ पर चढ़ने के बाद निशांत अपने हाथ में स्टन रोड (एक प्रकार का रॉड जिससे हाई वोल्टेज करेंट निकलता हो) लेकर शेर को करेंट खिलाने के लिए तैयार हो गया। निशांत तो पूरा तैयार था, लेकिन आर्यमणि, वह तो जैसे अपनी जगह पर जम गया था।


शेर दहाड़ के साथ ही दौड़ लगा चुका था और निशांत पेड़ पर तैयार होकर जैसे ही अपनी नजरे आर्यमणि के ओर किया, उसके होश उड़ गये। गला फाड़कर कयी बार निशांत चिल्लाया, लेकिन आर्यमणि अपनी जगह से हिला नही। निशांत पेड़ से नीचे उतरकर भी कुछ कर नही सकता था, क्योंकि शेर दौड़ते हुये छलांग लगा चुका था। एक पल के लिए निशांत की आंखें बंद और अगले ही पल उतनी हैरानी से बड़ी हो गयि। आर्यमणि अब भी अपने जगह पर खड़ा था।


पहला हमला विफल होने के बाद बौखलाए शेर ने दोबारा हमला किया। शेर दहाड़ता हुआ दौड़ा और छलांग लगाकर जैसे ही आर्यमणि पर हमला किया, आर्यमणि अपनी जगह ही खड़ा है और शेर आगे निकल गया। जी तोड़ कोशिशों के बाद भी जब वही सब बार–बार दोहराता रहा, तब अंत में शेर वहां से चला गया। निशांत बड़ी हैरानी से पूछा.… "अरे यहां हो क्या रहा है?"


आर्यमणि:– मुझे भी नही पता निशांत। जब शेर दहाड़ रहा था तब मैंने भी भागा। लेकिन मुड़कर जब शेर को दौड़ लगाते देखा तो हैरान हो गया...


निशांत:– अबे और गोल–गोल चक्कर न खिला... मैं तुझे देखकर हैरान हूं, तू शेर को देखकर हैरान है।


आर्यमणि:– अबे तूने भी तो देखा न। शेर मुझ पर हमला करने के बदले इधर–उधर उछलकर चला गया।


निशांत:– अबे चुतिया तो नही समझ रहा। शेर तेरे ऊपर से होकर गया और तू अपनी जगह से हिला भी नही।


आर्यमणि:– अबे ए पागल शेर का शिकार होने के लिए अपनी जगह खड़ा रहूंगा क्या? मैं तेरे साथ ही भागा था। बस तू सीधा पेड़ पर चढ़ा और मैं पीछे मुड़कर शेर को देखा, तो रुक गया...


निशांत:– अबे ये कन्फ्यूजिंग कहानी लग रही। यहां हो क्या रहा है...


उस दिन दोनो ने बहुत मंथन किया लेकिन कहीं कोई नतीजा नही निकला। दोनो को यह एहसास था की कुछ तो हो रहा था। लेकिन क्या हो रहा था पता नही। न जाने इस घटना को बीते कितने दिन हो गए थे। शेर वाली घटना भी अब जेहन में नही थी। जंगल की तफरी तो रोज ही हुआ करती थी। अजी काहे का प्रतिबंधित क्षेत्र, दोनो की घुसपैठ हर क्षेत्र में हुआ करती थी।


दोनो ही जंगल के प्रतिबंधित क्षेत्र में घुमा करते थे। शेर, चीते, भालुओं के पास से ऐसे गुजरते मानो कह रहे हो... "और भाई कैसे हो, यहां रहने में कोई परेशानी तो नहीं".. वो जानवर भी जम्हाई लेकर बस अपनी नजरें दोनो से हटाकर दूसरी ओर देखने लगते, मानो कह रहे हो... "बोर मत कर, चल आगे बढ़".. ऐसे ही दिन गुजर रहे थे।


एक दिन की बात है, दोनो घूमते हुए फिर से उसी जगह पर थे, जहां कांड हुआ था। आज भी मामला उसी दिन की तरह मिलता जुलता था। बस फर्क सिर्फ इतना था कि उस दिन शेर घात लगाए हमले की फिराक में था और आज हमला करने के लिए दौड़ लगा चुका था। वक्त कम था और आंखों के सामने हिरण को मरने तो नही दिया जा सकता था। आर्यमणि जितना तेज दौड़ सकता था, दौड़ा। बैग से स्टन रोड निकलते भागा। इधर शेर की छलांग और उधर आर्यमणि हाथों में रॉड लिए शेर और हिरण के बीच।


अब एक कदम के आगे–पीछे आर्यमणि और निशांत चल रहे थे। ऐसा तो था नही की निशांत को कुछ दिखा ही न हो। अब सीन को यदि फ्रेम करे तो। शेर किसी दिशा से हिरण के ओर दौड़ा, आर्यमणि ठीक उसके विपरीत दिशा से दौड़ा, और उसके पीछे से निशांत दौड़ा। फ्रेम में तीनों दौड़ रहे। शेर ने छलांग लगाया। आर्यमणि शेर और हिरण के बीच आया, और इधर शेर के हमले से बचाने के लिए निशांत भी आर्यमणि पर कूद गया। मतलब शेर जबतक अपने पंजे मारकर आर्यमणि को गंजा करता, उस से पहले ही निशांत उसे जमीन पर गिरा देता।


लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ। शेर छलांग लगाकर अपने पंजे चलाया और आर्यमणि के आर–पार कूद गया। शेर तो चौपाया जानवर था, लेकिन निशांत... वो तो आर्यमणि के ऊपर उसे गिराने के इरादे से कूदा, किंतु वह भी आर–पार हो गया। निशांत तो २ पाऊं वाला जानवर ठहरा। ऊपर से उसने तो केवल कूदने का प्लान किया था, आर्यमणि के आर–पार होने के बाद खुद को नियंत्रण कैसे करे इसका तो ख्याल भी नही था। वैसे इतने टाइट सिचुएशन में कोई ख्याल भी नही आते वह अलग बात है। और इसी चक्कर में निशांत ऐसा गिरा की उसका नाक टूट गयी।


इधर आर्यमणि की नजरें जो देख रही थी वह कुछ ऐसा था... शेर उस से २ फिट किनारे हवा में हमला करने के लिए छलांग लगाया और वही निशांत भी कर रहा था। निशांत की हालत देख आर्यमणि जोड़–जोड़ से हसने लगा। निशांत चिढ़कर अपने रोड को आर्यमणि के ऊपर खींचकर मारा.… आर्यमणि दोबारा हंसते हुए... "जाहिल निशाना तो सही लगा, मैं यहां हूं और तू रॉड किसपर मार रहा।"

निशांत जोर से चिल्लाते... "आर्य यहां फिर से उस दिन की तरह हो रहा है। तुझे लग रहा है हम तेरे दाएं–बाएं कूद रहे या निशाना लगा रहे और मुझे लग रहा है कि जैसे तेरी जगह तेरी आत्म खड़ी है, और हम उसके आड़–पाड़ निकल रहे।


आर्यमणि:– ये कैसा तिलिस्म है यहां का...


निशांत:– चल जरा चेक करते है कि ये तिलिस्म केवल तेरे साथ हो रहा है या सबके साथ।


आर्यमणि:– ठीक है तू मेरी जगह खड़ा हो जा..


