pankukipriya
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परिचय
आज साल का आखरी दिन था यानी 31 दिसंबर। हालांकि राघोपुर गांव था, पर पटना से बस 35 कि. मी. दूर था। गांव के बूढ़े तो सो चुके थे, पर कुछ नौ जवान गांव की चौपाल पर पटाखे चलाने के लिए इकट्ठे हुए थे। अभी रात के 12 बजने में समय था, तो सब आपस मे बाते कर रहे थे। सबलोग हंसी मजाक कर रहे थे। उनमें से एक लड़का था राजीव पर सब उसको राजू कहते थे। वो बेसब्री से 12 बजने का इंतज़ार कर रहा था। वैसे तो हर साल उसको बड़ा मजा आता था, पर आज वो अंदर ही अंदर सोच रहा था की जल्दी से वो वहां से निकल ले। तभी उसका मोबाइल बज उठा। राजू ने झट से फोन उठाया उसपे लिखा था गुड्डी दीदी। असल मे वो उसकी बड़ी बहन गुड़िया का फोन था, जिसे वो प्यार से गुड्डी दीदी कहता था। राजू बोला," हेलो, का भईल आईं का? तभी उधर से आवाज़ आयी," राजू तू जल्दी घर पहुंचआ, तहार दीदी के थैली फाट गईल। वो आवाज़ उसके विधवा माँ बीना की थी। राजू ने अपने दोस्त अरुण को बोला," भाई, हम जात हईं, इमरजेंसी हो गइल। अरुण सब जानता था, इसलिए उसने उसकी पीठ पर थपकी दे जाने का इशारा किया। राजू ने अपनी स्प्लेंडर बाइक पर बैठते ही किक मारी और थोड़े ही समय में रात के अंधेरे में अरुण की नज़रों से गुम हो गया। राजू की उमर सिर्फ 21 साल की थी। उसके पिता का देहांत अभी सालभर भी नहीं हुआ था। उसके पिता खेती बाड़ी करते थे। राजू उनका हाथ भी बटाता था और पढ़ाई भी करता था। उसने अभी पिछले साल ही स्नातक किया था। उसकी बहन की शादी 3 साल पहले हुई थी, दहेज़ पूरा ना दे पाए तो, ससुरालवालों ने गुड्डी को मायके छोड़ दिया। जिस वजह से उसके पिताजी परेशान रहते थे और आठ महीने पहले उनका देहांत हो गया। घर की सारी जिम्मेदारी राजू के कंधों पर आ गयी। उसे दिन रात यही चिंता होती थी, की कैसे अपनी दीदी का उजड़ा घर बसाये। आखिर किसका था ये बच्चा? जब दो साल से वो पति से दूर थी, तो ऐसा कैसे हुआ ? ऐसे हालात क्यों हुए? क्या बीना देवी भी इसमें शामिल थी? क्या था राजू के बाप के मरने का कारण?? यही देखना है इस कहानी में " रिश्तों का कामुक संगम "
पात्र परिचय
राजीव उर्फ राजू उम्र 21 साल
गुड़िया उर्फ गुड्डी उम्र 26 साल राजू की बड़ी बहन
बिजुरी - गुड्डी की हमउम्र और सहेली
बीना देवी उम्र 45 साल राजू की माँ
स्व. धरमदेव - राजू के स्व.पिता
अरुण - राजू का दोस्त उम्र 24 साल
रंजू देवी- अरुण की माँ उम्र 43 साल
गुड्डी तीसरी बार दसवीं में फेल हो गयी थी। उसका रिजल्ट आज ही अखबार में आया था। गुड्डी अभी 22 साल की हो चुकी थी। एक तो गांव में लड़कियों को लोग पढ़ने के लिए लोग भेजते नहीं और अगर भेजते भी हैं, तो काफी देरी से। गुड्डी तो 6- 7 साल की उम्र में ही विद्यालय गयी थी। सातवीं के बाद तो उसने स्कूल भी जाना छोड़ दिया था। एक तो उसका पढ़ाई में मन नहीं लगता था, दूसरा वो बीमार भी हो गयी थी। फिर दो साल तक वो स्कूल भी नहीं गयी। और माँ के साथ घर के काम में ही हाथ बटाने लगी। लेकिन फिर उसके पिताजी ने देखा कि आजकल लड़के वाले पढ़ी लिखी लड़कियां चाहते हैं तो उसने फिर से गुड्डी को स्कूल भेजना शुरू किया। हालांकि गुड्डी वापिस नहीं जाना चाहती थी, लेकिन गांव की ही एक लड़की की शादी बस काम पढ़े लिखे होने के कारण नही हो पाई ये देखकर वो भी तैयार हो गयी। गुड्डी की माँ बीना तो इसके खिलाफ ही थी। पर बाद में मां गयी। गुड्डी की एक सहेली थी, बिजुरी जो कि उसकी तकरीबन हम उम्र थी। वो उसके साथ स्कूल जाने लगी, गुड्डी अब तक 20 साल की हो चुकी थी, उसका भाई नवीं कक्षा में पढ़ रहा था।
गुड्डी और बिजुरी दोनों आपस मे काफी खुली हुई थी। दोनों एक दूसरे से घटिया, फुहर और गंदे मज़ाक करती थी। एक दिन दोनों दोपहर में स्कूल खत्म होने के बाद घर वापिस आ रही थीं। तभी बिजुरी बगीचे की ओर इशारा कर गुड्डी से बोली," गुड्डी देख ओय जा, चल उहाँ बगइचा में नेमुवा, आम दुनु बहुते बाड़े। "
गुड्डी," ना हो, देर होई, त माई बड़ा खिसियाई।
बिजुरी," चल ना छिनरी कहीं के, कुछ ना होई। उहवाँ जल्दी से तोड़ के चल आईब। और उसका हाथ पकड़के के चल दी। दोनों बगीचे के पास पहुंची तो वहां आम की कैरियाँ लगी हुई थी। दोनों डरते डरते कटीले तारों को पार करके अंदर घुस गई।
बिजुरी," तू इन्हें रुक नीचे, हम ई गाछ पर चढ़त हईं।
गुड्डी बोली," जे करेके बा, जल्दी कर कहीं कोई देख ली, त चोर चोर कहके दौराइयाँ लोगन सब।
दोनों नीले रंग की घुटने तक कि स्कर्ट और सफेद रंग की हाफ कमीज पहन रखी थी। लंबी लंबी दो चोटियां बनाई हुई थी। दोनों पसीने से तर थी। दोनों उम्र में बड़ी होने के कारण ड्रेस में उनके उभार साफ साफ खिल रहे थे। खासकर उन दोनों के दूध। उन्होंने ब्रा नहीं पहनी थी, टेप पहनी हुई थी। कमीज गीली होने की वजह से उनके चूचकों का आकार साफ झलक रहा था। बिजुरी अपनी किताबें गुड्डी को देकर पेड़ पर चढ़ने लगी। बिजुरी जब थोड़ा ऊपर चढ़ी तो, नीचे से गुड्डी को उसकी गहरी हरे रंग की चड्डी साफ झलक रही थी, जो उसके नितम्बों से कसके चिपकी हुई थी।
बिजुरी जल्दी जल्दी से आम की कैरियाँ तोड़ रही थी। उसने आठ दस तोड़कर अपनी कच्छी में घुसा ली। फिर धीरे धीरे नीचे उतरने लगी। जब एक दम करीब आ गयी तो गुड्डी बोली," गे, छिनार सब आम कच्छी में छुपा लेले का। एतना बुर चुनचुनाता का?
बिजुरी," तहरा जइसे हमके भाई नईखन, जे रोज़ रात बुर में लांड घुसावेला।"
गुड्डी," देख मज़ाक में हमार भाई के ना लावा। उ त गौ हईं। बेचारा .....
बिजुरी," आहा हा, तू त अईसे बोलत बारू की कभू लइकी के उ पेलवे ना करी। तू देखहिया जब उ चुदाई शुरू करी ना, त उ लइकी के जान निकाल दी, पेलते पेलते।
तभी पीछे से कोई चिल्लाता हुआ आया, वो चौकीदार था," के ह उन्हा भाग भोंसड़ी के मादरचोद। उसे पता नहीं लगा कि वहां दो कमसिन लड़कियां हैं। दोनों बिजुरी और गुड्डी वहां से एक दूसरे का हाथ पकड़ के भागने लगी। दोनों ऐसी भागी की उनके पीछे कोई पगलाया सांड दौड़ रहा हो। दोनों एक ही झटके में छलांग लगाई और तारों को पार कर गयी। ऐसा करते हुए, दोनों की स्कर्ट पूरी तरह से ऊपर उठी और उनकी हरी और लाल कच्छियाँ साफ झलकी। जिसे देखके चौकीदार वहीं रुक गया। और उनदोनो को भागते हुए देखने लगा। दोनों गाँड़ मटकाते हुए दौड़ रही थी। बहुत तेज़ी से वो आगे निकल गयी। ऐसा करते हुए उनकी चूचियाँ पूरे हिलोडे मार रही थी। गांव में अक्सर ऐसा होता ही है। दोनों भागते हुए दूर आ चुकी थी। दोनों गांव की नदी के पास पेड़ की छांव में चली आयी। और हांफ रही थी। फिर हंसते हुए बिजुरी ने अपनी पैंटी से कैरी निकाली और एक खुद ली और एक गुड्डी को दी। दोनों ने अपने स्कर्ट से उसको पोछा और फिर उसको सूंघा। दोनों ने अपने हाथ की कैरी को काटा और अनायास ही उनकी आंखें बंद हो गयी, उसके खट्टेपन से। लड़कियों को खट्टा वैसे भी पसंद होता है। दोनों धीरे धीरे खाने लगी। तभी गुड्डी बोली," तू कईसे कहत बाड़े की हमार भाई, जब कौनो लइकी के पेली त, ओकर दम निकाल दी।"
बिजुरी," ना हम त एहीसे कहनी की, तू ओकरा बड़ा शरीफ बुझेलु। लईकन सब बड़ा हरामी होखेला। एक बेर मौका मिलेला ना त माई बहिन के भी ना छोड़आता।"
गुड्डी," हट, कुछो बोलेली तू त। हमार राजू अइसन नइखे।"
बिजुरी," ठीक बा, देखहिया एक दिन उहे तोहके पटक पटक के चोदी जब तू ओकरा मौका देबू।
गुड्डी," धत्त, कुत्ती साली कुछो बकवास ना कर।
बिजुरी," अच्छा, ठीक बा सुन ना बड़ी ज़ोर से हगास लागल बा। चल ना उ झाड़ी के पाँछा। उहाँ हग लिहल जाई।
गुड्डी और बिजुरी दोनों ने दांये बांये देखा और अपनी स्कर्ट कमर तक उठाके पैंटी घुटनों तक कर ली और हगने/टट्टी करने बैठ गई। गुड्डी की गाँड़ तो मस्त टाइट खरभूजे की तरह थी। मस्त गोल गोल गोरी गोरी। उसकी बुर पे रेशमी काले बाल थे। तभी बुर से सीटी की मधुर आवाज गुंजी और पीली मूत की धार मिट्टी को गीली करने लगी। बुर की पत्तियां खुल के मूत की धार को रास्ता दे रही थी। गुड्डी को तो टट्टी आयी नहीं थी, इसलिए वो बस साथ देने को बैठी थी। दोनों लड़कियां एक दूजे से ज़्यादा दूर नहीं बैठी थी। दोनों एक दूसरे को सुन सकती थी। तभी बिजुरी की गाँड़ से गरजते हुए टट्टी निकलने लगी। वो अपनी नाक बंद करके बैठी हुई थी।
गुड्डी," बिजुरी, जब बियाह के बाद मरद रतिया में चोदेले तब, बहुत दरद होवेले का?
बिजुरी," हाँ, होवेला, पर ओकर बाद खूब मजा आवता। रोज़ लांड खातिर मन मचलेला। दिन भर ससुरारी में काम करेला के बाद, जब भतार रात में पेलेला ना, त देहियो के मालिश हो जाला। तब बियाह के बाद लईकियाँ सबके देह फूलेला।"
गुड्डी," मरद के पेलेसे से मेहरारू के देह काहे फूलेला हो?
बिजुरी," का जानी काहे, पर अईसे होखेला। सब औरतियाँ सबके संग अईसे ही होता।
गुड्डी," बिजुरी, हमके पढ़े में मन नइखे लागेले, पर बाबूजी कहले, की आजकल बियाह करे खातिर कम से कम दसवीं पास जरूरी बा। हम त चाहतानी की जल्दी से हमार बियाह हो जाए आउर पढ़ाई लिखाई से बच जाई। पर तू काहे पढतारु?
बिजुरी," गुड्डी, हमार मामा हमके पढावेले, दसवीं करेके बाद, हम पटना चल जाईब। उन्हवा हमके हिसाब किताब करे खातिर राखइन्हे। चल हमार हो गइल। नदी में जाके गाँड़ि धोयके।
दोनों जल्दी से स्कर्ट उठाये ही नदी के पास पहुंच गई और गाँड़ धोने लगी। थोड़ी देर में कपड़े पहन कर ठीक कर दोनों वापिस पेड़ के पास पहुंची जहां आम की कैरियाँ और किताबें रखी थी। दोनों बस्ती की ओर चल दी। तभी पीछे झाड़ियां में सुरसुराहट हुई। गुड्डी पीछे मुड़ी तो बिजुरी बोली," का भईल ?
गुड्डी," झाड़ी में सुरसुराहट भईल अइसन बुझाता।
बिजुरी- कौनो जानवर होई। झाड़ी में ना देख पीछे मुड़के। अच्छा ना होखेला।
फिर गुड्डी और बिजुरी दोनों आगे निकल गयी। लेकिन झाड़ी में कोई तो था, आखिर कौन था??
