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Incest मासी का घर (सेक्सी मासी और मासी की बेटी)

Carry0

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क्या बात है मजा आ रहा है और ये जो मजा आपकी कहानी ने दिया है, ये मेरी पत्नी के लिए सजा बनने वाला है 😁🛌🤼
 

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मासी का घर
अध्याय 14 - एक संधि और उपहार (A Treaty and The Treat)

कल रात, जो अधूरा काम जिसे पूरा हो जाना चाहिए था, मासी के मना करने के बाद नहीं हो पाया। हम दो जीवों का वह संगम जो दोनों के लिए आनंददायी था वो हरामज़ादी दुनिया के डर से हो नहीं सका। मासी के मन में भी इच्छा थी मगर, वे घबरा रही थी।

अगर किसी आदमी को गरम करने के बाद वैसे ही छोड़ दिया जाए, तो इस बात में कोई शक नहीं की वह आदमी काफी गुस्सा होगा। ऐसे ही, मुझे भी गुस्सा आ रहा था, लेकिन उतारता किस पर। आखिर वे मेरी मासी है, मेरी करीबी है। नाराज़ होने के बजाय, मुझे उन्हें इस रिश्ते के लिए राज़ी करना होगा, समाज के डर से उभरने में उनकी मदद करनी होगी।

अब आगे;

अगली सुबह मेरी आंखे बड़े जल्दी खुल गई, अब तक सूर्य भी नहीं उगा था, बाहर अंधेरे, कोहरे और streetlights के आस पास उड़ने वाले कीड़ों के अलावा कुछ भी नहीं था। मुझे लग रहा था की इस समय सिर्फ मैं ही जाग रहा था, लेकिन मुझे बाहर से किसी और की भी आवाज सुनाई दी।

बाहर निकाल कर देखा तो विशाखा के कमरे के दरवाजा हल्का सा खुला हुआ है, जिसमें से रोशनी आ रही है। मैं सोच ही रहा था की अंदर घुस कर विशाखा को आश्चर्यचकित किया जाए, तभी विशाखा मेरे दरवाजे के खुलने आवाज सुन कर अपने कमरे से बाहर आई।

उसे देख कर लग रहा था की वो काफी देर पहले ही उठ चुकी थी। मुझे देख कर उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान आ गई और वो हल्की दाबी आवाज में मुझे कहने लगी,

विशाखा: “अरे वाह, आज तुम काफी जल्दी उठ गए या फिर शायद सूरज चाचा को आने में देर हो गई!”

मैं भी विशाखा की मसखरी सुनकर मजाकिया अंदाज में कहने लगा,

मैं: “हां, हो सकता है तुम्हारे सूरज चाचा ट्रैफिक में फस गए हो।”

इस बात को सुनकर हम दोनों ही काफी जोर से खिलखिला कर हंसने लगे। अचानक से विशाखा ने उसकी हथेली मेरे हस्ते हुए मुंह पर रख कर मुझे चुप कर दिया और खुद भी शांत हो गई। विशाखा दाबी हुई, क्यूट सी आवाज में कहने लगी,

विशाखा: “अरे जोर से मत हसो, अगर हम दोनों मुर्गा-मुर्गी जाग रहे है इसका मतलब यह नहीं होता की सब जाग रहे है।”

मैं अब क्या बोल ही सकता था, उसका कहना हुकुम बराबर। ऊपर से उसने मेरे मुँह पर हाथ रख दिया था, मैं बोलने की कोशिश कर रहा था लेकिन हम्म हम्म की आवाज के अलावा कुछ नहीं कह पा रहा था। मेरे शब्दों को विशाखा समझ नहीं पा रही थी, उसने कहा,

विशाखा: “इंसानों की भाषा बोले, मुझे मक्खियों की बोली समझ नहीं आती।”

मैंने विशाखा के रखे हाथ की ओर इशारा करने लगा। उसने हाथ हटाया…

विशाखा: “अरे सॉरी…”

मैं: “अरे मैं कह रहा था की इतनी सुबह क्या कह रही हो?”

विशाखा: “मेरा तो रोज का है, तुम्हारा सूर्योदय पश्चिम से कैसे हुआ?”

मैं: “कुछ नहीं, बस नींद खुल गई!”

इससे पहले कि मैं कुछ और कह पता विशाखा कहने लगी,

विशाखा: “अच्छा अभी तुम जागे हुए ही हो तो बाहर घूम के आते है, क्या ख्याल है?”

अब मैं तो था ही जोरू का गुलाम, हुकुम के आदेश देने पर मुझे सुनना ही होगा। मैं जानता था, इतनी सुबह जब प्रकृति काफी सुंदर लगती है, इस समय अगर कोई हाथ में हाथ डाल कर चले तो काफी मजा आता है। लम्हा काफी रोमांटिक हो सकता है।

हम घर के बाहर निकले, गर्मियों के समय भी सुबह के दौरान ठंड होती है। ठंड से मेरा पूरा शरीर कांप रहा था। विशाखा ने तो जैकेट पहनी थी, शायद उसे इतनी ठंड नहीं लग रही होगी। ऊपर से वह अजीब सन्नाटा जो हमारे बीच था।

शायद ये शांतता विशाखा को भी चुब रही थी। घर से थोड़ा दूर आने पर विशाखा ने अपनी मधुर वाणी में कहाँ,

विशाखा: “ठंड लग रही है?”

मुझे ठंड तो काफी लग रही थी, ये साफ साफ देखा जा सकता था लेकिन तब भी मैं बड़ा गर्म खून होने का नाटक करते हुए विशाखा से झूठ कहता हूँ,

मैं: “बिल्कुल भी नहीं!”

विशाखा मुझे कांपते हुए देख हंसने लगे, और मेरे करीब आकर मेरे हाथों में अपना हाथ डालकर मुझसे चिपक कर चलने लगे। उसकी गर्माहट के कारण मुझे थोड़ा अच्छा लगने लगा। यह वह क्षण था जिसके बारे में मैं बात कर रहा था, जब हम अपने साथी के साथ ठंड में, इतने करीब से चल रहे होते हैं।

भोर होने वाली थी, अंधेरा आकाश नीला हो रहा था, दूर क्षितिज पर कुछ नारंगी रंग दिखाई दे रहा था, लेकिन सूरज अभी तक नहीं निकला था। धुंध गायब हो रही थी, हम घर से बहुत दूर थे। एक घंटे से हम टहल रहे थे और बातें कर रहे थे।

अब ठंड पूरी तरह गायब हो गई थी, हमारे बीच केवल गर्माहट थी। पता नहीं विशाखा के मन में क्या बात आई लेकिन उसने एक पुराना किस्सा खोदकर निकाला।

विशाखा: “तुम्हें याद है, जब नानी जिंदा थी और हम उनके घर जाते थे तो हम आम कैसे इकट्ठा करते हैं।”

मैं: “हां, मैं तोड़ ता था और तुम उठती थी।”

विशाखा: “हां, और तुम्हें याद है कैसे एक बार तुम गिर गए थे। पूरा दिन रोते रहे तुम।”

मैं: “अरे वो तो मैं नाटक करता था, नहीं तो भला मैं क्यों रोने लगा।”

विशाखा इस बात को सुन हंस पड़ी और कहती है,

विशाखा: “तुम बिल्कुल नहीं बदले।”

ऐसा करते ही दोनों की नजरें एक दूसरे से मिली और ऐसा लगा जैसे समय रुक ही गया। एक पल के लिए पक्षियों का चहचहाना बंद हो गया, हवा का बहन रुक गया, एक स्थिर और शांत क्षण, जैसे कायनात चाहती है कि वे एक हो जाएं।

तभी भंवरा आकार विशाखा के आस पास घूमने लगा, वह उसे काटना चाहता था। उसे देख वे दोनों तेजी से भागने लगे।

भागते भागते वह दोनों उस भंवरे से काफी दूर आ गए। जैसे ही उनके कदम रुके वे दोनों खिलखिलाकर हंसने लगे।

उन्होंने आस पास देखा तो वे उस पार्क के पास आ गए थे जहां वो दोनों पहले भी आए थे। सूर्य तेजी से उदय हो रहा था, नारंगी आसमान और चिड़ियो का कोलाहल उस क्षण के आभूषण बन गए थे।

विशाखा: “सुबह का समय काफी अच्छा होता है।”

मैं: “सही कहा। सुंदर… बिल्कुल तुम्हारी तरह।”

विशाखा ने एक नजर मुझे देखा और मुस्कुराते हुए मजाक में मुझे हल्क धक्का देते हुए कहा,

विशाखा: “फ्लर्ट के अलावा क्या करना आता है।”

मैं चलते हुए आगे पार्क की ओर बढ़ा, और मैंने आगे बढ़ते हुए कहा,

मैं: “बहुत कुछ, लेकिन तुम करने कहां देती हो।”

इस वाक्य से मेरा मतलब था यौन क्रिया ही थी जो के समझ में विशाखा आ गया था। विशाखा आगे मेरे पास आकर मेरे हाथ से लिपट गई। उसके मुंह से एक शब्द भी निकला, हम पार्क के अंदर चले गए।

सूरज जैसे जैसे उदय हो रहा था, उसी गति से विशाखा और मेरी बातें बढ़ते जा रही थी। बातों के साथ साथ हमारा एक दूसरे से स्पर्श करना भी बढ़ रहा था। हवाये धीमी हुई, पंछियों का चहकना चालू हो गया। इसी वक्त मुझे हमारे बचपन की एक बात याद आई,

मैं: “तुम्हें याद है, एक साल दिवले के दौरान तुमने तुम्हारे पीछे वाले बगीचे में कैसे आग लगा दी थी।”

विशाखा: “हां, कैसे न याद रहे, बहुत बुरी तरह सुताई हुई थी मेरी। मैं तो काफी डर चुकी थी उस वक्त।”

मैं: “वैसे असल में हुआ क्या था?”

