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Incest वो तो है अलबेला (incest + adultery)

क्या संध्या की गलती माफी लायक है??


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Akash18

Magic You Looking For Is In The Work You Avoiding
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Bhai itna shandra or emotional story hai but chutiya kat diya yr readers ka, ya story likho mat or likho to complete karo yr
 

Hemantstar111

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अपडेट 27

अभी के जाते ही, संध्या ने अमन को अपनी कार से हॉस्पिटल की तरफ चल पड़ती है। उसकी हालत किसी बेबस - लाचार की तरह हो चुकी थी। वो आखिर करे भी तो क्या करे?

उसकी आंखों के सामने दो लोग थे जिसे वो दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार करती थी। एक था अमन जो उसका खुद का बेटा तो नहीं मगर बेटे से कम भी नहीं था, जिसे वो बचपन से प्यार करती आई थी, खुद के बेटे से भी ज्यादा।

और दूसरी तरफ था, उसका खुद का बेटा, जिसे वो कभी भी अपनी का की ममता न दे सकी थी। बजाने अनजाने उसने अभी को सिर्फ दुख और तकलीफ ही आज तक देती आई थी।

कार हॉस्पिटल के सामने आ कर रुकी, अमन की हालत इतनी खराब थी कि, उसके मुंह से सिर्फ दर्द की कराह निकल रही थी। ये दर्द भरी कराह संध्या के दिल पर किसी बिजली की तरह गिर पड़ती थी, और ऐसा होना प्राकृतिक भी था क्योंकि बरसी से लेकर आज तक जितने प्यार से उसने अमन को पाला था, इस हालत में वो उसे कैसे देख सकती थी।

अमन को हॉस्पिटल में भर्ती करने के बाद वो हॉस्पिटल वार्ड के बाहर चेयर पर बैठते हुए खुद से बोली...

संध्या - "बस बहुत हो गया...मुझे मेरे बेटे को किसी न किसी तरह समझाना होगा। ये जो रास्ता वो चुन रहा है अपने साथ अन्याय होने का, ये रास्ता बिल्कुल गलत है। मार झगड़े से किसी भी चीज का हल नहीं निकलता।"

ये बात खुद से कहते हुए, उसने अपनी आंखों से आंसू को पोंछा और तभी उसे रमन की आवाज सुनाई पड़ी...

रमन - क्या हुआ भाभी...मेरे बेटे को?

रमन के आवाज में गुस्से की झलक थी, जिसे संध्या महसूस कर सकती थी।

संध्या - वो...कॉलेज में इसकी लड़ाई हो गई थी।

रमन - उसी लड़के के साथ न भाभी? जिसको आप अपना बेटा समझती है? इसीलिए आप चुपचाप बिना उसे कुछ बोले वहां से चली आई? मगर मैं चुप नहीं बैठूंगा भाभी, उस लड़के को तो मैं उसकी गलती की सजा जरूर दूंगा।

कहते हुए रमन जैसे अपने पैर मोड़ें....

संध्या - रुक जाओ रमन, जो कुछ भी हुआ अमन के साथ उससे मुझे भी तकलीफ हो रही है। और...और, अभी ने जो कुछ अमन के साथ किया वो भी गलत था। माना कि अमन को पायल के साथ इस तरह का बरताव नहीं करना चाहिए था और इस बरताव के लिए अभी को भी अमन को मारने की जरूरत नहीं थी। मगर इसमें अभी का कोई कुसूर नहीं है रमन, उसने जो भी किया वो उस लम्हे में वो गुस्से में था, और ये सब कुछ गुस्से में हो गया उससे।

रमन - अच्छा...कल को अगर उसने गुस्से में अमन की जान ले लेता तो भी आप यही कहती?

