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Yasasvi3

😈Devil queen 👑
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UPDATE 9


अभय के जाते ही कुछ देर बाद जब संध्या पलटी देखा वहा अभय कहीं नहीं है संध्या समझ गई की अभय चला गया है अपने आसू पोच कार में बैठते ही स्टार्ट करके निकल गई हवेली की ओर रास्ते भर संध्या के चेहरे पे हल्की मुस्कान के साथ आखों में हल्की नामी थी जैसे खुशी में होती है

अभय –कमाल है बचपन में जैसे छोर के गया था आज भी बिल्कुल वैसी की वैसी है मेरी ठकुराइन जाने क्यू उसे देख के सुकून तो मिला लेकिन गुस्सा आगया मुझे (हस्ते हुए) अच्छे तरीके से रुला दिया अपनी ठकुराइन को कोई बात नही मेरी ठकुराइन अभी तो शुरुवात है अभी तो बहोत कुछ शुरू होना बाकी है मेरी ठकुराइन

तूने कितना झेला है ये मैं नहीं जानता
लेकिन मैंने जितना झेला है
ये मेरा दिल जनता है

हॉस्टल की ओर चलते चलते रास्ते भर में अभय खुद से बाते करते हुए जा रहा था हॉस्टल आते ही उसने अपने हाथ की घड़ी को देखी जिसमे अभी 11:30 हो रहे थे

अभय –यार बहुत थक गया हूं रात भी काफी हो गई है आराम कर लेता हूं आज

इतना बोलते ही अभय हॉस्टल में जाने लगा के तभी उसके नजर हॉस्टल से थोड़ी दूर वाले खेत पर पड़ी। जहां कुछ आदमी काम कर रहे थे, वो उस खेत में फावड़ा लेकर खुदाई कर रहे थे। ये देख कर ना जाने अभय को क्या हुआ, इसके चेहरे पर गुस्से के भाव उमड़ पड़े।

अभय – (भागते हुए वहा पहुंचा जिस खेत में खुदाई हो रही थी गुस्से में बोला) ऐ रुक, क्या कर रहा है तू ? ये पेड़ क्यूं काट रहा है? तुझे पता नही की हरे भरे पेड़ को काटना किसी के मर्डर करने के बराबर है।"

अभय की गुस्से में भरी भारी आवाज को सुनकर, वहा काम कर रहे सभी मजदूर सकते में आ गए, और अभय को अजीब नजरो से देखने लगे। उन मजदूरों में से एक आदमी , जो शायद वह खड़ा हो कर काम करवा रहा था वो बोल...

आदमी – ओ छोरे, क्यूं हमारा समय खोटी कर रहा है। तुझे पता नही की यहां एक डिग्री कॉलेज बनना है। और हम उसी की नीव खोद रहे है। अब जाओ यहां से, पढ़ाई लिखाई करो, और हमे हमारा काम करने दो।

अभय --(उसकी बात सुन बहुत गुस्से में बोला) अबे तुम लोग पागल हो गए हो क्या? ये सारी ज़मीन उपजाऊं है। कोई ऊसर नही जो कोई भी आएगा और खोद कर डिग्री कॉलेज खड़ा कर देगा। अब अगर एक भी फावड़ा इस धरती पर पड़ा, कसम से बोल रहा हूं, जो पहला फावड़ा चलाएगा, उसके ऊपर मेरा दूसरा फावड़ा चलेगा।

अभय की गुस्से से भरी बात सुनकर, वो सब मजदूर एक दूसरे का मुंह देखने लगते है, अपने मजदूरों को यूं अचंभित देखकर वो काम करवाने वाला आदमी बोला...

आदमी – ऐ खोदो रे तुम लोग अरे छोरे, जा ना यहां से, क्यूं मजाक कर रहा है?

अभय –(फावड़ा उठा के) मैने सोच लिया है जिसने भी पहला फावड़ा मारा तो उसके सर पे दूसरा फावड़ा पड़ेगा मेरा और क्या कहा तुमने मजाक मत कर तो चल आज तुझे बताऊंगा मजाक कैसे सच होता है

अभि की बात सुनते ही, उन मजदूरों के हाथ से फावड़ा छूट गया, ये देखकर वो आदमी गुस्से में बोला...

आदमी – तुम सब पागल हो गए क्या? ये छोरा मजाक की दो बातें क्या बोल दिया तुम लोग तो दिल पर ले लिए।

अभय – अबे ओ तूने तो नही लिया ना अपने दिल में क्यों की तुझे तो मजाक लग रही है बात मेरी चल तू ही उठा ले फावड़ा

आदमी – (अभय की निडरता देख डर से अपना बैग उठाते हुए बोला) बहुत चर्बी चढ़ी है ना तुझे, रुक अभि मालिक को लेकर आता हूं, फिर देखना क्या होता है?

अभय – अबे रुक मेरी चर्बी निकालना प्यादो की बस की बात नही है इसलिए रानी को भेज ना

आदमी –( अभय की ऐसी बात ना समझ ते हुए) क्या मतलब

अभय – अबे जाके ठकुराइन को लेके आ समझा निकल

वहा खड़ा एक मजदूर अभय की बेबाक बाते ध्यान से सुन रहा था। जैसे ही काम करवाने वाला आदमी हवेली के लिए भागा। वो मजदूर भी चुपके से वहा से गांव की तरफ बढ़ा.....

इधर गांव का एक झुंड, सरपंच के घर पर एकत्रित थी। सरपंच कुर्सी लगा कर उन गांव वालो के सामने बैठा था।

सरपंच --"देखो मंगलू, मुझे भी दुख है इस बात का। पर अब कुछ नही हो सकता, ठाकुर साहब से बात की मैने मगर कुछ फायदा नहीं हुआ। अब उन खेतो पर कॉलेज बन कर ही रहेगा, अब तो मान्यता भी मिल गई है डिग्री की।

मंगलू --(बेबसी से बोला) नही देखा जा रहा है मालिक, वो सिर्फ खेत ही नही, हमारा और हमारे परिवार का पेट भरने वाला अन्न का खजाना है, सब कुछ है हमारे लिए, उन खेतो में फावड़ा सिर्फ अनाज उगाने के लिए पड़ते थे मालिक, मगर आज जब उन्ही खेतों में फावड़ा पड़ रहे है कालेज बनाने के लिए तो, ऐसा लग रहा है वो फावड़ा हमारी किस्मत पर पड़ रहा है। कुछ तो करिए मालिक!

सरपंच --(गुस्से में कुर्सी से उठ के बोला) तुम सब को एक बार बोलने पर समझ नही आता क्या? बोला ना अब कुछ नही हो सकता। जब देखो मुंह उठा कर चले आते है...

तभी वो आदमी भागते भागते गांव तक के मुखीया की घर की तरफ आ गया।

इधर गांव वालो से बात करके सरपंच अपने घर के अंदर जाने के लिए मुड़ा....

और गांव वाले हांथ जोड़े इसी आस में थे की शायद कुछ होगा , मगर सरपंच की बात सुनकर उन लोगो का दिल पूरी तरह से टूट गया और जमीन पर बैठे हुए गांव के वो भोले भाले लोग, निराश मन से उठे और अपने घर की तरफ जाने के लिए मुड़े ही थे की किसी की आवाज आई उनको...

मंगलू काका.... मंगलू काका....

गांव वालो ने देखा की गांव का एक आदमी मंगलू का नाम लेते हुए भागा चला आ रहा है। ये देख कर गांव वाले थोड़ा चकित हो गए, और आपस में ही बड़बड़ाने लगी...

अरे ई तो कल्लू है, ऐसा कहे चिल्लाते हुए भागे आ रहा है?

मंगलू -- अरे का हुआ, कल्लू? तू इतनी तेजी से कहे भाग रहा है? का बात है?

कल्लू --(अपनी उखड़ी हुई सासो को काबू करते हुए बोला) वो खेतों... खेतों में खुदाई...खुदाई...

मंगलू --(दबे मन से) हा पता है कल्लू, पर अब कुछ नही हो सकता, खेतो की खुदाई अब नही रुकेगी।

कल्लू –( चिल्लाते हुए बोला) काका...खुदाई रुक गई... ई ई ई है...

कल्लू की ये बात से गांव वालो के शरीर में सिरहन पैदा हो गई...

आश्चर्य से कल्लू की तरफ देखते हुए, अपनी आंखे बड़ी करते हुए सब गांव वालो में अफरा तफरी मच गई, घर के अंदर जा रहा सरपंच भी कल्लू की वाणी सुनकर सकते में आ गया। और पीछे मुड़ते हुए कल्लू की तरफ देखते हुए बोला...

सरपंच --(चौक के) क्या खुदाई रुक गई, पागल है क्या तू?

कल्लू --"अरे सच कह रहा हूं सरपंच जी, एक 17 , 18 साल का लौंडा, आकर खुदाई रुकवा दी। कसम से बता रहा हूं सरपंच जी, क्या लड़का है? एक दम निडर, ऐसी बाते बोलता है की पूछो मत। अरे वो गया है अपना कॉन्ट्रैक्टर ठाकुर के पास, ठाकुर को बुलाने।

सरपंच के साथ साथ गांव वालो के भी होश उड़ गए थे, सब गांव वालो में खलबली मच गई, और उस लड़के को देखने के लिए सारा झुंड उस खेतों की तरफ़ टूट पड़ा। फिर क्या था? औरते भी पीछे कहा रहने वाली थी, वो लोग भी अपना घूंघट चढ़ाए पीछे पीछे चल दी।

वहा पर खड़ा राज और उसके दोस्त भी इस बात से हैरान थे। राज भी अपने दोस्त के साथ साइकल पर बैठ कर चल दिया, पर गांव वालो की भीड़ जो रास्ते पर चल रही थी, उसकी वजह से राज और उसके दोस्तो की सायकिल क्रॉस नही हो पा रहा था। राज के अंदर , बहुत ज्यादा उत्सुकता थी उस जगह पहुंचने की, मगर रास्ता तो जाम था। इस पर वो थोड़ा चिड़चिड़ाते हुऐ आगे चल रही औरतों को चिल्लाते हुए बोला...

राज --"अरे देवियों, तुम लोगों का वहा क्या काम, सगाई गीत नही गाना है, जो सिर पर घूंघट ताने चल दिए...

अजय की बात सुनकर, एक औरत अजय की तरफ घूमती हुई अपनी सारी का पल्लू जैसे ही हटती है...

राज – अम्मा तू भी।

अम्मा –"हा, जरा मैं भी तो देखूं उस छोरे को, जो ना जाने कहा से हमारे लिए भगवान बनकर आ गया है, और ठाकुर के लिए शैतान।

राज – वो तो ठीक है अम्मा, पहले इन भैंसो को थोड़ा साइड कर हम लोगो को जाने दे।

राज की बात सुनकर, गांव की सभी औरते रुक गई और राज की तरफ मुड़ी...और वो औरते कुछ बोलने ही वाली थी की, राज को एक गली दिखी...

राज – अबे उस गली से निकल राजू...जल्दी नही तो भैंसे अटैक कर देंगी।

और कहते हुए वो औरतों को चिढ़ाने लगा पर तब तक राज , लल्ला और राजू ने गली में साइकिल मोड़ दी थी...

औरत – सच बता रही हूं गीता दीदी, अगर तुम्हरा छोरा गांव का चहेता नही होता ना, तो बताती इसे।

दोसर औरत – हाय री दईया, इसको तो कुछ बोलना भी हमको खुद को बुरा लगता है।

गीता देवी – अरे मुन्नी...हमारे बेटे की तारीफ बाद में कर लियो, अभि तो अपने पैर जरा तेजी से चला। इस छोरे को देखने को दिल मचल रहा है, कौन है वो? कहा से आया है? और कहे कर रहा है ये सब?

इस तरफ हवेली में जैसे ही संध्या की कार दस्तक देती है। संध्या कार से नीचे उतरती हुई, अपने नौकर भानु से बोली...

संध्या --"भानु, तू अंदर आ जल्दी।

संध्या की बात और कदमों की रफ्तार देख कर मालती और ललिता दोनो थोड़े आश्चर्य रह गई, और वो दोनो भी संध्या के पीछे पीछे हवेली के अंदर चल दी। संध्या हवेली में घुस कर सोफे के आगे पीछे अपना हाथ मलते घूमने लगी...

संध्या --(जोर से चिल्ला के) भानु....

भानु –आया मालकिन....

भानु करीब - करीब भागते हुए हवेली के अंदर पहुंचा।

भानू -- जी कहिए मालकिन।

संध्या -- सुनो भानू अपने हॉस्टल में एक लड़का आया है। तो आज से तुम उस हॉस्टल में ही रहोगे और उसे जिस भी चीज की जरूरत पड़ेगी, वो हर एक चीज उसे मिल जानी चाहिए।

भानू --"जी मालकिन

संध्या -"ठीक है, जाओ और रमिया को भेज देना।

ये सुनकर भानू वहा से चला जाता है। मलती बड़े गौर से संध्या को देख रही थी, पर संध्या का ध्यान मालती की तरफ नही था। संध्या ना जाने क्या सोचते हुए इधर उधर बस हाथ मलते हुए चहल कदमी कर रही थी, उसे देख कर ऐसा लग रहा था मानो किसी चीज की छटपटाहट में पड़ी है। तभी वहां पर रमिया भी आ गई।

रमिया --"जी मालकिन, आपने बुलाया हमको?

संध्या -- (रमिया के आते ही झट से बोली) हां सुन रमिया, आज से तू हर रोज सुबह और शाम हॉस्टल में जायेगी, और वहा पर जो एक नया लड़का आया है, उसके लिए खाना बनाना है। और हां याद रखना खाना एकदम अच्छा होना चाहिए। समझी।

रमिया --जैसा आप कहे मालकिन।

संध्या की हरकते बहुत देर से देख रही मालती अचानक हंस पड़ी, मलती को हंसते देख संध्या का ध्यान अब जाकर मालती पर पड़ा...

संध्या -- बस मलती मैं इस पर कुछ बात नही करना चाहती। मुझे पता है तुम्हारी हंसी का कारण क्या है? पर...

मालती –पर...पर क्या दीदी?

मलती ने संध्या की बात बीच में ही काटते हुए बोली...

मलती --"कही आपको ये तो नहीं लग रहा की, वो अभय है? वैसे भी आपकी बेताबी देख कर तो यही समझ आ रहा है मुझे। दीदी आपने शायद उस लड़के को ध्यान से परखा नही, वो लड़का जरा हट के है। कैसी कैसी बातें बोल रहा था देखा नही आपने? बिलकुल निडर, सच कहूं तो अगर वो अभय होता तो, तो तुम्हे देखते ही भीगी बिल्ली बन जाता। पर ऐसा हुआ नहीं, उसने तो आपको ही भीगी बिल्ली बना दीया, हा... हा... हा।

संध्या -- देखो मालती, मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं, मुझे बक्श दो बस।

मलती -- क्या हुआ दीदी? मैने ऐसा क्या कह दिया? जो देखा वही तो बोल रही हूं। चलो एक पल के लिए मान भी लेते है की, वो अभय है। तो आपको क्या लगता है, नौकरों को भेज कर उसकी देखभाल करा कर क्या साबित करना चाहती हो आप? आप ये सब करोगी और आप को लगता है, वो पिघलकर मां.. मां... मां करते हुए आपके गले से लिपट जायेगा। इतना आसान नहीं है दीदी। मैं ख़ुद भगवान से दुआ कर रही हूं की ये हमारा अभय ही हो, पर एक बात याद रखना अगर ये हमारा अभय हुआ, तो एक बात पर गौर जरूर करना की, वो घर छोड़ कर भागा था, और आपको पता है ना की घर छोड़ कर कौन भागता है? वो जिसे उस घर में अपने सब बेगाने लगते है। अरे वो तो बच्चा था, जब भागा था। ना जाने कैसे जिया होगा, किस हाल में रहा होगा। कितने दिन भूखा रहा होगा? रोया होगा, अपनो के प्यार के लिए तड़पा होगा। अरे जब उस हाल में वो खुद को पाल लिया, तो आज अपना ये दो टके का प्यार दिखा कर, सब कुछ इतनी आसानी से ठीक करना चाहती हो।

मलती की बात संध्या के दिल को चीरते हुए उसकें दिल में घुस गई.....संध्या की आंखे से आशुओं की धारा रुक ही नही रही थी।

संध्या -- मैं कुछ ठीक नहीं करना चाहती, और...और ये भी जानती हूं की ये इतना आसान नहीं है। मैं वही कर रही हूं जो मेरे दिल के रहा है।

मलती -- ये दिल ही तो है दीदी, कुछ भी कहता रहता है। वो लड़का थोड़ा अलबेला है, पहेली मुलाकात में ही कैसा घाव कर गया....

कहते हुए मालती अपने कमरे की तरफ चल देती है, और संध्या रोते हुए धड़ाम से सोफे पर गिर जाती है.....

संध्या अपने आप में टूट सी गई थी, वो कुछ भी नही समझ पा रही थी की, वो क्या करे ? और क्या न करे?उसकी आंखो से बह रहे आंसुओ को समझने वाला कोई नहीं था। कोई था भी, तो वो था सिर्फ उसका दिल।

कहने को लोग कहेंगे की संध्या के साथ जो हो रहा है सही हो रहा है इसकी जिम्मेदार वो खुद है
लेकिन क्या सच में एसा होता है क्या सच में ताली एक हाथ से ही बजती है बिल्कुल भी नही

खेर

सोफे पर बैठी रो रही संध्या, बार बार गुस्से में अपने हाथ को सोफे पर मारती। शायद उसे खुद पर गुस्सा आ रहा था। पर वो बेचारी कर भी क्या सकती थी? रोती हुई संध्या अपने कमरे में उठ कर जा ही रही थी की, वो कॉन्ट्रैक्टर वहा पहुंच गया...

कॉन्ट्रैक्टर – नमस्ते मालकिन

संध्या एक पल के लिए रुकी पर पलटी नही, वो अपनी साड़ी से बह रहे अपनी आंखो से अंसुओ को पहले पोछती है , फिर पलटी...

संध्या -- अरे सुजीत जी, आप यहां, क्या हुआ काम नहीं चल रहा है क्या कॉलेज का?

सुजीत -- अरे ठाकुराइन जी, हम तो अपना काम ही कर रहे थे। पर न जाने कहा से एक छोकरा आ गया। और मजदूरों को काम करने से रोक दिया।

संध्या -- ये क्या बात कर रहे हो सुजीत जी, एक छोकरा ने आकर आप लोगो से मजाक क्या कर दिया, आप लोग डर गए?

सुजीत -- मैने भी उस छोकरे से यही कहा था ठाकुराइन, की क्या मजाक कर रहा है छोकरे? तो कहता है, अक्सर मुझे जानने वालों को लगता है की मेरा मजाक सच होता है। फिर क्या था मजदूरों के हाथ से फावड़ा ही छूट गया, क्यूंकि उसने कहा था की अगर अब एक भी फावड़ा इस खेत में पड़ा तो दूसरा फावड़ा तुम लोगो के सर पर पड़ेगा।

उस कॉन्ट्रैक्टर की मजाक वाली बात पर संध्या का जैसे ही ध्यान आया यही मजाक वाली बात अभय ने भी संध्या को कही थी। तभी कुछ सोच के संध्या झट से बोल पड़ी...

सांध्य -- आ...आपने कुछ किया तो नही ना उसे?

सुजीत --अरे मैं क्या करता ठाकुराइन? वो नही माना तो, मैने उसको बोला की तू रुक अभि ठाकुर साहब को बुला कर लाता हूं।

संध्या – अच्छा फिर, उसने क्या कहा?

सुजीत -- अरे बहुत ही तेज मालूम पड़ता है वो ठाकुराइन, बोला की रानी को बुला कर ला, ये प्यादे मेरा कुछ नही बिगाड़ पाएंगे।

ये सुनकर, संध्या के चेहरे पर ना जाने क्यूं बड़ी सी मुस्कान फैल गई, जिसे उस कॉन्ट्रैक्टर ने ठाकुराइन का चेहरा देखते हुए बोला...

सुजीत -- कमाल है ठाकुराइन, कल का उस छोकरे ने आपका काम रुकवा दिया, और आप है मुस्कुरा रही है।

कॉन्ट्रैक्टर की बात सुनकर, संध्या अपने चेहरे की मुस्कुराहट को सामान्य करती हुई कुछ बोलने ही वाली थी की...

अरे, सुजीत जी आप यहां। क्या हुआ काम शुरू नही किया क्या अभि तक?

ये आवाज सुनते ही, कॉन्ट्रैक्टर और संध्या दोनो की नजरे उस आवाज़ का पीछा की तो पाए की ये रमन सिंह था।

सुजीत -- काम तो शुरू ही किया था ठाकुर साहब, की तभी न जाने कहा से एक छोकरा आ गया, और काम ही रुकवा दिया।

ये सुनकर रमन के चेहरे पर गुस्से की छवि उभरने लगी...

रमन -- क्या!! एक छोकरा?

सुजीत -- हां, ठाकुर साहब,, इसी लिए तो मैं ठाकुराइन के पास आया था।

रमन -- इसके लिए, भाभी के पास आने की क्या जरूरत थी? मुझे फोन कर देते, मैं मेरे लट्ठहेर भेज देता। जहा दो लाठी पड़ती , सब होश ठिकाने आ जाता उसका जा...

