सुबह से हो रही हल्की हल्की बूँदा बाँदी ने तेज बारिश का रूप ले लिया था। बारिश की आवाज से शेखर की नींद खुल गयी।
कुछ देर वो बिस्तर पर यूँ ही अलसाया सा लेटा रहा। थोड़ी देर बाद उठा, उसने किचन में जाकर कॉफी बनाई और कॉफी का मग लेकर बाहर बाल्कनी में आ गया।
वो बाल्कनी में बैठकर दूर पहाड़ियों पर उतरे बादलों को देख रहा था। ऐसा लग रहा था कि बादलों ने उन पहाड़ियों पर अपना घर बना लिया हो। नीचे बारिश हो रही थी। हवा भी तेज चल रही थी।
हवा के झोंके रह रह कर शेखर के बालों को बिखेर रहे थे। वो मंत्र मुग्ध सा बादलों को नीचे उतरे देख रहा था। प्रकृति के वो नजारे और बारिश का शोर, शेखर के अंदर एक हलचल मचा रहा था।
कल रात से न जाने क्यों, उसे शिखा की बहुत याद आ रही थी। वो समझ नहीं पा रहा था, क्यों उसके साथ ऐसा हो रहा है? शिखा को छोड़े उसे सत्रह साल हो गये थे।
हाँ, छोड़े हुए...उससे शादी न करने का फैसला शेखर ने ही तो लिया था। और छोड़ दिया था शिखा को उसकी किस्मत के भरोसे।
उसने एक बार भी नहीं सोचा गरीब, अनाथ शिखा उसके बिना कैसे जिएगी? आज शिखा को याद करके वो अपने दिल को काबू नहीं कर पाया। और बह जाने दिया उसने खुद को शिखा की यादों में..
रिवाइंड होती यादों की रील कॉलेज के दिनों में पंहुच कर रुकी। जहाँ से शेखर एक बार फिर यादों के ट्रैक पर आगे चल पड़ा।
हल्के नीले रंग की डेनिम की जींस और सफेद टी शर्ट पहने, हाथ में गिटार लिए शेखर फ्रेशर्स पार्टी में गाना गा रहा था।
*ऐसे न मुझे तुम देखो
*सीने से लगा लूँगा,
*तुमको मैं चुरा लूँगा तुमसे,
*दिल में छिपा लूँगा...
और ये गाना न जाने कितनी लड़कियों के दिल को धड़का गया था। हर वो लड़की जो उसे गाते हुए देख रही थी, उसे लग रहा था ये गाना शेखर उसके लिए गा रहा है।
जूनियर तो जूनियर, सीनियर्स भी इस गाने में खो गये थे। लड़के लड़कियाँ सब। उनके युवा दिल में हलचल मच गयी थी।
प्रोग्राम खुले मैदान में हो रहा था। मौसम सुहाना था। गनीमत थी बारिश नहीं हो रही थी जबकि जुलाई आखिर में कब बारिश हो जाए, कोई ठिकाना नहीं होता।
शेखर के गाने का साथ आज मौसम भी दे रहा था। हल्की हल्की हवा हर दिल में जलतरंग बजा रही थी। हर कोई गाने में खोया हुआ था।
गाना खत्म होते ही तालियों से सारा मैदान गूँज उठा। लड़के जहाँ सीटी बजा रहे थे, वहीं लड़कियाँ \"वन्स मोर, वन्स मोर\" का शोर मचा रही थीं।
एक बार फिर शेखर ने माइक संभाला और गिटार हाथ में लेकर फिर से उसी गाने की राग छेड़ दी।
हर किसी की नजर शेखर पर थी। लेकिन शेखर की नज़रें उस लड़की पर टिकी थीं, जो देख तो उसी को रही थी, लेकिन कहीं खोई हुई थी।
वो बहुत ही साधारण सा सूट पहने थी। कमर तक लंबी चोटी उसने बांए कंधे पर आगे की ओर डाल रखी थी। रंग गोरा था लेकिन चेहरा साधारण था। वो किसी सोच में डूबी थी।