निशांत:– मैं पहले से ही उसी जगह खड़ा हूं, जहां तू दौड़ते हुए रुका था।


आर्यमणि:– तू तैयार है, स्टन रॉड से झटका दूं..


निशांत:– ओ गोबर, यदि तिलिस्म काम नही किया तो मेरे लग जाने है। ढेला फेंककर मार


आर्यमणि ३–४ पत्थर के छोटे टुकड़े बटोरा। अतिहतन पहला धीमा चलाया। पत्थर चलाते ही आर्यमणि की आंखें बड़ी हो गयि। फिर दूसरा पूरा जोड़ लगाकर। उसके बाद तो १०–१२ ढेला फेंक दिया मगर हर बार आर्यमणि को यही लगता ढेला निशांत के पार चली गयि।



आर्यमणि:– तू सही कह रहा था, यहां कोई तिलिस्म है। अच्छा क्या यह तिलिस्म हम दोनो के ऊपर काम करता है या सभी पर?


निशांत:– कुछ कह नहीं सकते। सभी पर काम करता तो फिर शेर यहां घात लगाकर शिकार न कर रहा होता।


आर्यमणि:– मैं भी यही सोच रहा था। एक ख्याल यह भी आ रहा की शायद जानवरों पर यह तिलिस्म काम न करता हो...


निशांत:– कुछ भी पक्का नहीं है... चल इसकी टेस्टिंग करते हैं...


दोनो दोस्त वहां से चल दिए। अगले दिन एक रेंजर को झांसे में फसाया और दोनो उसे लेकर छोटी घाटी से नीचे उतर गए। छोटी घाटी से नीचे तो उतरे, लेकिन चारो ओर का नजारा देखकर स्तब्ध। इसी जगह को जब पहले देखा था और आज जब रेंजर के साथ देख रहे, जमीन आसमान का अंतर था। उस जगह पर पेड़ों की संख्या उतनी ही होगी लेकिन उनकी पूरी जगह बदली हुई लग रही थी। घाटी से नीचे उतरने के बाद जहां पहले दोनो को कुछ दूर खाली घास का मैदान दिखा था, आज वहां भी बड़े–बड़े वृक्ष थे। निशांत ने जांचने के लिए आर्यमणि को एक ढेला दे मारा, और वह ढेला आर्यमणि को लगा भी।


दोनो चुप रहे और जिस तरह रेंजर को झांसा देकर बुलाए थे, ठीक उसी प्रकार से वापस भेज दिया। रेंजर जब चला गया, निशांत उस जगह को देखते.… "कुछ तो है जो ये जगह केवल हम दोनो को समझाना चाहती है।"..


आर्यमणि:– हम्म.. आखिर इतना मजबूत तिलिस्म आया कहां से?


निशांत:– क्या हम एक अलग दुनिया का हिस्सा बनने वाले हैं, जहां तंत्र–मंत्र और काला जादू होगा।


आर्यमणि:– ये सब तो आदि काल से अस्तित्व में है, बस इन्हे जनता कोई–कोई है। समझते तो और भी कम लोग है। और इन्हें करने वाले तो गिने चुने बचे होंगे जो खुद की सच्चाई छिपाकर हमारे बीच रहते होंगे। जैसे प्रहरी और उनके वेयरवोल्फ..


निशांत:– साला लोपचे को भी वेयरवोल्फ कहते है लेकिन इतने वर्षों में हमने देखा ही नहीं की ये वेयरवोल्फ कैसे होते है?


आर्यमणि:– छोड़ उन प्रहरियों को, अभी पर फोकस कर..


निशांत:– तिलिस्म को हम कैसे समझ सकते है?


आर्यमणि:– यदि इसे साइंस की तरह प्रोजेक्ट करे तो..


निशांत:– ठीक है करता हूं... एक ऐसा मशीन है जो यहां के भू–भाग संरचना को बदल सकता है। बायोमेट्रिक टाइप कुछ लगा है, जो केवल हम दोनो को ही स्कैन कर सकता है, उसमे भी शर्तों के साथ, यदि वहां केवल हम २ इंसान हुए तब...


आर्यमणि:– मतलब..

निशांत:– मतलब कैसे समझाऊं...

आर्यमणि:– कोशिश तो कर..


निशांत:– अब यदि यहां पहले शेर और हिरण थे, और हम बाद में पहुंचे। हम जब पहुंचे तब यह पूरा इलाका दूसरे स्वरूप में था, लेकिन जो पहले से यहां होंगे उन्हें अभी वाला स्वरूप दिखेगा, जैसा हम अभी देख रहें। अभी वाला स्वरूप इस जगह की वास्तविक स्थिति है, और हम जो देखते है वो तिलिस्मी स्वरूप।


आर्यमणि:– इसका मतलब यदि वह रेंजर हमसे पहले आया होता तो उसे यह जगह वास्तविक स्थिति में दिखती। और हम दोनो बाद में पहुंचे होते तो हमे इस जगह की तिलिस्मी तस्वीर दिखती...


निशांत:– हां...


आर्यमणि:– साइंस की भाषा में कहे तो बायोमेट्रिक स्कैन तभी होगा, जब केवल हम दोनो में से कोई हो। तीसरा यदि साथ हुआ तो बायोमेट्रिक स्कैन नही होगा और यह जगह हम दोनो को भी अपने वास्तविक रूप में दिखेगी...


निशांत:– एक्जेक्टली..


आर्यमणि:– ठीक है फिर एक काम करते हैं पहले यह समझते हैं कि यह तिलिस्मी इलाका है कितने दूर का..


निशांत:– और इस कैसे समझेंगे..


आर्यमणि:– हम चार कदम चलेंगे और तुम चार कदम वापस जाकर फिर से मेरे पास आओगे…


निशांत:– इसका फायदा...


आर्यमणि:– इसका फायदा दिख जायेगा... कर तो पहले...


दोनो ने किया और वाकई फायदा दिख गया। तकरीबन 1000 मीटर आगे जाने के बाद जब निशांत चार कदम लेकर वापस आया, जगह पूरी तरह से बदल गई थी। दोनो ने इस मशीन की क्रयप्रणाली को समझने के लिए बहुत से प्रयोग किये। हर बार जब दायरे से बाहर होकर अंदर आते, तब यही समझने की कोशिश करते की आखिर इसका कोई तो केंद्र बिंदु होगा, जहां से जांच शुरू होगी। चारो ओर किनारे से देख चुके थे, लेकिन दोनो को कोई सुराग नहीं मिला। फिर अंत में दोनो ने कुछ सोचा। निशांत नीचे बॉर्डर के पास खड़ा हो गया और आर्यमणि घाटी के ऊपर।


आर्यमणि का इशारा हुआ और निशांत उस तिलिस्म के सीमा क्षेत्र में घुस गया। कोई नतीजा नही। तिलस्मी क्षेत्र बदला तो, लेकिन कोई ऐसा केंद्र न मिला जहां से जांच शुरू की जाय। जहां से पता चल सके कि आखिर ऐसा हो क्यों रहा? नतीजा भले न मिल रहा हो लेकिन इनकी कोशिश जारी रही। लगभग २० दिनो से यही काम हो रहा था। आर्यमणि ऊपर पहाड़ पर, और नीचे निशांत बॉर्डर के पास से उस तिलिस्मी क्षेत्र में घुसता। आर्यमणि ऊपर से हर बारीकी पर ध्यान रखता, लेकिन नतीजा कोई नही।


