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Incest रिश्तों का कामुक संगम

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lovlesh2002

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वाकई लाजवाब कहानी है और अपडेट भी जबरस्त है, कहानी को लोग पढ़ते तो सब है लेकिन कॉमेंट न करने की वजह जो मुझे लगती है और मैने भी नहीं किए वो ये है कि अपडेट आने में काफी टाइम लग जाता है और लोग फिर कभी महीने दो महीने में कहानी को फिर से पढ़ते है तो एक के बाद तुरंत दूसरा अपडेट भी पड़ते है और कॉमेंट करना ज्यादा जरूरी नहीं समझते क्योंकि उनको अपना सुख दिखाई देता है कहानी का अपडेट। आगे से आप जल्दी अपडेट देने की कोशिश करे मैं तो कहानी का नाम ही भूल गया था फिर 2 महीने बाद हिस्ट्री में जा कर बहुत ढूंढा तब ये कहानी मिली और तब से एक ही अपडेट आया है हालांकि अपडेट बड़े है लेकिन कम से कम हर वीक एक अपडेट आना चाहिए ताकि पाठकों की रुचि लगातार बनी रहे, आपकी लेखन कला जबरदस्त है आपने कही न कहीं rohnny4545 को भी पीछे छोड़ दिया है। लेकिन रिव्यूज थोड़े कम आते है उसकी वजह मैने आपको बता दी है । आप ज्यादा अपडेट देंगे तो ज्यादा लोग एक्टिव रह कर ने अपडेट का इंतजार करेंगे और कहानी भी याद रहती है।बहुत दिनों में कहानी का अंतिम भूल जाते है फिर से लोग उसी अपडेट को पढ़ कर आगे का अपडेट पढ़ते है। मेरी सलाह ठीक लगे तो गौर कीजिए। नया अपडेट कब आएगा उसकी प्रतीक्षा में
 

dark_devil

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वासना की आंधी भाग-३

सुबह पौ फटने को थी। चिड़ियों की चहचहाट धीरे धीरे सुनाई दे रही थी। बारिश अब काफी हल्की हो चली थी। बीना पर अभी भी बूर में लण्ड लिए, राजू के ऊपर लेटी थी। दोनों आपस में चिपके हुए थे। उनके जननांगों से मदन रस चू रहा था। उनके बदन आपस में गर्मी खा पसीने से तर थे। बीना सर से लेकर पैर तक पसीने से गीली थी। उसके बदन से पसीने की बदबू आ रही थी। राजू के लिए वो कामोत्तेजक गंध थी। बीना की चूंचियों, गाँड़ और जांघों के बीच काफी पसीना था। राजू बीना के गाँड़ की दरार में उंगली से छेड़ते हुए, उसके गाँड़ के छेद को कुरेद रहा था। बीना अपनी चुच्ची के चूचक राजू के मुँह में घुसाए हुए थी। राजू के मुंह में उसके भूरे चुचकों की कड़ी चुसाई हो रही थी। दोनों ने रातभर नींद की एक झपकी भी नहीं ली थी। इस समय दोनों की ही आंखों में एक दूसरे के प्रति वासना के अतिरिक्त कुछ नहीं दिख रहा था। दोनों ही कामक्रीड़ा में लीन, एक दूसरे को कामसुख देने और लेने में व्यस्त थे। राजू ने लण्ड को पूरा अंदर तक ठूस रखा था। इतने में बीना मस्ती में बोली," आह...आह...भर रतिया से चुदा रहल बानि, मन नइखे भरत। आ...बेटा माई के चोदे में मज़ा आ रहल हअ। तहार लांड त पूरा भीतरी बच्चेदानी से टकड़ा रहल बा। जइसे तू चोद रहल बारू, हमके गाभिन कर देबु।"
राजू," का कहलु?"
बीना," अइसे सच में एतना चुदायिब त गाभिन हो जाएब।"
राजू," आह..उफ़्फ़फ़ सोच के, सुने में एतना बढ़िया लागतअ। त जब सच में तू हमसे गाभिन हो जइबू, त अउर मज़ा आई।"
बीना," मज़ा काहे?"
राजू," एतना भोली मत बन, बेटा से चुदेबु अउर ओकर वीर्य जाई त तू अपने बेटा के बच्चा के माई बन जइबू।"
बीना," अरे हाँ, सच......उफ़्फ़फ़ अपने बेटा के बच्चा जनब। हाय, ओह, सशहह... हमार त अभी महीना भी आवेला, हे भगवान सच बच्चा त सच में ठहर सकेला।"
राजू," आह...केतना मज़ा आयी, जब तू हमार बच्चा के माई बनबु।
बीना," सारा रतिया में तू तीन बेर बूर में लांड के पानी निकाल देले बारू। ई उमर में बच्चा ठहरी, त लोग का कहिअनस।" बीना मुँह में उंगली दबाते हुए बोली।
राजू बीना के गाँड़ पर चपत लगा बोला," अगर तू पेट से हो जइबू, त हम तहार पूरा ध्यान रखब। वइसे भी तू अभी तहार उमर पैंतीस से ज्यादा ना बुझाता, औरतिया सब एतना उम्र में माई बनते बिया, तू भी बन जइबू त गलत नइखे।"
बीना," सच में हम पैंतीस के लागेनि?
राजू बीना की बूर में झटका मारते हुए बोला," अउर न त का रानी। तहरा देख के त केहू फिसल सकेला।"
बीना," हाँ, शायद एहीसे उ दिन स्वास्थ्य केंद्र में उ हरामी हमरा ऊपर हाथ फेरत रहल हअ।"
राजू ने बीना से पूछा," के माई?
बीना," उ हरामी कम्पाउण्डर जउन दवाई देता ऊंहा। उहे छेड़त रहल।"
राजू," हमार माई हमार जान के छेड़लस उ कुकूर मादरचोद। ओकरा त छोड़ब ना।" राजू गुस्से में था।
बीना समझ गयी कि उसने माहौल बिगाड़ने वाली बात बोल दी और राजू का चुदाई से मन हट सकता है। इसलिए उसने राजू के साथ गंदी और कामुक बातें करने लगी। वो बोली," राजू, लेकिन अगर तू हमके पेट से कर देबु, त हम अउर तू चुदाई न कर पाइब। फेर त बूर ना मिली चोदे खातिर। तहरा जइसन रसिया के त बूर जइसन फूल हमेशा चाही, चोदे खातिर।" वो हँसते हुए बोली।
राजू उसकी हंसी देख बोला," बीना ओकर बाद हम कली के रस लेब।" ऐसा बोल उसने बीना की भूरी सिंकुड़ी गाँड़ के छेद पर उंगली का दबाव बढ़ाया और उंगली उसकी गाँड़ में उतार दी। बीना का मुँह खुला रह गया और उसने कहा," मतलब तू छोड़बु न, जब आगे बूर ना मिली त पाँछे से गाँड़ में लांड देबु।"
राजू," का तू लांड के बिना रह पाईबु?
