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Romance फ़िर से

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avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
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दोस्तों - इस अपडेट सूची को स्टिकी पोस्ट बना रहा हूँ!
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केवल पढ़ कर निकल लें। यह केवल आपकी सुविधा के लिए है। चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए :)

अपडेट 1; अपडेट 2; अपडेट 3; अपडेट 4; अपडेट 5; अपडेट 6; अपडेट 7; अपडेट 8; अपडेट 9; अपडेट 10; अपडेट 11; अपडेट 12; अपडेट 13; अपडेट 14; अपडेट 15; अपडेट 16; अपडेट 17; अपडेट 18; अपडेट 19; अपडेट 20; अपडेट 21; अपडेट 22; अपडेट 23; अपडेट 24; अपडेट 25; अपडेट 26; अपडेट 27; अपडेट 28; अपडेट 29; अपडेट 30; अपडेट 31; अपडेट 32; अपडेट 33; अपडेट 34; अपडेट 35; अपडेट 36; अपडेट 37; अपडेट 38; अपडेट 39; अपडेट 40; अपडेट 41; अपडेट 42; अपडेट 43; अपडेट 44; अपडेट 45; अपडेट 46; अपडेट 47; अपडेट 48; अपडेट 49; अपडेट 50; अपडेट 51; अपडेट 52; अपडेट 53; अपडेट 54; अपडेट 55; अपडेट 56; अपडेट 57; अपडेट 58; अपडेट 59; अपडेट 60; अपडेट 61; अपडेट 62; अपडेट 63; अपडेट 64; अपडेट 65; अपडेट 66;
 
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dhparikh

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अपडेट 66


उस रोज़ अजय को पहली बार पता चला कि कमल/राणा साहब की एक दुकान यहाँ लाजपत नगर में भी थी। दुकानें तो किशोर जी के बड़े भाईयों की भी यहाँ थीं। लेकिन कमल ने जान बूझ कर किसी को बताया नहीं, नहीं तो शॉपिंग न होती, केवल सभी से मिलना मिलाना ही होता रहता। कमल फिलहाल इस बात को अवॉयड करना चाहता था। माया को बाहर ले जाने के अवसर कम ही मिल रहे थे उसको। लिहाज़ा, यह अच्छा अवसर था माया के साथ बाहर आने का और उसकी पसंद नापसंद देखने और समझने का!

लाजपत नगर जाते समय कमल ने अजय को बताया कि जब उसका स्कैन चल रहा था, तब उसने रूचि को कॉल कर के अपनी इसी शॉप पर आने को कहा था। शायद रूचि और रागिनी को आने में देर थी, और तीनों को अब बहुत भूख लग रही थी। वैसे भी रूचि ने बता दिया था कि वो दोनों घर से खाना खा कर आएंगीं। इसलिए तीनों ने बगल के एक ढाबे में बैठ कर छोले कुल्चे का आर्डर दिया, और थोड़ी ही देर में खाने लगे और रूचि और रागिनी के आने का इंतज़ार करने लगे। अजय अपना दिल थामे इनके आने का इंतज़ार कर रहा था। दिवाली के रोज़ की घटना की पुनरावृत्ति न हो, उसकी पूरी कोशिश थी। ख़ैर, कोई पैंतालीस मिनट के बाद दोनों आती हुई दिखाई दीं।

अजय का दिल तेजी से धड़कने लगा, लेकिन उस रोज़ की तरह न तो उसको चक्कर आये और न ही बेहोशी।

रागिनी शायद अजय से मिलने को कुछ अधिक उत्साहित थी... आख़िरी कुछ कदम वो भागते हुए आई और अजय को अपने गले से लगाती हुई बोली,

“जीजा जी, लास्ट टाइम आपने फ़ाउल प्ले खेला था... इस बार नहीं चलेगा! मुझसे मिलिए... मैंने हूँ दूर दूर तक आपकी एकलौती साली, रा...”

“रागिनी,” अजय के मुँह से अस्फुट से स्वर निकले,

“रागिनी,” उसी समय रागिनी ने भी बोला और अजय के मुँह से अपना नाम सुन कर खिलखिला कर हँसने लगी।

“अरे वाह! आपको तो मेरा नाम मालूम है,”

“क्यों नहीं मालूम होगा दीदी,” रूचि बोली, “मैंने बताया है न इनको आपके बारे में!”

फिर रूचि भी अजय के आलिंगन में आती हुई बोली, “माय लव,” और उसके होंठों को चूम कर आगे बोली, “हाऊ आर यू फ़ीलिंग? डॉक्टर ने क्या कहा?”

“एकदम बढ़िया और फ़िट!”

“पक्का न?”

“हाँ... एकदम बढ़िया और फिट है तुम्हारा जानू प्यारी बहना!” कमल ने मज़े लेते हुए कहा, “आज तुमको वहाँ होना चाहिए था! तुमने अपने काम की एक डिलिशियस सीन मिस कर दी,”

“अबे,” अजय ने कमल को धमकाया।

“भैया,” कह कर रूचि कमल के गले से लगी, फिर,

“भाभी,” कह कर रूचि माया के गले से लगी।

“लगता है कि जीजू को मुझसे मिल कर कोई ख़ुशी नहीं हुई,”

“क्यों नहीं होगी दीदी?” रूचि बोली, “तुम एकलौती साली हो इनकी... क्यों ख़ुशी नहीं होगी?”