विशाखा: “अरे मैं वहां पटके जला रही थी, और बाजू में पेड़ की सुखी पत्तियां जमा पड़ी थी। एक हल्की चिंगारी उसके ऊपर जा बैठी, और देखते ही देखती मेरे चारों ओर भीषण आग लग गई। मैं तो नादान थी, आग को देख कर रोने लगी… मुझे लगा था की उस वक्त मुझे कोई बचने नहीं आएगा...:”

मैं (बीच में बोलते हुए): “हां फिर पता है, वहां मैं आया और तुमहरी हथेली पकड़ कर तुम्हें उस मंजर से बाहर ले आया।”

विशाखा ने उसके कदम मेरी तरफ बढ़ाए, वो मेरे नजदीक आकार खड़ी हो गई, एक मधुर हल्की आवाज में उसने कहा,

विशाखा: “हम्म… और उसी क्षण से मैं तुम्हारी हो गई थी।”

उसका ऐसा कहते है पवन का हल्का झोंका बहने लगा, पक्षियों का चहचहाना बंद कर हो गया, पत्ते किसी पंख की तरह गिर रहे थे, ऐसा लग रहा था जैसे दुनिया ने घूमना बंद कर दिया और हमारा इंतजार कर रही हो। हम दोनों का फासला काफी काम हो गया था।

देखते ही देखते हम दोनों के होंठ जुड़े और हम एक जीव हो रहे थे। वह ऐसा चुंबन था जिसने मेरी आँखों को बंद कर दिया, मुझे दुनिए से दूर ले जा कर एक ऐसा अनुभव दिया जो शब्दों में बयाँ करना कठिन होगा। उस वक्त मैं विशाखा के रंग ऐसा रम गया था जैसे खुशबू से कोई मधुमक्खी।

फिर मेरी आँखों ने अपनी पंखुड़िया ऊपर ली…

हम दोनों को ऐसे चुंबन करते हुए तृषा भाभी दूर से खड़े होकर देख रही थी। मैं जानता वे कहा से आई, लेकिन इसमे कोई शक नहीं था की वो हमे ही घूरे जा रही है। उनके चेहरे पर कोई इक्स्प्रेशन नहीं था। उन्हे ऐसे खड़े देख मैं चोंक गया, और विशाखा को बताए बगैर ही उसे वहां से जल्दी बाहर लेकर घर आ गया।

उस पूरे दिन तो मैं चिंतित हो रहा, overthink करते रहा और ये दिन भी मेरा व्यर्थ गया। इस डर में की तृषा भाभी मासी को न बात दे, 1-2 दिन यूं ही बर्बाद हो गए। इस दौरान मेरी मासी के साथ कोई केमिस्ट्री नहीं बनी, और ना ही मासी को यौन अग्नि फिर से प्रज्वलित हुई।

ठीक 2 दिन बाद; मैं अब भी काफी टेंशन में था। उस बात के वजह से तो मेरी रातों की नींद ही उड़ गई थी। अभी तक तो तृषा ने मासी को कुछ कहा नहीं था लेकिन मैं ऐसा होने नहीं दे सकता था। अगर मासी को ये पता चल गया तो उन्हे यह भी पता चलेगा की मैं एक शतरंज के खेल में दो रानियां चला रहा हूं।

कुछ दिन यूं ही बर्बाद होने बाद, एक दिन; मेरी आँखें सुबह के 6 बजे खुली। घंटे भर तक मैं ‘इस बात को छिपाया किस तरह जाए’ ऐसा सोच रहा था। मेरे दिमाग के घोड़े छुट्टिया मना रहे थे, मुझे समझ नहीं आ रहा था क्या किया जाए। फिर मुझे विचार आया की क्यों न मैं विशाखा को सब सच बात दु, या फिर उससे सलाह लू क्योंकि एक सिर से बढ़कर दो होते है।

काफी हिम्मत करके मैं विशाखा के कमरे की ओर बढ़ा। मुझे डर था की सच्चाई का पता लगने पर विशाखा मुझसे नाराज होकर हुक-उप होने से पहले ही ब्रेकअप न करले। उसने जो प्यार मुझसे किया था वो इतना पवित्र और एकनिष्ट था की शायद वो इस बात को सहन नहीं कर पाएंगी।

मैने विशाखा के कमरे का दरवाजा हल्के से खोला, अंदर कोई नहीं था। विशाखा की खोज में मैं नीचे हॉल में पहुंचा। हॉल मे मासी सोफे लेटे हुई थी, उनके बाल खुले थे और उन्होंने लाल ब्लाउज और पेटीकोट पहना था। मैं नहीं जानता कि वह इस तरह क्यों लेटी थी। मैंने उनसे विशाखा के बारे में पूछा,

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मैं: “मासी अपने विशाखा को देखा है?”

मासी ने दरवाजे की ओर इशारा करते हुए कहा,

मासी: “अभी अभी बाहर गई है।”

मासी की हालत और आवाज से लग रहा था कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है, वे आ स्वस्थ थी। मैने ज्यादा कुछ न कह कर घर के भार निकल आया ताकि विशाखा को ढूंढ सकूं।

मैं घर के बाहर आया। विशाखा को आंगन में ढूंढा, रस्ते पर और पड़ोस में। शायद वो अभी कहीं घूमने चली गई होगी। मैं इस बात से अनजान कि मैं मेरे पड़ोस के आंगन में खड़ा हूं, रस्ते को देखे जा रहा था। तभी मुझे किसी ने आवाज लगाई,

विशाल…

यह आवाज तृषा भाभी की थी, मैं उनके ही आंगन में खड़ा था। उनकी आवाज सुनकर मैं डर गया, मैं बिना कुछ कहे खड़ा रहा, उन्होंने चुप्पी तोड़ते हुए कहा,

तृषा: “विशाखा को ढूंढ रहे हो!?”

मैं: “जी!”

तृषा: “वो तो अभी अभी यहीं से ही गुजरी।”

मैं: “हां…”

पता नहीं मुझे डर क्यों लग रहा था, मेरी तो ऐसी फटी पड़ी तो जैसे मैंने कोई भूत देख लिया हो। शायद से एड्रीनलीन हो सकता है। हम दोनों के बीच खामोशी थी, ऐसी खामोशी की जिसमें हवा की भी आवाज सुनी जा सकती है। एक तरफ मैं शर्मिंदा था और एक तरह वे अपने मन कुछ छुपाए हुए थी।

वह बात तो उन्होंने अपने दिल में दफना कर रखी हुई थी शायद वो भी बाहर आने को उत्सुक है। उनको यह खामोशी पसंद नहीं आई, तृषा भाभी ने मेरी ओर देखकर कहा,

तृषा: “मैने देखा था तुम्हे… उस दिन, विशाखा के साथ।”

यह वाक्य सुनकर कर जो मेरा हाल हुआ था, वह बताया नहीं जा सकता। मेरा BP low हो गया था, शरीर ठंडा पड़ चुका था।

मैं: “भाभी वो… आप जैसे सोच रही हो…”

तृषा: “रहने दो, मुझे अब ये मत समझो। मुझे तुम से इस बारे बात करनी है। अंदर चलो, बैठ कर बात करते है।”

मुझे तृषा भाभी की बात मन कर अंदर जाना पड़ा। अगर मैं न मानता तो तृषा भाभी ब्रह्मास्त्र चला कर मेरी आगे आने वो जिंदगी की धज्जियां कर सकती थी।

तृषा भाभी के घर काफी भव्य, आलीशान और बड़ा था। अन्दर जाकर उन्हीं मुझे सोफे पर बैठने कहा। मुझे चाय या कॉफी के लिए पूछा, मगर ऐसे समय में मुझे पानी तक नहीं पचने वाला था।


भाभी मेरे आगे वाले काउच पर बैठ गई, उन्होंने बात शुरू की,

तृषा: “देखो में तुम्हारे बारे में सब जानती हूं।”

मैं: “भाभी, हमारे बीच ऐसा वैसा कुछ नहीं है।”

तृषा: “अब तो झूठ मत बोलो, मैं समझ सकती हूं। यह उम्र ही ऐसी होती है, मैं भी इस दौर से गुजरी हूं।”

मैं उनकी बात सुनकर थोड़ा आश्चर्यचकित था, मेरा गला सुख रहा था और अंदरूनी गर्माहट बढ़ती जा रही थी। तृषा को अंदाजा लग चुका था कि मैं डर रहा हूं, मुझे प्यास लगी है, इसलिए उसने कहा,

तृषा: “मुझे 2 मिनट दो, मैं अभी आई।”

तृषा ने किचेन से मेरे लाय एक ग्लास में पानी लाया। उसने वह ग्लास मुझे देते हुए कहा,

तृषा: “देखो डरो मत, मैं कोई चुड़ैल नहीं हूं।”

मैंने उनके हाथों से पानी का ग्लास लिया, पानी पिया और ग्लास को वही मेज पर रख दिया। तृषा जो मेरे सामने खड़ी थी अब मेरे ठीक बाजू में बैठ गई, एकदम सटकर, चिपककर।

तृषा भाभी ने मेरी समीप बैठ कर उनके हाथों मेरी जांघ पर रखते हुए कहा,

तृषा: “देखो, मैं यह बात किसी को नहीं बताऊंगा। इसके बदले तुम्हें मेरे कुछ करना होगा।”

मैं अब समझ चुका थी कि बात किस ओर जा रही। तृषा के अंदर भी एक हवस से भरी नारी छुपी हुई थी जो अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए अब मेरा सहारा लेना चाहती थी। इस बात को सुनकर मेरा डर थोड़ा कम हुआ, सब जानते हुए भी मैं अनजान बनकर बोला,

मैं: “काम? कैसा काम?”

