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Incest मेरी बीवियां, परिवार..…और बहुत लोग…

Should I include a thriller part in the story or continue with Romance only?

  • 1) Have a thriller part

    Votes: 33 39.3%
  • 2) Continue with Romance Only.

    Votes: 55 65.5%

  • Total voters
    84

vakharia

Supreme
5,962
20,773
174
प्रिय Mass,

आपकी इस विस्तृत और साहसिक कथा-यात्रा पर यह एकांत संवाद मैं बहुत समय से मन में संजोए हुए था.. अब जबकि मैंने आपकी कहानी के लगभग सारे ही अपडेट्स पढ़ लिए है, तो यह महसूस हो रहा है कि आपने पारंपरिक हिंदी कथा-साहित्य के एक ऐसे कोने में प्रवेश किया है जहाँ बहुत कम लेखकों ने कदम रखने का साहस दिखाया है..

आपकी कहानी की यात्रा मुझे एक पुराने बरगद के वृक्ष की तरह लगती है, जिसकी जड़ें (आपके पहले भाग) सामाजिक वर्जनाओं और परंपराओं में गहरी धँसी हैं, तना (दूसरा और तीसरा भाग) रिश्तों की जटिल बुनावट से मजबूत हुआ है, और इसकी शाखाएँ (बाद के भाग) एक विस्तृत पारिवारिक ब्रह्मांड की ओर फैलती हैं..

कहानी की नींव वाकई मजबूत है.. दीपू, वसु और दिव्या के बीच का यह त्रिकोण सिर्फ एक कामुक कल्पना नहीं, बल्कि एक सामाजिक-पारिवारिक प्रयोग है.. मुझे विशेष रूप से प्रभावित किया आपकी कथानक संरचना ने, जहाँ पहले भाग में आपने सिर्फ संकेत दिए, दूसरे में भावनात्मक गहराई दिखाई, और तीसरे में तो आपने पूरे परिवार की सामाजिक गतिशीलता को खोल कर रख दिया..

दीपू का चरित्र विकास शायद आपकी सबसे बड़ी उपलब्धि है.. वह एक कामुक युवक से लेकर एक जिम्मेदार पारिवारिक व्यक्ति बनने की यात्रा में पूर्णतः विश्वसनीय लगता है.. पर मुझे लगता है कि वसुधा आपकी सबसे सूक्ष्म रचना हैं, एक ओर जहाँ वह पारंपरिक माँ का चरित्र हैं, वहीं कामुक इच्छाओं वाली स्त्री भी हैं, और अब तो एक पारिवारिक रणनीतिकार भी बन गई हैं.. यह त्रिवेणी आपने बहुत कुशलता से संभाली है..

दिव्या का शर्मीले से आत्मविश्वासी बनना, और सहायक पात्रों जैसे कविता और मीना की कहानी का समावेश.. ये सभी एक समृद्ध चित्रपट रचते हैं जो सिर्फ कामुक साहित्य से कहीं आगे की चीज है..

आपकी कहानी कई स्तरों पर काम करती है.. सतह पर यह एक वर्जित रिश्ते की कहानी है, लेकिन गहरे स्तर पर यह स्त्री कामुकता के विभिन्न रूपों (दिव्या की उत्सुकता, वसु का पुनर्जन्म, मीना की कुंठा) की खोज है.. पारंपरिक परिवार ढाँचे के वैकल्पिक मॉडल का प्रस्ताव है.. नियति बनाम चयन के दार्शनिक विमर्श को छूती है

मुझे विशेष रूप से प्रभावित किया ज्योतिष और पारिवारिक स्वीकृति के दृश्यों के आपके प्रयोग ने, ये तत्व कहानी को जमीन से जोड़े रखते हैं और इस 'असंभव' स्थिति को विश्वसनीय बनाते हैं..

हल्का सा सुझाव देना चाहूँगा.. आपकी भाषा सहज है, संवाद प्रामाणिक हैं, पर कभी-कभी कामुक दृश्यों का विस्तार कथानक की गति को बाधित करता है.. शायद आगे के भागों में आप 'Less is more' के सिद्धांत को लागू कर सकते हैं.. जहाँ सांकेतिक भाषा, स्पष्ट वर्णन से अधिक शक्तिशाली हो और उसका स्थान ले सकें..

आपकी सबसे बड़ी शक्ति है पात्रों की भावनात्मक यात्रा को पकड़ना.. जैसे वसु का आंतरिक संघर्ष "मैं कैसे उससे शादी कर सकती हूँ?" ये क्षण कहानी को मात्र कामुक साहित्य से ऊपर उठाते हैं..

