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Fantasy मेरी माँ रेशमा

sunoanuj

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Nice story and jabardast update !
 
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ranveer888

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मेरी माँ रेशमा -1



ये कहानी मेरी माँ और मेरे सफर की है, कैसे मेरी घरेलु संस्कारी माँ बहक गई थी एक सफर मे.

पाठक कहानी पढ़ते वक़्त विवेक से काम ले.



कहानी मेरी है यानि की मैं अमित एक छोटे से गांव का रहने वाला हूँ,

नौकरी पैसे ने गॉव कबका छुड़वा दिया था, मैं नॉएडा मे एक अच्छी कम्पनी मे नौकरी करता हुआ, पढ़ने लिखने मे होनहार था, एयर कुछ घर की जिम्मेदारियां जिस वजह से मैंने जल्द ही नौकरी पकड़ ली, मेरी age मात्र 22 साल है,

हम लोग उत्तरप्रदेश के एक छोटे से गांव के रहने वाले है जो की पूर्वांचल मे पड़ता है,

मेरे अलावा मेरे घर में पिताजी - रामशंकर शर्मा (50) मेरी माँ रेशमा जो की अभी 40 साल की ही है, पहले के समय मे शादी मे 10,15 साल का गेप होना आम बात थी,

वैसे मेरी माँ देखने मे बहुत सुन्दर है, जैसा नाम वैसा रूप, कमला कमल की तरह ही खूबसूरत और नाजुक थी.

संस्कारी घरेलु महिला कभी कहीं किसी को गलत नजर से नहीं देखा, पापा को सालो से दमे की बीमारी थी, उनकी सेवा सत्कार सब मेरी माँ के जिम्मे था किसे वो भली भांति निभाती भी थी.

गॉव मे अक्सर लोग मेरी माँ को घूरते थे, उसकी काया ही ऐसी थी लम्बी चौड़ी, गद्दाराया जिस्म, तने हुए, भारी स्तन, कमर पर बिल्कुल सटीक मांस.

नितांब सारी मे कसे हुए हिलते थे, थिरकते थे, इसी थिरकन को देखने के लिए पूरा गॉव मरता था

हालांकि मेरी नजर मैं माँ सिर्फ माँ ही थी, FB-IMG-1738910364973 मैं अक्सर शहर ही रहता था तो ज्यादा ध्यान भी नहीं देता था, गांव के लोग साले होते ही दकियानुसी ख्याल के होते है, मेरा ऐसा मानना था.

खेर मुझसे बड़ी एक बहन भी है जिसकी शादी मेरठ मे हो गई है.

मेरे पापा को दमे की बीमारी है, खेल खलिहन अक्सर मम्मी ही संभाला करती है, वैसे हमारे घर मे कोई कमी नहीं थी,

मैं ही पढ़ने शहर निकल गया था तो वापस गांव जा कर खेती बाड़ी करना मेरी शान के खिलाफ ही था.

खेतो मे मजदूर काम किया करते थे, मम्मी सिर्फ निर्देश दे दिया करती थी, पापा तो धूल मिट्टी देखते ही खासने लगते थे.

सो मैंने गॉव की मिट्टी से दूर रहता ही उचित समझा.

और पढ़ाई के बाद नौकरी भी पकड़ ली.

पूरा गांव मुझपे गर्व करता था, आखिर मैं ही था जो पढ़ लिख कर नौकरी कर रहा था शहर मे.

नॉएडा मे मैंने एक फ्लैट ले रखा था हिसाब मे कुछ मित्रो के साथ रहता था जो की मेरे साथ मेरी ही कम्पनी मे काम करते थे.

उम्र मे मैं ही सबसे छोटा था. अब नॉएडा जयश्री शहर मे अकेले फ्लैट लेना मेरे बस की बात तो नहीं थी.

तो ऐसे ही एक दिन मैं ऑफिस से शाम को घर लौटा, की मम्मी का फ़ोन बज उठा.

करररर.... करर....

हाँ मम्मी प्रणाम, कैसी है आप?" मैंने अभिवादान किया.

"ठीक हूँ बेटा, वो तेरे भाई नवीन की शादी है " मम्मी ने बताया

नवीन मेरे मामा का लड़का जो देहरादून मे रहते थे.



"अरे वाह मम्मी क्या बात कर रही हो, साले ने मुझे बताया भी नहीं "

मैं और नवीन भाई से ज्यादा दोस्त थे बचपन से ही तो मैं उसकी शादी मिस नहीं कर सकता था.

"कब है शादी?" मैंने उत्सुकता से पूछा.

"अगले सप्ताह ही है "

"आप पापा जा रहे है?" मैंने पूछा

"अरे तेरे पापा को तो खासने से ही फुर्सत नहीं है, वो कहाँ जा पाएंगे, सर्दी का मौसम है तबियत ख़राब हो जाएगी तो और दिक्कत हो जाएगी " माँ ने अपनी व्यथा कह सुनाई.

"तो फिर?" मैंने सर खुजाते हुए पूछा.

"तू आ जा ना गांव यही से चलते है " माँ ने सुझाव दिया

"मैं... मैं कैसे आ सकता हूँ माँ, नॉएडा से देहरादून पास ही है, आप आ जाओ यहाँ से हम दोनों साथ चल चलेंगे, मैं आऊंगा फिर वहाँ से जाऊंगा 2,4 दिन तो ऐसे ही निकल जायेंगे "

माँ कुछ सोचने लगी, उधर पापा से कुछ बात करने की आवाज़ आने लगी, जिसका आखरी शब्द था "ठीक है खो... खो... खाऊ..."

मैं समझ गया मम्मी पापा से बात कर रही थी.

"ठीक है बेटा मैं आ जाती हूँ, आज 5 नवंबर है, शादी 11 तारीख की है तो मैं काल रात की ट्रैन पकड़ लेती हूँ"

"वाह... मम्मी मजा आएगा आ जाओ" मैं बहुत खुश था मेरी माँ आने वाली थी, मैं माँ को करीबन एक साल बाद देखने वाला था, नयी नौकरी के चककर मे घर जा ही नहीं पाया था, सिर्फ फ़ोन पर बात हो जाया करती थी,

ज्यादा खुशी मामा के घर जाने की थी, मुझे बचपन से मामा का घर पसंद था.