संध्या –(गुस्से में चिल्ला के) जबान को संभाल के रमन...

संध्या गुस्से में रमन की बात को बीच में ही काटते हुए बोली। जिसे सुनकर रमन के चेहरे के रंग बेरंग हो गए। और असमंजस के भाव में बोला।

रमन -- भाभी, ये क्या कह रही हो तुम?

संध्या -- (चिल्ला के) मैं क्या कह रही हूं उस पर नही, तुम क्या कह रहे हो उस पर ध्यान दो। तुम मेरे... आ..आ..एक लड़के को बिना वजह लट्ठहेरो से पिटवावोगे। अब यही काम बचा है तुम्हारा।

रमन -- (चौकते हुए झट से बोला) बिना वजह, अरे वो छोकरा काम रुकवा दिया, और तुम कह रही हो की बिना वजह।

संध्या -- हां, पहले चल कर पता तो करते है, की उसने आखिर ऐसा क्यूं किया। समझाएंगे उसे, हो सकता है मान जायेगा। लेकिन तुम सीधा लाठी डंडे की बात करने लगे। ये अच्छी बात नहीं है रमन समझे। चलो सुजीत जी मै चलती हूं।

फिर संध्या कॉन्ट्रैक्टर के साथ, हवेली से बाहर जाने लगती है। एक पल के लिए तो रमन अश्र्याचकित अवस्था में वही खड़ा रहा, लेकिन जल्द ही वो भी उन लोगो के पीछे पीछे चल पड़ा...

गांव की भरी भरकम भीड़ उस खेत की तरफ आगे बढ़ रही थी। और एक तरफ से ठाकुराइन भी अपनी कार में बैठ कर निकल चुकी थीं। जल्द दोनो पलटन एक साथ ही उस खेत पर पहुंची। संध्या कार से उतरते हुए गांव वालो की इतनी संख्या में भीड़ देख कर रमन से बोली...

संध्या -- ये गांव वाले यहां क्या कर रहे है?

संध्या की बात सुनकर और गांव वालो की भीड़ को देख कर रमन को पसीने आने लगे। रमन अपने माथे पर से पसीने को पोछत्ते हुए बोला...

रमन -- प...पता नही भाभी, व...वही तो देख कर मैं भी हैरान हूं।

संध्या अब आगे बढ़ी और उसके साथ साथ कॉन्ट्रैक्टर और रमन भी।

रमन –(मन में) ये गांव वाले यहां क्या कर रहे है कही संध्या को देख अपनी जमीन की बात छेड़ दी तो सारा प्लान चौपट हो जाएगा मेरा क्या करो कुछ समझ नही आ रहा है मुझे


इधर नजदीक पहुंचने पर संध्या को, अभय दिखा। जो अपने कानो में इयरफोन लगाए गाना सुन रहा था। और अपनी धुन में मस्त था। अभय को पता ही नही था की, पूरी गांव के साथ साथ ठाकुराइन और रमन ठाकुर भी आ गए थे।

जबकि गांव वालो ने अभय को देखा तो देखते ही रह गए। वही राज और उसकी मां गीता की नजरे अभय के ऊपर ही थी। पर अभय अपनी मस्ती में मस्त गाने सुन रहा था।

रमन -- वो छोकरे, कौन है तू? और काम क्यूं बंद करा दिया?

अभय अभि भी अपनी मस्ती में मस्त गाने सुनने में व्यस्त था। उसे रमन की बात सुनाई ही नही पड़ी। ये देख कर रमन फिर से बोला...

रमन -- वो छोरे.....सुनाई नही दे रहा है क्या?

राज -- (हस्ते हुए रमन से) अरे क्या ठाकुर साहब आप देख नही रहे हो की उसने अपने कान में इयरफोन लगाया है। कैसे सुनेगा?

ये सुनकर सब गांव वाले हंसने लगे, ठाकुराइन भी हस पड़ी। ये देख कर रमन गुस्से में आगे बढ़ा और अभय के नजदीक पहुंच कर उसके कान से इयरफोन निकालते हुए बोला...

रमन -- यहां नाटक चल रहा है क्या? कौन है तू? और काम रुकवाने की तेरी हिम्मत कैसे हुई?

रमन की तेज तर्रार बाते संध्या से बर्दाश ना हुई... और वो भी गुस्से में बड़ते हुए बोली...

संध्या -- रमन! पागल हो गए हो क्या, आराम से बात नहीं कर सकते हो क्या। बस अब तुम चुप रहोगे समझे मैं बात करती हूं।

रमन को शॉक पे शॉक लग रहे थे। वो हैरान था, और समझ नही पा रहा था की आखिर संध्या इस लड़के के लिए इतनी हमदर्दी क्यूं दिखा रही है। ये सोचते हुए रमन वापस संध्या के पास आ गया।

इधर गीता देवी अपने बेटे राज की मजाक वाली बात के चलते उसके पास गई ।

गीता देवी –(कान पकड़ के धीरे से) क्यों रे ठकुराइन के सामने तू रमन ठाकुर का मजाक बना रहा है जनता है ना कितनी परेशानी झेलनी पड़ रहे है हम इसके चलते , अब तू कुछ मत बोलना समझा मैं बात करती हो ठकुराइन से

ये बोल के गीता देवी जाने लगी अकेली खड़ी संध्या के पास उसने बात करने की तभी संध्या अपने आप से कुछ बोले जा रही थी जिसे गीता देवी ने सुन लिया

संध्या –(धीरे से अपने आप से बोलते हुए) जब से तुझे मिली हूं मेरी दिल की धड़कन यहीं कहे जा रही है तू अभय है मेरा अभय है ना जाने क्यों तेरे सामने आते ही मैं पिघल जा रही हू चाह के भी कुछ बोल नहीं पा रही हू लेकिन मेरा दिमाग बार बार बस एक सवाल कर रहा है मुझसे अगर ये मेरा अभय है तो वो जंगल में मिली लाश किसकी थी मैंने उस लाश को देखा तक नहीं था हे भगवान तू कुछ रास्ता दिखा मुझे क्या ये मेरा अभय है की सच में तूने एक मां के तड़पते दिल की आवाज सुन के इसे भेजा है कोई तो रास्ता दिखा या कोई तो इशारा कर मुझे ही भगवान

अभय – मैडम, थोड़ा जल्दी बोलो, रात भर सोया नही हूं नींद आ रही है मुझे।

संध्या –(अभय के आवाज से अपनी असलियत में आके हिचकिचाते हुए बोली) म... म..में कह रही थी की, ये काम तुमने क्यूं रुकवा दिया?

ठाकुराइन की हिचकिचाती आवाज किसी को रास नहीं आई, गांव वाले भी हैरान थे , की आखिर ठाकुराइन इतनी सहमी सी क्यूं बात कर रही है जबकि संध्या के बगल में खड़ी गीता देवी ठकुराइन की पहले वाली बात सुन के बस लगातार अभय को ही देखे जा रही थी

जबकि इस तरफ सब से ज्यादा चकित था रमन सिंह, वो तो अपनी भाभी का नया रूप देख रहा था। मानो वो एक प्रकार से सदमे में था। अभय बात तो कर रहा था ठाकुराइन से, मगर उसकी नजरे गांव वालों की तरफ थी। लेकिन उसकी नजरे किसी को देख ढूंढ रही थी शायद, गांव के बुजुर्ग और अधेड़ को तो उसके सब को पहेचान लिया था। पर अभी भी उसके नजरो की प्यास बुझी नही थी, शायद उसकी नजरों की प्यास बुझाने वाला उस भीड़ में नही था। इस बात का एहसास होते ही अभय , संध्या से बोला...

अभय --भला, मेरी इतनी हिम्मत कहां की, मैं ये काम रुकवा सकूं। मैं तो बस इन मजदूरों को ये हरे भरे पेड़ो को कटने से मना किया था। और वैसे भी, आप ही समझिए ना इन्हे ये, अच्छी खासी उपजाऊ जमीन पर कॉलेज बनवा कर, इन बेचारे किसानों के पेट पर लात क्यूं मार रहे है?

अभय की प्यार भरी मीठी सी आवाज सुन कर, संध्या का दिल खुशी से झूम रहा था। और इधर गांव वाले भी अभय को उनके हक में बात करता देख इसे मन ही मन दुवाएं देने लगे थे। पर एक सख्श था। जिसके मन में अधियां और तूफ़ान चल रहा था। और वो था रमन, उसकी जुबान तो कुछ नही बोल रही थी, पर उसका चेहरा सब कुछ बयां कर रहा था। की वो कितने गुस्से में है।

संध्या -- मैं भला, किसानों के पेट पर लात क्यूं मारने लगी। ये गांव वालो ने ही खुशी खुशी अपनी जमीनें दी है, कॉलेज बनवाने के लिए।

ठाकुराइन का इतना बोलना था की, वहा खड़ा मंगलू अपने हाथ जोड़ते हुए झट से बोल पड़ा...

मंगलू -- कैसी बात कर रही हो मालकिन, हमारा और हमारे परिवार का पेट भरने का यही तो एक मात्र सहारा है। हां माना की हम गांव वालो ने आपसे जो कर्जा लिया था, वो अभी चुका नही पाए। पर इसके लिए आपने हमारी जमीनों पर कॉलेज बनवाने लगी, ये तो अच्छी बात नहीं है ना मालकिन, अगर थोड़ा सा और समय दे दीजिए मालकिन, हम अपना पूरा अनाज बेच कर के आपके करके चुका देंगे।

ये बात सुनके ठाकुराइन हड़बड़ा गई, इस बात पर नही की ये गांव वाले क्या कर रहे है? बल्कि इस बात पर , की गांव वाले जो भी कर रहे है, उससे अभय उसके बारे में कुछ गलत न सोच ले। एक बात तो तय थी, की अब संध्या अभय को अपने बेटे के रूप में देखने लगी थी। भले उसे अभी यकीन हुआ हो या नहीं। वो झट से घबराहट में बोली...

संध्या -- (हैरानी से) ये कैसी बाते कर रहे हो तुम मंगलू? मैने कभी तुम सब से पैसे वापस करने की बात नहीं की। और पैसों के बदले ज़मीन की बात तो मै कभी सपने में भी सोच नही सकती...

ये सब वहा खड़ा अभय ध्यान से सुन रहा था। और जिस तरह गांव वाले बेबस होकर हाथ जोड़े अपने घुटनों पर बैठे थे , ये देख कर तो अभय का माथा ठनक गया। उसे संध्या पर इतना गुस्सा आने लगा।

अभय –( मन में) जरूर इसी ने किया है ये सब, और अब गांव वालो के सामने इसकी बेइज्जती न हो इस लिए पलटी खा रही है, वैसे इस औरत से उम्मीद भी क्या की जा सकती है? ये है ही एक कपटी औरत।

अभय -- कमाल है मैडम, क्या दिमाग लगाया है, हजार रुपए का कर्जा और लाखो की वसूली, ये सही है।

इतना कह कर अभय वहा से चल पड़ता है..., संध्या को जिस बात का डर था वही हुआ। अभय ने संध्या को ही इसका जिम्मेदार ठहराया। और ये बात संध्या के अंदर चिड़चिड़ापन पैदा करने लगी...और वहा से जाते हुए अभी के सामने आकर खड़ी हो गई। संध्या को इस तरह अपने सामने देख कुछ बोलने जा रहा था की तभी...

संध्या --(अभय का हाथ पकड़ के) तू किसकी चाहे उसकी कसम खिला दे मैं... मैं सच कह रही हूं, ये सब मैने नही किया है।

अभय --(संध्या का हाथ झटक के) आपने क्या किया है, क्या नही? उससे मुझे कोई लेना देना नही है, मैं यहां आया था इन हरे भरे पेड़ों को कटने से बचाने के लिए बस। आप लोगो का नाटक देखने नही।

कहते हुए अभय वहा से चला जाता है। संध्या का दिल एक बार फिर रोने लगा। वो अभी वही खड़ी अभय को जाते हुए देख रही थी। लेकिन जल्द ही अभय गांव वालो और संध्या की नजरों से ओझल हो चुका था।

संध्या --(अभय की ऐसी बेरुखी और गांव वालो को बात से संध्या को सबसे जाड़ा गुस्सा आया रमन पे जाते हुए रमन से बोली) रमन, ये काम अभी के अभी रोक दो। अब यहां कोई कॉलेज नही बनेगा। और हां तुम हवेली आकार मुझसे मिलो मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।
इतना कह कर संध्या वहा से चली गई...

इतना सब कुछ होने पर रमन के होश तो छोड़ो उसकी दुनियां ही उजड़ती हुई दिखने लगी उसे
Raman be like.... Ye kya hua..... Ku hua.... Kese hua.... 🤭
 

Yasasvi3

😈Devil queen 👑
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UPDATE 10


अभय के जाते ही, संध्या भी अपनी कार में बैठती है और हवेली के लिए निकल पड़ती है।

संध्या कार को ड्राइव तो कर रही थी, मगर उसका पूरा ध्यान सिर्फ अभय पर था। उसके दिल में जो दर्द था वो शायद वही समझ सकती थी। साथ उसके दिल को आज यकीन होगया की ये लड़का कोई और नहीं उसका बेटा अभय है। उसका दिल अभय के पास बैठ कर बाते करने को कर रहा था। वो अपनी की हुई गलती की माफ़ी मांगना चाहती थी, मगर आज एक बार फिर वो अभय की नजरों में गीर गई थी। संध्या के उपर आज वो इल्जाम लगा , जो उसने किया ही नहीं। और यही बात उसके दिमाग में बार बार चल रही थी।

संध्या की कार जल्द ही हवेली में दाखिल हुई, और वो कार से उतरी ही थी की, मुनीम उसके पैरो में गिड़गिड़ाते हुए गिर पड़ा...

मुनीम -- मुझे माफ कर दो ठाकुराइन, आखिर उसमे मेरी क्या गलती थी? जो आपने बोला वो ही तो मैने किया था? आपने कहा था की अगर अभय बाबा स्कूल नही जाते है तो, 4 से 5 घंटे धूप में पेड़ से बांध कर रखना। मैने तो आपकी आज्ञा का पालन हो किया था ना मालकिन, नही तो मेरी इतनी औकात कहा की मैं अभय बाबा के साथ ऐसा कर सकता।

गांव वालो की बीच आज जो हुआ उसके चलते संध्या का पारा बड़ा हुआ था उपर से अपने सामने मुनीम को देख और उसकी बात सुनकर, संध्या का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। उसने मुनीम को लात मरते हुए बोली...

संध्या -- हरामजादे तेरी हिम्मत कैसे हुई हवेली आने की बोला था मैने तुझे वापस मत आना और क्या कहा तूने मैने बोला था तुझे अपने बेटे को तपती धूप में पेड़ पे बांधने के लिए (तभी संध्या ने अपने लठहरो आवाज दे के बोली) तोड़ दो इस मुनीम के हाथ पैर वर्ना तुम सबके हाथ पैर तुड़वा दूंगी

उस वक्त ललिता आ गयी संध्या के पास

ललिता –(संध्या का हाथ पकड़ के)शांत हो जाओ दीदी आप (लठहरो से बोली) रुक जाओ इसको हवेली के बाहर छोर दो

संध्या –(गुस्से में) बच गया तू अब आखरी बार बोल रही हू मुनीम तुझे चला जा यहां से। और मुझे फिर दुबारा इस हवेली में मत दिखाई देना। मैं सच बोल रही हूं, मेरा दिमाग पागल हो चुका है, और इस पागलपन में मैं क्या कर बैठूंगी ये मुझे भी नही पता है। चले जाओ यहां से...

कहते हुए संध्या गुस्से में हवेली के अंदर चली जाति है। संध्या हाल में सोफे पर बैठी बड़ी गहरी सोच में थी। तभी ललिता पास आ कर बोली...

ललिता -- क्या हुआ दीदी? आप बहुत गुस्से में लग रही है?

संध्या -- ठीक कह रही है तू। और मेरी इस गुस्से का कारण तेरा ही मरद है।

ललिता -- मुझे तो ऐसा नहीं लगता दीदी।

संध्या -- क्या मतलब? गांव वालो की ज़मीन को जबरन हथिया कर मुझसे उसने बोला की गांव वालो ने मर्जी से अपनी जमीनें दी है। और आज यही बात जब सब गांव वालो के सामने उठी , तो मेरा नाम आया की मैने पैसे के बदले गांव वालो की ज़मीन पर कब्जा कर लिया है। तुझे पता भी है, की मुझे उस समय कैसा महसूस हो रहा था सब गांव वालो के सामने, खुद को जलील मेहसुस कर रही थी।

संध्या की बात सुनकर, ललिता भी थापक से बोल पड़ी...

ललिता -- गांव वालो के सामने, या उस लड़के के सामने?

संध्या --(हैरानी से) क्या मतलब??

मतलब ये की भाभी, उस लड़के के लिए तुम कुछ ज्यादा ही उतावली हो रही थी।

इस अनजानी आवाज़ को सुनकर ललिता और संध्या दोनो की नजरे घूमी, तो पाई सामने से रमन आ रहा था।

संध्या -- ओह...तो आ गए तुम? बहुत अच्छा काम किया है तुमने मुझे गांव वालो के सामने जलील करके।

रमन -- मैने किसी को भी जलील नही किया है भाभी, मैं तो बस पिता जी का सपना पूरा कर रहा था। अगर तुम्हारी नज़र में इससे जलील करना कहते हैं, तो उसके लिए मैं माफी मागता हूं। पर आज जो तुमने मेरे साथ किया , उसके लिए मैं क्या बोलूं? एक अजनबी लड़के लिए मेरे साथ इस तरह का व्यवहार? कमाल है भाभी.... आखिर क्यों??

ललिता -- अरे वो कोई अजनबी लड़का थोड़ी है? वो अपना अभय है?

ललिता की बात सुन कर , रमन के होश ही उड़ गए चेहरे का रंग उड़ गया था। और चौंकते हुए बोला...

रमन -- अ...अ...अभय...यहां पर ये कैसे हो सकता है!!!

ललिता -- हा अभय, ऐसा दीदी को लगता है। अभि उस लड़के को आए 5 घंटे भी नही हुए है, दो चार बाते क्या बोल दी उसने दीदी को उकसाने के लिए। दीदी तो उसे अपना बेटा ही मान बैठी।

रमन -- (ललिता की बात सुनके रमन को कुछ राहत मिली) ओह, तो ये बात है। तुम पगला गई हो भाभी? अपना अभय अब इस दुनिया में नही है कब का मर चुका है वो जंगल में लाश मिली थी उसकी भूल....

संध्या –(रमन की बात बीच में काटते हुए चिल्ला के बोली) यहीं है वो , कही नही गया है वो, आज आया है मेरा अभय मेरे पास। और मैं अब कोई भी गलती नही करना चाहती जिसकी वजह से वो मुझे फिर से छोड़ कर जाए। मैं तो उसके नजदीक जाने की कोशिश में लगी थी। लेकिन तुम्हारी घटिया हरकत का सबक मुझे मिला। एक बार फिर से मैं उसकी नजरों में गीर गई।

संध्या की जोर डर आवाज सुन के रमन भी एकदम चकित हुए संध्या को ही देख रहा था। फिर संध्या की बात सुनकर रमन ने कहा...

रमन -- ठीक है भाभी, अगर तुम्हे लगता है की मेरी गलती है, तो मै आज ही पूरे गांव वालो के सामने इसकी माफी मांगूंगा। सब गांव वालो को ये बताऊंगा की, ये जमीन की बात तुम्हे नही पता थी। फिर शायद तुम्हारे दिल को तसल्ली मिल जाए। शायद वो अजनबी लड़के दिल में तुम्हारी इज्जत बन जाए।

संध्या -- अजनबी नही है वो रमन वो मेरा बेटा अभय है समझे तुम और अब कोई जरूरत नहीं है। जो हो गया सो हो गया।

रमन -- जरूरत है भाभी, क्यूं जरूरत नहीं है? एक अंजान लड़का आकार तुम्हारे सामने ना जाने क्या दो शब्द बोल देता है, और तुम्हे समय नहीं लगा ये यकीन करने में की वो तुम्हारा बेटा है। और वही मै अरे मैं ही क्या ? बल्कि पूरा गांव वालो ने अभय की लाश को अपनी आंखो से देखा उसका यकीन नही है तुम्हे, जब तुमने फैसला कर ही लिया है तो जाओ बुलाओ उसको हवेली में और बना दो उसे इस हवेली का वारिस।

संध्या –(ताली बजा के हस्ते हुए) वाह रमन वाह एक्टिंग करना तो कोई तुमसे सीखे एक तरफ तुम मुझसे बोल रहे हो माफी मांगोगे तुम गांव वालो से तो क्या होगा उससे मैं बताऊं इस बार गांव वाले ये बोलोगे की ठकुराइन का नाम बना रहे इसलिए रमन को भेजा ताकी गांव वालो के सामने सारा इल्जाम अपने सिर लेले अगर एसा करना होता तुम्हे रमन तो यू गांव वालो के बीच तुम्हे पसीने नही आते

इतना बोल के पलट के जाने लगी की तभी वापस पलट के संध्या बोली

संध्या – और एक बात अच्छे से समझ लो अपने अभय के लिए मैं एक शब्द बरदाश नही करूगी चाहे कुछ भी करना पड़े मुझे मैं अपने अभय को वापस जरूर लाऊगी। अब जाके सो जाओ रात बहुत हो चुकी है।

संध्या बोल के चली गई लेकिन अपने पीछे छोड़ गई रमन और ललिता को जिनके मु खुले के खुले रह गए थे संध्या की बात से दोनो बिना कुछ बोले चल गए अपने कमरे में सोने

सुबह के 6 बज रहे थे, अभि सो कर उठा था। नींद पूरी हुई तो दिमाग भी शांत था। उसे ऐसा लग रहा था मानो जैसे सर से बहुत बड़ा बोझ उतर गया हो। वो उठ कर अपने बेड पर बैठा था, और कुछ सोच रहा था की तभी...

