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Mast kahaniबस इसी तरह छेड़खानी में टाइम निकल रहा था. मैं कोई वासना की मारी औरत तो नहीं थी जो चुदवाने को मरी जा रही होऊं पर बाबूजी से छेड़छाड़ करने में मुझे भी मजा आ रहा था. कि किस तरह मेरे ससुर मुझे पटाने में लगे हुए हैं. एक औरत होने के नाते उनकी हरकतों से मेरे मन में भी कुछ कुछ हो रहा था. ना चाहते हुए भी मैं बाबूजी से खुद भी कुछ छेड़छाड़ करने लगी थी,
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वैसे भी मेरे पति को गए कई दिन हो गए थे. और मुझे भी सेक्स की जरूरत तो महसूस हो ही रही थी.
फिर शाम को बाबूजी सोफे पर बैठे थे और वो सोफा किचन के दरवाजे के बिल्कुल सामने ही थे। और मैं रसोई में खाना बना रही थी, मुझे पता था कि बाबूजी सामने हैं, तो मैं जान बुज कर अपनी गांड मटका रही थी। मुझे मालूम ही था कि बाबूजी का ध्यान टीवी पर कम और किचन में काम करती उन की सूंदर जवान बहु पर ज्यादा होगा. इसलिए उन को छेड़ने के लिए मैं भी अपनी गांड को मटका रही
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आज मैंने एक टाइट सी सलवार कमीज को पहना हुआ था. उस के नीचे मैंने जानबूज कर ब्रा नहीं पहनी थी. हाँ नीचे पैंटी जरूर पहन ली थी,
(आखिर पूरा नंगा होना भी ठीक नहीं था.)
मैं चाहती तो पूरे मन से नहीं थी पर इस सब से मुझे पूरा यकीन हो रहा था की बाबूजी ने अगर अपना पटाने का काम इसी तरह मुझ पर चालू रखा तो जल्दी ही बाबूजी मेरी नंगी चूत में अपना नंगा लण्ड घुसेड़ कर चोद रहे होंगे,
आज मैंने जान बूज कर ब्रा नहीं पहनी थी ताकि बाबूजी को मेरी हिलती हुई चूचीआं ठीक से दिखाई देती रहे। और मेरी पेंडुलम की तरह हिलती हुई छाती बाबूजी को ठीक से दिखाई दे जाये और बाबूजी भी मेरे ३६ इंच के मुम्मों के खूब प्यार से दर्शन कर रहे थे.
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मैं काम करते समय जान भूज कर बाबूजी की तरफ कम ही देखती थी ताकि बाबूजी को यह लगे की उनकी बहु का ध्यान तो काम पर ही है और वो प्यार से और बिना किसी डर के अपनी बहु की जवानी का चक्षु चोदन कर सकें. बाबूजी भी मेरे द्वारा दिए गए इस मौके का भरपूर लाभ उठा रहे थे और मेरी जवानी के मजे लूट रहे थे.
तो अभी भी बाबूजी सोफे पर बैठे थे और टीवी देखने का नाटक कर रहे थे पर असल में वो मेरी हिलती हुई चुचीऑ देख रहे थे और मैं भी जान भुज कर उन्हें जरूरत से ज्यादा हिला रही थी। ताकि बाबूजी को पूरा मजा आये.
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घर में हम तीन बच्चा, ससुर बहु ही तो थे और मेरा बेटा तो टीवी में ही मग्न था तो मैं और बाबूजी दोनों बिना किसी डर से लगे हुए थे.
मैंने पहले तो सोचा की दाल चावल बना लेती हूँ पर फिर सोचा की यदि आटा की रोटी बनाऊ तो आटा गूंधने के बहाने से बाबूजी को अपने हिलते मम्मे दिखा सकूंगी, तो मैंने आटा गूँधना शुरू कर दिया और बहाने से ज्यादा हिलना शुरु कर दिया.
अब मेरी छाती जोर जोर से इधर उधर हिल रही थी और बिना ब्रा होने के कारण बाबूजी को पूरा मजा दे रही थीं. और बाबूजी भी मौके का भरपूर लाभ उठाते हुए अपनी बहु की जवानी का रसास्वादन कर रहे थे.
