पगड़ी- जिम्मेवारी की
हर मर्द की जरूरत है औरत। औरत मर्द को पूरा करती है। औरत का प्यार पाना हर किसीके नसीब में नहीं होता। हर किसी के जीवन में औरत नहीं होती। औरत वो होती है, जो आपकी कामयाबी में आपके साथ आपकी खुशियां दोगुनी करती हैं, और जब ग़म आता है तो उसको बांटकर आपको सहारा देती है। औरत जब किसी को चाहती है तो उसके लिए अपना सब कुछ लुटा देती है। उसकी खुशी आपकी खुशी में होती है, वो बदले में आपसे प्यार और लगाव की अपेक्षा रखती है। लेकिन मर्द अक्सर भूल जाते हैं कि उनके भी कुछ सपने, कुछ इच्छाएं होती हैं। वो अपनी इच्छाओं का दमन कर, मर्द की हर जरूरत पूरी करती है और उसे टूटकर चाहती है। हर औरत अपने मर्द के लिए कुछ भी कर गुजरने का माद्दा रखती है। उसके लिए तब समाज, धर्म, जाति, सम्प्रदाय, नैतिक-अनैतिक, सही-गलत, कोई मायने नहीं रखते, मायने रखती है तो उसके मर्द की खुशी। घर की दहलीजों में कैद रहकर भी ये मर्दों के जीवन को सजाती है और उनकी तक़दीर को संवारती है। वो एक माँ की तरह उसको लाड-प्यार करती है, एक बहन की तरह उसका ख्याल रखती है। लेकिन क्या हो, अगर माँ और बहन ही घर की औरत बन जाये। एक मर्द को इससे ज्यादा सुकून कौन देगा कि उसकी माँ और बहन ही उसके साथ औरत की तरह प्यार करे। आखिर माँ और बहन भी तो किसी मर्द की औरत बनती है, तो क्यों ना वो अपने ही घर के मर्द को औरत की तरह चाहे। पराए मर्द के साथ हमबिस्तरी करते हुए, औरत शायद उतनी सहज ना हो जितनी अपने भाई या बेटे के साथ हो सकती है। अगम्यगमन समाज के लिए गलत हो सकता है, पर जो लोग अपनी माँ बहन को अपनी औरत की तरह रखते हैं, उन्हें वो किसी वरदान सा लगता है। इन गलियों में रिश्ते नहीं घुसते, जाते हैं तो केवल मर्द और औरत। ये घुसते तो हैं भाई बहन या माँ बेटे बनकर और हमेशा के लिए एक दूसरे को मर्द औरत की तरह ही देखते हैं। यहाँ जिस्म की प्यास और हवस की भूख के बीच उनके रिश्ते पिस जाते हैं। जहाँ माँ बहन को निर्वस्त्र सोचना भी पाप होता है वहां, वो खुद निर्लज्जता की सीमाएं लांघ बिस्तर पर कांड करती हैं। अक्सर ये नाजायज़ रिश्ते धीरे धीरे सुलगते हैं, पर एक बार जब उनका विस्फोट होता है, तो कोई भी काबू में नहीं रहता। बस जरूरत होती है उनके अंदर की उस औरत को जगाना जो सालों से प्यासी बैठी है। फिर तो उनके सामने न भाई, न बाप, न बेटा कोई भी हो, उन्हें मर्द नज़र आता है। वो अपनी ओर से हरकतों से उन्हें इशारे देती है। उनके सामने अपना अंग प्रदर्शन करती हैं। उनसे गंदा मज़ाक करने लगती है, अक्सर उनके करीब चिपकने लगती है।
उनकी इन ओछी हरकतों के पीछे छिपी होती है उनकी दबी वासना, उनकी अधूरी यौनेच्छाएँ, उनकी असीमित कामुक भूख और उनकी जवानी की अंगीठी पर सुलगती काया।
राजू के हाथ तो उसकी माँ और बहन लग चुकी थी। पहले तो उसने बहन को ससुराल से भगाया और अब माँ विधवा हो चुकी थी। अब वो घर का मालिक बनने वाला था। हालांकि राजू की माँ बीना राजू को थप्पड़ मारी थी, पर राजू के लिए अंदर ही अंदर जल रही थी। उसने गुस्से में आकर राजू को थप्पड़ तो मारा था, जिससे राजू दुखी था। बीना भी उसे थप्पड़ मारके पछता रही थी, लेकिन उसे न जाने क्यों राजू पर बस अपना हक लगता था। वो चाहती थी कि राजू बस उसका यार बने। अब जबकि वो विधवा हो गयी थी तो, घर पर उन दोनों को टोकने वाला भी नहीं था। बीना चाहती थी कि राजू को अपने बिस्तर पर ले जाये, पर घर में पति गुजरने के बाद कोई भी शरीफ औरत को खुद पर काबू रखना होता है। इसके साथ ही वो राजू से नाराज़ थी, क्योंकि उसे लग रहा था कि राजू ने उसके हिस्से का प्यार उसकी बेटी को दिया है। वहीं वो गुड्डी की हरकत से भी नाराज़ थी कि नई नई शादी होने के बावजूद उसके अपने भाई के साथ नाजायज शारीरिक संबंध बने।हालांकि वो खुद भी अपने बेटे के साथ इन नाजायज रिश्तों में संलिप्त हो चुकी थी। बीना के आखरी यौन संबंध अपने बेटे के साथ ही बने थे, पति ने तो उसे बहुत दिनों से नहीं चोदा था, क्योंकि वो राजू के प्रति वफादार हो गयी थी। वो अपने पति से संभोग करना पिछले तीन महीनों से बंद कर दी थी। राजू के साथ अंतरंग क्षणों में उसे बहुत आनंद आता था। सगी माँ होकर अपने ही बेटे से यौन संबंध बनाना उसे अब उत्तेजना के शिखर पर ले जाता था। जब राजू उसके बूर में लण्ड घुसाता और चोदता था तो बीना उसे बताती कि कैसे उसने राजू को ९ महीने कोख में पाला और इसी बूर से जन्म दिया, ताकि एक दिन वो उसीके के साथ हमबिस्तरी करे। राजू उसकी बातें सुन उत्तेजित होता, जो बीना को बहुत अच्छा लगता था। उसे अपने अंदर पति के साथ रतिक्रिया के प्रति जो रुचि खो गयी थी, अपने बेटे संग संबंध बनने के बाद, नई काम ऊर्जा उसके अंग अंग में जाग गयी थी। सच तो ये है कि बीना जैसी कामुक औरतें, काम वासना में अंधी होकर घर की इज्जत न लुटाए, इसलिए वो बेटों के साथ अनुचित यौन संबंध को भी तर्कसंगत और उचित समझती है। राजू जैसे बेटे भी तो अपनी माँओं को छोड़ते नहीं, जो उन्हें न जाने कबसे अपनी गंदी नजरों से देखते हैं। जब माँ काम वासना में जल रही हो, और बेटे की गंदी नज़र उसपर हो तो दोनों के लिए एक ही रास्ता बचता है, " अगम्यगमन" का। जहाँ माँ एक औरत होती है, और बेटा सिर्फ एक पुरुष। जहाँ माँ की ममता पर वासना भारी पर जाती है, वहां बेटे अपनी माँ की यौनेच्छा पूरी कर अपना पुरुष धर्म निभाते हैं। मानव ने समाज के नियम बनाये, पर प्रकृति का नियम सर्वोपरि होता है। बीना पिछले सात आठ दिनों से अपने कमरे में बैठी, अपने घर और अपने भविष्य के बारे में सोच रही थी। पति तो जा चुका था, बेटे के लिए वो तड़प रही थी। बीना रात को रतिक्रिया के लिए मचलती थी। वो सपने में खुद को राजू के नीचे नंगी लेटी हुई, चुदती हुई महसूस करती थी। लेकिन गुड्डी के संग उसके संबंध के बारे में सोचकर, वो लज्जित हो उठती कि अब वो राजू से कैसे संबंध बनाए। कैसा माहौल होगा जब राजू उसे चोद रहा होगा और गुड्डी घर में ही होगी। गुड्डी को जब पता चल जाएगा कि उसकी मां और उसके भाई के बीच नाजायज शारीरिक संबंध है तो कैसे वो अपनी बेटी से नज़र मिलाएगी।
राजू ने गैर कानूनी काम करके जो पैसे कमाए थे, वो उसने शहर में अपने मकान मालिक के यहां छुपा रखे थे। राजू चुकी घर के कार्यक्रम में व्यस्त था, तो राजू के कहे अनुसार अरुण ने शहर जाकर वो पैसे वहां से उठा लिए और शाम तक राघोपुर वापस लौट आया। अरुण ने राजू को वो पैसे दिए और अपने गैर कानूनी व्यापार का ताजा समाचार भी बताया। मंत्रीजी उनदोनों के काम से खुश थे। शाम को मंत्री ने राजू को फोन कर हालचाल लिया और उसे सांत्वना दी। उसने अपनी ओर से खर्चे की पेशकश की तो राजू ने पैसों के बदले उनसे अपने घर आने की बात की। अरुण ने ही उसे ऐसा करने को कहा था, क्योंकि अगले पंचायत चुनाव में उसकी माँ/माशूका रंजू भाग लेने वाली थी। इससे उनकी गांव में धाक बनेगी। मंत्री ने उससे आने का वादा किया।
राजू ने जो पैसे कमाए थे, उससे उसने पहले अपनी ज़मीन छुड़वाई। उसने घर और जमीन के कागज़ात अपनी माँ को लाकर उसके हाथ में दे दिये। जो काम उसका पति पिछले सात सालों में नहीं कर पाया वो उसने सात दिन में कर दिखाया।
घर का माहौल ग़मगीन था, पर अब इस घर की जिम्मेवारी राजू के कंधों पर आ गयी थी। तीनों में असल मुद्दे पर खुलके बात नहीं कर पा रहे थे। राजू को पिछले कुछ दिनों में बीना की कचोटती नज़र बेहद चुभ रही थी। गुड्डी और बंसुरिया तो खाना बना राजू को खिलाती थी, पर बीना पिछले कुछ दिन से कमरे में मायूस बैठी थी। उसकी आँखों में धरमदेव के आंसू कम, राजू के धोखे के ज्यादे थे। बंसुरिया को इसकी भनक भी नहीं थी।
राजू," का भईल माई। काहे एतना कानत बारू। जेकरा जाय के रहल उ गईल। अब होश में आ।"
बीना," तू त खुश होबे करबआ, दु दु औरत जउन तहरा हाथ लग गईल। हमके गुड्डी से कउनु शिकायत नइखे पर तु हमरा संग काहे अइसे कइले।"
राजू," हम का कइनी। तहरा प्यार के अलावा कुछ न कइनी जान।" राजू उसे बांहों में कसके थाम बोला।
बीना," हम त तहरा उपर सब लुटा देनी। लेकिन तू गुड्डी के भी न छोड़लु।"
राजू," हम तू दुनु के प्यार करब। गुड्डी दीदी अउर तहरा में कउनु अंतर नइखे। हम चाहत बानि कि अब तू दुनु माई बेटी न बहिन जइसन रह।"
बीना," राजू हमरा में का कमी रहे?
