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Adultery बाड़ के उस पार

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Premkumar65

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Update 4


नेहा को वर्मा जी से चुदवाए हुए कुछ दिन बीत चुके थे। अजीब बात ये थी कि उसे किसी भी तरह का **पछतावा** नहीं हो रहा था। जैसे कुछ हुआ ही नहीं — सब नॉर्मल चल रहा था।

उस रात के बाद से नेहा इतनी बिज़ी रही थी कि दोबारा वर्मा जी से मिलने का वक़्त ही नहीं मिल पाया। और अब तक प्रेग्नेंसी का कोई इशारा नहीं था — जो राहत की बात थी, क्योंकि उस दिन के बाद से उसने अब तक Plan B भी नहीं लिया था। अंदर से उसे भी लग रहा था कि उस दिन थोड़ी **हद से ज़्यादा बहक** गई थी।

उधर वर्मा जी ने कई बार मैसेज करके मिलने की कोशिश की थी, लेकिन नेहा हर बार टालती रही — काम का लोड ही इतना था। पर सच्चाई ये थी कि **उसके बदन में भी गुदगुदी चल रही थी**। खुद को छूकर बहुत बार सुलझाने की कोशिश की, पर दिल और जिस्म — दोनों को चाहिए था **वो असली चीज़**… उंगलियाँ बस गुदगुदी कर सकती थीं।

रात काफी हो चुकी थी। नेहा अपने पति मानव के पास लेटी थी — वो खर्राटे ले रहा था, नींद में गुम। नेहा ने करवट ली, फोन उठाया, और आखिरकार खुद को रोका नहीं पाया। वर्मा जी को मैसेज टाइप किया — *"कल मिलोगे?"*



वर्मा जी का जवाब फौरन आया —
**"आखिर याद आ ही गया तुम्हें! मुझे तो लगने लगा था कि तुम बस टाइम पास कर रही हो। मैं तो कब से तड़प रहा हूँ तुम्हारी प्यास बुझाने को…"**

नेहा ने मानव की ओर देखा — वो अब भी गहरी नींद में था। फिर लिखा —
**"माफ़ कीजिएगा, थोड़ा काम और घर का झंझट रहा…"**

**"काम-धंधा भाड़ में जाए… तुम्हें तो मेरे लंड पे बैठना चाहिए, दिन में तीन बार!"**

**"अरे आप भी ना... अब टाइम निकाल लिया है न, तो फिर गिला क्यों कर रहे हैं?"**

**"कल तक का वेट तो बहुत भारी लग रहा है। मेरी तो नींद ही उड़ चुकी है, बस तुम ही याद आ रही हो..."**

**"मुझे भी नींद नहीं आ रही... और वो जो आपका मोटा लंड है, उसका ख्याल जा ही नहीं रहा दिमाग से..."**
(नेहा ने होंठ दबाते हुए भेजा, अपनी जाँघों को भींचते हुए)

**"हूँ… तभी तो इतनी रात को मैसेज कर रही हो,"** वर्मा जी ने लिखा।
**"एक बात कहूँ? जब दोनों को नींद नहीं आ रही, तो क्यों ना अभी मिल लिया जाए?"**

नेहा का चेहरा तना —
**"अरे… पर मानव घर पर हैं... कहीं देख लिए गए तो?"**

**"तो क्या हुआ? मेरा भी तो हक़ है, बिटिया। चुपचाप दबके चली आओ मेरे घर, बिस्तर तो कब से तुम्हारे लिए तैयार है,"** वर्मा जी ने बड़े आराम से भेजा, पूरे तजुर्बे के साथ।

नेहा का मन किया कि हाँ कर दे — पर रिस्क ज़्यादा था।
**"मुझे समझ नहीं आ रहा... थोड़ा डर लग रहा है,"** उसने जवाब दिया।

**"क्या बात है? डर लग रहा है कि पति जग जाएंगे?"** वर्मा जी ने पूछा।

नेहा ने मानव की ओर देखा और लिखा —
**"नहीं... वो तो गहरी नींद में हैं। नींद की गोली लेते हैं रोज़, सुबह तक नहीं उठते..."**

**"फिर टेंशन किस बात की है? ये जो सब चल रहा है, उसमें सही-गलत सोचने की जगह कहाँ बची है?"**
**"सच बोलूँ तो, मुझे तो लग रहा है तुम्हें इसी 'गलत' में मज़ा आ रहा है… तभी तो ये खेल चल रहा है!"**

नेहा हँसी और धीमे से लिखा —
**"अफेयर कह रहे हो इसे? पक्का?"**

**"और नहीं तो क्या? अब तो तू मेरी रखैल जैसी लगती है… मेरी प्यारी सी गुपचुप वाली…"**

नेहा ने एक बार और मानव की ओर देखा, फिर गहरी साँस लेकर टाइप किया —
**"हूँ… बस कन्फर्म कर रही थी। आप तो पूरे दिल पे चढ़ गए हैं, वर्मा जी।"**

**"तो बताओ फिर, आ रही हो या नहीं?"**

नेहा ने आँखें घुमाईं, होंठ काटे… और लिखा —
**"ठीक है… गैराज के साइड वाले दरवाज़े पे मिलिए। मेरे दिमाग में अभी एक नया ठिकाना आया है, जहाँ कोई डिस्टर्ब नहीं करेगा।"**

**"कमाल! पाँच मिनट में पहुँच रहा हूँ,"** वर्मा जी ने लिखा।

फोन रखकर नेहा का दिल ज़ोर से धड़कने लगा। एक बार फिर मानव की ओर देखा — वो नींद में बेसुध था। नेहा चुपचाप बिस्तर से उतरी, बाल messy bun में बाँधे, नाइट ड्रेस उतारी और एक सिल्की, फिसलती हुई सेक्सी सी रॉब पहन ली — बिना कुछ अंदर के।

अब नीचे जाना था… जहाँ नैतिकता सो रही थी, और **चूत जाग रही थी**।

नेहा मोबाइल की फ्लैशलाइट जलाए चुपचाप गैराज में उतरी, साइड वाले दरवाज़े तक पहुँची और धीरे से लॉक खोला। दरवाज़ा जैसे ही खटका — सामने वर्मा जी खड़े थे, वही रॉब पहने हुए, पैरों में चप्पलें, और चेहरे पर वो पुराना हरामी स्माइल।



"अरे वर्मा जी... बहुत दिन हो गए आपको देखे," नेहा ने मुस्कराकर धीरे से कहा।

"हाय मेरी जान, मैं तो कब से तरस रहा हूँ दोबारा तेरी चूत में उतरने के लिए," वर्मा जी ने आँख मारते हुए जवाब दिया।

नेहा ने भी एक शरारती हँसी फेंकी, लेकिन एक बार बाहर झाँक कर देखा, "अरे वो… गेट बंद किया ना आपने पीछे वाला?"

वो गेट जो उनके बगीचे के पीछे से आता था, उसे पार करके ही वर्मा जी यहाँ तक आ सकते थे। वर्मा जी ने अपना गंजा सिर हिलाया — "हाँ-हाँ बिटिया, पूरा बंद करके आया हूँ।"

"अच्छा, तो जल्दी अंदर आ जाइए," नेहा ने उसकी कलाई पकड़ के अंदर खींच लिया।

दरवाज़ा बंद करके उसने लॉक चढ़ाया और बिना कोई समय गँवाए, सीधे उसके होंठों से अपने होंठ टकरा दिए। दोनों एक-दूसरे में ऐसे घुसे जैसे महीनों की भूख हो — होंठों की चपचप, जीभ की लड़ाई, और साँसों की गर्मी पूरे गैराज में गूँज रही थी।

"अंधेरे में तो कुछ दिख ही नहीं रहा… अब कहाँ करेंगे तूफान?" वर्मा जी ने होंठों से अलग होकर पूछा।

"आइए मेरे साथ," नेहा ने फुसफुसाते हुए कहा और उसे फ्लैशलाइट से SUV तक ले गई। बैक डोर खोलकर बोली, "आ जाइए अंदर।"

वर्मा जी ने हँसते हुए सिर हिलाया और कार में घुस गए।

नेहा भी अंदर आकर दरवाज़ा बंद करके उसकी बगल में बैठ गई। हल्की चाँदनी गैराज की खिड़कियों से छनकर कार के अंदर रोमांटिक सी रोशनी बिखेर रही थी। टिंटेड शीशों ने उन्हें पूरी तरह छुपा लिया था — एकदम परफेक्ट सेटिंग थी।

"अरे सुनो, तुम्हारे पति को गंध-वंध तो नहीं आएगी बाद में?" वर्मा जी ने ज़रा फिक्रमंद होकर पूछा।

"वो अपनी कार यूज़ करते हैं, ये मेरी है। अंदर झाँकने का कोई कारण ही नहीं होगा," नेहा ने आँख मारते हुए कहा, "और हाँ, सफाई मैं खुद कर लूँगी।"

वर्मा जी ने अपने पतले से पैर फैलाए, सीट की जगह देखी और बोले, "बाप रे… कितनी बड़ी है ये गाड़ी… पूरा लेट भी सकते हैं आराम से!"

नेहा ने अपनी रॉब खोलकर आगे की सीट पर फेंकी, फिर उसकी ओर मुड़ते हुए बोली, "तो क्यों ना वहीं से शुरू करें जहाँ पिछली बार छोड़ा था?" और उसके ठुड्डी को पकड़कर अपने होंठों की ओर खींचा।

"खुशी से!" वर्मा जी ने चिल्लाते हुए अपनी रॉब खोल फेंकी। नेहा की आँखें फैल गईं — वर्मा जी भी बिलकुल नंगे थे उसके जैसे।

"ओह हो, गंदे बुड्ढे… हम दोनों की सोच तो बिल्कुल मिलती है," नेहा ने हँसते हुए कहा।

"कभी-कभी हवस भरी सोच भी मिल जाती है," वर्मा जी ने शरारत से जवाब दिया।

नेहा ने होंठ चाटे — उसका लंड फिर से आधा खड़ा था। उसने उसके कंधों को पकड़कर झुकते हुए होंठ चिपका दिए। दोनों एक-दूसरे में फिर से खो गए — जीभें आपस में लिपटीं, होंठ चूसते रहे — जैसे भूख अभी खत्म ही नहीं हुई हो।

"तुम्हारे साथ मुँह-मिलाना बहुत मिस किया था, नेहा…" वर्मा जी ने चूमते हुए कहा।

"मैंने भी… बहुत," नेहा ने धीमे से जवाब दिया।

नेहा ने पोज़िशन बदली, और वर्मा जी को सीट पर लिटा दिया। मुस्कराते हुए बोली, "वर्मा जी, एक चीज़ पूछूँ?"

"बोलो ना बिटिया…"

"आपको 69 का मतलब पता है?"

वर्मा जी की आँखें चमक उठीं, "अरे… और नहीं तो क्या! क्या अब… अभी करेंगे?"