50 दिन बीते होंगे। अब तो आर्यमणि और निशांत को यह तक पता था कि जब जगह का दृश्य बदलता है, तब कौन सा पेड़ कहां होता है। नतीजा नही आ रहा था और अब तो पहले की तरह कोशिश भी नही हो रही थी। हां लेकिन हर रोज २–३ बार कोशिश तो जरूर करते थे।
Wahhh kya dimak ke anjar panjar hilane wala update diya nain11ster bhai maja hi aa gaya. Such me agar koi jadu se smjhe to bhi thik aur jo na smjhe uske liye science bana diya last me maja hi aa gaya. Ab to dekhna hai ye sub ho kaha se aur kyu ho raha hai. Aur sirf in dono ke aane par hi aisa kyu hota hai. Ya aur bhi special logo ke aane par ye ho skta hai ?
Baki ye Satya ke dada ki death mujhe natural nahi lag rahi hai. Aur mujhe jaha tak lagta hai is bare me bhi Aary bahut ache se sub janta ho
 

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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भाग:–38







किस–किस ने एडियाना का मकबरा नही तलाशा। जब वहां से हारे फिर लोपचे के भटकते मुसाफिर की तलाश शुरू हुई, क्योंकि वह पहला और आखरी खोजी था जो एडियाना के मकबरे तक पहुंचा था। लेकिन वहां भी सभी को निराशा हाथ लगी। दुनिया में केवल 2 लोग, आर्यमणि और निशांत ही ऐसा था, जिसे पता था कि ऐडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित अंगूठी नही है। बाकी दुनिया को अब भी यही पता था कि एडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित पत्थर, बिजली का खंजर और बहरूपिया चोगा है, जिस तक पहुंचने का राज लोपचे का भटकता मुसाफिर है। अब एडियाना से पहले लोपचे के भटकते मुसाफिर को तलाश किया जाने लगा।


कइयों ने कोशिश किया और सबके हाथ सिर्फ नाकामी लगी। और जो किसी को नही मिला वह भटकते हुये 2 अबोध बालक आर्यमणि और निशांत को गंगटोक के घने जंगलों से मिल गया।


बात शायद 12-13 साल पुरानी होगी। एक के बाद एक कई सारे कांड हो चुके थे। पहले आर्यमणि और उसकी पहली चाहत मैत्री लोपचे का बड़ा भाई सुहोत्र से लड़ाई। लड़ाई के कुछ दिनों बाद ही शिकारियों द्वारा लोपचे के कॉटेज को ही पूरा जला देना। कुछ लोग जो किसी तरह अपनी जान बचा सके, वह गंगटोक से भागकर जर्मनी पहुंच गये, जिनमे से एक मैत्री भी थी। और उसके कुछ वक्त बाद ही वर्धराज कुलकर्णी यानी की आर्यमणि के दादा जी का निधन।


मैत्री और वर्धराज कुलकर्णी, दोनो ही आर्यमणि के काफी करीबी थे। इन सारी घटनाओं ने आर्यमणि को ऐसा तोड़ा था कि उसका ज्यादातर वक्त अकेले में ही कटता था। वो तो निशांत और चित्रा थी, जिनकी वजह से आर्यमणि कुछ–कुछ आगे बढ़ना सिखा था। उन्ही दिनों निशांत की जिद पर सुरक्षा कर्मचारी उन्हे (निशांत और आर्यमणि) घने जंगलों में घुमाने ले जाते थे। आर्यमणि जब भी घायल जानवरों को दर्द से बिलखते देखता, उसकी भावना कहीं न कहीं आर्यमणि से जुड़ जाती। कोई भी घायल जानवर के पास से आर्यमणि तबतक नही हटता था, जबतक रेंजर की बचाव टुकड़ी वहां नही पहुंच जाती।


कुछ वक्त बाद तो जबतक घायल जानवरों का इलाज पूरा नही हो जाता, तबतक आर्यमणि और निशांत पशु चिकित्सालय से घर नही जाते थे। और उसके थोड़े वक्त बाद तो दोनो घायल जानवरों की सेवा करने में भी जुट गये। लगभग १२ वर्ष की आयु जब हुई होगी, तबसे तो दोनो अकेले ही जंगल भाग जाते। उन्ही दिनों इनका सामना एक शेर से हो गया था और आस–पास कोई भी नही। दोनो अपनी जान बचाने के लिये लोपचे के खंडहर में छिप गए। उस दिन जब जान पर बनी, फिर दोनो दोस्त की हिम्मत नही हुई कि जंगल की ओर देखे भी।


लेकिन वक्त जैसे हर मरहम की दवा हो। कुछ दिन बीते तो फिर से इनका जंगल घूमना शुरू हो गया। कई बार कोई रेंजर मिल जाता तो उसके साथ घूमता, तो कई बार सैलानियों के साथ। अब इसमें कोई २ राय नहीं की इन्हे घर पर डांट ना पड़ती हो, वो सब बदस्तूर जारी था, लेकिन इनका अकेले जंगल जाना कभी बंद नहीं हुआ। कुछ रेंजर्स द्वारा सिखाये गए तकनीक, कुछ खुद के अनुभव के आधार पर दोनो जंगल के विषम परिस्थितियों का सामना करना अच्छे से सिख रहे थे।


कुछ और वर्ष बीता। दोनो (आर्यमणि और निशांत) की आयु १४ वर्ष की हो चुकी थी। जंगल के विषम परिस्थिति से निकलने में दोनो ने डॉक्टोरियट डिग्री ले चुके थे। अब तो दोनो किसी खोजकर्ता की तरह कार्य करते थे। उन्ही दिनों एक घटना हुई। यह घटना जंगल के एक प्रतिबंधित क्षेत्र की थी, जहां रेंजर भी जाने से डरते थे। दोनो एक छोटी सी घाटी के नीचे पहुंचे थे और जंगल में कुछ दूर आगे बढ़े ही होंगे, कि आंखों के सामने एक शेर। शेर किसी हिरण पर घात लगाये था और जैसे उसके हाव–भाव थे, वह किसी भी वक्त हिरण पर हमला कर सकता था। आर्यमणि ने जैसे ही यह देखा, पास पड़े पत्थर को हिरण के ऊपर चलाकर हिरण को वहां से भाग दिया। पत्थर के चलते ही हिरण तो भाग गया लेकिन शेर की खौफनाक आवाज वहां गूंजने लगी।


शेर की खौफनाक आवाज सुनकर आर्यमणि और निशांत दोनो सचेत हो गये। निशांत तुरंत ही अपना बैग उठाकर भागा और सबसे नजदीकी पेड़ पर चढ़ गया। पेड़ पर चढ़ने के बाद निशांत अपने हाथ में स्टन रोड (एक प्रकार का रॉड जिससे हाई वोल्टेज करेंट निकलता हो) लेकर शेर को करेंट खिलाने के लिए तैयार हो गया। निशांत तो पूरा तैयार था, लेकिन आर्यमणि, वह तो जैसे अपनी जगह पर जम गया था।


शेर दहाड़ के साथ ही दौड़ लगा चुका था और निशांत पेड़ पर तैयार होकर जैसे ही अपनी नजरे आर्यमणि के ओर किया, उसके होश उड़ गये। गला फाड़कर कयी बार निशांत चिल्लाया, लेकिन आर्यमणि अपनी जगह से हिला नही। निशांत पेड़ से नीचे उतरकर भी कुछ कर नही सकता था, क्योंकि शेर दौड़ते हुये छलांग लगा चुका था। एक पल के लिए निशांत की आंखें बंद और अगले ही पल उतनी हैरानी से बड़ी हो गयि। आर्यमणि अब भी अपने जगह पर खड़ा था।


पहला हमला विफल होने के बाद बौखलाए शेर ने दोबारा हमला किया। शेर दहाड़ता हुआ दौड़ा और छलांग लगाकर जैसे ही आर्यमणि पर हमला किया, आर्यमणि अपनी जगह ही खड़ा है और शेर आगे निकल गया। जी तोड़ कोशिशों के बाद भी जब वही सब बार–बार दोहराता रहा, तब अंत में शेर वहां से चला गया। निशांत बड़ी हैरानी से पूछा.… "अरे यहां हो क्या रहा है?"


