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Romance मेरी प्यारी जिन्नी (Completed)

Manisha48

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भाग ५
कुछ समय के बाद वह उसी सराय में पहुँचा जहाँ उसके दोनों भाई उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। तीनों ही इकट्ठे होने पर बहुत प्रसन्न थे कि सभी की यात्रा सकुशल समाप्त हुई। फिर उन्होंने अपनी-अपनी यात्राओं और उपलब्धियों का वर्णन किया। हुसैन ने कहा, मैं विष्णुगढ़ गया था। वह बड़ा समृद्ध देश है और वहाँ के निवासी बड़े शिष्ट हैं। मुझे वहाँ एक ऐसी चीज मिली जो और किसी को नहीं मिल सकती। तुम उस गलीचे को देख रहे हो। यह देखने में साधारण-सा गलीचा लगता है किंतु सब से असाधारण चीज है। इस पर बैठनेवाला जिस जगह भी जाने का विचार करे यह हवा में उड़ कर उसे क्षण मात्र में उस जगह पहुँचा देता है। मैंने इसे चालीस हजार अशर्फियाँ में खरीदा है। मैंने विष्णुगढ़ की कई महीने सैर की, फिर भी महीनों पहले इस सराय में आ गया हूँ क्योंकि इस गलीचे पर अपने सेवकों के साथ बैठ कर ज्यों ही मैंने यहाँ पहुँचने की इच्छा की उसी क्षण हम लोग यहाँ पहुँच गए। इसीलिए मैं यहाँ दो-तीन महीने से हूँ और तुम लोग अभी आए हो।


अली ने कहा, भाई हुसैन, इसमें संदेह नहीं कि तुम्हारी लाई हुई वस्तु अतिशय अद्भुत है। लेकिन मैं जो कुछ लाया हूँ वह किसी तरह कम नहीं है। इस हाथी दाँत की बनी दूरबीन को देखो। यह देखने में मामूली चीज मालूम होती है लेकिन मैंने इसे चालीस हजार अशर्फियों में खरीदा है। इसमें जिस चीज को देखना चाहो वह हजारों कोस दूर होने पर भी ऐसे दिखाई देगी जैसी बिल्कुल सामने हो। अगर तुम चाहो तो इसकी परीक्षा कर सकते हो। मैं तुम्हें इसके प्रयोग की विधि बताता हूँ। यह कह कर उसने हुसैन को वह विधि बताई। हुसैन ने कहा कि मैं इसमें नूरुन्निहार को देखूँगा। किंतु ज्यों ही उसने दूरबीन लगाई उसके चेहरे का रंग उड़ गया।


अली और अहमद के पूछने पर हुसैन ने कहा, भाइयो, हम तीनों का परिश्रम व्यर्थ गया और हमारे जीवन का सारा आनंद खत्म होनेवाला है। नूरुन्निहार अंतिम साँसें गिन रही है। उसे कोई जानलेवा रोग हो गया है। बीसियों दासियाँ और जनाने उसके पलंग के पास रो रहे हैं। अली और अहमद ने भी दूरबीन देखी तो यही बात पाई। अहमद ने कहा, हम सभी नूरुन्निहार का स्वास्थ्य लाभ चाहते हैं। मैं अगर वहाँ अभी पहुँच जाऊँ तो उसे इसी समय नीरोग कर सकता हूँ।


यह कह कर अहमद ने सेब निकाला और कहा, तुम लोगों के गलीचे और दूरबीन की तरह इस सेब का दाम भी चालीस हजार अशर्फी है। यह समय इसकी परीक्षा का है। इसमें यह गुण है कि किसी भी रोग के रोगी को चाहे वह मरनेवाला ही हो, यह सुँघाया जाए तो न केवल रोग दूर हो जाता है बल्कि रोगी एकदम से अपने स्वास्थ्य की साधारण अवस्था में पहुँच जाता है। इससे नूरुन्निहार को इसी समय ठीक किया जा सकता है बशर्ते कि हम वहाँ फौरन पहुँच जाएँ। हुसैन ने कहा, पहुँचाने की जिम्मेदारी मेरी रही। तुम लोग मेरे साथ इस गलीचे पर बैठ जाओ फिर इसका खेल देखो।


