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"चलती हूॅ डैड।" सहसा रितू ने अपनी खूबसूरत कलाई पर बॅधी एक कीमती घड़ी पर नज़रें डालते हुए कहा__"मैं आपका पुलिस स्टेशन में इंतज़ार करूॅगी।" फिर उसने अभय की तरफ भी देख कर कहा__"चाचा जी आपका भी।"
इतना कहने के बाद ही वह खूबसूरत बला पलटी और लम्बे लम्बे डग भरती हुई ड्राइंगरूम से बाहर निकल गई। किन्तु उसके जाते ही वहाॅ पर ब्लेड की धार जैसा पैना सन्नाटा भी खिंच गया।
अजय सिंह का दिल जैसे धड़कना भूल गया था। उसे अपनी आंखों के सामने अॅधेरा सा नज़र आने लगा। जाने क्या सोचकर वह तनिक चौंका तथा साथ ही घबरा भी गया। फिर एक ठंडी साॅस खींचते हुए, तथा अपनी आॅखों को मूॅद कर सोफे की पिछली पुश्त से अपना पीठ व सिर टिका दिया। आॅख बंद करते ही उसे फैक्टरी के बेसमेंट मे बने उस कारखाने का मंज़र दिख गया जहां पर सिर्फ और सिर्फ ग़ैर कानूनी चीज़ें मौजूद थी। ये सब नज़र आते ही अजय सिंह ने पट से अपनी आंखें खोल दी तथा एक झटके से सोफे पर से उठा और अपने कमरे की तरफ भारी कदमों से बढ़ गया।
अब आगे......
उस वक्त दोपहर के लगभग साढ़े ग्यारह या बारह के आसपास का समय था जब अजय सिंह, प्रतिमा व अभय सिंह रितू के कहे अनुसार फैक्टरी पहुॅचे। इन लोगों के साथ अजय सिंह का बेटा शिवा भी आना चाहता था किन्तु अजय सिंह उसे अपने साथ नहीं लाया था। उसे डर था कि कहीं वह किसी समय ऐसा वैसा न बोल बैठे जिससे कोई बात बिगड़ जाए। शिवा इस बात से अपने स्वभाव के चलते नाराज़ तो हुआ लेकिन पिता के द्वारा सख़्ती से मना कर देने पर वह मन मसोस कर रह गया था।
फैक्टरी के अंदर जाने से पहले की तरह ही कानूनन अभी प्रतिबंध लगा हुआ था। हलाॅकि पहले हुई छानबीन के मुताबिक प्रतिबंध हटाया ही जा रहा था कि ऐन समय पर रितू के द्वारा जब केस फिर से रिओपेन हो गया तो प्रतिबंध पूर्वत् लगा ही रहा। इसके साथ ही जाने क्या सोच कर इंस्पेक्टर रितू ने वहाॅ की सिक्योरिटी भी टाइट करवा दी थी।
अजय सिंह ने अपनी तरफ से कोशिश तो बहुत की कि उसे एक बार फैक्टरी के अंदर जाने दिया जाए लेकिन उसकी एक न चली थी। उसे इस बात ने भी बुरी तरह हैरान व परेशान कर दिया था कि इस शहर का पूरा पुलिस डिपार्टमेंट ही बदल दिया गया है। ऊॅची रैंक के सभी अफसरों का तबादला हो चुका था एक दिन पहले ही। सब-इंस्पेक्टर से लेकर कमिश्नर तक सबका तबादला कर दिया गया था। अजय सिंह इस बात से बेहद परेशान हो गया था, पुलिस कमिश्नर उसका पक्का यार था जिसके एक इशारे पर उसका हर काम चुटकियों में हो जाता था। अजय सिंह अपनी हार न मानते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री से भी संबंध स्थापित कर इस केस को रफा दफा करने का दबाव बढ़ाने को कहा किन्तु मुख्यमंत्री ने ये कह कर अपने हाॅथ खड़े कर दिये थे कि वह ऐसा चाह कर भी नहीं कर सकता क्योंकि ऊपर से हाई कमान का शख्त आदेश था कि इस केस से संबंधित किसी भी प्रकार की बात किसी के द्वारा नहीं सुनी जाएगी और न ही किसी के द्वारा कोई हस्ताक्षेप किया जाएगा। पुलिस को पूरी इमानदारी के साथ इस केस की छानबीन करने की छूट दी जाए।