नेहा ने मुस्कुरा कर कोई जवाब नहीं दिया, बस उसके ऊपर चढ़ी और फिर धीरे-धीरे खुद को पलटा — उसका चेहरा वर्मा जी के लंड के ऊपर, और उसकी चूत वर्मा जी के चेहरे के एकदम ऊपर।

वर्मा जी की साँस अटक गई — सामने से नेहा की रस टपकाती गरम चूत, सिर्फ दो इंच दूर। उसकी गंध, उसकी गर्माहट, उसकी थरथराती जाँघें — सब कुछ वर्मा जी के होश उड़ाने के लिए काफी था।

नीचे नेहा ने देखा — उसका लंड अब पूरी तरह खड़ा हो गया था। उसकी आँखों में चमक आ गई। उसने वर्मा जी को देखते हुए बोला:

"उम्मीद है चूत खाना भूले नहीं होगे, बुड्ढे…"

"तू फिकर मत कर, रानी… आज तेरी चूत चाट के तुझे तारे दिखा दूँगा!" वर्मा जी ने पूरी शिद्दत से कहा।

नेहा मुस्कराई और धीरे से अपनी गीली चूत उसके मुँह पर टिका दी — "आह्ह्ह…" उसकी सिसकारी निकली।

वर्मा जी एकदम भूखे भेड़िए की तरह टूट पड़े — जैसे बरसों से रस नहीं चखा हो।

नेहा ने वर्मा जी की टांगें कस के पकड़ीं, उसकी आँखें आधी बंद हो गईं, होंठ खुले… शरीर में करंट दौड़ गया। मानव कभी उसकी चूत चाटता भी था तो बस खानापूर्ति करता, ये बूढ़ा तो जैसे नशे में डूबा हुआ था।

नीचे से उसे लंड की तेज़ थरथराहट महसूस हुई — उसने माफ़ी के अंदाज़ में कहा, "उफ्फ, माफ़ कीजिएगा…"

वो झुकी और उसका लंड मुँह में ले लिया — एक ही बार में गले तक उतार दिया।

"ह्हह्ह…" वर्मा जी ने राहत से कराहते हुए सिसकारी भरी।

दोनों अपनी-अपनी धुन में लग गए — चूत और लंड की लिपलिपी लड़ाई शुरू हो चुकी थी। नेहा गोल-गोल मूवमेंट में सिर हिला रही थी, वर्मा जी उसकी चूत के होंठ चाटते हुए जीभ अंदर तक डाल रहे थे।

गाड़ी के अंदर से "चपाक", "चूस", "स्लर्प" जैसी आवाज़ें गूंज रही थीं। वर्मा जी ने नेहा की मुलायम गांड को पकड़ कर उसे अपने मुँह में और दबाया, और नेहा मुँह में उसका लंड और गहरा लेती गई।

ये सब इतना अश्लील, इतना **गुनाह भरा**, और उतना ही मज़ेदार था। अपनी गाड़ी के अंदर, पति ऊपर कमरे में सो रहा और नीचे वो अपने बूढ़े पड़ोसी के लंड पे मुँह मार रही थी।

वर्मा जी ने उसकी चूत में जीभ से एक जगह दबाव डाला — और नेहा की कराह निकल गई, "हाँ… हाँ वहीं… वहीं… छोड़िए मत…"

"आह्ह… ओह माय गॉड…!" नेहा चीख पड़ी — उसकी पूरी बॉडी हिल गई, रस की धार मुँह से बहती हुई वर्मा जी के गले तक भर गई।

वो पागलों की तरह उसे पीने लगे।

ऑर्गैज़्म के बाद नेहा उसके मुँह से धीरे-धीरे उठी, सीट से फिसल कर नीचे घुटनों पे आ गई, और उसकी हालत देख हँस दी — वर्मा जी का मुँह पूरा चूत रस में भीगा हुआ था।

"मज़ा आ गया, वर्मा जी… सच में अनुभव काम आया आपका," नेहा ने हँसते हुए कहा।

"ह्ह… तुम्हारी चूत तो जैसे अमृत है रानी," उसने हाथ से मुँह पोंछते हुए कहा।

नेहा ने उसकी तरफ देखा — उसका लंड अब भी पूरी तरह तना हुआ हवा में खड़ा था।

"अरे… आप तो अभी तक झड़े ही नहीं… चलिए, अब मेरी बारी है आपको सुख देने की," नेहा ने उसके कान में फुसफुसाया। और वर्मा जी की आँखों में एक बार फिर वही जान लौट आई…


SUV की सस्पेंशन चरमराई और पूरे गैराज में उसकी आवाज़ के साथ-साथ दबे-दबे कराहों की गूँज फैल गई। नेहा के नंगे पैर पीछे वाली खिड़की से टिके हुए थे, शीशे पर उसकी गीली उँगलियों के निशान पड़ चुके थे, और वर्मा जी उसके ऊपर जानवर की तरह टूटे पड़े थे। दोनों के जिस्म पसीने से लथपथ थे, और हवा में एक दम घुटनभरी कामुक भाप भरी हुई थी।

“चो—त की कसम नेहा… तेरी चूत तो जैसे जन्नत है… मैं तो इसमें हमेशा के लिए गुम हो सकता हूँ,” वर्मा जी ने अपने हर thrust के साथ दाँत भींचकर कहा।

“हम्म… हाँ… आप जब चाहें, जैसे चाहें… इस चूत की चाभी बस आपके पास है,” नेहा ने होंठ चाटते हुए कराहते हुए कहा, जब वर्मा जी अपनी हड्डियों जैसी उँगलियों से उसके उभरे हुए बूब्स को जोर से निचोड़ रहे थे। “और बताइए वर्मा जी, आपके दिमाग में कौन सी गंदी-से-गंदी फैंटेसी चल रही है? सब बताइए… पूरा खेल खेलते हैं आज।”

वर्मा जी की आँखों में चमक आ गई — सीने में दिल जैसे तालियाँ बजाने लगा।

“अब तू मेरी है, नेहा… और जब तक तुझे प्रेग्नेंट नहीं कर देता, तब तक तुझे चोदता रहूँगा…” वो गरजे हुए बोले।

नेहा की आँखें फैल गईं — थोड़ा चौंककर, थोड़ा मुस्कराकर बोली, “अरे नहीं वर्मा जी… वो बात ना सोचिए अभी… बस चोदिए, लेकिन अंदर मत छोड़िए ना…”

वर्मा जी ने उसका बायाँ पैर कंधे पे चढ़ाया और उसकी गीली चूत में झटकों की रफ़्तार और बढ़ा दी।

“ओहह… आप तो कहती हैं मत सोचो, लेकिन आप खुद भी जानती हैं… हम दोनों बिना रबर के फिर कर रहे हैं… और मैं तो खींचने वाला भी नहीं…”

“अ—आप… प्लीज़…” नेहा ने घबराकर कहा, “पुल आउट करिए ना…”

“सॉरी रानी… पर इस बार नहीं,” उन्होंने कहा, और उसकी कमर कस के पकड़ ली।

नेहा के सीने में धक-धक तेज़ हो गया — “ये बुड्ढा तो सच में मुझे प्रेग्नेंट कर देगा!” मन ही मन चीख उठी।

“अरे नेहा… इतना सोच क्यों रही हो? वैसे भी Plan B खा लेना… अब तो जवान लोग इसे role play कहते हैं, है ना? तो चलो, खेल खेलते हैं।”

नेहा थोड़ी देर सोचती रही, लेकिन शरीर की आग ने दिमाग को पीछे धकेल दिया। होंठ दबाकर उसने कहा:

“तो बताइए… आप मुझे प्रेग्नेंट करना चाहते हैं, वर्मा जी?”

वर्मा जी की आँखें चौड़ी हो गईं — जैसे किसी जवान लड़की ने ‘हाँ’ कह दी हो।

“हाँ रानी… तू मेरी औलाद की माँ बनेगी… मैं तुझे बार-बार बीज दूँगा…” उन्होंने उसकी टाँग कस के पकड़ते हुए और ज़ोर से चोदना शुरू कर दिया।

“तो फिर बताइए… मेरे पति को कैसा लगेगा जब उनका बूढ़ा पड़ोसी उनकी बीवी को बच्चा दे देगा?” नेहा ने आँखों में शरारत भरकर पूछा, और ज़ोर से कराह उठी।

“उसको कुछ नहीं पता चलेगा… ये हमारा गुप्त मस्त रिश्ता रहेगा,” वर्मा जी ने हरामपन से जवाब दिया।

“और आपको बूढ़ी उम्र में बाप बनने में दिक्कत नहीं?” नेहा ने हँसते हुए कहा।

“काहे की दिक्कत? औरत तू जैसी हो, तो उम्र-वुम्र कोई मायने नहीं रखती। और मैं तो सोच रहा था कि तेरे जैसे में अभी तक बच्चा हुआ नहीं कैसे…”

नेहा ने मुँह से सांस छोड़ते हुए जवाब दिया, “मानव चाहता है, लेकिन हकीकत ये है कि हम लोग शायद महीने में एक बार भी नहीं कर पाते। काम में ही डूबा रहता है।”

“तो फिर अब से मैं तेरी चूत का ज़िम्मेदार हूँ, है ना?” वर्मा जी ने और जोश से चोदते हुए पूछा।

“हाँ… अगर मेरा पति नहीं कर सकता तो कोई तो करेगा ही,” नेहा ने मुस्कराकर कहा।

वर्मा जी की फटी-पुरानी आँखों में फिर वही आदिम जोश चमक उठा। “अब मैं तुझे रोज़ चोदूँगा… जब तक तेरा पेट ना उभर आए!”

नेहा की आँखें उलट गईं — उसके cervix तक वर्मा जी का लंड हर झटके पे टकरा रहा था। उसने सोचना शुरू कर दिया — अगर इस बुड्ढे का बच्चा हो भी गया, तो कैसा दिखेगा? बूढ़े जैसा? या मेरी तरह? और मानव? शायद उसे फर्क भी नहीं पड़ेगा…


वो जैसे ही उसका पैर छोड़ते हैं, वर्मा जी नेहा के बूब्स के बीच में मुँह घुसेड़ देते हैं — वो नर्म, गरम गोलाइयाँ जिनमें अब बूढ़े मर्द की बेशरम जीभ घूम रही थी। नेहा की टाँगें हवा में लटक रही थीं, और नीचे वर्मा जी की कमर उसकी चूत में जोर-जोर से धँसी जा रही थी — पूरी तरह इस फैंटेसी में डूबे कि वो अपनी जवान पड़ोसन की कोख भर देंगे।

नेहा ने नीचे उसकी तरफ देखा — बूढ़ा, गंजा, झुर्रियों से भरा चेहरा अब उसकी छातियों में खोया हुआ था — और वो खुद? जो पहले इस आदमी को देखना तक नहीं चाहती थी, आज उसी के नीचे ऐसे पड़ी थी जैसे कोई जानवर अपनी हीट में हो।

“आह… हाँ वर्मा जी! ज़ोर से चोदिए ना… छोड़िए मत!” नेहा ने चीखकर कहा, उसकी साँसे गरम और गाढ़ी हो चुकी थीं, हवा में भाप सी तैर रही थी।

नेहा ने नीचे हाथ ले जाकर वर्मा जी की नंगी पतली गांड पकड़ ली, और उसकी चोदाई में खुद ही तालमेल देने लगी — उसकी झुर्रीदार गांड की मांसपेशियाँ अब भी थोड़ी कसाव दिखा रही थीं। उसके आहें अब नेहा के बूब्स में घुल रही थीं।

उसका लंड बिना किसी रुकावट के नेहा की भीगी चूत में अंदर-बाहर हो रहा था — हर धक्का उसके बदन को और गहराई तक ले जा रहा था। उसकी मोटी, रसीली लंड की ठोकाई अब सीधे नेहा की हर नस को जगा रही थी — और उसके बॉल्स की थपथपाहट नेहा की गांड पे बाप बन रही थी।

"उफ्फ नेहा… अब नहीं रुका जा रहा मुझसे, झड़ने वाला हूँ!" वर्मा जी ने दबी आवाज़ में कहा।

नेहा ने होंठ चबाते हुए उसकी कमर को अपनी टाँगों से लपेट लिया, कस कर — अब तो कोई खींच नहीं सकता था।

“तो फिर छोड़िए ना वर्मा जी… मेरी चूत में ही सब कुछ… बच्चा डाल दीजिए… मैं चाहती हूँ आपकी औलाद अपने पेट में,” नेहा ने आँखें मटकाते हुए कहा।