“रागिनी... दीदी,” अजय ने कहना शुरू किया।

“दीदी?” रागिनी ने इस शब्द पर अपनी अप्रसन्नता दर्शाते हुए कहना शुरू किया, “आप मुझे मेरे नाम से बुलाईये न जीजू... आधी घरवाली हूँ, तो थोड़ा तो हक़ जमाइए अपना,”

अजय मुस्कुराया, लेकिन थोड़ा रूखेपन से बोला, “ठीक है, दीदी नहीं कहूँगा आपको... लेकिन रूचि के रहते मुझे सवा, आधी, पौनी... कैसी भी एक्स्ट्रा घरवाली नहीं चाहिए,”

“अइय्यो... दिल टूट गया मेरा,”

“दीदी, इनसे मिलो,” कह कर रूचि ने बात बदलते हुए उसका कमल और माया से परिचय कराया, “ये हैं मेरे भैया, कमल, और ये हैं मेरी होने वाली प्यारी भाभी... अज्जू की दीदी, माया... और ये हैं रागिनी दीदी,”

“हेलो कमल,” कह कर रागिनी ने कमल को गले से लगाया, और, “हेलो भाभी,” कह कर उसने माया को गले से भी लगाया और चूम भी लिया।

“भाभी, जितना रूचि ने बताया है, आप तो उससे अधिक सुन्दर हैं,” वो बोली।

एक पल को अजय को लगा कि शायद रागिनी माया के साँवलेपन का मज़ाक उड़ा रही है, लेकिन फिर उसको उसकी आवाज़ की सच्चाई सुनाई दी। वो रागिनी की बातों से अच्छी तरह से वाक़िफ़ था। उसको आश्चर्य हुआ कि रागिनी अपने सामने किसी अन्य के गुणों को स्वीकार करने में सक्षम थी। जिस रागिनी को वो जानता था, वो अपने सामने किसी को फटकने भी नहीं देती थी।

शायद रूचि सही कह रही है - अजय ने सोचा, ‘रागिनी में सुधार की गुंजाईश है!’

“रागिनी,” अजय ने कहना शुरू किया, “आई ऍम सॉरी... आज पूरा दिन स्कैन्स और टेस्ट्स करवा करवा कर थक गया, इसलिए थोड़ा क्रैंकी हो गया! आई ऍम सॉरी,”

रागिनी मुस्कुराई, “कोई बात नहीं जीजू... मुझे अच्छा लगा कि आप रूचि को ले कर इतना पोसेसिव हैं,”

“आई लव हर,”

“अच्छी बात है,” उसने फिर से साली वाली छेड़खानी शुरू कर दी, “लेकिन कभी आप दोनों का ब्रेकअप हो जाए... तो मुझे याद ज़रूर करिएगा! बहुत अंतर नहीं है... हम दोनों बहने ही हैं!”

“ज़रूर,” अजय भी खेलने लगा, “लेकिन लगता तो नहीं कि ऐसा कुछ होगा।”

“प्रीटी सीरियस, हम्म?”

“वैरी,”

रागिनी ने आह भरते हुए कहा, “मुझको भी यही चाहिए यार... कोई तो हो जो मुझको ले कर सीरियस हो! बॉयफ्रैंड्स की फ़ौज़ थोड़े न बनानी है! कभी इस काम में मज़ा आता था... अब नहीं। मुझे भी मोहब्बत चाहिए... स्टेबिलिटी चाहिए... रेस्पेक्ट चाहिए,”

अजय ने समझते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“चिंता किस बात की है,” माया ने दोनों की बातों में शामिल होते हुए कहा, “अब हम हैं न तुम्हारे साथ! मिल कर ढूँढेंगे एक अच्छा सा दूल्हा तुम्हारे लिए भी!”

“प्रॉमिस न भाभी?”

“पक्का प्रॉमिस!”

माहौल थोड़ा हल्का हो गया।

“अब बताओ... किस सीन की बात कर रहे थे?” रूचि ने पूछा।

“अरे, आज स्कैन के टाइम...” कमल कहने को हुआ तो माया ने कोहनी मार कर उसको चुप रहने को बोला।

“अच्छा बाद में बताता हूँ,”

“अरे बताओ न,” रूचि ने ज़िद करी।

“अरे बाद में बताता हूँ...” कमल ने कहा, “अच्छा, तुम दोनों ने कुछ खाया है?”

“हाँ,” रागिनी ने बताया, “उसी चक्कर में लेट हो गए... वहाँ से ऑटो भी देर से मिला,”

“बढ़िया है फिर तो,” कमल ने कहा, “चलो, कोशिश कर के जल्दी से शॉपिंग कर लेते हैं,”

“जल्दी से?!” रागिनी ने आँखें नचाते हुए शैतानी से कहा, “अभी तो हमने शुरू ही नहीं किया, और आपको अभी से जल्दी जल्दी चाहिए?”

उसकी बात पर सभी मुस्कुराने लगे।

“अरे नहीं नहीं, मैं तो बस ये कह रहा था कि जल्दी से शॉपिंग शुरू करते हैं,”

“हाँ, ये हुई न बात!” रागिनी ने कहा, “माया, मुझे रूचि का तो थोड़ा थोड़ा पता है, लेकिन आपको क्या क्या लेना है? क्या क्या बचा हुआ है?”

कह कर रागिनी ने ही शॉपिंग का आगाज़ किया।

अजय रागिनी के व्यवहार देख कर वाक़ई अचंभित था - ये ‘वो’ रागिनी नहीं लग रही थी। हाँ - इसका अंदाज़ उसी के जैसा था, लेकिन उसके व्यवहार में अभी भी एक सच्चाई थी। इतने दिन रागिनी के संग और फिर अपराधियों के संग रहते हुए अजय को मनुष्य की समझ तो हो ही गई थी। माया दीदी साँवली थीं, तो रागिनी उनके रंग के अनुकूल कपड़े ट्राई करवा रही थी। फ़ैशन की बहुत बढ़िया समझ थी उसको। कमल और अजय एक तरह से पिछलग्गुओं की ही तरह तीनों लड़कियों के पीछे पीछे चल रहे थे - जाहिर सी बात थी कि तीनों उनकी उपस्थिति को भूल गई थीं, और शॉपिंग करने में मगन हो गई थीं। तीनों को आनंद से, मज़े ले ले कर शॉपिंग करते देख कर अजय को अच्छा लग रहा था। इसके ज़रिए उसको रूचि की पसंद और नापसंद के बारे में भी जानने का मौका मिल रहा था।