राजू," तहरा में कमी नइखे रानी। गुड्डी.. गुड्डी बा अउर बीना बीना। दुनु के आपन अस्तित्व अउर महत्व बा।"
बीना," अगर कमी नइखे, त गुड्डी के छोड़ दे।"
राजू," देख गुड्डी दीदी अउर हमरा बीच अइसन संबंध बा जइसन तहरा साथ। का कुछ गलत कइनी हम। अरे हमार का गलती बा कि तू दुनु हमार माई बहिन बारू। तू दुनु भी हमके उतना अउर वसही चाहेलु जेतना एक प्रेमिका आपन प्रेमी के। जब घर में आपस में हम सब एक दोसर के प्यार करब त सोच केतना मज़ा आयी। हम तहरा कउनु धोखा न देनी। अउर गुड्डी दीदी अउर तहरा संग संबंध बनाए गुनाह बा, त तू भी हमके धोखा देले बारू। धरमदेव अउर हमरा बीच में से तू भी एक के काहे न चुनलु। खुद धरमदेव के पतिव्रता पत्नी जइसन दिन में रहलु अउर रात के खुद के बेटा संग गुलछारा उड़ात रहलु। तहार ई लच्छन शरीफ औरत के न, वासना के आग में जरत बेबस औरत के रहल। बाहर केहू के पता चली त लोक थुकिहन तहरा पर। लेकिन उ हम रहनि जउन तहार अंदर के वासना बुझौनी। अगर तहरा न चोदति त जाने कहाँ मुँह कारी करवत रहित तू। हमरा साथ सूते से पहिले हमसे पूछले रहलु कि हमार जिनगी में केहू अउर बा कि ना। तहरा से त बढ़िया गुड्डी बा, जब ओकरा पता चलल कि हम तहरा संग चुदायी कइनी, त उ हमार खुशी खातिर आपन प्यार बांटे तैयार हो गइल। हम भी तू दुनु के एक साथ एक ही घर में रखब। जहाँ न रिश्ता के बंधन हो, न समाज के मर्यादा। ऊंहा सिर्फ तू बीना, हम राजू अउर गुड्डी होखब। अइसन सुंदर परिवार जहां तू दुनु हमार वंश के आगे बढ़ेबु। ई घर में प्रेम अउर वासना के नदी बहे। सोच हम सब केतना मस्ती करब। सच बता, तहरा आपन बेटा से चुदाबे में मज़ा आईल रहे, या धरमदेव के साथ?
बीना राजू की आंखों में देखते हुए," बेटा के साथ।"
राजू," गुड्डी के भी भाई के साथ चुदाबे में मज़ा आवेला। जब दुनु के बेटा अउर भाई संग मज़ा आवेला। त हमार संग साथ रहे में का हर्ज बा। अइसन कामुक स्त्री केहू के मिलेला, अउर हमके दुगो मिल गईल। कउन मरद तहरा दुनु के छोड़ी।"
आज पहली बार राजू बीना के साथ इतने अधिकार से हक़ से बात कर रहा था। बीना को ऐसा लग रहा था कि राजू उससे बात नहीं बल्कि अपना फैसला सुना रहा है। राजू का ये अंदाज उसके लिए एकदम नया था। बीना चुपचाप उसकी बात सुनती रही, क्योंकि उसके बातों में शत प्रतिशत सच्चाई थी।
उसका ये काम घर पर उसका दावा पक्का कर गया। बीना तो उसकी दीवानी थी ही, पर आज उसने राजू को पहली बार घर के मुखिया के रूप में देखा। बीना निश्चिन्त थी कि, राजू इस घर को कुछ नहीं होने देगा।
राजू बीना के माथे पर हाथ रख बोला," हम कभू तहरा संग जबरदस्ती न करब। तू हमार बारू बीना, तू खुद अइबू हमरा पास फेर से। जउन बीत गईल ओकरा भूल जो, अब आगे के सोच।" ऐसा बोलकर वो निकल गया। बीना चाहती थी कि राजू को गले लगाना, पर वो कर नहीं पाई। शायद उसके अंदर असमंजस की स्थिति थी।
वहीं दूसरी ओर गुड्डी भी राजू के लिए तड़प रही थी। ऐसा नहीं था कि गुड्डी को उसके पिता के जाने का ग़म नहीं था, पर अभी दस दिन ही हुआ था कि गुड्डी के बदन में सुरसुरी शुरू होने लगी थी चुदने की। घर में चार लोग ही थे। एक दिन जब बूर मसलते हुए गुड्डी बेचैन हो रही थी और उसकी प्यास बर्दाश्त के बाहर हो गई तो वो राजू को बोली," राजू, आबअ न घर के पाछे, भुसवा वाला घर में।"
राजू, जो भैंसों के लिए चारा काट रहा था और अपनी बड़ी बहन की मंशा से परिचित बोला" काहे?
गुड्डी," चूल्हा खातिर बढ़िया लकड़ी चाही, उहे ऊंहा उपर राखल बा।" उसकी प्यासी नज़रें साफ बता रही थी कि वो किस चूल्हे और किस लकड़ी की बात कर रही थी।
राजू," ठीक बा, तू चल हम आवत बानि।"
गुड्डी ने आज अपनी शादी से पहले की घाघरा और चोली पहनी हुई थी। उसकी मटकती गाँड़ और बैकलेस चोली देख वो मन ही मन बोला," कसम से ऐसी चुदक्कड़ बहन किस्मतवालों को मिलती है।"
राजू थोड़ी देर बाद घर के पीछे बने भूँसे वाले घर के पास पहुंचा, तो देखा उसका दरवाजा खुला है। राजू अंदर घुसा तो गुड्डी उससे लिपट गयी और उसके सीने को सहलाते हुए, गर्दन चूमने लगी। राजू सिर्फ एक तौलिया डाले हुए थे और पसीने से तर था। राजू बोला," ई का करआ तारू?
