सुगंधा के कहने पर अंकित मुव लेने चला गया था और उसके जाते ही सुगंधा मौके का फायदा उठाते हुए जल्दी-जल्दी बिस्तर से नीचे उतरकर अपनी पेंटि उतार दी और उसे बिस्तर के नीचे दबा दी और फिर से उसी तरह से बैठ गई,,, आगे की सोच कर उसके बदन में कसमसाहट बढ़ रही थीक्योंकि आज वह अपने मन में यही सोच रही थी कि आज की रात उसे जरूर कुछ करना होगाताकि दोनों के बीच की शर्म पूरी तरह से खत्म हो जाए और दोनों एक एकाकार हो जाए। बार-बार सुगंधा की नजर दरवाजे पर जा रही थी उसके बदन में गुदगुदाहट हो रही थी,,, और अंकित की भी हालत कुछ ऐसी ही थी मुंह लेने के लिए वह रसोई घर में पहुंच चुका था और थैले में हाथ डालकर वह मूव निकल भी गया था,,, और अपने मन में सोच रहा था कि कशमालिश करने का मौका उसे मिल जाता तो कितना मजा आता है यही सोचता हुआ वह मूव को अपने हाथ में ले लिया और अपनी मां के कमरे की तरफ आगे बढ़ गया,,,, दरवाजे पर पहुंचते ही देखा तो उसकी मां उसी तरह से बैठी हुई थी,,,, अपनी मां को देखते ही वह कमरे के अंदर दाखिल होता हुआ बोला,,,।

ज्यादा दर्द कर रहा है क्या मम्मी,,,,
हा रे शुरू शुरू में तो कुछ भी महसूस नहीं हुआ था लेकिन इस समय बहुत दर्द कर रहा है,,,,।
गेंद ज्यादा जोर से लगी थी ना,,,।
उस समय तो ऐसा नहीं लग रहा था लेकिन अभी दर्द कर रहा है,,,,।
ठीक है ये लो क्रीम,,, लेकिन क्या यह असर करेगी,,,।
करती होगी तभी तो टीवी पर इसकी एडवर्टाइज आती है,,,।
(अपनी मां की बातें सुनकर उसे थोड़ा तोफिक्र हो रहा था कि अगर सच में दर्द कर रहा होगा तो मुसीबत वाली बात हो जाएगी लेकिन फिर भी वह अपनी मां का मन लेने के लिए बोला)
अच्छा ठीक है मम्मी तुम मालिश करो मैं छत पर जाकर बिस्तर लगा देता हूं,,,,।
(अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा को गुस्सा आ रहा था अपने बेटे के भोलेपन पर अंदर ही अंदर गुस्सा कर रही थी और अभी इस बात के लिए कीजिसके लिए वह खुद इतना कुछ कर रही है सब कुछ दिखाने के लिए तैयार है वह खुद कुछ भी देखने की सोच भी नहीं रहा है जबकि खुले शब्दों में बोल भी चुकी हूं कि चोट जांघ के ऊपर लगी है,,, फिर भी कितना नादान है,,,अपने बेटे की बात सुनकर वह थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए बोली,,)
कैसा बेटा है रे तू देख रहा है कि मां को चोट लगी है और तु बिस्तर लगाने के बारे में सोच रहा है,,।
नहीं मम्मी ऐसी कोई बात नहीं है,,,मैं तो इसलिए कह रहा था कि तुम जल्दी से मालिश कर लो तब तक मैं बिस्तर लगा देता हूं ताकि तुम्हें बिस्तर लगाना ना पड़े,,,,,।
तुझे बिस्तर लगाने की पड़ी है लेकिन मेरे चोट के बारे में कुछ सोच नहीं रहा है।
तो में अब कर भी क्या सकता हूं मम्मी,,,, इस समय तो दवा खाना भी बंद हो गया होगा। नहीं तो मैं इस समय तुम्हें दवा दिलवा दिया होता,,,,।
दवा दिलवाने की जरूरत नहीं है,,,,।
,, तो फिर,,,
ले तू ही अच्छे से मालिश कर दे,,,,( बिस्तर पर रखी हुई ट्यूब को उठाकर अपने बेटे की तरफ आगे बढ़ाते हुए वह बोली,,,, सुगंधा मूव क्रीम के द्वाराअपना निशाना साधना चाहती थी अपनी मंजिल तक पहुंचाना चाहती थी क्योंकि चोट भी ऐसी जगह लगी थी जिस पर मालिश करते हुए उसके बेटे के द्वाराउसकी गुलाबी गली देखने का उसे भरपूर मौका मिलने वाला था और यह मौका खुद सुगंधा अपने बेटे को देना चाहती थी क्योंकि अभी तक वह अपनी गुलाबी गली को सिर्फ उसे दिखाते आ रही थी लेकिन आज वह सोच रही थी कि उसे गुलाबी गली में वह पूरी तरह से घूमे,,,,अपनी मां की बात सुनकर अंकित की भी आंखों में वासना का तूफान उठने लगा जो कुछ भी वह अपने मन में सोच रहा था वह सच होने वाला था इसलिए बिल्कुल भी देर ना करते हुए वह अपना हाथ आगे बढ़ा दिया और अपनी मां के हाथ से वह क्रीम लेता हुआ बोला,,,)
ठीक है इतना तो मैं कर ही सकता हूं तुम्हारी सेवा में,,,, चलो देखु तो सही चोट किस जगह लगी हुई है,,,,।
चोट तो ऐसी जगह लगी है बेटा कि मेरी तो दिखाने की हिम्मत नहीं हो रही है शर्म से मेरी हालत खराब हो रही है,,,,।
तब तो दवा खाने में कैसे दिखाती,,
इसलिए तो मुझे दवा खाने नहीं जाना है मुझे पूरा यकीन है कि तेरी मालिश से मेरा दर्द ठीक हो जाएगा,,,,।
अगर तुम्हें इतना विश्वास है तो जरूर मैं तुम्हारे विश्वास पर खरा उतरूंगा,जो तुमने मुझे मौका दी हो मे भी इस मौके का पूरा फायदा उठाऊंगा,,,,(अंकित जानबूझकरदो अर्थ में बात कर रहा था और उसकी मां उसके कहने के मतलब को समझ रही थी इसके लिए उसके चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी थी,,,और वह भी अपने मन में कह रही थी कि मैं भी तुझे मौका देना चाहती हूं देखना चाहती हूं कि तू सच में पूरा मर्द बन चुका है कि नहीं,,,, सुगंधा दरवाजे की तरफ देख रही थी यह देखकर अंकित बोला,,,)
वहां क्या देख रही हो,,,?