लीजिए, ये चाय पी लीजिए...

अभय ने अपनी नजर उठा कर उस औरत की तरफ देखा गोरे रंग की करीब 35 साल की वो औरत अभय को देख कर मुस्कुरा रही थी। अभय ने हाथ बढ़ा कर चाय लेते हुए बोला...

अभय -- तो तुम इस हॉस्टल में खाने पीने की देखभाल करती हो?

कहते हुए अभय ने चाय की चुस्कियां लेने लगा...

जी हां, वैसे भी इस हॉस्टल में तो कोई रहता नही है। आप अकेले ही हो। तो मुझे ज्यादा काम नहीं पड़ेगा।

अभय -- hmmm... वैसे तुम्हारा नाम क्या है

मेरा नाम रमिया है।

अभय उस औरत को पहचानने की कोशिश कर रहा था। लेकिन पहचान नही पाया इसलिए उसने रमिया से पूछा...

अभय -- तो तुम इसी गांव की हो?

रमिया -- नही, मैं इस गांव की तो नही। पर हां अब इसी गांव में रहती हूं।

अभय -- कुछ समझा नही मैं? इस गांव की नही हो पर इसी गांव में रहती हो...क्या मतलब इसका?

अभय की बात सुनकर रमिया जवाब में बोली...

रमिया -- इस गांव की मेरी दीदी है। मेरा ब्याह हुआ था, पर ब्याह के एक दिन बाद ही मेरे पति की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। ससुराल वालो ने इसका जिम्मेदार मुझे ठहराया, और मुझे कुल्टा, कुलक्षणी और न जाने क्या क्या बोल कर वहा से निकाल दिया। घर पे सिर्फ एक बूढ़ी मां थी उसके साथ कुछ 4 साल रही फिर मेरी मां का भी देहांत हो गया, तो दीदी ने मुझे अपने पास बुला लिया। अभि दो साल से यहां इस गांव में रह रही हूं। और इस हवेली में काम करती हूं।

रमिया की बाते अभय गौर से सुनते हुए बोला...

अभय -- मतलब जिंदगी ने तुम्हारे साथ भी खेला है?

ये सुनकर रमिया बोली...

रमिया -- अब क्या करे बाबू जी, नसीब पर किसका जोर है? जो नसीब में लिखा है वो तो होकर ही रहता है। और शायद मेरी नसीब में यही लिखा था।

रमिया की बात सुनकर, अभय कुछ सोच में पड़ गया ...

रमिया -- क्या सोचने लगे बाबू जी, कहीं तुमको हमारे ऊपर तरस तो नही आ रहा है?

अभय -- नही बस सोच रहा था कुछ, खैर छोड़ो वो सब नसीब की बातें। तो आज से तुम ही मेरे लिए खाना पीना बना कर लाओगी?

रमिया -- जी बाबू जी।

अभय -- और ये सब करने के लिए जरूर तुम्हे इस गांव की ठाकुराइन ने कहा होगा?

रमिया -- हां...लेकिन ये आपको कैसे पता?

ये सुनकर अभि थोड़ा मुस्कुराते हुए बोला...

अभय -- वो क्या है ना, मैं भी तुम्हारी ही तरह नसीब का मारा हूं, तो मुझे लगा शायद ठाकुराइन को मुझ बेचारे पर तरस आ गया हो और उन्होंने मेरी अच्छी खातिरदारी के लिए तुम्हे भेज दिया हो, चलो अब जब आ ही गई हो तो, ये लो।

अभय ने अपने जेब से कुछ निकलते हुए उस औरत के हाथ में थमा दिया, जब औरत ने ध्यान दिया तो, उसके हाथो में 500 के नोटो की गड्डी थी। जिसे देख कर वो औरत बोली...

रमिया --"ये ...ये पैसे क्यों बाबू जी?

अभय एक बार फिर मुस्कुराया और बोला...

अभय -- ये तुम्हारी तनख्वाह है, तुम जब आ ही गई हो तो, मेरे लिए खाना पीना बना दिया करो। मगर ठाकुराइन के पंचभोग मुझसे नही पचेँगे। और हां ये बात जा कर ठाकुराइन से जरूर बताना।
रमिया तो अभय को देखते रह गई, कुछ पल यूं ही देखने के बाद वो बोली...

रमिया -- तुम्हारा नाम क्या है बाबू जी?

अभय -- (मुस्कुराते हुए) मेरा नाम अभय है।

रमिया – क्या.....

रमिया जोर से चौंकी....!! और रमिया को इस तरह चौंकते देख अभय बोला।

अभि -- अरे!! क्या हुआ ? नाम में कुछ गडबड है क्या?

रमिया -- अरे नही बाबू जी। वो क्या है ना, इस गांव में एक लड़की है पायल नाम की, कहते है अभय नाम का ही ठाकुराइन का इकलौता बेटा भी था। जो शायद बरसो पहले इसी गांव के पीछे वाले जंगल में उसकी लाश मिली थी। और ये पायल उस लड़के की पक्की दोस्त थी, लेकिन बेचारी जब से उसने अभय की मौत की खबर सुनी है तब से आज तक हंसी नहीं है। दिन भर खोई खोई सी रहती है।

अभय रमिया की बात सुनकर खुद हैरान था, पायल की बात तो बाद की बात थी पर अपनी मौत की बात पर उसे सदमा बैठ गया था। लेकिन उस बारे में ज्यादा न सोचते हुए जब उसका ध्यान रमिया के द्वारा कहे हुए पायल की हालत पर पड़ा , तो उसका दिल तड़प कर रह गया...और उससे रहा नही गया और झट से बोल पड़ा।

अभय -- तो...तो...तो उस अभय की मौत हो गई है, ये जानते हुए भी वो आ...आज भी उसके बारे में सोचती है।

रमिया -- सोचती है, अरे ये कहो बाबू जी की, जब देखो तब अभय के बारे में ही बात करती रहती है।

ये सुनकर अभय खुद को किताबो में व्यस्त करते हुए बोला...

अभय -- अच्छा, तो...तो क्या कहती वो अभय के बारे में?

रमिया -- अरे पूछो मत बाबू जी, उसकी तो बाते ही खत्म नहीं होती। मेरा अभय ऐसा है, मेरा अभय वैसा है, देखना जब आएगा वो तो मेरे लिए ढेर सारी चूड़ियां लेकर आएगा। चूड़ियां लेने ही तो गया है वो, पर शायद उसे मेरी पसंद की चूड़ियां नही मिल रही होगी इस लिए वो डर के मारे नही आ रहा है सोच रहा होगा की मुझे अगर पसंद नहीं आएगी तो मै नाराज हो जाऊंगी उससे। ये सब कहते हुए बेचारी का मुंह लटक जाता है और फिर न जाने कौन से रस में डूब कर अपने शब्द छोड़ते हुए बोलती है की, कोई बोलो ना उससे, की आ जाए वो, नही चाहिए मुझे चूड़ियां मुझे तो वो ही चाहिए उसके बिना कुछ अच्छा नहीं लगता। क्या बताऊं बाबू जी दीवानी है वो, मगर अब उसे कौन समझाए की जिसका वो इंतजार कर रही है, अब वो कभी लौट कर नहीं आने वाला (हस्ते हुए) और बाबू जी वो अमन तो मजनू की तरह घूमता रहता है पायल के पीछे कोई मौका नहीं छोड़ता पायल को पटाने का लेकिन उसकी किस्मत कभी उसका साथ नहीं देती है इसमें

रमिया की बाते सुन कर अभय की आंखे भर आई , उसका गला भारी हो गया था। दिल में तूफान उठने लगे थे, उसका दिल इस कदर बेताबी धड़कने लगा था की, उसका दिल कर रहा था की अभि वो पायल के पास जाए और उसे अपनी बाहों में भर कर बोल दे की मैं ही हूं तेरा अभय। मगर तभी रमिया के आखरी शब्द उसके कान में पड़ते ही..... उसके दिमाग का पारा ही बढ़ता चला गया......

गुस्से में आंखे लाल होने लगी, और अपनी हाथ के पंजों को मुठ्ठी में तब्दील करते हुए, अपनी दातों को पिस्ता ही रह गया

अभय -- ये अमन कौन है? जो उस लड़की के पीछे हाथ धो कर पड़ा है?

रमिया -- अमन वही तो ठाकुर साहब का बेटा है। ठकुराइन का दुलारा है सच कहूं तो ठाकुराइन के लाड - प्यार ने बहुत बिगाड़ दिया है छोटे मालिक को।

अभय --ओह...तो ये बात है। ठाकुराइन का दुलारा है वो?

रमिया -- जी बाबू साहब

अभय को शायद पता था , की यूं ही गुस्से की आग में जलना खुद को परेशान करने जैसा है, इसलिए वो खुद को शांत करते हुए प्यार से बोला...

अभय -- वैसे ...वो लड़की, क्या नाम बताया तुमने उसका?

रमिया -- पायल...

अभय -- हां... पायल, दिखने में कैसी है वो?

अभय की बात सुनकर, रमिया हल्के से मुस्कुराई...और फिर बोली..

रमिया -- क्या बात है बाबू साहब? कही आप भी तो उसके दीवाने तो नही होते जा रहे है

रमिया की बात सुनकर, अभि भी हल्की मुस्कान की चादर ओढ़ लेता है, फिर बोला...

अभय -- मैं तो हर तरह की औरत का दीवाना हूं, फिर चाहे वो गोरी हो या काली, खूबसूरत हो या बदसूरत, बस उसकी सीरत सही हो।

अभय की बात सुनकर, रमिया अभि को अपनी सांवली निगाहों से देखती रह जाति है, और ये बात अभि को पता चल जाति है। तभी अभि एक दफा फिर से बोला...

अभय -- वैसे तुम्हारी सीरत भी काफी अच्छी मालूम पड़ रही है, जो मेरे लिए खाना बनाने चली आई।
अभय की बात सुनकर, रमिया थोड़ा शरमा गई और पलके झुकते हुए बोली...

रमिया -- उससे क्या होता है बाबू जी,ये तो मेरा काम है, ठाकुराइन ने भेजा तो मैं चली आई। सिर्फ इसकी वजह से ही आप मेरे बारे में इतना कैसे समझ सकते है?

अभय -- अच्छा तो तुम ये कहना चाहती हो की, तुम अच्छी सीरत वाली औरत नही हो?

अभय की बात सुनकर, रमिया की झुकी हुई पलके झट से ऊपर उठी और फट से बोल पड़ी...

रमिया -- नही, मैने ऐसा कब कहा? मैने आज तक कभी कोई गलत काम नही किया।

रमिया की चौकाने वाली हालत देख कर अभि मन ही मन मुस्कुराया और बोला...

अभय -- तो मै भी तो इसके लिए ही बोला था, की तुम मुझे एक अच्छी औरत लगी। पर अभी जो तुमने कहा उसका मतलब मैं नहीं समझा?

रमिया ये सुनकर मासूमियत से बोली...

रमिया -- मैने क्या कहा...?

अभय -- यही की तुमने आज तक कुछ गलत काम नही किया, किस काम के बारे में बात कर रही हो तुम?

कहते हुए अभय रमिया की आंखो में देखते हुए मुस्कुरा पड़ा, और अभय की ये हरकत देख कर...

रमिया -- धत्...तुंब्भी ना बाबू जी...(और दोनो मुस्कुराने लगते है)

अभय – ठीक है रमिया मैं जरा बाहर जा के टहल के आता हू

रमिया – अरे बाबू जी कहा आप बाहर जा रहे हो यहां गांव में सारी सुविधा हो गई है और हॉस्टल में भी बाथरूम है आपको बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी

अभय –(हस्ते हुए) अरे नही मेरी आदत है रोज सुबह सुबह दौड़ लगाने की इसको (exercise) व्यायाम बोलते है समझी

रमिया –(हस्ते हुए) बाबू जी हमे भी थोड़ी थोड़ी अंग्रेजी आती है

अभय –ठीक है मिलता हू बाद में

बोल के अभय निकल गया एक्सरसाइज करने खेतो की तरफ दौड़ लगाता जा रहा था अभय और पहौच गया आम के बाग में चारो तरफ देखने लगा जहा हर तरफ हरियाली ही हरियाली दिख रही थी उसे मुस्कुराते हुए पलट के वापस जाने लगा चलते हुए अभय ने अपने सामने किसी को आते देखा नजदीक आते हुए शक्स को देख के अभय मुस्कुराने लगा

शक्स – अरे बाबू साहब आप यहां इतनी सुबह सुबह

अभय – हा वो exercise मेरा मतलब व्यायाम कर रहा था

शक्स –(मुस्कुराते हुए) हा समझ गया बाबू साहेब शहर में व्यायाम कोई नही बोलता इसे एक्सरसाइज बोलते है

अभय – बाबा आप इस वक्त कहा जा रहे है

शक्स – शहर जा रहा हू खेती का सामान लेने वैसे आपका बहुत बहुत धन्यवाद बाबू साहब आपने जो कल किया उसके चलते हमे हमारी जमीन वापस मिल गई

अभय – मैने एसा कुछ नही किया बाबा वो तो पेड़ काटने वालो को रोका था मैने बस और ये सब हो गया अपने आप

शक्स – आपका नाम क्या है बाबू साहब

अभय – जी मेरा नाम अभी है और आप

शक्स –(नाम सुनते ही गौर से देखने लगा अभय को) मेरा नाम सत्या शर्मा है

अभय –(मुस्कुराते हुए) अच्छा बाबा चलता हू फिर मिलूगा आपसे

अभय तो निकल गया लेकिन पीछे सत्या शर्मा अभय को जाते हुए देखते रहे जब तक अभय उनकी नजरो सो उझोल ना हो गया

सत्या शर्मा – (मन में बाते करने लगे) ये लड़का इतना जाना पहचाना सा क्यों लगता है मिलते ही बाबा बोलने लगा के ये नही नही लगता है आज कल ज्यादा ही सोचने लगा हू मै

इस तरफ अभय अपने हॉस्टल में आगया आते ही फ्रेश होके तयार हुआ तभी

रमिया – बाबू जी आईये नाश्ता कर लीजिए

अभय – तुमने नाश्ता बना भी दिया इतनी जल्दी

रमिया – यह पर अकेले आप ही हो हॉस्टल हो बाबू जी

अभय –(नाश्ता करने के बाद) बहुत अच्छा बनाया तुमने नाश्ता मजा आगया अच्छा सुनो मैं जरा गांव घूम के आता हू दिन भर क्या करूंगा यह पे घूम लेता हू

रमिया – ठीक है बाबू जी मैं भी जाति हू बाजार से खाने पीने का इंतजाम करने खाना...

अभय – रात में खाऊंगा खाना मैं अब तुम आराम कार्लो आज के लिए ठीक है

इतना बोल के अभय गांव की तरफ निकल गया घूमने उसके जाते ही रमिया भी निकल गई हवेली की तरफ जैसे ही रमिया हवेली में दाखिल हुई तभी सामने संध्या मिल गई उसे

संध्या – क...क्या हुआ रमिया? तू...तूने उस लड़के को खाना खिलाया की नही?

रमिया -- मालकिन अभी बाबू जी को नाश्ता करा के आ रही हू खाना बाबू जी सीधे रात में खाएगे बस समान लेने ही जा रही थी मालकिन खाने पीने का।

संध्या -- तू उसकी चिंता मत कर मैने बिरजू से कह दिया है सब सम्मान 1 घंटे में वहा पहुंच जाएगा

संध्या की बात सुनकर, रमिया थोड़ा चौंकते हुए बोली...

रमिया -- ये क्या कर दिया आपने मालकिन?

रमिया की बातो से अब संध्या भी हैरान थी....

संध्या -- क्या कर दिया मैने...मतलब?

रमिया -- अरे...मालकिन, वो बाबू साहेब बड़े खुद्दार है, मेरे जाते ही वो समझ गए की मुझे आपने ही भेजा है। इसलिए उन्होंने मुझे वो पैसे देते हुए बोले की...ठाकुराइन से जा कर बोल देना की उनकी हवेली के पंचभोग मुझे नही पचेंगे, तो तुम मेरे ही पैसे से सब कुछ खरीद कर लाना।

रमिया की बात सुनकर संध्या का दिल एक बार फिर कलथ कर रह गया। और मायूस होकर सोफे पर बैठते हुए अपना हाथ सिर पर रख लेती है...

संध्या को इस तरह से परेशान देख कर रमिया को अच्छा नहीं लगा और पूछा

रमिया – क्या हुआ मालकिन आप कुछ परेशान सी लग रही है। क्या सिर में दर्द हो रहा है आपके मैं अभी गरमा गर्म चाय लाती हो आपके लिए

संध्या – नही रमिया रहने दे तू जा बाजार से सामान लेले और अच्छा ही लेना और सुन मुझे बताती रहना उसके बारे में सब सिर्फ मुझे बताना किसी और को नही

रमिया –(अपनी मालकिन को ऐसी बात सुन के हैरान हो के बोली) जी मालकिन (बोल के जाने लगी थी की तभी पलट के बोली) वो मालकिन बाबू जी अभी गांव घूमने गए है

संध्या –अच्छा ठीक है तू जा कम निपटा के चली जाना वहा पे।

सोफे पे बैठे बैठे संध्या सोच ही रहे थी कुछ की तभी किसी ने पीछे से संध्या की आखों में हाथ रख दिया अचनक से ऐसा होने पे संध्या चौक गई

संध्या –(हल्का सा हस्ते हुए) हां पता है तू है, अब हटा ले हाथ।

ओ हो बड़ी मां, आप हर बार मुझे पहेचान लेती हो।

कहते हुए अमन , आगे आते हुए संध्या के बगल में बैठ जाता है और संध्या के गाल पर एक चुम्बन जड़ देता है। संध्या का मन तो ठीक नही था पर एक बनावटी हसीं चेहरे पर लाते हुए , वो भी अमन के माथे पर हाथ फेरते हुए बोली...

संध्या -- कैसे नही पहचानुगी , चल बता आज क्या चाहिए तुझे बिना वजह तू ऐसे मस्का नही मारता है

अमन -- (मुस्कुराते हुए) मेरी प्यारी अच्छा बड़ी मां मुझे ना एक नई बाइक पसंद आई है, वो लेना है मुझे।

अमन की बात सुनकर संध्या बोली...

संध्या -- ठीक है, कल चलकर ले लेना, अब खुश।

ये सुनकर अमन सच में बेहद खुश हुआ और उछलते हुए वो संध्या के गले लग जाता है और एक बार फिर से वो संध्या के गाल पर एक चुम्मी लेते हुए हवेली से बाहर निकल जाता है।

संध्या –(अमन को हवेली से बाहर जाते हुए देख खुद से बोली) आज अपने ही बेटे के सामने मेरी कोई हैसियत नही क्या कर दिया मैने ये भगवान इतनी बड़ी गलती कर दी मैने , क्या करू ऐसा मैं की बस एक बार अभय मुझे माफ कर दे , मेरी जान भी मांग ले तो उसके प्यार के चंद लम्हों के लिए अपनी जान देदू , शायद उसकी नज़रों में अब मेरी जान की भी कोई हैसियत नहीं , दिल में प्यार होकर भी उसको कभी प्यार ना जाता पाई , जब उसे मेरे प्यार की जरूरत थी , तब मैंने उसे सिर्फ मार पीट के अलावा कुछ नही दिया। आज उसे मेरी जरूरत नहीं, आखिर क्यों होगी उसे मेरी जरूरत? क्या दे सकती हूं उसे मैं? कुछ नही। दिल तड़पता है उसके पास जाने को, मगर हिम्मत नही होती अब तो मेरे पास सिर्फ शर्मिंदगी के अलावा और कुछ नही है। काश वो मुझे माफ कर दे, भूल जाए वो सब जो मैने अपने पागलपन में किया शायद नही ऐसा लगता है एक दिन इसी तड़प के साथ ही दुनिया से ना चली जाऊं।

कहते है ना, जब इंसान खुद को इतना बेबस पता है तो, इसी तरह के हजारों सवाल करता है, वही संध्या कर रही थी। वो ये समझ चुकी थी की उसके लिए अभय को मनाना मतलब भगवान के दर्शन होने के जैसा है।

संध्या अभि सोफे पर बैठी ये सब बाते सोच ही रही थी की, तभी वहा रमन आ जाता है संध्या को यूं इस तरह बैठा देख, रमन बोला......

