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Incest रिश्तों का कामुक संगम

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Jangali107

Jangali
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हां भाई जरूर, दुबारा कोशिश करूंगा, कहानी पूरी हो, कुछ दूसरी नई कहानी भी लिखूंगा, पर अब अपने ही प्लेटफार्म पर, अपना ही एक ब्लॉग स्टार्ट करने जा रहा हूं, वहीं पर सारी कमी पूरी कर दूंगा। मुझे याद रखने के लिए आप सब लोगों का तहे दिल से शुक्रिया।
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vyabhichari

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रंजू का सफर भाग ४

रात में उठा एक तूफान सुबह में शांत हो चुका था। एक ऐसा संबंध जिसका सभ्य समाज में कोई स्थान नहीं था, उस संबंध में अंजू ने खुद को अपने ही बहन के बेटे संग जोड़ लिया था। उसे इस बात का अफसोस या किसी प्रकार का पछतावा नहीं था। और ये उसके चेहरे से साफ पता चल रहा था। अंजू बिल्कुल नंगी राजू की ओर करवट लिए सोई थी। उसके बाल बिखरे हुए थे, आंखों का काजल थोड़ा लिप पुत गया था, होंठों पर लिपस्टिक भी लगभग उतर चुका था, क्योंकि सारा लिपस्टिक अरुण के चेहरे, सीने और लण्ड पर लग चुका था। अरुण उसकी बांहों में उसकी चूचियों के बीच सर घुसाए सो रहा था और वो उसे अपनी बांहों से चिपकाए हुए थी। अरुण के हाथ अंजू के चूतड़ों पर थे। अंजू की जांघों के बीच अरुण का लण्ड उसकी बूर से चिपका हुआ था। कल रात की आखरी चुदाई के बाद, दोनों इतने थक चुके थे कि वैसे ही सो गए। सुबह के ग्यारह बजे अरुण की नींद टूटी। उसकी नज़र सीधे अंजू के चेहरे पर गयी और एक पल को उसकी धड़कन थम गई उसे ऐसा लगा कि कहीं वो रंजू तो नहीं। लेकिन उसे अगले ही पल कल रात की सारी घटना याद आ गयी और चेहरे पर मुस्कान आ गयी। उसके थप्पड़ की वजह से अंजू के गाल पर निशान बन चुके थे। वो उसे सहलाने लगा। अंजू उठी तो उसकी नज़र अरुण से टकराई। अंजू शर्माते हुए अरुण के गालों पर एक चुम्मा दिया, और बोली," अरुण अईसे का देखअ तारे ?
अरुण," काल्हि तहराके थप्पड़ मारने रहनि, निशान पड़ गईल बा। हमके बढ़िया नइखे लागत।"
अंजू," हमार जान बचबे खातिर तू हमके थप्पड़ मारले रहलु। ई थप्पड़ ना इहो त प्यार बा।" ऐसा बोलके उसने उसकी हथेली चूम ली। फिर उसकी नज़र सीधे घड़ी पर गयी, उसने देखा कि ग्यारह बज चुके हैं, तो वो उठके जाने लगी। अंजू बहुत दिनों बाद चुदी थी। उसका शरीर में मीठा मीठा दर्द हो रहा था। अरुण की ठुकाई की वजह से उसके जांघों में भी दर्द हो रहा था। वो बिस्तर से उतरकर दो चार कदम लड़खड़ाते हुए चली और फिर अचानक से संतुलन खो कर गिरने लगी तो उसने अलमीरा का सहारा लेकर खुद को संभाला। अंजू ने अलमीरा में लगे शीशे में खुद को देखा। उसे अपने अंदर एक संतुष्ट औरत की झलक मिली। उसे अपनी हालत देख तरस नहीं बल्कि खुशी हो रही थी। वो मुस्कुराते हुए अपने बदन के हर हिस्से को निहार रही थी। उसके चूचियों पर दांत के निशान थे, पूरे बदन गर्दन, गाल, कमर, जाँघे, पेड़ू, में अरुण ने जगह जगह प्यार के निशान छोड़े थे। तभी पीछे से अरुण आकर उसे पकड़ लिया और उसके कंधों पर चूमते हुए बोला," का देखअ बारू अंजू रानी?
अंजू शर्माते हुए बोली," देखतानि कि राते तू, हमार कइसन हाल कर दिहलस राजा। सगरो देहिया के नाश हो गइल।" ऐसा बोलके उसने अरुण के बांये कंधे पर अपना सर रख दिया। अरुण अंजू के चूचियों को दबाकर उसके चूचकों को उंगलियों से रगड़ रहा था। अंजू के चूतड़ों से अरुण का लण्ड रगड़ खा रहा था। अंजू बोली," अरुण राते मन ना भरल का, जउन अभी फेर शुरू हो गईलु।" अरुण बोला," अरे तू कमाल के चीज बारू, तोहसे मन ना भर सकेला। अउर अभी त एक रात भईलहा, ना जाने अइसन केतना रात हमनीके बिताबे के बा रानी। अउर तू अभी से मन भरे के बात करअ तारू।"
अंजू," उ त ठीक बा अरुण, पर हमनीके आज रात के आठ बजे में निकलेके बा गांव जाय खातिर। फेर कइसे हमनीके ई मज़ा लेल जाई। जाने केतना दिन से हमके कउनो मरद
ना छुलस, हमरो पियास त अभी शांत ना भईल ह।" उसके बालों में हाथ फेरते हुए बोली। अरुण ने उसे अपनी ओर घुमा लिया और बोला," अंजू तू फिकर मत कर रानी, हम तहार पियास मिटाईब। जेतना दिन तू तरसलू, सबके हिसाब लेब। एतना कि तू पगला जइबू। आज रात हमनी के गांव ना जाईब, अब कल बस से जाईब। माई के तू फोन कर दअ, कि जेकरा समान देवे के रहला, उ काल जाई।" अरुण उसके चूतड़ों को थपथपाते हुए बोला।
अंजू," बड़ा दिमाग चलाबत बारआ, बहुत होशियार बारू। ई बढ़िया रहि। अभी कह देतानि।" अरुण ने अंजू को तुरंत फोन लाके दिया। अंजू ने फोन लगाया, तो उधर नीतू ने फोन उठाया। अंजू अभी भी नंगी अरुण के बांहों में थी, और अरुण उसके चूचियों को मसल रहा था, और उसके गालों, होठ को रह रहके चूम ले रहा था। अंजू बोली," नीतू तनि रंजू मौसी से बात करा द।"
नीतू," अभी करात बानि, तहार तबियत ठीक बानु, बहुत हाँफत बारू।" उसकी तेज़ साँसों को सुनकर नीतू ने कहा। अंजू बोली," हाँ, ठीक बा, उ तनि, काम करत रहनि।"
तब तक नीतू ने रंजू को फोन दे दिया, और अंजू ने उसे बोला," रंजू दीदी हम काल सांझे तक आईब, काहेसे कि जउन आदमी जायवाला बा, उ काल जाई दुपहरी में।" इतने में अरुण ने अंजू के बूर पर लण्ड रगड़ने लगा, और अंजू के मुंह से सिसकारी फूट पड़ी। रंजू ने पूछा," का भईल रंजू, सब ठीक बा ना।"
अंजू ," हाँ सब ठीक बा, एगो मूसा टांगिया के बीच से निकल के बिल में घुस गईल, उहे से चौंक गइनी। बड़ा मोटा मूसा ( चूहा) बा ।"
रंजू," अरे ई मूसवन सब बड़ा परेशान करेले, चैन से रहे ना देले, कुल घर के नाश कर देवेले। देख बिल से निकाल ओक।"
अंजू," हाँ दीदी, ई मुसवन सब घुसेला त बिल में, पर पूरा घर में हुड़दंग मचावेला। जब मर्ज़ी बिल में घुस जाला अउर फेर निकलके मज़ा करेलन सब।"
अरुण अंजू को हल्के हल्के चोदना शुरू कर चुका था।
रंजू," एक काम कर अभी ओके बिल में रहे दे, कभू ना कभू त निकली। तब ओके भगा दिहे।"
अंजू," हम त चाहतानि, उ कभू बिल से ना निकले, उहू शांत रही अऊर हमहुँ भी खुश रहब।"
रंजू," का मतलब??
अंजू," मतलब अगर उ बिल से ना निकली त, हम भी चैन रहब, कउनो तहस नहस ना होई।"
रंजू," ओकरा बिल में ही कैद कर दे।"
अंजू," हमहुँ इहे सोचत रहनि दीदी, सारा जिनगी उ बिले में रही त केतना मज़ा आई ना।"
रंजू," अरे लेकिन ई मूस सब बड़ा चतुर होखेला, बेर बेर बिल से निकली अउर ढुकि ( घुसी)।
अंजू," लेकिन जबले बिल में ढुकल ( घुसा ) रही, त बड़ा चैन रहेला।"
अरुण को उनकी द्विअर्थिय बातें सुनके बहुत मज़ा आ रहा था और वो जोश में आ गया था। तभी उसने अंजू के चूतड़ों पर कसके तीन चार थप्पड़ लगाए।
रंजू," अरे का पिट रहलु ?
अंजू," अरुण ही बिल के पास मुलायम दीवार के पीट रहल बा, मूसा के जल्दी निकाले खातिर।"
रंजू," हाँ, हाँ, ठीक क रहल बा। ओकरा के कहा अईसे ही थपथपाए तभी जल्दी से काम हो जाई।"
अंजू," अपने से कह दे, मोबाइल स्पीकर पर बा।"
रंजू," अरुण बेटा, मौसी के बढ़िया से मदद कर द, अउर असही थपथपाव, ताकि मौसी के काम आसान हो जाये।"
अरुण को शरारत सूझी उसने, अंजू के चूतड़ पर कस कस के दो थप्पड़ और लगाए। अंजू के चूतड़ लाल हो गए, वो पीछे मुड़के अरुण को नकली गुस्से से देखी बदले में अरुण ने एक चुम्मी उड़ा दी। अंजू हंस पड़ी।
अरुण बोला," माई, अईसे करि, एतना जोर से ठीक बा ना।
रंजू," हाँ, ठीक बा। मौसी के मदद करेके चाही बेटा।"
अरुण," मौसी के मदद त करते बानि। पर देख ना मौसी खिसयात बारि। तनि मौसी के समझा द।"
रंजू," अंजू, अरुण के करे द, तू खिसिया मत। ओकर साथ दे।"
अंजू मुस्कुराके बोली," ठीक बा दीदी,तहार बेटवा बड़ा मेहनत क रहल बा।"
अरुण को तो हरी झंडी मिल गयी। उसने रंजू और अंजू की रसप्रद बातों का पूरा लुत्फ उठाया।
रंजू बोली," ठीक बा, हम फोन रखअ तानि। काम बा।"
अरुण तपाक से बोला," ना माई, रुक ना जबले मूस ना निकल जाई। तहार मार्गदर्शन के जरूरत पड़ी।"
रंजू," ठीक बा हम मोबाइल ले जा तानि, हमके कपड़ा धुए के बा। उन्हें रख लेब।"
अरुण," ई ठीक रहि।"
रंजू फोन बिना काटे, वहां से कपड़े इकट्ठे करने चली गयी और बोली कि 10 मिनट में आती हूँ।
अंजू भी मस्त हो चुकी थी, इस घटिया और नीच कुकृत्य में द्विअर्थिय संवाद का बेहतरीन तड़का जो लग चुका था।
इस वक़्त अंजू बिस्तर पर दोनों हाथ रखे, कुत्ती की तरह झुकी हुई थी। और अरुण पीछे से उसके बूर को चोद रहा था। अरुण मस्ती में लण्ड अंदर बाहर कर रहा था। तभी उसकी नज़र अंजू की भूरी, सिंकुड़ी, गाँड़ के छेद पर पड़ी। क्या मस्त दिख रही थी, गोरी गोरी गाँड़ के बीच साँवली सी छोटी छेद। उसने थूक निकालके, उसकी गाँड़ के छेद पर डाला और अंगूठे से उसे सहलाने लगा।