वैसे भी मेरी नवीन से खूब पटती थी.

"क्या बे इतना क्यों दांत निपोर रहा है किसका फ़ोन था "

अचानक आई आवाज़ मे चौंक गया पीछे देखा आदिल खड़ा था.

मैं बताना भूल गया, जिस फ्लैट मे मैं रहता हूँ वहाँ मेरे साथ 2 दोस्त और भी रहते है,

आदिल, मोहित और प्रवीण, तीनो की age मुझसे बड़ी ही है करीबन 24, 26 साल के है.

"अरे कुछ नहीं यार माँ का फ़ोन था, मामा के लड़के की शादी है देहरादून मे उसी के लिए यहाँ आ रही है " मैंने ख़ुशी का कारण बताया.

तब एक प्रवीण और मोहित भी आ चुके थे कमरे मे.



"क्या.... क्या बे अकेला अकेला देहरादून जायेगा, वहाँ आस पास तो कितनी अच्छी जगह है घूमने की " मोहित ने कहाँ

"हाँ भाई मसूरी पास ही है, हरिद्वार है, गंगा है" प्रवीण चहक रहा था.

"प्लीज भाई हम भी चलते है ना, शादी के बहाने घूम आएंगे "

आदिल ने भी आग्रह कर दिया.

अब मैं कैसे मना करता, वैसे भी खरचा सिर्फ वहाँ जाने का था, रुकने मा इंतेज़ाम तो था ही शादी मे.

मैंने हामी मे सर हिला दिया, आखिर दोस्तों के साथ सेर सपाटा कौन मिस कर सकता था,

हम चारो मे वैसे भी कभी अच्छी पटती थी.

"कब चलना है? आंटी कब आ रही है?" आदिल ने पूछा.

"देख परसो सुबह मम्मी आ जाएगी, तो रात की ट्रैन देख लेते है " मैंने कहा

"ओके आज 5 तारीख है, परसो मतलब 7 की सुबह आंटी आ जाएगी, रात की ट्रैन... ओह... Shit.. यार ये तो एक भी ट्रैन मे टिकट नहीं है " मोहित irctc की वेबसाइट खोले बैठ था.

"अब?" सभी के मुँह से एक साथ निकला.

जबकि मेरे माथे पर परेशानी की लकीरें थी, क्यूंकि मैंने ही माँ को यहाँ आने का सुझाव दिया था,

"8 तारीख की देख ले ना बे " मैंने कहाँ

"अगले 10 दिन मे कहीं टिकट नहीं है यार, देख ही रहा हूँ, शादी का सीजन है सब फुल है " मोहित लैपटॉप मे आंखे गाढ़ाये बैठा था.

हम चारो सोच मे डूब गए थे

"एक आईडिया है, मैं एक कार का इंतेज़ाम कर सकता हुआ" आदिल ने चुटकी बजाते हुए कहा.

"क्या कार से, पागल है क्या इतनी दूर कार से " मैंने आंख भोहे चढ़ा ली.

"अबे सिर्फ 250km ही तो है, मामूली दुरी है, ऊपर से कार रहेगी तो मन मर्ज़ी से जा सकेंगे "

आदिल की बात सभी को हजम हो गई, रुक रुक भी गए तो 5,6 घंटे का सफर है सिर्फ.

हम लोग निश्चित थे, फैसला हो गया था की कार से जायेंगे, लेकिन मैंने माँ को नहीं बताया था, सोचा की आएंगी तो मज़बूरी बता दूंगा.

माँ कौनसा मना करने वाली है.

अगला दिन बीत गया, मम्मी से बात हुई उन्होंने रात की ट्रैन पकड़ ली थी, अगली सुबह 7 बजे मैं और आदिल स्टेशन पर मौजूद थे.

प्लेटफार्म no.5 पर पूर्वांचल एक्सप्रेस धीमी होती जा रही थी,

छरररर...... च्छीहिई..... ट्रैन रुक गई, मेरा दिल धाड़ धाड़ कर बज रहा था, मुझे माँ को देखने उनसे मिलने का उत्साह सा हो रहा था.

ट्रैन रुक गई थी, सामने s5 डब्बे से माँ उतर रही थी, शुद्ध घरेलु भारतीय नारी लाल साड़ी मे लिपटी, लाल लिपस्टिक से रंगे हुए होंठ, गोरी रंगत ली हुई मेरी माँ सामने ही खड़ी थी, ट्रैन रुकी तो माँ समान उठाने के लिए थोड़ा झुकी, माँ के स्तन लगभग पुरे ही बाहर को आ गिरे थे, मैं एकदम से सन्न रह गया,शायद आदिल की भी यही हालात रही होगी, 20211008-213656

मैंने भाग कर माँ के हाथ से बेग ले लिया.

"माँ प्रणाम " और पैरो को छू लिया मैं करीबन एक साल बाद माँ को देख रहा था.

मुझे बहुत आश्चर्य सा हो रहा था माँ को इतना सजा धाजा देख कर, या फिर यूँ कहु मैंने माँ को हमेशा घर के काम धाम, खेतो मे ही उलझा देखा था.

माँ का मैं जैसे कोई नया ही अवतार देख रहा था, माँ साड़ी मे लिपटी हुई थी लेकिन, जिस्म फिर भी अपनी छटा दिखा रहा था, मैंने आज से पहले माँ को कभी स्लीवलेस ब्लाउज मे नहीं देखा था,. लेकिन आज माँ डीपनैक, स्लीवलेस ब्लाउज पहने खड़ी थी, पल्लू भी सीने से हटा हुआ था

एक बार को तो मैंने अपना थूक निगल लिया था.

मैं हैरान था की गांव को औरत इस कद्र सुन्दर भी हो सकती है.

"उफ्फ्फ.... अमित... कैसा है तू " माँ ने मुझे अपने सीने से भींच लिया.

असीम शांति थी इस आलिंगन मे, एक ममता थी अपने बेटे के लिए.

"ठीक हूँ माँ " एक पल को मुझे अपनी सोच पर पछतावा हुआ.

माँ की नजरें मेरे पीछे खड़े आदिल पर गई.

"माँ ये मेरा दोस्त है, आदिल मेरे साथ ही रहता है "

मैंने आदिल की तरफ देखा, जिसकी आंखे माँ पर ही टिकी हुई थी वो अपनी जगह से हिल भी नहीं रहा था, जैसे लकवा मार गया हो.