वर्मा जी का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा — अब उनके अंदर का बूढ़ा मर्द पूरी तरह से बीज छोड़ने वाले मोड में आ गया था। नेहा जानती थी कि ये सब बेइंतहा रिस्की है — लेकिन अब फर्क नहीं पड़ता था। अब तो उसे समझ आ गया था कि बच्चा बनाने की नीयत से सेक्स करने में जो मज़ा है, वो किसी और चीज़ में नहीं।

वो खुद को उसकी बॉडी पर और ऊपर खिसकाकर बैठ जाते हैं, और नेहा को एकदम से **मेटिंग प्रेस** पोज़िशन में मोड़ देते हैं — जैसे पूरी जानवर वाली चुदाई।

वो अब उसका लंड और गहराई तक उतारते जा रहे थे — दोनों के मुँह से कराहें एक साथ निकल रही थीं — ये अब सिर्फ सेक्स नहीं, **जंगली सम्भोग** बन चुका था।

“हाँ… बच्चा ठोक दूँ तेरी कोख में, हराम की रंडी!” वर्मा जी गरजे और झटके के साथ अपना लंड उसके गर्भाशय तक धँसा दिया — और फिर वहाँ से अपने थके हुए अंडकोष से ज़हर उगलना शुरू कर दिया।

नेहा ने जैसे ही अंदर उसका गरम वीर्य महसूस किया — उसकी भी आँखें उलट गईं। उसके अंदर कुछ फट गया था — ऑर्गैज़्म की आग से उसकी चूत सिमटने लगी, और वर्मा जी के लंड को चूसते हुए बच्चा खींचने की कोशिश करने लगी।

वो दोनों उस पल में खो चुके थे — एक बूढ़ा ज़िद्दी मर्द, और एक जवान भूखी औरत — एक साथ एक ऐसा रिश्ता निभा रहे थे, जो सभ्य दुनिया की हर हद से बाहर था।

वर्मा जी ने उसके होंठों पे झुक कर अपनी जीभ फिर से उसके मुँह में उतारी — और दोनों की जीभें एक-दूसरे में लिपटीं।

“हूँफ… अब तो इंतज़ार नहीं कर पा रहा कि कब तू पेट से हो जाएगी…” वर्मा जी ने हाँफते हुए कहा।

नेहा ने हँसते हुए उसके गंजे सर को सहलाया — “तो फिर तैयार रहिए… दो-तीन बार और चोदना पड़ेगा आपको अगर बच्चा चाहिए…”

वर्मा जी मुस्करा दिए — और जैसे ही उसका लंड फिर से तन कर खड़ा हुआ, बोले — “तेरे जैसी औरत को तो बार-बार बीज देना बनता है!”

“सब आपकी ही वजह से हुआ है वर्मा जी… आप ही ने इस सीधी-सादी बीवी को बिगाड़ के लंड की भूखी रंडी बना दिया,” नेहा ने आँखों में चमक के साथ कहा।


कार की सस्पेंशन ज़ोर से चरमराई जब नेहा उलटी पोज़िशन में वर्मा जी के लंड पर बैठकर उछल रही थी — एकदम रिवर्स काउगर्ल में। वो धीरे-धीरे पीछे मुड़ी और आँखों में आँखें डालते हुए अपनी चौड़ी, भरपूर कमर को उसकी पतली कमर से रगड़ते हुए रोल कर रही थी।

वर्मा जी ने उसकी भरपूर कमर को दोनों हाथों से कस के पकड़ लिया — जब उसकी गोल गोल गांड उनके लंड पे गिरती, उनके मुँह से निकली बूढ़ी सी कराहट नेहा के लिए किसी म्यूजिक से कम नहीं लगती थी।

“हम्म… उफ्फ्फ… वर्मा जी… आपका लंड अंदर इतना सही लग रहा है… मुझे तो आपका बूढ़ा लंड चढ़कर बहुत अच्छा लगता है…” नेहा ने अपनी गरम आवाज़ में कहा।

“हाह! अब बोलो… कैसी लगती है लंड की भूखी रंडी बनकर?” वर्मा जी ने उसकी गांड पे चटाक से थप्पड़ मारते हुए पूछा — गाल पर एक लाल निशान बन गया।

“उउउफ्फ… स्साले कमाल का लग रहा है! मुझे तो अपनी चूत की मार ऐसे खाना बहुत पसंद है… वो भी आप जैसे झंडू बूढ़े से!” नेहा ने गहरी सांस के साथ चीखकर कहा।

वर्मा जी लार निगलते हुए देख रहे थे — उनका लंड बार-बार उसकी टाइट चूत में अंदर-बाहर हो रहा था। वो दीवार जैसी टाइट चूत उसके लंड को पकड़ के चूस रही थी — हर बार की रगड़ से वो पागल हो रहा था।

कई मिनट तक नेहा बेमिसाल अंदाज़ में सवारी करती रही, लेकिन फिर अचानक वर्मा जी ने उसे झटका देके आगे सीट के बीच वाले हिस्से पे पटक दिया।

नेहा अब पेट के बल लेटी थी, और वर्मा जी फिर से उसकी भीगी हुई चूत में घुस गए — इस बार जैसे सारा कंट्रोल छोड़ दिया हो। उन्होंने कमर से कमर मिलाते हुए अपनी रफ्तार तेज़ कर दी, और नेहा की चीखें पूरे गैराज में गूँजने लगीं।

आगे झुककर उन्होंने उसका बालों का एक मुट्ठी पकड़ा और पीछे खींचा — “तेरा जिस्म मेरा है! तेरी चूत मेरी है! तुझे मैं बार-बार चोदूँगा! शादीशुदा है तो क्या… अब तू मेरी है!” और इसके साथ ही उसकी गांड पर एक और चटाक दी।

“हाँ! हाँ वर्मा जी… मेरा पूरा जिस्म आपका है! मुझे माँ बना दीजिए… और आप बन जाइए मेरे बच्चे के पापा…” नेहा ने अपनी आँखें बंद करके कहा — अब वो पूरे रोल में डूब चुकी थी।

वर्मा जी को अंदर से मज़ा आ रहा था — जैसे जवानी लौट आई हो। काश उन्हें नेहा जैसी कोई औरत पहले मिलती — अब तक पूरा खानदान बन चुका होता।

वो बिना रुके उसकी चूत में घुसे जा रहे थे — उसकी मुलायम गांड बार-बार उछल रही थी, हर झटके पे उसकी चूत खिंचती और फैलती जा रही थी। वहाँ का सारा अंदरूनी हिस्सा अब वीर्य और रस से तरबतर हो चुका था। नेहा सोच रही थी — ये बदबू गाड़ी से कैसे जाएगी?

“हाँ! ऐसे ही बाल पकड़ते रहिए… डैडी…” नेहा ने कराहते हुए कहा।

“अबे ओ… बोल के मरा डाला तूने…” वर्मा जी ने सिसकते हुए कहा, “अब नहीं रोक पा रहा… चूत में ही छोड़ने वाला हूँ!”

नेहा ने भी आँखें बंद करके कहा, “हाँ… मुझे भी आ रहा है… फिर से मेरे अंदर छोड़िए ना… मेरी शादीशुदा चूत को फिर से बीज दीजिए… बना दीजिए मुझे माँ… आप ही के बच्चे की!”

वो उसका पेट से चिपकते हुए उसकी कमर पकड़कर और तेज़ झटके मारने लगे। उसका लंड अब अंदर ज़ोर से फड़क रहा था — और फिर… एक आखिरी धक्के में पूरा वीर्य उसके अंदर उगल दिया।

नेहा की आँखें पलट गईं, और पूरे बदन में झनझनाहट सी दौड़ गई। दोनों एक साथ कराहते हुए अपनी गंदी, प्यास बुझा देने वाली चरमसीमा पर पहुँचे — और पसीने से भरी, चूत-वीर्य से लथपथ उस मिलन की गवाही बनती रही वो गाड़ी...



कितनी देर बीत चुकी थी, कोई गिनती नहीं रही। लेकिन आखिरकार नेहा और वर्मा जी कार से बाहर निकले — दोनों की रॉब अब बस नाम की रह गई थी, बदन पर लटकती हुई। पूरी गाड़ी जैसे **चोदाई का अखाड़ा** बन चुकी थी — ड्राइवर सीट से लेकर फ्रंट पैसेंजर और ट्रंक तक — हर जगह पसीना, रस और वीर्य की तहें चिपकी हुई थीं।

दोनों पूरी तरह थककर चूर हो चुके थे। नेहा ने लंबी साँस ली — उसे पता था कि सुबह उठकर ये सारा **भोसड़ी वाला गंद** खुद साफ़ करना पड़ेगा। सबसे बड़ा टेंशन ये था कि वर्मा जी ने जितना अंदर छोड़ा है… उससे कहीं पेट ना ठहर जाए। लेकिन अभी सोचने की ताकत बची नहीं थी।

फोन उठाकर देखा तो आँखें चौड़ी हो गईं — **पौने पाँच बज चुके थे**।

उसने वर्मा जी को साइड डोर तक लाया, एक हाथ कमर पर टिकाया और हल्की सी संतुष्ट हँसी के साथ बोली, “हम्म… तो वर्मा जी, अब बताइए… इतनी देर से जो तड़प रहे थे, उसकी भरपाई हो गई?”

वो हरामी मुस्कान के साथ सिर हिलाते हुए बोले, “हाहाह… बिलकुल! आज तो नींद एकदम राजा जैसी आएगी।”

नेहा मुस्कराई, लेकिन मन में सोच रही थी — मुझे तो पहले गाड़ी को disinfect करना है, वरना ये बदबू तीन दिन तक बाहर नहीं जाएगी।

“वैसे,” वर्मा जी ने हँसते हुए कहा, “आज का ये roleplay तो एकदम बवाल था, है ना?”
नेहा ने नज़रें चुराते हुए मुस्कराकर सिर हिलाया।

“बच्चा ठोकने वाली फैंटेसी में चुदाई का मज़ा ही कुछ और है,” वर्मा जी ने उसकी ओर देखकर धीमे से जोड़ा।

“हूँ, हाँ… सही है,” नेहा ने होंठ दबाते हुए कहा — वो खुद भी मान रही थी कि ऐसी **हरामी कल्पना** में सेक्स कहीं ज़्यादा मजेदार था।

“अब आप निकलिए वर्मा जी… मेरे पति उठने ही वाले होंगे,” नेहा ने आँख दिखाकर कहा, फिर झुककर धीरे से उसके कान में फुसफुसाई —
**“मेरा हैंग करता बूढ़ा डैडी…”**

वो उसकी ठुड्डी को चूमते हुए मुस्कराई, फिर प्यार से होंठों पर एक चुम्मी दी और उसे बाहर धकेलते हुए दरवाज़ा बंद कर दिया।

वर्मा जी ने बाहर आकर लंबी अंगड़ाई ली, जैसे कोई जंग जीतकर निकला हो — और फिर अपनी चाल में वापस अपने घर की तरफ बढ़ गए… चेहरे पर वही पुराना चालूपन और सीना गर्व से भरा हुआ।
Very very erotic update. Neha is having a great time with Varma ji.
 