यह कहने के बाद हुसैन ने गलीचा बिछा दिया और तीनों भाई उस पर बैठ गए। इसके पहले उन्होंने सेवकों से कहा कि तुम लोग सराय का हिसाब चुकता करके सामान ले कर साधारण मार्ग से राजधानी को आना। गलीचे पर बैठ कर तीनों ने नूरुन्निहार के कक्ष में पहुँचने की इच्छा की और दम मारते ही वहाँ पहुँच गए। वहाँ उपस्थित लोग उनके अचानक आगमन से भयभीत हुए किंतु उन्हें पहचान कर उनके सकुशल लौट आने पर संतोष अनुभव करने लगे। अहमद ने आगे बढ़ कर औषधियोंवाला सेब नूरुन्निहार को सुँघाया। साँस अंदर जाते ही नूरुन्निहार ने आँखें खोल दीं और इधर-उधर देखने लगी।


फिर वह पलंग पर बैठ गई और बोली, मुझे गहरी नींद आ गई थी। दासियों ने कहा, नहीं, आप तो रोग के कारण मरणासन्न थीं। तुम्हारे यह तीनों चचेरे भाई अभी- अभी आए हैं और शहजादा अहमद ने एक सेब सुँघा कर आपको अच्छा किया है। दासियों से यह सुन कर नूरुन्निहार ने उनके आने पर प्रसन्नता और अहमद के प्रति कृतज्ञता प्रकट की। शहजादे भी उसे स्वस्थ देख कर प्रसन्न हुए। फिर वे तीनों नूरुन्निहार से विदा ले कर अपने पिता के पास पहुँचे। बादशाह को सेवकों ने पहले ही बता दिया था कि तीनों शहजादों ने एकदम से नूरुन्निहार के कक्ष में आ कर उसे एक क्षण में निरोग कर दिया है। बादशाह ने उनके पहुँचने पर उन्हें गले लगाया। तीनों ने अपनी अपनी लाई हुई चीजें दिखाई और नूरुन्निहार के पास पहुँच कर उसे नीरोग करने का पूरा हाल कहा। फिर उन्होंने कहा, अब आप जिससे चाहें नूरुन्निहार को ब्याह दें।


बादशाह सारा हाल सुन कर चिंता में पड़ गया। वह सोचने लगा कि अहमद ने नूरुन्निहार को अच्छा किया है किंतु यदि मैं उसके साथ नूरुन्निहार की शादी करूँ तो दोनों बड़े बेटों के प्रति अन्याय होगा क्योंकि यह स्पष्ट है कि अगर अली की दूरबीन न होती तो अहमद नूरुन्निहार की बीमारी को देख भी नहीं पाता। और अगर हुसैन का गलीचा न होता तो वह लोग इतनी जल्दी आ किस तरह पाते। नूरुन्निहार के स्वास्थ्य लाभ में तीनों की लाई हुई वस्तुओं का एक असाधारण योगदान है। किस तरह शादी का फैसला किया जाए।


उसने कहा, बेटो, तुम्हारी लाई हुई वस्तुएँ एक से एक बढ़ कर अद्भुत हैं और उनके आधार पर कोई निर्णय नहीं हो सकता। अब दूसरी प्रतियोगिता आवश्यक है। कल तुम लोग सुबह अपने घोड़ों पर तीर-कमान ले कर फलाँ मैदान में पहुँचो। मैं और अन्य राज्याधिकारी भी वहाँ होंगे। तुम तीनों के तीर फेंकने की प्रतियोगिता होगी। तीनों में जिसका तीर सबसे आगे जाएगा उसी से नूरुन्निहार का विवाह होगा। तीनों ने सिर झुका कर आदेश को स्वीकार किया।
 
