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वहीँ दुसरे कमरे में कविता बिस्तर के कोने में सोने की कोशिश करती है.. जहाँ मनोज और मीना सो रहे थे वहीँ कविता को नींद नहीं आ रही थी. वो दीपू को ही याद कर रही थी की कितना उसका बड़ा लंड है और कैसे वो उसके पेट को छु रहा था और यही सोचते हुए वो अपनी चूत को मसलते हुए आहें भरते हुए दीपू को याद करते हुए तड़पती है और आखिर में जब वो भी झड़ जाती है तो वो भी सो जाती है…
अब आगे..
अगली सुबह जहां वसु जल्दी ही उठ गयी थी वहीँ दीपू और दिव्या एक दुसरे की बाहों में सोये हुए थे... ऐसा लग रहा था जैसे दो जिस्म एक जान हो.
फ्रेश हो कर जब वसु बाथरूम से आती है तो उन दोनों को देख कर हस्ते हुए दोनों को उठाती है.
वसु: उठ जाओ प्रेमियों. कोई तुम लोगो को देखेगा तो सोचेगा की रात भर तुम दोनों सोये नहीं और खूब रगड़ रगड़ के मस्ती किये हो..
दिव्या: उठते हुए.. सोने दो ना दीदी... अभी अच्छी नींद आ रही थी और तुमने हमें उठा दिया है. फिर दिव्या भी थोड़ा अंगड़ाई लेते हुए उठ जाती है और वो भी बाथरूम जाती है फ्रेश होने के लिए. दीपू भी उठ जाता है और जब दिव्या बाथरूम जाती है तो वसु को अपनी बाहों में लेकर उसे बिस्तर पे लुढ़का देता है और चूमने की कोशिश करता है.
वसु: अभी नहीं मेरे बेटे/ पती. तुम भी पहले फ्रेश हो जाओ. ये नौटंकी बाद में करना और उससे अलग हो कर छिडाते हुए किचन में चली जाती है.
किचन में जाकर वसु चाय बना रही होती है तो इतने में वहां कविता भी आ जाती है. दोनों एक दुसरे को देखते है लेकिन कुछ नहीं कहते.
वसु: मीना नहीं उठी है क्या?
कविता: वो उठ गयी है. थोड़ी देर में आती ही होगी.. और इतने में मीना भी वहां आ जाती है और वसु की मदत करती है चाय बनाने में. फिर सब लोग हॉल में आ जाते है और चाय पीते हुए आराम से बात करते है.
दीपू फिर जल्दी से ऑफिस जाने के लिए तैयार हो जाता है क्यूंकि उसे पता था की दिनेश भी नहीं रहेगा और वो भी २- ३ के लिए होली के समय छुट्टी लेगा. तो वो भी जलती से तैयार हो कर ऑफिस के लिए निकलने लगता है. इतने में उसका मामा मनोज कहता है:
मनोज: दीपू मैं आज चले जाऊँगा. मुझे भी ज़्यादा छुट्टी नहीं है. तुम सब लोग होली अच्छे से मनाओ. मेरा भी मन है यहां रहने का... लेकिन तुम समझ सकते हो.
दीपू: हाँ मामाजी... मैं समझ सकता हूँ. अच्छा होता अगर आप भी हमारे साथ ही रहते. अच्छे से होली मनाते.
मनोज: तुम सही कह रहो हो लेकिन मुझे जाना होगा.
दीपू: ठीक है मामाजी.. लेकिन मामी यहां थोड़े दिन रहेगी हमारे साथ. उसे भी अच्छा लगेगा...
मनोज: ठीक है... और फिर दीपू अपने ऑफिस के लिए निकल जाता है.
कुछ देर बाद मनोज भी जाने को तैयार हो जाता है. जाने से पहले मनोज मीना को कमरे में बुलाता है.
मनोज: मैं जा रहा हूँ. अपना ख्याल रखना. जैसे हमने सोचा था.. जब घर आओगी तो अच्छी खबर लेकर आना. मुझे तुम्हे खुश देखना है.
मीना ये बात सुनकर उसके आँखों में आंसू आ जाते है और वो मनोज के गले लग जाती है. अपने आंसू पोछते हुए: तुम्हे बुरा तो नहीं लग रहा है ना... की जब मैं वहां वापस आऊं तो मेरे पेट में बच्चा जनम ले रहा होगा.
मनोज: नहीं मैं बात समझ सकता हूँ. तुम्हारी ख़ुशी में ही मेरी ख़ुशी है.
मीना इस बात पे फिर रो देती है और मनोज को पकड़ते हुए उसके होंठ को चूमते हुए.. बहुत धन्यवाद जो मेरी इच्छा को समझने के लिए. मैं बहुत खुश हूँ की तुम मेरी इतना ख्याल रखते हो और तुम मेरे पती हो.
मनोज भी फिर मीना को अपने गले लगा लेता है और फिर वो दोनों बाहर आ जाते है कमरे से और मनोज भी वसु को अकेले में मीना का धयान रकने को कहता है और फिर वो अपने घर के लिए निकल जाता है.
मनोज के जाने के बाद सब अपना काम करते है. वसु भी अपने काम में बिजी हो जाती है और वो कपडे धोने के लिए वाशिंग मशीन में कपडे डालती है और घर के बाकी लोगों से भी कहती है की उनके कपडे भी दे दे.. वो उन्हें वाशिंग मशीन में धोने के लिए डाल देगी. जहाँ मीना अपने कपडे दे देती है वहीँ कविता मना करती है की वो अपने कपडे खुद धो लेगी. लेकिन वसु नहीं मानती और कहती है.. अलग धोने की क्या ज़रुरत है? जब सब कपडे एक साथ धूल सकते है तो आप फिर अलग क्यों धोना चाहती है. कविता फिर भी मना करती है लेकिन वसु मानती नहीं.
कविता: ठीक है.. पहले मीना और दिव्या के कपडे धो लो. मैं फिर अपने कपडे डाल देती हूँ मशीन में.
वसु को भी ये बात सही लगती है और पहले उन दोनों के कपडे धोने के बाद कविता अपने कपडे लाकर वाशिंग मशीन में दाल देती है. वसु भी अपने कुछ कपडे डालती है मशीन में. इसमें एक गलती हो जाती है की अपने कपडे मशीन में डालते वक़्त कविता के कुछ कपडे नीचे गिर जाते है. वो नीचे गिरे हुए कपडे उठाती है तो देखती है की उसमें कविता की पैंटी भी है जो थोड़ी गीली थी और उसमें थोड़ा दाग भी था. वसु उसको देख कर मन में हस देती है और कविता को बुलाती है.
वसु: (कविता) से माजी एक बार ज़रा इधर आना. (वाशिंग मशीन उनके बाथरूम में ही था).
कविता जब वहां आती है तो वसु चुपके से अपने कमरे का दरवाज़ा बंद कर देती है तो कविता पूछती है की उसने दरवाज़ा क्यों बंद किया.
अब वो दोनों ही अकेले थे. वसु उसे बाथरूम में बुलाती है और फिर वो पैंटी उसे दिखाती है.
वसु: ये तुम्हारी पैंटी है ना?
कविता: ये तुम्हे कैसे मिला? मैंने तो इसे मेरे कपड़ों में धक् कर ही सारे कपडे डाले थे.
वसु: बात ये नहीं है की मुझे वो कैसे मिली... बात ये है की, और वो पैंटी कविता को दिखाते हुए.. ये तो थोड़ी गीली है और इसमें धाग भी लगा हुआ है. मैं जो सोच रही हूँ वही है क्या?
कविता: तू क्या सोच रही है? (ये लोग अब नोर्मल्ली बात कर रहे थे क्यूंकि ये दोनों अकेले थे और कोई नहीं था)
वसु: ये गीली है और ये धाग का मतलब है की तू रात भर किसी को याद करते हुए झड़ी थी और तुमने भी रस बहाया था. बोलो मैं सही कह रही हूँ ना?
कविता थोड़ा शर्मा जाती है इस बात से लेकिन कुछ नहीं कहती.
वसु: शर्माओ मत.. यहाँ हम दोनों ही है और कोई नहीं. और तुम्हे मेरी कसम. सच बताना.
कविता: थोड़ा शर्माते हुए... तू सही कह रही है. मैं दीपू को याद करते ही झड़ गयी और अपना पानी निकल दिया.
वसु: क्यों?
कविता: तुझे याद है जब मैं उसे कल मिली थी और अपने गले लगाया था तो उस वक़्त उसका लंड खड़ा हो गया था और मेरे पेट में उसका लंड चुभ रहा था. मैं सोच रही थी की किसी का इतना बड़ा लंड कैसे हो सकता है?
वसु कविता के पास आकर: तुझ जैसी गदरायी घोड़ी को जो भी देखेगा तो उसका लंड तो तन ही जाएगा ना... और ऐसा कहते हुए वसु कविता की एक चूची को ज़ोर से दबा देती है.
कविता: आअह्ह्ह... क्या कर रही है तू? थोड़ा आराम से करना.
वसु: देखो तो दीपू का नाम लेते ही तेरे निप्पल्स भी तन गए है. वसु उसके होंठों को चूमते हुए अपना एक हाथ कविता की साडी में दाल कर उसकी चूत को सहलाते हुए धीरे से कान में कहती है.. तेरी चूत तो अभी भी रस बहा रही है और ये तेरी पैंटी फिर से गीली हो गयी है.
कविता ये बात सुनकर एकदम शर्मा जाती है और वसु को देखते हुए उसका हाथ निकल कर वो जो गरम हो गयी थी वापिस वसु के होंठ चूम लेती है और इस बार दोनों एक मस्त गहरे चुम्बन में जुड़ जाते है.
दोनों एक दुसरे की जीभ को चूसते है और ५ मं बाद अलग हो कर..
वसु: ऐसा क्या है दीपू में की तू इतनी उत्तेजित हो रही हो और इतना पानी बहा रही हो?
कविता: दीपू इतना हैंडसम है.. उसका इतना बड़ा लंड है.. और वसु को देखते हुए... एक बात कहूँ.. तुझे देख कर मुझे जलन होती है की तू रोज़ उसकी लेती है..काश मुझे भी कोई ऐसा मिल जाता तो... ऐसा कहते हुए कविता रुक जाती है.
वसु: तेरी बात तो एकदम सही है. फिर से कविता की चूची को दबाते हुए.. उसका लंड बड़ा ही नहीं है लेकिन जब वो अंदर जाता है तो जन्नत की सैर कराता है और उसे आँख मार देती है. और तुझे पता है.. दीपू भी तेरे पे लट्टू है. कल जब तूने उसे गले लगाया था तो उसने तेरी ये मस्त गांड भी दबा दी थी.
कविता: तुझे कैसे पता चला?
वसु: भूल मत मैं उसकी पत्नी हूँ. उसका ध्यान रखना मेरा काम है. वैसे आगे चाहे तो तू भी उसका ध्यान रख सकती है.
कविता: आश्चर्य से... क्या मतलब है?
वसु: मतलब ये मेरी जान.. की तू अगर चाहे तो तेरी शादी करा दूँ उससे और तू हमारी सौतन बन जा...? और वैसे भी तू कितने दिन ऐसे एक अच्छे लंड के लिए तड़पते रहोगी? ये तड़प क्या होती है मैं अच्छी तरह से जानती हूँ.
कविता: तू सही कह रही है. मैं भी बहुत तड़प रही हूँ एक अच्छे लंड के लिए.. लेकिन मैं इतनी भी उतावली नहीं हूँ की बिना शादी किये मैं ये सब मैं करून.
वसु: मुझे तेरी यही बात अच्छी लगती है. तू भी हमारी तरह एकदम चुड़क्कड़ है लेकिन संस्कारी भी.. और उसे आँख मार देती है.
कविता: वैसे तू ये कैसे बात कर रही है? उसने तो पहले ही २ शादी की है.
वसु: तो तीसरा कर लेगा. मुझे पता है की शायद ये गलत है.. लेकिन कल मैं और दिव्या ने दीपू से इस बारे में बात किया है. वो कुछ नहीं बोलै लेकिन मैं जानती हूँ उसको. तू अगर हाँ कहे तो वो मना नहीं करेगा.
इस बारे में कविता कुछ नहीं कहती लेकिन वसु उसकी आँखों में दीपू के लिए प्यार और अपनी तड़प देख लेती है.
वसु: चल मैं तुझे जल्दी ही हमारी सौतन बना दूँगी. चिंता मत कर. बोल मंज़ूर है?
कविता भी आखिर अपना मन की बात बोल देती है.. तुझे और दिव्या को कोई परेशानी नहीं है तो दीपू से बात कर ले.
वसु: ये हुई ना बात... और फिर से उसके होंठों को जैम के चूमती है और उसकी गांड दबा देती है.
और उसे गले लगा कर उसके कान में कहती है: मैं चाहती हूँ की तू जल्दी से नानी भी बन जा और एक माँ भी और मीना को भी एक भाई/ बेहन दे दे... और ज़ोर से हस देती है. कविता ये बात सुनकर एकदम शर्मा जाती है और उसी अंदाज़ में कहती है की अगर वो फिर से माँ बन गयी तो वो (वसु) भी दादी बन जायेगी. दोनों हस देते है और फिर काम करने लगते है.
