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Tiger 786

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UPDATE 4

गांव में हर साल एक मेला लगा करता है जहा पे ठकूरो के कुलदेवी का मंदिर था हर साल वहा पे बंजारे आते थे 10 से 15 दिन के लिए और तभी मेला शुरू हो जाता था गांव। में 10 से 15 दिन तक मेले के चलते पूरा गांव इक्कठा हो जाता था जैसे कोई त्योहार हो गांव वाले वहा जाते झूला झूलते बंजारों से नई नई प्रकार के वस्तु खरीदते साथ ही कुल देवी की पूजा करते थे ठाकुरों के साथ और उस वक्त ठाकुर अपने परिवार के साथ मेले में घूमते फिरते थे लेकिन इस बार गांव वालो की हिम्मत जवाब दे गईं थी कर्ज के चलते

इन सब बातो से अंजान हवेली में अभय के गम में डूबी हुई थी संध्या जिसका फायदा उठा रहा था रमन जो गांव वालो को जमीन को हड़प रहा था कर्ज और ब्याज के नाम पे ताकि डिग्री कॉलेज की स्थापना करवा सके जिसकी स्वीकृति रमन को संध्या से लेनी थी हवेली में गमहीन माहोल के चलते रमन इस बारे में बात नही कर पा रहा था संध्या से

जबकि संध्या अमन का मुंह देख कर जीने लगी थीं, लेकिन हर रात अभय की यादों में आंसू बहाती थी, और ये उसका रोज का रूटीन बन गया था।

और इस तरफ गांव वालों की हर रोज़ मीटिंग होती थीं , की ठाकुराइन से जाकर इस बारे में पूछे की उसने ऐसा क्यूं किया? क्यूं उनकी ज़मीन हड़प ली उसने? पर गांव वाले भी ये समय सही नहीं समझे।

दीन बीतता गया, संध्या भी अब नॉर्मल होने लगी थीं, वो अमन को हद से ज्यादा प्यार करने लगी थीं। हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी ख्वाहिश अमन की यूं ही पूरी हो जाती।

देखते ही देखते महीने सालों में व्यतीत होने लगे,,


एक दिन की बात है हवेली में सब नाश्ते की टेबल पर बैठे थे, अमन के सामने पड़ी प्लेट मे देसी घी के पराठे पड़े थे। जिसे वो बहुत चाव से खा रहा था। और मालती अमन को ही गौर से देख रही थीं, की संध्या कितने प्यार से अमन को अपने हाथों से खिला रही थीं।

अमन --"बस करो ना बड़ी मां, अब नहीं खाया जाता, मेरा पेट भर गया हैं।"

संध्या --"बस बेटा, ये आखिरी पराठा, हैं। खा ले।"

अमन ने किसी तरह वो पराठा खाया, मालती अभि भी उन दोनो को ही देख रही थीं कि तभी उसे पुरानी बात याद आई।

जब एक दिन इसी तरह से सब नाश्ता कर रहे थे, अभय भी नाश्ता करते हुऐ गपागप ४ पराठे खा चुका था और पांचवा पराठा खाने के लिऐ मांग रहा था तब

संध्या – (पराठा देते हुऐ अभय से बोली) और कितना खायेगा तेरा तो पेट नहीं भर रहा हैं।

अभय –(हस्ते हुए) तेरे हाथ के पराठे जितने खाऊं पेट तो भर जाता है लेकिन दिल नही भरता

वो दृश्य और आज के दृश्य से मालती किस बात का अनुमान लगा रही थीं ये तो नहीं पता, पर तभी संध्या की नज़रे भी मालती पर पड़ती हैं तो पाती हैं की, मालती उसे और अमन को ही देख रही थीं।
मालती को इस तरह दिखते हुऐ संध्या बोल पड़ी...

संध्या --"तू ऐसे क्या देख रही हैं मालती? नज़र लगाएगी क्या मेरे बेटे को?

संध्या की बात मालती के दिल मे चुभ सी गई,और फिर अचानक ही बोल पड़ी।

मालती --"नहीं दीदी बस पुरानी बातें याद आ गई थीं, अभय की।

और कहते हुऐ मालती अपने कमरे में चली जाती है। संध्या मालती को जाते हुऐ वही खड़ी देखती रहती है......

मालती के जाते ही, संध्या भी अपने कमरे में चली गई। संध्या गुम सूम सी अपने बेड पर बैठी थीं, उसे अजीब सी बेचैनी हो रही थीं। वो मालती की कही हुई बात पर गौर करने लगी। वो उस दीन को याद करने लगी जब उसने अभय की जम कर पिटाई की थीं। उस दीन हवेली के नौकर भी अभय की पिटाई देख कर सहम गए थे।

बात कुछ यूं थीं की, रमन हवेली में लहू लुहान हो कर अपना सर पकड़े पहुंचा। संध्या उस समय हवेली के हॉल में ही बैठी थीं। संध्या ने जब देखा की रमन के सर से खून बह रहा है, और रमन अपने सर को हाथों से पकड़ा है, तो संध्या घबरा गई। और सोफे पर से उठते हुऐ बोली...

संध्या --" ये...ये क्या हुआ तुम्हे? सर पर चोट कैसे लग गई?

बोलते हुऐ संध्या ने नौकर को आवाज लगाई और डॉक्टर को बुलाने के लिऐ बोली....

संध्या की बात सुनकर रमन कुछ नहीं बोला, बस अपने खून से सने हांथ को सर पर रखे कराह रहा था। रमन को यूं ख़ामोश दर्द में करहता देख, संध्या गुस्से में बोली....

संध्या --"मैं कुछ पूंछ रही हूं तुमसे? कैसे हुआ ये?

"अरे ये क्या बताएंगे बड़ी ठाकुराइन, मैं बताता हूं..."

इस अनजानी आवाज़ ने सांध्य का ध्यान खींचा, तो पाई सामने मुनीम खड़ा था। मुनीम को देख कर रमन गुस्से में चिल्लाया....

रमन --"मुनीम जी, आप जाओ यहां से, कुछ नहीं हुआ है भाभी। ये बस मेरी गलती की वजह से ही अनजाने में लग गया।"

"नहीं बड़ी ठाकुराइन, झूंठ बोल रहे है छोटे मालिक। ये तो आपके...."

रमन --"मुनीम जी... मैने कहा ना आप जाओ।

रमन ने मुनीम की बात बीच में ही काटते हुऐ बोला। मगर इस बार सांध्या ने जोर देते हुऐ कहा....

संध्या --"मुनीम जी, बात क्या है... साफ - साफ बताओ मुझे?"

संध्या की बात सुनकर, मुनीम बिना देरी के बोल पड़ा....

मुनीम --"वो... बड़ी ठाकुराइन, छोटे मालिक का सर अभय बाबा ने पत्थर मार कर फोड़ दीया।"

ये सुनकर संध्या गुस्से में लाल हो गई.…

संध्या --"अभय ने!! पर वो ऐसा क्यूं करेगा?"

मुनीम --"अब क्या बताऊं बड़ी ठाकुराइन, छोटे मालिक और मै बाग की तरफ़ जा रहे थे, तो देखा अभय बाबा गांव के नीच जाति के बच्चों के साथ खेल-कूद कर रहे थे। पता नहीं कौन थे चमार थे, केवट था या पता नहीं कौन से जाति के थे वो बच्चे। यही देख कर छोटे मालिक ने अभय को डाट दिया, ये कहते हुऐ की अपनी बराबरी के जाति वालों के बच्चों के साथ खेलो, हवेली का नाम मत खराब करो। ये सुन कर अभय बाबा, छोटे मालिक से जुबान लड़ाते हुए बोले

अभय – ये सब मेरे दोस्त है, और दोस्ती जात पात नहीं देखती, अगर इनसे दोस्ती करके इनके साथ खेलने में हवेली का नाम खराब होता है तो हो जाए, मुझे कुछ फरक नहीं पड़ता।"

संध्या --"फिर क्या हुआ?

मुनीम --"फिर क्या बड़ी मालकिन, छोटे मालिक ने अभय बाबा से कहा की, अगर भाभी को पता चला तो तेरी खैर नहीं, तो इस पर अभय बाबा ने कहा, अरे वो तो बकलोल है, दिमाग नाम का चीज़ तो है ही नहीं मेरी मां में, वो क्या बोलेगी, ज्यादा से ज्यादा दो चार थप्पड़ मारेगी और क्या, पर तेरा सर तो मै अभी फोडूंगा। और कहते हुऐ अभय बाबा ने जमीन पर पड़ा पत्थर उठा कर छोटे मालिक को दे मारा, और वहां से भाग गए।"

मुनीम की बात सुनकर तो मानो सांध्य का पारा चरम पर था, गुस्से मे आपने दांत की किटकिती बजाते हुऐ बोली...

सांध्य --"बच्चा समझ कर, मैं उसे हर बार नज़र अंदाज़ करते गई। पर अब तो उसके अंदर बड़े छोटे की कद्र भी खत्म होती जा रही है। आज रमन का सर फोड़ा है, और मेरे बारे में भी बुरा भला बोलने लगा है, हद से ज्यादा ही बिगड़ता जा रहा है, आने दो उसे आज बताती हूं की, मैं कितनी बड़ी बकलोल हूं..."

.... भाभी, भाभी... कहां हो तुम, अंदर हों क्या?

इस आवाज़ ने, सांध्य को भूत काल की यादों से वर्तमान की धरती पर ला पटका, अपनी नम हो चुकी आंखो के कोने से छलक पड़े आंसू के कतरों को अपनी हथेली से पोछते हुऐ, सुर्ख पड़ चुकी आवाज़ में बोली...

सांध्य --"हां, अंदर ही हूं।"

बोलते हुऐ वो दरवाज़े की तरफ़ देखने लगी... कमरे में रमन दाखिल हुआ, और संध्या के करीब आते हुऐ बेड पर उसके बगल में बैठते हुऐ बोला।

रमन --"भाभी, मैने सोचा है की, गांव में पिता जी के नाम से एक डिग्री कॉलेज बनवा जाए, अब देखो ना यहां से शहर काफी दूर है, आस - पास के कई गांव के विद्यार्थी को दूर शहरों में जाकर पढ़ाई करनी पड़ती है। अगर हमने अपना डिग्री कॉलेज बनवा कर मान्यता हंसील कर ली, तो विद्यार्थियों को पढ़ाई में आसानी हो जाएंगी।"

रमन की बात सुनते हुऐ, सांध्य बोली.....

संध्या --"ये तो बहुत अच्छी बात है, तुम्हारे बड़े भैया की भी यही ख्वाहिश थीं, वो अभय के नाम पर डिग्री कॉलेज बनाना चाहते थे, पर अब तो अभय रहा ही नहीं, बनवा दो अभय के नाम से ही... वो नहीं कम।से कम मेरे बच्चे का नाम तो रहेगा।"

रमन --"ओ... हो भाभी, तो पहले ही बताना चाहिए था, मैने तो मान्यता लेने वाले फॉर्म पर पिता जी के नाम से भर कर अप्लाई कर दिया। ठीक हैं मैं मुनीम से कह कर चेंज करवाने की कोशिश करूंगा।"

रमन की बात सुनकर संध्या ने कहा...

संध्या --"नहीं ठीक है, रहने दो। पिता जी का नाम भी ठीक है।"

रमन --"ठीक है भाभी, जैसा तुम कहो।"

और ये कह कर रमन जाने लगा तभी... सन्ध्या ने रमन को रोकते हुऐ....

संध्या --"अ... रमन।"

रमन रुकते हुऐ, संध्या की तरफ़ पलटते हुऐ...

रमन --"हां भाभी।"

संध्या --"एक बात पूंछू??"

संध्या की ठहरी और गहरी आवाज़ में ये बात सुनकर रमन एक पल के लिऐ सोच की उलझन में उलझते हुऐ, उलझे हुऐ स्वर मे बोला...

संध्या --"क्या उस रात अभय ने तुम्हे मेरे कमरे में आते देखा था ?