प्रदेश के मुख्यमंत्री की इस बात ने अजय सिंह की रही सही उम्मीद को भी तोड़ दिया था। उसकी हालत उस ब्यक्ति से भी कहीं ज्यादा गई गुज़री हो गई थी जिसे चलने के लिए दो दो बैसाखियों का भी मोहताज होना पड़ता है। अजय सिंह की समझ में नहीं आ रहा था कि एक ही दिन में ये क्या हो गया है? शहर के सारे पुलिस डिपार्टमेंट का क्यों तबादला कर दिया गया?? और....और ऐसा क्या है जिसके चलते प्रदेश के सीएम तक को अपने हाॅथ मजबूरीवश खड़े कर देने पड़े? लाख सिर खपाने के बाद भी ये सब बातें अजय सिंह की समझ में नहीं आ रही थीं। वह इतना ज्यादा परेशान व हताश हो गया था कि उसे हर तरफ सिर्फ और सिर्फ अॅधेरा ही अॅधेरा दिखाई देने लगा था। ऐसा लगता था कि वह चक्कर खा कर अभी गिर जाएगा। हलाॅकि वो ये सब अपने चेहरे पर से ज़ाहिर नहीं होने देना चाहता था किन्तु वह इसका क्या करे कि लाख कोशिशों के बाद भी दिलो दिमाग़ में ताण्डव कर रहे इस तूफान को वह अपने चेहरे पर उभर आने से रोंक नहीं पा रहा था।
इंस्पेक्टर रितु पुलिस की वर्दी पहने कुछ ऐसे पोज में खड़ी थी कि अजय सिंह को वह किसी यमराज की तरह नज़र आ रही थी।
अजय सिंह अपनी ही बेटी से बुरी तरह भयभीत हुआ जा रहा था। बार बार वह अपने रुमाल से चेहरे पर उभर आते पसीने को पोछ रहा था।
"मैं आप सबको ये बताना चाहती हूॅ कि फैक्टरी की इसके पहले हुई छानबीन से मेरा कोई मतलब नहीं है।" रितु ने अजय सिंह के साथ आए बाॅकी सब पर एक एक नज़र डालने के बाद अजय सिंह से कहा__"अब क्योंकि ये केस फिर से मेरे द्वारा रिओपेन हुआ है तो इस केस की छानबीन मैं शुरू से और नए सिरे से ही करूॅगी। उम्मीद करती हूॅ कि आपको इस सबसे कोई ऐतराज़ नहीं होगा बल्कि इस छानबीन में आप खुद पुलिस का पूरा पूरा सहयोग देंगे।"
"तुमने बेकार ही इस केस को रिओपेन किया है बेटी।" अजय सिंह ने नपे तुले भाव से कहा__"मैं तो कहता हूॅ कि अभी भी कुछ नहीं हुआ है, अभी भी इस केस की फाइल बंद की जा सकती है। कोई ज़रूरत नहीं है इस सबकी, क्योंकि इससे वो सब कुछ मुझे वापस तो मिलने से रहा जो जल कर खाक़ हो गया है।"
"अब ये केस रिओपेन हो चुका है ठाकुर साहब।" रितु ने अपने ही बाप को ठाकुर साहब कह कर संबोधित किया। अजय सिंह इस बात से हैरान रह गया, जबकि रितु कह रही थी__"और जब तक इस केस से संबंधित कोई रिजल्ट सामने नहीं आता तब तक ये केस क्लोज नहीं हो सकता। केस को क्लोज करना मेरे बस में नहीं है बल्कि ये ऊपर से ही आदेश है कि केस को अब अच्छी तरह से ही किसी नतीजे के साथ बंद किया जाए।"
"ठीक है रितु बेटी।" सहसा प्रतिमा ने कहा__"तुम अपनी ड्यूटी निभाओ, हम भी देखना चाहते हैं कि इस सबके पीछे किसका हाॅथ है?"
