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वोह रिजर्व का भी रिजर्व हैअच्छा सीरियसली एक बात पूछता हूं
ये 5 6 पोस्ट रिजर्व में रखने का क्या फायदा होता है, मतलब ज्यादा से ज्यादा एक या दो रिजर्व पोस्ट ही काम आते हैं। बाकी सब ऐसे ही पड़े रहते हैं। इतिहास गवाह है इस बात का![]()

वोह रिजर्व का भी रिजर्व हैअच्छा सीरियसली एक बात पूछता हूं
ये 5 6 पोस्ट रिजर्व में रखने का क्या फायदा होता है, मतलब ज्यादा से ज्यादा एक या दो रिजर्व पोस्ट ही काम आते हैं। बाकी सब ऐसे ही पड़े रहते हैं। इतिहास गवाह है इस बात का![]()
Yahi to pagalpan haiवोह रिजर्व का भी रिजर्व है![]()
Congratulations
Reserves post karne ke liye![]()
Congratulations samar bhai
Nawa story thread ke liye
CongratulationsSamru for new story
Tum to na aaye haweli pe?Update 1 posted
Do like and give you precious review
Bohot accheअध्याय 1
अर्थवन राज्य की बाहरी सीमा के जंगल
प्रकृति का सुंदरतम रूप है ये वन, कोसों दूर तक फैले घन पेड़ो पर जब सूर्य का स्वर्णिम प्रकाश पड़ता है तो सारा जंगल स्वर्ण से नहा जाता है। जैसे हरे स्वर्ण का कोई सागर अनंत तक हो, जिसका कोई अंत नजर नहीं आता। पक्षियों की कलरव, मोर की गान, कोयल की कुक एक साथ मल्हार गाते है। ये सुमधुर आवाजें और ये मनोहारी दृश्य स्वर्ग में होने का अहसास देते है।
जितना बाहर से सुंदर और सुरम्य ये वन है अंदर उतना ही भयावह भी है, सूर्य का प्रकाश कही कही ज़मीन तक पहुंचता है, और लगभग सारा जंगल अंधेरे में डूब नजर आता है। पक्षियों की मधुर आवाज के साथ भयानक जानवरों की चीख और दहाड़ जंगल को दहला देती है। कोई मनुष्य अकेले इस वन में कदम रखने की सोच भी नहीं सकता।
लेकिन इसी जंगल में एक आदमी सरोवर में खड़ा हो सूर्य को नमन कर रहा है।
"ओम सूर्याय नमः!"
काफी देर तक वह उस तालाब में सूरज की तरफ आंखें बंद किए ,मंत्रोच्चार करता रहा फिर बाहर आकर अपने वस्त्र पहने नीचे एक धोती और शरीर पर अंगवस्त्र डालकर, हाथ में एक बड़ा सा डंडा लिए चल दिया।
कुछ समय बाद, तालाब से दूर आने के बाद अचानक उस आदमी को हवा में कुछ अजीब लगा और उसके कदम वही रुक गए।
"ये गंध! ये तो खून की महक है"
"शायद आस पास कोई जानवर मरा है, लेकिन ये तीव्र क्यूं है और इसमें, इसमें तो इंसान की महक भी है"
ये आभास होते ही की खून की गंध सिर्फ जानवर की नहीं बल्कि इंसान की भी है, उन उस गंध की दिशा में चलना शुरू कर दिया।
उसका शरीर विशाल था, शरीर पर कुछ चोटों के निशान भी थे। देखने वाला कह सकता था कि ये कोई पुराना योद्धा है जिसने युद्ध छोड़कर सन्यासी वेश धर लिया है।
वो पूरा चौकन्ना होकर आगे बढ़ रहा था, अपने डंडे पर उसकी पकड़ मजबूत थी। जैसे जैसे वह आगे बढ़ रहा था खून की गंध और तीक्ष्ण होती जा रही थी, इतनी की कोई इससे बेहोश हो जाए। लेकिन उस व्यक्ति को जैसे इससे कोई फर्क नहीं पढ़ रहा था, बिन कदमों की आवाज किए वोह आगे बढ़ रहा था।