दरवाजा तो बंद कर दे,,,
लेकिन किस लिए यहां कौन सा हम लोग गलत काम करने जा रहे हैं जो दरवाजा बंद करना पड़े और वैसे भी तुम्हारे और मेरे सिवा घर पर तो कोई है नहीं,,,,।
तुझे बहुत गलत काम करने का मन कर रहा है ना,,,, मैं इसलिए कह रही हूं कि जहां पर मालिश करना है,,, वह थोड़ी ऊपरी जगह पर है इसलिए दरवाजा बंद कर दे,,,
(अंकित अपनी मां की हालत को अच्छी तरह से समझ रहा था,,,औरतों की यही बात सबसे अच्छी होती है कि अगर घर में कोई तीसरा शख्स ना हो तो भी फिर कुछ भी करते समय उन्हें दरवाजा बंद करने की आदत रहती है क्योंकि बंद कमरे में चार दिवारी के अंदर वह कुछ ज्यादा ही खुल जाती हैं,,,, इसलिए अपनी मां की बात मानते हुए वह दरवाजे तक गया और दरवाजा बंद करके कड़ी लगा दिया दरवाजा बंद करते समय और उस पर कड़ी लगाते समय अंकित का दिल जोरो से धड़क रहा था क्योंकि वह जानता था कि किस हालत में इस तरह से दरवाजा बंद किया जाता है अगर कमरे के अंदर एक खूबसूरत औरत हो तो,,, धीरे-धीरे अभी से ही अंकित के पेंट में तंबू बनना शुरू हो गया था,,, अंकित दरवाजा बंद करके वापस आ गया था,,,, और अपनी मां से बोला,,,)
अब लेट जाओ ताकि मैं अच्छे से मालिश कर सकूं,,,,,।
नहीं ऐसे ही मालिश करदे रुक,,,(सुगंधा इस तरह से बैठे हुए ही दोनों हाथों से अपनी साड़ी पकड़ कर ऊपर की तरफ उठने लगी वह बिस्तर पर गांड टीका कर बैठी हुई थी और उसकी गांड के वजन से नरम-दनरम गद्दा भी एकदम अंदर तक धंस गया था,,, सुगंधा का दिल जो रास्ता लग रहा था क्योंकि वह जानती थी कि वह अपने बेटे के सामने क्या करने जा रही हैदेखते-देखते वह बैठी अवस्था में ही अपनी साड़ी को घुटनों तक उठा दी थीऔर यह देखकर अंकित का दिल जोरो से धड़क रहा था वह बड़ी बेसब्री से अपनी मां की हरकत को देख रहा था उसकी गोरी गोरी टांग को देख रहा था,,,, और जानबूझकर सहज बनने के लिए बीच-बीच में बात भी कर रहा था)
कुछ ज्यादा ही ऊपर लग गई थी गेंद ऐसा लग रहा है,,
हां रे,,, बहुत ऊपर लगी है पहले से दर्द नहीं कर रहा था लेकिन अभी बहुत दर्द कर रहा है,,,,(ऐसा कहते हुए सुगंधा अपनी साड़ी को दोनों टांग आगे की तरफ किए हुए अपनी ज़ांघो तक साड़ी को उठा दी थी,,, अंकित की आंखें अपनी मां की गहराई जवान देखकर फटी के फटी रहे जा रही थीइस समय वह जिस तरह से बैठी थी उसकी मोटी मोटी जांघें केले के पेड़ के तने की तरह चिकनी चिकनी दिखाई दे रही थी जिसे देखकर पेट के अंदर अंकित का लंड अकड़ने लगा था,,,, अंकित चाहता था कि उसकी मां जल्दी से अपनी जवानी पर से पर्दा हटा दे क्योंकि वह जल्द से जल्द अपनी मां की गुलाबी गुफा को देखना चाहता था अभी उसके मन में यह शंका थी कि उसकी मां साड़ी के अंदर चड्डी पहनी है कि नहीं पहनी है अगर चड्डी पहनी हुई तो सारा मजा कीरकीरा हो जाएगा,,,, इसलिए वह मन ही मन में मना रहा था कि उसकी मां साड़ी के अंदर चड्डी ना पहनी हो,,, देखते देखते सुगंध अपनी साड़ी को जांघों उठा दी थी,,,
साड़ी उठते समय जिस तरह की उत्सुकता उसे देखने में उसके बेटे की हो रही थी उससे कहीं ज्यादा उत्सुक वह खुद थी अपने बेटे को अपनी गुलाबी बुर दिखाने के लिए,,, उसका दील भी बड़े जोरों से धड़क रहा था और मदहोशी उसकी बुर से मदन रस टपक रहा था,,, आधी जांघों तक साड़ी उठ जाने के बाद अंकित बोला,,,,।
यही लगी है क्या,,?(उंगली के इशारे से अंकित बोला)
नहीं रे थोड़ा और ऊपर लगी है,,,,,(गहरी सांस लेते हुए सुगंधा बोली,,,, दोनों किस से ऊपर नीचे हो रही थी दोनों मदहोशी की पराकाष्ठा तक पहुंच रहे थे अपने आप को एकदम उत्तेजित अवस्था में देखकर अंकित वही बिस्तर पर बैठ गया..अपनी मां की दोनों टांगों के बीच देखने की कोशिश करने लगा जो कि इस समय आपस में सटी हुई थी,, जिसे देखकर अंकित अपने आप को रोक नहीं पाया और अपनी मां से बोला,,,)