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Manisha48

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प्रिय मित्रो इसका अगला भाग आप पढ़िए और बताइए कि इनमें से कोनसा शहजादा जीतेगा
यह कहानी थोड़ा धीरे आगे बढ रही है मगर कहानी पूरी तरह से अप्रत्याशित है आप इसमें अपनी कल्पना का ही इस्तेमाल कर सकते है
चाहे जो भी हो मगर अगले भाग में यह साफ हो जाएगा कि कोन इस कहानी का हीरो बनेगा और अगले भाग में सब साफ हो जाएगा कि यह कहानी कहा जा रही है
 

ashish_1982_in

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भाग ५
कुछ समय के बाद वह उसी सराय में पहुँचा जहाँ उसके दोनों भाई उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। तीनों ही इकट्ठे होने पर बहुत प्रसन्न थे कि सभी की यात्रा सकुशल समाप्त हुई। फिर उन्होंने अपनी-अपनी यात्राओं और उपलब्धियों का वर्णन किया। हुसैन ने कहा, मैं विष्णुगढ़ गया था। वह बड़ा समृद्ध देश है और वहाँ के निवासी बड़े शिष्ट हैं। मुझे वहाँ एक ऐसी चीज मिली जो और किसी को नहीं मिल सकती। तुम उस गलीचे को देख रहे हो। यह देखने में साधारण-सा गलीचा लगता है किंतु सब से असाधारण चीज है। इस पर बैठनेवाला जिस जगह भी जाने का विचार करे यह हवा में उड़ कर उसे क्षण मात्र में उस जगह पहुँचा देता है। मैंने इसे चालीस हजार अशर्फियाँ में खरीदा है। मैंने विष्णुगढ़ की कई महीने सैर की, फिर भी महीनों पहले इस सराय में आ गया हूँ क्योंकि इस गलीचे पर अपने सेवकों के साथ बैठ कर ज्यों ही मैंने यहाँ पहुँचने की इच्छा की उसी क्षण हम लोग यहाँ पहुँच गए। इसीलिए मैं यहाँ दो-तीन महीने से हूँ और तुम लोग अभी आए हो।


अली ने कहा, भाई हुसैन, इसमें संदेह नहीं कि तुम्हारी लाई हुई वस्तु अतिशय अद्भुत है। लेकिन मैं जो कुछ लाया हूँ वह किसी तरह कम नहीं है। इस हाथी दाँत की बनी दूरबीन को देखो। यह देखने में मामूली चीज मालूम होती है लेकिन मैंने इसे चालीस हजार अशर्फियों में खरीदा है। इसमें जिस चीज को देखना चाहो वह हजारों कोस दूर होने पर भी ऐसे दिखाई देगी जैसी बिल्कुल सामने हो। अगर तुम चाहो तो इसकी परीक्षा कर सकते हो। मैं तुम्हें इसके प्रयोग की विधि बताता हूँ। यह कह कर उसने हुसैन को वह विधि बताई। हुसैन ने कहा कि मैं इसमें नूरुन्निहार को देखूँगा। किंतु ज्यों ही उसने दूरबीन लगाई उसके चेहरे का रंग उड़ गया।


अली और अहमद के पूछने पर हुसैन ने कहा, भाइयो, हम तीनों का परिश्रम व्यर्थ गया और हमारे जीवन का सारा आनंद खत्म होनेवाला है। नूरुन्निहार अंतिम साँसें गिन रही है। उसे कोई जानलेवा रोग हो गया है। बीसियों दासियाँ और जनाने उसके पलंग के पास रो रहे हैं। अली और अहमद ने भी दूरबीन देखी तो यही बात पाई। अहमद ने कहा, हम सभी नूरुन्निहार का स्वास्थ्य लाभ चाहते हैं। मैं अगर वहाँ अभी पहुँच जाऊँ तो उसे इसी समय नीरोग कर सकता हूँ।


यह कह कर अहमद ने सेब निकाला और कहा, तुम लोगों के गलीचे और दूरबीन की तरह इस सेब का दाम भी चालीस हजार अशर्फी है। यह समय इसकी परीक्षा का है। इसमें यह गुण है कि किसी भी रोग के रोगी को चाहे वह मरनेवाला ही हो, यह सुँघाया जाए तो न केवल रोग दूर हो जाता है बल्कि रोगी एकदम से अपने स्वास्थ्य की साधारण अवस्था में पहुँच जाता है। इससे नूरुन्निहार को इसी समय ठीक किया जा सकता है बशर्ते कि हम वहाँ फौरन पहुँच जाएँ। हुसैन ने कहा, पहुँचाने की जिम्मेदारी मेरी रही। तुम लोग मेरे साथ इस गलीचे पर बैठ जाओ फिर इसका खेल देखो।