वोह उस जगह पर पहुंचा तो सामने का दृश्य देखकर हैरान रह गया। जमीन पर 2 जंगली शेरों की लाश पड़ी थी, एक के पेट में तलवार घुसी हुई थी। पास में ही 6 और आदमी मरे पड़े थे और उन सबकी लाशों को सियार नोच नोचकर खा रहे थे। लेकिन जिस चीज पर उस आदमी की नजर अटकी थी वह एक औरत का मृत शरीर, जिसकी खुली आंखें जैसे उसे ही घूर रही थी। पेड़ के पीछे छिपे हुए उन आंखों को देखकर उसके शरीर में एक झुरझुरी सी दौड़ गई। इसी सब में उसका पैर एक लकड़ी पर पड़ा जिसकी आवाज से उन सियारों की नजर उस आदमी पर गई।
उसे देखकर वह गुस्से में गुर्राने लगे, शायद उनके भोजन में ये खलल उन्हें पसंद नहीं आया और वो अपना खाना छोड़कर उसकी तरफ बढ़ने लगे।
आदमी भी अब डंडे को आगे किए लड़ने को तैयार हो गया। सियार संख्या में चार थे जो अब इस आदमी को भी अपना भोजन बनाने का सोच रहे थे। एक सियार तेजी से दौड़ते हुए आया और करीब आकर छलांग लगा दी। लेकिन अगले ही पल वोह एक जबरदस्त वार से जमीन पर पड़ा कुकुयाने लगा। आदमी ने इतनी तेज़ी से डंडे का वार किया था कि वह नज तक नहीं आया। अपने साथी को ऐसे पड़ा देखकर वह और नाराज़ हो गए और अपने नुकीले दांतों को दिखाकर अपना गुस्सा जताने लगे।
इस बार दो सियार एक साथ हमला करने एक साथ आए, दोनों अलग अलग दिशा से एक साथ हमला करने वाले थे। वोह आदमी दो कदम पीछे हुआ और अपने दाएं तरफ से आने वाले सियार पर हमला करने के लिए उसकी तरफ बढ़ने लगा। जैसे ही दाएं तरफ वाले सियार ने उसपर हमला किया वोह जमीन से 4 फीट ऊपर कूदा और उस सियार के पेट पर डंडे से वार किया। जैसे ही उसके कदम जमीन पर पड़े उसके पीछे से दूसरे सियार ने उसकी पीठ पर हमला कर दिया और अपने नुकीले पंजे से उसकी पीठ पर वार किया, आदमी को अपनी पीठ पर तेज दर्द का अहसास हुआ उसकी पीठ से खून निकलने लगा और उसका अंगवस्त्र लाल हो गया।
लेकिन उसने जल्दी अपने को संभाला और डंडे को लेकर खड़ा हो गया, अब चारों सियार भी खड़े हो चुके थे और उसे चारों तरफ से घेर लिया। सियार उसके चारों तरफ घूमकर सही मौके की तलाश करने लगे।
आदमी ने अपनी आंखें बंद की और कुछ मंत्र पढ़ने लगा, फिर आंख बंद किए ही उस डंडे को तेजी से अपने चारों ओर घूमना शुरू कर दिया, उसकी गति तेज होती जा रही थी, इतनी तेज की डंडे से एक अदृश्य कवच सा उसके चारों तरफ बन गया। चारों सियार एक साथ हमला करने के इरादे से एक साथ उसकी तरफ दौड़े, जैसे ही वे उस डंडे की पहुंच में आए एक साथ चारों हवा में थे, आदमी ने एक छलांग लगाई और हवा में ही चारों पर अनगिनत वार किए। कुछ ही पल में वे जमीन की धूल चाट रहे थे। चारों समझ गए कि इस आदमी को वोह कुछ नहीं कर पाएंगे तो गुर्राते हुए दम दबाकर भाग खड़े हुए।
सियारों के जाने के बाद आदमी ने आगे बढ़कर उन मृत शरीरों का मुआयना किया।
" हुआ क्या है यहां?"