थोड़ा टांगों को खोलो तब ना पता चलेगा की कहां लगी है,,,,।

(अंकित एकदम उत्साहित होता हुआ बोल रहा था और अपने बेटे की यह बात सुनकर सुगंधा भी मन ही मन में मुस्कुराने लगी थीक्योंकि सुगंधा को इस बात का एहसास अच्छी तरह से था कि उसका बेटा उसके जांघों पर लगी चोट को नहीं बल्कि उसके गुलाबी छेद को देखना चाहता हैं,,,, और यही तो खुद वह अपने बेटे को दिखाने के लिए सारा खेल रच रही थी इसलिए अपने बेटे की बात सुनते ही वह तुरंत अपने पर को घुटनों से एकदम से मोड़ ली और एकदम से तकरीबन डेढ़ फीट की दूरी तक उसे खोल दी उसकी दोनों टांगों के बीच डेढ़ फीट की दूरी बनी हुई थी,,, और उसके ऐसा करते हीअंकित की आंखों के सामने उसकी मां की गुलाबी पर जो एकदम उत्तेजना में कचोरी की तरह फूल गई थी वह एकदम से नजर आने लगी अंकित तो सामने बिस्तर पर बैठा बैठा अपनी मां की गदराई जवानी के प्रमुख ढांचे को देखकर पागल हो गया आश्चर्य से उसका मुंह खुला का खुला रह गया,,, वह पहली बार अपनी मां की बुर नहीं देख रहा था लेकिन फिर भी इस समय वह काफी उत्तेजना का अनुभव कर रहा था क्योंकि हालात ही कुछ ऐसे थे,,,वह अपनी मां के कमरे में बैठा हुआ था और एक ही बिस्तर पर दोनों बैठे हुए थे उसकी मां अपनी जांघों की चोट दिखाते दिखाते कब अपनी गुलाबी बुर उजागर कर दी कुछ पता ही नहीं चला।अंकित की हालत यह सोचकर और ज्यादा खराब हो रही थी कि उसकी मां साड़ी के अंदर चड्डी नहीं पहनी थी जिसके बारे में वह सोचकर हैरान हो रहा थाअंकित अपने मन में यही चाहता था कि उसकी मां अंदर चड्डी ना पहनी हो ताकि वह सब कुछ अपनी आंखों से देख सके और यही हो भी रहा था इसलिए उसके चेहरे पर उत्तेजना के साथ-साथ प्रसन्नता के भाव नजर आ रहे थे
चोट का ख्यालअंकित और उसकी मां के दिमाग से एकदम से निकल गया था क्योंकि इस समय जिस तरह के हालात में वह बैठी हुई थी अपनी दोनों टांगें खोलकर उसे भी अच्छी तरह से मालूम था कि उसकी गुलाबी बुर एकदम साफ दिखाई दे रही थी,,, और यही तो अपने बेटे को दिखाने के लिए वह मौका देखकर अपनी चड्डी उतार दी थी,,,ताकि उसका बेटा उसकी नंगी बुर को देख सके उसके दर्शन कर सके ना की चड्डी में होने की वजह से वह भी निराश हो जाए क्योंकि उस समय वह अपने बेटे को चोट दिखाते दिखाते अपनी चड्डी तो नहीं उतार सकती थी ना,,,, माहौल पूरी तरह से एक पल में गर्म हो चुका था अंकित की आंखें अपनी मां की दोनों टांगों से बिल्कुल भी नहीं हट रही थी। और सुगंधा खुद अपने बेटे को अपनी बुर दिखाने से पीछे नहीं हट रही थी।अंकित अपनी मां की दोनों टांगों के बीच देख रहा था और सुगंध अपने बेटे की तरफ देख रही थी दोनों की आंखों में वासना का तूफान उठ रहा था दोनों की आंखों में एक दूसरे को पाने की चाहत दिखाई दे रही थी। अंकित को साफ दिखाई दे रहा था कि उसकी मां की बुर मदन रस से भीगी हुई थी। अपने बेटे की हालत देखकर सुगंधा को बहुत अच्छा लग रहा था वह मन ही मन प्रसन्न हो रही थी,,,, लेकिन एक बार फिर से सहज बनते हुए वह अपने बेटे से बोली,,,)

दिखाई दिया तुझे चोट,,,,,,
नहीं तो,,,,(अंकित एकदम मदहोश सा अपनी मां की बुर देखते हुए बोल रहा था उसे इस समय और कुछ नहीं दिखाई दे रहा था,,,,, और यह सुगंधा के लिए काफी उत्साहित कर देने वाली बातें थी वह अपने बेटे की हालत को देखकर बहुत खुश हो रही थी लेकिन फिर भी उसका ध्यान चोट पर ले जाना बहुत जरूरी था वरनासुगंधा के मन में हो रहा था कि उसका बेटा यही समझेगा कि उसकी मां अपनी बुर दिखाने के लिए सारा खेल रच रही थी इसलिए वहां अपनी टांग के नीचे से अपनी हथेली को अपनी जांघों तक ले गई और जहां पर दर्द कर रहा था वहां पर अपनी उंगली रखते हुए बोली,,,)
तुझे दिखाई दे रहा है देख यहां पर मुझे दर्द हो रहा है,,,,।