शेखर एक टक उसी को देख रहा था। एक आकर्षण सा था उसकी आँखों में, जिसमें शेखर गाना गाते गाते खो गया था।
पार्टी खत्म होते होते सात बज गये। अब हर किसी को घर जाने की जल्दी थी। आसमान पर बादल भी छाने लगे। शिखा सीने से बैग चिपकाये घर की ओर चल दी। चाल में स्वाभाविक रूप से तेजी आ गयी थी।
कुछ दूर बढ़ते ही बारिश तेज हो गयी। शिखा बारिश से बचने के लिए शेड में जाने के लिए सोच ही रही थी कि तभी शेखर की गाड़ी एकदम उसके पास आकर रुकी।
\"आइए, मैं आपको आपके घर तक छोड़ दूँ।\"
\"नहीं नहीं, मैं चली जाऊंगी। आप परेशान न होइए।\"
शिखा की बोलते हुए जबान लड़खड़ा गयी थी। जिस बंदे से कॉलेज की सारी लड़कियाँ बात करने के लिए मरी जाती हैं, वो ही बंदा उसे उसके घर छोड़ने का ऑफर दे रहा था। लेकिन शिखा उसके साथ बैठने में हिचकिचा रही थी।
\"अरे! आप घबरा क्यों रही हैं? भीग गयीं तो बिना वजह बीमार पड़ जाएँगी। मैं सही सलामत आपको आपके घर छोड़ दूंगा।\"
शिखा को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे? बारिश तेज हो रही थी। शिखा के पास कोई चारा नहीं था, शेखर के साथ गाड़ी में बैठने के अलावा।
रास्ते में शेखर ने उसका इंटरव्यू ले डाला।
शिखा ने बताया कि वो अनाथ है, कोई नहीं है उसका। ये सुनकर शेखर को दुःख हुआ। उसने मन ही मन ठान लिया कि वो शिखा का सहारा बनेगा, एक दोस्त की तरह।
लेकिन, दोस्ती धीरे धीरे प्यार में बदल गयी।
शिखा की जिंदगी में शेखर का आना उसको एक अलग ही दुनियाँ में ले गया। जहाँ जाकर वो सब कुछ भूल गयी। भूल गयी कि वो एक गरीब और अनाथ है। अनाथालय में पली बढ़ी है। भूल गयी कि शेखर एक अमीर घर का लड़का है। शेखर आकाश है तो वो धरती।
और सबसे बड़ी बात वो ये भूल गयी कि आकाश और धरती का मिलन कभी नहीं होता। हाँ, क्षितिज पर उनके मिलने का आभास मात्र होता है। वास्तविकता तो यही है कि वो कभी मिल नहीं सकते।
शिखा के लिए शेखर पूरी दुनियाँ था। लेकिन शेखर के लिए शिखा के अलावा भी एक दुनियाँ थी...उसका परिवार।
शेखर जानता था, उसके घर वाले शिखा को कभी स्वीकार नहीं करेंगे। फिर भी उसे अपनी किस्मत पर भरोसा था। भरोसा इस बात का कि, वो अपने मम्मी पापा का इकलौता बेटा है, इसलिए वो अपने प्यार को अपना बनाने के लिए उनको तैयार कर लेगा।
लेकिन किस्मत ने शेखर का साथ नहीं दिया। उसके पापा दोनों की शादी करने को किसी भी तरह तैयार नहीं हुए।
उन्होंने साफ कह दिया कि,
\"अगर शिखा से शादी करनी है तो तुमको हम लोगों को छोड़ना पड़ेगा।\"
\"अरे पापा! आप ये क्या कह रहे हैं? मैं न तो आप लोगों को छोड़ सकता हूँ और न ही शिखा के बिना रह सकता हूँ। प्लीज़ पापा! आप एक बार शिखा से मिल लीजिए..”