अंजू पलट के बोली," ई का क रहल बारू। उ गंदा जगह बा, अरे ऊंहा मत छू, इँहा से हम हगत बानि, गुंह निकलेला।"
अरुण," अरे मौसी, औरत के कउनो जगह गंदा ना होखेला। सब त तहार शरीर के ही हिस्सा बा। औरत के गाँड़ ही त शरीर के मुख्य आकर्षण बा, अब ओकरा के प्यार ना करब त अन्याय होई।"
अंजू बूर तो चुदवा ही रही थी, और सिसकारी भी लगातार मार रही थी। अरुण की ये बात सुनके, उसे मन ही मन बहुत अच्छा लगा। अंजू," तू केतना बढ़िया मरद बन रहल बारा। जउन लइकी के तहरा से बियाह होई, उ त रानी बनके रही।"
अरुण," हमार बस चली त तहरा से बियाह करब, अउर रानी बनाके रखब।"
अंजू," बियाह ना सही, सुहागरात त मना लेलस ना मोर राजा।"
अरुण ने तभी गाँड़ की छेद जोकि थूक से गीली हो चुकी थी, उसमें उंगली घुसा दी। अंजू अपने नन्हे से छेद में, हुए हमले से कराह उठी। उसका कराहना अरुण को बहुत अच्छा लगा। अंजू की बूर की चुदाई जारी थी, साथ में गाँड़ में उंगली भी घुस चुकी थी। अंजू को थोड़ा दर्द हुआ, पर फिर थोड़ी देर में गाँड़ की छेद ने उंगली को अपनी जगह दे दी। अरुण ने मन ही मन सोचा," मौसी की गाँड़ बहुत टाइट है, लगता है कभी चुदवाई नहीं है।"
अंजू," का सोचत बारा अरुण, पेल ना मौसी के बूर के।"
अरुण," हम सोचत र....." तभी उधर से मोबाइल उठाने की खड़खड़ाने की आवाज़ हुई। अरुण और अंजू दोनों सतर्क हो गए। रंजू ने मोबाइल स्पीकर पर नहीं कर रखा था, इसलिए उधर अंजू और अरुण की बातें नहीं पहुंची।
रंजू,"का भईल निकलल ना का?
अंजू शरारत से बोली," देख ना दीदी, अरुण अब दोसर बिल में ताकत ( देखना) बारे।
रंजू," का दुगो बिल बा, तब त अरुण ठीक के रहल बा। दुनु बिल के बढ़िया से देखे दे ओकरा के।"
अरुण," हाँ, माई देख ना मौसी हमके रोकत रहले कि उ बिल गंदा बा, ऊंहा पर गुंह लागल रहेला, अइसन कहतिया।"
अंजू की आंखें आश्चर्य से बड़ी हो गयी और उसने अरुण को वैसे ही घूरा, कि वो अपनी माँ से कैसे कैसे गंदी बातें बोल रहा है। लेकिन गांव में हगना, मूतना, गुंह, मूत इत्यादि शब्द ही लोग घर परिवार में भी बेझिझक इस्तेमाल करते हैं।
रंजू," त का हो गइल, मूस सब अइसन जगह पर ही रहेला। उ दोसर बिल में भी डंटा ( छड़ी) घुसा के देख।"
अंजू," घुसाके रखले बा, दीदी। अब त दुनु तरफ से पैक हो गइल बा। लेकिन ई दोसरा बिल बड़ा छोट बा, ऐमे मूस कइसे घुसी।"
रंजू," ना मुसवा सब बड़ा तेज़ होलन स, केतना भी छोटा बिल होई त घुस जाले।"
अरुण," माई, हमके त लागत बा, कि ई बिल में मूस अभी नइखे घुसल, काहे से कि ई बहुत टाइट बा। लेकिन ऐमे मूस घुसे लगी त इहो बढ़िया से खुल जाई।"
रंजू," तहके का बुझाला अंजू, कबहु नइखे घुसल का?
अंजू," का बताई दीदी, हमके पता ना रहे, इहो बिल में मूस घुस सकेले। लेकिन अभी तक त ना घुसल बा।"
रंजू," इहे त गलती कइलस तू, पहिले, ओकरा के घुसे दे, जहां घुसे चाहेला। फेन पकड़े में आसानी होई, जब ओकर मन बढ़ जाले। बड़का बिल से निकल के छोटका बिल में जाय दे। उमे फंस जाई, त पकड़े में आसानी रही।"
अरुण ये सुनके तो मस्त हो गया और बोला," माई, ठीक कह रहल बा, मौसी मूस के जाय दे, पीछे वाला छेद में।"
अंजू बोली," कहीं मुसवा काट ना ले, हमके बड़ा बदमाश मूस ह। बड़ा लंबा अउर मोट भी ह।"
रंजू," अंजू तू एतना गो हो गइल, तभू डरत बारू। कुछो ना होई। अरुण मूस के निकालअ। अउर जाय द, लेकिन ध्यान से, मौसी के कहीं काट ना ले।"
अंजू डर भी रही थी और उत्साहित भी उतनी ही थी। उसने कभी गाँड़ नहीं मरवाई थी। और अपनी बड़ी बहन से बात करते हुए, उसके ही बेटे से गाँड़ मरवाने का मज़ा ही और होगा। अरुण ने फिर अपना भीगा लण्ड अंजू की पूरी तरह गीली बूर से निकाला और अंजू को चूतड़ फैलाने का इशारा किया। अंजू ने वैसा ही किया, और अरुण ने उस नन्हे से छेद पर ढेर सारा थूक गिराया, और अपनी पहले से घुसी उंगली के सहारे, गाँड़ के अंदर की दीवार को थूक से गीला करने लगा। अंजू आनेवाले हमले के लिए, बेचैन थी। अरुण की नज़र अंजू की गाँड़ पर पहले से थी। अब उसे मौका मिल गया था। अरुण ने फिर गाँड़ के भूरे छेद पर सुपाड़ा टिकाया और धक्का दिया। लण्ड फिसलके नीचे की ओर चला गया और बूर में वापिस घुस गया। अंजू हंस पड़ी।
रंजू," का भईल ?
अंजू," मूस निकल गईल रहला, फेन आगे वाला बिल में घुस गईल। लागत बा ओकरा इहे बिल पसंद बा"
अरुण झुंझलाहट में बोला," कोई बात ना, फेन निकल जाई।"
अंजू हंस रही थी। अरुण ने लण्ड दुबारा निकाला और फिर अंजू की गाँड़ पर सेट करके जोर लगाने लगा। धीरे धीरे लण्ड के दबाव से गाँड़ की सिंकुड़ी छेद खुलने लगी और सुपाड़ा अंदर जाने लगा। सुपाड़े के दबाव से अंजू की गाँड़ के छेद की परिधि फैलती चली गयी। गीलेपन की वजह से धीरे धीरे पहले सुपाड़ा घुसा और फिर लण्ड का बाकी हिस्सा। अंजू ने बड़ी मुश्किल से अपनी चीख को रोक रखा था। पर जब सुपाड़ा घुसा तो, वो रोक ना पाई और चीख उठी।
रंजू," का भईल अंजू काहे चिचयात बारे।
अंजू रुंवासी स्वर में बोली," दीदी मुसवा काट लेले, अउर पिछला बिल में भी घुस गईल। आह... आह बड़ी दुखाता।उ...ऊ...ऊ
रंजू," कइसे काट लिहलस?
अंजू," हमार गोरवा ( पैर) के बीच से निकल गईल, अउर काट लिहलस।"
रंजू," कउनो बात नइखे, अभी जाय दे। जहां कटलस ना ऊंहा मलहम लगा ले। चल ठीक बा, हम जा तानि। काल भेंट होई।" उसने फोन रख दिया। अरुण का पूरा लण्ड अंजू की गाँड़ में घुसपैठ कर चुका था। अंजू अपने चूतड़ फैलाये अरुण के कड़े लण्ड को अपनी कसी हुई गाँड़ में महसूस कर रही थी। वो पहली बार गाँड़ मरवा रही थी, और वो भी अपनी बहन को सुनाते हुए। अरुण उसकी पीठ और चूतड़ सहला रहा था। अंजू की गाँड़ की गर्मी और कसाव उसके लण्ड को पिघलने की कोशिश में थी।
अंजू," आह आह आह हहम्मम्म, अरुण पूरा घुस गईल बा।"
अरुण," का घुस गईल बा अंजू रानी और कहां घुसल बा बोला?
अंजू शर्माते हुए," तहार लांड हमार गाँड़ के छेद में राजा, बड़ा दुखाता ए राजा।"
अरुण," अरे रानी, औरत के गाँड़ देखके ही त मन मोहित होखेला। जब तू चलत हउ, त ई तहार गाँड़ हिलके बड़ा चिढावात बा। आज त पूरा हिसाब होई। तू तनि देर रुका, अभी तहार सब दरद दूर हो जाई,अउर तहके मज़ा आयी।"
अंजू दर्द और कामुकता से भीगे आवाज़ में बोली," हाँ, राजा ई बतिया त हमहुँ सुनले बानि, कि गाँड़ चोदाबे में बूर चुदाई से भी ज़्यादा मज़ा आवेला। लेकिन हम कभू अइसन कइले नइखे।"
अरुण उसके चूतड़ों पर थप्पड़ लगाके बोला," अंजू रानी, आज तहरा एतना मज़ा आयी, कि आज के बाद तू बूर के साथ साथ गाँड़ भी खोलके चुदायिबअ।" थोड़ी देर बाद अंजू का दर्द कम हो गया। और वो मस्त होने लगी। फिर अरुण हौले हौले हल्के धक्के लगाने लगा। बस उतना ही जितना अंजू की गाँड़ झेल पाए और उसे आनंद के सागर में ले जाये। अंजू अब पूरी तरह मस्त हो चुकी थी। अरुण ने उसके बाल पकड़ रखे थे, और वो खुद अपनी गाँड़ पीछे की ओर करके गाँड़ मरवाने में सहायता कर रही थी।अरुण का कड़ा मोटा लण्ड अब अंजू की गाँड़ की अंदरूनी दीवार से घर्षण कर रहा था। उस घर्षण से उसका दर्द काफूर हो गया और उसकी जगह मस्ती ने ले ली। अरुण को भी अपने लण्ड पर अंजू के गाँड़ की दीवार का दबाव असीम आनंद दे रहा था। दोनों अब पूरे जोश में चुदाई कर रहे थे।
अंजू," आह आह हहहह.. ऊऊहहह ......ऊऊयी.... बड़ा मजा आ रहल बा, असही चोद अरुण आहआह आपन सगी मौसी के चोद। पूरा रतिया बूर चोदला, अब गाँड़ के चोद। "
अरुण," आह का मस्त गाँड़ ह साली, पूरा लांड घुस गईल बा। अंजू आज के बाद देखहिया, तू खुद गाँड़ चुदाबे खातिर हमके बुलाईबु।
अंजू," सससस ....इससस आह आऊऊ तहार लांड त गाँड़ में कहर ढा रहल बा।
अरुण के धक्के अब तेज हो चुके थे। अंजू भी चुदवाने में मगन हो चुकी थी। करीब पंद्रह मिनट तक चुदाई के बाद अरुण उसकी गाँड़ में ही पानी निकाल दिया। अंजू को भी उसी समय असीम सुख की अनुभूति हुई और दोनों बिस्तर पर आजु बाजू लेट गए। अंजू की चुदी हुई गाँड़ से अरुण के लण्ड का पानी बह रहा था। अरुण उसके गाल सहला रहा था। इस समय पौने एक हो चुके थे। दोनों काफी थक चुके थे। अंजू अरुण से बोली," देखा ना दुपहरी हो गइल, तहके भूख लागल होई। हमके तनि देर द अभी सब तैयार हो जाई।"
अरुण," हमके त भूख लागल बा, लेकिन खाय वाला ना चोदे वाला। शरीर त थक गईल पर मन ना भरल अंजू मौसी।"
अंजू," बाप रे, अभियो मन ना भरल तहार, राते तीन बेर चोदलस, अभी एक बेर। हम एतना बढ़िया बानि का।"
अरुण," अंजू रानी, हमार बस चली त सारा उमरिया तहार सब छेदवा में लांड घुसाईले रहब।"