(अपनी मां की इस दिशा निर्देश परवह थोड़ा होश में आया और अपनी मां की बात पर ध्यान देने लगा और वह अपनी मां की बुर के निचले हिस्से की जांघ की तरफ देखने लगा जहां पर वह उंगली से दिखआ रही थीअंकित घुटनों के बल चलते हुए अपनी मां की दोनों टांगों की बेहद करीब तक आया और उसे जगह को देखने लगा जहां पर उसकी मां उंगली से दिखा रही थी और फिर उस जगह को देखते हुए बोला,,,)
हां मम्मी यह तो हल्की-हल्की लाल हो गई है,,,,।
बेटा यह तो उस गेंद की चोट की वजह से हल्की-हल्की लाल हो गई है,,, लेकिन जो तूने जो दर्द दिया है उसकी वजह से तो मेरी पूरी बुर गुलाबी हो गई है,,,(अपने बेटे की बात सुनकर वह अपने मन में ही बोली,,,,)
तभी तो दर्द कर रहा है,,,।
तुम अच्छा हुआ मूव खरीद ली इससे तुम्हें आराम मिल जाएगा लाओ लगा दुं,,,,,।
लगा दे अच्छे से,,,,।
थोड़ा लेट जाओ तब अच्छे से लग जाएगा,,,,,(अंकित जानबूझकर अपनी मां को लेट जाने के लिए कह रहा था क्योंकि वह जानता था कि लेटने से उसकी मां की बुर उसे और अच्छे से दिखाई देने लगेगी,,,, और सुगंधा भी अपने बेटे की बात मानते हुए धीरे से लेट गई,,,, और बोली,,,)
अब तो कर लेगा ना अच्छे से मालिश,,,,।
बिल्कुल एकदम साफ दिखाई दे रहा है,,,(अपनी मां की बुर देखते हुए) की कितनी हालत खराब है,,,,(वह अपनी मां की बुर की हालत को देख कर कह रहा था ना की चोट को देखकर और उसकी बात को सुगंधा भी अच्छी तरह से समझ रही थी। और मन ही मन में खुश भी हो रही थी,,, और वह धीरे से क्रीम का ढक्कन खोलने लगा और अपनी मां से बोला,,,)अब तुम इत्मानाम से लेटी रहो थोड़ी देर में तुम्हें आराम मिल जाएगा,,,,(ऐसा कहते हुएअंकित अपनी मां की दोनों टांगों के बीच देख रहा था जो कि इस समय लेटने की वजह से खुद ही उसकी साड़ी थोड़ा गुलाबी बुर को ढंक ली थी,,, और ऐसा वह जानबूझकर नहीं की थी। जब वह बिस्तर पर पीठ के बल लेट रही थी तभी उसकी साड़ी सरक कर उसके गुलाबी छेंद को ढंक दी थी,,, और अपनी ही साड़ी की यह हरकत सुगंधा को अच्छी नहीं लगी थी,,और वह इस समय अपने हाथों से साड़ी को ऊपर उठा नहीं सकती थी। और यह बात अंकित को भी अच्छी नहीं लगी थी,, लेकिन इस बात से सुगंधा खुश भी थी,,, क्योंकि वह देखना चाहती थी कि अब उसका बेटा क्या करता है,,,अपने हाथों से उसकी साड़ी उठाकर उसकी बुर देखने की कोशिश करता है कि फिर बुद्धू बनकर सिर्फ मालिश ही करता रहेगा,,, फिर भी मौके की नजाकत को समझते हुए सुगंधा अपने बेटे से बोली,,,।
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मेरी हालत को ठीक करना अब तेरी जिम्मेदारी है देखती हूं कि तो क्या कर सकता है।
बिल्कुल भी फिक्र मत करो,,,, मैं अभी हालत में सुधार ला देता हूं,,,,(इतना कहने के साथ ही वह क्रीम दबाकर उसमें से दवा निकालने लगा,,, ऐसा करते हुए उसका दिल जोरो से धड़क रहा था।क्योंकि कुछ ही देर में वह चाहता था कि उसकी हथेली उसकी मां की बुर के बेहद करीब हरकत करने वाली थी,,,, देखते ही देखते अंकित एकदम उत्तेजना से भरे हुएअपने दोनों हाथों से अपनी मां के टांग को थोड़ा सा और खोल दिया और ऐसा करने में जो अद्भुत सुख का उसे एहसास हुआ वह वर्णन करने जैसा नहीं था पूरी तरह से पागल हुआ जा रहा था।क्योंकि इस समय उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे वह अपनी मां की चुदाई करने के लिए उसकी टांगों को खोल रहा हूं क्योंकि अक्सर मर्द औरत की टांग इसीलिए खोलने भी हैं वह तो कभी कबार इस तरह से मदद करने के लिए खोल दिया जाता है वरना अक्सर मर्दों का काम यही होता है और जैसा एहसास अंकीत को हो रहा था वैसा एहसास सुगंधा को भी हो रहा था,,, क्योंकि बरसों गुजर गए थे इस एहसास से गुजरे,, पल भर में ही उसे बीते हुए वह दिन याद आने लगे जब ईसी तरह से अंकित के पापा उसे छोड़ने के लिए इसी तरह से उसकी टांगों को खोलते थे,,,,। इस समय के हालात कुछ और थे,,,, सुगंधा का दिल जोरो से डल रहा था और जिस तरह से वहगहरी गहरी सांस ले रही थी उसके चलते हैं उसकी खरबूजे जैसी चूचियां ब्लाउज में कैद होने के बावजूद भी ऊपर नीचे होकर अपने होने का एहसास कर रही थी जिस पर बार-बार अंकित की नजर चली जा रही थी।