शेखर के पापा उसकी मम्मी की तरफ मुड़े और दाँत पीसते हुए बोले,
\"शेखर की मम्मी! कह दो अपने लाडले से, दो दिन में फैसला करके मुझे बता दे कि वो दोनों में से किसको चुनेगा?\"
और ये कहकर वो अपने कमरे में चले गये। शेखर ने एक उम्मीद से अपनी मम्मी की तरफ देखा। उसकी मम्मी की झुकी हुई नजरें पापा की बात का समर्थन कर रही थीं।
शेखर की आँखों में आँसू आ गये। फूट फूट कर रो पड़ा, एक पल को वो भूल गया वो एक लड़का है और लड़कों को इस तरह रोना शोभा नहीं देता।
उस दिन के बाद वो शिखा से नहीं मिला। वो स्वार्थी हो गया। जिन्होंने उसे जन्म दिया, उनको वो कैसे छोड़ सकता था? उसने अपने मन को समझा लिया कि प्यार पाने का नाम नहीं, बल्कि कुर्बानी का नाम है।
शेखर ने शिखा को इस बारे में कुछ नहीं बताया। वो जानता था कि शिखा उसे बहुत प्यार करती है और इस तरह कुछ भी न बताकर वो शिखा के मन में अपने प्रति नफ़रत भर देना चाहता था। उसने सोचा था कि शिखा उससे प्यार करके उसके बिना नहीं रह पाएगी लेकिन नफरत करके शायद वो उसे भूल जाए।
शेखर शिखा को भुला कर पापा की बताई किसी और लड़की से शादी करने को बिल्कुल तैयार नहीं था। उसने अपने पापा की जिद के आगे शिखा को छोड़ देना तो मंजूर कर लिया था लेकिन उसने किसी और लड़की से शादी नहीं की।
उसके लिए शिखा के प्यार को भुला पाना नामुमकिन था। वैसे भी किसे के लिए अपने प्यार को भुला पाना इतना आसान कहाँ होता है, वो भी पहला प्यार..और फिर शिखा उसका पहला ही नहीं आखिरी प्यार भी थी।
आज पहाड़ी पर उतरे बादलों को देखकर उसे शिखा की बहुत याद आ रही थी। शिखा अक्सर कहती थी,
\"शेखर! मुझे बादलों के उस पार जाना है। उस पार की दुनियाँ देखनी है मुझे।\"
शिखा की ये बातें सुनकर शेखर मुस्कुरा देता और कहता,
\"शिखा! एक दिन मैं तुमको ऐसी दुनियाँ जरूर दिखाऊंगा।\"
आज शेखर के सामने बादलों के पार की दुनियाँ थी, लेकिन उसको देखने वाली शिखा नहीं थी उसके साथ।
वो आज खुद को अपराधी महसूस कर रहा था। शिखा से दूर होने के बाद उसने कभी शिखा का हाल लेने की कोशिश नहीं की। फिर आज उसे शिखा की याद क्यों आ रही थी? पूरे सत्रह साल हो गये थे।
रह रह कर एक गाना उसे याद आ रहा था जिसे शिखा अक्सर गुनगुनाती थी..
*जब कोई बात बिगड़ जाए,
*जब कोई मुश्किल पड़ जाए,
*तुम देना साथ मेरा,
*ओ हमनवा..
*न कोई है न कोई था,
*ज़िंदगी मेअं तुम्हारे सिवा,
*तुम देना साथ मेरा,
*ओ हम-नवा..