रूचि ने अपने लिए चार जोड़ी कपड़े - साड़ियाँ और शलवार सूट - लिए। अपने वायदे के मुताबिक, रागिनी ने रूचि की शॉपिंग का पूरा ख़र्च उठाया। अजय और रूचि के आग्रह पर भी वो मानी नहीं। और तो और, उसने माया के लिए भी एक बढ़िया सा लहँगा लिया, इस ज़िद पर कि वो शादी के बाद होने वाले रिसेप्शन के लिए वही लहँगा पहनेगी। माया ने बहुत ना-नुकुर करी; कमल ने भी! लेकिन रागिनी ने एक न सुनी। वो ऐसी ही थी - अगर किसी बात की ज़िद पकड़ लेती थी, तो वो काम कर के ही छोड़ती थी। किसी भी हद तक चली जाती थी। इस बात पर अजय ने भी ज़िद पकड़ ली कि रागिनी भी अपने लिए कुछ ले... लेकिन रागिनी को कुछ भी लेने का मन नहीं हुआ। वो मॉडर्न कपड़े पहनती थी, और इस तरह के कपड़े उसको बहुत पसंद नहीं थे। इस बात पर अजय ने कहा कि उसको बहुत अच्छा लगेगा अगर रागिनी पारम्परिक वेश-भूषा में उसकी और रूचि की शादी में सम्मिलित हो। इस बात पर उसने एक साड़ी ले ली, जिसका ख़र्चा अजय ने दिया। अजय ने रूचि और माया के लिए भी ख़रीदा। माया ने कुछ और भी कपड़े ख़रीदे।

अंत में कमल और अजय ने अपने लिए पारम्परिक कपड़े लिए। दोनों ने तय किया था कि कमल की शादी में वो धोती पहनेंगे। तो उन्होंने वो लिया। फिर प्रशांत भैया की शादी में सम्मिलित होने के लिए उन्होंने दो और सूट लिए। सारी शॉपिंग लाजपत नगर में ही हो गई, लिहाज़ा और कहीं जाने की कोई आवश्यकता नहीं थी। पाँचों ने शाम को हल्का नाश्ता किया, फिर कमल ने पहले रूचि और रागिनी को उनके घर छोड़ा, फिर माया और अजय को, और फिर वो अपने घर चला गया।

एक बेहद लम्बे दिन का अंत हुआ।


**
Nice update....
 

Umakant007

चरित्रं विचित्रं..
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“अंकल जी,” अजय अंदर ही अंदर पूरी तरह से हिला हुआ था, लेकिन फिर भी ऊपर से स्वयं को संयत दिखाने का पूरा प्रयास कर रहा था कि उस बूढ़े आदमी को डर न महसूस हो, “आप चिंता मत करिए... मैंने इमरजेंसी पर कॉल कर दिया है... एम्बुलेंस बस आती ही होगी!”

बूढ़ा आदमी बहुत मुश्किल से साँसे ले पा रहा था। उसका पूरा शरीर पसीने से भीगा हुआ था और उसके चेहरे पर पीड़ा वाले भाव थे। अजय ने उसको अपनी बोतल से पानी पिलाने की कोशिश करी भी थी, लेकिन वो बस दो तीन छोटी घूँट भर कर रह गया।

दोपहर की कड़ी, चिलचिलाती धूप उसके चेहरे पर पड़ रही थी, इसलिए वो अपनी आँखें भी ठीक से नहीं खोल पा रहा था। अजय ने यह देखा। घोर आश्चर्य की बात थी कि इन पंद्रह मिनटों में कई सारी गाड़ियाँ उनके सामने से चली गई थीं, लेकिन अभी तक एक ने भी अपना वाहन रोक कर माज़रा जानने की ज़हमत नहीं उठाई थी। दुनिया ऐसी ही तो है!

यह देख कर अजय समझ गया कि जो करना है, उसको खुद से ही करना है। उसका खुद का दाहिना कन्धा अपने जोड़ से थोड़ा हट गया था, लेकिन फिर भी उसने अपनी सारी ताक़त इकट्ठा करी और बूढ़े को अपनी बाँहों में उठा लिया। पीड़ा की एक तीव्र लहर उसके दाहिने कन्धे से उठ कर मानों पूरे शरीर में फ़ैल गई। लेकिन उसने कोशिश कर के अपनी ‘आह’ को दबा लिया।

‘बस पाँच छः स्टेप्स (कदम), और फिर कोई प्रॉब्लम नहीं!’ उसने सोचा और बूढ़े को अपनी बाँहों में लिए अपना पहला कदम बढ़ाया।

अजय एक ‘क्लासिक अंडरअचीवर’ था। उसको अपने जीवन में अपनी प्रतिभा और क्षमता के हिसाब से बहुत ही कम सफ़लता मिली थी - इतनी कि उसको समाज एक ‘असफ़ल’ व्यक्ति या फिर एक ‘फेलियर’ कहता था। कम से कम उसके दोस्त तो यही कहते थे!

एक समय था जब उसके कॉलेज में उसके दोस्त और उसके शिक्षक सभी सोचते थे कि अगर आईआईटी न सही, वो एक दिन किसी न किसी अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज - जैसे रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज - में तो जाएगा ही जाएगा! उसके आस पड़ोस की आंटियाँ सोचती थीं कि उनके बच्चे अजय के जैसे हों। लेकिन ऊपरवाले ने उसकी तक़दीर न जाने किस क़लम से लिखी हुई थी। एक के बाद एक विपत्तियों और असफ़लताओं ने उसको तोड़ कर रख दिया था। ठीक कॉलेज से इंजीनियरिंग करना तो छोड़िए, इंजीनियरिंग कर पाना भी दूर का सपना बन गया। लिहाज़ा, मन मार कर उसको बीएससी और फ़िर ऍमसीए की डिग्री से ही समझौता करना पड़ा। आज तक उसकी एक भी ढंग की नौकरी नहीं लगी - एक आईटी कंपनी में नौकरी लगी थी, लेकिन वो दुर्भाग्यवश छूट गई। फिर, कभी किसी स्कूल में टीचर, तो कभी इंश्योरेंस एजेंट, तो कभी एमवे जैसी स्कीमें! कुछ बड़ा करने की चाह, कुछ हासिल कर पाने ही चाह दिन-ब-दिन बौनी होती जा रही थी।

वो बूढ़े को अपनी बाँहों में उठाये पाँच छः कदम चल तो लिया, लेकिन अभी भी छाँव दूर थी। ऐसी चटक धूप में छाँव भी चट्टानों और पेड़ों के ठीक नीचे ही मिलती है। उसको लग रहा था कि अब उसका हाथ टूट कर गिर जाएगा। लेकिन वैसा होने पर उस बूढ़े को अभूतपूर्ण हानि होनी तय थी। जैसे तैसे तीन चार ‘और’ कदम की दूरी तय करनी ही थी। अजय ने गहरी साँस भरी, और आगे चल पड़ा।