संध्या की ये बात सुन के रमन हड़बड़ा गया उसे हैरानी होने लगी की इतने साल के बाद आज संध्या ऐसी बात क्यों पूछ रही है

रमान -- (अपना थूक निगलते हुए) म..मु..मुझे नहीं लगता भाभी , अभय ने देखा होगा , वैसे भी वो तो 9 साल का बच्चा था भाभी, उसे भला कैसे पता चलेगा? पर आज इतने सालों बाद क्यूं?"
संध्या अपनी गहरी और करुण्डता भरे लहज़े में बोली...
संध्या – उस मनहूस रात के बाद ना जाने क्यूं , मुझे बेचैनी सी होती रहती है, ऐसा लगता है की मेरा दिल भटक रहा है किसी के लिऐ, मुझे पता है की मेरा दिल मेरे अभय के लिऐ भटकता रहता है, मैं खुद से ही अंदर अंदर लड़ती रहती हूं, रात भर रोती रहती हूं, सोचती हूं की मेरा अभय कही से आ जाए बस, ताकी मैं उसे बता सकूं की मैं उससे कितना प्यार करती हूं, माना की मैने बहुत गलतियां की हैं, मैंने उसे जानवरों की तरह पीटा, पर ये सब सिर्फ़ गुस्से में आकर। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई, मैं ये ख़ुद को नहीं समझा पा रही हूं, उसे कैसे समझाती। मैं थक गई हूं, जिंदगी बेरंग सी लगने लगी हैं। हर पल उसे भुलाने की कोशिश करती हूं, लेकिन मेरा दिल मुझसे हर बार कहता है की, मेरा अभय आएगा एक दिन जरूर आएगा तू इंतजार कर ? (रोते हुए) हे भगवान क्या करूं? कहां जाऊं? कोई तो राह दिखा दे तू ? नही तो मेरे अभय को वापस भेज दे मेरे पास
कहते हुऐ सन्ध्या फिर रोने लगती है...!
अब रो कर कुछ हासिल नहीं होगा दीदी,"
इस आवाज को सुन रमन और संध्या ने नज़र उठा कर देखा तो सामने मालती खड़ी थीं, संध्या रुवांसी आंखो से मालती की तरफ़ देखते हुऐ थोड़ी चेहरे बेबसी की मुस्कान लाती हुई संध्या मालती से बोली...
संध्या --"एक मां को जब, उसके ही बेटे के लिऐ कोई ताना मारे तो उस मां पर क्या बीतती है, वो एक मां ही समझ सकती है।"
संध्या की बात मालती समझ गई थीं की सन्ध्या का इशारा आज सुबह नाश्ता करते हुऐ उसकी कही हुई बात की तरफ़ थीं
मालती --"अच्छा! तो दीदी आप ताना मारने का बदला ताना मार कर ही ले रही है।"
संध्या को बात भी मालती की बात समझते देरी नहीं लगी, और झट से छटपटाते हुऐ बोली...
संध्या --"नहीं... नहीं, भगवान के लिऐ तू ऐसा ना समझ की, मैं तुझे ताना मार रही हूं। तेरी बात बिलकुल ठीक थीं, मैने कभी अपने अभय को ज्यादा खाना खाने पर ताना मारी थीं, मेरी मति मारी गई थीं, बुद्धि भ्रष्ट हो गई थीं, इस लिऐ ऐसे शब्द मुंह से निकल रहे थे।"
मालती चुप चाप खड़ी संध्या की बात सुनते हुऐ भावुक हो चली आवाज़ मे बोली...
मालती --"भगवान ने मुझे मां बनने का सौभाग्य तो नहीं दीया, पर हां इतना तो पता है दीदी की, बुद्धि हीन मां हो चाहे मति मारी गई मां हो, पागल मां हो चाहे शैतान की ही मां क्यूं ना हो... अपने बच्चे को हर स्थिति में सिर्फ प्यार ही करती है।"
कहते हुऐ मालती रोते हुए अपने कमरे से चली जाति है... और इधर मालती की बातें संध्या को अंदर ही अंदर एक बदचलन मां की उपाधि के तख्ते पर बिठा गई थीं, जो संध्या बर्दाश्त नहीं कर पाई।।
और जोर - जोर से उस कमरे में इस तरह चिल्लाने लगी जैसे पागल खाने में पागल व्यक्ति...
संध्या – ..... हां.... हां मैं एक गिरी हुई औरत हूं, यही सुनना चाहती है ना तू, लेकिन एक बात सुन ले तू भी, मेरे बेटे को मुझसे ज्यादा कोई प्यार नहीं कर सकता है इस दुनिया में...
मालती – अब क्या फ़ायदा दीदी, अब तो प्यार करने वाला रहा ही नहीं... फिर किसको सुना रही हो?"
चिल्लाती हुई संध्या की बात सुनकर मालती भी चिल्लाकर कमरे से बाहर निकलते हुई बोली और फिर वो भी नम आंखों के साथ अपने कमरे में चली गई....इस बीच इन सब बातो के चलते रमन को वहा रुकना खतरे से खाली न लगा इसीलिए चुप चाप कमरे से पहले ही निकल गया रमन
संध्या रोते रोते जाने लगी अपने कमरे की तरफ लेकिन तभी अपने कमरे में ना जाके अभय के कमरे की तरफ चली गई अभय के कमरे को गौर से देखने लगी तभी संध्या की नजर टेबल पर पड़ी जहा अभय पढ़ाई करता था टेबल में रखी अभय की स्कूल की किताबो को देख इसे टेबल की दराज में रखने के दराज को खोलते ही संध्या की नजर पेंटिंग पर पड़ी उसे दराज से नकलते ही संध्या पेंटिंग को देखने लगी हर पेंटिंग के नीचे कुछ लाइनें लिखी थी अभय ने
1 = पेंटिंग

images-74
रिश्तों की इस किताब में, माँ-बाप का पन्ना सबसे खास,
उनके बिना ज़िंदगी लगे बिल्कुल उदास।
वो छांव हैं, तपते सूरज में आराम जैसे,
माँ की वो एक नजर, और पापा का वो एक नाम जैसे।






2 = पेंटिंगimages-9
ज़िन्दगी में मां बाप के सिवा कोई अपना नहीं होता,
टूट जाए ख्वाब तो सपना पूरा नहीं होता,
ज़िंदगी भर पूजा करूगा अपने मां बाप की ,
क्यों की मां बाप से बड़ा भगवान नहीं होता।


3 = पेंटिंग
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तेरे साथ गुजरे लम्हे ही तो
अब मेरे जीने का सहारा है
तुझे कैसे बताऊं बाबा
तेरी यादों का हमें हर हिस्सा प्यारा है बाबा



4 = पेंटिंग
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माता पिता के बिना दुनिया की हर चीज कोरी हैं, दुनिया का सबसे सुंदर संगीत मेरी माँ की लोरी हैं..!!
5 = पेंटिंगimages-71
जिस के होने से मैं खुद को मुक्कम्मल मानता हूँ, मेरे पिता के बाद मैं बस अपने माँ को जानता हूँ..!!
6 = पेंटिंग
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दिल में दर्द सा होता है आँखें ये भर-भर जाती हैं, माँ तेरे साथ बिताये पलों की यादें मुझे जब जब आती हैं।


अभय की बनाई आखरी तस्वीर में सूखे हुए आसू का कतरा देख समझ गई संध्या की तस्वीर बनाते वक्त अभय रो रहा था साथ उसमे लिखी कविता को पड़ के संध्या जमीन में बैठ तस्वीरों को अपने सीने से लगाए रोते रोते बोलने लगी
संध्या – लौट आ लौट आ मेरे बच्चे , तेरी मां तेरे बिना बिल्कुल अधूरी हो गई है , तू जो सजा दे दे सब मंजूर है मुझे , बस एक बार तू लौट के आजा अभय , तुझे कबी नही रोकूगी चाहे कुछ भी कर तू
रोते रोते संध्या जमीन में सो गईं
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जारी रहेगा ✍️✍️
Bohot hi ummdha update
 

Tiger 786

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UPDATE 5

अब हवेली का एक ही राजकुमार था, वो था अमन जिसे काफी प्यार और दुलार मिल रहा था। और यही प्यार और दुलार के चलते वो एकदम बिगड़ गया था। गांव वालो से प्यार से तो कभी वो बात ही नही करता था, अपने ठाकुर होने का घमंड दिखाने में वो हमेशा आगे रहेता था।

अमन अब 11 वी में पढ़ता था। स्कूल भी खुद की थी, इसलिए हमेशा रुवाब में रहता था। स्कूल के चपरासी से लेकर अध्यापक तक किसी का भी इज्जत नहीं करता था। आस पास के गांव से पड़ने आने वाले कुछ ठाकुरों के घर के बच्चो के साथ, वो अपनी दोस्ती बना कर रखा था, और गांव के आम लड़के , जो पढ़ने आते , उन पर वो लोग अपना शिकंजा कसते थे।

एक दिन अमन स्कूल के ग्राउंड में क्रिकेट खेल रहा था। दो गोल बनी थीं। एक ठाकुरों की, और दूसरी गांव के आम लडको की। स्कूल का ग्राउंड खचखच दर्शको से भरा था। गांव के जवान , बुजुर्ग, महिला, और छोटे - छोटे बच्चे सब क्रिकेट का आनंद ले रहे थे।


ये स्कूल के तरफ से मैच नही हो रहा था, दरअसल ये सिलसिला तब से शुरू हुआ था , जब ठाकुर परम सिंह अपनी जवानी के दिन में क्रिकेट खेलते थे। वो हर साल ठाकुरों और गांव के आम लोगो के बीच क्रिकेट का मैच करवाते थे , और जितने वालो को अच्छा खासा इनाम अर्जित किया जाता था। ठाकुर परम सिंह जाति - पाती में कभी भेदभाव नहीं देखते थे। और अगर कभी गांव वाले मैच जीतते थे तो दिल खोल कर दान करते थे। क्रिकेट का मैच भी उनके दान करने का एक अलग नजरिया था।

पूरा ग्राउंड शोर - शराबे में मस्त था। वही गांव के ठाकुरों के बैठने के लिए काफी अच्छी व्यवस्था बनाई गई थी। जहां, ठाकुर रमन सिंह, सन्ध्या सिंह, मालती सिंह, ललिता सिंह और उसकी खूबसूरत बेटी बैठी थीं। पास में ही गांव के सरपंच और उनका परिवार भी बैठा था।

सरपंच के परिवार में उसकी पत्नी , उर्मिला चौधरी,और बेटी पूनम चौधरी बैठी थी। पूनम और रमन की बेटी दोनों ही खूबसूरत थी। पर ये दोनो को एक लड़की टक्कर दे रही थी। और उस लड़की से इन दोनो की बहुत खुन्नस थी। वो लड़की ना ही किसी ठाकुरों के घराने से थी नही किसी चौधरी या उच्च जाति से। वो तो उसी गांव के एक मामूली किसान मंगलू की बेटी थीं। जो बचपन में अपने हीरो अभय के साथ खूब खेलती थीं।

पर आज वो 15 साल की हो गई थी। और उसी ग्राउंड में गांव की औरतों के बीच बैठी क्रिकेट के इस खेल का लुफ्त उठाने आई थीं। गहरे हरे रंग की सूट सलवार में वो किसी परी की तरह लग रही थी लोगो का उसके प्रति देखने का नजरिया ही बदल गया था।

और ये चिंता उसके बाप मंगलू को कुछ ज्यादा ही सता रही थी। स्कूल में ठाकुरों के बच्चे अपनी किस्मत आजमाने में बाज नही आते थे, पर ठाकुर अमन सिंह उस लड़की का बहुत बड़ा आशिक था। इस लिए तो बचपन में उस लड़की को अभय के साथ खेलता देख इनकी गांड़ लाल हो जाया करती थी। और किसी न किसी बहाने से ये महाशय अभय को फंसा कर उसकी मां संध्या सिंह से पिटवा देते थे। और संध्या सिंह का भी अमन लाडला ही हुआ करता था क्योंकि हवेली में अमन हर वक्त संध्या के सामने शराफत में रहता था और अमन इस बात का फायदा उठाता जिसके चलते उसकी बाते भी आग में घी तरह काम कर जाती थी।

पर कहते है ना, जिसके दिल मे जो बस गया फिर किसी और का आना पहाड़ को एक जगह से हटा कर दूसरी जगह करने जैसा था। उसी तरह अभय उस परी के दिल में अपना एक खूबसूरत आशियाना बना चुका था। जो आज अभय के जाने के बाद भी , ये महाशय उस लड़की के दिल में अपना आशियाना तो छोड़ो एक घास-फूस की कुटिया भी नही बना पाए। पर छोरा है बड़ा जिद्दी, अभि भी प्रयास में लगा है। चलो देखते है, अभय की गैर मौजूदगी में क्या ये महाशय कामयाब होते है ?

ग्राउंड खचाखच भरा था, आस पड़ोस के गांव भी क्रिकेट का वो शानदार खेल देखने आए थे। ये कोई ऐसा वैसा खेल नही था। ये खेल ठाकुरों और गांव के आम लोगो के बीच का खेल था।

इस खेल में 15 से 17 साल के युवा लडको ने भाग लिया था। कहा एक तरफ ठाकुर अमन सिंह अपने टीम का कप्तान था। तो वही दूसरी तरफ भी अमन के हमउम्र का ही एक लड़का कप्तान था, नाम था राज। खेल शुरू हुई, दोनो कप्तान ग्राउंड पर आए और निर्धारक द्वारा सिक्का उछाला गया और निर्दय का फैसला अमन के खाते में गया।

अमन ने पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया। राज ने अपनी टीम का क्षेत्र रक्षण अच्छी तरह से लगाया। मैच स्टार्ट हुए, बल्लेबाजी के लिए पहले अमन और सरपंच का बेटा सुनील आया। शोरगुल के साथ मैच आरंभ हुआ ।

अमन की टीम बल्लेबाजी में मजबूत साबित हो रही थी, अमन एकतरफ से काफी अच्छी बल्लेबाजी करते हुए अच्छे रन बटोर रहा था वही अमन की बल्लेबाजी पर लोगो की तालिया बरस रही थी, साथ ही ठाकुर परिवार से संध्या , मालती और ललिता थे, उन्हें देख कर ऐसा लग रहा था मानो उन के हाथ ही नही रुक रहे हो। चेहरे पर खुशी साफ दिख रही थी। तालिया को पिटती हुई जोर जोर से चिल्ला कर वो अमन का हौसला अफजाई भी कर रहे थे। गांव के औरतों की नज़रे तो एक पल के लिए मैच से हटकर सिर्फ संध्या पर ही अटक गई थी होती भी क्यों ना गांव की तरफ से खेल रहे लड़को परेशान होता देख उन्हें अच्छा नही लग रहा था के तभी
मैच देख रही गांव की औरतों के झुंड में से एक औरत बोली

जरा देखो तो ठाकुराइन को, देखकर लगता नही की बेटे के मौत का गम है। कितनी खिलखिला कर हंसते हुए तालिया बजा रही है।"

पहेली औरत की बात सुनकर , दूसरी औरत बोली...