सुगंधा का गुलाबी छेद जो इस समय उसके ही साड़ी के किनारी से हल्का सा ढंक गया था। उसके बारे में सोच कर अंकित पागल हुआ जा रहा थाक्योंकि कुछ पल पहले ही वह अपनी मां के उसे खूबसूरत अंग को देख चुका था और उसकी खूबसूरती उभर कर उसकी आंखों में वासना का तूफान भर रहा था,,,,, उंगली में हल्के से दवा लगाकर वह अपनी हथेली को अपनी मां की जांघ की तरफ आगे बढ़ाने लगा,,,बिस्तर पर लेटे हुए सुगंधा अपने बेटे को ही देख रही थी उसकी हरकत को देख रही थी,,,हल्का सा लाल रंग सुगंधा की जांघों पर दिखाई दे रहा था जहां पर रबड़ का गेंद लगा था और इस लाल रंग पर मूव क्रीम में से निकली हुई दवा अंकित लगाने लगा ,,, अंकित उंगली के सहारे हल्के हल्के दवा को लग रहा था तब तक सुगंधा को कुछ एहसास नहीं हो रहा था लेकिन जब सुगंधा ने कहीं।
अरे थोड़ा जोर लगा ऐसे कैसे आराम मिलेगा,,,,।
(बस इतना सुनते ही अंकित अपनी पूरी हथेली से उसे लाल रंग के हिस्से को दबोच दिया एकदम मदहोश होकर मानो के जैसे वह अपनी मां के साथ संभोग कर रहा हो और अंकित की इस हरकत पर सुगंध एकदम से उत्तेजित होकर सिहर उठी और एकदम से उसकी आंखें मदहोशी में बंद होने लगीजिस तरह का अनुभव उसे अपने शरीर में महसूस हुआ था उसके चलते हुए अपने लाल रंग के निचले हिस्से को दांत से दबा दी थी,,, और अपनी मां की इस एहसास कोअंकित अपनी आंखों से देख लिया था और समझ गया था कि उसकी मां को मजा आ रहा हैअंकित इस तरह से अपनी मां की जांघों को दबाना शुरू कर दिया और दवा को लगाना शुरू कर दिया अपनी मां की मोटी मोटी जांघ को दबाने में उसे इतना मजा आ रहा था कि पूछो मत,,,,अंकित पागल हुआ जा रहा था उसकी आंखों के सामने उसकी मां अधनंगी हालत में लेटी हुई थी,,,, उसकी गुलाबी पर हल्का सा साड़ी से ढंका हुआ था जिसे अंकित अपने हाथों सेउसकी साड़ी हटा देना चाहता था और उसके गुलाबी बुर को जी भर कर देख लेना चाहता था,,,, अंकित को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें,,, और इसके बारे में सोचता होगा वह अपनी मां की जांघ की मालिश कर रहा था।सुगंधा पीठ के बोल लेते हुए अपनी आंखों को बंद करके इस एहसास में धीरे-धीरे डूब रही थी उसे बहुत मजा आ रहा था जहां पर वह मालिश कर रहा था बस उससे दो-तीन अंगुल की दूरी पर है सुगंधा का गुलाबी छेद था।और इसका एहसास मां बेटे दोनों को पागल कर रहा था अंकित का लंड उसकी पेंट में गदर मचाने को तैयार था और सुगंधा की बुर बर-बर पानी फेंक रही थी।
अपनी नानी के साथ संबंध लेने के बाद उसे इतना तो पता ही था कि औरत को कैसे मदहोश किया जाता है उसे मजबूर किया जाता है संबंध बनाने के लिए इसलिए वह बार-बार अपनी मां की जांघ को जोर-जोर से दबा रहा था मसल रहा थारह रहे कर सुगंधा के मुंह से सिसकारी भी फूट पड़ रही थी और दर्द से थोड़ा कराह भी ले रही थी लेकिन अपने बेटे से इसकी बिल्कुल भी शिकायत नहीं कर रही थी जिसका मतलब साफ था कि वह भी आगे बढ़ना चाहती थी।अंकित अपनी मां की तरफ देख रहा था उसकी मालिश भी कर रहा था वह देखना चाहता था कि उसकी मां कुछ कहती है कि नहीं क्योंकि वह इस समय अपनी मां की साड़ी को उसकी बुर से थोड़ा सा ऊपर उठाना चाहता था,,,,ताकि वह यह देख सके कि उसकी मां के मन में क्या चल रहा है और वह अपनी मां को इसका एहसास दिला सके कि वह खुद क्या चाहता है लेकिन फिर भी ऐसा करते समय उसका दिल बड़े जोरों से धड़क रहा था। अपनी मां की जंग को मसल मसल कर वह पूरी तरह से लाल कर दिया,, था,,,,अपनी मां की जान को मालिश करने के बहाने मसलते हुए उसे इतना तो एहसास हो रहा था कि वाकई में औरत के हर एक अंग से अद्भुत आनंद के फुहार फुट दिए जिसमें दुनिया का हर मर्द नहाने के लिए उतावला रहता है और इस समय उस आनंद की फुहार में अंकित अपने आप को भीगता हुआ महसूस कर रहा था।,,,, अंकित अपने मन की करने के लिए अपना मन बना चुका थावह अपनी मां की तरफ देख रहा था जो कि इस समय मदहोश होकर अपनी आंखें बंद करके गहरी गहरी सांस ले रही थी अंकित को इस बात का पता चल रहा था कि उसकी मां के बदन मैं अब बिल्कुल भी दर्द नहीं था बल्कि वह मजा ले रही थी क्योंकि ऐसा एहसास वह अपनी नानी के चेहरे पर देख चुका था।