अंजू," अभी जाय द अरुण, हमके भी भूख लागल बा। पहिले नहाईब, फेर कुछो बनाइब।"
अरुण," नहाई के जरूरत नइखे। अब जब गांव जाईब तभी तू नहैय्या।
अंजू," का अईसे काहे कहत बारू।"
अरुण," हम चाहत बानि, कि तू बिना नहाए हमरा संगे ई दु दिन रहआ। हम तहार देहिया के सुगंध अपना सांस में बसावत चाहतानि। तू जइसे अभी पसीना से लतपथ बारू, उ सुगंध हमार आत्मा से जुड़ जाई। आह आह।
अंजू हंसकर बोली," पसीना के सुगंध ना दुर्गंध होखेला। देख ना सगरो देहिया से चू रहल बा। तहके ई बढ़िया लागत बा।"
अरुण अंजू के गले से चूते पसीने की बूंदों को चाटके बोला," आह... आह केतना नमकीन बारू अंजू तू। कंखिया उठा रानी चाटे दे।"
अंजू," कांखिया में केश ह, अउर पूरा पसीना से भीजल बा। ई देखआ।"
अरुण," इहे त चाही हमके अंजू। तहार देहिया के हर हिस्सा हम चाटब। तहार बदन से जउन चीज़ निकली उ सब पी जाईब।" अरुण काँखों में जीभ फेरते हुए बोला।
अंजू को गुदगुदी हो रही थी तो मुस्कुराते हुए बोली," का मतलब? तू हमार मू....
अरुण," खुलके बोल ना रानी शर्मा मत, हाँ हम तहार मूत भी पियब अउर तहार गुं..... बुझ गईलु ना उहू चखब।" अरुण की आंखों में वासना का सैलाब साफ झलक रहा था। अंजू उसकी बातों से घृणित ना होकर, खुश हो रही थी। अरुण अंजू के बदन के हर हिस्से को चाट रहा था। अंजू उसे रोक नही रही थी। थोड़ी देर बदन चटवाने के बाद, वो उससे अलग हुई और बोली," हगे मूते त जाय दे।"
अरुण," ठीक बा हमहुँ चली का साथे।"
अंजू," ना आज ना फेर कोई दोसरा दिन।"
अंजू बाथरूम चली गयी। हगने मूतने के बाद, उसने बाथरूम में सारे कपड़े धुले। फिर ब्रश करके बाहर आई। पर अरुण के कहे अनुसार नहाई नहीं। वैसे भी अरुण ने उसको चाटके पूरा साफ कर दिया था। उसने एक नीले रंग की साड़ी डालके पूरे घर की साफ सफाई की जब उसने अपनी रात में गिरी साड़ी और तौलिया फर्श से उठाया तो शर्म से पानी पानी हो गयी, और फिर किचन में खाना बनाने चली गयी। थोड़ी देर में खाना लेकर वो अरुण के पास बिस्तर पर ही आ गयी। अरुण तब तक तौलिया लपेटकर लेटा हुआ था। अंजू और अरुण ने फिर बिस्तर पर इकट्ठे खाना खाया। अब तक शाम के तीन बज चुके थे। दोनों खाना खाकर फिर सो गए। शाम के करीब 5 बजे अरुण की नींद खुली। अंजू अरुण से ऐसे चिपकी हुई थी, जैसे कि वो उसकी बीवी हो। अरुण उसे सोता हुआ छोड़ उठा और बाथरूम में फ्रेश होने चला गया। वापिस आया तो देखा अंजू अभी भी सो रही है। अरुण ने अंजू को जगाते हुए बोला," अंजू महारानी उठी, सांझ हो गइल।
अंजू आंख मलते हुए उठी और बोली," ओह्ह... बड़ा बढ़िया नींद आवत रहला जानू।"
अरुण," अंजू तू सुते समय, एकदम परी लागेलु सच्चे।" अरुण फिर टी वी देखने हॉल में चला गया। अंजू घर के काम निपटा कर रात का खाना बनाने लगी। अंजू खाना बनाने के बाद उसके पास आके बैठ गयी और वो भी टी वी देखने लगी। अरुण अंजू को अपने गोद में बिठा लिया और सेक्सी भोजपुरी गीत," छलकअत हमरो जवनिया ए राजा, जइसे कि बल्टी के पनिया हो" जिसमें काजल राघवानी बेहद सेक्सी अंदाज़ में नाच रही थी, साथ में देखने लगा। अंजू उसके गोद में चैन से बैठी, गाने का लुत्फ उठा रही थी। दोनों गाना सुनके गरम होने लगे।अरुण का हाथ जाने कब अंजू के चूचियों को दबोचने लगा पता ही नहीं चला। ठीक वैसे ही अंजू जाने कब उसका लण्ड सहलाने लगी, उसे खुद पता नहीं लगा।
अरुण जब उसकी चूचियों को मसल रहा था, तो उसकी नज़र उसके मंगलसूत्र पर गयी। उसने सोचा कि आज अंजू को पूरी तरह, अपनी गुलाम बना लूंगा। उसने अंजू से कहा," अंजू मौसी, अब तहार हमार रिश्ता का बा? हम आपके हैं कौन?
अंजू उसकी आँखों में देखते हुए बोली," हम त शरीफ औरत हईं, इहेसे सबके सामने त तहार मौसी रहब पर अकेले में तू हमार साजन और हम तहार सजनी।"
अरुण," मौसाजी आहिंये, तब तू हमके याद करबू कि ना।"
अंजू," उ आदमी अगर सामने आई, त ओकर मुंह नछोर लेब। पर मजबूरी बा, ओकरा से त हमार घर चलता। उ दुनिया के सामने हमार पति बा अउर रही। पर दिल से तू, अब ई मन में बस गईल बारू।"
अरुण," लागत बा तहरा मन में मौसा जी के प्रति अभी अउर गुस्सा बा।"
अंजू," हाँ, बता ना सकिले राजा कि केतना गुस्सा बा।"
अरुण," हमके केतना चाहेलु? हम जे कहब करबू?
अंजू," हाँ राजा, जउन बतिया कहबा, सब मानब।" ऐसा बोलके उसने उसके माथे को चूम लिया।
अरुण," सच्ची अंजू रानी।"
अंजू," चाहे त आजमा के देखले।"
अरुण ने वहां पड़ी पेटी को दिखाते हुए बोला," देख उहे समान बा, जे तू भेजे चाहत रहलु रानी, उ धोखेबाज़ के। जो ओ पर मूत दे।" उसने अंजू को इशारे करते हुए बोला।
अंजू ने उसकी आँखों में देखा फिर जैसे आदेश के पालन के लिए उठी और पेटी के दोनों बगल पैर रखके, अपनी साड़ी उठा ली। उसने अंदर पैंटी नहीं पहन रखी थी। वो अरुण की आंखों में देखते हुए बेझिझक बैठकर मूतने लगी। बूर से मस्त सीटी की आवाज़ फूट पड़ी। बूर से मूत की धार सीधे उस पेटी पर पड़ी और उसे गीला करने लगी। पेशाब की धार बहुत तेज थी, आसपास की फर्श भी काफी गीली हो चुकी थी। धीरेधीरे पेशाब की धार हल्की परने लगी। अंजू की बूर से अंतिम क्षणों में धार कभी छूटती तो कभी बंद हो जाती। अरुण उसे और वो अरुण को एकटक देखते रहे। अंजू थोड़ा शर्मा भी रही थी। अरुण ने फिर उसे अपने पास आने का इशारा किया। अरुण अंजू की साड़ी और साया निकालने लगा। अंजू ने झूठा प्रतिरोध तो किया, पर अरुण उसकी कहां सुनने वाला था। थोड़ी ही देर में उसकी साड़ी और साया उसके बदन से अलग होके फर्श पर पड़े थे। अंजू ने बेशर्मी से अपनी ब्लाउज भी खुद ही उतार दी। अरुण ने फिर उसका मंगलसूत्र पकड़के अपने पास बुलाया। और बोला," अंजू, तहार गुस्सा तब शांत होई, जब तू मौसा के निशानी मिटाइबू।"
अंजू," का कहे चाहा तारू?
अरुण," ई मंगलसूत्र खोल दे रानी, अउर हम बताईब की एक्कर सही जगह कौन बा।"
अंजू," अरुण ई त बियाहल औरत के सृंगार होखेला, ई कइसे उतार दी।"
अरुण," इहे में त मज़ा आयी। हमरा पर भरोसा रख उतार दे।"
अंजू ने फिर बिना सवाल किए अरुण के कहे अनुसार मंगलसूत्र उतार दी। अरुण ने वो मंगलसूत्र अपने लण्ड पर लपेट लिया अउर बोला," रानी देख इहे औकात बा तहार मंगसलसूत्र के। हमार लण्ड पर बंधलबा। तहार गांडू पति, साला, मादरचोद, अइसन बीवी छोड़के भागल बा।"
अंजू नंगी ही उसकी गोद में बैठ गयी। फिर लण्ड पकड़के बोली," अरुण, बड़ा होशियार आदमी बारा तू, हमार पति के का तरीका से बेइज़्ज़त कइले बा। लेकिन हमके भी मज़ा आईल। अब का करे के बा।"
अरुण," अंजू तहराके सबसे अच्छा गिफ्ट का दिहलस बा उ?
अंजू," उ हमके, पिछला बार एगो बढ़िया साड़ी देले बा।"
अरुण," जो उ लेके आ जल्दी से।" अंजू उसकी आज्ञा मानते हुए बोली," अभी लावत हईं।" और थोड़ी देर में वो साड़ी लेकर आ गयी।"
अरुण," अब ई पर थूक द।
अंजू ने उसपे थूका फिर अरुण ने उसे सारा सामान साड़ी लेकर घर के पीछे नंगी ही ले गया। अंजू थोड़ा हिचकिचाई पर अंधेरा लगभग हो चुका था। फिर उसने अंजू से वो सारा सामान तालाब में फिकवाया, और उसीके हाथों वो साड़ी भी जलवा दी। अंजू को ऐसा करने का कोई अफसोस नहीं था। एक तरफ अंजू का प्यार डूब रहा था, तो एक तरफ उसका इश्क़ जल रहा था। अरुण अंजू को गोद में उठाके, फिरसे उसके बिस्तर पर ले आया।
अरुण ने अपना लण्ड खोलके उसके सामने रख दिया और उसे बोला," चल अंजू रंडी, चूस लांड के। रंडी साली, बहुत गरम माल बाटे तू।"
अंजू अपने मुंह में उंगली लिए हुए मुस्कुराते हुए अपनी गाँड़ हिला रही थी। अरुण उसके बाल पकड़के उसे बोला," अरे साली, रंडी के जनमल, सुनाई नइखे देत का।"
अंजू को अरुण का ये आक्रामक रूप अच्छा लग रहा था।
अंजू बोली," आह... आह.... तहरा मुंह से गारी सुनके बूर पानी छोड़ रहल बा, देखा ना। हमार सुहाग के निशानी तू आपन लांड पर रखले बारू, आह.... देखके देहिया गनगना रहल बा।"
अरुण उसके चूतड़ों पर तीन चार तमाचे मारे और बोला," अबसे तू हमार रंडी बारू, रखैल हउ। बुझला अबसे खाली हम तहके चोदब। साली तहरा जइसन औरतिया सब बहक जालि, अउर पराया मरद से चुदाबेलि। घरके मान मर्यादा सब माटी में मिला देवेलि। अबसे तहार मालिक और आशिक़ हम हईं।" अंजू ने हॉं में सर हिलाया और अरुण का लण्ड चूसने लगी। अरुण," असही चूस, देखा हमके, तू मौसा से केतना नफरत करेलु। जेतना बढ़िया से चुसबु, उतना ही तहार नफरत पता लागी। अंजू पूरे मगन से उसका लण्ड चूस रही थी। कभी सुपाड़े को जीभ से चाटती, तो कभी पूरे लण्ड को। अंजू ऐसा करते हुए अरुण की आंखों में देखती रही। बीच बीच में उसका लण्ड हिलाती थी। उससे करीब 10 मिनट लण्ड चुसवाने के बाद अरुण का लण्ड काफी शख्त हो गया।

