• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Romance फ़िर से

xforum

Welcome to xforum

Click anywhere to continue browsing...

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
4,381
24,493
159
दोस्तों - इस अपडेट सूची को स्टिकी पोस्ट बना रहा हूँ!
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केवल पढ़ कर निकल लें। यह केवल आपकी सुविधा के लिए है। चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए :)

अपडेट 1; अपडेट 2; अपडेट 3; अपडेट 4; अपडेट 5; अपडेट 6; अपडेट 7; अपडेट 8; अपडेट 9; अपडेट 10; अपडेट 11; अपडेट 12; अपडेट 13; अपडेट 14; अपडेट 15; अपडेट 16; अपडेट 17; अपडेट 18; अपडेट 19; अपडेट 20; अपडेट 21; अपडेट 22; अपडेट 23; अपडेट 24; अपडेट 25; अपडेट 26; अपडेट 27; अपडेट 28; अपडेट 29; अपडेट 30; अपडेट 31; अपडेट 32; अपडेट 33; अपडेट 34; अपडेट 35; अपडेट 36; अपडेट 37; अपडेट 38; अपडेट 39; अपडेट 40; अपडेट 41; अपडेट 42; अपडेट 43; अपडेट 44; अपडेट 45; अपडेट 46; अपडेट 47; अपडेट 48; अपडेट 49; अपडेट 50; अपडेट 51; अपडेट 52; अपडेट 53; अपडेट 54; अपडेट 55; अपडेट 56; अपडेट 57; अपडेट 58; अपडेट 59; अपडेट 60; अपडेट 61; अपडेट 62; अपडेट 63; अपडेट 64; अपडेट 65; अपडेट 66;
 
Last edited:

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
4,381
24,493
159
अपडेट 62


मायाबाज़ार एक क्लासिक तेलुगु फ़िल्म है, जो भारतीय सिनेमा की संभवतः सर्वकालिक महान कृतियों में से एक मानी जानी चाहिए।

इसकी कहानी महाभारत के एक प्रसंग पर आधारित है, और अर्जुन पुत्र, अभिमन्यु और भगवान बलराम की पुत्री शशिरेखा के इर्द-गिर्द घूमती है। कौरवों और पाण्डवों के बीच तनाव के बीच, शशिरेखा का विवाह अभिमन्यु से तय होता है। बलराम भगवान की पत्नी चाहती हैं कि शशिरेखा का विवाह सुयोधन के पुत्र लक्ष्मणकुमार से हो। कहानी में मोड़ तब आता है जब भगवान कृष्ण शशिरेखा और अभिमन्यु की मदद के लिए आते हैं। कृष्ण अभिमन्यु के चचेरे भाई घटोत्कच को लक्ष्मणकुमार और शशिरेखा के विवाह को विफल करने के लिए अपनी जादुई शक्तियों का प्रयोग करने को कहते हैं। घटोत्कच अपनी मायावी शक्तियों से शशिरेखा का रूप धरकर कौरवों को खूब छकाते हैं, जिससे बड़े ही हास्यास्पद और नाटकीय स्थितियाँ बनती हैं। यह फ़िल्म प्रेम, परिवार, और धर्म की जीत को दर्शाती है, जिसमें हास्य, रोमांच, और भावनात्मक क्षणों का सुंदर संतुलन है... और पूरे परिवार के संग आनंद उठाने वाली बढ़िया फ़िल्म है।

चारों दर्शकों को शुरू शुरू में भाषा में अंतर के कारण कहानी समझने में दिक्कत तो हुई, लेकिन फिर सब-टाइटल्स के कारण सभी को फ़िल्म समझ में आने लगी। लगभग तीन घण्टे लम्बी फ़िल्म थी, लिहाज़ा अजय और माया दोनों किरण जी के इर्द गिर्द आराम से सेटल हो गए और अपनी माँ की गोद में सर रख कर आराम से फ़िल्म देखने लगे। शांत माहौल में मनोरंजक फ़िल्म!

कोई डेढ़ - पौने दो घण्टे हुए होंगे फ़िल्म के, जब आदतन ही माया और अजय दोनों किरण जी का स्तनपान करने लगे... माया और अजय दोनों के लिए ही यह इतना प्राकृतिक कार्य था, कि कब वो माँ का स्तनपान करना शुरू कर देते, यह उनको भी पता नहीं चलता था। आज भी वही बात थी। उनकी तो छोड़ें, स्वयं किरण जी को भी इस बात का कोई होश नहीं रहा कि आज अशोक जी भी पास में हैं। देर दोपहरिया जब भी दोनों बच्चे स्तनपान करते थे, उस समय अशोक जी ऑफिस में होते थे। वैसे भी सभी बड़ी ख़ामोशी से फ़िल्म देखने में तल्लीन थे। तो जब माया उनकी ब्लाउज़ के बटन खोल कर उसको उनकी ब्रा समेत उतार रही थी, तो उनको कुछ भी असामान्य नहीं महसूस हुआ।

लेकिन अशोक जी के लिए यह नई बात थी!

उन्होंने आज पहली बार अपने दोनों बच्चों को एक साथ किरण भाभी का स्तनपान करते देखा था। आज से पहले उन्होंने भाभी को बच्चों को अलग अलग ही स्तनपान कराते देखा था। दोनों बच्चे कभी कभी साथ में स्तनपान करते हैं, उनको इस बारे में पता तो था, लेकिन कभी उन्होंने यह देखा नहीं था। इतनी उम्र में भी बच्चे माँ का दूध पीते थे, वो इस बात को नज़रअंदाज़ कर देते थे। ठीक है कि बच्चे बड़े हो गए थे, लेकिन स्तनपान करने से तीनों में से किसी को कोई समस्या नहीं आ रही थी। दोनों ही बच्चे बुद्धिमान थे (माया में गृह-दक्षता और कार्य-कुशलता वाली बुद्धिमत्ता थी, और अजय में पढ़ाई, लिखाई वाली दक्षता और कौशल) और स्वस्थ थे... और स्वयं भाभी पर भी इसके सकारात्मक प्रभाव थे। देखा जाए तो किरण जी न तो अजय की माँ थीं, और न ही माया की! और तो और माया तो ‘बाहर’ से आई थी! तिस पर किरण भाभी में इतना स्नेह था... इतनी ममता थी! परिवारों में इस तरह की निकटता - बहुत दुर्लभ होती है! जब ऐसी कुछ अनमोल चीज़ आपके पास हो, तो उसको छेड़ना नहीं चाहिए। इसलिए किसी तरह की आपत्ति जताने का कोई अर्थ नहीं था। लेकिन आज जब उनकी भाभी इस तरह से दोनों बच्चों को अपना दूध पिला रही थीं, तो उनकी दृष्टि कुछ देर के लिए उस दृश्य का आनंद लेने लगी।

किरण जी पूरे संतोष के साथ बैठी हुई थीं और माया और अजय दोनों टीवी देखते हुए स्तनपान कर रहे थे - जैसे छोटे बच्चे हों। सुन्दर दृश्य! शायद ही संसार में इससे सुन्दर कोई दृश्य हो किसी पिता के लिए! वो मुस्कुरा दिए - उनको भी पता था कि भाभी कैसे दोनों बच्चों को अपने ही बच्चों समान ही मानती आई हैं अभी तक! भैया (अनामि जी) की इच्छा थी कि प्रशांत के बाद उनकी और भी कोई संतान हो। कितने साल प्रयास किये थे दोनों ने, लेकिन कोई सफलता नहीं मिलीं। फिर, बहुत वर्षों बाद जब उनको एक संतान हुई भी, तो उस दुर्घटना ने उसको छीन लिया। तब से भाभी ने इन दोनों को ही अपना संतान घोषित कर दिया... अपनी कोख से पैदा न करने के बावज़ूद उन्होंने दोनों को उनकी सगी माँ जैसा ही प्रेम दिया था... और इस समय भी दोनों की सगी माँ समान ही अपना अमृत पिला रही थीं।

पहले जब भी उन्होंने भाभी को माया या फिर अजय को स्तनपान कराते देखा था, तो वो बच्चों को आँचल से ढँक देती थीं। लेकिन आज वैसा नहीं था - भाभी का कमर से ऊपर का शरीर पूरी तरह से नग्न था। दोनों बच्चे उनका एक एक स्तन अपने मुँह में लिए पीने और फ़िल्म देखने में मगन थे। दोनों साथ में पी रहे थे, लेकिन माँ की गोद में उतना स्थान नहीं था। लिहाज़ा, दोनों ने ही अपनी माँ का एक एक स्तन अपने हाथों में थाम रखा था। टीवी देखना भी आवश्यक था, इसलिए बीच बीच में उनके मुँह से किरण जी के चूचक बाहर निकल जाते थे। फिर सीन देख लेने के बाद दोनों वापस स्तनपान में मगन हो जाते।

और तब उन्होंने एक और बात नोटिस करी - किरण भाभी अभी भी बहुत सुन्दर महिला थीं! उम्र के इस वय में किरण जी के शरीर में स्थूलता अवश्य आ गई थी, लेकिन उनको मोटा कहना सही नहीं रहेगा। शरीर के अनुपात में उनके स्तन भी थे... लिहाज़ा वो बड़े और सुडौल थे। उनमें शिथिलता नहीं थी अभी भी! उन्होंने कहीं पढ़ा था कि नियमित स्तनपान कराने से शरीर प्राकृतिक रूप से ही बहुत ऊर्जा व्यय कर देता है और यह बात वो अपनी भाभी के शरीर में देख सकते थे। किरण जी उनकी तरह जॉगिंग इत्यादि नहीं करती थीं, लेकिन फिर भी उनके शरीर पर अनावश्यक चर्बी नहीं दिखती थी।

उन्होंने देखा कि माया की नज़र इस समय टीवी पर टिकी हुई थी... टीवी पर एक सीन चल रहा था - घटोत्कच किसी वृद्ध पुरुष को उनके आसन से उठाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उठा नहीं पा रहे थे। यह एक मज़ाकिया सीन था और उसको देखने की चेष्टा में माया के मुँह से किरण जी का स्तन छूट गया। उनके गहरे भूरे रंग के चूचक, जो माया की लार और उनके दूध से सना होने के कारण चमक रहा था, के सिरे पर सफ़ेद दूध की एक बूँद चमक रही थी! अशोक जी को वो दृश्य बहुत लुभावना सा लगा। स्वतः प्रक्रिया के चलते किरण जी ने, जो स्वयं भी टीवी देखने में मगन थीं, अपने एक हाथ से वो स्तन पकड़ा और दूसरे से माया का सर अपने स्तन पर दबाया! वो एक माँ की स्तनपान कराने के समय होने वाली एक स्वतः प्रक्रिया थी, लेकिन अशोक जी को बड़ा आनंद आया! माया वापस दूध पीने लगी। उधर अजय सकौशल दूध पी रहा था और टीवी भी देख रहा था।

फ़िल्म देखते देखते किरण जी की नज़र अचानक से अशोक जी पर पड़ी - वो उन्ही की तरफ़ देख रहे थे। एक पल को दोनों की नज़रें मिलीं। अशोक जी ने उनकी तरफ़ से अपनी नज़रें हटाई नहीं। फिर किरण जी की नज़र अपने नग्न शरीर पर पड़ी! अपनी ऐसी दशा देख कर उनके चेहरे का रंग एकदम से सफ़ेद हो गया। लेकिन, फिलहाल वो चाह कर भी अपने को ढँक नहीं सकती थीं... क्योंकि उनकी ब्लाउज़ और ब्रा दोनों ही उनके शरीर पर नहीं थी, और साड़ी का पल्लू दोनों में से किसी बच्चे के शरीर के नीचे दब गया था। उनको दो पल समझ नहीं आया कि इस स्थिति से निकला कैसे जाए - दोनों बच्चे अभी भी उनके स्तनों से लगे हुए थे... उनके स्तनों में अभी भी कुछ दूध था और वो उनको उससे वंचित नहीं करना चाहती थीं। वैसे भी, दोनों की ही आदत थी कि स्तनों से दूध समाप्त हो जाने के बाद भी दोनों देर तक स्तनपान करते रहते थे। उनका स्तनपान करना दोनों बच्चों को केवल शारीरिक पोषण ही नहीं, बल्कि भावनात्मक पोषण भी देता था। वो स्वयं भी दोनों को दूध पिला कर बहुत संतुष्ट, प्रसन्न, और स्वस्थ महसूस करती थीं। इसलिए उन्होंने दोनों को ही आज तक एक बार भी नहीं रोका।

कुछ क्षणों सोचने के बाद अंत में उन्होंने सोचा कि कॉन्फिडेंस से ही काम लेना चाहिए... आख़िर, वो अशोक से बड़ी जो हैं!

किरण जी अच्छे से जानती और समझती थीं अशोक जी को! जब वो ब्याह कर इस घर में आई थीं, तो अशोक केवल पंद्रह साल का था। वो अशोक जी से दो साल बड़ी थीं। उनके पति, अनामि भी कोई उम्र-दराज़ नहीं थे - वो स्वयं साढ़े उन्नीस के थे। सारदा एक्ट तब पंद्रह साल की लड़की और अट्ठारह साल के लड़के का विवाह कानूनी तौर पर मान्य करता था। उनकी सास की मृत्यु चार साल पहले ही हो गई थी, इसलिए किरण जी इस घर में केवल बहू ही नहीं, बल्कि बड़ी मालकिन की भूमिका में प्रविष्ट हुई थीं। उनके ससुर जी भी अपने पोते का मुँह देखने के कुछ माह बाद ही स्वर्ग सिधार गए। तब से इन पच्चीस सालों में उन्होंने अशोक को बढ़ते और परिपक्व होते हुए देखा। अशोक जी को उन्होंने भाभी के रूप में बहुत प्रेम दिया था। वो एक सज्जन आदमी था... प्रियंका (अशोक जी की पत्नी) की मृत्यु के तीन साल से ऊपर हो चले थे, लेकिन वो कभी भी भ्रमित नहीं हुआ था। न तो उन्होंने उसने उनकी तरफ और न ही किसी अन्य महिला की तरफ़ गलत नज़र डाली थी। न केवल सज्जन ही, साथ ही साथ शर्मीला भी था उनका देवर!

उन्होंने अपनी आँखों और भौंह को उचका कर अशोक जी से पूछा, ‘क्या?’

अशोक जी, जो अभी तक मंत्रमुग्ध से न केवल इस सुन्दर दृश्य को देख रहे थे बल्कि किरण जी की सुंदरता का अवलोकन भी कर रहे थे, को लगा कि उनकी चोरी पकड़ ली गई। उनके होंठों पर एक नर्वस मुस्कान आ गई।

उन्होंने ‘न’ में सर हिला कर उत्तर दिया, ‘कुछ नहीं भाभी!’

लेकिन किरण जी उनको इतनी आसानी से नहीं छोड़ना चाहती थीं। अब जब वो पकड़ में आ ही गए थे, तो थोड़ा और छेड़ना बनता था।

उन्होंने अपने स्तन की तरफ़ अपनी तर्जनी से संकेत कर के, बिना आवाज़, केवल होंठों को हिला कर पूछा, ‘पियोगे?’