कविता: चल तू कपडे दाल दे मैं निकलती हूँ. कविता निकलने को होती है तो वसु उसे रोक देती है.
कविता: अब क्या?
वसु: कविता की पैंटी देख कर... ये क्या? तू इतनी पुरानी पैंटी पहनती है?
कविता: मतलब?
वसु: मतलब ये की तू अबसे ऐसे पैंटी नहीं पहनेगी और फिर वसु वाशिंग मशीन से अपनी एक ब्रा और पैंटी निकालते हुए कहती है अब से तू ऐसे ब्रा और पैंटी पहना कर.
कविता वसु की पैंटी देख कर.. ये तो इतनी छोटी है.. तू इसे पहनती है?
वसु: हाँ और दीपू ने ही हमें ऐसे पहने को बोलै है.
कविता: ये तो बहुत छोटी और पारदर्शी है.. इसमें तो तेरी चूत भी ठीक से धक् नहीं पाओगी और पीछे से तो तेरी पूरी गांड नज़र आती है.
वसु: हाँ डार्लिंग.. ये तो आज कल के नए फैशन के पैंटीज है जिसे दीपू बहुत पसंद करता है.
कविता: ना बाबा मैं तो नहीं पहन सकती.
वसु: तू चिंता मत कर.. जब से तू ऐसे पहनना शुरू करोगी तो तुझे भी बहुत अच्छा लगेगा.. और एक और बात.. दीपू बड़े शौकीन से उसे उतारता है रोज़ रात को जब वो मुझे और दिव्या को चोदता है. समझी. चल अब जा.. मैं भी जल्दी ही आती हूँ.. और फिर कविता भी थोड़ी शर्माते हुए अपनी गांड मटकाते हुए वो वहां से चली जाती है किचन की तरफ.
वसु भी फिर काम ख़तम कर के बाहर आ जाती है और नहा कर एकदम अच्छे से सजती है. वो फिर दीपू को फ़ोन करती है.
वसु: दीपू आज हम शहर जा रहे है.
दीपू: क्यों? वसु: कुछ कपडे लेने... और वैसे भी होली है तो सोचा अच्छे साडी वगैरह ले आये.
दीपू: ठीक है जाओ. लेकिन जल्दी आ जाना. दीपू फिर अपने ऑफिस के केबिन में चला जाता है जहाँ वो अकेला था. सुनो.. वसु: बोलो. दीपू: सब के लिए सफ़ेद साडी लेना और आपको तो पता है.. और बाकी दोनों का तो पता नहीं लेकिन अपने और दिव्या के लिए सफ़ेद ट्रांसपेरेंट साडी लेना.
वसु ये बात सुनकर हस देती है और कहती है.. जैसे तुम चाहते हो.. वैसे ही ब्रा और पैंटी भी ले लेंगे.
दीपू: एकदम सही कहा. जल्दी आना..
वसु: ठीक है.
फिर सब लोग शहर जाकर एक अच्छे मॉल में जाकर वसु सब के लिए साडी लेती है. वो भी सफ़ेद और ट्रांसपेरेंट वाला. कविता उनको देख कर कहती है की ये सब लेने की क्या ज़रुरत है तो वसु चुपके से कविता के कान में कहती है की दीपू ने ही कहा है की सब के लिए साडी ले. कविता ये बात सुनकर कुछ नहीं कहती. बाकी सब शॉपिंग कर के सब लोग शाम तक घर आ जाते है.
दीपू भी ऑफिस से आ जाता है. शाम को मीना दीपू के लिए चाय लेकर आती है और उसे चाय देते वक़्त वो इस तरह झुकती है की उसकी आधे से ज़्यादा चूचियां दिखती है.
ये दीपू भी देख लेता है और उसे देखते ही दीपू के लंड में जान आ जाती है. चाय देते वक़्त दोनों की नज़रें मिलती है.. जुबां कुछ नहीं कहती लेकिन दोनों की आँखें बहुत बयान कर देती है. ये दृश्य वसु भी देख लेती है और वो भी मन में सोचती है की मीना भी सही कर रही है. उसे ही दीपू को रिझाना होगा ताकि दीपू उसकी तरफ आये.
रात को खाना खाने के बाद सब अपने कमरे में चले जाते है सोने के लिए.
दीपू के कमरे में:
दीपू: तो तुम्हारी शॉपिंग कैसी रही?
दिव्या: एकदम मस्त. दीदी कह रही थी की तुमने ही कहा था की ट्रांसपेरेंट साड़ियां लेना.. तो वैसे ही ले आये है. दीपू फिर वो साड़ियां देखता है तो कहता है की वो तो उन लोगों को उस साडी में देखने के लिए मरा जा रहा है. वसु भी उसे चिढ़ाते हुए कहती है की उसके लिए उसे २ दिन और इंतज़ार करना पड़ेगा..वो लोग होली के दिन हो वो साडी पहनेंगे. दोनों कहते है की वो लोग थक गए है लेकिन दीपू कहाँ मानने वाला था. देखते ही देखते दोनों को नंगा कर देता है और खुद भी नंगा हो जाता है और बारी बारी से दोनों को पेलने लग जाता है. अब उनके कमरे में चूड़ियों और पायलों की खन खनाहट से आवाज़ें आती है जो कविता और मीना भी सुन लेते है.
वसु: थोड़ा आराम से करो ना.. ये चूड़ियों और पायलों की आवाज़ से पूरा कमरा गूँज रहा है. ये आवाज़ें उन्हें भी सुनाई दे रही होगी.
दीपू: तो सुनने दो ना.. वैसे भी कुछ दिन बाद उनके चूड़ियां और पायल भी ऐसे ही आवाज़ करेगी.
वसु: तुम एकदम बेशर्म हो दीपू.
दीपू वसु को चूमते हुए.. अभी कहाँ पूरा बेशरम हुआ हूँ. जब मैं तुम दोनों की गांड मरूंगा तो तब पूरा बेशरम बन जाऊँगा और ऐसा कहते हुए वसु को पेलने लगता है.
दुसरे कमरे में:
दोनों ही ये आवाज़ें सुन कर एकदम गरम हो जाती है और दोनों एक के बाद एक बाथरूम में जाकर अपने आप को ऊँगली करते हुए झड़ कर वापिस कमरे में आकर सोने की कोशिश करते है. अब तक दोनों माँ बेटी एक दुसरे से अनजान थे की वो दोनों भी जल्दी ही दीपू से चुदने वाले है.
वापस दीपू के कमरे में:
दीपू भी मस्त होकर दोनों की एक घंटे तक बारी बारी लेता है जिसमें दोनों ना जाने कितनी बार झड़ जाते है और पूरी तरह थक भी जाते है. आखिर कर दीपू भी हार मान जाता है और अपना पानी छोड़ देता है जो दोनों बड़े चाव से पी जाते है और दोनों भी एक दुसरे को किस करते हुए दीपू का रस आपस में बात भी लेते है.
दोनों दीपू के आजु बाजू सर रख कर आराम करते है क्यूंकि तीनो बहुत थक गए थे.
वसु: सुनो.
दीपू: बोलो.
वसु: तुम्हारे लिए एक खुश खबर है.
दीपू: क्या मैं बाप बनने वाला हूँ क्या?
वसु: चुप करो.. कुछ भी बकते रहते हो.
दीपू: क्यों तुम्हे माँ नहीं बनना है क्या?
वसु: हाँ बनना है लेकिन कुछ दिन और ऐसे ही एन्जॉय करते है. तुम तो हर बार मुझे जन्नत की सैर कराते हो..
दीपू: तो खुश खबर क्या है?
वसु: दोनों दीपू और दिव्या को देखते हुए.. मैंने आज सुबह कविता से बात की है और वो तुमसे शादी करने के लिए तैयार हैं.
दीपू: क्या??
वसु: हाँ वो मान गयी है. वो भी बड़ी चुड़क्कड़ है लेकिन कहती है की बिना शादी किये वो मरवायेगी नहीं.
दिव्या: तुम्हारे तो मजे ही मजे है. हमें एक और सौतन मिल जायेगी फिर.
दीपू: चुप करो यार.. कुछ भी बकवास करती हो.
वसु: क्यों तुम नहीं चाहते क्या कविता को? कल ही तो तुम कह रहे थे की उसकी गांड भी मस्त है. तुम तो जैसे उस पर लट्टू हुए जा रहे थे. तो मैं उसे मना कर दूँ क्या?
दीपू इस बात पे कुछ नहीं कहता और चुप रहता है. उसको चुप रहता देख कर..
वसु: देखा तुमने कुछ कहा नहीं लेकिन सब कह दिया. दोनों को देख कर.. अब लगता है ये बिस्तर हम लोगों के लिए कम पड़ेगा और हस देती है. इस बात पर दीपू और दिव्या भी हस देते है और फिर दीपू दोनों को अपनी बाहों में लेकर सब सो जाते है.
अगली सुबह:
आज होली के एक दिन पहले (होली दहन) था. दीपू कहता है की ऑफिस जाकर जल्दी ही घर आ जाएगा और फिर शाम को होली का दहन मनाएंगे. ये बोलकर वो ऑफिस चला जाता है.
सब लोग अपना काम करते है और फिर वसु कुछ समय बाद कविता को अपने कमरे में बुलाती है. जब कविता वसु के कमरे में जाती है तो उस वक़्त दोनों वसु और दिव्या वहां पे थे.
कविता: क्या काम है की तुमने मुझे बुलाया है.
वसु भी कविता को छेड़ते हुए.. क्या कहूँ मैं तुम्हे? कविता या हमारी सौतन?
कविता ये बात सुनकर शर्मा जाती है.
वसु: चिंता मत करो. दिव्या को सब पता है. हम दोनों अकेले में जैसे बात करते है वैसे ही इसके साथ भी बात किया करो और देखती है की कविता की आँखें थोड़ी लाल थी जैसे उसे नींद की कमी हो.
वसु: क्या हुआ तेरी आँखें लाल क्यों है?
कविता: रात तो जल्दी नींद नहीं आयी.
वसु ये बात सुनकर हस देती है और कहती है... नींद हमारी आवाज़ों से नहीं आयी क्या? इस बात पे कविता कुछ नहीं कहती तो वसु उसके पास जाकर उसकी गांड पे चपत लगाते हुए... चिंता मत कर.. अब से तुझे नींद बहुत कम आएगी क्यूंकि अब से तू भी हमारी तरह रोज़ बिस्तर पे कुश्ती करती रहेगी.
क्यों दिव्या मैंने ठीक कहा ना?
दिव्या: हाँ सही कहा दीदी. शायद कुछ दिन के लिए हम दोनों को शायद थोड़ी राहत मिले वरना ये तो हम दोनों की हालत रोज़ बिगाड़ देता है. इसपर दोनों वसु और दिव्या हस्ते है तो कविता एकदम शर्म के मारे मरी जा रही थी.
वसु: कल रात मैंने दीपू से भी बात की है. वो भी मान गया है तुमसे शादी करने के लिए. अब शादी के लिए और हमारी सौतन बनने के लिए तैयार हो जाओ.
कविता: वो तो ठीक है लेकिन एक बात केहनी थी तुमसे.
वसु: बोलो अब क्या हुआ.
कविता: बात ये है की इसके बारे में मीना को कुछ पता नहीं है और पता नहीं वो क्या सोचेगी अगर उसे पता चलेगा की दीपू मुझसे शादी करना चाहता है.
वसु: हम्म्म... बात तो तुम्हारी सही है. चिंता मत कर. मैं कुछ ही देर में मीना से इस बारे में बात करती हूँ. सब ठीक हो जाएगा. फिर तीनो बाहर आ जाते है और अपना बाकी काम करने में लग जाते है.
दोपहर को खाना खाने के बाद वसु मीना को अपने कमरे में बुलाती है और उसे कविता के बारे में सब बताती है की कैसे दीपू उसे पसंद आया है और वो भी जवान है और वसु उसकी शादी दीपू से करना चाहती है. मीना तो ये बात सुनकर चक्रा जाती है लेकिन वसु के समझाने से उसे भी लगता है की उसकी माँ को भी ख़ुशी से जीना का अधिकार है और वो भी इसके लिए मान जाती है.
उसी तरह से वसु निशा को भी बताती है की दीपू कविता से शादी करने वाला है.
निशा: दीपू के तो मजे ही मजे है.
वसु: चुप कर.. तेरी भी जल्दी ही मजे होने वाले है. जब दिनेश और ऋतू वापस आ जाएंगे तो तेरी भी शादी जल्दी ही होगी उससे. फिर तू भी मजे करना. निशा भी शर्मा जाती है और प्यार से उसकी माँ वसु के गले लग जाती है. शाम के वक़्त दीपू भी जल्दी घर आ जाता है और फिर सब रात की तैयारी करते है जब वो लकड़ियां वगैरा सब इक्कट्ठा करते है जलाने के लिए...
