Iron Man
Try and fail. But never give up trying
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Haa bhai, aakriti ne dhokha kiya Aryan ke sath, aur andhere me kya kya kiya se bhi samajh jaaoAwesome update bhai
Aaryan ke saath aakriti thi use samay slaka ke bhesh mei aur usne amrit bhi pi liya kya?
Nice update.....#152.
वेदांत रहस्यम्
(15 जनवरी 2002, मंगलवार, 15:00, ट्रांस अंटार्कटिक माउन्टेन, अंटार्कटिका)
विल्मर को सुनहरी ढाल देने के बाद शलाका ने जेम्स को वापस उसी कमरे में रुकाया और स्वयं अपने शयनकक्ष में आ गई।
शलाका ने अपने भाईयों पर नजर मारी जो कि दूसरे कमरे में थे।
शलाका ने अब अपने कमरे का द्वार अंदर से बंद कर लिया, वह नहीं चाहती थी कि वेदांत रहस्यम् पढ़ते समय कोई भी उसे डिस्टर्ब करे।
कक्ष में मौजूद अलमारी से शलाका ने वेदांत रहस्यम् निकाल ली और उसे ले अपने बिस्तर पर आ गई।
लाल रंग के जिल्द वाली, 300 पृष्ठ वाली, 5,000 वर्ष पुरानी, आर्यन के द्वारा लिखी किताब अब उसके सामने थी।
शलाका जानती थी कि इसी किताब में वह रहस्य भी दफन है कि आर्यन ने क्यों अपनी इच्छा से अपनी मौत का वरण किया? यह पुस्तक अपने अंदर सैकड़ों राज दबाये थी, इसलिये उसे खोलते समय शलाका के हाथ कांपने लगे।
शलाका ने वेदांत रहस्यम् का पहला पृष्ठ खोला।
पहले पृष्ठ पर वेदालय की फोटो बनी थी। जिसे आर्यन ने अपनी स्मृति से रेखा चित्रों के माध्यम से बनाया था। उसे देखकर एक पल में ही शलाका 5,000 वर्ष पहले की यादें अपने दिल में महसूस करने लगी।
शलाका जानती थी, कि यह किताब जादुई है, अगर उसने वेदालय की फोटो को छुआ, तो वह उस स्थान पर पहुंच जायेगी, इसलिये इच्छा होने के बाद भी शलाका ने वेदालय की फोटो को स्पर्श नहीं किया।
शलाका ने अब दूसरा पृष्ठ पलटा। उस पृष्ठ पर वेदालय की वह तस्वीर थी, जब पहली बार सभी वेदालय में प्रविष्ठ हुए थे।
उस तस्वीर में आकृति, आर्यन से चिपक कर खड़ी थी और शलाका उनसे थोड़ा दूर खड़ी थी।
कुछ देर के लिये ही सही पर यह तस्वीर देखते ही शलाका के मन में आकृति के लिये गुस्सा भर गया।
शलाका ने अब एक-एक कर पन्ने पलटने शुरु कर दिये।
आगे के लगभग 30 पेज वेदालय की अलग-अलग यादों से भरे हुए थे। पर एक पेज पलटते ही शलाका से रहा नहीं गया, उसने उस तस्वीर को छू लिया।
एक पल में ही शलाका उस तस्वीर में समाकर उस काल में पहुंच गई, जहां वह एक नदी के किनारे आर्यन के साथ अकेली थी।
आर्यन और शलाका दोनों ही इस समय xyz (chhote) वर्ष के थे।
तो आइये दोस्तों देखते हैं कि ऐसा क्या था उस फोटो में कि शलाका अपने आप को उसे छूने से रोक नहीं पायी।
वेदालय से कुछ दूरी पर एक सुंदर सी झील थी, जहां इस मौसम में बहुत से पंछी और चिड़िया उड़कर, उस स्थान पर आते थे।
इस समय जिधर नजर जा रही थी, उधर चारो ओर रंग-बिरंगे फूल, तितलियां और पंछी दिखाई दे रहे थे। ऐसे मौसम में आर्यन और शलाका उस स्थान पर बैठे थे।
“आज तो छुट्टी का दिन था फिर तुम मुझे यहां पर क्यों लाये आर्यन?” शलाका ने अपनी नन्हीं आँखों से आर्यन को देखते हुए पूछा।
“क्यों कि तुम मुझसे एक छोटी सी शर्त हार गई थी और शर्त केअनुसार एक दिन के लिये मैं जो कहूं, वो तुम्हें मानना पड़ता, तो फिर मैंने सोचा कि क्यों ना मैं तुम्हें अपनी सबसे फेवरेट जगह दिखाऊं, बस यही सोच मैं तुम्हें यहां ले आया। मुझे पता है कि अगर शर्त नहीं होती तो तुम कभी मेरे साथ नहीं आती। पर सच कहूं तो मैं तुम्हें ऐसे अकेले कमरे में बंद पड़े नहीं देख सकता। तुम पता नहीं कमरे से बाहर क्यों नहीं निकलती?”
“वो....वो मैं तुमसे बात करना चाहती हूं, तुम्हारे साथ घूमना भी चाहती हूं, पर वो आकृति हमेशा तुम्हारे साथ रहती है और वह मुझसे बहुत चिढ़ती है, बस इसी लिये मैं तुम्हारे साथ बाहर कहीं नहीं जाती।”
शलाका ने धीरे से कहा।
“कोई बात नहीं, पर आज तो आकृति मेरे साथ नहीं है...आज तुम यहां मेरे साथ खेल सकती हो।” आर्यन ने भोला सा चेहरा बनाते हुए कहा।
“ठीक है, पर तुम यहां पर आकर कौन सा खेल खेलते हो?” शलाका ने आर्यन की बातों में रुचि लेते हुए कहा।
“मैं यहां पर प्रकृति को महसूस करने वाला खेल खेलता हूं। क्या यह खेल तुम मेरे साथ खेलोगी?” आर्यन ने कहा।
“पर मुझे तो ये खेल नहीं आता। इसे कैसे खेलते हैं आर्यन?” शलाका ने कहा।
“यह खेलना बहुत आसान है...सबसे पहले हम कोई चिड़िया ले लेते हैं और उसे महसूस करते हैं।”
“चिड़िया?” शलाका को कुछ भी समझ में नहीं आया- “चिड़िया में महसूस करने वाला क्या होता है आर्यन?”
“रुको , मैं तुम्हें यह करके दिखाता हूं।” यह कहकर आर्यन ने इधर-उधर देखा।
आर्यन को कुछ दूरी पर एक नन्ही सी लाल रंग की चिड़िया उड़ती हुई दिखाई दी, आर्यन उस चिड़िया की ओर दौड़ा।
चिड़िया एक नन्हें बच्चे को अपनी ओर भागते देख, चीं-चीं कर तेजी से उड़ने लगी।
आर्यन ने कुछ देर तक चिड़िया को देखा और फिर वह चिड़िया के समान ही आवाज निकालता उस चिड़िया से अलग दिशा में दौड़ा।
चिड़िया उस नन्हें बालक को अपनी तरह बोलता देख, आर्यन के पीछे-पीछे उड़ने लगी।
अब नजारा उल्टा था, पहले चिड़िया के पीछे आर्यन था, पर अब आर्यन के पीछे चिड़िया।
सच कहें तो शलाका को कुछ समझ में नहीं आ रहा था, पर आर्यन के पीछे चिड़िया का भागना उसे अच्छा लग रहा था।
अब आर्यन एक जगह पर रुक गया, और अपने दोनों हाथों को फैलाकर, फिर चिड़िया की तरह बोलने लगा।
कुछ ही देर में चिड़िया आकर आर्यन के हाथ पर बैठ गयी, आर्यन ने धीरे से चिड़िया के पंखों को सहलाया।
चिड़िया को आर्यन का सहलाना बहुत अच्छा लगा, वह फिर चीं-चीं कर मानो आर्यन को और ऐसा करने को कह रही थी।
आर्यन ने अब उसे कई बार सहलाया और फिर उसे लेकर शलाका के पास आ गया।
“अब अपना हाथ आगे करो शलाका।” आर्यन ने शलाका से कहा।
शलाका ने डरते-डरते अपना हाथ आगे कर दिया। आर्यन ने नन्हीं चिड़िया को शलाका के हाथों पर रख दिया।
नन्हीं चिड़िया शलाका के हाथ पर फुदक कर चीं-चीं कर रही थी।
कुछ ही देर में शलाका का डर खत्म हो गया और वह भी चिड़िया के साथ खेलने लगी।
शलाका चिड़िया से खेलने में इतना खो गई कि वह भूल गई कि आर्यन भी उसके साथ है।
“क्या अब तुम इस चिड़िया को महसूस कर पा रही हो शलाका?” आर्यन ने शलाका से पूछा।
“हां.... इस चिड़िया का धड़कता दिल, इसके खुशी से फुदकने का अहसास, इसका पंख पसार कर उड़ना, इसका मेरे हाथों पर चोंच मारना, मुझे सबकुछ महसूस हो रहा है आर्यन। सच कहूं तो यह बहुत अच्छी फीलिंग है, मैंने ऐसा पहले कभी नहीं महसूस किया।”
“यही प्रकृति है शलाका, अगर हम अपने आसपास की चीजों को दिल से महसूस करने लगें तो हम कभी स्वयं को अकेला महसूस नहीं करेंगे। अकेले होकर भी कभी हम दुखी नहीं होंगे।”
आर्यन ने अब उस नन्हीं चिड़िया को चीं-चीं कर कुछ कहा और फिर उसे आसमान में उड़ा दिया।
“क्या तुम्हें पंछियों की भाषा आती है आर्यन?” शलाका ने आर्यन की आँखों में देखते हुए पूछा।
“नहीं !”
“तो फिर तुम उस चिड़िया से बात कैसे कर रहे थे?” शलाका ने हैरानी से कहा।
“किसने कहा कि मैं उससे बात कर रहा था। मैं तो बस उसे महसूस कर रहा था, पर महसूस करते-करते, वह मेरी भावनाओं को स्वयं समझ जा रही थी।” आर्यन ने मुस्कुराते हुए कहा।
तभी शलाका को एक फूल पर बैठी बहुत ही खूबसूरत तितली दिखाई दी, जो नीले और काले रंग की थी।
उसे देख शलाका ने उसे पकड़ लिया।
वह तितली अब शलाका की पकड़ से छूटने का प्रयास करने लगी।
यह देख आर्यन ने शलाका का हाथ थाम लिया और बोला- “किसी को दुख पहुंचा कर हमें खुशी कभी नहीं मिल सकती शलाका।”
आर्यन के शब्द सुन शलाका ने अपनी चुटकी खोलकर उस तितली को उड़ा दिया।
यह देख आर्यन ने अपने हाथ पसार कर अपने मुंह से एक विचित्र सी ध्वनि निकाली, ऐसा करते ही पता नहीं कहां से सैकड़ों तितलियां आकर आर्यन के हाथ पर बैठ गईं।
“एक बार तितली को तुम छूकर के देख लो, हर पंख उसका छाप दिल पर छोड़ जायेगा।”
आर्यन के शब्द समझ शलाका ने अपने हाथों की ओर देखा, जिस पर तितली का नीला और काला रंग अब भी लगा था।
तितली का रंग शलाका के हाथ पर एक छाप छोड़ गया था, पर आर्यन का रंग शलाका के दिल पर एक अमिट छाप छोड़ रहा था, वह अब महसूस कर रही थी, इस पूरे जहान को, नीले से आसमान को....और
कुछ अलग सा महसूस कराने वाले उस आर्यन को............।”
शलाका अब वापस अपने कमरे में आ गई थी, पर उन कुछ पलों ने शलाका के दिमाग में एक हलचल सी मचा दी थी।
कुछ पलों तक शलाका यूं ही बैठी रही फिर उसने एक गहरी साँस भरी और वेदांत रहस्यम् के आगे के पन्नों को पलटने लगी।
धीरे-धीरे वेदालय की सभी घटनाएं निकल गईं। इसके बाद कुछ और चित्र नजर आये, पर वह शलाका के लिये जरुरी नहीं थे, उसे तो बस अब रहस्य जानना था, इसलिये शलाका ने जल्दी-जल्दी बहुत से पृष्ठ पलट
दिये।
अब शलाका की नजर एक ऐसे पृष्ठ पर थी, जिसमें आर्यन शलाका के साथ उसके कमरे में था, पर बहुत याद करने के बाद भी शलाका को कोई ऐसी स्मृति याद नहीं आयी, यह सोच शलाका ने उस फोटो को भी छू लिया।..............
“शलाका-शलाका कहां हो तुम?” आर्यन, शलाका को आवाज देते हुए अपने घर में प्रविष्ठ हुआ- “देखो मैं वापस आ गया।” आर्यन यह कहते हुए धड़धड़ा कर अपने कमरे में प्रविष्ठ हो गया।
कमरे में शलाका एक अलमारी के पास खड़ी थी, आर्यन ने उसे देखते ही गोद में उठा लिया और उसे पूरे कमरे में नचाने लगा- “आज मेरा सपना पूरा हो गया, आज मैंने वो हासिल कर लिया, जिसकी वजह से अब हम सदियों तक साथ रह सकते हैं। अब मुझे तुमसे कोई अलग नहीं कर सकता, यहां तक कि मौत भी नहीं।” यह कहकर आर्यन ने शलाका को नीचे उतार दिया।
“तुमने.... तुमने ऐसा क्या प्राप्त कर लिया आर्यन? जिससे अब तुम सदियों तक मेरे साथ रहोगे।” शलाका ने अपना चेहरा आर्यन की ओर से दूसरी ओर घुमाते हुए कहा।
“ये लो कितनी भुलक्कड़ हो यार तुम। अरे मैंने तुम्हें जाने से पहले बताया तो था कि मैं, हम दोनों के लिये ब्रह्मकलश से अमृत लेने जा रहा हूं।” आर्यन ने कहा।
“तो क्या....तो क्या तुम्हें अमृत प्राप्त हो गया?” शलाका के शब्द कांप रहे थे।
“ऐसा हो सकता है क्या कि मैं कोई चीज चाहूं और मुझे ना मिले?”