"मुआफ़ कीजिये, इस वक्त मैं आपकी बेटी नहीं बल्कि एक पुलिस आॅफिसर हूॅ और अपनी ड्यूटी कर रही हूॅ।" रितु ने सपाट लहजे से कहा__"एनीवे, तो शुरू करें ठाकुर साहब??"
रितु की बात से जहाॅ प्रतिमा को एक झटका सा लगा वहीं अजय सिंह की घबराहट बढ़ने लगी थी।
"मेरा सबसे पहला सवाल।" रितु ने कहा__"फैक्टरी में आग लगने की सूचना सबसे पहले आपको कैसे हुई?"
अजय सिंह क्योंकि समझ चुका था इस लिए अब उसने भी अपने आपको इस केस से संबंधित किसी भी प्रकार की छानबीन या तहकीकात के लिए तैयार कर लिया।
"फैक्टरी में आग लगने की सूचना उस रात लगभग तीन बजे मेरे पीए के द्वारा मुझे मिली।" अजय सिंह ने कहा__"मैं अपनी पत्नी के साथ अपने कमरे में उस वक्त सोया हुआ था, जब मेरे पीए का फोन आया था। उसने ही बताया कि हमारी फैक्टरी में आग लग गई है।"
"इसके बाद आपने क्या किया?" रितू ने पूछा। "मैने वही किया।" अजय सिंह कह रहा था__"जो हर इंसान इन हालातों में करता है। अपने पीए के द्वारा फोन पर मिली सूचना के तुरंत बाद ही मैं वहां से शहर के लिए निकल पड़ा। जब सुबह के प्रहर मैं यहाॅ पहुॅचा तो सब कुछ तबाह हो चुका था।"
"फैक्टरी पहुॅच कर आपने क्या ऐक्शन लिया?" रितू ने पूछा। "किसी प्रकार का ऐक्शन लेने की हालत ही नहीं थी उस वक्त मेरी।" अजय सिंह बोला__"अपनी आॅखों के सामने अपना सब कुछ खाक़ में मिल गया देख होश ही नहीं था मुझे। कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या करूॅ क्या न करूॅ? वो तो मेरे पीए ने ही बताया कि फैक्टरी में आग लगने के बाद उसने इस संबंध में क्या क्या किया है?"
"मैं आपके पीए का बयान लेना चाहती हूॅ।" रितू ने कहा__"आप उन्हें बुला दीजिए प्लीज।"
अजय सिंह को बुलाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी क्यों पीए वहीं था, और पीए ही बस क्यों बल्कि फैक्टरी के स्टाफ का लगभग हर ब्यक्ति वहाॅ मौजूद था। सबको पता हो चुका था कि फैक्टरी की दुबारा छानबीन हो रही है इस लिए हर ब्यक्ति उत्सुकतावश वहाॅ मौजूद था।
अजय सिंह ने इशारे से पीए को बुलाया। वह तुरंत ही हाज़िर हो गया।
"आपका नाम?" रितु ने पीए के हाज़िर होते ही सवाल किया। "जी मेरा नाम दीनदयाल शर्मा है।" पीए ने बताया।
"ठाकुर साहब की फैक्टरी में कब से ऐज अ पीए काम कर रहे हैं?" रितू ने पूछा।
"जी लगभग छः साल हो गए।" दीन दयाल ने कहा। "छः साल काफी लम्बा समय होता है ये तो आप भी जानते होंगे?" रितु ने अजीब भाव से कहा__"कहने का मतलब ये कि इन छः सालो में आपको अपने मालिक और उनके काम के बारे अच्छी तरह जानकारी होगी।"
"जी शायद।" दीनदयाल ने अनिश्चित भाव से कहा__"शायद शब्द इस लिए कहा कि छः साल अपने मालिक के नजदीक रह कर भी ये बात मैं दावे के साथ नहीं कह सकता कि मैं उनके और उनके काम के बारे में पूरी तरह ही जानता हूॅ। बहुत सी बातें ऐसी होती हैं जो कोई भी मालिक अपने किसी नौकर को बताना ज़रूरी नहीं समझता।"
"आपने बिलकुल ठीक कहा।" रितू ने कहा__"खैर, तो अब आप बताइये कि उस रात क्या क्या और किस तरह हुआ?"