तृषा: “शायद यह काफी अजीब लगे, मगर मैं चाहती हूं कि तुम मेरी इच्छाओं का विवरण करो।”

मैं: “इच्छाएं, कौन सी इच्छाएं?”

तृषा: “देखो अब भोले मत बनो, तुम्हारी उम्र के सभी लड़कों इस बारे में जानकारी होती है। और आखिर तुम भी कोई दूध के धुले नहीं दिखते।”

तृषा आप सिर मेरी सिर के थोड़ा नजदीक लाती है और हल्की आवाज में कहती है,

तृषा: “उस दिन मैने देखा तेरे लोड़े को, पूरी तरह उन्नत है। लंबा, काला, मोटा, तेरे लंड जैसे ही लंड हम औरतों की ख्वाइश होती है।”

मैं: “मगर आपके पति!?”

तृषा: “अरे तू उस चूतिये की फिकर मत कर, वह छोटी लुल्ली वाला अपने काम से एक 1 हफ्ते के लिए बाहर गया है।”

मैं: “मगर ये गलत होगा।”

तृषा: “और तू विशाखा के साथ जो कर रहा था वो सही था!? बहनचोद!”

तृषा के हाथ मेरे लिंग को सहलाने लगे, मेरा शरीर तप चुका था। तृषा की हवस से आज शायद मेरा बचना नामुमकिन था।

तृषा: “तू मेरी प्यास बुझा, मैं तेरे बारे में किसी को नहीं बात बताऊंगी।”

अब मजबूरी के सामने कौन बोल सकता है। तृषा इतनी भी बुरी नहीं थी, लेकिन मेरा दिल उसे चोदने के लिए ना कह रहा था। दिल पर पत्थर रख मैं वहीं चुपचाप बैठा रहा।

उसने मेरी पैंट की ज़िप खोली और मेरी तलवार म्यान से निकाल ली। उस पल भी सन्नाटा था, एसी 20 पर था, फिर भी मेरा शरीर बुरी तरह गर्म था। जैसे ही उसने अपने ठंडे हाथों से मेरे लिंग को छुआ, मैं सिहर उठा। उसने हरकत शुरू कर दी, वो मेरी लंड को गर्म कर रही थी, उसे सहला रही थी, मुझे handjob दे रही थी। मेरे वीर्य की एक बूँद बाहर आई और उसका सिरा गीला हो गया।

उस बूँद को देखते ही, वह ज़मीन पर घुटनों के बल बैठ गई और अपना मुँह चौड़ा करके मेरा पूरा लिंग उसमें ले लिया। वह गीला था, बहुत चिपचिपा, एक ऐसा अनुभव जिसने मुझे सातवें आसमान पर पहुँचा दिया। वह जो हरकत कर रही थी... मेरे मांस को चूस रही थी, अपनी घनी लार नीचे गिरा रही थी, उससे गर्मी कम हो रही थी।
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मैं धीरे धीरे, हल्की हल्की सिसकारियां लेने लगा।

आह... आह... अम्म... हम्म…

यह बहुत ही मनमोहक, अकल्पनीय था और ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मैं स्वर्ग में किसी अप्सरा की सेवा ले रहा हूँ।

जब मैं झड़ने वाला था, तो वो रुक गई, सीधी खड़ी हो गई और अपने कुर्ते का जूड़ा ढीला कर दिया और सलवार का नाड़ा खोलकर अपने कपड़े उतार दिए। अब मैं उसका असली, नंगा रूप देख रहा था। ऐसा लग रहा था कि वो कभी अंडरवियर नहीं पहनती, तब भी उसके स्तन कसे हुए नजर आते थे। उसकी झांट और काँख पर कुछ बाल थे, लेकिन उसकी खुशबू इतनी मीठी थी कि कोई भी उन्हें बिना चाटे नहीं छोड़ सकता था, वो बिल्कुल गोरी रसमलाई थी।

उसने इतनी जल्दी में मेरी पैंट और टी-शर्ट उतार दी जैसे कोई भेड़िया उसका पीछा कर रहा हो। या फिर ऐसा भी हो सकता है कि वह चाहती थी कि भेड़िया उसे जल्दी से खा जाए। वह सोफे पर चढ़ गई, और मेरे नसों से भरे लिंग को अपने रसीली यौन में डाल लिया, और मेरी जांघों पर ऐसे विराजमान हो गई जैसे की वह कोई सिंहासन हो।

उसने अपने दोनों हाथों से मेरा सिर पकड़ लिया, मुझे अपनी तरफ खींच लिया और मेरे होंठों को चूमने, चूसने और काटने लगी। ऐसा लग रहा था की वह लड़का है जो मुझे चोद रहा हो और मैं लड़की जो चुदवा रही है। मैंने थोड़ा प्रतिसाथ दिया और उसकी गरदन पकड़ कर उसके मुह को मेरे मुह से चिपका दिया। उस समय हमारे मुँह के अंदर हमारे जीभ एक दूसरे से द्वंद कर रही थी, लिपट रही थी और ऐसा लग रहा था जैसे दोनों ही गल जाएगी।
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वो मेरी गोद में कूदने लगी और बहुत जोर से कराह रही थी। जैसे ही मेरा कठोर लिंग उसकी चूत में घुस रहा था, उसके आंसू गिर रहे थे और वो दर्द का आनंद ले रही थी।
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तृषा: “आह… तेरा लंड है या फौलाद!?”

मैंने मेज पर पैर रखकर, उसे अपनी ओर खींचा और उसकी चूत को बेरहमी से चोदना शुरू कर दिया। सोफे के स्प्रिंग और उसकी कराह की आवाज़ पूरे घर में फैल गई।

Next Update ko thoda time lagega. Kuch samay main uski ek fix date batadunga.
Thankyou for loving the story.

I added more gifs for those who love it. 😋😉
बहुत ही शानदार लाजवाब और गरमागरम कामुक अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

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अध्याय 14 - एक संधि और उपहार (A Treaty and The Treat)

कल रात, जो अधूरा काम जिसे पूरा हो जाना चाहिए था, मासी के मना करने के बाद नहीं हो पाया। हम दो जीवों का वह संगम जो दोनों के लिए आनंददायी था वो हरामज़ादी दुनिया के डर से हो नहीं सका। मासी के मन में भी इच्छा थी मगर, वे घबरा रही थी।

अगर किसी आदमी को गरम करने के बाद वैसे ही छोड़ दिया जाए, तो इस बात में कोई शक नहीं की वह आदमी काफी गुस्सा होगा। ऐसे ही, मुझे भी गुस्सा आ रहा था, लेकिन उतारता किस पर। आखिर वे मेरी मासी है, मेरी करीबी है। नाराज़ होने के बजाय, मुझे उन्हें इस रिश्ते के लिए राज़ी करना होगा, समाज के डर से उभरने में उनकी मदद करनी होगी।

अब आगे;

अगली सुबह मेरी आंखे बड़े जल्दी खुल गई, अब तक सूर्य भी नहीं उगा था, बाहर अंधेरे, कोहरे और streetlights के आस पास उड़ने वाले कीड़ों के अलावा कुछ भी नहीं था। मुझे लग रहा था की इस समय सिर्फ मैं ही जाग रहा था, लेकिन मुझे बाहर से किसी और की भी आवाज सुनाई दी।

बाहर निकाल कर देखा तो विशाखा के कमरे के दरवाजा हल्का सा खुला हुआ है, जिसमें से रोशनी आ रही है। मैं सोच ही रहा था की अंदर घुस कर विशाखा को आश्चर्यचकित किया जाए, तभी विशाखा मेरे दरवाजे के खुलने आवाज सुन कर अपने कमरे से बाहर आई।

उसे देख कर लग रहा था की वो काफी देर पहले ही उठ चुकी थी। मुझे देख कर उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान आ गई और वो हल्की दाबी आवाज में मुझे कहने लगी,

विशाखा: “अरे वाह, आज तुम काफी जल्दी उठ गए या फिर शायद सूरज चाचा को आने में देर हो गई!”

मैं भी विशाखा की मसखरी सुनकर मजाकिया अंदाज में कहने लगा,

मैं: “हां, हो सकता है तुम्हारे सूरज चाचा ट्रैफिक में फस गए हो।”

इस बात को सुनकर हम दोनों ही काफी जोर से खिलखिला कर हंसने लगे। अचानक से विशाखा ने उसकी हथेली मेरे हस्ते हुए मुंह पर रख कर मुझे चुप कर दिया और खुद भी शांत हो गई। विशाखा दाबी हुई, क्यूट सी आवाज में कहने लगी,

विशाखा: “अरे जोर से मत हसो, अगर हम दोनों मुर्गा-मुर्गी जाग रहे है इसका मतलब यह नहीं होता की सब जाग रहे है।”

मैं अब क्या बोल ही सकता था, उसका कहना हुकुम बराबर। ऊपर से उसने मेरे मुँह पर हाथ रख दिया था, मैं बोलने की कोशिश कर रहा था लेकिन हम्म हम्म की आवाज के अलावा कुछ नहीं कह पा रहा था। मेरे शब्दों को विशाखा समझ नहीं पा रही थी, उसने कहा,

विशाखा: “इंसानों की भाषा बोले, मुझे मक्खियों की बोली समझ नहीं आती।”

मैंने विशाखा के रखे हाथ की ओर इशारा करने लगा। उसने हाथ हटाया…

विशाखा: “अरे सॉरी…”

मैं: “अरे मैं कह रहा था की इतनी सुबह क्या कह रही हो?”

