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Thank you very much for your valuable review and support bhaiBahut hi badhiya update diya hai Raj_sharma bhai....
Nice and beautiful update....

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#123
ये कैस्पर मायावन का कोई प्रहरी है क्या? कई पाठक मित्रों ने अपने मत दिए हैं कि शेफाली मैग्ना हो सकती है। ज़रूर हो सकती है। राज यूनिवर्स में कुछ भी अजीबोगरीब बात संभव है। वैसे भी पेंगुईन ने शेफाली को देख कर मैग्ना लिखा था बर्फ़ पर। (वैसे बहुत पढ़ा लिखा था वो पेंगुईन -- अपनी “स्त्री” जैसा)
Bilkul bhai, Tilisma me wahi hone wala hai, हरेक स्टेज और कठिन, और ज्यादा विस्तृत होगी, जो ना कभी देखी, सुनी होगी, बल्की उसका आधार भी लौकिक और परालोकिक होगा।कैस्पर का यह कथन, “और वैसे भी मेरा कृत्रिम स्वरुप तिलिस्मा के हर प्रकार के निर्माण में सक्षम है” -- क्या तिलिस्मा एक adaptive simulation है? क्योंकि मानवों से यह अपेक्षित था कि वो तिलिस्मा को तोड़ें। अगर यह adaptive हो जाएगा, तो आने वाली हर बाधा पहले वाली बाधा से और कठिन हो जायेगी। वैसे सही में - अब ये नक्षत्रलोक क्या बला है?
सहमतक्रिस्टी का कहना सही है - हर स्टेज की बाधा का समाधान वहीं उसी स्टेज में उपलब्ध है।
#124
“यह जंगल बनाने वाले ने इतना बड़ा प्रोजेक्ट बनाया...अरे एक शॉपिंग मॉल भी खोल देता, तो उसका क्या जाता?” -- हा हा हा हा हा!![]()
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सही है! मरना है, तो कम से कम स्टाइल से मरें!
बिल्कुल भाई । तौफीक एक योग्य व्यक्ति है, वो कई बार बहुत काम का साबित कर चुका है खुद को।शेफाली के पास उस ड्रेस के रूप में एक और शक्ति आ गई है। इतना तो तय लग रहा है कि शेफ़ाली तिलिस्मा के अंत तक जाएगी। जेनिथ और सुयश भी। क्रिस्टी अपनी तार्किकता का इस्तेमाल कर के इसका पार पा सकती है। तौफ़ीक़ का कुछ कह नहीं सकते। हाँलाकि काम का आदमी है वो।
“वेगू डार्लिंग” -- हा हा हा हा हा!
अच्छा है -- कहानी में अगर हास्य न हो, तो बहुत सीरियस बन जाती है। good job!!
प्रेम चीज ही ऐसी है जो दुश्मन को भी दोस्त बना दे। ऐसा ही वीनस के साथ हुआ। धरा का भी ह्रदय परिवर्तन हुआ, उसका भ्राता प्रेम जाग गयावेगा के मुँह से अपने लिए ‘बड़ी बहन’ सम्बोधन सुन कर धरा का हृदय परिवर्तन हो गया। उधर वीनस सीनोर की राजकुमारी निकली।
बेचारा वेगा हर तरफ़ से दुश्मन शक्तियों से घिरा हुआ था। लेकिन प्रेम की भाषा सुन कर ‘अहिंसक’ अंगुलिमाल की ही तरह सभी का हृदय परिवर्तन हो गया।
ये लुफ़ासा बहुत लम्पट है। बहन की ख़ुशी बर्दाश्त नहीं हो रही है उससे!
इसके बारे में अभी कुछ नहीं कह सकता गुरु ।#125
उल्कापिण्ड -- ये नई वाली बला क्या है? ये प्राकृतिक रूप से आया है या किसी ने भेजा है? अगर दूसरा ऑप्शन सही है, तो किसने भेजा है?
वैसे ऐसा उल्कापिण्ड जिसके पृथ्वी के वातावरण में आने से भूकंप आने लगे, जब वो पृथ्वी से टकराएगा तो लोग ऐसे सामान्य नहीं रह सकते। उस टक्कर का भारी परिणाम होता है। अतः, यह उल्कापिण्ड नहीं -- कोई यान होगा।
सत प्रतिशत सहमत“बच्चों ! आपको जहां जाना हो जाओ, जिस चीज से खेलना हो खेलो, जो तोड़ने का मन करे तोड़ दो, सिवाय अपने मन के। किसी चीज पर कोई पाबंदी नहीं है। आप जिस चीज को तोड़ोगे, वह अपने आप पुनः जुड़ जायेगी। इसलिये कोई डरने की जरुरत नहीं है।” : बच्चों पर हम नाहक ही ढेरों पाबंदियाँ लगा देते हैं। अक्सर ये पाबंदियाँ हम अपनी सुविधा के लिए लगाते हैं (जैसे, शोर मत मचाओ --- जिससे हम आराम से सो सकें), उनको कुछ सिखाने या उनकी कल्पनाशक्ति बढ़ाने के लिए नहीं! भारतीय बच्चे इसीलिए critical and independent thinking, problem solving, सृजनात्मकता, खेल कूद, इत्यादि में फ़िसड्डी रहते हैं।
हाँ, जहाँ रटने और रट कर उगलने की आवश्यकता आती है, वो वहाँ अपनी दक्षता दिखा देते हैं।
Bhai kitni bhi sakti hasil kar le koi, lekin tilisma me ye kuch bhi kaam na aayega#126
चलो, अंत में किसी को जेनिथ के व्यवहार में परिवर्तन महसूस हो ही गया। और अच्छी बात है कि उसने सभी को नक्षत्रा के बारे में बता भी दिया। कम से कम सभी को आश्वासन रहेगा कि एक और चमत्कारिक शक्तिओं की मालकिन उनके संग है।
“ले लो मजा... दबालो और बटन को....” -- हा हा हा हा!![]()
वो रहस्यमई वस्तु, हैरी पॉटर के क्विडिच खेलों वाली “स्निच” के जैसी है।
वैसे ध्वनि की गति जो आपने बताई है, वो केवल हवा में होती है। पानी, या अन्य ठोस धातुओं में उसकी गति भिन्न और तेज़ होती है। उसी तरह प्रकाश की गति भी निर्वात में ही सबसे तेज़ होती है। अन्य माध्यमों में वो धीरे चलता है।
वैसे “फेंकूचंद” नाम से मुझे एक महामानव की याद आ गई! हा हा हा हा हा!!!
अपने चोपड़ा साहब उसका दसवाँ हिस्सा भी नहीं फेंक पाते, और उतने में ही उनको ओलिंपिक के स्वर्ण/रजत पदक मिल जाते हैं!
अद्भुत#127
विष्णु भगवान के छः हथियारों का बढ़िया वर्णन किया है और वो भी उनके नामों के साथ! वाह भाई!
बहुत ही बढ़िया। पाठकों का सामान्य ज्ञान बढ़ेगा यह अंक पढ़ कर!! वैसे सांकेतिक रूप से देखें, तो -- सुदर्शन चक्र, समय और धर्म का चक्र है, जो अधर्म को नष्ट करता है; कौमोदकी गदा अज्ञानता को नष्ट करने वाली शक्ति है; शारंग धनुष लक्ष्य साधने की शक्ति है; नंदक खड्ग ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक है; और पाञ्चजन्य शंख सृजन और शुभ स्थितियों की ध्वनि! अंत में पद्म - वो तो पवित्रता, करुणा, सौंदर्य, शांति और समृद्धि का प्रतीक है।
इसका विवरण आगे आने ही वाला है।वैसे त्रिषाल था कौन? उसको ध्वनि शक्ति क्यों चाहिए थी?
नहीं भाई नहीं , वह कोई और है।#128
“मैं इस बालक को ऐसी जगह छिपाऊंगा, जहां तुम कभी भी नहीं पहुंच सकती। यही तुम्हारी करनी का उचित दंड होगा।” -- यह दण्ड कहीं मैग्ना को तो नहीं दे रहा था कोई?