संयोग भी देखिए - आज 'एमवे' की मीटिंग थी मुंबई में। उसी के सिलसिले में वो अपने पुणे वाले घर से निकला था मुंबई को। जब उसने मुंबई-पुणे एक्सप्रेस वे पकड़ा, तब उसको लगा था कि आज तो आराम से पहुँच जाएगा वो! सामान्य दिनों के मुकाबले आज ट्रैफिक का नामोनिशान ही नहीं था जैसे। लेकिन फिर उसने अपने सामने वाली गाड़ी को देखा - बहुत अजीब तरीक़े से चला रहा था उसका ड्राइवर। कभी इस लेन में, तो कभी उस लेन में। लोगों में ड्राइविंग करने की तमीज़ नहीं है, लेकिन ऐसा गड़बड़ तो कम ही लोग चलाते हैं। कहीं ड्राइवर को कोई समस्या तो नहीं है - यह सोच कर न जाने क्यों अजय उस गाड़ी से कुछ दूरी बना कर उसके पीछे ही चलने लगा।

कुछ ही क्षणों में उसकी शंका सच साबित हुई।

अचानक से ही सामने वाली गाड़ी सड़क के बीचों-बीच चीख़ती हुई सी रुक गई - कुछ ऐसे कि लेन के समान्तर नहीं, बल्कि लेन के लंबवत। यह स्थिति ठीक नहीं थी। फिलहाल ट्रैफिक बहुत हल्का था - बस इक्का दुक्का गाड़ियाँ ही निकली थीं उसके सामने से, लेकिन यह स्थिति कभी भी बदल सकती थी। उसने जल्दी से अपनी गाड़ी सड़क के किनारे पार्क करी और भाग कर अपने सामने वाली गाड़ी की तरफ़ गया। यह बहुत ही डरावनी स्थिति थी - सौ किलोमीटर प्रति घण्टे वाली सड़क पर पैदल चलना - मतलब जानलेवा दुर्घटना को न्यौता देना। लेकिन क्या करता वो!

जब उसने उस गाड़ी में झाँक कर देखा तो पाया कि एक बूढ़ा आदमी पसीने पसीने हो कर, अपना सीना पकड़े, पीड़ा वाले भाव लिए अपनी सीट पर लुढ़का हुआ था। उसकी साँस उखड़ गई थी और दिल की धड़कन क्षीण हो गई थी। उसको देख कर लग रहा था कि उसको अभी अभी हृदयघात हुआ था। अजय ने जल्दी से बूढ़े को ड्राइवर की सीट से हटा कर पैसेंजर सीट पर बैठाया, और ख़ुद उसकी कर को ड्राइव कर के अपनी कार के ही पीछे पार्क कर दिया। एक मुसीबत कम हुई थी... अब बारी थी बूढ़े को बचाने की। हाँलाकि अजय को थोड़ा ही ज्ञान था, लेकिन उसने बूढ़े को कार्डिओपल्मोनरी रिसुसिटेशन चिकित्सा, जिसको अंग्रेज़ी में सीपीआर कहा जाता है, दिया।

जैसा फ़िल्मों में दिखाते हैं, वैसा नहीं होता सीपीआर! उसमें इतना बल लगता है कि कभी कभी चिकित्सा प्राप्त करने वाले की पसलियाँ चटक जाती हैं। वो बूढ़ा आदमी कमज़ोर था - इसलिए उसकी भी कई पसलियाँ चटक गईं। नुक़सान तो हुआ था, लेकिन फिलहाल उसकी जान बच गई लग रही थी। इस पूरी चिकित्सा में अजय के दाहिना कन्धा अपने स्थान से थोड़ा निकल गया!

छाँव तक जाते जाते अजय की खुद की साँसें उखड़ गईं थीं। उसको ऐसा लग रहा था कि कहीं उसको भी हृदयघात न हो जाए! उसने सावधानीपूर्वक बूढ़े को ज़मीन पर लिटाया। बूढ़ा दर्द के मारे दोहरा हो गया। अजय की हालत भी ठीक नहीं थी। लेकिन,

“अंकल जी,” उसने बूढ़े से पूछा, “अब आपको कैसा लग रहा है?”

“ब... बेटा...” बूढ़े ने बड़ी मुश्किल से टूटी फूटी आवाज़ में कहा, “तुम...ने ब...चा... लिया म...मुझे...”

“नहीं अंकल जी,” अजय ने सामान्य शिष्टाचार दिखाते हुए कहा, “ऐसा कुछ नहीं है! ... और आप भी... थोड़ा आराम कर लीजिए।”

बूढ़ा अल्पहास में हँसा और तुरंत ही अपनी इस हरक़त पर उसको पछतावा हो आया। हँसी के कारण उसको अपने पूरे शरीर में तीव्र पीड़ा महसूस हुई। लेकिन फिर भी वो बोला,

“अब इस बूढ़े की ज़िन्दगी में आराम ही आराम है बेटे,” उसने मुश्किल से कहा, “बयासी साल का हो गया हूँ... अपना कहने को कोई है नहीं यहाँ! ... जो अपने थे, वो विदेश में हैं।”

“आपके पास उनका नंबर तो होगा ही न!” अजय ने उत्साह से कहा, “मैं कॉल कर देता हूँ? आपका मोबाइल कार में ही होगा न?”

वो मुस्कुराया, “नहीं बेटे... तुम मेरे पास बैठो। उनको मेरी ज़रुरत नहीं है अब! ... तुमने बीस मिनट में मेरे लिए इतना कुछ कर दिया, जो उन्होंने मेरे लिए बीस साल में नहीं किया!”

अजय फ़ीकी हँसी में हँसा। यही तो नियम है संसार का। काम बन जाए, तो क्या बाप? क्या माँ?