विशाखा: “मेरा तो रोज का है, तुम्हारा सूर्योदय पश्चिम से कैसे हुआ?”

मैं: “कुछ नहीं, बस नींद खुल गई!”

इससे पहले कि मैं कुछ और कह पता विशाखा कहने लगी,

विशाखा: “अच्छा अभी तुम जागे हुए ही हो तो बाहर घूम के आते है, क्या ख्याल है?”

अब मैं तो था ही जोरू का गुलाम, हुकुम के आदेश देने पर मुझे सुनना ही होगा। मैं जानता था, इतनी सुबह जब प्रकृति काफी सुंदर लगती है, इस समय अगर कोई हाथ में हाथ डाल कर चले तो काफी मजा आता है। लम्हा काफी रोमांटिक हो सकता है।

हम घर के बाहर निकले, गर्मियों के समय भी सुबह के दौरान ठंड होती है। ठंड से मेरा पूरा शरीर कांप रहा था। विशाखा ने तो जैकेट पहनी थी, शायद उसे इतनी ठंड नहीं लग रही होगी। ऊपर से वह अजीब सन्नाटा जो हमारे बीच था।

शायद ये शांतता विशाखा को भी चुब रही थी। घर से थोड़ा दूर आने पर विशाखा ने अपनी मधुर वाणी में कहाँ,

विशाखा: “ठंड लग रही है?”

मुझे ठंड तो काफी लग रही थी, ये साफ साफ देखा जा सकता था लेकिन तब भी मैं बड़ा गर्म खून होने का नाटक करते हुए विशाखा से झूठ कहता हूँ,

मैं: “बिल्कुल भी नहीं!”

विशाखा मुझे कांपते हुए देख हंसने लगे, और मेरे करीब आकर मेरे हाथों में अपना हाथ डालकर मुझसे चिपक कर चलने लगे। उसकी गर्माहट के कारण मुझे थोड़ा अच्छा लगने लगा। यह वह क्षण था जिसके बारे में मैं बात कर रहा था, जब हम अपने साथी के साथ ठंड में, इतने करीब से चल रहे होते हैं।

भोर होने वाली थी, अंधेरा आकाश नीला हो रहा था, दूर क्षितिज पर कुछ नारंगी रंग दिखाई दे रहा था, लेकिन सूरज अभी तक नहीं निकला था। धुंध गायब हो रही थी, हम घर से बहुत दूर थे। एक घंटे से हम टहल रहे थे और बातें कर रहे थे।

अब ठंड पूरी तरह गायब हो गई थी, हमारे बीच केवल गर्माहट थी। पता नहीं विशाखा के मन में क्या बात आई लेकिन उसने एक पुराना किस्सा खोदकर निकाला।

विशाखा: “तुम्हें याद है, जब नानी जिंदा थी और हम उनके घर जाते थे तो हम आम कैसे इकट्ठा करते हैं।”

मैं: “हां, मैं तोड़ ता था और तुम उठती थी।”

विशाखा: “हां, और तुम्हें याद है कैसे एक बार तुम गिर गए थे। पूरा दिन रोते रहे तुम।”

मैं: “अरे वो तो मैं नाटक करता था, नहीं तो भला मैं क्यों रोने लगा।”

विशाखा इस बात को सुन हंस पड़ी और कहती है,

विशाखा: “तुम बिल्कुल नहीं बदले।”

ऐसा करते ही दोनों की नजरें एक दूसरे से मिली और ऐसा लगा जैसे समय रुक ही गया। एक पल के लिए पक्षियों का चहचहाना बंद हो गया, हवा का बहन रुक गया, एक स्थिर और शांत क्षण, जैसे कायनात चाहती है कि वे एक हो जाएं।

तभी भंवरा आकार विशाखा के आस पास घूमने लगा, वह उसे काटना चाहता था। उसे देख वे दोनों तेजी से भागने लगे।

भागते भागते वह दोनों उस भंवरे से काफी दूर आ गए। जैसे ही उनके कदम रुके वे दोनों खिलखिलाकर हंसने लगे।

उन्होंने आस पास देखा तो वे उस पार्क के पास आ गए थे जहां वो दोनों पहले भी आए थे। सूर्य तेजी से उदय हो रहा था, नारंगी आसमान और चिड़ियो का कोलाहल उस क्षण के आभूषण बन गए थे।

विशाखा: “सुबह का समय काफी अच्छा होता है।”

मैं: “सही कहा। सुंदर… बिल्कुल तुम्हारी तरह।”

विशाखा ने एक नजर मुझे देखा और मुस्कुराते हुए मजाक में मुझे हल्क धक्का देते हुए कहा,

विशाखा: “फ्लर्ट के अलावा क्या करना आता है।”

मैं चलते हुए आगे पार्क की ओर बढ़ा, और मैंने आगे बढ़ते हुए कहा,

मैं: “बहुत कुछ, लेकिन तुम करने कहां देती हो।”

इस वाक्य से मेरा मतलब था यौन क्रिया ही थी जो के समझ में विशाखा आ गया था। विशाखा आगे मेरे पास आकर मेरे हाथ से लिपट गई। उसके मुंह से एक शब्द भी निकला, हम पार्क के अंदर चले गए।

सूरज जैसे जैसे उदय हो रहा था, उसी गति से विशाखा और मेरी बातें बढ़ते जा रही थी। बातों के साथ साथ हमारा एक दूसरे से स्पर्श करना भी बढ़ रहा था। हवाये धीमी हुई, पंछियों का चहकना चालू हो गया। इसी वक्त मुझे हमारे बचपन की एक बात याद आई,

मैं: “तुम्हें याद है, एक साल दिवले के दौरान तुमने तुम्हारे पीछे वाले बगीचे में कैसे आग लगा दी थी।”

विशाखा: “हां, कैसे न याद रहे, बहुत बुरी तरह सुताई हुई थी मेरी। मैं तो काफी डर चुकी थी उस वक्त।”

मैं: “वैसे असल में हुआ क्या था?”

विशाखा: “अरे मैं वहां पटके जला रही थी, और बाजू में पेड़ की सुखी पत्तियां जमा पड़ी थी। एक हल्की चिंगारी उसके ऊपर जा बैठी, और देखते ही देखती मेरे चारों ओर भीषण आग लग गई। मैं तो नादान थी, आग को देख कर रोने लगी… मुझे लगा था की उस वक्त मुझे कोई बचने नहीं आएगा...:”

मैं (बीच में बोलते हुए): “हां फिर पता है, वहां मैं आया और तुमहरी हथेली पकड़ कर तुम्हें उस मंजर से बाहर ले आया।”

विशाखा ने उसके कदम मेरी तरफ बढ़ाए, वो मेरे नजदीक आकार खड़ी हो गई, एक मधुर हल्की आवाज में उसने कहा,

विशाखा: “हम्म… और उसी क्षण से मैं तुम्हारी हो गई थी।”

उसका ऐसा कहते है पवन का हल्का झोंका बहने लगा, पक्षियों का चहचहाना बंद कर हो गया, पत्ते किसी पंख की तरह गिर रहे थे, ऐसा लग रहा था जैसे दुनिया ने घूमना बंद कर दिया और हमारा इंतजार कर रही हो। हम दोनों का फासला काफी काम हो गया था।

देखते ही देखते हम दोनों के होंठ जुड़े और हम एक जीव हो रहे थे। वह ऐसा चुंबन था जिसने मेरी आँखों को बंद कर दिया, मुझे दुनिए से दूर ले जा कर एक ऐसा अनुभव दिया जो शब्दों में बयाँ करना कठिन होगा। उस वक्त मैं विशाखा के रंग ऐसा रम गया था जैसे खुशबू से कोई मधुमक्खी।

फिर मेरी आँखों ने अपनी पंखुड़िया ऊपर ली…

हम दोनों को ऐसे चुंबन करते हुए तृषा भाभी दूर से खड़े होकर देख रही थी। मैं जानता वे कहा से आई, लेकिन इसमे कोई शक नहीं था की वो हमे ही घूरे जा रही है। उनके चेहरे पर कोई इक्स्प्रेशन नहीं था। उन्हे ऐसे खड़े देख मैं चोंक गया, और विशाखा को बताए बगैर ही उसे वहां से जल्दी बाहर लेकर घर आ गया।

उस पूरे दिन तो मैं चिंतित हो रहा, overthink करते रहा और ये दिन भी मेरा व्यर्थ गया। इस डर में की तृषा भाभी मासी को न बात दे, 1-2 दिन यूं ही बर्बाद हो गए। इस दौरान मेरी मासी के साथ कोई केमिस्ट्री नहीं बनी, और ना ही मासी को यौन अग्नि फिर से प्रज्वलित हुई।

