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Romance मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक .......

रागिनी की कहानी के बाद आप इनमें से कौन सा फ़्लैशबैक पहले पढ़ना चाहते हैं


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Shikari_golu

Well-Known Member
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10,019
189
Ragini, anu, praval......ye saauad inocent ho sakte hai...

par poonam, mohini, ritu....ye inocent nhi hoge......

Ye baat 10 updated tak ki hai....

yahs sirf 1 baat samjh nhi aai....kya ragini ki maa aur bhabhi se vikram ka koi rishta tha.....

mamta jail kyo gai...kya usne apne pati ko mara....ye ho sakta hai....

chalo next time...time milega to aage dekhege......lage raho.....aur update jaldi kare sir...kitna late likha aapne.....?
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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Ragini, anu, praval......ye saauad inocent ho sakte hai...

par poonam, mohini, ritu....ye inocent nhi hoge......

Ye baat 10 updated tak ki hai....

yahs sirf 1 baat samjh nhi aai....kya ragini ki maa aur bhabhi se vikram ka koi rishta tha.....

mamta jail kyo gai...kya usne apne pati ko mara....ye ho sakta hai....

chalo next time...time milega to aage dekhege......lage raho.....aur update jaldi kare sir...kitna late likha aapne.....?
bhai aage padho..............sare raj khulte chale gaye hain.............
ab tak koi suspense ya chhupi identity nahin bachi..............30th update t ak sab samne hain
ab in sabke beech ki kahaniyan samne ayeingin

"pyar, hawas, moh, lalach, dhokha, nafrat, samarpan, balidan -------------- yani trishna aur tushti .............sabkuchh......ek pariwar ke sadasyon ke beech"
 

Shikari_golu

Well-Known Member
8,169
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bhai aage padho..............sare raj khulte chale gaye hain.............
ab tak koi suspense ya chhupi identity nahin bachi..............30th update t ak sab samne hain
ab in sabke beech ki kahaniyan samne ayeingin

"pyar, hawas, moh, lalach, dhokha, nafrat, samarpan, balidan -------------- yani trishna aur tushti .............sabkuchh......ek pariwar ke sadasyon ke beech"

Bilkul....30th updates tak jo bhi hua...wo batana mat...warna padhne ka kya matlab....?

Aaj raat ko saayad kuch aage tak ho jayga....aap lage raho....
 

Rahul

Kingkong
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70,687
354
अध्याय 30

“ऋतु बेटा कब तक आओगी घर? हम सब भी तुम्हारे साथ ही खाना खाएँगे” मोहिनी ने ऋतु से फोन पर कहा

“माँ अभी हम समालका हैं करीब 10 बजे तक घर पहुँच जाएंगे... खाने की आप चिंता मत करो हम रास्ते से पाक कराकर ला रहे हैं... रागिनी दीदी और सब कहाँ हैं?” ऋतु ने कहा

“खाना तो हमने बना लिया है, रागिनी और शांति यहीं मेरे पास बैठी हैं...तीनों बच्चे ऊपर पढ़ाई कर रहे हैं” मोहिनी ने कहा फिर गहरी सांस लेते हुये बोलीं “तुम्हारे पापा का अब भी कुछ पता नहीं चल रहा”

“कोई बात नहीं.... हम पहुंचते हैं...10 बजे तक... अप लोग परेशान ना हों” ऋतु ने दिलासा देते हुये कहा और फोन कट दिया

.......................................................