इतना तो बनता है। वरना आप सब बोर होकर गाली देते।“पर ये तो देवी नहीं आंटी निकलीं।” -- हा हा हा हा हा!![]()
वो भी काफी धूर्त है भाई , उसकी करणी आगे पता चलेगा।अंत में आकृति और शलाका आमने सामने आ ही गईं। वैसे आकृति भी तो मजबूरी ही में शलाका वाला स्वाँग कर रही है, नहीं तो उसकी जान खुद की खतरे में आ जानी है।
ऐसा नही है मित्र, जरा याद करिए अपडेट मे, जब सुयश उस किताब को पढ़ रहा था तो उसका सिर फटनें को हो गया था।, और जैसे ही दूर रक्खी किताब को बंद किया गया , सर दर्द ठीक हो गया। सुयश को यह किताब अभी पढ़ने को देना, मतलब उसे मौत से खेलने देना।#129
जब 'वेदांत रहस्यम' खुद सुयश ने लिखी है, तो उसको पढ़ने से क्यों रोक रही है शलाका? आइंस्टीन से ज्यादा जानती है क्या वो?
ये औरतें भी न -- मान न मान, मैं तेरी अम्मा वाले रोल में आ जाती है, न जाने क्यों! हो सकता है कि उस किताब को पढ़ कर उसकी स्मरण शक्ति / स्मृति वापस आ जाए!
बस मिलने ही वाला है सरकारभाई भाई! ये दोनों प्रेमी नहीं, बल्कि पति पत्नी निकले! पिज़्ज़ा नहीं, लड्डू, बर्फ़ी, इमरती, रसगुल्ले, मालपुए… ये सब मँगाने चाहिए थे! अब भाई क्रिस्टी वाला भी दिलवा दो उसको!![]()
आप सब का प्यार और सहयोग है भाईRaj_sharma भाई - यह कहानी कालजई है! बहुत ही बढ़िया।
यह फ़ोरम इतनी उत्कृष्ट कृति के योग्य नहीं। अति उत्तम!
अति उत्तम!![]()
Nice update....#129.
शलाका ने त्रिशूल को अपने मस्तक से लगा कर कुछ देर के लिये आँखें बंद कर लीं।
कुछ देर बाद शलाका ने अपनी आँखें खोलीं और कहा- “क्षमा करना क्रिस्टी, पर ऐलेक्स को मैं ढूंढ पाने में असमर्थ हूं, शायद वह पृथ्वी के किसी भी भाग में उपस्थित नहीं है।”
“क्या वो......मर चुका है?” क्रिस्टी ने डरते-डरते पूछा।
“नहीं...वो मरा नहीं है, पर शायद वह किसी ऐसे लोक में है, जो पृथ्वी की सतह से परे है। चिंता ना करो क्रिस्टी, ईश्वर ने चाहा तो वह जल्द ही तुमसे आकर मिलेगा।” शलाका ने क्रिस्टी को सांत्वना देते हुए कहा-
“तुम्हारी दूसरी इच्छा मैं पूरी किये देती हूं।”
कहकर शलाका ने पुनः अपना हाथ हवा में हिलाया। जिससे शैफाली को छोड़ वहां खड़े सभी लोगों के शरीर पर पहनी ड्रेस बदल गयी।
सभी की नयी ड्रेसेज, उनकी पसंद की थीं।
“तुम्हें कुछ नहीं चाहिये क्या आर्यन?” शलाका ने सुयश की आँखों में झांकते हुए प्यार से पूछा।
“मुझे तो सिर्फ सवालों के जवाब चाहिये बस।” सुयश ने कहा।
“पूछो...क्या पूछना चाहते हो?” शलाका ने कहा- “जहां तक सम्भव होगा, मैं तुम्हारे सवालों का जवाब दूंगी।”
“क्या मैं पिछले जन्म में आर्यन था?” सुयश ने पहला प्रश्न किया।
“हां, तुम्हारे पिछले जन्म का नाम आर्यन था।” शलाका ने जवाब दिया।
“तुमने कहा कि तुम 5000 वर्ष से मुझसे दूर थी। तो अगर मैं 5000 वर्ष पहले मर गया था तो इतने वर्षों के बाद मेरा जन्म क्यों हुआ?
“इसका उत्तर इसी लाल किताब ‘वेदान्त रहस्यम्’ में है, पर किसी कारण से मैं यह तुम्हें अभी नहीं बता सकती।“
“इस लाल किताब में!” सुयश के शब्दों में आश्चर्य भर गया- “इस लाल किताब से मेरा क्या रिश्ता है?”
“वेदान्त रहस्यम् मरने से पूर्व तुमने ही लिखी थी, मैं स्वयं इस किताब को इतने वर्षों से ढूंढ रही थी, मुझे भी इस किताब से कई सवालों के जवाब चाहिये।”
“वह दूसरी शलाका कौन थी?”
“अभी मुझे पक्का नहीं पता, पर वो शलाका शायद आकृति थी।” कहते-कहते शलाका के चेहरे पर गुस्से के निशान आ गये।
“वह यह वेदान्त रहस्यम् क्यों छीनना चाहती थी? और तौफीक इस लाल किताब से उसके पास कैसे पहुंच गया था?”
“वेदान्त रहस्यम् में वेदालय की शिक्षा समाप्त होने के बाद के कुछ रहस्य हैं। यह वेदान्त रहस्यम् पूरे ब्रह्मांड का द्वार है, इसके हर पृष्ठ पर व्यक्तियों और स्थानों के अनेकों चित्र अंकित हैं, किसी भी चित्र को छूकर उस व्यक्ति या स्थान के पास जाया जा सकता है। शायद आकृति भी इस किताब के माध्यम से किसी ऐसी जगह पर जाना चाहती है, जिसके बारे में उसे पता नहीं है।”
“तुम देवी हो, मैं, यानि आर्यन मर चुका है, फिर आकृति इतने वर्षों से जिंदा कैसे है?”
“शायद उसने अमृतपान कर रखा है, इसलिये वह अमर हो गयी है।”
“आकृति का चेहरा तुमसे कैसे मिल रहा है? क्या वह रुप बदलने की कला भी जानती है?”
“नहीं...मेरी जानकारी के हिसाब से आकृति रुप बदलने की कला नहीं जानती, पर जब मैं इतने वर्षों से शीतनिद्रा में थी, तो अवश्य ही आकृति ने कुछ और भी शक्तियां प्राप्त की होंगी, पर उसके बारे में अभी मुझे कुछ नहीं पता।”
“तुमने आज से पहले मुझसे सम्पर्क करने की कोशिश क्यों नहीं की?”
“जब देवालय से अपनी पढ़ाई समाप्त करने के बाद तुम गायब हो गये और कई वर्षों तक नहीं मिले, तो मैंने गुरु नीलाभ से तुम्हारे बारे में पूछा। उन्होंने बताया कि तुम्हारा वो जन्म पूरा हो चुका है, अब तुम 5000 वर्षों के बाद ही दूसरा जन्म लेकर मुझसे मिलोगे। इसलिये मैंने भी स्वयं को 5000 वर्षों के लिये शीतनिद्रा में डाल दिया था। मैं भी अभी कुछ दिन पहले ही शीतनिद्रा से जागी हूं।
“शीतनिद्रा से जागते ही मैंने अपनी शक्तियों से तुम्हें ढूंढा। तुम उस समय मेरे मंदिर में मेरी मूर्ति छूने जा रहे थे। देवताओं के आशीर्वाद से मेरी उस मूर्ति को छूने वाला हर इंसान मारा जाता है, जैसे ही तुम मेरी मूर्ति छूने चले मैंने अपनी कुछ शक्तियां तुम्हारे शरीर पर बने टैटू में डाल दीं, जिससे तुम मेरी मूर्ति छूने के बाद भी बच गये।
उन्हीं शक्तियों ने बाद में तुम्हें आदमखोर पेड़ और बर्फ के ड्रैगन से बचाया और जब आज मैंने तुम्हें इस किताब और दूसरी शलाका के साथ देखा तो मैं अपने आप को रोक नहीं पायी।
इस द्वीप के हर एक भाग पर इसके रचयिता का अधिकार है, जो सदैव देवताओं के सम्पर्क में रहता है। अगर उसने मुझे तुम्हें यह सब बताते देख लिया तो मैं भी मुसीबत में पड़ सकती हूं।”
“इस द्वीप का रचयिता कौन है?”