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मुझे भी इस तरह खाना बनाने में खूब मजा आ रहा था.
बाबूजी का भी लौड़ा लोहे की तरह खड़ा हो चुका था जिसे वो अपनी लुंगी में हाथ डाल कर मसल रहे थे।
(हाँ जी आज बाबूजी ने अपना मनपसंद पजामा न पहन कर लुंगी पहनी थी, क्योंकि लुंगी में लौड़े को चुपके से अंदर हाथ डाल कर वो सहला सकते थे और किसी को पता भी नहीं लगता। )
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आज दिन में दूध पिलाने वाले बातचीत के बाद बाबूजी का होंसला भी बहुत बढ़ गया था. उन्हें मालूम हो गया था की उनकी बहु भी शायद अब इस सेक्स के खेल में पूरी तरह से शामिल ही और चुदवाने को तैयार है,
बाबूजी मुझे चोदना चाहते थे और मैं आधे मन से चुदवाने को तैयार थी ही, बस देर थी तो हमारे सामाजिक बंधनो के टूट जाने की, और मुझे लग रहा था की इस में भी अब ज्यादा देर नहीं है, खैर
काफी देर तक तो बाबूजी मेरी हिलती चूचियां देखते रहे और लुंगी के अंदर हाथ डाल कर अपना लौड़ा सहलाते रहे. पर कितनी देर ऐसा कर सकते थे.
आखिर बाबूजी के सबर का बंद टूट ही गया और वो उठ कर मेरे पीछे आ कर खड़े हो गए, इतने पास थे कि मुझे उनकी साँसे अपनी गर्दन पर महसूस हो रही थी, मैं एक बार तो डर ही गयी पर चुप रही कि देखते हैं कि बाबूजी क्या करते हैं और कितनी हिम्मत तक जा सकते हैं,
मैंने कुछ नहीं कहा और बाबूजी बोले कि आज मेरी बहुरानी क्या बना रही है।
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तो मैंने कहा कि दाल रोटी जो कि मेरे बाबूजी के पसंदीदा हैं।
तो वो खुश हो गए कि वाह मेरी पसंदीदा चीज़ बन रही है।
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तो मैने कहा कि हां जी. अब बाबूजी को भी लगा कि मैं उनसे बात करने में झिझक नहीं रही और उनके इतना पास खड़े होने से भी नाराज नहीं हूँ तो उन्होंने भी थोड़ा होंसला किया और मेरी पीठ के पास खिसक आये. और मुझे फिर भी कोई इतराज करते न देख कर उन्होंने धीरे से अपना अकड़ा हुआ लौड़ा मेरी पीठ से सटा दिया. उनके लण्ड का गर्म गर्म एहसास अपनी पीठ पर करते ही मेरी तो जैसे सांस ही रुक गयी. पर मैंने भी पूरी हिम्मत करी और उसी तरह खड़ी खड़ी आता गूंधती रही,
बाबूजी ने जब अपने लंड का थोड़ा सा दबाव मेरी पीठ पर डाला लेकिन मैंने कुछ नहीं कहा तो उनकी हिम्मत और बढ़ गई और उन्होंने अपने लौड़े का पूरा दबाब मेरी गांड पर डाल दिया.
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बाबूजी का लण्ड लोहे की तरह सख्त हो चूका था. और बाबूजी ने थोड़ा हिल कर लौड़े को चूतड़ों से अब मेरी गांड की दरार में घुसा दिया और एक धक्का दे कर लौड़े को गांड की दरार में फंसा दिया.
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अब घर में हम दोनों ससुर बहु ही तो थे, तो इतनी भी क्या जल्दी थी, कोई आने वाला तो था नहीं, तो मैंने सोचा की थोड़ा छेड़खानी चलने देती हूँ.
तो मैंने थोड़े गुस्से से कहा कि बाबूजी आप क्या कर रहे हैं तो उन्होंने डर कर एक दम से अपनी कमर पीछे कर ली और लौड़ा मेरी गांड में से निकल गया.