बीना बेशर्मी से बोली," हम लांड के बिना न रह पाइब।"
राजू," ई बोलत तू केतना कामुक,भोली अउर सुंदर लागेलु। तहरा जइसन चुदक्कड़ माल सबके न मिलेला।"
बीना," तहरा त मिल गईल ना, त ई चुदक्कड़ माल के भरपूर इस्तेमाल करआ। तहरा बच्चा चाही त बच्चा भी देब। अगर भगवान के इहे मर्ज़ी बा त इहे सही।"
राजू बीना की गाँड़ में उंगली करते हुए उसे चोदने लगा। इस बार दोनों पहले से ज्यादा उत्साह में चुदाई कर रहे थे। राजू और बीना एक दूसरे को प्यार और वासना में डूबो देना चाहते थे। थोड़ी देर बाद राजू ने एक बार फिर बीना की बूर में अपना वीर्य बहा दिया।

कुछ देर बाद बीना राजू के गोद में नग्नावस्था में बैठ उसके कंधों पर सर रख सो गई थी। पूरी रात मेहनत कर दोनों थक चुके थे। राजू को इतना मज़ा तो अपनी बहन गुड्डी के साथ भी नहीं आया था। दोनों आधे घंटे तक सोए हुए थे, उसके बाद बीना की नींद खुली। दोनों एक साथ जगे। बीना की मखमली त्वचा, सूरज की रोशनी पड़ने से चमक रही थी। उसके बाल बिखड़े हुए थे। बीना के सूजे होठ अपने चूसे जाने की कहानी बयान कर रहे थे। उसकी चूचियाँ और चूचक पर राजू के काटने के निशान स्पष्ट थे। बूर चुदाई से पूरी तरह खुली हुई थी। अत्यधिक लण्ड बूर में घुसने से वो काफी खुल चुकी थी। कुल मिलाकर वो बीती रात वासना की आंधी में उड़ी ऐसी शाख लग रही थी जिसे अपने लुट जाने का गम नहीं फक्र था।
राजू ने बीना के बाल संवारते हुए कहा," बीना, सारा रात हमनी ई मचान पर हवस के खेल खेलनी जा। लेकिन अब भोर हो गइल। ई रात हम जिनगी भर याद राखब। मन नइखे होत, तहरा से अलग होखि।"
बीना राजू के आंखों में देख शरमा गयी, फिर उससे कसके चिपकते हुए बोली," राजा, हम त चाहत बानि कि केहू हमरा प्यार से राखे, खूब प्यार करे, अउर बदला में हम भी ओकरा आपन प्यार से खुश कर दी। तहार बाबूजी के साथ, अब हमके वइसन खुशी अउर प्यार न मिलेला। अब ई प्यार केकरा पर लुटाई। पूरा तन बदन में काम वासना लहू संग दउड़ रहल बा। हम निर्लज्ज ना हईं, पर चुदाई के पियास से मजबूर बानि। हम तहरा अंखिया में सारा रात खुद के माई के साथ साथ एगो रंडी जइसन छिनारपन करत कामुक स्त्री के भी देखनी ह। पर औरत के इहे रूप होखेला। समाज के बंधन के डर जब न रहेला, अउर रात के अनहार में शराफत के चोला उतार के, हर स्त्री रिसत बूर में लांड घुसाके सुकून चाहेलि। स्त्री जब लंगटी रहेली अउर वासना उफान मारेला, त उ खुद मरद के सामने बिछ जात बिया। उ समय मरद के धरम बा कि उ ओ स्त्री के भोगके सुख देवे। उ समय न ओकर जात पूछल जाता, न धरम, न उमर, न रिश्ता देखल जाता, न रंग रूप, न काया। उ समय बस स्त्री और पुरुष धर्म निभावल जाता। काल रात जउन भईल, उमे हमके भी मज़ा आईल। अब जब मौका मिली तब हमनी ई करब जा। लेकिन होशियारी से।"
फिर बीना मचान से उतरने लगी। कुछ ही देर में वो नीचे उतर गई। राजू भी उसके साथ नीचे उतर आया। नीचे बारिश की वजह से काफी मिट्टी गीली हो चुकी थी।
बीना," राजू, हमार साड़ी साया सब त गन्ना के खेतवा में पड़ल होई। उ त खराब हो गइल होई। अब इँहा से मड़ई तक असही लंगटी जाय के पड़ी।"
राजू," तू लंगटी ज्यादा सुंदर लागेलु।"
बीना," हट बेशरम कहीं के। तहरा शरम नइखे आवत कि माई से अइसे बोलेलु।"
राजू," अब काहे के शरम तू माई से ज्यादा रखैल लागेलु। रंडी साली सारा रात तहरा चोदनी तब लाज कहाँ रहल हअ।"
बीना बोली," हमार लाज त बूर के पानी साथे बह गईल। अब तहरा मुँह से गाली सुनके भी लाज न आवेला।"
राजू," अगर कपड़ा चाही त, ऊपर घाघरा चोली बा। ले आई का?