"आदिल ये मेरी माँ है " मैंने आदिल के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

"ननन... नमस्ते आंटी जी "

माँ ने आदिल कर नमस्ते का कोई जवाब नहीं दिया, कारण मैं समझ गया था माँ की रूडीवाड़ी सोच, गांव का कल्चर. अभी भी धर्म जाती मे भेद करता था.

खेर मैं माँ का बेग ले के आगे चल पड़ा, माँ मेरे पीछे और आदिल माँ के पीछे जैसे किसी रस्सी से बंधा खींचता चला आ रहा था.

मैंने आदिल की हरकत मे कोई तावज्जो नहीं दी.

हम लोग फ्लैट पर आ गए थे, हमें आज रात ही निकलता था.

मोहित और प्रवीण से मैंने माँ का परिचय करवाया, माँ उनसे मिल कर ख़ुश हुई, बस आदिल से माँ का व्यवहार थोड़ा रुखा था.

मैंने महसूस किया प्रवीण और मोहित भी माँ को देखते ही रह गए थे, जैसे एक नजर मे माँ को भर लेना चाहते हो.

मैं खुद भी माँ को कुछ अलग सा महसूस कर रहा था,

सजी सवरी मेरी माँ को साड़ी ढकने से ज्यादा जिस्म दिखा रही थी,

कभी बेग उठाने, सैंडल खोलने को झुकती तो सभी की नजर माँ की तरफ ही जाती, मेरी भी नजर गई माँ के गहरे ब्लाउज से स्तन बहत गिर आने को आतुर दिख रहे थे.

लेकिन मेरी माँ के चेहरे पे कोई भाव नहीं था, वो सिर्फ मुस्कुरा के दूसरे कमरे मे चल दी.

आदिल कार का इंतेज़ाम करने चला गया था. माँ फ्रेश हो के आराम कर रही थी.

मैंने माँ को बता दिया था की कार से चलेंगे, माँ ने मज़बूरी समझते हुए हाँ कर दी थी.



ट्रिन... ट्रिन... कुछ ही समय मे मेरे फ़ोन की घंटी बज उठी

"हाँ आदिल बोल?"

"भाई कार का इंतेज़ाम तो नहीं हो पाया, वो कार वाला दोस्त बाहर गया हुआ है " आदिल ने जैसे बम फोड़ दिया हो.

"साले मदरचोद... अब क्या होगा, माँ को क्या बोलूंगा " मैं गुस्से से उखाड़ गया था क्यूंकि सारा आईडिया आदिल का ही था अब बोल रहा है कार का इंतेज़ाम नहीं हो सकता.



तभी प्रवीण बोला "मेरे पहचान का एक ड्राइवर है, उसके पास गाड़ी है, लेकिन वो खुद ही चलाता है कार रेंट पे नहीं देता "

मरता क्या ना करता " लगा फोर उसे " मैंने हामी भर दी

प्रवीण ने फ़ोन लगाया...

कुछ बात हुई.

"यार अमित ब्रेज़्ज़ा है उसके पास, कार मे स्पेस भी है, लेकिन कार वही चलाएगा, आना जाना 8000 मांग रहा है"

हम लोगो को यही सही लगा हमने बात फाइनल कर दी.

और आज रात 8 बजे कार लाने को बोल दिया.

हम सब लोग तैयार हो चुके थे, माँ भी लाल कलर की साड़ी पहने दिन से भी ज्यादा सुन्दर लग रही थी, प्रवीण और मोहित माँ के साथ हसीं मज़ाक कर रहे थे, जिसका जवाब माँ मुस्कुरा के ही दे रही थी.

करीबन 8.15 पर एक कार बिल्डिंग के बाहर आ कर रुकी.

"सलाम वालेकुम मियां " एक दाढ़ी वाले इंसान मे खिड़की से मुँह बाहर निकाल प्रवीण को सलाम किया.

सामने कार मे बैठा इंसान मुँह पे पान दबाये बैठा था, जिसका सबूत था की उसकी लार मुँह के कोने से टपक रही थी.

अब्दुल कादिर इस कार का मालिक था, देखने मे काफ़ी लम्बा चौड़ा था.



जेसे ही अब्दुल की नज़र मेरी मम्मी पे पड़ी उसकी तो मानो ख़ुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था, वो बुरी तरह मम्मी को ताड़े जा रहा था, मेरे लास खड़ी माँ मॉर्निंग उसने ऊपर से नीचे कई बार देखा, अब्दुल की उमर लगभाग 36 साल होगी

"माँ ये अब्दुल है " मैंने माँ से उसका परिचय कराया क्यूंकि अब्दुल से हम लोग पहले भी मिल चूके थे.

"नमस्ते आंटी जी " अब्दुल के लहजे मे एक अलग ही अंदाज था.

उसकी नजरें माँ के ब्लाउज से झाँकते स्तनों पर थी, शायद माँ के स्तन थे ही इतने कठोर और बड़े की ब्लाउज मे समाते ही ना थे,गॉव मे मैंने कभी इन सब बातो पे ध्यान दिया ही नहीं था या फिर मेरी उम्र ही नहीं थी तब ये सब देखने की.

लेकिन आज अब्दुल की नजर का पीछा किया तो मैं खुद हैतान था, माँ के स्तन वाकई मे बाहर गोरे और बड़े थे, जिसकी छाप ब्लाउज मे साफ जान पडती थी.


मम्मी ने भी हल्का मुस्कुरा कर, झुकते हुए नमस्ते किया और मेरा हाथ पकड़ कर मेरे कान में धीरे से बोली " ये मुल्ले की ही गाड़ी मिली थी तुमको"

"क्या मम्मी आप भी ना, भरोसे का आदमी है अब्दुल " मैंने मम्मी को दिलाशा दिया.