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तो मैं डर गई कि कहीं वो चले ही ना जाएं, इसके लिए मैंने अपनी गांड को थोड़ा पीछे कर दिया ताकि उनको ये एहसास हो सके कि ये मेरा नकली गुस्सा है।
बाबूजी समझ गए और उन्होंने अपने लंड का दबाव फिर से और बड़ा दिया मेरी गांड पर,
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मुझे तो मजा आ रहा था और मैं तो खुद तैयार थी मजे करने को बस नखरे दिखा रही थी।
फिर जब मैंने कुछ नहीं कहा उन्हें तो बाबूजी मेरे से चिपक गए और अपने हाथ मेरी कमर के चारों ओर डाल कर मुझे पकड़ लिया.
और मेरी गर्दन पर चुंबन करने लगे। मुझे परम आनंद आ रहा था।
मैंने उनसे कहा कि आआह्ह्ह... बाबूजी लगता है आपको सासु माँ की बहुत याद आ रही है तो वो बोले कि तुम्हें कैसे पता तो मैंने कहा कि तभी आप मुझे तंग कर रहे हो तो वो बोले कि नहीं मुझे तो मेरी बहु तुमपे प्यार आ रहा है
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मैं:- हाँ मैं जानती हूँ यह आपका प्यार। आप अपनी बहु को कितना प्यार करते हैं मुझे मालूम है,
पाप:- अरे बहुरानी ऐसा क्यों बोलती हो. मैं तो तुमसे बहुत प्यार करता हूँ. तुम्हे थोड़े ही न भूल सकता हूँ. तू तो मुझे बहुत प्यारी है,
कहते हुए बाबूजी ने मुझे कन्धों से पकड़ लिया और मेरी गर्दन पर चूमने लगे.
मुझे बहुत आनंद आ रहा था.
बाबूजी - हाय
मैं- बाबूजी क्या हुआ?
(अस्ल में मैंने अपने चूतड़ थोड़ा पीछे को धकेल दिए थे तो बाबूजी का लण्ड मेरी गांड में और अंदर घुस गया तो बाबूजी के मुंह से आनद से आह निकल गयी थी,)
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बाबूजी - अच्छा खाना में आज क्या बना रही हो?
मैं - रोटी दाल सब्जी दही आदि
बाबूजी - किस चीज़ की सब्जी??
मैं - बैगन की। आप को पसंद है??
बाबूजी - हाँ. क्या तुम्हे बैंगन पसंद हैं?
मैं - हाँ मुझे तो बहुत अच्छे लगते हैं.
बाबूजी - बैगन बहुत पसंद है और इसके इलावा और क्या क्या पसंद है?
मैं - बाबूजी मुझे खीरा भी पसंद है,
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बाबूजी - कैसा बैगन और खीरा पसंद है? बैंगन लम्बा चाहिए या मोटे वाला गोल?
मैं - बाबूजी खीरा तो मुझे लगभग ७-८ इंच लम्बा और लगभग ३-४ इंच मोटा पसंद है, पर मुझे गोल वाला बैंगन पसंद नहीं। बैंगन भी मुझे लम्बा ही चाहिए. ज्यादा मोटा और गोल बैंगन मुझे सूट नहीं करता.
बाबूजी - बैंगन अधिकतम कितने साइज़ तक ले लेती हो?
मैं -आप क्या बात कर रहे हो, क्या मतलब की मैं ले लेती हूँ. सब्जी बना के खा लेती हूँ बस।
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(बाबूजी ने दो अर्थी बात करी थी, ले लेती का मतलब चूत में लेना भी हो सकता था और बाजार से ले लेना भी, पर यह बात करते हुए बाबूजी शरारत से मुस्कुरा रहे थे तो उनका मतलब साफ़ ही था. मैं भी अब इस दो अर्थी बात में मजा ले रही थी,)
बाबूजी - बताओ ना प्लीज
मैं - नहीं
बाबूजी - मत बताओ जाओ
मैं - नाराज़ मत होइए।
बाबूजी - तो बताओ
मैं - बड़ी साइज़ का बैंगन और खीरा मुझे पसंद है,
बाबूजी - कितना
मैं - 7 इंच तक लम्बा चल जाता है,
बाबूजी - और मोटा?