गुड्डी," उहे, जउन तहरा निम्मन लागेला।" वो मुस्कुराते हुए बोली।
राजू बोला," गुड्डी दीदी, हम पसीना से भीजल बानि। छोड़ द हमके, नहाए जाय द।"
गुड्डी उसके सीने पर बहता पसीना चाट बोली," इहे देख के त बर्दाश्त नइखे भइल। तहार गठीला बदन देख मन ललचा गईल। तू केतना मेहनती बारआ। आवअ, तहरा तनि राहत दे दी।"
राजू," गुड्डी दीदी, इँहा केहू आ जाइ, लावअ हम जल्दी से लकड़िया उतार देत हईं, चूल्हा खातिर।"
गुड्डी मुस्कुराते हुए," हमार चूल्हा में आपन लकड़ी ढुका दअ।" ऐसा बोल वो उसका तौलिया खोल लण्ड थाम ली। राजू नंगा हो चुका था। उसने राजू का हाथ थाम अपने घाघरे में घुसा अपनी बूर छुआई और बोली," ई चूल्हा में आग लागल बा, आपन लकड़ी घुसाके ठंढा कर दअ।" गुड्डी सिसयाते हुए अपने होठ काटते हुए बोली। राजू बुत सा खड़ा था और गुड्डी उसके बांहों को सहलाते हुए सिसयाते हुए मचल रही थी। अपनी बहन की बूर की चिपचिपे पानी का एहसास उसके बूर की पत्तियों के बीच उसकी उंगली पर हो रहा था। उसके बूर की चिर परिचित कामुक मादक गंध उसके नाक में समा रही थी।
अगले ही पल गुड्डी राजू को पकड़े और साथ में ले नीचे अपने ऊपर लिटा ली।
राजू उसके चूचियों को चोली के उपर से दबोच उसे चूमते हुए बड़बड़ाया," गुड्डी दीदी, तू हमके पागल कर देबु।"
गुड्डी," तू त हमके पागल कर देलु, राजू। हम दिन रात खाली तहरा बारे में सोचत बानि। अब हमके केहू लेबे खातिर आई, तब भी ससुरारि न जाएब।"
राजू," अब तहरा कहूँ अउर जाय भी न देब। अब तू हमेशा इंहे रहबु, ई घर तहार भी उतने बा, जेतना कि हमार।"
गुड्डी," सच राजू, तू हमके हमेशा अपना पास रखबू। लेकिन माई के कइसे समझेबु।"
राजू," केकर नाम ले लू। उफ़्फ़फ़ ..... हम तू दुनु के अब आपन औरत के जइसन राखब। माई के मनाबे के काम तहार बा। कुछ उपाय सोच, ओकर नाम सुनते लांड टनटना जाता।"
गुड्डी," हम त कोशिश करब। लेकिन जब तू ओकरा चोद दिहलस, त ओकरा फेर से लेटा लेबे करबु। अभी त तनि सदमा में बिया। तहार हमार नाजायज रिश्ता, बाबूजी के देहांत, घर के आर्थिक स्तिथि देखके। कुछ दिन में जब चुदायी के तलब लागी त आई तहार लांड खातिर भागल भागल। बोली राजू बेटा चोद द, चोद द।"
राजू गुड्डी के बूर में लण्ड का सुपाड़ा रगड़ते हुए बोला," आह... का मज़ा आई बीना के भारी नग्न शरीर के अपना गोद में उठा, बूर में लण्ड घुसाबे में। आह.... बीना ऊफ़्फ़फ़फ़ बीना......
गुड्डी," राजू, हम तहरा से वादा करत बानि कि हम बहुत जल्दी माई के फेर से तहरा से चुदवाईब। तू हमरा चोदलू इहे से उ नाराज़ बिया, त ई हमार जिम्मेवारी बा कि हम ओकरा फ़ेरसे तहरा से चुदबा दी। तहरा माई पसंद बा अउर हमरा तू।"
राजू," अइसन न बोल। हमरा तू दुनु पसंद बारू।"
गुड्डी," अउर हमके तहार खुशी। माई के नाम लेते तहार लांड केतना लोहा हो गइल बा। माई के चोदबअ राजू बेटा।"
राजू," उफ़्फ़फ़... हाँ माई, तहरा त हम हमेशा से चोदे चाहेनि।"
गुड्डी उसकी आँखों में देख बोली," माई के बूर में लांड घुसा के पेल दअ आपन माई के। बेटा के लांड, माई के बूर में समाई। तू हमार चोदू बेटा बारअ, हम तहार छिनरी माई बीना।"
बीना का नाम सुन राजू बेकाबू हो गया। राजू का लण्ड जाने कब उसकी बूर में घुस गया। राजू पागलों की तरह उसे चूम रहा था। गुड्डी को राजू की उत्तेजना बहुत पसंद आ रही थी। ये वैसी ही थी जब राजू ने उसे पहली बार खेतों में चोदा था। राजू गुड्डी की चुच्चियों को चोली से निकाल बेरहमी से दबाते हुए एक एक कर भूरे चूचकों को चूस रहा था। गुड्डी का घाघरा कमर तक सिमट चुका था।
गुड्डी बोली," आह... लागतआ माई के पेले में तहरा जादे जोश चढ़ेला। हम खाली तहार माई न, रंडी माई बानि। रंडी के खाली पेलाई चाही। अब उ बेटा के पेल्हड़ होई चाहे भतार के। भतार त गईल, त बेटे के पेल्हड़ लेब राजा।"
राजू उसकी दोनों टांगों के बीच अपनी कमर तेजी से चला रहा था। उसका लण्ड माँ रूपी गुड्डी के बूर की गहराईयों में समा रहा था।
राजू कभी उसके होठ को चूसता तो कभी चुच्चियों को। गुड्डी नीचे लेटे चुदाई का भरपूर आनंद ले रही थी। राजू ने उत्तेजना में गुड्डी के चूचकों को मसलते हुए चिकोटी काट ली।
गुड्डी," आह... दरद होता, चुच्ची चूसे खातिर होखेला, चिकोटी काटेला ना। हमरा दरद देके तहरा अच्छा लागेला का।"
राजू ने उसके भूरे चूचक को फिर से भींच लिया और बोला," हम एतना ऊपर हुमच हुमच के मेहनत करत बानि, तू निचवा पड़ल मज़ा लेत बारू। तनि दरद त सहे के पड़ी। ई मसले में बड़ा मजा आ रहल बा।"
गुड्डी," सि सि..... इशशश...... आह......सि.....। चुदाई में मरद के दिहल दरद भी मजेदार होखेला। बड़ा मजा आवतआ माई के दरद देवे में, माई के मज़ा आवेला दरद सहे में। मादरचोद बेटा, अइसे पेलबु त हम जल्दी झड़ जाएब।"
राजू," आह....जब तू मादरचोद कहेलु त मज़ा आ जाता। वाह... हम मादरचोद बानि। आपन माई के बूर चोदिले।"
गुड्डी को भी माँ बेटे के तड़के की चुदाई में मज़ा आ रहा था। उसकी बूर से लगातार काम रस बह रहा था, जो कि लण्ड के आवागमन के लिए बूर की अंदरूनी दीवारों को चिकना कर रहा था। लगातार बूर में लण्ड के घर्षण से वहां सफेद झाग सा बनने लगा था।
गुड्डी," माई पर कउनु रहम न करबअ। एतना मोट लांड बूर में सटासट पेल रहल बारअ। तू बड़ा जालिम चोदू बारअ हो। तहार लांड पूरा भीतरी घुस के तूफान मचैले बा। बेटा हम रंडी न, तहार सगा माई बानि। आह...बूर झड़ जाइ रे हरामी मादरचोद। मादरचोद के बच्चा।"
राजू," साली रंडी भोंसड़ीवाली, तू हमार रंडी बारू। तहार अंग अंग के हम निचोड़ लेब। तू पैदा भईल बारू हमरा खातिर। हमार लांड से चुदाबे खातिर। तू भले हमरा पैदा कइलु पर हम तहार बेटा के साथ साथ तहार घरवाला भी बानि। अब तलिक त तहरा छुप छुप के चोदत रहनि, लेकिन अब ई घर के मालिक हम बानि अउर तू हमार माई के साथ हमार मेहरू बन गईलु।"
गुड्डी," माई भी कहत बारअ अउर अइसन रंडी जइसन पेल रहल बारअ अपना माई के। कम से कम हमके आपन बाबूजी के मातम त मना लेबे दे।"
राजू," जउन बीत गईल ओकरा छोड़ ना। तहरा सामने अभी पूरा जीवन बा। तू एतना चुदासी बारू कि मातम में भी तहार बूर लांड मांग रहल बा। अउर जब हम बानि त तहरा तड़पे न देब। तहरा शांत रखे खातिर लांड हाज़िर बा रंडी माई।"
गुड्डी," तहार लांड के लत जउन लागल बा, हमके अपना आप पर काबू नइखे। राजा बूर से एतना पानी चूता, कि का करि।"
राजू," अब जे करेके बा, उ हम करब। तू सोच मत बस अपना आप के हमरा हवाले कर दे। देख तहरा हम केतना मज़ा कराएब, तहरा जन्नत के सैर कराएब रानी।"
गुड्डी," सच राजू बेटा, कभी भी अपना माई के गलत न बुझिहा। अब अगर हम एतना कामुक स्त्री बानि त एमे हमार का दोष बा। अगर माई के न चोदबअ त कहूँ न कहूँ ई घर के इज्जत लुट जाई। केहू अउर के संग ई कुकर्म करे से बढ़िया बा कि हम तहरा आपन देह सौंप दी। ले लअ आपन माई के इज्जत। हम अपनाके तहरा सौंप देले बानि। अब जउन तहार इच्छा बा उ कर। तहरा साथ त हम जन्नत का जहन्नुम चल जाएब। अब मौत भी आ जाय त ग़म नइखे।"
राजू," न...न अइसन मत बोल। अभी त हम दुनु के काम गाथा शुरू भईल बा। तहार जीवन के सुनहरा दौड़ अब आईल बा। तहरा जइसन औरत के चुदाई के बिना चैन कहाँ आवेला। अबसे तहार हर दिन कउनु सुहागन से भी ज्यादा वासनामयी होई। एगो रंडी भी दिन में लिमिट में चुदाबेलि, पर तहार कउनु सीमा न होई। अइसन कामुक काया के त हमेशा हम पियासल रहब।"
गुड्डी," आ...आह...आ.. उफ....सच में हम अभागन बानि, कि एतना चुदक्कड़ माल होके, तहार बाबूजी हमरा पर खास ध्यान न देले। अब उ काम तू पूरा करबु। आपन माई के पेल पेल के, हमार प्यास बुझाबा। हम बहुत दिन से पियासल रंडी बानि।"
राजू," तू अपना मुंह से खुद के रंडी कहलु, लाज नइखे आइल?"