आर्यन ने मुस्कुराते हुए कहा- “अरे हां यार...मैंने अमृत की 2 बूंदें प्राप्त कर लीं। अब हम शादी शुदा जिंदगी बिताते हुए भी अमरत्व प्राप्त कर सकते हैं।” यह कहते हुए आर्यन ने 2 नन्हीं सुनहरी धातु की बनी शीशियां शलाका के सामने रख दीं।
“और अब हम कल सुबह नहा कर, पूजा करके इस अमृत को धारण करेंगे।” आर्यन के शब्दों में खुशी साफ झलक रही थी- “और ये तुम अपना मुंह घुमाकर क्या बात कर रही हो? मैं 3 महीने के बाद वापस आया हूं और तुम अजीब सी हरकतें कर रही हो।”
“क्या हम इसे अभी नहीं पी सकते?” शलाका ने पलटते हुए कहा- “सुबह का इंतजार करने से क्या फायदा?”
“नहीं हम इसे सुबह ही पीयेंगे।” आर्यन ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा।
“तो फिर हम अभी क्या करेंगे?” शलाका ने आर्यन की ओर देखते हुए पूछा।
“ये लो ये भी कोई पूछने की बात है?” आर्यन ने हंसकर शलाका को पकड़ लिया- “अभी हम सिर्फ और सिर्फ प्यार करेंगे।”
यह कहकर आर्यन ने वहां जल रही शमा को बुझा दिया। कमरे में अब पूरा अंधेरा छा गया था। इसी के साथ शलाका वापस वेदांत रहस्यम् के पास आ गई।
पर इस समय शलाका की आँखें, उसका चेहरा और यहां तक कि उसके बाल भी अग्नि के समान प्रतीत हो रहे थे क्यों कि जिस शलाका को वह अभी आर्यन के साथ देखकर आ रही थी, वह वो नहीं थी।
शलाका ने तुरंत अपनी भावनाओं को नियंत्रण में किया, नहीं तो उसकी अग्नि शक्ति से अभी वेदांत रहस्यम् भी जल जाती।
“काश....काश इस वेदांत रहस्यम् से भूतकाल को बदला जा सकता।” शलाका ने गुर्राकर कहा और जल्दी से वेदांत रहस्यम् का अगला पन्ना खोल दिया।
जारी रहेगा______![]()
Bhut hi badhiya update Bhai#151.
चैपटर-3
रहस्यमय नेवला: (तिलिस्मा 2.11)
सुयश सहित सभी अब तिलिस्मा के दूसरे द्वार पर खड़े थे।
दूसरे द्वार में सभी को एक बड़े से कमरे में 2 विशाल गोल क्षेत्र बने दिखाई दिये, जो कि आकार में लगभग 40 फुट व्यास के बने थे।
उन दोनों गोल क्षेत्रों के बीच 1-1 वर्गाकार पत्थर रखा था। एक पत्थर पर नेवले की मूर्ति और दूसरे पत्थर पर एक ऑक्टोपस की मूर्ति रखी थी।
नेवले की मूर्ति के आगे लगी नेम प्लेट पर 1 और ऑक्टोपस की मूर्ति के आगे लगी नेम प्लेट पर 2 लिखा था।
दोनों ही गोल क्षेत्रों की जमीन 1 वर्ग मीटर के संगमरमर के पत्थरों से बनी थी।
“नेवले की मूर्ति के नीचे 1 लिखा है, हमें पहले उस क्षेत्र में ही चलना होगा।” सुयश ने सभी की ओर देखते हुए कहा।
सभी ने सिर हिलाया और नेवले की मूर्ति के पास पहुंच गये। अब सभी संगमरमर के पत्थरों पर खड़े थे।
नेम प्लेट पर, जहां 1 नंबर लिखा था, उसके नीचे 2 लाइन की एक कविता भी लिखी थी-
“जीवनचक्र का है इक सार,
लगाओ परिक्रमा खोलो द्वार”
“इन पंक्तियों का क्या मतलब हुआ कैप्टेन?” जेनिथ ने सुयश की ओर देखते हुए पूछा- “यहां तो कोई भी द्वार नहीं है, यह नेवला हमें कौन से द्वार को खोलने की बात कर रहा है?”
सुयश ने जेनिथ की बात का कोई जवाब नहीं दिया। वह तेजी से कुछ सोच रहा था।
कुछ देर के बाद सुयश ने अपना पैर संगमरमर के पत्थरों से बाहर निकालने की कोशिश की, परंतु जैसे ही उसका पैर उस गोल क्षेत्र के बाहर निकला, उसे करंट का बहुत तेज झटका महसूस हुआ।
“अब हम इस संगमरमर के क्षेत्र से बाहर नहीं निकल सकते, अगर किसी ने कोशिश की तो उसे करंट का तेज झटका लगेगा।”
सुयश ने अब जेनिथ का उत्तर देते हुए कहा- “समझ गई जेनिथ? यानि कि अब हम इस नेवले की पहेली को सुलझाए बिना इस स्थान से बाहर नहीं जा सकते और कविता की पंक्तियां पढ़कर ऐसा लग रहा है कि हमें इस नेवले की मूर्ति का 1 चक्कर लगाना होगा।”
“पर नेवले की मूर्ति का चक्कर लगाना तो बहुत आसान कार्य है।” ऐलेक्स ने सुयश को देखते हुए कहा।
“ब्वॉयफ्रेंड जी, इस तिलिस्मा में कुछ भी आसान नहीं है।” क्रिस्टी ने ऐलेक्स से मजा लेते हुए कहा- “अवश्य ही इन बातों में कोई ना कोई पेंच है?”
“अच्छा जी, तो तुम्हीं बता दो कि क्या पेंच है, इन पंक्तियों में?” ऐलेक्स ने क्रिस्टी को देखकर हंसते हुए कहा।
“कैप्टेन क्या मैं नेवले का एक चक्कर लगा कर देखूं।” ऐलेक्स ने सुयश से इजाजत मांगते हुए कहा- “क्यों कि बिना कुछ किये तो हमें कुछ भी समझ में नहीं आयेगा?”
ऐलेक्स की बात में दम था, इसलिये सुयश ने ऐलेक्स को इजाजत दे दी। ऐलेक्स ने मूर्ति का एक चक्कर लगाना शुरु कर दिया।
सभी की नजरें ध्यान से वहां घटने वाली हर एक घटना पर थीं। पर जैसे ही ऐलेक्स का चक्कर पूरा हुआ, वह धड़ाम से जमीन पर गिर गया।
ऐलेक्स को ऐसा महसूस हुआ कि जैसे उसके पूरे बदन की शक्ति ही खत्म हो गई हो।
उसे गिरते देख सभी भागकर ऐलेक्स के पास आ गये।
“क्या हुआ ऐलेक्स? तुम ठीक तो हो ना?” क्रिस्टी ने घबराते हुए पूछा।
“ऐसा लग रहा है कि जैसे मेरे बदन की पूरी शक्ति खत्म हो गई है।” ऐलेक्स ने पड़े-पड़े ही जवाब दिया- “मैं सबकुछ देख और महसूस कर पा रहा हूं, बस उठ नहीं पा रहा।”
“इसका मतलब तुमने गलत तरीके से चक्कर लगाया है।” सुयश ने चारो ओर देखते हुए कहा- “हमें फिर से इन पंक्तियों का मतलब समझना पड़ेगा और तुम परेशान मत हो क्रिस्टी, मुझे पूरा विश्वास है कि जैसे ही हम इस द्वार की पहेली को सुलझा लेंगे, ऐलेक्स फिर से ठीक हो जायेगा। याद करो मैग्नार्क द्वार में ऐसा तौफीक के साथ भी हो गया था।”
सुयश के शब्द सुन, क्रिस्टी थोड़ा निश्चिंत हो गई।
“कैप्टेन, मुझे लगता है कि ऐलेक्स ने ‘एंटी क्लाक वाइज’ (घड़ी के चलने की विपरीत दिशा) चक्कर लगाया था और इन पंक्तियों में जीवनचक्र की बात की गई है। अब जीवनचक्र तो समय के हिसाब से ही चलता है, तो इसके हिसाब से एंटी क्लाक वाइज तो परिक्रमा लगाई ही नहीं जा सकती।” क्रिस्टी ने कहा।
“क्रिस्टी सहीं कह रही है, यह स्थान किसी मंदिर की भांति बना है और किसी भी मंदिर में एंटी क्लाक वाइज चक्कर नहीं लगाया जाता।” सुयश ने कहा।
“तो क्या मैं क्लाक वाइज चक्कर लगा कर देखूं, हो सकता है कि ऐसा करने से द्वार खुल जाये।” क्रिस्टी ने कहा।
सुयश ने क्रिस्टी की बात सुनकर एक बार फिर ध्यान से उन पंक्तियों को पढ़ा और फिर क्रिस्टी को चक्कर लगाने की इजाजत दे दी।
क्रिस्टी ने क्लाक वाइज चक्कर लगाना शुरु कर दिया, पर इस बार भी चक्कर के पूरा होते ही क्रिस्टी लहरा कर ऐलेक्स जैसी हालत में जमीन पर गिर गई।
“जमीन पर गिरने की आपको ढेरों बधाइयां गर्लफ्रेंड जी, हमारे परिवार में आपका स्वागत है।” ऐलेक्स ने ऐसी स्थिति में भी सबको हंसा दिया।
“मैं तो बस तुम्हारा साथ देने को आयी हूं, वरना मुझे जमीन पर गिरने का शौक नहीं।” क्रिस्टी ने मुंह बनाते हुए कहा।
“कैप्टेन अब हम 4 लोग ही बचे हैं, अब हमें बहुत सोच समझ कर निर्णय लेना होगा।” जेनिथ ने कहा।
“मुझे लगता है कि यहां पर जीवनचक्र की बात हो रही है, तो पहले हमें इस नेवले को जिंदा करना होगा, तभी हम इसका चक्कर लगा सकेंगे।” शैफाली ने काफी देर के बाद कुछ कहा।
अब सबकी निगाह फिर से उस पूरे क्षेत्र में दौड़ गई।
“वैसे शैफाली, तुम यह बताओ कि नेवले का प्रिय भोजन है क्या? इससे हमें कुछ ढूंढने में आसानी हो जायेगी।” जेनिथ ने शैफाली से पूछा।
“वैसे तो नेवला सर्वाहारी होता है, वह मांसाहार और शाकाहार दोनों ही करता है, पर जब भी नेवले की बात आती है, तो उसे सांप से लड़ने के लिये ही याद किया जाता है।” शैफाली ने जेनिथ से कहा- “पर यह जानने का कोई फायदा नहीं है जेनिथ दीदी...आप यहां आसपास देखिये, यहां पर कुछ भी ऐसा नहीं है, जिससे कि इस नेवले को जिंदा किया जा सके।”
तभी ऐलेक्स की आवाज ने सभी को चौंका दिया- “कैप्टेन जरा एक मिनट मेरे पास आइये।”
सुयश सहित सभी ऐलेक्स और क्रिस्टी के पास पहुंच गये- “कैप्टेन मेरे कानों में किसी चीज के रेंगने की आवाज सुनाई दे रही है और वह आवाज इस पत्थर से आ रही है, जिस पर यह नेवला बैठा हुआ है।“
ऐलेक्स की बात सुनकर सभी का ध्यान अब उस पत्थर की ओर चला गया। पत्थर में कहीं कोई छेद नहीं था।
तभी ऐलेक्स का ध्यान पत्थर के ऊपर लगी नेम प्लेट पर चला गया।
“तौफीक जरा अपना चाकू मुझे देना।” सुयश ने तौफीक से चाकू मांगा।
तौफीक ने अपनी जेब से चाकू निकालकर सुयश के हवाले कर दिया।
सुयश ने चाकू की नोंक से उस धातु के स्टीकर को पत्थर से निकाल दिया।
उस धातु के स्टीकर के पीछे एक गोल सुराख था, जैसे ही सुयश ने उस नेम प्लेट को पत्थर से निकाला, उस छेद से एक काले रंग का 5 फुट का नाग निकलकर बाहर आ गया।
सभी उस नाग को देखकर पीछे हट गए। वह नाग अब उस पत्थर पर चढ़कर नेवले के सामने जा पहुंचा।
जैसे ही नाग ने नेवले की आँखों में देखा, नेवला जीवित होकर नाग पर टूट पड़ा।
थोड़ी ही देर के बाद नेवले ने नाग के शरीर को काटकर उसे मार डाला। नाग के मरते ही उसका शरीर गायब हो गया।
अब पत्थर पर जिंदा नेवला बैठा था, जो कि इन लोगों को ही घूर रहा था।
“मेरे हिसाब से अब हमें इसका चक्कर लगाना होगा।” सुयश ने कहा।
“आप रुकिये कैप्टेन, इस बार मैं ट्राई करती हूं, आपका अभी सही रहना ज्यादा जरुरी है।” जेनिथ ने कहा।
“नहीं -नहीं...अब मुझे ही चक्कर लगाने दो। मेरे हिसाब से अब कोई परेशानी नहीं होगी।” सुयश यह कहकर क्लाक वाइज नेवले का चक्कर लगाने लगा।
पर सुयश जिस ओर भी जा रहा था, नेवला अपना चेहरा उस ओर कर ले रहा था। सुयश के 1 चक्कर पूरा करने के बाद भी कोई दरवाजा नहीं खुला।
“अब क्या परेशानी हो सकती है?” सुयश ने कहा।
“जेनिथ।” तभी नक्षत्रा ने जेनिथ को पुकारा।
“हां बोलो नक्षत्रा।” जेनिथ ने अपना ध्यान अपने दिमाग पर लगाते हुए कहा।
“सुयश को बताओ कि भौतिक विज्ञान का नियम यह कहता है कि किसी भी चीज का एक चक्कर तब पूर्ण माना जाता है जब कि चक्कर लगाने वाला या फिर जिसके परितः वह चक्कर लगा रहा है, दोनों में से
कोई एक स्थिर रहे। यहां जब भी सुयश नेवले का चक्कर लगा रहा है, वह अपना चेहरा सुयश की ओर कर ले रहा है, ऐसे में यह चक्कर पूर्ण नहीं माना जायेगा। साधारण शब्दों में सुयश को नेवले का चक्कर लगाने के लिये उसकी पीठ देखनी होगी।”
नक्षत्रा ने भौतिक विज्ञान का एक जटिल नियम आसान शब्दों में जेनिथ को समझाया, पर जेनिथ के लिये विज्ञान किसी भैंस के समान ही था, उसे नक्षत्रा की आधी बातें समझ ही नहीं आयीं।
इसलिये जेनिथ ने सुयश को सिर्फ इतना कहा- “कैप्टेन, नक्षत्रा कह रहा है कि आपको नेवले का चक्कर पूरा करने के लिये नेवले की पीठ देखनी होगी।”
सुयश नक्षत्रा की कही बात को समझ गया।
अब सुयश ने चलने की जगह दौड़कर नेवले का चक्कर लगाया, परंतु नेवले ने अपनी गति को सुयश के समान कर लिया।
“यह तो मुसीबत है।” सुयश ने कहा- “मैं अपनी गति में जितना भी परिवर्तन करुंगा, यह नेवला भी उसी गति में अपना चेहरा मेरे सामने कर ले रहा है, इस तरह तो कभी भी इसका एक चक्कर पूरा नहीं होगा।”
कुछ देर सोचने के बाद सुयश ने तौफीक की ओर देखते हुए कहा- “तौफीक तुम भी आ जाओ, अब मैं थोड़ा तेज चक्कर लगाऊंगा, नेवले का चेहरा हमेशा मेरे सामने ही रहेगा, तुम भी इस पत्थर के चारो ओर धीमे-धीमे चक्कर लगाओ, इस प्रकार मेरा नहीं, बल्कि नेवले के चारो ओर तुम्हारा 1 चक्कर पूरा हो जायेगा और यह द्वार पार हो जायेगा।”
आइडिया बुरा नहीं था। सभी को अब इस द्वार के पार होने की पूरी उम्मीद हो गई थी।
परंतु जैसे ही तौफीक ने परिक्रमा स्थल पर अपना कदम रखा, नेवले ने घूरकर तौफीक को देखा।
नेवले के घूरते ही नेवले के शरीर से एक और नेवला निकलकर उस पत्थर पर दिखाई देने लगा।
अब एक का चेहरा सुयश की ओर था और दूसरे का चेहरा तौफीक की ओर था।
“बेड़ा गर्क।” शैफाली ने अपना सिर पीटते हुए कहा- “कुछ और सोचिये कैप्टेन अंकल, हम तिलिस्मा से बेइमानी नहीं कर सकते।”
सुयश अब फिर से सोच में पड़ गया।
काफी देर तक सोचने के बाद सुयश के दिमाग में एक और प्लान आया।
“तौफीक, हममें से एक को एंटी क्लाक वाइज और दूसरे को क्लाक वाइज चक्कर लगाना होगा, इस प्रकार से हममें से दोनों ही एक-एक नेवले का चक्कर पूरा कर लेंगे। अब परेशानी यह है कि जो भी एंटी क्लाक वाइज चक्कर लगायेगा, उसका हाल भी ऐलेक्स और क्रिस्टी जैसा हो जायेगा, परंतु उससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्यों कि तब तक तो यह द्वार भी पार हो जायेगा।” सुयश ने तौफीक की ओर देखते हुए कहा।
तौफीक ने जरा देर तक सुयश का प्लान समझा और फिर मुस्कुरा कर तैयार हो गया।
अब सुयश क्लाक वाइज और तौफीक एंटी क्लाक वाइज चक्कर लगाने लगा।
जैसे ही दोनों का 1 चक्कर पूरा हुआ, वह नेवला वहां से गायब हो गया और ऐलेक्स व क्रिस्टी भी ठीक हो कर खड़े हो गये।
जेनिथ ने संगमरमर के क्षेत्र से अपना हाथ बाहर निकाल कर देखा, अब वहां कोई करंट उपस्थित नहीं था।
यह देख सभी ऑक्टोपस की मूर्ति की ओर चल दिये।
जारी रहेगा_______![]()
Bhut hi shandar update bhai#152.