रमन -- क्या हुआ भाभी, यूं इस तरह से क्यूं बैठी हो?

संध्या ने अपनी नज़रे उठाई तो सामने रमन को खड़ा पाया।

संध्या -- कुछ नही, बस अपनी किस्मत पर हंस रही हूं।

संध्या की बात सुनकर, रमन समझ गया की संध्या क्या कहना चाहती है...

रमन -- तो तुमने ये बात पक्की कर ही ली है की, वो छोकरा अभय ही है।

रमन की बात सुनकर, संध्या भाऊक्ता से बोली...

संध्या -- कुछ बातों को पक्का करने के लिए किसी की सहमति या इजाजत की जरूरत नहीं पड़ती है रमन

संध्या की बाते सुनकर रमन ने कहा...

रमन -- क्या बात है भाभी, तुम तो इस लड़के से इतना प्यार जताने की कोशिश कर रही हो, जितना प्यार तुमने अपने सगे बेटे से भी नही की थी।

बस रमन की इस बाते से संध्या के दिल पे जो चोट आई....

संध्या -- (जोर से चिल्ला) चुप होजा रमन वर्ना अंजाम अच्छा नही होगा अभी के लिए तू चला जा मेरे सामने से..

रमन --(संध्या की बात को बीच में काटते हुए) हा वो तो मैं चला ही जाऊंगा भाभी, जब तुमने मुझे अपने दिल से भगा दिया तो अपने पास से भगा दोगी भी तो क्या फर्क पड़ेगा। वैसे अपने अपने दिल से तुम्हारे लिए किसी को भी निकाला बड़ा आसान सा है।

संध्या –(गुस्से में बोली) तू मेरे साथ खेल रहा है तेरा दिमाग पूरी तरह से खराब हो गया है रमन क्या मैने कभी बोला तुझसे के मैं प्यार करती हूं तुझे उस एक मनहूस रात जाने मै कैसे बहक गई जिसकी सजा मुझे आज तक मिल रही है और यहां तुझे तो कुछ समझ ही नही आ रहा है जो हर बार अपने आशिकों जैसे डायलॉग मरता है यहां पर मेरी दुनिया उजड़ी पड़ी है और तुझे आशिकी की पड़ी है। मेरा बेटा मुझसे नाराज़ है, मुझे देखना भी नही पसंद करता, उसकी जिंदगी में मेरी अहमियत है भी या नहीं कुछ नही पता और तू यह आशिकी करने बैठा है समझा रहे हू तुझे खेलना बंद करदे मुझसे रमन
संध्या का ये रूप देख कर रमन कुछ देर शांत रहा और फिर बोला...
रमन -- हमारे और तुम्हारे बीच कभी प्यार था ही नही भाभी, प्यार तो सिर्फ मैने किया था तुमसे इसलिए मैं आशिकी वाली बात करता हूं। पर तुमने तो कभी मुझसे प्यार किया ही नहीं।

इस बार संध्या का पारा कुछ ज्यादा ही गरम हो गया, गुस्से में चेहरा लाल हो गया दांत पीसते हुए...

संध्या -- (पागलों की तरह हस्ते हुए) प्यार और मैं अरे जब मैं अपने बेटे से प्यार नहीं कर पाई, तो तू , ललिता , मालती , अमन , निधि सब कौन से खेत की मूली हो तुमलोग (इतना बोल के संध्या अपने कमरे में चली गई

जबकि संध्या का ये भयानक रूप और बाते सुनकर, रमन की हवा निकल गई, शायद गांड़ भी जली होगी क्योंकि उसका धुआं नही उठता ना इसलिए पता नही चला 😂😂
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जारी रहेगा ✍️✍️
Nicely smoothly updated.... 😏reply ya mention to kar diya karo galib
 

WhiteDragon

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UPDATE 10


अभय के जाते ही, संध्या भी अपनी कार में बैठती है और हवेली के लिए निकल पड़ती है।

संध्या कार को ड्राइव तो कर रही थी, मगर उसका पूरा ध्यान सिर्फ अभय पर था। उसके दिल में जो दर्द था वो शायद वही समझ सकती थी। साथ उसके दिल को आज यकीन होगया की ये लड़का कोई और नहीं उसका बेटा अभय है। उसका दिल अभय के पास बैठ कर बाते करने को कर रहा था। वो अपनी की हुई गलती की माफ़ी मांगना चाहती थी, मगर आज एक बार फिर वो अभय की नजरों में गीर गई थी। संध्या के उपर आज वो इल्जाम लगा , जो उसने किया ही नहीं। और यही बात उसके दिमाग में बार बार चल रही थी।

संध्या की कार जल्द ही हवेली में दाखिल हुई, और वो कार से उतरी ही थी की, मुनीम उसके पैरो में गिड़गिड़ाते हुए गिर पड़ा...

मुनीम -- मुझे माफ कर दो ठाकुराइन, आखिर उसमे मेरी क्या गलती थी? जो आपने बोला वो ही तो मैने किया था? आपने कहा था की अगर अभय बाबा स्कूल नही जाते है तो, 4 से 5 घंटे धूप में पेड़ से बांध कर रखना। मैने तो आपकी आज्ञा का पालन हो किया था ना मालकिन, नही तो मेरी इतनी औकात कहा की मैं अभय बाबा के साथ ऐसा कर सकता।

गांव वालो की बीच आज जो हुआ उसके चलते संध्या का पारा बड़ा हुआ था उपर से अपने सामने मुनीम को देख और उसकी बात सुनकर, संध्या का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। उसने मुनीम को लात मरते हुए बोली...

संध्या -- हरामजादे तेरी हिम्मत कैसे हुई हवेली आने की बोला था मैने तुझे वापस मत आना और क्या कहा तूने मैने बोला था तुझे अपने बेटे को तपती धूप में पेड़ पे बांधने के लिए (तभी संध्या ने अपने लठहरो आवाज दे के बोली) तोड़ दो इस मुनीम के हाथ पैर वर्ना तुम सबके हाथ पैर तुड़वा दूंगी

उस वक्त ललिता आ गयी संध्या के पास

ललिता –(संध्या का हाथ पकड़ के)शांत हो जाओ दीदी आप (लठहरो से बोली) रुक जाओ इसको हवेली के बाहर छोर दो

संध्या –(गुस्से में) बच गया तू अब आखरी बार बोल रही हू मुनीम तुझे चला जा यहां से। और मुझे फिर दुबारा इस हवेली में मत दिखाई देना। मैं सच बोल रही हूं, मेरा दिमाग पागल हो चुका है, और इस पागलपन में मैं क्या कर बैठूंगी ये मुझे भी नही पता है। चले जाओ यहां से...

कहते हुए संध्या गुस्से में हवेली के अंदर चली जाति है। संध्या हाल में सोफे पर बैठी बड़ी गहरी सोच में थी। तभी ललिता पास आ कर बोली...

ललिता -- क्या हुआ दीदी? आप बहुत गुस्से में लग रही है?

संध्या -- ठीक कह रही है तू। और मेरी इस गुस्से का कारण तेरा ही मरद है।

ललिता -- मुझे तो ऐसा नहीं लगता दीदी।

संध्या -- क्या मतलब? गांव वालो की ज़मीन को जबरन हथिया कर मुझसे उसने बोला की गांव वालो ने मर्जी से अपनी जमीनें दी है। और आज यही बात जब सब गांव वालो के सामने उठी , तो मेरा नाम आया की मैने पैसे के बदले गांव वालो की ज़मीन पर कब्जा कर लिया है। तुझे पता भी है, की मुझे उस समय कैसा महसूस हो रहा था सब गांव वालो के सामने, खुद को जलील मेहसुस कर रही थी।

संध्या की बात सुनकर, ललिता भी थापक से बोल पड़ी...

ललिता -- गांव वालो के सामने, या उस लड़के के सामने?

संध्या --(हैरानी से) क्या मतलब??

मतलब ये की भाभी, उस लड़के के लिए तुम कुछ ज्यादा ही उतावली हो रही थी।

इस अनजानी आवाज़ को सुनकर ललिता और संध्या दोनो की नजरे घूमी, तो पाई सामने से रमन आ रहा था।

संध्या -- ओह...तो आ गए तुम? बहुत अच्छा काम किया है तुमने मुझे गांव वालो के सामने जलील करके।

रमन -- मैने किसी को भी जलील नही किया है भाभी, मैं तो बस पिता जी का सपना पूरा कर रहा था। अगर तुम्हारी नज़र में इससे जलील करना कहते हैं, तो उसके लिए मैं माफी मागता हूं। पर आज जो तुमने मेरे साथ किया , उसके लिए मैं क्या बोलूं? एक अजनबी लड़के लिए मेरे साथ इस तरह का व्यवहार? कमाल है भाभी.... आखिर क्यों??

ललिता -- अरे वो कोई अजनबी लड़का थोड़ी है? वो अपना अभय है?

ललिता की बात सुन कर , रमन के होश ही उड़ गए चेहरे का रंग उड़ गया था। और चौंकते हुए बोला...

रमन -- अ...अ...अभय...यहां पर ये कैसे हो सकता है!!!

ललिता -- हा अभय, ऐसा दीदी को लगता है। अभि उस लड़के को आए 5 घंटे भी नही हुए है, दो चार बाते क्या बोल दी उसने दीदी को उकसाने के लिए। दीदी तो उसे अपना बेटा ही मान बैठी।

रमन -- (ललिता की बात सुनके रमन को कुछ राहत मिली) ओह, तो ये बात है। तुम पगला गई हो भाभी? अपना अभय अब इस दुनिया में नही है कब का मर चुका है वो जंगल में लाश मिली थी उसकी भूल....

संध्या –(रमन की बात बीच में काटते हुए चिल्ला के बोली) यहीं है वो , कही नही गया है वो, आज आया है मेरा अभय मेरे पास। और मैं अब कोई भी गलती नही करना चाहती जिसकी वजह से वो मुझे फिर से छोड़ कर जाए। मैं तो उसके नजदीक जाने की कोशिश में लगी थी। लेकिन तुम्हारी घटिया हरकत का सबक मुझे मिला। एक बार फिर से मैं उसकी नजरों में गीर गई।

संध्या की जोर डर आवाज सुन के रमन भी एकदम चकित हुए संध्या को ही देख रहा था। फिर संध्या की बात सुनकर रमन ने कहा...

रमन -- ठीक है भाभी, अगर तुम्हे लगता है की मेरी गलती है, तो मै आज ही पूरे गांव वालो के सामने इसकी माफी मांगूंगा। सब गांव वालो को ये बताऊंगा की, ये जमीन की बात तुम्हे नही पता थी। फिर शायद तुम्हारे दिल को तसल्ली मिल जाए। शायद वो अजनबी लड़के दिल में तुम्हारी इज्जत बन जाए।

संध्या -- अजनबी नही है वो रमन वो मेरा बेटा अभय है समझे तुम और अब कोई जरूरत नहीं है। जो हो गया सो हो गया।

रमन -- जरूरत है भाभी, क्यूं जरूरत नहीं है? एक अंजान लड़का आकार तुम्हारे सामने ना जाने क्या दो शब्द बोल देता है, और तुम्हे समय नहीं लगा ये यकीन करने में की वो तुम्हारा बेटा है। और वही मै अरे मैं ही क्या ? बल्कि पूरा गांव वालो ने अभय की लाश को अपनी आंखो से देखा उसका यकीन नही है तुम्हे, जब तुमने फैसला कर ही लिया है तो जाओ बुलाओ उसको हवेली में और बना दो उसे इस हवेली का वारिस।

संध्या –(ताली बजा के हस्ते हुए) वाह रमन वाह एक्टिंग करना तो कोई तुमसे सीखे एक तरफ तुम मुझसे बोल रहे हो माफी मांगोगे तुम गांव वालो से तो क्या होगा उससे मैं बताऊं इस बार गांव वाले ये बोलोगे की ठकुराइन का नाम बना रहे इसलिए रमन को भेजा ताकी गांव वालो के सामने सारा इल्जाम अपने सिर लेले अगर एसा करना होता तुम्हे रमन तो यू गांव वालो के बीच तुम्हे पसीने नही आते

इतना बोल के पलट के जाने लगी की तभी वापस पलट के संध्या बोली

संध्या – और एक बात अच्छे से समझ लो अपने अभय के लिए मैं एक शब्द बरदाश नही करूगी चाहे कुछ भी करना पड़े मुझे मैं अपने अभय को वापस जरूर लाऊगी। अब जाके सो जाओ रात बहुत हो चुकी है।

संध्या बोल के चली गई लेकिन अपने पीछे छोड़ गई रमन और ललिता को जिनके मु खुले के खुले रह गए थे संध्या की बात से दोनो बिना कुछ बोले चल गए अपने कमरे में सोने

सुबह के 6 बज रहे थे, अभि सो कर उठा था। नींद पूरी हुई तो दिमाग भी शांत था। उसे ऐसा लग रहा था मानो जैसे सर से बहुत बड़ा बोझ उतर गया हो। वो उठ कर अपने बेड पर बैठा था, और कुछ सोच रहा था की तभी...

लीजिए, ये चाय पी लीजिए...

अभय ने अपनी नजर उठा कर उस औरत की तरफ देखा गोरे रंग की करीब 35 साल की वो औरत अभय को देख कर मुस्कुरा रही थी। अभय ने हाथ बढ़ा कर चाय लेते हुए बोला...

अभय -- तो तुम इस हॉस्टल में खाने पीने की देखभाल करती हो?

कहते हुए अभय ने चाय की चुस्कियां लेने लगा...

जी हां, वैसे भी इस हॉस्टल में तो कोई रहता नही है। आप अकेले ही हो। तो मुझे ज्यादा काम नहीं पड़ेगा।

अभय -- hmmm... वैसे तुम्हारा नाम क्या है

मेरा नाम रमिया है।

अभय उस औरत को पहचानने की कोशिश कर रहा था। लेकिन पहचान नही पाया इसलिए उसने रमिया से पूछा...

अभय -- तो तुम इसी गांव की हो?

रमिया -- नही, मैं इस गांव की तो नही। पर हां अब इसी गांव में रहती हूं।

अभय -- कुछ समझा नही मैं? इस गांव की नही हो पर इसी गांव में रहती हो...क्या मतलब इसका?

अभय की बात सुनकर रमिया जवाब में बोली...

रमिया -- इस गांव की मेरी दीदी है। मेरा ब्याह हुआ था, पर ब्याह के एक दिन बाद ही मेरे पति की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। ससुराल वालो ने इसका जिम्मेदार मुझे ठहराया, और मुझे कुल्टा, कुलक्षणी और न जाने क्या क्या बोल कर वहा से निकाल दिया। घर पे सिर्फ एक बूढ़ी मां थी उसके साथ कुछ 4 साल रही फिर मेरी मां का भी देहांत हो गया, तो दीदी ने मुझे अपने पास बुला लिया। अभि दो साल से यहां इस गांव में रह रही हूं। और इस हवेली में काम करती हूं।

रमिया की बाते अभय गौर से सुनते हुए बोला...

अभय -- मतलब जिंदगी ने तुम्हारे साथ भी खेला है?

ये सुनकर रमिया बोली...

रमिया -- अब क्या करे बाबू जी, नसीब पर किसका जोर है? जो नसीब में लिखा है वो तो होकर ही रहता है। और शायद मेरी नसीब में यही लिखा था।

रमिया की बात सुनकर, अभय कुछ सोच में पड़ गया ...

रमिया -- क्या सोचने लगे बाबू जी, कहीं तुमको हमारे ऊपर तरस तो नही आ रहा है?

अभय -- नही बस सोच रहा था कुछ, खैर छोड़ो वो सब नसीब की बातें। तो आज से तुम ही मेरे लिए खाना पीना बना कर लाओगी?

रमिया -- जी बाबू जी।

अभय -- और ये सब करने के लिए जरूर तुम्हे इस गांव की ठाकुराइन ने कहा होगा?

रमिया -- हां...लेकिन ये आपको कैसे पता?

ये सुनकर अभि थोड़ा मुस्कुराते हुए बोला...

अभय -- वो क्या है ना, मैं भी तुम्हारी ही तरह नसीब का मारा हूं, तो मुझे लगा शायद ठाकुराइन को मुझ बेचारे पर तरस आ गया हो और उन्होंने मेरी अच्छी खातिरदारी के लिए तुम्हे भेज दिया हो, चलो अब जब आ ही गई हो तो, ये लो।

अभय ने अपने जेब से कुछ निकलते हुए उस औरत के हाथ में थमा दिया, जब औरत ने ध्यान दिया तो, उसके हाथो में 500 के नोटो की गड्डी थी। जिसे देख कर वो औरत बोली...

रमिया --"ये ...ये पैसे क्यों बाबू जी?

अभय एक बार फिर मुस्कुराया और बोला...

अभय -- ये तुम्हारी तनख्वाह है, तुम जब आ ही गई हो तो, मेरे लिए खाना पीना बना दिया करो। मगर ठाकुराइन के पंचभोग मुझसे नही पचेँगे। और हां ये बात जा कर ठाकुराइन से जरूर बताना।
रमिया तो अभय को देखते रह गई, कुछ पल यूं ही देखने के बाद वो बोली...

रमिया -- तुम्हारा नाम क्या है बाबू जी?

अभय -- (मुस्कुराते हुए) मेरा नाम अभय है।

रमिया – क्या.....

रमिया जोर से चौंकी....!! और रमिया को इस तरह चौंकते देख अभय बोला।

अभि -- अरे!! क्या हुआ ? नाम में कुछ गडबड है क्या?

रमिया -- अरे नही बाबू जी। वो क्या है ना, इस गांव में एक लड़की है पायल नाम की, कहते है अभय नाम का ही ठाकुराइन का इकलौता बेटा भी था। जो शायद बरसो पहले इसी गांव के पीछे वाले जंगल में उसकी लाश मिली थी। और ये पायल उस लड़के की पक्की दोस्त थी, लेकिन बेचारी जब से उसने अभय की मौत की खबर सुनी है तब से आज तक हंसी नहीं है। दिन भर खोई खोई सी रहती है।

अभय रमिया की बात सुनकर खुद हैरान था, पायल की बात तो बाद की बात थी पर अपनी मौत की बात पर उसे सदमा बैठ गया था। लेकिन उस बारे में ज्यादा न सोचते हुए जब उसका ध्यान रमिया के द्वारा कहे हुए पायल की हालत पर पड़ा , तो उसका दिल तड़प कर रह गया...और उससे रहा नही गया और झट से बोल पड़ा।

अभय -- तो...तो...तो उस अभय की मौत हो गई है, ये जानते हुए भी वो आ...आज भी उसके बारे में सोचती है।

रमिया -- सोचती है, अरे ये कहो बाबू जी की, जब देखो तब अभय के बारे में ही बात करती रहती है।

ये सुनकर अभय खुद को किताबो में व्यस्त करते हुए बोला...

अभय -- अच्छा, तो...तो क्या कहती वो अभय के बारे में?

रमिया -- अरे पूछो मत बाबू जी, उसकी तो बाते ही खत्म नहीं होती। मेरा अभय ऐसा है, मेरा अभय वैसा है, देखना जब आएगा वो तो मेरे लिए ढेर सारी चूड़ियां लेकर आएगा। चूड़ियां लेने ही तो गया है वो, पर शायद उसे मेरी पसंद की चूड़ियां नही मिल रही होगी इस लिए वो डर के मारे नही आ रहा है सोच रहा होगा की मुझे अगर पसंद नहीं आएगी तो मै नाराज हो जाऊंगी उससे। ये सब कहते हुए बेचारी का मुंह लटक जाता है और फिर न जाने कौन से रस में डूब कर अपने शब्द छोड़ते हुए बोलती है की, कोई बोलो ना उससे, की आ जाए वो, नही चाहिए मुझे चूड़ियां मुझे तो वो ही चाहिए उसके बिना कुछ अच्छा नहीं लगता। क्या बताऊं बाबू जी दीवानी है वो, मगर अब उसे कौन समझाए की जिसका वो इंतजार कर रही है, अब वो कभी लौट कर नहीं आने वाला (हस्ते हुए) और बाबू जी वो अमन तो मजनू की तरह घूमता रहता है पायल के पीछे कोई मौका नहीं छोड़ता पायल को पटाने का लेकिन उसकी किस्मत कभी उसका साथ नहीं देती है इसमें

रमिया की बाते सुन कर अभय की आंखे भर आई , उसका गला भारी हो गया था। दिल में तूफान उठने लगे थे, उसका दिल इस कदर बेताबी धड़कने लगा था की, उसका दिल कर रहा था की अभि वो पायल के पास जाए और उसे अपनी बाहों में भर कर बोल दे की मैं ही हूं तेरा अभय। मगर तभी रमिया के आखरी शब्द उसके कान में पड़ते ही..... उसके दिमाग का पारा ही बढ़ता चला गया......

गुस्से में आंखे लाल होने लगी, और अपनी हाथ के पंजों को मुठ्ठी में तब्दील करते हुए, अपनी दातों को पिस्ता ही रह गया

अभय -- ये अमन कौन है? जो उस लड़की के पीछे हाथ धो कर पड़ा है?