ये गाना याद आते ही शेखर तड़प उठा। उसे शिखा की वो उम्मीदें याद आ गयीं जो ये गाना गाते समय उसकी आँखों में हुआ करती थीं। वो शिखा की तरफ से जितना ध्यान हटाने की कोशिश करता, उतना ही शिखा का भोला चेहरा उसकी आँखों के आगे आ जाता।
बारिश अब कुछ कम हो गयी थी। नीचे चारों तरफ पानी ही पानी था। पानी शेखर की आँखों में भी था। आँख बंद करते ही दो बूँदें उसके गालों पर लुढ़क गयीं।
शेखर का दिल कह रहा था कि उसे एक बार शिखा से मिलना चाहिए। लेकिन कैसे और क्यों? वो भी इतने सालों बाद।
शेखर ने इतने सालों में बस पैसा ही कमाया था। अंधाधुँध पैसा। उसके पापा को भी तो बस पैसा ही चाहिए था। शेखर पैसा कमाने की मशीन बन गया।
शेखर के मम्मी पापा ने बहुत चाहा कि वो शादी कर ले। लेकिन शादी न करने के फैसले वो पर अड़ गया।
शेखर को शिखा की यादें जब बेचैन करने लगीं तो उसने अपना फोन निकाला। शिखा का नम्बर उसके पास नहीं था। तभी उसे इन्दू अनाथालय की याद आई। यहीं तो रहा करती थी शिखा।
इन्दू अनाथालय का नम्बर तो उसे मिल गया लेकिन उसके दिमाग में उधेड़बुन थी कि क्या अनाथालय से उसे शिखा का नम्बर मिल पाएगा? पता नहीं अब शिखा वहाँ रहती भी है या नहीं?
लेकिन उसे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी।
अनाथालय वालों ने शिखा का पता और फोन नम्बर बता दिया।
शिखा का नम्बर मिलते ही वो खुद को शिखा के करीब महसूस करने लगा। लेकिन उसका नम्बर मिलाने में शेखर के हाथ काँप रहे थे, दिल की धड़कनें तेज हो गयीं। पूरा नम्बर मिलाते मिलाते उसको अपनी धड़कनें साफ सुनाई दे रहीं थीं।
उसने झट से फोन काट दिया और माथे पर उभर आईं पसीने की नन्ही नन्ही बूँदों को उसने पोछा। दो तीन बार ऐसा ही करता रहा...बार बार शिखा का नम्बर मिलाता और बार बार काट देता।
आखिर में मन को कड़ा करके नम्बर मिला ही दिया। लगातार घंटी बजती रही। शेखर फोन काटने वाला ही था कि उधर से किसी बच्ची ने ‘हेलो’ बोला।
शिखा की जगह एक बच्ची की आवाज सुनते ही शेखर हड़बड़ा गया। कहीं न कहीं उसके दिल को धक्का सा लगा।
\"क्या मैं शिखा जी से बात कर सकता हूँ?\"
\"आप कौन बोल रहे हैं अंकल?\"
\"मैं शिखा जी का मित्र हूँ, हम कॉलेज में साथ पढ़ते थे।\"
\"कहीं आप शेखर अंकल तो नहीं बोल रहे?\"
\"हाँ हाँ, मैं ही हूँ।\"
अचानक एक बच्ची के मुँह से अपना नाम सुनकर शेखर चौंक गया. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो उस बच्ची से कैसे पूछे कि वो कौन है? जबकि वो जान रहा था सब... लेकिन मन का एक कोना उस सच्चाई को स्वीकार नहीं करना चाह रहा था। तभी वो बच्ची फिर बोली,
\"अंकल! प्लीज़, आप घर आ जाइए, मम्मी की हालत ठीक नहीं है, वो बस आपको ही याद करती हैं।\"
\"शिखा की बेटी कह रही है मम्मी की हालत बहुत खराब है। वो उसको याद करती है। लेकिन ये कैसे हो सकता है? शिखा के पति.... शायद न हों..या शायद तलाक दे दिया हो शिखा को..लेकिन क्यों? और फिर शिखा मुझे क्यों याद करती है?\"
शेखर के मन में बहुत कुछ चल रहा था। तभी उस बच्ची की आवाज फिर आई,
\"हेलो अंकल! आप सुन रहें हैं न? प्लीज़ आप जल्दी आ जाइए। शायद मम्मी के भीतर आपसे मिलकर, फिर से जीने की उम्मीद जाग जाए। अंकल! हम दोनों बहनें मम्मी के बिना अनाथ हो जाएँगी। प्लीज़ अंकल, बचा लो मेरी मम्मी को।\"
फूट फूट कर रो पड़ी वो बच्ची।
आँसू शेखर की आँखों में भी आ गये। जिससे दूर होकर वो हमेशा तड़पता रहा था, आज उसी से मिलने जाने की सोचकर उसकी आंखें नम हो गयीं थीं। शिखा बीमार थी और उसकी बेटी उससे प्रार्थना कर रही थी कि वो उसकी मम्मी को बचा ले..