वेदांत रहस्यम्
(15 जनवरी 2002, मंगलवार, 15:00, ट्रांस अंटार्कटिक माउन्टेन, अंटार्कटिका)
विल्मर को सुनहरी ढाल देने के बाद शलाका ने जेम्स को वापस उसी कमरे में रुकाया और स्वयं अपने शयनकक्ष में आ गई।
शलाका ने अपने भाईयों पर नजर मारी जो कि दूसरे कमरे में थे।
शलाका ने अब अपने कमरे का द्वार अंदर से बंद कर लिया, वह नहीं चाहती थी कि वेदांत रहस्यम् पढ़ते समय कोई भी उसे डिस्टर्ब करे।
कक्ष में मौजूद अलमारी से शलाका ने वेदांत रहस्यम् निकाल ली और उसे ले अपने बिस्तर पर आ गई।
लाल रंग के जिल्द वाली, 300 पृष्ठ वाली, 5,000 वर्ष पुरानी, आर्यन के द्वारा लिखी किताब अब उसके सामने थी।
शलाका जानती थी कि इसी किताब में वह रहस्य भी दफन है कि आर्यन ने क्यों अपनी इच्छा से अपनी मौत का वरण किया? यह पुस्तक अपने अंदर सैकड़ों राज दबाये थी, इसलिये उसे खोलते समय शलाका के हाथ कांपने लगे।
शलाका ने वेदांत रहस्यम् का पहला पृष्ठ खोला।
पहले पृष्ठ पर वेदालय की फोटो बनी थी। जिसे आर्यन ने अपनी स्मृति से रेखा चित्रों के माध्यम से बनाया था। उसे देखकर एक पल में ही शलाका 5,000 वर्ष पहले की यादें अपने दिल में महसूस करने लगी।
शलाका जानती थी, कि यह किताब जादुई है, अगर उसने वेदालय की फोटो को छुआ, तो वह उस स्थान पर पहुंच जायेगी, इसलिये इच्छा होने के बाद भी शलाका ने वेदालय की फोटो को स्पर्श नहीं किया।
शलाका ने अब दूसरा पृष्ठ पलटा। उस पृष्ठ पर वेदालय की वह तस्वीर थी, जब पहली बार सभी वेदालय में प्रविष्ठ हुए थे।
उस तस्वीर में आकृति, आर्यन से चिपक कर खड़ी थी और शलाका उनसे थोड़ा दूर खड़ी थी।
कुछ देर के लिये ही सही पर यह तस्वीर देखते ही शलाका के मन में आकृति के लिये गुस्सा भर गया।
शलाका ने अब एक-एक कर पन्ने पलटने शुरु कर दिये।
आगे के लगभग 30 पेज वेदालय की अलग-अलग यादों से भरे हुए थे। पर एक पेज पलटते ही शलाका से रहा नहीं गया, उसने उस तस्वीर को छू लिया।
एक पल में ही शलाका उस तस्वीर में समाकर उस काल में पहुंच गई, जहां वह एक नदी के किनारे आर्यन के साथ अकेली थी।
आर्यन और शलाका दोनों ही इस समय xyz (chhote) वर्ष के थे।
तो आइये दोस्तों देखते हैं कि ऐसा क्या था उस फोटो में कि शलाका अपने आप को उसे छूने से रोक नहीं पायी।
वेदालय से कुछ दूरी पर एक सुंदर सी झील थी, जहां इस मौसम में बहुत से पंछी और चिड़िया उड़कर, उस स्थान पर आते थे।
इस समय जिधर नजर जा रही थी, उधर चारो ओर रंग-बिरंगे फूल, तितलियां और पंछी दिखाई दे रहे थे। ऐसे मौसम में आर्यन और शलाका उस स्थान पर बैठे थे।
“आज तो छुट्टी का दिन था फिर तुम मुझे यहां पर क्यों लाये आर्यन?” शलाका ने अपनी नन्हीं आँखों से आर्यन को देखते हुए पूछा।
“क्यों कि तुम मुझसे एक छोटी सी शर्त हार गई थी और शर्त केअनुसार एक दिन के लिये मैं जो कहूं, वो तुम्हें मानना पड़ता, तो फिर मैंने सोचा कि क्यों ना मैं तुम्हें अपनी सबसे फेवरेट जगह दिखाऊं, बस यही सोच मैं तुम्हें यहां ले आया। मुझे पता है कि अगर शर्त नहीं होती तो तुम कभी मेरे साथ नहीं आती। पर सच कहूं तो मैं तुम्हें ऐसे अकेले कमरे में बंद पड़े नहीं देख सकता। तुम पता नहीं कमरे से बाहर क्यों नहीं निकलती?”
“वो....वो मैं तुमसे बात करना चाहती हूं, तुम्हारे साथ घूमना भी चाहती हूं, पर वो आकृति हमेशा तुम्हारे साथ रहती है और वह मुझसे बहुत चिढ़ती है, बस इसी लिये मैं तुम्हारे साथ बाहर कहीं नहीं जाती।”
शलाका ने धीरे से कहा।
“कोई बात नहीं, पर आज तो आकृति मेरे साथ नहीं है...आज तुम यहां मेरे साथ खेल सकती हो।” आर्यन ने भोला सा चेहरा बनाते हुए कहा।
“ठीक है, पर तुम यहां पर आकर कौन सा खेल खेलते हो?” शलाका ने आर्यन की बातों में रुचि लेते हुए कहा।
“मैं यहां पर प्रकृति को महसूस करने वाला खेल खेलता हूं। क्या यह खेल तुम मेरे साथ खेलोगी?” आर्यन ने कहा।
“पर मुझे तो ये खेल नहीं आता। इसे कैसे खेलते हैं आर्यन?” शलाका ने कहा।
“यह खेलना बहुत आसान है...सबसे पहले हम कोई चिड़िया ले लेते हैं और उसे महसूस करते हैं।”
“चिड़िया?” शलाका को कुछ भी समझ में नहीं आया- “चिड़िया में महसूस करने वाला क्या होता है आर्यन?”
“रुको , मैं तुम्हें यह करके दिखाता हूं।” यह कहकर आर्यन ने इधर-उधर देखा।
आर्यन को कुछ दूरी पर एक नन्ही सी लाल रंग की चिड़िया उड़ती हुई दिखाई दी, आर्यन उस चिड़िया की ओर दौड़ा।
चिड़िया एक नन्हें बच्चे को अपनी ओर भागते देख, चीं-चीं कर तेजी से उड़ने लगी।
आर्यन ने कुछ देर तक चिड़िया को देखा और फिर वह चिड़िया के समान ही आवाज निकालता उस चिड़िया से अलग दिशा में दौड़ा।
चिड़िया उस नन्हें बालक को अपनी तरह बोलता देख, आर्यन के पीछे-पीछे उड़ने लगी।
अब नजारा उल्टा था, पहले चिड़िया के पीछे आर्यन था, पर अब आर्यन के पीछे चिड़िया।
सच कहें तो शलाका को कुछ समझ में नहीं आ रहा था, पर आर्यन के पीछे चिड़िया का भागना उसे अच्छा लग रहा था।
अब आर्यन एक जगह पर रुक गया, और अपने दोनों हाथों को फैलाकर, फिर चिड़िया की तरह बोलने लगा।
कुछ ही देर में चिड़िया आकर आर्यन के हाथ पर बैठ गयी, आर्यन ने धीरे से चिड़िया के पंखों को सहलाया।
चिड़िया को आर्यन का सहलाना बहुत अच्छा लगा, वह फिर चीं-चीं कर मानो आर्यन को और ऐसा करने को कह रही थी।
आर्यन ने अब उसे कई बार सहलाया और फिर उसे लेकर शलाका के पास आ गया।
“अब अपना हाथ आगे करो शलाका।” आर्यन ने शलाका से कहा।
शलाका ने डरते-डरते अपना हाथ आगे कर दिया। आर्यन ने नन्हीं चिड़िया को शलाका के हाथों पर रख दिया।
नन्हीं चिड़िया शलाका के हाथ पर फुदक कर चीं-चीं कर रही थी।
कुछ ही देर में शलाका का डर खत्म हो गया और वह भी चिड़िया के साथ खेलने लगी।
शलाका चिड़िया से खेलने में इतना खो गई कि वह भूल गई कि आर्यन भी उसके साथ है।
“क्या अब तुम इस चिड़िया को महसूस कर पा रही हो शलाका?” आर्यन ने शलाका से पूछा।
“हां.... इस चिड़िया का धड़कता दिल, इसके खुशी से फुदकने का अहसास, इसका पंख पसार कर उड़ना, इसका मेरे हाथों पर चोंच मारना, मुझे सबकुछ महसूस हो रहा है आर्यन। सच कहूं तो यह बहुत अच्छी फीलिंग है, मैंने ऐसा पहले कभी नहीं महसूस किया।”
“यही प्रकृति है शलाका, अगर हम अपने आसपास की चीजों को दिल से महसूस करने लगें तो हम कभी स्वयं को अकेला महसूस नहीं करेंगे। अकेले होकर भी कभी हम दुखी नहीं होंगे।”
आर्यन ने अब उस नन्हीं चिड़िया को चीं-चीं कर कुछ कहा और फिर उसे आसमान में उड़ा दिया।
“क्या तुम्हें पंछियों की भाषा आती है आर्यन?” शलाका ने आर्यन की आँखों में देखते हुए पूछा।
“नहीं !”
“तो फिर तुम उस चिड़िया से बात कैसे कर रहे थे?” शलाका ने हैरानी से कहा।
“किसने कहा कि मैं उससे बात कर रहा था। मैं तो बस उसे महसूस कर रहा था, पर महसूस करते-करते, वह मेरी भावनाओं को स्वयं समझ जा रही थी।” आर्यन ने मुस्कुराते हुए कहा।
तभी शलाका को एक फूल पर बैठी बहुत ही खूबसूरत तितली दिखाई दी, जो नीले और काले रंग की थी।
उसे देख शलाका ने उसे पकड़ लिया।
वह तितली अब शलाका की पकड़ से छूटने का प्रयास करने लगी।
यह देख आर्यन ने शलाका का हाथ थाम लिया और बोला- “किसी को दुख पहुंचा कर हमें खुशी कभी नहीं मिल सकती शलाका।”
आर्यन के शब्द सुन शलाका ने अपनी चुटकी खोलकर उस तितली को उड़ा दिया।
यह देख आर्यन ने अपने हाथ पसार कर अपने मुंह से एक विचित्र सी ध्वनि निकाली, ऐसा करते ही पता नहीं कहां से सैकड़ों तितलियां आकर आर्यन के हाथ पर बैठ गईं।
“एक बार तितली को तुम छूकर के देख लो, हर पंख उसका छाप दिल पर छोड़ जायेगा।”
आर्यन के शब्द समझ शलाका ने अपने हाथों की ओर देखा, जिस पर तितली का नीला और काला रंग अब भी लगा था।
तितली का रंग शलाका के हाथ पर एक छाप छोड़ गया था, पर आर्यन का रंग शलाका के दिल पर एक अमिट छाप छोड़ रहा था, वह अब महसूस कर रही थी, इस पूरे जहान को, नीले से आसमान को....और
कुछ अलग सा महसूस कराने वाले उस आर्यन को............।”
शलाका अब वापस अपने कमरे में आ गई थी, पर उन कुछ पलों ने शलाका के दिमाग में एक हलचल सी मचा दी थी।
कुछ पलों तक शलाका यूं ही बैठी रही फिर उसने एक गहरी साँस भरी और वेदांत रहस्यम् के आगे के पन्नों को पलटने लगी।
धीरे-धीरे वेदालय की सभी घटनाएं निकल गईं। इसके बाद कुछ और चित्र नजर आये, पर वह शलाका के लिये जरुरी नहीं थे, उसे तो बस अब रहस्य जानना था, इसलिये शलाका ने जल्दी-जल्दी बहुत से पृष्ठ पलट
दिये।
अब शलाका की नजर एक ऐसे पृष्ठ पर थी, जिसमें आर्यन शलाका के साथ उसके कमरे में था, पर बहुत याद करने के बाद भी शलाका को कोई ऐसी स्मृति याद नहीं आयी, यह सोच शलाका ने उस फोटो को भी छू लिया।..............