रात के साढ़े नौ बज रहे थे रागिनी, मोहिनी और शांति तीनों अब भी हॉल में सोफ़े पर बैठी हुई थीं...... साथ ही दूसरे सोफ़े पर तीनों बच्चे भी आकर बैठ गए थे सबकी निगाहें बार –बार घड़ी की ओर जा रहीं थीं... सबको ऋतु के आने का इंतज़ार था तभी बाहर गाड़ी रुकने की आवाज आयी, फिर दूसरी गाड़ी भी रुकी तो प्रबल बाहर निकला, वो दरवाजे तक ही पहुंचा तभी पहली गाड़ी में से एक लड़का बाहर निकला और उसके साथ ऋतु। लड़के को देखकर प्रबल चौंका क्योंकि वो लड़का बिलकुल प्रबल का हमशक्ल था.... गाड़ी बिलकुल गाते के सामने रोकी गयी थी और रात के 10 बजे थे तो आसपास कोई भी ऐसा नहीं था जिसकी नजर उनपर पद सकती। प्रबल कुछ कहने को हुआ तभी ऋतु ने आगे बढ़कर प्रबल का हाथ पकड़ा और अंदर को चली आयी, पीछे पीछे वो लड़का भी अंदर आ गया...बाहर उस गाड़ी और दूसरी गाड़ी के गेट खुलने की आवाज अंदर सुनाई दी और कुछ कदमो की आहट घर में घुसती मालूम पड़ी।

इधर ऋतु और प्रबल को देखकर अंदर सबके चेहरे खिल उठे लेकिन उनके पीछे अंदर घुसते उस लड़के यानि समर को देखते ही सबकी आँखें आश्चर्य से खुली की खुली रह गईं

“ऋतु ये तो प्रबल...” रागिनी ने बोलना चाहा तो ऋतु ने इशारे से उसे चुप रहने को कहा और सबको अपने पीछे आने का इशारा करती हुई प्रबल और समर के साथ रागिनी के बेडरूम में घुसकर दोनों को अंदर जाने का इशारा किया और खुद बाहर निकली

“माँ, दीदी आप इन सब को लेकर चलो... में बाहर से सबको लेकर आती हूँ... और अभी कोई कुछ नहीं बोलेगा” ऋतु ने कहा तो वो सब अंदर की ओर बढ़े तभी बाहर से विक्रम यानि रणविजय और नीलम ने सुशीला के साथ हॉल में कदम रखा तो ऋतु ने उन्हें भी अंदर मोहिनी वगैरह के पीछे-पीछे जाने का इशारा किया और इन लोगों के पीछे आ रहे धीरेंद्र, निशा, भानु और वैदेही को भी अंदर भेजकर बाहर का मेन गेट बंद किया और हॉल का गेट भी अंदर से बंद करके कमरे में पहुंची “सुशीला! ये तुम?” मोहिनी ने जब विक्रम यानि रणविजय और नीलम के साथ सुशीला को कमरे में आते देखा तो चौंककर उसकी ओर बढ़ी। सुशीला ने भी आगे बढ़कर मोहिनी के पैर छूए उसके बाद रणविजय और नीलम ने भी उनके पैर छूए। मोहिनी ने सुशीला को गले लगा लिया और रोने लगी

“चाचीजी आप ऐसे क्यों रो रही हैं, आपको तो खुश होना चाहिए आज 30 साल बाद सारा परिवार एक छत के नीचे इकट्ठा हुआ है...मेरी शादी के समय भी पूरा परिवार इकट्ठा नहीं हो पाया था... तब भी विक्रम भैया और विजय चाचाजी का पूरा परिवार ही गायब था ..........अब चुप हो जाइए, अपने नाती-नातिनों से तो मिल लो.... इन्होने आपका नाम ही सुना है... कभी देखा भी नहीं” कहते हुये सुशीला ने मुसकुराते हुये मोहिनी को अपने साथ चिपकाए हुये ही ले जाकर बेड पर बैठा लिया और सब बच्चों को पास आने का इशारा किया....