गुड्डी," रंडी कउनु गाली न होखेला, ई उ औरत होखेलि जउन पइसा खातिर दोसर मरद सब से चुदाबेलि, काहे कि ओकरा पइसा के कमी रहेला। हर औरत के चुदाई जरूरी बा। अब उ ग्राहक हो, चाहे भाई हो, चाहे बेटा हो। मज़ा त दुनु के आवेला। फरक ई बा कि ऊंहा चुदाई के दाम होखेला, इँहा खाली चुदायी के काम होखेला। हर घरेलू औरत एगो रंडी बा।"
राजू," उफ्फ मतलब तू रंडी बारू, तहार बेटी भी रंडी बिया।"
गुड्डी," उफ़्फ़फ़... माई अउर बहिन रंडी होई, त बेटा भी मादरचोद अउर बहिनचोद होबे न करि। आह...बेशर्मी में केतना मज़ा बा, कामवासना के तृप्ति खातिर बेशर्मी जरूरी बा। बेटा के साथ नाजायज संबंध बनाबे में, ई कुकर्म, ई पाप करे में केतना सुकून बा"
दोनों आपस में घनघोर चुदाई में लीन थे। गुड्डी को बीना बनकर चुदने में मज़ा आ रहा था, वहीं राजू को ये पूरा एहसास हो रहा था जैसे वो बीना को ही चोद रहा हो। दोनों अत्यधिक उत्तेजित और कामुक हो उठे थे।
कुछ देर बाद राजू उत्साह में गुड्डी के साथ ही झड़ गया और सारा माल उसकी बूर में छोड़ दिया।
राजू और गुड्डी भूँसे पर ही लेटे हुए थे। गुड्डी अपने कपड़े ठीक करने लगी। राजू गुड्डी को देख बोला," तहरा मज़ा आईल माई बनके चुदाबे में।"
गुड्डी मुस्कुरा बोली," सच में बहुत मज़ा आईल।"
राजू गुड्डी को अपनी बांहों में भर बोला," सोच माई के केतना मज़ा आवत होई। माई के अंदर भी वासना ढेरी भरल बा। अब उ बेचारी कहां जाई, विधवा औरत के यौन सुख के पूर्ति करेके पड़ी न।"
गुड्डी बोली," राजू, सच बोल का तू माई के खाली एहि खातिर चोदे चाहेलु कि उ विधवा बा या ओकरा प्रति ओकर शरीर के प्रति अतृप्त वासना बा। तहरा आँखिया में माई के खातिर अथाह काम वासना साफ झलकअता।"
राजू," सच में, बीना जइसन माल मिल जाये त हम पूरा पूरा दिन ओकरा साथ बिस्तर पर बिताएब। ओकरा चोदे के बावजूद ओकरा प्रति कामेच्छा बढेला। हम ओकराके बिस्तर के रानी बना के रखब।"
गुड्डी," राजू हमरा खातिर ही माई तहरा से नाराज़ बा। हम माई के मनाएब अउर तहरा माई दिलवा के रहब। हम जानत बानि की उ भी तहरा खातिर मचलत होई। उ जादे दिन न रह पाई, तहरा से दूर। तहार लांड खातिर उ जरूर आई। सवाल खाली बा कि उ केतना दिन आपन देह के काबू में रखी। जब बर्दाश्त से फ़ाज़िल हो जाई, त उ खुद अपना के सौंप दी। ई बखत उ खिसियाईल बा, ओकरा उकसावे वाला चाही। उ खुद लंगटी होई अउर तहार लांड पर बइठी। हमके ई भी पता लग गईल कि बेटा के साथ यौन संबंध केतना सुखकारी होता। अइसन सुख से माई के वंचित न रखल जा सकेला।"
राजू," का बात है, अगर अइसन भईल त तहरा हम एगो स्पेशल गिफ्ट देब। बीना के संग हमार सुहागरात भी बाकी ह।"
गुड्डी लजाते हुए," हमके लागत बा अगर उ तहरा मिली त पूरा सप्ताह तू ओकरा छोड़बआ न। भर सप्ताह ओकरा पेलते रहबु।"
राजू," पूरा महीना हम ओकरा कमरा से न निकले देब। एतना दिन के पूरा कसर निकालब। उहु पूरा मज़ा ली, हम जानत बानि।"
गुड्डी को समझ में आने लगा, कि आखिर क्यों बीना को राजू के साथ मज़ा आ रहा होगा, जिसका सच था माँ बेटे के पवित्र रिश्ते में अनुचित अवैध कामुक संबंध का बंधन। वो समझ गयी कि उसे अपनी माँ के अतृप्त दैहिक सुख, और भाई की अथाह वासना का मिलन कराना होगा। उसे ये समझ भी आने लगा था कि उन दोनों भाई बहनों के खून में ही व्यभिचार विरासत में मिली है। जहां उसकी माँ को भी इन नीच कामों में मज़ा आता है, तो उन्हें क्यों नहीं होगा।
वो राजू से कुछ कहना चाहती थी पर राजू वहां से चला आया। गुड्डी ने उसे बीना से थोड़ा रूखा व्यवहार रखने को कहा था। गुड्डी ने एक गहरी चाल चली थी बीना को राजू के गोद में डालने की। वो जानती थी कि बीना राजू के लण्ड के बिना ज्यादा दिन रह नहीं पाएगी और राजू जब उसे नजरअंदाज करेगा तो वो मचल कर खुद उसके पास भाग के जाएगी।
अगले दिन गुड्डी अपनी माँ के पास गयी। वो कमरे में चुपचाप बैठी थी। अपनी माँ को उसने हमेशा सजा संवरा देखा था। बीना एक फीके रंग की साड़ी में बिस्तर पर लेटी शायद राजू के बारे में ही सोच रही थी। गुड्डी उसके पास बैठी तो, बीना ने उसे देख मुँह फेर लिया।
बीना की कामुकता काम नहीं हो रही थी। घर में भले उसके पति की मौत हुई थी, और मातम का माहौल था। पर बीना की बूर चुदायी की गुहार लगा रही थी। राजू को देखकर उसकी बूर पनिया जाती थी। बीना ने लेकिन अपने दिमाग में अपनी बेटी गुड्डी के प्रति ही ईर्ष्या पाल ली थी। उसने उसके मुंह का निवाला जो छीन लिया था।
गुड्डी बोली," माई, हम तहरा से माफी मांगे खातिर आईल बानि। देख हमरा से नाराज़ न हो। हम जानत बानि कि तू हमरा से नाराज़ बारू। लेकिन होनी के, के टाल सकेला। हम सच कहत बानि, राजू अउर हम अभी से न बियाह के पहिले से एक दोसर के चाहत बानि।"
हम दुनु पढ़ाई करत करत एक दोसर के करीब आ गइनी। भाई बहिन के रिश्ता जाने कब प्यार में बदल गईल। नइखे पता चलल। आखिर में हम दुनु उ काम कइनी जउन जवान लइका लइकी आपस में करेला। एमे न राजू के दोष बा न हमार दोष बा त हम दुनु के जवानी के, जउन ई उम्र में उफान मारेला।"
बीना उसकी ओर देखी और फिर नज़र हटा बोली," कब कइलु तू सब ई खेला?"
गुड्डी," जब हम आपन सहेली के बियाह में गईल रहनि, राजू हमरा ऊंहा से उठा के खेत में ले गईल, जहां हम दुनु...।"
बीना कटाक्ष मारते हुए बोली," बोल न लजात काहे बारि, करत बेर में त लाज न आईल होई। भाई के साथ चोंच में चोंच लड़ेलु।"
गुड्डी," हाँ, माई राजू अउर हम ऊंहा हद पार कर देनी। आपन रिश्ता के मर्यादा तोड़ हम चुदाई के सुख भोगनी। इहे न राजू अउर हम जब पटना गइनी त ऊंहा हम सब पूरा मज़ा मारनी। हम दुनु एक दोसर के प्रेम में सारा हद पार कर, देनी।"
बीना ईर्ष्या से बोली, " उ त भईल होई, राजू तहरा बढ़िया से फँसा के आपन हवस के शिकार बनाउने होई।"
गुड्डी," माई, राजू पर गलत आरोप मत लगा, हम भी राजू के साथ शामिल बानि। औरत के मर्ज़ी के बिना ई संभव नइखे।"
बीना," अच्छा फेर का भईल?
गुड्डी," हम पटना में पेट से हो गइल रहनि। राजू अउर हमरा बीच एतना चुदाई भईल कि कब गर्भ ठहर गईल पते न चलल। राजू बड़ा होशियारी कइके हमार गर्भपात करवा दिहलस।"
बीना की आंखें फटी रह गयी। उसे विश्वास नहीं हो रहा था, गुड्डी जो बोल रही थी।
गुड्डी," हम परीक्षा पास कइके आइनि, त तू लोक बिना हमरा से पूछने, हमार बियाह तय कर दिहलस। हमके लागल कि राजू अउर हमार साथ उतने दिन के रहल ह।
हमके लागत रहल कि ई खाली आकर्षण होई जउन बियाह के बाद दूर हो जाई। पर हमार दूल्हा नामरद निकलल। एक नवविवाहित दुल्हन के अगर अइसन मरद मिली त उ बेचारी के का हाल होई।"
बीना गुड्डी की ओर देख बोली," का दामादजी नामरद बाटे का?"