अब तक अशोक जी पूरी तरह से शर्मिंदा हो गए थे... उन्होंने भी बिना आवाज़ कहा, ‘क्या भाभी!’

‘तो फिल्म देखो,’ किरण जी ने आँखें तरेर कर उनको बिना आवाज़ डाँटा।

अशोक जी तुरंत, अच्छे बच्चे की भाँति वापस फिल्म देखने लगे।

उनकी इस हरकत पर किरण जी मुस्कुराने लगीं।

‘कितना सीधा और क्यूट है अशोक,’ उनके मन में यह विचार आये बिना न रह सका।

अनायास ही रूचि की बातें उनके मन में चलने लगीं।

करीब दस और मिनट तक स्तनपान चला। उतनी देर में अशोक जी ने एक बार भी भाभी की तरफ़ नहीं देखा। और ये तब जब भाभी ने बड़ी फुर्सत से, माया की मदद से अपनी ब्रा और ब्लाउज़ पहना।

‘बहुत सीधा है अशोक...’ किरण जी सोच रही थीं, ‘ये रूचि भी न... कैसे कैसे थॉट्स लिवा लाई मन में,’

**
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
4,381
24,493
159
अपडेट 63


शाम के समय दोनों समधी परिवार पुनः बड़ी गर्मजोशी से मिले।

सभी ने अजय का हाल चाल पूछा, उसके स्वास्थ्य को ले कर चिंता जताई, और उसको अच्छा खाने पीने की हिदायद दी। कमल भी बहुत परेशान था - उसने अजय को सख़्त हिदायद दी कि अब से वो अकेले कॉलेज तो नहीं ही जाएगा। उसने अजय से कहा कि पहले उसका भाई, फिर ‘जीजू’, और फिर रूचि का ‘बड़ा भाई’ होने के कारण उसका भी कुछ फ़र्ज़ है। यह सब ठीक था, लेकिन अब अजय कैसे सबको बताता कि उसको यह अनुभव हुआ ही क्यों! कैसे समझाता कि रागिनी के कारण उसकी बेहोशी ‘ट्रिगर’ हुई। कैसे समझाता कि कभी रागिनी उसकी बीवी थी... होगी? अगर बता भी देता, तो अशोक जी के अतिरिक्त उसकी बात मानता भी कोई क्यों? कल रूचि वो सारा रहस्य सुन कर कितनी विचलित हो गई थी! कितनी मुश्किल से उसने उसकी बात को आत्मसात किया था। ऐसी बातें कहाँ होती हैं भला? सवेरे भी घर से निकलते समय बेचारी परेशान सी थी। वो उसके घर फ़ोन करना चाहता था, लेकिन कुछ सोच उसने नहीं किया - वो नहीं चाहता था कि रागिनी से उसका किसी भी रूप में सामना हो।

*

लेकिन शाम को घर से निकलने के ठीक पहले रूचि के पिता जी का फ़ोन आया। दोनों समधियों ने देर तक बातें करीं। अंत में उसकी रूचि से बातें हुईं। उसकी आवाज़ से लग रहा था कि वो अब बेहतर थी।

“रूचि,” उसने बेहद प्रेम से पूछा, “कैसी हो मेरी जान?”

“मैं ठीक हूँ अज्जू... मेरी चिंता न करो।”

“हम्म्म,”

“आई मिस यू,”

“सेम हियर... सबने मुझ पर पहले बैठा रखे हैं, और मेरा मन तुम्हारे साथ होने को हो रहा है,”

“तो आ जाओ,”

“न बाबा!” अजय ने हँसते हुए कहा, “दोबारा बेहोश नहीं होना है मुझे,”

“तुम सही थे अज्जू... आई ट्रस्ट यू,”

“हम्म...”

रूचि ने अजय को इशारे में बताया कि उसने ‘कन्फर्म’ किया हो कि रागिनी वो ही लड़की है जिससे अजय की शादी हुई थी। न तो उसने अजय को बताया, और न ही अजय ने उससे पूछा कि उसको यह कैसे पता चला।

“अभी क्या कर रहे हो?”

“जीजू के घर जाने वाले हैं...”

“ओह! क्यों?”

“आंटी जी ने पापा को बुलाया है, भाई दूज के लिए।”

“ओह अच्छा... अच्छी बात है।”

“तुम क्या कर रही हो?”

“यू नो,” उसने थोड़ा झिझकते हुए कहा, “दीदी मुझको कल शॉपिंग कराने ले जाने वाली है,”

“दीदी?”

“रागिनी...” उसने दबे स्वर में कहा।

“ओह गॉड,”

“नहीं अज्जू... ऐसे मत करो!” रूचि ने कहा, “आई नो, जो तुमने कहा है वो सब सच है... लेकिन दीदी वैसी नहीं है... आई मीन ‘अभी’ वैसी नहीं है!”

“ओके!”

“अज्जू... माय हार्ट... तुमको मुझ पर भरोसा है न?”

“यार ऐसे सवाल न पूछा करो,”

“तो फिर मुझे एक दो चांस दो न!”

“क्या करना चाहती हो?”

“मैं बस ये चाहती हूँ कि वो गलत रास्ते पर न चले... गलत औरत न बने...”

“हम्म्म...”

“इसके बारे में बाद में बात करेंगे, लेकिन... अगर पॉसिबल हो, तो तुम भी हम दोनों के साथ शॉपिंग पर आओ?”

अजय इस सुझाव पर चौंक गया, “शॉपिंग?”

रूचि चाहती है कि वो उसके और रागिनी के साथ शॉपिंग पर चले! सब कुछ जानने के बाद भी! आख़िर क्यों?

अजय ने अपनी अनिश्चितता दिखाई, लेकिन रूचि ने उसको दिलासा दिया कि उसको डरना या चिंता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि उसकी ज़िन्दगी में अब वो है। एक पत्नी की तरह वो उसको अपनी पूरी क्षमता के अनुसार सुरक्षित रखेगी और उसका पूरा ध्यान रखेगी। अजय ने उसकी बात सुनी और समझी... फिर उसने एक मार्ग सुझाया,

“ठीक है! आई विल कम... लेकिन साथ में माया दीदी भी आ जाएँ, तो चलेगा? उनको भी तो शॉपिंग करनी ही है। होने वाली दुल्हन की शॉपिंग शायद ही कभी पूरी होती है...”

“बिलकुल चलेगा... आई लव दीदी - भाभी - अरे यार...”

“हा हा हा... ठीक है।”

“मैं एक बार दीदी से पूछ लूँ?”

“रागिनी से? हाँ पूछ लो,”

रूचि ने यह बात रागिनी से कही तो अजय को उधर से रागिनी की ‘प्रसन्नता’ भरी आवाज़ सुनाई दी। जो थोड़ा अस्पष्ट सा सुनाई दिया, उसने अनुसार वो भी माया दीदी से मिलना चाहती थी। अजय का मन तो नहीं था, लेकिन रूचि पर विश्वास न करने का उसके पास कोई कारण नहीं था। तो यह तय रहा कि दोपहर में वो सभी शॉपिंग पर मिलेंगे।

अजय ने रूचि को बताया कि उसको सुबह वानप्रस्थ हॉस्पिटल जाना है। उस पर रूचि ने कहा कि वो भी चलेगी, लेकिन अजय ने उसको मना कर दिया और समझाया कि सब ठीक है, और डॉक्टर केवल कुछ टेस्ट्स करना चाहते हैं... उसके अतिरिक्त कुछ भी सीरियस नहीं है। थोड़ा समझाने पर रूचि मान गई। फिर अजय ने सुझाया कि चूँकि रूचि के घर से लाजपत नगर पास में पड़ेगा, तो वो माया दीदी के साथ वहाँ उनसे मिलेगा और फिर सभी वहाँ से सरोजिनी नगर चलेंगे। फिर शॉपिंग हो जाने के बाद वो रूचि और रागिनी को उनके घर छोड़ देगा।

कल रागिनी से होने वाली मुलाकात की बात सोच कर अजय थोड़ा उद्विग्न हो रहा था, लेकिन उसको इस बात से धैर्य हो रहा था कि उसके संग रूचि भी रहेगी। वो सम्हाल लेगी, अगर उससे नहीं हो पाया! और फिर माया दीदी भी तो रहेंगीं वहाँ। यह सोच कर उसका दिल थोड़ा और मज़बूत हुआ। वैसे भी यह कहते हैं कि अपने डर का सामना करो... डर के आगे जीत है। शायद रागिनी के डर के आगे बढ़ने से वो खुद भी अपने जीवन में आगे बढ़ सके?

*

सरिता जी ने अशोक जी की आरती उतारी - जैसे भाई दूज पर बहनें अपने भाईयों की करती हैं। फिर उनको मिठाई खिला कर वो उनके चरण-स्पर्श करने को हुईं, तो अशोक जी ने उनको ससम्मान मना कर दिया - यह कह कर कि उनके बहनें अपने भाईयों के पैर नहीं छूतीं। वैसे भी उनको तीन महीने का गर्भ था, ऐसे में अशोक जी कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे। उपहार स्वरुप उन्होंने सरिता जी को वन-तुलसी का एक पौधा दिया। कहने को यह एक सामान्य सा पौधा था, लेकिन इसके अनेकों स्वास्थ्य लाभ होते हैं, जैसे इसके नियमित प्रयोग से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, श्वास सम्बन्धी रोगों (जैसे, खाँसी और सर्दी-जुकाम) में लाभ होता है, इससे मानसिक तनाव कम होता है और मन शांत होआ है, पाचन की समस्याओं (जैसे, गैस, अपच, और पेट दर्द) में कारगर है, मधुमेह के रोगी भी लाभान्वित होते हैं, और संक्रमणों से लड़ने की क्षमता आती है। इन्ही गुणों के कारण शायद वन-तुलसी को आयुर्वेद में “रक्षा-कवच” के रूप में देखा जाता है। धार्मिक रूप से भी यह बहुत पवित्र माना जाता है - एक बहुत बड़े धाम में इसको प्रसाद के रूप में भी दिया जाता है।

सरिता जी अपना उपहार पा कर बहुत खुश हुईं - वैसे भी उनको पुष्पों और पौधों से अगाध प्रेम था।

इधर दोनों तरफ़ के समधी आपस में बातें करने में मगन थे, और उधर कमल और माया भी कुछ समय के लिए अकेले हो गए। वो दोनों चाहते थे कि अजय भी उनके साथ ही कमल के कमरे में आ जाए, लेकिन अजय ने ही मना कर दिया। वो अकेले में बैठ कर कल होने वाली घटनाओं के बारे में सोचने लगा। डॉक्टर देशपाण्डे क्या टेस्ट्स करना चाहते हैं? क्या उनको उसके मस्तिष्क में कोई असामान्य परिवर्तन दिखाई दिए? हो सकता है न - शायद इसीलिए वो उनको सामने सामने बताना न चाह रहे हों? उसने थोड़ा सोचा - कई वर्षों तक वो अपने पिता की मृत्यु का दोष डॉक्टर देशपाण्डे पर डालता रहा, लेकिन मन ही मन वो भी समझता था कि उनकी उस घटना में कोई गलती नहीं थी। उनको अशोक जी की एलर्जी के बारे में पता ही नहीं था, क्योंकि उसका कोई रिकॉर्ड ही नहीं था। ऐसे में गलती हो गई और उसका सभी ने इतना बड़ा खामियाज़ा भुगता! उसने यह सब सोचते हुए गहरी साँस ली।

ख़ैर, सबसे बड़ी समस्या कल रागिनी के कारण थी। उसके नाम से उसकी हालत कैसी पतली हो गई थी - और अब उसके साथ इतना समय बिताना! कैसे संभव होगा वो सब? गनीमत इसी बात की थी कि रूचि और माया दीदी भी संग होंगी।

“अज्जू बेटे,” किशोर राणा जी अजय के पास आते हुए बोले।

“जी अंकल जी?”

“बेटे, रूचि बिटिया का फ़ोन है,”

“ओह,” अजय अपनी तन्द्रा से पूरी तरह से बाहर आ गया था, “जी आया,”

टेलीफोन का कनेक्शन बगल वाले छोटे हॉल में भी था, तो वहीं से अजय ने कॉल रिसीव किया।

“मेरी जान,” अजय धीरे से, लेकिन पूरी ईमानदारी और निस्सीम प्रेम से बोला।

रूचि को अवश्य ही यह सुन कर बहुत भला लगा, “अज्जू... आई लव यू,”

“आई नो... आई लव यू टू,” अजय को भी उसकी आवाज़ सुन कर बहुत अच्छा लगा। दिल में ठंडक का एहसास हो आया।

“ओके,” वो बोली।

“बस, यही कहने के लिए कॉल किया था?” अजय मुस्कुरा रहा था।

“तुम्हारी आवाज़ सुन ली, मन को सुकून मिल गया,” वो बोली।

“हम्म्म,”

“एक बात कहूँ? बुरा तो नहीं मानोगे न अज्जू... माय लव?”

“तुम्हारी किसी भी बात का बुरा नहीं मान सकता... बोलो न,”

“वो न,” उसने दबी आवाज़ में कहा, “रागिनी दीदी के सामने मुझे नेकेड होना पड़ा,”

“अरे,” पहले तो यह सुन कर अजय चौंका, लेकिन फिर उसको लगा कि पूछना चाहिए कि उसने ऐसा क्यों किया, “... क्यों?”

“तभी तो मुझे उसका तिल देखने को मिला,”

“अज्जू... एक बात कहूँ?”

“बोलो न मेरी जान,”

“दीदी बुरी नहीं है,” उसने कहा, “मेरा मतलब... अभी तक तो बुरी नहीं है! उसकी लाइफ चॉइसेस गड़बड़ हैं, लेकिन वो बुरी नहीं है... पता है, वो अपने ही तरीके से हमारे लिए बहुत खुश भी है,”

“ओके!”

“... मैं तुमको केवल इसलिए बता रही हूँ कि कल उससे मिल कर घबराना मत,” रूचि ने अजय को समझाया, “ये वो वाली रागिनी नहीं है,”

“ध्यान रखूँगा ये बात!”

“थैंक यू लव,” रूचि ज़रूर मुस्कुराई होगी, “... और मैं तो रहूँगी न तुम्हारे साथ! अपनी मोहब्बत को मैं किसी क़ीमत पर नहीं छोड़ सकती!”

“हा हा हा...! बस करो फ़िल्मी डायलाग!”

“धत्त,” रूचि भी हँसने लगी, “आई लव यू,”

“लव यू मोर,”

“रखती हूँ... कल मिलते हैं! ओके?”

“यस,” अजय बोला, “बाय!”