बीना," ना उ गंदा हो जाई। हमनी असही लंगटे चलल जाई।" बीना समझ रही थी कि राजू उसे वो जबरदस्ती पहनना चाहता था। बीना आगे चल रही थी और पीछे राजू था। राजू की गंदी नज़र और सामने बीना का नंगा जिस्म। राजू की नज़र उसकी गाँड़ पर थी। तभी बीना का पैर फिसल गया और वो नीचे गिर गयी। बीना पूरी खेतों के बीच कीचड़ में गिर पड़ी। वो पूरी तरह कीचड़ में सन गयी। राजू उसे देख हँसने लगा। और उसे उठाने आगे बढ़ा तो बीना ने उसे कीचड़ में गिरा दिया। अब दोनों माँ बेटे कीचड़ में गिर चुके थे। बीना हंसते हुए राजू के बदन पर कीचड़ मलने लगी। राजू नीचे गिरा था और बीना उसके ऊपर चढ़ बैठी थी। राजू के सीने और मुँह पर बीना कीचड़ मल रही थी। राजू उसे रोक नहीं रहा था, बल्कि उसे उसकी मर्जी करने दे रहा था। उसे बीना की स्वच्छंद हंसी, बेबाक अंदाज़ बेहद अच्छा लग रहा था।
तभी बीना उसे देख बोली," अइसे का घूरत हउ, तहरा कीचड़ बढ़िया लागेला का?
राजू," न रानी, तहरा एतना खुश एतना हँसत कभू न देखनि। केतना मासूम और प्यारा चेहरा बा।"
बीना राजू को अपने चूंचियों पर लगा बोली," हाँ, राजू हमार ई रूप केहू न देखले, देख जब औरत खुश होखेलि त आपन मरद के साथ केतना मज़ा लूटेली। का हम तहरा अइसे बढ़िया लागेलि?
राजू बीना को नीचे गिरा बोला," हाँ, रानी तू सच में बहुत मस्त लागेलु। ई तहार हँसी, ई बिल्कुल रंडी जइसन व्यवहार, हम तहरा अइसे देख बहुत खुश बानि। तहरा जइसन शरीफ औरत त हर आदमी के चाही। तहरा पर प्यार आ रहल बा।"
बीना उसे धक्का दे दूसरी ओर गिरा दी और उठकर भागने लगी, फिर बोली," प्यार आ रहल बा, त मैय्या चोदबु मादरचोद कहीं के?
राजू उठा," कहाँ भागत बारू रंडी साली। तू माई के साथ साथ औरत भी त बारू। तहरा इंहे पटक के चोदब, रुक कुत्ती।"
बीना आगे आगे भाग रही थी। उसकी चूंचियाँ पूरी तरह ऊपर उठती और फिर नीचे गिरती। आपस में टकराती और फिर विपरीत दिशा में भाग जाती। उसके चूचक कड़े और तने हुए थे। बीना नंग धरंग किसी बच्ची की तरह एक खेत से दूसरे खेत भाग रही थी। राजू उसके पीछे उसकी हिलती बड़ी बड़ी नंगी गाँड़ को आपस में टकराते और ऊपर नीचे होते साफ देख रहा था। उसके गीले मिट्टी में सने हुए बाल, भी उछाल मार रहे थे। राजू का लण्ड कड़क हो गया। राजू चाहता तो उसे आसानी से पकड़ लेता, पर उसने जानबूझकर बीना को अपने आगे दौड़ने दिया। राजू उसे गंदी गंदी गालियां देते हुए भगा रहा था। राजू," रुक जा छिनरी, तोर माई के चोदब, साली कहाँ भागत बारू, रात भर चुदेलु, त अब काहे भागत बारू रंडी के बेटी, मादरचोद।"
बीना आगे आगे भाग रही थी वो एक एक गाली स्पष्ट सुन रही थी, पर उसके बदले भागते हुए वो बोली," दम ह त पकड़ ल, अउर फेर चोदे लिहा। खाली मुँह न चलावा, तनि हाथ पैर भी चलावा।" ऐसा बोल उसने जुबान बाहर निकाल राजू को चिढ़ाया।
राजू," साली, पकड़ब न, त लांड से भी चोदब, अउर मुँह से भी।"
बीना हंसते हुए," उ कइसे?
राजू," बूर में लांड घुसाके, खूब गंदा गंदा गरियाईब।"
बीना," अच्छा, लेकिन पहिले पकड़ त ले।"
थोड़ी दूर दौड़ने के बाद, बीना की सांस उखड़ने लगी और वो धीमी हो गयी। राजू ने उसे अपनी बांहों में भर लिया और गोद में उठा लिया।
राजू," अब बोल?
बीना," अब का अब त जे करे के बा उ तहरे करे के बा। जउन हुकुम करबा उ हमके करे के पड़ि।"
राजू," चल कुत्ती बन।"
बीना झट से कुत्ती बन गयी और अपनी गाँड़ उठा ली। राजू ने उसकी बूर को टटोला तो हैरान रह गया वो अभी भी पूरी गीली थी। राजू बोला," हरामजादी तू कइसन रंडी बारू, अभी चुदवाके भी बूर एतना गीला बा। उफ़्फ़फ़....हाय ई बूर बा कि झड़ना, लांड खातिर बरस रहल बिया। कउनु रंडी के भी एतना गीला न होत होई, बुरचोदी साली।"
बीना," उफ़्फ़फ़... राजू राजाजी रउवा एकदम सही बानि। हम सच में कउनु जन्म में छिनार होखब। जाने कइसन बूर ह कि शांत नइखे होत। जेतना चुदाबेलि ओतना बहेलि। हम सच में ई कामज्वर से परेशान बानि। रातभर चुदाबे के बावजूद काम वासना शांत न होखेला। हमके गरियाके चोदअ, खूब गंदा गंदा गाली दअ। जब तू गरियावेलु न त सुने में बड़ा अच्छा लागतआ। आवा अउर आपन माई के चोदअ।"
राजू," छिनार के जनमल रंडी बारू तू। ई बूर के एतना बुरा हाल कर देब कि, जब तहरा बच्चा होई त दरद न होई। साली हरामिन कहीं के।" ऐसा बोल उसने लण्ड बीना की बूर में मक्खन की तरह उतार दिया। बीना, सिसयाते हुए बोली," आराम से डाल न मादरचोद। तहार बहुत बड़ा बा।" राजू ने जवाब में बीना की गाँड़ पर चटाक चटाक पांच छः थप्पड़ बरसा दिए और बोला," रंडी तू आपन औकात में रह, तहरा अब ई कीचड़ में कुतिया जइसन पेलब। इँहा तू केतना भी किकियाबे केहू ना सुनी अउर हमसे रहम के कउनु उम्मीद ना करिहा।" राजू तेज धक्के लगाने लगा। बीना भी अब कमर पीछे लेके बूर में लण्ड ले रही थी।बीना को बहुत मज़ा आ रहा था। राजू बीना को मस्ती में देख उत्तेजित हो रहा था, उसने बीना की गाँड़ में उंगली घुसा दी। बीना की गाँड़ का छेद सख्त पर मुलायम था।