“यह बात मुझे नहीं पता क्यों कि यह बात मेरे जन्म से लगभग 14000 वर्ष पहले की है। अगर मैं शीतनिद्रा में नहीं होती तो शायद इस बात को अब तक जान चुकी होती।”
“मेरे इस टैटू के निशान को तो मैंने इस जन्म में बनवाया था, फिर इसकी आकृति तुम्हारे महल में कैसे दिख रही थी?”
“आर्यन ने एक बार वेदालय में एक प्रतियोगिता के बीच में सूर्यलेखा नाम की एक कन्या की जान बचाई थी और उसे अपनी बहन के रुप में स्वीकार किया था, उस समय तक आर्यन को नहीं पता था कि सूर्यलेखा भगवान सूर्य की पुत्री हैं।
"बाद में भगवान सूर्य ने तुम्हें यह आशीर्वाद दिया था कि तुम हर जन्म में सूर्यवंश में ही जन्म लोगे और हर जन्म में यह सूर्य की आकृति किसी ना किसी प्रकार से तुम्हें प्राप्त हो जायेगी। बाद में इसी सूर्य की आकृति से भगवान सूर्य तुम्हारी किसी ना किसी प्रकार से रक्षा करते रहेंगे।”
“ऐमू को अमरत्व कैसे प्राप्त हुआ?”
“ऐमू को जो हम लोग समझते हैं, वह वो नहीं है। उसमें कुछ राज छिपा है जो मैं तुम्हें समय आने पर बताऊंगी।”
“जब भी मैं तुम्हारी मूर्ति को छूता था, मुझे उसका स्पर्श तुम्हारे शरीर के समान लगता था। ऐसा कैसे होता था? और एक बार तो तुम्हारी मूर्ति छूने पर मुझे आर्यन की आवाज भी सुनाई दी थी। वह सब कैसे हो रहा था?”
“ये चीजें भी सबके सामने पूछोगे क्या?” शलाका ने अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कुराते हुए कहा- “अरे मैं तुम्हें हमेशा से देख रही थी, अब ये मौका भी अपने हाथ से जाने देती क्या?”
“हम लोगों ने कुछ नहीं सुना, हम लोग तो पिज्जा खा रहे हैं। आप लोग अपनी बातों को जारी रखें।” शैफाली ने ही-ही करके हंसते हुए कहा और फिर से पिज्जा खाने में जुट गयी।
“तुम्हारे महल में मौजूद वह सिंहासन कैसा था? जिसकी वजह से मैं समय-यात्रा पर चला गया था।”
“वह सिंहासन हमारी शादी पर हमें यतिराज हनुका ने दिया था।”
“एक मिनट...तुमने कहा कि हमारी शादी पर...!” सुयश ने आश्चर्य से कहा- “क्या हमारी शादी हो चुकी थी?”
“जल्दी-जल्दी पिज्जा खाओ सब लोग, उधर एक पार्टी की तैयारी और हो गई है।” शैफाली ने सबको सुयश और शलाका की ओर इशारा करते हुए कहा।
वैसे तो सभी को दोनों के सभी शब्द सुनाई दे रहे थे, फिर भी शैफाली के इस तरह से कहने से सभी जोर से हंस दिये।
“वो...वो....मैं अभी बताना तो नहीं चाहती थी...पर गलती से मुंह से निकल गया। पर सच यही है कि हमारी शादी हो चुकी थी।” शलाका ने सिर झुका कर धीरे से शर्माते हुए कहा।
“हाय..हाय भाभी क्या शर्माती हैं।” क्रिस्टी ने भी चटकारा लेते हुए कहा- “भैया की तो निकल पड़ी। एक मेरा वाला है, पता नहीं कौन से पाताल में चला गया?”
सुयश ने घूरकर क्रिस्टी को देखा और फिर धीरे से हंस दिया।
“हां तो मैं बता रही थी कि वह सिंहासन हनुका ने दिया था और उस से समय यात्रा संभव है। हनुका ने वह सिंहासन इसी लिये दिया था कि हमें जब भी वेदालय की याद आये तो हम उस सिंहासन से वेदालय के समय में जाकर अपनी यादों को ताजा कर सकें।” शलाका ने कहा।
“वेदालय का निर्माण क्यों किया गया?”
“महागुरु नीलाभ ने इस ब्रह्मांड की रक्षा के लिये 6 जोड़ों का चुनाव किया। 10 वर्ष तक उन सभी जोड़ों को वेदों के द्वारा शिक्षा देकर महायोद्धा का रुप दिया गया। उन सभी महायोद्धाओं को अमृतपान करा के एक लोक दिया जाना था, जहां से उन्हें अनंतकाल तक पृथ्वी की रक्षा करनी थी। बाकी के 5 जोड़ों ने अमृतपान करके एक-एक लोक संभाल लिया, पर हमने ऐसा नहीं किया।”
“हमने क्यों ऐसा नहीं किया?”
“क्यों कि हमें आपस में शादी करनी थी और कोई भी महायोद्धा आपस में शादी नहीं कर सकता था इस लिये हमने सारी शक्तियों का त्याग कर दिया और शादी कर ली।”
“जब वेदालय में बाकी के 5 जोड़े थे, तो मैं, तुम और आकृति 3 लोग क्यों थे?”
“वेदालय में तुम और आकृति जोड़े में ही आये थे। मैं अकेली आयी थी।”
“तो महागुरु नीलाभ ने तुम्हें हमारे साथ क्यों रखा?”
“इसके बारे में मुझे भी पता नहीं है। यही तो वह एक परेशानी थी, जिसने हमें 5000 वर्ष तक मिलने का इंतजार कराया।” यह बात बताते समय शलाका की आवाज में दुख ही दुख भर गया।
“फिर शादी के बाद मेरी मृत्यु कैसे हुई?”
“तुम्हें कोई नहीं मार सकता था, तुमने स्वयं अपनी मृत्यु का वरण किया था।”
“मैं भला स्वयं को क्यों मारने लगा और वह भी तब जबकि तुमसे मेरी शादी भी हो चुकी थी।”
“इसी बात का राज तो मुझे भी जानना है और मुझे पूरी उम्मीद है कि इस रहस्य को तुमने ‘वेदान्त रहस्यम्’ में अवश्य लिखा होगा। इसीलिये मैं इस किताब का हजारों वर्षों से मिलने का इंतजार कर रही थी।”
“ऐसा क्या है इस किताब में....मैं भी इसे पढ़ना चाहता हूं।”
“अभी यह किताब मैं लेकर जाऊंगी ....क्यों कि जब तक तुम्हें, तुम्हारी पूरी स्मरण शक्ति ना मिल जाये, तब तक मैं तुम्हें यह किताब पढ़ने नहीं दे सकती।”
“क्यों? तुम आखिर ऐसा क्यों कर रही हो?”
“क्यों कि मैं तुम्हें दोबारा नहीं खोना चाहती और इस किताब में कुछ ना कुछ तो अवश्य ऐसा है, जो अभी तुम्हारे लिये सही नहीं है और वैसे भी इस मायावन में प्रवेश करने के बाद बिना तिलिस्म तोड़े कोई भी बाहर नहीं निकल सकता।”
“अब यह तिलिस्म क्या बला है? क्या आगे और भी मुसीबतें आने वाली हैं?”
“यह द्वीप अटलांटिस का अवशेष है, यह एक कृत्रिम द्वीप है, जिसकी रचना देवताओं ने करवाई थी। इस द्वीप को 4 भागों में विभक्त किया गया है। 2 भाग में सामरा और सीनोर राज्य बनाया गया, जहां इस
द्वीप के पुराने निवासी रहते हैं। तीसरे भाग में मायावन है, जिसमें आप लोग अभी हैं। द्वीप के चौथे भाग को एक खतरनाक तिलिस्म में परिवर्तित किया गया है, जिसे तिलिस्मा कहते हैं। उस तिलिस्मा में 28 द्वार हैं, हर द्वार में एक खतरा छिपा हुआ है। जो भी व्यक्ति इस मायावन में प्रवेश करेगा, वह बिना तिलिस्म तोड़े इस द्वीप से जा नहीं सकता।”
“हे भगवान....यानि की अभी असली मुसीबतें तो शुरु भी नहीं हुईं हैं।” जेनिथ ने अपना सिर पकड़ते हुए कहा- “और जब यह वन ही इतना खतरनाक है, तो वह तिलिस्मा कितना खतरनाक होगा?”