गुड्डी," हाँ, माई हमार फूटल किस्मत जउन अइसन मरद मिलल कि खुद लौंडा सबके साथ गाँड़ मरबाबत रहल। अइसन में तहार बेटी असहाय हो गइल रहे। हमार सास हमके बांझ कहत रहल। लेकिन माई हम कुछ न कहनि, हम चुपचाप सब सहत रहनि। मरद के कुछ कहे के हिम्मत न रहे, उ हरदम मुँह चुरात रहे।"
बीना," बेटी मतलब दामादजी तहरा छूलस भी न। हे भगवान मोर बच्ची। हमरा सबके कहलस काहे ना? तहरा साथ एतना अन्याय हो गइल।" बीना को एहसास था कि अगर औरत को शारीरिक सुख न मिले तो, उसके साथ कितना बड़ा अन्याय होता है।
गुड्डी," का कहती, कि हमके चोदे खातिर मरद चाही। खैर, राजू जब ससुरारि आईल त हमार सुतल अरमान फेर से जग गईल। अब एमे का गलत बा।"
बीना," गलत बा पूरा गलत बा, एक भाई के साथ बहिन चुदाई न कर सकेला।"
गुड्डी," लेकिन का एगो माई बेटा से चुदबा सकेलि। बोल.."
बीना," का बोल लस तू.....।"
गुड्डी," हमके मालूम बा कि राजू तहरा चोदले बा। अउर हमके एमे कउनु गलत नइखे बुझाता। तू पियासल औरत रहलु, अउर राजू तहार काम पिपासा बुझौलस। तू माई से पहिले औरत बारू, अउर औरत के अगर संभोग सुख न मिली त उ बेचैन रही। राजू तहरा के बहुत प्यार करेला अउर तहरा खुश रखे चाहेला।"
बीना शरम से पानी पानी हो गयी। अपनी बेटी के मुंह से अपनी कुकर्म की कहानी सुनके। बीना अपना मुंह फेर बोली," मतलब राजू तहरा सब बता देले बा।"
गुड्डी," हाँ, लेकिन हमरा तू दुनु के ई रिश्ता से कउनु एतराज नइखे। माई तू अभी जवान बारू, तहरा साथी चाही। त उ तहार आपन खून रही त का बुरा बा। बेटा ही माई के हाथ थाम ली। राजू बहुत अच्छा लड़का बा, उ तहरा कभू कमी न महसूस होबे दी, बाबूजी के। उ तहरा खातिर, तहार खुशी खातिर सब कुछ करे के तैयार बा। तहरा मन में का बा बोल न माई।"
उसी समय घर पर मलंग बाबा आ पहुंचे। उन्होंने दोनों मां बेटी को अपने पास बुलाया। बीना मलंग बाबा को बहुत मानती थी। मलंग बाबा की कही गयी हर बात सच हो रही थी। बीना को आशीर्वाद दे, वो घर के चबूतरे पर बैठ गए। बीना को चिंतित देख उन्होंने उसका कारण पूछा। बीना लजाते हुए सब बातें उनको बताई। मलंग बाबा ने राजू के बारे में बीना को बताना शुरू किया।
मलंग बाबा," सिंह राशि बा तहार बेटा के। तहार बेटा अब ई घर के उद्धार करि। तहार पति के किस्मत में अब ई घर अउर न भोग विलास लिखल रहे। राजू अब ओकर स्थान ली। उ अब बेटा के साथे तहार घरवाला के भी जिम्मेवारी ली। तू भी माई के साथ साथ ओकर औरत जइसन रहबु। उ तहरा जीवन में अब उहे दर्जा रखी जउन पति के होखेला।"
बीना," लेकिन बाबा उ त हमार बेटी के साथ भी ई सब करेला। हम अउर हमार बेटी दुनु एक साथ एक ही आदमी के साथ पत्नी जइसे कइसे रहब? मरद के जेतना औरत मिली उ त खुश रही, इँहा त माई बेटी कइसे नज़र मिलाईब, ई जानके कि दुनु एके मरद के साथ....।"
मलंग बाबा," एमे राजू के का गलती बा। तू अउर तहार बेटी दुनु राजू के प्रति आकर्षित होखेलि। तहार बेटी के त हम पहिले ही कहले रहनि, कि ओकर पहिल बियाह सफल न होई, ओकरा जीवन में दोसर मरद आयी। ओकरे से एकरा बच्चा होई। तहार बेटा ही ओकर बच्चा के बाप बनि। देखअ तू दुनु औरत बारू, अउर पहिले त अइसन बहुत होत रहल कि एक आदमी तीन चार पत्नी रखत रहले। अब रहल बात माई बेटी वाला त, ई घर के सुख शांति अब तू दुनु औरत के ही हाथ में बा। राजू तू दुनु में से केहू के साथ न छोड़ी। माई अउर बेटी भी त पहिले औरत होखेलि। ई घर के भविष्य अब तहरा दुनु के समझदारी में बा। समझदारी ई बा कि तू लोक अब राजू के ई घर के अउर आपन जीवन के मालिक समझ ओकर साथ दे। तू दुनु जेतना राजू से प्यार करेलु, उ से ज्यादा उ तू दुनु से करेला। उ बेचारा तहरा दुनु के बढ़िया से संभारि, ओकर चिंता अउर न बढ़ा।"
बीना," हमार अउर राजू के पहिले से नाजायज़ संबंध स्थापित बा। पति के पीठ पीछे हम राजू के साथ संबंध बनौनी। हमके लागत रहे कि उ खाली हमके साथ अइसन कर रहल बा, पर हमार बेटी के भी साथ उ पहिले से अइसन करत रहल। उ भी राजू के दीवानी बिया। हमके गुड्डी से न राजू से धोखा मिलल।"
मलंग बाबा," उ कइसे धोखा दिहलस, का तू ओकरा से पूछले रहलु कि उ केहू अउर के चाहेला?
बीना," न।"
मलंग बाबा," तब, तू ई बुझलु कि उ खाली तहरा साथ रतिक्रिया करेला। तू सोच तहार बेटी के यौनसुख के इच्छा न होत होई का। अरे एकर उमर में लइकी के दु बच्चा हो जाता। तहार जमाई बाबू, नामर्द रहल, एहिसे राजू के फेर मौका मिलल, गुड्डी के साथ यौन संबंध बनबे के। जब गुड्डी के पति के एतराज नइखे, गुड्डी के एतराज नइखे त तहरा न होबे के चाही। काल के तहार बेटी के लोक बांझ कहत रहियन, अगर राजू तहार बेटी के पेट से न कइलस रही त।सिंह के एक मादा से मन न भरेला। झुंड में चार से पांच या अधिक भी मादा होखेलि। आपन मन से शंका हटो, अउर बेटा अउर बेटी के साथ के स्वीकार कर।"
बीना ने बाबा का आशीर्वाद लिया। फिर बाबा ने राजू को बुलाया। राजू ने उन्हें प्रणाम किया। बाबा ने उसका हाथ देखा और कुछ देर गौर करने पर कहा," राजू तहार भाग में बहुत औरत के प्यार लिखल बा। तहार अनेक औरत से संबंध बनी। लेकिन तू आपन माई अउर बहिन के प्रति ही गंभीर बारू। तू उ दुनु संग संभोग करेलु।
राजू," जी बाबा, ई बात त केहू के नइखे मालूम रउआ के कइसे?
बाबा," तहार भाग्य पढ़ रहल बानि, तहरा ढेर बच्चा होई। तहार माई बीना भी तहार बच्चा के माई बनि, तहार दीदी गुड्डी भी बच्चा होई। तहार पत्नी से तहरा त बच्चा होबे करि। ई घर के तू नया युग के शुरुआत कर देबु। भविष्य में भी तू अउर बच्चा के बाप बनबु।"
राजू," लेकिन बाबा, हमरा त बीना अउर गुड्डी के अलावा केहू अउर पसंद नइखे।"
बाबा," ई दुनु तहार पत्नी जइसन रही, पत्नी न बनि। बाद में तहार बियाह होई अउर ई सबके सहमति से होई। अभी एक दु दिन में तहार पगड़ी होई, तू ई घर के सही मायने में मालिक हो जइबू, ओकर बाद तू माई बहिन के जे कहबू उ करिहन।"
राजू," पर बाबा, हम बीना के आपन सुहागन बनाबे चाहेलि, ओकर ऊपर ई सादा साड़ी अच्छा न लागी। बीना हमार माई जरूर बिया, पर हम ओकरा पत्नी बनाके अपना पास रखे चाहेनि। गुड्डी त विवाहित बिया, लेकिन ओकरा भी हम आपन पत्नी ही बनायेब।"
बाबा," बीना तहार पत्नी अकेले में बन सकेलि, पर दुनिया के सामने न, अकेले में तू ओकर मांग भरके, ओकरा मंगलसूत्र पिन्हा के आपन पत्नी के तरह रख सकेलु। वसही गुड्डी भी चाहे त तहार नाम के श्रृंगार कर सकेलि, पर दुनिया के नज़र में उ पत्नी केहू अउर के रही। अगर तू कहबू त हम तू सबके गुप्त विवाह करबा देब।"
राजू," बाबा, का सच में ई हो सकेला। बीना हमार माई, हमार पत्नी बनि। हम रउवा के बढ़िया दक्षिणा देब।"
बाबा," ओकर चिंता नइखे, लेकिन उ दुनु बहुत कामुक स्त्री बिया, उ दुनु के संभाल लेबु का? तहरा हम कुछ जड़ी बूटी देब, जेकर सेवन से तू हर महिला के खुश कर देबु।" बाबा ने उसे अपने थैले से निकाल कुछ जड़ी बूटी दी और कहा," एक महीना में खाली एक बेर खाये के बा, पूरा महीना तय घोड़ा जइसन हिनहिनात रहबु। राजू ने उसे रख लिया
बाबा थोड़ी देर वहीं लेटे रहे। थोड़ी देर बाद वो चल दिये।
अंदर गुड्डी और बीना की बात वहीं से चालू हुई जहां से बीच में बाधा आई थी।
बीना," अब जब बात खुल गईल बा, त का बताई। तहार बियाह के बाद हम बहुत अकेले रहनि। राजू हमार खूब ख्याल रखलस। धीरे धीरे हम दुनु काफी करीब आइनि अउर एक दोसर के छू छा करे लगनी। अउर फिर हम दुनु एक दोसर के साथ, एतना नज़दीक आ गइनी कि राजू अउर हम माई बेटा के रिश्ता के बावजूद आपस में चुदाई करनी। तहार बाबूजी हमरा पर ध्यान न देवत रहले। उमर के साथ साथ जहां हमार प्यास बढलस, उंहे तहार बाबूजी के घट गईल।
गुड्डी," हम बूझत बानि माई, पर ई जमाना ई समाज न बूझेला। लेकिन हमरा तू दुनु के रिश्ता से कउनु एतराज नइखे। लेकिन राजू तहरा से रुसल बा। तू जउन उ दिन ओकरा थप्पड़ मार देलु।
बीना," हम उ दिन भावना में बह गईल रहनि। हमके बड़ा अफसोस बा गुड्डी।"
गुड्डी," राजू के मनाबे खातिर, तहरा कुछ करे के पड़ी।"
बीना," हम सबकुछ करब राजू के बिना हम न रह सकेनि।"
गुड्डी," त फेर राजू के कइसे मनेबु?