तभी सुशीला की नजर शांति पर पड़ी... जो एक कोने में खड़ी हुई थी वहीं उससे चिपकी अनुभूति भी खड़ी सबकी ओर देख रही थी तो सुशीला मोहिनी देवी को छोडकर खड़ी हुई और शांति के पास पहुँचकर उनके पैर छूने लगी तो शांति हड्बड़ा सी गईं

“चाचीजी आप ऐसे अलग क्यों खड़ी हैं.... आइए .... और ननद जी आप भी आओ” सुशीला ने शांति और अनुभूति के हाथ पकड़े और उन्हें भी लाकर मोहिनी के साथ बैठा दिया। तभी ऋतु दरवाजे पर नजर आयी तो उसे भी आकार बैठने का इशारा किया और विक्रम कि ओर देखा तो वो भी उनके पास आ गया लेकिन नीलम अपनी जगह पर ही खड़ी एकटक प्रबल कि ओर देख रही थी... उसकी आँखों में आँसू भरे हुये थे... लेकिन प्रबल वो किसी कि ओर नहीं देख रहा था... नजरें झुकाये खड़ा था रागिनी के पास, उसके साथ ही अनुराधा भी खड़ी थी।

“विक्रम! क्या मुझे इन सबसे नहीं मिलवाओगे....?” अजीब सी आवाज में अब तक चुपचाप खड़ी रागिनी ने कहा तो सभी का ध्यान रागिनी पर गया। विक्रम और सुशीला रागिनी की ओर बढ़े तब तक नीलम आगे बढ़कर रागिनी के पास पहुंची

“दीदी में नीलम, प्रबल की माँ” कहते हुये नीलम ने रागिनी के पैर छूने लगी तो प्रबल ने रागिनी का हाथ कसकर पकड़ लिया

“मेरी माँ सिर्फ ये हैं.... और .........” प्रबल ने गुस्से से कहा लेकिन उसकी बात को बीच में ही काटकर सुशीला बोली

“में आप सब की भावनाएँ समझ रही हूँ.... लेकिन इस सब से पहले में कुछ महत्वपूर्ण बातें आप सबसे कहना चाहती हूँ...... पहली बात तो ये हैं कि अब ये विक्रम नहीं रणविजय सिंह के नाम से जाने जाएंगे ...... विक्रम के जुड़वां भाई और ये इनकी पत्नी नीलोफर जो अब नीलम सिंह के नाम से जानी जाएंगी ... अब इसके पीछे की कहानी ये खुद बताएँगे, दूसरी बात, अब तक हमसे बड़े-बड़े सबने अपने फैसले खुद लिए और जब समय आया उन फैसलों कि जिम्मेदारियाँ लेने का तो एक दूसरे को दोषी ठहराया या छोडकर भाग गए ....अपनी जिम्मेदारियों से मुंह छुपाकर ............ अब से आप सब को भी अपने फैसले लेने का तो अधिकार है......... लेकिन उन फैसलों की जिम्मेदारियाँ भी लेनी होंगी.... क्योंकि में नहीं चाहती कि पहले की तरह परिवार बिखरे और हमारे बच्चों को वो सब सहना पड़े जो हमने सहा है.... प्रबल के बारे में फैसला प्रबल को लेना होगा... कि उसे रागिनी के साथ रहना है या रणविजय के”

“दीदी में एक बार प्रबल से अकेले में बात करना चाहती हूँ” नीलम ने रागिनी से कहा तो रागिनी ने कुछ नहीं कहा बल्कि अपने दोनों हाथ अनुराधा और प्रबल के हाथों से छुड़ाकर दोनों को अपनी बाहों में भर लिया, वो दोनों भी रागिनी से चिपक गए। सुशीला ने भी आगे बढ़कर रागिनी को अपनी बाँहों में लिया और बोली