ठीक 2 दिन बाद; मैं अब भी काफी टेंशन में था। उस बात के वजह से तो मेरी रातों की नींद ही उड़ गई थी। अभी तक तो तृषा ने मासी को कुछ कहा नहीं था लेकिन मैं ऐसा होने नहीं दे सकता था। अगर मासी को ये पता चल गया तो उन्हे यह भी पता चलेगा की मैं एक शतरंज के खेल में दो रानियां चला रहा हूं।

कुछ दिन यूं ही बर्बाद होने बाद, एक दिन; मेरी आँखें सुबह के 6 बजे खुली। घंटे भर तक मैं ‘इस बात को छिपाया किस तरह जाए’ ऐसा सोच रहा था। मेरे दिमाग के घोड़े छुट्टिया मना रहे थे, मुझे समझ नहीं आ रहा था क्या किया जाए। फिर मुझे विचार आया की क्यों न मैं विशाखा को सब सच बात दु, या फिर उससे सलाह लू क्योंकि एक सिर से बढ़कर दो होते है।

काफी हिम्मत करके मैं विशाखा के कमरे की ओर बढ़ा। मुझे डर था की सच्चाई का पता लगने पर विशाखा मुझसे नाराज होकर हुक-उप होने से पहले ही ब्रेकअप न करले। उसने जो प्यार मुझसे किया था वो इतना पवित्र और एकनिष्ट था की शायद वो इस बात को सहन नहीं कर पाएंगी।

मैने विशाखा के कमरे का दरवाजा हल्के से खोला, अंदर कोई नहीं था। विशाखा की खोज में मैं नीचे हॉल में पहुंचा। हॉल मे मासी सोफे लेटे हुई थी, उनके बाल खुले थे और उन्होंने लाल ब्लाउज और पेटीकोट पहना था। मैं नहीं जानता कि वह इस तरह क्यों लेटी थी। मैंने उनसे विशाखा के बारे में पूछा,

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मैं: “मासी अपने विशाखा को देखा है?”

मासी ने दरवाजे की ओर इशारा करते हुए कहा,

मासी: “अभी अभी बाहर गई है।”

मासी की हालत और आवाज से लग रहा था कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है, वे आ स्वस्थ थी। मैने ज्यादा कुछ न कह कर घर के भार निकल आया ताकि विशाखा को ढूंढ सकूं।

मैं घर के बाहर आया। विशाखा को आंगन में ढूंढा, रस्ते पर और पड़ोस में। शायद वो अभी कहीं घूमने चली गई होगी। मैं इस बात से अनजान कि मैं मेरे पड़ोस के आंगन में खड़ा हूं, रस्ते को देखे जा रहा था। तभी मुझे किसी ने आवाज लगाई,

विशाल…

यह आवाज तृषा भाभी की थी, मैं उनके ही आंगन में खड़ा था। उनकी आवाज सुनकर मैं डर गया, मैं बिना कुछ कहे खड़ा रहा, उन्होंने चुप्पी तोड़ते हुए कहा,

तृषा: “विशाखा को ढूंढ रहे हो!?”

मैं: “जी!”

तृषा: “वो तो अभी अभी यहीं से ही गुजरी।”

मैं: “हां…”

पता नहीं मुझे डर क्यों लग रहा था, मेरी तो ऐसी फटी पड़ी तो जैसे मैंने कोई भूत देख लिया हो। शायद से एड्रीनलीन हो सकता है। हम दोनों के बीच खामोशी थी, ऐसी खामोशी की जिसमें हवा की भी आवाज सुनी जा सकती है। एक तरफ मैं शर्मिंदा था और एक तरह वे अपने मन कुछ छुपाए हुए थी।

वह बात तो उन्होंने अपने दिल में दफना कर रखी हुई थी शायद वो भी बाहर आने को उत्सुक है। उनको यह खामोशी पसंद नहीं आई, तृषा भाभी ने मेरी ओर देखकर कहा,

तृषा: “मैने देखा था तुम्हे… उस दिन, विशाखा के साथ।”

यह वाक्य सुनकर कर जो मेरा हाल हुआ था, वह बताया नहीं जा सकता। मेरा BP low हो गया था, शरीर ठंडा पड़ चुका था।

मैं: “भाभी वो… आप जैसे सोच रही हो…”

तृषा: “रहने दो, मुझे अब ये मत समझो। मुझे तुम से इस बारे बात करनी है। अंदर चलो, बैठ कर बात करते है।”

मुझे तृषा भाभी की बात मन कर अंदर जाना पड़ा। अगर मैं न मानता तो तृषा भाभी ब्रह्मास्त्र चला कर मेरी आगे आने वो जिंदगी की धज्जियां कर सकती थी।

तृषा भाभी के घर काफी भव्य, आलीशान और बड़ा था। अन्दर जाकर उन्हीं मुझे सोफे पर बैठने कहा। मुझे चाय या कॉफी के लिए पूछा, मगर ऐसे समय में मुझे पानी तक नहीं पचने वाला था।


भाभी मेरे आगे वाले काउच पर बैठ गई, उन्होंने बात शुरू की,

तृषा: “देखो में तुम्हारे बारे में सब जानती हूं।”

मैं: “भाभी, हमारे बीच ऐसा वैसा कुछ नहीं है।”

तृषा: “अब तो झूठ मत बोलो, मैं समझ सकती हूं। यह उम्र ही ऐसी होती है, मैं भी इस दौर से गुजरी हूं।”

मैं उनकी बात सुनकर थोड़ा आश्चर्यचकित था, मेरा गला सुख रहा था और अंदरूनी गर्माहट बढ़ती जा रही थी। तृषा को अंदाजा लग चुका था कि मैं डर रहा हूं, मुझे प्यास लगी है, इसलिए उसने कहा,

तृषा: “मुझे 2 मिनट दो, मैं अभी आई।”

तृषा ने किचेन से मेरे लाय एक ग्लास में पानी लाया। उसने वह ग्लास मुझे देते हुए कहा,

तृषा: “देखो डरो मत, मैं कोई चुड़ैल नहीं हूं।”

मैंने उनके हाथों से पानी का ग्लास लिया, पानी पिया और ग्लास को वही मेज पर रख दिया। तृषा जो मेरे सामने खड़ी थी अब मेरे ठीक बाजू में बैठ गई, एकदम सटकर, चिपककर।

तृषा भाभी ने मेरी समीप बैठ कर उनके हाथों मेरी जांघ पर रखते हुए कहा,

तृषा: “देखो, मैं यह बात किसी को नहीं बताऊंगा। इसके बदले तुम्हें मेरे कुछ करना होगा।”

मैं अब समझ चुका थी कि बात किस ओर जा रही। तृषा के अंदर भी एक हवस से भरी नारी छुपी हुई थी जो अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए अब मेरा सहारा लेना चाहती थी। इस बात को सुनकर मेरा डर थोड़ा कम हुआ, सब जानते हुए भी मैं अनजान बनकर बोला,

मैं: “काम? कैसा काम?”

तृषा: “शायद यह काफी अजीब लगे, मगर मैं चाहती हूं कि तुम मेरी इच्छाओं का विवरण करो।”

मैं: “इच्छाएं, कौन सी इच्छाएं?”

तृषा: “देखो अब भोले मत बनो, तुम्हारी उम्र के सभी लड़कों इस बारे में जानकारी होती है। और आखिर तुम भी कोई दूध के धुले नहीं दिखते।”

तृषा आप सिर मेरी सिर के थोड़ा नजदीक लाती है और हल्की आवाज में कहती है,

तृषा: “उस दिन मैने देखा तेरे लोड़े को, पूरी तरह उन्नत है। लंबा, काला, मोटा, तेरे लंड जैसे ही लंड हम औरतों की ख्वाइश होती है।”

मैं: “मगर आपके पति!?”

तृषा: “अरे तू उस चूतिये की फिकर मत कर, वह छोटी लुल्ली वाला अपने काम से एक 1 हफ्ते के लिए बाहर गया है।”

मैं: “मगर ये गलत होगा।”

तृषा: “और तू विशाखा के साथ जो कर रहा था वो सही था!? बहनचोद!”

तृषा के हाथ मेरे लिंग को सहलाने लगे, मेरा शरीर तप चुका था। तृषा की हवस से आज शायद मेरा बचना नामुमकिन था।

तृषा: “तू मेरी प्यास बुझा, मैं तेरे बारे में किसी को नहीं बात बताऊंगी।”

अब मजबूरी के सामने कौन बोल सकता है। तृषा इतनी भी बुरी नहीं थी, लेकिन मेरा दिल उसे चोदने के लिए ना कह रहा था। दिल पर पत्थर रख मैं वहीं चुपचाप बैठा रहा।

उसने मेरी पैंट की ज़िप खोली और मेरी तलवार म्यान से निकाल ली। उस पल भी सन्नाटा था, एसी 20 पर था, फिर भी मेरा शरीर बुरी तरह गर्म था। जैसे ही उसने अपने ठंडे हाथों से मेरे लिंग को छुआ, मैं सिहर उठा। उसने हरकत शुरू कर दी, वो मेरी लंड को गर्म कर रही थी, उसे सहला रही थी, मुझे handjob दे रही थी। मेरे वीर्य की एक बूँद बाहर आई और उसका सिरा गीला हो गया।

उस बूँद को देखते ही, वह ज़मीन पर घुटनों के बल बैठ गई और अपना मुँह चौड़ा करके मेरा पूरा लिंग उसमें ले लिया। वह गीला था, बहुत चिपचिपा, एक ऐसा अनुभव जिसने मुझे सातवें आसमान पर पहुँचा दिया। वह जो हरकत कर रही थी... मेरे मांस को चूस रही थी, अपनी घनी लार नीचे गिरा रही थी, उससे गर्मी कम हो रही थी।
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मैं धीरे धीरे, हल्की हल्की सिसकारियां लेने लगा।