तौफीक और क्रिस्टी भी यह सुन पिज्जा खाना छोड़ शलाका का मुंह देखने लगे।
“आप तो इस द्वीप की देवी हैं। आप तो हमें यहां से निकाल सकती हैं।” क्रिस्टी ने कहा।
“नहीं निकाल सकती....इस द्वीप का पूरा नियंत्रण देवता पोसाइडन ने किसी व्यक्ति को दे रखा है। वह कहां रहता है? और कैसे तिलिस्म का निर्माण करता है? यह मुझे भी नहीं पता। यहां इस मायावन में तो मैं या फिर कोई दूसरी चमत्कारी शक्ति तुम्हारी मदद कर भी देगी, पर तिलिस्मा के अंदर तो कोई चमत्कारी शक्ति भी काम नहीं करती, वहां मैं तो क्या कोई भी तुम्हारी मदद नहीं कर पायेगा?”
“हे भगवान यानि की मरना निश्चित है।” क्रिस्टी ने दुखी स्वर में कहा।
“ऐसा नहीं है, मुझे पता है कि तुम लोग उस तिलिस्मा को अवश्य पार कर लोगे। तुम सभी में विलक्षण प्रतिभाएं हैं और आर्यन तुम्हारे साथ है। आर्यन ने तो देवताओं की धरती पर लगभग सारी प्रतियोगिताएं जीती हैं और तुम लोगों ने देखा कि पहले तुम लोग छोटी से छोटी चीज पर घबरा जाते थे, पर पिछले कुछ दिनों में तुमने स्पाइनोसोरस, टेरोसोर, रेत मानव और ड्रैगन जैसे विशाल जानवरों और मुसीबतों का हराया है, यह काम कोई साधारण इंसान नहीं कर सकता। इसलिये मुझे पूरी उम्मीद है कि तुम लोग तिलिस्मा को तोड़कर ही इस द्वीप से बाहर निकलोगे।”
शलाका के शब्दों ने सभी में उत्साह भर दिया।
“अच्छा अब मुझे जाने की आज्ञा दो।” शलाका ने सुयश को देख मुस्कुराते हुए कहा।
सुयश के पास अब कोई प्रश्न नहीं बचा था, इसलिये उसने धीरे से अपना सिर हिलाकर शलाका को आज्ञा दे दी।
“आप लोगों को कुछ करना हो तो हम लोग अपना चेहरा दूसरी ओर घुमा लें।” क्रिस्टी ने शलाका को छेड़ते हुए कहा।
क्रिस्टी की बात सुन शलाका के चेहरे पर एक भीनी सी मुस्कान बिखर गयी, उसने सुयश की आँखों में झांका और पास आकर सुयश के गले लग गयी-
“इस बार जिंदा वापस आना, मैं 5000 वर्ष के लिये और नहीं सो सकती।” यह कहकर शलाका ने धीरे से सुयश के गालों को चूमा और लाल किताब ले, अपने त्रिशूल को हवा में लहरा कर गायब हो गयी।
सुयश ना जाने कितनी देर तक वैसे ही खड़ा रहा, फिर धीरे-धीरे चलता हुआ बाकी सबके पास आकर पिज्जा खाने लगा, पर उसकी आँखों में एक अधूरी चाहत साफ नजर आ रही थी।
अब वह जीना चाहता था, अपने नहीं किसी और के लिये, जिसने उसके लिये अपना अमरत्व त्याग दिया था।
जिसने उसका 5000 वर्षों तक इंतजार किया था, जो हर पल उस पर नजर रख रही थी, उसकी सुरक्षा के लिये....उसकी नयी जिंदगी की कामना के लिये।”
जारी रहेगा_______![]()
Superb update#129.
शलाका ने त्रिशूल को अपने मस्तक से लगा कर कुछ देर के लिये आँखें बंद कर लीं।
कुछ देर बाद शलाका ने अपनी आँखें खोलीं और कहा- “क्षमा करना क्रिस्टी, पर ऐलेक्स को मैं ढूंढ पाने में असमर्थ हूं, शायद वह पृथ्वी के किसी भी भाग में उपस्थित नहीं है।”
“क्या वो......मर चुका है?” क्रिस्टी ने डरते-डरते पूछा।
“नहीं...वो मरा नहीं है, पर शायद वह किसी ऐसे लोक में है, जो पृथ्वी की सतह से परे है। चिंता ना करो क्रिस्टी, ईश्वर ने चाहा तो वह जल्द ही तुमसे आकर मिलेगा।” शलाका ने क्रिस्टी को सांत्वना देते हुए कहा-
“तुम्हारी दूसरी इच्छा मैं पूरी किये देती हूं।”
कहकर शलाका ने पुनः अपना हाथ हवा में हिलाया। जिससे शैफाली को छोड़ वहां खड़े सभी लोगों के शरीर पर पहनी ड्रेस बदल गयी।
सभी की नयी ड्रेसेज, उनकी पसंद की थीं।
“तुम्हें कुछ नहीं चाहिये क्या आर्यन?” शलाका ने सुयश की आँखों में झांकते हुए प्यार से पूछा।
“मुझे तो सिर्फ सवालों के जवाब चाहिये बस।” सुयश ने कहा।
“पूछो...क्या पूछना चाहते हो?” शलाका ने कहा- “जहां तक सम्भव होगा, मैं तुम्हारे सवालों का जवाब दूंगी।”
“क्या मैं पिछले जन्म में आर्यन था?” सुयश ने पहला प्रश्न किया।
“हां, तुम्हारे पिछले जन्म का नाम आर्यन था।” शलाका ने जवाब दिया।
“तुमने कहा कि तुम 5000 वर्ष से मुझसे दूर थी। तो अगर मैं 5000 वर्ष पहले मर गया था तो इतने वर्षों के बाद मेरा जन्म क्यों हुआ?
“इसका उत्तर इसी लाल किताब ‘वेदान्त रहस्यम्’ में है, पर किसी कारण से मैं यह तुम्हें अभी नहीं बता सकती।“
“इस लाल किताब में!” सुयश के शब्दों में आश्चर्य भर गया- “इस लाल किताब से मेरा क्या रिश्ता है?”
“वेदान्त रहस्यम् मरने से पूर्व तुमने ही लिखी थी, मैं स्वयं इस किताब को इतने वर्षों से ढूंढ रही थी, मुझे भी इस किताब से कई सवालों के जवाब चाहिये।”
“वह दूसरी शलाका कौन थी?”
“अभी मुझे पक्का नहीं पता, पर वो शलाका शायद आकृति थी।” कहते-कहते शलाका के चेहरे पर गुस्से के निशान आ गये।
“वह यह वेदान्त रहस्यम् क्यों छीनना चाहती थी? और तौफीक इस लाल किताब से उसके पास कैसे पहुंच गया था?”
“वेदान्त रहस्यम् में वेदालय की शिक्षा समाप्त होने के बाद के कुछ रहस्य हैं। यह वेदान्त रहस्यम् पूरे ब्रह्मांड का द्वार है, इसके हर पृष्ठ पर व्यक्तियों और स्थानों के अनेकों चित्र अंकित हैं, किसी भी चित्र को छूकर उस व्यक्ति या स्थान के पास जाया जा सकता है। शायद आकृति भी इस किताब के माध्यम से किसी ऐसी जगह पर जाना चाहती है, जिसके बारे में उसे पता नहीं है।”
“तुम देवी हो, मैं, यानि आर्यन मर चुका है, फिर आकृति इतने वर्षों से जिंदा कैसे है?”
“शायद उसने अमृतपान कर रखा है, इसलिये वह अमर हो गयी है।”
“आकृति का चेहरा तुमसे कैसे मिल रहा है? क्या वह रुप बदलने की कला भी जानती है?”