रात के नौ बज चुके थे। पूरा गांव सो चुका था। धर्मदेव का घर गांव से थोड़ा हटके था। घर के एक कोने में राजू एक बल्ब की रोशनी में पढ़ाई कर रहा था। राजू छोटा होकर भी बारवीं में पढ़ रहा था, और उसकी बड़ी बहन गुड्डी अभी तक दसवीं भी नहीं कर पाई थी। इसलिए वो भी वहीं किताब खोलके पढ़ रही थी। पर उसका पढ़ने में बिल्कुल मन नहीं लग रहा था। वो किताब से ज़्यादा इधर उधर नज़रें दौड़ा रही थी। मुंह में बांयी उंगली के नाखून दांतों से काट रही थी। तभी वो उठी और बुदबुदाते हुए बोली," बड़ा गरम लागेला, तनी पानी पीके आवतानी।" उसने इतनी जोर से बोला कि राजू ने भी सुना। राजू," गुड्डी दीदी, तोके पढ़े में मन नइखे लागत। सांझिया से देखतानी तू पढ़े नइखे चाहत, खाली इन्हवा उन्हवा देखेले।"
गुड्डी," हम कुछ करि, तोहके उसे का। तू आपन पढ़ना। हाँ, हमके मन नइखे लागत पढे में, ई बतिया कोनो नाया नइखे।" बोलके वो जाने लगी। तो राजू बोला, पानी तनि हमार खातिर भी ले अइहे"। गुड्डी ने मुंह बिचकाया और घर के कोने में रखे मटके से पानी पीने लगी। थोड़ी देर में पानी पीकर, वो छोटे भाई के लिए गिलास में पानी ले गयी। और बोली," ई ले, पिले पनिया।" राजू पानी पीने लगा तो उसकी नज़र अपनी भोली-भाली दीदी के उभरे चुच्चियों पर पड़ी। जो कि उसके यौवन की परिपक्वता की स्मारक की तरह तनी हुई थी। गुड्डी वहीं खड़ी रही जब तक, राजू पानी पीता रहा। राजू मुंह से पानी पी रहा था और आंखों से गुड्डी का यौवन। पानी पीने के बाद उसने गिलास गुड्डी को दे दी, गुड्डी उसे रखने चली गयी। इस बार उसने पीछे मुड़कर गुड्डी की मटकती गाँड़ को लहराते हुए देखा। उसके चूतड़ काफी बड़े और मोटे थे, जिसकी वजह से काफी थिरकन होती थी। राजू पेलके झपकाए उसे देखता रहा, पर जैसे हर किसीको आभास हो जाता है कि पीछे से कोई देख रहा है, वैसे ही गुड्डी पीछे मुड़ी तो राजू भी पलट के किताबों में देखने लगा, पर उसे कोई शक नहीं हुआ। गुड्डी फिर वापिस आके करवट लेके लेट गयी और वो अपनी पीठ राजू की ओर कर ली थी, ताकि वो नज़रे बचा के सो सके। उसने गुलाबी रंग की सलवार कुर्ती पहन रखी थी। लेटने की वजह से कुर्ती ऊपर उठ गई थी, जिससे उसकी कमर ऊपर से नंगी हो गयी थी। राजू की नज़र फिलहाल उसपर नहीं गयी थी। थोड़ी ही देर में उसको नींद आ गयी और हल्के हल्के खर्राटे मारने लगी। तब राजू ने अपनी बहन की ओर देखा। वो अपनी बहन के गदराए जिस्म को पहली बार इतने करीब से देख रहा था। मदमस्त गदरायी गाँड़ जो कि सलवार में कैद थी। पर उसका कसाव साफ पता लग रहा था। औरत के बदन की गर्मी उसके कपड़े संभाल ही नहीं सकती। क्योंकि उसकी तपिश पुरुष को आकर्षित कर ही लेती है, चाहे वो सगा भाई ही क्यों ना हो। राजू जो कि बहुत ही सैय्यम वाला लड़का था, उसकी नियत भी डोलने लगी थी। वो कई बार अपना ध्यान उधर से किताबों की ओर किया, पर बार बार उसकी नज़र घूम कर गुड्डी के बदन पर जा रही थी। राजू ने बड़ी हिम्मत करके खाट पर गुड्डी के पास आने लगा जब उससे बर्दाश्त नहीं हुआ। वो गुड्डी के गाँड़ के ठीक पीछे आया, और अपनी नाक उसके पास लाया और सूंघने लगा। तभी गुड्डी करवट ली, और उसकी कुर्ती उठ गई और नाभि साफ दिखने लगी।उसका मन कर रहा था, की उसकी नाभि को चूम ले। पर हिम्मत नहीं हो रही थी। उसकी नज़र तभी सलवार पर गयी जो ठीक उसकी जांघों के बीच थी। जहां हर औरत का खजाना होता है। जिसे मर्द मज़े से लूटते हैं, औरत दुगने मज़े से लुटवाती है। वो झुककर उसे चूमना चाहता था, और धीरे धीरे झुकने लगा। लेकिन जैसे ही वो करीब पहुंचा, तो दूसरी ओर से उसकी माँ आ रही थी। वो आंखे मलते हुए बोली," गुड्डी ए गुड्डी एहवे सूत गइनी, चल उठ कमरा में चल। हम कहत हईं एकर बाबूजी के ई लइकी के पढ़े में मन नइखे लागत, ना ई लइकी से कुछू होई।"
राजू ने झट से होशियारी दिखाई, और गुड्डी को झकझोरते हुए उठाने लगा और बोला," उठ गुड्डी दीदी,अईसे तू पास ना हो पइवा। पढ़े के पड़ी।"
बीना," तू काहे जागल बाड़े, जो तुहु सुत जो। रात हो गइल। "
गुड्डी तब तक आंख मिलमिलाते हुए उठी।और अपनी कुर्ती ओढ़नी ठीक करके उठके चली गयी।
गुड्डी को अपनी नज़रों से जाता देखकर उसे अजीब सा गुस्सा और चिढ़ हो रही थी। जैसे किसी भूखे से खिलौना छीन लिया जाए। वो फिर वहीं खाट पर लेट गया, और आज दिन में जो उसने देखा था। उसके बारे में सोचने लगा। आज दोपहर को अपनी बहन और बिजुरी को हगते हुए झाड़ियों से कोई और नही वो खुद देख रहा था। वो वहां भैसों को चराने गया हुआ था, क्योंकि उसके पिताजी शहर गए हुए थे। भैसे तो इधर उधर चर रही थी। वो वहीं झाड़ियों के पीछे लेटा था, जिसे उन लड़कियों ने नही देखा था। अपनी बड़ी बहन की नंगी गाँड़ देखकर वो आज उसका दीवाना हो चुका था। आज उसके मन में अपने सगी बहन के प्रति कामुक भावना के अंकुर फुट रहे थे। आखिर वो भी जवान हो रहा था। उसने आजतक पढ़ाई के अलावे किसी चीज़ में ध्यान नहीं दिया था। पर अपनी बहन के नंगे बदन को देखकर आज उसके अंदर का मर्द जागने लगा था। उसका हाथ अपने लण्ड पर चला गया। माँ और बहन के जाने के बाद, उसने अपने सारे कपड़े उतार दिए और अपनी बहन की गाँड़ को याद करने लगा। वो गुड्डी को बहन नहीं बल्कि एक औरत के तौर पर देख रहा था। वो मूठ मार रहा था गुड्डी के नाम की। थोड़ी ही देर में वो मूठ मारके सो गया।
गुड्डी की चड्डी भाग १
सुबह के लगभग साढ़े पांच बज रहे थे। सूर्योदय हो रहा था। धरमदेव अपनी साईकिल से खेतों की ओर निकल चुके थे। बीना घर के काम काज में लग चुकी थी। राजू भैंसों का दूध निकालने के लिए, घर के आंगन में पड़ी बाल्टी लेने जा रहा था। गुड्डी घर के पिछवाड़े में बनी कच्ची बाथरूम में नहा रही थी। जिसमे ऊपर कोई भी छत नहीं थी, पूरा खुला था, साथ ही उसमे दरवाज़े के नाम पर बस एक पर्दा लगा हुआ था। आज गुड्डी का व्रत था, इसलिए वो सुबह सुबह ही नहा कर पूजा करने मंदिर जाने वाली थी। उसकी माँ ने उसे व्रत रखने को कहा था, और बोली थी कि ये व्रत रखने से उसको मनचाहा वर मिलेगा। राजू बाल्टी लेकर घर के पिछवाड़े से ही निकल रहा था। तभी उसका ध्यान बाथरूम से बदन पर लोटे से पानी गिरने की आवाज़ आयी। साथ ही गुड्डी के पैरों की पायल की आवाज़ भी रुनझुन रुनझुन कर बज रही थी। राजू ने बहुत कोशिश की कि वो उधर ध्यान ना दे, और भैंसों के खटाल की ओर जाने लगा। वो दो चार कदम चलने के बाद रुक गया। ना चाहते हुए भी, वो बेचैन मन से हारकर, बाथरूम की ओर जाने लगा। उसके नज़दीक पहुंचकर उसने आइस्ते से बाल्टी नीचे रख दी। चुकि वो ईंट और मिट्टी से जोड़ी गयी दीवार थी, कीड़े मकोड़ों ने कई जगह से मिट्टी हटा दी थी, जिससे देखने पर अंदर साफ साफ दिखता था। राजू अंदर झांकने के लिए एक बार झुका, पर फिर अंदर के अच्छे भाई ने उसे रोका तो, उसने आंखे बंद कर ली और दीवार से चिपककर खड़ा हो गया। पर थोड़ी ही देर में, काम भावना ने अंदर के भाई को हरा दिया, और वो अंदर नहा रही गुड्डी को देखने के लिए, एक लंबी सांस लेके छेद से अपनी आंख लगा दी। अंदर के नजारे को देखकर वो स्तब्ध रह गया।
गुड्डी अंदर बिल्कुल नंगी/ नग्नावस्था में नहा रही थी।उसने अपने बदन पर एक टुकड़ा कपड़े का भी नहीं डाल रखा था। जिस तरह वो अपने माँ के गर्भ से पैदा हुई थी, बिल्कुल उतनी ही नंगी थी। वो अंदर अकड़ू होकर बैठी थी। और इस वक़्त अपने बालों में शैम्पू कर रही थी। ऐसा करते हुए, वो अपने हाथों से बालों को रगड़ रही थी, जिससे उसके चुच्चियां हिल रही थी। उसके गहरे भूरे रंग के चूचक बिल्कुल तने हुए थे। इस अवस्था में उसकी आंखें बंद थी। उसके हाथ उठाने की वजह से उसकी बगलें/ काँखें भी साफ झलक रही थी। काँखों का रंग उसके शरीर के गोरे रंग की अपेक्षा सांवली थी, और हल्के बाल उसे और भी आकर्षक लग रहे थे। राजू की भूखी नजरें गुड्डी के मदमस्त जिस्म का मुआयना कर रही थी। अपनी बड़ी बहन को पूरी नंगी देखने का ये उसका पहला अवसर था। तभी गुड्डी ने सर पर पानी डाला और शैम्पू के झाग उतरने लगे। शैम्पू के झाग उसके बदन से बहकर चुच्चियों की घाटियों से होकर, चूचकों/ निप्पल को चूमकर बह रहे थे। उसके काले लंबे बाल पानी की वजह से, उसके चेहरे और पीठ से चिपक गए थे। वो अपनी आंखें बंद किये हुए ही, पानी डाल रही थी। जब उसका सारा झाग निकल गया, तो उसने बालों को इकठ्ठा करके पीछे ले ली, और उसका चेहरा खुलकर सामने आया। उफ़्फ़ भगवान ने बड़ी ही सुंदर शक्ल दी थी उसको। मदमस्त कजरारे नैन, खिंची हुई नाक, कोमल चिकने सुंदरगाल, गुलाब की पंखुड़ियों से नाज़ुक प्यारे होंठ, लंबी सी गर्दन। शायद भगवान ने गुड्डी के रूप में स्वर्ग की कोई अप्सरा ही भेज दी थी। अभी राजू ये सब देख ही रहा था, की तभी वो उठकर खड़ी हो गयी।
राजू का मुंह खुला का खुला रह गया, और आँखे बड़ी हो गयी। गुड्डी अपने गीले बाल बांधने लगी थी। वो बाल्टी से पानी निकालकर अपने नंगे बदन पर पानी डालने लगी। एक भाई को शायद अपनी सगी बहन को इस निजी क्षण में नहीं देखना चाहिए, ये किसी भी समाज में व्यभिचार ही कहा जाता है। पर एक नंगी खूबसूरत लड़की को 18 साल की कच्ची उम्र का लड़का देखेगा तो इसमें किसे दोष दिया जाए। बिल्कुल नंगी होने से उसके सुंदर बदन की नुमाइश का लुत्फ कोई और नहीं बल्कि उसका सगा भाई ही उठा रहा था। खड़ी होकर जब उसके बदन से पानी गिर रहा था, तो वो मोतियों की तरह उसके निप्पल पर लटक रहे थे। वो अपने बदन को साफ करने के लिये हाथों से रगड़ रही थी। फिर वो नीचे झुकी ताकि अपनी जाँघे और पैरों को साफ कर सके। ऐसा करने से उसकी गाँड़ सीधा राजू के सामने आ गयी। उसके बड़े बड़े गोरे चूतड़ भीग कर, माहौल को और गर्म बना रहे थे। वो फिर अपने चूतड़ों को हाथों से रागड़के साफ कर रही थी। उसने गाँड़ की दरार में भी हाथ ले जाकर, उसे खूब साफ किया। वो अपने गाँड़ के छेद को उंगलियों से मलकर साफ की। राजू ये सब देखकर अपने लण्ड को मसल रहा था। जैसे कि इतना काफी नहीं था, वो अब अपनी जांघों के बीच की सबसे कीमती चीज़ अपनी बुर पर पानी डालने लगी। बुर पर काले, घुंघराले बाल उसको सजा रहे थे। उसने अपनी बुर को उंगलीयों से खोला, जिससे बुर की पत्तियां अलग हो गयी और गुलाबी बुर खुलकर सामने आ गयी। वो उसमें पानी डाली और उंगली से रगड़के साफ करने लगी। गुड्डी इस सबसे बेफिक्र थी, की जिसके कलाई पर वो रक्षाबंधन के दिन राखी बांधती है अपनी इज्जत की रक्षा के लिए, वो बाहर उसकी इज्जत को आंखों से लूट रहा था। उसने आज जीभर कर अपनी गुड्डी दीदी के नंगे जिस्म को निहारा, पर वो कभी काफी नहीं होने वाला था। गुड्डी अंदर नहा चुकी थी, और गमछे से अपने बदन को पोंछ रही थी। फिर उसने अपनी साफ गुलाबी पैंटी पहनी और स्कूल की यूनिफार्म की स्कर्ट पहनी। ऊपर टेप पहनी और शर्ट डाली। बालों में तौलिया लपेटा और अपनी गंदी कच्छी और टेप को पानी से खंगालने लगी। राजू समझ गया कि, अब गुड्डी निकलने वाली है, तो उसने बाल्टी उठायी और खटाल की ओर चल दिया। उधर गुड्डी बालों में तौलिया लपेटे हाथों में बाल्टी जिसमे धुले कपडे थे, लेकर घर की ओर चल दी। राजू उसके निकलने से पहले भैंस के थनों में पानी मार रहा था। जैसे ही वो निकली, राजू उसको अंदर जाते हुए देख रहा था। राजू ने जल्दी ही दूध निकालना शुरू कर दिया। तभी गुड्डी छत पर आ गयी और रस्सी पर कपड़े डालने लगी। राजू और गुड्डी की नज़र टकरा गई। गुड्डी मुस्काई और बोली," राजू जल्दी जल्दी कर, अभी तू पहिले भैंस के दुहत बाड़े, दोसर भैंस के कब दुहबे।" ये बोलते हुए उसके हाथों से उसकी कच्छी नीचे गिर गयी। ये राजू ने भी देख लिया। गुड्डी पहले तो शरमाई की कैसे अपने भाई से कच्छी उठाने को बोले। राजू ये मौका चूकना नहीं चाहता था। वो उठकर सामने गया और अपनी बहन की कच्छी उठायी। उसने देखा जहां से वो बुर और गाँड़ के बीच लगती है, वहां से रंग हल्का हो चला था, और थोड़ी सी फट चुकी थी। वो गुड्डी के सामने ही उसे गौर से देख रहा था। गुड्डी को शर्म आ रही थी। वो चुपचाप उसे चड्डी को निहारते देख रही थी। राजू ने उसकी ओर देखते हुए, उसकी चड्डी के उस हिस्से में उंगली डाल दी, पर ऐसे जैसे कि लगे वो छेद को चेक कर रहा है। गुड्डी को अब और शर्म आने लगी, उसने राजू को इशारे से चड्डी ऊपर फेंकने को बोला। राजू ने अनजान बनते हुए हथेली हिलाकर ना समझने का इशारा किया। आंगन में उसकी माँ बीना चूल्हा जला रही थी, तो वो ज़ोर से बोल भी नहीं सकती थी। उसने छत के किनारे आकर बोला," राजू हमार हईं उ देदआ। फेंक जल्दी से।" राजू ने कान के पास हथेली लाकर ना सुनने का इशारा किया। गुड्डी थोड़ा जोर से बोली," जल्दी से उपर फेंक उ हमार हईं।"
राजू ने, फिर उसकी गीली कच्छी को बॉल बनाकर ऊपर फेंक दिया। और पलटकर चल दिया। गुड्डी अपनी कच्छी लेकर जल्दी से रस्सी पर डालकर नीचे चली गयी। राजू अपने हाथ को देखकर सोचने लगा, की अपनी बहन के सामने ही उसकी चड्डी के छेद को देख रहा था। जाने उसमें इतनी हिम्मत कहाँ से आई। वो खुद अचंभित था। उधर गुड्डी भी उसकी नियत जैसे भांप गयी थी। क्योंकि जब राजू उसकी चड्डी देख रहा था, तो उसकी आँखों में ठरक देख सकती थी। फिर भी उसे ये बिल्कुल भी भरोसा नहीं हो रहा था। उसका दिल ये मानने को तैयार ही नहीं थी, की उसकी चड्डी से उसका छोटा भाई उत्तेजित हो गया था।
राजू जैसे ही दूध निकालके घर आया, तो उसने देखा उसकी बहन मंदिर जाने के लिए फूल और तांबे के लोटे में जल ले रही थी। गुड्डी ने अपनी माँ को बोला," माईं हम मंदिर जा तानि। फेन स्कूल भी जाय के बा।उसकी माँ बोली," ठीक बा।" गुड्डी की सहेली बिजुरी भी आ गयी थी। घुसते ही बिजुरी," गुड्डी, जल्दी कर ना, तहार पूजा पाठ के चक्कड़ में देर हो जाई, स्कूल जाय खातिर।"
गुड्डी,"तू एहवे रुक, हम तुरंत आवा तानि।"
बिजुरी," रुक हमहुँ आवा तानि तोहरा साथे।" और वो भी उसके साथ चल दी। राजू के मन में अब ठरक का बीज अंकुरित होने लगा था। उसने अपनी बहन को जाते हुए देखा, तो उसकी हिलते चूतड़ों पर ही नज़र टिक गई, तब तक देखता रहा जब तक नज़रों से ओझल ना हो गयी। उसने मौके का फायदा उठाया और माँ के नज़रों से चुराके अंदर कमरे में घुस गया जहां गुड्डी के कपड़े पड़े रहते थे। उसने जल्दी जल्दी में उसकी एक मुड़ी हुई पहनी चड्डी उठायी और उसे लेकर अपने बैग में डाल दिया। राजू स्कूल जाता नहीं था, क्योंकि स्कूल में तो पढ़ाई होती नही थी। वो रोज़ 8:30 बजे की ट्रेन पकड़कर पटना जाता था कोचिंग करने। वो अरुण के साथ जाता था। बाइक वो डेली ले जा नहीं सकता था, क्योंकि उसमें पेट्रोल का खर्चा होता था। देखते देखते आठ बज गए, तो राजू तैयार होकर नाश्ता करके जाने लगा। थोड़ी ही देर में वो गांव के बाहर स्टेशन पर था, जहां अरुण उसका इंतज़ार कर रहा था। दोनों ने मुस्कान दी। जल्द ही ट्रेन भी आ गई। दोनों ट्रैन पर चढ़कर सीट पकड़ ली।
दोनों बातों में लग गए।
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तड़प और तृप्ति
रात के नौ बज चुके थे। पूरा गांव सो चुका था। धर्मदेव का घर गांव से थोड़ा हटके था। घर के एक कोने में राजू एक बल्ब की रोशनी में पढ़ाई कर रहा था। राजू छोटा होकर भी बारवीं में पढ़ रहा था, और उसकी बड़ी बहन गुड्डी अभी तक दसवीं भी नहीं कर पाई थी। इसलिए वो भी वहीं किताब खोलके पढ़ रही थी। पर उसका पढ़ने में बिल्कुल मन नहीं लग रहा था। वो किताब से ज़्यादा इधर उधर नज़रें दौड़ा रही थी। मुंह में बांयी उंगली के नाखून दांतों से काट रही थी। तभी वो उठी और बुदबुदाते हुए बोली," बड़ा गरम लागेला, तनी पानी पीके आवतानी।" उसने इतनी जोर से बोला कि राजू ने भी सुना। राजू," गुड्डी दीदी, तोके पढ़े में मन नइखे लागत। सांझिया से देखतानी तू पढ़े नइखे चाहत, खाली इन्हवा उन्हवा देखेले।"
गुड्डी," हम कुछ करि, तोहके उसे का। तू आपन पढ़ना। हाँ, हमके मन नइखे लागत पढे में, ई बतिया कोनो नाया नइखे।" बोलके वो जाने लगी। तो राजू बोला, पानी तनि हमार खातिर भी ले अइहे"। गुड्डी ने मुंह बिचकाया और घर के कोने में रखे मटके से पानी पीने लगी। थोड़ी देर में पानी पीकर, वो छोटे भाई के लिए गिलास में पानी ले गयी। और बोली," ई ले, पिले पनिया।" राजू पानी पीने लगा तो उसकी नज़र अपनी भोली-भाली दीदी के उभरे चुच्चियों पर पड़ी। जो कि उसके यौवन की परिपक्वता की स्मारक की तरह तनी हुई थी। गुड्डी वहीं खड़ी रही जब तक, राजू पानी पीता रहा। राजू मुंह से पानी पी रहा था और आंखों से गुड्डी का यौवन। पानी पीने के बाद उसने गिलास गुड्डी को दे दी, गुड्डी उसे रखने चली गयी। इस बार उसने पीछे मुड़कर गुड्डी की मटकती गाँड़ को लहराते हुए देखा। उसके चूतड़ काफी बड़े और मोटे थे, जिसकी वजह से काफी थिरकन होती थी। राजू पेलके झपकाए उसे देखता रहा, पर जैसे हर किसीको आभास हो जाता है कि पीछे से कोई देख रहा है, वैसे ही गुड्डी पीछे मुड़ी तो राजू भी पलट के किताबों में देखने लगा, पर उसे कोई शक नहीं हुआ। गुड्डी फिर वापिस आके करवट लेके लेट गयी और वो अपनी पीठ राजू की ओर कर ली थी, ताकि वो नज़रे बचा के सो सके। उसने गुलाबी रंग की सलवार कुर्ती पहन रखी थी। लेटने की वजह से कुर्ती ऊपर उठ गई थी, जिससे उसकी कमर ऊपर से नंगी हो गयी थी। राजू की नज़र फिलहाल उसपर नहीं गयी थी। थोड़ी ही देर में उसको नींद आ गयी और हल्के हल्के खर्राटे मारने लगी। तब राजू ने अपनी बहन की ओर देखा। वो बिल्कुल बेफिक्र होकर सो रही थी।
एक दिन बिजुरी और गुड्डी स्कूल में थे, और जीव विज्ञान की क्लास चल रही थी। उसमें मानव प्रजनन के बारे में बताया जा रहा था। दोनों लड़कियों को जिज्ञासा तो थी, पर कुछ समझ नहीं आ रहा था। वो दोनों कक्षा में पीछे बैठी थी।
बिजुरी ने अपने बैग से एक पतली सी किताब निकाली और गुड्डी की ओर बढ़ा दिया। गुड्डी ने उसकी ओर अचरज से देखा और, किताब को खोला, उसमें लड़के लड़कियों की चुदाई की रंगीन तस्वीरें थी। लड़कियां किसी में घोड़ी बनकर चुद रही थी, तो किसी में लड़कों की गोद में बैठकर। गुड्डी की आंखें ये देखकर फटी रह गयी। वो पहले कभी इस तरह की तस्वीर नहीं देखी थी। गुड्डी को सेक्स के बारे में बातें करना अच्छा तो लगता ही था, और ऐसी तस्वीरों को देखकर दिल में रोमांच भर आया। उसने बिजुरी की ओर देखा और दोनों की नजरें मिलते ही होठों पर शैतानी मुस्कान तैर गयी। बिजुरी फुसफुसाकर बोली," आज मध्यान भोजन के बेरा में निकलके चलल जाई।" गुड्डी," बिजुरी ई तू कहाँ पइलस, एकदम नंग धरंग ह ऐमे।
बिजुरी," बाद में बताईब चल नदी के पास तब।"
थोड़ी देर में ही लंच ब्रेक हो गया। दोनों लड़कियां अपना बस्ता खिड़की से बाहर फेंक दी और खुद भी एक एक कर बाहर निकल गयी। दोनों बैग उठाकर सीधे नदी की ओर निकल गयी। वहां पहुंचकर बड़े से पेड़ के नीचे बैठ गयी। अब तक उन दोनों ने कुछ नहीं बोला था, गुड्डी ने बैग से वह किताब निकाली और खोलकर देखने लगी। गुड्डी को इस तरह उतावला देखकर बिजुरी हँसने लगी और बोली," का गुड्डी रानी मज़ा आ रहल बा, चोदम चोदायी के फोटुवा देखके। खूब मजा लेवेली ई कुल लईकियाँ स। लईकन के लांड से बुर भी चुदाबेली और पइसा भी ढेरी कमाली।"
गुड्डी," आह... देख कइसन बुर में लांड घुसावाके मज़ा ले रहल बानि। अईसे कुल कपड़वा खोलि के पेलवात बारि। मुंह देख ना कइसन चुदवासी बनौले बारि।"
बिजुरी," हमके पास अउरो किताब बा, चुदाई के कहानियन के। ऐमे एक से एक कहानी बा। खास बात त ई बा कि घर परिवार के रिश्ता में चुदाई के मस्त मस्त कहानी बा हो। भाई ही बहिनिया के चोदेले, बाप बेटी बहु के, अउर बेटा माई के।
गुड्डी," धत, अइसनो कहानी लिखत बारे लोगिन। एतना गंदा गंदा ??