वहीँ दुसरे कमरे में कविता बिस्तर के कोने में सोने की कोशिश करती है.. जहाँ मनोज और मीना सो रहे थे वहीँ कविता को नींद नहीं आ रही थी. वो दीपू को ही याद कर रही थी की कितना उसका बड़ा लंड है और कैसे वो उसके पेट को छु रहा था और यही सोचते हुए वो अपनी चूत को मसलते हुए आहें भरते हुए दीपू को याद करते हुए तड़पती है और आखिर में जब वो भी झड़ जाती है तो वो भी सो जाती है…
अब आगे..
अगली सुबह जहां वसु जल्दी ही उठ गयी थी वहीँ दीपू और दिव्या एक दुसरे की बाहों में सोये हुए थे... ऐसा लग रहा था जैसे दो जिस्म एक जान हो.
फ्रेश हो कर जब वसु बाथरूम से आती है तो उन दोनों को देख कर हस्ते हुए दोनों को उठाती है.
वसु: उठ जाओ प्रेमियों. कोई तुम लोगो को देखेगा तो सोचेगा की रात भर तुम दोनों सोये नहीं और खूब रगड़ रगड़ के मस्ती किये हो..
दिव्या: उठते हुए.. सोने दो ना दीदी... अभी अच्छी नींद आ रही थी और तुमने हमें उठा दिया है. फिर दिव्या भी थोड़ा अंगड़ाई लेते हुए उठ जाती है और वो भी बाथरूम जाती है फ्रेश होने के लिए. दीपू भी उठ जाता है और जब दिव्या बाथरूम जाती है तो वसु को अपनी बाहों में लेकर उसे बिस्तर पे लुढ़का देता है और चूमने की कोशिश करता है.
वसु: अभी नहीं मेरे बेटे/ पती. तुम भी पहले फ्रेश हो जाओ. ये नौटंकी बाद में करना और उससे अलग हो कर छिडाते हुए किचन में चली जाती है.
किचन में जाकर वसु चाय बना रही होती है तो इतने में वहां कविता भी आ जाती है. दोनों एक दुसरे को देखते है लेकिन कुछ नहीं कहते.
वसु: मीना नहीं उठी है क्या?
कविता: वो उठ गयी है. थोड़ी देर में आती ही होगी.. और इतने में मीना भी वहां आ जाती है और वसु की मदत करती है चाय बनाने में. फिर सब लोग हॉल में आ जाते है और चाय पीते हुए आराम से बात करते है.
दीपू फिर जल्दी से ऑफिस जाने के लिए तैयार हो जाता है क्यूंकि उसे पता था की दिनेश भी नहीं रहेगा और वो भी २- ३ के लिए होली के समय छुट्टी लेगा. तो वो भी जलती से तैयार हो कर ऑफिस के लिए निकलने लगता है. इतने में उसका मामा मनोज कहता है:
मनोज: दीपू मैं आज चले जाऊँगा. मुझे भी ज़्यादा छुट्टी नहीं है. तुम सब लोग होली अच्छे से मनाओ. मेरा भी मन है यहां रहने का... लेकिन तुम समझ सकते हो.
दीपू: हाँ मामाजी... मैं समझ सकता हूँ. अच्छा होता अगर आप भी हमारे साथ ही रहते. अच्छे से होली मनाते.
मनोज: तुम सही कह रहो हो लेकिन मुझे जाना होगा.
दीपू: ठीक है मामाजी.. लेकिन मामी यहां थोड़े दिन रहेगी हमारे साथ. उसे भी अच्छा लगेगा...
मनोज: ठीक है... और फिर दीपू अपने ऑफिस के लिए निकल जाता है.
कुछ देर बाद मनोज भी जाने को तैयार हो जाता है. जाने से पहले मनोज मीना को कमरे में बुलाता है.
मनोज: मैं जा रहा हूँ. अपना ख्याल रखना. जैसे हमने सोचा था.. जब घर आओगी तो अच्छी खबर लेकर आना. मुझे तुम्हे खुश देखना है.
मीना ये बात सुनकर उसके आँखों में आंसू आ जाते है और वो मनोज के गले लग जाती है. अपने आंसू पोछते हुए: तुम्हे बुरा तो नहीं लग रहा है ना... की जब मैं वहां वापस आऊं तो मेरे पेट में बच्चा जनम ले रहा होगा.
मनोज: नहीं मैं बात समझ सकता हूँ. तुम्हारी ख़ुशी में ही मेरी ख़ुशी है.
मीना इस बात पे फिर रो देती है और मनोज को पकड़ते हुए उसके होंठ को चूमते हुए.. बहुत धन्यवाद जो मेरी इच्छा को समझने के लिए. मैं बहुत खुश हूँ की तुम मेरी इतना ख्याल रखते हो और तुम मेरे पती हो.
मनोज भी फिर मीना को अपने गले लगा लेता है और फिर वो दोनों बाहर आ जाते है कमरे से और मनोज भी वसु को अकेले में मीना का धयान रकने को कहता है और फिर वो अपने घर के लिए निकल जाता है.
मनोज के जाने के बाद सब अपना काम करते है. वसु भी अपने काम में बिजी हो जाती है और वो कपडे धोने के लिए वाशिंग मशीन में कपडे डालती है और घर के बाकी लोगों से भी कहती है की उनके कपडे भी दे दे.. वो उन्हें वाशिंग मशीन में धोने के लिए डाल देगी. जहाँ मीना अपने कपडे दे देती है वहीँ कविता मना करती है की वो अपने कपडे खुद धो लेगी. लेकिन वसु नहीं मानती और कहती है.. अलग धोने की क्या ज़रुरत है? जब सब कपडे एक साथ धूल सकते है तो आप फिर अलग क्यों धोना चाहती है. कविता फिर भी मना करती है लेकिन वसु मानती नहीं.
कविता: ठीक है.. पहले मीना और दिव्या के कपडे धो लो. मैं फिर अपने कपडे डाल देती हूँ मशीन में.
वसु को भी ये बात सही लगती है और पहले उन दोनों के कपडे धोने के बाद कविता अपने कपडे लाकर वाशिंग मशीन में दाल देती है. वसु भी अपने कुछ कपडे डालती है मशीन में. इसमें एक गलती हो जाती है की अपने कपडे मशीन में डालते वक़्त कविता के कुछ कपडे नीचे गिर जाते है. वो नीचे गिरे हुए कपडे उठाती है तो देखती है की उसमें कविता की पैंटी भी है जो थोड़ी गीली थी और उसमें थोड़ा दाग भी था. वसु उसको देख कर मन में हस देती है और कविता को बुलाती है.
वसु: (कविता) से माजी एक बार ज़रा इधर आना. (वाशिंग मशीन उनके बाथरूम में ही था).
कविता जब वहां आती है तो वसु चुपके से अपने कमरे का दरवाज़ा बंद कर देती है तो कविता पूछती है की उसने दरवाज़ा क्यों बंद किया.
अब वो दोनों ही अकेले थे. वसु उसे बाथरूम में बुलाती है और फिर वो पैंटी उसे दिखाती है.
वसु: ये तुम्हारी पैंटी है ना?
कविता: ये तुम्हे कैसे मिला? मैंने तो इसे मेरे कपड़ों में धक् कर ही सारे कपडे डाले थे.
वसु: बात ये नहीं है की मुझे वो कैसे मिली... बात ये है की, और वो पैंटी कविता को दिखाते हुए.. ये तो थोड़ी गीली है और इसमें धाग भी लगा हुआ है. मैं जो सोच रही हूँ वही है क्या?
कविता: तू क्या सोच रही है? (ये लोग अब नोर्मल्ली बात कर रहे थे क्यूंकि ये दोनों अकेले थे और कोई नहीं था)
वसु: ये गीली है और ये धाग का मतलब है की तू रात भर किसी को याद करते हुए झड़ी थी और तुमने भी रस बहाया था. बोलो मैं सही कह रही हूँ ना?
कविता थोड़ा शर्मा जाती है इस बात से लेकिन कुछ नहीं कहती.
वसु: शर्माओ मत.. यहाँ हम दोनों ही है और कोई नहीं. और तुम्हे मेरी कसम. सच बताना.
कविता: थोड़ा शर्माते हुए... तू सही कह रही है. मैं दीपू को याद करते ही झड़ गयी और अपना पानी निकल दिया.
वसु: क्यों?
कविता: तुझे याद है जब मैं उसे कल मिली थी और अपने गले लगाया था तो उस वक़्त उसका लंड खड़ा हो गया था और मेरे पेट में उसका लंड चुभ रहा था. मैं सोच रही थी की किसी का इतना बड़ा लंड कैसे हो सकता है?
वसु कविता के पास आकर: तुझ जैसी गदरायी घोड़ी को जो भी देखेगा तो उसका लंड तो तन ही जाएगा ना... और ऐसा कहते हुए वसु कविता की एक चूची को ज़ोर से दबा देती है.
कविता: आअह्ह्ह... क्या कर रही है तू? थोड़ा आराम से करना.
वसु: देखो तो दीपू का नाम लेते ही तेरे निप्पल्स भी तन गए है. वसु उसके होंठों को चूमते हुए अपना एक हाथ कविता की साडी में दाल कर उसकी चूत को सहलाते हुए धीरे से कान में कहती है.. तेरी चूत तो अभी भी रस बहा रही है और ये तेरी पैंटी फिर से गीली हो गयी है.
कविता ये बात सुनकर एकदम शर्मा जाती है और वसु को देखते हुए उसका हाथ निकल कर वो जो गरम हो गयी थी वापिस वसु के होंठ चूम लेती है और इस बार दोनों एक मस्त गहरे चुम्बन में जुड़ जाते है.
दोनों एक दुसरे की जीभ को चूसते है और ५ मं बाद अलग हो कर..
वसु: ऐसा क्या है दीपू में की तू इतनी उत्तेजित हो रही हो और इतना पानी बहा रही हो?
कविता: दीपू इतना हैंडसम है.. उसका इतना बड़ा लंड है.. और वसु को देखते हुए... एक बात कहूँ.. तुझे देख कर मुझे जलन होती है की तू रोज़ उसकी लेती है..काश मुझे भी कोई ऐसा मिल जाता तो... ऐसा कहते हुए कविता रुक जाती है.
वसु: तेरी बात तो एकदम सही है. फिर से कविता की चूची को दबाते हुए.. उसका लंड बड़ा ही नहीं है लेकिन जब वो अंदर जाता है तो जन्नत की सैर कराता है और उसे आँख मार देती है. और तुझे पता है.. दीपू भी तेरे पे लट्टू है. कल जब तूने उसे गले लगाया था तो उसने तेरी ये मस्त गांड भी दबा दी थी.
कविता: तुझे कैसे पता चला?
वसु: भूल मत मैं उसकी पत्नी हूँ. उसका ध्यान रखना मेरा काम है. वैसे आगे चाहे तो तू भी उसका ध्यान रख सकती है.
कविता: आश्चर्य से... क्या मतलब है?
वसु: मतलब ये मेरी जान.. की तू अगर चाहे तो तेरी शादी करा दूँ उससे और तू हमारी सौतन बन जा...? और वैसे भी तू कितने दिन ऐसे एक अच्छे लंड के लिए तड़पते रहोगी? ये तड़प क्या होती है मैं अच्छी तरह से जानती हूँ.
कविता: तू सही कह रही है. मैं भी बहुत तड़प रही हूँ एक अच्छे लंड के लिए.. लेकिन मैं इतनी भी उतावली नहीं हूँ की बिना शादी किये मैं ये सब मैं करून.
वसु: मुझे तेरी यही बात अच्छी लगती है. तू भी हमारी तरह एकदम चुड़क्कड़ है लेकिन संस्कारी भी.. और उसे आँख मार देती है.
कविता: वैसे तू ये कैसे बात कर रही है? उसने तो पहले ही २ शादी की है.
वसु: तो तीसरा कर लेगा. मुझे पता है की शायद ये गलत है.. लेकिन कल मैं और दिव्या ने दीपू से इस बारे में बात किया है. वो कुछ नहीं बोलै लेकिन मैं जानती हूँ उसको. तू अगर हाँ कहे तो वो मना नहीं करेगा.
इस बारे में कविता कुछ नहीं कहती लेकिन वसु उसकी आँखों में दीपू के लिए प्यार और अपनी तड़प देख लेती है.
वसु: चल मैं तुझे जल्दी ही हमारी सौतन बना दूँगी. चिंता मत कर. बोल मंज़ूर है?
कविता भी आखिर अपना मन की बात बोल देती है.. तुझे और दिव्या को कोई परेशानी नहीं है तो दीपू से बात कर ले.
वसु: ये हुई ना बात... और फिर से उसके होंठों को जैम के चूमती है और उसकी गांड दबा देती है.
और उसे गले लगा कर उसके कान में कहती है: मैं चाहती हूँ की तू जल्दी से नानी भी बन जा और एक माँ भी और मीना को भी एक भाई/ बेहन दे दे... और ज़ोर से हस देती है. कविता ये बात सुनकर एकदम शर्मा जाती है और उसी अंदाज़ में कहती है की अगर वो फिर से माँ बन गयी तो वो (वसु) भी दादी बन जायेगी. दोनों हस देते है और फिर काम करने लगते है.