“नहीं...मेरी जानकारी के हिसाब से आकृति रुप बदलने की कला नहीं जानती, पर जब मैं इतने वर्षों से शीतनिद्रा में थी, तो अवश्य ही आकृति ने कुछ और भी शक्तियां प्राप्त की होंगी, पर उसके बारे में अभी मुझे कुछ नहीं पता।”
“तुमने आज से पहले मुझसे सम्पर्क करने की कोशिश क्यों नहीं की?”
“जब देवालय से अपनी पढ़ाई समाप्त करने के बाद तुम गायब हो गये और कई वर्षों तक नहीं मिले, तो मैंने गुरु नीलाभ से तुम्हारे बारे में पूछा। उन्होंने बताया कि तुम्हारा वो जन्म पूरा हो चुका है, अब तुम 5000 वर्षों के बाद ही दूसरा जन्म लेकर मुझसे मिलोगे। इसलिये मैंने भी स्वयं को 5000 वर्षों के लिये शीतनिद्रा में डाल दिया था। मैं भी अभी कुछ दिन पहले ही शीतनिद्रा से जागी हूं।
“शीतनिद्रा से जागते ही मैंने अपनी शक्तियों से तुम्हें ढूंढा। तुम उस समय मेरे मंदिर में मेरी मूर्ति छूने जा रहे थे। देवताओं के आशीर्वाद से मेरी उस मूर्ति को छूने वाला हर इंसान मारा जाता है, जैसे ही तुम मेरी मूर्ति छूने चले मैंने अपनी कुछ शक्तियां तुम्हारे शरीर पर बने टैटू में डाल दीं, जिससे तुम मेरी मूर्ति छूने के बाद भी बच गये।
उन्हीं शक्तियों ने बाद में तुम्हें आदमखोर पेड़ और बर्फ के ड्रैगन से बचाया और जब आज मैंने तुम्हें इस किताब और दूसरी शलाका के साथ देखा तो मैं अपने आप को रोक नहीं पायी।
इस द्वीप के हर एक भाग पर इसके रचयिता का अधिकार है, जो सदैव देवताओं के सम्पर्क में रहता है। अगर उसने मुझे तुम्हें यह सब बताते देख लिया तो मैं भी मुसीबत में पड़ सकती हूं।”
“इस द्वीप का रचयिता कौन है?”
“यह बात मुझे नहीं पता क्यों कि यह बात मेरे जन्म से लगभग 14000 वर्ष पहले की है। अगर मैं शीतनिद्रा में नहीं होती तो शायद इस बात को अब तक जान चुकी होती।”
“मेरे इस टैटू के निशान को तो मैंने इस जन्म में बनवाया था, फिर इसकी आकृति तुम्हारे महल में कैसे दिख रही थी?”
“आर्यन ने एक बार वेदालय में एक प्रतियोगिता के बीच में सूर्यलेखा नाम की एक कन्या की जान बचाई थी और उसे अपनी बहन के रुप में स्वीकार किया था, उस समय तक आर्यन को नहीं पता था कि सूर्यलेखा भगवान सूर्य की पुत्री हैं।
"बाद में भगवान सूर्य ने तुम्हें यह आशीर्वाद दिया था कि तुम हर जन्म में सूर्यवंश में ही जन्म लोगे और हर जन्म में यह सूर्य की आकृति किसी ना किसी प्रकार से तुम्हें प्राप्त हो जायेगी। बाद में इसी सूर्य की आकृति से भगवान सूर्य तुम्हारी किसी ना किसी प्रकार से रक्षा करते रहेंगे।”
“ऐमू को अमरत्व कैसे प्राप्त हुआ?”
“ऐमू को जो हम लोग समझते हैं, वह वो नहीं है। उसमें कुछ राज छिपा है जो मैं तुम्हें समय आने पर बताऊंगी।”
“जब भी मैं तुम्हारी मूर्ति को छूता था, मुझे उसका स्पर्श तुम्हारे शरीर के समान लगता था। ऐसा कैसे होता था? और एक बार तो तुम्हारी मूर्ति छूने पर मुझे आर्यन की आवाज भी सुनाई दी थी। वह सब कैसे हो रहा था?”
“ये चीजें भी सबके सामने पूछोगे क्या?” शलाका ने अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कुराते हुए कहा- “अरे मैं तुम्हें हमेशा से देख रही थी, अब ये मौका भी अपने हाथ से जाने देती क्या?”
“हम लोगों ने कुछ नहीं सुना, हम लोग तो पिज्जा खा रहे हैं। आप लोग अपनी बातों को जारी रखें।” शैफाली ने ही-ही करके हंसते हुए कहा और फिर से पिज्जा खाने में जुट गयी।
“तुम्हारे महल में मौजूद वह सिंहासन कैसा था? जिसकी वजह से मैं समय-यात्रा पर चला गया था।”
“वह सिंहासन हमारी शादी पर हमें यतिराज हनुका ने दिया था।”
“एक मिनट...तुमने कहा कि हमारी शादी पर...!” सुयश ने आश्चर्य से कहा- “क्या हमारी शादी हो चुकी थी?”
“जल्दी-जल्दी पिज्जा खाओ सब लोग, उधर एक पार्टी की तैयारी और हो गई है।” शैफाली ने सबको सुयश और शलाका की ओर इशारा करते हुए कहा।
वैसे तो सभी को दोनों के सभी शब्द सुनाई दे रहे थे, फिर भी शैफाली के इस तरह से कहने से सभी जोर से हंस दिये।
“वो...वो....मैं अभी बताना तो नहीं चाहती थी...पर गलती से मुंह से निकल गया। पर सच यही है कि हमारी शादी हो चुकी थी।” शलाका ने सिर झुका कर धीरे से शर्माते हुए कहा।
“हाय..हाय भाभी क्या शर्माती हैं।” क्रिस्टी ने भी चटकारा लेते हुए कहा- “भैया की तो निकल पड़ी। एक मेरा वाला है, पता नहीं कौन से पाताल में चला गया?”
सुयश ने घूरकर क्रिस्टी को देखा और फिर धीरे से हंस दिया।
“हां तो मैं बता रही थी कि वह सिंहासन हनुका ने दिया था और उस से समय यात्रा संभव है। हनुका ने वह सिंहासन इसी लिये दिया था कि हमें जब भी वेदालय की याद आये तो हम उस सिंहासन से वेदालय के समय में जाकर अपनी यादों को ताजा कर सकें।” शलाका ने कहा।
“वेदालय का निर्माण क्यों किया गया?”
“महागुरु नीलाभ ने इस ब्रह्मांड की रक्षा के लिये 6 जोड़ों का चुनाव किया। 10 वर्ष तक उन सभी जोड़ों को वेदों के द्वारा शिक्षा देकर महायोद्धा का रुप दिया गया। उन सभी महायोद्धाओं को अमृतपान करा के एक लोक दिया जाना था, जहां से उन्हें अनंतकाल तक पृथ्वी की रक्षा करनी थी। बाकी के 5 जोड़ों ने अमृतपान करके एक-एक लोक संभाल लिया, पर हमने ऐसा नहीं किया।”
“हमने क्यों ऐसा नहीं किया?”
“क्यों कि हमें आपस में शादी करनी थी और कोई भी महायोद्धा आपस में शादी नहीं कर सकता था इस लिये हमने सारी शक्तियों का त्याग कर दिया और शादी कर ली।”
“जब वेदालय में बाकी के 5 जोड़े थे, तो मैं, तुम और आकृति 3 लोग क्यों थे?”
“वेदालय में तुम और आकृति जोड़े में ही आये थे। मैं अकेली आयी थी।”
“तो महागुरु नीलाभ ने तुम्हें हमारे साथ क्यों रखा?”
“इसके बारे में मुझे भी पता नहीं है। यही तो वह एक परेशानी थी, जिसने हमें 5000 वर्ष तक मिलने का इंतजार कराया।” यह बात बताते समय शलाका की आवाज में दुख ही दुख भर गया।
“फिर शादी के बाद मेरी मृत्यु कैसे हुई?”