Premkumar65

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Update 5


करीब डेढ़ हफ़्ता बीत चुका था जब नेहा और वर्मा जी ने उसकी कार में वो जानवरों जैसी चुदाई की थी। जितना गंदा और भरा हुआ वो सेशन था, नेहा को उस दिन के कुछ ही दिन बाद पीरियड आ जाने से राहत मिल गई — नहीं तो वर्मा जी ने जितना वीर्य उसकी कोख में उड़ेला था, वो तो बच्चा छोड़ ही देते। गोली खाने से वो हमेशा गड़बड़ा जाती थी — चक्कर, उलझन, चिड़चिड़ापन। इसलिए उस बार बचना जैसे ऊपर वाले की कृपा थी।

फैंटेसी में बच्चा ठुकवाने का खेल जितना मस्त था, असल में उसे अब भी यकीन नहीं था कि वो माँ बनने के लिए रेडी है — वो भी किसी अफेयर से? मयंक को अगर कभी पता चलता तो सीधा आग लग जाती। और अगर धोखे से उसे उसका बच्चा कह देती? नैतिकता तो कहीं पीछे छूट जाती। लेकिन उस खतरे में जो थ्रिल था… उसकी बराबरी कुछ नहीं कर सकता।

उसके बाद से उनकी मुलाकातें रुक गई थीं — नेहा अपनी दिल्ली वाली लीगल फर्म की भागदौड़ में उलझी थी, ऊपर से कुछ फैमिली फंक्शन भी निकल आए। बेचारा वर्मा जी अपने पुराने बंगले की चारपाई पे अकेला पड़ा सड़ रहा था।

बंगले के आँगन में, अपनी पुरानी हिलती कुर्सी पे बैठा, वर्मा जी उँगलियों से आर्मरेस्ट पे थपथपाते हुए बस सोचते जा रहे थे — "कब आएगी मेरी वो जवानी की लाज शर्म तोड़ चुकी रंडी…"

पिछली ढंग की बात दो दिन पहले हुई थी — वो भी कुछ सेकंड्स की औपचारिक चैट। मैसेजेस तो आते-जाते रहते थे, लेकिन कुछ ठोस बात नहीं। वो हरामज़ादी अब कली खुली रंडी बन चुकी थी, और फिर भी उसे वर्मा जी से दूरी बना रही थी। वर्मा जी की बूढ़ी आँखों में चिड़चिड़ापन और लंड में प्यास सुलग रही थी।

फिर तभी उनकी आँखें चमक उठीं — सामने नेहा का पति मयंक अपनी कार लेकर ड्राइववे में घुसा, और नेहा उसके साथ थी।

"साले, आख़िरकार!" वर्मा जी के मुँह से निकला — और उनका लंड शॉर्ट्स के अंदर फड़कने लगा।

वो धीरे से उठे, अपनी हड्डियाँ समेटते हुए बंगले की सीढ़ियाँ उतरते हुए नेहा के घर की ओर बढ़े।

“अरे वर्मा जी! आप यहाँ कैसे?” मयंक ने मुस्कराते हुए पूछा।

नेहा जैसे ही नाम सुना, झट से दरवाज़ा खोलकर बाहर आई — उसके चेहरे पे एक ऐसी मुस्कान थी जिसमें सब कुछ लिखा हुआ था।



“अरे कुछ नहीं भैया… आँगन में बैठा था तो तुम लोगों की कार देखी, सोचा हालचाल ले लूँ,” वर्मा जी ने गर्दन खुजाते हुए कहा। उनकी नज़र बीच-बीच में नेहा पर टिकी थी — और चेहरे पर हल्की सी **लुच्ची मुस्कान** भी छुपी हुई।

“ओह, बहुत अच्छा किया आपने। हम लोग बस कुछ रिश्तेदारों से मिलके आ रहे हैं, थका देने वाला ट्रिप था,” मयंक ने थकी हुई आवाज़ में जवाब दिया।

“हा हा, समझ सकता हूँ… रिश्तेदारों के बीच में रहना कभी-कभी सर दर्द बना देता है। मेरे तो कई से बनती ही नहीं,” वर्मा जी ने हँसते हुए कहा।

तभी नेहा पीछे से आकर मयंक के कंधे पे हाथ रखती है, और “नमस्ते वर्मा जी,” बड़े ही **शरारती लहज़े** में बोलती है — उनकी पुरानी हरकतों की याद जैसे आँखों में झलक रही थी।

मयंक कुछ नहीं समझ पाया, लेकिन वर्मा जी की साँसें तेज़ हो गईं — सफेद कुर्ते में नेहा की कमर उघड़ी हुई, गले में पल्लू नहीं, पैरों में काले स्ट्रैप वाली सैंडल और चेहरा ऐसा जैसे कोई अप्सरा ज़मीन पर उतर आई हो।

“नमस्ते नेहा बिटिया,” वर्मा जी ने जैसे-तैसे खुद को काबू करते हुए कहा। आँखों में फिर भी वही ताव था — जैसे कह रहे हों, "चोदूँगा फिर से, रुक जा बस थोड़ी देर।"

“अकेला हूँ घर में… रिटायरमेंट तो है, लेकिन बिना तेरे जैसे company के मन बहुत उखड़ा रहता है…” उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा।

नेहा ने प्यारी सी मुस्कान दी — जानती थी कि बूढ़ा जल रहा है। “अरे, ये तो बुरा हुआ वर्मा जी… चलिए, थोड़ा टाइम पास मैं करवा देती हूँ।” उसने धीरे से आँख मारी — और मयंक को कुछ समझ नहीं आया।

“अच्छा जान,” मयंक बोला, “मैं तो सीधा जाकर सो जाता हूँ — सारा दिन गाड़ी चलाते-चलाते थक गया हूँ।” ये सुनकर वर्मा जी के दिल की धड़कन तेज़ हो गई — मौका खुद चलकर सामने आया था।

“ठीक है जान, ऊपर चले जाइए… खाना बनाऊँ या बाहर से मंगवाऊँ?” नेहा ने casually पूछा।

मयंक ने कंधे उचकाए — “जो भी ठीक लगे… ठीक है वर्मा जी, मिलते हैं,” बोलकर अंदर चला गया।

नेहा और वर्मा जी ने एक-दूसरे को देखा… और उस नज़र में जो आग थी, वो अब जल्दी ही किसी बिस्तर में भड़केगी…



दोनों की नज़रें एक-दूसरे में अटक गईं। नेहा को सामने देखकर वर्मा जी का लंड शॉर्ट्स के अंदर से ही फड़फड़ाने लगा — उसकी चाल, उसकी अदाएं… बूढ़े के सब्र का बाँध टूटता जा रहा था। लेकिन थोड़ी देर तक उसे घूरने के बाद वो बड़बड़ाया — आवाज़ में झुंझलाहट थी।

“क्या हुआ वर्मा जी?” नेहा ने हाथ कमर पर टिकाकर पूछा।

“क्या हुआ? अरे तुम तो जैसे गायब ही हो गई थी! डेढ़ हफ्ता हो गया पिछली चुदाई को!” वर्मा जी ने झल्लाते हुए कहा।

नेहा ने आँखें घुमाईं, “सॉरी वर्मा जी, मैं कोई फ्री टाइम वाली कॉलेज की लड़की नहीं हूँ। मेरे और भी काम होते हैं। तुम्हें तो शुक्र मनाना चाहिए कि तुम जैसे बूढ़े को चोदने देती हूँ मैं।”

फिर एक लंबी साँस लेकर बोली, “ठीक है, अगली बार पहले ही बता दूँगी... पर अब नाराज़ मत हो।”

वर्मा जी फिर भी मुंह फुलाकर बोले, “कम से कम थोड़ा टाइम तो देती, लगा जैसे फिर से मुझे उल्लू बना रही हो…”

“ओफ्फो वर्मा जी, ऑफिस था, रिश्तेदार थे… फोन पे ज्यादा बात नहीं कर सकती थी,” नेहा ने सफाई दी। पर वर्मा जी का मूड अब भी बिगड़ा हुआ था।

नेहा पास आई — उसकी सैंडल की टक-टक आवाज़ सीधी वर्मा जी की नसों में जा रही थी। वो पास आकर उनके गले में बाँहें डालती है और जोर से चिपक जाती है। वर्मा जी का चेहरा उसकी छाती में दब जाता है — सारी झुंझलाहट हवा हो जाती है।

फिर नेहा ने उसके कान में धीरे से फुसफुसाया, “अगर मैं बोलूँ कि मुझे अपने बाबूजी का मोटा, गरम लंड बहुत मिस किया… तो क्या तुम्हारा मूड ठीक हो जाएगा?”

वर्मा जी का लंड अब शॉर्ट्स में धमाका करने को तैयार था।

“आज फुल चुदाई का टाइम तो नहीं है… मुझे डिनर बनाना है, पर थोड़ा बहुत तो हो ही सकता है…” नेहा ने आँख मारते हुए कहा।

वर्मा जी ने भौंहें उठाईं, “तो अब क्या तू करने वाली है?”

नेहा ने बस शरारती मुस्कान दी और उसका हाथ पकड़कर उसे गैराज के अंदर SUV के पास ले गई, जहाँ बाहर से कोई देख न सके। फिर उसने धीरे से वर्मा जी को SUV की बोनट पे टिकाया और खुद ज़मीन पर घुटनों के बल बैठ गई।

“हम्म… तेरी लंड की गर्मी मुझे फिर से चाहिए, वर्मा जी…” उसने धीमे से कहा और उसके शॉर्ट्स खोलने लगी।

जैसे ही ज़िप नीचे गई, नेहा ने शॉर्ट्स उसके पैरों तक खींच दिए और फिर उसकी अंडरवियर पे हाथ रखा।

“अरे… तुझे डर नहीं लगता कि तेरा पति कहीं वापस आ गया तो?” वर्मा जी ने हल्का सा घबराकर पूछा।

नेहा ने चालाकी से मुस्कराते हुए कहा, “अरे नहीं… जब मानव कहता है कि सोने जा रहा है, तो मतलब कम से कम दो घंटे के लिए कोमा में जाएगा। और आपको डर लग रहा है? कहीं वो पकड़ ना ले?”

वर्मा जी ने हिचकिचाकर सिर हिलाया।

“उसी में तो मज़ा है ना… रिस्क वाला खेल, मुझे तो चढ़ जाता है उससे,” नेहा ने आँखों में शरारत भरते हुए कहा।

वो उसकी अंडरवियर से लंड बाहर निकालती है — और फिर उसकी साँसें तेज़ हो जाती हैं, “होंह! कोई तो मुझे बहुत मिस कर रहा था।”

“और कैसे! तेरा मुँह बहुत दिन से मिस कर रहा था मेरा लंड,” वर्मा जी ने हँसते हुए कहा। “अब ज्यादा बातें मत बना… ले ले मुँह में और शुरू हो जा, रंडी…” बूढ़ा अब किसी भूमिका के मूड में नहीं था।

नेहा ने वर्मा जी की उस अचानक की गई हुक्म वाली बात पर एक टेढ़ी मुस्कान के साथ देखा। बालों की लटें पीछे झटकते हुए वो जान-बूझकर झुकी, जैसे किसी आदत में ढल चुकी हो — एक बेवफा बीवी जो secretly खुद को ऐसे ही ऑर्डर होते देखना पसंद करती है।

उसने अपने मुलायम होंठ वर्मा जी के फूल चुके लंड के मुंड पर लपेटे और उसे धीरे-धीरे गले के अंदर तक ले गई। वर्मा जी के मुँह से एक तृप्त कराह निकल गई — उस गरम, गीले मुँह का एहसास उन्हें फिर मिल गया था।

नेहा ने रफ्तार पकड़ी, सिर आगे-पीछे करने लगी, उसकी जिह्वा और होठों की हरकतों से वर्मा जी के पैरों में खिंचाव आ गया। वो नीचे झाँकते हुए बस उसी लड़की को देखते रहे जो अब उनके लंड को भूख से चूस रही थी।

गोल-गोल मूवमेंट्स और होठों की पकड़ ने उनकी साँसें तेज़ कर दीं। “हम्म्म...” नेहा की गुनगुनाहट उसके गले में फँसे उस मांसल लंड को और जगा रही थी। उसकी हर आवाज़ वर्मा जी को अंदर तक हिला रही थी।