**
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
4,381
24,493
159
अपडेट 64


अगली सुबह जब अशोक जी ऑफिस जाने के लिए निकले, तो कार कमल ड्राइव कर रहा था।

कल जब माया ने उसको शादी की शॉपिंग के बारे में बताया, तो कमल ने भी साथ आने की इच्छा जताई। सरिता जी भी चाहती थीं कि माया अपनी पसंद के कुछ कपड़े इत्यादि ले ले, क्योंकि वो अपनी गर्भावस्था के कारण अपेक्षाकृत जल्दी थक जा रही थीं। चूँकि कमल ने अजय को अकेले कहीं जाने से मना किया था, इसलिए ड्राइविंग का जिम्मा उसने लिया। इस समय अजय और माया भी उसके साथ में थे। कमल ने सबसे पहले अशोक जी को उनके ऑफ़िस में छोड़ा, फिर सीधा वानप्रस्थ हॉस्पिटल का रुख लिया।

एकदम सुबह का अपॉइंटमेंट था। सुबह के दो घण्टे डॉक्टर देशपाण्डे ‘फ्री’ थे, लिहाज़ा उनको यह समय उचित लगा अजय से बात करने के लिए।

“गुड मॉर्निंग, डॉक्टर देशपाण्डे,”

“अजय,” उन्होंने गर्मजोशी से कहा, “हाऊ आर यू फ़ीलिंग, यंग मैन?”

“बिल्कुल दुरुस्त, डॉक्टर!” अजय ने माया और कमल को मिलवाते हुए कहा, “शायद आप इनसे मिलें हों - मेरी दीदी, माया, और मेरे होने वाले जीजा जी, कमल?”

“हेलो,” डॉक्टर ने दोनों से हाथ मिला कर उनका अभिवादन किया, और मुस्तुराते हुए उसको बताया, “हाँ भई, मिला हूँ... और हमारी अच्छी दोस्ती भी है!”

“ओके,” अजय हँसने लगा।

“कोई परेशानी? कोई कॉम्प्लिकेशन?”

“नहीं,” अजय ने बताया।

“हम्म्म,”

“आप कह रहे थे कि कुछ एडिशनल टेस्ट्स करने हैं... क्या कुछ डाउट्स हैं?”

“हाँ,” डॉक्टर देशपाण्डे बोले, “कमल, माया... क्या आप दोनों कुछ देर बाहर वेट कर सकते हैं?”

“लेकिन डॉक्टर साहब,” माया बोली, “अगर कोई ऐसी बात है, तो हमारा रहना ठीक है न? मैं इसकी दीदी हूँ, और बाबू अभी भी नाबालिग़ है,”

अजय अपनी दीदी के मुँह से अपने लिया ‘बाबू’ शब्द सुन कर शर्मिंदा हो गया। ये ‘बड़े’ लोग अपनी आदत नहीं छोड़ पाते कभी भी। बाहरी लोगों के सामने उसको उसके घर वाले नाम से बुलाने की क्या ज़रुरत है?

“जी डॉक्टर,” कमल भी शामिल हो गया, “हम गार्डियन हैं अज्जू के... हमारे सामने आप सब कह सकते हैं!”

“देखिए ऐसी कोई बात नहीं है। टेस्ट्स के टाइम, आप दोनों अजय के साथ रह सकते हैं,” डॉक्टर बोले, “मुझे फिलहाल अजय से कुछ सवाल करने हैं, और कुछ नहीं!”

“ठीक है सर,” कह कर दोनों बाहर आ गए।

उनके जाने के बाद डॉक्टर देशपाण्डे ने कहा,

“जैसा मैंने पहले बताया, बेटे... मेरे पास कुछ क्वेश्चंस हैं...”

“कैसे क्वेश्चंस, सर?”

“बैठो, बताता हूँ...” कह कर उन्होंने अजय को कुर्सी पर बैठने का इशारा किया और अपनी अलमारी की ओर बढ़ गए।

वहाँ से उन्होंने एक टेप रिकॉर्डर निकाला।

“जब तुम अनकॉन्शियस थे न बेटे, तब तुम बहुत ही काम्प्लेक्स साइंटिफिक टर्म्स और बातें कह रहे थे...”

“जी? मैं?”

उन्होंने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा, “और जो बातें तुम कह रहे थे, मैंने उसको रिकॉर्ड कर लिया था।”

उन्होंने टेप रिकॉर्डर शुरू किया,

‘... सप्रेसर जीन दैट रेगुलेट्स सेल प्रोलिफिरेशन एंड हेल्प्स द सर्वाइवल ऑफ़ न्यूरल टिश्यूस... [अस्पष्ट आवाज़] ... स्पेशियली ट्यूमर्स... ग्लियोमा एंड मेडुलोब्लास्टोमा... [अस्पष्ट आवाज़] क्रिटिकल रेगुलेटर ऑफ़ न्यूरल सेल ग्रोथ, डीएनए रिपेयर, एपोप्टोसिस टू ऑन्कोजेनिक स्ट्रेस इन ब्रेन्स माइक्रो एनवायरनमेंट...’

डॉक्टर ने टेप को कुछ देर के लिए रोक दिया।

“ये मैं कह रहा हूँ?” अजय को यकीन ही नहीं हुआ।

डॉक्टर ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“लेकिन... मेरी ऐसी आवाज़ नहीं है डॉक्टर,”

“आई नो! लेकिन कॉन्शियसनेस जाने पर आवाज़ भी बदल जाती है... एक तो तुम... समझो एक गहरी नींद में थे और लेटे हुए थे... ऐसे में आवाज़ बदलना कोई अचम्भा नहीं है!”

“हम्म,” अजय को समझ नहीं आ रहा था, “लेकिन मुझे ये सब आया कैसे? कभी सुना ही नहीं ये सब!”

“तुमको बायोलॉजी में इंटरेस्ट नहीं?”

“दूर दूर तक कोई लेना देना ही नहीं है सर,”

“मेरे पास पूरे थर्टी नाइन मिनट्स की रिकॉर्डिंग है... और सच कहूँ, जो बातें तुम अनकॉन्शियस हो कर कह रहे थे न, वो सब एक मेडिकल गोल्ड माइन ऑफ़ इन्फॉर्मेशन एंड इनसाइट्स हैं!”

“वाओ... ओके,”

“मेरा रिसर्च... जैसा कि मैंने तुमको बताया था, आई ऍम रिसर्चिंग इन न्यूरोऑन्कोलॉजी... साथ ही मैं न्यूरोसर्जन भी हूँ... इसी टॉपिक पर है!”

“ओके,”

“तुमको कुछ समझ में नहीं आ रहा है न?”

अजय ने ‘न’ में सर हिलाया।

“बेटे, तुम जब अनकॉन्शियस हो कर ये सब बता रहे थे न, तब तुम एक जीन को डिस्क्राइब कर रहे थे... ऐसा जीन जो कुछ काम्प्लेक्स एंड अनट्रीटेबल ब्रेन कैंसर्स को ट्रीट करने में हेल्प कर सकता है!”

“वाओ!”

“हाँ... और मैं चाहता हूँ, कि तुम्हारी परमिशन से, मैं इस इन्फॉर्मेशन को अपनी रिसर्च में इस्तेमाल करूँ...”

“ओह, श्योर सर!”

“थैंक यू,” उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “लेकिन पूरी बात सुन लो... मेडिकल रिसर्च में सक्सेस रेट बहुत कम होता है। लेकिन जब सक्सेस मिलती है, तब उसका फाइनेंसियल विंडफॉल बहुत बड़ा होता है,”

“ओके!”

“तो मैं चाहता हूँ कि तुमको एस अ रिसर्च अस्सिस्टेंट अपनी रिसर्च में मेंशन करूँ, और यह इंश्योर करूँ कि तुमको भी कुछ परसेंटेज मिले प्रॉफ़िट्स का!”

“सर, अगर इस रिसर्च से लोगों का भला होता है, तो मुझे कुछ और नहीं चाहिए। ... वैसे भी, मैंने कुछ नहीं किया है... बस कुछ ऐसा जिब्बरिश बोल रहा हूँ, जिसके बारे में मुझे खुद ही कुछ नहीं पता!”

“इवन सो, मैं चाहता हूँ कि तुमको कुछ फाइनेंसियल बेनिफिट्स मिलें, अगर हम इस रिसर्च में सक्सेसफुल होते हैं तो!”

“ठीक है सर, अगर आपकी यही इच्छा है, तो मैं मान लेता हूँ!”

अजय समझ रहा था कि यह भी ईश्वर का ही कोई चमत्कार था, जो उसके माध्यम से संसार में आने वाला था। ईश्वरीय प्रसाद सभी में बिना किसी भेद भाव के, बिना किसी लालच के बाँटना चाहिए।

“... लेकिन मैं वो सब आपके रिसर्च में ही रीइन्वेस्ट कर दूँगा!”

“हा हा हा हा... अरे यार, कैसे हो तुम!” डॉक्टर देशपाण्डे ने ठहाके लगाते हुए कहा, “यहाँ मैं तुमको प्रॉफ़िट्स दिखा रहा हूँ, और तुम हो कि कुछ चाहते ही नहीं!”

अजय मुस्कुराया, “ठीक है सर! चलिए आपसे एक चीज़ माँग ही लेता हूँ,”

“हाँ बोलो,”

“अगर कभी ज़रुरत पड़ी, तो आप मेरे चुने हुए एक पेशेंट का मुफ़्त में ऑपरेशन या ट्रीटमेंट करेंगे!”

डॉक्टर देशपाण्डे मुस्कुराए, “यू गॉट इट,”

“थैंक यू सर,”

“नाऊ कम, लेट्स रन सम टेस्ट्स,”

“श्योर सर,”

“आई जस्ट वांट टू मेक श्योर दैट नथिंग इस बॉदरिंग यू,”

अजय मुस्कुराया, “श्योर सर,”

“गुड! नर्स?”

*
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
4,381
24,493
159
अपडेट 65


टेस्ट्स के लिए अजय को एक नर्स ले कर एम आर आई लैब के अटैच्ड रूम में ले कर गई। नर्स ने सामान्य लैब जैसा एप्रन पहना हुआ था। पैरों में रबर के जूते और सर के बालों पर शावर कैप जैसा कुछ था। देखने में साधारण ही थी वो - उम्र में शायद शशि मैम जितनी रही हो। उसने माया और कमल को भी वहाँ बुला लिया।

“अजय, आप अपने सारे कपड़े उतार कर रेडी हो जाइए,” नर्स ने निर्देश दिया।

“यस सिस्टर,”

कह कर अजय कपड़े उतारने लगा।

“क्या कहा डॉक्टर ने बाबू?” माया ने चिंतातुर होते हुए पूछा।

“कुछ नहीं दीदी,” अजय ने कपड़े उतारते हुए कहा, “उन्होंने कहा कि बस कुछ स्कैन्स होंगे... कुछ भी ख़ास नहीं!”

“इतनी सी बात बताने के लिए इतना टाइम क्यों लिया?”

“अरे, वो बस मुझे सब कुछ समझा रहे थे,” अजय ने दीदी के प्रश्नों को टालते हुए कहा।

“ओके,” माया को तसल्ली तो नहीं हुई, लेकिन उसने आगे नहीं कुरेदा।

कुछ ही देर में अजय पूरी तरह से नग्न खड़ा था।

उसको यूँ देख कर कमल ने पूछा, “ऐसे होगा स्कैन? कुछ पहनने को नहीं देंगे?”

“पता नहीं,”

यह थोड़ा अपरिचित सा माहौल था - माया दीदी के सामने वो अक्सर ही नग्न हो जाता था, लेकिन कमल के सामने अभी तक नहीं हुआ था। दोनों अपने अल्हड़पन में एडल्ट जोक्स शेयर करते थे, लेकिन इतना आगे नहीं जा पाए थे। अपरिचित सा माहौल था, लेकिन न जाने क्यों उसके शिश्न में उत्थान हो रहा था।

उसके शिश्न को देख कर कमल ने उसको छेड़ा, “मेरे भाई, शादी के बाद थोड़ा सम्हाल कर रहना... मेरी बहन को तकलीफ़ नहीं होनी चाहिए,”

“चुप रहिए... आप भी न,” माया नाराज़ होती हुई बोली, और अपनी हथेली से अपने वीरन के शिश्न को उसने ढँक लिया, “नज़र मत लगाईये मेरे वीरन को,”

“अरे... मेरा भी भाई है वो भाग्यवान...” कमल ने ‘बड़े’ लोगों वाली भाषा का प्रयोग करते हुए कहा, “मेरी नज़र क्यों लगेगी इसको? और मेरी बहन से उसका ब्याह होने वाला है... बस इसीलिए मैंने उसको थोड़ा सम्हालने को बोला,”

उसके इस अंदाज़ पर अजय भी हँसने लगा।

“आप भी मेरी दीदी को तकलीफ़ न होने देना, जीजू,” अजय ने हँसते हुए कहा।

माया इस छेड़खानी से शर्मसार हो गई। उसने उसका शिश्न छोड़ कर उसका कान खींचा।

“दोनों ही बदमाश हैं,”

तभी नर्स वहाँ वापस आती है और अजय के शरीर पर प्रशंसात्मक दृष्टि डालती है।

“इसको भी उतार दो,” नर्स ने अजय के लॉकेट की तरफ़ इशारा किया।

वो लॉकेट दरअसल उसकी माँ की अँगूठी थी, जिसको वो अपने गले में पहनता था। उसने चेन समेत उतार कर लॉकेट माया दीदी को दे दिया।

“सिस्टर,” कमल ने पूछा, “इसको कुछ पहनने को नहीं देंगे?”

“जी वैसे तो देते हैं, अगर केवल हेड का स्कैन होता है।” नर्स ने कहना शुरू किया - आश्चर्य होता है जब हॉस्पिटल स्टाफ़, पेशेंट के गार्डियन को पेशेंट से अधिक आदर देता है, “लेकिन अजय का फुल बॉडी स्कैन है। और मार्जिन ऑफ़ एरर ज़ीरो रखने के लिए डॉक्टर ने ऐसे रहने को कहा है... कई बार मेटल, सिंथेटिक कपड़े, या फिर इलास्टिक भी रहने से रीडिंग गलत आती है! ”

“ओह,”

“आप दोनों बाहर आ जाइए,” नर्स ने माया और कमल को निर्देश दिया, “और अजय, तुम यहाँ, इस पर लेट जाओ,”

उसने अजय को एम आर आई मशीन के स्टेज पर उसको लेटने को कहा।

पूरे शरीर का एम आर आई होना था, तो कोई पौने दो घण्टे लग गए।

एक लम्बे ट्यूब में इतनी देर लेटे रहना कठिन काम है, क्योंकि आरामदेय नहीं होता। और सब ठंडा ठंडा महसूस होता है। उसको ईयरप्लग्स दिए गए थे, लेकिन फिर भी खड़खड़ाहट की आवाज़ें सुनाई दे रही थीं। सीने के स्कैन के समय उसको कुछ समय साँस रोकने को भी कहा गया। बाहर के स्कैन कण्ट्रोल रूम से माया और अजय बेचैनी से यह सब होता हुआ देख रहे थे। माया को इसी बात की चिंता खाए जा रही थी कि ‘इतना लम्बा’ टेस्ट हो रहा है, तो ज़रूर कोई सीरियस बात होगी। लेकिन लैब टेक्नीशियन ने उसको बताया कि फुल एम आर आई करने में इतना समय लगता ही है, और इसमें चिंता वाली कोई बात नहीं है।

जब यह हो गया, तब नर्स ने अजय को लैब से ही अटैच्ड एक अन्य कमरे में जाने को कहा।

चूँकि माया और कमल उसके गार्डियन थे, इसलिए उनको भी साथ आने का आग्रह किया गया कि उनके अनुमोदन से टेस्ट हो रहे हैं। इस बार कमरे में एक अपेक्षाकृत खूबसूरत लड़की उपस्थित थी। देखने में वो माया दीदी या श्रद्धा मैम की हम-उम्र लग रही थी और नर्स तो बिलकुल ही नहीं लग रही थी।

उसने अपने परिचय में बताया कि वो एक मेडिकल स्टूडेंट है, और डॉक्टर देशपाण्डे उसके गाइड हैं।

“अजय,” उसने बहुत हँसमुख अंदाज़ में पूछा, “हाऊ आर व्ही टुडे?”