आर्यमणि:– मुझे भी नही पता निशांत। जब शेर दहाड़ रहा था तब मैंने भी भागा। लेकिन मुड़कर जब शेर को दौड़ लगाते देखा तो हैरान हो गया...


निशांत:– अबे और गोल–गोल चक्कर न खिला... मैं तुझे देखकर हैरान हूं, तू शेर को देखकर हैरान है।


आर्यमणि:– अबे तूने भी तो देखा न। शेर मुझ पर हमला करने के बदले इधर–उधर उछलकर चला गया।


निशांत:– अबे चुतिया तो नही समझ रहा। शेर तेरे ऊपर से होकर गया और तू अपनी जगह से हिला भी नही।


आर्यमणि:– अबे ए पागल शेर का शिकार होने के लिए अपनी जगह खड़ा रहूंगा क्या? मैं तेरे साथ ही भागा था। बस तू सीधा पेड़ पर चढ़ा और मैं पीछे मुड़कर शेर को देखा, तो रुक गया...


निशांत:– अबे ये कन्फ्यूजिंग कहानी लग रही। यहां हो क्या रहा है...


उस दिन दोनो ने बहुत मंथन किया लेकिन कहीं कोई नतीजा नही निकला। दोनो को यह एहसास था की कुछ तो हो रहा था। लेकिन क्या हो रहा था पता नही। न जाने इस घटना को बीते कितने दिन हो गए थे। शेर वाली घटना भी अब जेहन में नही थी। जंगल की तफरी तो रोज ही हुआ करती थी। अजी काहे का प्रतिबंधित क्षेत्र, दोनो की घुसपैठ हर क्षेत्र में हुआ करती थी।


दोनो ही जंगल के प्रतिबंधित क्षेत्र में घुमा करते थे। शेर, चीते, भालुओं के पास से ऐसे गुजरते मानो कह रहे हो... "और भाई कैसे हो, यहां रहने में कोई परेशानी तो नहीं".. वो जानवर भी जम्हाई लेकर बस अपनी नजरें दोनो से हटाकर दूसरी ओर देखने लगते, मानो कह रहे हो... "बोर मत कर, चल आगे बढ़".. ऐसे ही दिन गुजर रहे थे।


एक दिन की बात है, दोनो घूमते हुए फिर से उसी जगह पर थे, जहां कांड हुआ था। आज भी मामला उसी दिन की तरह मिलता जुलता था। बस फर्क सिर्फ इतना था कि उस दिन शेर घात लगाए हमले की फिराक में था और आज हमला करने के लिए दौड़ लगा चुका था। वक्त कम था और आंखों के सामने हिरण को मरने तो नही दिया जा सकता था। आर्यमणि जितना तेज दौड़ सकता था, दौड़ा। बैग से स्टन रोड निकलते भागा। इधर शेर की छलांग और उधर आर्यमणि हाथों में रॉड लिए शेर और हिरण के बीच।


अब एक कदम के आगे–पीछे आर्यमणि और निशांत चल रहे थे। ऐसा तो था नही की निशांत को कुछ दिखा ही न हो। अब सीन को यदि फ्रेम करे तो। शेर किसी दिशा से हिरण के ओर दौड़ा, आर्यमणि ठीक उसके विपरीत दिशा से दौड़ा, और उसके पीछे से निशांत दौड़ा। फ्रेम में तीनों दौड़ रहे। शेर ने छलांग लगाया। आर्यमणि शेर और हिरण के बीच आया, और इधर शेर के हमले से बचाने के लिए निशांत भी आर्यमणि पर कूद गया। मतलब शेर जबतक अपने पंजे मारकर आर्यमणि को गंजा करता, उस से पहले ही निशांत उसे जमीन पर गिरा देता।


लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ। शेर छलांग लगाकर अपने पंजे चलाया और आर्यमणि के आर–पार कूद गया। शेर तो चौपाया जानवर था, लेकिन निशांत... वो तो आर्यमणि के ऊपर उसे गिराने के इरादे से कूदा, किंतु वह भी आर–पार हो गया। निशांत तो २ पाऊं वाला जानवर ठहरा। ऊपर से उसने तो केवल कूदने का प्लान किया था, आर्यमणि के आर–पार होने के बाद खुद को नियंत्रण कैसे करे इसका तो ख्याल भी नही था। वैसे इतने टाइट सिचुएशन में कोई ख्याल भी नही आते वह अलग बात है। और इसी चक्कर में निशांत ऐसा गिरा की उसका नाक टूट गयी।


इधर आर्यमणि की नजरें जो देख रही थी वह कुछ ऐसा था... शेर उस से २ फिट किनारे हवा में हमला करने के लिए छलांग लगाया और वही निशांत भी कर रहा था। निशांत की हालत देख आर्यमणि जोड़–जोड़ से हसने लगा। निशांत चिढ़कर अपने रोड को आर्यमणि के ऊपर खींचकर मारा.… आर्यमणि दोबारा हंसते हुए... "जाहिल निशाना तो सही लगा, मैं यहां हूं और तू रॉड किसपर मार रहा।"

निशांत जोर से चिल्लाते... "आर्य यहां फिर से उस दिन की तरह हो रहा है। तुझे लग रहा है हम तेरे दाएं–बाएं कूद रहे या निशाना लगा रहे और मुझे लग रहा है कि जैसे तेरी जगह तेरी आत्म खड़ी है, और हम उसके आड़–पाड़ निकल रहे।


आर्यमणि:– ये कैसा तिलिस्म है यहां का...


निशांत:– चल जरा चेक करते है कि ये तिलिस्म केवल तेरे साथ हो रहा है या सबके साथ।


आर्यमणि:– ठीक है तू मेरी जगह खड़ा हो जा..


निशांत:– मैं पहले से ही उसी जगह खड़ा हूं, जहां तू दौड़ते हुए रुका था।


आर्यमणि:– तू तैयार है, स्टन रॉड से झटका दूं..


निशांत:– ओ गोबर, यदि तिलिस्म काम नही किया तो मेरे लग जाने है। ढेला फेंककर मार


आर्यमणि ३–४ पत्थर के छोटे टुकड़े बटोरा। अतिहतन पहला धीमा चलाया। पत्थर चलाते ही आर्यमणि की आंखें बड़ी हो गयि। फिर दूसरा पूरा जोड़ लगाकर। उसके बाद तो १०–१२ ढेला फेंक दिया मगर हर बार आर्यमणि को यही लगता ढेला निशांत के पार चली गयि।



आर्यमणि:– तू सही कह रहा था, यहां कोई तिलिस्म है। अच्छा क्या यह तिलिस्म हम दोनो के ऊपर काम करता है या सभी पर?