बीना उसकी ओर देख बोली," आह... ऊई गाँड़ में उंगली काहे कर देलु। तनि दरद होता पर अच्छा लागत बा।"
राजू उसके बाल पकड़ते हुए बोला," अभी त खाली उंगली कइनी ह, बाद में लांड घुसाइब त अउर मज़ा आई।"
बीना," राजू, हमके गाली दअ, हम सच कहेनी कि चुदाई में औरत के खूब जलील करे के चाहि। ऐसे तहरा मज़ा आयी, अउर हमके अउर मज़ा आयी। चुदाई में जब तक गाली न होखेला, तब तक कामसुख अधूरा बा।"
राजू," लेकिन माई औरत के ही काहे गाली देवे के चाही, अउर उहे काहे हमेशा गारी सुनी।"
बीना," काहे कि गाली के केंद्र बिंदु हमेशा औरत ही होखेलि। चाहे केतना भी शरीफ आदमी काहे न होता, उ कभू न कभू मन में जरूर गाली दी। मादरचोद, बहिनचोद, बेटीचोद सब त माँ, बहन, बेटी के ऊपर ही बा। रंडी, छिनार, रखैल ई सब से औरत के ही संबोधित करल जाता। मरद सब आपन भड़ास निकाले खातिर हम औरत के इस्तेमाल करेले। लेकिन सच बात त ई बा कि हमके ई गंदा गंदा गारी सुने में अच्छा लागेला। सोचत बानि कि ई सब होत बा तभी न लोग अइसन गाली देता। अभी तू भी आपन माई के चोद रहल बारू। तू अभी मादरचोद ही कहाबे। मादरचोद बने में केतना मज़ा अउर सुकून बा, ई बस तू ही जान सकेलु। मगर सबलोग जब आमतौर पर तहरा मादरचोद कहियाँ त तहरा अच्छा ना लागी। वसही त हम औरतन भी बानि। जब चुदाई होता त गंदा गंदा बतियाबे से काम सुख बढ़ जाता। एहि से गाली गलौज के ई उत्तम जगह बा।"
राजू हंसते हुए कहता है," वाह....अइसन रंडी माई त सबके मिले। लागतआ तहरा माई के भी ओकर बेटा चोदके तहरा पैदा कइने होई। साली तहरा त अंग अंग में वासना और छिनारपन बा। तू सच में हरामजादी बारू, तहरा चोद चोद के तहार औकात देखाएब। साली आज तू आपन बेटा से ई रंगरेली मनात बारू, हमके लागत बा तू आपन बाप से भी चुदवात होई। तहार बुर के खुजली मिटा देब बीनू।"
बीना ने मुड़के राजू को देखा, जैसे कुछ याद आया हो, पर फिर बोली," आह... हाँ हमसे सम्भालल न जाता ई जवानी। ई देहिया हमेशा मजबूत मरद के लालसा में कामुक रहेला। अभी त ई शुरुआत ह, देखत हईं आपन ई रंडी बीनू के केतना चोदबु।"
राजू बीना की गाँड़ में उंगली कर उसकी गाँड़ की सख्ती का अनुमान लगा रहा था। बीना उसके गंदे इरादों से थोड़ी भी वाकिफ नहीं थी। लेकिन राजू भी आज बीना की गाँड़ नहीं खोलना चाहता था। उसने सोचा जिस दिन ये साली मेरे दिए हुए घाघरा चोली पहनेगी उसी दिन उसकी गाँड़ चोदेगा।
राजू ने बीना को पलट दिया और उसके दोनों चूचियों के ऊपर कीचड़ मल दिया। बीना अभी भी बूर में लण्ड लिए पेलवा रही थी। राजू उसके पूरे जिस्म पर कीचड़ मल रहा था और बीना बस हंस रही थी। कुछ ही देर में राजू और बीना एक दूसरे से चिपक कर ताबड़तोड़ चुदाई करने लगे। उनका अंत निश्चित था, राजू ने लण्ड बीना की बूर में ही खाली कर दिया। बीना एक बार फिर चुद चुकी थी और चरमसुख प्राप्त कर चुकी थी। बीना घुटनों के बल बैठ गयी और अपने ऊपर और कीचड़ मलने लगी।
राजू," माई ई का करेलु तू?
बीना," राजू ई माटी बढ़िया माटी ह। एकरा देह पर लगाबे से चमड़ी गोरा, मुलायम अउर उमे निखार आवेला। एहीसे हम ई माटी आपन देहिया में लगात बानि।"
राजू," अच्छा रुक हम तहरा ई माटी से पूरा पोत देत बानि। तू माटी के मूरत लगबु।" ऐसा बोल राजू ने बीना के ऊपर खूब गीली मिट्टी उठा उठाकर डालने लगा। बीना कुछ ही देर में पूरी तरह मिट्टी से ढक चुकी थी। राजू उसे किसी औसधि की तरह जो लेप रहा था। फिर राजू ने बीना के दोनों चूतड़ों और उनकी दरार में मिट्टी लेपने लगा। फिर बीना की बूर और आसपास के क्षेत्र पर। बीना के कमर और पेट पर भी वो खूब कसके मिट्टी लगा रहा था। बीना की जाँघे भी अंदर और बाहर से मिट्टी की परत से ढक गयी। बीना की चूचियाँ भी राजू के हाथों अपने ऊपर मिट्टी लिपवाने को बेताब थी। राजू ने उसके ऊपर और चूचकों पर बड़े आराम से लगाया। इसके बाद उसने बीना के गाल, माथा और गर्दन पर भी लेप लगाया। बीना बिल्कुल किसी मिट्टी की मूरत जैसी लग रही थी। बीना बोली," राजू हम एक बात त भूल गइनी?
राजू," का?
बीना," एकरा त गरम पानी से धोवे के चाही, अब गरम पानी कइसे आयी इँहा?"
राजू," ई बात तहरा पहिले बताबे के चाही रानी। अब का करबू?"
बीना," एगो उपाय बा?"
राजू," का, बोल?
बीना," तहार गरम गरम पेशाब, हमके उसे नहा दे।"
राजू," का तू सच में ई करे चाहेलु बीना?