“व्ही आर गुड, डॉक्टर!” अजय सामान्य बने रहने की बहुत कोशिश कर रहा था।

“ग्रेट! आपकी स्कैन्स की रिपोर्ट्स डॉक्टर देशपाण्डे को दे दी जाएगी, वो ही फिर आगे बताएँगे कि क्या करना है। ओके?”

“यस डॉक्टर!” अजय ने कहा।

“आप दोनों अजय के गार्डियन हैं, करेक्ट?”

“यस डॉक्टर,” कमल बोला, “आई ऍम हिज ब्रदर इन लॉ,”

“ओके! और आप इनकी दीदी हैं?”

“जी,” माया ने बताया।

“वैरी गुड,” डॉक्टर ने ऑब्ज़र्वेशन के प्रोसीजर के बारे में बताना शुरू किया। जहाँ जहाँ अजय को थोड़ी तकलीफ़ हो सकती थी, उन्होंने सब बताया और फ़िर गार्डियन का कंसेंट माँगा, “आर यू ओके विद दैट?”

“श्योर!” कमल बोला, और उसने फॉर्म पर अपना दस्तख़त किया।

“जी ठीक है,” माया बोली, “लेकिन अज्जू को कुछ पहनने को दे सकते हैं?”

“दे सकते हैं... बट आई वांट टू ऑब्ज़र्व हिम! वैसे भी हम तीनों उससे बड़े हैं!” फ़िर अजय की तरफ़ मुखातिब हो कर, “अजय आर यू ओके स्टेइंग नेकेड फॉर सम मोर टाइम?”

“दैट्स ओके डॉक्टर,”

“गुड बॉय,” वो प्रशंसापूर्वक बोली, “यू आर अ हैंडसम एंड स्ट्रांग बॉय... डोंट बी शाय!”

अजय मुस्कुराया।

“ओके! तो अजय, बहुत टाइम नहीं लगेगा... बस कोई थर्टी फोर्टी मिनट्स... देन यू आर फ्री टू गो,”

अगले कोई एक घण्टे तक डॉक्टर ने अजय के लिए स्कोलियोसिस, एलेक्ट्रोमायोग्राफी, नर्व कंडक्शन टेस्ट्स, गैट, बैलेंस, एंड मोटर फंक्शन्स टेस्ट्स, मैनिंजाल टेस्ट्स, स्पाइनल टैप, और स्कॉरल टेस्ट्स किए और अपने ऑब्ज़र्वेशन्स लिखे।

अंत में वो बोली, “आई डोंट सी एनी प्रॉब्लम्स विद यू, अजय! ... इफ एट आल, यू आर फुली फिट एंड देयर आर नो साइंस ऑफ़ न्यूरोलॉजिकल एलमेंट्स,”

“थैंक यू सो मच डॉक्टर,” कमल ख़ुशी से चहक उठा।

“एंड, बेस्ड ऑन माय अदर जनरल ऑब्ज़र्वेशन्स, यू आर अ हेल्दी एंड स्ट्रांग यंग मैन... योर हार्ट फंक्शन्स आर टुवर्ड्स स्ट्रांग, ब्रीदिंग इस वैरी गुड विद गुड चेस्ट एक्सपेंशन, एंड यू हैव गुड मसल मॉस...”,

अजय मुस्कुराया - हेल्थ इस वेल्थ, यह बात तो उसको बहुत पहले ही समझ में आ गई थी।

“आई हियर दैट यू हैव अ फिएंसी?”

“यस डॉक्टर!”

“अ लिटिल यंग टू गेट मैरिड... डोंट यू थिंक?” उसने मुस्कुराते हुए कहा।

“आई लव हर वैरी मच... एंड माय फैमिली लव्स हर वैरी मच एस वेल,” अजय बस इतना ही बोल सका - वैसे भी उसको उस डॉक्टर को किसी भी तरह की सफ़ाई देने की कोई आवश्यकता नहीं थी।

“वेल... शी इस अ लकी गर्ल,” डॉक्टर बोली, “इट इस रेयर टू हैव योर लेवल ऑफ़ मैच्योरिटी इन यंग मेन ऑफ़ योर ऐज! एंड आई हैव अ गुड न्यूज़... योर रीप्रोडक्टिव ऑर्गन्स आर वैरी हेल्दी... योर इरेक्शन इस स्ट्रांग एंड इस हेल्ड विदाउट स्टिमुलेशन! गुड!”

“गुड टू नो दैट,” अजय थोड़ा शर्मिंदा हो गया।

“यू आर मोस्ट वेलकम! टेक गुड केयर ऑफ़ योर हेल्थ!” उसने ज़ोर से मुस्कुराते हुए कहा और कमरे से निकल गई।

“मेरा भाई,” कर कर कमल ने अजय को आलिंगन में भर लिया, “राहत मिली कि तुम एकदम तंदरुस्त हो!”

अजय मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दिए बगैर न कि कितने अच्छे लोग उसके जीवन में हैं!

माया ने भी उसको आलिंगन में भर के कई बार चूम लिया।

“भगवान का लाख लाख शुक्र है,” माया बोली, “कि सब ठीक है!”

“मैं कह तो रहा था दीदी, लेकिन तुम नाहक ही चिंता कर रही थी,”

“बस रिपोर्ट्स सब अच्छी अच्छी रहे,” माया ने उसके शिश्न को अपनी हथेली से ढँकते हुए नर्स से कहा, “सिस्टर, अब जल्दी से बाबू के कपड़े ले आईये... कहीं ठण्ड न लग जाए इसको,”

कुछ देर में नर्स अजय के कपड़े लेती आई।

कोई दस मिनट बाद तीनों डॉक्टर देशपाण्डे से विदा ले कर सीधा लाजपत नगर मार्केट पहुँच गए।

**
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
4,381
24,493
159
अपडेट 66


उस रोज़ अजय को पहली बार पता चला कि कमल/राणा साहब की एक दुकान यहाँ लाजपत नगर में भी थी। दुकानें तो किशोर जी के बड़े भाईयों की भी यहाँ थीं। लेकिन कमल ने जान बूझ कर किसी को बताया नहीं, नहीं तो शॉपिंग न होती, केवल सभी से मिलना मिलाना ही होता रहता। कमल फिलहाल इस बात को अवॉयड करना चाहता था। माया को बाहर ले जाने के अवसर कम ही मिल रहे थे उसको। लिहाज़ा, यह अच्छा अवसर था माया के साथ बाहर आने का और उसकी पसंद नापसंद देखने और समझने का!

लाजपत नगर जाते समय कमल ने अजय को बताया कि जब उसका स्कैन चल रहा था, तब उसने रूचि को कॉल कर के अपनी इसी शॉप पर आने को कहा था। शायद रूचि और रागिनी को आने में देर थी, और तीनों को अब बहुत भूख लग रही थी। वैसे भी रूचि ने बता दिया था कि वो दोनों घर से खाना खा कर आएंगीं। इसलिए तीनों ने बगल के एक ढाबे में बैठ कर छोले कुल्चे का आर्डर दिया, और थोड़ी ही देर में खाने लगे और रूचि और रागिनी के आने का इंतज़ार करने लगे। अजय अपना दिल थामे इनके आने का इंतज़ार कर रहा था। दिवाली के रोज़ की घटना की पुनरावृत्ति न हो, उसकी पूरी कोशिश थी। ख़ैर, कोई पैंतालीस मिनट के बाद दोनों आती हुई दिखाई दीं।

अजय का दिल तेजी से धड़कने लगा, लेकिन उस रोज़ की तरह न तो उसको चक्कर आये और न ही बेहोशी।

रागिनी शायद अजय से मिलने को कुछ अधिक उत्साहित थी... आख़िरी कुछ कदम वो भागते हुए आई और अजय को अपने गले से लगाती हुई बोली,

“जीजा जी, लास्ट टाइम आपने फ़ाउल प्ले खेला था... इस बार नहीं चलेगा! मुझसे मिलिए... मैंने हूँ दूर दूर तक आपकी एकलौती साली, रा...”

“रागिनी,” अजय के मुँह से अस्फुट से स्वर निकले,

“रागिनी,” उसी समय रागिनी ने भी बोला और अजय के मुँह से अपना नाम सुन कर खिलखिला कर हँसने लगी।

“अरे वाह! आपको तो मेरा नाम मालूम है,”

“क्यों नहीं मालूम होगा दीदी,” रूचि बोली, “मैंने बताया है न इनको आपके बारे में!”

फिर रूचि भी अजय के आलिंगन में आती हुई बोली, “माय लव,” और उसके होंठों को चूम कर आगे बोली, “हाऊ आर यू फ़ीलिंग? डॉक्टर ने क्या कहा?”

“एकदम बढ़िया और फ़िट!”

“पक्का न?”

“हाँ... एकदम बढ़िया और फिट है तुम्हारा जानू प्यारी बहना!” कमल ने मज़े लेते हुए कहा, “आज तुमको वहाँ होना चाहिए था! तुमने अपने काम की एक डिलिशियस सीन मिस कर दी,”

“अबे,” अजय ने कमल को धमकाया।

“भैया,” कह कर रूचि कमल के गले से लगी, फिर,

“भाभी,” कह कर रूचि माया के गले से लगी।

“लगता है कि जीजू को मुझसे मिल कर कोई ख़ुशी नहीं हुई,”

“क्यों नहीं होगी दीदी?” रूचि बोली, “तुम एकलौती साली हो इनकी... क्यों ख़ुशी नहीं होगी?”

“रागिनी... दीदी,” अजय ने कहना शुरू किया।

“दीदी?” रागिनी ने इस शब्द पर अपनी अप्रसन्नता दर्शाते हुए कहना शुरू किया, “आप मुझे मेरे नाम से बुलाईये न जीजू... आधी घरवाली हूँ, तो थोड़ा तो हक़ जमाइए अपना,”

अजय मुस्कुराया, लेकिन थोड़ा रूखेपन से बोला, “ठीक है, दीदी नहीं कहूँगा आपको... लेकिन रूचि के रहते मुझे सवा, आधी, पौनी... कैसी भी एक्स्ट्रा घरवाली नहीं चाहिए,”

“अइय्यो... दिल टूट गया मेरा,”

“दीदी, इनसे मिलो,” कह कर रूचि ने बात बदलते हुए उसका कमल और माया से परिचय कराया, “ये हैं मेरे भैया, कमल, और ये हैं मेरी होने वाली प्यारी भाभी... अज्जू की दीदी, माया... और ये हैं रागिनी दीदी,”

“हेलो कमल,” कह कर रागिनी ने कमल को गले से लगाया, और, “हेलो भाभी,” कह कर उसने माया को गले से भी लगाया और चूम भी लिया।

“भाभी, जितना रूचि ने बताया है, आप तो उससे अधिक सुन्दर हैं,” वो बोली।

एक पल को अजय को लगा कि शायद रागिनी माया के साँवलेपन का मज़ाक उड़ा रही है, लेकिन फिर उसको उसकी आवाज़ की सच्चाई सुनाई दी। वो रागिनी की बातों से अच्छी तरह से वाक़िफ़ था। उसको आश्चर्य हुआ कि रागिनी अपने सामने किसी अन्य के गुणों को स्वीकार करने में सक्षम थी। जिस रागिनी को वो जानता था, वो अपने सामने किसी को फटकने भी नहीं देती थी।

शायद रूचि सही कह रही है - अजय ने सोचा, ‘रागिनी में सुधार की गुंजाईश है!’

“रागिनी,” अजय ने कहना शुरू किया, “आई ऍम सॉरी... आज पूरा दिन स्कैन्स और टेस्ट्स करवा करवा कर थक गया, इसलिए थोड़ा क्रैंकी हो गया! आई ऍम सॉरी,”

रागिनी मुस्कुराई, “कोई बात नहीं जीजू... मुझे अच्छा लगा कि आप रूचि को ले कर इतना पोसेसिव हैं,”

“आई लव हर,”

“अच्छी बात है,” उसने फिर से साली वाली छेड़खानी शुरू कर दी, “लेकिन कभी आप दोनों का ब्रेकअप हो जाए... तो मुझे याद ज़रूर करिएगा! बहुत अंतर नहीं है... हम दोनों बहने ही हैं!”

“ज़रूर,” अजय भी खेलने लगा, “लेकिन लगता तो नहीं कि ऐसा कुछ होगा।”

“प्रीटी सीरियस, हम्म?”

“वैरी,”

रागिनी ने आह भरते हुए कहा, “मुझको भी यही चाहिए यार... कोई तो हो जो मुझको ले कर सीरियस हो! बॉयफ्रैंड्स की फ़ौज़ थोड़े न बनानी है! कभी इस काम में मज़ा आता था... अब नहीं। मुझे भी मोहब्बत चाहिए... स्टेबिलिटी चाहिए... रेस्पेक्ट चाहिए,”

अजय ने समझते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“चिंता किस बात की है,” माया ने दोनों की बातों में शामिल होते हुए कहा, “अब हम हैं न तुम्हारे साथ! मिल कर ढूँढेंगे एक अच्छा सा दूल्हा तुम्हारे लिए भी!”

“प्रॉमिस न भाभी?”

“पक्का प्रॉमिस!”

माहौल थोड़ा हल्का हो गया।

“अब बताओ... किस सीन की बात कर रहे थे?” रूचि ने पूछा।

“अरे, आज स्कैन के टाइम...” कमल कहने को हुआ तो माया ने कोहनी मार कर उसको चुप रहने को बोला।

“अच्छा बाद में बताता हूँ,”

“अरे बताओ न,” रूचि ने ज़िद करी।

“अरे बाद में बताता हूँ...” कमल ने कहा, “अच्छा, तुम दोनों ने कुछ खाया है?”

“हाँ,” रागिनी ने बताया, “उसी चक्कर में लेट हो गए... वहाँ से ऑटो भी देर से मिला,”

“बढ़िया है फिर तो,” कमल ने कहा, “चलो, कोशिश कर के जल्दी से शॉपिंग कर लेते हैं,”

“जल्दी से?!” रागिनी ने आँखें नचाते हुए शैतानी से कहा, “अभी तो हमने शुरू ही नहीं किया, और आपको अभी से जल्दी जल्दी चाहिए?”