बिजुरी," अरे अइसन कहानी पढ़े में त मज़ा आवेला। तब जब तू बुरिया रगड़बु ना, उफ़्फ़ मत पूछ की केतना मज़ा आवेला। ले अब तक त तहार बुरिया पनिया गईल होई। ना भरोसा बा त छूके देखले।
गुड्डी सच में पनिया चुकी थी। इसलिए उसकी ओर देखके बोली," धत, तुहु बारे ना एकदम .....
बिजुरी," का ऐमे लजात काहे बारि, ई देख। और उसने अपनी स्कर्ट उठाके पैंटी उतार दी, बिजुरी की बुर बिल्कुल लसलसाई हुई थी। गाढ़ा मोटा पानी बुर से चिपका हुआ था। बिजुरी बुर पर उंगली रगड़कर उसका चिपचिपापन गुड्डी को दिखा रही थी। फिर बोली," तू आपन चड्डी उतारके देख ना गुड्डी। एकदम मज़ा आयी। चल पेड़ के आर में, ऊंहा कोई देखी ना।गुड्डी भी अब तक तस्वीरें देखके गरम हो चुकी थी। वो दोनों पेड़ की आर में आ गयी। वहां गुड्डी और बिजुरी ने स्कर्ट उतारी, फिर अपनी कच्छियाँ भी उतार दी। गुड्डी की बुर काफी फूली और गद्देदार थी। बुर से रस बह चला था। गुड्डी की बुर को देखके, बिजुरी बोली," तहार बुरिया त एकदम मालपुआ जइसन बा, रस टाघरता हो। बाप रे केतना चुवता, सगरो जांघिया भीज गईल बा। बाप रे तहार बुर के पनिया त बहुत मोट लागत बा। जानत बाड़े, जउन लइकी के मोट होता नु, उ खूब कामुक और चुदासी होवेली। लांड घुसे खातिर बुर पानी छोड़अता।"
गुड्डी," बिजुरी, का कहीं तू त जानते बाड़े, पढ़ाई में मन नइखे लागत, मन होवेले की जल्दी से कोई ई जोवन के खजाना लूट ले।"
बिजुरी," लूटे खातिर लूटेरन के कमी नइखे। तू का चाहत बारे?
गुड्डी कामुक हो बोली," हम चाहतानी कि, जल्दी से बियाह कइके हमार भतार हमके रोज़ रतिया में खूब चोदे।" बिजुरी," चुदाई खातिर बियाह अउर भतार के जरूरत नइखे रानी, लांड के जरूरत होखेला। देख तहरा आसपास में जरूर कोई लांड मिल जाइ। लेकिन अइसन लांड खोझिया जेमे बदनामी ना होखो।" दोनों सहेलियां एक दूसरे से खुलके बातें कर रही थी, और बुर को मसल रही थी। थोड़ी देर में दोनों अपनी चरम सीमा पर पहुंच गई। फिर दोनों ने अपनी अपनी चड्डी और स्कर्ट पहन ली। गुड्डी ने स्कर्ट पहनते हुए पूछा," बिजुरी, तू ई किताब सब कहाँ से पइलु?
बिजुरी," तू आम खो, आँठी काहे गिनत बारू। आज ले जो ई किताबिया और मज़ा मार।
गुड्डी और बिजुरी फिर घर की ओर चल दी।
रात को गुड्डी का मन पढ़ने में बिल्कुल नहीं था। वो किसी तरह जल्दी से कमरे में अकेले सोना चाहती थी, ताकि वो किताबें अकेले में पढ़ सके। उसने तबियत खराब का बहाना बनाने की सोची। वो मन ही मन प्लान बना रही थी, की कैसे कोई मौका मिले। फिर उसने सोचा क्यों ना, माहवारी का बहाना बना लिया जाए। और वो पेटदर्द का नाटक करने लगी। ऐसे तो राजू उसे उठने नही देता, क्योंकि इस बार गुड्डी को पास कराने का ठेका उसके बाप ने उसे दे रखा था। गुड्डी बैठे बैठे ही अचानक से लेट गयी और बोलने लगी," माई हमके पेट में दरद उठ रहल बा। माई गे माई आह... । बीना उसकी माँ समझ गयी कि माहवारी की दर्द होगी," जो बेटी घर में जाके आराम कर। " राजू ," अरे का भईल गुड्डी दीदी, तू त अभी ठीक रहलु, अभी अचानक से का हो गइल?
बीना," तू चुप कर तोरा ना बुझावेला, जो गुड्डी आराम कर। गुड्डी वहां से चुपचाप उठी और घर के अंदर चली गयी। थोड़ी ही देर में आंगन में कोई नहीं था, राजू ने भी अब पढ़ना ठीक नहीं समझा। वो भी अपनी खाट आंगन में ही लगा लिया। उसके माँ बाप भी अपने कमरे में सोने चले गए। राजू ने अपने सारे कपड़े उतार दिए सिर्फ हाफ पैंट पहने हुआ था।
वो ये मौका पाकर खुश था, क्योंकि उसके हाथ में अभी गुड्डी की फटी हुई चड्डी थी। वो उस चड्डी को सूंघ रहा था। और अपने तने हुए लंड को सहला रहा था। उसे आज अपने दोस्त अरुण की बात याद आ रही थी की कैसे कल रात उसने अपनी माँ रंजू को चोदा।
जब अरुण कल घर पहुंचा, तो देखा कि उसका मामा घर आया हुआ था। उसके मामा अगली सुबह 5 बजे ही जानेवाले थे, तो रात का प्लान ही चौपट हो गया। अरुण का मूड उसको देख ऑफ हो गया था। रंजू सब समझ रही थी, वो जानबूझकर अपने भाई को और रुकने के लिए बोल रही थी दरअसल वो अरुण को चिढा रही थी। वो जानती थी, की अरुण ब्लू फिल्म्स की डी वी डी लाया है। दोनों का रातभर ब्लू फिल्म देखकर चुदाई की प्लान था। अरुण ने गुस्से में छत पर अपना बिस्तर लगा लिया। नीचे उसकी माँ अपने भाई की खातिरदारी में लगी थी। अरुण अपनी किस्मत पर कुढ़ रहा था। हालांकि रंजू और उसके बीच शारीरिक संबंध स्थापित हुए सालभर हो चुका था, पर अब अरुण को रंजू के बिना चैन नहीं मिलता था। उधर रंजू भी अरुण के लण्ड की आदि हो चुकी थी। खैर जैसे तैसे रात के नौ बजे उसके मामा सो गए। एक बार अरुण को लगा कि जाके अपनी माँ के कमरे में घुस जाए, पर डर की वजह से रुक गया, की कहीं मामा को भनक ना लग जाये। तभी उसकी नज़र नीचे आंगन में पड़ी, रंजू टोर्च लेकर शायद घर के पिछवाड़े में जा रही थी। चुकी अरुण के घर में शौचालय नहीं था, तो रंजू घर के पिछवाड़े में ही हगती मूतती थी। उसने शौचालय के पैसे तो ले लिए थे, पर बनवाई नहीं थी। रंजू को जाते देख, अरुण के मन में काम भावनाएं उठने लगी। वो नीचे तेजी से उतरा, और गलियारे में खड़ा होके देखने लगा। रंजू ने पहले अपनी साड़ी और साया उठाया। उसने अंदर कच्छी नहीं पहनी थी। उसके भारी भरकम गाँड़ चांदनी रात में साफ झलक रही थी। रंजू आराम से बैठ गयी, और मूतने लगी। रात में झिंगुर के शोर के बीच रंजू की बुर से फूटी मूत की धार किसी मधुर संगीत सी बज उठी। वो अकड़ू होकर बैठी थी, और बिल्कुल बेफिक्र होकर मूत रही थी। बाहर मच्छर भी थे, जो उसके चूतड़ों पर बार बैठने की कोशिश कर रहे थे। उनके डंक से बचने के लिए वो चूतड़ों को सहला रही थी, और कोई बैठ जाता तो थप्पड़ भी मार रही थी। उफ्फ्फ क्या दृश्य था। रंजू के हिलते डुलते गोल भारी चूतड़, ऐसे प्रतीत हो रहे थे, जैसे पानी के गुब्बारे। थोड़ी देर में वो मूत के उठी और वापिस जाने लगी। अरुण उसका इंतज़ार करने लगा। थोड़ी देर में रंजू गलियारे में आ गयी। रंजू को उसने देखा और मौका पाकर, उसे दबोच लिया। इस क्रम में रंजू की घबराहट से हल्की चीख निकल गयी, इससे पहले की अरुण उसका मुँह बंद करता। तभी उसका मामा भी जग गया, उसने पूछा," का भईल रंजू ?
रंजू खुद को संभालते हुए," ना रउवा सूतीं, एगो बिलाड़ रहला।" इस वक़्त रंजू को अरुण दीवार के सहारे दबोचे हुए था।
अरुण और रंजू की आंखें आपस मे लड़ी हुई थी। कामवासना तो दोनों में बराबर थी। पर रंजू किसी रिश्तेदार की उपस्तिथि में अपने ही घर में अपने बेटे के साथ, कैसे चुदाई करती। इसलिए उसने खुद को संभाला था। रंजू उसकी ओर देखके फुसफुसाते हुए बोली," रहल ना जाला का तहराके, देखत नइखे की तहार मामा एज्जे सुतल बारे।"
अरुण," माई, तू जउन फ़िल्मवा कहले बारि, तउन हम लेके आईले बारे, जाने आज कहाँ से ई हरामी आ गईल। चल छत पर, ऊंहा पेलब।
रंजू," अरे मादरचोद, मामा के हरामी कहअता। तहरा लाज नइखे लागत।"
अरुण," ना, नाआवेला लाज, अब त उ हमार साला बा। ओकर बहिन के बुरिया में रोज़ रतिया लांड घुसावत बानि हम।"
रंजू," छोड़ दे आज, भोरे जब चल जाई, त खूब चोदिहे आपन साला के बहिन।" अरुण बहुत उतावला था, क्योंकि उसने घर आने के पहले सेक्सवर्धक दवाई खा ली थी। इसलिए उसका लंड तना हुआ था। रंजू के नाभि में वो पैंट के ऊपर से ही चुभ रहा था। रंजू की सांसें भी तेज चल रही थी। अरुण उसकी गर्दन और चुच्चियों के ऊपर चूमने लगा। वो बोला," मामा के रहते, माई के चोदे में बड़ा मजा आयी ।" उसने रंजू की साड़ी का पल्लू उतारके नीचे गिरा दिया। रंजू ने अपने पल्लू को रोकने की कोशिश की, पर उसे रोक ना पाई। अरुण के उतावलेपन को देखके, उसके आंखों में भी चमक आ गयी। अरुण ने रंजू के होठ पर होठ रख दिये और उसका रसपान करने लगा। रंजू ने भी उसको पकड़के अपनी ओर खींच लिया। चुदाई की आग तो उसमें भी बराबर लगी थी। दोनों गहरे चुम्बन में लीन थे। तभी रंजू के भाई ने आवाज़ लगाई," अरे का भईल रंजू, अभी तक हुंवे बारे। का करत बारू?
रंजू ने चुम्मा बड़ी मुश्किल से तोड़ा और बोली," भैया रउवा जगले बानि का, हम त अरुण के कपड़ा उतारत रहीं। " ऐसा बोल के उसने अरुण की पैंट उतार दी, और चड्डी भी। फिर अरुण की नज़रों में शरारत से देखते हुए बोली," कपड़ा धो देतानि, भोरे तक सूख जाई।" फिर उसका लंड पकड़ ली और बोली," मूसल से धोय के पड़ी, ई मूसल भी बड़ा मज़बूत बा।" मामा बोला," हाँ धो दे, साफ कर दे बढ़िया से, खूब झाग निकालके। तब साफ होई।
रंजू," ई मूसल बहुत मजबूत बा, खूब झाग निकली और निकाली भैया।"
रंजू की शरारती बातें सुनकर, अरुण ने उसको वहीं नंगा करना शुरू कर दिया। क्षण में ही ब्लाउज उतर गई, फिर साड़ी उतार दी। साया उतारने लगा तो रंजू ने मना कर दिया और खुद साया उठा ली कमर तक और साये की डोरी में फंसा ली। अरुण उसके चुच्चियों को मसलते हुए पी रहा था। रंजू का भाई तब बोला," तू कपड़ा कब पानी में फूले खातिर देले बारि।"
रंजू," अभी देतानि, तुरंत गिला हो जाता।ओकर बाद मूसल भी बढ़िया से काम करेला।" रंजू बेशर्म थी, वो खुले आम अपने भाई से द्विअर्थिय संवाद कर रही थी। अपने बेटे के साथ इधर लगभग नग्न अवस्था में थी। ऐसी हालत अब अरुण बर्दाश्त नहीं कर पाया, और रंजू के चूतड़ पर तीन चार तमाचे मार दिया। आंगन में वो आवाज़ गूंज गयी। उधर से उसका भाई बोला," इतना जोर से काहे कपड़ा धुवत बारे।
रंजू के पास कहने को कुछ नहीं था," जोर से चोट देम, तब ना साफ होई।" अरुण उसकी हाज़िर जवाबी पे मुस्कुराया। रंजू ने अरुण की ओर देख अपने चूतड़ की ओर इशारा किया, तो अरुण ने दनादन 6 7 थप्पड़ और जड़ दिए। मामा," बड़ा जोर से आवाज़ आवतिया, ठीक से गीला ना भईल का?
रंजू की बुर को अरुण ने हाथों से टटोल के उसे दिखाया। रंजू ने बुर की पानी को छू के बोला," हाँ गिला हो गइल। अब मूसल से धोय के पड़ी।" रंजू खुद उसके गोद में बैठ गयी, और बुर में लण्ड घुप से ले ली। और अरुण के गोद में उछलने लगी। अरुण के चेहरे के सामने उसकी माँ के उछलते हुए चूची ऐसे लुभा रहे थे, जैसे किसी प्यासे को झरना का स्रोत मिल गया हो। माँ की बुर में लंड डाले हुए, उसने उसकी कमर जकड़ी हुई थी।रंजू भी अब कामवासना में बह चुकी थी। वो तो उसका भाई आ गया था, वरना आज रात तो वो पूरे घर में हर कोने में चुदती। बेटे का लंड अपनी बुर में लिए हुए, उसे एक अजीब सा सुकून मिल रहा था। थप थप की आवाज़ से उसके भाई को लग रहा था, की वो कपड़े धो रही है। रंजू करीब 15 मिनट ऐसे ही चुदती रही। फिर अरुण ने उसे कुतिया की तरह चौपाया कर दिया। फिर अरुण उसके चूतड़ों को हथेलियों के कब्जे में लेकर ग्रिप बनाई और पीछे से चोदने लगा। रंजू भी खूब मज़े से चुदवाने लगी। ऐसी मस्ती उसे किसी और पोजीशन में नहीं आती थी। बार बार बुर से लण्ड निकलता और उससे दुगनी तेज़ी में वापिस बुर में घुस जाता। इस घर्षण से बुर और गीली हो चुकी थी और पानी पानी हो चुकी थी। अरुण तो रुकने का नाम ही नही ले रहा था। वो अपनी ही धुन में रंजू को काबू में किये बुर को पेल रहा था। अरुण फुसफुसा कर बोला," मूसल से आज तोर बुरिया के कुल गंदगी निकाल देम माई।" रंजू बोली," हाँ, बेटवा आज के पिलान त चौपट हो गइल, पर भैया के जाय के बाद तोहके दिखाईब।"
अरुण उसे एक घंटे तक पेलता रहा। यहां ध्यान देनेवाली बात ये थी, की अरुण सेक्सवर्धक दवाई खाये हुए था, और रंजू बिना दवाई खाये हुए थी। फिर भी वो असहज नहीं थी। रंजू को करीब एक घंटे चोदने के बाद, अरुण ने अपना पानी उसके चूतड़ों पर उड़ेल दिया। रंजू भी तृप्त हो चुकी थी। अरुण भी अपनी पैंट पहन के ऊपर छत पर चला गया। रंजू ने झांक के देखा तो उसका भाई सो चुका था। वो बस साया पहने बगल से अपने कमरे में चली गयी। कमरे में पहुंच कर वो सो गई। अरुण भी छत पर सो गया था।
राजू का भी वीर्य निकल चुका था। अंदर गुड्डी के बुर से भी तृप्ति की धारा बह चुकी थी। सब नींद में सो चुके थे।
रंजू का सफर भाग ४
रात में उठा एक तूफान सुबह में शांत हो चुका था। एक ऐसा संबंध जिसका सभ्य समाज में कोई स्थान नहीं था, उस संबंध में अंजू ने खुद को अपने ही बहन के बेटे संग जोड़ लिया था। उसे इस बात का अफसोस या किसी प्रकार का पछतावा नहीं था। और ये उसके चेहरे से साफ पता चल रहा था। अंजू बिल्कुल नंगी राजू की ओर करवट लिए सोई थी। उसके बाल बिखरे हुए थे, आंखों का काजल थोड़ा लिप पुत गया था, होंठों पर लिपस्टिक भी लगभग उतर चुका था, क्योंकि सारा लिपस्टिक अरुण के चेहरे, सीने और लण्ड पर लग चुका था। अरुण उसकी बांहों में उसकी चूचियों के बीच सर घुसाए सो रहा था और वो उसे अपनी बांहों से चिपकाए हुए थी। अरुण के हाथ अंजू के चूतड़ों पर थे। अंजू की जांघों के बीच अरुण का लण्ड उसकी बूर से चिपका हुआ था। कल रात की आखरी चुदाई के बाद, दोनों इतने थक चुके थे कि वैसे ही सो गए। सुबह के ग्यारह बजे अरुण की नींद टूटी। उसकी नज़र सीधे अंजू के चेहरे पर गयी और एक पल को उसकी धड़कन थम गई उसे ऐसा लगा कि कहीं वो रंजू तो नहीं। लेकिन उसे अगले ही पल कल रात की सारी घटना याद आ गयी और चेहरे पर मुस्कान आ गयी। उसके थप्पड़ की वजह से अंजू के गाल पर निशान बन चुके थे। वो उसे सहलाने लगा। अंजू उठी तो उसकी नज़र अरुण से टकराई। अंजू शर्माते हुए अरुण के गालों पर एक चुम्मा दिया, और बोली," अरुण अईसे का देखअ तारे ?