लेकिन उसको अपने माँ बाप की कमी महसूस होती थी। उनको गए लगभग पंद्रह साल होने को आए थे अब! दोनों के इंश्योरेंस थे और अजय को उनकी मृत्यु पर इंश्योरेंस के रुपए भी मिले। लेकिन अधिकतर रक़म उसके पापा के देनदारों को अदा करने में चली गई। अपने जीते जी, वो अपने माँ बाप का नाम ख़राब नहीं कर सकता था।

“... और मेरी बदक़िस्मती देखिए न अंकल जी,” उसने निराशापूर्वक कहा, “मैं अपने माँ बाप के लिए कुछ कर नहीं सकता!”

“क्या हुआ उनको बेटे?”

“अब वो इस दुनिया में नहीं हैं अंकल जी,”

“दुःख हुआ जान कर!”

“कोई बात नहीं अंकल जी,” उसने गहरी साँस भरी, “... आपका नाम क्या है?”

“प्रजापति...” बूढ़े ने बताया, “मैं प्रजापति हूँ,” फिर उसने पूछा, “और तुम बेटे?”

“जी मेरा नाम अजय है...” अजय ने कहा, और पानी की बोतल बूढ़े के होंठों से लगाते हुए बोला, “लीजिए, थोड़ा पानी पी लीजिए...”

“अजय बेटे, तुम बहुत अच्छे हो!” बूढ़े ने इस बार अच्छी तरह से पानी पिया, “माफ़ करना, बहुत प्यास लगी थी... तुम्हारे लिए कुछ बचा ही नहीं!”

अजय ने मुस्कुरा कर कहा, “अंकल जी, आप सोचिए नहीं! वैसे भी आपकी ज़रुरत मुझसे अधिक थी।”


**
 

parkas

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अगली सुबह जब अशोक जी ऑफिस जाने के लिए निकले, तो कार कमल ड्राइव कर रहा था।

कल जब माया ने उसको शादी की शॉपिंग के बारे में बताया, तो कमल ने भी साथ आने की इच्छा जताई। सरिता जी भी चाहती थीं कि माया अपनी पसंद के कुछ कपड़े इत्यादि ले ले, क्योंकि वो अपनी गर्भावस्था के कारण अपेक्षाकृत जल्दी थक जा रही थीं। चूँकि कमल ने अजय को अकेले कहीं जाने से मना किया था, इसलिए ड्राइविंग का जिम्मा उसने लिया। इस समय अजय और माया भी उसके साथ में थे। कमल ने सबसे पहले अशोक जी को उनके ऑफ़िस में छोड़ा, फिर सीधा वानप्रस्थ हॉस्पिटल का रुख लिया।

एकदम सुबह का अपॉइंटमेंट था। सुबह के दो घण्टे डॉक्टर देशपाण्डे ‘फ्री’ थे, लिहाज़ा उनको यह समय उचित लगा अजय से बात करने के लिए।

“गुड मॉर्निंग, डॉक्टर देशपाण्डे,”

“अजय,” उन्होंने गर्मजोशी से कहा, “हाऊ आर यू फ़ीलिंग, यंग मैन?”

“बिल्कुल दुरुस्त, डॉक्टर!” अजय ने माया और कमल को मिलवाते हुए कहा, “शायद आप इनसे मिलें हों - मेरी दीदी, माया, और मेरे होने वाले जीजा जी, कमल?”

“हेलो,” डॉक्टर ने दोनों से हाथ मिला कर उनका अभिवादन किया, और मुस्तुराते हुए उसको बताया, “हाँ भई, मिला हूँ... और हमारी अच्छी दोस्ती भी है!”

“ओके,” अजय हँसने लगा।

“कोई परेशानी? कोई कॉम्प्लिकेशन?”

“नहीं,” अजय ने बताया।

“हम्म्म,”

“आप कह रहे थे कि कुछ एडिशनल टेस्ट्स करने हैं... क्या कुछ डाउट्स हैं?”

“हाँ,” डॉक्टर देशपाण्डे बोले, “कमल, माया... क्या आप दोनों कुछ देर बाहर वेट कर सकते हैं?”

“लेकिन डॉक्टर साहब,” माया बोली, “अगर कोई ऐसी बात है, तो हमारा रहना ठीक है न? मैं इसकी दीदी हूँ, और बाबू अभी भी नाबालिग़ है,”

अजय अपनी दीदी के मुँह से अपने लिया ‘बाबू’ शब्द सुन कर शर्मिंदा हो गया। ये ‘बड़े’ लोग अपनी आदत नहीं छोड़ पाते कभी भी। बाहरी लोगों के सामने उसको उसके घर वाले नाम से बुलाने की क्या ज़रुरत है?

“जी डॉक्टर,” कमल भी शामिल हो गया, “हम गार्डियन हैं अज्जू के... हमारे सामने आप सब कह सकते हैं!”

“देखिए ऐसी कोई बात नहीं है। टेस्ट्स के टाइम, आप दोनों अजय के साथ रह सकते हैं,” डॉक्टर बोले, “मुझे फिलहाल अजय से कुछ सवाल करने हैं, और कुछ नहीं!”

“ठीक है सर,” कह कर दोनों बाहर आ गए।

उनके जाने के बाद डॉक्टर देशपाण्डे ने कहा,

“जैसा मैंने पहले बताया, बेटे... मेरे पास कुछ क्वेश्चंस हैं...”

“कैसे क्वेश्चंस, सर?”

“बैठो, बताता हूँ...” कह कर उन्होंने अजय को कुर्सी पर बैठने का इशारा किया और अपनी अलमारी की ओर बढ़ गए।

वहाँ से उन्होंने एक टेप रिकॉर्डर निकाला।

“जब तुम अनकॉन्शियस थे न बेटे, तब तुम बहुत ही काम्प्लेक्स साइंटिफिक टर्म्स और बातें कह रहे थे...”

“जी? मैं?”

उन्होंने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा, “और जो बातें तुम कह रहे थे, मैंने उसको रिकॉर्ड कर लिया था।”

उन्होंने टेप रिकॉर्डर शुरू किया,

‘... सप्रेसर जीन दैट रेगुलेट्स सेल प्रोलिफिरेशन एंड हेल्प्स द सर्वाइवल ऑफ़ न्यूरल टिश्यूस... [अस्पष्ट आवाज़] ... स्पेशियली ट्यूमर्स... ग्लियोमा एंड मेडुलोब्लास्टोमा... [अस्पष्ट आवाज़] क्रिटिकल रेगुलेटर ऑफ़ न्यूरल सेल ग्रोथ, डीएनए रिपेयर, एपोप्टोसिस टू ऑन्कोजेनिक स्ट्रेस इन ब्रेन्स माइक्रो एनवायरनमेंट...’