"अरे, जैसे तुझे कुछ पता ही न हो, अभय बाबा तो नाम के बेटे थे ठाकुराइन के, पूरा प्यार तो ठाकुराइन इस अमन पर ही लुटती थी, अच्छा हुआ अभय बाबू को भगवान का दरबार मिल गया। इस हवेली में तो तब तक ही सब कुछ सही था जब तक बड़े मालिक जिंदा थे।"

शांति --"सही कह रही है तू निम्मो,, अच्छे और भले इंसान को भगवान जल्दी ही बुला लेता है। अब देखो ना , अभय बाबू ये जाति पाती की दीवार तोड़ कर हमारे बच्चो के साथ खेलने आया करते थे साथ ही अपनी गीता दीदी को बड़ी मां बोलते थे अभय बाबू और एक ये अमन है, इतनी कम उम्र में ही जाति पति का कांटा दिल और दिमाग में बो कर बैठा है।"

गांव की औरते यूं ही आपस में बाते कर रही थी, और इधर अमन 100 रन के करीब था। सिर्फ एक रन से दूर था। अगला ओवर राज का था, तो इस समय बॉल उसके हाथ में था। राज ने अपने सभी साथी खिलाड़ियों को एकत्रित किया था और उनसे कुछ तो बाते कर रहा था, या ये भी कह सकते हो की कप्तान होने के नाते अपने खिलाड़ी को कुछ समझा रहा था। तभी अमन अपने अहंकार में चूर राज के गोल से होते हुए, बैटिंग छोर की तरफ जा रहा था , तभी वो राज को देखते हुए बोला...

अमन --"बेटा अभी जा जाकर सिख, ये क्रिकेट का मैच है। तुम्हारे बस का खेल नही है।"

अमन की बात सुनकर राज ने बॉल उछलते और कैच करते हुए उसकी तरफ बढ़ा और अमन के नजदीक आकर बोला...

राज --"लो शुरुआत हो गयी बोलिंग की, दर्शकों की भीड़ भी भारी है,
विरोधी भी बजाएंगे तालियाँ जमकर अब मेरी बॉलिंग की बारी है।

राज की ऐसी शायरी सुनकर, अमन के पास कोई जवाब ना था जिसके चलते उसे गुस्सा आ गया, और क्रिकेट पिच पर ही राज का कॉलर पकड़ लिया। ये रवैया देख कर सब के सब असमंजस में पड़ गए , गांव के बैठे हुए लोग भी अपने अपने स्थान से खड़े हो गए, संध्या के साथ साथ बाकी बैठे उच्च जाति के लोग भी हक्का बक्का गए की ये अमन क्या कर रहा , झगड़ा क्यूं कर रहा है?

लेकिन तभी अमन की नजर एक तरफ गई वहा कुछ देखता है और फिर पलट के मुस्कुराते हुए राज को देखता है और तभी मैच के निर्धारक वहा पहुंच कर अमन को राज से दूर ले जाते है। राज को गुस्सा नही आया बल्कि अमन के इस रवाइए से हैरान था और अभी जो हुआ उस बारे में सोच के अमन की तरफ देख रहा था साथ उस तरफ देखा जहा अमन ने देखा था लेकिन अब वहा कोई नही था

मैच शुरू हुई, पहेली पारी का अंतिम ओवर था जो राज फेंक रहा था। राज ने पहला बॉल डाला और अमन ने बल्ला घुमाते हुए एक शानदार शॉट मारा और गेंद ग्राउंड के बाहर, और इसी के साथ अमन का 100 रन पूरा हुआ। अमन अपनी मेहनत का काम पर अहंकार का कुछ ज्यादा ही प्रदर्शन कर रहा था। और एक तरफ अमन के 100 रन पूरा करने की खुशी में संध्या , मालती और ललिता खड़ी होकर तालिया पीट रही थी गांव वाले भी अमन के अच्छे खेल पर उसके लिए तालिया से सम्मान जाता रहे थे।

पहेली पारी का अंत हो चुका था 15 ओवर के मैच में 170 रन का लक्ष्य मिला था राज की टीम को।
पारी की शुरुआत में राज और उसका एक साथी खिलाड़ी आए। पर नसीब ने धोखा दिया और पहले ओवर की पहली गेंद पर ही अमन ने राज की खिल्ली उड़ा दी। गांव वालो का चेहरा उदास हो गया। क्युकी राज ही टीम का असली खिलाड़ी था जो इतने विशाल लक्ष्य को हासिल कर सकता था। राज के जाते ही राज के टीम के अन्य खिलाड़ी में आत्मविश्वास की कमी ने अपना पैर पसार दिया। और देखते ही देखते एक एक करके उनके विकेट गिरते चले गए।

मात्र 8 ओवर के मैच में ही राज की टीम ऑल आउट हो गई और बेहद ही बुरी तरह से मैच से पराजित हुए। राज के चेहरे पर पराजय की वो लकीरें साफ उमड़ी हुई दिख रही थी। वो काफी हताश था, जो गांव वाले उसके चेहरे को देख कर ही पता लगा चुके थे। राज गुमसुम सा अपने चेहरे को अपनी हथेलियों में छुपाए नीचे मुंह कर कर बैठा था। राज की ऐसी स्थिति देख कर गांव वालो का भी दिल भर आया। क्योंकि राज ने मैच को जीतने के लिए काफी अभ्यास किया था। पर नतीजन वो एक ओवर भी क्रीच पर खड़ा ना हो सका जिसका सामना उसे मैच की पराजय से करना पड़ा।
कोई कुछ नही बोल रहा था। राज का तकलीफ हर कोई समझ सकता था। मैच का समापन हो चुका था। अमन को उसकी अच्छे प्रदर्शन के लिए पुरस्कृत किया गया। वो भी गांव की ठाकुराइन संध्या के हाथों। एक चमचमाती बाइक की चाभी संध्या के हाथो से अमन को पुरस्कृत किया गया। पुरस्कृत करते हुए संध्या के मुख से निकला...

संध्या --"शाबाश...

अमन ने खुशी खुशी बाइक चाभी को लेते हुए अपने हाथ को ऊपर उठाते हुए अपने पुरस्कार की घोषणा की और अपनी बाइक को चालू कर के घूमने निकल गया इस तरफ गांव वाले भी हताश होके जाने लगे अपने घर की तरफ जबकि एक तरफ राज अकेला गुमसुम सा चले जा रहा था के तभी पीछे से किसी ने उसके कंधे पे हाथ रखा जैसे ही राज पीछे पलटा अपने कंधे पे हाथ रखने वाले शख्स को देख के हैरान रह गया

राज – मालकिन आप

संध्या – क्या तुम किसी और के आने की सोच रहे थे

राज – नही मालकिन बस आपको अचानक देख के चौक गया था मैं

संध्या – कोई बात नही मैं बस ये कहने आई थी तुमने बहुत अच्छा खेल खेला लेकिन उदास मत हो खेल में हार जीत होती रहती है

राज – (बे मन से) जी मालकिन

संध्या – तुम अभय के वही दोस्त राज हो ना जो अक्सर अपनी शायरी सुनाता रहता था सबको

राज – जी मालकिन बस कभी कभी

संध्या – बहुत अच्छी शायरी करते हो मैने पढ़ी थी तुम्हारे शायरी खैर चलती हू अच्छा लगा तुमसे मिलके

इतना बोल के संध्या वहा से चली गई इधर राज बस देखता रह गया जाते हुए संध्या को

कुछ दिन बाद गांव में रमन ने जोर शोरो से कॉलेज की नीव खड़ी कर दी थी। देख कर ही लग रहा था की काफी भव्य कॉलेज का निर्माण होने वाला था। वैसे भी रमन ने डिग्री कॉलेज की मान्यता लेने की सोची थी तो कॉलेज भी उसी के अनुसार भी तो होगा।

इस तरफ संध्या का प्यार अमन के लिए दिन दुगनी रात चौगुनी हो रहा था तो, वही अमन एक तरफ अहंकार की आंधी में उड़ रहा था। अब अमन भी 12 वि में प्रवेश कर चुका था।

संध्या अमन को ही अपना बेटा मान कर जीने लगी थी। अब तो मालती के ताने भी उसे सिर्फ हवा ही लगते थे। जिसकी वजह से मालती भी अपने आज में जीने लगी थी। और वो भी अभय की यादों से दूर होती जा रही थी। हवेली में कुछ लोगो को लगाने लगा था की अभय हवेली के लिए बस एक नाम बनकर रह गया है। जो कभी कभी ही यादों में आता था। साथ ही ऊनलोगो को लगता था की शायद संध्या भी समझ चुकी होगी की अब रोने गाने से कुछ फर्क पड़ने वाला नही है , अभय अब तो वापस आने से रहा । इसीलिए वो भी उसकी यादों से तौबा कर चुकी होगी। लेकिन उन लोगो को क्या पता था की संध्या आज भी रोज रात में अभय की तस्वीर को सीने से लगाए रात भर उसकी याद में तड़पती है
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जारी रहेगा ✍️✍️
Amazing update
 

dhalchandarun

[Death is the most beautiful thing.]
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UPDATE 11


इधर गांव में आज खुशी का माहौल था। सब गांव वाले अपनी अपनी जमीन पकड़ बेहद खुश थे। और सब से ज्यादा खुश मंगलू लग रहा था। गांव के लोगो की भीड़ इकट्ठा थी। तभी मंगलू ने कहा...

मंगलू -- सुनो, सुनो सब लोग। वो लड़का हमारे लिए फरिश्ता बन कर आया है। अगर आज वो नही होता तो, आने वाले कुछ महीनो में हमारी जमीनों पर कॉलेज बन गया होता। इसी लिए मैने सोचा है, की क्यूं ना हम सब उस लड़के पास जाकर उसे कल होने वाले भूमि पूजन में एक खास दावत दे पूरे गांव वालो की तरफ से।

आदमी –(सहमति देते हुए) सही कहते हो मंगलू, हम सबको ऐसा करना चाहिए।

मंगलू -- तो एक काम करते है, मैं और बनवारी उस लड़के को आमंत्रित करने जा रहे है कल के लिए। और तुम सब लोग कल के कार्यक्रम की तयारी शुरू करो। कल के भूमि पूजन में उस लड़के के लिए दावत रखेजाएगी गांव में ये दिन हमारे लिए त्योहार से कम नहीं है

मंगलू की बात सुनकर सभी गांव वाले हर्ष और उल्लास के साथ हामी भरते है। उसके बाद मंगलू और बनवारी दोनो हॉस्टल की तरफ निकल रहे थे की तभी...

पूरे गांव में आज खुशी की हवा सी चल रही थी। सभी मरद , बूढ़े, बच्चे , औरते और जवान लड़कियां सब मस्ती में मग्न थे। राज भी अपने दोस्तो के साथ गांव वालो के साथ मजा ले रहा था।

राज के साथ खड़ा राजू बोला...