बीना," औरत के देख के त ऋषि मुनि पिघल जावेला। राजू त लइका बा। काल से हम ओकरा रिझाईब। बहुत जल्दी हम ओकरा फेर से फँसा ली।"
गुड्डी," माई, हमार अउर राजू के रिश्ता के स्वीकार कर ल। हम दुनु तहार संग में रहब।"
बीना कुछ नहीं बोली। गुड्डी जानती थी कि वो अभी भी थोड़ी नाराज़ है, और ये नाराज़गी वक़्त के साथ चली जायेगी। जब बातें इतनी खुल के हो गयी तो एक दिन सब खुल ही जायेगा। अगले दिन से बीना राजू को मनाने और रिझाने के लिए अक्सर उससे चिपकने का बहाना खोजती। वो राजू के इर्द गिर्द रह अपनी चूचियाँ छुआती, तो कभी उसके लण्ड पर हाथ फेरती।
बीना राजू को उकसाने के लिए, सिर्फ साया और ब्लाउज में काम कर रही थी। राजू बीना को देख समझ गया था कि वो उसे अपनी ओर आकर्षित करना चाह रही है, पर गुड्डी की बात मान वो बीना को भाव नहीं दे रहा था। वो राजू के सामने अपने चूचियों और गाँड़ को अच्छे से प्रदर्शित कर रही थी। बीना राजू को बुला उपर की रैक से बोतल उतारने बोली। राजू आया और बीना जानबूझ के उसके आगे खड़ी रही। ऐसे में बीना की गदरायी गाँड़ राजू के लण्ड से टकराई। बीना यही चाहती थी, वो जानबूझ कर गाँड़ उपर नीचे कर राजू के लण्ड को उकसा रही थी। राजू ने कुछ नहीं कहा वो बस बीना की उत्तेजना देखना चाहता था।
बीना वैसे ही खड़े खड़े बोली," राजू हमके माफ कर दे। हमरा से गलती हो गइल। तू हमसे नाराज़ होके, एतना बड़ा सज़ा मत दे। हम त बानि पागल, तभी होश न रहे। भूल जो, हमरा खातिर।"
राजू कुछ नहीं बोला। उसने डिब्बा उतार उसके आगे रख दिया।
बीना," देख न गुड्डी राजू खातिर हम आज साड़ी भी न पेन्हनी। साया ब्लाउज में घूम रहल बानि, जइसन तू कहले रहलु। हमके अइसन देखके उ कभू हमके छोड़ न सकेला, पर जाने का आज त उ छुलस भी न।"
गुड्डी," तहरा कुछ अलग करेके पड़ी। उ बहुत नाराज होई। माई तू कुछ अइसन कर जउन से तहार बदन के खुशबू राजू तक पहुंचे। उ तहार बदन के खुशबू सूंघ जरूर तहरा पास आई।"
बीना," हमहु त पागल बानि, हमके जीवन के अइसन मोर पर, राजू के रूप में असली प्यार मिलल। ओकरे नाराज़ कर देनि।"
गुड्डी," कउनु बात न माई, जिनगी में अइसन होता। जहां प्यार बा ऊंहा नोकझोंक होता। राजू तहरा छोड़ि न, घबरा मत। भगवान राजू के तहरा किस्मत में लिखले बाड़े। तू आपन कच्छी खोल अउर राजू के सामने खोल। ओकरा देखा के कच्छी छोड़ दे। उ जब तहार कच्छी सूँघि त जरूर तहरा पाछे आई।"
बीना को गुड्डी की ये बात जँच गयी। उसने देखा राजू नहाने जा रहा था। बीना भाग के राजू से पहले घुस गई। राजू ने कुछ नहीं कहा। अंदर जाकर बीना ने अपनी कच्छी खोली जो कि उसके बूर के रस से भीगी हुई थी। उसने एक बार अपनी कच्छी खुद सूंघी, बड़ी तेज गंध थी। उसने कुछ देर अंदर रहकर पेशाब करने का बहाना किया। फिर साया घुटनों तक उठा मटकते हुए, बाहर निकल गयी। बीना को पूरा विश्वास था कि राजू उसके यौनांग की गंध सूंघ जरूर उसे उठा ले जाएगा।"
राजू बीना के निकलते ही अंदर घुस गया। अंदर जाकर उसने बीना की बूर के रस से भीगी, मादक गंध वाली कच्छी को देखा। राजू ने रस्सी पर लगी उस कच्छी को सूंघा और उसे आत्मसात करने लगा। अपनी माँ की बूर की ताजी गंध उसे अपनी ओर बुला रही थी। राजू ने हाथ बढ़ा कच्छी को उठाना चाहा, तो उसे गुड्डी की बात याद आ गयी," माई तहरा पास खुद आई, तब तक तू न ओकरा छुहिया, न ओकर कपड़ा, पूरा मूड खराब बना के रख ओकरा पर। उ बेचैन होके खुद लंगटी होके चुदाबे आयी।"
राजू मन ही मन बोला," गुड्डी दीदी ई कइसन स्थिति में डाल देलु हमके, भूखल के सामने खाना त बा, पर खा न सकेला। मन होता अभिये बीना के उठाके बिछौना पर ले जाई। का मस्त गंध ह, ओकर बूर के।"
उधर बीना का दिल जोड़ों से धड़क रहा था, जाने वो क्या कर रहा होगा उसकी कच्छी से। बीना गुड्डी से बोली," गुड्डी तनि देख न उ कच्छी के साथ का करत बा।"
गुड्डी बीना की उत्सुकता देख बोली," अच्छा, रुक।"
गुड्डी ने छेद से देखा कि राजू उसकी कच्छी बिना छुए सूंघ लण्ड हिला रहा था। गुड्डी को गुस्सा आया कि राजू को समझाने के बावजूद वो बीना की कच्छी सूंघ मूठ मार रहा है। पीछे बीना गुड्डी से बोली," गुड्डी बता न का करेला उ हमार कच्छी साथ? सूँघत बा का, मूठ मारत ह का?"
गुड्डी," न माई, उ त कच्छी के तरफ देख भी न रहल बा।"
बीना का चेहरा उदास हो गया। वो गुड्डी की बातों पर विश्वास कर चुकी थी। वो वहां से चली गयी और खाना पकाने लगी। गुड्डी फौरन अंदर घुसी और राजू से बोली," तहरा कहले रही न, अभी कुछ मत करिहा। त फेर अभी का करत बारअ।"
राजू," कच्छी सूँघके बर्दाश्त न भईल, एहिसे मूठ मारत लगनि।"
गुड्डी," माई के के कच्छी सूंघ के तहार ई हाल बा, त माई के बूर मिली त का करबअ।"
राजू," मान त गईल बिया बीना, ओकरा हमके पास ले आबा, आज रतिया में।"
गुड्डी," राजू, अभी न, पहिले पछताए दे माई के, तहार लांड खातिर तड़पे दे। काल तेरही बा, काल राति उ खुद आई तहरा पास। औरत के पाबे के असली मज़ा तब बा जब उ खुद चलके तहरा पास आये। काल तहार पगड़ी के रश्म होई,तू घर के मालिक बन जइबू। ई घर के हर चीज सजीव अउर निर्जीव दुनु तहार कब्ज़ा में आ जाइ। माई त खुद चलके तहरा आपन मालिक बनाई। बस तू कुछ उल्टा सीधा न करिहा। माई पर कउनु रहम मत खो। काल रात माई के साथ तहार एक नया रिश्ता बन जायीं, जहां तू मालिक अउर उ तहार दासी बन जाई। ओकरा आपन गलती के एहसास होबे के चाही। चुदाई भी वसही करिहा जइसे ओकरा पर तु एहसान करत बारअ।"
राजू," ठीक बा दीदी, लेकिन ई खड़ा लांड के का करि।"
गुड्डी अपने बाल समेट, मुस्कुराते हुए घुटनों पर बैठ गयी और बोली," एकरा हम देख लेत बानि। बदमाश कहीं के।"
गुड्डी ने उसका लण्ड चूसना शुरू किया। वहां गुड्डी ने उसका लण्ड चूस उसका पानी पी गयी और जाते हुए बीना की कच्छी भी ले गयी। जब राजू नहा के निकला तो उसने बीना की कच्छी वापिस वैसे ही रख दी।"
गुड्डी ने बीना को आके बोला," माई, राजू तहार कच्छी छुलस भी न।"
बीना बोली," कउनु बात न, हम कुछ अउर सोच लेले बानि।"
गुड्डी," का?"