“शलाका-शलाका कहां हो तुम?” आर्यन, शलाका को आवाज देते हुए अपने घर में प्रविष्ठ हुआ- “देखो मैं वापस आ गया।” आर्यन यह कहते हुए धड़धड़ा कर अपने कमरे में प्रविष्ठ हो गया।
कमरे में शलाका एक अलमारी के पास खड़ी थी, आर्यन ने उसे देखते ही गोद में उठा लिया और उसे पूरे कमरे में नचाने लगा- “आज मेरा सपना पूरा हो गया, आज मैंने वो हासिल कर लिया, जिसकी वजह से अब हम सदियों तक साथ रह सकते हैं। अब मुझे तुमसे कोई अलग नहीं कर सकता, यहां तक कि मौत भी नहीं।” यह कहकर आर्यन ने शलाका को नीचे उतार दिया।
“तुमने.... तुमने ऐसा क्या प्राप्त कर लिया आर्यन? जिससे अब तुम सदियों तक मेरे साथ रहोगे।” शलाका ने अपना चेहरा आर्यन की ओर से दूसरी ओर घुमाते हुए कहा।
“ये लो कितनी भुलक्कड़ हो यार तुम। अरे मैंने तुम्हें जाने से पहले बताया तो था कि मैं, हम दोनों के लिये ब्रह्मकलश से अमृत लेने जा रहा हूं।” आर्यन ने कहा।
“तो क्या....तो क्या तुम्हें अमृत प्राप्त हो गया?” शलाका के शब्द कांप रहे थे।
“ऐसा हो सकता है क्या कि मैं कोई चीज चाहूं और मुझे ना मिले?”
आर्यन ने मुस्कुराते हुए कहा- “अरे हां यार...मैंने अमृत की 2 बूंदें प्राप्त कर लीं। अब हम शादी शुदा जिंदगी बिताते हुए भी अमरत्व प्राप्त कर सकते हैं।” यह कहते हुए आर्यन ने 2 नन्हीं सुनहरी धातु की बनी शीशियां शलाका के सामने रख दीं।
“और अब हम कल सुबह नहा कर, पूजा करके इस अमृत को धारण करेंगे।” आर्यन के शब्दों में खुशी साफ झलक रही थी- “और ये तुम अपना मुंह घुमाकर क्या बात कर रही हो? मैं 3 महीने के बाद वापस आया हूं और तुम अजीब सी हरकतें कर रही हो।”
“क्या हम इसे अभी नहीं पी सकते?” शलाका ने पलटते हुए कहा- “सुबह का इंतजार करने से क्या फायदा?”
“नहीं हम इसे सुबह ही पीयेंगे।” आर्यन ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा।
“तो फिर हम अभी क्या करेंगे?” शलाका ने आर्यन की ओर देखते हुए पूछा।
“ये लो ये भी कोई पूछने की बात है?” आर्यन ने हंसकर शलाका को पकड़ लिया- “अभी हम सिर्फ और सिर्फ प्यार करेंगे।”
यह कहकर आर्यन ने वहां जल रही शमा को बुझा दिया। कमरे में अब पूरा अंधेरा छा गया था। इसी के साथ शलाका वापस वेदांत रहस्यम् के पास आ गई।
पर इस समय शलाका की आँखें, उसका चेहरा और यहां तक कि उसके बाल भी अग्नि के समान प्रतीत हो रहे थे क्यों कि जिस शलाका को वह अभी आर्यन के साथ देखकर आ रही थी, वह वो नहीं थी।
शलाका ने तुरंत अपनी भावनाओं को नियंत्रण में किया, नहीं तो उसकी अग्नि शक्ति से अभी वेदांत रहस्यम् भी जल जाती।
“काश....काश इस वेदांत रहस्यम् से भूतकाल को बदला जा सकता।” शलाका ने गुर्राकर कहा और जल्दी से वेदांत रहस्यम् का अगला पन्ना खोल दिया।
जारी रहेगा______![]()
Ye aakriti to bohot pahuchi hui nikli dost#143.
सभी लगभग भागते हुए से चल रहे थे। रोजर ने अभी तक उस तलवार को नहीं फेंका था।
वह उस तलवार को हाथ में ही लेकर मेलाइट को घेरे हुए चल रहा था।ऐसा रोजर ने मेलाइट की सुरक्षा की वजह से किया था, पर मेलाइट भागते हुए भी रोजर को देख रही थी।
3-4 गुफा की सुरंगों को पार करते हुए, वह सभी एक मैदान में निकले। मैदान में आगे, कुछ दूरी पर एक छोटा सा, परंतु खूबसूरत महल बना दिखाई दे रहा था।
सनूरा सबको लेकर उसी महल की ओर बढ़ गयी।
महले में कई गलियारों और कमरों को पार करने के बाद वह एक विशाल शयनकक्ष में पहुंच गई।
उस कक्ष में एक बड़ी सी सेंटर टेबल के इर्द-गिर्द बहुत सी कुर्सियां लगीं थीं। बीच वाली कुर्सी पर एक बलिष्ठ इंसान बैठा था। रोजर उसे देखते ही पहचान गया, वह लुफासा था।
लुफासा ने सभी को कुर्सियों पर बैठने का इशारा किया। लुफासा का इशारा पाकर सभी वहां रखी कुर्सियों पर बैठ गये।
“तुम तो एक इंसान को लाने गयी थी, फिर ये इतने लोग तुम्हें कहां से मिल गये?” लुफासा ने सनूरा को देखते हुए कहा।
“आकृति ने एक नहीं अनेक लोगों को बंद कर रखा था, इसलिये सभी को छुड़ा लायी और वैसे भी दुश्मन का दुश्मन अपना दोस्त होता है।” सनूरा ने मुस्कुराते हुए कहा।
“ठीक है, तो सबसे पहले, हम सभी एक दूसरे को अपना परिचय दे दें, इससे सभी खुलकर एक दूसरे से बात कर सकेंगे।”
लुफासा ने कहा- “पहले मैं स्वयं से ही शुरु करता हूं। मेरा नाम लुफासा है और मैं इस अराका द्वीप के एक हिस्से सीनोर राज्य का राजकुमार हूं। आकृति ने हमारी देवी शलाका का रुप धरकर हम सभी को बहुत लंबे समय से मूर्ख बना रही है। हमें नहीं पता कि वह कौन है? और उसके पास कितनी शक्तियां हैं? हम इसी बात को जानने के लिये काफी दिनों से उस पर नजर रखें हुए थे।
"इसी बीच हमने रोजर को आकृति के पास देखा, पहले हमें लगा कि यह भी आकृति के साथ मिला है, पर बाद में पता चला कि आकृति ने इसे भी कैद कर रखा है। इसीलिये मैंने सीनोर राज्य की सेनापति सनूरा को रोजर को छुड़ाने के लिये भेजा। अब आप लोग अपने बारे में बतांए।”
“मेरा नाम रोजर है, मैं सुप्रीम नामक जहाज का असिस्टेंट कैप्टेन था, अराका द्वीप के पास जब मेरा
हेलीकॉप्टर क्रैश हो गया, तो आकृति ने मुझे बंदी बना लिया था।”
“मेरा नाम मेलाइट है, मैं एक ‘फ्रेश वॉटर निम्फ’ हूं, जो कि एक ‘सीरीनियन हिंड’ में परिवर्तित हो जाती हूं। आप लोगों ने मेरी कहानी अवश्य सुन रखी होगी। देवता हरक्यूलिस को दिये गये 12 कार्यों में से एक कार्य मुझे पकड़कर लाना भी था। ग्रीक देवी आर्टेमिस की मैं सबसे प्रिय हूं। जब मैं सुनहरी हिरनी बनकर जंगल में घूम रही थी, तो इस मायावी आकृति ने मेरा अपहरण कर लिया। अब यह मुझे यहां क्यों लायी है? ये मुझे भी नहीं पता। पर अब देवी आर्टेमिस इस आकृति को किसी भी हाल में नहीं छोड़ेंगी।“
(ग्रीक माइथालोजी में साफ पानी में रहने वाली अप्सराओं को फ्रेश वॉटर निम्फ कहा जाता है)
(दक्षिण ग्रीस का एक प्राचीन नगर ‘सिरीनिया’ के एक जंगल में पायी जाने वाली सुनहरी हिरनी को सिरीनियन हिंड के नाम से जाना जाता है)
“तुम वही सुनहरी हिरनी हो, जिसकी 4 बहनें देवी आर्टेमिस के रथ को खींचती हैं?” लुफासा ने आश्चर्य से भरते हुए कहा।
“हां, मैं वहीं हूं।” मेलाइट ने कहा।
“हे मेरे ईश्वर इस आकृति ने क्या-क्या गड़बड़ कर रखी है। अगर मेलाइट ने देवताओं को यहां के बारे में बता दिया, तो देवता इस पूरे द्वीप को समुद्र में डुबो देंगे।” लुफासा की आँखों में भय के निशान साफ-साफ
दिख रहे थे।
अब लुफासा की किसी से और कुछ पूछने की हिम्मत ही नहीं बची थी।
“देखो मेलाइट...तुम जब भी जहां भी जाना चाहो, हम तुम्हें इस द्वीप से वहां भिजवा देंगे, पर एक वादा करो कि देवी आर्टेमिस से तुम आकृति की शिकायत करोगी, हम सभी की नहीं। हम देवता ‘अपोलो’ और देवी 'आर्टेमिस' के कोप का भाजन नहीं बनना चाहते।” लुफासा ने विनम्र शब्दों में मेलाइट से कहा।
लुफासा के ऐसे शब्दों को सुनकर मेलाइट ने धीरे से सिर हिला दिया।
मेलाइट का परिचय जानकर, अब रोजर की मेलाइट की ओर देखने की हिम्मत भी नहीं हो रही थी।
मेलाइट ने कनखियों से रोजर को देखा और उसे नीचे देखते पाकर धीरे से मुस्कुरा दी।
अब लुफासा की निगाह उस दूसरी लड़की पर पड़ी- “अब आप भी अपना परिचय दे दीजिये।”
“मेरा नाम सुर्वया है, मैं सिंहलोक की राजकुमारी हूं। एक समय मैं आकृति की बहुत अच्छी दोस्त थी, पर जब आकृति को मेरी दिव्यदृष्टि के बारे में पता चला, तो उसने मुझे उस शीशे में कैद करके हमेशा-हमेशा के लिये अपने पास रख लिया।” सुर्वया ने कहा।
“तुम्हारे पास किस प्रकार की दिव्यदृष्टि है?” सनूरा ने सुर्वया से पूछा।
“मैं इस पृथ्वी पर मौजूद हर एक जीव को अपनी आँखें बंद करके देख सकती हूं।” सुर्वया ने कहा।
“क्या ऽऽऽऽऽऽऽ?” सुर्वया के शब्द सुनकर सभी के मुंह से एकसाथ निकला।
“ये कैसी शक्ति है? यह शक्ति तो जिसके पास होगी, वह कुछ भी कर सकता है।” रोजर ने कहा।
“नहीं मेरी भी कुछ कमियां हैं, मैं सिर्फ उसी व्यक्ति या जीव को देख सकती हूं, जो उस समय जमीन पर हो। मैं पानी, बर्फ या हवा में रह रहे किसी जीव को नहीं ढूंढ सकती। मेरी इसी विद्या की वजह से, आकृति तुम सब लोगों के बारे में जान जाती थी। पर मेरे ना रहने के बाद अब वह कमजोर पड़ जायेगी।” सुर्वया ने कहा।
“तो क्या तुम बता सकती हो कि इस समय आकृति कहां है?” लुफासा ने कहा।
लुफासा की बात सुनकर सुर्वया मुस्कुरा दी- “यह बताने के लिये मुझे दिव्यदृष्टि की जरुरत नहीं है। मैंने ही उसे इस समय न्यूयार्क भेजा था।”
“न्यूयार्क?” लुफासा को सुर्वया की बात समझ में नहीं आयी।
“दरअसल किसी कार्य हेतु आकृति को एक सुनहरी ढाल की जरुरत है और वह ढाल इस समय एक पानी के जहाज के अंदर है, जो अंटार्कटिका से न्यूयार्क की ओर जा रहा है। वह उसे ही लाने गयी है।” सुर्वया ने कहा।
“क्या तुम ये बता सकती हो कि उसने मेरा अपहरण क्यों किया?” मेलाइट ने सुर्वया से पूछा।
“हां....आकृति के चेहरे पर इस समय शलाका का चेहरा है, जिसे वह स्वयं की मर्जी से हटा नहीं सकती, जबकि तुम्हारे पास एक कस्तूरी है, जिसे पीसकर उसका लेप लगाने पर आकृति अपने पुराने रुप में आ सकती है, इसी लिये उसने तुम्हारा अपहरण किया था।” सुर्वया ने कहा।
“पर मेलाइट के पास कस्तूरी कैसे हो सकती है?” लुफासा ने कहा- “कस्तूरी तो सिर्फ नर मृग में पायी जाती है।”
“वह कस्तूरी मेरी नहीं है, वह मेरे पास किसी की निशानी है, जिसे मैं उस आकृति को कभी भी नहीं दूंगी।” मेलाइट ने गुस्से से कहा- “और उसे इस कस्तूरी के बारे में पता कैसे चला? यह बात तो मेरे सिवा कोई भी नहीं जानता।”
“माफ करना मेलाइट, पर यह जानकारी मैंने ही उसे दी थी और मुझसे कुछ भी छिपा पाना असंभव है।” सुर्वया ने कहा।
तभी लुफासा के कमरे में लगी एक लाल रंग की बत्ती जलने लगी, जिसे देखकर लुफासा थोड़ा चिंतित हो गया।
“दोस्तों आप लोग अभी आराम करिये, मुझे अभी कुछ जरुरी काम से कहीं जाना है। मैं लौटकर आप लोगों से बात करता हूं।” यह कह लुफासा ने सनूरा की ओर देखा।
सनूरा जान गयी थी कि लुफासा को मकोटा ने याद किया था, उसने इशारे से लुफासा को निश्चिंत होकर जाने को कहा और फिर उठकर सबको कमरा दिखाने के लिये चल दी।
उड़ने वाली झोपड़ी: (15 जनवरी 2002, मंगलवार, 14:30, पोसाईडन पर्वत, अराका द्वीप)
सभी अब अपने सामने मौजूद सुनहरी झोपड़ी को निहार रहे थे। सबसे पहले उन सभी झोपड़ी को चारो ओर से ध्यान से देखा।
झोपड़ी के सामने की ओर उसका दरवाजा था, झोपड़ी के पीछे कुछ भी नहीं था, पर झोपड़ी के दाहिने और बांयी ओर 2 छोटी खिड़कियां बनीं थीं।
उन खिड़कियों के नीचे, दोनो तरफ एक-एक सुनहरा पंख लगा था। जो हवा के चलने से धीरे-धीरे लहरा रहा था। पंख देख सभी आश्चर्य से भर उठे।
“कैप्टेन, इस झोपड़ी के पंख क्यों है? आपको क्या लगता है? क्या ये उड़ती होगी ?” ऐलेक्स ने सुयश से कहा।
“मुझे नहीं लगता कि ये उड़ती होगी। क्यों कि इतनी बड़ी झोपड़ी को इतने छोटे पंख, हवा में उड़ा ही नहीं सकते।“ सुयश ने अपने विचार को प्रकट करते हुए कहा- “यह अवश्य ही किसी और कार्य के लिये बनी
होगी?”