अरुण," काल्हि तहराके थप्पड़ मारने रहनि, निशान पड़ गईल बा। हमके बढ़िया नइखे लागत।"
अंजू," हमार जान बचबे खातिर तू हमके थप्पड़ मारले रहलु। ई थप्पड़ ना इहो त प्यार बा।" ऐसा बोलके उसने उसकी हथेली चूम ली। फिर उसकी नज़र सीधे घड़ी पर गयी, उसने देखा कि ग्यारह बज चुके हैं, तो वो उठके जाने लगी। अंजू बहुत दिनों बाद चुदी थी। उसका शरीर में मीठा मीठा दर्द हो रहा था। अरुण की ठुकाई की वजह से उसके जांघों में भी दर्द हो रहा था। वो बिस्तर से उतरकर दो चार कदम लड़खड़ाते हुए चली और फिर अचानक से संतुलन खो कर गिरने लगी तो उसने अलमीरा का सहारा लेकर खुद को संभाला। अंजू ने अलमीरा में लगे शीशे में खुद को देखा। उसे अपने अंदर एक संतुष्ट औरत की झलक मिली। उसे अपनी हालत देख तरस नहीं बल्कि खुशी हो रही थी। वो मुस्कुराते हुए अपने बदन के हर हिस्से को निहार रही थी। उसके चूचियों पर दांत के निशान थे, पूरे बदन गर्दन, गाल, कमर, जाँघे, पेड़ू, में अरुण ने जगह जगह प्यार के निशान छोड़े थे। तभी पीछे से अरुण आकर उसे पकड़ लिया और उसके कंधों पर चूमते हुए बोला," का देखअ बारू अंजू रानी?
अंजू शर्माते हुए बोली," देखतानि कि राते तू, हमार कइसन हाल कर दिहलस राजा। सगरो देहिया के नाश हो गइल।" ऐसा बोलके उसने अरुण के बांये कंधे पर अपना सर रख दिया। अरुण अंजू के चूचियों को दबाकर उसके चूचकों को उंगलियों से रगड़ रहा था। अंजू के चूतड़ों से अरुण का लण्ड रगड़ खा रहा था। अंजू बोली," अरुण राते मन ना भरल का, जउन अभी फेर शुरू हो गईलु।" अरुण बोला," अरे तू कमाल के चीज बारू, तोहसे मन ना भर सकेला। अउर अभी त एक रात भईलहा, ना जाने अइसन केतना रात हमनीके बिताबे के बा रानी। अउर तू अभी से मन भरे के बात करअ तारू।"
अंजू," उ त ठीक बा अरुण, पर हमनीके आज रात के आठ बजे में निकलेके बा गांव जाय खातिर। फेर कइसे हमनीके ई मज़ा लेल जाई। जाने केतना दिन से हमके कउनो मरद
ना छुलस, हमरो पियास त अभी शांत ना भईल ह।" उसके बालों में हाथ फेरते हुए बोली। अरुण ने उसे अपनी ओर घुमा लिया और बोला," अंजू तू फिकर मत कर रानी, हम तहार पियास मिटाईब। जेतना दिन तू तरसलू, सबके हिसाब लेब। एतना कि तू पगला जइबू। आज रात हमनी के गांव ना जाईब, अब कल बस से जाईब। माई के तू फोन कर दअ, कि जेकरा समान देवे के रहला, उ काल जाई।" अरुण उसके चूतड़ों को थपथपाते हुए बोला।
अंजू," बड़ा दिमाग चलाबत बारआ, बहुत होशियार बारू। ई बढ़िया रहि। अभी कह देतानि।" अरुण ने अंजू को तुरंत फोन लाके दिया। अंजू ने फोन लगाया, तो उधर नीतू ने फोन उठाया। अंजू अभी भी नंगी अरुण के बांहों में थी, और अरुण उसके चूचियों को मसल रहा था, और उसके गालों, होठ को रह रहके चूम ले रहा था। अंजू बोली," नीतू तनि रंजू मौसी से बात करा द।"
नीतू," अभी करात बानि, तहार तबियत ठीक बानु, बहुत हाँफत बारू।" उसकी तेज़ साँसों को सुनकर नीतू ने कहा। अंजू बोली," हाँ, ठीक बा, उ तनि, काम करत रहनि।"
तब तक नीतू ने रंजू को फोन दे दिया, और अंजू ने उसे बोला," रंजू दीदी हम काल सांझे तक आईब, काहेसे कि जउन आदमी जायवाला बा, उ काल जाई दुपहरी में।" इतने में अरुण ने अंजू के बूर पर लण्ड रगड़ने लगा, और अंजू के मुंह से सिसकारी फूट पड़ी। रंजू ने पूछा," का भईल रंजू, सब ठीक बा ना।"
अंजू ," हाँ सब ठीक बा, एगो मूसा टांगिया के बीच से निकल के बिल में घुस गईल, उहे से चौंक गइनी। बड़ा मोटा मूसा ( चूहा) बा ।"
रंजू," अरे ई मूसवन सब बड़ा परेशान करेले, चैन से रहे ना देले, कुल घर के नाश कर देवेले। देख बिल से निकाल ओक।"
अंजू," हाँ दीदी, ई मुसवन सब घुसेला त बिल में, पर पूरा घर में हुड़दंग मचावेला। जब मर्ज़ी बिल में घुस जाला अउर फेर निकलके मज़ा करेलन सब।"
अरुण अंजू को हल्के हल्के चोदना शुरू कर चुका था।
रंजू," एक काम कर अभी ओके बिल में रहे दे, कभू ना कभू त निकली। तब ओके भगा दिहे।"
अंजू," हम त चाहतानि, उ कभू बिल से ना निकले, उहू शांत रही अऊर हमहुँ भी खुश रहब।"
रंजू," का मतलब??
अंजू," मतलब अगर उ बिल से ना निकली त, हम भी चैन रहब, कउनो तहस नहस ना होई।"
रंजू," ओकरा बिल में ही कैद कर दे।"
अंजू," हमहुँ इहे सोचत रहनि दीदी, सारा जिनगी उ बिले में रही त केतना मज़ा आई ना।"
रंजू," अरे लेकिन ई मूस सब बड़ा चतुर होखेला, बेर बेर बिल से निकली अउर ढुकि ( घुसी)।
अंजू," लेकिन जबले बिल में ढुकल ( घुसा ) रही, त बड़ा चैन रहेला।"
अरुण को उनकी द्विअर्थिय बातें सुनके बहुत मज़ा आ रहा था और वो जोश में आ गया था। तभी उसने अंजू के चूतड़ों पर कसके तीन चार थप्पड़ लगाए।
रंजू," अरे का पिट रहलु ?
अंजू," अरुण ही बिल के पास मुलायम दीवार के पीट रहल बा, मूसा के जल्दी निकाले खातिर।"
रंजू," हाँ, हाँ, ठीक क रहल बा। ओकरा के कहा अईसे ही थपथपाए तभी जल्दी से काम हो जाई।"
अंजू," अपने से कह दे, मोबाइल स्पीकर पर बा।"
रंजू," अरुण बेटा, मौसी के बढ़िया से मदद कर द, अउर असही थपथपाव, ताकि मौसी के काम आसान हो जाये।"
अरुण को शरारत सूझी उसने, अंजू के चूतड़ पर कस कस के दो थप्पड़ और लगाए। अंजू के चूतड़ लाल हो गए, वो पीछे मुड़के अरुण को नकली गुस्से से देखी बदले में अरुण ने एक चुम्मी उड़ा दी। अंजू हंस पड़ी।
अरुण बोला," माई, अईसे करि, एतना जोर से ठीक बा ना।
रंजू," हाँ, ठीक बा। मौसी के मदद करेके चाही बेटा।"
अरुण," मौसी के मदद त करते बानि। पर देख ना मौसी खिसयात बारि। तनि मौसी के समझा द।"
रंजू," अंजू, अरुण के करे द, तू खिसिया मत। ओकर साथ दे।"
अंजू मुस्कुराके बोली," ठीक बा दीदी,तहार बेटवा बड़ा मेहनत क रहल बा।"
अरुण को तो हरी झंडी मिल गयी। उसने रंजू और अंजू की रसप्रद बातों का पूरा लुत्फ उठाया।
रंजू बोली," ठीक बा, हम फोन रखअ तानि। काम बा।"
अरुण तपाक से बोला," ना माई, रुक ना जबले मूस ना निकल जाई। तहार मार्गदर्शन के जरूरत पड़ी।"
रंजू," ठीक बा हम मोबाइल ले जा तानि, हमके कपड़ा धुए के बा। उन्हें रख लेब।"
अरुण," ई ठीक रहि।"
रंजू फोन बिना काटे, वहां से कपड़े इकट्ठे करने चली गयी और बोली कि 10 मिनट में आती हूँ।
अंजू भी मस्त हो चुकी थी, इस घटिया और नीच कुकृत्य में द्विअर्थिय संवाद का बेहतरीन तड़का जो लग चुका था।
इस वक़्त अंजू बिस्तर पर दोनों हाथ रखे, कुत्ती की तरह झुकी हुई थी। और अरुण पीछे से उसके बूर को चोद रहा था। अरुण मस्ती में लण्ड अंदर बाहर कर रहा था। तभी उसकी नज़र अंजू की भूरी, सिंकुड़ी, गाँड़ के छेद पर पड़ी। क्या मस्त दिख रही थी, गोरी गोरी गाँड़ के बीच साँवली सी छोटी छेद। उसने थूक निकालके, उसकी गाँड़ के छेद पर डाला और अंगूठे से उसे सहलाने लगा।
अंजू पलट के बोली," ई का क रहल बारू। उ गंदा जगह बा, अरे ऊंहा मत छू, इँहा से हम हगत बानि, गुंह निकलेला।"
अरुण," अरे मौसी, औरत के कउनो जगह गंदा ना होखेला। सब त तहार शरीर के ही हिस्सा बा। औरत के गाँड़ ही त शरीर के मुख्य आकर्षण बा, अब ओकरा के प्यार ना करब त अन्याय होई।"
अंजू बूर तो चुदवा ही रही थी, और सिसकारी भी लगातार मार रही थी। अरुण की ये बात सुनके, उसे मन ही मन बहुत अच्छा लगा। अंजू," तू केतना बढ़िया मरद बन रहल बारा। जउन लइकी के तहरा से बियाह होई, उ त रानी बनके रही।"
अरुण," हमार बस चली त तहरा से बियाह करब, अउर रानी बनाके रखब।"
अंजू," बियाह ना सही, सुहागरात त मना लेलस ना मोर राजा।"
अरुण ने तभी गाँड़ की छेद जोकि थूक से गीली हो चुकी थी, उसमें उंगली घुसा दी। अंजू अपने नन्हे से छेद में, हुए हमले से कराह उठी। उसका कराहना अरुण को बहुत अच्छा लगा। अंजू की बूर की चुदाई जारी थी, साथ में गाँड़ में उंगली भी घुस चुकी थी। अंजू को थोड़ा दर्द हुआ, पर फिर थोड़ी देर में गाँड़ की छेद ने उंगली को अपनी जगह दे दी। अरुण ने मन ही मन सोचा," मौसी की गाँड़ बहुत टाइट है, लगता है कभी चुदवाई नहीं है।"
अंजू," का सोचत बारा अरुण, पेल ना मौसी के बूर के।"
अरुण," हम सोचत र....." तभी उधर से मोबाइल उठाने की खड़खड़ाने की आवाज़ हुई। अरुण और अंजू दोनों सतर्क हो गए। रंजू ने मोबाइल स्पीकर पर नहीं कर रखा था, इसलिए उधर अंजू और अरुण की बातें नहीं पहुंची।
रंजू,"का भईल निकलल ना का?
अंजू शरारत से बोली," देख ना दीदी, अरुण अब दोसर बिल में ताकत ( देखना) बारे।
रंजू," का दुगो बिल बा, तब त अरुण ठीक के रहल बा। दुनु बिल के बढ़िया से देखे दे ओकरा के।"
अरुण," हाँ, माई देख ना मौसी हमके रोकत रहले कि उ बिल गंदा बा, ऊंहा पर गुंह लागल रहेला, अइसन कहतिया।"
अंजू की आंखें आश्चर्य से बड़ी हो गयी और उसने अरुण को वैसे ही घूरा, कि वो अपनी माँ से कैसे कैसे गंदी बातें बोल रहा है। लेकिन गांव में हगना, मूतना, गुंह, मूत इत्यादि शब्द ही लोग घर परिवार में भी बेझिझक इस्तेमाल करते हैं।
रंजू," त का हो गइल, मूस सब अइसन जगह पर ही रहेला। उ दोसर बिल में भी डंटा ( छड़ी) घुसा के देख।"
अंजू," घुसाके रखले बा, दीदी। अब त दुनु तरफ से पैक हो गइल बा। लेकिन ई दोसरा बिल बड़ा छोट बा, ऐमे मूस कइसे घुसी।"
रंजू," ना मुसवा सब बड़ा तेज़ होलन स, केतना भी छोटा बिल होई त घुस जाले।"
अरुण," माई, हमके त लागत बा, कि ई बिल में मूस अभी नइखे घुसल, काहे से कि ई बहुत टाइट बा। लेकिन ऐमे मूस घुसे लगी त इहो बढ़िया से खुल जाई।"
रंजू," तहके का बुझाला अंजू, कबहु नइखे घुसल का?
अंजू," का बताई दीदी, हमके पता ना रहे, इहो बिल में मूस घुस सकेले। लेकिन अभी तक त ना घुसल बा।"
रंजू," इहे त गलती कइलस तू, पहिले, ओकरा के घुसे दे, जहां घुसे चाहेला। फेन पकड़े में आसानी होई, जब ओकर मन बढ़ जाले। बड़का बिल से निकल के छोटका बिल में जाय दे। उमे फंस जाई, त पकड़े में आसानी रही।"
अरुण ये सुनके तो मस्त हो गया और बोला," माई, ठीक कह रहल बा, मौसी मूस के जाय दे, पीछे वाला छेद में।"
अंजू बोली," कहीं मुसवा काट ना ले, हमके बड़ा बदमाश मूस ह। बड़ा लंबा अउर मोट भी ह।"
रंजू," अंजू तू एतना गो हो गइल, तभू डरत बारू। कुछो ना होई। अरुण मूस के निकालअ। अउर जाय द, लेकिन ध्यान से, मौसी के कहीं काट ना ले।"
अंजू डर भी रही थी और उत्साहित भी उतनी ही थी। उसने कभी गाँड़ नहीं मरवाई थी। और अपनी बड़ी बहन से बात करते हुए, उसके ही बेटे से गाँड़ मरवाने का मज़ा ही और होगा। अरुण ने फिर अपना भीगा लण्ड अंजू की पूरी तरह गीली बूर से निकाला और अंजू को चूतड़ फैलाने का इशारा किया। अंजू ने वैसा ही किया, और अरुण ने उस नन्हे से छेद पर ढेर सारा थूक गिराया, और अपनी पहले से घुसी उंगली के सहारे, गाँड़ के अंदर की दीवार को थूक से गीला करने लगा। अंजू आनेवाले हमले के लिए, बेचैन थी। अरुण की नज़र अंजू की गाँड़ पर पहले से थी। अब उसे मौका मिल गया था। अरुण ने फिर गाँड़ के भूरे छेद पर सुपाड़ा टिकाया और धक्का दिया। लण्ड फिसलके नीचे की ओर चला गया और बूर में वापिस घुस गया। अंजू हंस पड़ी।
रंजू," का भईल ?
अंजू," मूस निकल गईल रहला, फेन आगे वाला बिल में घुस गईल। लागत बा ओकरा इहे बिल पसंद बा"
अरुण झुंझलाहट में बोला," कोई बात ना, फेन निकल जाई।"
अंजू हंस रही थी। अरुण ने लण्ड दुबारा निकाला और फिर अंजू की गाँड़ पर सेट करके जोर लगाने लगा। धीरे धीरे लण्ड के दबाव से गाँड़ की सिंकुड़ी छेद खुलने लगी और सुपाड़ा अंदर जाने लगा। सुपाड़े के दबाव से अंजू की गाँड़ के छेद की परिधि फैलती चली गयी। गीलेपन की वजह से धीरे धीरे पहले सुपाड़ा घुसा और फिर लण्ड का बाकी हिस्सा। अंजू ने बड़ी मुश्किल से अपनी चीख को रोक रखा था। पर जब सुपाड़ा घुसा तो, वो रोक ना पाई और चीख उठी।
रंजू," का भईल अंजू काहे चिचयात बारे।
अंजू रुंवासी स्वर में बोली," दीदी मुसवा काट लेले, अउर पिछला बिल में भी घुस गईल। आह... आह बड़ी दुखाता।उ...ऊ...ऊ
रंजू," कइसे काट लिहलस?