आह... आह... अम्म... हम्म…

यह बहुत ही मनमोहक, अकल्पनीय था और ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मैं स्वर्ग में किसी अप्सरा की सेवा ले रहा हूँ।

जब मैं झड़ने वाला था, तो वो रुक गई, सीधी खड़ी हो गई और अपने कुर्ते का जूड़ा ढीला कर दिया और सलवार का नाड़ा खोलकर अपने कपड़े उतार दिए। अब मैं उसका असली, नंगा रूप देख रहा था। ऐसा लग रहा था कि वो कभी अंडरवियर नहीं पहनती, तब भी उसके स्तन कसे हुए नजर आते थे। उसकी झांट और काँख पर कुछ बाल थे, लेकिन उसकी खुशबू इतनी मीठी थी कि कोई भी उन्हें बिना चाटे नहीं छोड़ सकता था, वो बिल्कुल गोरी रसमलाई थी।

उसने इतनी जल्दी में मेरी पैंट और टी-शर्ट उतार दी जैसे कोई भेड़िया उसका पीछा कर रहा हो। या फिर ऐसा भी हो सकता है कि वह चाहती थी कि भेड़िया उसे जल्दी से खा जाए। वह सोफे पर चढ़ गई, और मेरे नसों से भरे लिंग को अपने रसीली यौन में डाल लिया, और मेरी जांघों पर ऐसे विराजमान हो गई जैसे की वह कोई सिंहासन हो।

उसने अपने दोनों हाथों से मेरा सिर पकड़ लिया, मुझे अपनी तरफ खींच लिया और मेरे होंठों को चूमने, चूसने और काटने लगी। ऐसा लग रहा था की वह लड़का है जो मुझे चोद रहा हो और मैं लड़की जो चुदवा रही है। मैंने थोड़ा प्रतिसाथ दिया और उसकी गरदन पकड़ कर उसके मुह को मेरे मुह से चिपका दिया। उस समय हमारे मुँह के अंदर हमारे जीभ एक दूसरे से द्वंद कर रही थी, लिपट रही थी और ऐसा लग रहा था जैसे दोनों ही गल जाएगी।
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वो मेरी गोद में कूदने लगी और बहुत जोर से कराह रही थी। जैसे ही मेरा कठोर लिंग उसकी चूत में घुस रहा था, उसके आंसू गिर रहे थे और वो दर्द का आनंद ले रही थी।
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तृषा: “आह… तेरा लंड है या फौलाद!?”

मैंने मेज पर पैर रखकर, उसे अपनी ओर खींचा और उसकी चूत को बेरहमी से चोदना शुरू कर दिया। सोफे के स्प्रिंग और उसकी कराह की आवाज़ पूरे घर में फैल गई।

Next Update ko thoda time lagega. Kuch samay main uski ek fix date batadunga.
Thankyou for loving the story.

I added more gifs for those who love it. 😋😉
बहुत ही शानदार लाजवाब और गरमागरम कामुक अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 
Last edited:

Ajju Landwalia

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मासी का घर
अध्याय 14 - एक संधि और उपहार (A Treaty and The Treat)

कल रात, जो अधूरा काम जिसे पूरा हो जाना चाहिए था, मासी के मना करने के बाद नहीं हो पाया। हम दो जीवों का वह संगम जो दोनों के लिए आनंददायी था वो हरामज़ादी दुनिया के डर से हो नहीं सका। मासी के मन में भी इच्छा थी मगर, वे घबरा रही थी।

अगर किसी आदमी को गरम करने के बाद वैसे ही छोड़ दिया जाए, तो इस बात में कोई शक नहीं की वह आदमी काफी गुस्सा होगा। ऐसे ही, मुझे भी गुस्सा आ रहा था, लेकिन उतारता किस पर। आखिर वे मेरी मासी है, मेरी करीबी है। नाराज़ होने के बजाय, मुझे उन्हें इस रिश्ते के लिए राज़ी करना होगा, समाज के डर से उभरने में उनकी मदद करनी होगी।

अब आगे;

अगली सुबह मेरी आंखे बड़े जल्दी खुल गई, अब तक सूर्य भी नहीं उगा था, बाहर अंधेरे, कोहरे और streetlights के आस पास उड़ने वाले कीड़ों के अलावा कुछ भी नहीं था। मुझे लग रहा था की इस समय सिर्फ मैं ही जाग रहा था, लेकिन मुझे बाहर से किसी और की भी आवाज सुनाई दी।

बाहर निकाल कर देखा तो विशाखा के कमरे के दरवाजा हल्का सा खुला हुआ है, जिसमें से रोशनी आ रही है। मैं सोच ही रहा था की अंदर घुस कर विशाखा को आश्चर्यचकित किया जाए, तभी विशाखा मेरे दरवाजे के खुलने आवाज सुन कर अपने कमरे से बाहर आई।

उसे देख कर लग रहा था की वो काफी देर पहले ही उठ चुकी थी। मुझे देख कर उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान आ गई और वो हल्की दाबी आवाज में मुझे कहने लगी,

विशाखा: “अरे वाह, आज तुम काफी जल्दी उठ गए या फिर शायद सूरज चाचा को आने में देर हो गई!”

मैं भी विशाखा की मसखरी सुनकर मजाकिया अंदाज में कहने लगा,

मैं: “हां, हो सकता है तुम्हारे सूरज चाचा ट्रैफिक में फस गए हो।”

इस बात को सुनकर हम दोनों ही काफी जोर से खिलखिला कर हंसने लगे। अचानक से विशाखा ने उसकी हथेली मेरे हस्ते हुए मुंह पर रख कर मुझे चुप कर दिया और खुद भी शांत हो गई। विशाखा दाबी हुई, क्यूट सी आवाज में कहने लगी,

विशाखा: “अरे जोर से मत हसो, अगर हम दोनों मुर्गा-मुर्गी जाग रहे है इसका मतलब यह नहीं होता की सब जाग रहे है।”

मैं अब क्या बोल ही सकता था, उसका कहना हुकुम बराबर। ऊपर से उसने मेरे मुँह पर हाथ रख दिया था, मैं बोलने की कोशिश कर रहा था लेकिन हम्म हम्म की आवाज के अलावा कुछ नहीं कह पा रहा था। मेरे शब्दों को विशाखा समझ नहीं पा रही थी, उसने कहा,

विशाखा: “इंसानों की भाषा बोले, मुझे मक्खियों की बोली समझ नहीं आती।”

मैंने विशाखा के रखे हाथ की ओर इशारा करने लगा। उसने हाथ हटाया…

विशाखा: “अरे सॉरी…”

मैं: “अरे मैं कह रहा था की इतनी सुबह क्या कह रही हो?”

विशाखा: “मेरा तो रोज का है, तुम्हारा सूर्योदय पश्चिम से कैसे हुआ?”

मैं: “कुछ नहीं, बस नींद खुल गई!”

इससे पहले कि मैं कुछ और कह पता विशाखा कहने लगी,

विशाखा: “अच्छा अभी तुम जागे हुए ही हो तो बाहर घूम के आते है, क्या ख्याल है?”

अब मैं तो था ही जोरू का गुलाम, हुकुम के आदेश देने पर मुझे सुनना ही होगा। मैं जानता था, इतनी सुबह जब प्रकृति काफी सुंदर लगती है, इस समय अगर कोई हाथ में हाथ डाल कर चले तो काफी मजा आता है। लम्हा काफी रोमांटिक हो सकता है।

हम घर के बाहर निकले, गर्मियों के समय भी सुबह के दौरान ठंड होती है। ठंड से मेरा पूरा शरीर कांप रहा था। विशाखा ने तो जैकेट पहनी थी, शायद उसे इतनी ठंड नहीं लग रही होगी। ऊपर से वह अजीब सन्नाटा जो हमारे बीच था।

शायद ये शांतता विशाखा को भी चुब रही थी। घर से थोड़ा दूर आने पर विशाखा ने अपनी मधुर वाणी में कहाँ,

विशाखा: “ठंड लग रही है?”

मुझे ठंड तो काफी लग रही थी, ये साफ साफ देखा जा सकता था लेकिन तब भी मैं बड़ा गर्म खून होने का नाटक करते हुए विशाखा से झूठ कहता हूँ,

मैं: “बिल्कुल भी नहीं!”