"ज जी क्या मतलब?" दीनदयाल चकराया। "मेरे कहने का मतलब है कि जिस रात फैक्टरी में आग लगी थी।" रितू ने कहा__"उस रात की सारी बातें आप विस्तार से बताइए।"
दीनदयाल ने कुछ पल सोचा फिर वो सब बताता चला गया जो उस रात हुआ था। उसने वही सब बताया जो हवेली में अभय सिंह से पूछने पर अजय सिंह ने उसे बताया था और उधर मुम्बई में निधि ने सबको अखबार के माध्यम से बताया था। (दोस्तो, आप सबको भी पता ही होगा)
सब कुछ सुनने के बाद रितू ने गहरी साॅस ली और वहीं पर चहलकदमीं करते हुए कहा__"तो आपकी और पुलिस की छानबीन के बाद तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार फैक्टरी में आग लगने की मुख्य वजह सिर्फ सार्ट शर्किट ही है?"
"जी पुलिस ने तो अपनी यही रिपोर्ट छानबीन के बाद तैयार करके दी थी।" दीनदयाल ने कहा।
"क्या आपने इस बात पर विचार नहीं किया या फिर क्या आपने इस नज़रिये से नहीं सोचा कि फैक्टरी में आग किसी के द्वारा लगाई गई भी हो सकती है?" रितू ने पूछा था।
"इस बारे में न सोचने की भी वजह थी इंस्पेक्टर।" सहसा अजय सिंह ने कमान सम्हालते हुए कहा__"दरअसल जिस दिन फैक्टरी में आग लगी थी उस दिन सभी वर्कर्स के लिए अवकाश था। इस लिए उस रात फैक्टरी में कोई था ही नहीं। और जब कोई था ही नहीं तो भला इस बारें में कैसे कह सकते थे किसी अन्य के द्वारा फैक्टरी में आग लगी?"
"चलिए मान लिया कि उस रात अवकाश के चलते कोई भी वर्कर फैक्टरी में नहीं था।" रितू ने कहा__"किन्तु सवाल ये है कि अवकाश के चलते क्या कोई भी फैक्टरी में नहीं था? जहाॅ तक मुझे पता है तो इतनी बड़ी फैक्टरी में अवकाश के चलते हर कोई फैक्टरी से नदारद नहीं हो सकता। मतलब फैक्टरी की सुरक्षा ब्यवस्था के लिए वहाॅ गार्ड्स मौजूद होते हैं और बहुत मुमकिन है कि फैक्टरी के स्टाफ में से भी कोई न कोई फैक्टरी में मौजूद रहता है।"
"बिलकुल इंस्पेक्टर।" अजय सिंह ने कहा__"हप्ते में एक दिन फैक्टरी बंद रहती है इस लिए फैक्टरी में काम करने वाले मजदूरों को अवकाश दे दिया जाता है। लेकिन उस अवकाश वाले दिन ऐसा नहीं होता कि पूरी फैक्टरी सुनसान हो जाती है, बल्कि फैक्टरी की देख रेख और उसकी सुरक्षा ब्यवस्था के लिए वहाॅ पर चौबीसों घंटे सिक्योरिटी गार्ड्स रहते हैं तथा फैक्टरी स्टाफ के भी कई मेंबर फैक्टरी में रहते हैं।" इतना कहने के बाद अजय सिंह एक पल रुका फिर कुछ सोच कर बोला__"अगर तुम्हारा ख़याल ये है इंस्पेक्टर कि इन्हीं सब लोगों में से ही किसी ने फैक्टरी में आग लगाई हो सकती है तो तुम्हारा ख़याल ग़लत है। क्योकि ये सब मेरे सबसे ज्यादा फरोसेमंद आदमी हैं जिनकी ईमानदारी पर मुझे लेस मात्र भी शक नहीं है।"
"अपने आदमियों पर भरोसा करना बहुत अच्छी बात है ठाकुर साहब।" रितू ने कहा__"लेकिन अंधा विश्वास करना कोई सबझदारी नहीं है। ख़ैर, तो आपके कहने का मतलब है कि फैक्टरी से रिलेटेड किसी भी ब्यक्ति ने फैक्टरी में आग नहीं लगाई हो सकती?"