संध्या - शांत हो जाओ रमन, मै अभी से इसके बारे में बात करूंगी, और उसे समझाऊंगी।

रमन - क्या समझाएंगी आप? वो कल का छोकरा डिग्री कॉलेज बनने से रोक दिया, और आप उसकी बात मान कर डिग्री कॉलेज बंद कर दिया। और अब कहती हो कि आप उसे समझाओगे?

संध्या - डिग्री कॉलेज मैने उसके कहने पर बंद नहीं की रमन, बल्कि तुम्हारी बेईमानी और मक्कारी थी, जो तुमने गांव वालों के साथ किया, और जब सच्चाई सामने आई तब मैने वही किया जो होना चाहिए था।

रमन संध्या की बातों से गुस्से में और लाल हो रहा था, उसके हाथ पैर गुस्से में कांप रहे थे।

रमन - चलो मन मैने मक्कारी की गांव वालों के साथ, मगर मैने जो भी किया वो पिता जी का सपना पूरा करने के लिए किया। और इसमें गांव वालों का भी फायदा ही था, हां मानता हु कि उपजाऊ जमीन पर मुझे वो डिग्री कॉलेज बनने का हक नहीं था, मगर ये मेरी सिर्फ नासमझी और भूल थी।

संध्या - इसीलिए मैने तुम्हे कुछ नहीं बोला इस बात के लिए रमन, और इसी तरह अभी भी नासमझी में अमन पर हाथ उठा दिया और तुम्हे इस बात को भूल जाना चाहिए।

रमन कुछ बोलने ही वाला था कि, मुनीम ने उसे इशारे में रोक दिया। मुनीम का इशारा पाकर उस वक्त रमन अपने आप को शांत कर लेता है.....
 

Hemantstar111

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स्टोरी को फ्लो में लाने के लिए, मुझे स्टोरी एक बार फिर से पढ़नी पड़ेगी...

मैं वादा तो नहीं करता कि अपडेट टाइम तो टाइम दूंगा मगर कोशिश करूंगा
 

AGRIM9INCH

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अपडेट 27

अभी के जाते ही, संध्या ने अमन को अपनी कार से हॉस्पिटल की तरफ चल पड़ती है। उसकी हालत किसी बेबस - लाचार की तरह हो चुकी थी। वो आखिर करे भी तो क्या करे?

उसकी आंखों के सामने दो लोग थे जिसे वो दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार करती थी। एक था अमन जो उसका खुद का बेटा तो नहीं मगर बेटे से कम भी नहीं था, जिसे वो बचपन से प्यार करती आई थी, खुद के बेटे से भी ज्यादा।

और दूसरी तरफ था, उसका खुद का बेटा, जिसे वो कभी भी अपनी का की ममता न दे सकी थी। बजाने अनजाने उसने अभी को सिर्फ दुख और तकलीफ ही आज तक देती आई थी।

कार हॉस्पिटल के सामने आ कर रुकी, अमन की हालत इतनी खराब थी कि, उसके मुंह से सिर्फ दर्द की कराह निकल रही थी। ये दर्द भरी कराह संध्या के दिल पर किसी बिजली की तरह गिर पड़ती थी, और ऐसा होना प्राकृतिक भी था क्योंकि बरसी से लेकर आज तक जितने प्यार से उसने अमन को पाला था, इस हालत में वो उसे कैसे देख सकती थी।

अमन को हॉस्पिटल में भर्ती करने के बाद वो हॉस्पिटल वार्ड के बाहर चेयर पर बैठते हुए खुद से बोली...

संध्या - "बस बहुत हो गया...मुझे मेरे बेटे को किसी न किसी तरह समझाना होगा। ये जो रास्ता वो चुन रहा है अपने साथ अन्याय होने का, ये रास्ता बिल्कुल गलत है। मार झगड़े से किसी भी चीज का हल नहीं निकलता।"

ये बात खुद से कहते हुए, उसने अपनी आंखों से आंसू को पोंछा और तभी उसे रमन की आवाज सुनाई पड़ी...