“तुम्हें कोई नहीं मार सकता था, तुमने स्वयं अपनी मृत्यु का वरण किया था।”
“मैं भला स्वयं को क्यों मारने लगा और वह भी तब जबकि तुमसे मेरी शादी भी हो चुकी थी।”
“इसी बात का राज तो मुझे भी जानना है और मुझे पूरी उम्मीद है कि इस रहस्य को तुमने ‘वेदान्त रहस्यम्’ में अवश्य लिखा होगा। इसीलिये मैं इस किताब का हजारों वर्षों से मिलने का इंतजार कर रही थी।”
“ऐसा क्या है इस किताब में....मैं भी इसे पढ़ना चाहता हूं।”
“अभी यह किताब मैं लेकर जाऊंगी ....क्यों कि जब तक तुम्हें, तुम्हारी पूरी स्मरण शक्ति ना मिल जाये, तब तक मैं तुम्हें यह किताब पढ़ने नहीं दे सकती।”
“क्यों? तुम आखिर ऐसा क्यों कर रही हो?”
“क्यों कि मैं तुम्हें दोबारा नहीं खोना चाहती और इस किताब में कुछ ना कुछ तो अवश्य ऐसा है, जो अभी तुम्हारे लिये सही नहीं है और वैसे भी इस मायावन में प्रवेश करने के बाद बिना तिलिस्म तोड़े कोई भी बाहर नहीं निकल सकता।”
“अब यह तिलिस्म क्या बला है? क्या आगे और भी मुसीबतें आने वाली हैं?”
“यह द्वीप अटलांटिस का अवशेष है, यह एक कृत्रिम द्वीप है, जिसकी रचना देवताओं ने करवाई थी। इस द्वीप को 4 भागों में विभक्त किया गया है। 2 भाग में सामरा और सीनोर राज्य बनाया गया, जहां इस
द्वीप के पुराने निवासी रहते हैं। तीसरे भाग में मायावन है, जिसमें आप लोग अभी हैं। द्वीप के चौथे भाग को एक खतरनाक तिलिस्म में परिवर्तित किया गया है, जिसे तिलिस्मा कहते हैं। उस तिलिस्मा में 28 द्वार हैं, हर द्वार में एक खतरा छिपा हुआ है। जो भी व्यक्ति इस मायावन में प्रवेश करेगा, वह बिना तिलिस्म तोड़े इस द्वीप से जा नहीं सकता।”
“हे भगवान....यानि की अभी असली मुसीबतें तो शुरु भी नहीं हुईं हैं।” जेनिथ ने अपना सिर पकड़ते हुए कहा- “और जब यह वन ही इतना खतरनाक है, तो वह तिलिस्मा कितना खतरनाक होगा?”
तौफीक और क्रिस्टी भी यह सुन पिज्जा खाना छोड़ शलाका का मुंह देखने लगे।
“आप तो इस द्वीप की देवी हैं। आप तो हमें यहां से निकाल सकती हैं।” क्रिस्टी ने कहा।
“नहीं निकाल सकती....इस द्वीप का पूरा नियंत्रण देवता पोसाइडन ने किसी व्यक्ति को दे रखा है। वह कहां रहता है? और कैसे तिलिस्म का निर्माण करता है? यह मुझे भी नहीं पता। यहां इस मायावन में तो मैं या फिर कोई दूसरी चमत्कारी शक्ति तुम्हारी मदद कर भी देगी, पर तिलिस्मा के अंदर तो कोई चमत्कारी शक्ति भी काम नहीं करती, वहां मैं तो क्या कोई भी तुम्हारी मदद नहीं कर पायेगा?”
“हे भगवान यानि की मरना निश्चित है।” क्रिस्टी ने दुखी स्वर में कहा।
“ऐसा नहीं है, मुझे पता है कि तुम लोग उस तिलिस्मा को अवश्य पार कर लोगे। तुम सभी में विलक्षण प्रतिभाएं हैं और आर्यन तुम्हारे साथ है। आर्यन ने तो देवताओं की धरती पर लगभग सारी प्रतियोगिताएं जीती हैं और तुम लोगों ने देखा कि पहले तुम लोग छोटी से छोटी चीज पर घबरा जाते थे, पर पिछले कुछ दिनों में तुमने स्पाइनोसोरस, टेरोसोर, रेत मानव और ड्रैगन जैसे विशाल जानवरों और मुसीबतों का हराया है, यह काम कोई साधारण इंसान नहीं कर सकता। इसलिये मुझे पूरी उम्मीद है कि तुम लोग तिलिस्मा को तोड़कर ही इस द्वीप से बाहर निकलोगे।”
शलाका के शब्दों ने सभी में उत्साह भर दिया।
“अच्छा अब मुझे जाने की आज्ञा दो।” शलाका ने सुयश को देख मुस्कुराते हुए कहा।
सुयश के पास अब कोई प्रश्न नहीं बचा था, इसलिये उसने धीरे से अपना सिर हिलाकर शलाका को आज्ञा दे दी।
“आप लोगों को कुछ करना हो तो हम लोग अपना चेहरा दूसरी ओर घुमा लें।” क्रिस्टी ने शलाका को छेड़ते हुए कहा।
क्रिस्टी की बात सुन शलाका के चेहरे पर एक भीनी सी मुस्कान बिखर गयी, उसने सुयश की आँखों में झांका और पास आकर सुयश के गले लग गयी-
“इस बार जिंदा वापस आना, मैं 5000 वर्ष के लिये और नहीं सो सकती।” यह कहकर शलाका ने धीरे से सुयश के गालों को चूमा और लाल किताब ले, अपने त्रिशूल को हवा में लहरा कर गायब हो गयी।
सुयश ना जाने कितनी देर तक वैसे ही खड़ा रहा, फिर धीरे-धीरे चलता हुआ बाकी सबके पास आकर पिज्जा खाने लगा, पर उसकी आँखों में एक अधूरी चाहत साफ नजर आ रही थी।
अब वह जीना चाहता था, अपने नहीं किसी और के लिये, जिसने उसके लिये अपना अमरत्व त्याग दिया था।
जिसने उसका 5000 वर्षों तक इंतजार किया था, जो हर पल उस पर नजर रख रही थी, उसकी सुरक्षा के लिये....उसकी नयी जिंदगी की कामना के लिये।”
जारी रहेगा_______![]()
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शलाका ने त्रिशूल को अपने मस्तक से लगा कर कुछ देर के लिये आँखें बंद कर लीं।
कुछ देर बाद शलाका ने अपनी आँखें खोलीं और कहा- “क्षमा करना क्रिस्टी, पर ऐलेक्स को मैं ढूंढ पाने में असमर्थ हूं, शायद वह पृथ्वी के किसी भी भाग में उपस्थित नहीं है।”
“क्या वो......मर चुका है?” क्रिस्टी ने डरते-डरते पूछा।
“नहीं...वो मरा नहीं है, पर शायद वह किसी ऐसे लोक में है, जो पृथ्वी की सतह से परे है। चिंता ना करो क्रिस्टी, ईश्वर ने चाहा तो वह जल्द ही तुमसे आकर मिलेगा।” शलाका ने क्रिस्टी को सांत्वना देते हुए कहा-
“तुम्हारी दूसरी इच्छा मैं पूरी किये देती हूं।”
कहकर शलाका ने पुनः अपना हाथ हवा में हिलाया। जिससे शैफाली को छोड़ वहां खड़े सभी लोगों के शरीर पर पहनी ड्रेस बदल गयी।
सभी की नयी ड्रेसेज, उनकी पसंद की थीं।
“तुम्हें कुछ नहीं चाहिये क्या आर्यन?” शलाका ने सुयश की आँखों में झांकते हुए प्यार से पूछा।
“मुझे तो सिर्फ सवालों के जवाब चाहिये बस।” सुयश ने कहा।
“पूछो...क्या पूछना चाहते हो?” शलाका ने कहा- “जहां तक सम्भव होगा, मैं तुम्हारे सवालों का जवाब दूंगी।”
“क्या मैं पिछले जन्म में आर्यन था?” सुयश ने पहला प्रश्न किया।
“हां, तुम्हारे पिछले जन्म का नाम आर्यन था।” शलाका ने जवाब दिया।
“तुमने कहा कि तुम 5000 वर्ष से मुझसे दूर थी। तो अगर मैं 5000 वर्ष पहले मर गया था तो इतने वर्षों के बाद मेरा जन्म क्यों हुआ?