"ये सैनिक तो विधानगढ़ राज्य के है"
"लेकिन अर्थवन की सीमा में क्या कर रहे थे"
फिर वोह उस औरत की लाश के पास पहुंचा। औरत के शरीर पर कई घाव थे और उसकी दांई जांघ में एक तीर घुसा हुआ था। उसके एक हाथ में एक तलवार थी जिसपर मौत के बाद भी उसकी पकड़ बनी हुई थी। और दूसरे हाथ से उसने किसी चीज को अपने से चिपटाए पड़ी हुई थी। आदमी ने जमीन पर बैठकर उस औरत का हाथ हटाया और लाल कपड़े में पकड़ी उस चीज को उठा लिया, कपड़ा उठकर उस देख तो वह हैरान रह गया, कपड़े में एक नवजात बच्चा था।
बच्चे का शरीर गर्म था, और सांसें चल रही थी। आदमी ने बच्चे को जब हिलाया तो उसने रोना शुरू कर दिया।
"ये जीवित है लेकिन इसका शरीर बहुत तप रहा है, मुझे सहायता बुलानी चाहिए "
आदमी ने एक खास तरह की आवाज निकालनी शुरू कर दी, जो मिलो दूर भी सुनी जा सकती थी।
आश्रम
"ये आवाज तो देवदत्त का ध्वनि संदेश है" एक आदमी ने कहा
"ये उत्तर पूर्व से दो कोस दूरी से आ रही है" दूसरा आदमी बोला
तभी पहले आदमी ने कहा " देवा, केसर, महेश, हरलोक"
चार लड़के तुरंत वहां आ खड़े हुए।
"जी गुरुजी"
"अभी उत्तर पूर्व में ध्वनि की दिशा में जाओ और देवदत्त की सहायता करो"
चारों तुंरत वहां से निकल चले।
कुछ देर बाद चारों लड़के और देवदत्त वहां चला आ रहा था। उसके पास वोह नवजात भी था और दो लड़क उस औरत की लाश को उठाए ला रहे थे।
आश्रम के लोग वहां जमा हो गए, और आपस में खुसुर पुसुर करने लगे। गुरुजी आगे आए और बोले।
" ये क्या है देवदत्त, तुम्हारे हाथ में ये बच्चा और ये औरत"
"वोह मृत है गुरुजी, अंदर चलकर सब बताता हूं "
गुरुजी और देवदत्त के अलावा कमरे में और 4- 5 लोग थे। देवदत्त ने सब कुछ विस्तार से बताया।
गुरुजी - हम्म, विशेषगर्भा के सैनिक!
देवदत्त - यह बालक जीवित है, और वहां की दशा देखकर मुझे लगा कि शायद ये स्त्री उस बालक की रक्षा कर रही थी, इसलिए मैं दोनों को यहां ले आया।
एक आदमी - और उन सैनिकों का क्या हुआ।
देवदत्त - उन सभी को मैंने वही जंगल में दफना दिया है और सारे सबूत भी मिटा दिए है।
दूसरा आदमी - गुरु जी अर्थवन और विधानगढ़ में पहले से ही दुश्मनी है, ये कोई षड्यंत्र भी हो सकता है।
गुरुजी - हम्म, ऐसा संभव है, खैर ये बात यहां से बाहर ना जाए। और पुलरूप! (एक आदमी को देखते हुए)
पुलरूप - जी गुरुजी
गुरु जी - तुम आज ही शल्यनगर ( विधानगढ़ की राजधानी) के लिए निकलो और देखो कोई संदेह वाली बात लगे तो मुझे आकर बताओ।
पुलरूप - जो आज्ञा गुरुजी
ये कहकर सभी उस कमरे से बाहर निकलते है।
देवदत्त - इस बालक का क्या करे गुरुजी
गुरु - ये अब इसी आश्रम में रहेगा, विलक्षणा इसका पालन पोषण करेगी।
देवदत्त - अति उत्तम गुरुजी, अब आज्ञा दे, उस स्त्री की अंतिम क्रिया भी करवानी है।