राजू -- यार राज, ये लड़का आखिर है कौन? जिसके आगे ठाकुराइन भी भीगी बिल्ली बन कर रह गई।

राज -- हां यार, ये बात तो मुझे भी कुछ समझ नहीं आई। पर जो भी हो, उस हरामी ठाकुर का मुंह देखने लायक था। और सब से मजे की बात तो ये है, की वो हमारे इसी कॉलेज पढ़ने आया है। कल जब कॉलेज में उस हरामी अमन का इससे सामना होगा तो देखना कितना मज़ा आएगा!! अमन की तो पुंगी बजने वाली है, अब उसका ठाकुराना उसकी गांड़ में घुसेगा।

राजू -- ये बात तूने एक दम सच कही अजय, कल कॉलेज में मजा आयेगा।

गीता देवी – अरे राज क्या कर रहा है तू , इधर आ जरा

राज – हा मां बता क्या काम है

गीता देवी – तू भी चला जा मंगलू के संग मिल के आजाना उस लड़के से

राज – मैं तो रोज ही मिलूगा मां वो और हम एक ही कॉलेज पे एक ही क्लास में है , तुझे मिलना है तो तू चली जा काकी के संग

गीता देवी –(कुछ सोच के मंगलू को बोलती है) मंगलू भईया सुनो जरा

मंगलू – जी दीदी बताए

गीता देवी – भईया उस लड़के को दावत पे आमंत्रित के लिए आप दोनो अकेले ना जाओ हम भी साथ चलती है उसने अकेले इतना कुछ किया हम गांव वालो के लिए तो इतना तो कर ही सकते है हम भी

जहा एक तरफ सब गांव वाले इस खुशी के मौके पे अभय को कल के भूमि पूजन के साथ दावत पे आमंत्रित के लिए मानने जा रहे थे। वही दूसरी तरफ, पायल एक जी शांत बैठी थी।

पायल की खामोशी उसकी सहेलियों से देखी नही जा रही थी। वो लोग पायल के पास जाकर बैठ गई, और पायल को झिंझोड़ते हुए बोली।

नूर – कम से कम आज तो थोड़ा मुस्कुरा दे पता नही आखिरी बार तुझे कब मुस्कुराते हुए देखी थी। देख पायल इस तरह से तो जिंदगी चलने से रही, तू मेरी सबसे पक्की सहेली है, तेरी उदासी मुझे भी अंदर ही अंदर खाए जाति है। थोड़ा अपने अतीत से नीकल फिर देख जिंदगी कितनी हसीन है।

पायल-- (अपनी सहेली की बात सुनकर बोली) क्या करू नूर? वो हमेशा मेरे जहन में घूमता रहे है, मैं उसे एक पल के लिए भी नही भूला पा रही हूं। उसके साथ हाथ पकड़ कर चलना, और ना जाने क्या क्या, ऐसा लगता है जैसे कल ही हुआ है ये सब। क्या करू? कहा ढूंढू उसे, कुछ समझ में नहीं आ रहा है?

नूर -- (पायल की बात सुनकर बोली) तू तो दीवानी हो गई है री, पर समझ मेरी लाडो, अब वो लौट कर...

पायल -- (अपना हाथ नूर के मुंह पर रखते हुए) फिर कभी ऐसा मत बोलना नूर। (कहते हुए पायल वहा से चली जाति है)

इस तरफ मंगलू , बनवारी , गीता देवी और एक औरत के साथ जा रहे थे चलते चलते रास्ते में ही अभय उनको दिख गया जो अकेले मैदान में बैठा आसमान को देख रहा था तभी मंगलू और बनवारी चले गए अभय के सामने

मंगलू – कैसे हो बेटा

अभय --(अनजान बनते हुए) मैं ठीक हूं अंकल, आप तो वही है ना जो कल उस खेत में...

मंगलू -- ठीक कहा बेटा, में वही हूं जिसे तुमने कल ठकुराइन के सामने गिड़गिड़ाते हुए देखा था। क्या करता बेटा? यही एक उम्मीद तो बची थी सिर्फ हम गांव वालो में। की शायद गिड़गिड़ाने से हमे हमारी जमीन मिल जाए। पर हम वो कर के भी थक चुके थे। निराश हो चुके थे। पर शायद भगवान ने तुम्हे भेज दिया हम गरीबों के दुख पर खुशियों की बौछार करने के लिए।

अभय -- (सारी बात को समझते हुए) मैं कुछ समझा नही अंकल? मैने तो सिर्फ वो पेड़ ना काटने की आवाज उठाई थी, जो कानून गलत नही है। बस बाकी और मैने कुछ नही किया।

अभय की बात सुनकर, मंगलू की आंखो से आसूं टपक पड़े, ये देख कर अभय बोला...

अभय -- अरे अंकल आ... आप क्यूं ऐसे....?

मंगलू -- आज तक सिर्फ सुना था बेटा, की सच और ईमानदारी की पानी से पनपा पौधा कभी उखड़ता नही है। आज यकीन भी हो गया।

अभय -- माफ कीजिएगा अंकल, लेकिन मैं आपकी बातों को समझ नही पा रहा हूं।

अभय की दुविधा दूर करते हुए मंगलू ने कहा...

मंगलू -- जिस पेड़ को कल तुमने कटने से बचाया है। उस पेड़ को इस गांव के ठाकुर मनन सिंह और उनके बेटे अभय सिंह ने अपने हाथों से लगाया था। जब तक ठाकुर साहब थे, ये गांव भी उसी पौधे की तरह हरा भरा खिलता और बड़ा होता गया। खुशियां तो मानो इस गांव का नसीब बन कर आई थी, ठाकुर साहब का बेटा...अभय बाबा , मानो उनकी ही परछाई थे वो। कोई जाति पति का भेद भाव नही दिल खोल कर हमारे बच्चो के साथ खेलते। हमे कभी ऐसा नहीं लगा की ये इस हवेली के छोटे ठाकुर है, बल्कि हमे ऐसा लगता था की वो बच्चा हमारे ही आंगन का है। उसका मुस्कुराता चेहरा आज भी हम गांव वालो के दिल से नही निकला और शायद कभी निकलेगा भी नही। ना जाने कैसा सैलाब आया , पहले हमारे भगवान जैसे ठाकुर साहब को ले डूबी, फिर एक तूफान जो इस मुस्कुराते चेहरे को भी हमसे दूर कर दिया।

कहते हुए मंगलू की आंखो से उस दुख की धारा फूट पड़ी। अभय के लिए भी ये बहुत कठिन था। उसका दिल कर रहा था की वो बता दे की, काका उस तूफान में भटका वो मुस्कुराता चेहरा आज फिर से लौट आया है। पर वो नही कह सका। अपनी दिल की बात दिल में ही समेट कर रह गया। अभय का दिल भी ये सुन कर भर आया, की उसे कितना प्यार करते है सब गांव वाले। जिस प्यार की बारिश के लिए वो अपनी मां के ऊपर टकटकी लगाए रहता था वही प्यार गांव वालो के दिल में पनप रहा था। भाऊक हो चला अभय, सुर्ख आवाज में बोला...

अभि -- मैं समझ सकता हूं आपकी हालत अंकल।

ये सुनकर मंगलू अपनी आंखो से बह रहे उस आसूं को पूछते हुए बोला...

मंगलू -- बेटा, हमारे यहां कल हम भूमि पूजन का उत्सव मनाते है, पर इस बार हमे ऐसा लगा था शायद हमारे पास ये जमीन नही है। इस लिए हम अपनी भूमि का पूजा नही कर पाए। पर आज तुम्हारी वजह से हमारी जमीनें हमारी ही है। इस लिए कल रात हमने ये उत्सव रखा है, तो हम सब गांव वालो की तरफ से मैं तुम्हे आमंत्रित करने आया हूं। आना जरूर बेटा।

मंगलू की बात सुनकर, अभय का दिल जोर जोर से धड़कने लगा। वो खुद से बोला...

अभय – मन में (मैं कैसे भूल सकता हूं ये दिन)

मंगलू -- (अभय को गुमसुम देख) क्या हुआ बेटा? कोई परेशानी है?

अभय --(चौकते हुए) न... नही, काका। कोई परेशानी नहीं, मैं कल ज़रूर आऊंगा।

अभय की बात सुन मंगलू अपने लोगो के साथ खुशी खुशी विदा लेके चला गया जबकि अभय बैठ के आसमान को देखने लगा तभी पीछे से किसी औरत ने आवाज दी

औरत – साहेब जी आप अकेले क्यों बैठे हो यहां पे

अभय पलट के अपने सामने औरतों को देखता है तो झट से खड़ा हो जाता है

अभय – नही कुछ नही आंटी जी ऐसे ही बैठा..

औरत –(अभय को गौर से देखते हुए) बहुत ही अच्छी जगह चुनी है आपने जानते हो यहां पर बैठ के मन को जो शांति मिलती है वो कही नही मिलती

अभय – हा मुझे भी यहां बहुत सुकून मिल रहा है आंटी

औरत – अगर आप बुरा ना मानो एक बात पूछूं

अभय – हा पूछो ना आ

औरत – आपको खाने में क्या क्या पसंद है

अभय – मुझे सब कुछ पसंद है लेकिन सबसे ज्यादा पराठे पसंद है

औरत – मेरे बेटे को पराठे बहुत पसंद है मै बहुत अच्छे पराठे बनाती हूं देखना मेरे हाथ के गोभी के पराठे खा के मजा आजाएगा आपको

अभय – (जोर से हस्ते हुए) आपको पता है बड़ी मां मुझे गोभी के पराठे....

बोलने के बाद जैसे ही अभय ने औरत की तरफ नजर घुमाई देखा उसकी आखों में आसू थे

गीता देवी – (आंख में आसू लिए) तुझे देखते ही मुझे लगने लगा था तू ही हमारा अभय है

अभय –(रोते हुए) बड़ी मां (बोलते ही गीता देवी ने अभय को गले से लगा लिया)

गीता देवी – क्यों चला गया था रे छोर के हमे एक बार भी नही सोचा तूने अपनी बड़ी मां के लिए

अभय – (रूंधे गले से) मैं...मैं...मुझे माफ कर दो बड़ी मां

गीता देवी – (आसू पोंछ के) चल घर चल तू मेरे साथ

अभय – नही बड़ी मां अभी नही आ सकता मै....

तभी पीछे से किसी ने आवाज दी.... गीता

अभय – (धीरे से जल्दी में बोला) बड़ी मां गांव में किसी को भी पता नहीं चलना चाहीए मेरे बारे में मैं आपको बाद में सब बताऊग

सत्या बाबू – गीता यहां क्या कर रही हो (अभय को देख के) अरे बाबू साहेब आप भी यहां पे

गीता देवी – कल गांव में भूमि पूजन रखा है साथ ही गांव वालो ने खास इनके लिए दावत भी रखी है उसी के लिए मानने आए थे हम सब बाकी तो चले गए मैने सोचा हाल चाल ले लू

सत्या बाबू – ये तो बहुत अच्छी बात बताए तुमने गीता

गीता देवी – (अभय से) अच्छा आप कल जरूर आना इंतजार करेगे आपका (बोल के सत्या बाबू और गीता देवी निकल गए वहा से)

सत्या बाबू – गीता आज सुबह सुबह मैं मिला था बाबू साहब से उनसे बाते करते वक्त जाने दिल में अभय बाबा का ख्याल आया था उनके जैसे नीली आखें

गीता देवी –(मुस्कुराते हुए) ये हमारे अभय बाबा ही है

सत्या बाबू –(चौकते हुए) लेकिन कैसे खेर छोड़ो उनको साथ लेके क्यों नही चली घर में राज को पता चलेगा कितनी खुश हो जाएगा चलो अभी लेके चलते है....

गीता देवी – (बीच में टोकते हुए) शांति से काम लीजिए आप और जरा ठंडे दिमाग से सोचिए इतने वक्त तक अभय बाबा घर से दूर रहे अकेले और अब इतने सालो बाद वापस आए कॉलेज में एडमिशन लेके वो भी अपने गांव में आपको ये सब बाते अजीब नही लगती है

सत्या बाबू – हा बात अजीब तो है

गीता देवी – अभय ने माना किया है मुझे बताने से किसी को भी आप भी ध्यान रख्येगा गलती से भी किसी को पता न चले अभय के बारे में और राज को भी मत बताना आप वो खुद बताएगा अपने आप

सत्या बाबू – ठीक है , आज मैं बहुत खुश हो गीता अभय बाबा के आते ही गांव वालो की जमीन की समस्या हल हो गए देखना गीता एक दिन बड़े ठाकुर की तरह अभय बाबा भी गांव में खुशीयो की बारिश करेगे

गीता देवी और सत्या बाबू बात करते हुए निकल गए घर के लिए जबकि इस तरफ रमन ओर मुनीम आपस में बाते कर रहे थे

रमन – (पेड़ के नीचे बैठा सिगरेट का कश लेते हुए) मुनीम, मैने तुझे समझाया था। की भाभी के पास तू दुबारा मत जाना, फिर भी तू क्यूं गया?

मुनीम -- (घबराहट में) अरे मा...मालिक मैं तो इस लिए गया था की। मैं मालकिन को ये यकीन दिला सकू की सब गलती मेरी ही है।

रमन -- (गुस्से में) तुझे यहां पे यकीन दिलाने की पड़ी है। और उधर मेरे हाथो से इतना बड़ा खजाना निकल गया। साला...कॉलेज बनवाने के नाम पर मैने गांव वालो की ज़मीन हथिया लि थी अब क्या जवाब दुगा मैं उन लोगो को साला मजाक बन के रह जाएगा मेरा सबके सामने जैसे कल रात गांव वालो के सामने हुआ और वो हराम का जना वो छोकरा जाने कहा

(कहते हुए रमन की जुबान कुछ सोच के एक पल के लिए खामोश हो गई...)

रमन -- ऐ मुनीम...क्या लगता है तुझे ये छोकरा कौन है? कही ये सच में....?

मुनीम -- शुभ शुभ बोलो मालिक? इसीलिए उस लाश को रखवाया था मैने जंगल में तभी अगले दिन लाश मिली थी गांव वालो को?

रमन – धीरे बोल मुनीम के बच्चे इन पेड़ों के भी कान होते है , तू नही था वहा पर , कल रात को जिस तरह से वो छोकरा भाभीं से बात कर रहा था ऐसा लग रहा था जैसे बड़ी नफरत हो उसमे उपर से हवेली में जो हुआ और यहां तू अपनी...