शिखा की बेटी से फोन पर बात करने से लेकर शिखा के घर पंहुचने तक वो जैसे अपने होश में नहीं था। इतनी देर बस शिखा की यादों में खोया रहा।
शायद जानबूझकर... क्योंकि उसकी बीमारी का सुनकर वो आगे का कुछ भी सोचना नहीं चाहता था।
दरवाजा एक बा.. ते.. साल की बच्ची ने खोला। जैसे ही शेखर ने अपना परिचय दिया वो शेखर से लिपटकर रो पड़ी।
शेखर किसी अनिष्ट की आशंका से घबरा गया। उसने बच्ची को चुप करा कर शिखा के बारे में पूछा।
बच्ची अपने आँसू पोछते हुए उसे अंदर ले गयी। सामने पलंग पर एक पाँच फिट का बेहद थका, ज़िंदगी की जंग से हारा सा शरीर पड़ा था। जो सिर्फ चार फिट का आभास दे रहा था।
रंग काला पड़ चुका था, सिर के बाल भी काफी हद तक झड़ चुके थे। शेखर शिखा को देखते ही तड़प उठा। अब तक रुके उसके आँसू बगावत कर उठे।
तभी शिखा की आँखों में हल्की सी हलचल हुई। शायद उसे शेखर के वहाँ होने का आभास हो गया था। उसने आँखें खोलने की कोशिश की।
इस कोशिश में उसकी पलके कई बार खुली बंद हुईं। लेकिन आखिर में शिखा आँखें खोलने में कामयाब हो गयी।
शेखर को देखते ही उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। लेकिन अब चेहरे पर चिन्ताओं की जगह असीम संतोष ने ले ली।
अब तक उसकी आँखों में अपनी बेटियों के भविष्य को लेकर जो डर था, उसकी जगह शेखर को देखते ही एक सुकून था। अब खुद के मरने का कोई डर नहीं था। उसके होंठ काँपे।
फीकी मुस्कुराहट आ गयी उसके होंठो पर। बहुत कुछ कहना चाह रही थी वो, लेकिन होंठ उसका साथ नहीं दे रहे थे। फिर भी बहुत कोशिश करने पर उसके मुँह से सिर्फ़ एक शब्द निकला...”शेखर”.