गुरु - ठीक है, वनदेवी तुम्हारा कल्याण करे।
ये कहकर देवदत्त वहां से निकल जाता है।
शल्यनगर (विधानगढ़ की राजधानी)
राजमहल का एक भव्य कक्ष।
एक आदमी जिसकी आयु 60 वर्ष से अधिक ही होगी, लेकिन उसके चेहरे का तेज और उसका बलिष्ठ शरीर ऐसा प्रतीत नहीं होने देता। अपने कक्ष में एक जगह से दूसरी जगह घूम रहा है उसके चेहरे के भाव किसी की प्रतीक्षा करने का संकेत देते है। बार बार वह अपने कक्ष की खिड़की की ओर देख रहा है।
मुड़कर आते हुए उस आदमी को खिड़की पर एक आदमी नज़र आया, जबकि एक पल पहले वहां कोई नहीं था। खिड़की पर एक चबूतरा बना हुआ था जिसपर वह बैठ था, उसका पूरा शरीर काले लिबास में ढका था और चेहरे पर भी कला नकाब था, उसकी आंखें भी काले पारदर्शी कपड़े से ढकी हुई थी।
खिड़की पर बैठे आदमी ने कहा
नकाबपोश आदमी - महामात्य को सेवक का प्रणाम
महाअमात्य - जल्दी संदेश बताओ
नकाबपोश - आपकी आज्ञा अनुसार कार्य पूर्ण हुआ, उन सभी को मृत्यु दे दी गई है।
महाअमात्य - उस बालक का क्या हुआ।
नकाबपोश - उसे वह दासी बचाकर ले जा रही थी। लेकिन हमारे सैनिकों ने उसे अर्थवन के जंगलों में घेरलिया और मार दिया। किन्तु...हमारे भी 100 से अधिक सैनिक मारे गए।
महाअमात्य - हम्म केवल सौ, इस कार्य में 1000 सैनिक भी मारे जाते तो आश्चर्य नहीं होता। यानि कई सैनिक जीवित लौटे है।
नकाबपोश - जी अमात्य
महाअमात्य - तो उन्हें भी अपने साथियों के पास पहुंचा दो, इस कार्य से जुड़ा कोई सैनिक जीवित नहीं रहना चाहिए। अब जाओ, मुझे महाराज को ये सूचना देनी है।
अमात्य ने एक सोने के सिक्कों से भरी पोटली आदमी की तरफ फेंकी।
नकाबपोश - जो आज्ञा, महाराज की जय हो, महाअमात्य की जय हो।
महाअमात्य राजा के कक्ष की ओर चला जाता है।
Zabardast shuruwatअध्याय 1
अर्थवन राज्य की बाहरी सीमा के जंगल
प्रकृति का सुंदरतम रूप है ये वन, कोसों दूर तक फैले घन पेड़ो पर जब सूर्य का स्वर्णिम प्रकाश पड़ता है तो सारा जंगल स्वर्ण से नहा जाता है। जैसे हरे स्वर्ण का कोई सागर अनंत तक हो, जिसका कोई अंत नजर नहीं आता। पक्षियों की कलरव, मोर की गान, कोयल की कुक एक साथ मल्हार गाते है। ये सुमधुर आवाजें और ये मनोहारी दृश्य स्वर्ग में होने का अहसास देते है।
जितना बाहर से सुंदर और सुरम्य ये वन है अंदर उतना ही भयावह भी है, सूर्य का प्रकाश कही कही ज़मीन तक पहुंचता है, और लगभग सारा जंगल अंधेरे में डूब नजर आता है। पक्षियों की मधुर आवाज के साथ भयानक जानवरों की चीख और दहाड़ जंगल को दहला देती है। कोई मनुष्य अकेले इस वन में कदम रखने की सोच भी नहीं सकता।
लेकिन इसी जंगल में एक आदमी सरोवर में खड़ा हो सूर्य को नमन कर रहा है।
"ओम सूर्याय नमः!"