कविता: चल तू कपडे दाल दे मैं निकलती हूँ. कविता निकलने को होती है तो वसु उसे रोक देती है.
कविता: अब क्या?
वसु: कविता की पैंटी देख कर... ये क्या? तू इतनी पुरानी पैंटी पहनती है?
कविता: मतलब?
वसु: मतलब ये की तू अबसे ऐसे पैंटी नहीं पहनेगी और फिर वसु वाशिंग मशीन से अपनी एक ब्रा और पैंटी निकालते हुए कहती है अब से तू ऐसे ब्रा और पैंटी पहना कर.
कविता वसु की पैंटी देख कर.. ये तो इतनी छोटी है.. तू इसे पहनती है?
वसु: हाँ और दीपू ने ही हमें ऐसे पहने को बोलै है.
कविता: ये तो बहुत छोटी और पारदर्शी है.. इसमें तो तेरी चूत भी ठीक से धक् नहीं पाओगी और पीछे से तो तेरी पूरी गांड नज़र आती है.
वसु: हाँ डार्लिंग.. ये तो आज कल के नए फैशन के पैंटीज है जिसे दीपू बहुत पसंद करता है.
कविता: ना बाबा मैं तो नहीं पहन सकती.
वसु: तू चिंता मत कर.. जब से तू ऐसे पहनना शुरू करोगी तो तुझे भी बहुत अच्छा लगेगा.. और एक और बात.. दीपू बड़े शौकीन से उसे उतारता है रोज़ रात को जब वो मुझे और दिव्या को चोदता है. समझी. चल अब जा.. मैं भी जल्दी ही आती हूँ.. और फिर कविता भी थोड़ी शर्माते हुए अपनी गांड मटकाते हुए वो वहां से चली जाती है किचन की तरफ.
वसु भी फिर काम ख़तम कर के बाहर आ जाती है और नहा कर एकदम अच्छे से सजती है. वो फिर दीपू को फ़ोन करती है.
वसु: दीपू आज हम शहर जा रहे है.
दीपू: क्यों? वसु: कुछ कपडे लेने... और वैसे भी होली है तो सोचा अच्छे साडी वगैरह ले आये.
दीपू: ठीक है जाओ. लेकिन जल्दी आ जाना. दीपू फिर अपने ऑफिस के केबिन में चला जाता है जहाँ वो अकेला था. सुनो.. वसु: बोलो. दीपू: सब के लिए सफ़ेद साडी लेना और आपको तो पता है.. और बाकी दोनों का तो पता नहीं लेकिन अपने और दिव्या के लिए सफ़ेद ट्रांसपेरेंट साडी लेना.
वसु ये बात सुनकर हस देती है और कहती है.. जैसे तुम चाहते हो.. वैसे ही ब्रा और पैंटी भी ले लेंगे.
दीपू: एकदम सही कहा. जल्दी आना..
वसु: ठीक है.
फिर सब लोग शहर जाकर एक अच्छे मॉल में जाकर वसु सब के लिए साडी लेती है. वो भी सफ़ेद और ट्रांसपेरेंट वाला. कविता उनको देख कर कहती है की ये सब लेने की क्या ज़रुरत है तो वसु चुपके से कविता के कान में कहती है की दीपू ने ही कहा है की सब के लिए साडी ले. कविता ये बात सुनकर कुछ नहीं कहती. बाकी सब शॉपिंग कर के सब लोग शाम तक घर आ जाते है.
दीपू भी ऑफिस से आ जाता है. शाम को मीना दीपू के लिए चाय लेकर आती है और उसे चाय देते वक़्त वो इस तरह झुकती है की उसकी आधे से ज़्यादा चूचियां दिखती है.
ये दीपू भी देख लेता है और उसे देखते ही दीपू के लंड में जान आ जाती है. चाय देते वक़्त दोनों की नज़रें मिलती है.. जुबां कुछ नहीं कहती लेकिन दोनों की आँखें बहुत बयान कर देती है. ये दृश्य वसु भी देख लेती है और वो भी मन में सोचती है की मीना भी सही कर रही है. उसे ही दीपू को रिझाना होगा ताकि दीपू उसकी तरफ आये.
रात को खाना खाने के बाद सब अपने कमरे में चले जाते है सोने के लिए.
दीपू के कमरे में:
दीपू: तो तुम्हारी शॉपिंग कैसी रही?
दिव्या: एकदम मस्त. दीदी कह रही थी की तुमने ही कहा था की ट्रांसपेरेंट साड़ियां लेना.. तो वैसे ही ले आये है. दीपू फिर वो साड़ियां देखता है तो कहता है की वो तो उन लोगों को उस साडी में देखने के लिए मरा जा रहा है. वसु भी उसे चिढ़ाते हुए कहती है की उसके लिए उसे २ दिन और इंतज़ार करना पड़ेगा..वो लोग होली के दिन हो वो साडी पहनेंगे. दोनों कहते है की वो लोग थक गए है लेकिन दीपू कहाँ मानने वाला था. देखते ही देखते दोनों को नंगा कर देता है और खुद भी नंगा हो जाता है और बारी बारी से दोनों को पेलने लग जाता है. अब उनके कमरे में चूड़ियों और पायलों की खन खनाहट से आवाज़ें आती है जो कविता और मीना भी सुन लेते है.
वसु: थोड़ा आराम से करो ना.. ये चूड़ियों और पायलों की आवाज़ से पूरा कमरा गूँज रहा है. ये आवाज़ें उन्हें भी सुनाई दे रही होगी.
दीपू: तो सुनने दो ना.. वैसे भी कुछ दिन बाद उनके चूड़ियां और पायल भी ऐसे ही आवाज़ करेगी.
वसु: तुम एकदम बेशर्म हो दीपू.
दीपू वसु को चूमते हुए.. अभी कहाँ पूरा बेशरम हुआ हूँ. जब मैं तुम दोनों की गांड मरूंगा तो तब पूरा बेशरम बन जाऊँगा और ऐसा कहते हुए वसु को पेलने लगता है.
दुसरे कमरे में:
दोनों ही ये आवाज़ें सुन कर एकदम गरम हो जाती है और दोनों एक के बाद एक बाथरूम में जाकर अपने आप को ऊँगली करते हुए झड़ कर वापिस कमरे में आकर सोने की कोशिश करते है. अब तक दोनों माँ बेटी एक दुसरे से अनजान थे की वो दोनों भी जल्दी ही दीपू से चुदने वाले है.
वापस दीपू के कमरे में:
दीपू भी मस्त होकर दोनों की एक घंटे तक बारी बारी लेता है जिसमें दोनों ना जाने कितनी बार झड़ जाते है और पूरी तरह थक भी जाते है. आखिर कर दीपू भी हार मान जाता है और अपना पानी छोड़ देता है जो दोनों बड़े चाव से पी जाते है और दोनों भी एक दुसरे को किस करते हुए दीपू का रस आपस में बात भी लेते है.
दोनों दीपू के आजु बाजू सर रख कर आराम करते है क्यूंकि तीनो बहुत थक गए थे.
वसु: सुनो.
दीपू: बोलो.
वसु: तुम्हारे लिए एक खुश खबर है.
दीपू: क्या मैं बाप बनने वाला हूँ क्या?
वसु: चुप करो.. कुछ भी बकते रहते हो.
दीपू: क्यों तुम्हे माँ नहीं बनना है क्या?
वसु: हाँ बनना है लेकिन कुछ दिन और ऐसे ही एन्जॉय करते है. तुम तो हर बार मुझे जन्नत की सैर कराते हो..
दीपू: तो खुश खबर क्या है?
वसु: दोनों दीपू और दिव्या को देखते हुए.. मैंने आज सुबह कविता से बात की है और वो तुमसे शादी करने के लिए तैयार हैं.
दीपू: क्या??
वसु: हाँ वो मान गयी है. वो भी बड़ी चुड़क्कड़ है लेकिन कहती है की बिना शादी किये वो मरवायेगी नहीं.
दिव्या: तुम्हारे तो मजे ही मजे है. हमें एक और सौतन मिल जायेगी फिर.
दीपू: चुप करो यार.. कुछ भी बकवास करती हो.
वसु: क्यों तुम नहीं चाहते क्या कविता को? कल ही तो तुम कह रहे थे की उसकी गांड भी मस्त है. तुम तो जैसे उस पर लट्टू हुए जा रहे थे. तो मैं उसे मना कर दूँ क्या?
दीपू इस बात पे कुछ नहीं कहता और चुप रहता है. उसको चुप रहता देख कर..
वसु: देखा तुमने कुछ कहा नहीं लेकिन सब कह दिया. दोनों को देख कर.. अब लगता है ये बिस्तर हम लोगों के लिए कम पड़ेगा और हस देती है. इस बात पर दीपू और दिव्या भी हस देते है और फिर दीपू दोनों को अपनी बाहों में लेकर सब सो जाते है.
अगली सुबह:
आज होली के एक दिन पहले (होली दहन) था. दीपू कहता है की ऑफिस जाकर जल्दी ही घर आ जाएगा और फिर शाम को होली का दहन मनाएंगे. ये बोलकर वो ऑफिस चला जाता है.
सब लोग अपना काम करते है और फिर वसु कुछ समय बाद कविता को अपने कमरे में बुलाती है. जब कविता वसु के कमरे में जाती है तो उस वक़्त दोनों वसु और दिव्या वहां पे थे.
कविता: क्या काम है की तुमने मुझे बुलाया है.
वसु भी कविता को छेड़ते हुए.. क्या कहूँ मैं तुम्हे? कविता या हमारी सौतन?
कविता ये बात सुनकर शर्मा जाती है.
वसु: चिंता मत करो. दिव्या को सब पता है. हम दोनों अकेले में जैसे बात करते है वैसे ही इसके साथ भी बात किया करो और देखती है की कविता की आँखें थोड़ी लाल थी जैसे उसे नींद की कमी हो.
वसु: क्या हुआ तेरी आँखें लाल क्यों है?
कविता: रात तो जल्दी नींद नहीं आयी.
वसु ये बात सुनकर हस देती है और कहती है... नींद हमारी आवाज़ों से नहीं आयी क्या? इस बात पे कविता कुछ नहीं कहती तो वसु उसके पास जाकर उसकी गांड पे चपत लगाते हुए... चिंता मत कर.. अब से तुझे नींद बहुत कम आएगी क्यूंकि अब से तू भी हमारी तरह रोज़ बिस्तर पे कुश्ती करती रहेगी.
क्यों दिव्या मैंने ठीक कहा ना?
दिव्या: हाँ सही कहा दीदी. शायद कुछ दिन के लिए हम दोनों को शायद थोड़ी राहत मिले वरना ये तो हम दोनों की हालत रोज़ बिगाड़ देता है. इसपर दोनों वसु और दिव्या हस्ते है तो कविता एकदम शर्म के मारे मरी जा रही थी.
वसु: कल रात मैंने दीपू से भी बात की है. वो भी मान गया है तुमसे शादी करने के लिए. अब शादी के लिए और हमारी सौतन बनने के लिए तैयार हो जाओ.
कविता: वो तो ठीक है लेकिन एक बात केहनी थी तुमसे.
वसु: बोलो अब क्या हुआ.
कविता: बात ये है की इसके बारे में मीना को कुछ पता नहीं है और पता नहीं वो क्या सोचेगी अगर उसे पता चलेगा की दीपू मुझसे शादी करना चाहता है.
वसु: हम्म्म... बात तो तुम्हारी सही है. चिंता मत कर. मैं कुछ ही देर में मीना से इस बारे में बात करती हूँ. सब ठीक हो जाएगा. फिर तीनो बाहर आ जाते है और अपना बाकी काम करने में लग जाते है.
दोपहर को खाना खाने के बाद वसु मीना को अपने कमरे में बुलाती है और उसे कविता के बारे में सब बताती है की कैसे दीपू उसे पसंद आया है और वो भी जवान है और वसु उसकी शादी दीपू से करना चाहती है. मीना तो ये बात सुनकर चक्रा जाती है लेकिन वसु के समझाने से उसे भी लगता है की उसकी माँ को भी ख़ुशी से जीना का अधिकार है और वो भी इसके लिए मान जाती है.
उसी तरह से वसु निशा को भी बताती है की दीपू कविता से शादी करने वाला है.
निशा: दीपू के तो मजे ही मजे है.