बीना गुड्डी को रोटी दिखाते हुए बोली," ई देख।"
बीना ने इधर उधर देखा और ताज़ी बनी रोटी को अपने बूर पर मल दी। उसके बूर से रिसता पानी घी की तरह मल दिया। वो जानती थी कि राजू को ये गंध उत्तेजक कर देगी। बीना ने मौका देख, सभी रोटियों में बूर का पानी मल दिया।
बीना," अब तू खाना राजू के खातिर ले जो। जब उ खाई त माई के बूर याद आई।" वो बेशर्मी से बोली। गुड्डी ये चाहती थी कि बीना चुदने से पहले पूरी तरह बेशरम हो जाये और राजू उससे जो मर्ज़ी करवाये।
गुड्डी राजू के लिए खाना ले गयी। राजू ने जैसे ही रोटियां उठायी तो उसपर लगी बीना के बूर का देसी घी की गंध की महक सूंघ पागल हो गया। राजू ने कहा," गुड्डी दीदी, एमे से त बूर के पानी के महक आता।"
गुड्डी," माई ही दिहलस बा, रोटी पर असली देसी औरत के घी लगाके। बेटा मजबूत होखे के चाही न। जउन बाद में चोदी ओकरा जम के। तू त चोदू बेटा बा माई के।"
राजू बोला," माई लागत बा बहुत ज्यादे चुदासी हो गइल बा। अइसन उ कभू न कइलस कि आपन बूर के पानी रोटी पर लगाके दिहलस। लागत बा उ बेचारी वासना में जरत बा।"
गुड्डी," आज न काल। अगर तू आज चोदबअ माई के त तहरा उ अधिकार न मिली जउन तहरा चाही ओकरा उपर। हम चाहत बानि की उ खुद तहरा पास आके लंगटी खड़ा हो जाये, अउर तहरा से चुदाबे खातिर भीख मांगे। तब तू जउन कहबू उ करि। तब माई के आपन वास्तविक स्थिति के ज्ञान होई, कि तू अब घर के मालिक बारअ। स्त्री के भोगे से पहिले, स्त्री के चरम उत्तेजना जरूरी बा। अइसन की उ तहरा निहुरा करे आपने बदन भोगे खातिर।"
राजू इतने में बीना के बूर के पानी से लबरेज रोटियां खा चुका था। गुड्डी उसको देख हँसी। राजू बोला," सही कहेलु तू, लेकिन बीना के बिना बर्दाश्त नइखे होत।"
गुड्डी थाली उठा बोली," आज त रोटी से काम चला, काल त माई के झांट वाला बूर मिली, चाभे खातिर।"
राजू का लण्ड टनटना गया था। उसने गुड्डी से कहा," आज राति हम भूंसा वाला घर में तहार इंतज़ार करब।"
गुड्डी शरारत से बोली," उ काहे?"
राजू ने उसके चूचियों को दबा दिया और बोला," माई से पहिले बेटी के चोदे के चाही।"
गुड्डी बोली," आह...राजू बड़ा बदमाश बारअ। अभी तू जो काहे शाम के भोज के तैयारी करेके बा। हलवाई सब आ गईल बा। समान सब लाबे के बा। तू भी थकल रहबु, हम भी पता न रात में समय मिली कि ना?
राजू," हम इंतज़ार करब।"
इतने में अरुण आ गया था। राजू और अरुण शाम के भोज की तैयारी करने लगे। शहर जाकर दोनों ने जरूरी सामान लिया। फिर घर आकर शामियाना लगवाया। राजू सब जगह बराबर ध्यान दे रहा था। दोपहर तक सारी तैयारियां हो चुकी थी। शाम होते ही लोग आने लगे। राजू सबसे मिलजुल रहा था। सबलोग राजू को सांत्वना दी रहे थे। राजू ने सबका धन्यवाद दिया और सबको भोजन पर बिठाया।
थोड़ी देर में मंत्री जी भी आये। जिससे राजू की धाक और बढ़ गयी। मंत्री जी राजू के बगल में बैठे। राजू ने उन्हें भी भोजन करवाया। अपने परिवार से मिलाया। रंजू भी वहीं थी, तो राजू ने बोला कि रंजू चाची को अगले चुनाव में उम्मीदवार बनना है, और उनका समर्थन जरूरी है। मंत्री ने जब सुना कि वो फौजी की विधवा है तो उसके जीतने के आसार उसे नज़र आये जिससे पार्टी भी मजबूत होती। उसने रंजू को पूरा समर्थन देने की बात कही। गांव के लोग अब राजू का और सम्मान करने लगे। थोड़ी देर बाद वो चले गए। रात दस बजे तक ये सारा कार्यक्रम चला। उसके बाद सब सो गए। राजू भी थक चुका था। तभी उसे याद आया कि, उसने गुड्डी को चोदने के लिए बुलाया था। रात के बारह बज रहे थे। वो चुपके से उठ भूँसे वाले घर में गया। वहां पहुंच उसने देखा कि कोई नहीं है, वो निराश हो उठा और लौटने लगा। अभी वो घर से बाहर कदम रखा ही था, कि किसी ने उसे पीछे से पकड़ लिया। उसने देखा वो महिला के हाथ थे। रात के अंधेरे में उसकी चूड़ियों की आवाज़ से उसने उसके महिला होने का अनुमान लगाया था। राजू के चेहरे पर मुस्कान तैर गयी। दोनों अंदर आ गए और राजू ने दरवाजा बंद कर दिया। वहां बहुत अँधेरा था। राजू ने कहा," हमरा बिस्वास रहे तू अइबू।"
उसने राजू का हाथ पकड़ अपने गीले बूर पर रख दिया।
राजू," बाप रे, एतना पानी, लागत बा, कउनु झड़ना बा।"
कुछ ही देर में दोनों में गुत्थम गुथाई शुरू हो गयी। प्यासे होठ आपस में टकराने लगे। राजू ने जब उसका चुम्मा लिया तो उसे शक हुआ कि वो गुड्डी है। उसने उसे खुद से अलग किया और उसके चेहरे पर हाथ फेरा और गौर से देख चौंक गया। वो उसकी बुआ बंसुरिया थी।
राजू," बंसुरिया फुआ तू, इँहा का करत बारू?
बंसुरिया," उहे जउन तू आपन गुड्डी दीदी के साथ करत रहलु, उ दिन। हम सब देख लेनी। आज जब तू गुड्डी के मिले खातिर इँहा बुलेलु, उ भी हम सुन लेनी। भैया हमके बतौले रहले कि तहरा अउर गुड्डी में अवैध संबंध बा।"
राजू," उ कब ?
बंसुरिया," बताएब, लेकिन पहिले हमके चोद न राजू।"
राजू," लेकिन तू त फुआ बारू, तहरा संग कइसे?
बंसुरिया," फुआ बानि, माई थोड़े। हम सच कहत बानि, तहरा खूब मजा देब। देख न बूर केतना पनियाईल बा। हमके लौड़ा चाही राजू तहार।"
राजू ने सोचा, गुड्डी न सही फुआ ही सही वैसे भी पिछले दो तीन दिन से सब शांत ही था। उसकी बुआ भी त कड़क माल थी।
राजू ने उसकी बूर में उंगली घुसाई और बोला," फूफा चोदत नइखे का तहरा।" बंसुरिया अपने बूर में हुए हमले से चिंहुक उठी और राजू का लण्ड पकड़ बोली," अगर चोदत रहित त हिंया तहरा साथ न रहति।"
दोनों वहीं भूँसे के ढेर पर गिर पड़े। राजू ने बंसुरिया के होठों पर अपने होठों का युद्ध शुरू कर दिया। दोनों आपस में फिर गुत्थम गुथाई में एक दूसरे के उपर नीचे होने लगे। कभी वो पलट के उपर आती, तो कभी राजू। बंसुरिया तो पिछले तीन चार महीनों से नहीं चुदी थी। उसके अंदर जबरदस्त कामवासना भड़की हुई थी। कुछ ही पल में राजू ने बंसुरिया को नंगा करना शुरू कर दिया। पहले उसकी साड़ी उतरी, फिर ब्लाउज। इसके बाद, उसकी ब्रा उतरी और फिर उसका साया का नारा भी राजू ने खोल दिया। बंसुरिया पूरी नंगी होने के लिए अपना साया भी उतार दिया। राजू अभी भी धोती में था।
बंसुरिया बोली," तू सही में भैया जइसन ही बुझा रहल बारू। उ हमके असही लंगटी कइके, खुद धोती में पड़ल रहत रहले। अब जउन काम उ करत रहले, उ काम तहरा करेके पड़ी। हाँ, उ भी आपन बहिन के चोदत रहले। तहरा से अब हमके इहे चाही।"
राजू," का बाबूजी तहरा चोदत रहले का?