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मैं-3 इंच, इस से छोटा हो तो मजा नहीं आता.
बाबूजी :- मजा नहीं आता क्या मतलब?
मैं :- (शरारत से मुस्कुराती हुई) मतलब सब्ज़ी अच्छी नहीं बनती, आप क्या समझ रहे हैं?
बाबूजी:- अच्छा तुम्हे सब्जी सूखी पसंद है या गीली?
मैं:- मुझे तो दोनों तरह की ठीक लगती है, आपको कैसी सब्जी पसंद है?
बाबूजी:- मुझे तो रसे वाली और गीली गीली ही चीज पसंद है (अब वो सब्जी ना बोल कर चीज बोल रहे थे जो दो अर्थी शब्द था). जब तक चीज गीली न हो जाये मुझे मजा नहीं आता. कई बार तो मैं सूखी होने पर उसे अपने मुंह से चूस कर गीली कर देता हूँ. गीली को तो चाट चाट कर खाने का मजा ही अलग है, तुम्हारा क्या ख्याल है बहु?
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(बाबूजी अब खुल कर दो अर्थी बातें कर रहे थे और उनका लौड़ा भी कसता जा रहा था जिसे वो बार बार मेरी चूतड़ों में घुसाने की कोशिश कर रहे थे.)
मैं :- चलो छोडो बाबूजी अब मुझे खाना बनाने दो.
बाबूजी को तो मजा आ रहा था वो चले कैसे जाते तो बात को चालू रखते हुए वो बोले
बाबूजी - (बात को घुमाते हुए) तुम्हारा पसंदीदा फल क्या है
मैं - केला और गन्ना और आपका बाबूजी ?
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बाबूजी - आम और तरबूज़
मैं:- मन कर रहा है क्या?
बाबूजी - आम खाने का मन कर रहा है, यदि खाने को न मिले तो चूसने में भी मुझे बड़ा मजा आता है.
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मैं- अभी कहा आम मिलेगा बाबूजी
बाबूजी - आम चूसने को न सही देखने को मिल जाए तो भी चलेगा
(यह कहते हुए उनकी नजरें मेरे मोटे मोटे मम्मों पर थी, जो ब्रा न पहनी होने के कारण उन्हें बहुत अच्छे से दिखाई दे रहे थे)
मैं - वैसे आपको कैसा आम पसंद है
बाबूजी - बड़े-बड़े आम पसंद है
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मैं- कचे या पक्के
बाबूजी - आंम तो जितना बड़ा हो उतना चूसने में मज़ा आता है??
मैं - बड़े साइज़ के आम या तरबूज़ संभाल लोगे बाबूजी ??
बाबूजी - मौका दो फिर पता लगेगा कि कैसे निचोड़ के रस पिता हूं आमों का. तुम्हे कैसे फल पसंद है सुषमा?
अब मैं भी बहुत गर्म हो चुकी थी. तो मैंने फिर बात थोड़ा घुमा दी.
मैं - मुझे बड़ा या मोटा केला बहुत पसंद है और बड़ा या मोटा गन्ना जिसका रस पूरा भरा हो.
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बाबूजी :-सुषमा ! मेरा केला खाना चाहोगी,
(मैं एकदम हैरान हो गयी कि यह तो बाबूजी ने सीधा ही लण्ड खाने को बोल दिया. तो मैंने उनकी तरफ देखा हैरानी से )
बाबूजी :- मेरा मतलब है मैं यदि बाजार से केला ले आऊं तो तुम खाना चाहोगी आज रात को?
मैं:- बाबूजी आप मुझे केला दो तो सही, में तो केला खाने को बहुत उत्सुक हूँ.