बीना," अउर कउनु उपाय नइखे। आपन माई के मदद न करबू।"
राजू," काहे ना, तहरा आपन मूत से नहात देखके मज़ा आ जाइ। लेकिन ओकर बाद हम भी असही तहार मूत से नहाएब।"
बीना," लेकिन तू मरद जात होके, औरत के पेशाब से नहेबु? तहरा ई ठीक लागी?
राजू," तहार बूर से मूत न अमृत निकली माई। मरद जात के ई सब त पसंद बा जब औरत खुलके अइसन गंदा गंदा विचार रखेलि।"
बीना हंस पड़ी और राजू को खुद से चिपका ली। और उसके ऊपर भी मिट्टी का लेप डालने लगी। उसके छाती पर, उसके बाजुओं पर, उसके चूतड़ और उसके लण्ड अंड पर। जैसे बचपन में राजू को बीना नहाती थी, वैसे ही राजू उसका लुत्फ उठा रहा था। जब दोनों पूरी तरह सरोबार हो गए, तभी उन्हें किसी के आने की आहट सुनाई दी।
बीना डरते हुए बोली," राजू अब का होई, कोई आ रहल बा?
राजू," तू घबरा मत माई। चिंता मत कर, चुप चाप रह।"
कुछ ही देर में वहाँ, गांव का एक 13 14 साल का बच्चा आ गया, जो अपनी भैंसे चड़ाने आया था। राजू ने उसे देखा तो, उससे बचने का एक उपाय लगाया। उसे ज्यादा कुछ करना नहीं था। दोनों माँ बेटे कीचड़ में लिपे पुते भूत लग रहे थे। राजू और बीना दोनों ने और कीचड़ अपने ऊपर मल ली। वो लड़का अभी कोई बीस बाइस गज की दूरी पर खड़ा था। राजू और बीना दोनों उसकी ओर शोर मचाते हुए दौड़ गए। उन दोनों को इस तरह अपनी ओर आता जब उसने देखा तो, उसे लगा ये दोनों पक्का कोई भूत हैं। वो बेचारा जान बचाकर वहां से चीखते हुए भागा। उसे भागता देख दोनों बहुत खुश हुए और जोर जोर से हंसने लगे। थोड़ी ही देर में वहां उन दोनों के अलावा कोई नहीं था। राजू ने बीना से कहा," उ त गईल अब, तहरा गरम पानी से नहाए के बा ना।"
बीना बेशर्मी में बोली," हां निकाल पिचकारी, अउर गिराबा ना।"
राजू ने बीना को अपने सामने घुटनों पर बिठा दिया। फिर वो बोला," अब तहार मुँह धुआई शुरू करि का ?
बीना," आन्ह हहहह... मूत न जल्दी, ई गरम गरम मूत जब देहिया पर गिरी, त अच्छा लागी राजा।"
राजू," हमार मूत से नहेबु का?
बीना," हाँ, हम तहार मूत से नहाएब राजा बेटा। बचपन में तू हमार गोदी में मूतत रहलु। लेकिन अब हमके आपन मूत से नहा दे, ताकि तहार माई के चेहरा में निखार आ जाये। माथा से लेके हमार पैर तक हर हिस्सा तहार मूत के धार से गिल हो जाए।"
राजू," छिनार साली, ले फिर नहा हमार मूत के धार में।" ऐसा बोल उसने अपने लण्ड से खाड़े पानी की पीली धार बीना के मांग पर गिरी। फिर वो धार बीना के चेहरे पर सीधी तरह गिरने लगी। बीना के चेहरे से गीली मिट्टी झड़कर बहने लगी। वो किसी मूरत की तरह बैठी पेशाब की धार से चेहरा पोछने लगी। बीना सांस रोके पेशाब की धार चेहरे पर ले रही थी, कुछ क्षण बाद उसने सांस लेने के लिए मुँह खोला, तो मूत की मोटी धार उसके खुले मुँह में गिरी। राजू बिना हिले बीना के ऊपर मूत रहा था। बीना के मुंह में गिरते पेशाब को, देख वो हंसने लगा। बीना फिर अपना हाथ आगे कर, पेशाब को चुल्लू में भर अपने मुंह पर रगड़ने लगी। फिर उसने पेशाब की धार के सामने अपनी नंगी चुच्चियाँ आगे कर दी। बीना को इस तरह बेचैन देख राजू उसे ऊपर से नीचे तक भिगोने लगा। बीना के चुचकों से मिट्टी साफ हुई और अब उसकी चुच्ची भी तनी हुई खड़ी थी। बीना बिल्कुल बेशर्म रंडी की भांति अब उस लण्ड से गिरते पेशाब रूपी झड़ने में नहाने लगी। राजू को उसे देखकर बहुत खुशी हो रही थी।
राजू ने उसके चारों ओर घूम घूम के उसे अपने पेशाब से सरोबार कर दिया। बीना को ये ज़िल्लत नहीं बल्कि इज़्ज़त का एक रूप लग रहा था। बीना पूरी तरह तो नहीं पर लगभग राजू के पेशाब में बहुत हद तक गीली हो चुकी थी। उसके देह पर मिट्टी की अब हल्की परत सी रह गयी थी। राजू की मूत की धार भी कमजोर पड़ गयी और बंद होने लगी।
राजू," कइसन रहल ह रानी, हमार मूत में नहाई अउर चाट के?