मुनीम – (बीच में बात काटते हुए) मालिक मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूं ऐसी कोई बात नही है? जरूर ये छोकरा आप के ही किसी दुश्मन का मोहरा होगा। जो घर की चंद बाते बोलकर ठाकुराइन को ये यकीन दिलाना चाहता है की, वो उन्ही का बेटा है।

रमन -- और उस ठाकुराइन को यकीन भी हो गया। मुनीम मुझे ये सपोला बहुत खतरनाक लग रहा है, फन निकलने से पहले ही इससे कुचल देना ही बेहतर होगा। आते ही धमाका कर दिया।

मुनीम -- जी मालिक, वो भी बिना आवाज वाला।

ये सुनकर तो रमन का चेहरा गुस्से से लाल हो गया, जिसे देख मुनीम के छक्के छूट गए...

रमन -- मुनीम, जरा संभल के बोला कर। नही तो मेरा धमाका तुझ पर भारी पड़ सकता है। बोलने से पहले समझ लिया कर की उस बात का कोई गलत मतलब मेरे लिए तो नही।

मुनीम रमन से गिड़गिड़ा कर बोला...

रमन -- (हाथ जोड़ते हुए) गलती हो गई मालिक, आगे से ध्यान रखूंगा। आप चिंता मत करो, उस सपोले को दूध मैं अच्छी तरह से पिलाऊंगा।
मुनीम की बात सुनते ही, रमन झट से बोल पड़ा...

रमन -- नही अभी ऐसा कुछ करने की जरूरत नहीं है भाभी का पूरा ध्यान उस छोकरे पर ही है। अगर उसे कुछ भी हुआ, तो भाभी अपनी ठाकुरानी गिरी दिखाने में वक्त नहीं लगाएगी। और अब तो उस पर मेरा दबदबा भी नही रहा। कहीं वो एक एक कर के सारे पन्ने पलटते ना लग जाए , तू समझा ना मैं क्या कह रहा हूं?

मुनीम -- समझ गया मालिक मतलब उस सपोले को सिर्फ पिटारे में कैद कर के रखना है, और समय आने पर उसे मसलना है।

मुनीम की बात सुनकर रमन कुछ बोला तो नही पर सिगरेट की एक कश लेते हुए मुस्कुराया और वहा से चल दिया..

सुबह से शाम होने को आई हवेली में संध्या का मन उतावला हो रहा था अभय से मिलने के लिए काम से फुरसत पा कर संध्या अपनी कार से निकल गई हॉस्टल के तरफ तभी रास्ते में संध्या ने कार को रोक के सामने देखा आम के बगीचे में एक लड़कि अकेली बैठी थी पेड़ के नीचे उसे देख के संध्या कार से उतर के वहा जाने लगी

संध्या – पायल तू यहां पे अकेले

पायल – ठकुराइन आप , जी मैं..वो..वो

संध्या –(बात को कटते हुए) सब जानती हू मै तू और अभय अक्सर यहां आया करते थे ना घूमने है ना पायल

पायल – नही ठकुराइन जी बल्कि वो ही मुझे अपने साथ लाया करता था जबरदस्ती , उसी की वजह से मेरी भी आदत बन गई यहां आने की , जाने वो कब आएगा , बोलता था मेरे लिए चूड़ियां लेके आएगा अच्छी वाली और एक बार आपके कंगन लेके आगया था ठकुराइन , मुझे ये चूड़ी कंगन नही चाहिए बस वो चाहिए

कहते हुए पायल की आंखो में आसूं आ गए, ये देख कर संध्या खुद को रोक नहीं पाई और आगे बढ़कर पायल को अपने सीने से लगा लेती है, और भाऊक हो कर बोली...

संध्या -- बहुत प्यार करती है ना तू उसे आज भी?

पायल एक पल के लिए तो ठाकुराइन का इतना प्यार देखकर हैरान रह गई। फिर ठाकुराइन की बातो पर गौर करते हुए बोली...

पायल -- प्यार क्या होता है, वो तो पता नही । लेकिन उसकी याद हर पल आती रहती है।

पायल की बात सुनकर संध्या की आंखो में भी आसूं छलक गए और वो एक बार कस के पायल को अपने सीने से चिपका लेती है।

संध्या पायल को अपने सीने से चिपकाई वो सुर्ख आवाज में बोली...

संध्या -- तू भी मुझसे बहुत नाराज़ होगी ना पायल ?

संध्या की बात सुनकर, पायल संध्या से अलग होते हुए बोली...

पायल -- आपसे नाराज़ नहीं हु मै, हां लेकिन आप जब भी बेवजह अभय को मरती थी तब मुझे आप पर बहुत गुस्सा आता था। कई बार अभय से पूछती थी की, तुम्हारी मां तुम्हे इतना क्यूं मरती है? तो मुस्कुराते हुए बोलता था की, मारती है तो क्या हुआ बाद में उसी जख्मों पर रोते हुए प्यार से मलहम भी तो लगाती है मेरी मां। थोड़ा गुस्से वाली है मेरी मां पर प्यार बहुत करती है। उसके मुंह से ये सुनकर आपके ऊपर से सारा गुस्सा चला जाता था।

पायल की बातो ने संध्या की आंखो को दरिया बना दी। वो एक शब्द नही बोल पाई, शायद अंदर ही अंदर तड़प रही थी और रो ना पाने की वजह से गला भी दुखने लगा था। फिर भी वो अपनी आवाज पर काबू पाते हुए बोली...

संध्या --(अपने हाथ से पायल के आसू पोंछ के) पायल अगर तुझे एतराज ना हो कल का भूमि पूजन मैं तेरे साथ करना चाहती हूं क्या तू इजाजत देगी मुझे

पायल – जी ठकुराइन अगर आप चाहे हर साल मैं आपके साथ भूमि पूजन करूगी।

संध्या – देख अंधेरा होने को है आजा मैं तुझे घर छोर देती हूं (अपनी कार में पायल को घर छोर के जैसे ही संध्या आगे चल ही रही थी की सामने अभय उसे जाता हुआ मिला)

संध्या –(कार रोक के) हॉस्टल जा रहे हो आओ कार में आजाओ मैं छोर देती हूं

संध्या की बात सुनकर, अभय मुस्कुराते हुए बोला...

अभय -- आप को परेशान होने की जरूरत नहीं है मैडम। मैं चला जाऊंगा । और वैसे भी हॉस्टल कौन सा दूर है यहां से।

संध्या -- दूर तो नही है, पर फिर भी।

कहते हुए संध्या का चेहरा उदासी में लटक गया। ये देख कर अभय ने कुछ सोचा और फिर बोला...


अभय -- ठीक है चलिए चलता हूं मैं

ये सुनकर संध्या का चेहरा फूल की तरह खिल गया अभय के कार में बैठते ही संध्या ने कार आगे बड़ा दी कुछ दूर चलने के बाद अभय ने बोला...

अभय -- तुझे लगता है ना की मैं तेरा बेटा हूं तो अब तू मेरे मुंह से भी सुन ले, हां मैं ही अभय हूं।

ये सुनते ही संध्या एक जोरदार ब्रेक लगाते हुए कार को रोक देती है अभय के मुंह से सुनकर तो उसकी खुशी का ठिकाना ही न था। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो क्या बोले? वो तुरंत ही जोर जोर से रोने लगती है, और उसके मुंह से सिर्फ गिड़गिड़ाहट की आवाज ही निकल रही थी...

हाथ बढ़ाते हुए उसने अपना हाथ अभय के हाथ पर रखा तो अभय ने दूर झटक दिया। ये देख संध्या का दिल तड़प कर रह गया...

संध्या -- मुझे पता है, तुम मुझसे नाराज़ हो। मैने गलती ही ऐसी की है की, उसकी माफी नहीं है। तुम्हे मुझे जो सजा देनी है दो, मारो, पीटो, काटो, जो मन में आए...मुझसे यूं नाराज न हो। बड़े दिनों बाद दिल को सुकून मिला है। लेकिन मेरी किस्मत तो देखो मैं मेरा बेटा मेरी आंखो के सामने है और मैं उसे गले भी नही लगा पा रही हूं। कैसे बताऊं तुम्हे की मैं कितना तड़प रही हूं?

रोते हुऐ संध्या अपने दिल की हालत बयां कर रही थी। और अभय शांत बैठा उसकी बातो सुन रहा था।
संध्या ने जब देखा अभय कुछ नही बोल रहा है तो, उसका दिल और ज्यादा घबराने लगा। मन ही मन भगवान से यही गुहार लगी रही थी की, उसे उसका बेटा माफ कर दे...

संध्या -- मु...मुझे तो कुछ समझ ही नही आ रहा है की, मैं ऐसा क्या बोलूं या क्या करूं जिससे तुम मान जाओ। तुम ही बताओ ना की मैं क्या करूं?

ये सुनकर अभय हंसने लगा...अभय को इस तरह से हंसता देख संध्या का दिल एक बार फिर से रो पड़ा। वो समझ गई की, उसकी गिड़गिड़ाहट अभय के लिए मात्र एक मजाक है और कुछ नही और तभी अभय बोला...

अभय -- कुछ नही कर सकती तू। हमारे रास्ते अलग है। और मेरे रास्ते पे तेरे कदमों के निशान भी न पड़ने दू मैं। और तू सब कुछ ठीक करने की बात करती है। मुझे तुझसे कोई हमदर्दी नही है। तेरे ये आंसू मेरे लिए समुद्र का वो कतरा है है जो किसी काम का नही। क्या हुआ? कहा गई तेरी वो ठकुराइनो वाली आवाज? मुनीम इससे आज खाना मत देना। मुनीम ये स्कूल ना जाय तो इसे पेड़ से बांध कर रखना। अमन तू तो मेरा राजा बेटा है। आज से उस लड़की के साथ तुझे देखा तो तेरी खाल उधेड़ लूंगी।

अभय -- मैं उस लड़की के साथ तब भी था, आज भी हू और कल भी रहूंगा। बहुत उधेड़ी है तूने मेरी खाल। अच्छा लग रहा है, बड़ा सुकून मिल रहा है, तेरी हालत देख कर। (अभय जोर से हंसते हुए) ...तुम ही बताओ की मैं क्या करू? की तुम मान जाओ। हा... हा... हा। नौटंकी बाज़ तो तू है ही। क्या हुआ...वो तेरा राजा बेटा कहा गया? उससे प्यार नही मिल रहा है क्या अब तुझे? नही मिलता होगा, वो क्या है ना अपना अपना ही होता है, शायद तुझे मेरे जाने के पता चला होगा। अरे तुझे शर्म है क्या ? तू किस मुंह से मेरे सामने आती है, कभी खुद से पूछती है क्या? बेशर्म है तू, तुझे कुछ फर्क नही पड़ता...

संध्या बस चुप चाप बैठी मग्न हो कर रो रही थी मगर अब चिल्लाई...

संध्या – हा... हा बेशर्म हूं मैं, घटिया औरत हूं मैं। मगर तेरी मां हूं मैं। तू मुझे इस तरह नही छोड़ सकता। जन्म दिया है तुझे मैने। तेरी ये जिंदगी मुझसे जुड़ी है, इस तरह से अलग हो जाए ऐसा मैं होने नही दूंगी।

संध्या की चिल्लाहट सुन कर, अभय एक बार मुस्कुराया और बोला...

अभय -- तो ठीक है, लगी रह तू अपनी जिंदगी को मेरी जिंदगी से जोड़ने में।

ये कहते हुए अभय कार से जैसे ही नीचे उतरने को हुआ, संध्या ने अभय का हाथ पकड़ लिया। और किसी भिखारी की तरह दया याचना करते हुए अभय से बोली...

संध्या -- ना जा छोड़ के, कोई नही है तेरे सिवा मेरा। कुछ अच्छा नहीं लगता जब तू मेरे पास नहीं रहता। रह जा ना मेरे साथ, तू किसी कोने में भी रखेगा मुझे वहा पड़ा रहूंगी, सुखी रोटी भी ला कर देगा वो भी खा लूंगी, बस मुझे छोड़ कर ना जा। रुक जा ना, तेरे साथ रहने मन कर रहा है।

संध्या की करुण वाणी अगर इस समय कोई भी सुन लेता तो शत प्रतिशत पिघल जाता, उसने अपने दिल के हर वो दर्द को शब्दो में बयान कर दी थी। इस बार अभय भी थोड़ा भाऊक हो कर बड़े ही प्यार से बोला...

अभय -- याद है तुझे, मैं भी कभी यही बोला करता था तुझसे। जब रात को तू मुझे सुलाने आती थी। मैं भी तेरा हाथ पकड़ कर बोलता था, रह जा ना मां, तेरे साथ अच्छा लगता है। तू पास रहती है तो मुझे बहुत अच्छी नींद आती है, रुक जा ना मां, मेरे पास ही सो जा। मगर तू नही रुकी तब तुझे बहीखाता बनाना होता हिसाब देखना होता और उस रात को भी यही कहा था तुझे , लेकिन उस रात किसी और को तेरे साथ सोना था। याद है या बताऊ कॉन आया था सोने तेरे कमरे में......