ट्यूबलाइट की दूधिया रोशनी में सब कुछ साफ नजर आ रहा था रात के 11:00 बज रहे थेवैसे तो यह समय मां बेटे दोनों का बिस्तर पर सोने का था,,, लेकिन इस समयबिस्तर पर तो दोनों था लेकिन सोने के लिए नहीं बल्कि एक दूसरे के साथ सोने के लिए मचल रहे थे नींद दोनों की आंखों में बिल्कुल भी नहीं थीऔर ऐसा ही होता है जब मरद और औरत एक साथ बिस्तर पर होते हैं तो दोनों की आंखों से सबसे पहले नींद भाग जाती है ताकि वह दोनों अकेले रह सके,, और इस समय दोनों की हालत उसी तरह की
थी,, मां बेटे दोनों की आंखों में वासना के साथ-साथ उम्मीद की किरण की नजर आ रही थी,,, अंकित गांधी जोरों से धड़क रहा था दिल की धड़कन बड़ी तेजी से चल रही थी मानो कि अंकित से पहले उसे ही मंजिल पर पहुंचने की जल्दबाजी होअपनी मां की सांसों की गति के साथ उठती बैठती ,,चूचियों को देखकर अंकित का मन कर रहा था कि इसी समय हाथ बढ़ाकर अपनी मां की दोनों चूचियों को थाम ले और उनसे जी भरकर खेलें,,, क्योंकि मर्दों के लिए इससे बेहतर खिलौना बना ही नहीं है,, अंकित अपने मन में ठान लिया थावह पूरी तरह से तैयार था अपनी मां की साड़ी को थोड़ा सा ऊपर उठने के लिए ताकिउसके बदन का सबसे खूबसूरत अंग उसे दिखाई दे सके,,,, लेकिन यह कार्य अंकितसहज रूप से बातों के जरिए करना चाहता था इसलिए वह अपनी मां से बात करना चाहता था और अपनी मां की जांघ को अपनी हथेली में दबोचते हुए बोला।)
अब कैसा लग रहा है मम्मी,,,?
अब तो बहुत अच्छा लग रहा है ऐसा लग ही नहीं रहा है कि यहां दर्द है,,,, बस थोड़ी देर और मालिश करता रे एकदम से दर्द निकल जाएगा,,,,।
तुम चिंता मत करो तुम कहोगी तो मैं रात भर मालिश करता रहूंगा,,,।
अच्छा यह बात है थकेगा नहीं,,,।
औरतों की सेवा मेरा मतलब है कि तुम्हारी सेवा करने में अगर थक जाऊं तो मैं मर्द किस बात का,,,।
ओहहहह,,,, क्या बात है,,,(अंकित की बात सुनकर सुगंधा एकदम गदगद हो गई थी,,, अच्छी तरह से जानते थे कि उसके बेटे के कहने का मतलब क्या है इसलिए तो उसके कहने का मतलब को समझ कर वह पानी पानी हो रही थी,,,)
तो क्या ऐसे ही थोड़ी ना कह रहा हूं मैं पहले जैसा अंकित नहीं हूं अब पूरी तरह से बदल गया हूं पूरा मर्द बन चुका हूं,,,,(अंकित जानबूझकर मर्द शब्द कहकर अपनी मां को यह जैसा ना चाहता था कि अब वह पूरी तरह से तुम्हारे लिए तैयार हो गया है चाहे जैसे उसका उपयोग कर सकती हो,,,सुगंधा भी अपने बेटे की बात सुनकर अपने मन में ही बोली यह तो वक्त बताएगा बेटा कि तू पास होता है या फेल होता है,,, क्योंकि अच्छे-अच्छे औरतों की बीच नाली में ही डूब गए,,, अपने बेटे की बात सुनकर वह बोली,,)
वह तो दिखाई देता है,,, तू बहुत जोर-जोर से मालिश कर रहा है,,,।
तुमको पूरी तरह से आराम मिल जाए इसलिए कर रहा हूं क्या तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा है,,,?(इतना कहने के साथ ही अपनी बीच वाली उंगली को एकदम से अपनी मां की बुर के करीब ले जाते हुए जो कि इस समय साड़ी से ढकी हुई थी)