वसु: चुप कर.. तेरी भी जल्दी ही मजे होने वाले है. जब दिनेश और ऋतू वापस आ जाएंगे तो तेरी भी शादी जल्दी ही होगी उससे. फिर तू भी मजे करना. निशा भी शर्मा जाती है और प्यार से उसकी माँ वसु के गले लग जाती है. शाम के वक़्त दीपू भी जल्दी घर आ जाता है और फिर सब रात की तैयारी करते है जब वो लकड़ियां वगैरा सब इक्कट्ठा करते है जलाने के लिए...
very very............................................................................................................................................................Nice
वहीँ दुसरे कमरे में कविता बिस्तर के कोने में सोने की कोशिश करती है.. जहाँ मनोज और मीना सो रहे थे वहीँ कविता को नींद नहीं आ रही थी. वो दीपू को ही याद कर रही थी की कितना उसका बड़ा लंड है और कैसे वो उसके पेट को छु रहा था और यही सोचते हुए वो अपनी चूत को मसलते हुए आहें भरते हुए दीपू को याद करते हुए तड़पती है और आखिर में जब वो भी झड़ जाती है तो वो भी सो जाती है…
अब आगे..
अगली सुबह जहां वसु जल्दी ही उठ गयी थी वहीँ दीपू और दिव्या एक दुसरे की बाहों में सोये हुए थे... ऐसा लग रहा था जैसे दो जिस्म एक जान हो.
फ्रेश हो कर जब वसु बाथरूम से आती है तो उन दोनों को देख कर हस्ते हुए दोनों को उठाती है.
वसु: उठ जाओ प्रेमियों. कोई तुम लोगो को देखेगा तो सोचेगा की रात भर तुम दोनों सोये नहीं और खूब रगड़ रगड़ के मस्ती किये हो..
दिव्या: उठते हुए.. सोने दो ना दीदी... अभी अच्छी नींद आ रही थी और तुमने हमें उठा दिया है. फिर दिव्या भी थोड़ा अंगड़ाई लेते हुए उठ जाती है और वो भी बाथरूम जाती है फ्रेश होने के लिए. दीपू भी उठ जाता है और जब दिव्या बाथरूम जाती है तो वसु को अपनी बाहों में लेकर उसे बिस्तर पे लुढ़का देता है और चूमने की कोशिश करता है.
वसु: अभी नहीं मेरे बेटे/ पती. तुम भी पहले फ्रेश हो जाओ. ये नौटंकी बाद में करना और उससे अलग हो कर छिडाते हुए किचन में चली जाती है.
किचन में जाकर वसु चाय बना रही होती है तो इतने में वहां कविता भी आ जाती है. दोनों एक दुसरे को देखते है लेकिन कुछ नहीं कहते.
वसु: मीना नहीं उठी है क्या?
कविता: वो उठ गयी है. थोड़ी देर में आती ही होगी.. और इतने में मीना भी वहां आ जाती है और वसु की मदत करती है चाय बनाने में. फिर सब लोग हॉल में आ जाते है और चाय पीते हुए आराम से बात करते है.
दीपू फिर जल्दी से ऑफिस जाने के लिए तैयार हो जाता है क्यूंकि उसे पता था की दिनेश भी नहीं रहेगा और वो भी २- ३ के लिए होली के समय छुट्टी लेगा. तो वो भी जलती से तैयार हो कर ऑफिस के लिए निकलने लगता है. इतने में उसका मामा मनोज कहता है:
मनोज: दीपू मैं आज चले जाऊँगा. मुझे भी ज़्यादा छुट्टी नहीं है. तुम सब लोग होली अच्छे से मनाओ. मेरा भी मन है यहां रहने का... लेकिन तुम समझ सकते हो.
दीपू: हाँ मामाजी... मैं समझ सकता हूँ. अच्छा होता अगर आप भी हमारे साथ ही रहते. अच्छे से होली मनाते.
मनोज: तुम सही कह रहो हो लेकिन मुझे जाना होगा.
दीपू: ठीक है मामाजी.. लेकिन मामी यहां थोड़े दिन रहेगी हमारे साथ. उसे भी अच्छा लगेगा...
मनोज: ठीक है... और फिर दीपू अपने ऑफिस के लिए निकल जाता है.
कुछ देर बाद मनोज भी जाने को तैयार हो जाता है. जाने से पहले मनोज मीना को कमरे में बुलाता है.
मनोज: मैं जा रहा हूँ. अपना ख्याल रखना. जैसे हमने सोचा था.. जब घर आओगी तो अच्छी खबर लेकर आना. मुझे तुम्हे खुश देखना है.
मीना ये बात सुनकर उसके आँखों में आंसू आ जाते है और वो मनोज के गले लग जाती है. अपने आंसू पोछते हुए: तुम्हे बुरा तो नहीं लग रहा है ना... की जब मैं वहां वापस आऊं तो मेरे पेट में बच्चा जनम ले रहा होगा.
मनोज: नहीं मैं बात समझ सकता हूँ. तुम्हारी ख़ुशी में ही मेरी ख़ुशी है.
मीना इस बात पे फिर रो देती है और मनोज को पकड़ते हुए उसके होंठ को चूमते हुए.. बहुत धन्यवाद जो मेरी इच्छा को समझने के लिए. मैं बहुत खुश हूँ की तुम मेरी इतना ख्याल रखते हो और तुम मेरे पती हो.
मनोज भी फिर मीना को अपने गले लगा लेता है और फिर वो दोनों बाहर आ जाते है कमरे से और मनोज भी वसु को अकेले में मीना का धयान रकने को कहता है और फिर वो अपने घर के लिए निकल जाता है.
मनोज के जाने के बाद सब अपना काम करते है. वसु भी अपने काम में बिजी हो जाती है और वो कपडे धोने के लिए वाशिंग मशीन में कपडे डालती है और घर के बाकी लोगों से भी कहती है की उनके कपडे भी दे दे.. वो उन्हें वाशिंग मशीन में धोने के लिए डाल देगी. जहाँ मीना अपने कपडे दे देती है वहीँ कविता मना करती है की वो अपने कपडे खुद धो लेगी. लेकिन वसु नहीं मानती और कहती है.. अलग धोने की क्या ज़रुरत है? जब सब कपडे एक साथ धूल सकते है तो आप फिर अलग क्यों धोना चाहती है. कविता फिर भी मना करती है लेकिन वसु मानती नहीं.
कविता: ठीक है.. पहले मीना और दिव्या के कपडे धो लो. मैं फिर अपने कपडे डाल देती हूँ मशीन में.
वसु को भी ये बात सही लगती है और पहले उन दोनों के कपडे धोने के बाद कविता अपने कपडे लाकर वाशिंग मशीन में दाल देती है. वसु भी अपने कुछ कपडे डालती है मशीन में. इसमें एक गलती हो जाती है की अपने कपडे मशीन में डालते वक़्त कविता के कुछ कपडे नीचे गिर जाते है. वो नीचे गिरे हुए कपडे उठाती है तो देखती है की उसमें कविता की पैंटी भी है जो थोड़ी गीली थी और उसमें थोड़ा दाग भी था. वसु उसको देख कर मन में हस देती है और कविता को बुलाती है.
वसु: (कविता) से माजी एक बार ज़रा इधर आना. (वाशिंग मशीन उनके बाथरूम में ही था).
कविता जब वहां आती है तो वसु चुपके से अपने कमरे का दरवाज़ा बंद कर देती है तो कविता पूछती है की उसने दरवाज़ा क्यों बंद किया.
अब वो दोनों ही अकेले थे. वसु उसे बाथरूम में बुलाती है और फिर वो पैंटी उसे दिखाती है.
वसु: ये तुम्हारी पैंटी है ना?
कविता: ये तुम्हे कैसे मिला? मैंने तो इसे मेरे कपड़ों में धक् कर ही सारे कपडे डाले थे.
वसु: बात ये नहीं है की मुझे वो कैसे मिली... बात ये है की, और वो पैंटी कविता को दिखाते हुए.. ये तो थोड़ी गीली है और इसमें धाग भी लगा हुआ है. मैं जो सोच रही हूँ वही है क्या?
कविता: तू क्या सोच रही है? (ये लोग अब नोर्मल्ली बात कर रहे थे क्यूंकि ये दोनों अकेले थे और कोई नहीं था)
वसु: ये गीली है और ये धाग का मतलब है की तू रात भर किसी को याद करते हुए झड़ी थी और तुमने भी रस बहाया था. बोलो मैं सही कह रही हूँ ना?
कविता थोड़ा शर्मा जाती है इस बात से लेकिन कुछ नहीं कहती.
वसु: शर्माओ मत.. यहाँ हम दोनों ही है और कोई नहीं. और तुम्हे मेरी कसम. सच बताना.
कविता: थोड़ा शर्माते हुए... तू सही कह रही है. मैं दीपू को याद करते ही झड़ गयी और अपना पानी निकल दिया.
वसु: क्यों?
कविता: तुझे याद है जब मैं उसे कल मिली थी और अपने गले लगाया था तो उस वक़्त उसका लंड खड़ा हो गया था और मेरे पेट में उसका लंड चुभ रहा था. मैं सोच रही थी की किसी का इतना बड़ा लंड कैसे हो सकता है?
वसु कविता के पास आकर: तुझ जैसी गदरायी घोड़ी को जो भी देखेगा तो उसका लंड तो तन ही जाएगा ना... और ऐसा कहते हुए वसु कविता की एक चूची को ज़ोर से दबा देती है.
कविता: आअह्ह्ह... क्या कर रही है तू? थोड़ा आराम से करना.
वसु: देखो तो दीपू का नाम लेते ही तेरे निप्पल्स भी तन गए है. वसु उसके होंठों को चूमते हुए अपना एक हाथ कविता की साडी में दाल कर उसकी चूत को सहलाते हुए धीरे से कान में कहती है.. तेरी चूत तो अभी भी रस बहा रही है और ये तेरी पैंटी फिर से गीली हो गयी है.
कविता ये बात सुनकर एकदम शर्मा जाती है और वसु को देखते हुए उसका हाथ निकल कर वो जो गरम हो गयी थी वापिस वसु के होंठ चूम लेती है और इस बार दोनों एक मस्त गहरे चुम्बन में जुड़ जाते है.
दोनों एक दुसरे की जीभ को चूसते है और ५ मं बाद अलग हो कर..
वसु: ऐसा क्या है दीपू में की तू इतनी उत्तेजित हो रही हो और इतना पानी बहा रही हो?
कविता: दीपू इतना हैंडसम है.. उसका इतना बड़ा लंड है.. और वसु को देखते हुए... एक बात कहूँ.. तुझे देख कर मुझे जलन होती है की तू रोज़ उसकी लेती है..काश मुझे भी कोई ऐसा मिल जाता तो... ऐसा कहते हुए कविता रुक जाती है.
वसु: तेरी बात तो एकदम सही है. फिर से कविता की चूची को दबाते हुए.. उसका लंड बड़ा ही नहीं है लेकिन जब वो अंदर जाता है तो जन्नत की सैर कराता है और उसे आँख मार देती है. और तुझे पता है.. दीपू भी तेरे पे लट्टू है. कल जब तूने उसे गले लगाया था तो उसने तेरी ये मस्त गांड भी दबा दी थी.
कविता: तुझे कैसे पता चला?
वसु: भूल मत मैं उसकी पत्नी हूँ. उसका ध्यान रखना मेरा काम है. वैसे आगे चाहे तो तू भी उसका ध्यान रख सकती है.
कविता: आश्चर्य से... क्या मतलब है?
वसु: मतलब ये मेरी जान.. की तू अगर चाहे तो तेरी शादी करा दूँ उससे और तू हमारी सौतन बन जा...? और वैसे भी तू कितने दिन ऐसे एक अच्छे लंड के लिए तड़पते रहोगी? ये तड़प क्या होती है मैं अच्छी तरह से जानती हूँ.
कविता: तू सही कह रही है. मैं भी बहुत तड़प रही हूँ एक अच्छे लंड के लिए.. लेकिन मैं इतनी भी उतावली नहीं हूँ की बिना शादी किये मैं ये सब मैं करून.
वसु: मुझे तेरी यही बात अच्छी लगती है. तू भी हमारी तरह एकदम चुड़क्कड़ है लेकिन संस्कारी भी.. और उसे आँख मार देती है.
कविता: वैसे तू ये कैसे बात कर रही है? उसने तो पहले ही २ शादी की है.
वसु: तो तीसरा कर लेगा. मुझे पता है की शायद ये गलत है.. लेकिन कल मैं और दिव्या ने दीपू से इस बारे में बात किया है. वो कुछ नहीं बोलै लेकिन मैं जानती हूँ उसको. तू अगर हाँ कहे तो वो मना नहीं करेगा.
इस बारे में कविता कुछ नहीं कहती लेकिन वसु उसकी आँखों में दीपू के लिए प्यार और अपनी तड़प देख लेती है.
वसु: चल मैं तुझे जल्दी ही हमारी सौतन बना दूँगी. चिंता मत कर. बोल मंज़ूर है?
कविता भी आखिर अपना मन की बात बोल देती है.. तुझे और दिव्या को कोई परेशानी नहीं है तो दीपू से बात कर ले.
वसु: ये हुई ना बात... और फिर से उसके होंठों को जैम के चूमती है और उसकी गांड दबा देती है.
और उसे गले लगा कर उसके कान में कहती है: मैं चाहती हूँ की तू जल्दी से नानी भी बन जा और एक माँ भी और मीना को भी एक भाई/ बेहन दे दे... और ज़ोर से हस देती है. कविता ये बात सुनकर एकदम शर्मा जाती है और उसी अंदाज़ में कहती है की अगर वो फिर से माँ बन गयी तो वो (वसु) भी दादी बन जायेगी. दोनों हस देते है और फिर काम करने लगते है.