रमन - क्या हुआ भाभी...मेरे बेटे को?

रमन के आवाज में गुस्से की झलक थी, जिसे संध्या महसूस कर सकती थी।

संध्या - वो...कॉलेज में इसकी लड़ाई हो गई थी।

रमन - उसी लड़के के साथ न भाभी? जिसको आप अपना बेटा समझती है? इसीलिए आप चुपचाप बिना उसे कुछ बोले वहां से चली आई? मगर मैं चुप नहीं बैठूंगा भाभी, उस लड़के को तो मैं उसकी गलती की सजा जरूर दूंगा।

कहते हुए रमन जैसे अपने पैर मोड़ें....

संध्या - रुक जाओ रमन, जो कुछ भी हुआ अमन के साथ उससे मुझे भी तकलीफ हो रही है। और...और, अभी ने जो कुछ अमन के साथ किया वो भी गलत था। माना कि अमन को पायल के साथ इस तरह का बरताव नहीं करना चाहिए था और इस बरताव के लिए अभी को भी अमन को मारने की जरूरत नहीं थी। मगर इसमें अभी का कोई कुसूर नहीं है रमन, उसने जो भी किया वो उस लम्हे में वो गुस्से में था, और ये सब कुछ गुस्से में हो गया उससे।

रमन - अच्छा...कल को अगर उसने गुस्से में अमन की जान ले लेता तो भी आप यही कहती?

संध्या - शांत हो जाओ रमन, मै अभी से इसके बारे में बात करूंगी, और उसे समझाऊंगी।

रमन - क्या समझाएंगी आप? वो कल का छोकरा डिग्री कॉलेज बनने से रोक दिया, और आप उसकी बात मान कर डिग्री कॉलेज बंद कर दिया। और अब कहती हो कि आप उसे समझाओगे?

संध्या - डिग्री कॉलेज मैने उसके कहने पर बंद नहीं की रमन, बल्कि तुम्हारी बेईमानी और मक्कारी थी, जो तुमने गांव वालों के साथ किया, और जब सच्चाई सामने आई तब मैने वही किया जो होना चाहिए था।

रमन संध्या की बातों से गुस्से में और लाल हो रहा था, उसके हाथ पैर गुस्से में कांप रहे थे।

रमन - चलो मन मैने मक्कारी की गांव वालों के साथ, मगर मैने जो भी किया वो पिता जी का सपना पूरा करने के लिए किया। और इसमें गांव वालों का भी फायदा ही था, हां मानता हु कि उपजाऊ जमीन पर मुझे वो डिग्री कॉलेज बनने का हक नहीं था, मगर ये मेरी सिर्फ नासमझी और भूल थी।

संध्या - इसीलिए मैने तुम्हे कुछ नहीं बोला इस बात के लिए रमन, और इसी तरह अभी भी नासमझी में अमन पर हाथ उठा दिया और तुम्हे इस बात को भूल जाना चाहिए।

रमन कुछ बोलने ही वाला था कि, मुनीम ने उसे इशारे में रोक दिया। मुनीम का इशारा पाकर उस वक्त रमन अपने आप को शांत कर लेता है.....
Bhai bahut dino baad to Aaj waapas aaye ho aur update dene ke liye bhi aap nakaar rahe ho......
 

AGRIM9INCH

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स्टोरी को फ्लो में लाने के लिए, मुझे स्टोरी एक बार फिर से पढ़नी पड़ेगी...

मैं वादा तो नहीं करता कि अपडेट टाइम तो टाइम दूंगा मगर कोशिश करूंगा
Bhai aap time too time mat do chalega lekin hapte me kam se kam 2 se 3 update to de hi sakte ho......

Is story ko padhne ke liye 1 year se jayada intejaar kiya hai....Khair der aaye durust aaye.....

Aur waise bhi is story ko pahuto ne likha lekin koi bhi sahi aur satik nahi laga kh paaya ....
 
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