निशांत:– कुछ कह नहीं सकते। सभी पर काम करता तो फिर शेर यहां घात लगाकर शिकार न कर रहा होता।


आर्यमणि:– मैं भी यही सोच रहा था। एक ख्याल यह भी आ रहा की शायद जानवरों पर यह तिलिस्म काम न करता हो...


निशांत:– कुछ भी पक्का नहीं है... चल इसकी टेस्टिंग करते हैं...


दोनो दोस्त वहां से चल दिए। अगले दिन एक रेंजर को झांसे में फसाया और दोनो उसे लेकर छोटी घाटी से नीचे उतर गए। छोटी घाटी से नीचे तो उतरे, लेकिन चारो ओर का नजारा देखकर स्तब्ध। इसी जगह को जब पहले देखा था और आज जब रेंजर के साथ देख रहे, जमीन आसमान का अंतर था। उस जगह पर पेड़ों की संख्या उतनी ही होगी लेकिन उनकी पूरी जगह बदली हुई लग रही थी। घाटी से नीचे उतरने के बाद जहां पहले दोनो को कुछ दूर खाली घास का मैदान दिखा था, आज वहां भी बड़े–बड़े वृक्ष थे। निशांत ने जांचने के लिए आर्यमणि को एक ढेला दे मारा, और वह ढेला आर्यमणि को लगा भी।


दोनो चुप रहे और जिस तरह रेंजर को झांसा देकर बुलाए थे, ठीक उसी प्रकार से वापस भेज दिया। रेंजर जब चला गया, निशांत उस जगह को देखते.… "कुछ तो है जो ये जगह केवल हम दोनो को समझाना चाहती है।"..


आर्यमणि:– हम्म.. आखिर इतना मजबूत तिलिस्म आया कहां से?


निशांत:– क्या हम एक अलग दुनिया का हिस्सा बनने वाले हैं, जहां तंत्र–मंत्र और काला जादू होगा।


आर्यमणि:– ये सब तो आदि काल से अस्तित्व में है, बस इन्हे जनता कोई–कोई है। समझते तो और भी कम लोग है। और इन्हें करने वाले तो गिने चुने बचे होंगे जो खुद की सच्चाई छिपाकर हमारे बीच रहते होंगे। जैसे प्रहरी और उनके वेयरवोल्फ..


निशांत:– साला लोपचे को भी वेयरवोल्फ कहते है लेकिन इतने वर्षों में हमने देखा ही नहीं की ये वेयरवोल्फ कैसे होते है?


आर्यमणि:– छोड़ उन प्रहरियों को, अभी पर फोकस कर..


निशांत:– तिलिस्म को हम कैसे समझ सकते है?


आर्यमणि:– यदि इसे साइंस की तरह प्रोजेक्ट करे तो..


निशांत:– ठीक है करता हूं... एक ऐसा मशीन है जो यहां के भू–भाग संरचना को बदल सकता है। बायोमेट्रिक टाइप कुछ लगा है, जो केवल हम दोनो को ही स्कैन कर सकता है, उसमे भी शर्तों के साथ, यदि वहां केवल हम २ इंसान हुए तब...


आर्यमणि:– मतलब..

निशांत:– मतलब कैसे समझाऊं...

आर्यमणि:– कोशिश तो कर..


निशांत:– अब यदि यहां पहले शेर और हिरण थे, और हम बाद में पहुंचे। हम जब पहुंचे तब यह पूरा इलाका दूसरे स्वरूप में था, लेकिन जो पहले से यहां होंगे उन्हें अभी वाला स्वरूप दिखेगा, जैसा हम अभी देख रहें। अभी वाला स्वरूप इस जगह की वास्तविक स्थिति है, और हम जो देखते है वो तिलिस्मी स्वरूप।


आर्यमणि:– इसका मतलब यदि वह रेंजर हमसे पहले आया होता तो उसे यह जगह वास्तविक स्थिति में दिखती। और हम दोनो बाद में पहुंचे होते तो हमे इस जगह की तिलिस्मी तस्वीर दिखती...


निशांत:– हां...


आर्यमणि:– साइंस की भाषा में कहे तो बायोमेट्रिक स्कैन तभी होगा, जब केवल हम दोनो में से कोई हो। तीसरा यदि साथ हुआ तो बायोमेट्रिक स्कैन नही होगा और यह जगह हम दोनो को भी अपने वास्तविक रूप में दिखेगी...


निशांत:– एक्जेक्टली..


आर्यमणि:– ठीक है फिर एक काम करते हैं पहले यह समझते हैं कि यह तिलिस्मी इलाका है कितने दूर का..


निशांत:– और इस कैसे समझेंगे..


आर्यमणि:– हम चार कदम चलेंगे और तुम चार कदम वापस जाकर फिर से मेरे पास आओगे…


निशांत:– इसका फायदा...


आर्यमणि:– इसका फायदा दिख जायेगा... कर तो पहले...


दोनो ने किया और वाकई फायदा दिख गया। तकरीबन 1000 मीटर आगे जाने के बाद जब निशांत चार कदम लेकर वापस आया, जगह पूरी तरह से बदल गई थी। दोनो ने इस मशीन की क्रयप्रणाली को समझने के लिए बहुत से प्रयोग किये। हर बार जब दायरे से बाहर होकर अंदर आते, तब यही समझने की कोशिश करते की आखिर इसका कोई तो केंद्र बिंदु होगा, जहां से जांच शुरू होगी। चारो ओर किनारे से देख चुके थे, लेकिन दोनो को कोई सुराग नहीं मिला। फिर अंत में दोनो ने कुछ सोचा। निशांत नीचे बॉर्डर के पास खड़ा हो गया और आर्यमणि घाटी के ऊपर।


आर्यमणि का इशारा हुआ और निशांत उस तिलिस्म के सीमा क्षेत्र में घुस गया। कोई नतीजा नही। तिलस्मी क्षेत्र बदला तो, लेकिन कोई ऐसा केंद्र न मिला जहां से जांच शुरू की जाय। जहां से पता चल सके कि आखिर ऐसा हो क्यों रहा? नतीजा भले न मिल रहा हो लेकिन इनकी कोशिश जारी रही। लगभग २० दिनो से यही काम हो रहा था। आर्यमणि ऊपर पहाड़ पर, और नीचे निशांत बॉर्डर के पास से उस तिलिस्मी क्षेत्र में घुसता। आर्यमणि ऊपर से हर बारीकी पर ध्यान रखता, लेकिन नतीजा कोई नही।


50 दिन बीते होंगे। अब तो आर्यमणि और निशांत को यह तक पता था कि जब जगह का दृश्य बदलता है, तब कौन सा पेड़ कहां होता है। नतीजा नही आ रहा था और अब तो पहले की तरह कोशिश भी नही हो रही थी। हां लेकिन हर रोज २–३ बार कोशिश तो जरूर करते थे।

Bhatakte Lopche ka tilism aise khoja gya tha arya or nisant dwara, kya fi funny way me likha hai aapne bhai superb

दोनो ही जंगल के प्रतिबंधित क्षेत्र में घुमा करते थे। शेर, चीते, भालुओं के पास से ऐसे गुजरते मानो कह रहे हो... "और भाई कैसे हो, यहां रहने में कोई परेशानी तो नहीं".. वो जानवर भी जम्हाई लेकर बस अपनी नजरें दोनो से हटाकर दूसरी ओर देखने लगते, मानो कह रहे हो... "बोर मत कर, चल आगे बढ़".. ऐसे ही दिन गुजर रहे थे।
:haha: :laugh: :laughing: maza hi dila diye bhai jabardast

निशांत तो २ पाऊं वाला जानवर ठहरा। ऊपर से उसने तो केवल कूदने का प्लान किया था,
Wah to ab nisant ko janvar bolenge aap, :D apki najar me aapka story character ab janvar ho gye, Lagta hai pat's control valo ko khabar Deni padegi :D:


Superb update bhai sandar jabarjast lajvab hasi ke thahako vala update :applause: arya or nisant ke bachpan ko padh kr anand aa gya bhai
 

B2.

