अपडेट 66
उस रोज़ अजय को पहली बार पता चला कि कमल/राणा साहब की एक दुकान यहाँ लाजपत नगर में भी थी। दुकानें तो किशोर जी के बड़े भाईयों की भी यहाँ थीं। लेकिन कमल ने जान बूझ कर किसी को बताया नहीं, नहीं तो शॉपिंग न होती, केवल सभी से मिलना मिलाना ही होता रहता। कमल फिलहाल इस बात को अवॉयड करना चाहता था। माया को बाहर ले जाने के अवसर कम ही मिल रहे थे उसको। लिहाज़ा, यह अच्छा अवसर था माया के साथ बाहर आने का और उसकी पसंद नापसंद देखने और समझने का!
लाजपत नगर जाते समय कमल ने अजय को बताया कि जब उसका स्कैन चल रहा था, तब उसने रूचि को कॉल कर के अपनी इसी शॉप पर आने को कहा था। शायद रूचि और रागिनी को आने में देर थी, और तीनों को अब बहुत भूख लग रही थी। वैसे भी रूचि ने बता दिया था कि वो दोनों घर से खाना खा कर आएंगीं। इसलिए तीनों ने बगल के एक ढाबे में बैठ कर छोले कुल्चे का आर्डर दिया, और थोड़ी ही देर में खाने लगे और रूचि और रागिनी के आने का इंतज़ार करने लगे। अजय अपना दिल थामे इनके आने का इंतज़ार कर रहा था। दिवाली के रोज़ की घटना की पुनरावृत्ति न हो, उसकी पूरी कोशिश थी। ख़ैर, कोई पैंतालीस मिनट के बाद दोनों आती हुई दिखाई दीं।
अजय का दिल तेजी से धड़कने लगा, लेकिन उस रोज़ की तरह न तो उसको चक्कर आये और न ही बेहोशी।
रागिनी शायद अजय से मिलने को कुछ अधिक उत्साहित थी... आख़िरी कुछ कदम वो भागते हुए आई और अजय को अपने गले से लगाती हुई बोली,
“जीजा जी, लास्ट टाइम आपने फ़ाउल प्ले खेला था... इस बार नहीं चलेगा! मुझसे मिलिए... मैंने हूँ दूर दूर तक आपकी एकलौती साली, रा...”
“रागिनी,” अजय के मुँह से अस्फुट से स्वर निकले,
“रागिनी,” उसी समय रागिनी ने भी बोला और अजय के मुँह से अपना नाम सुन कर खिलखिला कर हँसने लगी।
“अरे वाह! आपको तो मेरा नाम मालूम है,”
“क्यों नहीं मालूम होगा दीदी,” रूचि बोली, “मैंने बताया है न इनको आपके बारे में!”
फिर रूचि भी अजय के आलिंगन में आती हुई बोली, “माय लव,” और उसके होंठों को चूम कर आगे बोली, “हाऊ आर यू फ़ीलिंग? डॉक्टर ने क्या कहा?”
“एकदम बढ़िया और फ़िट!”
“पक्का न?”
“हाँ... एकदम बढ़िया और फिट है तुम्हारा जानू प्यारी बहना!” कमल ने मज़े लेते हुए कहा, “आज तुमको वहाँ होना चाहिए था! तुमने अपने काम की एक डिलिशियस सीन मिस कर दी,”
“अबे,” अजय ने कमल को धमकाया।
“भैया,” कह कर रूचि कमल के गले से लगी, फिर,
“भाभी,” कह कर रूचि माया के गले से लगी।
“लगता है कि जीजू को मुझसे मिल कर कोई ख़ुशी नहीं हुई,”
“क्यों नहीं होगी दीदी?” रूचि बोली, “तुम एकलौती साली हो इनकी... क्यों ख़ुशी नहीं होगी?”