“दीदी आप ये ना समझें कि हम सब आकर यहाँ अपने फैसले आप पर थोपने लगे.... बस आपके भाई ने इस घर की व्यवस्था को बनाए रखने की ज़िम्मेदारी विक्रम और मुझ पर डाली थी उसे पूरा करने की कोशिश कर रही हूँ... में उनकी तरह कठोर नहीं हूँ.... लेकिन फिर भी समय के अनुसार कड़े फैसले भी ले लेती हूँ.... लेकिन विक्रम भैया.... बस इनको आप अपने ताऊ जी का ही रूप मान लो.... हर बात कहने से पहले निश्चित कर लेते हैं कि किसी को बुरी ना लगे.... और जो बुरी लगने वाली बात होगी, उसे बोलेंगे ही नहीं। अब अभी सबसे पहले हमें विक्रम और नीलोफर की बात जाननी है कि आज ये रणविजय और नीलम क्यों हैं... उसके बाद ही प्रबल को अपना फैसला करना चाहिए... रही आपकी बात... तो दीदी... ये दोनों ही नहीं आपके हम सभी भाई-बहन और हमारे बच्चे सब आपके ही हैं.....आज हमारी पीढ़ी में आप सबसे बड़ी हैं.... लेकिन उन्होने...आपके भाई ने भी कुछ आपके बारे में सोचा है...जो विक्रम की बात सुनने के बाद में आप सबके सामने रखूंगी” कहते हुये सुशीला ने विक्रम उर्फ रणविजय की ओर इशारा किया तो रणविजय ने बोलना शुरू किया

“में अपनी कहानी बाद में सुनाऊँगा क्योंकि वो हमारे परिवार की बहुत सारी घटनाओं से जुड़ी है, में चाहूँगा की अभी प्रबल को ये बताने के लिए दो बातें सामने लाना चाहूँगा .....

पहली कि क्यों हमने उसे अपने से अलग रखा, बल्कि में तो लगभग साथ ही था... नीलू से ही अलग हुआ था वो.... लेकिन इस बात को प्रबल भी जानता है कि उसे कभी माँ की कमी महसूस नहीं हुई होगी.... रागिनी दीदी के साथ रहते हुये................

और दूसरी.......... कि क्यों हमने अपने नाम बदले, क्यों नीलू यहाँ से गायब हो गयी........ क्योंकि ये सबकुछ मुझसे ज्यादा नीलू से जुड़ा हुआ है... इसलिए में चाहूँगा कि नीलू ही बताए”

कहते हुये रणविजय चुप हुआ तो आँखों में आँसू भरे अपराधी कि तरह नज़रें झुकाये सबके सामने खड़ी नीलम ने एक बार सिर उठाकर सबकी तरफ देखा फिर रागिनी के साथ खड़े प्रबल पर नजरें जमा दीं

.............................................................

मेरे पुरखे पटियाला के रहने वाले थे जो अंग्रेजों के जमाने तक पंजाब की एक बड़ी रियासत होती थी, 1947 में जब पंजाब का बंटवारा हुआ और पटियाला-अंबाला-शिमला इन तीन शहरों के अलावा पंजाब के लगभग सभी बड़े शहर पाकिस्तान में शामिल कर दिये गए.... लाहौर, रावलपिंडी जैसे पंजाब के बड़े शहरों में हमारे ज़्यादातर रिश्तेदार रहते थे.... तो मेरे नाना मुजफ्फर हुसैन जो उस समय जवान ही थे और नई-नई शादी हुई थी कोई बच्चा भी नहीं था, उन्होंने भी लाहौर चलने का प्रस्ताव घर में रखा, वो लीग के युवा नेताओं में से थे और पटियाला में उनका खासा वजूद था... इसलिए उनके ऊपर लीग से जुड़े उनके न सिर्फ बड़े नेताओं बल्कि आम जनता का भी दवाब था कि वो पाकिस्तान चलें... जिसे कि हिंदुस्तान का आम मु***न अपना मुल्क मान रहा था... हुसैन साहब को भी लगा कि नया मुल्क बना है तो वहाँ तरक्की भी ज्यादा तेजी से होगी और लीग में भी उन्होने जो अपना कद बनाया है उसका कुछ सियासी तरक्की में फाइदा मिलेगा....