झोपड़ी के बाहर ऐसा कुछ भी नहीं था, जिसके बारे में और कुछ बात की जाती, इसलिये सभी ने अब अंदर जाने का फैसला कर लिया।
“दोस्तों, अंदर जाने से पहले मैं कुछ बातें करना चाहता हूं।” सुयश ने सभी को सम्बोधित करते हुए कहा- “हम शायद मायावन के आखिरी द्वार पर हैं, इसके बाद तिलिस्मा शुरु होगा। हमें नहीं पता कि आगे आने
वाली मुसीबतें किस प्रकार की होंगी, इसलिये मैं चाहता हूं कि सभी लोग आगे पड़ने वाली किसी भी चीज को तब तक हाथ नहीं लगायेंगे, जब तक सभी की अनुमति ना ले लें।”
सभी ने अपना सिर हां में हिलाकर सुयश की बात का समर्थन किया।
अब सुयश के इशारे पर सभी झोपड़ी के अंदर की ओर चल दिये।
झोपड़ी अंदर से ज्यादा बड़ी नहीं थी और ना ही उसमें बहुत ज्यादा सामान ही रखा था।
झोपड़ी की सभी दीवारें और जमीन लकड़ी के ही बने थे, बस उसकी छत साधारण झोपड़ी की तरह घास-फूस से बनी थी।
झोपड़ी के बीचो बीच एक पत्थर के वर्गा कार टुकड़े पर, काँच का बना एक गोल बर्तन रखा था, जो आकार में कार के टायर के बराबर था, परंतु उसकी गहराई थोड़ी ज्यादा थी।
उस काँच के बर्तन में पानी के समान पारदर्शी परंतु गाढ़ा द्रव भरा था। उस द्रव में नीले रंग की बहुत छोटी -छोटी मछलियां घूम रहीं थीं।
अब इतने गाढ़े द्रव में मछली कैसे घूम रहीं थीं, ये समझ से बाहर था।
उस काँच के बर्तन के बीच में एक नीले रंग का कमल का फूल रखा था।
झोपड़ी के एक किनारे पर, एक छोटे से स्टैंड पर, एक पकी मिट्टी की बनी छोटी सी मटकी रखी थी, उस मटकी पर ‘जलपंख’ लिखा था और जलपंख के नीचे एक गोले जैसे आकार में 2 लहर की आकृतियां बनीं थीं।
मटकी से पतली डोरी के माध्यम से, एक पानी निकालने वाला सोने का डोंगा भी बंधा था।
झोपड़ी की दूसरी दीवार पर एक कील गड़ी थी, जिसमें एक मानव खोपड़ी से निर्मित माला टंगी थी।
उस माला का धागा साधारण ही दिख रहा था।
दोनों खिड़कियों में लकड़ी के पल्ले लगे थे, जो कि खुले हुए थे।
“किसी को कुछ समझ में आ रहा है?” सुयश ने झोपड़ी में मौजूद सभी चीजों को देखने के बाद सबसे पूछा।
“कैप्टेन, इस झोपड़ी की दीवारें लकड़ी की हैं, यह समझ में आता है, पर इसकी जमीन क्यों लकड़ी की बनी है? यह समझ में नहीं आ रहा, क्यों कि कोई भी झोपड़ी बनाते समय उसकी जमीन नहीं बनवाता। और ऐसा सिर्फ वही लोग करते हैं जिन्हें अपने घर को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना होता है।” तौफीक ने कहा। तौफीक का तर्क अच्छा था।
“और किसी को कुछ महसूस हुआ?” सुयश ने पूछा।
“उस नीलकमल, मानव खोपड़ी और इस मटकी में कुछ तो काम्बिनेशन है।” शैफाली ने कहा- “पर करना क्या है? ये समझ में नहीं आ रहा है।”
“तो फिर पहले किसी एक चीज को उठा कर देखते हैं, अगर कुछ बदलाव हुआ तो अपने आप पता चल जायेगा।“ सुयश ने कहा।
“कैप्टेन पहले इस नीलकमल को छूकर देखते हैं।” जेनिथ ने अपना सुझाव दिया।
सुयश ने जेनिथ को हां में इशारा किया। सुयश का इशारा पाकर जेनिथ ने धीरे से उस नीलकमल को उठा लिया। पर नीलकमल को उठाने के बाद कोई भी घटना नहीं घटी।
यह देख जेनिथ ने नीलकमल को वापस उसके स्थान पर रख दिया।
“अब मटकी को चेक करते हैं क्यों कि इस पर लिखा यह जलपंख और उसके नीचे बना गोला मुझे कुछ अजीब लग रहा है।” इस बार क्रिस्टी ने कहा।
सुयश के इशारा पाते ही क्रिस्टी ने जैसे ही मटकी को छुआ, उसे तेज करंट का झटका लगा।
“कैप्टेन, यह तो करंट मार रहा है।” क्रिस्टी ने घबरा कर अपना हाथ खींचतें हुए कहा।
“यानि की इसमें कुछ रहस्य अवश्य है।” शैफाली ने कहा- “कैप्टेन अंकल इस पर जलपंख क्यों लिखा है? कहीं इसका पानी बाहर बने झोपड़ी के पंख पर डालने के लिये तो नहीं है?”
“हो भी सकता है, पर यह तो छूने पर करंट मार रहा है, फिर इसका पानी पंख पर डाल कर ट्राई कैसे करें?” सुयश ने कहा।
“कैप्टेन...जलपंख तो समझ में आ गया, पर इस गोले वाले निशान का क्या मतलब है?” ऐलेक्स ने कहा- “यह पानी की लहरों के जैसा निशान है।”
“कहीं यह निशान एक जोडियाक चिन्ह तो नहीं है?” शैफाली ने निशान को देखते हुए कहा- “क्यों कि राशियों में कुम्भ राशि का निशान ऐसा ही होता है।”
“कुम्भ राशि!” सुयश ने सोचने वाले अंदाज में कहा।
“जो लोग 20 जनवरी से 19 फरवरी के बीच पैदा होते हैं, उनके राशि कुम्भ राशि होती है, और ऐसा निशान कुम्भ राशि का ही होता है।” शैफाली ने कहा।
“एक मिनट!” सुयश ने कुछ सोचते हुए कहा- “कुम्भ राशि का प्रतीक मटका ही तो होता है और यह निशान भी मटके पर ही है। इसका मतलब तुम सही सोच रही हो शैफाली।...क्या कोई यहां पर ऐसा है जिसकी राशि कुम्भ हो?”
“यस कैप्टेन!” जेनिथ ने अपना हाथ उठाते हुए कहा- “मेरा जन्म 11 फरवरी को हुआ है, उस हिसाब से मेरी राशि कुम्भ ही है।”
“जेनिथ तुम मटके को छूने की कोशिश करो, देखो यह तुम्हें भी करंट मारता है या नहीं?” सुयश ने जेनिथ को मटका छूने का निर्देश दिया।
जेनिथ ने डरते-डरते मटके को छुआ, पर उसे करंट नहीं लगा, यह देख शैफाली के चेहरे पर मुस्कान आ गयी।
“जेनिथ अब तुम इस डोंगे को पानी से पूरा भरकर, बांयी तरफ वाली खिड़की से, बाहर लगे पंख पर डालो, फिर देखते हैं कि क्या होता है?” सुयश ने जेनिथ से कहा।
जेनिथ ने सुयश के बताए अनुसार ही किया। पंख पर पानी पड़ते ही उसका आकार थोड़ा बड़ा हो गया।
“तो ये बात है....हमें पूरी मटकी का पानी बारी-बारी दोनों पंखों पर डालना होगा, तब पंख आकार में इस झोपड़ी के बराबर हो जायेंगे और फिर यह झोपड़ी हमें तिलिस्मा में पहुंचायेगी।” सुयश ने सबको समझाते हुए कहा- “पर जेनिथ इस बात का ध्यान रखना, कि पानी दोनों पंखों पर बराबर पड़े, नहीं तो एक पंख छोटा और एक पंख बड़ा हो जायेगा। जिससे बाद में उड़ते समय यह झोपड़ी अपना नियंत्रण खोकर गिर जायेगी।”
जेनिथ ने हामी भर दी। कुछ ही देर के प्रयास के बाद जेनिथ ने मटकी का पूरा पानी खत्म कर दिया।
झोपड़ी के दोनों ओर के पंख अब काफी विशालकाय हो गये थे।
जैसे ही मटकी का पानी खत्म हुआ, झोपड़ी के दोनों ओर की खिड़की अपने आप गायब हो गई।
अब झोपड़ी में उस स्थान पर भी लकड़ी की दीवार दिखने लगी थी।
“कैप्टेन, खिड़की का गायब होना, यह साफ बताता है कि पंख तैयार हो चुके हैं, अब बस इस झोपड़ी को उड़ाने की जरुरत है।” क्रिस्टी ने कहा।
“अब दीवार पर लगी वह खोपड़ी ही बची है, उसे भी छूकर देख लेते हैं। शायद वही झोपड़ी को उड़ाने वाली चीज हो।” शैफाली ने कहा।
जारी रहेगा______![]()
Bohot badhiya Update guruji, chhaa gaye, kya se kya socha hai aapne#144.
सुयश ने उस कील से खोपड़ी की माला उतार ली। माला उतारने के बाद, वह कील थोड़ी सी ऊपर की ओर खिसक गई, पर सुयश इस बदलाव को देख नहीं पाया।
सुयश ने खोपड़ी वाली माला को उलट-पुलट कर देखा, पर उसमें कुछ भी विचित्र नहीं था।
काफी देर तक ऐसे ही झोपड़ी में घूमने के बाद भी, किसी को ऐसा कोई सुराग नहीं मिला, जिससे यह पता चल पाता कि झोपड़ी कैसे उड़ेगी?
“कैप्टेन, क्यों ना इस काँच के बर्तन में भी हाथ डालकर उन मछलियों को देखें? क्या पता उनमें कुछ रहस्य छिपा हो।” तौफीक ने कहा।
सुयश की बात सुन जेनिथ ने आगे बढ़कर पहले उस नीलकमल को निकाल लिया, पर नीलकमल को निकालते ही झोपड़ी ऊपर की ओर हवा में उड़ने लगी।
यह देख सभी जमीन पर बैठ गये
“यह कैसे संभव हुआ? इस फूल को तो पहले भी हम निकाल कर देख चुके थे, तब तो कुछ नहीं हुआ था।” ऐलेक्स ने आश्चर्य से उस फूल की ओर देखते हुए कहा।
झोपड़ी अब हवा में नाच रही थी, पर अब उसे जमीन पर उतारना किसी को नहीं आता था। झोपड़ी के उड़ने से, इन्हें झटके नहीं लग रहे थे।
जब कुछ देर तक झोपड़ी को उड़ते हुए हो गया, तो सुयश बोल उठा- “लगता है कि इस झोपड़ी को उतारना भी हमें ही पड़ेगा।....जेनिथ तुम फूल को अपनी जगह पर वापस रख दो।”
जेनिथ ने फूल को वापस रख दिया, फिर भी झोपड़ी का उड़ना बंद नहीं हुआ। जेनिथ ने यह देख फूल को थोड़ा हिला-डुला कर देखा।
पर जेनिथ के फूल को हिलाते ही, झोपड़ी एक ही जगह पर गोल-गोल नाचने लगी।
यह देख सुयश उस नीलकमल के पास आकर ध्यान से उस फूल को देखने लगा।
“यह पूरा सिस्टम किसी मशीन की तरह काम कर रहा है।” सुयश ने कहा- “जैसे कि कोई कार। अब अगर ध्यान दें तो उस मटकी का पानी इस झोपड़ी का फ्यूल का काम कर रहा है, यह फूल इस झोपड़ी का स्टेयरिंग है। हम इस फूल को जिस दिशा में घुमा रहें हैं, यह झोपड़ी उस दिशा में घूम जा रही है। फिर तो काँच में मौजूद यह द्रव्य इंजन ऑयल की तरह होगा। इसका साफ मतलब है कि कहीं ना कहीं इस झोपड़ी को स्टार्ट करने वाला इग्नीशन भी रहा होगा, जिससे हमने अंजाने में ही, इस झोपड़ी को आसमान में उड़ा दिया। पर कहां?”