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इस तरह मैंने बाबूजी को साफ़ साफ़ इशारा दे दिया की मैं उनसे चुदने को तैयार हूँ. अब मैं औरत जात आखिर इस से ज्यादा और कितना खुल कर बोल सकती थी,
बाबूजी का लौड़ा मेरे यह कहते ही एकदम झटका मरने लगा.
मुझे लगा की कहीं अभी बाबूजी मुझे किचन में ही न चोद दें.
मैंने बात को घुमाते हुए फिर नाटक किया और बाबूजी को बोली।
"बाबूजी मेरे पेट पर खुजली हो रही है, मेरे हाथों में आटा लगा हुआ है, मैं अपनी पेट को खुजला नहीं सकती, आप प्लीज मेरे पेट पर थोड़ा खुजला दीजिये."
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बाबूजी ने अपने हाथ मेरे कन्धों से उतार कर मेरी कमीज के अंदर आगे की तरफ से डाले और मेरे नंगे पेट पर रखे.
बाबूजी के गर्म गर्म हाथ अपने नंगे पेट पर महसूस करते ही मेरी काम अग्नि और भड़क उठी,
बाबूजी धीरे धीरे मेरे पेट को सेहला रहे थे.
हम दोनों को अच्छा लग रहा था. मैंने बाबूजी को शरमाते हुए से कहा
"बाबूजी खुजली थोड़ा ऊपर हो रही है, थोड़ा ऊपर कीजिये "
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बाबूजी ने अपने हाथ थोड़ा ऊपर तक किये. अब उनके हाथ मेरी चूचियों से बस एक आध इंच ही दूर थे.
बाबूजी भी मेरी कमीज में देख सकते थे की मेरी चूचियों खूब हिल रही है और मैंने ब्रा नहीं पहनी,
तो बाबूजी अपना हाथ और ऊपर करने में थोड़ा झिझक रहे थे.
अब बात इतनी दूर तक आ गयी थी, तो यह तो मेरे लिए सुनहरी मौका था. मैंने सोच लिया कि जो होगा देखा जायेगा. छेड़खानी का मजा तो ले ही लेना चाहिए.
मैंने बाबूजी को फिर कहा
"अरे बाबूजी और ऊपर खुजली है,"
बाबूजी ने ज्यों ही अपने हाथ ऊपर को किये तो मेरी नंगी चूचियों बाबूजी के हाथ से टकरा गयी.
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चूचियों को बाबूजी का हाथ लगते ही मैं एकदम उछल पड़ी और मेरे उछलते ही मेरी दोनों नंगी चूचियों सीधे बाबूजी की हथेलियों में आ गयी, और बाबूजी ने भी एकदम अपनेआप अपने हाथ कस लिए.
अब मेरी दोनों चूचियों बाबूजी के हाथ में थी, बाबूजी ने भी मौके का फ़ायदा उठाते हुए, मेरी चूचियों को अपनी मुठी में भर लिया।
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एकदम से बाबूजी के हाथ में मेरे मम्मे आ गए तो अपने आप बाबूजी के हाथों ने मेरी मम्मों को सहला दिया. और खुदबखुद बाबूजी की उंगलिया मेरे मुम्मों के निप्पल पर आ गयी, इस से तो बाबूजी भी थोड़ा घबरा गए, क्योंकि उन्होंने जानबूझ कर तो मेरी चूचियां पकड़ी नहीं थी, वो तो मैंने ही उछल कर उनके हाथ में दे दी थी, वैसे भी उनमे अभी इतनी हिम्मत नहीं थी की सीधे ही अपनी बहु के मम्मे पकड़ लेते.
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(वास्तव में जब से मैंने बाबूजी को छेड़ना चालू किया था, तो यह पहली बार था की बाबूजी के हाथ में मेरी नंगी चूचियां थी, आज पहली बार बाबूजी ने मेरी नंगी छतिया दिन के उजाले मैं और हम दोनों के पूरे होशोहवास में पड़की थी,)
बाबूजी मेरे मम्मे छोड़ने ही वाले थे की मैंने एक सेक्सी सी आह भरी आवाज़ निकाली.
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बाबूजी को थोड़ा सा होंसला हुआ, की मैं नाराज़ नहीं हूँ.