अंजू," हमार गोरवा ( पैर) के बीच से निकल गईल, अउर काट लिहलस।"
रंजू," कउनो बात नइखे, अभी जाय दे। जहां कटलस ना ऊंहा मलहम लगा ले। चल ठीक बा, हम जा तानि। काल भेंट होई।" उसने फोन रख दिया। अरुण का पूरा लण्ड अंजू की गाँड़ में घुसपैठ कर चुका था। अंजू अपने चूतड़ फैलाये अरुण के कड़े लण्ड को अपनी कसी हुई गाँड़ में महसूस कर रही थी। वो पहली बार गाँड़ मरवा रही थी, और वो भी अपनी बहन को सुनाते हुए। अरुण उसकी पीठ और चूतड़ सहला रहा था। अंजू की गाँड़ की गर्मी और कसाव उसके लण्ड को पिघलने की कोशिश में थी।
अंजू," आह आह आह हहम्मम्म, अरुण पूरा घुस गईल बा।"
अरुण," का घुस गईल बा अंजू रानी और कहां घुसल बा बोला?
अंजू शर्माते हुए," तहार लांड हमार गाँड़ के छेद में राजा, बड़ा दुखाता ए राजा।"
अरुण," अरे रानी, औरत के गाँड़ देखके ही त मन मोहित होखेला। जब तू चलत हउ, त ई तहार गाँड़ हिलके बड़ा चिढावात बा। आज त पूरा हिसाब होई। तू तनि देर रुका, अभी तहार सब दरद दूर हो जाई,अउर तहके मज़ा आयी।"
अंजू दर्द और कामुकता से भीगे आवाज़ में बोली," हाँ, राजा ई बतिया त हमहुँ सुनले बानि, कि गाँड़ चोदाबे में बूर चुदाई से भी ज़्यादा मज़ा आवेला। लेकिन हम कभू अइसन कइले नइखे।"
अरुण उसके चूतड़ों पर थप्पड़ लगाके बोला," अंजू रानी, आज तहरा एतना मज़ा आयी, कि आज के बाद तू बूर के साथ साथ गाँड़ भी खोलके चुदायिबअ।" थोड़ी देर बाद अंजू का दर्द कम हो गया। और वो मस्त होने लगी। फिर अरुण हौले हौले हल्के धक्के लगाने लगा। बस उतना ही जितना अंजू की गाँड़ झेल पाए और उसे आनंद के सागर में ले जाये। अंजू अब पूरी तरह मस्त हो चुकी थी। अरुण ने उसके बाल पकड़ रखे थे, और वो खुद अपनी गाँड़ पीछे की ओर करके गाँड़ मरवाने में सहायता कर रही थी।अरुण का कड़ा मोटा लण्ड अब अंजू की गाँड़ की अंदरूनी दीवार से घर्षण कर रहा था। उस घर्षण से उसका दर्द काफूर हो गया और उसकी जगह मस्ती ने ले ली। अरुण को भी अपने लण्ड पर अंजू के गाँड़ की दीवार का दबाव असीम आनंद दे रहा था। दोनों अब पूरे जोश में चुदाई कर रहे थे।
अंजू," आह आह हहहह.. ऊऊहहह ......ऊऊयी.... बड़ा मजा आ रहल बा, असही चोद अरुण आहआह आपन सगी मौसी के चोद। पूरा रतिया बूर चोदला, अब गाँड़ के चोद। "
अरुण," आह का मस्त गाँड़ ह साली, पूरा लांड घुस गईल बा। अंजू आज के बाद देखहिया, तू खुद गाँड़ चुदाबे खातिर हमके बुलाईबु।
अंजू," सससस ....इससस आह आऊऊ तहार लांड त गाँड़ में कहर ढा रहल बा।
अरुण के धक्के अब तेज हो चुके थे। अंजू भी चुदवाने में मगन हो चुकी थी। करीब पंद्रह मिनट तक चुदाई के बाद अरुण उसकी गाँड़ में ही पानी निकाल दिया। अंजू को भी उसी समय असीम सुख की अनुभूति हुई और दोनों बिस्तर पर आजु बाजू लेट गए। अंजू की चुदी हुई गाँड़ से अरुण के लण्ड का पानी बह रहा था। अरुण उसके गाल सहला रहा था। इस समय पौने एक हो चुके थे। दोनों काफी थक चुके थे। अंजू अरुण से बोली," देखा ना दुपहरी हो गइल, तहके भूख लागल होई। हमके तनि देर द अभी सब तैयार हो जाई।"
अरुण," हमके त भूख लागल बा, लेकिन खाय वाला ना चोदे वाला। शरीर त थक गईल पर मन ना भरल अंजू मौसी।"
अंजू," बाप रे, अभियो मन ना भरल तहार, राते तीन बेर चोदलस, अभी एक बेर। हम एतना बढ़िया बानि का।"
अरुण," अंजू रानी, हमार बस चली त सारा उमरिया तहार सब छेदवा में लांड घुसाईले रहब।"
अंजू," अभी जाय द अरुण, हमके भी भूख लागल बा। पहिले नहाईब, फेर कुछो बनाइब।"
अरुण," नहाई के जरूरत नइखे। अब जब गांव जाईब तभी तू नहैय्या।
अंजू," का अईसे काहे कहत बारू।"
अरुण," हम चाहत बानि, कि तू बिना नहाए हमरा संगे ई दु दिन रहआ। हम तहार देहिया के सुगंध अपना सांस में बसावत चाहतानि। तू जइसे अभी पसीना से लतपथ बारू, उ सुगंध हमार आत्मा से जुड़ जाई। आह आह।
अंजू हंसकर बोली," पसीना के सुगंध ना दुर्गंध होखेला। देख ना सगरो देहिया से चू रहल बा। तहके ई बढ़िया लागत बा।"
अरुण अंजू के गले से चूते पसीने की बूंदों को चाटके बोला," आह... आह केतना नमकीन बारू अंजू तू। कंखिया उठा रानी चाटे दे।"
अंजू," कांखिया में केश ह, अउर पूरा पसीना से भीजल बा। ई देखआ।"
अरुण," इहे त चाही हमके अंजू। तहार देहिया के हर हिस्सा हम चाटब। तहार बदन से जउन चीज़ निकली उ सब पी जाईब।" अरुण काँखों में जीभ फेरते हुए बोला।
अंजू को गुदगुदी हो रही थी तो मुस्कुराते हुए बोली," का मतलब? तू हमार मू....
अरुण," खुलके बोल ना रानी शर्मा मत, हाँ हम तहार मूत भी पियब अउर तहार गुं..... बुझ गईलु ना उहू चखब।" अरुण की आंखों में वासना का सैलाब साफ झलक रहा था। अंजू उसकी बातों से घृणित ना होकर, खुश हो रही थी। अरुण अंजू के बदन के हर हिस्से को चाट रहा था। अंजू उसे रोक नही रही थी। थोड़ी देर बदन चटवाने के बाद, वो उससे अलग हुई और बोली," हगे मूते त जाय दे।"
अरुण," ठीक बा हमहुँ चली का साथे।"
अंजू," ना आज ना फेर कोई दोसरा दिन।"
अंजू बाथरूम चली गयी। हगने मूतने के बाद, उसने बाथरूम में सारे कपड़े धुले। फिर ब्रश करके बाहर आई। पर अरुण के कहे अनुसार नहाई नहीं। वैसे भी अरुण ने उसको चाटके पूरा साफ कर दिया था। उसने एक नीले रंग की साड़ी डालके पूरे घर की साफ सफाई की जब उसने अपनी रात में गिरी साड़ी और तौलिया फर्श से उठाया तो शर्म से पानी पानी हो गयी, और फिर किचन में खाना बनाने चली गयी। थोड़ी देर में खाना लेकर वो अरुण के पास बिस्तर पर ही आ गयी। अरुण तब तक तौलिया लपेटकर लेटा हुआ था। अंजू और अरुण ने फिर बिस्तर पर इकट्ठे खाना खाया। अब तक शाम के तीन बज चुके थे। दोनों खाना खाकर फिर सो गए। शाम के करीब 5 बजे अरुण की नींद खुली। अंजू अरुण से ऐसे चिपकी हुई थी, जैसे कि वो उसकी बीवी हो। अरुण उसे सोता हुआ छोड़ उठा और बाथरूम में फ्रेश होने चला गया। वापिस आया तो देखा अंजू अभी भी सो रही है। अरुण ने अंजू को जगाते हुए बोला," अंजू महारानी उठी, सांझ हो गइल।
अंजू आंख मलते हुए उठी और बोली," ओह्ह... बड़ा बढ़िया नींद आवत रहला जानू।"
अरुण," अंजू तू सुते समय, एकदम परी लागेलु सच्चे।" अरुण फिर टी वी देखने हॉल में चला गया। अंजू घर के काम निपटा कर रात का खाना बनाने लगी। अंजू खाना बनाने के बाद उसके पास आके बैठ गयी और वो भी टी वी देखने लगी। अरुण अंजू को अपने गोद में बिठा लिया और सेक्सी भोजपुरी गीत," छलकअत हमरो जवनिया ए राजा, जइसे कि बल्टी के पनिया हो" जिसमें काजल राघवानी बेहद सेक्सी अंदाज़ में नाच रही थी, साथ में देखने लगा। अंजू उसके गोद में चैन से बैठी, गाने का लुत्फ उठा रही थी। दोनों गाना सुनके गरम होने लगे।अरुण का हाथ जाने कब अंजू के चूचियों को दबोचने लगा पता ही नहीं चला। ठीक वैसे ही अंजू जाने कब उसका लण्ड सहलाने लगी, उसे खुद पता नहीं लगा।
अरुण जब उसकी चूचियों को मसल रहा था, तो उसकी नज़र उसके मंगलसूत्र पर गयी। उसने सोचा कि आज अंजू को पूरी तरह, अपनी गुलाम बना लूंगा। उसने अंजू से कहा," अंजू मौसी, अब तहार हमार रिश्ता का बा? हम आपके हैं कौन?
अंजू उसकी आँखों में देखते हुए बोली," हम त शरीफ औरत हईं, इहेसे सबके सामने त तहार मौसी रहब पर अकेले में तू हमार साजन और हम तहार सजनी।"
अरुण," मौसाजी आहिंये, तब तू हमके याद करबू कि ना।"
अंजू," उ आदमी अगर सामने आई, त ओकर मुंह नछोर लेब। पर मजबूरी बा, ओकरा से त हमार घर चलता। उ दुनिया के सामने हमार पति बा अउर रही। पर दिल से तू, अब ई मन में बस गईल बारू।"
अरुण," लागत बा तहरा मन में मौसा जी के प्रति अभी अउर गुस्सा बा।"
अंजू," हाँ, बता ना सकिले राजा कि केतना गुस्सा बा।"
अरुण," हमके केतना चाहेलु? हम जे कहब करबू?
अंजू," हाँ राजा, जउन बतिया कहबा, सब मानब।" ऐसा बोलके उसने उसके माथे को चूम लिया।
अरुण," सच्ची अंजू रानी।"
अंजू," चाहे त आजमा के देखले।"
अरुण ने वहां पड़ी पेटी को दिखाते हुए बोला," देख उहे समान बा, जे तू भेजे चाहत रहलु रानी, उ धोखेबाज़ के। जो ओ पर मूत दे।" उसने अंजू को इशारे करते हुए बोला।
अंजू ने उसकी आँखों में देखा फिर जैसे आदेश के पालन के लिए उठी और पेटी के दोनों बगल पैर रखके, अपनी साड़ी उठा ली। उसने अंदर पैंटी नहीं पहन रखी थी। वो अरुण की आंखों में देखते हुए बेझिझक बैठकर मूतने लगी। बूर से मस्त सीटी की आवाज़ फूट पड़ी। बूर से मूत की धार सीधे उस पेटी पर पड़ी और उसे गीला करने लगी। पेशाब की धार बहुत तेज थी, आसपास की फर्श भी काफी गीली हो चुकी थी। धीरेधीरे पेशाब की धार हल्की परने लगी। अंजू की बूर से अंतिम क्षणों में धार कभी छूटती तो कभी बंद हो जाती। अरुण उसे और वो अरुण को एकटक देखते रहे। अंजू थोड़ा शर्मा भी रही थी। अरुण ने फिर उसे अपने पास आने का इशारा किया। अरुण अंजू की साड़ी और साया निकालने लगा। अंजू ने झूठा प्रतिरोध तो किया, पर अरुण उसकी कहां सुनने वाला था। थोड़ी ही देर में उसकी साड़ी और साया उसके बदन से अलग होके फर्श पर पड़े थे। अंजू ने बेशर्मी से अपनी ब्लाउज भी खुद ही उतार दी। अरुण ने फिर उसका मंगलसूत्र पकड़के अपने पास बुलाया। और बोला," अंजू, तहार गुस्सा तब शांत होई, जब तू मौसा के निशानी मिटाइबू।"
अंजू," का कहे चाहा तारू?
अरुण," ई मंगलसूत्र खोल दे रानी, अउर हम बताईब की एक्कर सही जगह कौन बा।"
अंजू," अरुण ई त बियाहल औरत के सृंगार होखेला, ई कइसे उतार दी।"
अरुण," इहे में त मज़ा आयी। हमरा पर भरोसा रख उतार दे।"
अंजू ने फिर बिना सवाल किए अरुण के कहे अनुसार मंगलसूत्र उतार दी। अरुण ने वो मंगलसूत्र अपने लण्ड पर लपेट लिया अउर बोला," रानी देख इहे औकात बा तहार मंगसलसूत्र के। हमार लण्ड पर बंधलबा। तहार गांडू पति, साला, मादरचोद, अइसन बीवी छोड़के भागल बा।"
अंजू नंगी ही उसकी गोद में बैठ गयी। फिर लण्ड पकड़के बोली," अरुण, बड़ा होशियार आदमी बारा तू, हमार पति के का तरीका से बेइज़्ज़त कइले बा। लेकिन हमके भी मज़ा आईल। अब का करे के बा।"
अरुण," अंजू तहराके सबसे अच्छा गिफ्ट का दिहलस बा उ?