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भाग:–38







किस–किस ने एडियाना का मकबरा नही तलाशा। जब वहां से हारे फिर लोपचे के भटकते मुसाफिर की तलाश शुरू हुई, क्योंकि वह पहला और आखरी खोजी था जो एडियाना के मकबरे तक पहुंचा था। लेकिन वहां भी सभी को निराशा हाथ लगी। दुनिया में केवल 2 लोग, आर्यमणि और निशांत ही ऐसा था, जिसे पता था कि ऐडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित अंगूठी नही है। बाकी दुनिया को अब भी यही पता था कि एडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित पत्थर, बिजली का खंजर और बहरूपिया चोगा है, जिस तक पहुंचने का राज लोपचे का भटकता मुसाफिर है। अब एडियाना से पहले लोपचे के भटकते मुसाफिर को तलाश किया जाने लगा।


कइयों ने कोशिश किया और सबके हाथ सिर्फ नाकामी लगी। और जो किसी को नही मिला वह भटकते हुये 2 अबोध बालक आर्यमणि और निशांत को गंगटोक के घने जंगलों से मिल गया।


बात शायद 12-13 साल पुरानी होगी। एक के बाद एक कई सारे कांड हो चुके थे। पहले आर्यमणि और उसकी पहली चाहत मैत्री लोपचे का बड़ा भाई सुहोत्र से लड़ाई। लड़ाई के कुछ दिनों बाद ही शिकारियों द्वारा लोपचे के कॉटेज को ही पूरा जला देना। कुछ लोग जो किसी तरह अपनी जान बचा सके, वह गंगटोक से भागकर जर्मनी पहुंच गये, जिनमे से एक मैत्री भी थी। और उसके कुछ वक्त बाद ही वर्धराज कुलकर्णी यानी की आर्यमणि के दादा जी का निधन।


मैत्री और वर्धराज कुलकर्णी, दोनो ही आर्यमणि के काफी करीबी थे। इन सारी घटनाओं ने आर्यमणि को ऐसा तोड़ा था कि उसका ज्यादातर वक्त अकेले में ही कटता था। वो तो निशांत और चित्रा थी, जिनकी वजह से आर्यमणि कुछ–कुछ आगे बढ़ना सिखा था। उन्ही दिनों निशांत की जिद पर सुरक्षा कर्मचारी उन्हे (निशांत और आर्यमणि) घने जंगलों में घुमाने ले जाते थे। आर्यमणि जब भी घायल जानवरों को दर्द से बिलखते देखता, उसकी भावना कहीं न कहीं आर्यमणि से जुड़ जाती। कोई भी घायल जानवर के पास से आर्यमणि तबतक नही हटता था, जबतक रेंजर की बचाव टुकड़ी वहां नही पहुंच जाती।


कुछ वक्त बाद तो जबतक घायल जानवरों का इलाज पूरा नही हो जाता, तबतक आर्यमणि और निशांत पशु चिकित्सालय से घर नही जाते थे। और उसके थोड़े वक्त बाद तो दोनो घायल जानवरों की सेवा करने में भी जुट गये। लगभग १२ वर्ष की आयु जब हुई होगी, तबसे तो दोनो अकेले ही जंगल भाग जाते। उन्ही दिनों इनका सामना एक शेर से हो गया था और आस–पास कोई भी नही। दोनो अपनी जान बचाने के लिये लोपचे के खंडहर में छिप गए। उस दिन जब जान पर बनी, फिर दोनो दोस्त की हिम्मत नही हुई कि जंगल की ओर देखे भी।


लेकिन वक्त जैसे हर मरहम की दवा हो। कुछ दिन बीते तो फिर से इनका जंगल घूमना शुरू हो गया। कई बार कोई रेंजर मिल जाता तो उसके साथ घूमता, तो कई बार सैलानियों के साथ। अब इसमें कोई २ राय नहीं की इन्हे घर पर डांट ना पड़ती हो, वो सब बदस्तूर जारी था, लेकिन इनका अकेले जंगल जाना कभी बंद नहीं हुआ। कुछ रेंजर्स द्वारा सिखाये गए तकनीक, कुछ खुद के अनुभव के आधार पर दोनो जंगल के विषम परिस्थितियों का सामना करना अच्छे से सिख रहे थे।


कुछ और वर्ष बीता। दोनो (आर्यमणि और निशांत) की आयु १४ वर्ष की हो चुकी थी। जंगल के विषम परिस्थिति से निकलने में दोनो ने डॉक्टोरियट डिग्री ले चुके थे। अब तो दोनो किसी खोजकर्ता की तरह कार्य करते थे। उन्ही दिनों एक घटना हुई। यह घटना जंगल के एक प्रतिबंधित क्षेत्र की थी, जहां रेंजर भी जाने से डरते थे। दोनो एक छोटी सी घाटी के नीचे पहुंचे थे और जंगल में कुछ दूर आगे बढ़े ही होंगे, कि आंखों के सामने एक शेर। शेर किसी हिरण पर घात लगाये था और जैसे उसके हाव–भाव थे, वह किसी भी वक्त हिरण पर हमला कर सकता था। आर्यमणि ने जैसे ही यह देखा, पास पड़े पत्थर को हिरण के ऊपर चलाकर हिरण को वहां से भाग दिया। पत्थर के चलते ही हिरण तो भाग गया लेकिन शेर की खौफनाक आवाज वहां गूंजने लगी।


शेर की खौफनाक आवाज सुनकर आर्यमणि और निशांत दोनो सचेत हो गये। निशांत तुरंत ही अपना बैग उठाकर भागा और सबसे नजदीकी पेड़ पर चढ़ गया। पेड़ पर चढ़ने के बाद निशांत अपने हाथ में स्टन रोड (एक प्रकार का रॉड जिससे हाई वोल्टेज करेंट निकलता हो) लेकर शेर को करेंट खिलाने के लिए तैयार हो गया। निशांत तो पूरा तैयार था, लेकिन आर्यमणि, वह तो जैसे अपनी जगह पर जम गया था।


शेर दहाड़ के साथ ही दौड़ लगा चुका था और निशांत पेड़ पर तैयार होकर जैसे ही अपनी नजरे आर्यमणि के ओर किया, उसके होश उड़ गये। गला फाड़कर कयी बार निशांत चिल्लाया, लेकिन आर्यमणि अपनी जगह से हिला नही। निशांत पेड़ से नीचे उतरकर भी कुछ कर नही सकता था, क्योंकि शेर दौड़ते हुये छलांग लगा चुका था। एक पल के लिए निशांत की आंखें बंद और अगले ही पल उतनी हैरानी से बड़ी हो गयि। आर्यमणि अब भी अपने जगह पर खड़ा था।


पहला हमला विफल होने के बाद बौखलाए शेर ने दोबारा हमला किया। शेर दहाड़ता हुआ दौड़ा और छलांग लगाकर जैसे ही आर्यमणि पर हमला किया, आर्यमणि अपनी जगह ही खड़ा है और शेर आगे निकल गया। जी तोड़ कोशिशों के बाद भी जब वही सब बार–बार दोहराता रहा, तब अंत में शेर वहां से चला गया। निशांत बड़ी हैरानी से पूछा.… "अरे यहां हो क्या रहा है?"