लेकिन परिवार के बाकी सदस्यों ने इससे सहमति नहीं जताई .... उन लोगों का मानना था कि हम पुरखों के जमाने से यहाँ के रहनेवाले थे, हमारा घर-परिवार सब यहीं था तो नई जगह क्यों जाएँ.... कोई सरकारी फरमान ऐसा नहीं था कि सभी मुसलमानों को पाकिस्तान जाना ही पड़ेगा.... जिसकी मर्जी हो जाए और जिसकी मर्जी हो यहीं रहे... हमारे आसपास जो हिन्दू सिख थे उन्होने भी कहा कि हम यहाँ के रहनेवाले हैं और हमें यहीं रहना चाहिए..... उस समय हुसैन इन दलीलों से शांत हो गए और सबकुछ वक़्त पर छोड़ दिया। लेकिन जब पंजाब के उस हिस्से से हिन्दू सिख इधर आने लगे और इधर से मुस्लिम उधर जाने लगे तो कुछ लोगों को आपसी रंजिशें निकालने का मौका मिल गया और उन्होने एक दूसरे पर हमले शुरू कर दिये... जिसका नतीजा ये निकला कि आपसी रंजिश कि छोटी-मोती लड़ाइयाँ अब हिन्दू-मुस्लिम फसाद में तब्दील हो गईं और पूरे पंजाब को उन्होने अपनी जद में ले लिया।

उस वक़्त हुसैन ने फैसला किया कि अगर परिवार से कोई नहीं जाना चाहता तो वो अकेले ही लाहौर चले जाएंगे अपनी बेगम को लेकर... और उन्होने ऐसा ही किया भी...एक दिन चुपचाप दोनों मियां बीवी अटारी पहुंचे और वहाँ से लाहौर.... घर से खाली हाथ गए लेकिन लीग के लोग जो उनके साथ जुड़े हुये थे उन्होने उन्हें लाहौर में बसने के लिए इंतजाम कराये और वो वहीं रहने लगे... वक़्त गुजरने के साथ उनके 2 बेटे और 4 बेटियाँ हुये.... और फिर उनकी शादियाँ-बच्चे....... लेकिन इस दौरान में वही हुआ जो डर यहाँ पटियाला में परिवार वालों को था.... देश बदल गया लेकिन लोग तो वही थे.... लीग, राजनीति यहाँ तक कि कारोबार में भी लाहौर के रहनेवाले लोगों ने अपनी पकड़ बनानी शुरू कर दी और इस ओर से गए लोगों को दरकिनार करना शुरू कर दिया.... क्योंकि उन्हें लगता था कि लाहौर उनका है और ये बाहर से आए लोग उनसे ज्यादा कामयाब होते जा रहे हैं

एक दिन मुजफ्फर हुसैन को लीग के दफ्तर से कुछ लोग मिलने आए और उन्होने उनसे किसी काम को कहा लेकिन हुसैन उसके लिए तैयार नहीं हुये...लेकिन वो अब बहुत डरे हुये और चोंकन्ने रहने लगे तब एक दिन उनके बड़े बेटे मुनव्वर ने उनसे बैठकर बात की कि इसकी वजह क्या है तो उन्होने बताया कि उनकी सबसे छोटी बेटी नाज़िया जो अभी पढ़ ही रही थी पंजाब यूनिवेर्सिटी में उसको इंटेलिजेंस में भर्ती होने के लिए कहा गया है.... अगर नाज़िया इंटेलिजेंस में नहीं जाती है तो उसके साथ तो जो कुछ बुरा हो सकता है होगा ही.... पूरे परिवार को हिंदुस्तानी जासूस साबित करके देश के गद्दारी के जुर्म में मौत की सजा दी जा सकती है। ये सुनकर मुनव्वर भी सकते में आ गया फिर वो बाप-बेटे दोनों ने लीग के उन लोगों से मुलाक़ात कि तो उन्होने बताया कि उनके परिवार पर ये दवाब इसलिए दिया जा रहा है क्योंकि वो उस तरफ के रहनेवाले हैं वहाँ के इलाके में उनकी जान-पहचान, रिश्तेदारियाँ भी हैं नाज़िया को इंटेलिजेंस में जुर्म की छानबीन के लिए नहीं.... हिंदुस्तान में रहकर वहाँ की खुफिया जानकारियाँ जुटाने के लिए भेजा जाएगा... साथ ही उसे वहाँ के स्थानीय लोगों में से अपने एजेंट भी तैयार करने होंगे।