"बिलकुल।" अजय सिंह ने जोर देकर कहा__"इन पर मेरा ये भरोसा ही है वर्ना अगर भरोसा नहीं होता तो मैं पहले ही इन सब पर इस सबके लिए शक ज़ाहिर करता और तुम्हारे पुलिस डिपार्टमेंट से इस बारे में तहकीकात करने की बात कहता। और एक पल के लिए अगर मैं ये मान भी लूॅ कि मेरे आदमियों में से ही किसी ने ये काम किया हो सकता है तब भी ये साबित नहीं हो सकता। क्योकि अवकाश वाले दिन फैक्टरी में ताला लगा होता है और बाकी के फैक्टरी स्टाफ मेंबर फैक्टरी से अलग अपनी अपनी डेस्क या केबिन में होते हैं। यहाॅ पर अगर ये तर्क दिया जाए कि अवकाश से पहले ही या फैक्टरी में ताला लगने से पहले ही किसी ने ऐसा कुछ कर दिया हो जिससे फैक्टरी के अंदर आग लग जाए तब भी ये तर्कसंगत नहीं है। क्योकि ये तो हर स्टाफ मेंबर जानता है कि फैक्टरी में हुए किसी भी हादसे से सबसे पहले उन्हीं पर ही शक किया जाएगा, उस सूरत में उन पर कड़ी कार्यवाही भी की जाएगी और अंततः वो पकड़े ही जाएॅगे। इस लिए कोई भी स्टाफ मेंबर जानबूझ कर अपने ही पैर में कुल्हाड़ी मार लेने वाला काम करेगा ही नहीं।"
"आपके तर्क अपनी जगह बिलकुल ठीक हैं ठाकुर साहब।" रितु ने एक हाॅथ में पकड़े हुए पुलिसिया रुल को अपने दूसरे हाॅथ की हॅथेली पर हल्के से मारते हुए कहा__"अब इसी बात को अपने फैक्टरी स्टाफ के नज़रिये से देख कर ज़रा ग़ौर कीजिए। कहने का मतलब ये कि मान लीजिए कि मैं ही वो फैक्टरी की स्टाफ मेंबर हूॅ जिसने फैक्टरी में आग लगाई है और मैं ये बात अच्छी तरह जानती हूॅ कि मेरे द्वारा किए गए काण्ड से आपका शक सबसे पहले मुझ पर ही जाएगा जो कि स्वाभाविक ही है, इस लिए आपके मुताबिक मैं ये काम नहीं कर सकती, क्योंकि सबसे पहले मुझ पर ही शक जाने से मैं फॅस जाऊॅगी, ये आप सोचते हैं। जबकि मैंने आपकी सोच के उलट ये काम कर ही दिया है और आप सोचते रहें कि मैंने ये काम नहीं किया हो सकता।"
"दिमाग़ तो तुमने काबिले-तारीफ़ लगाया है इंस्पेक्टर।" अजय सिंह ने मुस्कुराकर कहा__"यकीनन तुमने दोनो पहलुओं के बारे में बारीकी से सोच कर तर्कसंगत विचार प्रकट किया है लेकिन ये एक संभावना मात्र ही है, कोई ज़रूरी नहीं कि इसमें कोई सच्चाई ही हो।"
"सच्चाई का ही तो पता लगाना है ठाकुर साहब।" रितु ने कहा__"और उसके लिए हर किसी के बारे में दोनों पहलुओं पर सोचना ही पड़ेगा। ख़ैर, मुझे ऐसा लगता है कि आप ही इस प्रकार से सोच विचार नहीं करना चाहते, जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए। ये सोचने वाली बात है।"
अजय सिंह ये सुन कर एक पल के लिए गड़बड़ा सा गया। फिर तुरंत ही सहल कर बोला__"ऐसा कुछ नहीं है इंस्पेक्टर। मैं तो बस इस लिए नहीं सोच विचार कर रहा क्योंकि मेरे हिसाब से इस सबका रिजल्ट पहले निकाला जा चुका है।"