उसकी बात पर सभी मुस्कुराने लगे।

“अरे नहीं नहीं, मैं तो बस ये कह रहा था कि जल्दी से शॉपिंग शुरू करते हैं,”

“हाँ, ये हुई न बात!” रागिनी ने कहा, “माया, मुझे रूचि का तो थोड़ा थोड़ा पता है, लेकिन आपको क्या क्या लेना है? क्या क्या बचा हुआ है?”

कह कर रागिनी ने ही शॉपिंग का आगाज़ किया।

अजय रागिनी के व्यवहार देख कर वाक़ई अचंभित था - ये ‘वो’ रागिनी नहीं लग रही थी। हाँ - इसका अंदाज़ उसी के जैसा था, लेकिन उसके व्यवहार में अभी भी एक सच्चाई थी। इतने दिन रागिनी के संग और फिर अपराधियों के संग रहते हुए अजय को मनुष्य की समझ तो हो ही गई थी। माया दीदी साँवली थीं, तो रागिनी उनके रंग के अनुकूल कपड़े ट्राई करवा रही थी। फ़ैशन की बहुत बढ़िया समझ थी उसको। कमल और अजय एक तरह से पिछलग्गुओं की ही तरह तीनों लड़कियों के पीछे पीछे चल रहे थे - जाहिर सी बात थी कि तीनों उनकी उपस्थिति को भूल गई थीं, और शॉपिंग करने में मगन हो गई थीं। तीनों को आनंद से, मज़े ले ले कर शॉपिंग करते देख कर अजय को अच्छा लग रहा था। इसके ज़रिए उसको रूचि की पसंद और नापसंद के बारे में भी जानने का मौका मिल रहा था।

रूचि ने अपने लिए चार जोड़ी कपड़े - साड़ियाँ और शलवार सूट - लिए। अपने वायदे के मुताबिक, रागिनी ने रूचि की शॉपिंग का पूरा ख़र्च उठाया। अजय और रूचि के आग्रह पर भी वो मानी नहीं। और तो और, उसने माया के लिए भी एक बढ़िया सा लहँगा लिया, इस ज़िद पर कि वो शादी के बाद होने वाले रिसेप्शन के लिए वही लहँगा पहनेगी। माया ने बहुत ना-नुकुर करी; कमल ने भी! लेकिन रागिनी ने एक न सुनी। वो ऐसी ही थी - अगर किसी बात की ज़िद पकड़ लेती थी, तो वो काम कर के ही छोड़ती थी। किसी भी हद तक चली जाती थी। इस बात पर अजय ने भी ज़िद पकड़ ली कि रागिनी भी अपने लिए कुछ ले... लेकिन रागिनी को कुछ भी लेने का मन नहीं हुआ। वो मॉडर्न कपड़े पहनती थी, और इस तरह के कपड़े उसको बहुत पसंद नहीं थे। इस बात पर अजय ने कहा कि उसको बहुत अच्छा लगेगा अगर रागिनी पारम्परिक वेश-भूषा में उसकी और रूचि की शादी में सम्मिलित हो। इस बात पर उसने एक साड़ी ले ली, जिसका ख़र्चा अजय ने दिया। अजय ने रूचि और माया के लिए भी ख़रीदा। माया ने कुछ और भी कपड़े ख़रीदे।

अंत में कमल और अजय ने अपने लिए पारम्परिक कपड़े लिए। दोनों ने तय किया था कि कमल की शादी में वो धोती पहनेंगे। तो उन्होंने वो लिया। फिर प्रशांत भैया की शादी में सम्मिलित होने के लिए उन्होंने दो और सूट लिए। सारी शॉपिंग लाजपत नगर में ही हो गई, लिहाज़ा और कहीं जाने की कोई आवश्यकता नहीं थी। पाँचों ने शाम को हल्का नाश्ता किया, फिर कमल ने पहले रूचि और रागिनी को उनके घर छोड़ा, फिर माया और अजय को, और फिर वो अपने घर चला गया।

एक बेहद लम्बे दिन का अंत हुआ।


**
 

kas1709

Well-Known Member
11,115
11,723
213
अपडेट 66


उस रोज़ अजय को पहली बार पता चला कि कमल/राणा साहब की एक दुकान यहाँ लाजपत नगर में भी थी। दुकानें तो किशोर जी के बड़े भाईयों की भी यहाँ थीं। लेकिन कमल ने जान बूझ कर किसी को बताया नहीं, नहीं तो शॉपिंग न होती, केवल सभी से मिलना मिलाना ही होता रहता। कमल फिलहाल इस बात को अवॉयड करना चाहता था। माया को बाहर ले जाने के अवसर कम ही मिल रहे थे उसको। लिहाज़ा, यह अच्छा अवसर था माया के साथ बाहर आने का और उसकी पसंद नापसंद देखने और समझने का!

लाजपत नगर जाते समय कमल ने अजय को बताया कि जब उसका स्कैन चल रहा था, तब उसने रूचि को कॉल कर के अपनी इसी शॉप पर आने को कहा था। शायद रूचि और रागिनी को आने में देर थी, और तीनों को अब बहुत भूख लग रही थी। वैसे भी रूचि ने बता दिया था कि वो दोनों घर से खाना खा कर आएंगीं। इसलिए तीनों ने बगल के एक ढाबे में बैठ कर छोले कुल्चे का आर्डर दिया, और थोड़ी ही देर में खाने लगे और रूचि और रागिनी के आने का इंतज़ार करने लगे। अजय अपना दिल थामे इनके आने का इंतज़ार कर रहा था। दिवाली के रोज़ की घटना की पुनरावृत्ति न हो, उसकी पूरी कोशिश थी। ख़ैर, कोई पैंतालीस मिनट के बाद दोनों आती हुई दिखाई दीं।

अजय का दिल तेजी से धड़कने लगा, लेकिन उस रोज़ की तरह न तो उसको चक्कर आये और न ही बेहोशी।

रागिनी शायद अजय से मिलने को कुछ अधिक उत्साहित थी... आख़िरी कुछ कदम वो भागते हुए आई और अजय को अपने गले से लगाती हुई बोली,

“जीजा जी, लास्ट टाइम आपने फ़ाउल प्ले खेला था... इस बार नहीं चलेगा! मुझसे मिलिए... मैंने हूँ दूर दूर तक आपकी एकलौती साली, रा...”

“रागिनी,” अजय के मुँह से अस्फुट से स्वर निकले,

“रागिनी,” उसी समय रागिनी ने भी बोला और अजय के मुँह से अपना नाम सुन कर खिलखिला कर हँसने लगी।

“अरे वाह! आपको तो मेरा नाम मालूम है,”

“क्यों नहीं मालूम होगा दीदी,” रूचि बोली, “मैंने बताया है न इनको आपके बारे में!”

फिर रूचि भी अजय के आलिंगन में आती हुई बोली, “माय लव,” और उसके होंठों को चूम कर आगे बोली, “हाऊ आर यू फ़ीलिंग? डॉक्टर ने क्या कहा?”

“एकदम बढ़िया और फ़िट!”

“पक्का न?”

“हाँ... एकदम बढ़िया और फिट है तुम्हारा जानू प्यारी बहना!” कमल ने मज़े लेते हुए कहा, “आज तुमको वहाँ होना चाहिए था! तुमने अपने काम की एक डिलिशियस सीन मिस कर दी,”

“अबे,” अजय ने कमल को धमकाया।

“भैया,” कह कर रूचि कमल के गले से लगी, फिर,

“भाभी,” कह कर रूचि माया के गले से लगी।

“लगता है कि जीजू को मुझसे मिल कर कोई ख़ुशी नहीं हुई,”

“क्यों नहीं होगी दीदी?” रूचि बोली, “तुम एकलौती साली हो इनकी... क्यों ख़ुशी नहीं होगी?”

“रागिनी... दीदी,” अजय ने कहना शुरू किया।

“दीदी?” रागिनी ने इस शब्द पर अपनी अप्रसन्नता दर्शाते हुए कहना शुरू किया, “आप मुझे मेरे नाम से बुलाईये न जीजू... आधी घरवाली हूँ, तो थोड़ा तो हक़ जमाइए अपना,”

अजय मुस्कुराया, लेकिन थोड़ा रूखेपन से बोला, “ठीक है, दीदी नहीं कहूँगा आपको... लेकिन रूचि के रहते मुझे सवा, आधी, पौनी... कैसी भी एक्स्ट्रा घरवाली नहीं चाहिए,”

“अइय्यो... दिल टूट गया मेरा,”

“दीदी, इनसे मिलो,” कह कर रूचि ने बात बदलते हुए उसका कमल और माया से परिचय कराया, “ये हैं मेरे भैया, कमल, और ये हैं मेरी होने वाली प्यारी भाभी... अज्जू की दीदी, माया... और ये हैं रागिनी दीदी,”

“हेलो कमल,” कह कर रागिनी ने कमल को गले से लगाया, और, “हेलो भाभी,” कह कर उसने माया को गले से भी लगाया और चूम भी लिया।

“भाभी, जितना रूचि ने बताया है, आप तो उससे अधिक सुन्दर हैं,” वो बोली।

एक पल को अजय को लगा कि शायद रागिनी माया के साँवलेपन का मज़ाक उड़ा रही है, लेकिन फिर उसको उसकी आवाज़ की सच्चाई सुनाई दी। वो रागिनी की बातों से अच्छी तरह से वाक़िफ़ था। उसको आश्चर्य हुआ कि रागिनी अपने सामने किसी अन्य के गुणों को स्वीकार करने में सक्षम थी। जिस रागिनी को वो जानता था, वो अपने सामने किसी को फटकने भी नहीं देती थी।

शायद रूचि सही कह रही है - अजय ने सोचा, ‘रागिनी में सुधार की गुंजाईश है!’

“रागिनी,” अजय ने कहना शुरू किया, “आई ऍम सॉरी... आज पूरा दिन स्कैन्स और टेस्ट्स करवा करवा कर थक गया, इसलिए थोड़ा क्रैंकी हो गया! आई ऍम सॉरी,”

रागिनी मुस्कुराई, “कोई बात नहीं जीजू... मुझे अच्छा लगा कि आप रूचि को ले कर इतना पोसेसिव हैं,”

“आई लव हर,”

“अच्छी बात है,” उसने फिर से साली वाली छेड़खानी शुरू कर दी, “लेकिन कभी आप दोनों का ब्रेकअप हो जाए... तो मुझे याद ज़रूर करिएगा! बहुत अंतर नहीं है... हम दोनों बहने ही हैं!”

“ज़रूर,” अजय भी खेलने लगा, “लेकिन लगता तो नहीं कि ऐसा कुछ होगा।”

“प्रीटी सीरियस, हम्म?”

“वैरी,”

रागिनी ने आह भरते हुए कहा, “मुझको भी यही चाहिए यार... कोई तो हो जो मुझको ले कर सीरियस हो! बॉयफ्रैंड्स की फ़ौज़ थोड़े न बनानी है! कभी इस काम में मज़ा आता था... अब नहीं। मुझे भी मोहब्बत चाहिए... स्टेबिलिटी चाहिए... रेस्पेक्ट चाहिए,”

अजय ने समझते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“चिंता किस बात की है,” माया ने दोनों की बातों में शामिल होते हुए कहा, “अब हम हैं न तुम्हारे साथ! मिल कर ढूँढेंगे एक अच्छा सा दूल्हा तुम्हारे लिए भी!”

“प्रॉमिस न भाभी?”

“पक्का प्रॉमिस!”

माहौल थोड़ा हल्का हो गया।

“अब बताओ... किस सीन की बात कर रहे थे?” रूचि ने पूछा।

“अरे, आज स्कैन के टाइम...” कमल कहने को हुआ तो माया ने कोहनी मार कर उसको चुप रहने को बोला।

“अच्छा बाद में बताता हूँ,”

“अरे बताओ न,” रूचि ने ज़िद करी।

“अरे बाद में बताता हूँ...” कमल ने कहा, “अच्छा, तुम दोनों ने कुछ खाया है?”

“हाँ,” रागिनी ने बताया, “उसी चक्कर में लेट हो गए... वहाँ से ऑटो भी देर से मिला,”

“बढ़िया है फिर तो,” कमल ने कहा, “चलो, कोशिश कर के जल्दी से शॉपिंग कर लेते हैं,”

“जल्दी से?!” रागिनी ने आँखें नचाते हुए शैतानी से कहा, “अभी तो हमने शुरू ही नहीं किया, और आपको अभी से जल्दी जल्दी चाहिए?”

उसकी बात पर सभी मुस्कुराने लगे।

“अरे नहीं नहीं, मैं तो बस ये कह रहा था कि जल्दी से शॉपिंग शुरू करते हैं,”

“हाँ, ये हुई न बात!” रागिनी ने कहा, “माया, मुझे रूचि का तो थोड़ा थोड़ा पता है, लेकिन आपको क्या क्या लेना है? क्या क्या बचा हुआ है?”