“इसका उत्तर इसी लाल किताब ‘वेदान्त रहस्यम्’ में है, पर किसी कारण से मैं यह तुम्हें अभी नहीं बता सकती।“
“इस लाल किताब में!” सुयश के शब्दों में आश्चर्य भर गया- “इस लाल किताब से मेरा क्या रिश्ता है?”
“वेदान्त रहस्यम् मरने से पूर्व तुमने ही लिखी थी, मैं स्वयं इस किताब को इतने वर्षों से ढूंढ रही थी, मुझे भी इस किताब से कई सवालों के जवाब चाहिये।”
“वह दूसरी शलाका कौन थी?”
“अभी मुझे पक्का नहीं पता, पर वो शलाका शायद आकृति थी।” कहते-कहते शलाका के चेहरे पर गुस्से के निशान आ गये।
“वह यह वेदान्त रहस्यम् क्यों छीनना चाहती थी? और तौफीक इस लाल किताब से उसके पास कैसे पहुंच गया था?”
“वेदान्त रहस्यम् में वेदालय की शिक्षा समाप्त होने के बाद के कुछ रहस्य हैं। यह वेदान्त रहस्यम् पूरे ब्रह्मांड का द्वार है, इसके हर पृष्ठ पर व्यक्तियों और स्थानों के अनेकों चित्र अंकित हैं, किसी भी चित्र को छूकर उस व्यक्ति या स्थान के पास जाया जा सकता है। शायद आकृति भी इस किताब के माध्यम से किसी ऐसी जगह पर जाना चाहती है, जिसके बारे में उसे पता नहीं है।”
“तुम देवी हो, मैं, यानि आर्यन मर चुका है, फिर आकृति इतने वर्षों से जिंदा कैसे है?”
“शायद उसने अमृतपान कर रखा है, इसलिये वह अमर हो गयी है।”
“आकृति का चेहरा तुमसे कैसे मिल रहा है? क्या वह रुप बदलने की कला भी जानती है?”
“नहीं...मेरी जानकारी के हिसाब से आकृति रुप बदलने की कला नहीं जानती, पर जब मैं इतने वर्षों से शीतनिद्रा में थी, तो अवश्य ही आकृति ने कुछ और भी शक्तियां प्राप्त की होंगी, पर उसके बारे में अभी मुझे कुछ नहीं पता।”
“तुमने आज से पहले मुझसे सम्पर्क करने की कोशिश क्यों नहीं की?”
“जब देवालय से अपनी पढ़ाई समाप्त करने के बाद तुम गायब हो गये और कई वर्षों तक नहीं मिले, तो मैंने गुरु नीलाभ से तुम्हारे बारे में पूछा। उन्होंने बताया कि तुम्हारा वो जन्म पूरा हो चुका है, अब तुम 5000 वर्षों के बाद ही दूसरा जन्म लेकर मुझसे मिलोगे। इसलिये मैंने भी स्वयं को 5000 वर्षों के लिये शीतनिद्रा में डाल दिया था। मैं भी अभी कुछ दिन पहले ही शीतनिद्रा से जागी हूं।
“शीतनिद्रा से जागते ही मैंने अपनी शक्तियों से तुम्हें ढूंढा। तुम उस समय मेरे मंदिर में मेरी मूर्ति छूने जा रहे थे। देवताओं के आशीर्वाद से मेरी उस मूर्ति को छूने वाला हर इंसान मारा जाता है, जैसे ही तुम मेरी मूर्ति छूने चले मैंने अपनी कुछ शक्तियां तुम्हारे शरीर पर बने टैटू में डाल दीं, जिससे तुम मेरी मूर्ति छूने के बाद भी बच गये।
उन्हीं शक्तियों ने बाद में तुम्हें आदमखोर पेड़ और बर्फ के ड्रैगन से बचाया और जब आज मैंने तुम्हें इस किताब और दूसरी शलाका के साथ देखा तो मैं अपने आप को रोक नहीं पायी।
इस द्वीप के हर एक भाग पर इसके रचयिता का अधिकार है, जो सदैव देवताओं के सम्पर्क में रहता है। अगर उसने मुझे तुम्हें यह सब बताते देख लिया तो मैं भी मुसीबत में पड़ सकती हूं।”
“इस द्वीप का रचयिता कौन है?”
“यह बात मुझे नहीं पता क्यों कि यह बात मेरे जन्म से लगभग 14000 वर्ष पहले की है। अगर मैं शीतनिद्रा में नहीं होती तो शायद इस बात को अब तक जान चुकी होती।”
“मेरे इस टैटू के निशान को तो मैंने इस जन्म में बनवाया था, फिर इसकी आकृति तुम्हारे महल में कैसे दिख रही थी?”
“आर्यन ने एक बार वेदालय में एक प्रतियोगिता के बीच में सूर्यलेखा नाम की एक कन्या की जान बचाई थी और उसे अपनी बहन के रुप में स्वीकार किया था, उस समय तक आर्यन को नहीं पता था कि सूर्यलेखा भगवान सूर्य की पुत्री हैं।
"बाद में भगवान सूर्य ने तुम्हें यह आशीर्वाद दिया था कि तुम हर जन्म में सूर्यवंश में ही जन्म लोगे और हर जन्म में यह सूर्य की आकृति किसी ना किसी प्रकार से तुम्हें प्राप्त हो जायेगी। बाद में इसी सूर्य की आकृति से भगवान सूर्य तुम्हारी किसी ना किसी प्रकार से रक्षा करते रहेंगे।”
“ऐमू को अमरत्व कैसे प्राप्त हुआ?”
“ऐमू को जो हम लोग समझते हैं, वह वो नहीं है। उसमें कुछ राज छिपा है जो मैं तुम्हें समय आने पर बताऊंगी।”
“जब भी मैं तुम्हारी मूर्ति को छूता था, मुझे उसका स्पर्श तुम्हारे शरीर के समान लगता था। ऐसा कैसे होता था? और एक बार तो तुम्हारी मूर्ति छूने पर मुझे आर्यन की आवाज भी सुनाई दी थी। वह सब कैसे हो रहा था?”
“ये चीजें भी सबके सामने पूछोगे क्या?” शलाका ने अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कुराते हुए कहा- “अरे मैं तुम्हें हमेशा से देख रही थी, अब ये मौका भी अपने हाथ से जाने देती क्या?”
“हम लोगों ने कुछ नहीं सुना, हम लोग तो पिज्जा खा रहे हैं। आप लोग अपनी बातों को जारी रखें।” शैफाली ने ही-ही करके हंसते हुए कहा और फिर से पिज्जा खाने में जुट गयी।
“तुम्हारे महल में मौजूद वह सिंहासन कैसा था? जिसकी वजह से मैं समय-यात्रा पर चला गया था।”
“वह सिंहासन हमारी शादी पर हमें यतिराज हनुका ने दिया था।”
“एक मिनट...तुमने कहा कि हमारी शादी पर...!” सुयश ने आश्चर्य से कहा- “क्या हमारी शादी हो चुकी थी?”
“जल्दी-जल्दी पिज्जा खाओ सब लोग, उधर एक पार्टी की तैयारी और हो गई है।” शैफाली ने सबको सुयश और शलाका की ओर इशारा करते हुए कहा।
वैसे तो सभी को दोनों के सभी शब्द सुनाई दे रहे थे, फिर भी शैफाली के इस तरह से कहने से सभी जोर से हंस दिये।
“वो...वो....मैं अभी बताना तो नहीं चाहती थी...पर गलती से मुंह से निकल गया। पर सच यही है कि हमारी शादी हो चुकी थी।” शलाका ने सिर झुका कर धीरे से शर्माते हुए कहा।
“हाय..हाय भाभी क्या शर्माती हैं।” क्रिस्टी ने भी चटकारा लेते हुए कहा- “भैया की तो निकल पड़ी। एक मेरा वाला है, पता नहीं कौन से पाताल में चला गया?”
सुयश ने घूरकर क्रिस्टी को देखा और फिर धीरे से हंस दिया।
“हां तो मैं बता रही थी कि वह सिंहासन हनुका ने दिया था और उस से समय यात्रा संभव है। हनुका ने वह सिंहासन इसी लिये दिया था कि हमें जब भी वेदालय की याद आये तो हम उस सिंहासन से वेदालय के समय में जाकर अपनी यादों को ताजा कर सकें।” शलाका ने कहा।
“वेदालय का निर्माण क्यों किया गया?”