बीना शरमाते हुए मुँह ढ़क ली। राजू ने फिर कहा," अब हम भी आपन माई के बूर से बहत पेशाब के धार में नहाएब।" बीना शरमा रही थी। राजू जमीन पर पालथी मारकर बैठ गया। बीना उठी और अपना एक पैर उसके कंधे पर रख बोली," अब हमार बूर के बारिश में खुद के भिगा ले राजा बेटा।" ऐसा बोल वो अपनी बूर को हाथों से फैला सीटी की मीठी आवाज़ से मूत की धार बरसाने लगी। बूर के मूत्रद्वार से बही नमकीन पानी की धार राजू के चेहरे, बदन पर गिरने लगी। बीना बिल्कुल बेशर्म रंडी की तरह खड़े खड़े उसके मुंह पर मूत रही थी।राजू इस समय ना सिर्फ मूत का स्वाद ले रहा था, बल्कि उसके कानों में बूर से बहती धार मिसरी घोल रही थी। राजू बीना के बूर का खाड़ा पानी लप लप कर चाट रहा था। राजू ने काफी मूत पी, और उसके बाद उससे अपना मुंह और शरीर पोछने लगा। बीना बोली," बढ़िया लागतआ बेटा की ना ? तहरा सामने आज हम पूरे बेशर्म हो गइल बानि। अइसन त हम तहार नानी नाना के सामने न कइनी।"
राजू बस बीना के छिनारपन का पूरा मज़ा ले रहा था। राजू अपनी मातृ मूत्र का सेवन गौ मूत्र की पवित्रता के जैसे ही कर रहा था। बीना ने आज तक किसी के मुंह में नहीं मूता था। राजू अब तक बीना के मूत से आधा साफ हो चुका था। बीना भी कुछ देर मूत कर वापिस खड़ी हो गयी। राजू बीना की बूर अभी तक लप लप कर चाट रहा था। बीना राजू के सर में हाथ फेर बोली," छोड़अ दअ।"
राजू उसके ओर देख बूर चूमते हुए मुस्कुराया," छोड़अ दे तनि।"
बीना बोली," चल अब नदी में नहा लेत बानि। ऐसे पहिले कोई आ जाये। अउर हम पैदल न चलब, तहार गोदी में जाएब।" वो शैतानी मुस्कान देते हुए बोली।
राजू ने बीना की गाँड़ के नीचे अपने दोनों मजबूत हाथ लगा, उसे गोद में उठा लिया।
फिर राजू बीना को गोद में उठा नदी की ओर चल दिया।बीना राजू की बांहों में थी। राजू और वो एक दूसरे को देख रहे थे।
थोड़ी देर में ही दोनों नदी के किनारे पहुंच गए। राजू बीना को गोद में लिए ही नदी में उतर गया। बीना और राजू कुछ ही देर में कमर तक डूबे हुए थे। दोनों सिर्फ एक दूसरे को देखे जा रहे थे। राजू ने बीना को पानी में उतार दिया। और फिर उसके चूचियों पर अपना सर रख दिया। बीना ने उसे अपने सीने में भर लिया। राजू और बीना कुछ देर ऐसे ही पानी में एक दूसरे से चिपके रहे।
बीना," तहरा छाती से लगाबे में पहिले एक माई के सुकून आवत रहल ह, पर अब एक औरत के सुकून मिल रहल बा।"
राजू," माई, अब तहरा चिंता करे के जरूरत नइखे। अब तू हमार बारू।"
बीना," माई न हमके बीना बोल।"
राजू बीना के बदन को सहलाते हुए बोला," बीना, कभू नदी में चुदाई कइलु कि ना?
बीना," न राजा।"
राजू ने बीना को साथ ले पानी में डुबकी लगाई। पानी के नीचे बीना के बाल बादलों की तरह तैरने लगे। राजू ने पानी के नीचे ही बीना के होठों को चूमना शुरू कर दिया। बीना भी चुम्मा का मज़ा ले रही थी। दोनों पानी के अंदर कुछ देर रुके और फिर ऊपर आ गए। दोनों की सांसें उखड़ रही थी। राजू और बीना दोनों हंस रहे थे और सांस के लिए मुँह पूरा खोला हुआ था।
राजू," मज़ा आईल ?
बीना," बहुत बढ़िया, एक बेर फेर चल।" ऐसा बोल दोनों फिर पानी के नीचे चले गए। इस बार राजू ने उसके तैरते चूचियों को पकड़ लिया और फिर जोरदार चुम्बन शुरू हो गया। बीना और राजू के होठों आपस में किसी रबर बैंड की तरह खिंच और सिंकुड़ रहे थे। आपस में पानी के नीचे एक दूसरे को देखते हुए चूमने का आनंद अद्भुत था। कुछ देर बाद फिर वो ऊपर आ गए। बीना राजू के बांहों में समाते हुए बोली," अब चुम्मा त लेलु, हमके अब पानी में चोद भी लअ।"
राजू ने बीना की बूर में पानी के अंदर ही लण्ड घुसा दिया। बीना सिसयाते हुए चुदने लगी। राजू के हाथों में उसके दूध के थन समाए हुए थे। बीना अपने दोनों हाथ राजू के कंधों पर रखी हुई थी। उसने पानी के अंदर अपन्स पैर राजू की कमर पर रख दिये। पानी के उत्प्लावन बल से बीना राजू को बेहद हल्की लग रही थी। बीना और राजू एक बार फिर अपने भ्रष्ट मन में व्यभिचार की रिश्वत खा रहे थे। राजू बीना को कभी चूमता, कभी चूचियाँ मसलता। बीना हालांकि बहुत चुद चुकी थी, पर उसके अंदर की भूखी कामुक शेरनी को और चाहिए था। वो थकी हुई थी,पर अगर वो पानी में नहीं होती तो शायद वो अभी चुदवाती नहीं। पर नदी के धार में चुदवाने का मज़ा ही कुछ अलग था। बीना आंहे भरते हुए, सिसयाते हुए चुद रही थी। बूर में घुसते निकलते लण्ड का आनंद ही कुछ और था। राजू को भी एक अलग एहसास हो रहा था। अंत में राजू ने बीना के बूर में ही निकाल दिया। बीना भी उत्तेजना और उन्माद में चीख उठी। थोड़ी देर बाद दोनों शांत हुए। इसके बाद दोनों नहा के, वापिस झोपड़ी में चले गए और वहां कपड़े और समान इकठ्ठा कर वापस अपने घर की ओर चल दिये। रास्ते में दोनों हाथ में हाथ डाल चल रहे थे। दोनों घर पहुंच सो गए क्योंकि दोनों काफी थक चुके थे।
उनदोनों को घर के अंदर जाते रंजू देख मुस्कुरा रही थी।