इतना कहकर सुयश अपने हाथ में पकड़ी, उस खोपड़ी की माला को देखने लगा। कुछ पल सुयश ने सोचा और उस खोपड़ी की माला को उसी कील पर टांग दिया।
माला के कील पर टंगते ही झोपड़ी जमीन पर उतर गई। अब झोपड़ी के दरवाजे के सामने पोसाईडन की मूर्ति दिखाई दे रही थी।
पोसाईडन की मूर्ति के पैर में एक बड़ा सा दरवाजा खुला हुआ दिखाई दे रहा था।
“लगता है कि हमें उस पोसाईडन की मूर्ति के, पैर में बने दरवाजे से, अंदर की ओर जाना है।” तौफीक ने बाहर की ओर देखते हुए कहा।
ऐलेक्स ने जैसे ही झोपड़ी के दरवाजे से बाहर जाने के अपना कदम बाहर की ओर बढ़ाया ।
एकाएक क्रिस्टी ने ऐलेक्स का हाथ जोर से अंदर की ओर खींचा।
ऐलेक्स झोपड़ी के अंदर आ गिरा और क्रिस्टी को अजीब सी नजरों से घूरने लगा।
“क्या हुआ क्रिस्टी? तुमने ऐलेक्स के साथ ऐसा क्यों किया?” सुयश ने भी क्रिस्टी को घूरते हुए पूछा।
“कैप्टेन, जब ऐलेक्स ने अपना पैर बाहर की ओर निकाला, तो उसका पैर बाहर दिखाई नहीं दिया, इसी लिये मैंने ऐलेक्स को अंदर की ओर खींचा था।” क्रिस्टी के शब्द पूरी तरह से रहस्य से भरे नजर आ रहे थे।
“मैं कुछ समझा नहीं ।” ऐलेक्स को भी क्रिस्टी की बातें समझ में नहीं आयी- “तुम कहना क्या चाहती हो क्रिस्टी?”
“आओ, दिखाती हूं तुम्हें।” यह कहकर क्रिस्टी ने ऐलेक्स को सहारा देकर जमीन से उठाया और उसे लेकर झोपड़ी के द्वार के पास पहुंच गयी।
“अब जरा एक बार फिर अपना पैर झोपड़ी से बाहर निकालो ऐलेक्स।” क्रिस्टी ने कहा।
ऐलेक्स ने क्रिस्टी के कहे अनुसार अपना एक पैर बाहर निकाला, पर ऐलेक्स को अपना पैर द्वार से बाहर कहीं दिखाई नहीं दिया।
यह देख ऐलेक्स ने घबरा कर अपना पैर वापस अंदर की ओर खींच लिया।
“यह कौन सी परेशानी है? यह दरवाजा हमें कहां ले जा रहा है?” सुयश ने कहा।
“कैप्टेन अंकल, शायद यह द्वार हमें तिलिस्मा में नहीं बल्कि कहीं और ले जा रहा है।” शैफाली ने अपना तर्क दिया।
“तो फिर क्या हम सामने दिख रहे तिलिस्म में प्रवेश नहीं कर सकते?” जेनिथ ने कहा।
“कुछ तो गड़बड़ है, जो हमें समझ में नहीं आ रहा?” सुयश का दिमाग तेजी से चलने लगा- “कहीं ऐसा तो नहीं कि हमें तिलिस्मा में घुसने के लिये कोई कार्ड या फिर गेट पास जैसी कोई चीज चाहिये, क्यों कि
तिलिस्मा में हमें ले तो यही झोपड़ी जायेगी।”
“कैप्टेन अंकल क्या पता हमें झोपड़ी में मौजूद किसी सामान को लेकर तिलिस्मा में जाना हो?” शैफाली ने कहा- “अगर आप कहें तो ये भी ट्राई करके देख लें।”
“चलो यह भी करके देख लेते हैं।” सुयश ने कहा- “सबसे पहले इस मटकी को ले चलते हैं क्यों कि जब पंख को पानी पिलाने के बाद खिड़की गायब हो गई, तो मटकी क्यों नहीं हुई। इसका मतलब मटकी का काम अभी झोपड़ी से खत्म नहीं हुआ है।”
यह कहकर सुयश ने मटकी तौफीक को पकड़ा कर बाहर निकलने की ओर इशारा किया।
तौफीक ने मटकी को लेकर झोपड़ी से निकलने की कोशिश की। पर वह बाहर नहीं जा पाया।
इसके बाद उसने फूल को ट्राई किया, फिर भी वो सफल नहीं हुआ। अब फूल को यथा स्थान रखकर तौफीक ने खोपड़ी की माला उतार ली।
तौफीक उस खोपड़ी की माला को जैसे लेकर निकलने चला, वह आसानी से बाहर निकल गया।
यह देख सबकी जान में जान आयी।
“तो इस खोपड़ी की माला को लेकर बाहर निकलना था।” सुयश ने हंसकर कहा- “यही है तिलिस्मा का गेट पास।“
अब तौफीक ने खोपड़ी को वापस अंदर की ओर फेंक दिया। इस बार शैफाली खोपड़ी लेकर बाहर निकल गयी।
उसके बाद फिर क्रिस्टी, फिर ऐलेक्स और फिर जेनिथ। जेनिथ ने बाहर निकलकर खोपड़ी को वापस अंदर की ओर फेंक दिया।
पर सुयश ने जब बाहर निकलने की कोशिश की तो इस बार उसे करंट का झटका लगा। तयह देख सुयश हैरान हो गया।
“इस माला ने सबको निकाल दिया, पर यह माला मुझे बाहर लेकर क्यों नहीं जा रही है?” सुयश मन ही मन बड़बड़ा उठा।
तभी तौफीक ने सुयश को बाहर ना निकलते देख पूछ लिया- “क्या हुआ कैप्टेन आप बाहर क्यों नहीं आ रहे हैं?”
सुयश ने तौफीक को भी परेशानी बता दी।
यह सुन तौफीक अंदर की ओर वापस आने चला, पर उसे करंट का झटका लगा, जिसका साफ मतलब था कि बाहर आया हुआ कोई भी व्यक्ति अब अंदर नहीं जा सकता।
यानि कि सुयश को अपनी परेशानी स्वयं ही समाप्त करनी थी। सुयश लगातार सोच रहा था।
तभी उसकी नजर उस कील पर गई, जिस पर वह खोपड़ी की माला लटकी थी।
सुयश अब वहां जाकर ध्यान से उस कील को देखने लगा। कील को छूने पर सुयश को वह कील हिलती हुई दिखाई दी।
अब सुयश इस मायाजाल को समझ गया था।
“तो ये बात है, इस खोपड़ी की माला को उतारते ही यह कील ऊपर की ओर हो जाती है, यानि यही इस झोपड़ी का इग्नीशन है, जो कि इसे उड़ाने में सहायक है। यानि कि मैं बिना माला टांगे यहां से बाहर नहीं जा सकता और बिना इस माला को लिये भी मैं बाहर नहीं जा सकता। ...... हे भगवान अब ये कैसा मायाजाल है?” अब सुयश परेशान हो उठा।
“कैसे....आखिर कैसे यह संभव है?”
तभी सुयश को सामने पड़ी मटकी दिखाई दी।
उसे तुरंत अपने ही बोले शब्द याद आ गये कि मटकी का कार्य अगर खत्म हो जाता तो मटकी भी गायब हो गई होती।
यह ध्यान कर सुयश की आँखें खुशी से चमकने लगीं।
उसने एक हाथ में खोपड़ी और दूसरे हाथ में मटकी लेकर दोनों का वजन किया। दोनों का ही वजन लगभग एक समान ही था।
अब सुयश ने सोने के डोंगे में बंधे धागे को खोलकर उस धागे से मटकी को बांधकर, उसे भी खोपड़ी की माला जैसा बना दिया।
अब सुयश ने खोपड़ी की माला को उतारकर अपने गले में पहन लिया। इसके बाद उस मटकी की माला को उस कील पर टांग दिया।
मटकी को कील पर टांगते ही कील वापस नीचे आ गई।
अब सुयश मुस्कुराया और झोपड़ी के द्वार की ओर चल दिया। वह समझ गया था कि दीवार पर खोपड़ी की माला टंगे रहना जरुरी नहीं था, बल्कि उस कील का नीचे झुके रहना जरुरी था।
सुयश ने अपना एक पैर बाहर निकाला और फिर पूरा का पूरा बाहर निकल गया। सभी सुयश को बाहर निकलते देखकर खुश हो गये।
तभी झोपड़ी हवा में गायब हो गई और झोपड़ी के अंदर रखा वह पत्थर, काँच के बर्तन, मछली और नीलकमल पोसाईडन के पैर में बने दरवाजे में समा गया।
सभी ने एक दूसरे को देखकर, फिर हाथ मिलाये और एकता की शक्ति का मूलमंत्र दोहराते हुए पोसाईडन पर्वत के पैर में बने दरवाजे की ओर बढ़ चले।
यह वो साधारण मनुष्य थे, जिनके पास हिम्मत, विश्वास, बुद्धि, ज्ञान और सबसे बढ़कर कभी ना झुकने का हौसला था।
उन्हें डर नहीं था, देवताओं की उन शक्ति से भी, जो तिलिस्मा के अंदर मौत बनकर बैठी उनका इंतजार कर रहीं थीं।
वह सभी तिलिस्मा की ओर ऐसे बढ़ रहे थे, जैसे कुछ मतवाले हाथियों का झुण्ड लहलहाते हुए गन्ने के खेत की ओर बढ़ता है।
प्रश्नमाला
दोस्तों जैसा कि आप देख रहे हैं कि यह कथानक बहुत तेजी से बढ़ता जा रहा है और हर पेज पर आपके दिमाग एक नया प्रश्न खड़ा करता जा रहा है। प्रश्नों की संख्या अब इतनी ज्यादा हो चुकी है कि अब
वह मस्तिष्क में एकत्रित नहीं हो पा रहे हैं।
तो क्यों न इन सारे प्रश्नों को एक जगह पर एकत्रित कर लें-
1) क्या वेगा अराका द्वीप के बारे में सबकुछ जानता था?
2) ‘अटलांटिस का इतिहास’ नामक किताब ‘लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस' में कैसे पहुची? क्या इसके लेखक वेगा के बाबा कलाट ही थे? क्या इस किताब से और भी राज आगे खुले?
3) क्या वेगा को सम्मोहन आता था?
4) नीलाभ अब कहां गायब हो गया था? उसके पास कैसी शक्तियां थीं?
5) माया से विदा लेने के बाद मेरोन और सोफिया का क्या हुआ?
6) ट्रांस अंटार्कटिक के पहाड़ों में दबा शलाका का महल असल में क्या था?
7) हनुका कौन था? ...देव ने नीलाभ के विवाह में उपहार स्वरुप हनुका को क्यों दिया?
8) क्या थी वह जीवशक्ति और वृक्षशक्ति जिससे मैग्ना ने मायावन का निर्माण किया था?
9) क्या जेनिथ सुयश के सामने तौफीक का राज खोल पायी?
10) पंचशूल का निर्माण किसने और क्यों किया था?
11) क्रिस्टी को नदी की तली से मिली, वह काँच की पेंसिल कैसी थी?
12) हवा के गोले में समाने के बाद गोंजालो का क्या हुआ?
13) कैस्पर के समुद्री घोड़े जीको का क्या रहस्य था? वह उड़ने वाला घोड़ा कैसे बन जाता था?
14) क्या देवी शलाका के भाइयों के पास सच में कोई शक्ति थी?
15) शैफाली को मैग्ना की ड्रेस तक पहुंचाने वाली पेंग्विन और डॉल्फिन क्या थीं?
16) धरा के भाई विराज के बारे में वेगा कैसे जान गया था? वेगा को वीनस की भी सारी बातें पता थीं। तो क्या वेगा के पास और भी कोई शक्ति थी?
17) काँच के अष्टकोण में बंद वह छोटा बालक कौन था? जिसका चित्र देखकर सुयश को कुछ आवाजें सुनाई देनें लगीं थीं?
18) वेदांत रहस्यम् में ऐसे कौन से राज छिपे थे? जिसके कारण शलाका सुयश को वह किताब पढ़ने नहीं दे रही थी?
19) लुफासा की इच्छाधारी शक्ति का क्या रहस्य था?
20) सीनोर राज्य में मकोटा ने पिरामिड क्यों बनवाया था?
21) मकोटा के द्वारा आकृति को दिये ‘नीलदंड’ में क्या विशेषताएं थीं?
22) आकृति का चेहरा शलाका से कैसे मिलने लगा? वह पिछले 5000 वर्षों से जिंदा कैसे है?
23) ऐमू के अमरत्व का क्या राज है?
24) जैगन का सेवक गोंजालो का क्या राज है? सीनोर राज्य में उसकी मूर्ति क्यों लगी है?
25) क्या सनूरा की शक्तियों का राज एक रहस्यमय बिल्ली है?
26) आकृति वेदांत रहस्यम् क्यों छीनना चाह रही थी?
27) आर्यन ने स्वयं अपनी मौत का वरण क्यों किया था?
28) आकृति शलाका के चेहरे से क्यों परेशान है?
29) मैग्ना का ड्रैगन, लैडन नदी की तली में क्यों सो रहा था? मेलाइट उसे क्यों जगाना चाहती थी?
30) पृथ्वी की ओजोन लेयर कैसे टूट गयी थी?
31) 3 आँख और 4 हाथ वाले उस विचित्र जीव का क्या रहस्य था? कैस्पर की शक्तियां इस्तेमाल करके उसे किसने बनाया था?
32) सुर्वया की दिव्यदृष्टि का क्या रहस्य था?
33) ब्रह्मकलश के अमरत्व का क्या रहस्य था?
34) आकृति सुनहरी ढाल क्यों प्राप्त करना चाहती थी?
35) वुल्फा कौन था? क्या उसमें भी शैतानी शक्तियां थीं?
36) उड़नतश्तरी के अंदर मौजूद 6 फुट का हरा कीड़ा बाकी कीड़ों से अलग क्यों था? वह इंसानों की तरह कैसे चल रहा था?
37) मकोटा के सर्पदंड का क्या रहस्य था?
38) सामरा राज्य पर स्थित अटलांटिस वृक्ष का क्या रहस्य है? उसने किस प्रकार युगाका को वृक्षशक्ति दी?
39) सागरिका, वेगिका, अग्निका आदि चमत्कारी पुस्तकों का क्या रहस्य था?
40) कैसा था तिलिस्मा? उसमें कौन सी मुसीबतें छिपीं थीं?
41) क्या तिलिस्मा में घुसे सभी लोग तिलिस्मा को पार कर काला मोती प्राप्त कर सके?
42) क्या माया कैस्पर को उसकी असलियत बता पायी?