रमिया -- अमन वही तो ठाकुर साहब का बेटा है। ठकुराइन का दुलारा है सच कहूं तो ठाकुराइन के लाड - प्यार ने बहुत बिगाड़ दिया है छोटे मालिक को।

अभय --ओह...तो ये बात है। ठाकुराइन का दुलारा है वो?

रमिया -- जी बाबू साहब

अभय को शायद पता था , की यूं ही गुस्से की आग में जलना खुद को परेशान करने जैसा है, इसलिए वो खुद को शांत करते हुए प्यार से बोला...

अभय -- वैसे ...वो लड़की, क्या नाम बताया तुमने उसका?

रमिया -- पायल...

अभय -- हां... पायल, दिखने में कैसी है वो?

अभय की बात सुनकर, रमिया हल्के से मुस्कुराई...और फिर बोली..

रमिया -- क्या बात है बाबू साहब? कही आप भी तो उसके दीवाने तो नही होते जा रहे है

रमिया की बात सुनकर, अभि भी हल्की मुस्कान की चादर ओढ़ लेता है, फिर बोला...

अभय -- मैं तो हर तरह की औरत का दीवाना हूं, फिर चाहे वो गोरी हो या काली, खूबसूरत हो या बदसूरत, बस उसकी सीरत सही हो।

अभय की बात सुनकर, रमिया अभि को अपनी सांवली निगाहों से देखती रह जाति है, और ये बात अभि को पता चल जाति है। तभी अभि एक दफा फिर से बोला...

अभय -- वैसे तुम्हारी सीरत भी काफी अच्छी मालूम पड़ रही है, जो मेरे लिए खाना बनाने चली आई।
अभय की बात सुनकर, रमिया थोड़ा शरमा गई और पलके झुकते हुए बोली...

रमिया -- उससे क्या होता है बाबू जी,ये तो मेरा काम है, ठाकुराइन ने भेजा तो मैं चली आई। सिर्फ इसकी वजह से ही आप मेरे बारे में इतना कैसे समझ सकते है?

अभय -- अच्छा तो तुम ये कहना चाहती हो की, तुम अच्छी सीरत वाली औरत नही हो?

अभय की बात सुनकर, रमिया की झुकी हुई पलके झट से ऊपर उठी और फट से बोल पड़ी...

रमिया -- नही, मैने ऐसा कब कहा? मैने आज तक कभी कोई गलत काम नही किया।

रमिया की चौकाने वाली हालत देख कर अभि मन ही मन मुस्कुराया और बोला...

अभय -- तो मै भी तो इसके लिए ही बोला था, की तुम मुझे एक अच्छी औरत लगी। पर अभी जो तुमने कहा उसका मतलब मैं नहीं समझा?

रमिया ये सुनकर मासूमियत से बोली...

रमिया -- मैने क्या कहा...?

अभय -- यही की तुमने आज तक कुछ गलत काम नही किया, किस काम के बारे में बात कर रही हो तुम?

कहते हुए अभय रमिया की आंखो में देखते हुए मुस्कुरा पड़ा, और अभय की ये हरकत देख कर...

रमिया -- धत्...तुंब्भी ना बाबू जी...(और दोनो मुस्कुराने लगते है)

अभय – ठीक है रमिया मैं जरा बाहर जा के टहल के आता हू

रमिया – अरे बाबू जी कहा आप बाहर जा रहे हो यहां गांव में सारी सुविधा हो गई है और हॉस्टल में भी बाथरूम है आपको बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी

अभय –(हस्ते हुए) अरे नही मेरी आदत है रोज सुबह सुबह दौड़ लगाने की इसको (exercise) व्यायाम बोलते है समझी

रमिया –(हस्ते हुए) बाबू जी हमे भी थोड़ी थोड़ी अंग्रेजी आती है

अभय –ठीक है मिलता हू बाद में

बोल के अभय निकल गया एक्सरसाइज करने खेतो की तरफ दौड़ लगाता जा रहा था अभय और पहौच गया आम के बाग में चारो तरफ देखने लगा जहा हर तरफ हरियाली ही हरियाली दिख रही थी उसे मुस्कुराते हुए पलट के वापस जाने लगा चलते हुए अभय ने अपने सामने किसी को आते देखा नजदीक आते हुए शक्स को देख के अभय मुस्कुराने लगा

शक्स – अरे बाबू साहब आप यहां इतनी सुबह सुबह

अभय – हा वो exercise मेरा मतलब व्यायाम कर रहा था

शक्स –(मुस्कुराते हुए) हा समझ गया बाबू साहेब शहर में व्यायाम कोई नही बोलता इसे एक्सरसाइज बोलते है

अभय – बाबा आप इस वक्त कहा जा रहे है

शक्स – शहर जा रहा हू खेती का सामान लेने वैसे आपका बहुत बहुत धन्यवाद बाबू साहब आपने जो कल किया उसके चलते हमे हमारी जमीन वापस मिल गई

अभय – मैने एसा कुछ नही किया बाबा वो तो पेड़ काटने वालो को रोका था मैने बस और ये सब हो गया अपने आप

शक्स – आपका नाम क्या है बाबू साहब

अभय – जी मेरा नाम अभी है और आप

शक्स –(नाम सुनते ही गौर से देखने लगा अभय को) मेरा नाम सत्या शर्मा है

अभय –(मुस्कुराते हुए) अच्छा बाबा चलता हू फिर मिलूगा आपसे

अभय तो निकल गया लेकिन पीछे सत्या शर्मा अभय को जाते हुए देखते रहे जब तक अभय उनकी नजरो सो उझोल ना हो गया

सत्या शर्मा – (मन में बाते करने लगे) ये लड़का इतना जाना पहचाना सा क्यों लगता है मिलते ही बाबा बोलने लगा के ये नही नही लगता है आज कल ज्यादा ही सोचने लगा हू मै

इस तरफ अभय अपने हॉस्टल में आगया आते ही फ्रेश होके तयार हुआ तभी

रमिया – बाबू जी आईये नाश्ता कर लीजिए

अभय – तुमने नाश्ता बना भी दिया इतनी जल्दी

रमिया – यह पर अकेले आप ही हो हॉस्टल हो बाबू जी

अभय –(नाश्ता करने के बाद) बहुत अच्छा बनाया तुमने नाश्ता मजा आगया अच्छा सुनो मैं जरा गांव घूम के आता हू दिन भर क्या करूंगा यह पे घूम लेता हू

रमिया – ठीक है बाबू जी मैं भी जाति हू बाजार से खाने पीने का इंतजाम करने खाना...

अभय – रात में खाऊंगा खाना मैं अब तुम आराम कार्लो आज के लिए ठीक है

इतना बोल के अभय गांव की तरफ निकल गया घूमने उसके जाते ही रमिया भी निकल गई हवेली की तरफ जैसे ही रमिया हवेली में दाखिल हुई तभी सामने संध्या मिल गई उसे

संध्या – क...क्या हुआ रमिया? तू...तूने उस लड़के को खाना खिलाया की नही?

रमिया -- मालकिन अभी बाबू जी को नाश्ता करा के आ रही हू खाना बाबू जी सीधे रात में खाएगे बस समान लेने ही जा रही थी मालकिन खाने पीने का।

संध्या -- तू उसकी चिंता मत कर मैने बिरजू से कह दिया है सब सम्मान 1 घंटे में वहा पहुंच जाएगा

संध्या की बात सुनकर, रमिया थोड़ा चौंकते हुए बोली...

रमिया -- ये क्या कर दिया आपने मालकिन?

रमिया की बातो से अब संध्या भी हैरान थी....

संध्या -- क्या कर दिया मैने...मतलब?

रमिया -- अरे...मालकिन, वो बाबू साहेब बड़े खुद्दार है, मेरे जाते ही वो समझ गए की मुझे आपने ही भेजा है। इसलिए उन्होंने मुझे वो पैसे देते हुए बोले की...ठाकुराइन से जा कर बोल देना की उनकी हवेली के पंचभोग मुझे नही पचेंगे, तो तुम मेरे ही पैसे से सब कुछ खरीद कर लाना।

रमिया की बात सुनकर संध्या का दिल एक बार फिर कलथ कर रह गया। और मायूस होकर सोफे पर बैठते हुए अपना हाथ सिर पर रख लेती है...

संध्या को इस तरह से परेशान देख कर रमिया को अच्छा नहीं लगा और पूछा

रमिया – क्या हुआ मालकिन आप कुछ परेशान सी लग रही है। क्या सिर में दर्द हो रहा है आपके मैं अभी गरमा गर्म चाय लाती हो आपके लिए

संध्या – नही रमिया रहने दे तू जा बाजार से सामान लेले और अच्छा ही लेना और सुन मुझे बताती रहना उसके बारे में सब सिर्फ मुझे बताना किसी और को नही

रमिया –(अपनी मालकिन को ऐसी बात सुन के हैरान हो के बोली) जी मालकिन (बोल के जाने लगी थी की तभी पलट के बोली) वो मालकिन बाबू जी अभी गांव घूमने गए है

संध्या –अच्छा ठीक है तू जा कम निपटा के चली जाना वहा पे।

सोफे पे बैठे बैठे संध्या सोच ही रहे थी कुछ की तभी किसी ने पीछे से संध्या की आखों में हाथ रख दिया अचनक से ऐसा होने पे संध्या चौक गई

संध्या –(हल्का सा हस्ते हुए) हां पता है तू है, अब हटा ले हाथ।

ओ हो बड़ी मां, आप हर बार मुझे पहेचान लेती हो।

कहते हुए अमन , आगे आते हुए संध्या के बगल में बैठ जाता है और संध्या के गाल पर एक चुम्बन जड़ देता है। संध्या का मन तो ठीक नही था पर एक बनावटी हसीं चेहरे पर लाते हुए , वो भी अमन के माथे पर हाथ फेरते हुए बोली...

संध्या -- कैसे नही पहचानुगी , चल बता आज क्या चाहिए तुझे बिना वजह तू ऐसे मस्का नही मारता है

अमन -- (मुस्कुराते हुए) मेरी प्यारी अच्छा बड़ी मां मुझे ना एक नई बाइक पसंद आई है, वो लेना है मुझे।

अमन की बात सुनकर संध्या बोली...

संध्या -- ठीक है, कल चलकर ले लेना, अब खुश।

ये सुनकर अमन सच में बेहद खुश हुआ और उछलते हुए वो संध्या के गले लग जाता है और एक बार फिर से वो संध्या के गाल पर एक चुम्मी लेते हुए हवेली से बाहर निकल जाता है।

संध्या –(अमन को हवेली से बाहर जाते हुए देख खुद से बोली) आज अपने ही बेटे के सामने मेरी कोई हैसियत नही क्या कर दिया मैने ये भगवान इतनी बड़ी गलती कर दी मैने , क्या करू ऐसा मैं की बस एक बार अभय मुझे माफ कर दे , मेरी जान भी मांग ले तो उसके प्यार के चंद लम्हों के लिए अपनी जान देदू , शायद उसकी नज़रों में अब मेरी जान की भी कोई हैसियत नहीं , दिल में प्यार होकर भी उसको कभी प्यार ना जाता पाई , जब उसे मेरे प्यार की जरूरत थी , तब मैंने उसे सिर्फ मार पीट के अलावा कुछ नही दिया। आज उसे मेरी जरूरत नहीं, आखिर क्यों होगी उसे मेरी जरूरत? क्या दे सकती हूं उसे मैं? कुछ नही। दिल तड़पता है उसके पास जाने को, मगर हिम्मत नही होती अब तो मेरे पास सिर्फ शर्मिंदगी के अलावा और कुछ नही है। काश वो मुझे माफ कर दे, भूल जाए वो सब जो मैने अपने पागलपन में किया शायद नही ऐसा लगता है एक दिन इसी तड़प के साथ ही दुनिया से ना चली जाऊं।

कहते है ना, जब इंसान खुद को इतना बेबस पता है तो, इसी तरह के हजारों सवाल करता है, वही संध्या कर रही थी। वो ये समझ चुकी थी की उसके लिए अभय को मनाना मतलब भगवान के दर्शन होने के जैसा है।

संध्या अभि सोफे पर बैठी ये सब बाते सोच ही रही थी की, तभी वहा रमन आ जाता है संध्या को यूं इस तरह बैठा देख, रमन बोला......

रमन -- क्या हुआ भाभी, यूं इस तरह से क्यूं बैठी हो?

संध्या ने अपनी नज़रे उठाई तो सामने रमन को खड़ा पाया।

संध्या -- कुछ नही, बस अपनी किस्मत पर हंस रही हूं।

संध्या की बात सुनकर, रमन समझ गया की संध्या क्या कहना चाहती है...

रमन -- तो तुमने ये बात पक्की कर ही ली है की, वो छोकरा अभय ही है।

रमन की बात सुनकर, संध्या भाऊक्ता से बोली...

संध्या -- कुछ बातों को पक्का करने के लिए किसी की सहमति या इजाजत की जरूरत नहीं पड़ती है रमन

संध्या की बाते सुनकर रमन ने कहा...

रमन -- क्या बात है भाभी, तुम तो इस लड़के से इतना प्यार जताने की कोशिश कर रही हो, जितना प्यार तुमने अपने सगे बेटे से भी नही की थी।

बस रमन की इस बाते से संध्या के दिल पे जो चोट आई....

संध्या -- (जोर से चिल्ला) चुप होजा रमन वर्ना अंजाम अच्छा नही होगा अभी के लिए तू चला जा मेरे सामने से..

रमन --(संध्या की बात को बीच में काटते हुए) हा वो तो मैं चला ही जाऊंगा भाभी, जब तुमने मुझे अपने दिल से भगा दिया तो अपने पास से भगा दोगी भी तो क्या फर्क पड़ेगा। वैसे अपने अपने दिल से तुम्हारे लिए किसी को भी निकाला बड़ा आसान सा है।

संध्या –(गुस्से में बोली) तू मेरे साथ खेल रहा है तेरा दिमाग पूरी तरह से खराब हो गया है रमन क्या मैने कभी बोला तुझसे के मैं प्यार करती हूं तुझे उस एक मनहूस रात जाने मै कैसे बहक गई जिसकी सजा मुझे आज तक मिल रही है और यहां तुझे तो कुछ समझ ही नही आ रहा है जो हर बार अपने आशिकों जैसे डायलॉग मरता है यहां पर मेरी दुनिया उजड़ी पड़ी है और तुझे आशिकी की पड़ी है। मेरा बेटा मुझसे नाराज़ है, मुझे देखना भी नही पसंद करता, उसकी जिंदगी में मेरी अहमियत है भी या नहीं कुछ नही पता और तू यह आशिकी करने बैठा है समझा रहे हू तुझे खेलना बंद करदे मुझसे रमन
संध्या का ये रूप देख कर रमन कुछ देर शांत रहा और फिर बोला...
रमन -- हमारे और तुम्हारे बीच कभी प्यार था ही नही भाभी, प्यार तो सिर्फ मैने किया था तुमसे इसलिए मैं आशिकी वाली बात करता हूं। पर तुमने तो कभी मुझसे प्यार किया ही नहीं।

इस बार संध्या का पारा कुछ ज्यादा ही गरम हो गया, गुस्से में चेहरा लाल हो गया दांत पीसते हुए...

संध्या -- (पागलों की तरह हस्ते हुए) प्यार और मैं अरे जब मैं अपने बेटे से प्यार नहीं कर पाई, तो तू , ललिता , मालती , अमन , निधि सब कौन से खेत की मूली हो तुमलोग (इतना बोल के संध्या अपने कमरे में चली गई

जबकि संध्या का ये भयानक रूप और बाते सुनकर, रमन की हवा निकल गई, शायद गांड़ भी जली होगी क्योंकि उसका धुआं नही उठता ना इसलिए पता नही चला 😂😂
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जारी रहेगा ✍️
Very Cold reply of Sandhya and tell the truth to the Raman.....Very good update
 

Nishant1

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Sandhya ne kya kaha tha agar dubara munshi use haweli me dikha to abhay ki kasam wo munshi ki jindagi ka aakhari din hoga ab kya ukhad li
Aur ramn ka bhi kuchh ukhad nhi pai
Ab bol rahi hai us rat bahk gai thi aur agar bahk gai thi to hosh me aate hi sharm se dob jati aur ramn ne jab dubara uske hothon ko chuma tabhi usko mana kar deti na ki 1st update me wo sab baate karti
Bhale hi writer ne Sandhya aur ramn ke bich jo hua tha usko ek baar hi hua bol raha hai
Lekin abhi tak ke update se to yhi lag raha hai ki dono ke bich kai baar ho chuka tha
Story me talmel nhi baith Raha ha agar ramn aur Sandhya ke bich 1st update se lekar abhi ke update me dono ke sambandh ko lekar koi baat nhi hota to mana ja sakta tha ki jo hua tha ek baar hi hua tha
 
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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Sandhya ne kya kaha tha agar dubara munshi use haweli me dikha to abhay ki kasam wo munshi ki jindagi ka aakhari din hoga ab kya ukhad li
Aur ramn ka bhi kuchh ukhad nhi pai
Ab bol rahi hai us rat bahk gai thi aur agar bahk gai thi to hosh me aate hi sharm se dob jati aur ramn ne jab dubara uske hothon ko chuma tabhi usko mana kar deti na ki 1st update me wo sab baate karti
Bhale hi writer ne Sandhya aur ramn ke bich jo hua tha usko ek baar hi hua bol raha hai
Lekin abhi tak ke update se to yhi lag raha hai ki dono ke bich kai baar ho chuka tha
Story me talmel nhi baith Raha ha agar ramn aur Sandhya ke bich 1st update se lekar abhi ke update me dono ke sambandh ko lekar koi baat nhi hota to mana ja sakta tha ki jo hua tha ek baar hi hua tha
बातें करना और इंटिमेट होना अलग अलग चीजें है।

इस तरह के संबंध चुटकी बजाते ही नही बनते, उनके पीछे एक बिल्ट अप होता है। इसीलिए ये हो सकता है की फिजिकल इंटिमेसी एक ही बार हुई हो, बाकी वर्बल हुआ हो।
 

LOV mis

अलग हूं, पर गलत नहीं..!!👈🏻
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UPDATE 10


अभय के जाते ही, संध्या भी अपनी कार में बैठती है और हवेली के लिए निकल पड़ती है।

संध्या कार को ड्राइव तो कर रही थी, मगर उसका पूरा ध्यान सिर्फ अभय पर था। उसके दिल में जो दर्द था वो शायद वही समझ सकती थी। साथ उसके दिल को आज यकीन होगया की ये लड़का कोई और नहीं उसका बेटा अभय है। उसका दिल अभय के पास बैठ कर बाते करने को कर रहा था। वो अपनी की हुई गलती की माफ़ी मांगना चाहती थी, मगर आज एक बार फिर वो अभय की नजरों में गीर गई थी। संध्या के उपर आज वो इल्जाम लगा , जो उसने किया ही नहीं। और यही बात उसके दिमाग में बार बार चल रही थी।

संध्या की कार जल्द ही हवेली में दाखिल हुई, और वो कार से उतरी ही थी की, मुनीम उसके पैरो में गिड़गिड़ाते हुए गिर पड़ा...

मुनीम -- मुझे माफ कर दो ठाकुराइन, आखिर उसमे मेरी क्या गलती थी? जो आपने बोला वो ही तो मैने किया था? आपने कहा था की अगर अभय बाबा स्कूल नही जाते है तो, 4 से 5 घंटे धूप में पेड़ से बांध कर रखना। मैने तो आपकी आज्ञा का पालन हो किया था ना मालकिन, नही तो मेरी इतनी औकात कहा की मैं अभय बाबा के साथ ऐसा कर सकता।

गांव वालो की बीच आज जो हुआ उसके चलते संध्या का पारा बड़ा हुआ था उपर से अपने सामने मुनीम को देख और उसकी बात सुनकर, संध्या का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। उसने मुनीम को लात मरते हुए बोली...

संध्या -- हरामजादे तेरी हिम्मत कैसे हुई हवेली आने की बोला था मैने तुझे वापस मत आना और क्या कहा तूने मैने बोला था तुझे अपने बेटे को तपती धूप में पेड़ पे बांधने के लिए (तभी संध्या ने अपने लठहरो आवाज दे के बोली) तोड़ दो इस मुनीम के हाथ पैर वर्ना तुम सबके हाथ पैर तुड़वा दूंगी

उस वक्त ललिता आ गयी संध्या के पास

ललिता –(संध्या का हाथ पकड़ के)शांत हो जाओ दीदी आप (लठहरो से बोली) रुक जाओ इसको हवेली के बाहर छोर दो

संध्या –(गुस्से में) बच गया तू अब आखरी बार बोल रही हू मुनीम तुझे चला जा यहां से। और मुझे फिर दुबारा इस हवेली में मत दिखाई देना। मैं सच बोल रही हूं, मेरा दिमाग पागल हो चुका है, और इस पागलपन में मैं क्या कर बैठूंगी ये मुझे भी नही पता है। चले जाओ यहां से...

कहते हुए संध्या गुस्से में हवेली के अंदर चली जाति है। संध्या हाल में सोफे पर बैठी बड़ी गहरी सोच में थी। तभी ललिता पास आ कर बोली...

ललिता -- क्या हुआ दीदी? आप बहुत गुस्से में लग रही है?