लेकिन मैं हैरान था माँ ने अपने पल्लू को बिल्कुल भी ठीक नहीं किया, ऊपर से झुकते हुए जमीन पर रखे बेग को उठाने लगी, 20231116-124459 जैसे की जो अब्दुल देखना चाह रहा था उसे दिखा रही हो. अब्दुल के चेहरे के भाव शून्य थे, गुटके से भरा मुँह खुला रह गया था, जैसे कोई भूत देख लिया हो

लेकिन माँ के चेहरे के भाव और कुछ कह रहे थे,

माँ मुझे देख बुरा सा मुँह बनाती कार मे पीछे की सीट पर जा बैठी, मैं माँ के साथ बैठे ही वाला था की एकदम से आदिल कूद के माँ के पास जा बैठा,

मुझे थोड़ा अजीब लगा लेकिन मैंने कोई रिएक्शन नहीं दिया और आदिल के बगल मे जा बैठा, मोहित दूसरी तरफ से माँ के बाजु मैं बैठ गया और प्रवीण आगे की सीट पर जा बैठा.

पीछे चार लोगो के बैठे की वजह से जगह तंग हो गई थी, सभी लोग एक दूसरे के साथ चिपके हुए थे.

हम सभी दोस्तों ने कम्फर्टेबले शॉर्ट्स पहने हुए थे, जो की तंग जगह पर आराम का अनुभव दे रहा था.

"तो फिर चले, भाभी जी बैठ गए ना अच्छे से, कुछ छूट तो नहीं गया?" अब्दुल ने कार के अंदर मिरार को सेट करते हुए कहा, जिसमे शायद मेरी माँ का गोरा खूबसूरत चेहरा दिखाई पढ़ रहा था.

"ना भैया चलो, देर क्यों करनी सब रख लिया है" माँ ने भी सामने कांच मे देखते हुए कहा, जहाँ अब्दुल और माँ की आंखे आपस मे मिल गई थी.

तुरंत ही कार स्टार्ट हुई और हम सडक पे दौड़ चले,

मोहित खिड़की से बाहर की और देख रहा था, जबकि मैंने गाने सुनने के लिए ईरफ़ोन लगा लिए थे,

तभी मेरी नजर आदिल पर गई, जिसकी नजरें कुछ खास देख रही थी, जैसे खुश टटोल रही हो.

मैंने देखा आदिल माँ के पास बैठा उनके सीने की तरफ मुँह झुकाये उनके बाहर निकले स्तन देख रहा था, जो की एक लकीर के रूप मे शुरू होती हुई ब्लाउज तक एक घाटी की शक्ल बना रही थी, गोरी उजली घाटी जो की लाल ब्लाउज मे एक अलग ही छटा बिखेर रही थी.

एकदम से मेरी नजर उस पर पड़ी तो मेरा टन बदन गुस्से जस सुलग उठा लेकिन फिर भी ना जाने क्यों मैं कुछ बोला नहीं,

मन तो कर रहा था अभी साले का टेटुआ दबा दू, लेकिन मेरी नजर भी ना चाहते हुए माँ के ब्लाउज मे कसे हुए स्तन पे चली जा रही थी, जो की कार की थिरकन के साथ ब्लाउज के बाहर थिराक रहे थे, मैंने आगे देखा तो अब्दुल ड्राइवर भी कांच मे वही नजारा देख रहा था जो आदिल और मैं देख रहे थे,

ना जाने मेरी माँ कहाँ खोई हुई थी, उसे तीन जवान लड़के घूर रहे थे उसे पता ही नहीं है, वो सामने देखे जा रही थी, पल्लू ब्लाउज से कबका सरका हुआ था,

इन सब के बीच मैं माँ को कैसे कहता की पल्लू ठीक कर लो.

मैं गुस्से और दुविधा के बीच फसा हुआ था, ऊपर से आदिल तो बिल्कुल ही माँ से चिपका हुआ था, मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था, क्या गाना चल रहा था मुझे पता ही नहीं, बस खून खोल रहा था जिस्म मे एक अजीब सी गर्मी उठ रही थी.



खैर मैंने इस बात को अब ज्यादा नोटिस नहीं किया और सफर का मजा लेने लगा, मुझे लगा माँ गॉव की देहाती है इन सब बातो से ज्यादा मतलब नहीं रखती है,.

हमको चलते-चलते 1.30घंटा हो गया था और बैठे बैठे सबके शरीर अकड़ने लगे थे, मेरी माँ भी रह रह के इधर उधर हो रही थी, माँ को बैठने में दिक्कत हो रही थी क्योंकि पीछे हम 4 लोग थे और ब्रेज़्ज़ा मे इतनी भी जगह नहीं होती है, ऊपर से माँ ने कसी हुई साड़ी पहन रखी थी, इसलिए ज्यादा दिक्कत हो रही थी,

"क्या भाभीजी जी दिक्कत हो रही है क्या बैठने मे " आगे से अब्दुल ने माँ बेचैन देख पूछा.

"हाँ माँ कोई तकलीफ है " मैंने भी अब्दुल की आवाज़ सुन माँ को देख पूछा.

"हाँ बेटा साड़ी भारी पहन ली मैंने भी, तो गर्मी और पसीना आ रहा है, अच्छे से बैठा नहीं जा रहा " माँ ने अपनी परेशानी बताई

"अभी तो देहरादून आने मे टाइम है, आप परेशान हो जाओगी " जवाब अब्दुल ने दिया

सभी की निगाहेँ माँ पर ही थी, वाकई माँ के गले से पसीना टपकता हुआ ब्लाउज तक आ गया था, जिसे आदिल बड़ी गैर से देख रहा था

f9b8e6aa979f011ff43e5a1cc83d394d मैंने भी देखा माँ के स्तन पूरी तरह पसीने से भीगे चमक रहे थे.

"तो माँ कोई हल्का कपड़ा पहन लो ना, कार रुकवा लेते है किसी होटल पर " मैंने कहा.

"अरे जाने तो बेटा, हम औरोतो को आदत होती है इन सब की, अब कहाँ बदलने बैठु कपडे " माँ ने बड़ी ही सहजता से कहाँ.

लेकिन मेरे मन मे एक गिलानी सी आ गई, औरतों को कितना सहन करना पड़ता है, हम लड़को का क्या है कहीं भी कुछ भी पहन लो.

"अरे आंटी हम से क्या शर्माना, अपने अमित जैसे ही है हम भी " आदिल ने माँ के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

आदिल के आग्रह मे जैसे जादू था " ठीक है बेटा तुम लोग कहते हो तो बदल लेती हूँ "

माँ और आदिल एक दूसरे को देख मुस्कुरा दिए.