अब जबकि आपने इस जटिल पारिवारिक ढाँचे को स्थापित कर लिया है, दिलचस्प होगा देखना की बाहरी दुनिया की प्रतिक्रिया कैसे संभाली जाएगी? निशा और दिनेश की शादी इस गतिशीलता को कैसे प्रभावित करेगी? क्या यह वैकल्पिक पारिवारिक मॉडल टिकाऊ ढंग से काम कर पाएगा?

मीना की बाँझपन की कथावस्तु विशेष रूप से दिलचस्प है.. यह एक कामुक अवसर होने के साथ साथ सामाजिक दबावों और व्यक्तिगत इच्छाओं के बीच के संघर्ष को भी बखूबी दर्शाता है..

आपकी कहानी पढ़ने के बाद मैंने एक बात गहराई से महसूस की.. कि आप सिर्फ आघात पहुँचाने के लिए यह नहीं लिख रहे.. आप वास्तव में रिश्तों, इच्छाओं और सामाजिक ढाँचों की खोज कर रहे हैं.. यह साहस प्रशंसनीय है..!!

जाते जाते एक सलाह देना चाहूँगा... जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़े, शायद आप और भी सूक्ष्मता के साथ इन जटिल भावनाओं को संभाल सकते हैं.. कामुक दृश्यों को चरित्र विकास के साधन के रूप में प्रयोग करना जारी रखें, महज चित्रात्मक वर्णनों के लिए नहीं..

इस यात्रा को जारी रखें, पर साथ ही साहित्यिक गहराई और भावनात्मक प्रतिध्वनि को बनाए रखें.. मैं बेसब्री से इंतज़ार करूँगा आपके अगले अध्यायों का.. यह देखने के लिए कि आप इस जटिल चित्रपट में और क्या रंग जोड़ते हैं..

शुभकामनाएँ,

वखारिया
 

Mass

Well-Known Member
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प्रिय Mass,

आपकी इस विस्तृत और साहसिक कथा-यात्रा पर यह एकांत संवाद मैं बहुत समय से मन में संजोए हुए था.. अब जबकि मैंने आपकी कहानी के लगभग सारे ही अपडेट्स पढ़ लिए है, तो यह महसूस हो रहा है कि आपने पारंपरिक हिंदी कथा-साहित्य के एक ऐसे कोने में प्रवेश किया है जहाँ बहुत कम लेखकों ने कदम रखने का साहस दिखाया है..

आपकी कहानी की यात्रा मुझे एक पुराने बरगद के वृक्ष की तरह लगती है, जिसकी जड़ें (आपके पहले भाग) सामाजिक वर्जनाओं और परंपराओं में गहरी धँसी हैं, तना (दूसरा और तीसरा भाग) रिश्तों की जटिल बुनावट से मजबूत हुआ है, और इसकी शाखाएँ (बाद के भाग) एक विस्तृत पारिवारिक ब्रह्मांड की ओर फैलती हैं..

कहानी की नींव वाकई मजबूत है.. दीपू, वसु और दिव्या के बीच का यह त्रिकोण सिर्फ एक कामुक कल्पना नहीं, बल्कि एक सामाजिक-पारिवारिक प्रयोग है.. मुझे विशेष रूप से प्रभावित किया आपकी कथानक संरचना ने, जहाँ पहले भाग में आपने सिर्फ संकेत दिए, दूसरे में भावनात्मक गहराई दिखाई, और तीसरे में तो आपने पूरे परिवार की सामाजिक गतिशीलता को खोल कर रख दिया..

दीपू का चरित्र विकास शायद आपकी सबसे बड़ी उपलब्धि है.. वह एक कामुक युवक से लेकर एक जिम्मेदार पारिवारिक व्यक्ति बनने की यात्रा में पूर्णतः विश्वसनीय लगता है.. पर मुझे लगता है कि वसुधा आपकी सबसे सूक्ष्म रचना हैं, एक ओर जहाँ वह पारंपरिक माँ का चरित्र हैं, वहीं कामुक इच्छाओं वाली स्त्री भी हैं, और अब तो एक पारिवारिक रणनीतिकार भी बन गई हैं.. यह त्रिवेणी आपने बहुत कुशलता से संभाली है..

दिव्या का शर्मीले से आत्मविश्वासी बनना, और सहायक पात्रों जैसे कविता और मीना की कहानी का समावेश.. ये सभी एक समृद्ध चित्रपट रचते हैं जो सिर्फ कामुक साहित्य से कहीं आगे की चीज है..