"हाँ, ऐसे ही... चुस मेरी लौंडिया... मेरी माशूक चूस रही है मेरी लंड," वर्मा जी ने दबी ज़ुबान में कहा और दोनों हाथों से उसका सिर पकड़ कर और गहराई तक ठूंस दिया। नेहा के आँखों से पानी निकलने लगा, साँसें बंद, और सीना ऊपर-नीचे।

“तेरी सूरत देख के ही झड़ जाऊँ मैं… मुँह में मेरा लंड क्या कमाल लग रहा है,” वो हँसते हुए बोले, नेहा ने भी आँखों से ही एक naughty इशारा किया।

नेहा ने लंड बाहर निकाला, उस पर अपनी उंगलियाँ फिराई और उसे गीलेपन से सराबोर करते हुए मरोड़ने लगी। “मुझे तेरा लंड चूसना बहुत पसंद है बाबूजी…喉 में फँसता है न तो सुकून आता है… बताओ, मेरी उंगलियों का काम कैसा लग रहा है?” उसने आंखों में शरारत भरकर पूछा।

"उफ्फ… हाँ… चोदने लायक औलाद है तू, चूसती है जैसे जनम-जनम की भूखी हो," वर्मा जी ने कराहते हुए कहा।

अब नेहा का हाथ नीचे गया, उसने लंड की जड़ तक पहुँचकर उसे अपने गालों और होंठों से मारना शुरू किया, “तेरा लंड तो मेरे चेहरे पे perfect बैठता है वर्मा जी… कितना मोटा है… मज़ा आ रहा है,” उसने गीली kisses उनके रगदार लंड पर छपकाईं।

फिर वह नीचे गई और उसके बॉल्स को होठों में भर लिया — जीभ से खेलती, चूसती, और आँखें वर्मा जी की आँखों में गढ़ी हुईं।

“ओह्ह… हाँ… यही चाहिए था मुझे… तू असली चूत की प्यासी है… तुझे असली मर्द का लंड चाहिए था, और वो अब मिल रहा है,” वर्मा जी ने गुर्राते हुए कहा।

उनका बूढ़ा दिल बस वहीं अटका हुआ था — गेराज में, पड़ोस की बहू अपने घुटनों पे बैठी उनके लंड को चूस रही थी… क्या ज़िंदगी थी!

“उफ्फ… झड़ने वाला हूँ…” वर्मा जी ने सांस खींचते हुए कहा।

“अच्छा?” नेहा मुस्कराई, “तो मेरे चेहरे पे फोड़ो ना… कर दो मुझे गीली अपने लंड के रस से…”

अब उसने दोनों हाथों से पकड़ कर गाढ़े, गीले स्ट्रोक देने शुरू कर दिए। तेज़-तेज़ हाथ, गीली आवाजें, और लंड के सिरे से बहती precum।

“हाँ हाँ… ऐसे ही कर… बता न, कितना चाहिए तुझे मेरा वीर्य…” वर्मा जी ने थरथराते हुए कहा।

“बहुत चाहिए बाबूजी… सारा मेरे मुँह पर गिरा दो… मैं चाट जाऊँगी, सब पी जाऊँगी… तुम्हारी बीवी की तरह… नहीं, उससे भी ज्यादा वफादार लौंडिया बन के,” उसने कहा, और हाथों की रफ़्तार और बढ़ा दी।

“इतनी naughty है तू… अपने घर के अंदर तेरा पति सो रहा है, और तू मेरे लंड पे लिपटी है… हाहह…” वर्मा जी बोले।

“तुम उसके मुकाबले बहुत बड़े हो… वो तो बस फिस्स करता है… और तुम? रस की धार बहा देते हो…” नेहा ने होंठ चाटते हुए कहा।

“उफ़्फ्फ… अब नहीं रुका जा रहा…” वर्मा जी ने हाँफते हुए कहा।

नेहा ने अपने होंठ खोल दिए, जीभ बाहर निकाली — “आओ, मुझे अपने लंड का दूध दो, Daddy…”

“गय्याHHHH!” वर्मा जी का पूरा शरीर हिल गया और पहला फव्वारा सीधा नेहा के चेहरे पे आ गिरा।

गर्म, गाढ़ा वीर्य उसकी आंखों, नाक, गालों और होठों पे बिखर गया। नेहा ने पंप करते हुए सब निचोड़ लिया — उसका लंड, उसके बॉल्स — सब कुछ उसके हाथों में था।

“तुम्हारा स्वाद तो… कमाल है,” उसने उंगलियाँ चाटते हुए कहा।

वर्मा जी ने अपनी आँखों से उस चेहरे को देखा — पूरा वीर्य में सना हुआ, जैसे खुदा ने इस बुढ्ढे को reward दे दिया हो।

“मज़ा आया?” नेहा ने पूछा, कमर पर हाथ रखकर मुस्कराई, “उम्मीद है इतना टाइम तुम्हारा इंतज़ार करने की भरपाई हो गई होगी…”

वर्मा जी बस मुस्कराए — उन्हें जवाब देने की ज़रूरत ही नहीं थी।

जितना मज़ा वर्मा जी को नेहा की मुँह से लंड चुसवाने में आया था, उतना ही अब वो उसकी गीली चूत के लिए तड़प रहे थे। “हह! मज़ा तो आया, पर अभी तक असली माल बाकी है। तूने तो चुदाई का वादा पूरा ही नहीं किया,” वो आँख मिचकाते बोले।

नेहा ने भौंह उठाई, “हाँ हाँ वर्मा जी, कर लेंगे न... पर अभी नहीं, मुझे और भी काम हैं, याद है?”

वर्मा जी ने आंखें तरेरीं, “तो फिर आज रात कर ले… मैं तो तैयार हूँ,” उनका लहज़ा कोई अनुरोध नहीं, सीधा आदेश था।

“रात को?” नेहा ने थोड़ा मुस्कराते हुए पूछा, “फिर से मेरी कार में करना है क्या? पिछली बार तो बड़े मस्ती में थे वहाँ…”

वर्मा जी शरारती हँसी के साथ बोले, “अरे नहीं बेटा, इस बार कार नहीं। अबकी बार तू मेरे बिस्तर पे चढ़ेगी… तू नहीं जानती, मैं कितने दिन से तेरी चूत में अपना लंड धँसाना चाह रहा हूँ।”

नेहा की आँखें बड़ी हो गईं, “अरे वर्मा जी, मैंने पहले ही कहा ना, मानव घर पे है… रिस्क बहुत ज़्यादा है। अगर वो उठ गया तो मैं क्या बोलूँगी?”

“तू खुद कहती है कि मानव एक बार सो जाए तो उठता नहीं,” वर्मा जी ने याद दिलाया।

“वो बात अलग है। पर बात सिर्फ नींद की नहीं, संभल कर चलने की है… कहीं कुछ गड़बड़ हो गई तो?” नेहा ने गंभीर लहज़े में कहा। “और वैसे भी, मेरे घर में करना आसान है, बहाना बनाना भी सिंपल रहता है।”

वर्मा जी ने मुंह बनाया, “अच्छा चल, एक और आईडिया है…” उनकी आंखों में चमक थी, जैसे कुछ बदमाशी सूझ रही हो, “तू मेरे घर चुपके से क्यों आएगी? एक ठोस बहाना बना, ऐसा कि तू आराम से मेरे यहाँ रुक सके, देर तक… क्योंकि आज तेरी चूत का एक-एक कोना चाट के चोदने वाला हूँ मैं पूरी रात!”

नेहा ने माथा पकड़ा, “बुज़ुर्ग कमीना मानता ही नहीं... मैं क्या बोलूँ मानव को? ‘सुनिए जी, मैं वर्मा जी के घर जा रही हूँ, थोड़ी देर लग सकती है, शायद सुबह तक लौटूं?’ ये सुन के वो मुझे खुद चोद देगा…”

वर्मा जी ने सीधा हाँ में सिर हिलाया, “बिलकुल! तू समझदार है, कुछ तो सोच ही लेगी। और फिर मैं तो एक बूढ़ा, अकेला आदमी हूँ — थोड़ा हेल्प चाहिए, इंस्योरेंस या पेपरवर्क में। तेरा पति कुछ नहीं सोचेगा।”

“और अगर मैंने मना कर दिया तो?” नेहा ने देखा उसकी लिमिट पार होने लगी थी।

“तो भी तू मानेगी। तेरी चूत खुद मांग रही है कि आज मैं उसमें अपना लंड ठूंस दूँ,” वर्मा जी ने आँखें मटकाते कहा।

नेहा का चेहरा गरम हो गया — शर्म से भी और हवस से भी। वो एकदम चुप हो गई — और उसकी चुप्पी ही वर्मा जी को हाँ लग रही थी।

“ठीक है तो, आज रात मिलते हैं,” वर्मा जी ने मुस्कराकर कहा, “पर उससे पहले, एक किस तो बनता है मेरी शुगर टिट्स…”

नेहा खुद-ब-खुद झुक गई, उसके होंठ वर्मा जी के होंठों से मिले और जीभों ने तमीज़ की सारी दीवारें गिरा दीं। तभी वर्मा जी की झुर्रीदार हाथ ने उसकी गांड कस के दबा दी।

“उंह्ह!” नेहा मुँह में ही सिहर गई।

वो पीछे हटी तो वर्मा जी ने शरारती स्माइल देते हुए हाथ हिलाया, “जा, खाना बना ले… आज की रात भूख लगने वाली है — चूत की भी, और लंड की भी।”

नेहा गेराज में अकेली खड़ी रही… साँसें तेज़ थीं, दिल की धड़कन बेकाबू… और दिमाग में एक ही सवाल — "अब बहाना क्या बनाऊँ?"

रात के करीब 8 बजे थे। नेहा डाइनिंग टेबल पर बैठी थी, सामने मानव खाना खा रहा था। लेकिन नेहा के दिमाग में कुछ और ही पक रहा था — बहाना। ऐसा ठोस बहाना जिससे वो पूरी रात गायब रह सके और मानव को भनक तक न लगे। नज़रें बार-बार मानव की ओर जाती थीं — जो बेखबर रोटी-सब्ज़ी खा रहा था, और नेहा की अंदर की चूत उस बुढ्ढे के लंड को फिर से अपने अंदर महसूस करने को बेकाबू हो रही थी।

थोड़ी देर थाली में खाना घुमाने के बाद, नेहा ने सांस खींची और बोली, “सुनिए…”

मानव ने गर्दन उठाई, “हूँ?”

“खाना खा लें, फिर मैं थोड़ी देर वर्मा जी के घर जा रही हूँ… कुछ काम आ गया है उनका,” उसने एक चम्मच सब्ज़ी मुँह में डालते हुए ऐसे casually कहा जैसे कोई बड़ी बात न हो।

“इतनी रात को? क्यों? क्या हुआ?” मानव ने थोड़ा चौंकते हुए पूछा।



नेहा का दिल तेज़ धड़कने लगा, लेकिन चेहरा शांत रखा, “वो जब आप सो रहे थे ना दोपहर में, तब बात हुई थी… बोले, कुछ इंश्योरेंस पेपर हैं… बोले कि पुराने वकील ठीक से काम नहीं कर रहे… तो मैंने कह दिया, मैं देख लूंगी।”

मानव ने ‘हमदर्द’ वाला सिर हिलाया और नेहा ने चैन की साँस ली।

“सोचा था दिन में देख लूँ, पर खाना-वाना और बाकी काम में टल गया… अब जा रही हूँ।”

“ओह, बड़ी अच्छी बात है, नेहा,” मानव ने मुस्कराते हुए कहा, “कितनी देर लग जाएगी?”