"अब्दुल भाई कार कहीं होटल पे रोक लो "

"अमित भाई होटल तो बहुत दूर है अभी "

"कोई नी यार गाड़ी कहीं साइड लगा दे, आंटी जी अंदर ही चेंज कर लेगी हम लोग नीचे उतर जायँगे, क्यों आंटी जी?" मोहित ने कहा.

"मैं... मैं... ऐसे कैसे... " माँ थोड़ा घबरा गई इतने लड़को के सामने कैसे?

"कोई बात नहीं माँ, परेशान होने से अच्छा है कार मे चेंज कर लो"

"और क्या आंटी हम आपके बच्चे जैसे ही तो है" आगे से प्रवीण ने पीछे माँ को देखते हुए कहा.

माँ अब क्या कहती, कहने के लिए बचा ही क्या था.

"ठीक है रुका लो गाड़ी " माँ ने हामी भर दी थी.

शायद माँ ने यही वो गलती कर दी थी जो नहीं करनी चाहिए थी, मुझे भी इस बात का अहसास नहीं था की मैं इस गलती का भागीदार बन जाऊंगा.

अपने बहुमूल्य कमेंट जरूर दे.

Contd.....
Bahut hi kamuk update
 
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andypndy

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andy bhai mast story hai.... kamukwine par bhi padh li ... pls continue....

Aur haan kaya ki maya ka kya raha uska kuch update likha?
थैंक्स भाई काया की story भी जल्दी ही मिलेगी
 

andypndy

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मेरी माँ रेशमा -3
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कार एक छोटे से होटल पर रुकी थी, अब्दुल ने चाय का आर्डर दे दिया.

मैं पेशाब करने होटल के पीछे चला गया, पेशाब कर ही रहा था की वहाँ किसी की आहट हुई, वो लोग आपस मे बात कर रहे थे, जैसे लड़ रहे हो.

मैंने तुरंत दिवार की साइड ले ली,

बाहर झाँक के देखा तो मोहित और प्रवीण आदिल से कुछ बात कर रहे थे, लग रहा था जैसे झगड़ रहे हो.

"साले मादरचोद आदिल तुझे बड़ी ठरक मची हू है?, क्या कर रहा था तू आंटी के साथ " प्रवीण ने कहा

"ममम... मैं... मैं क्या मर रहा था कुछ भी तो नहीं " आदिल ने सफाई दी.

"चुप भोसड़ीके हमने साफ देखा था तेरा मुँह बिल्कुल भीगा हुआ था, आंटी की जाँघे फैली हुई थी, तू आंटी की चुत चाट रहा था " मोहित ने आदिल के हाथ मरोड़ते हुए कहा.




उफ्फ्फ्फ़.... ये बात सभी को पता पड़ गई थी, मेरी माँ ने क्या इज़्ज़त बनाई थी आज मेरी, मेरे दोस्तों के सामने मेरी और मेरे परिवार की इज़्ज़त नीलाम हो रही थी.

आदिल दबी आवाज में बोला "यार जब आंटी को कोई समस्या नहीं है तो, तुम्हे क्यों मिर्ची लग रही है सालो " आदिल की बात सुन मैं सकते मे आ गया, मतलब मेरी माँ खुद की मर्ज़ी से ये सब करवा रही थी उसकी कोई मज़बूरी नहीं थी.

" मैंने तो बस try किया, तुम लोगो ने देखा नहीं अमित की.मम्मी कितनी sexy है, उनका बदन कियना टाइट है जैसे porn फिल्मो की हीरोइन हो, कितनी गोरी है, तुम्हे क्या बता आंटी की चुत से कितना मीठा पानी आ रहा था, उफ्फ्फ.... चट्ट.... " आदिल चटकारे लेते हुए बेशर्मी से मेरी माँ की तारीफ कर रहा था.

माँ की तारीफ सुन मेरा भी लंड मचलने लगा था, क्यूंकि चुत तो मैंने भी देखी थी, बिल्कुल फूली हुई गीली चुत.

"हट साले शर्म आनी चाहिए तुझे अपने दोस्त की माँ के साथ तूने ऐसा किया " प्रवीण ने झिड़क दिया आदिल को.

"और देखो कैसे बेशर्मी से सुना रहा है हमें " मोहित ने भी डांटा लगाई.

जो काम मुझे करना चाहिए था वो मेरे दोस्त कर रहे थे, और मैं नामर्दो की तरह उनकी बात सुन उत्तेजित हो रहा था.

"हटो सालो... तुम्हे औरत की पहचान ही नहीं है, अबे आंटी खुद से दे रही थी, वो प्यासी है, लगता है काफ़ी सालो से चुदी भी नहीं है, उसकी चुत मे खुजली थी मैं तो बस मिटा रहा था" आदिल ने अपना पक्ष रखा.

प्रवीण और मोहित दोनों खामोश थे जैसे कुछ सोच रहे हो.

"औरत की भी जरुरत होती हो दोस्तों, उसे भी प्यार पाने का हक़ है, पहली बार गांव से बाहर निकली है, और अच्छा है ना कहीं बाहर से कुछ करती तो फालतू बदनामी होती, हम अमित के दोस्त है ये बात कहीं बाहर नहीं जाएगी "

आदिल ने अपनी बात रखी.

प्रवीण और मोहित दोनों चुप थे, उनकी बात समझ आ रही थी.

"और दोस्तों ऐसी औरत किस्मत से मिलती है, चुदासी, प्यासी औरत वो तो एक बार मे हम सब लोगो का लंड ले सकता है, मैंने देखी है उसकी तड़प, साली मेरे सर को ऐसे दबा रही थू जयश्री चुत मे घुसेड़ लेगी अपने "

आदिल की बात सुन मेरा लंड पूरी तरह खड़ा हो गया था, मुझे याद आया मेरे पापा बरसो ज़े दमे के मरीज़ है, थोड़ा चल भी लेते हज तो खासने मरनेअगते है, चुदाई उनके बस की बात थी ही नहीं, तो... तो क्या माँ बरसो से नहीं चुदी है, इतने बरसो मे माँ को पहला मौका मिला है घर से बाहर निकलने का

मुझे समझ आ रही थी मेरी माँ की मज़बूरी, ऐसी गद्दाराई औरत इतने सालो से बिना चुदे रह रही थी, एकदम से इतने जवान हट्टे कट्टे लड़के मिल जाये तो चुत तो कुलाचे भरेगी ही ना.