कविता: चल तू कपडे दाल दे मैं निकलती हूँ. कविता निकलने को होती है तो वसु उसे रोक देती है.
कविता: अब क्या?
वसु: कविता की पैंटी देख कर... ये क्या? तू इतनी पुरानी पैंटी पहनती है?
कविता: मतलब?
वसु: मतलब ये की तू अबसे ऐसे पैंटी नहीं पहनेगी और फिर वसु वाशिंग मशीन से अपनी एक ब्रा और पैंटी निकालते हुए कहती है अब से तू ऐसे ब्रा और पैंटी पहना कर.
कविता वसु की पैंटी देख कर.. ये तो इतनी छोटी है.. तू इसे पहनती है?
वसु: हाँ और दीपू ने ही हमें ऐसे पहने को बोलै है.
कविता: ये तो बहुत छोटी और पारदर्शी है.. इसमें तो तेरी चूत भी ठीक से धक् नहीं पाओगी और पीछे से तो तेरी पूरी गांड नज़र आती है.
वसु: हाँ डार्लिंग.. ये तो आज कल के नए फैशन के पैंटीज है जिसे दीपू बहुत पसंद करता है.
कविता: ना बाबा मैं तो नहीं पहन सकती.
वसु: तू चिंता मत कर.. जब से तू ऐसे पहनना शुरू करोगी तो तुझे भी बहुत अच्छा लगेगा.. और एक और बात.. दीपू बड़े शौकीन से उसे उतारता है रोज़ रात को जब वो मुझे और दिव्या को चोदता है. समझी. चल अब जा.. मैं भी जल्दी ही आती हूँ.. और फिर कविता भी थोड़ी शर्माते हुए अपनी गांड मटकाते हुए वो वहां से चली जाती है किचन की तरफ.
वसु भी फिर काम ख़तम कर के बाहर आ जाती है और नहा कर एकदम अच्छे से सजती है. वो फिर दीपू को फ़ोन करती है.
वसु: दीपू आज हम शहर जा रहे है.
दीपू: क्यों? वसु: कुछ कपडे लेने... और वैसे भी होली है तो सोचा अच्छे साडी वगैरह ले आये.
दीपू: ठीक है जाओ. लेकिन जल्दी आ जाना. दीपू फिर अपने ऑफिस के केबिन में चला जाता है जहाँ वो अकेला था. सुनो.. वसु: बोलो. दीपू: सब के लिए सफ़ेद साडी लेना और आपको तो पता है.. और बाकी दोनों का तो पता नहीं लेकिन अपने और दिव्या के लिए सफ़ेद ट्रांसपेरेंट साडी लेना.
वसु ये बात सुनकर हस देती है और कहती है.. जैसे तुम चाहते हो.. वैसे ही ब्रा और पैंटी भी ले लेंगे.
दीपू: एकदम सही कहा. जल्दी आना..
वसु: ठीक है.
फिर सब लोग शहर जाकर एक अच्छे मॉल में जाकर वसु सब के लिए साडी लेती है. वो भी सफ़ेद और ट्रांसपेरेंट वाला. कविता उनको देख कर कहती है की ये सब लेने की क्या ज़रुरत है तो वसु चुपके से कविता के कान में कहती है की दीपू ने ही कहा है की सब के लिए साडी ले. कविता ये बात सुनकर कुछ नहीं कहती. बाकी सब शॉपिंग कर के सब लोग शाम तक घर आ जाते है.
दीपू भी ऑफिस से आ जाता है. शाम को मीना दीपू के लिए चाय लेकर आती है और उसे चाय देते वक़्त वो इस तरह झुकती है की उसकी आधे से ज़्यादा चूचियां दिखती है.
ये दीपू भी देख लेता है और उसे देखते ही दीपू के लंड में जान आ जाती है. चाय देते वक़्त दोनों की नज़रें मिलती है.. जुबां कुछ नहीं कहती लेकिन दोनों की आँखें बहुत बयान कर देती है. ये दृश्य वसु भी देख लेती है और वो भी मन में सोचती है की मीना भी सही कर रही है. उसे ही दीपू को रिझाना होगा ताकि दीपू उसकी तरफ आये.
रात को खाना खाने के बाद सब अपने कमरे में चले जाते है सोने के लिए.
दीपू के कमरे में:
दीपू: तो तुम्हारी शॉपिंग कैसी रही?
दिव्या: एकदम मस्त. दीदी कह रही थी की तुमने ही कहा था की ट्रांसपेरेंट साड़ियां लेना.. तो वैसे ही ले आये है. दीपू फिर वो साड़ियां देखता है तो कहता है की वो तो उन लोगों को उस साडी में देखने के लिए मरा जा रहा है. वसु भी उसे चिढ़ाते हुए कहती है की उसके लिए उसे २ दिन और इंतज़ार करना पड़ेगा..वो लोग होली के दिन हो वो साडी पहनेंगे. दोनों कहते है की वो लोग थक गए है लेकिन दीपू कहाँ मानने वाला था. देखते ही देखते दोनों को नंगा कर देता है और खुद भी नंगा हो जाता है और बारी बारी से दोनों को पेलने लग जाता है. अब उनके कमरे में चूड़ियों और पायलों की खन खनाहट से आवाज़ें आती है जो कविता और मीना भी सुन लेते है.
वसु: थोड़ा आराम से करो ना.. ये चूड़ियों और पायलों की आवाज़ से पूरा कमरा गूँज रहा है. ये आवाज़ें उन्हें भी सुनाई दे रही होगी.
दीपू: तो सुनने दो ना.. वैसे भी कुछ दिन बाद उनके चूड़ियां और पायल भी ऐसे ही आवाज़ करेगी.
वसु: तुम एकदम बेशर्म हो दीपू.
दीपू वसु को चूमते हुए.. अभी कहाँ पूरा बेशरम हुआ हूँ. जब मैं तुम दोनों की गांड मरूंगा तो तब पूरा बेशरम बन जाऊँगा और ऐसा कहते हुए वसु को पेलने लगता है.
दुसरे कमरे में:
दोनों ही ये आवाज़ें सुन कर एकदम गरम हो जाती है और दोनों एक के बाद एक बाथरूम में जाकर अपने आप को ऊँगली करते हुए झड़ कर वापिस कमरे में आकर सोने की कोशिश करते है. अब तक दोनों माँ बेटी एक दुसरे से अनजान थे की वो दोनों भी जल्दी ही दीपू से चुदने वाले है.
वापस दीपू के कमरे में:
दीपू भी मस्त होकर दोनों की एक घंटे तक बारी बारी लेता है जिसमें दोनों ना जाने कितनी बार झड़ जाते है और पूरी तरह थक भी जाते है. आखिर कर दीपू भी हार मान जाता है और अपना पानी छोड़ देता है जो दोनों बड़े चाव से पी जाते है और दोनों भी एक दुसरे को किस करते हुए दीपू का रस आपस में बात भी लेते है.
दोनों दीपू के आजु बाजू सर रख कर आराम करते है क्यूंकि तीनो बहुत थक गए थे.
वसु: सुनो.
दीपू: बोलो.
वसु: तुम्हारे लिए एक खुश खबर है.
दीपू: क्या मैं बाप बनने वाला हूँ क्या?
वसु: चुप करो.. कुछ भी बकते रहते हो.
दीपू: क्यों तुम्हे माँ नहीं बनना है क्या?
वसु: हाँ बनना है लेकिन कुछ दिन और ऐसे ही एन्जॉय करते है. तुम तो हर बार मुझे जन्नत की सैर कराते हो..
दीपू: तो खुश खबर क्या है?
वसु: दोनों दीपू और दिव्या को देखते हुए.. मैंने आज सुबह कविता से बात की है और वो तुमसे शादी करने के लिए तैयार हैं.
दीपू: क्या??
वसु: हाँ वो मान गयी है. वो भी बड़ी चुड़क्कड़ है लेकिन कहती है की बिना शादी किये वो मरवायेगी नहीं.
दिव्या: तुम्हारे तो मजे ही मजे है. हमें एक और सौतन मिल जायेगी फिर.
दीपू: चुप करो यार.. कुछ भी बकवास करती हो.
वसु: क्यों तुम नहीं चाहते क्या कविता को? कल ही तो तुम कह रहे थे की उसकी गांड भी मस्त है. तुम तो जैसे उस पर लट्टू हुए जा रहे थे. तो मैं उसे मना कर दूँ क्या?
दीपू इस बात पे कुछ नहीं कहता और चुप रहता है. उसको चुप रहता देख कर..
वसु: देखा तुमने कुछ कहा नहीं लेकिन सब कह दिया. दोनों को देख कर.. अब लगता है ये बिस्तर हम लोगों के लिए कम पड़ेगा और हस देती है. इस बात पर दीपू और दिव्या भी हस देते है और फिर दीपू दोनों को अपनी बाहों में लेकर सब सो जाते है.
अगली सुबह:
आज होली के एक दिन पहले (होली दहन) था. दीपू कहता है की ऑफिस जाकर जल्दी ही घर आ जाएगा और फिर शाम को होली का दहन मनाएंगे. ये बोलकर वो ऑफिस चला जाता है.
सब लोग अपना काम करते है और फिर वसु कुछ समय बाद कविता को अपने कमरे में बुलाती है. जब कविता वसु के कमरे में जाती है तो उस वक़्त दोनों वसु और दिव्या वहां पे थे.
कविता: क्या काम है की तुमने मुझे बुलाया है.
वसु भी कविता को छेड़ते हुए.. क्या कहूँ मैं तुम्हे? कविता या हमारी सौतन?
कविता ये बात सुनकर शर्मा जाती है.
वसु: चिंता मत करो. दिव्या को सब पता है. हम दोनों अकेले में जैसे बात करते है वैसे ही इसके साथ भी बात किया करो और देखती है की कविता की आँखें थोड़ी लाल थी जैसे उसे नींद की कमी हो.
वसु: क्या हुआ तेरी आँखें लाल क्यों है?
कविता: रात तो जल्दी नींद नहीं आयी.
वसु ये बात सुनकर हस देती है और कहती है... नींद हमारी आवाज़ों से नहीं आयी क्या? इस बात पे कविता कुछ नहीं कहती तो वसु उसके पास जाकर उसकी गांड पे चपत लगाते हुए... चिंता मत कर.. अब से तुझे नींद बहुत कम आएगी क्यूंकि अब से तू भी हमारी तरह रोज़ बिस्तर पे कुश्ती करती रहेगी.
क्यों दिव्या मैंने ठीक कहा ना?
दिव्या: हाँ सही कहा दीदी. शायद कुछ दिन के लिए हम दोनों को शायद थोड़ी राहत मिले वरना ये तो हम दोनों की हालत रोज़ बिगाड़ देता है. इसपर दोनों वसु और दिव्या हस्ते है तो कविता एकदम शर्म के मारे मरी जा रही थी.
वसु: कल रात मैंने दीपू से भी बात की है. वो भी मान गया है तुमसे शादी करने के लिए. अब शादी के लिए और हमारी सौतन बनने के लिए तैयार हो जाओ.
कविता: वो तो ठीक है लेकिन एक बात केहनी थी तुमसे.
वसु: बोलो अब क्या हुआ.
कविता: बात ये है की इसके बारे में मीना को कुछ पता नहीं है और पता नहीं वो क्या सोचेगी अगर उसे पता चलेगा की दीपू मुझसे शादी करना चाहता है.
वसु: हम्म्म... बात तो तुम्हारी सही है. चिंता मत कर. मैं कुछ ही देर में मीना से इस बारे में बात करती हूँ. सब ठीक हो जाएगा. फिर तीनो बाहर आ जाते है और अपना बाकी काम करने में लग जाते है.
दोपहर को खाना खाने के बाद वसु मीना को अपने कमरे में बुलाती है और उसे कविता के बारे में सब बताती है की कैसे दीपू उसे पसंद आया है और वो भी जवान है और वसु उसकी शादी दीपू से करना चाहती है. मीना तो ये बात सुनकर चक्रा जाती है लेकिन वसु के समझाने से उसे भी लगता है की उसकी माँ को भी ख़ुशी से जीना का अधिकार है और वो भी इसके लिए मान जाती है.
उसी तरह से वसु निशा को भी बताती है की दीपू कविता से शादी करने वाला है.
निशा: दीपू के तो मजे ही मजे है.
वसु: चुप कर.. तेरी भी जल्दी ही मजे होने वाले है. जब दिनेश और ऋतू वापस आ जाएंगे तो तेरी भी शादी जल्दी ही होगी उससे. फिर तू भी मजे करना. निशा भी शर्मा जाती है और प्यार से उसकी माँ वसु के गले लग जाती है. शाम के वक़्त दीपू भी जल्दी घर आ जाता है और फिर सब रात की तैयारी करते है जब वो लकड़ियां वगैरा सब इक्कट्ठा करते है जलाने के लिए...