विशाखा मुझे कांपते हुए देख हंसने लगे, और मेरे करीब आकर मेरे हाथों में अपना हाथ डालकर मुझसे चिपक कर चलने लगे। उसकी गर्माहट के कारण मुझे थोड़ा अच्छा लगने लगा। यह वह क्षण था जिसके बारे में मैं बात कर रहा था, जब हम अपने साथी के साथ ठंड में, इतने करीब से चल रहे होते हैं।

भोर होने वाली थी, अंधेरा आकाश नीला हो रहा था, दूर क्षितिज पर कुछ नारंगी रंग दिखाई दे रहा था, लेकिन सूरज अभी तक नहीं निकला था। धुंध गायब हो रही थी, हम घर से बहुत दूर थे। एक घंटे से हम टहल रहे थे और बातें कर रहे थे।

अब ठंड पूरी तरह गायब हो गई थी, हमारे बीच केवल गर्माहट थी। पता नहीं विशाखा के मन में क्या बात आई लेकिन उसने एक पुराना किस्सा खोदकर निकाला।

विशाखा: “तुम्हें याद है, जब नानी जिंदा थी और हम उनके घर जाते थे तो हम आम कैसे इकट्ठा करते हैं।”

मैं: “हां, मैं तोड़ ता था और तुम उठती थी।”

विशाखा: “हां, और तुम्हें याद है कैसे एक बार तुम गिर गए थे। पूरा दिन रोते रहे तुम।”

मैं: “अरे वो तो मैं नाटक करता था, नहीं तो भला मैं क्यों रोने लगा।”

विशाखा इस बात को सुन हंस पड़ी और कहती है,

विशाखा: “तुम बिल्कुल नहीं बदले।”

ऐसा करते ही दोनों की नजरें एक दूसरे से मिली और ऐसा लगा जैसे समय रुक ही गया। एक पल के लिए पक्षियों का चहचहाना बंद हो गया, हवा का बहन रुक गया, एक स्थिर और शांत क्षण, जैसे कायनात चाहती है कि वे एक हो जाएं।

तभी भंवरा आकार विशाखा के आस पास घूमने लगा, वह उसे काटना चाहता था। उसे देख वे दोनों तेजी से भागने लगे।

भागते भागते वह दोनों उस भंवरे से काफी दूर आ गए। जैसे ही उनके कदम रुके वे दोनों खिलखिलाकर हंसने लगे।

उन्होंने आस पास देखा तो वे उस पार्क के पास आ गए थे जहां वो दोनों पहले भी आए थे। सूर्य तेजी से उदय हो रहा था, नारंगी आसमान और चिड़ियो का कोलाहल उस क्षण के आभूषण बन गए थे।

विशाखा: “सुबह का समय काफी अच्छा होता है।”

मैं: “सही कहा। सुंदर… बिल्कुल तुम्हारी तरह।”

विशाखा ने एक नजर मुझे देखा और मुस्कुराते हुए मजाक में मुझे हल्क धक्का देते हुए कहा,

विशाखा: “फ्लर्ट के अलावा क्या करना आता है।”

मैं चलते हुए आगे पार्क की ओर बढ़ा, और मैंने आगे बढ़ते हुए कहा,

मैं: “बहुत कुछ, लेकिन तुम करने कहां देती हो।”

इस वाक्य से मेरा मतलब था यौन क्रिया ही थी जो के समझ में विशाखा आ गया था। विशाखा आगे मेरे पास आकर मेरे हाथ से लिपट गई। उसके मुंह से एक शब्द भी निकला, हम पार्क के अंदर चले गए।

सूरज जैसे जैसे उदय हो रहा था, उसी गति से विशाखा और मेरी बातें बढ़ते जा रही थी। बातों के साथ साथ हमारा एक दूसरे से स्पर्श करना भी बढ़ रहा था। हवाये धीमी हुई, पंछियों का चहकना चालू हो गया। इसी वक्त मुझे हमारे बचपन की एक बात याद आई,

मैं: “तुम्हें याद है, एक साल दिवले के दौरान तुमने तुम्हारे पीछे वाले बगीचे में कैसे आग लगा दी थी।”

विशाखा: “हां, कैसे न याद रहे, बहुत बुरी तरह सुताई हुई थी मेरी। मैं तो काफी डर चुकी थी उस वक्त।”

मैं: “वैसे असल में हुआ क्या था?”

विशाखा: “अरे मैं वहां पटके जला रही थी, और बाजू में पेड़ की सुखी पत्तियां जमा पड़ी थी। एक हल्की चिंगारी उसके ऊपर जा बैठी, और देखते ही देखती मेरे चारों ओर भीषण आग लग गई। मैं तो नादान थी, आग को देख कर रोने लगी… मुझे लगा था की उस वक्त मुझे कोई बचने नहीं आएगा...:”

मैं (बीच में बोलते हुए): “हां फिर पता है, वहां मैं आया और तुमहरी हथेली पकड़ कर तुम्हें उस मंजर से बाहर ले आया।”

विशाखा ने उसके कदम मेरी तरफ बढ़ाए, वो मेरे नजदीक आकार खड़ी हो गई, एक मधुर हल्की आवाज में उसने कहा,

विशाखा: “हम्म… और उसी क्षण से मैं तुम्हारी हो गई थी।”

उसका ऐसा कहते है पवन का हल्का झोंका बहने लगा, पक्षियों का चहचहाना बंद कर हो गया, पत्ते किसी पंख की तरह गिर रहे थे, ऐसा लग रहा था जैसे दुनिया ने घूमना बंद कर दिया और हमारा इंतजार कर रही हो। हम दोनों का फासला काफी काम हो गया था।

देखते ही देखते हम दोनों के होंठ जुड़े और हम एक जीव हो रहे थे। वह ऐसा चुंबन था जिसने मेरी आँखों को बंद कर दिया, मुझे दुनिए से दूर ले जा कर एक ऐसा अनुभव दिया जो शब्दों में बयाँ करना कठिन होगा। उस वक्त मैं विशाखा के रंग ऐसा रम गया था जैसे खुशबू से कोई मधुमक्खी।

फिर मेरी आँखों ने अपनी पंखुड़िया ऊपर ली…

हम दोनों को ऐसे चुंबन करते हुए तृषा भाभी दूर से खड़े होकर देख रही थी। मैं जानता वे कहा से आई, लेकिन इसमे कोई शक नहीं था की वो हमे ही घूरे जा रही है। उनके चेहरे पर कोई इक्स्प्रेशन नहीं था। उन्हे ऐसे खड़े देख मैं चोंक गया, और विशाखा को बताए बगैर ही उसे वहां से जल्दी बाहर लेकर घर आ गया।

उस पूरे दिन तो मैं चिंतित हो रहा, overthink करते रहा और ये दिन भी मेरा व्यर्थ गया। इस डर में की तृषा भाभी मासी को न बात दे, 1-2 दिन यूं ही बर्बाद हो गए। इस दौरान मेरी मासी के साथ कोई केमिस्ट्री नहीं बनी, और ना ही मासी को यौन अग्नि फिर से प्रज्वलित हुई।

ठीक 2 दिन बाद; मैं अब भी काफी टेंशन में था। उस बात के वजह से तो मेरी रातों की नींद ही उड़ गई थी। अभी तक तो तृषा ने मासी को कुछ कहा नहीं था लेकिन मैं ऐसा होने नहीं दे सकता था। अगर मासी को ये पता चल गया तो उन्हे यह भी पता चलेगा की मैं एक शतरंज के खेल में दो रानियां चला रहा हूं।

कुछ दिन यूं ही बर्बाद होने बाद, एक दिन; मेरी आँखें सुबह के 6 बजे खुली। घंटे भर तक मैं ‘इस बात को छिपाया किस तरह जाए’ ऐसा सोच रहा था। मेरे दिमाग के घोड़े छुट्टिया मना रहे थे, मुझे समझ नहीं आ रहा था क्या किया जाए। फिर मुझे विचार आया की क्यों न मैं विशाखा को सब सच बात दु, या फिर उससे सलाह लू क्योंकि एक सिर से बढ़कर दो होते है।

काफी हिम्मत करके मैं विशाखा के कमरे की ओर बढ़ा। मुझे डर था की सच्चाई का पता लगने पर विशाखा मुझसे नाराज होकर हुक-उप होने से पहले ही ब्रेकअप न करले। उसने जो प्यार मुझसे किया था वो इतना पवित्र और एकनिष्ट था की शायद वो इस बात को सहन नहीं कर पाएंगी।

मैने विशाखा के कमरे का दरवाजा हल्के से खोला, अंदर कोई नहीं था। विशाखा की खोज में मैं नीचे हॉल में पहुंचा। हॉल मे मासी सोफे लेटे हुई थी, उनके बाल खुले थे और उन्होंने लाल ब्लाउज और पेटीकोट पहना था। मैं नहीं जानता कि वह इस तरह क्यों लेटी थी। मैंने उनसे विशाखा के बारे में पूछा,

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मैं: “मासी अपने विशाखा को देखा है?”

मासी ने दरवाजे की ओर इशारा करते हुए कहा,

मासी: “अभी अभी बाहर गई है।”

मासी की हालत और आवाज से लग रहा था कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है, वे आ स्वस्थ थी। मैने ज्यादा कुछ न कह कर घर के भार निकल आया ताकि विशाखा को ढूंढ सकूं।

मैं घर के बाहर आया। विशाखा को आंगन में ढूंढा, रस्ते पर और पड़ोस में। शायद वो अभी कहीं घूमने चली गई होगी। मैं इस बात से अनजान कि मैं मेरे पड़ोस के आंगन में खड़ा हूं, रस्ते को देखे जा रहा था। तभी मुझे किसी ने आवाज लगाई,

विशाल…

यह आवाज तृषा भाभी की थी, मैं उनके ही आंगन में खड़ा था। उनकी आवाज सुनकर मैं डर गया, मैं बिना कुछ कहे खड़ा रहा, उन्होंने चुप्पी तोड़ते हुए कहा,

तृषा: “विशाखा को ढूंढ रहे हो!?”

मैं: “जी!”