संध्या – नहीं...चुप हो जा। तेरे पैर पड़ती हूं।

कहते हुए संध्या ने अभय का हाथ छोड़ दिया, और दूसरी तरफ मुंह घुमा लिया। ना जाने क्या हुआ उसे, ना रो रही थी ना कुछ बोल रही थी, बस बेबस सी पड़ी थी....

उसकी ऐसी हालत देख कर अभय जाने के लिए पलट गया और बिना पलते एक बार फिर बोला...

अभय -- जाते जाते तुझे एक बात बता दूं। तू गुलाब का वो फूल है, जिसके चारो तरफ सिर्फ कांटे ही कांटे है। सिर्फ एक मैं ही था, जो तुझे उन काटो से बचा सकता था। मगर तूने मुझे पतझड़ के सूखे हुए उस पत्ते की तरह खुद से अलग कर दिया की अब मैं भी तेरे चारों तरफ बिछे काटों को देखकर सुकून महसूस करता हूं...

ये कहकर अभय वहा से चला जाता है, संध्या बेचारी अपनी नजर उठा कर अंधेरे में अपने बेटे को देखना चाही, मगर कार के बाहर उसे सिर्फ अंधेरा ही दिखा......
.
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जारी रहेगा ✍️✍️
Bahut mast devil 👿 bhai yahan tak maine story padhi thi....ab dekhte hain aap Abhay ko kaise samne represent karte ho.
 

DEVIL MAXIMUM

"सर्वेभ्यः सर्वभावेभ्यः सर्वात्मना नमः।"
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UPDATE 12

अभय के जाते ही संध्या अपनी कार स्टार्ट करती है और हवेली की तरफ बढ़ चलती है हवेली में कार की आवाज आते ही रमिया तुरंत दरवाजा खोलती है तभी संध्या कार से उतर के चेहरे पे बिना किसी भाव के चलते चलते हवेली जाने लगती है तभी रमिया बोलती है

रमिया – मालकिन मैं जा रही हू बाबू जी को....

बोलते बोलते रमिया चुप हो जाती है क्यों की संध्या बस चले जा रही थी

रमिया – (मन में – आज मालकिन को क्या हो गया है)

इस तरह से संध्या को जाता देख मालती , ललिता , अमन तीनों संध्या को आवाज देते है लेकिन संध्या जैसा जिंदा लाश की तरह चलते चलते अपने कमरे में ना जा के अभय के कमरे में चली जाती है और दरवाजा अंदर से बंद कर देती है बाहर से तीनों आवाज लगाते है....

ललिता , मालती – (दरवाजा खट खटा के) दीदी दरवाजा खोलो दीदी (आवाज ना आने पर) दीदी क्या हुआ है बोलो...

मालती – (गुस्से में) आराम करना होता तो दीदी अपने कमरे में जाती ना की अभय के कमरे में , तू चुप चाप जा के अपना खाना ठूस समझा तेरी सलहा किसी ने नहीं पूछी है

ललिता – छोड़ उसे मालती पहले दीदी को देखो जल्दी

तभी कमरे से संध्या की आवाज आती है

संध्या – मुझे अकेला छोड़ दो प्लीज जाओ यह से

ललिता – दीदी दरवाजा खोलो खाना तो खा लो पहले

संध्या – मुझे भूख नही है ललिता अकेला छोड़ दो बस मुझे

थक हार कर मालती और ललिता को आखिर कर वापस जाना पड़ा जबकि कमरे में अभय के बेड में लेटी बस रोए जा रही थी शायद अब रोने के सिवा कुछ बचा ही नहीं था संध्या के पास

जबकि इस तरफ अभय कार से उतरते ही एक पेड़ के पीछे छुप के इंतजार करता है संध्या के जाने के , कार के जाने की आवाज सुन के अभय पेड़ के पीछे से बाहर निकल के सीधे निकल जाता है हॉस्टल की तरफ गुस्से में लाल आंख साथ में आसू लिए जैसे ही रूम में जाके बेड में बैठ गुस्से में सामने दीवार देखता रहता है थोड़ी देर के बाद किसी की आवाज आती है...

रमिया – माफ करिए गा बाबू जी मुझे देर हो गए आने में आप आइए खाना तयार है गरमा गर्म बैठाए मैं खाना लगाती हू

अभय – (गुस्से में चिल्ला के) जाओ यहां से नही चाहिए मुझे कुछ भी

अभय की गुस्से भरी आवाज से सहम सी जाती है रमिया

रमिया – (डर से) म... म...माफ करिए गा बाबू जी आगे से देर नही होगी आने में , मैं जाति हू आप खाना खा लेना

बोल के रमिया चुप चाप जाने लगी तभी अभय बोला

अभय – रमिया माफ करना मुझे तुझपे बिना वजह गुस्सा किया

रमिया – (अभय को गौर से देखते हुए) कोई बात नही बाबू जी मैं....

अभय – (बीच में बात को कटते हुए) खाना तू खा ले या लेजा अपने साथ मुझे भूख नही है और कल दोपहर में खाना बना देना , अब जा

रमिया बोलना चाहती थी लेकिन अभय फिर से कही गुस्सा ना हो इसीलिए बिना कुछ बोले चली गई

रमिया – (मन में – बाबू जी को क्या हो गया सुबह तो अच्छे भले थे और हवेली में मालकिन भी गुमसुम सी वापस लॉटी)

रमिया के जाते ही अभय ने पॉकेट से अपना मोबाइल निकाल के किसी को कॉल किया.....

सामने से – हेलो हेल्लो

सामने से – हेल्लो हैलो (थोड़ा रुक के) अभय क्या बात है बोल क्यों नही रहा है

अभय – (रोते हुए) क्यों आया मैं यहां पर दीदी क्यों क्यों क्यों दीदी

सामने से – (चिंता में) क्या हुआ अभय तू....तू रो क्यों रहा है

अभय – मैं अकेला अच्छा था वहा पे दीदी क्या सोच के आया था मैं लेकिन अब हिम्मत नही हो रही दीदी मेरी

सामने से – अभय तू शांत होजा पहले , तू तो मेरा प्यारा भाई है ना अपनी दीदी की बात नही मानेगा चुप होजा प्लीज , अब बता तू ठकुराइन से क्यों मिला , मना किया था ना मैने तुझे

अभय – मैं अनजाने में मेरी मुलाकात हुई उससे

सामने से – और अनजाने में तूने ठकुराइन को बता दिया की तू अभय है सही कहा न मैने

अभय – ?????

सामने से – अभय तेरे इस तरह से चुप रहने से कुछ नहीं होगा , और किस किस को पता है तेरे बारे में

अभय – मैने ठकुराइन को बताया और बड़ी मां को बस

सामने से – बड़ी मां और ठकुराइन को पता है बस बाकी हवेली में किसी को नही

अभय – शायद नही दीदी

सामने से – अभय ये शायद से काम नहीं चलेगा मुझे क्लीयर बात बता पूरी किस किस को पता है

अभय – शुरू में ठकुराइन से मिला तब उसके साथ ललिता चाची और मालती चाची थी बस

सामने से – ठीक है मैं 2 दिन बाद वही आ रही हूं और तब तक के लिए तू प्लीज कोई भी फालतू की हरकत मत करना समझ गया बात

अभय – जी दीदी , प्लीज दीदी आप जल्दी आजाओ , मेरे अपनो के खातिर आया था यहां लेकिन मजबूरी के चलते मेरे अपनो को बता भी नही सकता की मैं उनका अभय हूं

सामने से – बस 2 दिन और अभय मैं आ रही हूं वहा पे इंतजार कर मेरे भाई

बोल के कॉल कट हो गया अभय बाथरूम जाके आईने के सामने अपने आसू पोंछ के


GIF-20240510-084000-821
अभय – (गुस्से में घुसा मारा आईने को जोर से चिल्ला के बोला) आपने मेरे भरोसे का सिला धोखे से दिया
SSSSSEEEEEAAAAANNNIIIIOOOUUURRRRRR

शायद आज की रात बहोत लंबी होने वाली थी 2 लोगो के लिए एक तरफ संध्या जो दिल में बेशुमार प्यार है अभय के लिए जिसे कभी दिखा ना पाई तो दूसरे तरफ अभय के दिल में बेशुमार नफरत संध्या के लिए दोनो एक दूसरे को वो दे रहे है जो वो खुद चाहते है क्या सच में बेबस होना इसी को कहते है खेर.......

अभय हो या संध्या दोनो की रात जाग के निकली सुबह सूरज की पहली किरण के साथ अभय तयार हुआ बस रमिया नही आई क्यों की अभय ने कल रात उसे मना कर दिया था सुन आने के लिए अपना व्यायाम कर के अभय तयार होके निकल गया कॉलेज की तरफ

आज कॉलेज का पहला दिन था गांव के लगभग काफी लड़के और लड़कियां आरहे थे कॉलेज के अंदर अभय पहले से मौजूद एक दीवार पे टेक लगा के हाथ में किताब लिए पड़ रहा था असल में पड़ने का नाटक कर रहा था उसका ध्यान तो कॉलेज के एंट्री गेट पे था अभय की नजरे किसी के इंतजार को तरस रही थी लेकिन शायद आज वो आया ही नहीं तभी क्लास की घंटी बज गई अभय मायूस होके निकल गया क्लास में अपने

जैसे ही अभय क्लास में आया तभी किसी ने उसका रास्ता रोक दिया

राज – इतनी जल्दी कॉलेज आने के बाद भी क्लास में देर से आना अच्छी बात नहीं होती वो भी क्लास के पहले दिन में अध्यापक महोदय ने मुझे ड्यूटी दी है कोई भी देर से आए उसे क्लास में न जाने दिया जाए , तो बताए जनाब आपके साथ अब क्या किया जाए , अंडर किया जाए , या बाहर किया जाए

अभय बस मुस्कुराते हुए राज की बात सुने जा रहा था अभय कुछ बोलने जा है रहा थे की तभी किसी ने राज को आवाज दी जिससे अभय का ध्यान टूट गया

पायल – पहले ही दिन शुरू हो गए तुम

राज – अरे पायल अभी नही करेगे तो कब करेगे ये दिन भी मुश्किल से मिलते है यार

पायल – हा अगर टीचर ने देख ली तेरी हरकत तो क्लास के बाहर की सजा देगा तुझे तब बोलना अपना ये डायलॉग

इतना बोलते ही क्लास में बैठे स्टूडेंट हसने लगे और पायल अपने सहेली नूर के साथ जाके बैठ गई सीट में जबकि इधर अभय तब से सिर्फ पायल को देखे जा रहा था और ये सब राज ने देख लिया वो कुछ बोलता उससे पहले अभय को साइड से हल्का धक्का देके अमन क्लास में आया

अमन – चौकीदार की जरूरत कॉलेज के मेन गेट को है क्लास के गेट को नही वहा जाके पंचायती करो दोनो लोग

बोल के पायल के पीछे वाली सीट में बैठ गया अमन , क्लास में पहल से बैठे राजू और लल्ला को गुस्सा आया था और इस तरफ राज भी गुस्से में अमन को देख रहा था राज कुछ करता तभी क्लास टीचर आ गए राज और अभय जाके सीट में बैठ गए क्लास में पढ़ाई शुरू हो गई धीरे धीरे टीचर आए और गए चुकी पहला दिन था कॉलेज का कुछ नए टीचर भी आने वाले थे इसीलिए ज्यादा तर क्लास में टीचर नही आए थे

खाली क्लास में सभी अपनी मस्ती में लगे थे लेकिन अभय का पूरा ध्यान तो पायल।पे लगा हुआ था लेकिन सिर्फ एक बंदा था जो काफी देर से देख रहा था उससे ये बरदश ना हुआ तो...

अमन – (अभय की सीट पे जाके) ओए तूने गांव में आके जो किया सो किया लेकिन यहां पे अपनी नजरे जरा संभल के रख समझा

अभय – (मुस्कुराते हुए) अपनी नजरो का तो पता नही लेकिन हा मैने एक बात जरूर सुनी की ठाकुरों को नगरी में अमन ठाकुर से ज्यादा समझदार और चालक कोई नही , क्या ये सच है

अमन – तुझे कोई शक है क्या

अभय – शक तो नही बस एक सवाल है जिसका जवाब नही मिल रहा मुझे क्या तुम जवाब दे सकते हो

अमन – छोटे लोगो के मु लगना मेरी आदत नही

अभय – सवाल से बचने का इससे अच्छा भी कोई बहाना नही

अमन – मैं नही डरता हू किसी भी सवाल से पूंछ क्या सवाल है तेरा

अभय – (मुस्कुराते हुए) वो क्या है जो एक बार खुले तो बंद नही होता और बंद हो जाय तो कभी खुलता नही

अमन – (सवाल सुन के सोचने लगा सोचते सोचते काफी देर हो गई लेकिन जवाब नही मिला)

लेकिन सवाल पूछने के बाद कोई था जिसने जवाब दे दिया लेकिन धीरे से जो किसी ने ध्यान ना दिया उसपे सिवाय अभय के , जबकि इतनी देर से जवाब ना दे पाने के कारण अमन बौखला रहा था की तभी कॉलेज की बैल बज गई सारे लड़के और लड़कियां बाहर निकलने लगे

तभी अभय जाने लगा तो अमन ने उसका रास्ता रोक के

अमन – तूने जान बूझ के मेरा मजाक बनाया है पूरे क्लास में....