संध्या -- ठीक कह रही है तू। और मेरी इस गुस्से का कारण तेरा ही मरद है।

ललिता -- मुझे तो ऐसा नहीं लगता दीदी।

संध्या -- क्या मतलब? गांव वालो की ज़मीन को जबरन हथिया कर मुझसे उसने बोला की गांव वालो ने मर्जी से अपनी जमीनें दी है। और आज यही बात जब सब गांव वालो के सामने उठी , तो मेरा नाम आया की मैने पैसे के बदले गांव वालो की ज़मीन पर कब्जा कर लिया है। तुझे पता भी है, की मुझे उस समय कैसा महसूस हो रहा था सब गांव वालो के सामने, खुद को जलील मेहसुस कर रही थी।

संध्या की बात सुनकर, ललिता भी थापक से बोल पड़ी...

ललिता -- गांव वालो के सामने, या उस लड़के के सामने?

संध्या --(हैरानी से) क्या मतलब??

मतलब ये की भाभी, उस लड़के के लिए तुम कुछ ज्यादा ही उतावली हो रही थी।

इस अनजानी आवाज़ को सुनकर ललिता और संध्या दोनो की नजरे घूमी, तो पाई सामने से रमन आ रहा था।

संध्या -- ओह...तो आ गए तुम? बहुत अच्छा काम किया है तुमने मुझे गांव वालो के सामने जलील करके।

रमन -- मैने किसी को भी जलील नही किया है भाभी, मैं तो बस पिता जी का सपना पूरा कर रहा था। अगर तुम्हारी नज़र में इससे जलील करना कहते हैं, तो उसके लिए मैं माफी मागता हूं। पर आज जो तुमने मेरे साथ किया , उसके लिए मैं क्या बोलूं? एक अजनबी लड़के लिए मेरे साथ इस तरह का व्यवहार? कमाल है भाभी.... आखिर क्यों??

ललिता -- अरे वो कोई अजनबी लड़का थोड़ी है? वो अपना अभय है?

ललिता की बात सुन कर , रमन के होश ही उड़ गए चेहरे का रंग उड़ गया था। और चौंकते हुए बोला...

रमन -- अ...अ...अभय...यहां पर ये कैसे हो सकता है!!!

ललिता -- हा अभय, ऐसा दीदी को लगता है। अभि उस लड़के को आए 5 घंटे भी नही हुए है, दो चार बाते क्या बोल दी उसने दीदी को उकसाने के लिए। दीदी तो उसे अपना बेटा ही मान बैठी।

रमन -- (ललिता की बात सुनके रमन को कुछ राहत मिली) ओह, तो ये बात है। तुम पगला गई हो भाभी? अपना अभय अब इस दुनिया में नही है कब का मर चुका है वो जंगल में लाश मिली थी उसकी भूल....

संध्या –(रमन की बात बीच में काटते हुए चिल्ला के बोली) यहीं है वो , कही नही गया है वो, आज आया है मेरा अभय मेरे पास। और मैं अब कोई भी गलती नही करना चाहती जिसकी वजह से वो मुझे फिर से छोड़ कर जाए। मैं तो उसके नजदीक जाने की कोशिश में लगी थी। लेकिन तुम्हारी घटिया हरकत का सबक मुझे मिला। एक बार फिर से मैं उसकी नजरों में गीर गई।

संध्या की जोर डर आवाज सुन के रमन भी एकदम चकित हुए संध्या को ही देख रहा था। फिर संध्या की बात सुनकर रमन ने कहा...

रमन -- ठीक है भाभी, अगर तुम्हे लगता है की मेरी गलती है, तो मै आज ही पूरे गांव वालो के सामने इसकी माफी मांगूंगा। सब गांव वालो को ये बताऊंगा की, ये जमीन की बात तुम्हे नही पता थी। फिर शायद तुम्हारे दिल को तसल्ली मिल जाए। शायद वो अजनबी लड़के दिल में तुम्हारी इज्जत बन जाए।

संध्या -- अजनबी नही है वो रमन वो मेरा बेटा अभय है समझे तुम और अब कोई जरूरत नहीं है। जो हो गया सो हो गया।

रमन -- जरूरत है भाभी, क्यूं जरूरत नहीं है? एक अंजान लड़का आकार तुम्हारे सामने ना जाने क्या दो शब्द बोल देता है, और तुम्हे समय नहीं लगा ये यकीन करने में की वो तुम्हारा बेटा है। और वही मै अरे मैं ही क्या ? बल्कि पूरा गांव वालो ने अभय की लाश को अपनी आंखो से देखा उसका यकीन नही है तुम्हे, जब तुमने फैसला कर ही लिया है तो जाओ बुलाओ उसको हवेली में और बना दो उसे इस हवेली का वारिस।

संध्या –(ताली बजा के हस्ते हुए) वाह रमन वाह एक्टिंग करना तो कोई तुमसे सीखे एक तरफ तुम मुझसे बोल रहे हो माफी मांगोगे तुम गांव वालो से तो क्या होगा उससे मैं बताऊं इस बार गांव वाले ये बोलोगे की ठकुराइन का नाम बना रहे इसलिए रमन को भेजा ताकी गांव वालो के सामने सारा इल्जाम अपने सिर लेले अगर एसा करना होता तुम्हे रमन तो यू गांव वालो के बीच तुम्हे पसीने नही आते

इतना बोल के पलट के जाने लगी की तभी वापस पलट के संध्या बोली

संध्या – और एक बात अच्छे से समझ लो अपने अभय के लिए मैं एक शब्द बरदाश नही करूगी चाहे कुछ भी करना पड़े मुझे मैं अपने अभय को वापस जरूर लाऊगी। अब जाके सो जाओ रात बहुत हो चुकी है।

संध्या बोल के चली गई लेकिन अपने पीछे छोड़ गई रमन और ललिता को जिनके मु खुले के खुले रह गए थे संध्या की बात से दोनो बिना कुछ बोले चल गए अपने कमरे में सोने

सुबह के 6 बज रहे थे, अभि सो कर उठा था। नींद पूरी हुई तो दिमाग भी शांत था। उसे ऐसा लग रहा था मानो जैसे सर से बहुत बड़ा बोझ उतर गया हो। वो उठ कर अपने बेड पर बैठा था, और कुछ सोच रहा था की तभी...

लीजिए, ये चाय पी लीजिए...

अभय ने अपनी नजर उठा कर उस औरत की तरफ देखा गोरे रंग की करीब 35 साल की वो औरत अभय को देख कर मुस्कुरा रही थी। अभय ने हाथ बढ़ा कर चाय लेते हुए बोला...

अभय -- तो तुम इस हॉस्टल में खाने पीने की देखभाल करती हो?

कहते हुए अभय ने चाय की चुस्कियां लेने लगा...

जी हां, वैसे भी इस हॉस्टल में तो कोई रहता नही है। आप अकेले ही हो। तो मुझे ज्यादा काम नहीं पड़ेगा।

अभय -- hmmm... वैसे तुम्हारा नाम क्या है

मेरा नाम रमिया है।

अभय उस औरत को पहचानने की कोशिश कर रहा था। लेकिन पहचान नही पाया इसलिए उसने रमिया से पूछा...

अभय -- तो तुम इसी गांव की हो?

रमिया -- नही, मैं इस गांव की तो नही। पर हां अब इसी गांव में रहती हूं।

अभय -- कुछ समझा नही मैं? इस गांव की नही हो पर इसी गांव में रहती हो...क्या मतलब इसका?

अभय की बात सुनकर रमिया जवाब में बोली...

रमिया -- इस गांव की मेरी दीदी है। मेरा ब्याह हुआ था, पर ब्याह के एक दिन बाद ही मेरे पति की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। ससुराल वालो ने इसका जिम्मेदार मुझे ठहराया, और मुझे कुल्टा, कुलक्षणी और न जाने क्या क्या बोल कर वहा से निकाल दिया। घर पे सिर्फ एक बूढ़ी मां थी उसके साथ कुछ 4 साल रही फिर मेरी मां का भी देहांत हो गया, तो दीदी ने मुझे अपने पास बुला लिया। अभि दो साल से यहां इस गांव में रह रही हूं। और इस हवेली में काम करती हूं।

रमिया की बाते अभय गौर से सुनते हुए बोला...

अभय -- मतलब जिंदगी ने तुम्हारे साथ भी खेला है?

ये सुनकर रमिया बोली...

रमिया -- अब क्या करे बाबू जी, नसीब पर किसका जोर है? जो नसीब में लिखा है वो तो होकर ही रहता है। और शायद मेरी नसीब में यही लिखा था।

रमिया की बात सुनकर, अभय कुछ सोच में पड़ गया ...

रमिया -- क्या सोचने लगे बाबू जी, कहीं तुमको हमारे ऊपर तरस तो नही आ रहा है?

अभय -- नही बस सोच रहा था कुछ, खैर छोड़ो वो सब नसीब की बातें। तो आज से तुम ही मेरे लिए खाना पीना बना कर लाओगी?

रमिया -- जी बाबू जी।

अभय -- और ये सब करने के लिए जरूर तुम्हे इस गांव की ठाकुराइन ने कहा होगा?

रमिया -- हां...लेकिन ये आपको कैसे पता?

ये सुनकर अभि थोड़ा मुस्कुराते हुए बोला...

अभय -- वो क्या है ना, मैं भी तुम्हारी ही तरह नसीब का मारा हूं, तो मुझे लगा शायद ठाकुराइन को मुझ बेचारे पर तरस आ गया हो और उन्होंने मेरी अच्छी खातिरदारी के लिए तुम्हे भेज दिया हो, चलो अब जब आ ही गई हो तो, ये लो।

अभय ने अपने जेब से कुछ निकलते हुए उस औरत के हाथ में थमा दिया, जब औरत ने ध्यान दिया तो, उसके हाथो में 500 के नोटो की गड्डी थी। जिसे देख कर वो औरत बोली...

रमिया --"ये ...ये पैसे क्यों बाबू जी?

अभय एक बार फिर मुस्कुराया और बोला...

अभय -- ये तुम्हारी तनख्वाह है, तुम जब आ ही गई हो तो, मेरे लिए खाना पीना बना दिया करो। मगर ठाकुराइन के पंचभोग मुझसे नही पचेँगे। और हां ये बात जा कर ठाकुराइन से जरूर बताना।
रमिया तो अभय को देखते रह गई, कुछ पल यूं ही देखने के बाद वो बोली...

रमिया -- तुम्हारा नाम क्या है बाबू जी?

अभय -- (मुस्कुराते हुए) मेरा नाम अभय है।

रमिया – क्या.....

रमिया जोर से चौंकी....!! और रमिया को इस तरह चौंकते देख अभय बोला।

अभि -- अरे!! क्या हुआ ? नाम में कुछ गडबड है क्या?

रमिया -- अरे नही बाबू जी। वो क्या है ना, इस गांव में एक लड़की है पायल नाम की, कहते है अभय नाम का ही ठाकुराइन का इकलौता बेटा भी था। जो शायद बरसो पहले इसी गांव के पीछे वाले जंगल में उसकी लाश मिली थी। और ये पायल उस लड़के की पक्की दोस्त थी, लेकिन बेचारी जब से उसने अभय की मौत की खबर सुनी है तब से आज तक हंसी नहीं है। दिन भर खोई खोई सी रहती है।

अभय रमिया की बात सुनकर खुद हैरान था, पायल की बात तो बाद की बात थी पर अपनी मौत की बात पर उसे सदमा बैठ गया था। लेकिन उस बारे में ज्यादा न सोचते हुए जब उसका ध्यान रमिया के द्वारा कहे हुए पायल की हालत पर पड़ा , तो उसका दिल तड़प कर रह गया...और उससे रहा नही गया और झट से बोल पड़ा।

अभय -- तो...तो...तो उस अभय की मौत हो गई है, ये जानते हुए भी वो आ...आज भी उसके बारे में सोचती है।

रमिया -- सोचती है, अरे ये कहो बाबू जी की, जब देखो तब अभय के बारे में ही बात करती रहती है।

ये सुनकर अभय खुद को किताबो में व्यस्त करते हुए बोला...

अभय -- अच्छा, तो...तो क्या कहती वो अभय के बारे में?

रमिया -- अरे पूछो मत बाबू जी, उसकी तो बाते ही खत्म नहीं होती। मेरा अभय ऐसा है, मेरा अभय वैसा है, देखना जब आएगा वो तो मेरे लिए ढेर सारी चूड़ियां लेकर आएगा। चूड़ियां लेने ही तो गया है वो, पर शायद उसे मेरी पसंद की चूड़ियां नही मिल रही होगी इस लिए वो डर के मारे नही आ रहा है सोच रहा होगा की मुझे अगर पसंद नहीं आएगी तो मै नाराज हो जाऊंगी उससे। ये सब कहते हुए बेचारी का मुंह लटक जाता है और फिर न जाने कौन से रस में डूब कर अपने शब्द छोड़ते हुए बोलती है की, कोई बोलो ना उससे, की आ जाए वो, नही चाहिए मुझे चूड़ियां मुझे तो वो ही चाहिए उसके बिना कुछ अच्छा नहीं लगता। क्या बताऊं बाबू जी दीवानी है वो, मगर अब उसे कौन समझाए की जिसका वो इंतजार कर रही है, अब वो कभी लौट कर नहीं आने वाला (हस्ते हुए) और बाबू जी वो अमन तो मजनू की तरह घूमता रहता है पायल के पीछे कोई मौका नहीं छोड़ता पायल को पटाने का लेकिन उसकी किस्मत कभी उसका साथ नहीं देती है इसमें

रमिया की बाते सुन कर अभय की आंखे भर आई , उसका गला भारी हो गया था। दिल में तूफान उठने लगे थे, उसका दिल इस कदर बेताबी धड़कने लगा था की, उसका दिल कर रहा था की अभि वो पायल के पास जाए और उसे अपनी बाहों में भर कर बोल दे की मैं ही हूं तेरा अभय। मगर तभी रमिया के आखरी शब्द उसके कान में पड़ते ही..... उसके दिमाग का पारा ही बढ़ता चला गया......

गुस्से में आंखे लाल होने लगी, और अपनी हाथ के पंजों को मुठ्ठी में तब्दील करते हुए, अपनी दातों को पिस्ता ही रह गया

अभय -- ये अमन कौन है? जो उस लड़की के पीछे हाथ धो कर पड़ा है?

रमिया -- अमन वही तो ठाकुर साहब का बेटा है। ठकुराइन का दुलारा है सच कहूं तो ठाकुराइन के लाड - प्यार ने बहुत बिगाड़ दिया है छोटे मालिक को।

अभय --ओह...तो ये बात है। ठाकुराइन का दुलारा है वो?

रमिया -- जी बाबू साहब

अभय को शायद पता था , की यूं ही गुस्से की आग में जलना खुद को परेशान करने जैसा है, इसलिए वो खुद को शांत करते हुए प्यार से बोला...

अभय -- वैसे ...वो लड़की, क्या नाम बताया तुमने उसका?

रमिया -- पायल...

अभय -- हां... पायल, दिखने में कैसी है वो?

अभय की बात सुनकर, रमिया हल्के से मुस्कुराई...और फिर बोली..

रमिया -- क्या बात है बाबू साहब? कही आप भी तो उसके दीवाने तो नही होते जा रहे है

रमिया की बात सुनकर, अभि भी हल्की मुस्कान की चादर ओढ़ लेता है, फिर बोला...

अभय -- मैं तो हर तरह की औरत का दीवाना हूं, फिर चाहे वो गोरी हो या काली, खूबसूरत हो या बदसूरत, बस उसकी सीरत सही हो।

अभय की बात सुनकर, रमिया अभि को अपनी सांवली निगाहों से देखती रह जाति है, और ये बात अभि को पता चल जाति है। तभी अभि एक दफा फिर से बोला...

अभय -- वैसे तुम्हारी सीरत भी काफी अच्छी मालूम पड़ रही है, जो मेरे लिए खाना बनाने चली आई।
अभय की बात सुनकर, रमिया थोड़ा शरमा गई और पलके झुकते हुए बोली...

रमिया -- उससे क्या होता है बाबू जी,ये तो मेरा काम है, ठाकुराइन ने भेजा तो मैं चली आई। सिर्फ इसकी वजह से ही आप मेरे बारे में इतना कैसे समझ सकते है?

अभय -- अच्छा तो तुम ये कहना चाहती हो की, तुम अच्छी सीरत वाली औरत नही हो?

अभय की बात सुनकर, रमिया की झुकी हुई पलके झट से ऊपर उठी और फट से बोल पड़ी...

रमिया -- नही, मैने ऐसा कब कहा? मैने आज तक कभी कोई गलत काम नही किया।

रमिया की चौकाने वाली हालत देख कर अभि मन ही मन मुस्कुराया और बोला...

अभय -- तो मै भी तो इसके लिए ही बोला था, की तुम मुझे एक अच्छी औरत लगी। पर अभी जो तुमने कहा उसका मतलब मैं नहीं समझा?

रमिया ये सुनकर मासूमियत से बोली...

रमिया -- मैने क्या कहा...?

अभय -- यही की तुमने आज तक कुछ गलत काम नही किया, किस काम के बारे में बात कर रही हो तुम?

कहते हुए अभय रमिया की आंखो में देखते हुए मुस्कुरा पड़ा, और अभय की ये हरकत देख कर...

रमिया -- धत्...तुंब्भी ना बाबू जी...(और दोनो मुस्कुराने लगते है)

अभय – ठीक है रमिया मैं जरा बाहर जा के टहल के आता हू

रमिया – अरे बाबू जी कहा आप बाहर जा रहे हो यहां गांव में सारी सुविधा हो गई है और हॉस्टल में भी बाथरूम है आपको बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी

अभय –(हस्ते हुए) अरे नही मेरी आदत है रोज सुबह सुबह दौड़ लगाने की इसको (exercise) व्यायाम बोलते है समझी

रमिया –(हस्ते हुए) बाबू जी हमे भी थोड़ी थोड़ी अंग्रेजी आती है

अभय –ठीक है मिलता हू बाद में

बोल के अभय निकल गया एक्सरसाइज करने खेतो की तरफ दौड़ लगाता जा रहा था अभय और पहौच गया आम के बाग में चारो तरफ देखने लगा जहा हर तरफ हरियाली ही हरियाली दिख रही थी उसे मुस्कुराते हुए पलट के वापस जाने लगा चलते हुए अभय ने अपने सामने किसी को आते देखा नजदीक आते हुए शक्स को देख के अभय मुस्कुराने लगा

शक्स – अरे बाबू साहब आप यहां इतनी सुबह सुबह

अभय – हा वो exercise मेरा मतलब व्यायाम कर रहा था

शक्स –(मुस्कुराते हुए) हा समझ गया बाबू साहेब शहर में व्यायाम कोई नही बोलता इसे एक्सरसाइज बोलते है

अभय – बाबा आप इस वक्त कहा जा रहे है

शक्स – शहर जा रहा हू खेती का सामान लेने वैसे आपका बहुत बहुत धन्यवाद बाबू साहब आपने जो कल किया उसके चलते हमे हमारी जमीन वापस मिल गई

अभय – मैने एसा कुछ नही किया बाबा वो तो पेड़ काटने वालो को रोका था मैने बस और ये सब हो गया अपने आप

शक्स – आपका नाम क्या है बाबू साहब

अभय – जी मेरा नाम अभी है और आप

शक्स –(नाम सुनते ही गौर से देखने लगा अभय को) मेरा नाम सत्या शर्मा है

अभय –(मुस्कुराते हुए) अच्छा बाबा चलता हू फिर मिलूगा आपसे

अभय तो निकल गया लेकिन पीछे सत्या शर्मा अभय को जाते हुए देखते रहे जब तक अभय उनकी नजरो सो उझोल ना हो गया

सत्या शर्मा – (मन में बाते करने लगे) ये लड़का इतना जाना पहचाना सा क्यों लगता है मिलते ही बाबा बोलने लगा के ये नही नही लगता है आज कल ज्यादा ही सोचने लगा हू मै

इस तरफ अभय अपने हॉस्टल में आगया आते ही फ्रेश होके तयार हुआ तभी

रमिया – बाबू जी आईये नाश्ता कर लीजिए

अभय – तुमने नाश्ता बना भी दिया इतनी जल्दी

रमिया – यह पर अकेले आप ही हो हॉस्टल हो बाबू जी

अभय –(नाश्ता करने के बाद) बहुत अच्छा बनाया तुमने नाश्ता मजा आगया अच्छा सुनो मैं जरा गांव घूम के आता हू दिन भर क्या करूंगा यह पे घूम लेता हू

रमिया – ठीक है बाबू जी मैं भी जाति हू बाजार से खाने पीने का इंतजाम करने खाना...

अभय – रात में खाऊंगा खाना मैं अब तुम आराम कार्लो आज के लिए ठीक है

इतना बोल के अभय गांव की तरफ निकल गया घूमने उसके जाते ही रमिया भी निकल गई हवेली की तरफ जैसे ही रमिया हवेली में दाखिल हुई तभी सामने संध्या मिल गई उसे

संध्या – क...क्या हुआ रमिया? तू...तूने उस लड़के को खाना खिलाया की नही?