तृषा: “वो तो अभी अभी यहीं से ही गुजरी।”

मैं: “हां…”

पता नहीं मुझे डर क्यों लग रहा था, मेरी तो ऐसी फटी पड़ी तो जैसे मैंने कोई भूत देख लिया हो। शायद से एड्रीनलीन हो सकता है। हम दोनों के बीच खामोशी थी, ऐसी खामोशी की जिसमें हवा की भी आवाज सुनी जा सकती है। एक तरफ मैं शर्मिंदा था और एक तरह वे अपने मन कुछ छुपाए हुए थी।

वह बात तो उन्होंने अपने दिल में दफना कर रखी हुई थी शायद वो भी बाहर आने को उत्सुक है। उनको यह खामोशी पसंद नहीं आई, तृषा भाभी ने मेरी ओर देखकर कहा,

तृषा: “मैने देखा था तुम्हे… उस दिन, विशाखा के साथ।”

यह वाक्य सुनकर कर जो मेरा हाल हुआ था, वह बताया नहीं जा सकता। मेरा BP low हो गया था, शरीर ठंडा पड़ चुका था।

मैं: “भाभी वो… आप जैसे सोच रही हो…”

तृषा: “रहने दो, मुझे अब ये मत समझो। मुझे तुम से इस बारे बात करनी है। अंदर चलो, बैठ कर बात करते है।”

मुझे तृषा भाभी की बात मन कर अंदर जाना पड़ा। अगर मैं न मानता तो तृषा भाभी ब्रह्मास्त्र चला कर मेरी आगे आने वो जिंदगी की धज्जियां कर सकती थी।

तृषा भाभी के घर काफी भव्य, आलीशान और बड़ा था। अन्दर जाकर उन्हीं मुझे सोफे पर बैठने कहा। मुझे चाय या कॉफी के लिए पूछा, मगर ऐसे समय में मुझे पानी तक नहीं पचने वाला था।


भाभी मेरे आगे वाले काउच पर बैठ गई, उन्होंने बात शुरू की,

तृषा: “देखो में तुम्हारे बारे में सब जानती हूं।”

मैं: “भाभी, हमारे बीच ऐसा वैसा कुछ नहीं है।”

तृषा: “अब तो झूठ मत बोलो, मैं समझ सकती हूं। यह उम्र ही ऐसी होती है, मैं भी इस दौर से गुजरी हूं।”

मैं उनकी बात सुनकर थोड़ा आश्चर्यचकित था, मेरा गला सुख रहा था और अंदरूनी गर्माहट बढ़ती जा रही थी। तृषा को अंदाजा लग चुका था कि मैं डर रहा हूं, मुझे प्यास लगी है, इसलिए उसने कहा,

तृषा: “मुझे 2 मिनट दो, मैं अभी आई।”

तृषा ने किचेन से मेरे लाय एक ग्लास में पानी लाया। उसने वह ग्लास मुझे देते हुए कहा,

तृषा: “देखो डरो मत, मैं कोई चुड़ैल नहीं हूं।”

मैंने उनके हाथों से पानी का ग्लास लिया, पानी पिया और ग्लास को वही मेज पर रख दिया। तृषा जो मेरे सामने खड़ी थी अब मेरे ठीक बाजू में बैठ गई, एकदम सटकर, चिपककर।

तृषा भाभी ने मेरी समीप बैठ कर उनके हाथों मेरी जांघ पर रखते हुए कहा,

तृषा: “देखो, मैं यह बात किसी को नहीं बताऊंगा। इसके बदले तुम्हें मेरे कुछ करना होगा।”

मैं अब समझ चुका थी कि बात किस ओर जा रही। तृषा के अंदर भी एक हवस से भरी नारी छुपी हुई थी जो अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए अब मेरा सहारा लेना चाहती थी। इस बात को सुनकर मेरा डर थोड़ा कम हुआ, सब जानते हुए भी मैं अनजान बनकर बोला,

मैं: “काम? कैसा काम?”

तृषा: “शायद यह काफी अजीब लगे, मगर मैं चाहती हूं कि तुम मेरी इच्छाओं का विवरण करो।”

मैं: “इच्छाएं, कौन सी इच्छाएं?”

तृषा: “देखो अब भोले मत बनो, तुम्हारी उम्र के सभी लड़कों इस बारे में जानकारी होती है। और आखिर तुम भी कोई दूध के धुले नहीं दिखते।”

तृषा आप सिर मेरी सिर के थोड़ा नजदीक लाती है और हल्की आवाज में कहती है,

तृषा: “उस दिन मैने देखा तेरे लोड़े को, पूरी तरह उन्नत है। लंबा, काला, मोटा, तेरे लंड जैसे ही लंड हम औरतों की ख्वाइश होती है।”

मैं: “मगर आपके पति!?”

तृषा: “अरे तू उस चूतिये की फिकर मत कर, वह छोटी लुल्ली वाला अपने काम से एक 1 हफ्ते के लिए बाहर गया है।”

मैं: “मगर ये गलत होगा।”

तृषा: “और तू विशाखा के साथ जो कर रहा था वो सही था!? बहनचोद!”

तृषा के हाथ मेरे लिंग को सहलाने लगे, मेरा शरीर तप चुका था। तृषा की हवस से आज शायद मेरा बचना नामुमकिन था।

तृषा: “तू मेरी प्यास बुझा, मैं तेरे बारे में किसी को नहीं बात बताऊंगी।”

अब मजबूरी के सामने कौन बोल सकता है। तृषा इतनी भी बुरी नहीं थी, लेकिन मेरा दिल उसे चोदने के लिए ना कह रहा था। दिल पर पत्थर रख मैं वहीं चुपचाप बैठा रहा।

उसने मेरी पैंट की ज़िप खोली और मेरी तलवार म्यान से निकाल ली। उस पल भी सन्नाटा था, एसी 20 पर था, फिर भी मेरा शरीर बुरी तरह गर्म था। जैसे ही उसने अपने ठंडे हाथों से मेरे लिंग को छुआ, मैं सिहर उठा। उसने हरकत शुरू कर दी, वो मेरी लंड को गर्म कर रही थी, उसे सहला रही थी, मुझे handjob दे रही थी। मेरे वीर्य की एक बूँद बाहर आई और उसका सिरा गीला हो गया।

उस बूँद को देखते ही, वह ज़मीन पर घुटनों के बल बैठ गई और अपना मुँह चौड़ा करके मेरा पूरा लिंग उसमें ले लिया। वह गीला था, बहुत चिपचिपा, एक ऐसा अनुभव जिसने मुझे सातवें आसमान पर पहुँचा दिया। वह जो हरकत कर रही थी... मेरे मांस को चूस रही थी, अपनी घनी लार नीचे गिरा रही थी, उससे गर्मी कम हो रही थी।
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मैं धीरे धीरे, हल्की हल्की सिसकारियां लेने लगा।

आह... आह... अम्म... हम्म…

यह बहुत ही मनमोहक, अकल्पनीय था और ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मैं स्वर्ग में किसी अप्सरा की सेवा ले रहा हूँ।

जब मैं झड़ने वाला था, तो वो रुक गई, सीधी खड़ी हो गई और अपने कुर्ते का जूड़ा ढीला कर दिया और सलवार का नाड़ा खोलकर अपने कपड़े उतार दिए। अब मैं उसका असली, नंगा रूप देख रहा था। ऐसा लग रहा था कि वो कभी अंडरवियर नहीं पहनती, तब भी उसके स्तन कसे हुए नजर आते थे। उसकी झांट और काँख पर कुछ बाल थे, लेकिन उसकी खुशबू इतनी मीठी थी कि कोई भी उन्हें बिना चाटे नहीं छोड़ सकता था, वो बिल्कुल गोरी रसमलाई थी।

उसने इतनी जल्दी में मेरी पैंट और टी-शर्ट उतार दी जैसे कोई भेड़िया उसका पीछा कर रहा हो। या फिर ऐसा भी हो सकता है कि वह चाहती थी कि भेड़िया उसे जल्दी से खा जाए। वह सोफे पर चढ़ गई, और मेरे नसों से भरे लिंग को अपने रसीली यौन में डाल लिया, और मेरी जांघों पर ऐसे विराजमान हो गई जैसे की वह कोई सिंहासन हो।

उसने अपने दोनों हाथों से मेरा सिर पकड़ लिया, मुझे अपनी तरफ खींच लिया और मेरे होंठों को चूमने, चूसने और काटने लगी। ऐसा लग रहा था की वह लड़का है जो मुझे चोद रहा हो और मैं लड़की जो चुदवा रही है। मैंने थोड़ा प्रतिसाथ दिया और उसकी गरदन पकड़ कर उसके मुह को मेरे मुह से चिपका दिया। उस समय हमारे मुँह के अंदर हमारे जीभ एक दूसरे से द्वंद कर रही थी, लिपट रही थी और ऐसा लग रहा था जैसे दोनों ही गल जाएगी।
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वो मेरी गोद में कूदने लगी और बहुत जोर से कराह रही थी। जैसे ही मेरा कठोर लिंग उसकी चूत में घुस रहा था, उसके आंसू गिर रहे थे और वो दर्द का आनंद ले रही थी।
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तृषा: “आह… तेरा लंड है या फौलाद!?”

मैंने मेज पर पैर रखकर, उसे अपनी ओर खींचा और उसकी चूत को बेरहमी से चोदना शुरू कर दिया। सोफे के स्प्रिंग और उसकी कराह की आवाज़ पूरे घर में फैल गई।

Next Update ko thoda time lagega. Kuch samay main uski ek fix date batadunga.
Thankyou for loving the story.

I added more gifs for those who love it. 😋😉

Bahut hi gazab ki update he Toto Monkie Bro

Trisha to kaafi pyasi nikli............. mauj ho gayi launde ki............

Keep rocking bro
 
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