बंसुरिया," हाँ, बियाह के पहिले से। तहार फूफा के त तनि सा लुल्ली बा, हमके बच्चा भी न होत रहल। त भैया हमके पेट से कइके, बच्चा दिहलस। तहार मधु दीदी तहार बाबूजी के ही संतान बा।"
राजू," वाह...फुआ तू दुनु त खेलल खिलाड़ी निकललु। एकर मतलब ई खानदानी बा।"
बंसुरिया," ई घर में कुछ बा, ई खानदान में हर पीढ़ी में बहिन भाई से फंसत आईल बा। हर पीढ़ी में भाई बहिन के चोदेला।"
राजू," लागत बा तू ई घर के बारे में अउर भी बहुत कुछ जानेलु?
बंसुरिया," ई घर के अतीत में बहुत गहरा राज बा। इँहा के कोना कोना कौटुम्बिक व्यभिचार के गवाह बा। इँहा अइसन अइसन चीज भईल बा, जेकर कल्पना न कइल जा सकेला। ई घर के मरद हमेशा, घर के औरत के पीछे दीवाना रहेला।"
राजू," का हमके बतेबु न का?
बंसुरिया," बूर में लांड घुसा अभी, ओकरा खातिर अलग से बइठे के पड़ी।" ऐसा बोल बंसुरिया ने लण्ड बूर में घुसा लिया और खुद उछल उछल कर चुदने लगी। राजू अपनी बुआ को इस तरह छिनाल की तरह चुदते हुए देखने में मज़ा आ रहा था।"
राजू उसकी चूचियों की घुंडी ऐंठते हुए बोला," फुआ, तू चिंता मत कर, बाबूजी के कमी हम पूरा करब। तहरा कभू लांड के कमी न महसूस होई।"
बंसुरिया," राजू, तहरे से त आशा बा। अब तू ई घर के मालिक हो गईलु।"
राजू," तहरा निराश न करब। लेकिन ई घर के कइसन राज बा, ई जाने के हक़ हमरा बा।"
बंसुरिया," बिल्कुल बा, लेकिन अभी न। फिलहाल ई जान ल कि तहार बाप अउर हम बाप बेटी के अवैध संबंध के पैदाइश बानि। मतलब ई कि तहार दादी, आपन बाप से चुदवाके हमके पैदा कइलस। अउर बाप के मरे के बाद बाद उ आपन भाई के साथ कहूँ चल गईल।"
राजू अचरज में था। उसे कुछ समझ में नहीं आया। वो अपनी बुआ से और सुनना चाहता था पर वो कुछ बोलने के मूड में नहीं थी। वो बस चुदना चाहती थी। दोनों आपस में उलझे हुए, वासना के समुंदर में उतर गए थे।
राजू के लौड़े का आनंद अलग ही था। बंसुरिया कुछ देर के लिए भूल ही गयी थी कि उसके बड़े भाई का देहांत हुआ है। राजू के धक्कों को बंसुरिया किसी रंडी की तरह लपक लपक के ले रही थी। मलंग बाबा के कहे अनुसार उसे एक और कामुक औरत मिल गयी थी। राजू को एक से एक चुदक्कड़ माल मिल रही थी। वैसे तो उसका आकर्षण बीना और गुड्डी होती थी, पर उसकी बुआ में भी कम आग नहीं थी। बंसुरिया अपने बाल खोल राजू के लण्ड पर कूद रही थी। उसके उछलने से उसकी चूचियाँ फुदक रही थी। उसके गोरे गोरे चूतड़ बार बार नीचे आकर राजू की जांघों से टकरा रहे थे।
बंसुरिया," राजू बेटा, अब हमहु तहार जिम्मेवारी बानि। पहिले तहार बाबूजी हमार जवानी के खेत पर हल चलावत रहे। अब ई खेत पर तु आपन हल चलाबआ। एतना जोत ई खेत के, कि अगर दु महीना बरसात भी न हो, त खेत जुताई के खातिर तैयार रहे।"
राजू," जुताई न चुदाई बोल। लजात बारू का, बूर में लांड लेबु सीधा सीधा बोल ना। बाबूजी के सारा जिम्मेवारी हमार बा। तू भी हमार जिम्मेवारी बारू। बोल त तहरा हिंये रख लेब फुआ रानी।"
बंसुरिया," तहार लौड़ा देख के मन त होता, पर जायके बा काल। लेकिन हम जल्दी वापस आएब। तहरा साथ अभी बहुत अश्लील अउर छिनरी जइसे रहे के बा।"
बंसुरिया पूरी तरह राजू के उपर चुद रही थी। राजू तो भूखा शेर था और यहां हिरणी खुद अपना शिकार करवाने आयी थी। राजू ने उसे पूरी रात जी भर के चोदा। बंसुरिया सारी रात अलग अलग आसन में चुदती रही। एक घंटे बाद उनकी चुदाई खत्म हुई। राजू बंसुरिया के बूर में सारा माल निकाल दिया। बंसुरिया अपने कपड़े उठा कर राजू के सामने ही ठीक करने लगी। जाते वक्त बंसुरिया राजू को चूम उसे थोड़ी देर बाद निकलने बोली और अंत में फुआ बोली," देख काल हम चल जाएब, पर तू हमके बराबर बुलावल करिहा। समय निकालके हमरा पास चल आवल करिहा। तहरा तहार बाबूजी के कसम बा।"
बंसुरिया चुदवाके चली गयी। राजू के हाथ एक और मुर्गी लग गयी थी।
अगले दिन घर पर काम फिर से शुरू हुआ। आज क्रिया करम का अंतिम और तेरहवा दिन था। राजू की आज पगड़ी होने वाली थी। गांव के बुजुर्ग लोग आकर उसे इस घर की मिलने वाली जिम्मेवारी की बधाई दे रहे थे और आशीर्वाद भी दे रहे थे। राजू ने नया कुर्ता और धोती पहनी थी, आज वो इस घर का मालिक बन रहा था। उसकी माँ बीना उसकी बहन गुड़िया और उसकी बुआ बंसुरिया सब उसे ही निहारे जा रहे थे। उनके नज़रों में तो राजू से बड़ा मर्द कोई और नहीं था। राजू एक खास स्थान पर बैठा हुआ था। उस जगह गुड्डी और बंसुरिया ने अल्पना बनाई थी। बांस के बने एक बड़े कटोरे में, कुछ पूजा के समान भी रखे थे जैसे, धान, दूभ, अक्षत, चंदन इत्यादि।
गांव के पांच बूढ़े बुजुर्ग मर्द उसके माथे पर पगड़ी पहनाई। उन सबने उसे आशीर्वाद दिया। उसकी पगड़ी खत्म हुई तो, बंसुरिया उसके पास आई और उसे काला टीका लगा दी। बंसुरिया बोली," राजू, आज हमके जाय के बा।लेकिन हम बहुत जल्दी आएब।" राजू अपनी नई माल को जाने नहीं देना चाहता था। वो बंसुरिया से बोला," तहरा जल्दी ही हम बुलाएब, अगर जरूरत नइखे त रुक जो।"बंसुरिया ने उससे कहा कि उसका जाना जरूरी है। थोड़ी देर में उसकी बुआ उसके फूफा के साथ वापिस चली गयी।
बीना राजू के पास आ उसे तिलक लगाई और रिवाज के अनुसार एक माँ के नाते अपने पल्लू से उसका चेहरा पोछा। राजू को उसका नंगा पेट दिख रहा था। बीना की नाभि और उसकी गहराई देख वो बहक रहा था। आखिर इस घर का मालिक बन उसे सबसे पहले बीना को ही अपना बनाना था। बीना अपने पति की तेरहवीं पर भी काम वासना से ओत प्रोत हो रही थी। उसके सब्र का बांध आज टूटने वाला था। इतने दिनों से बिना चुदायी वो पागल सी हो रही थी।
धीरे धीरे सब लोग चले गए। घर में बीना, गुड्डी और राजू थे। राजू आज छत पर सोने चला गया। घर के चारदीवारी में उसकी मां के अंदर वासना की प्यास जागने लगी थी। वो राजू को याद कर बेचैन हो रही थी। एक तरफ उसके पति की आज तेरहवीं थी और एक तरफ वासना का समुंदर मन में हिलोड़े मार रहा था। ऐसी स्थिति में अब उसे खुद को रोक पाना मुश्किल था। बहती बूर, बेचैन बदन और अधूरे अरमान उसे राजू की ओर खींच रहे थे। आखिरकार वो उठी और चादर ओढ़ कमरे से निकली और सीढ़ियों की ओर बढ़ी। बीना सीढ़ीयां चढ़ रही थी, गुड्डी पीछे से उसे देख मुस्का उठी। वो जानती थी बीना अपनी काम पिपासा बुझाने उपर जा रही थी। इस घर की सबसे कीमती चीज़ आज राजू को मिलने वाली थी।