कह कर रागिनी ने ही शॉपिंग का आगाज़ किया।

अजय रागिनी के व्यवहार देख कर वाक़ई अचंभित था - ये ‘वो’ रागिनी नहीं लग रही थी। हाँ - इसका अंदाज़ उसी के जैसा था, लेकिन उसके व्यवहार में अभी भी एक सच्चाई थी। इतने दिन रागिनी के संग और फिर अपराधियों के संग रहते हुए अजय को मनुष्य की समझ तो हो ही गई थी। माया दीदी साँवली थीं, तो रागिनी उनके रंग के अनुकूल कपड़े ट्राई करवा रही थी। फ़ैशन की बहुत बढ़िया समझ थी उसको। कमल और अजय एक तरह से पिछलग्गुओं की ही तरह तीनों लड़कियों के पीछे पीछे चल रहे थे - जाहिर सी बात थी कि तीनों उनकी उपस्थिति को भूल गई थीं, और शॉपिंग करने में मगन हो गई थीं। तीनों को आनंद से, मज़े ले ले कर शॉपिंग करते देख कर अजय को अच्छा लग रहा था। इसके ज़रिए उसको रूचि की पसंद और नापसंद के बारे में भी जानने का मौका मिल रहा था।

रूचि ने अपने लिए चार जोड़ी कपड़े - साड़ियाँ और शलवार सूट - लिए। अपने वायदे के मुताबिक, रागिनी ने रूचि की शॉपिंग का पूरा ख़र्च उठाया। अजय और रूचि के आग्रह पर भी वो मानी नहीं। और तो और, उसने माया के लिए भी एक बढ़िया सा लहँगा लिया, इस ज़िद पर कि वो शादी के बाद होने वाले रिसेप्शन के लिए वही लहँगा पहनेगी। माया ने बहुत ना-नुकुर करी; कमल ने भी! लेकिन रागिनी ने एक न सुनी। वो ऐसी ही थी - अगर किसी बात की ज़िद पकड़ लेती थी, तो वो काम कर के ही छोड़ती थी। किसी भी हद तक चली जाती थी। इस बात पर अजय ने भी ज़िद पकड़ ली कि रागिनी भी अपने लिए कुछ ले... लेकिन रागिनी को कुछ भी लेने का मन नहीं हुआ। वो मॉडर्न कपड़े पहनती थी, और इस तरह के कपड़े उसको बहुत पसंद नहीं थे। इस बात पर अजय ने कहा कि उसको बहुत अच्छा लगेगा अगर रागिनी पारम्परिक वेश-भूषा में उसकी और रूचि की शादी में सम्मिलित हो। इस बात पर उसने एक साड़ी ले ली, जिसका ख़र्चा अजय ने दिया। अजय ने रूचि और माया के लिए भी ख़रीदा। माया ने कुछ और भी कपड़े ख़रीदे।

अंत में कमल और अजय ने अपने लिए पारम्परिक कपड़े लिए। दोनों ने तय किया था कि कमल की शादी में वो धोती पहनेंगे। तो उन्होंने वो लिया। फिर प्रशांत भैया की शादी में सम्मिलित होने के लिए उन्होंने दो और सूट लिए। सारी शॉपिंग लाजपत नगर में ही हो गई, लिहाज़ा और कहीं जाने की कोई आवश्यकता नहीं थी। पाँचों ने शाम को हल्का नाश्ता किया, फिर कमल ने पहले रूचि और रागिनी को उनके घर छोड़ा, फिर माया और अजय को, और फिर वो अपने घर चला गया।

एक बेहद लम्बे दिन का अंत हुआ।


**
Nice update....
 
  • Like
Reactions: SANJU ( V. R. )

ayush01111

Well-Known Member
4,188
5,917
144
अपडेट 66


उस रोज़ अजय को पहली बार पता चला कि कमल/राणा साहब की एक दुकान यहाँ लाजपत नगर में भी थी। दुकानें तो किशोर जी के बड़े भाईयों की भी यहाँ थीं। लेकिन कमल ने जान बूझ कर किसी को बताया नहीं, नहीं तो शॉपिंग न होती, केवल सभी से मिलना मिलाना ही होता रहता। कमल फिलहाल इस बात को अवॉयड करना चाहता था। माया को बाहर ले जाने के अवसर कम ही मिल रहे थे उसको। लिहाज़ा, यह अच्छा अवसर था माया के साथ बाहर आने का और उसकी पसंद नापसंद देखने और समझने का!

लाजपत नगर जाते समय कमल ने अजय को बताया कि जब उसका स्कैन चल रहा था, तब उसने रूचि को कॉल कर के अपनी इसी शॉप पर आने को कहा था। शायद रूचि और रागिनी को आने में देर थी, और तीनों को अब बहुत भूख लग रही थी। वैसे भी रूचि ने बता दिया था कि वो दोनों घर से खाना खा कर आएंगीं। इसलिए तीनों ने बगल के एक ढाबे में बैठ कर छोले कुल्चे का आर्डर दिया, और थोड़ी ही देर में खाने लगे और रूचि और रागिनी के आने का इंतज़ार करने लगे। अजय अपना दिल थामे इनके आने का इंतज़ार कर रहा था। दिवाली के रोज़ की घटना की पुनरावृत्ति न हो, उसकी पूरी कोशिश थी। ख़ैर, कोई पैंतालीस मिनट के बाद दोनों आती हुई दिखाई दीं।

अजय का दिल तेजी से धड़कने लगा, लेकिन उस रोज़ की तरह न तो उसको चक्कर आये और न ही बेहोशी।

रागिनी शायद अजय से मिलने को कुछ अधिक उत्साहित थी... आख़िरी कुछ कदम वो भागते हुए आई और अजय को अपने गले से लगाती हुई बोली,

“जीजा जी, लास्ट टाइम आपने फ़ाउल प्ले खेला था... इस बार नहीं चलेगा! मुझसे मिलिए... मैंने हूँ दूर दूर तक आपकी एकलौती साली, रा...”

“रागिनी,” अजय के मुँह से अस्फुट से स्वर निकले,

“रागिनी,” उसी समय रागिनी ने भी बोला और अजय के मुँह से अपना नाम सुन कर खिलखिला कर हँसने लगी।

“अरे वाह! आपको तो मेरा नाम मालूम है,”

“क्यों नहीं मालूम होगा दीदी,” रूचि बोली, “मैंने बताया है न इनको आपके बारे में!”

फिर रूचि भी अजय के आलिंगन में आती हुई बोली, “माय लव,” और उसके होंठों को चूम कर आगे बोली, “हाऊ आर यू फ़ीलिंग? डॉक्टर ने क्या कहा?”

“एकदम बढ़िया और फ़िट!”

“पक्का न?”

“हाँ... एकदम बढ़िया और फिट है तुम्हारा जानू प्यारी बहना!” कमल ने मज़े लेते हुए कहा, “आज तुमको वहाँ होना चाहिए था! तुमने अपने काम की एक डिलिशियस सीन मिस कर दी,”

“अबे,” अजय ने कमल को धमकाया।

“भैया,” कह कर रूचि कमल के गले से लगी, फिर,

“भाभी,” कह कर रूचि माया के गले से लगी।

“लगता है कि जीजू को मुझसे मिल कर कोई ख़ुशी नहीं हुई,”

“क्यों नहीं होगी दीदी?” रूचि बोली, “तुम एकलौती साली हो इनकी... क्यों ख़ुशी नहीं होगी?”

“रागिनी... दीदी,” अजय ने कहना शुरू किया।

“दीदी?” रागिनी ने इस शब्द पर अपनी अप्रसन्नता दर्शाते हुए कहना शुरू किया, “आप मुझे मेरे नाम से बुलाईये न जीजू... आधी घरवाली हूँ, तो थोड़ा तो हक़ जमाइए अपना,”

अजय मुस्कुराया, लेकिन थोड़ा रूखेपन से बोला, “ठीक है, दीदी नहीं कहूँगा आपको... लेकिन रूचि के रहते मुझे सवा, आधी, पौनी... कैसी भी एक्स्ट्रा घरवाली नहीं चाहिए,”

“अइय्यो... दिल टूट गया मेरा,”

“दीदी, इनसे मिलो,” कह कर रूचि ने बात बदलते हुए उसका कमल और माया से परिचय कराया, “ये हैं मेरे भैया, कमल, और ये हैं मेरी होने वाली प्यारी भाभी... अज्जू की दीदी, माया... और ये हैं रागिनी दीदी,”

“हेलो कमल,” कह कर रागिनी ने कमल को गले से लगाया, और, “हेलो भाभी,” कह कर उसने माया को गले से भी लगाया और चूम भी लिया।

“भाभी, जितना रूचि ने बताया है, आप तो उससे अधिक सुन्दर हैं,” वो बोली।

एक पल को अजय को लगा कि शायद रागिनी माया के साँवलेपन का मज़ाक उड़ा रही है, लेकिन फिर उसको उसकी आवाज़ की सच्चाई सुनाई दी। वो रागिनी की बातों से अच्छी तरह से वाक़िफ़ था। उसको आश्चर्य हुआ कि रागिनी अपने सामने किसी अन्य के गुणों को स्वीकार करने में सक्षम थी। जिस रागिनी को वो जानता था, वो अपने सामने किसी को फटकने भी नहीं देती थी।

शायद रूचि सही कह रही है - अजय ने सोचा, ‘रागिनी में सुधार की गुंजाईश है!’

“रागिनी,” अजय ने कहना शुरू किया, “आई ऍम सॉरी... आज पूरा दिन स्कैन्स और टेस्ट्स करवा करवा कर थक गया, इसलिए थोड़ा क्रैंकी हो गया! आई ऍम सॉरी,”

रागिनी मुस्कुराई, “कोई बात नहीं जीजू... मुझे अच्छा लगा कि आप रूचि को ले कर इतना पोसेसिव हैं,”

“आई लव हर,”

“अच्छी बात है,” उसने फिर से साली वाली छेड़खानी शुरू कर दी, “लेकिन कभी आप दोनों का ब्रेकअप हो जाए... तो मुझे याद ज़रूर करिएगा! बहुत अंतर नहीं है... हम दोनों बहने ही हैं!”

“ज़रूर,” अजय भी खेलने लगा, “लेकिन लगता तो नहीं कि ऐसा कुछ होगा।”

“प्रीटी सीरियस, हम्म?”

“वैरी,”

रागिनी ने आह भरते हुए कहा, “मुझको भी यही चाहिए यार... कोई तो हो जो मुझको ले कर सीरियस हो! बॉयफ्रैंड्स की फ़ौज़ थोड़े न बनानी है! कभी इस काम में मज़ा आता था... अब नहीं। मुझे भी मोहब्बत चाहिए... स्टेबिलिटी चाहिए... रेस्पेक्ट चाहिए,”

अजय ने समझते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“चिंता किस बात की है,” माया ने दोनों की बातों में शामिल होते हुए कहा, “अब हम हैं न तुम्हारे साथ! मिल कर ढूँढेंगे एक अच्छा सा दूल्हा तुम्हारे लिए भी!”

“प्रॉमिस न भाभी?”

“पक्का प्रॉमिस!”

माहौल थोड़ा हल्का हो गया।

“अब बताओ... किस सीन की बात कर रहे थे?” रूचि ने पूछा।

“अरे, आज स्कैन के टाइम...” कमल कहने को हुआ तो माया ने कोहनी मार कर उसको चुप रहने को बोला।

“अच्छा बाद में बताता हूँ,”

“अरे बताओ न,” रूचि ने ज़िद करी।

“अरे बाद में बताता हूँ...” कमल ने कहा, “अच्छा, तुम दोनों ने कुछ खाया है?”

“हाँ,” रागिनी ने बताया, “उसी चक्कर में लेट हो गए... वहाँ से ऑटो भी देर से मिला,”

“बढ़िया है फिर तो,” कमल ने कहा, “चलो, कोशिश कर के जल्दी से शॉपिंग कर लेते हैं,”

“जल्दी से?!” रागिनी ने आँखें नचाते हुए शैतानी से कहा, “अभी तो हमने शुरू ही नहीं किया, और आपको अभी से जल्दी जल्दी चाहिए?”

उसकी बात पर सभी मुस्कुराने लगे।

“अरे नहीं नहीं, मैं तो बस ये कह रहा था कि जल्दी से शॉपिंग शुरू करते हैं,”

“हाँ, ये हुई न बात!” रागिनी ने कहा, “माया, मुझे रूचि का तो थोड़ा थोड़ा पता है, लेकिन आपको क्या क्या लेना है? क्या क्या बचा हुआ है?”

कह कर रागिनी ने ही शॉपिंग का आगाज़ किया।

अजय रागिनी के व्यवहार देख कर वाक़ई अचंभित था - ये ‘वो’ रागिनी नहीं लग रही थी। हाँ - इसका अंदाज़ उसी के जैसा था, लेकिन उसके व्यवहार में अभी भी एक सच्चाई थी। इतने दिन रागिनी के संग और फिर अपराधियों के संग रहते हुए अजय को मनुष्य की समझ तो हो ही गई थी। माया दीदी साँवली थीं, तो रागिनी उनके रंग के अनुकूल कपड़े ट्राई करवा रही थी। फ़ैशन की बहुत बढ़िया समझ थी उसको। कमल और अजय एक तरह से पिछलग्गुओं की ही तरह तीनों लड़कियों के पीछे पीछे चल रहे थे - जाहिर सी बात थी कि तीनों उनकी उपस्थिति को भूल गई थीं, और शॉपिंग करने में मगन हो गई थीं। तीनों को आनंद से, मज़े ले ले कर शॉपिंग करते देख कर अजय को अच्छा लग रहा था। इसके ज़रिए उसको रूचि की पसंद और नापसंद के बारे में भी जानने का मौका मिल रहा था।

रूचि ने अपने लिए चार जोड़ी कपड़े - साड़ियाँ और शलवार सूट - लिए। अपने वायदे के मुताबिक, रागिनी ने रूचि की शॉपिंग का पूरा ख़र्च उठाया। अजय और रूचि के आग्रह पर भी वो मानी नहीं। और तो और, उसने माया के लिए भी एक बढ़िया सा लहँगा लिया, इस ज़िद पर कि वो शादी के बाद होने वाले रिसेप्शन के लिए वही लहँगा पहनेगी। माया ने बहुत ना-नुकुर करी; कमल ने भी! लेकिन रागिनी ने एक न सुनी। वो ऐसी ही थी - अगर किसी बात की ज़िद पकड़ लेती थी, तो वो काम कर के ही छोड़ती थी। किसी भी हद तक चली जाती थी। इस बात पर अजय ने भी ज़िद पकड़ ली कि रागिनी भी अपने लिए कुछ ले... लेकिन रागिनी को कुछ भी लेने का मन नहीं हुआ। वो मॉडर्न कपड़े पहनती थी, और इस तरह के कपड़े उसको बहुत पसंद नहीं थे। इस बात पर अजय ने कहा कि उसको बहुत अच्छा लगेगा अगर रागिनी पारम्परिक वेश-भूषा में उसकी और रूचि की शादी में सम्मिलित हो। इस बात पर उसने एक साड़ी ले ली, जिसका ख़र्चा अजय ने दिया। अजय ने रूचि और माया के लिए भी ख़रीदा। माया ने कुछ और भी कपड़े ख़रीदे।

अंत में कमल और अजय ने अपने लिए पारम्परिक कपड़े लिए। दोनों ने तय किया था कि कमल की शादी में वो धोती पहनेंगे। तो उन्होंने वो लिया। फिर प्रशांत भैया की शादी में सम्मिलित होने के लिए उन्होंने दो और सूट लिए। सारी शॉपिंग लाजपत नगर में ही हो गई, लिहाज़ा और कहीं जाने की कोई आवश्यकता नहीं थी। पाँचों ने शाम को हल्का नाश्ता किया, फिर कमल ने पहले रूचि और रागिनी को उनके घर छोड़ा, फिर माया और अजय को, और फिर वो अपने घर चला गया।

एक बेहद लम्बे दिन का अंत हुआ।


**
Jabardast bhai par ye advance science ka kya chakkar hai samajh nahi aya kuch
 
  • Like
Reactions: SANJU ( V. R. )
10,458
48,828
258
रागिनी मैडम बेपनाह हुस्न की मल्लिका है , हाई फाई लाइफ स्टाइल है , पर्सनैलिटी किसी फिल्म स्टार से कम नही , पर नामुराद मिजाज के साथ साथ निम्फोमैनियक भी है वह ।
अन्तरधार्मिक विवाह लोगों की पसंद हो सकती है लेकिन विवाह से पूर्व दो मर्द - खालिद और सईद - के साथ जिस्मानी सम्बन्ध बनाना लड़की के अच्छे चरित्र नही दर्शाते ।
रूचि के अनुसार रागिनी दीदी बुरी नही है । जो लड़की शादी से पहले दो मर्दों का बिस्तर गर्म कर चुकी हो और अपने ही कजन के मंगेतर पर नजर गड़ाए बैठी हो वह लड़की कम से कम अच्छी तो नही कही जा सकती ।
अब मुझे समझ आया कि अजय साहब को इस ' डैमसेल ' हसीना ने किस कदर चक्करघिन्नी बनाई होगी कि साहब खुद ही ' डिस्ट्रेस ' मे पहुंच गए ।

शादीशुदा मर्द की यह ट्रेजडी है कि वह घुटनों के बल झुक कर औरत का हाथ मांगता है और फिर सारी उम्र अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश मे गुजार देता है ।


रूचि का रह रहकर सर दर्द होना और अजय का अवचेतन अवस्था मे ब्रेन ट्यूमर , ब्रेन कैंसर , मेडिकल साइंस , एक जीन की पहचान कर इनका इलाज करने की बातें करना ; एक दूसरे के साथ जुड़ा हुआ लग रहा है ।
चूँकि आप की कहानी मे - ' मै सोलह वर्ष की तू सत्रह वर्ष का , मिल न जाए नैना ' - जैसा प्रेम संबंध या वैवाहिक सम्बन्ध होता नही है इसलिए रूचि के जीवन का सफर कठिन ही दिखाई दे रहा है ।

उधर पहली बार अशोक जी और किरण जी जोबन को लेकर थोड़ा इंटिमेट होते हुए नजर आए । किरण जी ने शायद पहली बार अपने देवर से इंटिमेट मजाक किया होगा ! और यह सम्भव हुआ रूचि के बदौलत । किरण के चकाचौंध का असर अशोक साहब पर पड़ना ही पड़ना है । देखना यह है कि यह असर शहनाई के संगीत मे बदलती है या नही !