रात के एक बजे बंसुरिया उठी, उसका पति गहरी नींद में जोर जोर से खर्राटे मार रहा था। उसे बड़ी जोर से सूसू आयी थी, बंसुरिया दबे पैर चल रही थी। बंसुरिया रात में घर के आंगन में ही बैठ पेशाब कर रही थी। वो पेशाब कर उठ ही रही थी, कि उसे किसी ने पीछे से पकड़ लिया और उसे कमरे में खींच दरवाजा बंद कर दिया। रात के अंधेरे में बंसुरी का मुँह दबा उसे दीवार से लगा दिया। फिर जब वो नजदीक आया तो बंसुरी ने उसकी आंखें देखी। सामने से उसने कहा," चिल्ला मत, हम हईं।"
बंसुरी उसका हाथ मुँह से हटा बोली," अइसे काहे कइलस, बात त भईल रहे न कि रात सबके सुते के बाद हम खुद चल आईब। हम त पेशाब कइके आवते रहनि।"
सामने से वो बोला," तहार इंतज़ार में जगले रहनि। लेकिन तहार पायल के आवाज़ सुनके, ओकर बाद तहार मूत के आवाज़ के सुरसुराहट सुनके मन भईल उठा ली तहरा।"
बंसुरी," अच्छा, सबर नइखे होत का राजा।"
वो बोला," ना, देख ई नाग कइसे फुफकारत बा।" ऐसा बोल उसने अपनी लुंगी उतार दी।"
बंसुरी," तब त नाग के बिल में ढुका के शांत करे के पड़ी।"
ऐसा बोल बंसुरी उसके लण्ड को पकड़ सहलाने लगी। बंसुरी उसके होठ पर होठ रख चुदाई का पहला सुर छेड़ दिया। कुछ ही देर में दोनों एक दूसरे के बदन को टटोल रहे थे। कुछ ही देर में बंसुरी की साड़ी और चोली साया,कच्छी समेत फर्श पर अपनी किस्मत को रो रहे थे। बंसुरी उसके साथ चिपकी हुई,चुम्बनलीन खटिए पर उसके नीचे पसर गयी। वो आदमी उसके स्तनों को मसलते हुए उसकी पनियाई बूर में लण्ड घुसेड़ दिया। बंसुरी ने उसकी कमर पर कैंची बनाई और बूर में लण्ड लेने लगी।
बंसुरी अपने होठ काटते हुए उसे देख रही थी। उसके दोनों हाथ उस मर्द के गले में थे।
मर्द," कइसन बुझाता?
बंसुरी," आह...आ..वइसन जइसे केहू आपन बड़ भाई से चुदाबेली, धरम भैया।"
धरम," भैया न, हम तहार सैंया बानि।"
बंसुरी," हाँ, दिन में भैया रात में सैयां। पिछला उन्नीस साल से त तू, भतार अउर भाई दुनु बारअ। हमके आपन लांड से चोद के, बहिनचोद अऊर बहनोई दुनु हो गइल बारआ।"
धरम," आह....बहिनचोद सुनके, केतना अच्छा बुझाता। हमार प्यारी बहिनिया, बिया हमार सजनिया।"
बीना," चढ़के हमार ऊपर आजा, भैया राजा बजायी बंसुरिया के बाजा।"
धरमदेव," आज भी तहरा, ई गीत याद बा।"
बंसुरी उसके गाँड़ पर हथेली से जोर लगाते हुए बोली," काहे न याद रही, उ होली के दिन रहे, जब तू भांग पीके हमके घर के पाँछे, खटाल में चोद देलु। हम केतना भी तहसे रुके कहनी, पर रउआ सुनबे न कइनी।"
धरम," अच्छा, माने तहरा उ पसंद न आईल रहे। सारा दिन घर में घघरा अउर चोली में मटक मटक के चलत रहलु। गाँड़ अउर चुच्ची झलकात रहलु, हमके देखके। जब खुद न्योता देबु, त भंडारा होबे करि ना। वइसे भी हम नशा में रहनि उ दिन।"
बंसुरी," भंडारा त तू खूब कइलु। लेकिन नशा में तू उ दिन रहलु ना, अउर बाकी दिन त सब होश हवास में कइलु।"
धरमदेव उसके बाल पकड़ बोला," अच्छा, अउर बाद में के कहत रहल कि, भैया हमके तहरा से प्यार हो गइल ह। हमके तहार मेहरू बने के मन बा, छिनार साली।"
बंसुरी," भैया हम मात्र अट्ठारह साल के रहनि उ घड़ी। लेकिन तू त हमार बड़ भाई रहलु। हमके समझावे के बजाय, तू हमके मौका मिलते चोद देत रहलु।"
धरम," समझदारी के काम कइनी, तहार बियाह इँहा करवा देनी। ताकि हम तहरा जब भी मौका लागे चोद दी। तहार पति भी एक दम पियक्कड़ रहल, ओकरा तहार चिंता कहां रही।"
बीना," प्यार त तू हमरा खूब करलु, ओकरे नतीजा बा कि मधु तहार बेटी अउर भांजी दुनु बा। अब तहार बेटी अठारह के हो गइल।"
धरम उसको चूमते हुए बोला," बिल्कुल तहरा जइसन लागत हिया। अइसने नाक, गाल, ठोर, केश, वइसन ही चाल।"
बंसुरी उसके धक्कों से हिलते हुए बोली," हाँ, भैया ओकर आँखिया अउर कान तहरे जइसन बा। हम तहार धन्यवाद करे चाहेनि, अगर तू हमके पेट से न कइने रहतु, त लोग हमके बांझ बुझत रहतनि। भाई अउर बहिन के अइसन प्यार भी हो सकेला ई शायद ही केहू अउर जानी।"
धरमदेव," होत बिया बंसुरी, भाई बहिन के बीच ई खूब होता।"
तभी दोनों अपनी चरमसुख की ओर अग्रसर हो चुके थे। कुछ ही देर में बंसुरी की बूर में लण्ड का पानी लावे की तरह फूटा। बंसुरी धर्मदेव के साथ ही झड़ गयी। कुछ देर बाद बंसुरी धर्मदेव की बांहों में नंगी लेटी हुई थी। वो उसके छाती को सहला रही थी। धरमदेव बीड़ी फूंक रहा था।
बंसुरी," धरम भैया, अब रउवा जल्दी झड़ जावेलु। पहिने त हमके दु बेर झड़वा के फेर झड़त रहलु।"
धरमदेव," बहुत चिंता बा, खेत सब गिरवी पड़ल बा। फसल होत नइखे, होत त दाम नइखे मिलत। कर्जा ढेरी हो गइल ह। उमर भी हो गइल बा।"
बंसुरी," रउवा चिंता न करि सब ठीक हो जायीं। राजू सब सम्भाल ली।"
धरमदेव," उ का करि। जाने कउन पढ़ाई करेला। गुड्डी के साथे उ....।"
बंसुरी," का? उ अउर गुड्डी।
धरमदेव," दुनु पटना में चोदम चुदाई करत रहलन स। एहीसे गुड्डी के जल्दी बियाह कर देनी।"
बंसुरी," उ भी आपन बहिन के चोद लेलस। तहार हमार नक्शा कदम पर। ऐमे उ दुनु के का गलती बा?