वहीँ दुसरे कमरे में कविता बिस्तर के कोने में सोने की कोशिश करती है.. जहाँ मनोज और मीना सो रहे थे वहीँ कविता को नींद नहीं आ रही थी. वो दीपू को ही याद कर रही थी की कितना उसका बड़ा लंड है और कैसे वो उसके पेट को छु रहा था और यही सोचते हुए वो अपनी चूत को मसलते हुए आहें भरते हुए दीपू को याद करते हुए तड़पती है और आखिर में जब वो भी झड़ जाती है तो वो भी सो जाती है…
अब आगे..
अगली सुबह जहां वसु जल्दी ही उठ गयी थी वहीँ दीपू और दिव्या एक दुसरे की बाहों में सोये हुए थे... ऐसा लग रहा था जैसे दो जिस्म एक जान हो.
फ्रेश हो कर जब वसु बाथरूम से आती है तो उन दोनों को देख कर हस्ते हुए दोनों को उठाती है.
वसु: उठ जाओ प्रेमियों. कोई तुम लोगो को देखेगा तो सोचेगा की रात भर तुम दोनों सोये नहीं और खूब रगड़ रगड़ के मस्ती किये हो..
दिव्या: उठते हुए.. सोने दो ना दीदी... अभी अच्छी नींद आ रही थी और तुमने हमें उठा दिया है. फिर दिव्या भी थोड़ा अंगड़ाई लेते हुए उठ जाती है और वो भी बाथरूम जाती है फ्रेश होने के लिए. दीपू भी उठ जाता है और जब दिव्या बाथरूम जाती है तो वसु को अपनी बाहों में लेकर उसे बिस्तर पे लुढ़का देता है और चूमने की कोशिश करता है.
वसु: अभी नहीं मेरे बेटे/ पती. तुम भी पहले फ्रेश हो जाओ. ये नौटंकी बाद में करना और उससे अलग हो कर छिडाते हुए किचन में चली जाती है.
किचन में जाकर वसु चाय बना रही होती है तो इतने में वहां कविता भी आ जाती है. दोनों एक दुसरे को देखते है लेकिन कुछ नहीं कहते.
वसु: मीना नहीं उठी है क्या?
कविता: वो उठ गयी है. थोड़ी देर में आती ही होगी.. और इतने में मीना भी वहां आ जाती है और वसु की मदत करती है चाय बनाने में. फिर सब लोग हॉल में आ जाते है और चाय पीते हुए आराम से बात करते है.
दीपू फिर जल्दी से ऑफिस जाने के लिए तैयार हो जाता है क्यूंकि उसे पता था की दिनेश भी नहीं रहेगा और वो भी २- ३ के लिए होली के समय छुट्टी लेगा. तो वो भी जलती से तैयार हो कर ऑफिस के लिए निकलने लगता है. इतने में उसका मामा मनोज कहता है:
मनोज: दीपू मैं आज चले जाऊँगा. मुझे भी ज़्यादा छुट्टी नहीं है. तुम सब लोग होली अच्छे से मनाओ. मेरा भी मन है यहां रहने का... लेकिन तुम समझ सकते हो.
दीपू: हाँ मामाजी... मैं समझ सकता हूँ. अच्छा होता अगर आप भी हमारे साथ ही रहते. अच्छे से होली मनाते.
मनोज: तुम सही कह रहो हो लेकिन मुझे जाना होगा.
दीपू: ठीक है मामाजी.. लेकिन मामी यहां थोड़े दिन रहेगी हमारे साथ. उसे भी अच्छा लगेगा...
मनोज: ठीक है... और फिर दीपू अपने ऑफिस के लिए निकल जाता है.
कुछ देर बाद मनोज भी जाने को तैयार हो जाता है. जाने से पहले मनोज मीना को कमरे में बुलाता है.
मनोज: मैं जा रहा हूँ. अपना ख्याल रखना. जैसे हमने सोचा था.. जब घर आओगी तो अच्छी खबर लेकर आना. मुझे तुम्हे खुश देखना है.
मीना ये बात सुनकर उसके आँखों में आंसू आ जाते है और वो मनोज के गले लग जाती है. अपने आंसू पोछते हुए: तुम्हे बुरा तो नहीं लग रहा है ना... की जब मैं वहां वापस आऊं तो मेरे पेट में बच्चा जनम ले रहा होगा.
मनोज: नहीं मैं बात समझ सकता हूँ. तुम्हारी ख़ुशी में ही मेरी ख़ुशी है.
मीना इस बात पे फिर रो देती है और मनोज को पकड़ते हुए उसके होंठ को चूमते हुए.. बहुत धन्यवाद जो मेरी इच्छा को समझने के लिए. मैं बहुत खुश हूँ की तुम मेरी इतना ख्याल रखते हो और तुम मेरे पती हो.
मनोज भी फिर मीना को अपने गले लगा लेता है और फिर वो दोनों बाहर आ जाते है कमरे से और मनोज भी वसु को अकेले में मीना का धयान रकने को कहता है और फिर वो अपने घर के लिए निकल जाता है.
मनोज के जाने के बाद सब अपना काम करते है. वसु भी अपने काम में बिजी हो जाती है और वो कपडे धोने के लिए वाशिंग मशीन में कपडे डालती है और घर के बाकी लोगों से भी कहती है की उनके कपडे भी दे दे.. वो उन्हें वाशिंग मशीन में धोने के लिए डाल देगी. जहाँ मीना अपने कपडे दे देती है वहीँ कविता मना करती है की वो अपने कपडे खुद धो लेगी. लेकिन वसु नहीं मानती और कहती है.. अलग धोने की क्या ज़रुरत है? जब सब कपडे एक साथ धूल सकते है तो आप फिर अलग क्यों धोना चाहती है. कविता फिर भी मना करती है लेकिन वसु मानती नहीं.
कविता: ठीक है.. पहले मीना और दिव्या के कपडे धो लो. मैं फिर अपने कपडे डाल देती हूँ मशीन में.
वसु को भी ये बात सही लगती है और पहले उन दोनों के कपडे धोने के बाद कविता अपने कपडे लाकर वाशिंग मशीन में दाल देती है. वसु भी अपने कुछ कपडे डालती है मशीन में. इसमें एक गलती हो जाती है की अपने कपडे मशीन में डालते वक़्त कविता के कुछ कपडे नीचे गिर जाते है. वो नीचे गिरे हुए कपडे उठाती है तो देखती है की उसमें कविता की पैंटी भी है जो थोड़ी गीली थी और उसमें थोड़ा दाग भी था. वसु उसको देख कर मन में हस देती है और कविता को बुलाती है.
वसु: (कविता) से माजी एक बार ज़रा इधर आना. (वाशिंग मशीन उनके बाथरूम में ही था).
कविता जब वहां आती है तो वसु चुपके से अपने कमरे का दरवाज़ा बंद कर देती है तो कविता पूछती है की उसने दरवाज़ा क्यों बंद किया.
अब वो दोनों ही अकेले थे. वसु उसे बाथरूम में बुलाती है और फिर वो पैंटी उसे दिखाती है.
वसु: ये तुम्हारी पैंटी है ना?
कविता: ये तुम्हे कैसे मिला? मैंने तो इसे मेरे कपड़ों में धक् कर ही सारे कपडे डाले थे.
वसु: बात ये नहीं है की मुझे वो कैसे मिली... बात ये है की, और वो पैंटी कविता को दिखाते हुए.. ये तो थोड़ी गीली है और इसमें धाग भी लगा हुआ है. मैं जो सोच रही हूँ वही है क्या?
कविता: तू क्या सोच रही है? (ये लोग अब नोर्मल्ली बात कर रहे थे क्यूंकि ये दोनों अकेले थे और कोई नहीं था)
वसु: ये गीली है और ये धाग का मतलब है की तू रात भर किसी को याद करते हुए झड़ी थी और तुमने भी रस बहाया था. बोलो मैं सही कह रही हूँ ना?
कविता थोड़ा शर्मा जाती है इस बात से लेकिन कुछ नहीं कहती.
वसु: शर्माओ मत.. यहाँ हम दोनों ही है और कोई नहीं. और तुम्हे मेरी कसम. सच बताना.
कविता: थोड़ा शर्माते हुए... तू सही कह रही है. मैं दीपू को याद करते ही झड़ गयी और अपना पानी निकल दिया.
वसु: क्यों?
कविता: तुझे याद है जब मैं उसे कल मिली थी और अपने गले लगाया था तो उस वक़्त उसका लंड खड़ा हो गया था और मेरे पेट में उसका लंड चुभ रहा था. मैं सोच रही थी की किसी का इतना बड़ा लंड कैसे हो सकता है?
वसु कविता के पास आकर: तुझ जैसी गदरायी घोड़ी को जो भी देखेगा तो उसका लंड तो तन ही जाएगा ना... और ऐसा कहते हुए वसु कविता की एक चूची को ज़ोर से दबा देती है.
कविता: आअह्ह्ह... क्या कर रही है तू? थोड़ा आराम से करना.
वसु: देखो तो दीपू का नाम लेते ही तेरे निप्पल्स भी तन गए है. वसु उसके होंठों को चूमते हुए अपना एक हाथ कविता की साडी में दाल कर उसकी चूत को सहलाते हुए धीरे से कान में कहती है.. तेरी चूत तो अभी भी रस बहा रही है और ये तेरी पैंटी फिर से गीली हो गयी है.
कविता ये बात सुनकर एकदम शर्मा जाती है और वसु को देखते हुए उसका हाथ निकल कर वो जो गरम हो गयी थी वापिस वसु के होंठ चूम लेती है और इस बार दोनों एक मस्त गहरे चुम्बन में जुड़ जाते है.
दोनों एक दुसरे की जीभ को चूसते है और ५ मं बाद अलग हो कर..
वसु: ऐसा क्या है दीपू में की तू इतनी उत्तेजित हो रही हो और इतना पानी बहा रही हो?
कविता: दीपू इतना हैंडसम है.. उसका इतना बड़ा लंड है.. और वसु को देखते हुए... एक बात कहूँ.. तुझे देख कर मुझे जलन होती है की तू रोज़ उसकी लेती है..काश मुझे भी कोई ऐसा मिल जाता तो... ऐसा कहते हुए कविता रुक जाती है.
वसु: तेरी बात तो एकदम सही है. फिर से कविता की चूची को दबाते हुए.. उसका लंड बड़ा ही नहीं है लेकिन जब वो अंदर जाता है तो जन्नत की सैर कराता है और उसे आँख मार देती है. और तुझे पता है.. दीपू भी तेरे पे लट्टू है. कल जब तूने उसे गले लगाया था तो उसने तेरी ये मस्त गांड भी दबा दी थी.
कविता: तुझे कैसे पता चला?
वसु: भूल मत मैं उसकी पत्नी हूँ. उसका ध्यान रखना मेरा काम है. वैसे आगे चाहे तो तू भी उसका ध्यान रख सकती है.
कविता: आश्चर्य से... क्या मतलब है?
वसु: मतलब ये मेरी जान.. की तू अगर चाहे तो तेरी शादी करा दूँ उससे और तू हमारी सौतन बन जा...? और वैसे भी तू कितने दिन ऐसे एक अच्छे लंड के लिए तड़पते रहोगी? ये तड़प क्या होती है मैं अच्छी तरह से जानती हूँ.
कविता: तू सही कह रही है. मैं भी बहुत तड़प रही हूँ एक अच्छे लंड के लिए.. लेकिन मैं इतनी भी उतावली नहीं हूँ की बिना शादी किये मैं ये सब मैं करून.
वसु: मुझे तेरी यही बात अच्छी लगती है. तू भी हमारी तरह एकदम चुड़क्कड़ है लेकिन संस्कारी भी.. और उसे आँख मार देती है.
कविता: वैसे तू ये कैसे बात कर रही है? उसने तो पहले ही २ शादी की है.
वसु: तो तीसरा कर लेगा. मुझे पता है की शायद ये गलत है.. लेकिन कल मैं और दिव्या ने दीपू से इस बारे में बात किया है. वो कुछ नहीं बोलै लेकिन मैं जानती हूँ उसको. तू अगर हाँ कहे तो वो मना नहीं करेगा.
इस बारे में कविता कुछ नहीं कहती लेकिन वसु उसकी आँखों में दीपू के लिए प्यार और अपनी तड़प देख लेती है.
वसु: चल मैं तुझे जल्दी ही हमारी सौतन बना दूँगी. चिंता मत कर. बोल मंज़ूर है?
कविता भी आखिर अपना मन की बात बोल देती है.. तुझे और दिव्या को कोई परेशानी नहीं है तो दीपू से बात कर ले.
वसु: ये हुई ना बात... और फिर से उसके होंठों को जैम के चूमती है और उसकी गांड दबा देती है.
और उसे गले लगा कर उसके कान में कहती है: मैं चाहती हूँ की तू जल्दी से नानी भी बन जा और एक माँ भी और मीना को भी एक भाई/ बेहन दे दे... और ज़ोर से हस देती है. कविता ये बात सुनकर एकदम शर्मा जाती है और उसी अंदाज़ में कहती है की अगर वो फिर से माँ बन गयी तो वो (वसु) भी दादी बन जायेगी. दोनों हस देते है और फिर काम करने लगते है.