अरुण अपने लण्ड पर अंजू का मंगलसूत्र लपेटे, उसे चोदने लगा। अंजू की बूर और ज़्यादा गीली हो चुकी थी, अरुण ने जो सब उससे करवाया था। उस रात उन दोनों को किसी का भी ग़म या पछतावा नहीं था। अंजू अरुण से पूरी रात चुदती रही। अगले दिन जब तक वो लोग गांव के लिए नहीं निकले, पूरे नंगे ही रहे। अंजू तो शर्म और हया भूलकर अपने बहन के बेटे के साथ, मज़े ले रही थी। वो अरुण के कहे अनुसार, बिल्कुल नहीं नहाई, जब तक वो निकल नहीं गए। अगले दिन वो लोग शाम को गांव पहुंचे। अरुण दो रातों से जो मज़े लिया था, आज रात उसे अकेले छत पर बितानी थी।
गांव में वापिस आकर तीन चार दिन बीत गए थे, और अरुण और रंजू के जाने में अब सिर्फ दो दिन का समय था। अरुण ने अंजू और नीतू को फिर से चोदने की कोशिश तो कि, पर मौका नहीं मिला। वो छत पर रोज़ मूठ मारके सो जाता था। उधर अंजू और नीतू दोनों माँ बेटी का भी बुरा हाल था। उन्हें अरुण के साथ मौका ही नहीं मिल रहा था। शायद कुदरत को आगे कुछ और ही मंजूर था। आखिर वो दिन आ ही गया जब अरुण और रंजू को इलाहाबाद के लिए रवाना होना था। दोनों बस पकड़के पहले पटना गए। फिर वहां से रात नौ बजे की उनकी ट्रैन थी। दोनों स्टेशन पर गाड़ी का इंतज़ार कर रहे थे।
 