तो बाबूजी ने भी हिम्मत करते हुए अपने हाथ पीछे नहीं किये और अपने हाथों में ही मेरी छातियों को पकडे रखा.
डर के कारण बाबूजी छातिओं को सेहला या दबा तो नहीं रहे थे पर बस उन पर हाथ रखे रहे.
मैंने बिना हिले जुले बाबूजी को कहा
"बाबूजी आपने मेरे पेट पर खुजली करनी थी पर आप ने तो मेरी नंगी छातियां ही पकड़ ली "
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यह कहते भी मैंने अपनी छातियाँ उनके हाथों में ही रहने दी. अब तक बाबूजी का भी होंसला पूरा बढ़ चूका था.
वो भी समझ गए थे कि चाहे यह घटना जानबूझ कर हुई हो या अनजाने में पर उनकी बहु नाराज़ तो बिलकुल नहीं है,
तो बाबूजी ने मेरी चूचियां धीरे धीरे सेहलनि और अपनी हथेली से दबानी शुरू कर दी,
मैंने भी कोई इतराज जैसा न किया और चुपचाप खड़ी बाबूजी से पहली बार नंगी चूचियां दबवाने का मजा लेती रही,
बाबूजी बातचीत को जारी रखते हुए बोले
"बहुरानी ! मैंने तुम्हारी छाती नहीं पकड़ी यह तो तुम्हारे उछलने से मेरे हाथों में आ गयी, और यह क्या है की तुम ब्रा नहीं पहनती हो?"
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बाबूजी को सब पता था कि मैंने ब्रा नहीं पहनी हुई है पर वो तो सिर्फ बातचीत का जरिया था.
मैं उसी तरह चुपचाप खड़ी रही और बाबूजी मेरी चूचियां धीरे धीरे सहलाते और हौले हौले मसलते रहे.
मुझे अपने बाबूजी से अपनी चूचियां मसलवाने में इतना आनंद आ रहा था की मेरी तो जैसे आनंद से आँखें ही बंद हो गयी,
अब बाबूजी ने भी होंसला करके अपनी उँगलियाँ मेरे निप्पलों के इर्द गिर्द कस ली और अपने अंगूठों और ऊँगली की मदद से मेरे निप्पलों को मसलना शुरू कर दिया.
मेरे मुंह से अपने आप आह आह की आवाज़ निकल गयी पर न तो मैंने अपनी चूचियां को छुड़ाने की कोई चेष्टा की और न ही बाबूजी ने मेरी चूचियां को छोड़ा।
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कहीं बाबूजी चूचियाँ मसलना छोड़ न दें तो मैंने बात को जारी रखते हुए कहा.
"बाबूजी गर्मी बहुत है. इसलिए मैं ब्रा नहीं पहनती.
बाबूजी कुछ बोले इतने में लाइट चली गयी. लाइट जाने से टीवी बंद हो गया और मेरे बेटे की आवाज़ आयी.
"मम्मी टीवी बंद हो गया."
वो उठ कर किचन में आने लगा। बाबूजी ने चरण एकदम से अपने हाथ मेरी कमीज से बाहर निकाल लिए.
आज जिंदगी में पहली बार मैंने अपने बेटे को मन ही मन गाली दी, शायद बाबूजी ने भी मन में कितनी गालियां मेरे बेटे को और बिजली विभाग को दी होंगी.
बेटा भी किचन में आ गया तो बाबूजी फ्रिज खोल कर पानी पीने का नाटक करने लगे. और फिर बाहर चले गए.
उन के चेहरे पर भरपूर मायूसी साफ़ दिखाई दे रही थी, जैसे किसी बिल्ली के आगे से मलाई से भरा हुआ कटोरा उठा लिया गया हो.
मैं भी मायूस थी, पर थोड़ी मन में तस्सल्ली भी थी, कि बात कहीं हाथ से बाहर ही न निकल जाती. और इस छेड़छाड़ का अंत न जाने कहाँ होता.
तो मैं भी एक ठंडी सांस ले कर किचन का अपना काम करने लगी.