रमिया -- मालकिन अभी बाबू जी को नाश्ता करा के आ रही हू खाना बाबू जी सीधे रात में खाएगे बस समान लेने ही जा रही थी मालकिन खाने पीने का।

संध्या -- तू उसकी चिंता मत कर मैने बिरजू से कह दिया है सब सम्मान 1 घंटे में वहा पहुंच जाएगा

संध्या की बात सुनकर, रमिया थोड़ा चौंकते हुए बोली...

रमिया -- ये क्या कर दिया आपने मालकिन?

रमिया की बातो से अब संध्या भी हैरान थी....

संध्या -- क्या कर दिया मैने...मतलब?

रमिया -- अरे...मालकिन, वो बाबू साहेब बड़े खुद्दार है, मेरे जाते ही वो समझ गए की मुझे आपने ही भेजा है। इसलिए उन्होंने मुझे वो पैसे देते हुए बोले की...ठाकुराइन से जा कर बोल देना की उनकी हवेली के पंचभोग मुझे नही पचेंगे, तो तुम मेरे ही पैसे से सब कुछ खरीद कर लाना।

रमिया की बात सुनकर संध्या का दिल एक बार फिर कलथ कर रह गया। और मायूस होकर सोफे पर बैठते हुए अपना हाथ सिर पर रख लेती है...

संध्या को इस तरह से परेशान देख कर रमिया को अच्छा नहीं लगा और पूछा

रमिया – क्या हुआ मालकिन आप कुछ परेशान सी लग रही है। क्या सिर में दर्द हो रहा है आपके मैं अभी गरमा गर्म चाय लाती हो आपके लिए

संध्या – नही रमिया रहने दे तू जा बाजार से सामान लेले और अच्छा ही लेना और सुन मुझे बताती रहना उसके बारे में सब सिर्फ मुझे बताना किसी और को नही

रमिया –(अपनी मालकिन को ऐसी बात सुन के हैरान हो के बोली) जी मालकिन (बोल के जाने लगी थी की तभी पलट के बोली) वो मालकिन बाबू जी अभी गांव घूमने गए है

संध्या –अच्छा ठीक है तू जा कम निपटा के चली जाना वहा पे।

सोफे पे बैठे बैठे संध्या सोच ही रहे थी कुछ की तभी किसी ने पीछे से संध्या की आखों में हाथ रख दिया अचनक से ऐसा होने पे संध्या चौक गई

संध्या –(हल्का सा हस्ते हुए) हां पता है तू है, अब हटा ले हाथ।

ओ हो बड़ी मां, आप हर बार मुझे पहेचान लेती हो।

कहते हुए अमन , आगे आते हुए संध्या के बगल में बैठ जाता है और संध्या के गाल पर एक चुम्बन जड़ देता है। संध्या का मन तो ठीक नही था पर एक बनावटी हसीं चेहरे पर लाते हुए , वो भी अमन के माथे पर हाथ फेरते हुए बोली...

संध्या -- कैसे नही पहचानुगी , चल बता आज क्या चाहिए तुझे बिना वजह तू ऐसे मस्का नही मारता है

अमन -- (मुस्कुराते हुए) मेरी प्यारी अच्छा बड़ी मां मुझे ना एक नई बाइक पसंद आई है, वो लेना है मुझे।

अमन की बात सुनकर संध्या बोली...

संध्या -- ठीक है, कल चलकर ले लेना, अब खुश।

ये सुनकर अमन सच में बेहद खुश हुआ और उछलते हुए वो संध्या के गले लग जाता है और एक बार फिर से वो संध्या के गाल पर एक चुम्मी लेते हुए हवेली से बाहर निकल जाता है।

संध्या –(अमन को हवेली से बाहर जाते हुए देख खुद से बोली) आज अपने ही बेटे के सामने मेरी कोई हैसियत नही क्या कर दिया मैने ये भगवान इतनी बड़ी गलती कर दी मैने , क्या करू ऐसा मैं की बस एक बार अभय मुझे माफ कर दे , मेरी जान भी मांग ले तो उसके प्यार के चंद लम्हों के लिए अपनी जान देदू , शायद उसकी नज़रों में अब मेरी जान की भी कोई हैसियत नहीं , दिल में प्यार होकर भी उसको कभी प्यार ना जाता पाई , जब उसे मेरे प्यार की जरूरत थी , तब मैंने उसे सिर्फ मार पीट के अलावा कुछ नही दिया। आज उसे मेरी जरूरत नहीं, आखिर क्यों होगी उसे मेरी जरूरत? क्या दे सकती हूं उसे मैं? कुछ नही। दिल तड़पता है उसके पास जाने को, मगर हिम्मत नही होती अब तो मेरे पास सिर्फ शर्मिंदगी के अलावा और कुछ नही है। काश वो मुझे माफ कर दे, भूल जाए वो सब जो मैने अपने पागलपन में किया शायद नही ऐसा लगता है एक दिन इसी तड़प के साथ ही दुनिया से ना चली जाऊं।

कहते है ना, जब इंसान खुद को इतना बेबस पता है तो, इसी तरह के हजारों सवाल करता है, वही संध्या कर रही थी। वो ये समझ चुकी थी की उसके लिए अभय को मनाना मतलब भगवान के दर्शन होने के जैसा है।

संध्या अभि सोफे पर बैठी ये सब बाते सोच ही रही थी की, तभी वहा रमन आ जाता है संध्या को यूं इस तरह बैठा देख, रमन बोला......

रमन -- क्या हुआ भाभी, यूं इस तरह से क्यूं बैठी हो?

संध्या ने अपनी नज़रे उठाई तो सामने रमन को खड़ा पाया।

संध्या -- कुछ नही, बस अपनी किस्मत पर हंस रही हूं।

संध्या की बात सुनकर, रमन समझ गया की संध्या क्या कहना चाहती है...

रमन -- तो तुमने ये बात पक्की कर ही ली है की, वो छोकरा अभय ही है।

रमन की बात सुनकर, संध्या भाऊक्ता से बोली...

संध्या -- कुछ बातों को पक्का करने के लिए किसी की सहमति या इजाजत की जरूरत नहीं पड़ती है रमन

संध्या की बाते सुनकर रमन ने कहा...

रमन -- क्या बात है भाभी, तुम तो इस लड़के से इतना प्यार जताने की कोशिश कर रही हो, जितना प्यार तुमने अपने सगे बेटे से भी नही की थी।

बस रमन की इस बाते से संध्या के दिल पे जो चोट आई....

संध्या -- (जोर से चिल्ला) चुप होजा रमन वर्ना अंजाम अच्छा नही होगा अभी के लिए तू चला जा मेरे सामने से..

रमन --(संध्या की बात को बीच में काटते हुए) हा वो तो मैं चला ही जाऊंगा भाभी, जब तुमने मुझे अपने दिल से भगा दिया तो अपने पास से भगा दोगी भी तो क्या फर्क पड़ेगा। वैसे अपने अपने दिल से तुम्हारे लिए किसी को भी निकाला बड़ा आसान सा है।

संध्या –(गुस्से में बोली) तू मेरे साथ खेल रहा है तेरा दिमाग पूरी तरह से खराब हो गया है रमन क्या मैने कभी बोला तुझसे के मैं प्यार करती हूं तुझे उस एक मनहूस रात जाने मै कैसे बहक गई जिसकी सजा मुझे आज तक मिल रही है और यहां तुझे तो कुछ समझ ही नही आ रहा है जो हर बार अपने आशिकों जैसे डायलॉग मरता है यहां पर मेरी दुनिया उजड़ी पड़ी है और तुझे आशिकी की पड़ी है। मेरा बेटा मुझसे नाराज़ है, मुझे देखना भी नही पसंद करता, उसकी जिंदगी में मेरी अहमियत है भी या नहीं कुछ नही पता और तू यह आशिकी करने बैठा है समझा रहे हू तुझे खेलना बंद करदे मुझसे रमन
संध्या का ये रूप देख कर रमन कुछ देर शांत रहा और फिर बोला...
रमन -- हमारे और तुम्हारे बीच कभी प्यार था ही नही भाभी, प्यार तो सिर्फ मैने किया था तुमसे इसलिए मैं आशिकी वाली बात करता हूं। पर तुमने तो कभी मुझसे प्यार किया ही नहीं।

इस बार संध्या का पारा कुछ ज्यादा ही गरम हो गया, गुस्से में चेहरा लाल हो गया दांत पीसते हुए...

संध्या -- (पागलों की तरह हस्ते हुए) प्यार और मैं अरे जब मैं अपने बेटे से प्यार नहीं कर पाई, तो तू , ललिता , मालती , अमन , निधि सब कौन से खेत की मूली हो तुमलोग (इतना बोल के संध्या अपने कमरे में चली गई

जबकि संध्या का ये भयानक रूप और बाते सुनकर, रमन की हवा निकल गई, शायद गांड़ भी जली होगी क्योंकि उसका धुआं नही उठता ना इसलिए पता नही चला 😂😂
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जारी रहेगा ✍️✍️
Superb and Fantastic Update
👌✍️👍🤘👏👏
Interzar Aglaa Update Kaa

✌️✋🤷‍♂️😉🤗😎
 

LOV mis

अलग हूं, पर गलत नहीं..!!👈🏻
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UPDATE 10


अभय के जाते ही, संध्या भी अपनी कार में बैठती है और हवेली के लिए निकल पड़ती है।

संध्या कार को ड्राइव तो कर रही थी, मगर उसका पूरा ध्यान सिर्फ अभय पर था। उसके दिल में जो दर्द था वो शायद वही समझ सकती थी। साथ उसके दिल को आज यकीन होगया की ये लड़का कोई और नहीं उसका बेटा अभय है। उसका दिल अभय के पास बैठ कर बाते करने को कर रहा था। वो अपनी की हुई गलती की माफ़ी मांगना चाहती थी, मगर आज एक बार फिर वो अभय की नजरों में गीर गई थी। संध्या के उपर आज वो इल्जाम लगा , जो उसने किया ही नहीं। और यही बात उसके दिमाग में बार बार चल रही थी।

संध्या की कार जल्द ही हवेली में दाखिल हुई, और वो कार से उतरी ही थी की, मुनीम उसके पैरो में गिड़गिड़ाते हुए गिर पड़ा...

मुनीम -- मुझे माफ कर दो ठाकुराइन, आखिर उसमे मेरी क्या गलती थी? जो आपने बोला वो ही तो मैने किया था? आपने कहा था की अगर अभय बाबा स्कूल नही जाते है तो, 4 से 5 घंटे धूप में पेड़ से बांध कर रखना। मैने तो आपकी आज्ञा का पालन हो किया था ना मालकिन, नही तो मेरी इतनी औकात कहा की मैं अभय बाबा के साथ ऐसा कर सकता।

गांव वालो की बीच आज जो हुआ उसके चलते संध्या का पारा बड़ा हुआ था उपर से अपने सामने मुनीम को देख और उसकी बात सुनकर, संध्या का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। उसने मुनीम को लात मरते हुए बोली...

संध्या -- हरामजादे तेरी हिम्मत कैसे हुई हवेली आने की बोला था मैने तुझे वापस मत आना और क्या कहा तूने मैने बोला था तुझे अपने बेटे को तपती धूप में पेड़ पे बांधने के लिए (तभी संध्या ने अपने लठहरो आवाज दे के बोली) तोड़ दो इस मुनीम के हाथ पैर वर्ना तुम सबके हाथ पैर तुड़वा दूंगी

उस वक्त ललिता आ गयी संध्या के पास

ललिता –(संध्या का हाथ पकड़ के)शांत हो जाओ दीदी आप (लठहरो से बोली) रुक जाओ इसको हवेली के बाहर छोर दो

संध्या –(गुस्से में) बच गया तू अब आखरी बार बोल रही हू मुनीम तुझे चला जा यहां से। और मुझे फिर दुबारा इस हवेली में मत दिखाई देना। मैं सच बोल रही हूं, मेरा दिमाग पागल हो चुका है, और इस पागलपन में मैं क्या कर बैठूंगी ये मुझे भी नही पता है। चले जाओ यहां से...

कहते हुए संध्या गुस्से में हवेली के अंदर चली जाति है। संध्या हाल में सोफे पर बैठी बड़ी गहरी सोच में थी। तभी ललिता पास आ कर बोली...

ललिता -- क्या हुआ दीदी? आप बहुत गुस्से में लग रही है?

संध्या -- ठीक कह रही है तू। और मेरी इस गुस्से का कारण तेरा ही मरद है।

ललिता -- मुझे तो ऐसा नहीं लगता दीदी।

संध्या -- क्या मतलब? गांव वालो की ज़मीन को जबरन हथिया कर मुझसे उसने बोला की गांव वालो ने मर्जी से अपनी जमीनें दी है। और आज यही बात जब सब गांव वालो के सामने उठी , तो मेरा नाम आया की मैने पैसे के बदले गांव वालो की ज़मीन पर कब्जा कर लिया है। तुझे पता भी है, की मुझे उस समय कैसा महसूस हो रहा था सब गांव वालो के सामने, खुद को जलील मेहसुस कर रही थी।

संध्या की बात सुनकर, ललिता भी थापक से बोल पड़ी...

ललिता -- गांव वालो के सामने, या उस लड़के के सामने?

संध्या --(हैरानी से) क्या मतलब??

मतलब ये की भाभी, उस लड़के के लिए तुम कुछ ज्यादा ही उतावली हो रही थी।

इस अनजानी आवाज़ को सुनकर ललिता और संध्या दोनो की नजरे घूमी, तो पाई सामने से रमन आ रहा था।

संध्या -- ओह...तो आ गए तुम? बहुत अच्छा काम किया है तुमने मुझे गांव वालो के सामने जलील करके।

रमन -- मैने किसी को भी जलील नही किया है भाभी, मैं तो बस पिता जी का सपना पूरा कर रहा था। अगर तुम्हारी नज़र में इससे जलील करना कहते हैं, तो उसके लिए मैं माफी मागता हूं। पर आज जो तुमने मेरे साथ किया , उसके लिए मैं क्या बोलूं? एक अजनबी लड़के लिए मेरे साथ इस तरह का व्यवहार? कमाल है भाभी.... आखिर क्यों??

ललिता -- अरे वो कोई अजनबी लड़का थोड़ी है? वो अपना अभय है?

ललिता की बात सुन कर , रमन के होश ही उड़ गए चेहरे का रंग उड़ गया था। और चौंकते हुए बोला...

रमन -- अ...अ...अभय...यहां पर ये कैसे हो सकता है!!!

ललिता -- हा अभय, ऐसा दीदी को लगता है। अभि उस लड़के को आए 5 घंटे भी नही हुए है, दो चार बाते क्या बोल दी उसने दीदी को उकसाने के लिए। दीदी तो उसे अपना बेटा ही मान बैठी।

रमन -- (ललिता की बात सुनके रमन को कुछ राहत मिली) ओह, तो ये बात है। तुम पगला गई हो भाभी? अपना अभय अब इस दुनिया में नही है कब का मर चुका है वो जंगल में लाश मिली थी उसकी भूल....

संध्या –(रमन की बात बीच में काटते हुए चिल्ला के बोली) यहीं है वो , कही नही गया है वो, आज आया है मेरा अभय मेरे पास। और मैं अब कोई भी गलती नही करना चाहती जिसकी वजह से वो मुझे फिर से छोड़ कर जाए। मैं तो उसके नजदीक जाने की कोशिश में लगी थी। लेकिन तुम्हारी घटिया हरकत का सबक मुझे मिला। एक बार फिर से मैं उसकी नजरों में गीर गई।

संध्या की जोर डर आवाज सुन के रमन भी एकदम चकित हुए संध्या को ही देख रहा था। फिर संध्या की बात सुनकर रमन ने कहा...

रमन -- ठीक है भाभी, अगर तुम्हे लगता है की मेरी गलती है, तो मै आज ही पूरे गांव वालो के सामने इसकी माफी मांगूंगा। सब गांव वालो को ये बताऊंगा की, ये जमीन की बात तुम्हे नही पता थी। फिर शायद तुम्हारे दिल को तसल्ली मिल जाए। शायद वो अजनबी लड़के दिल में तुम्हारी इज्जत बन जाए।

संध्या -- अजनबी नही है वो रमन वो मेरा बेटा अभय है समझे तुम और अब कोई जरूरत नहीं है। जो हो गया सो हो गया।

रमन -- जरूरत है भाभी, क्यूं जरूरत नहीं है? एक अंजान लड़का आकार तुम्हारे सामने ना जाने क्या दो शब्द बोल देता है, और तुम्हे समय नहीं लगा ये यकीन करने में की वो तुम्हारा बेटा है। और वही मै अरे मैं ही क्या ? बल्कि पूरा गांव वालो ने अभय की लाश को अपनी आंखो से देखा उसका यकीन नही है तुम्हे, जब तुमने फैसला कर ही लिया है तो जाओ बुलाओ उसको हवेली में और बना दो उसे इस हवेली का वारिस।

संध्या –(ताली बजा के हस्ते हुए) वाह रमन वाह एक्टिंग करना तो कोई तुमसे सीखे एक तरफ तुम मुझसे बोल रहे हो माफी मांगोगे तुम गांव वालो से तो क्या होगा उससे मैं बताऊं इस बार गांव वाले ये बोलोगे की ठकुराइन का नाम बना रहे इसलिए रमन को भेजा ताकी गांव वालो के सामने सारा इल्जाम अपने सिर लेले अगर एसा करना होता तुम्हे रमन तो यू गांव वालो के बीच तुम्हे पसीने नही आते

इतना बोल के पलट के जाने लगी की तभी वापस पलट के संध्या बोली

संध्या – और एक बात अच्छे से समझ लो अपने अभय के लिए मैं एक शब्द बरदाश नही करूगी चाहे कुछ भी करना पड़े मुझे मैं अपने अभय को वापस जरूर लाऊगी। अब जाके सो जाओ रात बहुत हो चुकी है।

संध्या बोल के चली गई लेकिन अपने पीछे छोड़ गई रमन और ललिता को जिनके मु खुले के खुले रह गए थे संध्या की बात से दोनो बिना कुछ बोले चल गए अपने कमरे में सोने

सुबह के 6 बज रहे थे, अभि सो कर उठा था। नींद पूरी हुई तो दिमाग भी शांत था। उसे ऐसा लग रहा था मानो जैसे सर से बहुत बड़ा बोझ उतर गया हो। वो उठ कर अपने बेड पर बैठा था, और कुछ सोच रहा था की तभी...

लीजिए, ये चाय पी लीजिए...

अभय ने अपनी नजर उठा कर उस औरत की तरफ देखा गोरे रंग की करीब 35 साल की वो औरत अभय को देख कर मुस्कुरा रही थी। अभय ने हाथ बढ़ा कर चाय लेते हुए बोला...

अभय -- तो तुम इस हॉस्टल में खाने पीने की देखभाल करती हो?

कहते हुए अभय ने चाय की चुस्कियां लेने लगा...

जी हां, वैसे भी इस हॉस्टल में तो कोई रहता नही है। आप अकेले ही हो। तो मुझे ज्यादा काम नहीं पड़ेगा।

अभय -- hmmm... वैसे तुम्हारा नाम क्या है

मेरा नाम रमिया है।

अभय उस औरत को पहचानने की कोशिश कर रहा था। लेकिन पहचान नही पाया इसलिए उसने रमिया से पूछा...

अभय -- तो तुम इसी गांव की हो?

रमिया -- नही, मैं इस गांव की तो नही। पर हां अब इसी गांव में रहती हूं।

अभय -- कुछ समझा नही मैं? इस गांव की नही हो पर इसी गांव में रहती हो...क्या मतलब इसका?

अभय की बात सुनकर रमिया जवाब में बोली...

रमिया -- इस गांव की मेरी दीदी है। मेरा ब्याह हुआ था, पर ब्याह के एक दिन बाद ही मेरे पति की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। ससुराल वालो ने इसका जिम्मेदार मुझे ठहराया, और मुझे कुल्टा, कुलक्षणी और न जाने क्या क्या बोल कर वहा से निकाल दिया। घर पे सिर्फ एक बूढ़ी मां थी उसके साथ कुछ 4 साल रही फिर मेरी मां का भी देहांत हो गया, तो दीदी ने मुझे अपने पास बुला लिया। अभि दो साल से यहां इस गांव में रह रही हूं। और इस हवेली में काम करती हूं।

रमिया की बाते अभय गौर से सुनते हुए बोला...

अभय -- मतलब जिंदगी ने तुम्हारे साथ भी खेला है?

ये सुनकर रमिया बोली...

रमिया -- अब क्या करे बाबू जी, नसीब पर किसका जोर है? जो नसीब में लिखा है वो तो होकर ही रहता है। और शायद मेरी नसीब में यही लिखा था।

रमिया की बात सुनकर, अभय कुछ सोच में पड़ गया ...

रमिया -- क्या सोचने लगे बाबू जी, कहीं तुमको हमारे ऊपर तरस तो नही आ रहा है?

अभय -- नही बस सोच रहा था कुछ, खैर छोड़ो वो सब नसीब की बातें। तो आज से तुम ही मेरे लिए खाना पीना बना कर लाओगी?

रमिया -- जी बाबू जी।

अभय -- और ये सब करने के लिए जरूर तुम्हे इस गांव की ठाकुराइन ने कहा होगा?