अभय – (बात को काटते हुए) सवाल का जवाब तुम दे नही पाए और गुस्सा मुझ पे निकाल रहे हो , याद रखना एक बात जब एक किसान को प्यास लगती है ना तो वो जमीन में खड्डा खोद के भी पानी निकल देता है जानता है क्यों , क्योंकि कोशिश करने वालो की कभी हार नही होती और तुमने अभी तक कोशिश ही नही की अगर की होती तो जवाब कब का दे चुके होते ना की मेरा रास्ता रोकते।

इतना बोल के अभय वहा से निकल गया और अमन अपना मु फाड़े देखता रहा अभय को जाते हुए जबकि क्लास में राज , लल्ला , राजू तीनो अमन को देख के अपना मु पे हाथ रख के हस्ते रहे अमन को ये अपनी बेइज्जती लगी घूर के तीनों को देखते हुए क्लास से बाहर निकल गया

कुछ घंटे पहले संध्या सुबह अभय के बेड पर उठ कर बैठ जाती है। उसका सिर भारी लग रहा था, और हल्का हल्का दुख भी रहा था। वो अपना सिर पकड़े बैठी ही थी की तभी दरवाजे पे खटखटाहट....

संध्या -- कौन है.....?

रमन – मैं हू भाभी....

संध्या बेड पर से उठते हुए.....दरवाजा खोलते हुए वापस बेड पर आकर बैठ जाती है। रमन भी संध्या के पीछे पीछे कमरे में दाखिल होता है।

रमन -- क्या हुआ भाभी...? आज अभय के कमरे में ही सो गई थी क्या?

रमन की बात सुनकर......

संध्या -- अभय को उस रात के बारे में कैसा पता चला?

संध्या थोड़ा गुस्से भरी लहजे में बोली, जिसे सुनकर रमन एक पल के लिए हैरान हो गया।

रमन -- क...क.... क्या बोल रही हो भाभी तुम? म...म...मुझे क्या मालूम अभय को.....(कुछ सोचते हुए) अच्छा, तो वो छोकरा फिर से तुम्हे मिला होगा। जिसे तुम अपना बेटा समझती हो, जरूर उसी ने फिर से कोई खेल खेला है।

संध्या -- (गुस्से में चिल्ला के) मैने पूछा, अभय को कैसे पता चला की तू मेरे कमरे में आया था उस रात बोल कैसे पता चला....।

अचनाक से संध्या की आवाज तेज हो गई, उसके चेहरे पे गुस्से के बदल उमड़ पड़े थे। संध्या की गुस्से से भरी बात सुनकर, रमन भी गुस्से में अकड़ कर बोला.....

रमन -- मुझे क्या पता उसको कैसे पता चला मैने थोड़ी ना बताया उसको , भाभी उस कल के आए छोकरे ने तुम्हारा दिमाग खराब कर दिया है जब से तुम उससे मिली हो तब से अजीब बर्ताव हो गया है तुम्हारा

संध्या – हा क्योंकि अंधेरे में जी रही थी मैं दिमाग खराब था मेरा जब जब अभय को मेरी जरूरत थी तब मैं नही थी जब प्यार करना था तब उसपे हाथ उठा दिया मैने लेकिन कभी उसने उफ्फ तक ना किया (थोड़ा रुक के बोली) रमन बस एक बात और बता दो मुझे उस रात को तुम किस लिए आए थे मेरे कमरे में

रमन – (ये सुनते ही आखें बड़ी हो गई गला सूखने लगा उसका) वो....वो....भ..भ...भाभी आ...आ.....आपने ही तो बू..बू...बुलाया था मुझे हिसाब के लिए

संध्या – क्या कही तेरा दिमाग तो नही खराब हो गया है तुझे पता था ना अगले दिन अभय का जन्मदिन है और मैने पहले कहा था सबसे आज कोई हिसाब नही देखूगी क्योंकि कल अभय का जन्मदिन है आज अभय के कमरे में सोऊगि

रमन – (कुछ भी न सूझते हुए हड़बड़ाहट में) देखो भाभी ये...ये... बात को बहुत वक्त बीत गया है मुझे बस इतना याद है तुमने बुलाया था हिसाब की बात के लिए और भा...भाभी तुम मुझ पर बिना वजह शक कर रही हो ये भी हो सकता है ये सब इत्तेफाक हो

संध्या – (हस्ते हुए) वाह रमन वाह , विश्वास का अच्छा सिला मिला है आज मुझे अब मुझे समझ आया शायद यहीं वजह है आज मेरी जिंदगी जहन्नुम बन चुकी है सब कुछ होते हुए भी कुछ भी नही रहा आज मेरे पास कुछ भी नही।

इतना बोल कर संध्या वहा से रोते हुए चली जाति है संध्या के जाते ही, रमन अपने जेब से मोबाइल फोन निकलते हुए एक नंबर मिलता है। उसके चेहरे के भाव से पता चला रहा था की वो काफी घबरा गया है

रमन -- हेलो... मु...मुनीम। कुछ पता चला उस छोकरे के बारे में?

दूसरी तरफ से मुनीम ने कुछ बोला.....

रमन -- कुछ नही पता चला तो पता करो , नही तो जितने जल्दी हो सके उसे रास्ते से हटा दो।

बोलते हुए रमन ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया, और जैसे ही कमरे से बाहर जाने के लिए कदम बढ़ाया, उसे दरवाजे पर ललिता खड़ी दिखी...

मटकाती हुई ललिता कमरे में दाखिल हुई, और रमन के गले में हाथ डालते हुई बोली...

ललिता -- जिसको रास्ते से हटाना चाहिए, उसे क्यों नही हटा रहे हो मेरी जान?

रमन -- क्या मतलब...?

ललीता -- अपनी प्यारी भाभी....

ललिता बोल ही रही थी की, एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर रसीद हो गए...

रमन -- साली, ज्यादा जुबान चलने लगी है तेरी , तुझे पता है ना...उसमे जान अटकी है हर किसी की। उसका बदन... आह, क्या कयामत है? और तू....!!

ये सुनकर ललिता एक जहरीली मुस्कान की चादर अपने चेहरे पर ओढ़ते हुए बोली...

ललीता -- एक बार किस्मत मेहरबान हुई थी तुम पर, पर क्या हुआ ?? तुम्हारे लंड ने तुम्हारी भाभी की गर्म और रसभरी चूत का मजा चख लिया, और उसके बाद से आज तक तुम्हे उस चूत का मूत भी नसीब हुआ।

ललिता की बात सुनकर, रमन गुस्से में बौखलाया बोला...

रमन -- तू अपनी औकात मत भूल समझी उसके लिए मैं क्या क्या कर सकता हूं, ये बात तू अच्छी तरह से जानती है। और इस बार रास्ते का कांटा वो छोरा है...और इस काटे को निकाल कर फेंकना अब और भी ज्यादा जरूरी हो गया है नही तो वो यूं ही भाभी की जुबान बन कर हमे चुभता रहेगा.....!!

कहते हुए रमन कमरे से बाहर चला जाता है

ललिता – हरामजादे तू सच में किसी का नही हो सकता है थू है तुझ जैसों पे
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जारी रहेगा ✍️✍️
 

Shekhu69

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अभय के जाते ही संध्या अपनी कार स्टार्ट करती है और हवेली की तरफ बढ़ चलती है हवेली में कार की आवाज आते ही रमिया तुरंत दरवाजा खोलती है तभी संध्या कार से उतर के चेहरे पे बिना किसी भाव के चलते चलते हवेली जाने लगती है तभी रमिया बोलती है

रमिया – मालकिन मैं जा रही हू बाबू जी को....

बोलते बोलते रमिया चुप हो जाती है क्यों की संध्या बस चले जा रही थी

रमिया – (मन में – आज मालकिन को क्या हो गया है)

इस तरह से संध्या को जाता देख मालती , ललिता , अमन तीनों संध्या को आवाज देते है लेकिन संध्या जैसा जिंदा लाश की तरह चलते चलते अपने कमरे में ना जा के अभय के कमरे में चली जाती है और दरवाजा अंदर से बंद कर देती है बाहर से तीनों आवाज लगाते है....

ललिता , मालती – (दरवाजा खट खटा के) दीदी दरवाजा खोलो दीदी (आवाज ना आने पर) दीदी क्या हुआ है बोलो...

मालती – (गुस्से में) आराम करना होता तो दीदी अपने कमरे में जाती ना की अभय के कमरे में , तू चुप चाप जा के अपना खाना ठूस समझा तेरी सलहा किसी ने नहीं पूछी है

ललिता – छोड़ उसे मालती पहले दीदी को देखो जल्दी

तभी कमरे से संध्या की आवाज आती है

संध्या – मुझे अकेला छोड़ दो प्लीज जाओ यह से

ललिता – दीदी दरवाजा खोलो खाना तो खा लो पहले

संध्या – मुझे भूख नही है ललिता अकेला छोड़ दो बस मुझे

थक हार कर मालती और ललिता को आखिर कर वापस जाना पड़ा जबकि कमरे में अभय के बेड में लेटी बस रोए जा रही थी शायद अब रोने के सिवा कुछ बचा ही नहीं था संध्या के पास

जबकि इस तरफ अभय कार से उतरते ही एक पेड़ के पीछे छुप के इंतजार करता है संध्या के जाने के , कार के जाने की आवाज सुन के अभय पेड़ के पीछे से बाहर निकल के सीधे निकल जाता है हॉस्टल की तरफ गुस्से में लाल आंख साथ में आसू लिए जैसे ही रूम में जाके बेड में बैठ गुस्से में सामने दीवार देखता रहता है थोड़ी देर के बाद किसी की आवाज आती है...

रमिया – माफ करिए गा बाबू जी मुझे देर हो गए आने में आप आइए खाना तयार है गरमा गर्म बैठाए मैं खाना लगाती हू

अभय – (गुस्से में चिल्ला के) जाओ यहां से नही चाहिए मुझे कुछ भी

अभय की गुस्से भरी आवाज से सहम सी जाती है रमिया

रमिया – (डर से) म... म...माफ करिए गा बाबू जी आगे से देर नही होगी आने में , मैं जाति हू आप खाना खा लेना

बोल के रमिया चुप चाप जाने लगी तभी अभय बोला

अभय – रमिया माफ करना मुझे तुझपे बिना वजह गुस्सा किया

रमिया – (अभय को गौर से देखते हुए) कोई बात नही बाबू जी मैं....

अभय – (बीच में बात को कटते हुए) खाना तू खा ले या लेजा अपने साथ मुझे भूख नही है और कल दोपहर में खाना बना देना , अब जा

रमिया बोलना चाहती थी लेकिन अभय फिर से कही गुस्सा ना हो इसीलिए बिना कुछ बोले चली गई

रमिया – (मन में – बाबू जी को क्या हो गया सुबह तो अच्छे भले थे और हवेली में मालकिन भी गुमसुम सी वापस लॉटी)

रमिया के जाते ही अभय ने पॉकेट से अपना मोबाइल निकाल के किसी को कॉल किया.....

सामने से – हेलो हेल्लो

सामने से – हेल्लो हैलो (थोड़ा रुक के) अभय क्या बात है बोल क्यों नही रहा है

अभय – (रोते हुए) क्यों आया मैं यहां पर दीदी क्यों क्यों क्यों दीदी

सामने से – (चिंता में) क्या हुआ अभय तू....तू रो क्यों रहा है

अभय – मैं अकेला अच्छा था वहा पे दीदी क्या सोच के आया था मैं लेकिन अब हिम्मत नही हो रही दीदी मेरी

सामने से – अभय तू शांत होजा पहले , तू तो मेरा प्यारा भाई है ना अपनी दीदी की बात नही मानेगा चुप होजा प्लीज , अब बता तू ठकुराइन से क्यों मिला , मना किया था ना मैने तुझे

अभय – मैं अनजाने में मेरी मुलाकात हुई उससे

सामने से – और अनजाने में तूने ठकुराइन को बता दिया की तू अभय है सही कहा न मैने

अभय – ?????

सामने से – अभय तेरे इस तरह से चुप रहने से कुछ नहीं होगा , और किस किस को पता है तेरे बारे में

अभय – मैने ठकुराइन को बताया और बड़ी मां को बस

सामने से – बड़ी मां और ठकुराइन को पता है बस बाकी हवेली में किसी को नही

अभय – शायद नही दीदी

सामने से – अभय ये शायद से काम नहीं चलेगा मुझे क्लीयर बात बता पूरी किस किस को पता है

अभय – शुरू में ठकुराइन से मिला तब उसके साथ ललिता चाची और मालती चाची थी बस

सामने से – ठीक है मैं 2 दिन बाद वही आ रही हूं और तब तक के लिए तू प्लीज कोई भी फालतू की हरकत मत करना समझ गया बात

अभय – जी दीदी , प्लीज दीदी आप जल्दी आजाओ , मेरे अपनो के खातिर आया था यहां लेकिन मजबूरी के चलते मेरे अपनो को बता भी नही सकता की मैं उनका अभय हूं

सामने से – बस 2 दिन और अभय मैं आ रही हूं वहा पे इंतजार कर मेरे भाई

बोल के कॉल कट हो गया अभय बाथरूम जाके आईने के सामने अपने आसू पोंछ के


GIF-20240510-084000-821
अभय – (गुस्से में घुसा मारा आईने को जोर से चिल्ला के बोला) आपने मेरे भरोसे का सिला धोखे से दिया
SSSSSEEEEEAAAAANNNIIIIOOOUUURRRRRR

शायद आज की रात बहोत लंबी होने वाली थी 2 लोगो के लिए एक तरफ संध्या जो दिल में बेशुमार प्यार है अभय के लिए जिसे कभी दिखा ना पाई तो दूसरे तरफ अभय के दिल में बेशुमार नफरत संध्या के लिए दोनो एक दूसरे को वो दे रहे है जो वो खुद चाहते है क्या सच में बेबस होना इसी को कहते है खेर.......