अंजू," उ हमके, पिछला बार एगो बढ़िया साड़ी देले बा।"
अरुण," जो उ लेके आ जल्दी से।" अंजू उसकी आज्ञा मानते हुए बोली," अभी लावत हईं।" और थोड़ी देर में वो साड़ी लेकर आ गयी।"
अरुण," अब ई पर थूक द।
अंजू ने उसपे थूका फिर अरुण ने उसे सारा सामान साड़ी लेकर घर के पीछे नंगी ही ले गया। अंजू थोड़ा हिचकिचाई पर अंधेरा लगभग हो चुका था। फिर उसने अंजू से वो सारा सामान तालाब में फिकवाया, और उसीके हाथों वो साड़ी भी जलवा दी। अंजू को ऐसा करने का कोई अफसोस नहीं था। एक तरफ अंजू का प्यार डूब रहा था, तो एक तरफ उसका इश्क़ जल रहा था। अरुण अंजू को गोद में उठाके, फिरसे उसके बिस्तर पर ले आया।
अरुण ने अपना लण्ड खोलके उसके सामने रख दिया और उसे बोला," चल अंजू रंडी, चूस लांड के। रंडी साली, बहुत गरम माल बाटे तू।"
अंजू अपने मुंह में उंगली लिए हुए मुस्कुराते हुए अपनी गाँड़ हिला रही थी। अरुण उसके बाल पकड़के उसे बोला," अरे साली, रंडी के जनमल, सुनाई नइखे देत का।"
अंजू को अरुण का ये आक्रामक रूप अच्छा लग रहा था।
अंजू बोली," आह... आह.... तहरा मुंह से गारी सुनके बूर पानी छोड़ रहल बा, देखा ना। हमार सुहाग के निशानी तू आपन लांड पर रखले बारू, आह.... देखके देहिया गनगना रहल बा।"
अरुण उसके चूतड़ों पर तीन चार तमाचे मारे और बोला," अबसे तू हमार रंडी बारू, रखैल हउ। बुझला अबसे खाली हम तहके चोदब। साली तहरा जइसन औरतिया सब बहक जालि, अउर पराया मरद से चुदाबेलि। घरके मान मर्यादा सब माटी में मिला देवेलि। अबसे तहार मालिक और आशिक़ हम हईं।" अंजू ने हॉं में सर हिलाया और अरुण का लण्ड चूसने लगी। अरुण," असही चूस, देखा हमके, तू मौसा से केतना नफरत करेलु। जेतना बढ़िया से चुसबु, उतना ही तहार नफरत पता लागी। अंजू पूरे मगन से उसका लण्ड चूस रही थी। कभी सुपाड़े को जीभ से चाटती, तो कभी पूरे लण्ड को। अंजू ऐसा करते हुए अरुण की आंखों में देखती रही। बीच बीच में उसका लण्ड हिलाती थी। उससे करीब 10 मिनट लण्ड चुसवाने के बाद अरुण का लण्ड काफी शख्त हो गया।
अरुण अपने लण्ड पर अंजू का मंगलसूत्र लपेटे, उसे चोदने लगा। अंजू की बूर और ज़्यादा गीली हो चुकी थी, अरुण ने जो सब उससे करवाया था। उस रात उन दोनों को किसी का भी ग़म या पछतावा नहीं था। अंजू अरुण से पूरी रात चुदती रही। अगले दिन जब तक वो लोग गांव के लिए नहीं निकले, पूरे नंगे ही रहे। अंजू तो शर्म और हया भूलकर अपने बहन के बेटे के साथ, मज़े ले रही थी। वो अरुण के कहे अनुसार, बिल्कुल नहीं नहाई, जब तक वो निकल नहीं गए। अगले दिन वो लोग शाम को गांव पहुंचे। अरुण दो रातों से जो मज़े लिया था, आज रात उसे अकेले छत पर बितानी थी।
गांव में वापिस आकर तीन चार दिन बीत गए थे, और अरुण और रंजू के जाने में अब सिर्फ दो दिन का समय था। अरुण ने अंजू और नीतू को फिर से चोदने की कोशिश तो कि, पर मौका नहीं मिला। वो छत पर रोज़ मूठ मारके सो जाता था। उधर अंजू और नीतू दोनों माँ बेटी का भी बुरा हाल था। उन्हें अरुण के साथ मौका ही नहीं मिल रहा था। शायद कुदरत को आगे कुछ और ही मंजूर था। आखिर वो दिन आ ही गया जब अरुण और रंजू को इलाहाबाद के लिए रवाना होना था। दोनों बस पकड़के पहले पटना गए। फिर वहां से रात नौ बजे की उनकी ट्रैन थी। दोनों स्टेशन पर गाड़ी का इंतज़ार कर रहे थे।
रंजू का सफर भाग ५
प्लेटफार्म पर रंजू अपने सामान के साथ एक खंभे के आसपास बने चबूतरे पर बैठी थी। अरुण पास ही बने चाय के स्टाल पर चाय के दो कप का आर्डर दिया। चायवाले ने उसे फौरन दो कप थमा दिए। अरुण ने जेब से 20 रुपए निकाल उसकी ओर बढ़ा दिए। वो चाय के दोनों कप लेकर रंजू की ओर बढ़ चला।
" माई ई ल चाय पी ल" रंजू के पास पहुंचकर उसकी ओर कप बढाके अरुण बोला। रंजू बार बार हो रहे रेलवे स्टेशन की घोषणा के बीच उसकी आवाज़ सुन नहीं पाई। अरुण ने फिर जोर देकर बोला," माई, चाय ले लअ।" रंजू उसकी तेज़ आवाज़ सुनके उसकी ओर चौंक के मुड़ी और उसके हाथों में कप की ओर देखते हुए, चाय की कप ले ली। इस बीच रंजू और अरुण के हाथ आपस में टकराये। रंजू खुदको जल्दी से उसके हाथों से छुड़ाई। अरुण वहीं पास में बैठ गया। रंजू चाय की चुस्की लेते हुए, सामने की ओर देख रही थी। रंजू बीते दो दिन की घटना अपने मन में सोच रही थी।
दो दिन पहले-----
रंजू," अरुण, उठ ना बेटा, रमेसर के इँहा जायके बा।"
रंजू खेतों की रखवाली के लिए चिंतित रहती थी। इसलिए गांव में ही दिहारी मजदूरी करने वाले रमेसर ( रामेश्वर ) जो कि पिछड़ी जाति से था, जो अक्सर इनके यहां मज़दूरी किया करता था, उसके पास जाकर उसे अपनी गैर हाज़िरी में खेतों में ही रहकर रखवाली करने के लिए रखना चाहती थी।
अरुण कल रात को देर से सोया था, इसलिए देर तक सो रहा था।
रंजू," ई लइका जाने रात भर का करअता, सुतल बा ई आठ बज गईल।"
अंजू," दीदी, सुते दे,थाकल होई। अभी जवान ह, अभी त उमर बा।" कपड़े को निचोड़ते हुए बोली।
रंजू," अरे उ रमेसर के इँहा जायके पड़ी, ओके समझावे के बा सबकुछ। ई लइका अभी तक सुतल बा।"
थोड़ी देर बाद अरुण उठा और दातुन पकड़के मुंह में डाल लिया। अरुण की नज़र अंजू पर पड़ी जो आंगन में ही कपड़े धो रही थी। उसकी माँ रंजू घर के अंदर तैयार हो रही थी। उसने अंजू को दूर से ही एक चुम्मा उछाल दिया। अंजू उसे देख हैरान हो गयी। फिर शैतानी वाली मुस्कुराहट से थप्पड़ का इशारा करते हुए उसे डराने लगी।
तभी रंजू बाहर आई, और बोली," उठ गइला बेटा, बड़ा देर हो गइल। कहीं रमेसर निकल ना जाये। चला जल्दी से, ओकर कउनो भरोसा नइखे।"
अरुण," त तू काहे ना जाके मिल आईले।"
रंजू," अरे तू कब जिम्मेदार बनबे। आपन खेत खलिहान के जिम्मेवारी ले बेटा। अगर असही छोड़ देबे त केहू कब्ज़ा ली। अब तू घर के मरद बाटे अउर ई तहार जिम्मेवारी बा कि घर से लेके खेत तक सब पर नज़र अउर पकड़ राखेके। सबसे मिल सबके नज़र में आ कि हम सब सब जिम्मेवारी ले ले बानि। अब त तहार पगड़ी भी हो गइल।"
अंजू," ना दीदी बड़ा जिम्मेदार बनि अरुण तू देखहिया। अइसन मरद सौभाग्य से मिलेला। ई जब जिम्मेवारी ली त घर, खेत सब बढ़िया से देखी। एकर जमीन केहू ना कब्ज़ा करि, बल्कि ई जरूर दोसर के जमीन कब्जा ली।" अंजू ने एक नटखट हंसी के साथ अरुण को देखा। अरुण भी मुस्कुरा दिया।
अरुण," माई, ना रमेसर अभी ना निकलल होई। उ नौ बजे से पहिले ना निकलेला।"
अरुण ने जल्दी से मुंह हाथ धोया। फिर नहाने के लिए आंगन में ही गमछा लपेट लिया। और अपनी बनियान और हाफ पैंट उतार के आंगन में ही टंगी रस्सी पर रख दिया। अरुण एक नौ जवान लड़का था, अभी तो वो अपने इक्कीस बसंत ही देखा था। उसका शरीर अभी से किसी मजबूत मर्द की तरह परिपक्व होने लगा था। रंजू और अंजू दोनों की नज़र अरुण पर ही थी। अंजू तो फिर भी उसके बदन को पूर्ण नग्न अवस्था में देख चुकी थी। पर रंजू ने अपने नौजवान बेटे को ऐसे नहीं देखा था। उसका मुंह खुला रह गया, जब उसने अरुण के चौड़े कंधे, मजबूत बांहे, चौड़ी छाती जिसपे बाल निकल आये थे, देखा। उसके मजबूत शरीर को बिना पलक झपकाए वो एकटक देख रही थी। उसे पता था, कि पुरुष के मजबूत शरीर को बांहों में लेने से जो सुख का अनुभव होता है वो कितना अलग और सुखदायी होता है। औरत हमेशा इस तरह के मज़बूत मर्द की बांहों में टूटकर बिखरना चाहती है। जब उस चौड़ी छाती के नीचे, औरत की चूचियाँ मिजती है, और उनका मर्दन होता है, जब मजबूत बांहे औरत की कलाईयों को मजबूती से धर दबोचती हैं, जब उस मजबूत शरीर के नीचे औरत का बदन दबता है, तब औरत खुद की संतुष्टि के लिए पुरुष के नीचे मचल उठती है। अब तक वो अपने पति के नीचे बिछती आयी थी, पर उसे क्या पता था, की उसके पति ने उसकी कोख में खुद से भी मजबूत बीज डाला था। वो बीज जो नौ महीने उसकी कोख में रहकर, उसके बूर से निकला था। और अब पूरी तरह जवान हो चुका था। उसने ये तो अंदाजा साफ साफ लगा लिया था, की अरुण शरीर में उसके पति से भी मजबूत है। उसका कड़क छाती, और मांसल बांहे उसे अपनी तरफ आकर्षित करने में कामयाब हो चुकी थी। अरुण वहीं आंगन में ही हैंडपम्प चलाकर नहा रहा था। वो इन बातों से बेखबर था, वो तो अपनी धुन में ही नहा रहा था। जब वो साबुन लगाने के लिए झुका तो, उसकी नज़र अपनी माँ पर गयी। जो उसे नहाते हुए देख रही थी। पर रंजू ने झट से अपनी नजरें फेर ली। अरुण रंजू को देख, पहले से ज्यादा अंग प्रदर्शन करने लगा। वो जान बूझकर बार बार अपनी बांहे मोड़ता, उसकी ओर छाती करके साबुन लगाता। रंजू अब तिरछी नज़रों से उसे निहार रही थी। गमछा भीगने की वजह से उसका लण्ड का उभार ऊपर से साफ़ पता चल रहा था। रंजू उस गमछे के अंदर छिपे लण्ड को बड़े गौर से देख रही थी, जैसे कोई अनुमान लगा रही हो। अरुण भी उसे पूरा नजारा देने की कोशिश कर रहा था।
अपनी माँ रंजू के साथ रमेसर के घर की ओर चल दिया। रंजू भले ही 42 साल की हो चली थी, पर उसके बदन का कसाव किसी 32- 33 साल की औरत जैसा ही था। उठे हुए उन्नत स्तन, मस्त पिछवाड़ा जो कि साड़ी के ऊपर से भी अलग ही नज़र आता था, खूबसूरत चेहरा, भरे हुए गाल, लाल होठ, हल्की चर्बीदार पेट, लंबे लंबे बाल, आकर्षक कमर। उसकी चाल पर उसकी साड़ी के ऊपर लटकी चर्बी बड़े ही कामुक अंदाज़ में हिलती डुलती थी। उसके चूतड़ भी उसकी चाल के साथ, मस्ती में डोलते थे, जिसे देख किसी का भी मन डोल जाए। उसने आज हरे रंग की साड़ी पहन रखी थी। उसने अपने बाल खुले रखे थे, क्योंकि उसने आज ही उसे धुले थे और अभी भी गीले थे। अरुण अपनी माँ की मस्तानी चाल को देखकर, खुश हो रहा था। उसे अंजू की याद आ रही थी और मन ही मन सोच रहा था, की अगर अंजू होती तो वो, उसको वहीं उठाकर किसी एकांत जगह ले जाता और उसको जमकर चोदता। दरअसल रंजू के प्रति अरुण हमेशा एक अलग आकर्षण महसूस करता था। ये माँ बेटे के बीच का आकर्षण नहीं बल्कि एक स्त्री के प्रति एक युवा लड़के का आकर्षण था। जब घर में ऐसी कामुक स्त्री हो, तो शायद रिश्ते और मर्यादा भी, सोच की बांध नहीं बना पाते। ये तो एक सत्य था कि रंजू एक ऐसी कामुक स्त्री थी, जिसे यौन सुख पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल रहा था। ऐसी स्त्री के शरीर के हर अंग में, यौन सुख की प्राप्ति के लिए एक कामुक लालसा छलकती है, जो ना चाहते हुए भी उसके मन का हाल बताती है। उसकी चाल ढाल भी बिल्कुल कामुकता से लबरेज हो जाती है। रंजू तो ऐसी स्त्री थी, जिसे साल में एक बार ही चुदाई का आनंद मिलता था, जब उसका पति एक महीने के लिए आता था। फिर साल के 11 महीना वो पुरुष संसर्ग के लिए तड़पती रहती थी। रंजू कामुक स्त्री तो थी ही, पर पति के ना होने पर वो इतनी कामुक हो जाती थी, कि इच्छा पूर्ती ना होने पर उसको बुखार हो जाता था। खासतौर से जब उसकी माहवारी खत्म हो जाती थी। क्योंकि उस समय उसकी यौन इच्छा चरम पर होती थी। आज भी उसने बाल इसीलिए धोये थे, क्योंकि उसकी माहवारी खत्म हुई थी। और इसीलिए उसकी चाल भी काफी लहरा रही थी। अरुण रंजू के साथ साथ चल रहा था। उसकी नज़र अपने माँ के चूचियों पर पड़ी। रंजू की चाल से उसकी चूचियाँ ब्लाउज में ही हिल रही थी। ब्लाउज से बाहर झांकता उसके चूचियों का ऊपरी हिस्सा, जिसमें उसकी चूचियों की दरार दो से तीन इंच तक बाहर थी, बेहद कामुक लग रही थी। उसके चलने से उसके चूचियों का ऊपरी हिस्सा जो बाहर झांक रहा था, उसकी चाल के साथ कांप जा रहा था। रंजू तेजी में चल रही थी, और इसकी वजह से चूचियों का हिलना अरुण के दिल से उतरके लण्ड में हरकत पैदा करने लगा। उसकी नाभि भी बाहर को झांक रही थी। नाभि के नीचे साड़ी जो उसने खोंस रखी थी, उसपर हल्की चर्बीदार चमड़ी लटक रही थी, जो उसकी चाल से कामुक कंपन कर रही थी। अरुण ये सब देखके रंजू के प्रति मोहित हो गया और उसका ध्यान रास्ते से हट गया। वो सामने एक पत्थर से टकरा गया और गिर पड़ा। वो लोग गांव से बाहर आ चुके थे, रास्ते में कोई नहीं था। वो गिरा तो फौरन रंजू उसके पास आई और उसे उठाने के लिए झुकी।
रंजू," अरुण देख के चलल करा बेटा। कहाँ ध्यान बाटे।" ऐसा कहते हुए वो झुकी तो उसकी चूचियाँ साफ झलक उठी। रंजू के ब्लाउज के अंदर अरुण साफ तौर से देख पा रहा था, उसने भूरे रंग की ब्रा पहन रखी थी। उसकी चूचियाँ लटक के उसे लुभा रही थी। अरुण का मन हुआ कि अभी उसके चूचियों को धर दबोचे। रंजू मुस्कुरा भी रही थी और उसे उठने को भी कह रही थी। तभी उसने अरुण की वासनात्मक दृष्टि को अपने चूचियों को निहारते हुए देख लिया। अरुण की नज़रे उससे टकराई तो, वो फौरन इधर उधर देखते हुए उठ खड़ा हुआ। रंजू ने अपने चूचियों को आँचल से फौरन ढक लिया। राजू की नज़रों ने उसे खुद के औरत होने का एहसास करा दिया। वो फौरन उठ खड़ी हुई, और बिना कुछ बोले आगे की ओर बढ़ गयी। अरुण उसके पीछे पीछे सर झुकाए चल रहा था। अपनी माँ के चूचियों को निहारते हुए, उसीके हाथों पकड़े जाने पर उसे आत्मग्लानि हो रही थी। रंजू भी बिना पीछे मुड़े आगे चल रही थी। थोड़ी देर में दोनों रमेसर के घर पहुंच गए थे। जब वो लोग वहां पहुंचे तो, बाहर दो बच्चियां फ्रॉक में खेल रही थी। उनकी उम्र सात साल और पांच साल रही होगी। दोनों रमेसर की नातिन ( बेटी की बेटी) थी। रंजू ने पूछा," सुना बबुनी, तहार नाना कहाँ बारन?
उसने जवाब दिया," नाना त खेतवा में गइल बाटे, नदिया के पास।"
रंजू," तहार माई बिया घर में?
लड़की," ना, उ नाना के नाश्ता देवे खातिर खाना लेके गईल बा।"
रंजू के मुंह से उफ्फ्फ निकला और वो घूरके अरुण को देखने लगी, जैसे सब अरुण की गलती हो। क्योंकि वो आज ही रमेसर को सब समझाके और खेतों के बीच के कमरे की चाभी उसे देना चाहती थी ताकि उनकी रखवाली हो सके। तभी अरुण ने बोला," तहरा पता बा कि केकर खेत में काम करत बा तहार नाना?
लड़की," उ पास वाला गांव में जउन बड़ा घर में रहेला। जेकर घर के आगे शेर के मूर्ति लागल बा। उहे के खेत नदिया के पास में बा।" अरुण झट से समझ गया कि वो अशोक सिंह की बात कर रही है। वो उन खेतों को अच्छी तरह जानता था। उसने रंजू से कहा," माई चल खेतवा पर इँहा से डेढ़ दु किलोमीटर होई। उंहे बात कर लेब।"
रंजू दांत पीसते हुए बोली," तू तनि जल्दी कइले रहते, त इँहा घर पे ही भेटा जाइत।"
अरुण," माई, अब इँहा तक आ गइनी, त तनि अउर चलके काम त खत्म करेके।"
रंजू ने भी यही ठीक समझा, उसने बोला," ठीक बा, चल।"
अरुण और रंजू फिर वहां से उन खेतों की ओर चल पड़े।
रमेसर एक 46- 48 साल का हट्टा कट्टा मर्द था। उसका घर गांव के बिल्कुल आखरी छोड़ पर अलग थलग था। घर क्या था, बस बोलो कच्चे मकान के दो कमरे थे। उसकी बीवी पहले ही किसी के साथ भाग गई थी। उसकी एक बेटी थी, रानी जो कि शादी के बाद भी वहीं मायके में ही रहती थी। उसका पति बम्बई में काम करता था। उसका पति पास के ही गांव का था। उसकी अपने सास ससुर से कभी बनी नहीं, तो उसके पति ने उसे उसके मायके में ही छोड़ दिया। खुद वो साल में एक बार पर्व त्योहार में ही आता था, वो भी अपने घर नहीं जाकर रानी के पास ही आता था। रानी की उम्र 26 वर्ष थी, पर इतनी उम्र में उसके 3 बच्चे थे। दो बेटियां और एक दुधमुंहा बेटा जो कि अभी तीन महीने पहले ही पैदा हुआ था। इतनी सी उम्र में तीन बच्चे पैदा करने के बाद भी वो काफी आकर्षक दिखती थी।
रानी अपने बाप के पास नाश्ता लेकर जा रही थी। एक हाथ में बच्चा और दूसरे हाथ में अपने बाप के लिए खाना। रमेसर खेतों में कुदाल लेकर मिट्टी खोद रहा था। सुबह नाश्ता नहीं बना था, इसलिए वो काम पर जल्दी आ गया था। वो अशोक सिंह के खेतों में काम कर रहा था। वही अशोक सिंह जिसका भतीजा गुड्डी को बस में छेड़ रहा था। वहां खेतों में एक छोटी सी मड़ई बनी हुई थी, जिसके अंदर सारे खेतों में काम करने के औजार रखे होते थे। रमेसर ने दूर से रानी को आते देखा, तो उसके चेहरे पर मुस्कान आ गयी। थोड़ी देर में रानी उसके पास आई और बोली," बाबूजी, रउवा हाथ मुंह धो ली। हम राउर नाश्ता ले आईल बानि।"
रमेसर," ठीक बा रानी, तू मड़ईय्या में जाके खाना निकालअ। हम बस ई मेढ़ पूरा कइके आवत हईं।"
रानी," ना बिल्कुल ना, चलिं रउवा के अईसे कमज़ोरी हो जाई।" उसने अपने बाप को कुदाल छोड़ने का इशारा किया। रमेसर ने हाथ से कुदाल वहीं ज़मीन में गाड़ दिया। फिर रानी के पीछे पीछे मड़ई में जाने लगा। मड़ई में आकर रानी ने बच्चे को चारपाई पर लिटा दिया और खाना निकालने लगी। रमेसर अपनी बेटी को खाना निकालते हुए देख रहा था। वो एक लाल रंग की साड़ी और हरे रंग की ब्लाउज डाले हुए थी। वैसे तो रानी का रंग सांवला था, पर उसका चेहरा और शरीर दोनों काफी आकर्षक थे। खाना निकालते समय रानी झुकी हुई थी, जिससे उसकी चूचियाँ बाहर झांक रही थी। उसने ब्रा नहीं पहनी थी। जबसे उसे बच्चा हुआ था, उसने ब्रा पहनना छोड़ दिया था, ताकि बच्चे को दूध पिलाने में आसानी हो। रमेसर एकटक अपनी बेटी के चूचियों को निहार रहा था। उसका लण्ड उसकी धोती में खड़ा होने लगा। रानी कमंडल लेकर पास ही बने बोरिंग के पास गई, जिसमें पानी आ रहा था। रमेसर उसकी चाल को कम उसके हिलते चूतड़ों को ज्यादा निहार रहा था। तभी बच्चा रोने लगा तो रामेसर ने उसे उठाकर गोद में ले लिया और उसे झुलाके "अल्ल्ले ले ले ले बबुआ" खिलाने लगा। तभी उसकी नज़र फिर से रानी पर पड़ी, जो बोरिंग से पानी भर रही थी। रानी ने पानी की धार को कम आंका, और पानी की धार सीधा उसके ब्लाउज के ऊपर गिर पड़ा, उससे उसका पूरा ब्लाउज भीग गया। उससे बचने के चक्कर में वो तेजी से हटी, तो उसका पैर गीली मिट्टी पर फिसल गया और वो खेतों में पानी बहने के लिए नहर थी, उसमें गिर पड़ी। इससे पहले वो कुछ समझ पाती, कुछ ही क्षणों में वो पूरी तरह भीग गयी। रमेसर ने ये सब वहां से देखा, तो वो बच्चे को लेकर ही वहाँ पहुंच गया। तब तक रानी उठके बाहर आ चुकी थी।
रमेसर," बिटिया, तू ठीक बारे कि ना? ध्यान ना देला का?