डॉक्टर ने टेप को कुछ देर के लिए रोक दिया।

“ये मैं कह रहा हूँ?” अजय को यकीन ही नहीं हुआ।

डॉक्टर ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“लेकिन... मेरी ऐसी आवाज़ नहीं है डॉक्टर,”

“आई नो! लेकिन कॉन्शियसनेस जाने पर आवाज़ भी बदल जाती है... एक तो तुम... समझो एक गहरी नींद में थे और लेटे हुए थे... ऐसे में आवाज़ बदलना कोई अचम्भा नहीं है!”

“हम्म,” अजय को समझ नहीं आ रहा था, “लेकिन मुझे ये सब आया कैसे? कभी सुना ही नहीं ये सब!”

“तुमको बायोलॉजी में इंटरेस्ट नहीं?”

“दूर दूर तक कोई लेना देना ही नहीं है सर,”

“मेरे पास पूरे थर्टी नाइन मिनट्स की रिकॉर्डिंग है... और सच कहूँ, जो बातें तुम अनकॉन्शियस हो कर कह रहे थे न, वो सब एक मेडिकल गोल्ड माइन ऑफ़ इन्फॉर्मेशन एंड इनसाइट्स हैं!”

“वाओ... ओके,”

“मेरा रिसर्च... जैसा कि मैंने तुमको बताया था, आई ऍम रिसर्चिंग इन न्यूरोऑन्कोलॉजी... साथ ही मैं न्यूरोसर्जन भी हूँ... इसी टॉपिक पर है!”

“ओके,”

“तुमको कुछ समझ में नहीं आ रहा है न?”

अजय ने ‘न’ में सर हिलाया।

“बेटे, तुम जब अनकॉन्शियस हो कर ये सब बता रहे थे न, तब तुम एक जीन को डिस्क्राइब कर रहे थे... ऐसा जीन जो कुछ काम्प्लेक्स एंड अनट्रीटेबल ब्रेन कैंसर्स को ट्रीट करने में हेल्प कर सकता है!”

“वाओ!”

“हाँ... और मैं चाहता हूँ, कि तुम्हारी परमिशन से, मैं इस इन्फॉर्मेशन को अपनी रिसर्च में इस्तेमाल करूँ...”

“ओह, श्योर सर!”

“थैंक यू,” उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “लेकिन पूरी बात सुन लो... मेडिकल रिसर्च में सक्सेस रेट बहुत कम होता है। लेकिन जब सक्सेस मिलती है, तब उसका फाइनेंसियल विंडफॉल बहुत बड़ा होता है,”

“ओके!”

“तो मैं चाहता हूँ कि तुमको एस अ रिसर्च अस्सिस्टेंट अपनी रिसर्च में मेंशन करूँ, और यह इंश्योर करूँ कि तुमको भी कुछ परसेंटेज मिले प्रॉफ़िट्स का!”

“सर, अगर इस रिसर्च से लोगों का भला होता है, तो मुझे कुछ और नहीं चाहिए। ... वैसे भी, मैंने कुछ नहीं किया है... बस कुछ ऐसा जिब्बरिश बोल रहा हूँ, जिसके बारे में मुझे खुद ही कुछ नहीं पता!”

“इवन सो, मैं चाहता हूँ कि तुमको कुछ फाइनेंसियल बेनिफिट्स मिलें, अगर हम इस रिसर्च में सक्सेसफुल होते हैं तो!”

“ठीक है सर, अगर आपकी यही इच्छा है, तो मैं मान लेता हूँ!”

अजय समझ रहा था कि यह भी ईश्वर का ही कोई चमत्कार था, जो उसके माध्यम से संसार में आने वाला था। ईश्वरीय प्रसाद सभी में बिना किसी भेद भाव के, बिना किसी लालच के बाँटना चाहिए।

“... लेकिन मैं वो सब आपके रिसर्च में ही रीइन्वेस्ट कर दूँगा!”

“हा हा हा हा... अरे यार, कैसे हो तुम!” डॉक्टर देशपाण्डे ने ठहाके लगाते हुए कहा, “यहाँ मैं तुमको प्रॉफ़िट्स दिखा रहा हूँ, और तुम हो कि कुछ चाहते ही नहीं!”

अजय मुस्कुराया, “ठीक है सर! चलिए आपसे एक चीज़ माँग ही लेता हूँ,”

“हाँ बोलो,”

“अगर कभी ज़रुरत पड़ी, तो आप मेरे चुने हुए एक पेशेंट का मुफ़्त में ऑपरेशन या ट्रीटमेंट करेंगे!”

डॉक्टर देशपाण्डे मुस्कुराए, “यू गॉट इट,”

“थैंक यू सर,”

“नाऊ कम, लेट्स रन सम टेस्ट्स,”

“श्योर सर,”

“आई जस्ट वांट टू मेक श्योर दैट नथिंग इस बॉदरिंग यू,”

अजय मुस्कुराया, “श्योर सर,”

“गुड! नर्स?”

*
Bahut hi shaandar update diya hai avsji bhai....
Nice and lovely update....
 
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Ajju Landwalia

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उस रोज़ अजय को पहली बार पता चला कि कमल/राणा साहब की एक दुकान यहाँ लाजपत नगर में भी थी। दुकानें तो किशोर जी के बड़े भाईयों की भी यहाँ थीं। लेकिन कमल ने जान बूझ कर किसी को बताया नहीं, नहीं तो शॉपिंग न होती, केवल सभी से मिलना मिलाना ही होता रहता। कमल फिलहाल इस बात को अवॉयड करना चाहता था। माया को बाहर ले जाने के अवसर कम ही मिल रहे थे उसको। लिहाज़ा, यह अच्छा अवसर था माया के साथ बाहर आने का और उसकी पसंद नापसंद देखने और समझने का!