फिर भी मैं थोड़ा निराश था, क्यूंकि जो भी हो था तो गलत ही.



"तुम लोग बस शांति से रहो, और मौका मिलते ही बहती गंगा मे नहा लेना " आदिल की बातो से प्रवीण और मोहित की आँखों मे चमक आ गई.

साले कहा अभी दोस्ती दोस्ती कर रहे थे ब दोस्त की माँ को चोदने के सपने देखने लगे हरामी साले.

मोहित और प्रवीण राजी ही गए, तीनो मूत के आगे चाय पीने चले गए, मैंने भी जल्दी से मुता और आगे चल दिया.

तूफान मचा हुआ था मेरे जीवन मे, हालात ख़राब थी सोच सोच के की आगे क्या होगा, मन कर रहा था ये सफर यही खत्म कर दू.

लेकिन आदिल की बात मेरे दिल मे घर कर गई थी, माँ पहली बार घर से बाहर निकली है, वो भी औरत है उसकी भी इच्छा है. उसमे भी अरमान है.

मैं मन मामोस के चाय सुडकने लगा.

सभी ने चाय खत्म की और कार के पास आ गए, अब्दुल तो पहले से ही माँ के पास कार के बाजु खड़ा था, माँ और अब्दुल हस हस कर बात कर रहे थे.

सब लोग अपनी अपनी जगह बैठ गए थे, मैं ही धीरे धीरे कदमो से सर झुकाये चला आ रहा था, क्यूंकि मुझे अपनी जगह और आगे का सीन पता ही था.

"अबे जल्दी आ ना " प्रवीण चिल्लाया

"आया "

धाड़ करते हुए मैंने कार का दरवाजा बंद किया और शाल ओढ़ कर बैठ गया.

अब पिछे देखने की कोई इच्छा नहीं थी मुझे ना हिम्मत थी, मैं वो इंसान था जिसे उसकी माँ और दोस्त सभी धोखा दे रहे थे.



खेर कार सडक पर दौड़ चली, सब कुछ जानते हुए भी मेरा दिल नहीं मान रहा था, कारण था मेरा लंड जो तभी से खड़ा हुआ था जब से मैंने माँ की गांड देखी थी, इतना तो देख ही चूका हूँ, थोड़ा और देख लेने मे क्या बुरा है जब माँ राजी तो क्या करेगा बेटा पाजी.

मैंने हलकी से करवट ले कर सर तक़ शाल ओढ़ लिया.

करीब आधे घंटे बाद ही आदिल ने हरकत की, शायद उसने माँ के स्तन पर हाथ रखा था, जिसे माँ ने दूर कर दिया.

शायद माँ डर रही थी अब.

"क्या हुआ आंटी?" आदिल फुसफुसा के बोला

"रहने दो ये अच्छी बात नहीं है " माँ ने भी फुसफुसा के कहा

"अमित सो रहा है, अब कुछ नहीं होगा " आदिल ने कहा

"नहीं... हाथ हटाओ " माँ ने वापस से आदिल का हाथ हटा दिया.

लेकिन आदिल माँ को पहचान गया था, कहा मानने वाला था.

सरसराहत की एक आवाज़ के साथ आदिल ने अपना बॉक्सर उतार दिया, जो की उसके पावो मे नीचे साफ दिख रहा था, साले मे बहुत हिम्मत आ गई थी.

उसने माँ के हाथ को पकड़ अपने गरम खड़े लंड पर रख दिया

"ऊफ्फफ्फ्फ़.... नहीं बेटा " माँ कसमसा गई और हाथ हटा लिया.

"प्लीज आंटी अमित सो गया है देखो, कुछ नहीं होगा "

माँ ने एक नजर मुझे देखा, फिर बाहर देखने लगी लेकिन माँ का हाथ आदिल के लंड पर कसता चला गया, जिसे शायद आदिल ऊपर नीचे कर अपने लंड को सहला रहा था,

माँ की सांसे फिर से तेज़ होने लगी थी, हाथ आदिल के लंड पर कसने लगे थे. लेकिन माँ खिड़की से बाहर देख रही थी.

आदिल से रहा नहीं गया, उसने माँ के चेहरे को अपनी तरह घुमा माँ के होंठो पे अपने होंठ रख दिया,

मैं हैरान रह गया आदिल मे इतनी हिम्मत कहा से आ गई, अभी सब कुछ छुप के हो रहा था.

"उउउम्म्म.... न्नन्न.... उम्म्म्म... माँ सिर्फ कसमसा कर रह गई, लेकिन अपने होंठो को अलग करने की कोई कोशिश नहीं की..

माँ फिर से गरम होने लगी थी, माँ आदिल के चुम्बन का जवाब अपना मुँह खोल के दे रही थी,
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उसके हाथ कम्बल मे हिल रहे थे, माँ खुद से आदिल के लंड को हिला रही थी.

थोड़ी देर kiss करने के बाद आदिल ने माँ के कान के लास जा कर फुसफुसाया,

"मुँह मे लो ना आंटी "

उफ्फ्फ्फ़..... मेरा लंड फटने को आतुर हो गया था.

क्या मेरी माँ को ये सब आता होगा? मेरे जहन मे सबसे बढ़ा सवाल यही थी.

उत्तर मुझे तुरंत मिला, माँ ने ना मे सर हिला दिया. लेकिन हाथो से आदिल के लंड को मसलती रही, माँ की आँखों मे हवस साफ दिखाई दे रही थी, आंखे किसी नशे से लाल हो गई मालूम पडती थी.

"प्लीज आंटी एक बार, अच्छा लगेगा " लेकिन माँ ने फिर से मना कर दिया.

और आदिल के होंठो को वापस से अपने लाल मखमली होंठो मे कैद कर लिया.

आदिल ने अपने इरादे पुरे ना होते देख, माँ की जांघो से कम्बल हटा दिया, बहुत हिम्मत दिखा रहा था आदिल.

कमाल पूरी तरह कमर के ऊपर चढ़ गई थी, आदिल ने जल्दी से गाउन को ऊपर चढ़ा माँ की टांगे फैला, मेरर सामने एकदम गीली साफ चिकनी चुत चमक उठी.