शेखर ने आगे बढ़कर शिखा को बाँहों में भर लिया। उसकी बाँहों में आकर शिखा उससे एक छोटी\' बच्ची की तरह चिपक गयी। शिखा की दोनों बेटियाँ रो रही थीं। शिखा और शेखर की आँखों में आँसू थे।
थोड़ी देर में शेखर को वहाँ शिखा की बेटियों के होने का आभास हुआ। उसने जल्दी से शिखा को लिटा दिया।
तभी शिखा की बड़ी बेटी ने शिखा की रिपोर्ट शेखर की तरफ बढ़ा दी।
कुछ पल शेखर शिखा की बेटी के हाथ में पकड़ी उस रिपोर्ट को देखता रहा, जिसे खोलकर अंदर से देखने की हिम्मत फिलहाल उसमें नहीं थी। वो शिखा को देखकर जो समझ रहा था, उसकी रिपोर्ट देखकर हकीकत का सामना कैसे कर सकता था।
अंदर ही अंदर वो टूटता जा रहा था लेकिन फिर भी उसके आगे तीन जिंदगी थीं, जो उसपर आस लगाए थीं। ऐसे में उसे संभालना ही था खुद को।
शेखर ने कांपते हाथों से रिपोर्ट ले ली। लेकिन उसको खोलकर देखने में उसे काफी समय लगा।
इस बीच वहाँ ऐसा सन्नाटा छाया था, जिसका शोर वो चारों अपने भीतर सुन रहे थे। रिपोर्ट देखते ही शेखर की आशंका सही हो गयी। शिखा को वास्तव में कैंसर ही था, ब्रैस्ट कैंसर...
एक ब्रैस्ट हटाया जा चुका था। सरकारी अस्पताल में हुआ था ऑपरेशन। लेकिन उसके बाद होने वाली कीमोथैरेपी कष्टकारी थी। हालाँकि सरकारी अस्पताल में शिखा का इलाज चल रहा था लेकिन काफी समय से वो चलने फिरने में असमर्थ हो गयी थी, तो बाकी की कीमोथैरेपी नहीं हो पाई थीं।
बेटियाँ कैसे मैनेज करतीं सब? बच्चियाँ ही तो थीं वो। लेकिन शेखर के आ जाने से दोनों बच्चियों की आँखों में एक आशा की किरण नज़र आ रही थी।
शेखर ने कुछ फोन किए और शिखा को गोद में उठाया और दोनों बच्चियों को लेकर पहले तो सरकारी अस्पताल में शिखा के डॉक्टर से मिला, उनसे ट्रीटमेंट की फाइल लेकर शहर के सबसे बड़े कैंसर अस्पताल में शिखा को एडमिट करा दिया।
इस सबके लिए उसको पैसा पानी की तरह बहाना पड़ा, जो उसके लिए मामूली बात थी। बिना पैसे के न तो सरकारी अस्पताल का डॉक्टर ट्रीटमेंट की फाइल देता और न ही इतने बड़े कैंसर अस्पताल में इतनी जल्दी शिखा को एडमिट कराया जा सकता था।
इतना करते करते वो पूरी तरह थक चुका था। शिखा आई सी यू में थी और वो दोनों बच्चियों को कुछ खिलाने पिलाने ले गया। लेकिन पूरे समय शेखर के दिमाग में बस एक ही सवाल कौंधता रहा कि शिखा के पति कहाँ हैं?
तीनों आई सी यू के बाहर रिसेप्शन में आकर बैठ गये। एसी चल रहा था। शिखा की छोटी बेटी शेखर की गोद में सिर रखकर सो चुकी थी। शेखर की गोद में आकर एक सुकून था उसके चेहरे पर।
शेखर के दिमाग में बस एक ही सवाल उथल पुथल मचाए हुए था। आखिर उसने शिखा की बड़ी बेटी से पूछ ही लिया,
\"बेटी! तुम्हारे पापा कहाँ हैं?\"
\"पापा??...नहीं हैं वो..