सहहहहह ,,,,,आहहहहहहह बहुत अच्छा लग रहा है,,,,(अपने बेटे की हरकत से ना चाहते हुए भी उसके मुंह से सिसकारी निकल पड़ी थी,,, और अपनी मां की गरमा गरम सिशिकारी की आवाज सुनकर अंकित का लंड पागल हुआ जा रहा था,,,,, अपनी मां की हालत और अपनी चाहत देखकर उसे रहा नहीं गया और वह तुरंत अपनी मां की साड़ी जो हल्का सा उसकी बुर को ढंक ली थी,,, उसे पकड़कर ऊपर की तरफ नहीं बल्कि उसे नीचे की तरफ कमर पर जहां पेटिकोट की डोरी से कई होती है उसे धीरे-धीरे उसके अंदर डाल दिया ताकि दोबारा उसकी साड़ी की कीनारी बुर के ऊपर ना आएऐसा करते हुए उसकी उंगलियां कांप रही थी उसकी अजीब सी हालत हो रही थी उसे ऐसा था कि उसकी हरकत पर उसकी मां जरूर कुछ बोलेगी,,, लेकिन उसके हेरान के बीच उसकी मां उसे कुछ नहीं बोली बस उसी तरह सेआंख बंद करके लेटी रही लेकिन उसे पल का एहसास अंकित को हुआ था जब उसने अपनी मां की साड़ी को उठाकर उसकी पेटिकोट की डोरी के नीचे डाला था तब उसकी मां के बदन में अजीब सी कसमसाहट हुई थी जिसको महसूस करके अंकित को लगने लगा था कि आज की रात जरूर कुछ काम बनने वाला है,,,,, साड़ी केएक बार फिर से बुर की जगह से हटने से एक बार फिर सेवा खूबसूरत अद्भुत नजारा दिखाई देने लगा था,,, बुर की चिकनाहट बता रही थी कि जल्दी में ही उसकी मां ने क्रीम लगाकर उसकी सफाई कीऔर सफाई करने के बाद वाकई में उसकी मां की बुर चमकते चांद की तरह हो गई थी जिसे पाने के लिए दुनिया का हर प्रेमी हर मर्द उत्सुक रहता है,,,,,। एक बार फिर से अंकित अपनी फटी आंखों से अपनी मां की गुलाबी बर को देख रहा था जो पूरी तरह से मदन रस के पानी से लबालब भरी हुई थी और उसे मदन रस की गगरी छलक रही थी जिससेवह कांग्रेस पूरी तरह से उसकी बुर के निचले स्तर को भी होता चला जा रहा था और आलम यह था कि नीचे लगाया गया बिस्तर भी गीला हो रहा था इतना अदभुत और इतना ज्यादा सुगंधा बुर से पानी बहा रही थी यह सुगंधा की स्थिति की गवाही थी कि उसकी हालत क्या हो रही थी किस कदर वह मर्द के साथ के लिए तड़प रही थी।
सुगंध को भी इस बात का एहसास था कि उसके बेटे ने उसकी साड़ी को एक बार फिर से उसकी बुर पर से हटा दियाहै और इस समय फिर से उसकी गुलाबी बुर उसके बेटे की आंखों के सामने उजागर हो गई होगी जिसे देखकर उसके बेटे के मन में न जाने कैसी कैसी कल्पना हो रही होगी,,,, यही सोच करसुगंधा की सांस फिर से ऊपर नीचे होने लगी थी उसकी हालत फिर से खराब होने लगी थी वह जानती थी कि उसकी बुर से लगातार पानी निकल रहा था जिसकी वजह से नीचे बिछाया गया चादर भी गीला हो रहा था,,,, अपनी मां की नमकीन और पनियाई बुर को देखकर अंकित जानबूझकर अपना भोलापन का नाटक दिखाते हुए बोला,,,,।
बाप रे तुम्हारी यह तो गिली हो गई है,,,,,
क्या गीली हो गई है,,,(सुगंधा जानते हुए भी उसका बेटा किस बारे में बात कर रहा है वह जानबूझकर अनजान करने का नाटक करते हुए बोल रही थी)
अरे यही तुम्हारी देखो तो कितना पानी छोड़ रही है,,,,
तो यही वही क्या कर रहा है नाम लेकर बोल,,,।
धत्,,,,, इसका नाम लेने में शर्म आ रही है,,,।
चल अब रहने दे शर्म का नाटक करने को गंदी किताब मेंन जाने कितनी बार गंदे शब्द आए थे लेकिन तू बेझेक उसे पढ़ना चला जा रहा था मेरे सामने और इस समय नाटक कर रहा है शर्माने का,,,।
अरे वह तो सिर्फ किताब की बात थी,,,।
किताब की बात थी तो क्या हो गया शब्द तो वही थे ना जो आमतौर पर लड़के प्रयोग में लेते हैंऔर इस समय तेरी हालत खराब हो रही है उसका नाम लेने में और अपने आप को कहता है कि पूरा मर्द बन गया हूं,,,,।
(सुगंधा जानबूझकर अपने बेटे को उपसह रही थी उसकी जवानी की दुहाई दे रही थी उसकी मर्दानगी को ललकार रही थी जिसे सुनकर वाकई में अंकित अपने आप को अपनी मां के सामने लाचार साबित होता हुआ नहीं देखना चाहता था इसलिए वह एकदम से हिम्मत जुटाकर बोला,,,)