पहके सिर्फ एक पल को देख पाया था, अब बिल्कुल मेरे सामने माँ की चुत खुली पड़ी थी, अतिउत्तेजना मे चुत की दीवारे सिकुड़ती तो कभी फ़ैल जाती.

माँ आदिल के होंठ चूसने मे इस कदर बिजी थी जैसे खा ही जाएगी.

माँ किसी भूखी शेरनी की तरह व्यवहार कर रही थी.

तभी आदिल ने देर ना करते हुए पाचककककक......से माँ की गीली चुत मे ऊँगली घुसा दी,
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आउच.... उफ्फ्फ....माँ ने कमर को थोड़ा ऊपर उठा कर एक जाँघ आदिल की जाँघ पर रख दी, ताकि ऊँगली एयर अंदर जा सके, माँ बिल्कुल पागल हो गई थी.

पच पच... पच.... की आवाज़ से कार गूंजने लगी थी, माँ की चुत से पानी रिसता हुआ कार के फर्श को गिला कर रहा था.

आदिल ने अगली चाल चलते हुए माँ के सर पे दबाव बना कर उसे अपने लंड पर झुकाने लगा.

इस बार माँ ने कोई विरोध नहीं किया, अपने खूबसूरत होंठो को खोलते हुए, किसी कुतिया की तरह जीभ निकाल आदिल के लंड को चाटने लगी,
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आदिल मे लंड पर प्रीकम की बुँदे थी जिसे माँ एक बार मे चट कर गई.

उफ्फ्फ.... मेरी माँ किस किस्म की औरत थी.

लंड चाटने का बाद माँ ने अपना खूबसूरत मुँह खोल दिया, और एक बार मे आधे से ज्यादा लंड अपने मुँह मे समा लिया.

उउउफ्फ्फ.... मैं माँ के रंडी पने से हैरान था, मेरा तो लंड और दिमाग़ दोनों तनाव से फटे जा रहे थे,

वेक वेक.... गु.. गु... करती माँ आदिल के लंड को चूसने लगी,
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उधर आदिल फच.. फच... पच... करता माँ की चुत को अपनी दो ऊँगली से चोदे जा रहा था,

माँ हवस मे इस तरह गिर गई थी की उसे ये भी फ़िक्र नहीं थी की आगे की सीट पर उसका बेटा बैठा है कहीं जाग गया देख लिया तो क्या होगा.

वैसे भी हवस वासना इंसान का डर खत्म कर देती है.

माँ को सिर्फ अपनी प्यास बुझानी थी, मेरर सामने मेरी माँ मेरे दोस्त कर लंड को चूसे जा रही थी, अपनी जाँघे फैलाये चुत मे ऊँगली करवा रही थी,.

मैं साफ साफ मैं की चुत मे ऊँगली जाते देख रहा था, पच पच... फच.. फच... की आवाज़ मेरे टन बदन को जाला रही थी.

मन कर रहा था दोनों को जान से मार दू, लेकिन आदिल की वो बात, औरत की मज़बूरी और मेरी बदनामी मुझे ऐसा करने से रोक रही थी..

तभी माँ लौंडा चूसती हुई थोड़ी रुकी "बेटा आदिल कम्बल डाल दे ऊपर किसी ने देख लिया तो गड़बड़ हो जाएगी "

माँ ने रिक्वेस्ट की.

"देख क्या लेगा आंटी हम तो कबसे देख रहे है " मोहित और प्रवीण ने कम्बल हटाते हुए कहा.

मोहित और प्रवीण की आवाज़ सुननी थी की माँ की गांड ही फट गई, शरीर एक बार को कांप गया, चेहरा सफ़ेद पड़ गया.

"तत्तत्त... तुम लोग सोये नहीं " माँ ने मुँह पोछते हुए, खुद को ढकते हुए कहा

लेकिन आदिल की उंगलियां अभी भी माँ की चुत मे ही थी, डर के मारे माँ की सारी खुमारी सारी हवस उतर गई थी.

"आप डरिये नहीं आंटी, हम आपकी मज़बूरी समझते है, आपकी भी जरूरते है " मोहित ने हाथ आगे बढ़ा कर माँ की नंगी जांघो पर रख दिया.

माँ एकटक कभी मोहित को देखती तो कभी उसके हाथो को जो उसकी जांघो पर रेंग रहे थे.

मुझे समझते देर नहीं लगी, ये सब इनका प्लान था

"न्नन्न... नहीं नहीं बेटा ये गलत है अमित को मालूम पड़ा तो क्या होगा " माँ व्याकुल थी उसे सिर्फ मेरा डर था, बाकि वो क्या कर रही है इसकीकोई परवाह, शर्म नहीं थी.

"वो तो घोड़े बेच के सोता है, कान के पास बम भी फोड़ दो तो नहीं उठेगा, हम साथ रहते है हमें पता है ना " प्रवीण मे माँ को दिलाशा दिया.

माँ असमजस मे थी, क्या करे क्या नहीं, लेकिन चुत मे रेंगति आदिल की उंगलियों ने माँ को निर्णय लेने मे मदद की.

"तुम लोग सच बोल रहे हो ना,? किसी को बोलोगे तो नहीं " माँ की आवाज़ मे हवस थी, कामवासना थी औरमाँ ऐसा मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहती थी.

माँ की बाते और उसका चेहरा देख तीनो समझ गए थे माँ को कोई आपत्ति नहीं है

"आप बीच मे आ जाओ ना आंटी, हमें भी सेवा का मौका दो, आपकी इज़्ज़त हमारी इज़्ज़त " मोहित ने माँ का हाथ पकड़ अपनी और खिंचा.

जिसका माँ ने कोई विरोध नहीं किया.

साले मादरचोद मेरे दोस्त, अभी तक मेरी इज़्ज़त की परवाह कर रहे थे,

अब मेरी ही माँ को चोदने का प्लान कर रहे थे, ऐसे दोस्त भगवान किसी को ना दे.

माँ बीच मे आने के लिए, घोड़ी बन आगे को सरकने लगी, माँ का गाउन तो पहले से ही ऊपर था, पुच... करती आदिल की गीली उंगलियां माँ की चुत से बाहर आ गई.