दोनों बाप-बेटे ने जवाब देने के लिए वक़्त मांगा तो उन्हें कहा गया कि एक हफ्ते के अंदर जवाब दें वरना हुकूमत उनके खिलाफ कार्यवाही शुरू कर देगी। घर आकर उन्होने घर के बाकी सदस्यों से भी बात की तो मुजफ्फर के छोटे बेटे ज़ुल्फिकार ने कहा कि कोई भी फैसला करने से पहले एक बार नाज़िया कि भी राय ले ली जाए.... क्योंकि फैसले का असर सबसे पहले और सबसे ज्यादा तो उसी पर पड़ना है और नाज़िया कोई अनपढ़ घरेलू लड़की नहीं यूनिवर्सिटी में पढ़नेवाली दुनिदारी को समझने वाली ज़हीन लड़की है

नाज़िया को बुलाया गया और सारा मामला उसके सामने रखा गया तो उसने कहा कि वो सिर्फ खंडन कि हिफाजत ही नहीं मुल्क के लिए भी इस काम को करने को तैयार है... इस पर मुजफ्फर की आँखों में नमी आ गयी

“नाज़िया जो गलती मेंने की, यहाँ आकर... आज वही गलती तुम करने जा रही हो.... हमारा मुल्क वो है जहां हमारे अपने हों... में लाहौर का नहीं पटियाला का हूँ... ये अहसास मुझे मेरे परिवार या मेरे ज़मीर ने नहीं......... यहाँ के वाशिंदों ने कराया...इस मुल्क की हुकूमत ने कराया... कि मेरा असली मुल्क वो था जहां मेरे घर-परिवार, यार-दोस्त, जान-पहचान के लोग रहते थे.... यहाँ तो हम अपने पंजाब में होते हुये भी बाहरी .... महाजिर हैं....”

“अब्बा आप अपनी जगह सही हैं... और नाज़िया अपनी जगह.... आप पटियाला में पैदा हुये, रहे इसलिए आपको और अम्मी को वो अपना मुल्क लगता है.... लेकिन हम.... हम इसी सरजमीं पर पैदा हुये हैं यही हमारा मुल्क है... और में नाज़िया के फैसले से इत्तिफाक़ रखता हूँ.... रही बात महाजिर होने की तो... वहाँ भी सब आपके साथ नहीं होंगे कुछ तो खिलाफ होंगे ही... ऐसे ही यहाँ भी सब आपके खिलाफ नहीं... कुछ तो साथ देनेवाले हैं ही”

आखिर में तमाम बहस के बाद .... नाज़िया का फैसला उन अफ़सरान को बता दिया गया और उन्होने नाज़िया कि नयी पहचान के दस्तावेज़ बनवाए और उसे ट्रेनिंग देकर हिंदुस्तान भेज दिया गया.... अजमेर की दरगाह पर जियारत और दिल्ली-पटियाला में रिशतेदारों से मुलाक़ात के वीसा पर।