अभय हो या संध्या दोनो की रात जाग के निकली सुबह सूरज की पहली किरण के साथ अभय तयार हुआ बस रमिया नही आई क्यों की अभय ने कल रात उसे मना कर दिया था सुन आने के लिए अपना व्यायाम कर के अभय तयार होके निकल गया कॉलेज की तरफ

आज कॉलेज का पहला दिन था गांव के लगभग काफी लड़के और लड़कियां आरहे थे कॉलेज के अंदर अभय पहले से मौजूद एक दीवार पे टेक लगा के हाथ में किताब लिए पड़ रहा था असल में पड़ने का नाटक कर रहा था उसका ध्यान तो कॉलेज के एंट्री गेट पे था अभय की नजरे किसी के इंतजार को तरस रही थी लेकिन शायद आज वो आया ही नहीं तभी क्लास की घंटी बज गई अभय मायूस होके निकल गया क्लास में अपने

जैसे ही अभय क्लास में आया तभी किसी ने उसका रास्ता रोक दिया

राज – इतनी जल्दी कॉलेज आने के बाद भी क्लास में देर से आना अच्छी बात नहीं होती वो भी क्लास के पहले दिन में अध्यापक महोदय ने मुझे ड्यूटी दी है कोई भी देर से आए उसे क्लास में न जाने दिया जाए , तो बताए जनाब आपके साथ अब क्या किया जाए , अंडर किया जाए , या बाहर किया जाए

अभय बस मुस्कुराते हुए राज की बात सुने जा रहा था अभय कुछ बोलने जा है रहा थे की तभी किसी ने राज को आवाज दी जिससे अभय का ध्यान टूट गया

पायल – पहले ही दिन शुरू हो गए तुम

राज – अरे पायल अभी नही करेगे तो कब करेगे ये दिन भी मुश्किल से मिलते है यार

पायल – हा अगर टीचर ने देख ली तेरी हरकत तो क्लास के बाहर की सजा देगा तुझे तब बोलना अपना ये डायलॉग

इतना बोलते ही क्लास में बैठे स्टूडेंट हसने लगे और पायल अपने सहेली नूर के साथ जाके बैठ गई सीट में जबकि इधर अभय तब से सिर्फ पायल को देखे जा रहा था और ये सब राज ने देख लिया वो कुछ बोलता उससे पहले अभय को साइड से हल्का धक्का देके अमन क्लास में आया

अमन – चौकीदार की जरूरत कॉलेज के मेन गेट को है क्लास के गेट को नही वहा जाके पंचायती करो दोनो लोग

बोल के पायल के पीछे वाली सीट में बैठ गया अमन , क्लास में पहल से बैठे राजू और लल्ला को गुस्सा आया था और इस तरफ राज भी गुस्से में अमन को देख रहा था राज कुछ करता तभी क्लास टीचर आ गए राज और अभय जाके सीट में बैठ गए क्लास में पढ़ाई शुरू हो गई धीरे धीरे टीचर आए और गए चुकी पहला दिन था कॉलेज का कुछ नए टीचर भी आने वाले थे इसीलिए ज्यादा तर क्लास में टीचर नही आए थे

खाली क्लास में सभी अपनी मस्ती में लगे थे लेकिन अभय का पूरा ध्यान तो पायल।पे लगा हुआ था लेकिन सिर्फ एक बंदा था जो काफी देर से देख रहा था उससे ये बरदश ना हुआ तो...

अमन – (अभय की सीट पे जाके) ओए तूने गांव में आके जो किया सो किया लेकिन यहां पे अपनी नजरे जरा संभल के रख समझा

अभय – (मुस्कुराते हुए) अपनी नजरो का तो पता नही लेकिन हा मैने एक बात जरूर सुनी की ठाकुरों को नगरी में अमन ठाकुर से ज्यादा समझदार और चालक कोई नही , क्या ये सच है

अमन – तुझे कोई शक है क्या

अभय – शक तो नही बस एक सवाल है जिसका जवाब नही मिल रहा मुझे क्या तुम जवाब दे सकते हो

अमन – छोटे लोगो के मु लगना मेरी आदत नही

अभय – सवाल से बचने का इससे अच्छा भी कोई बहाना नही

अमन – मैं नही डरता हू किसी भी सवाल से पूंछ क्या सवाल है तेरा

अभय – (मुस्कुराते हुए) वो क्या है जो एक बार खुले तो बंद नही होता और बंद हो जाय तो कभी खुलता नही

अमन – (सवाल सुन के सोचने लगा सोचते सोचते काफी देर हो गई लेकिन जवाब नही मिला)

लेकिन सवाल पूछने के बाद कोई था जिसने जवाब दे दिया लेकिन धीरे से जो किसी ने ध्यान ना दिया उसपे सिवाय अभय के , जबकि इतनी देर से जवाब ना दे पाने के कारण अमन बौखला रहा था की तभी कॉलेज की बैल बज गई सारे लड़के और लड़कियां बाहर निकलने लगे

तभी अभय जाने लगा तो अमन ने उसका रास्ता रोक के

अमन – तूने जान बूझ के मेरा मजाक बनाया है पूरे क्लास में....

अभय – (बात को काटते हुए) सवाल का जवाब तुम दे नही पाए और गुस्सा मुझ पे निकाल रहे हो , याद रखना एक बात जब एक किसान को प्यास लगती है ना तो वो जमीन में खड्डा खोद के भी पानी निकल देता है जानता है क्यों , क्योंकि कोशिश करने वालो की कभी हार नही होती और तुमने अभी तक कोशिश ही नही की अगर की होती तो जवाब कब का दे चुके होते ना की मेरा रास्ता रोकते।

इतना बोल के अभय वहा से निकल गया और अमन अपना मु फाड़े देखता रहा अभय को जाते हुए जबकि क्लास में राज , लल्ला , राजू तीनो अमन को देख के अपना मु पे हाथ रख के हस्ते रहे अमन को ये अपनी बेइज्जती लगी घूर के तीनों को देखते हुए क्लास से बाहर निकल गया

कुछ घंटे पहले संध्या सुबह अभय के बेड पर उठ कर बैठ जाती है। उसका सिर भारी लग रहा था, और हल्का हल्का दुख भी रहा था। वो अपना सिर पकड़े बैठी ही थी की तभी दरवाजे पे खटखटाहट....

संध्या -- कौन है.....?

रमन – मैं हू भाभी....

संध्या बेड पर से उठते हुए.....दरवाजा खोलते हुए वापस बेड पर आकर बैठ जाती है। रमन भी संध्या के पीछे पीछे कमरे में दाखिल होता है।

रमन -- क्या हुआ भाभी...? आज अभय के कमरे में ही सो गई थी क्या?

रमन की बात सुनकर......

संध्या -- अभय को उस रात के बारे में कैसा पता चला?

संध्या थोड़ा गुस्से भरी लहजे में बोली, जिसे सुनकर रमन एक पल के लिए हैरान हो गया।

रमन -- क...क.... क्या बोल रही हो भाभी तुम? म...म...मुझे क्या मालूम अभय को.....(कुछ सोचते हुए) अच्छा, तो वो छोकरा फिर से तुम्हे मिला होगा। जिसे तुम अपना बेटा समझती हो, जरूर उसी ने फिर से कोई खेल खेला है।

संध्या -- (गुस्से में चिल्ला के) मैने पूछा, अभय को कैसे पता चला की तू मेरे कमरे में आया था उस रात बोल कैसे पता चला....।

अचनाक से संध्या की आवाज तेज हो गई, उसके चेहरे पे गुस्से के बदल उमड़ पड़े थे। संध्या की गुस्से से भरी बात सुनकर, रमन भी गुस्से में अकड़ कर बोला.....

रमन -- मुझे क्या पता उसको कैसे पता चला मैने थोड़ी ना बताया उसको , भाभी उस कल के आए छोकरे ने तुम्हारा दिमाग खराब कर दिया है जब से तुम उससे मिली हो तब से अजीब बर्ताव हो गया है तुम्हारा

संध्या – हा क्योंकि अंधेरे में जी रही थी मैं दिमाग खराब था मेरा जब जब अभय को मेरी जरूरत थी तब मैं नही थी जब प्यार करना था तब उसपे हाथ उठा दिया मैने लेकिन कभी उसने उफ्फ तक ना किया (थोड़ा रुक के बोली) रमन बस एक बात और बता दो मुझे उस रात को तुम किस लिए आए थे मेरे कमरे में

रमन – (ये सुनते ही आखें बड़ी हो गई गला सूखने लगा उसका) वो....वो....भ..भ...भाभी आ...आ.....आपने ही तो बू..बू...बुलाया था मुझे हिसाब के लिए

संध्या – क्या कही तेरा दिमाग तो नही खराब हो गया है तुझे पता था ना अगले दिन अभय का जन्मदिन है और मैने पहले कहा था सबसे आज कोई हिसाब नही देखूगी क्योंकि कल अभय का जन्मदिन है आज अभय के कमरे में सोऊगि

रमन – (कुछ भी न सूझते हुए हड़बड़ाहट में) देखो भाभी ये...ये... बात को बहुत वक्त बीत गया है मुझे बस इतना याद है तुमने बुलाया था हिसाब की बात के लिए और भा...भाभी तुम मुझ पर बिना वजह शक कर रही हो ये भी हो सकता है ये सब इत्तेफाक हो

संध्या – (हस्ते हुए) वाह रमन वाह , विश्वास का अच्छा सिला मिला है आज मुझे अब मुझे समझ आया शायद यहीं वजह है आज मेरी जिंदगी जहन्नुम बन चुकी है सब कुछ होते हुए भी कुछ भी नही रहा आज मेरे पास कुछ भी नही।

इतना बोल कर संध्या वहा से रोते हुए चली जाति है संध्या के जाते ही, रमन अपने जेब से मोबाइल फोन निकलते हुए एक नंबर मिलता है। उसके चेहरे के भाव से पता चला रहा था की वो काफी घबरा गया है

रमन -- हेलो... मु...मुनीम। कुछ पता चला उस छोकरे के बारे में?

दूसरी तरफ से मुनीम ने कुछ बोला.....

रमन -- कुछ नही पता चला तो पता करो , नही तो जितने जल्दी हो सके उसे रास्ते से हटा दो।

बोलते हुए रमन ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया, और जैसे ही कमरे से बाहर जाने के लिए कदम बढ़ाया, उसे दरवाजे पर ललिता खड़ी दिखी...

मटकाती हुई ललिता कमरे में दाखिल हुई, और रमन के गले में हाथ डालते हुई बोली...

ललिता -- जिसको रास्ते से हटाना चाहिए, उसे क्यों नही हटा रहे हो मेरी जान?

रमन -- क्या मतलब...?

ललीता -- अपनी प्यारी भाभी....

ललिता बोल ही रही थी की, एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर रसीद हो गए...

रमन -- साली, ज्यादा जुबान चलने लगी है तेरी , तुझे पता है ना...उसमे जान अटकी है हर किसी की। उसका बदन... आह, क्या कयामत है? और तू....!!

ये सुनकर ललिता एक जहरीली मुस्कान की चादर अपने चेहरे पर ओढ़ते हुए बोली...

ललीता -- एक बार किस्मत मेहरबान हुई थी तुम पर, पर क्या हुआ ?? तुम्हारे लंड ने तुम्हारी भाभी की गर्म और रसभरी चूत का मजा चख लिया, और उसके बाद से आज तक तुम्हे उस चूत का मूत भी नसीब हुआ।

ललिता की बात सुनकर, रमन गुस्से में बौखलाया बोला...

रमन -- तू अपनी औकात मत भूल समझी उसके लिए मैं क्या क्या कर सकता हूं, ये बात तू अच्छी तरह से जानती है। और इस बार रास्ते का कांटा वो छोरा है...और इस काटे को निकाल कर फेंकना अब और भी ज्यादा जरूरी हो गया है नही तो वो यूं ही भाभी की जुबान बन कर हमे चुभता रहेगा.....!!

कहते हुए रमन कमरे से बाहर चला जाता है

ललिता – हरामजादे तू सच में किसी का नही हो सकता है थू है तुझ जैसों पे
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जारी रहेगा ✍️✍️
Kya baat Jabardast superb mast or dono maa beta dhokhe ke shikar hain ekdum dhasu update
 
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