नेहा ने नज़रे झुकाई, फिर मासूम आवाज़ में बोली, “पता नहीं… काफी कागज़ हैं, बोले देर हो सकती है… मैं मैसेज कर दूँगी, आप मेरी चिंता मत करना… सो जाना टाइम पे।” उसकी आँखों में हल्की सी मुस्कान आ गई — वो अब पूरी रात वर्मा जी के लंड पे सवार होने जा रही थी।

मानव ने बेपरवाही से कहा, “ठीक है, कोई बात नहीं। वैसे भी बेचारे अकेले रहते हैं, अच्छा लगेगा उन्हें कि कोई उनकी मदद कर रहा है।”

नेहा ने होंठ भींचे, “हाँ, उनको बहुत अच्छा लगता है जब मैं उनके पास होती हूँ…” और फिर चुपचाप अपनी थाली में लौट आई।

थोड़ी देर बाद, नेहा ने अपना लंबा स्कर्ट और ढीला स्वेटर पहना — और एक काम का बैग हाथ में ले लिया जिसमें उसका लैपटॉप था, ताकि लगे कि कोई फॉर्मल काम ही करने जा रही है।

“मैं निकल रही हूँ सुनिए, आप सो जाइए,” उसने bedroom में दरवाज़े से ही कहा।

मानव तकिए में धँसा हुआ था — नींद की गोली असर कर चुकी थी, “हूँ...? ओह... हाँ... ठीक है जानू... बाय...” वो आधा मुँह खोलकर ही फिर सो गया।

नेहा ने अपने होंठों पर एक शैतानी सी मुस्कान दबाई और bedroom से निकल गई।

घर से बाहर निकलते ही उसने अपना फोन निकाला। वर्मा जी का मैसेज था —
"दरवाज़ा खुला छोड़ा है, अंदर आते ही लॉक कर लेना। ऊपर कमरे में तेरे इंतज़ार में हूँ..."

नेहा ने होंठ दांतों में दबाए — एकदम वही naughty thrill जैसा कोई चोरी छुपाकर किसी मर्द की चूत से मिलने जा रही हो।

वो सीधे चलती हुई उनके दरवाज़े तक पहुँची, और धीरे से knob घुमाया। अंदर अंधेरा था, लेकिन जिस गंध ने उसका स्वागत किया — वो वही पुरानी सी, सीलन मिली हुई महक थी… एकदम दादा-दादी के घर जैसी… या यूँ कहें, 'Daddy fantasy' वाली।

सीढ़ियाँ अंधेरे में दिख रही थीं। नेहा ने अपने स्लाइडर बाहर उतार दिए और नंगे पाँव चुपचाप ऊपर चढ़ गई।

हर सीढ़ी पर उसके दिल की धड़कन और उसकी चूत की गीलापन बढ़ रहा था। बगल के घर में उसका पति सो रहा था और ये औरत, वर्मा जी के लंड की प्यासी, अब उनके बिस्तर पे चढ़ने वाली थी।

ऊपर जाकर, उसे हल्की सी रौशनी दिखी — एक कमरा आधा खुला हुआ था। उसकी आँखें चमक उठीं — वो दरवाज़ा वर्मा जी का था, और अंदर उसका बुड्ढा आशिक़ पूरी तैयारी में उसका इंतज़ार कर रहा था।

धीरे से चलते हुए नेहा उस दरवाज़े के पास पहुँची, खुद को थोड़ी देर सँभालकर, उसने दरवाज़ा खोला और अंदर फिसल गई।

जो देखा, उससे उसकी साँसें थम गईं — वर्मा जी पूरी तरह नंगे, अपने बड़े से पलंग के बीचोंबीच लेटे हुए थे।




“शुभ रात्रि, नेहा बिटिया,” उन्होंने वो लुच्ची सी मुस्कान के साथ कहा।

नेहा ने दरवाज़ा बंद करके लॉक किया — और अपने होठों पर शरारती मुस्कान के साथ बोली, “अच्छा खासा तैयार बैठे हो वर्मा जी…”

उसकी नज़र नीचे गई — वर्मा जी का लंड पहले से खड़ा हो चुका था, एकदम तैयार… और उसकी अपनी चूत तो रास्ते में ही गीली हो चुकी थी।

वर्मा जी ने उसकी तरफ देखते हुए कहा, “उम्मीद है कि तेरे इन कपड़ों के नीचे कुछ नहीं है…?”

नेहा ने आहिस्ता से अपनी स्वेटर और स्कर्ट को पकड़कर दोनों हाथों से ऊपर खींच दिया — और उसके साथ खुला बदन और साफ़ शेव्ड चूत सामने आ गई।

“तुम्हारे मन की बात पढ़ ली मैंने...” वो मुस्कराई।

वर्मा जी का लंड फड़कने लगा। “अब ज़्यादा खड़ी मत रह, आ जा पलंग पे… रात अभी जवान है…” वो बोले।

नेहा ने अपना लैपटॉप एक कोने में रखा, फोन साथ में रखा (अगर मानव का कभी फोन आ जाए) — और कूद कर सीधे उस बुड्ढे के पलंग पर जा चढ़ी।

अब खेल शुरू होने वाला था — चूत और लंड की वो लड़ाई जो सारी रात चलने वाली थी।
Uff kitna gajab ka likh rahe ho. Lund khada hi rahata hai har samay.
 

bekalol846

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Update 9

नेहा को लग रहा था कि वो अभी भी फैसला नहीं कर पाई थी, तो वर्मा जी ने दूसरा रास्ता सोचा। उन्हें लगा कि नेहा को बस थोड़ा और... मनाने की ज़रूरत है। “उफ्फ, ये सब छोड़, चल बस चुदाई कर लेते हैं। मेरी तो खुजली हो रही है तेरी टाइट चूत के लिए, क्या कहती है?”

नेहा अपनी गहरी सोच से बाहर निकली और बोली, “अरे, फिर भी रिस्की है, वर्मा जी।”

“मैं तो बाहर निकाल लूँगा।” नेहा ने अपनी भूरी आँखें सिकोड़ीं, बूढ़े के इरादों पर शक करते हुए। “अरे, ऐसा मत देख। मुझे पता है तुझे भी चुदाई की तलब लगी है। तुझे भी मेरी जितनी ज़रूरत है। और मैंने कहा ना, मैं बाहर निकाल लूँगा।”

“पता नहीं आपको बाहर निकालने पर भरोसा करूँ कि नहीं, वर्मा जी…”

“उफ्फ, अरे नेहा, मैं देख रहा हूँ तू इस छोटी सी परेशानी में उलझी हुई है। मैं वही करूँगा जो तेरे लिए बेस्ट है।” नेहा को अभी भी उनके अचानक बदले रवैये पर शक था। पर उसकी भूखी चूत ने उसे वर्मा जी के वादे पर भरोसा करने के लिए राज़ी कर लिया।

“चल, नेहा। मैं सावधान रहूँगा,” उन्होंने एक आखिरी बार दोहराया।

“हाय, कमबख्त… ठीक है। तुम्हारी किस्मत कि मैं इतनी हॉर्नी हूँ,” नेहा ने हार मानते हुए कहा। “पर आपको बाहर निकालना याद रखना होगा, ठीक है, वर्मा जी?” उसने सख्ती से कहा।

“हाँ, हाँ, मैं बाहर निकाल लूँगा। तू मुझ पर भरोसा कर। मैं तुझे नाराज़ नहीं करना चाहता,” बूढ़े ने यकीन दिलाया, एक शरारती मुस्कान छुपाते हुए। नेहा ने बस मज़ाक में चिढ़कर गुर्राया और सिर हिलाया।

अंदर ही अंदर, नेहा जानती थी कि उसे उनके वादे पर भरोसा नहीं करना चाहिए, पर दारू का नशा और उसकी हॉर्नी हालत ने उसकी सारी हिचक खत्म कर दी थी।

नेहा फिर से अपने वैवाहिक पलंग पर वर्मा जी के साथ चढ़ गई और उनकी गोद में बैठ गई। उनका लौड़ा पकड़कर, उसने उसे अपनी टपकती चूत के ठीक नीचे लगाया। उसने उनके टोपे को अपनी गीली चूत के होंठों पर धीरे-धीरे रगड़ा, जिससे दोनों के मुँह से हल्की सिसकारियाँ निकलीं। पर इतने करीब होने के बावजूद, वो उनके ऊपर मँडराती रही, इतने रिस्की सेक्स के लिए हिम्मत जुटाने में हिचक रही थी।

नेहा चौंकी जब वर्मा जी की पतली उंगलियों ने अचानक उसकी कमर पकड़कर उसे अपने लौड़े पर नीचे खींच लिया। “हाय भगवान!” वो चीखी जब उनका कच्चा लौड़ा उसकी बिना प्रोटेक्शन वाली चूत में घुस गया।

“अह! कितनी टाइट है!” वर्मा जी ने कराहा। उसका बदन पहले से ही उनके बच्चे के लिए तैयार था।

नेहा के सारे शक दिमाग से निकल गए जब खुशी की लहर ने उसे बहा लिया। “हम्म, आपका लौड़ा इतना मोटा है…” उसने संतुष्ट होकर सिसकारी।

अपने नाज़ुक हाथ उनके बालों भरे सीने पर रखकर और टखने उनकी जांघों पर टिकाकर, नेहा ने अपने यार की सवारी शुरू कर दी। वर्मा जी ने खुशी से कराहा और मुस्कराए, देखकर कि नेहा का रवैया कितनी जल्दी बदल गया जब उन्होंने उसे अपने मोटे लौड़े पर ज़ोर से खींच लिया। उनका मास्टर प्लान बिल्कुल सही चल रहा था।

पलंग कड़कड़ा रहा था जब नेहा उनके लौड़े पर उछल रही थी। उसने अपनी कमर को कुशलता से वर्मा जी पर रगड़ा, जिससे दोनों ज़ोर-ज़ोर से सिसकने लगे। “हाय… मुझे आपका लौड़ा चढ़ना बहुत अच्छा लगता है, बाबूलाल जी… अह, हम्म,” उसने भारी साँसों में कहा।

वर्मा जी ने अपने हाथों से नेहा को सही जगहों पर खींचकर गाइड किया, जिससे उसके होंठों से और गहरी सिसकारियाँ निकलीं। उनका लौड़ा नेहा के सारे खास पॉइंट्स को छू रहा था, उसे जन्नत ले जा रहा था।

उसकी भूरी आँखें वासना और ख्वाहिश से चमक रही थीं जब वो अपने साँड़ जैसे लौड़े वाले यार की सवारी कर रही थी। “मज़ा आ रहा है, नेहा? अपने वैवाहिक पलंग पर मुझे चोदना अच्छा लग रहा है?” वर्मा जी ने उसकी नरम गांड को पकड़ते हुए कराहा।

“हाय, हाँ, बाबूलाल जी! मुझे अपने पति के साथ साझा किए पलंग पर आपको चोदना बहुत मज़ा देता है। इतना गंदा है!” उसने जवाब दिया, अपनी होंठ काटते हुए।

“अह, और बोल, मुझे वही सुनना है, रंडी!” बूढ़े ने हुक्म दिया।

नेहा ने हल्की सी सिसकारी छोड़ी और सिर हिलाया। “इस पलंग पर असली मर्द से चुदवाना बहुत अच्छा लगता है। अह, उह… आपका लौड़ा मेरे पति के छोटे से लौड़े से कहीं बड़ा और बेहतर है। उसका छोटा सा बच्चा लौड़ा मुझे कभी संतुष्ट नहीं कर सकता जैसे आप करते हैं, बाबूलाल जी।” उसकी बातें वर्मा जी के बूढ़े कानों में मक्खन की तरह लगीं। “हाय! आप इतने गहरे हैं, बाबूलाल जी! मुझे इस साँड़ जैसे लौड़े की सवारी करना पसंद है! हम्म, आप तो सच्चे स्टड हैं!” वो चीखी जब उनका लौड़ा उसकी चूत की गहराई में धक्के मार रहा था, बार-बार उसकी बच्चेदानी के मुँह से टकरा रहा था।