लाजपत नगर जाते समय कमल ने अजय को बताया कि जब उसका स्कैन चल रहा था, तब उसने रूचि को कॉल कर के अपनी इसी शॉप पर आने को कहा था। शायद रूचि और रागिनी को आने में देर थी, और तीनों को अब बहुत भूख लग रही थी। वैसे भी रूचि ने बता दिया था कि वो दोनों घर से खाना खा कर आएंगीं। इसलिए तीनों ने बगल के एक ढाबे में बैठ कर छोले कुल्चे का आर्डर दिया, और थोड़ी ही देर में खाने लगे और रूचि और रागिनी के आने का इंतज़ार करने लगे। अजय अपना दिल थामे इनके आने का इंतज़ार कर रहा था। दिवाली के रोज़ की घटना की पुनरावृत्ति न हो, उसकी पूरी कोशिश थी। ख़ैर, कोई पैंतालीस मिनट के बाद दोनों आती हुई दिखाई दीं।

अजय का दिल तेजी से धड़कने लगा, लेकिन उस रोज़ की तरह न तो उसको चक्कर आये और न ही बेहोशी।

रागिनी शायद अजय से मिलने को कुछ अधिक उत्साहित थी... आख़िरी कुछ कदम वो भागते हुए आई और अजय को अपने गले से लगाती हुई बोली,

“जीजा जी, लास्ट टाइम आपने फ़ाउल प्ले खेला था... इस बार नहीं चलेगा! मुझसे मिलिए... मैंने हूँ दूर दूर तक आपकी एकलौती साली, रा...”

“रागिनी,” अजय के मुँह से अस्फुट से स्वर निकले,

“रागिनी,” उसी समय रागिनी ने भी बोला और अजय के मुँह से अपना नाम सुन कर खिलखिला कर हँसने लगी।

“अरे वाह! आपको तो मेरा नाम मालूम है,”

“क्यों नहीं मालूम होगा दीदी,” रूचि बोली, “मैंने बताया है न इनको आपके बारे में!”

फिर रूचि भी अजय के आलिंगन में आती हुई बोली, “माय लव,” और उसके होंठों को चूम कर आगे बोली, “हाऊ आर यू फ़ीलिंग? डॉक्टर ने क्या कहा?”

“एकदम बढ़िया और फ़िट!”

“पक्का न?”

“हाँ... एकदम बढ़िया और फिट है तुम्हारा जानू प्यारी बहना!” कमल ने मज़े लेते हुए कहा, “आज तुमको वहाँ होना चाहिए था! तुमने अपने काम की एक डिलिशियस सीन मिस कर दी,”

“अबे,” अजय ने कमल को धमकाया।

“भैया,” कह कर रूचि कमल के गले से लगी, फिर,

“भाभी,” कह कर रूचि माया के गले से लगी।

“लगता है कि जीजू को मुझसे मिल कर कोई ख़ुशी नहीं हुई,”

“क्यों नहीं होगी दीदी?” रूचि बोली, “तुम एकलौती साली हो इनकी... क्यों ख़ुशी नहीं होगी?”

“रागिनी... दीदी,” अजय ने कहना शुरू किया।

“दीदी?” रागिनी ने इस शब्द पर अपनी अप्रसन्नता दर्शाते हुए कहना शुरू किया, “आप मुझे मेरे नाम से बुलाईये न जीजू... आधी घरवाली हूँ, तो थोड़ा तो हक़ जमाइए अपना,”

अजय मुस्कुराया, लेकिन थोड़ा रूखेपन से बोला, “ठीक है, दीदी नहीं कहूँगा आपको... लेकिन रूचि के रहते मुझे सवा, आधी, पौनी... कैसी भी एक्स्ट्रा घरवाली नहीं चाहिए,”

“अइय्यो... दिल टूट गया मेरा,”

“दीदी, इनसे मिलो,” कह कर रूचि ने बात बदलते हुए उसका कमल और माया से परिचय कराया, “ये हैं मेरे भैया, कमल, और ये हैं मेरी होने वाली प्यारी भाभी... अज्जू की दीदी, माया... और ये हैं रागिनी दीदी,”

“हेलो कमल,” कह कर रागिनी ने कमल को गले से लगाया, और, “हेलो भाभी,” कह कर उसने माया को गले से भी लगाया और चूम भी लिया।

“भाभी, जितना रूचि ने बताया है, आप तो उससे अधिक सुन्दर हैं,” वो बोली।

एक पल को अजय को लगा कि शायद रागिनी माया के साँवलेपन का मज़ाक उड़ा रही है, लेकिन फिर उसको उसकी आवाज़ की सच्चाई सुनाई दी। वो रागिनी की बातों से अच्छी तरह से वाक़िफ़ था। उसको आश्चर्य हुआ कि रागिनी अपने सामने किसी अन्य के गुणों को स्वीकार करने में सक्षम थी। जिस रागिनी को वो जानता था, वो अपने सामने किसी को फटकने भी नहीं देती थी।

शायद रूचि सही कह रही है - अजय ने सोचा, ‘रागिनी में सुधार की गुंजाईश है!’

“रागिनी,” अजय ने कहना शुरू किया, “आई ऍम सॉरी... आज पूरा दिन स्कैन्स और टेस्ट्स करवा करवा कर थक गया, इसलिए थोड़ा क्रैंकी हो गया! आई ऍम सॉरी,”

रागिनी मुस्कुराई, “कोई बात नहीं जीजू... मुझे अच्छा लगा कि आप रूचि को ले कर इतना पोसेसिव हैं,”

“आई लव हर,”

“अच्छी बात है,” उसने फिर से साली वाली छेड़खानी शुरू कर दी, “लेकिन कभी आप दोनों का ब्रेकअप हो जाए... तो मुझे याद ज़रूर करिएगा! बहुत अंतर नहीं है... हम दोनों बहने ही हैं!”

“ज़रूर,” अजय भी खेलने लगा, “लेकिन लगता तो नहीं कि ऐसा कुछ होगा।”

“प्रीटी सीरियस, हम्म?”