यह कहने के बाद हुसैन ने गलीचा बिछा दिया और तीनों भाई उस पर बैठ गए। इसके पहले उन्होंने सेवकों से कहा कि तुम लोग सराय का हिसाब चुकता करके सामान ले कर साधारण मार्ग से राजधानी को आना। गलीचे पर बैठ कर तीनों ने नूरुन्निहार के कक्ष में पहुँचने की इच्छा की और दम मारते ही वहाँ पहुँच गए। वहाँ उपस्थित लोग उनके अचानक आगमन से भयभीत हुए किंतु उन्हें पहचान कर उनके सकुशल लौट आने पर संतोष अनुभव करने लगे। अहमद ने आगे बढ़ कर औषधियोंवाला सेब नूरुन्निहार को सुँघाया। साँस अंदर जाते ही नूरुन्निहार ने आँखें खोल दीं और इधर-उधर देखने लगी।


फिर वह पलंग पर बैठ गई और बोली, मुझे गहरी नींद आ गई थी। दासियों ने कहा, नहीं, आप तो रोग के कारण मरणासन्न थीं। तुम्हारे यह तीनों चचेरे भाई अभी- अभी आए हैं और शहजादा अहमद ने एक सेब सुँघा कर आपको अच्छा किया है। दासियों से यह सुन कर नूरुन्निहार ने उनके आने पर प्रसन्नता और अहमद के प्रति कृतज्ञता प्रकट की। शहजादे भी उसे स्वस्थ देख कर प्रसन्न हुए। फिर वे तीनों नूरुन्निहार से विदा ले कर अपने पिता के पास पहुँचे। बादशाह को सेवकों ने पहले ही बता दिया था कि तीनों शहजादों ने एकदम से नूरुन्निहार के कक्ष में आ कर उसे एक क्षण में निरोग कर दिया है। बादशाह ने उनके पहुँचने पर उन्हें गले लगाया। तीनों ने अपनी अपनी लाई हुई चीजें दिखाई और नूरुन्निहार के पास पहुँच कर उसे नीरोग करने का पूरा हाल कहा। फिर उन्होंने कहा, अब आप जिससे चाहें नूरुन्निहार को ब्याह दें।


बादशाह सारा हाल सुन कर चिंता में पड़ गया। वह सोचने लगा कि अहमद ने नूरुन्निहार को अच्छा किया है किंतु यदि मैं उसके साथ नूरुन्निहार की शादी करूँ तो दोनों बड़े बेटों के प्रति अन्याय होगा क्योंकि यह स्पष्ट है कि अगर अली की दूरबीन न होती तो अहमद नूरुन्निहार की बीमारी को देख भी नहीं पाता। और अगर हुसैन का गलीचा न होता तो वह लोग इतनी जल्दी आ किस तरह पाते। नूरुन्निहार के स्वास्थ्य लाभ में तीनों की लाई हुई वस्तुओं का एक असाधारण योगदान है। किस तरह शादी का फैसला किया जाए।


उसने कहा, बेटो, तुम्हारी लाई हुई वस्तुएँ एक से एक बढ़ कर अद्भुत हैं और उनके आधार पर कोई निर्णय नहीं हो सकता। अब दूसरी प्रतियोगिता आवश्यक है। कल तुम लोग सुबह अपने घोड़ों पर तीर-कमान ले कर फलाँ मैदान में पहुँचो। मैं और अन्य राज्याधिकारी भी वहाँ होंगे। तुम तीनों के तीर फेंकने की प्रतियोगिता होगी। तीनों में जिसका तीर सबसे आगे जाएगा उसी से नूरुन्निहार का विवाह होगा। तीनों ने सिर झुका कर आदेश को स्वीकार किया।
Fantastic update bhai maza aa gya ab dekhte hai ki aage kya hota hai
 
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