आपकी कहानी कई स्तरों पर काम करती है.. सतह पर यह एक वर्जित रिश्ते की कहानी है, लेकिन गहरे स्तर पर यह स्त्री कामुकता के विभिन्न रूपों (दिव्या की उत्सुकता, वसु का पुनर्जन्म, मीना की कुंठा) की खोज है.. पारंपरिक परिवार ढाँचे के वैकल्पिक मॉडल का प्रस्ताव है.. नियति बनाम चयन के दार्शनिक विमर्श को छूती है

मुझे विशेष रूप से प्रभावित किया ज्योतिष और पारिवारिक स्वीकृति के दृश्यों के आपके प्रयोग ने, ये तत्व कहानी को जमीन से जोड़े रखते हैं और इस 'असंभव' स्थिति को विश्वसनीय बनाते हैं..

हल्का सा सुझाव देना चाहूँगा.. आपकी भाषा सहज है, संवाद प्रामाणिक हैं, पर कभी-कभी कामुक दृश्यों का विस्तार कथानक की गति को बाधित करता है.. शायद आगे के भागों में आप 'Less is more' के सिद्धांत को लागू कर सकते हैं.. जहाँ सांकेतिक भाषा, स्पष्ट वर्णन से अधिक शक्तिशाली हो और उसका स्थान ले सकें..

आपकी सबसे बड़ी शक्ति है पात्रों की भावनात्मक यात्रा को पकड़ना.. जैसे वसु का आंतरिक संघर्ष "मैं कैसे उससे शादी कर सकती हूँ?" ये क्षण कहानी को मात्र कामुक साहित्य से ऊपर उठाते हैं..

अब जबकि आपने इस जटिल पारिवारिक ढाँचे को स्थापित कर लिया है, दिलचस्प होगा देखना की बाहरी दुनिया की प्रतिक्रिया कैसे संभाली जाएगी? निशा और दिनेश की शादी इस गतिशीलता को कैसे प्रभावित करेगी? क्या यह वैकल्पिक पारिवारिक मॉडल टिकाऊ ढंग से काम कर पाएगा?

मीना की बाँझपन की कथावस्तु विशेष रूप से दिलचस्प है.. यह एक कामुक अवसर होने के साथ साथ सामाजिक दबावों और व्यक्तिगत इच्छाओं के बीच के संघर्ष को भी बखूबी दर्शाता है..

आपकी कहानी पढ़ने के बाद मैंने एक बात गहराई से महसूस की.. कि आप सिर्फ आघात पहुँचाने के लिए यह नहीं लिख रहे.. आप वास्तव में रिश्तों, इच्छाओं और सामाजिक ढाँचों की खोज कर रहे हैं.. यह साहस प्रशंसनीय है..!!

जाते जाते एक सलाह देना चाहूँगा... जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़े, शायद आप और भी सूक्ष्मता के साथ इन जटिल भावनाओं को संभाल सकते हैं.. कामुक दृश्यों को चरित्र विकास के साधन के रूप में प्रयोग करना जारी रखें, महज चित्रात्मक वर्णनों के लिए नहीं..

इस यात्रा को जारी रखें, पर साथ ही साहित्यिक गहराई और भावनात्मक प्रतिध्वनि को बनाए रखें.. मैं बेसब्री से इंतज़ार करूँगा आपके अगले अध्यायों का.. यह देखने के लिए कि आप इस जटिल चित्रपट में और क्या रंग जोड़ते हैं..

शुभकामनाएँ,

वखारिया
Wow...आपके Feedback के लिए ढेर सारा आभार!! ये एक आप जैसे बेहतरीन लेखक ही जान सकता है की कहानी कैसे है और उनमे क्या भावनाएं है. मुझे बहुत ख़ुशी हुई आपकी Feedback पढ़ के. ऐसे ही एक Writer को प्रोत्साहन करता है जब आप कहानी को बारीकी नज़र से देखते और पढ़ते है और उनमें जो कमियां है उसको बताये या फिर जो थोड़ा बहुत अच्छा लगा उसे भी बताएं. . मेरी यही कोशिश है की आगे कहानी जैसे जायेगी उसमें आपको निराश ना हो. मैं इतना ही कह सकता हूँ की मैं ज़रूर कोशिश करूंगा की आपको कहानी पसंद आये और बेहतरीन लगे. फिर से दिल से आपका बहुत बहुत आभार!!

Thank you & Best Wishes,
Mass
 
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Mass

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