काफी देर तक वह उस तालाब में सूरज की तरफ आंखें बंद किए ,मंत्रोच्चार करता रहा फिर बाहर आकर अपने वस्त्र पहने नीचे एक धोती और शरीर पर अंगवस्त्र डालकर, हाथ में एक बड़ा सा डंडा लिए चल दिया।
कुछ समय बाद, तालाब से दूर आने के बाद अचानक उस आदमी को हवा में कुछ अजीब लगा और उसके कदम वही रुक गए।
"ये गंध! ये तो खून की महक है"
"शायद आस पास कोई जानवर मरा है, लेकिन ये तीव्र क्यूं है और इसमें, इसमें तो इंसान की महक भी है"
ये आभास होते ही की खून की गंध सिर्फ जानवर की नहीं बल्कि इंसान की भी है, उन उस गंध की दिशा में चलना शुरू कर दिया।
उसका शरीर विशाल था, शरीर पर कुछ चोटों के निशान भी थे। देखने वाला कह सकता था कि ये कोई पुराना योद्धा है जिसने युद्ध छोड़कर सन्यासी वेश धर लिया है।
वो पूरा चौकन्ना होकर आगे बढ़ रहा था, अपने डंडे पर उसकी पकड़ मजबूत थी। जैसे जैसे वह आगे बढ़ रहा था खून की गंध और तीक्ष्ण होती जा रही थी, इतनी की कोई इससे बेहोश हो जाए। लेकिन उस व्यक्ति को जैसे इससे कोई फर्क नहीं पढ़ रहा था, बिन कदमों की आवाज किए वोह आगे बढ़ रहा था।
वोह उस जगह पर पहुंचा तो सामने का दृश्य देखकर हैरान रह गया। जमीन पर 2 जंगली शेरों की लाश पड़ी थी, एक के पेट में तलवार घुसी हुई थी। पास में ही 6 और आदमी मरे पड़े थे और उन सबकी लाशों को सियार नोच नोचकर खा रहे थे। लेकिन जिस चीज पर उस आदमी की नजर अटकी थी वह एक औरत का मृत शरीर, जिसकी खुली आंखें जैसे उसे ही घूर रही थी। पेड़ के पीछे छिपे हुए उन आंखों को देखकर उसके शरीर में एक झुरझुरी सी दौड़ गई। इसी सब में उसका पैर एक लकड़ी पर पड़ा जिसकी आवाज से उन सियारों की नजर उस आदमी पर गई।
उसे देखकर वह गुस्से में गुर्राने लगे, शायद उनके भोजन में ये खलल उन्हें पसंद नहीं आया और वो अपना खाना छोड़कर उसकी तरफ बढ़ने लगे।
आदमी भी अब डंडे को आगे किए लड़ने को तैयार हो गया। सियार संख्या में चार थे जो अब इस आदमी को भी अपना भोजन बनाने का सोच रहे थे। एक सियार तेजी से दौड़ते हुए आया और करीब आकर छलांग लगा दी। लेकिन अगले ही पल वोह एक जबरदस्त वार से जमीन पर पड़ा कुकुयाने लगा। आदमी ने इतनी तेज़ी से डंडे का वार किया था कि वह नज तक नहीं आया। अपने साथी को ऐसे पड़ा देखकर वह और नाराज़ हो गए और अपने नुकीले दांतों को दिखाकर अपना गुस्सा जताने लगे।
इस बार दो सियार एक साथ हमला करने एक साथ आए, दोनों अलग अलग दिशा से एक साथ हमला करने वाले थे। वोह आदमी दो कदम पीछे हुआ और अपने दाएं तरफ से आने वाले सियार पर हमला करने के लिए उसकी तरफ बढ़ने लगा। जैसे ही दाएं तरफ वाले सियार ने उसपर हमला किया वोह जमीन से 4 फीट ऊपर कूदा और उस सियार के पेट पर डंडे से वार किया। जैसे ही उसके कदम जमीन पर पड़े उसके पीछे से दूसरे सियार ने उसकी पीठ पर हमला कर दिया और अपने नुकीले पंजे से उसकी पीठ पर वार किया, आदमी को अपनी पीठ पर तेज दर्द का अहसास हुआ उसकी पीठ से खून निकलने लगा और उसका अंगवस्त्र लाल हो गया।