यहाँ आकर नाज़िया ने पहले से मौजूद अपने देश के इंटेलिजेंस एजेंट से मुलाक़ात की और फिर उसका रूट प्लान बना दिया गया कि वो यहाँ से वापस लाहौर जाएगी और उसके बाद राजस्थान के रास्ते वापस हिंदुस्तान में घुसेगी... जिसका इंतजाम अजमेर में मिले एजेंट ने करा दिया... उसके बाद उसे दिल्ली में रुकने और काम शुरू करने का इंतजाम दिल्ली में मौजूद एजेंट ने करा दिया.... और इस तरह नाज़िया ने दिल्ली में अपनी जड़ें जमाना शुरू कर दिया लेकिन उसी वक़्त 1975 में हिंदुस्तान में इमरजेंसी लगा दी गयी और लोगों के बारे में ज्यादा ही छानबीन होने लगी तो किसी तरह से नाज़िया दिल्ली से निकलकर पटियाला पहुँच गयी और वहाँ अपने परिवार के लोगों कि मदद से छुप गयी... उन लोगों ने भी ये जानकर कि वो मुजफ्फर हुसैन की बेटी है... उसका पूरा ख्याल रखा लेकिन इमरजेंसी का वक़्त जैसे जैसे बढ़ता जा रहा था... नाज़िया के लिए हालात मुश्किल होते जा रहे थे तो परिवार के लोगों ने फैसला किया कि ऐसे नाज़िया को रखने से नाज़िया का तो फंसना तय था ही... उन सबको भी सरकार के कहर का सामना करना पड़ सकता है... इसलिए आखिर में फैसला हुआ कि नाज़िया कि शादी परिवार के ही एक लड़के आसिफ से करा दी गयी और खास लोगों जिन्हें पता था कि नाज़िया पाकिस्तानी है... के अलावा सबको बताया गया कि ये एक दूर के रिश्तेदार कि बेटी है... दिल्ली की रहनेवली है... इसके परिवार में कोई नहीं रहा इसलिए ये यहाँ रहने आयी थी और अब उन्होने इसे अपनी बहू बना लिया.... शादी के करीब एक साल बाद नाज़िया ने एक बेटी को जन्म दिया... जिसका नाम नीलोफर रखा गया... नीलोफर जहां।

नीलोफर की कहानी आगे जारी रहेगी

..........................................................
wonderfull update bhaiya ji
 

firefox420

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aapse bhi ek update ki umeed hai kamdev99008 bhiya .. pehle jaldi se Nilofer ki backstory complete karaao fir Vikramaditya Raja saab ki history mein gote lagayenge .. unki sunehre aur maayavi se bhootkaal mein .. ab jyaada intezaar mat karwana ...

waise to ye cut paste kar diya hai .. magar aapka dhyaan kendrit karne ke liye .. ye karna padta hai .. bade bhiya ...
aaj kal maine apna stories ko padhne ka daayra kaafi ghata diya hai .. magar aapki Moksh roj subha sabse pehle check karta hu .. kyonki pata nahi aaj kal kya ho raha hai .. koi nayi story padhne ka mann he nahi karta .. aapki ye story aur anandsngh12 bhai ki Saand aur beech - beech mein apne dear Dr. saab ki story par najar maar leta hoon .. to iss liye aapse jyaada umeed lagaaye hue hoon .. kal shaam tak to ek update kar he dena .. please judge saab ?
 

firefox420

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एक लाख़ व्यूज के लिए बधाईयाँ मित्र...

लिखते रहें .. मनोरंजन करते रहें. :)

arre waah kya baat hai .. Shaitaan ko yaad kiya aur tathaastu .. aap prakat ho gaye .. kayi din ho gaye the aapko dekhe hue .. Dr. saab ko to laga tha ki aap jaasusi karne nikal gaye honge .. magar muzhe to laga tha .. ki Bhaiya Ji ko to bas cigarette fookne ka bahana chahiye .. chalo isi bahane aapse mulakaat ho gayi .. dekhte hai iss hafte .. aapki jaanch padtaal kaha tak pahuchi .. kyonki aap bhi hamaare sanyaam ki poori pariksha le rahe hai ...
 
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kamdev99008

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एक लाख़ व्यूज के लिए बधाईयाँ मित्र...

लिखते रहें .. मनोरंजन करते रहें. :)
:thanks: bhaiya ji...................... ye sab ap sab mitron ke sahyog se hi sambhav hua hai
 
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