vyabhichari

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मैंने लाख कोशिश की रंजू की कहानी पर जल्दी आऊं। पर अंजू और अरुण के बीच अगर एक अपडेट और ना देता तो बेईमानी होती। इसलिए इस अध्याय में भी अंजू और अरुण का ही रसप्रद प्रसंग पढ़ने को मिलेगा। लेकिन अंत में रंजू और अरुण के इलाहाबाद के सफर की शुरुवात हो चुकी है। यहां से रंजू और अरुण की कहानी शुरू होती है। कुछ गलती हुई हो तो क्षमा करें।

धन्यवाद
व्यभिचारी
 

RAJPUT SEKHAR

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मैंने लाख कोशिश की रंजू की कहानी पर जल्दी आऊं। पर अंजू और अरुण के बीच अगर एक अपडेट और ना देता तो बेईमानी होती। इसलिए इस अध्याय में भी अंजू और अरुण का ही रसप्रद प्रसंग पढ़ने को मिलेगा। लेकिन अंत में रंजू और अरुण के इलाहाबाद के सफर की शुरुवात हो चुकी है। यहां से रंजू और अरुण की कहानी शुरू होती है। कुछ गलती हुई हो तो क्षमा करें।धन्यवाद
व्यभिचारी
बहुत सुन्दर रचना बा भाई land से पानी निकल गइल
 