“रागिनी... दीदी,” अजय ने कहना शुरू किया।
“दीदी?” रागिनी ने इस शब्द पर अपनी अप्रसन्नता दर्शाते हुए कहना शुरू किया, “आप मुझे मेरे नाम से बुलाईये न जीजू... आधी घरवाली हूँ, तो थोड़ा तो हक़ जमाइए अपना,”
अजय मुस्कुराया, लेकिन थोड़ा रूखेपन से बोला, “ठीक है, दीदी नहीं कहूँगा आपको... लेकिन रूचि के रहते मुझे सवा, आधी, पौनी... कैसी भी एक्स्ट्रा घरवाली नहीं चाहिए,”
“अइय्यो... दिल टूट गया मेरा,”
“दीदी, इनसे मिलो,” कह कर रूचि ने बात बदलते हुए उसका कमल और माया से परिचय कराया, “ये हैं मेरे भैया, कमल, और ये हैं मेरी होने वाली प्यारी भाभी... अज्जू की दीदी, माया... और ये हैं रागिनी दीदी,”
“हेलो कमल,” कह कर रागिनी ने कमल को गले से लगाया, और, “हेलो भाभी,” कह कर उसने माया को गले से भी लगाया और चूम भी लिया।
“भाभी, जितना रूचि ने बताया है, आप तो उससे अधिक सुन्दर हैं,” वो बोली।
एक पल को अजय को लगा कि शायद रागिनी माया के साँवलेपन का मज़ाक उड़ा रही है, लेकिन फिर उसको उसकी आवाज़ की सच्चाई सुनाई दी। वो रागिनी की बातों से अच्छी तरह से वाक़िफ़ था। उसको आश्चर्य हुआ कि रागिनी अपने सामने किसी अन्य के गुणों को स्वीकार करने में सक्षम थी। जिस रागिनी को वो जानता था, वो अपने सामने किसी को फटकने भी नहीं देती थी।
शायद रूचि सही कह रही है - अजय ने सोचा, ‘रागिनी में सुधार की गुंजाईश है!’
“रागिनी,” अजय ने कहना शुरू किया, “आई ऍम सॉरी... आज पूरा दिन स्कैन्स और टेस्ट्स करवा करवा कर थक गया, इसलिए थोड़ा क्रैंकी हो गया! आई ऍम सॉरी,”
रागिनी मुस्कुराई, “कोई बात नहीं जीजू... मुझे अच्छा लगा कि आप रूचि को ले कर इतना पोसेसिव हैं,”
“आई लव हर,”
“अच्छी बात है,” उसने फिर से साली वाली छेड़खानी शुरू कर दी, “लेकिन कभी आप दोनों का ब्रेकअप हो जाए... तो मुझे याद ज़रूर करिएगा! बहुत अंतर नहीं है... हम दोनों बहने ही हैं!”
“ज़रूर,” अजय भी खेलने लगा, “लेकिन लगता तो नहीं कि ऐसा कुछ होगा।”
“प्रीटी सीरियस, हम्म?”
“वैरी,”
रागिनी ने आह भरते हुए कहा, “मुझको भी यही चाहिए यार... कोई तो हो जो मुझको ले कर सीरियस हो! बॉयफ्रैंड्स की फ़ौज़ थोड़े न बनानी है! कभी इस काम में मज़ा आता था... अब नहीं। मुझे भी मोहब्बत चाहिए... स्टेबिलिटी चाहिए... रेस्पेक्ट चाहिए,”
अजय ने समझते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“चिंता किस बात की है,” माया ने दोनों की बातों में शामिल होते हुए कहा, “अब हम हैं न तुम्हारे साथ! मिल कर ढूँढेंगे एक अच्छा सा दूल्हा तुम्हारे लिए भी!”
“प्रॉमिस न भाभी?”
“पक्का प्रॉमिस!”
माहौल थोड़ा हल्का हो गया।
“अब बताओ... किस सीन की बात कर रहे थे?” रूचि ने पूछा।
“अरे, आज स्कैन के टाइम...” कमल कहने को हुआ तो माया ने कोहनी मार कर उसको चुप रहने को बोला।
“अच्छा बाद में बताता हूँ,”
“अरे बताओ न,” रूचि ने ज़िद करी।
“अरे बाद में बताता हूँ...” कमल ने कहा, “अच्छा, तुम दोनों ने कुछ खाया है?”
“हाँ,” रागिनी ने बताया, “उसी चक्कर में लेट हो गए... वहाँ से ऑटो भी देर से मिला,”
“बढ़िया है फिर तो,” कमल ने कहा, “चलो, कोशिश कर के जल्दी से शॉपिंग कर लेते हैं,”
“जल्दी से?!” रागिनी ने आँखें नचाते हुए शैतानी से कहा, “अभी तो हमने शुरू ही नहीं किया, और आपको अभी से जल्दी जल्दी चाहिए?”