सभी अपडेट बेहद ही खूबसूरत थे avsji भाई ।
 

parkas

Well-Known Member
30,520
65,848
303
अपडेट 62


मायाबाज़ार एक क्लासिक तेलुगु फ़िल्म है, जो भारतीय सिनेमा की संभवतः सर्वकालिक महान कृतियों में से एक मानी जानी चाहिए।

इसकी कहानी महाभारत के एक प्रसंग पर आधारित है, और अर्जुन पुत्र, अभिमन्यु और भगवान बलराम की पुत्री शशिरेखा के इर्द-गिर्द घूमती है। कौरवों और पाण्डवों के बीच तनाव के बीच, शशिरेखा का विवाह अभिमन्यु से तय होता है। बलराम भगवान की पत्नी चाहती हैं कि शशिरेखा का विवाह सुयोधन के पुत्र लक्ष्मणकुमार से हो। कहानी में मोड़ तब आता है जब भगवान कृष्ण शशिरेखा और अभिमन्यु की मदद के लिए आते हैं। कृष्ण अभिमन्यु के चचेरे भाई घटोत्कच को लक्ष्मणकुमार और शशिरेखा के विवाह को विफल करने के लिए अपनी जादुई शक्तियों का प्रयोग करने को कहते हैं। घटोत्कच अपनी मायावी शक्तियों से शशिरेखा का रूप धरकर कौरवों को खूब छकाते हैं, जिससे बड़े ही हास्यास्पद और नाटकीय स्थितियाँ बनती हैं। यह फ़िल्म प्रेम, परिवार, और धर्म की जीत को दर्शाती है, जिसमें हास्य, रोमांच, और भावनात्मक क्षणों का सुंदर संतुलन है... और पूरे परिवार के संग आनंद उठाने वाली बढ़िया फ़िल्म है।

चारों दर्शकों को शुरू शुरू में भाषा में अंतर के कारण कहानी समझने में दिक्कत तो हुई, लेकिन फिर सब-टाइटल्स के कारण सभी को फ़िल्म समझ में आने लगी। लगभग तीन घण्टे लम्बी फ़िल्म थी, लिहाज़ा अजय और माया दोनों किरण जी के इर्द गिर्द आराम से सेटल हो गए और अपनी माँ की गोद में सर रख कर आराम से फ़िल्म देखने लगे। शांत माहौल में मनोरंजक फ़िल्म!

कोई डेढ़ - पौने दो घण्टे हुए होंगे फ़िल्म के, जब आदतन ही माया और अजय दोनों किरण जी का स्तनपान करने लगे... माया और अजय दोनों के लिए ही यह इतना प्राकृतिक कार्य था, कि कब वो माँ का स्तनपान करना शुरू कर देते, यह उनको भी पता नहीं चलता था। आज भी वही बात थी। उनकी तो छोड़ें, स्वयं किरण जी को भी इस बात का कोई होश नहीं रहा कि आज अशोक जी भी पास में हैं। देर दोपहरिया जब भी दोनों बच्चे स्तनपान करते थे, उस समय अशोक जी ऑफिस में होते थे। वैसे भी सभी बड़ी ख़ामोशी से फ़िल्म देखने में तल्लीन थे। तो जब माया उनकी ब्लाउज़ के बटन खोल कर उसको उनकी ब्रा समेत उतार रही थी, तो उनको कुछ भी असामान्य नहीं महसूस हुआ।

लेकिन अशोक जी के लिए यह नई बात थी!

उन्होंने आज पहली बार अपने दोनों बच्चों को एक साथ किरण भाभी का स्तनपान करते देखा था। आज से पहले उन्होंने भाभी को बच्चों को अलग अलग ही स्तनपान कराते देखा था। दोनों बच्चे कभी कभी साथ में स्तनपान करते हैं, उनको इस बारे में पता तो था, लेकिन कभी उन्होंने यह देखा नहीं था। इतनी उम्र में भी बच्चे माँ का दूध पीते थे, वो इस बात को नज़रअंदाज़ कर देते थे। ठीक है कि बच्चे बड़े हो गए थे, लेकिन स्तनपान करने से तीनों में से किसी को कोई समस्या नहीं आ रही थी। दोनों ही बच्चे बुद्धिमान थे (माया में गृह-दक्षता और कार्य-कुशलता वाली बुद्धिमत्ता थी, और अजय में पढ़ाई, लिखाई वाली दक्षता और कौशल) और स्वस्थ थे... और स्वयं भाभी पर भी इसके सकारात्मक प्रभाव थे। देखा जाए तो किरण जी न तो अजय की माँ थीं, और न ही माया की! और तो और माया तो ‘बाहर’ से आई थी! तिस पर किरण भाभी में इतना स्नेह था... इतनी ममता थी! परिवारों में इस तरह की निकटता - बहुत दुर्लभ होती है! जब ऐसी कुछ अनमोल चीज़ आपके पास हो, तो उसको छेड़ना नहीं चाहिए। इसलिए किसी तरह की आपत्ति जताने का कोई अर्थ नहीं था। लेकिन आज जब उनकी भाभी इस तरह से दोनों बच्चों को अपना दूध पिला रही थीं, तो उनकी दृष्टि कुछ देर के लिए उस दृश्य का आनंद लेने लगी।

किरण जी पूरे संतोष के साथ बैठी हुई थीं और माया और अजय दोनों टीवी देखते हुए स्तनपान कर रहे थे - जैसे छोटे बच्चे हों। सुन्दर दृश्य! शायद ही संसार में इससे सुन्दर कोई दृश्य हो किसी पिता के लिए! वो मुस्कुरा दिए - उनको भी पता था कि भाभी कैसे दोनों बच्चों को अपने ही बच्चों समान ही मानती आई हैं अभी तक! भैया (अनामि जी) की इच्छा थी कि प्रशांत के बाद उनकी और भी कोई संतान हो। कितने साल प्रयास किये थे दोनों ने, लेकिन कोई सफलता नहीं मिलीं। फिर, बहुत वर्षों बाद जब उनको एक संतान हुई भी, तो उस दुर्घटना ने उसको छीन लिया। तब से भाभी ने इन दोनों को ही अपना संतान घोषित कर दिया... अपनी कोख से पैदा न करने के बावज़ूद उन्होंने दोनों को उनकी सगी माँ जैसा ही प्रेम दिया था... और इस समय भी दोनों की सगी माँ समान ही अपना अमृत पिला रही थीं।

पहले जब भी उन्होंने भाभी को माया या फिर अजय को स्तनपान कराते देखा था, तो वो बच्चों को आँचल से ढँक देती थीं। लेकिन आज वैसा नहीं था - भाभी का कमर से ऊपर का शरीर पूरी तरह से नग्न था। दोनों बच्चे उनका एक एक स्तन अपने मुँह में लिए पीने और फ़िल्म देखने में मगन थे। दोनों साथ में पी रहे थे, लेकिन माँ की गोद में उतना स्थान नहीं था। लिहाज़ा, दोनों ने ही अपनी माँ का एक एक स्तन अपने हाथों में थाम रखा था। टीवी देखना भी आवश्यक था, इसलिए बीच बीच में उनके मुँह से किरण जी के चूचक बाहर निकल जाते थे। फिर सीन देख लेने के बाद दोनों वापस स्तनपान में मगन हो जाते।

और तब उन्होंने एक और बात नोटिस करी - किरण भाभी अभी भी बहुत सुन्दर महिला थीं! उम्र के इस वय में किरण जी के शरीर में स्थूलता अवश्य आ गई थी, लेकिन उनको मोटा कहना सही नहीं रहेगा। शरीर के अनुपात में उनके स्तन भी थे... लिहाज़ा वो बड़े और सुडौल थे। उनमें शिथिलता नहीं थी अभी भी! उन्होंने कहीं पढ़ा था कि नियमित स्तनपान कराने से शरीर प्राकृतिक रूप से ही बहुत ऊर्जा व्यय कर देता है और यह बात वो अपनी भाभी के शरीर में देख सकते थे। किरण जी उनकी तरह जॉगिंग इत्यादि नहीं करती थीं, लेकिन फिर भी उनके शरीर पर अनावश्यक चर्बी नहीं दिखती थी।

उन्होंने देखा कि माया की नज़र इस समय टीवी पर टिकी हुई थी... टीवी पर एक सीन चल रहा था - घटोत्कच किसी वृद्ध पुरुष को उनके आसन से उठाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उठा नहीं पा रहे थे। यह एक मज़ाकिया सीन था और उसको देखने की चेष्टा में माया के मुँह से किरण जी का स्तन छूट गया। उनके गहरे भूरे रंग के चूचक, जो माया की लार और उनके दूध से सना होने के कारण चमक रहा था, के सिरे पर सफ़ेद दूध की एक बूँद चमक रही थी! अशोक जी को वो दृश्य बहुत लुभावना सा लगा। स्वतः प्रक्रिया के चलते किरण जी ने, जो स्वयं भी टीवी देखने में मगन थीं, अपने एक हाथ से वो स्तन पकड़ा और दूसरे से माया का सर अपने स्तन पर दबाया! वो एक माँ की स्तनपान कराने के समय होने वाली एक स्वतः प्रक्रिया थी, लेकिन अशोक जी को बड़ा आनंद आया! माया वापस दूध पीने लगी। उधर अजय सकौशल दूध पी रहा था और टीवी भी देख रहा था।

फ़िल्म देखते देखते किरण जी की नज़र अचानक से अशोक जी पर पड़ी - वो उन्ही की तरफ़ देख रहे थे। एक पल को दोनों की नज़रें मिलीं। अशोक जी ने उनकी तरफ़ से अपनी नज़रें हटाई नहीं। फिर किरण जी की नज़र अपने नग्न शरीर पर पड़ी! अपनी ऐसी दशा देख कर उनके चेहरे का रंग एकदम से सफ़ेद हो गया। लेकिन, फिलहाल वो चाह कर भी अपने को ढँक नहीं सकती थीं... क्योंकि उनकी ब्लाउज़ और ब्रा दोनों ही उनके शरीर पर नहीं थी, और साड़ी का पल्लू दोनों में से किसी बच्चे के शरीर के नीचे दब गया था। उनको दो पल समझ नहीं आया कि इस स्थिति से निकला कैसे जाए - दोनों बच्चे अभी भी उनके स्तनों से लगे हुए थे... उनके स्तनों में अभी भी कुछ दूध था और वो उनको उससे वंचित नहीं करना चाहती थीं। वैसे भी, दोनों की ही आदत थी कि स्तनों से दूध समाप्त हो जाने के बाद भी दोनों देर तक स्तनपान करते रहते थे। उनका स्तनपान करना दोनों बच्चों को केवल शारीरिक पोषण ही नहीं, बल्कि भावनात्मक पोषण भी देता था। वो स्वयं भी दोनों को दूध पिला कर बहुत संतुष्ट, प्रसन्न, और स्वस्थ महसूस करती थीं। इसलिए उन्होंने दोनों को ही आज तक एक बार भी नहीं रोका।

कुछ क्षणों सोचने के बाद अंत में उन्होंने सोचा कि कॉन्फिडेंस से ही काम लेना चाहिए... आख़िर, वो अशोक से बड़ी जो हैं!

किरण जी अच्छे से जानती और समझती थीं अशोक जी को! जब वो ब्याह कर इस घर में आई थीं, तो अशोक केवल पंद्रह साल का था। वो अशोक जी से दो साल बड़ी थीं। उनके पति, अनामि भी कोई उम्र-दराज़ नहीं थे - वो स्वयं साढ़े उन्नीस के थे। सारदा एक्ट तब पंद्रह साल की लड़की और अट्ठारह साल के लड़के का विवाह कानूनी तौर पर मान्य करता था। उनकी सास की मृत्यु चार साल पहले ही हो गई थी, इसलिए किरण जी इस घर में केवल बहू ही नहीं, बल्कि बड़ी मालकिन की भूमिका में प्रविष्ट हुई थीं। उनके ससुर जी भी अपने पोते का मुँह देखने के कुछ माह बाद ही स्वर्ग सिधार गए। तब से इन पच्चीस सालों में उन्होंने अशोक को बढ़ते और परिपक्व होते हुए देखा। अशोक जी को उन्होंने भाभी के रूप में बहुत प्रेम दिया था। वो एक सज्जन आदमी था... प्रियंका (अशोक जी की पत्नी) की मृत्यु के तीन साल से ऊपर हो चले थे, लेकिन वो कभी भी भ्रमित नहीं हुआ था। न तो उन्होंने उसने उनकी तरफ और न ही किसी अन्य महिला की तरफ़ गलत नज़र डाली थी। न केवल सज्जन ही, साथ ही साथ शर्मीला भी था उनका देवर!

उन्होंने अपनी आँखों और भौंह को उचका कर अशोक जी से पूछा, ‘क्या?’

अशोक जी, जो अभी तक मंत्रमुग्ध से न केवल इस सुन्दर दृश्य को देख रहे थे बल्कि किरण जी की सुंदरता का अवलोकन भी कर रहे थे, को लगा कि उनकी चोरी पकड़ ली गई। उनके होंठों पर एक नर्वस मुस्कान आ गई।

उन्होंने ‘न’ में सर हिला कर उत्तर दिया, ‘कुछ नहीं भाभी!’

लेकिन किरण जी उनको इतनी आसानी से नहीं छोड़ना चाहती थीं। अब जब वो पकड़ में आ ही गए थे, तो थोड़ा और छेड़ना बनता था।

उन्होंने अपने स्तन की तरफ़ अपनी तर्जनी से संकेत कर के, बिना आवाज़, केवल होंठों को हिला कर पूछा, ‘पियोगे?’