ऐसे ही ना जाने कितने सवाल होंगे जो आपके दिमाग में घूम रहे होंगें।
तो दोस्तों इन सारे अनसुलझे सवालों के जवाब हम इस समय नहीं दे पा रहे हैं। तो इंतजार कीजिए हमारे इसके अगले चैप्टर का जिसमें हम आपको ले चलेंगे, इस तिलिस्म के एक ऐसे अद्भुत संसार में, जहां पर छिपी तिलिस्मी मौत बेसब्री से अपने शिकार का इंतजार कर रही है।....................
दोस्तों इन्द्रधनुष के रंगों की मांनिद होती है एक लेखक की रचनाएं। जिस प्रकार इन्द्रधनुष में सात रंग होते हैं, ठीक उसी प्रकार लेखक की रचनाओं में भी सात रंग पाये जाते हैं। हर रंग अपने आप में एक अलग पहचान रखता है।
एक उच्चस्तरीय लेख लिखने के लिए सबसे पहले एक सम्मोहक कथानक की आवश्यकता होती है, फिर इसके एक एक पात्र को मनका समझकर माला में पिरोया जाता है, जिससे पाठकों को हर एक पात्र के जीवंत दर्शन हो सके।
फिर कल्पना के असीम सागर में डुबकी लगाकर मोतियों की तरह एक एक शब्द को चुनकर उनके भावों को अभिव्यक्त करना पड़ता है। तब कहीं जाकर तैयार होती है एक लेखक की रचना।
दोस्तों इस कथा को लिखने में बहुत मेहनत और शोध लगा है। अगर आपको यह कथा अच्छी लगी, तो कृपया इसको रिव्यू देना ना भूलें। आपका यह छोटा सा प्रयास मुझे और अच्छा लिखने के लिये प्रेरित करेगा।
"दूसरों को बनाने में तमाम उम्र गुजारी है,
पंख नये हैं पर अब मेरे उड़ने की बारी है“
जारी ररहेगा_______![]()
Oh! Lag raha hai bechare Aryan ne Aakriti ke sath prem kreeda kar liya tha shayad isliye usne apni maut ko chuna, let's see baki kya sahi hai!#152.
वेदांत रहस्यम्
(15 जनवरी 2002, मंगलवार, 15:00, ट्रांस अंटार्कटिक माउन्टेन, अंटार्कटिका)
विल्मर को सुनहरी ढाल देने के बाद शलाका ने जेम्स को वापस उसी कमरे में रुकाया और स्वयं अपने शयनकक्ष में आ गई।
शलाका ने अपने भाईयों पर नजर मारी जो कि दूसरे कमरे में थे।
शलाका ने अब अपने कमरे का द्वार अंदर से बंद कर लिया, वह नहीं चाहती थी कि वेदांत रहस्यम् पढ़ते समय कोई भी उसे डिस्टर्ब करे।
कक्ष में मौजूद अलमारी से शलाका ने वेदांत रहस्यम् निकाल ली और उसे ले अपने बिस्तर पर आ गई।
लाल रंग के जिल्द वाली, 300 पृष्ठ वाली, 5,000 वर्ष पुरानी, आर्यन के द्वारा लिखी किताब अब उसके सामने थी।
शलाका जानती थी कि इसी किताब में वह रहस्य भी दफन है कि आर्यन ने क्यों अपनी इच्छा से अपनी मौत का वरण किया? यह पुस्तक अपने अंदर सैकड़ों राज दबाये थी, इसलिये उसे खोलते समय शलाका के हाथ कांपने लगे।
शलाका ने वेदांत रहस्यम् का पहला पृष्ठ खोला।
पहले पृष्ठ पर वेदालय की फोटो बनी थी। जिसे आर्यन ने अपनी स्मृति से रेखा चित्रों के माध्यम से बनाया था। उसे देखकर एक पल में ही शलाका 5,000 वर्ष पहले की यादें अपने दिल में महसूस करने लगी।
शलाका जानती थी, कि यह किताब जादुई है, अगर उसने वेदालय की फोटो को छुआ, तो वह उस स्थान पर पहुंच जायेगी, इसलिये इच्छा होने के बाद भी शलाका ने वेदालय की फोटो को स्पर्श नहीं किया।
शलाका ने अब दूसरा पृष्ठ पलटा। उस पृष्ठ पर वेदालय की वह तस्वीर थी, जब पहली बार सभी वेदालय में प्रविष्ठ हुए थे।
उस तस्वीर में आकृति, आर्यन से चिपक कर खड़ी थी और शलाका उनसे थोड़ा दूर खड़ी थी।
कुछ देर के लिये ही सही पर यह तस्वीर देखते ही शलाका के मन में आकृति के लिये गुस्सा भर गया।
शलाका ने अब एक-एक कर पन्ने पलटने शुरु कर दिये।
आगे के लगभग 30 पेज वेदालय की अलग-अलग यादों से भरे हुए थे। पर एक पेज पलटते ही शलाका से रहा नहीं गया, उसने उस तस्वीर को छू लिया।
एक पल में ही शलाका उस तस्वीर में समाकर उस काल में पहुंच गई, जहां वह एक नदी के किनारे आर्यन के साथ अकेली थी।
आर्यन और शलाका दोनों ही इस समय xyz (chhote) वर्ष के थे।
तो आइये दोस्तों देखते हैं कि ऐसा क्या था उस फोटो में कि शलाका अपने आप को उसे छूने से रोक नहीं पायी।
वेदालय से कुछ दूरी पर एक सुंदर सी झील थी, जहां इस मौसम में बहुत से पंछी और चिड़िया उड़कर, उस स्थान पर आते थे।
इस समय जिधर नजर जा रही थी, उधर चारो ओर रंग-बिरंगे फूल, तितलियां और पंछी दिखाई दे रहे थे। ऐसे मौसम में आर्यन और शलाका उस स्थान पर बैठे थे।
“आज तो छुट्टी का दिन था फिर तुम मुझे यहां पर क्यों लाये आर्यन?” शलाका ने अपनी नन्हीं आँखों से आर्यन को देखते हुए पूछा।
“क्यों कि तुम मुझसे एक छोटी सी शर्त हार गई थी और शर्त केअनुसार एक दिन के लिये मैं जो कहूं, वो तुम्हें मानना पड़ता, तो फिर मैंने सोचा कि क्यों ना मैं तुम्हें अपनी सबसे फेवरेट जगह दिखाऊं, बस यही सोच मैं तुम्हें यहां ले आया। मुझे पता है कि अगर शर्त नहीं होती तो तुम कभी मेरे साथ नहीं आती। पर सच कहूं तो मैं तुम्हें ऐसे अकेले कमरे में बंद पड़े नहीं देख सकता। तुम पता नहीं कमरे से बाहर क्यों नहीं निकलती?”
“वो....वो मैं तुमसे बात करना चाहती हूं, तुम्हारे साथ घूमना भी चाहती हूं, पर वो आकृति हमेशा तुम्हारे साथ रहती है और वह मुझसे बहुत चिढ़ती है, बस इसी लिये मैं तुम्हारे साथ बाहर कहीं नहीं जाती।”
शलाका ने धीरे से कहा।
“कोई बात नहीं, पर आज तो आकृति मेरे साथ नहीं है...आज तुम यहां मेरे साथ खेल सकती हो।” आर्यन ने भोला सा चेहरा बनाते हुए कहा।
“ठीक है, पर तुम यहां पर आकर कौन सा खेल खेलते हो?” शलाका ने आर्यन की बातों में रुचि लेते हुए कहा।
“मैं यहां पर प्रकृति को महसूस करने वाला खेल खेलता हूं। क्या यह खेल तुम मेरे साथ खेलोगी?” आर्यन ने कहा।
“पर मुझे तो ये खेल नहीं आता। इसे कैसे खेलते हैं आर्यन?” शलाका ने कहा।
“यह खेलना बहुत आसान है...सबसे पहले हम कोई चिड़िया ले लेते हैं और उसे महसूस करते हैं।”
“चिड़िया?” शलाका को कुछ भी समझ में नहीं आया- “चिड़िया में महसूस करने वाला क्या होता है आर्यन?”
“रुको , मैं तुम्हें यह करके दिखाता हूं।” यह कहकर आर्यन ने इधर-उधर देखा।
आर्यन को कुछ दूरी पर एक नन्ही सी लाल रंग की चिड़िया उड़ती हुई दिखाई दी, आर्यन उस चिड़िया की ओर दौड़ा।
चिड़िया एक नन्हें बच्चे को अपनी ओर भागते देख, चीं-चीं कर तेजी से उड़ने लगी।
आर्यन ने कुछ देर तक चिड़िया को देखा और फिर वह चिड़िया के समान ही आवाज निकालता उस चिड़िया से अलग दिशा में दौड़ा।
चिड़िया उस नन्हें बालक को अपनी तरह बोलता देख, आर्यन के पीछे-पीछे उड़ने लगी।
अब नजारा उल्टा था, पहले चिड़िया के पीछे आर्यन था, पर अब आर्यन के पीछे चिड़िया।
सच कहें तो शलाका को कुछ समझ में नहीं आ रहा था, पर आर्यन के पीछे चिड़िया का भागना उसे अच्छा लग रहा था।
अब आर्यन एक जगह पर रुक गया, और अपने दोनों हाथों को फैलाकर, फिर चिड़िया की तरह बोलने लगा।
कुछ ही देर में चिड़िया आकर आर्यन के हाथ पर बैठ गयी, आर्यन ने धीरे से चिड़िया के पंखों को सहलाया।
चिड़िया को आर्यन का सहलाना बहुत अच्छा लगा, वह फिर चीं-चीं कर मानो आर्यन को और ऐसा करने को कह रही थी।
आर्यन ने अब उसे कई बार सहलाया और फिर उसे लेकर शलाका के पास आ गया।
“अब अपना हाथ आगे करो शलाका।” आर्यन ने शलाका से कहा।
शलाका ने डरते-डरते अपना हाथ आगे कर दिया। आर्यन ने नन्हीं चिड़िया को शलाका के हाथों पर रख दिया।
नन्हीं चिड़िया शलाका के हाथ पर फुदक कर चीं-चीं कर रही थी।
कुछ ही देर में शलाका का डर खत्म हो गया और वह भी चिड़िया के साथ खेलने लगी।
शलाका चिड़िया से खेलने में इतना खो गई कि वह भूल गई कि आर्यन भी उसके साथ है।
“क्या अब तुम इस चिड़िया को महसूस कर पा रही हो शलाका?” आर्यन ने शलाका से पूछा।
“हां.... इस चिड़िया का धड़कता दिल, इसके खुशी से फुदकने का अहसास, इसका पंख पसार कर उड़ना, इसका मेरे हाथों पर चोंच मारना, मुझे सबकुछ महसूस हो रहा है आर्यन। सच कहूं तो यह बहुत अच्छी फीलिंग है, मैंने ऐसा पहले कभी नहीं महसूस किया।”
“यही प्रकृति है शलाका, अगर हम अपने आसपास की चीजों को दिल से महसूस करने लगें तो हम कभी स्वयं को अकेला महसूस नहीं करेंगे। अकेले होकर भी कभी हम दुखी नहीं होंगे।”
आर्यन ने अब उस नन्हीं चिड़िया को चीं-चीं कर कुछ कहा और फिर उसे आसमान में उड़ा दिया।
“क्या तुम्हें पंछियों की भाषा आती है आर्यन?” शलाका ने आर्यन की आँखों में देखते हुए पूछा।
“नहीं !”
“तो फिर तुम उस चिड़िया से बात कैसे कर रहे थे?” शलाका ने हैरानी से कहा।
“किसने कहा कि मैं उससे बात कर रहा था। मैं तो बस उसे महसूस कर रहा था, पर महसूस करते-करते, वह मेरी भावनाओं को स्वयं समझ जा रही थी।” आर्यन ने मुस्कुराते हुए कहा।
तभी शलाका को एक फूल पर बैठी बहुत ही खूबसूरत तितली दिखाई दी, जो नीले और काले रंग की थी।
उसे देख शलाका ने उसे पकड़ लिया।
वह तितली अब शलाका की पकड़ से छूटने का प्रयास करने लगी।
यह देख आर्यन ने शलाका का हाथ थाम लिया और बोला- “किसी को दुख पहुंचा कर हमें खुशी कभी नहीं मिल सकती शलाका।”
आर्यन के शब्द सुन शलाका ने अपनी चुटकी खोलकर उस तितली को उड़ा दिया।
यह देख आर्यन ने अपने हाथ पसार कर अपने मुंह से एक विचित्र सी ध्वनि निकाली, ऐसा करते ही पता नहीं कहां से सैकड़ों तितलियां आकर आर्यन के हाथ पर बैठ गईं।
“एक बार तितली को तुम छूकर के देख लो, हर पंख उसका छाप दिल पर छोड़ जायेगा।”
आर्यन के शब्द समझ शलाका ने अपने हाथों की ओर देखा, जिस पर तितली का नीला और काला रंग अब भी लगा था।
तितली का रंग शलाका के हाथ पर एक छाप छोड़ गया था, पर आर्यन का रंग शलाका के दिल पर एक अमिट छाप छोड़ रहा था, वह अब महसूस कर रही थी, इस पूरे जहान को, नीले से आसमान को....और
कुछ अलग सा महसूस कराने वाले उस आर्यन को............।”
शलाका अब वापस अपने कमरे में आ गई थी, पर उन कुछ पलों ने शलाका के दिमाग में एक हलचल सी मचा दी थी।
कुछ पलों तक शलाका यूं ही बैठी रही फिर उसने एक गहरी साँस भरी और वेदांत रहस्यम् के आगे के पन्नों को पलटने लगी।
धीरे-धीरे वेदालय की सभी घटनाएं निकल गईं। इसके बाद कुछ और चित्र नजर आये, पर वह शलाका के लिये जरुरी नहीं थे, उसे तो बस अब रहस्य जानना था, इसलिये शलाका ने जल्दी-जल्दी बहुत से पृष्ठ पलट
दिये।
अब शलाका की नजर एक ऐसे पृष्ठ पर थी, जिसमें आर्यन शलाका के साथ उसके कमरे में था, पर बहुत याद करने के बाद भी शलाका को कोई ऐसी स्मृति याद नहीं आयी, यह सोच शलाका ने उस फोटो को भी छू लिया।..............