लेकिन उसने जल्दी अपने को संभाला और डंडे को लेकर खड़ा हो गया, अब चारों सियार भी खड़े हो चुके थे और उसे चारों तरफ से घेर लिया। सियार उसके चारों तरफ घूमकर सही मौके की तलाश करने लगे।
आदमी ने अपनी आंखें बंद की और कुछ मंत्र पढ़ने लगा, फिर आंख बंद किए ही उस डंडे को तेजी से अपने चारों ओर घूमना शुरू कर दिया, उसकी गति तेज होती जा रही थी, इतनी तेज की डंडे से एक अदृश्य कवच सा उसके चारों तरफ बन गया। चारों सियार एक साथ हमला करने के इरादे से एक साथ उसकी तरफ दौड़े, जैसे ही वे उस डंडे की पहुंच में आए एक साथ चारों हवा में थे, आदमी ने एक छलांग लगाई और हवा में ही चारों पर अनगिनत वार किए। कुछ ही पल में वे जमीन की धूल चाट रहे थे। चारों समझ गए कि इस आदमी को वोह कुछ नहीं कर पाएंगे तो गुर्राते हुए दम दबाकर भाग खड़े हुए।
सियारों के जाने के बाद आदमी ने आगे बढ़कर उन मृत शरीरों का मुआयना किया।
" हुआ क्या है यहां?"
"ये सैनिक तो विधानगढ़ राज्य के है"
"लेकिन अर्थवन की सीमा में क्या कर रहे थे"
फिर वोह उस औरत की लाश के पास पहुंचा। औरत के शरीर पर कई घाव थे और उसकी दांई जांघ में एक तीर घुसा हुआ था। उसके एक हाथ में एक तलवार थी जिसपर मौत के बाद भी उसकी पकड़ बनी हुई थी। और दूसरे हाथ से उसने किसी चीज को अपने से चिपटाए पड़ी हुई थी। आदमी ने जमीन पर बैठकर उस औरत का हाथ हटाया और लाल कपड़े में पकड़ी उस चीज को उठा लिया, कपड़ा उठकर उस देख तो वह हैरान रह गया, कपड़े में एक नवजात बच्चा था।
बच्चे का शरीर गर्म था, और सांसें चल रही थी। आदमी ने बच्चे को जब हिलाया तो उसने रोना शुरू कर दिया।
"ये जीवित है लेकिन इसका शरीर बहुत तप रहा है, मुझे सहायता बुलानी चाहिए "
आदमी ने एक खास तरह की आवाज निकालनी शुरू कर दी, जो मिलो दूर भी सुनी जा सकती थी।
आश्रम
"ये आवाज तो देवदत्त का ध्वनि संदेश है" एक आदमी ने कहा
"ये उत्तर पूर्व से दो कोस दूरी से आ रही है" दूसरा आदमी बोला
तभी पहले आदमी ने कहा " देवा, केसर, महेश, हरलोक"
चार लड़के तुरंत वहां आ खड़े हुए।
"जी गुरुजी"
"अभी उत्तर पूर्व में ध्वनि की दिशा में जाओ और देवदत्त की सहायता करो"
चारों तुंरत वहां से निकल चले।
कुछ देर बाद चारों लड़के और देवदत्त वहां चला आ रहा था। उसके पास वोह नवजात भी था और दो लड़क उस औरत की लाश को उठाए ला रहे थे।
आश्रम के लोग वहां जमा हो गए, और आपस में खुसुर पुसुर करने लगे। गुरुजी आगे आए और बोले।
" ये क्या है देवदत्त, तुम्हारे हाथ में ये बच्चा और ये औरत"
"वोह मृत है गुरुजी, अंदर चलकर सब बताता हूं "
गुरुजी और देवदत्त के अलावा कमरे में और 4- 5 लोग थे। देवदत्त ने सब कुछ विस्तार से बताया।
गुरुजी - हम्म, विशेषगर्भा के सैनिक!