Roy monik

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रंजू का सफर भाग ४

रात में उठा एक तूफान सुबह में शांत हो चुका था। एक ऐसा संबंध जिसका सभ्य समाज में कोई स्थान नहीं था, उस संबंध में अंजू ने खुद को अपने ही बहन के बेटे संग जोड़ लिया था। उसे इस बात का अफसोस या किसी प्रकार का पछतावा नहीं था। और ये उसके चेहरे से साफ पता चल रहा था। अंजू बिल्कुल नंगी राजू की ओर करवट लिए सोई थी। उसके बाल बिखरे हुए थे, आंखों का काजल थोड़ा लिप पुत गया था, होंठों पर लिपस्टिक भी लगभग उतर चुका था, क्योंकि सारा लिपस्टिक अरुण के चेहरे, सीने और लण्ड पर लग चुका था। अरुण उसकी बांहों में उसकी चूचियों के बीच सर घुसाए सो रहा था और वो उसे अपनी बांहों से चिपकाए हुए थी। अरुण के हाथ अंजू के चूतड़ों पर थे। अंजू की जांघों के बीच अरुण का लण्ड उसकी बूर से चिपका हुआ था। कल रात की आखरी चुदाई के बाद, दोनों इतने थक चुके थे कि वैसे ही सो गए। सुबह के ग्यारह बजे अरुण की नींद टूटी। उसकी नज़र सीधे अंजू के चेहरे पर गयी और एक पल को उसकी धड़कन थम गई उसे ऐसा लगा कि कहीं वो रंजू तो नहीं। लेकिन उसे अगले ही पल कल रात की सारी घटना याद आ गयी और चेहरे पर मुस्कान आ गयी। उसके थप्पड़ की वजह से अंजू के गाल पर निशान बन चुके थे। वो उसे सहलाने लगा। अंजू उठी तो उसकी नज़र अरुण से टकराई। अंजू शर्माते हुए अरुण के गालों पर एक चुम्मा दिया, और बोली," अरुण अईसे का देखअ तारे ?
अरुण," काल्हि तहराके थप्पड़ मारने रहनि, निशान पड़ गईल बा। हमके बढ़िया नइखे लागत।"
अंजू," हमार जान बचबे खातिर तू हमके थप्पड़ मारले रहलु। ई थप्पड़ ना इहो त प्यार बा।" ऐसा बोलके उसने उसकी हथेली चूम ली। फिर उसकी नज़र सीधे घड़ी पर गयी, उसने देखा कि ग्यारह बज चुके हैं, तो वो उठके जाने लगी। अंजू बहुत दिनों बाद चुदी थी। उसका शरीर में मीठा मीठा दर्द हो रहा था। अरुण की ठुकाई की वजह से उसके जांघों में भी दर्द हो रहा था। वो बिस्तर से उतरकर दो चार कदम लड़खड़ाते हुए चली और फिर अचानक से संतुलन खो कर गिरने लगी तो उसने अलमीरा का सहारा लेकर खुद को संभाला। अंजू ने अलमीरा में लगे शीशे में खुद को देखा। उसे अपने अंदर एक संतुष्ट औरत की झलक मिली। उसे अपनी हालत देख तरस नहीं बल्कि खुशी हो रही थी। वो मुस्कुराते हुए अपने बदन के हर हिस्से को निहार रही थी। उसके चूचियों पर दांत के निशान थे, पूरे बदन गर्दन, गाल, कमर, जाँघे, पेड़ू, में अरुण ने जगह जगह प्यार के निशान छोड़े थे। तभी पीछे से अरुण आकर उसे पकड़ लिया और उसके कंधों पर चूमते हुए बोला," का देखअ बारू अंजू रानी?
अंजू शर्माते हुए बोली," देखतानि कि राते तू, हमार कइसन हाल कर दिहलस राजा। सगरो देहिया के नाश हो गइल।" ऐसा बोलके उसने अरुण के बांये कंधे पर अपना सर रख दिया। अरुण अंजू के चूचियों को दबाकर उसके चूचकों को उंगलियों से रगड़ रहा था। अंजू के चूतड़ों से अरुण का लण्ड रगड़ खा रहा था। अंजू बोली," अरुण राते मन ना भरल का, जउन अभी फेर शुरू हो गईलु।" अरुण बोला," अरे तू कमाल के चीज बारू, तोहसे मन ना भर सकेला। अउर अभी त एक रात भईलहा, ना जाने अइसन केतना रात हमनीके बिताबे के बा रानी। अउर तू अभी से मन भरे के बात करअ तारू।"
अंजू," उ त ठीक बा अरुण, पर हमनीके आज रात के आठ बजे में निकलेके बा गांव जाय खातिर। फेर कइसे हमनीके ई मज़ा लेल जाई। जाने केतना दिन से हमके कउनो मरद
ना छुलस, हमरो पियास त अभी शांत ना भईल ह।" उसके बालों में हाथ फेरते हुए बोली। अरुण ने उसे अपनी ओर घुमा लिया और बोला," अंजू तू फिकर मत कर रानी, हम तहार पियास मिटाईब। जेतना दिन तू तरसलू, सबके हिसाब लेब। एतना कि तू पगला जइबू। आज रात हमनी के गांव ना जाईब, अब कल बस से जाईब। माई के तू फोन कर दअ, कि जेकरा समान देवे के रहला, उ काल जाई।" अरुण उसके चूतड़ों को थपथपाते हुए बोला।
अंजू," बड़ा दिमाग चलाबत बारआ, बहुत होशियार बारू। ई बढ़िया रहि। अभी कह देतानि।" अरुण ने अंजू को तुरंत फोन लाके दिया। अंजू ने फोन लगाया, तो उधर नीतू ने फोन उठाया। अंजू अभी भी नंगी अरुण के बांहों में थी, और अरुण उसके चूचियों को मसल रहा था, और उसके गालों, होठ को रह रहके चूम ले रहा था। अंजू बोली," नीतू तनि रंजू मौसी से बात करा द।"
नीतू," अभी करात बानि, तहार तबियत ठीक बानु, बहुत हाँफत बारू।" उसकी तेज़ साँसों को सुनकर नीतू ने कहा। अंजू बोली," हाँ, ठीक बा, उ तनि, काम करत रहनि।"
तब तक नीतू ने रंजू को फोन दे दिया, और अंजू ने उसे बोला," रंजू दीदी हम काल सांझे तक आईब, काहेसे कि जउन आदमी जायवाला बा, उ काल जाई दुपहरी में।" इतने में अरुण ने अंजू के बूर पर लण्ड रगड़ने लगा, और अंजू के मुंह से सिसकारी फूट पड़ी। रंजू ने पूछा," का भईल रंजू, सब ठीक बा ना।"
अंजू ," हाँ सब ठीक बा, एगो मूसा टांगिया के बीच से निकल के बिल में घुस गईल, उहे से चौंक गइनी। बड़ा मोटा मूसा ( चूहा) बा ।"
रंजू," अरे ई मूसवन सब बड़ा परेशान करेले, चैन से रहे ना देले, कुल घर के नाश कर देवेले। देख बिल से निकाल ओक।"
अंजू," हाँ दीदी, ई मुसवन सब घुसेला त बिल में, पर पूरा घर में हुड़दंग मचावेला। जब मर्ज़ी बिल में घुस जाला अउर फेर निकलके मज़ा करेलन सब।"
अरुण अंजू को हल्के हल्के चोदना शुरू कर चुका था।
रंजू," एक काम कर अभी ओके बिल में रहे दे, कभू ना कभू त निकली। तब ओके भगा दिहे।"
अंजू," हम त चाहतानि, उ कभू बिल से ना निकले, उहू शांत रही अऊर हमहुँ भी खुश रहब।"
रंजू," का मतलब??
अंजू," मतलब अगर उ बिल से ना निकली त, हम भी चैन रहब, कउनो तहस नहस ना होई।"
रंजू," ओकरा बिल में ही कैद कर दे।"
अंजू," हमहुँ इहे सोचत रहनि दीदी, सारा जिनगी उ बिले में रही त केतना मज़ा आई ना।"
रंजू," अरे लेकिन ई मूस सब बड़ा चतुर होखेला, बेर बेर बिल से निकली अउर ढुकि ( घुसी)।
अंजू," लेकिन जबले बिल में ढुकल ( घुसा ) रही, त बड़ा चैन रहेला।"
अरुण को उनकी द्विअर्थिय बातें सुनके बहुत मज़ा आ रहा था और वो जोश में आ गया था। तभी उसने अंजू के चूतड़ों पर कसके तीन चार थप्पड़ लगाए।
रंजू," अरे का पिट रहलु ?
अंजू," अरुण ही बिल के पास मुलायम दीवार के पीट रहल बा, मूसा के जल्दी निकाले खातिर।"
रंजू," हाँ, हाँ, ठीक क रहल बा। ओकरा के कहा अईसे ही थपथपाए तभी जल्दी से काम हो जाई।"
अंजू," अपने से कह दे, मोबाइल स्पीकर पर बा।"
रंजू," अरुण बेटा, मौसी के बढ़िया से मदद कर द, अउर असही थपथपाव, ताकि मौसी के काम आसान हो जाये।"
अरुण को शरारत सूझी उसने, अंजू के चूतड़ पर कस कस के दो थप्पड़ और लगाए। अंजू के चूतड़ लाल हो गए, वो पीछे मुड़के अरुण को नकली गुस्से से देखी बदले में अरुण ने एक चुम्मी उड़ा दी। अंजू हंस पड़ी।
अरुण बोला," माई, अईसे करि, एतना जोर से ठीक बा ना।
रंजू," हाँ, ठीक बा। मौसी के मदद करेके चाही बेटा।"
अरुण," मौसी के मदद त करते बानि। पर देख ना मौसी खिसयात बारि। तनि मौसी के समझा द।"
रंजू," अंजू, अरुण के करे द, तू खिसिया मत। ओकर साथ दे।"
अंजू मुस्कुराके बोली," ठीक बा दीदी,तहार बेटवा बड़ा मेहनत क रहल बा।"
अरुण को तो हरी झंडी मिल गयी। उसने रंजू और अंजू की रसप्रद बातों का पूरा लुत्फ उठाया।
रंजू बोली," ठीक बा, हम फोन रखअ तानि। काम बा।"
अरुण तपाक से बोला," ना माई, रुक ना जबले मूस ना निकल जाई। तहार मार्गदर्शन के जरूरत पड़ी।"
रंजू," ठीक बा हम मोबाइल ले जा तानि, हमके कपड़ा धुए के बा। उन्हें रख लेब।"
अरुण," ई ठीक रहि।"
रंजू फोन बिना काटे, वहां से कपड़े इकट्ठे करने चली गयी और बोली कि 10 मिनट में आती हूँ।
अंजू भी मस्त हो चुकी थी, इस घटिया और नीच कुकृत्य में द्विअर्थिय संवाद का बेहतरीन तड़का जो लग चुका था।
इस वक़्त अंजू बिस्तर पर दोनों हाथ रखे, कुत्ती की तरह झुकी हुई थी। और अरुण पीछे से उसके बूर को चोद रहा था। अरुण मस्ती में लण्ड अंदर बाहर कर रहा था। तभी उसकी नज़र अंजू की भूरी, सिंकुड़ी, गाँड़ के छेद पर पड़ी। क्या मस्त दिख रही थी, गोरी गोरी गाँड़ के बीच साँवली सी छोटी छेद। उसने थूक निकालके, उसकी गाँड़ के छेद पर डाला और अंगूठे से उसे सहलाने लगा।
अंजू पलट के बोली," ई का क रहल बारू। उ गंदा जगह बा, अरे ऊंहा मत छू, इँहा से हम हगत बानि, गुंह निकलेला।"
अरुण," अरे मौसी, औरत के कउनो जगह गंदा ना होखेला। सब त तहार शरीर के ही हिस्सा बा। औरत के गाँड़ ही त शरीर के मुख्य आकर्षण बा, अब ओकरा के प्यार ना करब त अन्याय होई।"
अंजू बूर तो चुदवा ही रही थी, और सिसकारी भी लगातार मार रही थी। अरुण की ये बात सुनके, उसे मन ही मन बहुत अच्छा लगा। अंजू," तू केतना बढ़िया मरद बन रहल बारा। जउन लइकी के तहरा से बियाह होई, उ त रानी बनके रही।"
अरुण," हमार बस चली त तहरा से बियाह करब, अउर रानी बनाके रखब।"
अंजू," बियाह ना सही, सुहागरात त मना लेलस ना मोर राजा।"
अरुण ने तभी गाँड़ की छेद जोकि थूक से गीली हो चुकी थी, उसमें उंगली घुसा दी। अंजू अपने नन्हे से छेद में, हुए हमले से कराह उठी। उसका कराहना अरुण को बहुत अच्छा लगा। अंजू की बूर की चुदाई जारी थी, साथ में गाँड़ में उंगली भी घुस चुकी थी। अंजू को थोड़ा दर्द हुआ, पर फिर थोड़ी देर में गाँड़ की छेद ने उंगली को अपनी जगह दे दी। अरुण ने मन ही मन सोचा," मौसी की गाँड़ बहुत टाइट है, लगता है कभी चुदवाई नहीं है।"
अंजू," का सोचत बारा अरुण, पेल ना मौसी के बूर के।"
अरुण," हम सोचत र....." तभी उधर से मोबाइल उठाने की खड़खड़ाने की आवाज़ हुई। अरुण और अंजू दोनों सतर्क हो गए। रंजू ने मोबाइल स्पीकर पर नहीं कर रखा था, इसलिए उधर अंजू और अरुण की बातें नहीं पहुंची।
रंजू,"का भईल निकलल ना का?
अंजू शरारत से बोली," देख ना दीदी, अरुण अब दोसर बिल में ताकत ( देखना) बारे।
रंजू," का दुगो बिल बा, तब त अरुण ठीक के रहल बा। दुनु बिल के बढ़िया से देखे दे ओकरा के।"
अरुण," हाँ, माई देख ना मौसी हमके रोकत रहले कि उ बिल गंदा बा, ऊंहा पर गुंह लागल रहेला, अइसन कहतिया।"
अंजू की आंखें आश्चर्य से बड़ी हो गयी और उसने अरुण को वैसे ही घूरा, कि वो अपनी माँ से कैसे कैसे गंदी बातें बोल रहा है। लेकिन गांव में हगना, मूतना, गुंह, मूत इत्यादि शब्द ही लोग घर परिवार में भी बेझिझक इस्तेमाल करते हैं।
रंजू," त का हो गइल, मूस सब अइसन जगह पर ही रहेला। उ दोसर बिल में भी डंटा ( छड़ी) घुसा के देख।"
अंजू," घुसाके रखले बा, दीदी। अब त दुनु तरफ से पैक हो गइल बा। लेकिन ई दोसरा बिल बड़ा छोट बा, ऐमे मूस कइसे घुसी।"
रंजू," ना मुसवा सब बड़ा तेज़ होलन स, केतना भी छोटा बिल होई त घुस जाले।"
अरुण," माई, हमके त लागत बा, कि ई बिल में मूस अभी नइखे घुसल, काहे से कि ई बहुत टाइट बा। लेकिन ऐमे मूस घुसे लगी त इहो बढ़िया से खुल जाई।"
रंजू," तहके का बुझाला अंजू, कबहु नइखे घुसल का?
अंजू," का बताई दीदी, हमके पता ना रहे, इहो बिल में मूस घुस सकेले। लेकिन अभी तक त ना घुसल बा।"
रंजू," इहे त गलती कइलस तू, पहिले, ओकरा के घुसे दे, जहां घुसे चाहेला। फेन पकड़े में आसानी होई, जब ओकर मन बढ़ जाले। बड़का बिल से निकल के छोटका बिल में जाय दे। उमे फंस जाई, त पकड़े में आसानी रही।"
अरुण ये सुनके तो मस्त हो गया और बोला," माई, ठीक कह रहल बा, मौसी मूस के जाय दे, पीछे वाला छेद में।"
अंजू बोली," कहीं मुसवा काट ना ले, हमके बड़ा बदमाश मूस ह। बड़ा लंबा अउर मोट भी ह।"
रंजू," अंजू तू एतना गो हो गइल, तभू डरत बारू। कुछो ना होई। अरुण मूस के निकालअ। अउर जाय द, लेकिन ध्यान से, मौसी के कहीं काट ना ले।"
अंजू डर भी रही थी और उत्साहित भी उतनी ही थी। उसने कभी गाँड़ नहीं मरवाई थी। और अपनी बड़ी बहन से बात करते हुए, उसके ही बेटे से गाँड़ मरवाने का मज़ा ही और होगा। अरुण ने फिर अपना भीगा लण्ड अंजू की पूरी तरह गीली बूर से निकाला और अंजू को चूतड़ फैलाने का इशारा किया। अंजू ने वैसा ही किया, और अरुण ने उस नन्हे से छेद पर ढेर सारा थूक गिराया, और अपनी पहले से घुसी उंगली के सहारे, गाँड़ के अंदर की दीवार को थूक से गीला करने लगा। अंजू आनेवाले हमले के लिए, बेचैन थी। अरुण की नज़र अंजू की गाँड़ पर पहले से थी। अब उसे मौका मिल गया था। अरुण ने फिर गाँड़ के भूरे छेद पर सुपाड़ा टिकाया और धक्का दिया। लण्ड फिसलके नीचे की ओर चला गया और बूर में वापिस घुस गया। अंजू हंस पड़ी।
रंजू," का भईल ?
अंजू," मूस निकल गईल रहला, फेन आगे वाला बिल में घुस गईल। लागत बा ओकरा इहे बिल पसंद बा"
अरुण झुंझलाहट में बोला," कोई बात ना, फेन निकल जाई।"