अजय सिंह की इस बात से रितू ने कुछ न कहा बल्कि बड़े ग़ौर से अपने पिता के चेहरे की तरफ देखती रही। ऐसा लगा जैसे कि वह अपने पिता के चेहरे पर उभर रहे कई तरह के भावों को समझने की कोशिश कर रही हो। वहीं अजय सिंह ने जब अपनी बेटी को अपनी तरफ इस तरह गौर से देखते हुए देखा तो उसे बड़ा अजीब सा महसूस हुआ। उससे नज़रें मिलाने में उसकी हिम्मत जवाब देने लगी। उसे लगा कहीं ऐसा तो नहीं कि उसकी बेटी उसके चेहरे के भावों को पढ़ कर ही सारा सच जान गई हो। इस एहसास ने उसे अंदर तक कॅपकॅपा कर रख दिया। बड़ी मुश्किल से उसने खुद को सम्हालते हुए कहा__"क्या हुआ इंस्पेक्टर, इस तरह क्यों देख रही हो मुझे? अपनी कार्यवाही को आगे बढ़ाओ।"
"देख रही हूॅ कि आपके चेहरे पर उभरते हुए अनगिनत भाव किस बात की गवाही दे रहे हैं?" रितू ने अजीब से भाव से कहा। "क क्या मतलब??" अजय सिंह बुरी तरह चौंका था।
"जाने दीजिए।" रितू ने कहा__"देखिए फारेंसिक डिपार्टमेंट वाले भी आ गए। आइए फैक्टरी के अंदर चलते हैं।"
अजय सिंह एकाएक अंदर ही अंदर बुरी तरह घबरा सा गया। उसे तो लगने लगा था कि बातें अब तक उसके पक्ष में ही हैं और इतनी पूछताॅछ के बाद कार्यवाही बंद कर दी जाएगी। लेकिन उसे अब महसूस हुआ कि ये सब तो महज एक औपचारिक पूछताॅछ थी असली छानबीन तो अब शुरू होगी।
फाॅरेंसिक डिपार्टमेंट की टीम आ चुकी थी तथा खोजी दस्ता भी। गाड़ियों से निकल कर सब बाहर आ गए। अजय सिंह उस वक्त और बुरी तरह चौंका जब गाड़ियों के अंदर से कुछ कुत्ते बाहर निकले। अजय सिंह को समझते देर न लगी कि ये कुत्ते इस सबकी छानबीन मे उन सबकी सहायता के लिए ही हैं।
पल भर में ही अजय सिंह की हालत ख़राब हो गई। इस सबके बारे में उसने ख्वाब तक में न सोचा था। आज पहली बार उसे लगा कि अपनी बेटी रितू को पैदा करके उसने बहुत बड़ी भूल की थी।
दोस्तो अपडेट हाज़िर है......
मुआफ़ करना मैंने यहीं पर कुछ सोचते हुए इस अपडेट को विराम दे दिया है। अपनी राय और सुझाव देते रहिए,,,,,,
कुछ सवाल हैं आप सबके लिए,,
क्या लगता है आपको इस छानबीन को अजय सिंह रोंक पाएगा या नहीं???? क्या इंस्पेक्टर रितू को ये पता चलेगा कि किस वजह से फैक्टरी में आग लगी थी?????
छानबीन के दौरान कैसे हालात बनेंगे?????
छानबीन में अजय सिंह की असलियत सामने आएगी कि नहीं...और अगर आएगी तो क्या सीन होगा उस समय???
असलियत का पता चलने के बाद अभय सिंह का क्या रियेक्शन होगा????
अजय सिंह की असलियत खुद उसकी पत्नी प्रतिमा को पता है कि नहीं?????
ऐसे बहुत से सवाल हैं दोस्तो.....आप भी अपना अपना विचार ब्यक्त कीजिए और अगले अपडेट से अपने विचारों का मिलान कीजिए कि आपके विचार कहाॅ तक सही थे।