रमिया -- हां...लेकिन ये आपको कैसे पता?

ये सुनकर अभि थोड़ा मुस्कुराते हुए बोला...

अभय -- वो क्या है ना, मैं भी तुम्हारी ही तरह नसीब का मारा हूं, तो मुझे लगा शायद ठाकुराइन को मुझ बेचारे पर तरस आ गया हो और उन्होंने मेरी अच्छी खातिरदारी के लिए तुम्हे भेज दिया हो, चलो अब जब आ ही गई हो तो, ये लो।

अभय ने अपने जेब से कुछ निकलते हुए उस औरत के हाथ में थमा दिया, जब औरत ने ध्यान दिया तो, उसके हाथो में 500 के नोटो की गड्डी थी। जिसे देख कर वो औरत बोली...

रमिया --"ये ...ये पैसे क्यों बाबू जी?

अभय एक बार फिर मुस्कुराया और बोला...

अभय -- ये तुम्हारी तनख्वाह है, तुम जब आ ही गई हो तो, मेरे लिए खाना पीना बना दिया करो। मगर ठाकुराइन के पंचभोग मुझसे नही पचेँगे। और हां ये बात जा कर ठाकुराइन से जरूर बताना।
रमिया तो अभय को देखते रह गई, कुछ पल यूं ही देखने के बाद वो बोली...

रमिया -- तुम्हारा नाम क्या है बाबू जी?

अभय -- (मुस्कुराते हुए) मेरा नाम अभय है।

रमिया – क्या.....

रमिया जोर से चौंकी....!! और रमिया को इस तरह चौंकते देख अभय बोला।

अभि -- अरे!! क्या हुआ ? नाम में कुछ गडबड है क्या?

रमिया -- अरे नही बाबू जी। वो क्या है ना, इस गांव में एक लड़की है पायल नाम की, कहते है अभय नाम का ही ठाकुराइन का इकलौता बेटा भी था। जो शायद बरसो पहले इसी गांव के पीछे वाले जंगल में उसकी लाश मिली थी। और ये पायल उस लड़के की पक्की दोस्त थी, लेकिन बेचारी जब से उसने अभय की मौत की खबर सुनी है तब से आज तक हंसी नहीं है। दिन भर खोई खोई सी रहती है।

अभय रमिया की बात सुनकर खुद हैरान था, पायल की बात तो बाद की बात थी पर अपनी मौत की बात पर उसे सदमा बैठ गया था। लेकिन उस बारे में ज्यादा न सोचते हुए जब उसका ध्यान रमिया के द्वारा कहे हुए पायल की हालत पर पड़ा , तो उसका दिल तड़प कर रह गया...और उससे रहा नही गया और झट से बोल पड़ा।

अभय -- तो...तो...तो उस अभय की मौत हो गई है, ये जानते हुए भी वो आ...आज भी उसके बारे में सोचती है।

रमिया -- सोचती है, अरे ये कहो बाबू जी की, जब देखो तब अभय के बारे में ही बात करती रहती है।

ये सुनकर अभय खुद को किताबो में व्यस्त करते हुए बोला...

अभय -- अच्छा, तो...तो क्या कहती वो अभय के बारे में?

रमिया -- अरे पूछो मत बाबू जी, उसकी तो बाते ही खत्म नहीं होती। मेरा अभय ऐसा है, मेरा अभय वैसा है, देखना जब आएगा वो तो मेरे लिए ढेर सारी चूड़ियां लेकर आएगा। चूड़ियां लेने ही तो गया है वो, पर शायद उसे मेरी पसंद की चूड़ियां नही मिल रही होगी इस लिए वो डर के मारे नही आ रहा है सोच रहा होगा की मुझे अगर पसंद नहीं आएगी तो मै नाराज हो जाऊंगी उससे। ये सब कहते हुए बेचारी का मुंह लटक जाता है और फिर न जाने कौन से रस में डूब कर अपने शब्द छोड़ते हुए बोलती है की, कोई बोलो ना उससे, की आ जाए वो, नही चाहिए मुझे चूड़ियां मुझे तो वो ही चाहिए उसके बिना कुछ अच्छा नहीं लगता। क्या बताऊं बाबू जी दीवानी है वो, मगर अब उसे कौन समझाए की जिसका वो इंतजार कर रही है, अब वो कभी लौट कर नहीं आने वाला (हस्ते हुए) और बाबू जी वो अमन तो मजनू की तरह घूमता रहता है पायल के पीछे कोई मौका नहीं छोड़ता पायल को पटाने का लेकिन उसकी किस्मत कभी उसका साथ नहीं देती है इसमें

रमिया की बाते सुन कर अभय की आंखे भर आई , उसका गला भारी हो गया था। दिल में तूफान उठने लगे थे, उसका दिल इस कदर बेताबी धड़कने लगा था की, उसका दिल कर रहा था की अभि वो पायल के पास जाए और उसे अपनी बाहों में भर कर बोल दे की मैं ही हूं तेरा अभय। मगर तभी रमिया के आखरी शब्द उसके कान में पड़ते ही..... उसके दिमाग का पारा ही बढ़ता चला गया......

गुस्से में आंखे लाल होने लगी, और अपनी हाथ के पंजों को मुठ्ठी में तब्दील करते हुए, अपनी दातों को पिस्ता ही रह गया

अभय -- ये अमन कौन है? जो उस लड़की के पीछे हाथ धो कर पड़ा है?

रमिया -- अमन वही तो ठाकुर साहब का बेटा है। ठकुराइन का दुलारा है सच कहूं तो ठाकुराइन के लाड - प्यार ने बहुत बिगाड़ दिया है छोटे मालिक को।

अभय --ओह...तो ये बात है। ठाकुराइन का दुलारा है वो?

रमिया -- जी बाबू साहब

अभय को शायद पता था , की यूं ही गुस्से की आग में जलना खुद को परेशान करने जैसा है, इसलिए वो खुद को शांत करते हुए प्यार से बोला...

अभय -- वैसे ...वो लड़की, क्या नाम बताया तुमने उसका?

रमिया -- पायल...

अभय -- हां... पायल, दिखने में कैसी है वो?

अभय की बात सुनकर, रमिया हल्के से मुस्कुराई...और फिर बोली..

रमिया -- क्या बात है बाबू साहब? कही आप भी तो उसके दीवाने तो नही होते जा रहे है

रमिया की बात सुनकर, अभि भी हल्की मुस्कान की चादर ओढ़ लेता है, फिर बोला...

अभय -- मैं तो हर तरह की औरत का दीवाना हूं, फिर चाहे वो गोरी हो या काली, खूबसूरत हो या बदसूरत, बस उसकी सीरत सही हो।

अभय की बात सुनकर, रमिया अभि को अपनी सांवली निगाहों से देखती रह जाति है, और ये बात अभि को पता चल जाति है। तभी अभि एक दफा फिर से बोला...

अभय -- वैसे तुम्हारी सीरत भी काफी अच्छी मालूम पड़ रही है, जो मेरे लिए खाना बनाने चली आई।
अभय की बात सुनकर, रमिया थोड़ा शरमा गई और पलके झुकते हुए बोली...

रमिया -- उससे क्या होता है बाबू जी,ये तो मेरा काम है, ठाकुराइन ने भेजा तो मैं चली आई। सिर्फ इसकी वजह से ही आप मेरे बारे में इतना कैसे समझ सकते है?

अभय -- अच्छा तो तुम ये कहना चाहती हो की, तुम अच्छी सीरत वाली औरत नही हो?

अभय की बात सुनकर, रमिया की झुकी हुई पलके झट से ऊपर उठी और फट से बोल पड़ी...

रमिया -- नही, मैने ऐसा कब कहा? मैने आज तक कभी कोई गलत काम नही किया।

रमिया की चौकाने वाली हालत देख कर अभि मन ही मन मुस्कुराया और बोला...

अभय -- तो मै भी तो इसके लिए ही बोला था, की तुम मुझे एक अच्छी औरत लगी। पर अभी जो तुमने कहा उसका मतलब मैं नहीं समझा?

रमिया ये सुनकर मासूमियत से बोली...

रमिया -- मैने क्या कहा...?

अभय -- यही की तुमने आज तक कुछ गलत काम नही किया, किस काम के बारे में बात कर रही हो तुम?

कहते हुए अभय रमिया की आंखो में देखते हुए मुस्कुरा पड़ा, और अभय की ये हरकत देख कर...

रमिया -- धत्...तुंब्भी ना बाबू जी...(और दोनो मुस्कुराने लगते है)

अभय – ठीक है रमिया मैं जरा बाहर जा के टहल के आता हू

रमिया – अरे बाबू जी कहा आप बाहर जा रहे हो यहां गांव में सारी सुविधा हो गई है और हॉस्टल में भी बाथरूम है आपको बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी

अभय –(हस्ते हुए) अरे नही मेरी आदत है रोज सुबह सुबह दौड़ लगाने की इसको (exercise) व्यायाम बोलते है समझी

रमिया –(हस्ते हुए) बाबू जी हमे भी थोड़ी थोड़ी अंग्रेजी आती है

अभय –ठीक है मिलता हू बाद में

बोल के अभय निकल गया एक्सरसाइज करने खेतो की तरफ दौड़ लगाता जा रहा था अभय और पहौच गया आम के बाग में चारो तरफ देखने लगा जहा हर तरफ हरियाली ही हरियाली दिख रही थी उसे मुस्कुराते हुए पलट के वापस जाने लगा चलते हुए अभय ने अपने सामने किसी को आते देखा नजदीक आते हुए शक्स को देख के अभय मुस्कुराने लगा

शक्स – अरे बाबू साहब आप यहां इतनी सुबह सुबह

अभय – हा वो exercise मेरा मतलब व्यायाम कर रहा था

शक्स –(मुस्कुराते हुए) हा समझ गया बाबू साहेब शहर में व्यायाम कोई नही बोलता इसे एक्सरसाइज बोलते है

अभय – बाबा आप इस वक्त कहा जा रहे है

शक्स – शहर जा रहा हू खेती का सामान लेने वैसे आपका बहुत बहुत धन्यवाद बाबू साहब आपने जो कल किया उसके चलते हमे हमारी जमीन वापस मिल गई

अभय – मैने एसा कुछ नही किया बाबा वो तो पेड़ काटने वालो को रोका था मैने बस और ये सब हो गया अपने आप

शक्स – आपका नाम क्या है बाबू साहब

अभय – जी मेरा नाम अभी है और आप

शक्स –(नाम सुनते ही गौर से देखने लगा अभय को) मेरा नाम सत्या शर्मा है

अभय –(मुस्कुराते हुए) अच्छा बाबा चलता हू फिर मिलूगा आपसे

अभय तो निकल गया लेकिन पीछे सत्या शर्मा अभय को जाते हुए देखते रहे जब तक अभय उनकी नजरो सो उझोल ना हो गया

सत्या शर्मा – (मन में बाते करने लगे) ये लड़का इतना जाना पहचाना सा क्यों लगता है मिलते ही बाबा बोलने लगा के ये नही नही लगता है आज कल ज्यादा ही सोचने लगा हू मै

इस तरफ अभय अपने हॉस्टल में आगया आते ही फ्रेश होके तयार हुआ तभी

रमिया – बाबू जी आईये नाश्ता कर लीजिए

अभय – तुमने नाश्ता बना भी दिया इतनी जल्दी

रमिया – यह पर अकेले आप ही हो हॉस्टल हो बाबू जी

अभय –(नाश्ता करने के बाद) बहुत अच्छा बनाया तुमने नाश्ता मजा आगया अच्छा सुनो मैं जरा गांव घूम के आता हू दिन भर क्या करूंगा यह पे घूम लेता हू

रमिया – ठीक है बाबू जी मैं भी जाति हू बाजार से खाने पीने का इंतजाम करने खाना...

अभय – रात में खाऊंगा खाना मैं अब तुम आराम कार्लो आज के लिए ठीक है

इतना बोल के अभय गांव की तरफ निकल गया घूमने उसके जाते ही रमिया भी निकल गई हवेली की तरफ जैसे ही रमिया हवेली में दाखिल हुई तभी सामने संध्या मिल गई उसे

संध्या – क...क्या हुआ रमिया? तू...तूने उस लड़के को खाना खिलाया की नही?

रमिया -- मालकिन अभी बाबू जी को नाश्ता करा के आ रही हू खाना बाबू जी सीधे रात में खाएगे बस समान लेने ही जा रही थी मालकिन खाने पीने का।

संध्या -- तू उसकी चिंता मत कर मैने बिरजू से कह दिया है सब सम्मान 1 घंटे में वहा पहुंच जाएगा

संध्या की बात सुनकर, रमिया थोड़ा चौंकते हुए बोली...

रमिया -- ये क्या कर दिया आपने मालकिन?

रमिया की बातो से अब संध्या भी हैरान थी....

संध्या -- क्या कर दिया मैने...मतलब?

रमिया -- अरे...मालकिन, वो बाबू साहेब बड़े खुद्दार है, मेरे जाते ही वो समझ गए की मुझे आपने ही भेजा है। इसलिए उन्होंने मुझे वो पैसे देते हुए बोले की...ठाकुराइन से जा कर बोल देना की उनकी हवेली के पंचभोग मुझे नही पचेंगे, तो तुम मेरे ही पैसे से सब कुछ खरीद कर लाना।

रमिया की बात सुनकर संध्या का दिल एक बार फिर कलथ कर रह गया। और मायूस होकर सोफे पर बैठते हुए अपना हाथ सिर पर रख लेती है...

संध्या को इस तरह से परेशान देख कर रमिया को अच्छा नहीं लगा और पूछा

रमिया – क्या हुआ मालकिन आप कुछ परेशान सी लग रही है। क्या सिर में दर्द हो रहा है आपके मैं अभी गरमा गर्म चाय लाती हो आपके लिए

संध्या – नही रमिया रहने दे तू जा बाजार से सामान लेले और अच्छा ही लेना और सुन मुझे बताती रहना उसके बारे में सब सिर्फ मुझे बताना किसी और को नही

रमिया –(अपनी मालकिन को ऐसी बात सुन के हैरान हो के बोली) जी मालकिन (बोल के जाने लगी थी की तभी पलट के बोली) वो मालकिन बाबू जी अभी गांव घूमने गए है

संध्या –अच्छा ठीक है तू जा कम निपटा के चली जाना वहा पे।

सोफे पे बैठे बैठे संध्या सोच ही रहे थी कुछ की तभी किसी ने पीछे से संध्या की आखों में हाथ रख दिया अचनक से ऐसा होने पे संध्या चौक गई

संध्या –(हल्का सा हस्ते हुए) हां पता है तू है, अब हटा ले हाथ।

ओ हो बड़ी मां, आप हर बार मुझे पहेचान लेती हो।

कहते हुए अमन , आगे आते हुए संध्या के बगल में बैठ जाता है और संध्या के गाल पर एक चुम्बन जड़ देता है। संध्या का मन तो ठीक नही था पर एक बनावटी हसीं चेहरे पर लाते हुए , वो भी अमन के माथे पर हाथ फेरते हुए बोली...

संध्या -- कैसे नही पहचानुगी , चल बता आज क्या चाहिए तुझे बिना वजह तू ऐसे मस्का नही मारता है

अमन -- (मुस्कुराते हुए) मेरी प्यारी अच्छा बड़ी मां मुझे ना एक नई बाइक पसंद आई है, वो लेना है मुझे।

अमन की बात सुनकर संध्या बोली...

संध्या -- ठीक है, कल चलकर ले लेना, अब खुश।

ये सुनकर अमन सच में बेहद खुश हुआ और उछलते हुए वो संध्या के गले लग जाता है और एक बार फिर से वो संध्या के गाल पर एक चुम्मी लेते हुए हवेली से बाहर निकल जाता है।

संध्या –(अमन को हवेली से बाहर जाते हुए देख खुद से बोली) आज अपने ही बेटे के सामने मेरी कोई हैसियत नही क्या कर दिया मैने ये भगवान इतनी बड़ी गलती कर दी मैने , क्या करू ऐसा मैं की बस एक बार अभय मुझे माफ कर दे , मेरी जान भी मांग ले तो उसके प्यार के चंद लम्हों के लिए अपनी जान देदू , शायद उसकी नज़रों में अब मेरी जान की भी कोई हैसियत नहीं , दिल में प्यार होकर भी उसको कभी प्यार ना जाता पाई , जब उसे मेरे प्यार की जरूरत थी , तब मैंने उसे सिर्फ मार पीट के अलावा कुछ नही दिया। आज उसे मेरी जरूरत नहीं, आखिर क्यों होगी उसे मेरी जरूरत? क्या दे सकती हूं उसे मैं? कुछ नही। दिल तड़पता है उसके पास जाने को, मगर हिम्मत नही होती अब तो मेरे पास सिर्फ शर्मिंदगी के अलावा और कुछ नही है। काश वो मुझे माफ कर दे, भूल जाए वो सब जो मैने अपने पागलपन में किया शायद नही ऐसा लगता है एक दिन इसी तड़प के साथ ही दुनिया से ना चली जाऊं।

कहते है ना, जब इंसान खुद को इतना बेबस पता है तो, इसी तरह के हजारों सवाल करता है, वही संध्या कर रही थी। वो ये समझ चुकी थी की उसके लिए अभय को मनाना मतलब भगवान के दर्शन होने के जैसा है।

संध्या अभि सोफे पर बैठी ये सब बाते सोच ही रही थी की, तभी वहा रमन आ जाता है संध्या को यूं इस तरह बैठा देख, रमन बोला......

रमन -- क्या हुआ भाभी, यूं इस तरह से क्यूं बैठी हो?

संध्या ने अपनी नज़रे उठाई तो सामने रमन को खड़ा पाया।

संध्या -- कुछ नही, बस अपनी किस्मत पर हंस रही हूं।

संध्या की बात सुनकर, रमन समझ गया की संध्या क्या कहना चाहती है...

रमन -- तो तुमने ये बात पक्की कर ही ली है की, वो छोकरा अभय ही है।

रमन की बात सुनकर, संध्या भाऊक्ता से बोली...

संध्या -- कुछ बातों को पक्का करने के लिए किसी की सहमति या इजाजत की जरूरत नहीं पड़ती है रमन

संध्या की बाते सुनकर रमन ने कहा...

रमन -- क्या बात है भाभी, तुम तो इस लड़के से इतना प्यार जताने की कोशिश कर रही हो, जितना प्यार तुमने अपने सगे बेटे से भी नही की थी।

बस रमन की इस बाते से संध्या के दिल पे जो चोट आई....

संध्या -- (जोर से चिल्ला) चुप होजा रमन वर्ना अंजाम अच्छा नही होगा अभी के लिए तू चला जा मेरे सामने से..

रमन --(संध्या की बात को बीच में काटते हुए) हा वो तो मैं चला ही जाऊंगा भाभी, जब तुमने मुझे अपने दिल से भगा दिया तो अपने पास से भगा दोगी भी तो क्या फर्क पड़ेगा। वैसे अपने अपने दिल से तुम्हारे लिए किसी को भी निकाला बड़ा आसान सा है।

संध्या –(गुस्से में बोली) तू मेरे साथ खेल रहा है तेरा दिमाग पूरी तरह से खराब हो गया है रमन क्या मैने कभी बोला तुझसे के मैं प्यार करती हूं तुझे उस एक मनहूस रात जाने मै कैसे बहक गई जिसकी सजा मुझे आज तक मिल रही है और यहां तुझे तो कुछ समझ ही नही आ रहा है जो हर बार अपने आशिकों जैसे डायलॉग मरता है यहां पर मेरी दुनिया उजड़ी पड़ी है और तुझे आशिकी की पड़ी है। मेरा बेटा मुझसे नाराज़ है, मुझे देखना भी नही पसंद करता, उसकी जिंदगी में मेरी अहमियत है भी या नहीं कुछ नही पता और तू यह आशिकी करने बैठा है समझा रहे हू तुझे खेलना बंद करदे मुझसे रमन
संध्या का ये रूप देख कर रमन कुछ देर शांत रहा और फिर बोला...
रमन -- हमारे और तुम्हारे बीच कभी प्यार था ही नही भाभी, प्यार तो सिर्फ मैने किया था तुमसे इसलिए मैं आशिकी वाली बात करता हूं। पर तुमने तो कभी मुझसे प्यार किया ही नहीं।

इस बार संध्या का पारा कुछ ज्यादा ही गरम हो गया, गुस्से में चेहरा लाल हो गया दांत पीसते हुए...

संध्या -- (पागलों की तरह हस्ते हुए) प्यार और मैं अरे जब मैं अपने बेटे से प्यार नहीं कर पाई, तो तू , ललिता , मालती , अमन , निधि सब कौन से खेत की मूली हो तुमलोग (इतना बोल के संध्या अपने कमरे में चली गई

जबकि संध्या का ये भयानक रूप और बाते सुनकर, रमन की हवा निकल गई, शायद गांड़ भी जली होगी क्योंकि उसका धुआं नही उठता ना इसलिए पता नही चला 😂😂
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जारी रहेगा ✍️✍️
Superb and Fantastic Update
👌✍️👍🤘👏👏
Interzar Aglaa Update Kaa

✌️✋🤷‍♂️😉🤗😎
 
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