वर्मा जी का लौड़ा नेहा की टाइट, गीली चूत में आसानी से अंदर-बाहर हो रहा था। उनकी साँसें गर्म और भाप भरी थीं, जिससे आसपास का ठंडा माहौल गर्म हो रहा था। उनकी तीखी चुदाई ने उनकी देह को पसीने से चमकता बना दिया, जो पास के दीये की मद्धम रोशनी में चमक रहा था।

नेहा ने अपनी ललचाई नज़रें अपने बूढ़े यार पर डाली। दीये की गहरी रोशनी ने कमरे को एक अंतरंग माहौल दिया। बाहर की भयंकर बारिश ने चीज़ों को और उत्तेजक बना दिया। यहाँ वो थे, एक साथ फँसे हुए, जंगली जानवरों की तरह चुदाई करने के सिवा और कुछ नहीं।

नेहा ने एक ज़ोर की सिसकारी छोड़ी जब वर्मा जी ने उसकी कमर के हिलने का जवाब अपने बेरहम धक्कों से देना शुरू किया। उसकी आँखें फड़फड़ाईं और पीछे लुढ़क गईं जब उनका टोपा उसकी बच्चेदानी के मुँह से टकराया, जिससे खुशी की बिजलियाँ उसके बदन में दौड़ने लगीं।

“हाय, हाँ! ये बहुत मज़ेदार लग रहा है, बाबूलाल जी। मुझे लग रहा है आप मेरे पेट में हैं…” वो सिसकी। उनकी देहें एक उत्तेजक लय में मिल रही थीं, जो उन्होंने अपने चक्कर के महीनों में परफेक्ट कर लिया था।

“हाय! मैं तुझे ये लौड़ा तब तक दूँगा जब तक मैं मर नहीं जाता!” वर्मा जी ने गरजते हुए कहा, अपनी कमर ऊपर उठाकर और नेहा के कमज़ोर पॉइंट पर निशाना लगाया। वो काँप उठी और चीखी, एक छोटा सा ऑर्गेज़म महसूस करते हुए।

दोनों प्रेमियों ने अपनी शारीरिक वासना को अपनी सिसकारियों से ज़ाहिर किया। बूढ़ा विजयी मुस्कान के साथ देख रहा था कि ये हसीन औरत उसके लौड़े की कितनी दीवानी थी। ये देखकर कि उनकी भाप भरी चुदाई ने नेहा की सारी हिचक तोड़ दी थी, वो अपने प्लान के अगले कदम पर बढ़ा।

“हाय… मैं तुझमें बच्चा डालना चाहता हूँ…” वर्मा जी ने होंठ चाटते हुए कहा।

नेहा एक पल के लिए रुकी, उनकी बात को समझते हुए। फिर से सवारी शुरू करते हुए, उसने जवाब दिया, “अह, आपको अभी ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए, वर्मा जी… हाय, ये बहुत अच्छा लग रहा है…”

“पर मैं बहुत चाहता हूँ। तेरी चूत इतनी टाइट और गीली है। ये तो मेरे माल को तेरी बच्चेदानी में डालने की गिड़गिड़ाहट कर रही है।”

नेहा ने चेहरा सिकोड़ा, उनकी गंदी बातों को नज़रअंदाज़ करने की कोशिश करते हुए। “हाय… वर्मा जी… ऐसी बातें बंद करो… ये सेफ नहीं है…” उसे पता था वो क्या करने की कोशिश कर रहे हैं, पर उसका हॉर्नी बदन उसे उनके लौड़े पर जकड़े रखा था।

“हाय, मेरी जान… ऐसे ही चढ़ती रह… हाय… नेहा, तू सच में चाहती है कि मैं बाहर निकालूँ? अंदर झड़ना तो कहीं ज़्यादा मज़ा देता है। सही कहा ना?”

“हाय, उह… नहीं… ऐसा मत बोलो… मुझे पता है आप क्या करने की कोशिश कर रहे हैं…”

शरारती बूढ़े ने मुस्कराया। “हाँ? मैं क्या कर रहा हूँ, नेहा?” उन्होंने मज़ाक में ताना मारा।

नेहा ने जवाब देने में थोड़ा वक्त लिया, क्योंकि वो उनके लौड़े की सवारी में डूबी थी। “हाय… आप मुझे प्रेग्नेंट करने की कोशिश कर रहे हैं… मैं बेवकूफ नहीं हूँ…” उसने भारी आवाज़ में कहा।

“हम्म, तुझे अच्छा नहीं लगता जब मेरा गर्म माल तुझे पूरा भर देता है?” बूढ़े ने उसकी बात को नज़रअंदाज़ करते हुए कहा। “मेरा गर्म, चिपचिपा माल तेरे अंदर, जहाँ उसका होना चाहिए…”

“हम्म, हाँ… मेरा मतलब, नहीं!” नेहा ने बेतरतीब जवाब दिया जब उनका लौड़ा फिर से उसके कमज़ोर पॉइंट पर लगा। वर्मा जी को लगा कि वो टूट रही है। “याद रखो, आपको बाहर निकालना है। यही आपने कहा था…”

नेहा उनके लौड़े पर पूरी गहराई तक डूब गई, जिससे एक रसभरी सिसकारी निकली। “हाँ, मैंने कहा था… पर मुझे नहीं लगता कि तू ये चाहती है, सही कहा ना?” रिटायर्ड अफसर ने ज़िद की।

नेहा ने अनजाने में सिर हिलाया, फिर जल्दी से ‘नहीं’ में सिर हिलाया, अपनी गांड को ऊपर उठाकर और फिर उनकी कमर पर डुबोते हुए। उसका दिमाग उसकी वासना और ख्वाहिश के अधीन था। “हाय… ये खतरनाक है, वर्मा जी… आप मुझे प्रेग्नेंट कर सकते हैं…” उसने दोहराया, उसकी आवाज़ में विरोध कमज़ोर पड़ रहा था।

“हम्म, मैं तुझे प्रेग्नेंट कर सकता हूँ। यही तू चाहती है, ना? तू चाहे तो कभी भी हट सकती है, तू तो ऊपर है। पर मुझे पता है तू नहीं हटेगी…” वर्मा जी ने दावा किया, अपनी अंगूठियों से उसके पेट को सहलाते हुए, जहाँ उनका बच्चा होगा, उस जगह को चिढ़ाते हुए।

“वर्मा जी… हाय, उह… नहीं… मैं नहीं कर सकती… मैं-” नेहा उनकी बोल्ड बात को समझ रही थी। वो आसानी से हट सकती थी, क्योंकि वो ऊपर थी। पर उसने ऐसा नहीं किया…

“अपने बदन की सुन, नेहा। क्या तुझे नहीं लगता कि तू बच्चा पैदा करने के लिए तड़प रही है? तू यही चाहती है। तू बार-बार मना करती है, पर तुझे इसकी ज़रूरत है… चल, नेहा। चलो एक बच्चा बनाते हैं…” वर्मा जी ने उकसाया।

नेहा का चेहरा अनिश्चितता और उत्तेजना के मिक्स से भरा था। वो खुद को कोस रही थी कि उसे पता था वर्मा जी ऐसा कुछ ज़रूर करेंगे। पर उनकी गंदी हरकतों को जानते हुए भी, उसने और विरोध नहीं किया।

वर्मा जी के लौड़े ने नेहा की सारी इच्छाशक्ति तोड़ दी थी। उसकी आदिम प्रजनन की चाहत अब उसकी हरकतों को कंट्रोल कर रही थी, और बाकी सारी समझदारी बारिश के तूफान में उड़ गई थी।

नेहा कुछ बोल पाती, उससे पहले उसे अचानक ज़ोर से झटका लगा। वो पलटकर पीठ के बल थी, उसका सीना हाँफ रहा था, और उसका यार उसके ऊपर चढ़ा था, उसे पलंग पर दबाए हुए, बिना उसकी चूत से लौड़ा निकाले। नेहा का बदन काँप रहा था, क्योंकि वर्मा जी का पतला बदन उसे सबमिसिव मेटिंग प्रेस में जकड़े हुए था।

“मैं तुझे प्रेग्नेंट करने वाला हूँ, ठीक है, नेहा?” वर्मा जी ने पक्के इरादे से कहा।

अपनी कमर पीछे खींचकर, उन्होंने अपना लौड़ा तेज़ी से उसकी गीली चूत में पेलना शुरू किया। “हाय, हाय, हाय, उह, उह, उह!” नेहा उनकी धक्कों के साथ सिसकने लगी। “रुको! हाय! हाय, हाय, कमबख्त! वर्मा जी! हम ऐसा नहीं कर सकते!” नेहा ने विरोध करने की कोशिश की, पर उनका गहरा पेलता लौड़ा उसके दिमाग को पिघला रहा था।

“हार मान, नेहा! मुझे तुझे प्रेग्नेंट करने दे! तू यही चाहती है! तुझे पता है तू यही चाहती है! मुझे महसूस कर! महसूस कर कैसे तेरी चूत मेरे साँड़ जैसे लौड़े को जकड़ रही है, मेरा माल माँग रही है! ये तुझे भरने के लिए गिड़गिड़ा रही है!”

“हाय! हाय! हम्म! न- नहीं- हाय! भगवान! हाँ…” नेहा की सोच उसकी आखिरी समझदारी से दूर खींची जा रही थी। वर्मा जी का हर धक्का उसकी गंदी ख्वाहिशों के सामने सरेंडर को और बढ़ा रहा था।

“तुझे महसूस हो रहा है! तेरा बदन भी यही चाहता है जितना तू चाहती है! बस मान ले और मेरी हो जा! मुझे तुझे अपना बनाने दे! मुझे तुझे प्रेग्नेंट करने दे! हार मान!” वर्मा जी ने गरजते हुए कहा, अपनी कमर को उसकी कमर से ज़ोर से टकराते हुए।

नेहा की टाँगें हवा में लहरा रही थीं, क्योंकि वो उसे जन्नत तक पेल रहे थे। उसका हाथ पकड़कर, बूढ़े ने उसकी उंगलियों को अपनी उंगलियों में फँसाया और उन्हें उसके सिर के ऊपर दबा दिया। नेहा की भूरी आँखें फैल गईं, क्योंकि वो उसे पूरी तरह कंट्रोल कर रहा था।

“हाय भगवान, वर्मा जी! हाय, हाय, हाय! हम्म!” वो अपनी असली ख्वाहिशों को दबाने की कोशिश में चीखी। “ऐसे ही पेलते रहिए… हाय! हम्म! हाँ!” वो अपने विचारों से जूझ रही थी, क्योंकि वो उसे चोद रहा था। वर्मा जी के साथ चक्कर से बच्चा होने की सारी चिंताएँ उसके धुंधले दिमाग से बाहर निकल गई थीं। वो प्रेग्नेंट होना चाहती थी, नहीं, उसे होना ज़रूरी था…

“नहीं, तू बस ये नहीं चाहती कि मैं तुझे पेलता रहूँ। तू चाहती है कि मैं तुझे प्रेग्नेंट करूँ! मान ले!” वर्मा जी ने भारी आवाज़ में कराहा। “बस अपनी ख्वाहिशों को मान ले, नेहा! मुझे अपना बच्चा देने दे!”