आर्यमणि:– मुझे भी नही पता निशांत। जब शेर दहाड़ रहा था तब मैंने भी भागा। लेकिन मुड़कर जब शेर को दौड़ लगाते देखा तो हैरान हो गया...


निशांत:– अबे और गोल–गोल चक्कर न खिला... मैं तुझे देखकर हैरान हूं, तू शेर को देखकर हैरान है।


आर्यमणि:– अबे तूने भी तो देखा न। शेर मुझ पर हमला करने के बदले इधर–उधर उछलकर चला गया।


निशांत:– अबे चुतिया तो नही समझ रहा। शेर तेरे ऊपर से होकर गया और तू अपनी जगह से हिला भी नही।


आर्यमणि:– अबे ए पागल शेर का शिकार होने के लिए अपनी जगह खड़ा रहूंगा क्या? मैं तेरे साथ ही भागा था। बस तू सीधा पेड़ पर चढ़ा और मैं पीछे मुड़कर शेर को देखा, तो रुक गया...


निशांत:– अबे ये कन्फ्यूजिंग कहानी लग रही। यहां हो क्या रहा है...


उस दिन दोनो ने बहुत मंथन किया लेकिन कहीं कोई नतीजा नही निकला। दोनो को यह एहसास था की कुछ तो हो रहा था। लेकिन क्या हो रहा था पता नही। न जाने इस घटना को बीते कितने दिन हो गए थे। शेर वाली घटना भी अब जेहन में नही थी। जंगल की तफरी तो रोज ही हुआ करती थी। अजी काहे का प्रतिबंधित क्षेत्र, दोनो की घुसपैठ हर क्षेत्र में हुआ करती थी।


दोनो ही जंगल के प्रतिबंधित क्षेत्र में घुमा करते थे। शेर, चीते, भालुओं के पास से ऐसे गुजरते मानो कह रहे हो... "और भाई कैसे हो, यहां रहने में कोई परेशानी तो नहीं".. वो जानवर भी जम्हाई लेकर बस अपनी नजरें दोनो से हटाकर दूसरी ओर देखने लगते, मानो कह रहे हो... "बोर मत कर, चल आगे बढ़".. ऐसे ही दिन गुजर रहे थे।


एक दिन की बात है, दोनो घूमते हुए फिर से उसी जगह पर थे, जहां कांड हुआ था। आज भी मामला उसी दिन की तरह मिलता जुलता था। बस फर्क सिर्फ इतना था कि उस दिन शेर घात लगाए हमले की फिराक में था और आज हमला करने के लिए दौड़ लगा चुका था। वक्त कम था और आंखों के सामने हिरण को मरने तो नही दिया जा सकता था। आर्यमणि जितना तेज दौड़ सकता था, दौड़ा। बैग से स्टन रोड निकलते भागा। इधर शेर की छलांग और उधर आर्यमणि हाथों में रॉड लिए शेर और हिरण के बीच।


अब एक कदम के आगे–पीछे आर्यमणि और निशांत चल रहे थे। ऐसा तो था नही की निशांत को कुछ दिखा ही न हो। अब सीन को यदि फ्रेम करे तो। शेर किसी दिशा से हिरण के ओर दौड़ा, आर्यमणि ठीक उसके विपरीत दिशा से दौड़ा, और उसके पीछे से निशांत दौड़ा। फ्रेम में तीनों दौड़ रहे। शेर ने छलांग लगाया। आर्यमणि शेर और हिरण के बीच आया, और इधर शेर के हमले से बचाने के लिए निशांत भी आर्यमणि पर कूद गया। मतलब शेर जबतक अपने पंजे मारकर आर्यमणि को गंजा करता, उस से पहले ही निशांत उसे जमीन पर गिरा देता।


लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ। शेर छलांग लगाकर अपने पंजे चलाया और आर्यमणि के आर–पार कूद गया। शेर तो चौपाया जानवर था, लेकिन निशांत... वो तो आर्यमणि के ऊपर उसे गिराने के इरादे से कूदा, किंतु वह भी आर–पार हो गया। निशांत तो २ पाऊं वाला जानवर ठहरा। ऊपर से उसने तो केवल कूदने का प्लान किया था, आर्यमणि के आर–पार होने के बाद खुद को नियंत्रण कैसे करे इसका तो ख्याल भी नही था। वैसे इतने टाइट सिचुएशन में कोई ख्याल भी नही आते वह अलग बात है। और इसी चक्कर में निशांत ऐसा गिरा की उसका नाक टूट गयी।


इधर आर्यमणि की नजरें जो देख रही थी वह कुछ ऐसा था... शेर उस से २ फिट किनारे हवा में हमला करने के लिए छलांग लगाया और वही निशांत भी कर रहा था। निशांत की हालत देख आर्यमणि जोड़–जोड़ से हसने लगा। निशांत चिढ़कर अपने रोड को आर्यमणि के ऊपर खींचकर मारा.… आर्यमणि दोबारा हंसते हुए... "जाहिल निशाना तो सही लगा, मैं यहां हूं और तू रॉड किसपर मार रहा।"

निशांत जोर से चिल्लाते... "आर्य यहां फिर से उस दिन की तरह हो रहा है। तुझे लग रहा है हम तेरे दाएं–बाएं कूद रहे या निशाना लगा रहे और मुझे लग रहा है कि जैसे तेरी जगह तेरी आत्म खड़ी है, और हम उसके आड़–पाड़ निकल रहे।


आर्यमणि:– ये कैसा तिलिस्म है यहां का...


निशांत:– चल जरा चेक करते है कि ये तिलिस्म केवल तेरे साथ हो रहा है या सबके साथ।


आर्यमणि:– ठीक है तू मेरी जगह खड़ा हो जा..


निशांत:– मैं पहले से ही उसी जगह खड़ा हूं, जहां तू दौड़ते हुए रुका था।


आर्यमणि:– तू तैयार है, स्टन रॉड से झटका दूं..


निशांत:– ओ गोबर, यदि तिलिस्म काम नही किया तो मेरे लग जाने है। ढेला फेंककर मार


आर्यमणि ३–४ पत्थर के छोटे टुकड़े बटोरा। अतिहतन पहला धीमा चलाया। पत्थर चलाते ही आर्यमणि की आंखें बड़ी हो गयि। फिर दूसरा पूरा जोड़ लगाकर। उसके बाद तो १०–१२ ढेला फेंक दिया मगर हर बार आर्यमणि को यही लगता ढेला निशांत के पार चली गयि।



आर्यमणि:– तू सही कह रहा था, यहां कोई तिलिस्म है। अच्छा क्या यह तिलिस्म हम दोनो के ऊपर काम करता है या सभी पर?