अंजू हंस रही थी। अरुण ने लण्ड दुबारा निकाला और फिर अंजू की गाँड़ पर सेट करके जोर लगाने लगा। धीरे धीरे लण्ड के दबाव से गाँड़ की सिंकुड़ी छेद खुलने लगी और सुपाड़ा अंदर जाने लगा। सुपाड़े के दबाव से अंजू की गाँड़ के छेद की परिधि फैलती चली गयी। गीलेपन की वजह से धीरे धीरे पहले सुपाड़ा घुसा और फिर लण्ड का बाकी हिस्सा। अंजू ने बड़ी मुश्किल से अपनी चीख को रोक रखा था। पर जब सुपाड़ा घुसा तो, वो रोक ना पाई और चीख उठी।
रंजू," का भईल अंजू काहे चिचयात बारे।
अंजू रुंवासी स्वर में बोली," दीदी मुसवा काट लेले, अउर पिछला बिल में भी घुस गईल। आह... आह बड़ी दुखाता।उ...ऊ...ऊ
रंजू," कइसे काट लिहलस?
अंजू," हमार गोरवा ( पैर) के बीच से निकल गईल, अउर काट लिहलस।"
रंजू," कउनो बात नइखे, अभी जाय दे। जहां कटलस ना ऊंहा मलहम लगा ले। चल ठीक बा, हम जा तानि। काल भेंट होई।" उसने फोन रख दिया। अरुण का पूरा लण्ड अंजू की गाँड़ में घुसपैठ कर चुका था। अंजू अपने चूतड़ फैलाये अरुण के कड़े लण्ड को अपनी कसी हुई गाँड़ में महसूस कर रही थी। वो पहली बार गाँड़ मरवा रही थी, और वो भी अपनी बहन को सुनाते हुए। अरुण उसकी पीठ और चूतड़ सहला रहा था। अंजू की गाँड़ की गर्मी और कसाव उसके लण्ड को पिघलने की कोशिश में थी।
अंजू," आह आह आह हहम्मम्म, अरुण पूरा घुस गईल बा।"
अरुण," का घुस गईल बा अंजू रानी और कहां घुसल बा बोला?
अंजू शर्माते हुए," तहार लांड हमार गाँड़ के छेद में राजा, बड़ा दुखाता ए राजा।"
अरुण," अरे रानी, औरत के गाँड़ देखके ही त मन मोहित होखेला। जब तू चलत हउ, त ई तहार गाँड़ हिलके बड़ा चिढावात बा। आज त पूरा हिसाब होई। तू तनि देर रुका, अभी तहार सब दरद दूर हो जाई,अउर तहके मज़ा आयी।"
अंजू दर्द और कामुकता से भीगे आवाज़ में बोली," हाँ, राजा ई बतिया त हमहुँ सुनले बानि, कि गाँड़ चोदाबे में बूर चुदाई से भी ज़्यादा मज़ा आवेला। लेकिन हम कभू अइसन कइले नइखे।"
अरुण उसके चूतड़ों पर थप्पड़ लगाके बोला," अंजू रानी, आज तहरा एतना मज़ा आयी, कि आज के बाद तू बूर के साथ साथ गाँड़ भी खोलके चुदायिबअ।" थोड़ी देर बाद अंजू का दर्द कम हो गया। और वो मस्त होने लगी। फिर अरुण हौले हौले हल्के धक्के लगाने लगा। बस उतना ही जितना अंजू की गाँड़ झेल पाए और उसे आनंद के सागर में ले जाये। अंजू अब पूरी तरह मस्त हो चुकी थी। अरुण ने उसके बाल पकड़ रखे थे, और वो खुद अपनी गाँड़ पीछे की ओर करके गाँड़ मरवाने में सहायता कर रही थी।अरुण का कड़ा मोटा लण्ड अब अंजू की गाँड़ की अंदरूनी दीवार से घर्षण कर रहा था। उस घर्षण से उसका दर्द काफूर हो गया और उसकी जगह मस्ती ने ले ली। अरुण को भी अपने लण्ड पर अंजू के गाँड़ की दीवार का दबाव असीम आनंद दे रहा था। दोनों अब पूरे जोश में चुदाई कर रहे थे।
अंजू," आह आह हहहह.. ऊऊहहह ......ऊऊयी.... बड़ा मजा आ रहल बा, असही चोद अरुण आहआह आपन सगी मौसी के चोद। पूरा रतिया बूर चोदला, अब गाँड़ के चोद। "
अरुण," आह का मस्त गाँड़ ह साली, पूरा लांड घुस गईल बा। अंजू आज के बाद देखहिया, तू खुद गाँड़ चुदाबे खातिर हमके बुलाईबु।
अंजू," सससस ....इससस आह आऊऊ तहार लांड त गाँड़ में कहर ढा रहल बा।
अरुण के धक्के अब तेज हो चुके थे। अंजू भी चुदवाने में मगन हो चुकी थी। करीब पंद्रह मिनट तक चुदाई के बाद अरुण उसकी गाँड़ में ही पानी निकाल दिया। अंजू को भी उसी समय असीम सुख की अनुभूति हुई और दोनों बिस्तर पर आजु बाजू लेट गए। अंजू की चुदी हुई गाँड़ से अरुण के लण्ड का पानी बह रहा था। अरुण उसके गाल सहला रहा था। इस समय पौने एक हो चुके थे। दोनों काफी थक चुके थे। अंजू अरुण से बोली," देखा ना दुपहरी हो गइल, तहके भूख लागल होई। हमके तनि देर द अभी सब तैयार हो जाई।"
अरुण," हमके त भूख लागल बा, लेकिन खाय वाला ना चोदे वाला। शरीर त थक गईल पर मन ना भरल अंजू मौसी।"
अंजू," बाप रे, अभियो मन ना भरल तहार, राते तीन बेर चोदलस, अभी एक बेर। हम एतना बढ़िया बानि का।"
अरुण," अंजू रानी, हमार बस चली त सारा उमरिया तहार सब छेदवा में लांड घुसाईले रहब।"
अंजू," अभी जाय द अरुण, हमके भी भूख लागल बा। पहिले नहाईब, फेर कुछो बनाइब।"
अरुण," नहाई के जरूरत नइखे। अब जब गांव जाईब तभी तू नहैय्या।
अंजू," का अईसे काहे कहत बारू।"
अरुण," हम चाहत बानि, कि तू बिना नहाए हमरा संगे ई दु दिन रहआ। हम तहार देहिया के सुगंध अपना सांस में बसावत चाहतानि। तू जइसे अभी पसीना से लतपथ बारू, उ सुगंध हमार आत्मा से जुड़ जाई। आह आह।
अंजू हंसकर बोली," पसीना के सुगंध ना दुर्गंध होखेला। देख ना सगरो देहिया से चू रहल बा। तहके ई बढ़िया लागत बा।"
अरुण अंजू के गले से चूते पसीने की बूंदों को चाटके बोला," आह... आह केतना नमकीन बारू अंजू तू। कंखिया उठा रानी चाटे दे।"
अंजू," कांखिया में केश ह, अउर पूरा पसीना से भीजल बा। ई देखआ।"
अरुण," इहे त चाही हमके अंजू। तहार देहिया के हर हिस्सा हम चाटब। तहार बदन से जउन चीज़ निकली उ सब पी जाईब।" अरुण काँखों में जीभ फेरते हुए बोला।
अंजू को गुदगुदी हो रही थी तो मुस्कुराते हुए बोली," का मतलब? तू हमार मू....
अरुण," खुलके बोल ना रानी शर्मा मत, हाँ हम तहार मूत भी पियब अउर तहार गुं..... बुझ गईलु ना उहू चखब।" अरुण की आंखों में वासना का सैलाब साफ झलक रहा था। अंजू उसकी बातों से घृणित ना होकर, खुश हो रही थी। अरुण अंजू के बदन के हर हिस्से को चाट रहा था। अंजू उसे रोक नही रही थी। थोड़ी देर बदन चटवाने के बाद, वो उससे अलग हुई और बोली," हगे मूते त जाय दे।"
अरुण," ठीक बा हमहुँ चली का साथे।"
अंजू," ना आज ना फेर कोई दोसरा दिन।"
अंजू बाथरूम चली गयी। हगने मूतने के बाद, उसने बाथरूम में सारे कपड़े धुले। फिर ब्रश करके बाहर आई। पर अरुण के कहे अनुसार नहाई नहीं। वैसे भी अरुण ने उसको चाटके पूरा साफ कर दिया था। उसने एक नीले रंग की साड़ी डालके पूरे घर की साफ सफाई की जब उसने अपनी रात में गिरी साड़ी और तौलिया फर्श से उठाया तो शर्म से पानी पानी हो गयी, और फिर किचन में खाना बनाने चली गयी। थोड़ी देर में खाना लेकर वो अरुण के पास बिस्तर पर ही आ गयी। अरुण तब तक तौलिया लपेटकर लेटा हुआ था। अंजू और अरुण ने फिर बिस्तर पर इकट्ठे खाना खाया। अब तक शाम के तीन बज चुके थे। दोनों खाना खाकर फिर सो गए। शाम के करीब 5 बजे अरुण की नींद खुली। अंजू अरुण से ऐसे चिपकी हुई थी, जैसे कि वो उसकी बीवी हो। अरुण उसे सोता हुआ छोड़ उठा और बाथरूम में फ्रेश होने चला गया। वापिस आया तो देखा अंजू अभी भी सो रही है। अरुण ने अंजू को जगाते हुए बोला," अंजू महारानी उठी, सांझ हो गइल।
अंजू आंख मलते हुए उठी और बोली," ओह्ह... बड़ा बढ़िया नींद आवत रहला जानू।"
अरुण," अंजू तू सुते समय, एकदम परी लागेलु सच्चे।" अरुण फिर टी वी देखने हॉल में चला गया। अंजू घर के काम निपटा कर रात का खाना बनाने लगी। अंजू खाना बनाने के बाद उसके पास आके बैठ गयी और वो भी टी वी देखने लगी। अरुण अंजू को अपने गोद में बिठा लिया और सेक्सी भोजपुरी गीत," छलकअत हमरो जवनिया ए राजा, जइसे कि बल्टी के पनिया हो" जिसमें काजल राघवानी बेहद सेक्सी अंदाज़ में नाच रही थी, साथ में देखने लगा। अंजू उसके गोद में चैन से बैठी, गाने का लुत्फ उठा रही थी। दोनों गाना सुनके गरम होने लगे।अरुण का हाथ जाने कब अंजू के चूचियों को दबोचने लगा पता ही नहीं चला। ठीक वैसे ही अंजू जाने कब उसका लण्ड सहलाने लगी, उसे खुद पता नहीं लगा।
अरुण जब उसकी चूचियों को मसल रहा था, तो उसकी नज़र उसके मंगलसूत्र पर गयी। उसने सोचा कि आज अंजू को पूरी तरह, अपनी गुलाम बना लूंगा। उसने अंजू से कहा," अंजू मौसी, अब तहार हमार रिश्ता का बा? हम आपके हैं कौन?
अंजू उसकी आँखों में देखते हुए बोली," हम त शरीफ औरत हईं, इहेसे सबके सामने त तहार मौसी रहब पर अकेले में तू हमार साजन और हम तहार सजनी।"
अरुण," मौसाजी आहिंये, तब तू हमके याद करबू कि ना।"
अंजू," उ आदमी अगर सामने आई, त ओकर मुंह नछोर लेब। पर मजबूरी बा, ओकरा से त हमार घर चलता। उ दुनिया के सामने हमार पति बा अउर रही। पर दिल से तू, अब ई मन में बस गईल बारू।"
अरुण," लागत बा तहरा मन में मौसा जी के प्रति अभी अउर गुस्सा बा।"
अंजू," हाँ, बता ना सकिले राजा कि केतना गुस्सा बा।"
अरुण," हमके केतना चाहेलु? हम जे कहब करबू?
अंजू," हाँ राजा, जउन बतिया कहबा, सब मानब।" ऐसा बोलके उसने उसके माथे को चूम लिया।
अरुण," सच्ची अंजू रानी।"
अंजू," चाहे त आजमा के देखले।"
अरुण ने वहां पड़ी पेटी को दिखाते हुए बोला," देख उहे समान बा, जे तू भेजे चाहत रहलु रानी, उ धोखेबाज़ के। जो ओ पर मूत दे।" उसने अंजू को इशारे करते हुए बोला।
अंजू ने उसकी आँखों में देखा फिर जैसे आदेश के पालन के लिए उठी और पेटी के दोनों बगल पैर रखके, अपनी साड़ी उठा ली। उसने अंदर पैंटी नहीं पहन रखी थी। वो अरुण की आंखों में देखते हुए बेझिझक बैठकर मूतने लगी। बूर से मस्त सीटी की आवाज़ फूट पड़ी। बूर से मूत की धार सीधे उस पेटी पर पड़ी और उसे गीला करने लगी। पेशाब की धार बहुत तेज थी, आसपास की फर्श भी काफी गीली हो चुकी थी। धीरेधीरे पेशाब की धार हल्की परने लगी। अंजू की बूर से अंतिम क्षणों में धार कभी छूटती तो कभी बंद हो जाती। अरुण उसे और वो अरुण को एकटक देखते रहे। अंजू थोड़ा शर्मा भी रही थी। अरुण ने फिर उसे अपने पास आने का इशारा किया। अरुण अंजू की साड़ी और साया निकालने लगा। अंजू ने झूठा प्रतिरोध तो किया, पर अरुण उसकी कहां सुनने वाला था। थोड़ी ही देर में उसकी साड़ी और साया उसके बदन से अलग होके फर्श पर पड़े थे। अंजू ने बेशर्मी से अपनी ब्लाउज भी खुद ही उतार दी। अरुण ने फिर उसका मंगलसूत्र पकड़के अपने पास बुलाया। और बोला," अंजू, तहार गुस्सा तब शांत होई, जब तू मौसा के निशानी मिटाइबू।"
अंजू," का कहे चाहा तारू?
अरुण," ई मंगलसूत्र खोल दे रानी, अउर हम बताईब की एक्कर सही जगह कौन बा।"
अंजू," अरुण ई त बियाहल औरत के सृंगार होखेला, ई कइसे उतार दी।"
अरुण," इहे में त मज़ा आयी। हमरा पर भरोसा रख उतार दे।"
अंजू ने फिर बिना सवाल किए अरुण के कहे अनुसार मंगलसूत्र उतार दी। अरुण ने वो मंगलसूत्र अपने लण्ड पर लपेट लिया अउर बोला," रानी देख इहे औकात बा तहार मंगसलसूत्र के। हमार लण्ड पर बंधलबा। तहार गांडू पति, साला, मादरचोद, अइसन बीवी छोड़के भागल बा।"
अंजू नंगी ही उसकी गोद में बैठ गयी। फिर लण्ड पकड़के बोली," अरुण, बड़ा होशियार आदमी बारा तू, हमार पति के का तरीका से बेइज़्ज़त कइले बा। लेकिन हमके भी मज़ा आईल। अब का करे के बा।"
अरुण," अंजू तहराके सबसे अच्छा गिफ्ट का दिहलस बा उ?
अंजू," उ हमके, पिछला बार एगो बढ़िया साड़ी देले बा।"
अरुण," जो उ लेके आ जल्दी से।" अंजू उसकी आज्ञा मानते हुए बोली," अभी लावत हईं।" और थोड़ी देर में वो साड़ी लेकर आ गयी।"
अरुण," अब ई पर थूक द।
अंजू ने उसपे थूका फिर अरुण ने उसे सारा सामान साड़ी लेकर घर के पीछे नंगी ही ले गया। अंजू थोड़ा हिचकिचाई पर अंधेरा लगभग हो चुका था। फिर उसने अंजू से वो सारा सामान तालाब में फिकवाया, और उसीके हाथों वो साड़ी भी जलवा दी। अंजू को ऐसा करने का कोई अफसोस नहीं था। एक तरफ अंजू का प्यार डूब रहा था, तो एक तरफ उसका इश्क़ जल रहा था। अरुण अंजू को गोद में उठाके, फिरसे उसके बिस्तर पर ले आया।
अरुण ने अपना लण्ड खोलके उसके सामने रख दिया और उसे बोला," चल अंजू रंडी, चूस लांड के। रंडी साली, बहुत गरम माल बाटे तू।"
अंजू अपने मुंह में उंगली लिए हुए मुस्कुराते हुए अपनी गाँड़ हिला रही थी। अरुण उसके बाल पकड़के उसे बोला," अरे साली, रंडी के जनमल, सुनाई नइखे देत का।"
अंजू को अरुण का ये आक्रामक रूप अच्छा लग रहा था।
अंजू बोली," आह... आह.... तहरा मुंह से गारी सुनके बूर पानी छोड़ रहल बा, देखा ना। हमार सुहाग के निशानी तू आपन लांड पर रखले बारू, आह.... देखके देहिया गनगना रहल बा।"
अरुण उसके चूतड़ों पर तीन चार तमाचे मारे और बोला," अबसे तू हमार रंडी बारू, रखैल हउ। बुझला अबसे खाली हम तहके चोदब। साली तहरा जइसन औरतिया सब बहक जालि, अउर पराया मरद से चुदाबेलि। घरके मान मर्यादा सब माटी में मिला देवेलि। अबसे तहार मालिक और आशिक़ हम हईं।" अंजू ने हॉं में सर हिलाया और अरुण का लण्ड चूसने लगी। अरुण," असही चूस, देखा हमके, तू मौसा से केतना नफरत करेलु। जेतना बढ़िया से चुसबु, उतना ही तहार नफरत पता लागी। अंजू पूरे मगन से उसका लण्ड चूस रही थी। कभी सुपाड़े को जीभ से चाटती, तो कभी पूरे लण्ड को। अंजू ऐसा करते हुए अरुण की आंखों में देखती रही। बीच बीच में उसका लण्ड हिलाती थी। उससे करीब 10 मिनट लण्ड चुसवाने के बाद अरुण का लण्ड काफी शख्त हो गया।