“वैरी,”

रागिनी ने आह भरते हुए कहा, “मुझको भी यही चाहिए यार... कोई तो हो जो मुझको ले कर सीरियस हो! बॉयफ्रैंड्स की फ़ौज़ थोड़े न बनानी है! कभी इस काम में मज़ा आता था... अब नहीं। मुझे भी मोहब्बत चाहिए... स्टेबिलिटी चाहिए... रेस्पेक्ट चाहिए,”

अजय ने समझते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“चिंता किस बात की है,” माया ने दोनों की बातों में शामिल होते हुए कहा, “अब हम हैं न तुम्हारे साथ! मिल कर ढूँढेंगे एक अच्छा सा दूल्हा तुम्हारे लिए भी!”

“प्रॉमिस न भाभी?”

“पक्का प्रॉमिस!”

माहौल थोड़ा हल्का हो गया।

“अब बताओ... किस सीन की बात कर रहे थे?” रूचि ने पूछा।

“अरे, आज स्कैन के टाइम...” कमल कहने को हुआ तो माया ने कोहनी मार कर उसको चुप रहने को बोला।

“अच्छा बाद में बताता हूँ,”

“अरे बताओ न,” रूचि ने ज़िद करी।

“अरे बाद में बताता हूँ...” कमल ने कहा, “अच्छा, तुम दोनों ने कुछ खाया है?”

“हाँ,” रागिनी ने बताया, “उसी चक्कर में लेट हो गए... वहाँ से ऑटो भी देर से मिला,”

“बढ़िया है फिर तो,” कमल ने कहा, “चलो, कोशिश कर के जल्दी से शॉपिंग कर लेते हैं,”

“जल्दी से?!” रागिनी ने आँखें नचाते हुए शैतानी से कहा, “अभी तो हमने शुरू ही नहीं किया, और आपको अभी से जल्दी जल्दी चाहिए?”

उसकी बात पर सभी मुस्कुराने लगे।

“अरे नहीं नहीं, मैं तो बस ये कह रहा था कि जल्दी से शॉपिंग शुरू करते हैं,”

“हाँ, ये हुई न बात!” रागिनी ने कहा, “माया, मुझे रूचि का तो थोड़ा थोड़ा पता है, लेकिन आपको क्या क्या लेना है? क्या क्या बचा हुआ है?”

कह कर रागिनी ने ही शॉपिंग का आगाज़ किया।

अजय रागिनी के व्यवहार देख कर वाक़ई अचंभित था - ये ‘वो’ रागिनी नहीं लग रही थी। हाँ - इसका अंदाज़ उसी के जैसा था, लेकिन उसके व्यवहार में अभी भी एक सच्चाई थी। इतने दिन रागिनी के संग और फिर अपराधियों के संग रहते हुए अजय को मनुष्य की समझ तो हो ही गई थी। माया दीदी साँवली थीं, तो रागिनी उनके रंग के अनुकूल कपड़े ट्राई करवा रही थी। फ़ैशन की बहुत बढ़िया समझ थी उसको। कमल और अजय एक तरह से पिछलग्गुओं की ही तरह तीनों लड़कियों के पीछे पीछे चल रहे थे - जाहिर सी बात थी कि तीनों उनकी उपस्थिति को भूल गई थीं, और शॉपिंग करने में मगन हो गई थीं। तीनों को आनंद से, मज़े ले ले कर शॉपिंग करते देख कर अजय को अच्छा लग रहा था। इसके ज़रिए उसको रूचि की पसंद और नापसंद के बारे में भी जानने का मौका मिल रहा था।

रूचि ने अपने लिए चार जोड़ी कपड़े - साड़ियाँ और शलवार सूट - लिए। अपने वायदे के मुताबिक, रागिनी ने रूचि की शॉपिंग का पूरा ख़र्च उठाया। अजय और रूचि के आग्रह पर भी वो मानी नहीं। और तो और, उसने माया के लिए भी एक बढ़िया सा लहँगा लिया, इस ज़िद पर कि वो शादी के बाद होने वाले रिसेप्शन के लिए वही लहँगा पहनेगी। माया ने बहुत ना-नुकुर करी; कमल ने भी! लेकिन रागिनी ने एक न सुनी। वो ऐसी ही थी - अगर किसी बात की ज़िद पकड़ लेती थी, तो वो काम कर के ही छोड़ती थी। किसी भी हद तक चली जाती थी। इस बात पर अजय ने भी ज़िद पकड़ ली कि रागिनी भी अपने लिए कुछ ले... लेकिन रागिनी को कुछ भी लेने का मन नहीं हुआ। वो मॉडर्न कपड़े पहनती थी, और इस तरह के कपड़े उसको बहुत पसंद नहीं थे। इस बात पर अजय ने कहा कि उसको बहुत अच्छा लगेगा अगर रागिनी पारम्परिक वेश-भूषा में उसकी और रूचि की शादी में सम्मिलित हो। इस बात पर उसने एक साड़ी ले ली, जिसका ख़र्चा अजय ने दिया। अजय ने रूचि और माया के लिए भी ख़रीदा। माया ने कुछ और भी कपड़े ख़रीदे।

अंत में कमल और अजय ने अपने लिए पारम्परिक कपड़े लिए। दोनों ने तय किया था कि कमल की शादी में वो धोती पहनेंगे। तो उन्होंने वो लिया। फिर प्रशांत भैया की शादी में सम्मिलित होने के लिए उन्होंने दो और सूट लिए। सारी शॉपिंग लाजपत नगर में ही हो गई, लिहाज़ा और कहीं जाने की कोई आवश्यकता नहीं थी। पाँचों ने शाम को हल्का नाश्ता किया, फिर कमल ने पहले रूचि और रागिनी को उनके घर छोड़ा, फिर माया और अजय को, और फिर वो अपने घर चला गया।

एक बेहद लम्बे दिन का अंत हुआ।


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Sabhi updates ek se badhkar ek he avsji Bhai,

Dr Deshpande ne jo recording Ajay ko sunayi, vo behad hi chuokane vali he..........

Jis bande ka neurology ya biology ka dur dur tak rishta na ho vo itne complex bate batata he........

Dr Deshpande bhi surprise ho gaye...............

Ragini ka ye rup future wale rup se bilkul hi opposite he..............

Bahut hi gazab ka likh rahe ho Bhai Ji

Keep rocking
 
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