निशांत:– कुछ कह नहीं सकते। सभी पर काम करता तो फिर शेर यहां घात लगाकर शिकार न कर रहा होता।


आर्यमणि:– मैं भी यही सोच रहा था। एक ख्याल यह भी आ रहा की शायद जानवरों पर यह तिलिस्म काम न करता हो...


निशांत:– कुछ भी पक्का नहीं है... चल इसकी टेस्टिंग करते हैं...


दोनो दोस्त वहां से चल दिए। अगले दिन एक रेंजर को झांसे में फसाया और दोनो उसे लेकर छोटी घाटी से नीचे उतर गए। छोटी घाटी से नीचे तो उतरे, लेकिन चारो ओर का नजारा देखकर स्तब्ध। इसी जगह को जब पहले देखा था और आज जब रेंजर के साथ देख रहे, जमीन आसमान का अंतर था। उस जगह पर पेड़ों की संख्या उतनी ही होगी लेकिन उनकी पूरी जगह बदली हुई लग रही थी। घाटी से नीचे उतरने के बाद जहां पहले दोनो को कुछ दूर खाली घास का मैदान दिखा था, आज वहां भी बड़े–बड़े वृक्ष थे। निशांत ने जांचने के लिए आर्यमणि को एक ढेला दे मारा, और वह ढेला आर्यमणि को लगा भी।


दोनो चुप रहे और जिस तरह रेंजर को झांसा देकर बुलाए थे, ठीक उसी प्रकार से वापस भेज दिया। रेंजर जब चला गया, निशांत उस जगह को देखते.… "कुछ तो है जो ये जगह केवल हम दोनो को समझाना चाहती है।"..


आर्यमणि:– हम्म.. आखिर इतना मजबूत तिलिस्म आया कहां से?


निशांत:– क्या हम एक अलग दुनिया का हिस्सा बनने वाले हैं, जहां तंत्र–मंत्र और काला जादू होगा।


आर्यमणि:– ये सब तो आदि काल से अस्तित्व में है, बस इन्हे जनता कोई–कोई है। समझते तो और भी कम लोग है। और इन्हें करने वाले तो गिने चुने बचे होंगे जो खुद की सच्चाई छिपाकर हमारे बीच रहते होंगे। जैसे प्रहरी और उनके वेयरवोल्फ..


निशांत:– साला लोपचे को भी वेयरवोल्फ कहते है लेकिन इतने वर्षों में हमने देखा ही नहीं की ये वेयरवोल्फ कैसे होते है?


आर्यमणि:– छोड़ उन प्रहरियों को, अभी पर फोकस कर..


निशांत:– तिलिस्म को हम कैसे समझ सकते है?


आर्यमणि:– यदि इसे साइंस की तरह प्रोजेक्ट करे तो..


निशांत:– ठीक है करता हूं... एक ऐसा मशीन है जो यहां के भू–भाग संरचना को बदल सकता है। बायोमेट्रिक टाइप कुछ लगा है, जो केवल हम दोनो को ही स्कैन कर सकता है, उसमे भी शर्तों के साथ, यदि वहां केवल हम २ इंसान हुए तब...


आर्यमणि:– मतलब..

निशांत:– मतलब कैसे समझाऊं...

आर्यमणि:– कोशिश तो कर..


निशांत:– अब यदि यहां पहले शेर और हिरण थे, और हम बाद में पहुंचे। हम जब पहुंचे तब यह पूरा इलाका दूसरे स्वरूप में था, लेकिन जो पहले से यहां होंगे उन्हें अभी वाला स्वरूप दिखेगा, जैसा हम अभी देख रहें। अभी वाला स्वरूप इस जगह की वास्तविक स्थिति है, और हम जो देखते है वो तिलिस्मी स्वरूप।


आर्यमणि:– इसका मतलब यदि वह रेंजर हमसे पहले आया होता तो उसे यह जगह वास्तविक स्थिति में दिखती। और हम दोनो बाद में पहुंचे होते तो हमे इस जगह की तिलिस्मी तस्वीर दिखती...


निशांत:– हां...


आर्यमणि:– साइंस की भाषा में कहे तो बायोमेट्रिक स्कैन तभी होगा, जब केवल हम दोनो में से कोई हो। तीसरा यदि साथ हुआ तो बायोमेट्रिक स्कैन नही होगा और यह जगह हम दोनो को भी अपने वास्तविक रूप में दिखेगी...


निशांत:– एक्जेक्टली..


आर्यमणि:– ठीक है फिर एक काम करते हैं पहले यह समझते हैं कि यह तिलिस्मी इलाका है कितने दूर का..


निशांत:– और इस कैसे समझेंगे..


आर्यमणि:– हम चार कदम चलेंगे और तुम चार कदम वापस जाकर फिर से मेरे पास आओगे…


निशांत:– इसका फायदा...


आर्यमणि:– इसका फायदा दिख जायेगा... कर तो पहले...


दोनो ने किया और वाकई फायदा दिख गया। तकरीबन 1000 मीटर आगे जाने के बाद जब निशांत चार कदम लेकर वापस आया, जगह पूरी तरह से बदल गई थी। दोनो ने इस मशीन की क्रयप्रणाली को समझने के लिए बहुत से प्रयोग किये। हर बार जब दायरे से बाहर होकर अंदर आते, तब यही समझने की कोशिश करते की आखिर इसका कोई तो केंद्र बिंदु होगा, जहां से जांच शुरू होगी। चारो ओर किनारे से देख चुके थे, लेकिन दोनो को कोई सुराग नहीं मिला। फिर अंत में दोनो ने कुछ सोचा। निशांत नीचे बॉर्डर के पास खड़ा हो गया और आर्यमणि घाटी के ऊपर।


आर्यमणि का इशारा हुआ और निशांत उस तिलिस्म के सीमा क्षेत्र में घुस गया। कोई नतीजा नही। तिलस्मी क्षेत्र बदला तो, लेकिन कोई ऐसा केंद्र न मिला जहां से जांच शुरू की जाय। जहां से पता चल सके कि आखिर ऐसा हो क्यों रहा? नतीजा भले न मिल रहा हो लेकिन इनकी कोशिश जारी रही। लगभग २० दिनो से यही काम हो रहा था। आर्यमणि ऊपर पहाड़ पर, और नीचे निशांत बॉर्डर के पास से उस तिलिस्मी क्षेत्र में घुसता। आर्यमणि ऊपर से हर बारीकी पर ध्यान रखता, लेकिन नतीजा कोई नही।


50 दिन बीते होंगे। अब तो आर्यमणि और निशांत को यह तक पता था कि जब जगह का दृश्य बदलता है, तब कौन सा पेड़ कहां होता है। नतीजा नही आ रहा था और अब तो पहले की तरह कोशिश भी नही हो रही थी। हां लेकिन हर रोज २–३ बार कोशिश तो जरूर करते थे।
Awesome update Bhai ❤️,
But Little confusing,
Vo place sirf Arya aur Nishant ko hi ese kyo dikh rahi h,
I hope next update me confusion dur ho jayegi kal😇
 
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