अरुण अपने लण्ड पर अंजू का मंगलसूत्र लपेटे, उसे चोदने लगा। अंजू की बूर और ज़्यादा गीली हो चुकी थी, अरुण ने जो सब उससे करवाया था। उस रात उन दोनों को किसी का भी ग़म या पछतावा नहीं था। अंजू अरुण से पूरी रात चुदती रही। अगले दिन जब तक वो लोग गांव के लिए नहीं निकले, पूरे नंगे ही रहे। अंजू तो शर्म और हया भूलकर अपने बहन के बेटे के साथ, मज़े ले रही थी। वो अरुण के कहे अनुसार, बिल्कुल नहीं नहाई, जब तक वो निकल नहीं गए। अगले दिन वो लोग शाम को गांव पहुंचे। अरुण दो रातों से जो मज़े लिया था, आज रात उसे अकेले छत पर बितानी थी।
गांव में वापिस आकर तीन चार दिन बीत गए थे, और अरुण और रंजू के जाने में अब सिर्फ दो दिन का समय था। अरुण ने अंजू और नीतू को फिर से चोदने की कोशिश तो कि, पर मौका नहीं मिला। वो छत पर रोज़ मूठ मारके सो जाता था। उधर अंजू और नीतू दोनों माँ बेटी का भी बुरा हाल था। उन्हें अरुण के साथ मौका ही नहीं मिल रहा था। शायद कुदरत को आगे कुछ और ही मंजूर था। आखिर वो दिन आ ही गया जब अरुण और रंजू को इलाहाबाद के लिए रवाना होना था। दोनों बस पकड़के पहले पटना गए। फिर वहां से रात नौ बजे की उनकी ट्रैन थी। दोनों स्टेशन पर गाड़ी का इंतज़ार कर रहे थे।
Superhit update, intzar rahega agle update ka
 
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Bittoo

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मैंने लाख कोशिश की रंजू की कहानी पर जल्दी आऊं। पर अंजू और अरुण के बीच अगर एक अपडेट और ना देता तो बेईमानी होती। इसलिए इस अध्याय में भी अंजू और अरुण का ही रसप्रद प्रसंग पढ़ने को मिलेगा। लेकिन अंत में रंजू और अरुण के इलाहाबाद के सफर की शुरुवात हो चुकी है। यहां से रंजू और अरुण की कहानी शुरू होती है। कुछ गलती हुई हो तो क्षमा करें।

धन्यवाद
व्यभिचारी
बहुत अच्छा। पर थोड़ा गंद काम करें घृणा सी होने लगती है
वीभत्स चित्रण
 
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