अब तक अशोक जी पूरी तरह से शर्मिंदा हो गए थे... उन्होंने भी बिना आवाज़ कहा, ‘क्या भाभी!’

‘तो फिल्म देखो,’ किरण जी ने आँखें तरेर कर उनको बिना आवाज़ डाँटा।

अशोक जी तुरंत, अच्छे बच्चे की भाँति वापस फिल्म देखने लगे।

उनकी इस हरकत पर किरण जी मुस्कुराने लगीं।

‘कितना सीधा और क्यूट है अशोक,’ उनके मन में यह विचार आये बिना न रह सका।

अनायास ही रूचि की बातें उनके मन में चलने लगीं।

करीब दस और मिनट तक स्तनपान चला। उतनी देर में अशोक जी ने एक बार भी भाभी की तरफ़ नहीं देखा। और ये तब जब भाभी ने बड़ी फुर्सत से, माया की मदद से अपनी ब्रा और ब्लाउज़ पहना।

‘बहुत सीधा है अशोक...’ किरण जी सोच रही थीं, ‘ये रूचि भी न... कैसे कैसे थॉट्स लिवा लाई मन में,’

**
Bahut hi badhiya update diya hai avsji bhai....
Nice and beautiful update....
 
  • Like
Reactions: Ajju Landwalia

parkas

Well-Known Member
30,520
65,848
303
अपडेट 63


शाम के समय दोनों समधी परिवार पुनः बड़ी गर्मजोशी से मिले।

सभी ने अजय का हाल चाल पूछा, उसके स्वास्थ्य को ले कर चिंता जताई, और उसको अच्छा खाने पीने की हिदायद दी। कमल भी बहुत परेशान था - उसने अजय को सख़्त हिदायद दी कि अब से वो अकेले कॉलेज तो नहीं ही जाएगा। उसने अजय से कहा कि पहले उसका भाई, फिर ‘जीजू’, और फिर रूचि का ‘बड़ा भाई’ होने के कारण उसका भी कुछ फ़र्ज़ है। यह सब ठीक था, लेकिन अब अजय कैसे सबको बताता कि उसको यह अनुभव हुआ ही क्यों! कैसे समझाता कि रागिनी के कारण उसकी बेहोशी ‘ट्रिगर’ हुई। कैसे समझाता कि कभी रागिनी उसकी बीवी थी... होगी? अगर बता भी देता, तो अशोक जी के अतिरिक्त उसकी बात मानता भी कोई क्यों? कल रूचि वो सारा रहस्य सुन कर कितनी विचलित हो गई थी! कितनी मुश्किल से उसने उसकी बात को आत्मसात किया था। ऐसी बातें कहाँ होती हैं भला? सवेरे भी घर से निकलते समय बेचारी परेशान सी थी। वो उसके घर फ़ोन करना चाहता था, लेकिन कुछ सोच उसने नहीं किया - वो नहीं चाहता था कि रागिनी से उसका किसी भी रूप में सामना हो।

*

लेकिन शाम को घर से निकलने के ठीक पहले रूचि के पिता जी का फ़ोन आया। दोनों समधियों ने देर तक बातें करीं। अंत में उसकी रूचि से बातें हुईं। उसकी आवाज़ से लग रहा था कि वो अब बेहतर थी।

“रूचि,” उसने बेहद प्रेम से पूछा, “कैसी हो मेरी जान?”

“मैं ठीक हूँ अज्जू... मेरी चिंता न करो।”

“हम्म्म,”

“आई मिस यू,”

“सेम हियर... सबने मुझ पर पहले बैठा रखे हैं, और मेरा मन तुम्हारे साथ होने को हो रहा है,”

“तो आ जाओ,”

“न बाबा!” अजय ने हँसते हुए कहा, “दोबारा बेहोश नहीं होना है मुझे,”

“तुम सही थे अज्जू... आई ट्रस्ट यू,”

“हम्म...”

रूचि ने अजय को इशारे में बताया कि उसने ‘कन्फर्म’ किया हो कि रागिनी वो ही लड़की है जिससे अजय की शादी हुई थी। न तो उसने अजय को बताया, और न ही अजय ने उससे पूछा कि उसको यह कैसे पता चला।

“अभी क्या कर रहे हो?”

“जीजू के घर जाने वाले हैं...”

“ओह! क्यों?”

“आंटी जी ने पापा को बुलाया है, भाई दूज के लिए।”

“ओह अच्छा... अच्छी बात है।”

“तुम क्या कर रही हो?”

“यू नो,” उसने थोड़ा झिझकते हुए कहा, “दीदी मुझको कल शॉपिंग कराने ले जाने वाली है,”

“दीदी?”

“रागिनी...” उसने दबे स्वर में कहा।

“ओह गॉड,”

“नहीं अज्जू... ऐसे मत करो!” रूचि ने कहा, “आई नो, जो तुमने कहा है वो सब सच है... लेकिन दीदी वैसी नहीं है... आई मीन ‘अभी’ वैसी नहीं है!”

“ओके!”

“अज्जू... माय हार्ट... तुमको मुझ पर भरोसा है न?”

“यार ऐसे सवाल न पूछा करो,”

“तो फिर मुझे एक दो चांस दो न!”

“क्या करना चाहती हो?”

“मैं बस ये चाहती हूँ कि वो गलत रास्ते पर न चले... गलत औरत न बने...”

“हम्म्म...”

“इसके बारे में बाद में बात करेंगे, लेकिन... अगर पॉसिबल हो, तो तुम भी हम दोनों के साथ शॉपिंग पर आओ?”

अजय इस सुझाव पर चौंक गया, “शॉपिंग?”

रूचि चाहती है कि वो उसके और रागिनी के साथ शॉपिंग पर चले! सब कुछ जानने के बाद भी! आख़िर क्यों?

अजय ने अपनी अनिश्चितता दिखाई, लेकिन रूचि ने उसको दिलासा दिया कि उसको डरना या चिंता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि उसकी ज़िन्दगी में अब वो है। एक पत्नी की तरह वो उसको अपनी पूरी क्षमता के अनुसार सुरक्षित रखेगी और उसका पूरा ध्यान रखेगी। अजय ने उसकी बात सुनी और समझी... फिर उसने एक मार्ग सुझाया,

“ठीक है! आई विल कम... लेकिन साथ में माया दीदी भी आ जाएँ, तो चलेगा? उनको भी तो शॉपिंग करनी ही है। होने वाली दुल्हन की शॉपिंग शायद ही कभी पूरी होती है...”

“बिलकुल चलेगा... आई लव दीदी - भाभी - अरे यार...”

“हा हा हा... ठीक है।”

“मैं एक बार दीदी से पूछ लूँ?”

“रागिनी से? हाँ पूछ लो,”

रूचि ने यह बात रागिनी से कही तो अजय को उधर से रागिनी की ‘प्रसन्नता’ भरी आवाज़ सुनाई दी। जो थोड़ा अस्पष्ट सा सुनाई दिया, उसने अनुसार वो भी माया दीदी से मिलना चाहती थी। अजय का मन तो नहीं था, लेकिन रूचि पर विश्वास न करने का उसके पास कोई कारण नहीं था। तो यह तय रहा कि दोपहर में वो सभी शॉपिंग पर मिलेंगे।

अजय ने रूचि को बताया कि उसको सुबह वानप्रस्थ हॉस्पिटल जाना है। उस पर रूचि ने कहा कि वो भी चलेगी, लेकिन अजय ने उसको मना कर दिया और समझाया कि सब ठीक है, और डॉक्टर केवल कुछ टेस्ट्स करना चाहते हैं... उसके अतिरिक्त कुछ भी सीरियस नहीं है। थोड़ा समझाने पर रूचि मान गई। फिर अजय ने सुझाया कि चूँकि रूचि के घर से लाजपत नगर पास में पड़ेगा, तो वो माया दीदी के साथ वहाँ उनसे मिलेगा और फिर सभी वहाँ से सरोजिनी नगर चलेंगे। फिर शॉपिंग हो जाने के बाद वो रूचि और रागिनी को उनके घर छोड़ देगा।

कल रागिनी से होने वाली मुलाकात की बात सोच कर अजय थोड़ा उद्विग्न हो रहा था, लेकिन उसको इस बात से धैर्य हो रहा था कि उसके संग रूचि भी रहेगी। वो सम्हाल लेगी, अगर उससे नहीं हो पाया! और फिर माया दीदी भी तो रहेंगीं वहाँ। यह सोच कर उसका दिल थोड़ा और मज़बूत हुआ। वैसे भी यह कहते हैं कि अपने डर का सामना करो... डर के आगे जीत है। शायद रागिनी के डर के आगे बढ़ने से वो खुद भी अपने जीवन में आगे बढ़ सके?

*

सरिता जी ने अशोक जी की आरती उतारी - जैसे भाई दूज पर बहनें अपने भाईयों की करती हैं। फिर उनको मिठाई खिला कर वो उनके चरण-स्पर्श करने को हुईं, तो अशोक जी ने उनको ससम्मान मना कर दिया - यह कह कर कि उनके बहनें अपने भाईयों के पैर नहीं छूतीं। वैसे भी उनको तीन महीने का गर्भ था, ऐसे में अशोक जी कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे। उपहार स्वरुप उन्होंने सरिता जी को वन-तुलसी का एक पौधा दिया। कहने को यह एक सामान्य सा पौधा था, लेकिन इसके अनेकों स्वास्थ्य लाभ होते हैं, जैसे इसके नियमित प्रयोग से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, श्वास सम्बन्धी रोगों (जैसे, खाँसी और सर्दी-जुकाम) में लाभ होता है, इससे मानसिक तनाव कम होता है और मन शांत होआ है, पाचन की समस्याओं (जैसे, गैस, अपच, और पेट दर्द) में कारगर है, मधुमेह के रोगी भी लाभान्वित होते हैं, और संक्रमणों से लड़ने की क्षमता आती है। इन्ही गुणों के कारण शायद वन-तुलसी को आयुर्वेद में “रक्षा-कवच” के रूप में देखा जाता है। धार्मिक रूप से भी यह बहुत पवित्र माना जाता है - एक बहुत बड़े धाम में इसको प्रसाद के रूप में भी दिया जाता है।

सरिता जी अपना उपहार पा कर बहुत खुश हुईं - वैसे भी उनको पुष्पों और पौधों से अगाध प्रेम था।

इधर दोनों तरफ़ के समधी आपस में बातें करने में मगन थे, और उधर कमल और माया भी कुछ समय के लिए अकेले हो गए। वो दोनों चाहते थे कि अजय भी उनके साथ ही कमल के कमरे में आ जाए, लेकिन अजय ने ही मना कर दिया। वो अकेले में बैठ कर कल होने वाली घटनाओं के बारे में सोचने लगा। डॉक्टर देशपाण्डे क्या टेस्ट्स करना चाहते हैं? क्या उनको उसके मस्तिष्क में कोई असामान्य परिवर्तन दिखाई दिए? हो सकता है न - शायद इसीलिए वो उनको सामने सामने बताना न चाह रहे हों? उसने थोड़ा सोचा - कई वर्षों तक वो अपने पिता की मृत्यु का दोष डॉक्टर देशपाण्डे पर डालता रहा, लेकिन मन ही मन वो भी समझता था कि उनकी उस घटना में कोई गलती नहीं थी। उनको अशोक जी की एलर्जी के बारे में पता ही नहीं था, क्योंकि उसका कोई रिकॉर्ड ही नहीं था। ऐसे में गलती हो गई और उसका सभी ने इतना बड़ा खामियाज़ा भुगता! उसने यह सब सोचते हुए गहरी साँस ली।

ख़ैर, सबसे बड़ी समस्या कल रागिनी के कारण थी। उसके नाम से उसकी हालत कैसी पतली हो गई थी - और अब उसके साथ इतना समय बिताना! कैसे संभव होगा वो सब? गनीमत इसी बात की थी कि रूचि और माया दीदी भी संग होंगी।

“अज्जू बेटे,” किशोर राणा जी अजय के पास आते हुए बोले।

“जी अंकल जी?”

“बेटे, रूचि बिटिया का फ़ोन है,”

“ओह,” अजय अपनी तन्द्रा से पूरी तरह से बाहर आ गया था, “जी आया,”

टेलीफोन का कनेक्शन बगल वाले छोटे हॉल में भी था, तो वहीं से अजय ने कॉल रिसीव किया।

“मेरी जान,” अजय धीरे से, लेकिन पूरी ईमानदारी और निस्सीम प्रेम से बोला।

रूचि को अवश्य ही यह सुन कर बहुत भला लगा, “अज्जू... आई लव यू,”

“आई नो... आई लव यू टू,” अजय को भी उसकी आवाज़ सुन कर बहुत अच्छा लगा। दिल में ठंडक का एहसास हो आया।

“ओके,” वो बोली।

“बस, यही कहने के लिए कॉल किया था?” अजय मुस्कुरा रहा था।

“तुम्हारी आवाज़ सुन ली, मन को सुकून मिल गया,” वो बोली।

“हम्म्म,”

“एक बात कहूँ? बुरा तो नहीं मानोगे न अज्जू... माय लव?”

“तुम्हारी किसी भी बात का बुरा नहीं मान सकता... बोलो न,”

“वो न,” उसने दबी आवाज़ में कहा, “रागिनी दीदी के सामने मुझे नेकेड होना पड़ा,”

“अरे,” पहले तो यह सुन कर अजय चौंका, लेकिन फिर उसको लगा कि पूछना चाहिए कि उसने ऐसा क्यों किया, “... क्यों?”

“तभी तो मुझे उसका तिल देखने को मिला,”

“अज्जू... एक बात कहूँ?”

“बोलो न मेरी जान,”

“दीदी बुरी नहीं है,” उसने कहा, “मेरा मतलब... अभी तक तो बुरी नहीं है! उसकी लाइफ चॉइसेस गड़बड़ हैं, लेकिन वो बुरी नहीं है... पता है, वो अपने ही तरीके से हमारे लिए बहुत खुश भी है,”

“ओके!”

“... मैं तुमको केवल इसलिए बता रही हूँ कि कल उससे मिल कर घबराना मत,” रूचि ने अजय को समझाया, “ये वो वाली रागिनी नहीं है,”

“ध्यान रखूँगा ये बात!”

“थैंक यू लव,” रूचि ज़रूर मुस्कुराई होगी, “... और मैं तो रहूँगी न तुम्हारे साथ! अपनी मोहब्बत को मैं किसी क़ीमत पर नहीं छोड़ सकती!”

“हा हा हा...! बस करो फ़िल्मी डायलाग!”

“धत्त,” रूचि भी हँसने लगी, “आई लव यू,”

“लव यू मोर,”

“रखती हूँ... कल मिलते हैं! ओके?”

“यस,” अजय बोला, “बाय!”

**
Bahut hi badhiya update diya hai avsji bhai....
Nice and beautiful update....
 
  • Like
Reactions: Ajju Landwalia
Top