रानी मुस्कुराते हुए बोली," ना बाबूजी, पैर फिसल गईल। पनिया के धार भी ज्यादे रहल हा।"
रमेसर," चल पूरा गीला हो गईलु।" उसने रानी को आगे चलने का इशारा किया। रानी आगे आगे चलने लगी। उसकी साड़ी गीली होकर उसके बदन से पूरी तरह चिपक पड़ी थी, इस कारण उसके चूतड़ों का आकार साफ पता चल रहा था। साड़ी पूरी तरह चूतड़ों के बीच फंसी हुई थी जिसे देख रमेसर का लण्ड हरकत करने लगा। जब वो चल रही थी, तो चूतड़ मस्ती में हिल रहे थे। उसकी पीठ तो लगभग नंगी थी। गीले ब्लाउज की वजह से, और भी अधिक कामुक लग रही थी। दोनों थोड़ी ही देर में मड़ई के अंदर आ चुके थे। रमेसर बच्चे को लेकर चारपाई पर सुला दिया। तभी रानी ने कहा," बाबूजी, इँहा आई ना, रउवा हाथ धो ली। रमेसर आया तो उसकी नज़र अपनी बेटी की चूचियों पर गयी, जो गीले ब्लाउज के ऊपर से साफ दिख रही थी। उसके चूचक कड़े हो चुके थे और बिना ब्रा की वजह से, ब्लाउज में अपनी स्थिति दर्ज करा रहे थे। तभी रानी ने कहा," का देखत बानि, बाबूजी?
रमेसर हाथ धोते बोला," तहराके केतना बार कहनि ह, कि हमके पापा बोलल करा। बाबूजी लोग पहिले कहत रहला। अब नया जमाना के बेटी पापा कहत बारि स। रउवा ना तू कह के बात करअ हमरा से, हमके बढ़िया लागेला। अईसे इज़्ज़त ना घटेला, बल्कि नजदीकी बढेला, जब बेटा माई के तू कहके बात कर सकेला, त बेटी सब भी बाप के तू से ही बात करि, बुझला रानी। तहार ब्लाउज पूरा भीग गईल बाटे। एकरा अउर साड़ी दुनु के खोले के पड़ी।"
रानी," ठीक बा पापा,पर हम पिन्हब का?
रमेसर," ई गमछा लपेट लिहा, अईसे गीला कपड़ा में रहबू त, सर्दी लग जाई और बबुआ के भी सर्दी लग जाई।"
रानी," ठीक बा पापा, लेकिन कपड़ा कहाँ बदलब?
रमेसर," इँहा बदल ले, काहे लजात बारू?
रानी," इँहा तहार सामने, कपड़ा उतारी का? तहरा के लाज ना आवेला का?
रमेसर," जब रातभर हमार लांड से चुदवात बारू, तब लाज नइखे आवत।"
रानी शर्म से नज़रें झुकाके मुस्कुराते हुए बोली," राति आ दिन में फर्क होखेला पापा। कोई देख ली त।"
रमेसर," इँहा केहू ना आई, ला हम तहार कपड़वा उतार दे तानि।" ऐसा बोलके उसने रानी के साड़ी का आँचल पकड़ लिया और उसे खींचने लगा। रानी ने कोई विरोध नहीं किया, बल्कि जैसे जैसे रमेसर उसकी साड़ी उतार रहा था, वो खुद गोल गोल घूम रही थी। रमेसर धीरे धीरे उसकी साड़ी उतार रहा था। थोड़ी ही देर में साड़ी पूरी तरह खुल गयी थी, और रमेसर ने उसे वहीं गिरा दी। फिर वो रानी के ब्लाउज के हुक खोलने लगा। ब्लाउज के हुक खुलते ही, उसने रानी की बांहों से उसे उतारके फेंक दिया। रानी की उन्नत चूचियाँ पूरी तरह नंगी हो उठी। रानी ने अपने हाथों से उसे ढकने का प्रयास किया पर रमेसर ने उसके हाथ हटा दिए। उसकी साँवले कड़े हो चुके चूचकों को देखकर, वो उनको उंगलियों से मसलने लगा। रानी के मुंह से कामुक सीत्कार निकलने लगी। रमेसर ने रानी के चूचकों को दबाया तो, उससे दूध की धार फूटने लगी। रानी के चूचियों में पर्याप्त मात्रा में दूध भरे हुए थे। रमेसर बहते दूध को देख उत्तेजित हो गया और उसके चूचक को मुंह में लेकर अपनी बेटी का दूध पीने लगा।
रमेसर अपनी बेटी के चुच्ची को चूसते हुए, मुंह में दूध भरने लगा। जब पर्याप्त मात्रा में दूध जमा हो गया, तो उसने घूंट भरी। फिर अपनी बेटी की ओर देख बोला," तहार दूध बड़ा मीठ बा रानी बिटिया।"
रानी कामुक नज़रों से देखते हुए बोली," अच्छा पापा त पी ली ना हमार दूध, तहार नाति त कम पियेले। हमके दूध बहुत होवेला।"
रमेसर," बेटी, ई पर त पहिल हक़ बबुआ के बा ना ?
रानी," पापा उ आपन हिस्सा के पी लेले बा। अब तू पी लअ। हम्मर बड़का बबुआ।" ऐसा बोलके उसने रमेसर के गालों को सहला दिया।
रमेसर ने उसके पेटीकोट का नारा भी खोल दिया और उस गीले पेटीकोट को रानी के मोटी जांघों से उतार दिया। रानी ने फिर उसे पैरों की मदद से उसे निकाल दिया। रानी अब अपने बाप के सामने पूरी नंगी खड़ी थी। उसके पेट नाभि के आस पास, पीठ और पैरों पर गीली मिट्टी लगी हुई थी, जो उसे और कामुक बना रही थी। रमेसर ने उसे चूतड़ों से पकड़के अपनी बांहों में उठा लिया।
रानी," पापा, हम तहार नाश्ता लेके आईल रहनि। नाश्ता ना करबा का?
रमेसर," रानी अब स्पेशल नाश्ता करब।"
रानी," उ का पापा?
रमेसर," तू बताबा, का बा हमार स्पेशल नाश्ता रानी?
रानी मुस्कुराते हुए," हमके का पता, पापा, तहके कउन स्पेशल नाश्ता चाही।"
रमेसर," उ तहरा पास बा रानी। तहार दूध पियब फेर तहार पानी पियब।"
रानी," खुलके बोल ना पापा, कहां से दूध पियबू अउर कहां से पानी।"
रमेसर," तहार चुच्ची से दूध पियब, अउर तहार बूर से पानी।"
रानी," आह हहहहह....... पापा तहरा मुंह से गंदा गंदा बात सुने में बड़ा अच्छा लागेला।"
रमेसर," अच्छा रानी, कउन गंदा बात सुने में बढ़िया लागेला तहरा के।
रानी," जब तू चुच्ची अउर बूर बोलेले। राते जब तू हमके चोदेले तब तू हमके गरियावेला ना।
रमेसर अनजान बनता हुआ बोला," राते त हम ताड़ी पीएनी, हमके याद नइखे। का गारी देनी ह।"
रानी," हमके लाज लगअता बोले में तू बहुत गंदा गंदा गारी देले रहला।"
रमेसर उसकी चुच्ची में दांत गड़ा दिया, तो रानी चिंहुँक उठी और बोली," आह.. आह बेटीचोद कहीं के, चुच्ची काट लिहलस हाय...।
रमेसर," वाह रानी तू भी त आपन बाप के गरिया रहल बारू।"
रानी," तू चुच्ची में दांत गरेबू, त गारी निकलबे करि।
रमेसर," त देदे गारी, हम बानि बेटीचोद, जे अपन बेटी के चोदे उ बेटीचोद कहाई।
रानी," तू बड़ा बेटीचोद ह पापा, अपन सगी बेटी के चोदेला। बेटीचोद....... बेटीचोद.......बेटीचोद।" ऐसा बोलके उसने रमेसर के होठ पर चुम्मा देने लगी। वो दोनों जीभ बाहर निकालके एक दूसरे को चुम्मा ले रहे थे।
रमेसर उसे चारपाई पर ले गया, जहां बगल में रानी का बेटा लेटा हुआ था। वो दोनों चुम्मे में डूबे हुए थे। रमेसर ने अपनी बेटी रानी को पूरी तरह अपने आगोश में ले रखा था। वो दुधमुंहा बच्चा किलकारी मारकर हँस रहा था। उसे क्या ज्ञान था, कि उसकी माँ अपने बाप के साथ ही काम सुख भोग रही थी। बड़ी देर तक दोनों एक दूसरे को चूमते रहे, और सहलाते रहे। इस बीच रमेसर की धोती खुल चुकी थी, उसने बनियान भी मौका देखके उतार दी। अब दोनों बाप बेटी बिल्कुल नंगे एक दूसरे से लिपटे हुए थे। रानी उसकी आँखों में देख बोली," पापा, तू अभी भी केतना मजबूत बारा। तहार बाँहिया, तहार छाती बड़ा कड़ा अउर मज़बूत बा। अभी भी तहरा में बहुत ताक़त बा। सारा सारा रतिया हुमच हुमच के चोदेले। तहराके माई काहे छोड़ के भाग गईल पता ना।"
रमेसर," उ रंडी छिनार के नाम ना ले, जाने कहाँ भाग गईल कुत्ती साली।"
रानी," पापा, हम उहे रंडी छिनार के बेटी हईं। अच्छा भईल माई चल गईल। तबे तू आज उ रंडी के बेटी के भोग रहल बारू।"
रमेसर," उ छोड़, अब पहिले चोद लेबे दे रानी।"
रानी," सारा रतिया तू हमके चोदले, तहार मन ना भरेला का। लोग जान जाई त केतना बदनामी होई कि रमेसर अपन बेटी के ही चोदेले।"
रमेसर," के जानि ई बतिया, बेटी, ई रिश्ता एतना पवित्र ह, कि जब तक केहू प्रत्यक्ष देख ना ले, केहू मानी ना। बस तू अउर हम जानिले। तहके चोदे में जउन मज़ा आवेला, ओकर जवाब नइखे।"
रानी," बेटीचोद बने में मज़ा आवेला ना तहराके। हमरा भी आपन बाप से चुदाबे में मज़ा आवेला।"
रमेसर ने फिर उसकी गीली बूर को छुवा तो वो अपने दांतों से होंठ काट बैठी। रानी के मुंह से कामुक सिसकारी निकल गयी। उसकी बूर पूरी तरह गीली हो चुकी थी।
रमेसर का काला लंबा लण्ड पूरी तरह कड़क हो चुका था। वो रानी के पैरों के बीच आ गया, और अपने लण्ड पर थूक लगाया। फिर उसने रानी की बूर पर भी थूक लगाया और लण्ड उसके मुहाने लगाके धक्का लगाया। रानी पिछले चार साल से अपने बाप से चुद रही थी। उसकी बूर अब अपने बाप के तगड़े लण्ड की आदि हो चुकी थी। रानी बूर में लण्ड घुसते ही मचल उठी। रमेसर उसके ऊपर झुककर उसकी चुच्ची चूसने लगा। वो धक्के भी लगा रहा था, और अपनी बेटी का दूध भी पी रहा था। रानी उसे अपनी बांहों में घेरे हुए थी। चुच्ची चुसवाने और बूर चुदवाने का मज़ा उसे एक साथ मिल रहा था। रानी बिल्कुल बेशर्म होकर अपने सगे बाप के साथ संभोग सुख भोग रही थी।
रानी," आह...... आई ई ई ....ऊ ...... पापा आ.... असही चोदआ...... अपन सगी बेटी के........ हाय...... उह.....बेटी के बूर में बाप के लांड बा........ बड़का पाप करअतनी.... लेकिन मज़ा बहुत आ रहल बा...... पापा से चुदाबे में।"
रमेसर," हाँ, बेटी ई बा त पाप, पर करे में संकोच नइखे होवत।"
रानी," इसशह......आह....... हहहह.....ऊमम्म.... तहरा मज़ा आ रहल बानु? हम माई के कमी महसूस ना होखे देब, उफ्फ्फ.... हमके आपन मेहरू जइसन चोदआ।
रमेसर रानी की बूर को चोदे जा रहा था। रानी अपना दूध अपने पापा को पिला रही थी। दोनों इसी अवस्था में कोई बीस से पच्चीस मिनट चुदाई करते रहे। अंत में रमेसर ने बोला," आह.....रानी लांड के पानी....... आह..... तहार बूर में ही छोड़ दे तानि।"
रानी," आह.......छोड़ द पापा, उम्म्मह........अब त सब सुरक्षित बा। उ दिन सामुदायिक केंद्र में हमके कॉपर टी तू लगवा देले रहला। अब हम गाभिन ना हो सकिले।"
रमेसर ने रानी के साथ झड़ते हुए उसकी बूर में ही लण्ड का पानी निकाल दिया। दोनों की सांसें तेज चल रही थी, दोनों पसीने से लतपथ थे। रमेसर रानी के ऊपर लेटा हुआ था।
रानी," थक गईल होबआ तू पापा, चल खाना खा लअ।"
रमेसर," तनि देर अपन बाँहिया में सुते दे रानी।" दोनों एक दूसरे को सहला और चूम रहे थे। वो दुधमुंहा बच्चा भी उन दोनों को देख रहा था। रानी उसे देख मुस्कुराई।
इतने में रंजू और अरुण सीधे मड़ई में पहुंच गए। उन दोनों को बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था, कि अंदर बाप बेटी एक दूसरे के ऊपर नंगे लेटे होंगे। रमेसर और रानी ये सोचकर निश्चिन्त थे, कि वहां कोई आएगा ही नहीं और उन्हें पता भी नहीं चला कि कब रंजू और अरुण भीतर आ गए। रंजू उन्हें इस हालत में देख चौंक गई, कि एक बाप बेटी कैसे एक दूसरे के साथ काम सुख भोग सकते हैं। अरुण भी उन दोनों को ऐसी हालत में देख, भौंचक्का था। दोनों वहीं सांसे रोके खड़े थे, और बिना पलक झपकाए, उन दोनों को ही घूर रहे थे। कोई पांच मिनट बाद रानी की नज़र उन दोनों पर पड़ी, तो उसने रमेसर को उठने के लिए कहा। उसके उठते ही वो अपनी चूचियों और बूर को हथेली से छुपा के एक लकड़ी के खंभे के ओट में छुप गयी। इतने में रमेसर अपना गमछा लपेट के अपनी बनियान पहनने लगा। रंजू ने घबराहट में अरुण को बोला," चल बेटा, बाहर चल।"
रंजू को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था, कि उसने अभी अभी एक बाप बेटी को ऐसी हालत में देखा था, जैसे बंद कमरे में केवल पति पत्नी होते हैं। थोड़ी देर में रमेसर बाहर आया और सर झुका के बोला," मलकिनी, रउवा काहे आईल बानि, हमके बुला लेले रहति। हम चल औती।"
रंजू ने उसे देख बोला," हम सब इलाहाबाद जा तानि काम से। काल से, तू हमार खेतवा में रहिया। हमनी के चार पांच दिन लगी। आके हिसाब किताब हो जाई।"
रंजू अरुण से बोली," अरुण चाभी दे द।"
रमेसर," मलकिनी, उ सब त ठीक बा, पर कुछ एडवांस दे दी। कुछ काम बा।"
रंजू उसे एक हज़ार रुपये देते हुए बोली," ल ई रख लअ, बाकि आईब त देब।"
रमेसर," कोई बात ना मलकिनी।"
रंजू ने उन बाप बेटी की रासलीला के बारे में अरुण के सामने बात करना ठीक ना समझा। उसने अरुण को घर जाने को कहा और खुद मड़ई में रमेसर के साथ अंदर चली गयी। अंदर देखा, रानी अपने बाप की धोती ही ओढ़ रखी थी, और अपने बेटे को दूध पिला रही थी। फिर रंजू रमेसर से बोली," रमेसर तहरा तनिको लाज ना आवता, तू आपन बेटी के साथ गंदा गंदा काम क रहल बारू? केहू आपन बेटी के साथ अईसे करेले का?
रमेसर," व ...ब..उ उ उ...केहू.. मलकिनी ....ब..ब..बतिया ई रहला कि...... उ अ.... अब...
रंजू," का बोलत बारे, साफ साफ बोला ना, जबान काहे लड़खड़ात बा तहार।
रमेसर," उ... म..मलकिनी ...बस बात उ अइसन भईल.....
इतने में रानी बोली," मलकिनी ऐमे पापा के अकेले के गलती नइखे, हम दुनु खुशी से रजामंद होखे ई करेनी जा। हमार पति साल में, एक बेर आवेला। सारा साल हम मरद खातिर तड़पत रहनि। उ त हमके अपन बच्चा के माई बनाके हमके इँहा छोड़ दिहले बा। फेर जब अगला साल होली आयी तब उ आयी। हमार उमरिया, अभी 26 साल बा, जवानी के आग त अब धीरे धीरे सुलग रहल बा, अउर ई आंचिया अभी अउर भड़की। पापा के माई, केतना साल पहिले छोड़ के चल गईल। एकरा के जीवन में कउनो स्त्री नइखे। बेचारा औरत खातिर, केतना तड़पत रहला। एक मरद के एक औरत के अउर एक औरत के एक मरद त चाहबे करि। जइसे भूख लगे पर खाना जरूरी बा, वइसे ही ई हो शरीर के भूख बा, एकरा ना मिटाई त ई अउर भड़की। अब अगर हम कउनो बाहर के मरद संग चुदायिब त केतना खतरा बा। जाने अनजाने में कभू ना कभू हमके धोखा देबे करि। अउर पापा केहू बाहर के औरतिया के चोदी त एक त उ पइसा ली साथे जाने कउन बीमारी भी दी। अउर दोसर औरतिया लाई, त उ घर में हुकुम चलाई अउर का पता हमरा बच्चा समेत घर से निकाल दी। त जब घर में ही औरत अउर मरद एक दोसर के जरूरत पूरा कर सकेले, त बाहर केहू के जरूरत नइखे। रिश्ता बाप बेटी के अभी भी निभावेले हम दुनु, पर चार साल से पापा अउर हम पति पत्नी जइसे ही रहतानी। हमके शुरू में लाज आवत रहेले, कि पाप करेनी, पर अब दुनु समझ गईल बानि की एक दोसर के जरूरत ही पूरा क रहल बानि। पापा के माई के बाद हम पूरा ध्यान रखअ तानि। पापा दिन रात मेहनत कइके हमार बियाह कइले बारन, आ लइकी सब घर छोड़के पराया मरद के घर आबाद करत बिया। पापा के केहू ना पूछेली, बस मायके आके कुछ दिन रहेली अउर फेर पराया मरद के घर चल जावेली। हम ना जाइब अब ससुरारी, हम पापा संग बहुत खुश बानि, पापा के हर जरूरत पूरा करब। अब अगर रउवा अपना आँखिया से ना देखे रहती, त हमार पापा के बीच नाजायज संबंध के कल्पना भी ना कर सकती। हमर पापा हमार हीरो बा। हम दुनु जानत बानि, कि सभ्य समाज में बाप बेटी के ना चोदेला, पर जब घर में ही पियासल मरद अउर औरत बारन स, तब घर के अंदर ई करे में कउनो हरज नइखे। ऐमे तीन फायदा बा, एक त घर के बात घर में रही, दोसर बात केहू बाहर के रही त उ ई बात के फायदा उठाबे कोशिश करि। घर के अंदर ही चुदाई के सुख मिली। इमे सब सुरक्षित बा। हमके कउनो अफसोस नइखे की पापा हमके चोदत बानि। हम दुनु एक दोसर से खुश बानि। अउर ई देखी हमार गोदी में खुशी के निशानी। हाँ, ई हमार अउर पापा के संबंध के नतीजा बा। ई पापा के ही बेटा बा, हमार भाई अउर बेटा दुनु बा। लइका खातिर ससुरारी से सास ससुर हमके निकाल देले रहले। ई खुशी भी पापा देले हमके। हम त अब कभू ससुरारी ना जाईब, पापा के साथ रहब।" बोलते बोलते उसकी आँखों में आंसू आ गए थे। उसने अपने दिल की भड़ास निकाल दी। फिर बोली," रउवा से एक बिनती बा, की ई बतिया केकरो से ना बताईब। बड़ा मुश्किल से खुशी मिलल बा हमके।"
रंजू अवाक रह गयी। एक लड़की जो उससे काफी छोटी थी, वो कितनी गंभीर बातें बेबाक होकर बोल गयी। रंजू ने फिर कुछ नहीं कहा और उठके जाने लगी। रानी उसके पीछे पीछे आ रही थी। रंजू अचानक रुकी और रानी की ओर मुड़के पूछी," तेसर फायदा का बा ?