देवदत्त - यह बालक जीवित है, और वहां की दशा देखकर मुझे लगा कि शायद ये स्त्री उस बालक की रक्षा कर रही थी, इसलिए मैं दोनों को यहां ले आया।
एक आदमी - और उन सैनिकों का क्या हुआ।
देवदत्त - उन सभी को मैंने वही जंगल में दफना दिया है और सारे सबूत भी मिटा दिए है।
दूसरा आदमी - गुरु जी अर्थवन और विधानगढ़ में पहले से ही दुश्मनी है, ये कोई षड्यंत्र भी हो सकता है।
गुरुजी - हम्म, ऐसा संभव है, खैर ये बात यहां से बाहर ना जाए। और पुलरूप! (एक आदमी को देखते हुए)
पुलरूप - जी गुरुजी
गुरु जी - तुम आज ही शल्यनगर ( विधानगढ़ की राजधानी) के लिए निकलो और देखो कोई संदेह वाली बात लगे तो मुझे आकर बताओ।
पुलरूप - जो आज्ञा गुरुजी
ये कहकर सभी उस कमरे से बाहर निकलते है।
देवदत्त - इस बालक का क्या करे गुरुजी
गुरु - ये अब इसी आश्रम में रहेगा, विलक्षणा इसका पालन पोषण करेगी।
देवदत्त - अति उत्तम गुरुजी, अब आज्ञा दे, उस स्त्री की अंतिम क्रिया भी करवानी है।
गुरु - ठीक है, वनदेवी तुम्हारा कल्याण करे।
ये कहकर देवदत्त वहां से निकल जाता है।
शल्यनगर (विधानगढ़ की राजधानी)
राजमहल का एक भव्य कक्ष।
एक आदमी जिसकी आयु 60 वर्ष से अधिक ही होगी, लेकिन उसके चेहरे का तेज और उसका बलिष्ठ शरीर ऐसा प्रतीत नहीं होने देता। अपने कक्ष में एक जगह से दूसरी जगह घूम रहा है उसके चेहरे के भाव किसी की प्रतीक्षा करने का संकेत देते है। बार बार वह अपने कक्ष की खिड़की की ओर देख रहा है।
मुड़कर आते हुए उस आदमी को खिड़की पर एक आदमी नज़र आया, जबकि एक पल पहले वहां कोई नहीं था। खिड़की पर एक चबूतरा बना हुआ था जिसपर वह बैठ था, उसका पूरा शरीर काले लिबास में ढका था और चेहरे पर भी कला नकाब था, उसकी आंखें भी काले पारदर्शी कपड़े से ढकी हुई थी।
खिड़की पर बैठे आदमी ने कहा
नकाबपोश आदमी - महामात्य को सेवक का प्रणाम
महाअमात्य - जल्दी संदेश बताओ
नकाबपोश - आपकी आज्ञा अनुसार कार्य पूर्ण हुआ, उन सभी को मृत्यु दे दी गई है।
महाअमात्य - उस बालक का क्या हुआ।
नकाबपोश - उसे वह दासी बचाकर ले जा रही थी। लेकिन हमारे सैनिकों ने उसे अर्थवन के जंगलों में घेरलिया और मार दिया। किन्तु...हमारे भी 100 से अधिक सैनिक मारे गए।
महाअमात्य - हम्म केवल सौ, इस कार्य में 1000 सैनिक भी मारे जाते तो आश्चर्य नहीं होता। यानि कई सैनिक जीवित लौटे है।
नकाबपोश - जी अमात्य
महाअमात्य - तो उन्हें भी अपने साथियों के पास पहुंचा दो, इस कार्य से जुड़ा कोई सैनिक जीवित नहीं रहना चाहिए। अब जाओ, मुझे महाराज को ये सूचना देनी है।
अमात्य ने एक सोने के सिक्कों से भरी पोटली आदमी की तरफ फेंकी।
नकाबपोश - जो आज्ञा, महाराज की जय हो, महाअमात्य की जय हो।
महाअमात्य राजा के कक्ष की ओर चला जाता है।