घोड़ी बनी माँ की गोरी सुडोल गांड हलकी रौशनी मे चमक रही थी.
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चट.. चाटक.. की आवाज़ के साथ आदिल मे माँ की थूलथूली गांड पर जोर का चाटा रसीद कर दिया.
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माँ को गांड थिराक उठी, मया नजारा था मैं सगा बेटा होते हुए तारीफ करने लगा था.

आदिल का हाथ माँ के चुत रस से भीगा था, आवाज़ तेज़ आई.

"आउच क्या कर रहे हो, अमित जग जायेगा "

"ससस... Sorry आंटी आपकी जैसी गांड मैंने आज तक किसी की नहीं देखी तो खुद को रोक नहीं पाया "

"हट बदमाश... माँ मुस्कुराती मोहित और आदिल के बीच मे जा बैठी.

उफ्फ्फ.... अब खेल पूरी तरह से खुले मे चल रहा था.

इस खेल के दर्शक मैं और ड्राइवर अब्दुल थे, अब्दुल मिरर से ये खेल देख के सिर्फ मुस्कुरा रहा था, उसने कोई हरकत नहीं की.

मेरा तो खून और लंड दोनों उफान पर थे.

मुझे हैरानी थी अब्दुल कुछ बोल क्यों नहीं रहा है, सिर्फ देख रहा है.

जैसे कोई बड़ा खिलाडी बच्चों को खेलता देख रहा हो.

पीछे मोहित का बॉक्सर जमीन पे पड़ा था, उसका 6 इंच का लंड माँ के कामुक मुँह मे गोते खा रहा था, माँ भी किसी मांझी हुई रंडी की तरह उसके लंड को चूस रही थी.

मुझे नहीं पता था माँ ने ये सब कहा से सीखा, या फिर माँ ये सब पहले से ही करती आई थी.

बस मैं ही बेवकूफ था जो कभी ये सब जान ही नहीं पाया.

उधर आदिल तो माँ की चुत की लकीर को खोदने मे बिजी था, उसकी उंगलियां माँ की गांड की दरार मे चल रही थी आगे पीछे, गांड के छेद से चुत के छेद तक चली जा रही थी,.

चुत मे दो ऊँगली डूबाता फिर उसी लकीर पर ऊपर बढ़ता हुआ गांड के छेद के चारो और सहलाने लगता.

माँ बेचैन थी बार बार गांड को ऊपर नीचे कर रही थी, जैसे उंगलियों को चुत मे वापस डाल लेना चाहती हो लेकिन आदिल ऐसा होने नहीं दे रहा था.
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वेक... वेक.... गु.. गु.... माँ की सिस्कारिया मोहित के लंड से दबी हुई थी.

माँ से रहा नहीं जा रहा था माँ ने एक हाथ आगे बड़ा कर प्रवीण के लंड को भी थाम लिया उसे हिलाने लगी,

प्रवीण का लंड भी कोई 6,7 इंच का ही होगा.

सबसे ज्यादा मजे आदिल के थे उसका हाथ माँ की गोरी गांड को दबा दबा के सहता रहा था, उंगकिया गांड के छेद को कुरेद रही ही.



"आआहहहह.... आउच... उफ्फ्फ.... आदिल... तभी माँ ने मोहित के लंड से मुँह हटा एक धीमी हुंकार भरी.

"वहाँ नहीं बेटा " माँ ने हाथ पीछे कर आदिल का हाथ पकड़ना चाहा, जिसे आदिल ने हटा दिया.

आदिल की एक ऊँगली माँ के गांड के छेद ने धंस गई थी.

और दूसरी ऊँगली चुत को कुरेद रही थी.

"ससससस.... शस्स्स.... आंटी अमित जग जायेगा " मोहित ने वापस अपना लंड माँ के मुँह मे पेल दिया.

गो... गी... वेक.. वेक....

आदिल की उंगलियां अपना जादू दिखाने लगी, माँ गांड को उठा उठा के आदिल के हाथ पर पटक रही थी.

मेरा मन कर रहा था अभी लंड हिला लू, फटा जा रहा था दर्द से.

अब मेरी माँ सिर्फ एक औरत थी जिसे मेरे दोस्त चोदना चाह रहे थे.

"उउफ्फ्फ... आअह्ह्ह... हंफ.... हमफ.... वेक.. वेक... गो.. गो.. गुलप...

आवाज़े गूंजने लगी थी.

पच... पच... करता रस माँ की चुत से टपकता हुआ, आदिल की जांघो को भीगो रहा था..
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मेरी माँ भी किसी रंडी की तरह तीनो का साथ दे रही थी, प्रवीण के लंड को हाथो से मसले जा रही थी.

15 मिनट तक ये दौर चलता रहा, माँ हँफने लगी थी.

आअह्ह्ह.... बस... बस... बेटा...

"रुको आंटी... आअह्ह्ह.... फच... फाचक.... करता मोहित माँ के गरम मुँह मे ही झड़ गया, " मेरी माँ के हाथ लगातार मोहित के लंड को निचोड़ रहे थे, जैसे एक एक बून्द निकाल लेगी, मोहित के लंड सा निकला वीर्य माँ के चेहरे को भिगोने लगा.
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गर्माहट का मिलना था की सससररर.... पचक फच.... करती माँ की चुत से ढेर सारा रस बह निकला,

आअह्ह्ह.... बेटा.... गटक... माँ ने मोहित के रस को गटक लिया,
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उसके हाथ से प्रवीण का लंड छूट गया.

माँ बिल्कुल निढाल हो कर तीनो की जांघो पर फ़ैल गई थी, सांसे तेज़ चल रही थी.

तभी कार की स्पीड धीमी होने लगी.

साला आगे तो जाम लगा हुआ है " अब्दुल की आवाज़ कार मे गूंज उठी.

मैं अभी भी वैसे ही पड़ा हुआ था.

माँ तुरंत उठ बैठ कपडे ठीक किया, और मुँह को पोंछ लिया.

कम्बल ने चारो को ढक लिया था, सन्नाटा छा गया था जैसे कुछ हुआ ही ना हो.

Chhhhrrrrr..... करती कार रुक गई.

Contd......
 
Last edited:

sunoanuj

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बहुत ही शानदार और उत्तेजक अपडेट दिया है !

ऐसे धमाकेदार लिखते रहिए!
 
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