\"मतलब??\"
\"अंकल! हम दोनों बहनें अनाथ थीं। मम्मी ने अनाथालय से गोद लिया है हमे।\"
\"क्या??\" शेखर की आवाज में आश्चर्य मिश्रित खुशी थी।
लेकिन तभी उसके मन के एक कोने में कुछ सवाल उठे कि शिखा के पति कहाँ हैं? उसने बच्चियों को गोद क्यों लिया? इन सवालों के जवाब तो शिखा से ही मिल सकते थे।
शिखा की कीमोथैरेपी उसी दिन की गयी। दो दिन बाद शिखा कुछ बोलने लायक हुई। शरीर पहले ही खोखला हो चुका था, लेकिन अब शेखर को देखने के बाद उसके अंदर जीने की इच्छा जाग गयी थी।
शेखर प्यार था उसका, और आज उसका प्यार, उसका शेखर उसके पास था तो वो कैसे उसे छोड़कर जा सकती थी।
शेखर शिखा का हाथ पकड़कर उसके पास बैठ गया। दोनों एक दूसरे को बस एकटक देख रहे थे। दोनों के लब खामोश थे लेकिन उनकी आँखों से बह रहे आँसू एक दूसरे से बातें कर रहे थे।
अगले दिन शिखा हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो गयी। बीस दिन बाद फिर आना था चेकअप के लिए। शेखर शिखा और दोनों बच्चियों को पहाड़ी वाले घर ले आया। जहाँ से बादलों के पार की दुनियाँ दिख रही थी।
शिखा और दोनों बच्चियों को ऐसी ही दुनियाँ देखनी थी। हालाँकि जब उसने ये घर बनवाया था तब सोचा भी नहीं था कि वो शिखा को कभी यहाँ ला पाएगा। लेकिन घर की डिजाइन फाइनल करते समय उसके अन्तर्मन में शिखा जरूर थी।
दो तीन दिन बाद शेखर ने शिखा की दोनों बेटियों को बोर्डिंग में डाल दिया। वो यहाँ शिखा के साथ अकेला रहना चाहता था। और वो जी जान से शिखा की सेवा में जुट गया।
लेकिन उसके जेहन में शिखा के पति को लेकर जो सवाल थे वो अभी भी जवाब के इंतजार में थे। एक दो कीमोथैरेपी और हुईं शिखा की। अब उसमें धीरे धीरे सुधार हो रहा था।
एक तो शेखर ने उसकी सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, दूसरी सबसे बड़ी बात, शिखा की जीने की इच्छा उसमें सुधार कर रही थी।
आज शेखर ने शिखा को नहला धुलाकर बाल्कनी में झूले पर बिठा दिया। वो खुद भी बगल में बैठ गया। शिखा की नज़रें सामने पहाड़ी पर उतरे बादलों पर थीं। वो एकटक सामने देख रही थी। तभी शेखर बोला,
\"शिखा! तुम्हारे पति...इतना कहकर शेखर चुप हो गया।
शिखा ने पलटकर उसे देखा और बहुत धीमी आवाज में बोली,
\"मैंने शादी नहीं की शेखर।\"
\"क्या????लेकिन क्यों ?\"
\" शेखर! शादी एक स्थूल चीज है। एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। और मेरे पास दो बेटियों की जिम्मेदारियाँ थीं तो मैं और कोई जिम्मेदरी कैसे उठा सकती थी? शेखर! तुम न आते तो पता नहीं मेरी बेटियों का क्या होता?\"
\"शिखा! एक बात पूँछू?