“शलाका-शलाका कहां हो तुम?” आर्यन, शलाका को आवाज देते हुए अपने घर में प्रविष्ठ हुआ- “देखो मैं वापस आ गया।” आर्यन यह कहते हुए धड़धड़ा कर अपने कमरे में प्रविष्ठ हो गया।
कमरे में शलाका एक अलमारी के पास खड़ी थी, आर्यन ने उसे देखते ही गोद में उठा लिया और उसे पूरे कमरे में नचाने लगा- “आज मेरा सपना पूरा हो गया, आज मैंने वो हासिल कर लिया, जिसकी वजह से अब हम सदियों तक साथ रह सकते हैं। अब मुझे तुमसे कोई अलग नहीं कर सकता, यहां तक कि मौत भी नहीं।” यह कहकर आर्यन ने शलाका को नीचे उतार दिया।
“तुमने.... तुमने ऐसा क्या प्राप्त कर लिया आर्यन? जिससे अब तुम सदियों तक मेरे साथ रहोगे।” शलाका ने अपना चेहरा आर्यन की ओर से दूसरी ओर घुमाते हुए कहा।
“ये लो कितनी भुलक्कड़ हो यार तुम। अरे मैंने तुम्हें जाने से पहले बताया तो था कि मैं, हम दोनों के लिये ब्रह्मकलश से अमृत लेने जा रहा हूं।” आर्यन ने कहा।
“तो क्या....तो क्या तुम्हें अमृत प्राप्त हो गया?” शलाका के शब्द कांप रहे थे।
“ऐसा हो सकता है क्या कि मैं कोई चीज चाहूं और मुझे ना मिले?”
आर्यन ने मुस्कुराते हुए कहा- “अरे हां यार...मैंने अमृत की 2 बूंदें प्राप्त कर लीं। अब हम शादी शुदा जिंदगी बिताते हुए भी अमरत्व प्राप्त कर सकते हैं।” यह कहते हुए आर्यन ने 2 नन्हीं सुनहरी धातु की बनी शीशियां शलाका के सामने रख दीं।
“और अब हम कल सुबह नहा कर, पूजा करके इस अमृत को धारण करेंगे।” आर्यन के शब्दों में खुशी साफ झलक रही थी- “और ये तुम अपना मुंह घुमाकर क्या बात कर रही हो? मैं 3 महीने के बाद वापस आया हूं और तुम अजीब सी हरकतें कर रही हो।”
“क्या हम इसे अभी नहीं पी सकते?” शलाका ने पलटते हुए कहा- “सुबह का इंतजार करने से क्या फायदा?”
“नहीं हम इसे सुबह ही पीयेंगे।” आर्यन ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा।
“तो फिर हम अभी क्या करेंगे?” शलाका ने आर्यन की ओर देखते हुए पूछा।
“ये लो ये भी कोई पूछने की बात है?” आर्यन ने हंसकर शलाका को पकड़ लिया- “अभी हम सिर्फ और सिर्फ प्यार करेंगे।”
यह कहकर आर्यन ने वहां जल रही शमा को बुझा दिया। कमरे में अब पूरा अंधेरा छा गया था। इसी के साथ शलाका वापस वेदांत रहस्यम् के पास आ गई।
पर इस समय शलाका की आँखें, उसका चेहरा और यहां तक कि उसके बाल भी अग्नि के समान प्रतीत हो रहे थे क्यों कि जिस शलाका को वह अभी आर्यन के साथ देखकर आ रही थी, वह वो नहीं थी।
शलाका ने तुरंत अपनी भावनाओं को नियंत्रण में किया, नहीं तो उसकी अग्नि शक्ति से अभी वेदांत रहस्यम् भी जल जाती।
“काश....काश इस वेदांत रहस्यम् से भूतकाल को बदला जा सकता।” शलाका ने गुर्राकर कहा और जल्दी से वेदांत रहस्यम् का अगला पन्ना खोल दिया।
जारी रहेगा______![]()
Teeno ek to bilkul nahi hone chahiye, aur honge to bhi apun batayega nahiLets Review Starts
150 Update
Alien ya Dusre Planet Ke Log ke Bare Me Kuch cheeze Samne Aagayi Hain ,
Pehli Baat Samay Chakra , Nakstra aur Prince Oras Kya Teeno Ek Hi Hain Ya Oras Koi Dusra Vyakti Hain Jiske Pass Samay Shakti Hain
Ye bhi to ho sakta hai mitra ki apun ne abhi tak wo likha hi na ho?Ju ko Yaad Me Chapter Mention Ka Keh Raha Thaa Ki Mujhe Janna Hain Kis Kis Din Kya Huwa Ek Tarah Time Line Isse Mujhe Janna Thaa Ki Samay Shakti Kis Tarah Use huwi , Kya Jenith Ne Hi Usee Ki Thee Aisa Kuch Ya Koi Aur Bhi Thaa Samay Shakti Usee Wala
Nahi bhai nahi, vega klaat ka hi beta hai, and uski shakti kuch or hai, jo bas samne aane hi wali hai.Mujhe Pehle Laga Apne Vega Kaha Se Connect ho story me Kya Role Hoga Kahi aisa To Nahi Oras Hi vega Ho Jiska Hi Shakti Samay Chhakra Namak Yantra me Ho .
Iski Mujhe Possibility kam Lagi Lekin Vega ka Role Abhi Clear Nahi Huwa na issilye Usko Alien Se Jodd kar Dekha shayad Waha scope hain .
Aur Ye Jo Log
( Me Keh Raha Thaa Ki Kuch Suprise Dundha Mene Ye Wahi Suprise Thaa )
Kya pataAndronika shakti aakhir Kya Hain Jo Wo Allanka Itna Desperate Thaa Shaktiyo Lekar , aur Ye arena (orena ) kon Aggressive ladki aagayi
tumhaari soch ko 21 topo ki salaamiYe Ariyan Ke Yodha To atlas ke Alliance Thee Na Yani Space Ki Ladai ME ariyan Ke Soldier bahut Kaam Aayege achi Ki Jeet Ke Liye
haa ye baat 100% sach haiRemember Ulka Pind Bhi Gira Thaa Kuch Din Pehle Jarur Ye New aaksh Ganga Wale Oras Ko Dhunde Wale Hi Log Hoge.
Bilkul wahi haiAur Vidumna Ka Shayad Bahut se Reader Ne point Miss Kiya Hoga lekin Me Thehra James Bond Se Bhi Khatarnaak sari Story Ek Dum Bariki Se Padhta Hu Issilye Vidhumna Ye Kaalbuhu Ki Maa hi Hain .
Wo Trishal Aur kalika Jisko Pakdne Gaye Wahi wali
ShabbaashLekin Main Baat Jab Iss Update Me Vidhumna Ekdum Manavta ki Rakshak Jo Duniya Ka Bhala Chahti Hain Shanti isthapit Karna Chahti Hain To Jo hamne Pehle kuch Update Me Vidhumna Dekha Wo Kya Thee Jo Putra Moohh Me galat Kar Rahi Thee .
Shayad Shakti Aajane Se Vidumna Apne Marg Se Batak Gayi Thee Even Kuch Update Pehle Vidumna ne Trishal Se Kaha Thaa Prithvi pe Raksha Aur Devta ka Santulan Rokhna MAKSHAD hain Lekin Sarp Lene Ke Baad Bhi Abhi Tak Apna Lakshya Hasil Nahi Ki .
Ho sakta hai, lekin tri-shakti dand koi maamuli hathiyaar nahi hai, use har koi dhaaran nahi kar sakta,Ye Sarp Dand Kahi Aisa To Nahi Kisi Ne Vidumna se Cheen liya Current Me , Kya Bannketu Sajjan Mahushya Hain Ya Ye Chalak khopdi vidhumna ko Phashya Shakti ke Lalach Me .
Maana ki Vyom ek sajjan purus hai, aur uske pas panch-shool ki Shaktiya bhi hai, len ye mat bhoolo ki Vidumna ke paas Trishakti dand hai, jo panch shool se kahi adhik takatvar lag raha hai, haa Vyom ki saaririk shakti ka koi mukabla nahiVyom Bhaiya Yaha Aayege aur vidhumna Ko Marg Dikhayege Kyuki Vyom Bhaiya Ke Pass Bhi To panch Shol Hain Jo ki Mahashakti Hi Hain .
Thank you very much bhai, kosis katunga kal dopahar tak naya Update de saku
Overall shandaar Update Hamesha Ki Tarah
Waiting for More
Lets Review Newala Aur Octopus wala Update
Jindgi me Kabhi Pysics Samjh Nahi Aayi Lekin yaha Physics Ke Teacher Raj sharma Ne Bahut Ache Se explain Kiya Rotation Cycle
Yahi to baat hai mitra , ye tilism hai, yaha koi bhi cheej saralta se haasil nahi hotiSath Hi Pehli ka Jawab easy Lag Raha Ki Chhakar Hi Lagana Hain Lekin Tilism Ka Twist Ne Sochne Pe Majboor Kiya Ki Kese Nelva ko paar Kare
In logo ke paas yahi to hathiyaar hai dost, ek to in sabka saath, doosra inka dimaak,Cristi Aur Alex ka masti Bhara Andaaz ek Baar Fir Dikha
Sath hi Suyash and Company ki Chalaki dinn Ba Dinn Increase Hote Jarahi Hain.
Yahi to Twist hai Etru bhaiya, agar itna easily samajh jaaoge to apun kya khaakh likhegaSath Hi Octapus Me Kiss Tarah Ki Problem aayegi Kya octapos ki sare Pair Se Inke Ladai hogi Ya octopus Inko Jakad Lega Jissse Inko Bachna Hoga .
Thank you so much bhai
Overall Shandaar Update Hamesha Ki Tarah .
ThanksLets review start Today Update
Vedant Rahasya khul Jane Se Bahut Se sawal Ka Jawab MilGaya Bhai .
YessSuyash ko Jab Pata Chala Hoga Ki Aakriti ne Jo Dhoke diya Aur Uske sath Jo bhi Huwa Uska guilty Hi Hoga Jo Usne Apne Mout Ka swikar Kiya .
Dhurt hai woYani Aakriti Shuru Se Chalak Thee Jo Suysh Ke Sath Itna Bada Game Khel Diya usne
bilkul wo us samay bhi salaka ke roop me hi thi, tabhi to Ariyan dhokha kha gayaWese uss Samay Suyash Ne Aakriti Ko Pehchana Kyu Nahi Kya Uss Samay Usne Roop Badal Rakha Thaa Jo aakriti ka Chehra Abhi Shalaka Jesa Thaa wo Chehra uss Samy Se hi usne Dharan Kiya Thaa .
Emu wala chapter abhi saamne aayega, lekin yess ek boond Amrit ki Aakruti ne piya tha, aur doosri ko suyash ne kahi aur nipta diya, lekin kaha? Iska jabaab aage ke Update me de dengeYani 5000 hazar Saal se Aakriti Shakala Ke Chehre Ke Sath Ghum Rahi Hain Aur Dusri aakriti shayad Amratav ko Ghahan Ki Aur Jo Suyash Ke hisse Ka Amaratav Thaa Wo Amu Ne Gharhan Kiya .
Iss se kuch bhi siddh nahi hua beIsse Sidha Hota Hain Ammu Ko Amartav kA Vardan Hain
Haan, ye bhi sahi kah rahe ho, lekin Aakruti aur shalaka me kuch to anter hai hi dost, dono ki soch slag hai, baaki aage kya hoga, ye khud padho to jyada behtar haiSath Hi Jo Ending Me Shalaka Ne Aage Ki Book Band Ki Kahi Aisa Nahi Ho Ki Kuch Raaz Abhi Bhi Baki Ho Jo Shalaka Gusse me Dhyan Nahi Diye .
Ye Shalaka Ke Gusse me Kya Aakriti Fasegi Ya Suyash Ko Iss Sab Ka kasurwar manegi Bahut Badi Turning Point aagayi Story me Ya Ek perfect side Love relationship Arc create Kiya JARARA Jisme Sab Kuch Muskil Hi Hain.
Thanks brotherWo past Ke Garden Wale Scene Bahut Hi Badhiya Hi Describe Kiya Bhai , Chhoti Chhoti Scene Se Bahut Kuch Prenadayak scene Dikha Dete Ho Ab Yaha Insan Aur Janwaar Ki Feeling Hi Samjhaa Diye .
yahi sach hai dostEk Hi Shabad aakriti ke Liye iss ladki Ki Lalach Ne Bada Kand Kiya , Na ye Suyash Ke Piche Jati Na Suyash shalaka Ka Jewan Itna Problematic Rehta .
Ye abhi disclose hona baaki hai dostWese Kya Ju Ne Bata Diya Ki aakriti Ne Chhera Kese Shalaka Me Badla Ya Abhi Ye Sach Revel Nahi Huwa .
agar shalaaka gussa kare aur uski agni shakti Jagriti ho jaati hai to sab kuch tabaah ho sakta haiIss Update ka Sabse Bada Sawal Shalaka Gussa Kitna Nukshan Dayak Hoga
Overall Hamesha Ki Tarah shandaar Khatarnaak Update
Waiting for More
Raj_sharma Review Aagaya
Kya kar sakte hain bhai, yaha per story padhne wale kam aur ghapa ghap padhne wale jyada aate hain, idhar chaahe aap kitna bhi badhiya likh lo, koi matter nahi, lekin jisko Adultery ya Incest padhna hota use koi matlab nahi hai, ymere paas kewal wahi readers hain jinko story ki samajh hai, varna bohot se aaye, aur chale bhi gaye, mere 2-3 xise readers bhi hain, jo ki khud bohot badhiya lekhak bhi hain, lekin aajkal samay ke abhaav me aa nahi raheWese Dekh Raha Hu Raj_sharma Bhai story par Kitni Mehnat Karta Hain Kitni Research Kiya Karta Hain Fir Bhi Itna Response Kam
Agar aapko umda likhna hai to karna hi padegaItna details me Wo Jata Hain Kabhi Physics lekar Aajata Hain Kabhi Usko Religious books padhne Padhti Hogi Kyuki Bina Research Kese Likhega .
Aur apne ko chahiye bhi kya? Koi paise to milte nahi idhar,Jo sirf Likes kiya karte Hain wo Todha Do chaar lines likh diya karo bhaiya
Writers khus HoJata Hain isse .
Bilkul, maine ek baar socha bhi tha, ki bhale hi update kuch chhota de du, lekin kosis karta hu ki har doosre din update de du, suru me kabhi kabhi lagataar din update diya bhi, lekin jab response nahi mila to band kar diyaWriter ko khus karo Writer update dekar Ju logo ko khus kar dega update pe update dega .
Review likhna rocket science Todhe hain Jo Likhna Hi nahi aata
Bas update me Point pakdo aur unpe possibilities banao kya ye hosakta hain kya ye Nahi bas Easy Hain
Issiliye quality content ko uska sahi apprection Do Jo wo deserve karta hain