कविता: चल तू कपडे दाल दे मैं निकलती हूँ. कविता निकलने को होती है तो वसु उसे रोक देती है.
कविता: अब क्या?
वसु: कविता की पैंटी देख कर... ये क्या? तू इतनी पुरानी पैंटी पहनती है?
कविता: मतलब?
वसु: मतलब ये की तू अबसे ऐसे पैंटी नहीं पहनेगी और फिर वसु वाशिंग मशीन से अपनी एक ब्रा और पैंटी निकालते हुए कहती है अब से तू ऐसे ब्रा और पैंटी पहना कर.
कविता वसु की पैंटी देख कर.. ये तो इतनी छोटी है.. तू इसे पहनती है?
वसु: हाँ और दीपू ने ही हमें ऐसे पहने को बोलै है.
कविता: ये तो बहुत छोटी और पारदर्शी है.. इसमें तो तेरी चूत भी ठीक से धक् नहीं पाओगी और पीछे से तो तेरी पूरी गांड नज़र आती है.
वसु: हाँ डार्लिंग.. ये तो आज कल के नए फैशन के पैंटीज है जिसे दीपू बहुत पसंद करता है.
कविता: ना बाबा मैं तो नहीं पहन सकती.
वसु: तू चिंता मत कर.. जब से तू ऐसे पहनना शुरू करोगी तो तुझे भी बहुत अच्छा लगेगा.. और एक और बात.. दीपू बड़े शौकीन से उसे उतारता है रोज़ रात को जब वो मुझे और दिव्या को चोदता है. समझी. चल अब जा.. मैं भी जल्दी ही आती हूँ.. और फिर कविता भी थोड़ी शर्माते हुए अपनी गांड मटकाते हुए वो वहां से चली जाती है किचन की तरफ.
वसु भी फिर काम ख़तम कर के बाहर आ जाती है और नहा कर एकदम अच्छे से सजती है. वो फिर दीपू को फ़ोन करती है.
वसु: दीपू आज हम शहर जा रहे है.
दीपू: क्यों? वसु: कुछ कपडे लेने... और वैसे भी होली है तो सोचा अच्छे साडी वगैरह ले आये.
दीपू: ठीक है जाओ. लेकिन जल्दी आ जाना. दीपू फिर अपने ऑफिस के केबिन में चला जाता है जहाँ वो अकेला था. सुनो.. वसु: बोलो. दीपू: सब के लिए सफ़ेद साडी लेना और आपको तो पता है.. और बाकी दोनों का तो पता नहीं लेकिन अपने और दिव्या के लिए सफ़ेद ट्रांसपेरेंट साडी लेना.
वसु ये बात सुनकर हस देती है और कहती है.. जैसे तुम चाहते हो.. वैसे ही ब्रा और पैंटी भी ले लेंगे.
दीपू: एकदम सही कहा. जल्दी आना..
वसु: ठीक है.
फिर सब लोग शहर जाकर एक अच्छे मॉल में जाकर वसु सब के लिए साडी लेती है. वो भी सफ़ेद और ट्रांसपेरेंट वाला. कविता उनको देख कर कहती है की ये सब लेने की क्या ज़रुरत है तो वसु चुपके से कविता के कान में कहती है की दीपू ने ही कहा है की सब के लिए साडी ले. कविता ये बात सुनकर कुछ नहीं कहती. बाकी सब शॉपिंग कर के सब लोग शाम तक घर आ जाते है.
दीपू भी ऑफिस से आ जाता है. शाम को मीना दीपू के लिए चाय लेकर आती है और उसे चाय देते वक़्त वो इस तरह झुकती है की उसकी आधे से ज़्यादा चूचियां दिखती है.
ये दीपू भी देख लेता है और उसे देखते ही दीपू के लंड में जान आ जाती है. चाय देते वक़्त दोनों की नज़रें मिलती है.. जुबां कुछ नहीं कहती लेकिन दोनों की आँखें बहुत बयान कर देती है. ये दृश्य वसु भी देख लेती है और वो भी मन में सोचती है की मीना भी सही कर रही है. उसे ही दीपू को रिझाना होगा ताकि दीपू उसकी तरफ आये.
रात को खाना खाने के बाद सब अपने कमरे में चले जाते है सोने के लिए.
दीपू के कमरे में:
दीपू: तो तुम्हारी शॉपिंग कैसी रही?
दिव्या: एकदम मस्त. दीदी कह रही थी की तुमने ही कहा था की ट्रांसपेरेंट साड़ियां लेना.. तो वैसे ही ले आये है. दीपू फिर वो साड़ियां देखता है तो कहता है की वो तो उन लोगों को उस साडी में देखने के लिए मरा जा रहा है. वसु भी उसे चिढ़ाते हुए कहती है की उसके लिए उसे २ दिन और इंतज़ार करना पड़ेगा..वो लोग होली के दिन हो वो साडी पहनेंगे. दोनों कहते है की वो लोग थक गए है लेकिन दीपू कहाँ मानने वाला था. देखते ही देखते दोनों को नंगा कर देता है और खुद भी नंगा हो जाता है और बारी बारी से दोनों को पेलने लग जाता है. अब उनके कमरे में चूड़ियों और पायलों की खन खनाहट से आवाज़ें आती है जो कविता और मीना भी सुन लेते है.
वसु: थोड़ा आराम से करो ना.. ये चूड़ियों और पायलों की आवाज़ से पूरा कमरा गूँज रहा है. ये आवाज़ें उन्हें भी सुनाई दे रही होगी.
दीपू: तो सुनने दो ना.. वैसे भी कुछ दिन बाद उनके चूड़ियां और पायल भी ऐसे ही आवाज़ करेगी.
वसु: तुम एकदम बेशर्म हो दीपू.
दीपू वसु को चूमते हुए.. अभी कहाँ पूरा बेशरम हुआ हूँ. जब मैं तुम दोनों की गांड मरूंगा तो तब पूरा बेशरम बन जाऊँगा और ऐसा कहते हुए वसु को पेलने लगता है.
दुसरे कमरे में:
दोनों ही ये आवाज़ें सुन कर एकदम गरम हो जाती है और दोनों एक के बाद एक बाथरूम में जाकर अपने आप को ऊँगली करते हुए झड़ कर वापिस कमरे में आकर सोने की कोशिश करते है. अब तक दोनों माँ बेटी एक दुसरे से अनजान थे की वो दोनों भी जल्दी ही दीपू से चुदने वाले है.
वापस दीपू के कमरे में:
दीपू भी मस्त होकर दोनों की एक घंटे तक बारी बारी लेता है जिसमें दोनों ना जाने कितनी बार झड़ जाते है और पूरी तरह थक भी जाते है. आखिर कर दीपू भी हार मान जाता है और अपना पानी छोड़ देता है जो दोनों बड़े चाव से पी जाते है और दोनों भी एक दुसरे को किस करते हुए दीपू का रस आपस में बात भी लेते है.
दोनों दीपू के आजु बाजू सर रख कर आराम करते है क्यूंकि तीनो बहुत थक गए थे.
वसु: सुनो.
दीपू: बोलो.
वसु: तुम्हारे लिए एक खुश खबर है.
दीपू: क्या मैं बाप बनने वाला हूँ क्या?
वसु: चुप करो.. कुछ भी बकते रहते हो.
दीपू: क्यों तुम्हे माँ नहीं बनना है क्या?
वसु: हाँ बनना है लेकिन कुछ दिन और ऐसे ही एन्जॉय करते है. तुम तो हर बार मुझे जन्नत की सैर कराते हो..
दीपू: तो खुश खबर क्या है?
वसु: दोनों दीपू और दिव्या को देखते हुए.. मैंने आज सुबह कविता से बात की है और वो तुमसे शादी करने के लिए तैयार हैं.
दीपू: क्या??
वसु: हाँ वो मान गयी है. वो भी बड़ी चुड़क्कड़ है लेकिन कहती है की बिना शादी किये वो मरवायेगी नहीं.
दिव्या: तुम्हारे तो मजे ही मजे है. हमें एक और सौतन मिल जायेगी फिर.
दीपू: चुप करो यार.. कुछ भी बकवास करती हो.
वसु: क्यों तुम नहीं चाहते क्या कविता को? कल ही तो तुम कह रहे थे की उसकी गांड भी मस्त है. तुम तो जैसे उस पर लट्टू हुए जा रहे थे. तो मैं उसे मना कर दूँ क्या?
दीपू इस बात पे कुछ नहीं कहता और चुप रहता है. उसको चुप रहता देख कर..
वसु: देखा तुमने कुछ कहा नहीं लेकिन सब कह दिया. दोनों को देख कर.. अब लगता है ये बिस्तर हम लोगों के लिए कम पड़ेगा और हस देती है. इस बात पर दीपू और दिव्या भी हस देते है और फिर दीपू दोनों को अपनी बाहों में लेकर सब सो जाते है.
अगली सुबह:
आज होली के एक दिन पहले (होली दहन) था. दीपू कहता है की ऑफिस जाकर जल्दी ही घर आ जाएगा और फिर शाम को होली का दहन मनाएंगे. ये बोलकर वो ऑफिस चला जाता है.
सब लोग अपना काम करते है और फिर वसु कुछ समय बाद कविता को अपने कमरे में बुलाती है. जब कविता वसु के कमरे में जाती है तो उस वक़्त दोनों वसु और दिव्या वहां पे थे.
कविता: क्या काम है की तुमने मुझे बुलाया है.
वसु भी कविता को छेड़ते हुए.. क्या कहूँ मैं तुम्हे? कविता या हमारी सौतन?
कविता ये बात सुनकर शर्मा जाती है.
वसु: चिंता मत करो. दिव्या को सब पता है. हम दोनों अकेले में जैसे बात करते है वैसे ही इसके साथ भी बात किया करो और देखती है की कविता की आँखें थोड़ी लाल थी जैसे उसे नींद की कमी हो.
वसु: क्या हुआ तेरी आँखें लाल क्यों है?
कविता: रात तो जल्दी नींद नहीं आयी.
वसु ये बात सुनकर हस देती है और कहती है... नींद हमारी आवाज़ों से नहीं आयी क्या? इस बात पे कविता कुछ नहीं कहती तो वसु उसके पास जाकर उसकी गांड पे चपत लगाते हुए... चिंता मत कर.. अब से तुझे नींद बहुत कम आएगी क्यूंकि अब से तू भी हमारी तरह रोज़ बिस्तर पे कुश्ती करती रहेगी.
क्यों दिव्या मैंने ठीक कहा ना?
दिव्या: हाँ सही कहा दीदी. शायद कुछ दिन के लिए हम दोनों को शायद थोड़ी राहत मिले वरना ये तो हम दोनों की हालत रोज़ बिगाड़ देता है. इसपर दोनों वसु और दिव्या हस्ते है तो कविता एकदम शर्म के मारे मरी जा रही थी.
वसु: कल रात मैंने दीपू से भी बात की है. वो भी मान गया है तुमसे शादी करने के लिए. अब शादी के लिए और हमारी सौतन बनने के लिए तैयार हो जाओ.
कविता: वो तो ठीक है लेकिन एक बात केहनी थी तुमसे.
वसु: बोलो अब क्या हुआ.
कविता: बात ये है की इसके बारे में मीना को कुछ पता नहीं है और पता नहीं वो क्या सोचेगी अगर उसे पता चलेगा की दीपू मुझसे शादी करना चाहता है.
वसु: हम्म्म... बात तो तुम्हारी सही है. चिंता मत कर. मैं कुछ ही देर में मीना से इस बारे में बात करती हूँ. सब ठीक हो जाएगा. फिर तीनो बाहर आ जाते है और अपना बाकी काम करने में लग जाते है.
दोपहर को खाना खाने के बाद वसु मीना को अपने कमरे में बुलाती है और उसे कविता के बारे में सब बताती है की कैसे दीपू उसे पसंद आया है और वो भी जवान है और वसु उसकी शादी दीपू से करना चाहती है. मीना तो ये बात सुनकर चक्रा जाती है लेकिन वसु के समझाने से उसे भी लगता है की उसकी माँ को भी ख़ुशी से जीना का अधिकार है और वो भी इसके लिए मान जाती है.
उसी तरह से वसु निशा को भी बताती है की दीपू कविता से शादी करने वाला है.
निशा: दीपू के तो मजे ही मजे है.
वसु: चुप कर.. तेरी भी जल्दी ही मजे होने वाले है. जब दिनेश और ऋतू वापस आ जाएंगे तो तेरी भी शादी जल्दी ही होगी उससे. फिर तू भी मजे करना. निशा भी शर्मा जाती है और प्यार से उसकी माँ वसु के गले लग जाती है. शाम के वक़्त दीपू भी जल्दी घर आ जाता है और फिर सब रात की तैयारी करते है जब वो लकड़ियां वगैरा सब इक्कट्ठा करते है जलाने के लिए...