“महागुरु नीलाभ ने इस ब्रह्मांड की रक्षा के लिये 6 जोड़ों का चुनाव किया। 10 वर्ष तक उन सभी जोड़ों को वेदों के द्वारा शिक्षा देकर महायोद्धा का रुप दिया गया। उन सभी महायोद्धाओं को अमृतपान करा के एक लोक दिया जाना था, जहां से उन्हें अनंतकाल तक पृथ्वी की रक्षा करनी थी। बाकी के 5 जोड़ों ने अमृतपान करके एक-एक लोक संभाल लिया, पर हमने ऐसा नहीं किया।”
“हमने क्यों ऐसा नहीं किया?”
“क्यों कि हमें आपस में शादी करनी थी और कोई भी महायोद्धा आपस में शादी नहीं कर सकता था इस लिये हमने सारी शक्तियों का त्याग कर दिया और शादी कर ली।”
“जब वेदालय में बाकी के 5 जोड़े थे, तो मैं, तुम और आकृति 3 लोग क्यों थे?”
“वेदालय में तुम और आकृति जोड़े में ही आये थे। मैं अकेली आयी थी।”
“तो महागुरु नीलाभ ने तुम्हें हमारे साथ क्यों रखा?”
“इसके बारे में मुझे भी पता नहीं है। यही तो वह एक परेशानी थी, जिसने हमें 5000 वर्ष तक मिलने का इंतजार कराया।” यह बात बताते समय शलाका की आवाज में दुख ही दुख भर गया।
“फिर शादी के बाद मेरी मृत्यु कैसे हुई?”
“तुम्हें कोई नहीं मार सकता था, तुमने स्वयं अपनी मृत्यु का वरण किया था।”
“मैं भला स्वयं को क्यों मारने लगा और वह भी तब जबकि तुमसे मेरी शादी भी हो चुकी थी।”
“इसी बात का राज तो मुझे भी जानना है और मुझे पूरी उम्मीद है कि इस रहस्य को तुमने ‘वेदान्त रहस्यम्’ में अवश्य लिखा होगा। इसीलिये मैं इस किताब का हजारों वर्षों से मिलने का इंतजार कर रही थी।”
“ऐसा क्या है इस किताब में....मैं भी इसे पढ़ना चाहता हूं।”
“अभी यह किताब मैं लेकर जाऊंगी ....क्यों कि जब तक तुम्हें, तुम्हारी पूरी स्मरण शक्ति ना मिल जाये, तब तक मैं तुम्हें यह किताब पढ़ने नहीं दे सकती।”
“क्यों? तुम आखिर ऐसा क्यों कर रही हो?”
“क्यों कि मैं तुम्हें दोबारा नहीं खोना चाहती और इस किताब में कुछ ना कुछ तो अवश्य ऐसा है, जो अभी तुम्हारे लिये सही नहीं है और वैसे भी इस मायावन में प्रवेश करने के बाद बिना तिलिस्म तोड़े कोई भी बाहर नहीं निकल सकता।”
“अब यह तिलिस्म क्या बला है? क्या आगे और भी मुसीबतें आने वाली हैं?”
“यह द्वीप अटलांटिस का अवशेष है, यह एक कृत्रिम द्वीप है, जिसकी रचना देवताओं ने करवाई थी। इस द्वीप को 4 भागों में विभक्त किया गया है। 2 भाग में सामरा और सीनोर राज्य बनाया गया, जहां इस
द्वीप के पुराने निवासी रहते हैं। तीसरे भाग में मायावन है, जिसमें आप लोग अभी हैं। द्वीप के चौथे भाग को एक खतरनाक तिलिस्म में परिवर्तित किया गया है, जिसे तिलिस्मा कहते हैं। उस तिलिस्मा में 28 द्वार हैं, हर द्वार में एक खतरा छिपा हुआ है। जो भी व्यक्ति इस मायावन में प्रवेश करेगा, वह बिना तिलिस्म तोड़े इस द्वीप से जा नहीं सकता।”
“हे भगवान....यानि की अभी असली मुसीबतें तो शुरु भी नहीं हुईं हैं।” जेनिथ ने अपना सिर पकड़ते हुए कहा- “और जब यह वन ही इतना खतरनाक है, तो वह तिलिस्मा कितना खतरनाक होगा?”
तौफीक और क्रिस्टी भी यह सुन पिज्जा खाना छोड़ शलाका का मुंह देखने लगे।
“आप तो इस द्वीप की देवी हैं। आप तो हमें यहां से निकाल सकती हैं।” क्रिस्टी ने कहा।
“नहीं निकाल सकती....इस द्वीप का पूरा नियंत्रण देवता पोसाइडन ने किसी व्यक्ति को दे रखा है। वह कहां रहता है? और कैसे तिलिस्म का निर्माण करता है? यह मुझे भी नहीं पता। यहां इस मायावन में तो मैं या फिर कोई दूसरी चमत्कारी शक्ति तुम्हारी मदद कर भी देगी, पर तिलिस्मा के अंदर तो कोई चमत्कारी शक्ति भी काम नहीं करती, वहां मैं तो क्या कोई भी तुम्हारी मदद नहीं कर पायेगा?”
“हे भगवान यानि की मरना निश्चित है।” क्रिस्टी ने दुखी स्वर में कहा।
“ऐसा नहीं है, मुझे पता है कि तुम लोग उस तिलिस्मा को अवश्य पार कर लोगे। तुम सभी में विलक्षण प्रतिभाएं हैं और आर्यन तुम्हारे साथ है। आर्यन ने तो देवताओं की धरती पर लगभग सारी प्रतियोगिताएं जीती हैं और तुम लोगों ने देखा कि पहले तुम लोग छोटी से छोटी चीज पर घबरा जाते थे, पर पिछले कुछ दिनों में तुमने स्पाइनोसोरस, टेरोसोर, रेत मानव और ड्रैगन जैसे विशाल जानवरों और मुसीबतों का हराया है, यह काम कोई साधारण इंसान नहीं कर सकता। इसलिये मुझे पूरी उम्मीद है कि तुम लोग तिलिस्मा को तोड़कर ही इस द्वीप से बाहर निकलोगे।”
शलाका के शब्दों ने सभी में उत्साह भर दिया।
“अच्छा अब मुझे जाने की आज्ञा दो।” शलाका ने सुयश को देख मुस्कुराते हुए कहा।
सुयश के पास अब कोई प्रश्न नहीं बचा था, इसलिये उसने धीरे से अपना सिर हिलाकर शलाका को आज्ञा दे दी।
“आप लोगों को कुछ करना हो तो हम लोग अपना चेहरा दूसरी ओर घुमा लें।” क्रिस्टी ने शलाका को छेड़ते हुए कहा।
क्रिस्टी की बात सुन शलाका के चेहरे पर एक भीनी सी मुस्कान बिखर गयी, उसने सुयश की आँखों में झांका और पास आकर सुयश के गले लग गयी-
“इस बार जिंदा वापस आना, मैं 5000 वर्ष के लिये और नहीं सो सकती।” यह कहकर शलाका ने धीरे से सुयश के गालों को चूमा और लाल किताब ले, अपने त्रिशूल को हवा में लहरा कर गायब हो गयी।
सुयश ना जाने कितनी देर तक वैसे ही खड़ा रहा, फिर धीरे-धीरे चलता हुआ बाकी सबके पास आकर पिज्जा खाने लगा, पर उसकी आँखों में एक अधूरी चाहत साफ नजर आ रही थी।
अब वह जीना चाहता था, अपने नहीं किसी और के लिये, जिसने उसके लिये अपना अमरत्व त्याग दिया था।
जिसने उसका 5000 वर्षों तक इंतजार किया था, जो हर पल उस पर नजर रख रही थी, उसकी सुरक्षा के लिये....उसकी नयी जिंदगी की कामना के लिये।”
जारी रहेगा_______![]()
Thanks brotherNice update....
Thanks brotherSuperb update
Wo kitab wakai me rahasyamayi hai dostBhut hi shandar update
Shalaka ne suyash aur hamare bhut sare sawalo ka jwab diya hai
Aur us kitab ka rahasya bhi aage hi pata chalega