दोनों की नज़रे मिली तो बंसुरी बोली," अइसे का देखेलु? ई त होवे के रहे। दुनु उहे उमर में बारन जउन में हम अउर तू रहनि।"
धरमदेव," हम दुनु कभू पकड़ल ना गइनी।"
बंसुरी," हां, ई बात त बा। दुनिया के नज़र से ई सब बचल रहे तबे ठीक होता।"
धरमदेव," अच्छा छोड़, मधु पर ध्यान रख उ कहूँ बहक न जाये। अइसन सुंदर चेहरा अउर देह वाली लइकी के सब बहकाके मज़ा लेत बारे।"
बंसुरी," हमके त तहरे आँखिया में मधु खातिर हवस दिखत रहल, दुपहरिया में जब उ बिना ओढ़नी के झाड़ू लगावत रहल। हम देखनि तहराके तू ओकर चुच्ची निहारत रहलु।" बोलके वो हंसी।
धरमदेव," अच्छा, तू देखलु। सच में उ बहुत सुंदर नौजवान युवती बिया।"
बंसुरी," बहिन के त ना छोड़लु, अब बुझातअ बेटियो के ना छोड़बु। पहिले बहिनचोद बनलु अब बेटीचोद बनबु।"
दोनों हंसी मजाक करते हुए रात बिताई और सुबह बंसुरी अपने कपड़े पहन वापिस सोने चली गयी।
धरमदेव भी सो गया और अगले दिन वापिस गांव चला गया।
धरमदेव के आने के बाद राजू और बीना ऐसे बर्ताव कर रहे थे जैसे उनके बीच कुछ हुआ ही नहीं। धरमदेव ने एक दिन राजू से पूछा कि अपनी जमीन कैसे छुड़ाई जाए। राजू ने धरमदेव से कहा कि उसका सेशन कॉलेज में लेट चल रहा है। तो वो लोग परीक्षा जल्दी ले रहे हैं, उसकी ग्रेजुएशन अगले दो महीने में खत्म हो जाएगी, फिर वो भी काम शुरू करेगा और नौकरी की तैयारी करेगा। तीन साल का कोर्स डेढ़ साल में खत्म हो जाएगा। राजू ने दरअसल झूठ बोला था। वो दरअसल कुछ गैर कानूनी काम में संलिप्त हो चुका था। वो पढ़ाई में तेज तो था ही, उसने जुगाड़ से दो साल के पेपर जल्दी दे दिए थे। वो बीच बीच में पटना जाता रहता था। उधर बीना के साथ उसके नाजायज व्यभिचारिक संबंध हर दिन परवान चढ़ रहे थे। दोनों को जब भी मौका मिलता, तुरंत चुदाई में संलिप्त हो जाते। बीना के चेहरे पर अब चमक और खिलखिलाहट बरकरार रहती थी। राजू से अपनी कामज्वर का इलाज कराने में उसे बहुत मज़ा आता था। वो दोनों धरमदेव के जाने के बाद बिल्कुल निर्वस्त्र हो जाते, खासतौर से बीना को तो राजू अपने हाथों से नंगी करता था। फिर बीना घर का सारा काम वैसे ही करती थी। दोनों साथ में नहाते थे और बिल्कुल बेफिक्र हो रतिक्रिया किया करते थे। बीना उसे खूब काजू बादाम खिलाती, उसने राजू को शिलाजीत भी देनी शुरू कर दी। राजू अब हमेशा उसकी चुदाई के लिए बेताब,बेचैन और तैयार रहता था। बीना उसके साथ खुश रहती थी। ऐसी प्यासी औरत को चुदवाने के लिए हट्टा कट्टा नौजवान मिले तो उसका मस्ती में रहना लाजमी है। उसका त्रियाचरित्र अब साफ दिख रहा था। धीरे धीरे उनकी हिम्मत बढ़ने लगी। अब तो वो रातों को धरमदेव को सोता छोड़, राजू के साथ सोती थी। सुबह उठकर वापस अपनी जगह पर लेट जाती।
एक दिन राजू और बीना आपस में चुदाई कर रहे थे तो राजू बोला," बीना, अब हम तहरा केहू के साथ बांटे न चाहेनि। तहार ई गुलाबी ओठ, ई गोर गाल, ई कजरारी आँखिया, ई भरल जवानी सब हमरा चाही अउर खाली हमार होखे के चाही।"
बीना," सब तोरे बा राजा, ई कुल खजाना तू लूटबे करेलु।"
राजू ने कुछ जवाब नहीं दिया लेकिन वो अब इस घर पर पूरा नियंत्रण चाहता था। वो पैसे तो बनाना शुरू कर दिया था, लेकिन काफी नहीं था। वो जानता था कि घर पर नियंत्रण के लिए उसे अपनी गिरवी जमीन छुड़ानी होगी। वो अपने पिता के विरुद्ध नहीं था, लेकिन उसे बीना चाहिए थी। इसी खिसियाहट में उसका अपने बाप से झगड़ा भी होता था। बीना सब समझती थी, इसलिए वो बार बार बीच बचाव करती थी। इसी बीच दिन बीत रहे थे और फागुन आ चुका था। एक दिन धरमदेव ने इसी बीच बचाव में बीना को थप्पड़ मार दिया। राजू को उस दिन अपने बाप पर बहुत गुस्सा आया। बीना पर हाथ उठाना उसे बर्दाश्त नहीं हुआ। बीना ने बड़ी मुश्किल से राजू को रोका। बीना ने राजू का गुस्सा शांत करने के लिए उसे, गुड्डी के ससुराल जाने को बोला। गुड्डी को गए साथ आठ महीने हो चुके थे। राजू बीना से अलग नहीं होना चाहता था, पर वो गुड्डी से भी बहुत दिन से नहीं मिला था। गुड्डी से मिलने वो अगले दिन उसके ससुराल की ओर निकल पड़ा।
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