\"हाँ शेखर पूछो। मैं भी तुमको सब कुछ बता देना चाहती हूँ। बीते सत्रह सालों की बहुत सी बातें।\"
\"तुमने इन बच्चियों को गोद क्यों लिया? जबकि तुम खुद भी एक अनाथालय में रहती थी।\"
शिखा एकटक सामने बादलों को देख रही थी जो बरसने को तैयार थे, जैसे अतीत को याद करते हुए उसके आँसू आँखों का साथ छोड़ने को तैयार थे। वो एक गहरी सांस लेते हुए बोली,
\"शेखर! तुम्हारे जाने के बाद मैं टूट गयी, बिना बताए तुम चले गये थे। तुम्हारे बिना मैं बिल्कुल अकेली हो गयी थी। बहुत इंतजार किया मैंने। लेकिन तुम कभी नहीं आए। मैं समझ गयी थी कि मेरी और तुम्हारी किस्मत अलग हो चुकी है। बस इसको अपनी नियति मान लिया था और मैंने पढ़ाई छोड़कर नौकरी कर ली। एक दिन रिया अनाथालय आई। कुछ दिन पहले पैदा हुई बच्ची को कोई इसलिए छोड़ गया था क्योंकि वो एक लड़की है। अनाथालय में हम सब मिलकर उसको पाल रहे थे। फिर एक साल बाद एक और बच्ची आई- जिया। दोनों बच्चियाँ हमारे लिए एक खिलौना सी थीं।\"
शिखा ने एक गहरी साँस ली। बहुत थके शब्दों से वो आगे बोली,
\"शेखर एक दिन मैंने सुना, रिया और जिया आपस में बात कर रहीं थीं कि बादलों के पार क्या है, उनको ये देखना है। मुझे अपना बचपन याद आ गया। और फिर याद आ गये तुम..जिसने अपनी शिखा से वादा किया था कि वो एक दिन उसको बादलों के उस पार की दुनियाँ दिखाएगा।
एक पल को शिखा फिर रुकी, उसने अपनी तेज हो चली साँसों को नियन्त्रित किया, फिर वो आगे बोली,
\"शेखर! रिया और जिया की बातें सुनकर मैंने फैसला कर लिया कि एक दिन मैं उनको बादलों के पार की दुनियाँ दिखाऊंगी। क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि वो एक और शिखा बनें ..एक अनाथ और बेसहारा...
शेखर की नजरें झुक गयीं, उसको आत्मग्लानि हो रही थी।
\"मैं नौकरी करती ही थी तो दोनों को अनाथालय से गोद लेकर एक किराए के घर में रहने लगी। मैं रिया और जिया के माथे से चिपका गरीब और अनाथ का लेबल हटाना चाहती थी। लेकिन एक बार फिर मेरी उम्मीदों का फैसला मेरी किस्मत को करना था और देखो मुझे कैंसर हो गया। मैं मरना नहीं चाहती थी। शायद इसीलिए ईश्वर ने तुमको मेरे पास भेज दिया। अब मुझे अपनी बेटियों की न तो चिंता है, न अपने मर जाने का दुख..!
शेखर शिखा के अंतिम शब्द सुनकर तड़प उठा। उसने शिखा के मुँह पर हाथ रख दिया। वो शिखा को अपने सीने से लगाते हुए बोला,
\"प्लीज़ शिखा! ऐसा न बोलो...मैं अब तुमको कहीं नहीं जाने दूँगा। तुम हमेशा मेरे पास रहोगी। अब हमें कोई जुदा नहीं कर सकता। हमारी किस्मत भी नहीं..!
शिखा कस कर शेखर से चिपक गयी। उसने आंखे बंद कर ली, जहाँ से दो बूँदें निकलकर शेखर के सीने में समा गयीं।
दो बूँदें शेखर की आँखों से भी गिरी, लेकिन दोनों की आँखों से गिरते आँसू इस बार खुशी के आँसू थे।
'ईती शुभम'
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मेरी प्रेम कहानी की हर राज हो तुम ,
जीवन का मैं गुजरा कल और आज हो तुम ।
खुद ही खुद में कितना करूं मैं तेरा बखान ,
मेरी हर एक ख़्वाहिशों की नाज हो तुम ।
पाकर तुझ को सब कुछ पाया और कोई अब चाह नहीं है,
मेरी हर एक मंजिल की आगाज हो तुम
बिन तेरे हर शाम मुझे सूना -सूना सा लगता था,
जीवन में खुशियाँ भरने आई हो मेरी हमराज हो तुम।
तुम से मिलकर दुनिया की हर एक बुलंदी को छुआ है,
मेरी इस जीवन की परवाज हो तुम।
मैंने जो कुछ भी लिखा है तेरी चाहत में लिखा है,
मेरे इन गीतों की अल्फाज हो तुम।।
समाप्त