रानी ने रंजू की आंखों में उत्सुकता देख समझ गई कि उसे इन बातों से कोई एतराज़ नहीं है। उसने उसकी आँखों में पुरुष संसर्ग की लालसा साफ देखी। फिर उसने रंजू से उसकी आँखों में देख कहा," अइसन पवित्र रिश्ता जब रहेला जइसे बाप- बेटी, माई-बेटा त चुदाई के अलग ही मज़ा आवेला। जब भी चुदबाई, रिश्ता के बीच में रखके। बड़ा आनंद आवेला।" उसने जान बूझकर माँ बेटे के बीच चुदाई की बात बोली, क्योंकि वो उसे अपने बेटे के साथ चुदाई करने के लिए प्रेरित करना चाहती थी। क्योंकि डर तो उसे था, कि अगर रंजू ने ये बात किसी को ये बात बता दी तो, उनको लोग गांव से निकाल देंगे। पर अगर वो भी अपने बेटे से संबंध बना ले, तो दोनों एक ही कश्ती में सवार हो जाएंगे।
अरुण मड़ई के पीछे खड़े होकर अन्दर की सारी बातें सुन ली थी। रंजू ने उसे देखा, तो वो समझ गई कि उसने भी सारी बातें सुन ली है। दोनों वहाँ से वापिस अपने घर की ओर चल दिये।
घर आकर रंजू का मन सारा दिन उन्ही बातों में उलझा हुआ था। एक तो उसकी माहवारी भी कल ही खत्म हुई थी, तो चुदाई की इच्छा अंदर से बहुत थी और वो ऐसे भी काफी चुदासी औरत थी। रात को भी सारी रात वो जागी और रानी की बातें सोच रही थी। उस लड़की ने उसके अंदर के इच्छाओं के नई गहराइयों को उधेड़ डाला था। क्या घर के ही मर्दों से रिश्ता बनाना सही है, क्या एक माँ बेटे के साथ ये संबंध बना सकती है, अगर रानी बेटी होके अपने बाप से चुदवा सकती है। इन सवालों में उलझी वो सारी रात जगी रही। उसे हल्का बुखार भी आ गया था। उधर अरुण भी अब पहले से ज़्यादा अपनी माँ को माँ कम और औरत की नज़र से ज़्यादा देख रहा था। रानी द्वारा कही बातें और अपने माँ से पूछे गए आखरी सवाल कि तीसरा फायदा क्या है? ये साफ जाहिर करता है, कि उसकी भी बहुत रुचि है। उसका लण्ड खड़ा हो चुका था। वो भी रात को रंजू को याद करके मुठ मारके सो गया।
अगले दिन रंजू कोई बहाना करके, कल के ही समय पर वहां पहुंच गई। अरुण समझ गया था कि रंजू कहां जा रही है। वो भी उसका पीछा करने लगा। रंजू को इस बात की भनक नहीं थी, कि अरुण उसका पीछा कर रहा है। वो तो काम ज्वर में जल रही थी। रंजू तेज़ कदमों से उस मड़ई की ओर जा रही थी। जब वो वहां पहुंची तो चोरी छिपे अंदर की ओर झांक रही थी। आज भी दोनों बाप बेटी चुदाई कर रहे थे।
रानी अपने बाप की गोद में उसकी ओर मुंह करके बूर में लण्ड लिए हुए मस्ती में चुदवा रही थी। वो रमेसर के लण्ड पर कूद रही थी। उसके चूतड़ बार बार ऊपर नीचे हो रहे थे, और रमेसर की जांघ से टकरा रहे थे। रमेसर अपनी बेटी की दूध भरी चूचियों को पकड़े हुए थे और उसकी बांयी चुच्ची से दूध पी रहा था। रामेसर को अपनी बेटी का दूध बहुत अच्छा लगता था। आज उनका बेटा सो रहा था। अंदर का माहौल काफी कामुक और गर्म हो रहा था, जहां एक बेटी अपने बाप को काम सुख दे रही थी। आज वो निश्चिन्त थी, कि आज कोई नहीं आएगा।
रमेसर," आह.... रानी बेटी... उऊह..... केहू आ जाई त, जइसे काल रंजू आ गईल रहला।"
रानी," केहू ना आई.....प... पापा, हम्मम्म...... उ रोज़ रोज़ थोड़े आयी। तू बस मज़ा ल। अउर उ साली त अपने चुदाबे खातिर केहू के खोजत बानि। उ भी लांड के पियासल बानि। एक त पति फौजी रहला चुदाई के सुख ना मिलत होई, अउर अब उहू नइखे। बेचारी के, के समझाई कि घर में जवान बेटा बा, उहे से संबंध जोड़ ली।"
रमेसर," ना उ बड़ घरके औरत बिया, उ अइसन ना करि।
रानी," पापा, बड़ घर में ई ज्यादा होवेला। उहाँ के औरतिया मां, बेटी, बहिन, बहु, भाभी सबके बाप, भाई, बेटा, ससुर, देवर, भैंसुर सब घर में ही चोदिले। उहाँ कोई जात नइखे, अउर उ सब ई बतिया केहू से बतावेले ना।" वो उसकी आँखों में देखकर बोली।
रमेसर," तू एक न. के रंडी लइकी ह। बाप से चुदवा रहल बारू, पूरा बेशर्म होके, छिनार साली। तहरा लांड चाही खाली, चाहे उ बाप के होई। कइसन रांड बेटी बा हमार।" ऐसा बोलके उसने रानी के चूतड़ पर तीन चार थप्पड़ लगा दिए। रानी हर थप्पड़ पर कामुकता से कराह रही थी।
रानी," आह.. पापा देखा ना, जब तू हमके रंडी छिनार कहेलु, त बूर से केतना पानी चुवता। पूरा लांड भीग गईल बा। हमके चूतड़ पर और थप्पड़ मारी, हम गंदी लइकी हईं। गंदी लइकी के पापा से पिटाई होई।"
रमेसर उसके चूतड़ों पर कसके लगातार थप्पड़ मारने लगा और बोला," रंडी के बेटी, रंडी ही बनेला। तू हमार रखैल बारू। तहरा से तहार माई के बदला लेब। जेतना दिन हम पियासल रहल बानि, ओकर हिसाब तू चुकाईबअ। तहरा के एहि से कॉपर टी लगवैले बानि रंडी साली, पिछला बेर गलती से तू गाभिन हो गईलु, हम ध्यान ना देनी। पर चला हमके एक बेटा चाह रहला, उहू इच्छा पूरा हो गइल। तहरा जइसन बापचोदी लइकी घर में रही, त सब के भाग खुल जायी।
रंजू बाहर खड़ी सब सुन रही थी, उन बाप बेटी की गंदी बातें सुनके, वो अपनी बूर कब सहलाने लगी उसे पता नहीं चला। उसने अपनी गुलाबी पैंटी, घुटनों से नीचे कर रखी थी, और साड़ी उठा बूर सहला रही थी। उसने अंदर झांकना जारी रखा।
रमेसर ने रानी को कहा," सुन मोर रंडी बबुनी, कुत्ती बन साली, आज तहके कुत्ती के जइसन चोदब।"
रानी," पापा, तू दूध ना पी पईबा, हमके त कुत्ती बनके चुदाबे में बड़ा मजा आवेला।" और वो मुस्कुराते हुए फौरन कुत्ती की तरह चौपाया हो गयी। रमेसर उसके पीछे आकर बूर में लण्ड डाल दिया, तो रानी के मुँह से कामुक सीत्कार निकल गई।
रमेसर," दूध त बाद में भी पिबे करब, पहिले छिनार बेटी के बूर त चोद ली।"
रानी," पापा, अईसे कुत्ती बनके चुदाबे में बड़ा मजा आवेला। तू आपन सगी बेटी के रंडी अउर कुत्ती बना देले बारू बेटीचोद कहीं के।" वो पीछे मुड़के बोल रही थी।
रमेसर एक हाथ से उसके चूतड़ पर एक थप्पड़ लगाया और उसके बाल पकड़े के खींचते हुए बोला," तू हमार बेटी, मेहरू, रंडी, रखैल बारू रानी, जब तलिक सांस चली तब तलिक तोहके चोदब रानी।"
रानी," आह... पापा तू बड़ा जालिम मरद हो। तू चोदेले बड़ा देके दरद हो।"
रमेसर," उफ़्फ़ का बूर बा तहार, साला पूरा लांड के लागअ ता चूस रहल बा। तीन तीन बच्चा होवेके बावजूद बड़ा टाइट बा रानी।"
रानी," तहार लांड त गजब ढा रहल बा। हमार बच्चेदानी में ठेक रहल बा। अईसे चोदबु त जल्दी झर जाइब।"
दोनों ऐसे ही गंदी गंदी बातें करते हुए चुदाई कर रहे थे। कोई पच्चीस मिनट तक दोनों चुदाई करने के बाद झड़ गए। रानी अपने बाप को अपने बांहों में लिए सो रही थी। उधर रंजू अपनी बूर को मसल रही थी, पर उसे चरम सुख नहीं मिल रहा था। वो कामुकता से ओत प्रोत हो भूल गयी थी, कि वो खुले में हस्तमैथुन कर रही है। वो बूर में उंगली डालके तेज़ी से अंदर बाहर कर रही थी। वो इस बात से अनजान थी कि, उसका बेटा उसे ऐसा करते हुए देख रहा था। जब अरुण ने रंजू को इस अवस्था में देखा, तो वो समझ गया कि उसकी माँ रंजू को एक मर्द की सख्त जरूरत है। वो चाह रहा था, कि अपनी माँ को वहीं पटक कर चोद दे। पर उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। पर उसने ये तो सीख लिया था, कि पहल मर्द को ही करनी पड़ती है। उसका लण्ड तो अपनी सगी माँ को अर्ध नग्न अवस्था में देखकर खड़ा हो चुका था। वो अपना लण्ड बाहर निकाल सहला रहा था। उसने आखिर मन में सोचा जो होगा देखा जाएगा और अपना लण्ड निकालके अपनी माँ के सामने चला गया। रंजू ने उसे अभी देखा नहीं था। वो रंजू से कोई 10 फ़ीट दूर खड़ा था। जितनी मड़ई की चौड़ाई थी। दोनों मड़ई की आड़ में मड़ई के दोनों छोड़ पर खड़े थे। रंजू अपने बूर में तेज़ी से उंगली कर रही थी, उसकी आंखें बंद थी। तभी अरुण के चलने की वजह से एक सुखी लकड़ी उसके पैरों के नीचे आने से टूट गयी और आवाज़ हुई। रंजू ने आंख खोल तो देखा, सामने उसका बेटा अपना लण्ड बाहर निकाले खड़ा था। वो उसे दिखाके लण्ड हिला रहा था। रंजू को कुछ पल समझ में नहीं आया कि वो क्या करे ? उसका बेटा उसकी बूर को घूर के देख रहा था। वो कमर से नीचे पूरी नंगी थी। उसकी झांटों वाली बूर अरुण की कामुक आंखों को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। रंजू की नज़र अपने बेटे के मस्त लण्ड पर गयी, जिसे वो देखती रह गयी। बड़ा कड़क मस्त लण्ड था, उसके बेटे का। धीरे धीरे अरुण उसके पास आ रहा था, और रंजू अपनी जगह पर खड़ी थी। अरुण अब उससे दो कदम की ही दूरी पर था। अब तक उसने दूर से रंजू की बूर देखी थी, पर अब मंजिल दो कदम के फासले पर थी। अरुण ने इस फासले को भी जल्दी ही पार कर लिया और अपनी अधनंगी माँ के एकदम करीब आ गया। उसे इतना करीब देख, रंजू ने अपनी साड़ी गिरा दी। अरुण उसके करीब आया और अपना कड़क लण्ड अपनी माँ के सामने पूरा खोलके दिखाने लगा। रंजू उसके लण्ड को ही देख रही थी। फिर उसने अपनी माँ के हाथ पकड़ अपने लण्ड पर धीरे से रख दिया। रंजू ने कोई विरोध नहीं किया। कई दिन बाद रंजू ने एक लण्ड थामा था, वो भी अपने बेटे का मजबूत और कड़क लण्ड। अरुण फिर रंजू की साड़ी साया समेत धीरे धीरे उठाने लगा। रंजू उसे कुछ भी बोल नहीं रही थी। अरुण रंजू की साड़ी उठाके अपनी माँ की बूर को देखने लगा। उसकी माँ की बूर झांटों से घिरी हुई थी। बूर की फांक फूली हुई थी। गुलाबी पत्तियां भी झांटों के बीच से झांक रही थी। बूर से चूता गाढ़ा पानी, जो कि लण्ड घुसने की चिकनाई के लिए होता है, बूर के आसपास फैल चुका था। एक बेटे के लिए, इससे प्यारा नज़ारा क्या हो सकता है, माँ की गीली बूर। उसने रंजू की बूर के पास हथेली ले जाकर उसे छुवा, तो उसे करंट सा लगा। आखिर वो जीवन में पहली बार अपनी माँ की नंगी गीली बूर को छू रहा था। रंजू उसे रोक नहीं पा रही थी, क्योंकि वो खुद अपने बेटे के सामने गंदी हरकत करते हुए पकड़ी गई थी और वो इस समय काम वासना में भी जल रही थी। अरुण अपनी माँ की गीली बूर का पानी उंगलियों से छुवा और उसे पकड़के चाटने लगा। उसमें थोड़ी पेशाब और पसीने की गंध की वजह से बदबू थी, और स्वाद नमकीन था। रंजू अपने बेटे के लण्ड के मुहाने से चूता पानी को उंगली से सुपाड़े पर मल रही थी। अरुण को इशारा मिल चुका था, कि रंजू को अगर अच्छा नहीं तो बुरा भी नहीं लग रहा है। उसने अपनी माँ को अपनी ओर खींच लिया और उसे अपनी बांहों में भर लिया। फिर उसने रंजू के होंठ को उंगलियों से छुवा। रंजू अपनी आंखें बंद कर उसके उंगली का एहसास अपने अधरों पर महसूस कर रही थी। तभी अरुण रंजू के चेहरे को अपने पास लाया। दोनों की गर्म सांसे एक दूसरे से टकरा रही थी। अरुण ने फिर रंजू के होंठों को अपने होंठों से छुआ। अरुण अपनी जुबान से रंजू के होंठ को चाट रहा था। धीरे धीरे रंजू के होंठ खुल गए और वो अरुण की जीभ को अपने मुंह में शरण दे दी। दोनों का चुम्मा एक प्रगाढ़ चुम्बन में बदल गया। अरुण ने अपनी माँ को अपनी बांहों में कसके धर दबोचा था। रंजू भी उसके लण्ड को पकड़े हुए, उसका साथ दे रही थी। रेगिस्तान में जैसे प्यासे को पानी मिल जाता है, वैसे ही रंजू के होंठों पर प्यास बुझाने की ललक थी। जैसे बरसों से प्यासी धरती पर पानी गिरती है, वैसे ही रंजू के ऊपर अरुण बादल बनके बरस रहा था। दोनों एक दूसरे को ऐसे ही चूमते जा रहे थे। जाने कहाँ से बादल घिर आये, और तेज हवाओं के साथ, घनघोर बारिश भी पड़ने लगी। दोनों वहां गीले होने लगे। पर किसे फ़र्क़ था, दोनों चुम्बन में लीन थे। बारिश की वजह से दोनों का चुम्बन टूटा तो, रंजू ने अरुण को देखा। अरुण को देख, उसे एहसास हुआ कि, वो भावना में बह चुकी थी और उसे शायद ऐसा नहीं करना चाहिए था। वो अरुण के चेहरे को कुछ पल घूरती रही। फिर खुद को उसकी बांहों से छुड़ा के वहां से दौड़कर भागने लगी। अरुण उसके पीछे दो चार कदम भागा, पर रंजू वहां से बहुत तेजी में घर की ओर भाग रही थी।
अरुण देर शाम तक घर आया, रंजू भी पूरा दिन अपने कमरे में पड़ी रही। दोनों के अंदर एक द्वंद्व चल रहा था, अच्छाई और बुराई के बीच, नेकी और बदी के बीच और तड़प और तृप्ति के बीच।
अगले दिन दोनों बस से निकल चुके थे, पर दोनों में कोई बात नहीं हो रही थी। रंजू खिड़की की ओर बैठी थी और सारा रास्ता बाहर ही देखती रही। अरुण उसके पास ही बैठा था, वो बार बार किसी ना किसी बहाने उससे बात करने की कोशिश करता पर रंजू केवल हां हूँ में ही जवाब दे रही थी। उसने इस बीच में रंजू के हाथ पर अपना हाथ रख दिया। रंजू कुछ बोली नहीं, पर धीरे से अपना हाथ हटाने की कोशिश करने लगी। अरुण ने उसका हाथ सारे रास्ते पकड़े रखा। दोनों घंटे भरके सफर के बाद, रेलवे स्टेशन पहुंच चुके थे। गाड़ी आने में अभी एक घंटा बचा था।
रंजू प्लेटफार्म पर बैठी इन दो दिन के बीती से कुछ क्षण पहले तक सारा सफर तय कर चुकी थी। दो दिन पहले की रंजू और इस वक़्त जो स्टेशन पर बैठी थी, उसमें बहुत अंतर था।