उसकी बात पर सभी मुस्कुराने लगे।
“अरे नहीं नहीं, मैं तो बस ये कह रहा था कि जल्दी से शॉपिंग शुरू करते हैं,”
“हाँ, ये हुई न बात!” रागिनी ने कहा, “माया, मुझे रूचि का तो थोड़ा थोड़ा पता है, लेकिन आपको क्या क्या लेना है? क्या क्या बचा हुआ है?”
कह कर रागिनी ने ही शॉपिंग का आगाज़ किया।
अजय रागिनी के व्यवहार देख कर वाक़ई अचंभित था - ये ‘वो’ रागिनी नहीं लग रही थी। हाँ - इसका अंदाज़ उसी के जैसा था, लेकिन उसके व्यवहार में अभी भी एक सच्चाई थी। इतने दिन रागिनी के संग और फिर अपराधियों के संग रहते हुए अजय को मनुष्य की समझ तो हो ही गई थी। माया दीदी साँवली थीं, तो रागिनी उनके रंग के अनुकूल कपड़े ट्राई करवा रही थी। फ़ैशन की बहुत बढ़िया समझ थी उसको। कमल और अजय एक तरह से पिछलग्गुओं की ही तरह तीनों लड़कियों के पीछे पीछे चल रहे थे - जाहिर सी बात थी कि तीनों उनकी उपस्थिति को भूल गई थीं, और शॉपिंग करने में मगन हो गई थीं। तीनों को आनंद से, मज़े ले ले कर शॉपिंग करते देख कर अजय को अच्छा लग रहा था। इसके ज़रिए उसको रूचि की पसंद और नापसंद के बारे में भी जानने का मौका मिल रहा था।
रूचि ने अपने लिए चार जोड़ी कपड़े - साड़ियाँ और शलवार सूट - लिए। अपने वायदे के मुताबिक, रागिनी ने रूचि की शॉपिंग का पूरा ख़र्च उठाया। अजय और रूचि के आग्रह पर भी वो मानी नहीं। और तो और, उसने माया के लिए भी एक बढ़िया सा लहँगा लिया, इस ज़िद पर कि वो शादी के बाद होने वाले रिसेप्शन के लिए वही लहँगा पहनेगी। माया ने बहुत ना-नुकुर करी; कमल ने भी! लेकिन रागिनी ने एक न सुनी। वो ऐसी ही थी - अगर किसी बात की ज़िद पकड़ लेती थी, तो वो काम कर के ही छोड़ती थी। किसी भी हद तक चली जाती थी। इस बात पर अजय ने भी ज़िद पकड़ ली कि रागिनी भी अपने लिए कुछ ले... लेकिन रागिनी को कुछ भी लेने का मन नहीं हुआ। वो मॉडर्न कपड़े पहनती थी, और इस तरह के कपड़े उसको बहुत पसंद नहीं थे। इस बात पर अजय ने कहा कि उसको बहुत अच्छा लगेगा अगर रागिनी पारम्परिक वेश-भूषा में उसकी और रूचि की शादी में सम्मिलित हो। इस बात पर उसने एक साड़ी ले ली, जिसका ख़र्चा अजय ने दिया। अजय ने रूचि और माया के लिए भी ख़रीदा। माया ने कुछ और भी कपड़े ख़रीदे।
अंत में कमल और अजय ने अपने लिए पारम्परिक कपड़े लिए। दोनों ने तय किया था कि कमल की शादी में वो धोती पहनेंगे। तो उन्होंने वो लिया। फिर प्रशांत भैया की शादी में सम्मिलित होने के लिए उन्होंने दो और सूट लिए। सारी शॉपिंग लाजपत नगर में ही हो गई, लिहाज़ा और कहीं जाने की कोई आवश्यकता नहीं थी। पाँचों ने शाम को हल्का नाश्ता किया, फिर कमल ने पहले रूचि और रागिनी को उनके घर छोड़ा, फिर माया और अजय को, और फिर वो अपने घर चला गया।
एक बेहद लम्बे दिन का अंत हुआ।
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