बबबबब,,,बुर,,,,,,(अंकित हकलाते हुए बोलावह पहले भी अपनी मां के सामने इस तरह के शब्दों का प्रयोग कर चुका था लेकिन आज की बात को छोड़ता हालत कुछ ओर थे,, आज अंकित को सच में लग रहा था कि आज उसकी मां के साथ उसका जरूर कुछ होने वाला है,,,, अपने बेटेके मुंह से अपने खूबसूरत और संवेदनशील अंग का नाम सुनते ही सुगंध के चेहरे का रंग एकदम से बदलने लगा उसके होठों पर मादक मुस्कान छाने लगी,,,, और फिर वह अपने बेटे का हौसला बढ़ाते हुए बोली,,,)
यह हुई ना बात इसे कहते हैं असली मर्द,,,,,,कुछ दिनों में हम दोनों के बीच जो कुछ भी हुआ है जिस तरह से वार्तालाप हो रही है उसे देखते हुए हम दोनों को अभी एक दूसरे से इस तरह की बात करते हुए इस तरह के शब्दों का प्रयोग करते हुए शर्म नहीं करना चाहिए,,, सच कहूं तो बरसों से मेरी ख्वाहिश थी कि अपने पास भी कोई ऐसा साथी हो जिससे मैं इस तरह के शब्दों का प्रयोग करके बात कर सकूं तेरे पापा के जाने के बाद मेरी एक ख्वाहिश मेरे सीने में ही दब कर रह गई,,,
क्या सच में मम्मी तुम इस तरह के शब्दों का प्रयोग करना चाहती थी इस तरह से आमतौर पर जिस तरह से हम लड़के लोग बात करते हैं इस तरह से तुम भी बात करना चाहती थी,,,(अपनी मां की जांघों को अपनी हथेली में दबोचते हुए,,)
आहहहह,,,, बहुत जोर से मसलता है तू,,,, तु बिल्कुल सच कह रहा है,,,,ऐसा बिल्कुल भी नहीं है किस तरह के शब्दों का प्रयोग करके जो आपस में बात करते हैं वह गंदे होते हैं गंदे आदमी या गंदी औरत ऐसा कुछ भी नहीं है आमतौर पर मर्द और औरत आपस में इस तरह की बातें करते ही रहते हैं हमारे स्कूल में भी कुछ औरतें हैं जो इस तरह से ही बातें करती है,,,।
तब तुम अभी तुम भी उन लोगों के साथ इस तरह की बात कर सकती थी ,,,,।
कर तो सकती थी लेकिन मैं जानबूझकर ऐसी बातें नहीं करती थीअगर मैं उन लोगों से इस तरह की बातें करती तो सारे दिन लोगों को मेरे बारे में गलत भावना ही जाती वह लोग मेरे बारे में गलत धारणा बांध लेते क्योंकि फिर उन्हें लगने लगता है कि मैं पति के जाने के बाद भी किसी के साथ रिलेशनशिप में हूं तभी इस तरह की बातें करते हैं और इसीलिए मैंने इस तरह की बातें उन औरतों से कभी नहीं की जो कि मेरी सहकर्मी ही है,,,।
नूपुर आंटी से भी नहीं,,,,(अपनी मां की बुर को देखकरअंकित को राहुल की मां याद आने लगी थी इसी तरह से उसकी खुली टांगों के बीच अपना मुंह डालकर वह उसकी बुर को अपनी जीभ से चाटा था,,,, और इस समय भी उसका मन कुछ ऐसा ही करने को कर रहा था इसलिए वह अपनी मां के सामने नूपुर का जिक्र छेड़ दिया था,,,, लेकिन नूपुर की बात आने पर भी उसकी मां सहज बनी रही और बोली।)
नहीं उसके साथ भी ईस तरह की बातें में नहीं करती थी,,, क्योंकि वह अभी सीधी शादी सी थी किसी से ज्यादा बोलती चालती नहीं थी,,,,,,,
(अपनी मां से बात करने के दौरान भी अंकित की नजर अपनी मां के गुलाबी बुर पर थी जिसे देखकर उसके मुंह से लार टपक रही थी अंकित अपनी मम्मी बहुत सी बातें सोच रहा थाउसे इतना तो एहसास हो रहा था कि उसकी मां क्या चाहती है अगर उसके मन में भी गंदी भावना ना होती तो वह उसके सामने इस तरह से टांग खोल कर लेटी ना होती,,,,इसलिए वह जानता था कि उसे थोड़ी हिम्मत दिखाने की जरूरत है और अगर आज की रात वह भी कुछ नहीं कर पाया तो उसके जैसा बुद्धू इंसान दुनिया में कोई नहीं,,, है।इसलिए वह अपनी मां से बात करने के दौरान तुरंत अपनी हथेली को एकदम से अपनी मां की बुर पर रख दिया और उसके गुलाबी लकीर को अपनी हथेली के नीचे ढक लिया एकदम से अपनी बर पर अपने बेटे की हथेली महसूस करते ही सुगंधा गनगना गई,,, और वह एकदम से उठ कर बैठ गई और अपने बेटे की आंख में आंख मिलाकर बोली,,,)
यह क्या कर रहा है अंकित,,,,(सुगंधा की सांसें उपर नीचे हो रही थी ऐसा कहते हुए वह अपनी टांगों के बीच तो कभी अंकित के चेहरे को देख ले रही थी,,, सुगंधा का चेहरा साफ बता रहा था कि वह क्या चाहती है वह सिर्फ ऊपर से अपने बेटे को जाने की कोशिश कर रही थी जबकि वह अपने बेटे से यही उम्मीद लगा कर बैठी थी,,)