फिर उसकी चूत की गहराई में पूरा डूबकर, वर्मा जी ने अपने फुले टोपे से उसकी बच्चेदानी को ठोक दिया, जिससे नेहा ने शुद्ध आनंद की सिसकारी छोड़ी। उसकी शक्की नज़रें हमेशा के लिए बदल गईं, अब उनमें बस ख्वाहिश और ज़रूरत थी। उसने फैसला कर लिया था…

“कमबख्त! पेल दो मुझे, वर्मा जी! मुझे अपने बच्चे से प्रेग्नेंट कर दो!” वो चीखी, रिफ्लेक्स में अपनी टाँगें उनकी पतली कमर के चारों ओर लपेटते हुए।

वर्मा जी ने विजयी मुस्कान दी, आखिरकार उसने हार मान ली थी…

अपना बदन उसके बड़े बदन पर टिकाकर, उन्होंने उसकी लंबी गर्दन में अपना चेहरा दबाया और अपनी कमर को बेतहाशा चलाने लगे। उन्होंने गहरे और तेज़ धक्के दिए, जिससे नेहा के होंठों से भूखी सिसकारियाँ निकलने लगीं।

“हाय, हाय, हाय! मुझे ये चाहिए! वर्मा जी! ऐसे ही पेलते रहो! कमबख्त! मुझे माँ बनाओ! तुम मेरे बच्चे के बाबूलाल जी बनोगे! मेरे बाबूलाल जी!” वो गिड़गिड़ाई, अपनी मज़बूत टाँगों से उनकी कमर को अपनी ओर खींचते हुए।

वर्मा जी ने एक गहरी कराह छोड़ी, उसकी टाइट दीवारें उनके लौड़े को उनके तगड़े माल के लिए निचोड़ रही थीं। नेहा को यकीन नहीं हो रहा था, वो अपने बूढ़े यार को अपने पति के साथ साझा किए पलंग पर प्रेग्नेंट करने की कोशिश करने दे रही थी! ये मानव का काम था कि वो अपनी बीवी को प्रेग्नेंट करे, न कि ये गंदा बूढ़ा!

ये एक बीवी की सबसे नीच हरकत थी। फिर भी, ये कितना गलत था, ये सोच उसकी वासना को और भड़का रही थी। वो इस एहसास की दीवानी थी।

वर्मा जी के भारी टट्टों का उसकी गांड से टकराना उसकी चूत को उत्तेजना से फड़का रहा था। उसे पता था कि जल्द ही, वो अपनी चूत में उनका गाढ़ा माल डाल देगा।

वर्मा जी की साँसें तेज़ हो गईं, क्योंकि वो अपने ऑर्गेज़म के करीब पहुँच रहे थे। “मैं तुझे देने वाला हूँ, नेहा! तैयार हो जा!” उन्होंने गरजते हुए कहा, अपनी कमर को अपनी देवी में ज़ोर-ज़ोर से पेलते हुए।

नेहा ने उन्माद में सिर हिलाया। “कमबख्त, कर दो! मेरे अंदर झड़ो! मुझे प्रेग्नेंट कर दो!”

कुछ आखिरी धक्कों के साथ, वर्मा जी ने अपने आपको नेहा के बदन पर और ऊपर चढ़ाया, उनके काँपते टट्टों ने उनका तगड़ा माल उसकी बिना प्रोटेक्शन वाली चूत में गहराई तक डाला, उनकी बच्चेदानी में काम करने के लिए छोड़ दिया।

“आआआह्ह्ह! प्रेग्नेंट हो जा!” बूढ़े ने चीखकर कहा, क्योंकि उनकी ज़िंदगी का सबसे तगड़ा ऑर्गेज़म उनके बदन को चीर गया।

नेहा की आँखें पीछे लुढ़क गईं और उसका बदन ज़ोर से काँपने लगा, क्योंकि उसके यार की तीखी भराई ने उसका ऑर्गेज़म भी ला दिया। इस बार सच में प्रेग्नेंट होने का एहसास बहुत मज़ेदार था। “हाय! हाँ, बाबूलाल जी! मुझे प्रेग्नेंट कर दो!” वो चीखी, अपनी लंबी टाँगों को उनकी कमर के चारों ओर कसकर जकड़ लिया ताकि वो बाहर न निकल सकें, ताकि वो उनके तगड़े माल का हर कतरा सोख ले।

उसकी गांड ऊपर उठी, जिससे वर्मा जी का पतला बूढ़ा बदन उसके साथ ऊपर उठ गया, जैसे वो किसी जंगली घोड़े की सवारी कर रहा हो। उनके भारी माल के गोदाम सिकुड़ रहे थे, क्योंकि वर्मा जी ने ढेर सारा माल नेहा की फर्टाइल बच्चेदानी में डाला। उसकी खूबसूरत चेहरा देखकर, वो विजयी मुस्कान के साथ मुस्कराया, ये जानकर कि अब ये औरत आधिकारिक तौर पर उनकी थी। झुककर, बूढ़े ने उसके रसीले होंठों को अपने होंठों से पकड़ लिया।

उनकी जीभें एक उत्तेजक मेटिंग डांस में लिपट गईं, क्योंकि उनकी देहें आनंद से जुड़ी थीं, प्रजनन का आदिम काम करते हुए। दोनों प्रेमी शुद्ध आनंद में काँप रहे थे। उन्हें इतना गर्म और उत्तेजित महसूस हो रहा था, ये जानकर कि वो सिर्फ़ चुदाई नहीं कर रहे थे, बल्कि प्रजनन का मूल काम कर रहे थे।

जैसे ही उन्होंने एक-दूसरे के होंठ छोड़े, वर्मा जी ने अपना पसीना भरा माथा नेहा के माथे से टिका दिया। दोनों हाँफ रहे थे, ऑक्सीजन के लिए तरस रहे थे, अपने दिमाग पिघलाने वाले ऑर्गेज़म से उबरने की कोशिश में।

“हाय… हाय…” नेहा बड़बड़ाई। “विश्वास नहीं होता हम ये कर रहे हैं…” उसने अविश्वास भरे लहजे में कहा।

“विश्वास कर ले, जान… हाय… मैं तो उस दिन से तुझे प्रेग्नेंट करना चाहता था जिस दिन मैं तुझसे पहली बार मिला…”

उनके शब्द थोड़े गंदे थे, फिर भी नेहा को वो अजीब तरह से प्यारे और तारीफ भरे लगे। उसे नहीं पता था कि उसे इतना पसंद है कि कोई उसे इस तरह ललचाए। मानव तो उसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाता था, कम से कम सेक्स में तो बिल्कुल नहीं।

नेहा के हाथ छोड़ते हुए, वर्मा जी ने अपनी पतली बाहें उसके धड़ के चारों ओर लपेट दीं। नेहा ने भी जवाब में उसे गले लगा लिया। बूढ़े को लगा जैसे वो जन्नत में है, जब उसने अपने पतले बदन को अपनी टाँगों और बाहों से जकड़ लिया।

वो वहाँ लेटे थे, वर्मा जी का लौड़ा नेहा की चूत में सुलग रहा था, जिससे उनका माल उसकी पवित्र चूत से बाहर न निकले। जैसे ही उन्होंने फिर से जोशीला चुम्बन शुरू किया, लुच्चा बूढ़ा अपने तैराकों को नेहा के अंडे की तलाश में उत्साह से भटकते हुए सोच रहा था। उसका पेट इस सोच से मथ रहा था कि उसका जीन उसकी खूबसूरत देवी के साथ मिल रहा है।

कुछ देर बिना सोचे लार शेयर करने के बाद, नेहा ने वर्मा जी को अपनी जकड़ से छोड़ा, जिससे वो बाहर निकल सके। अपनी गांड पर गिरते हुए, रिटायर्ड अफसर ने राहत की साँस ली और अपने काम की तारीफ की। उनकी छोटी आँखें नेहा की फड़कती चूत से रिसते हुए उनके गाढ़े माल को देख रही थीं।

वर्मा जी को यकीन था कि उन्होंने नेहा को प्रेग्नेंट कर दिया है, पर पूरी तरह पक्का करने के लिए, वो इस बारिश में अकेले फँसे होने का फायदा उठाकर उसे अच्छे से भरने वाले थे।

नेहा गीली चादरों पर लेटी थी, उसका पोस्ट-ऑर्गेज़म क्लैरिटी शुरू हो रहा था, और इस वर्जित हरकत की गंभीरता फिर से उसके दिमाग में उभर आई। “हाय… वर्मा जी… मैं आपको ये क्यों करने दे रही हूँ…” उसने हारी हुई आवाज़ में बड़बड़ाया, अपने उलझे हुए काले बालों में हाथ फेरते हुए। उसे पता था कि वो इतनी गहरी डूब चुकी है कि अब पीछे हटना मुमकिन नहीं।

“हाह, क्योंकि तू मेरे साँड़ जैसे लौड़े से प्रेग्नेंट होना चाहती थी!” वर्मा जी ने दावा किया। नेहा उनकी बात पर हँस पड़ी। “ये तो स्वाभाविक है कि एक औरत उस मर्द से बच्चा चाहे जो उसे मेरी तरह चोद सके।”

“अब तो कोई रास्ता नहीं बचा कि मैं इससे पीछे हट सकूँ, है ना?”

वर्मा जी ने सिर हिलाया। “सॉरी, सेक्सी। मैं पक्का करूँगा कि ये बारिश खत्म होने तक तू माँ बन जाए।”

नेहा ने आह भरी। “हाय… मैं इस बूढ़े कमीने से नफरत करने से लेकर इसके बच्चे की माँ बनने तक कैसे पहुँच गई… कमबख्त, इसने मुझे अपने मॉन्स्टर लौड़े की रंडी बना दिया… और मुझे ये पसंद है…” उसने सोचते हुए कहा।

“हाय… मेरे पति का क्या? उसे शायद खुशी नहीं होगी ये सुनकर कि मैं अपने पड़ोसी के बच्चे की माँ बनने वाली हूँ…”

“हम्म, अच्छा है ना कि तू ‘उसके’ बच्चे की माँ बनेगी।”

नेहा को यकीन नहीं हो रहा था कि ये कितना गंदा था, अपने पति के बच्चे का दिखावा करना: फिर भी, ये कितना वर्जित था, इस सोच ने उसकी गंदी फेटिश को और भड़का दिया। ये एकमात्र रास्ता था जो पूरी तरह हंगामे और अराजकता से नहीं ले जाता। “ये बहुत गलत है… अपने पति से तेरा बच्चा पालने को कहना। विश्वास नहीं होता ये हो रहा है…” उसने बनावटी नाराज़गी की आवाज़ में कहा।

बूढ़ा शरारती हँसी हँसा। “हाह, और तुझे ये आइडिया बहुत पसंद है,” उन्होंने कहा। नेहा ने बस मज़ाक में आँखें घुमाईं, ना हाँ कहा, ना ना। पर उसका असली रवैया इस गंदे सीन में उसकी भागीदारी में साफ़ था। “पर मैं तेरे साथ हूँ। मैं अपने बच्चे की ज़िंदगी में बहुत शामिल होना चाहता हूँ। आखिर, ये मेरा बच्चा होगा।” इससे नेहा की चिंता कुछ कम हुई। कम से कम वर्मा जी निकम्मे बाप नहीं होंगे।

“सोच, ये हमारा गंदा सा राज़ होगा…” उन्होंने फिर दोहराया।

“हाँ, ये तो आप पहले बोल चुके हैं…” नेहा ने जवाब दिया। “कमबख्त… मुझे ये इतना हॉट क्यों लगता है…” उसने कबूल किया। “मोहल्ला, मेरे दोस्त, परिवार… सब सोचेंगे कि बच्चे का बाप मेरा पति है, जब असल में वो मेरा बूढ़ा पड़ोसी होगा। मेरा हट्टा-कट्टा बूढ़ा स्टड।” नेहा ने अपने होंठ का कोना काटा।

वर्मा जी ने मुस्कराकर देखा कि नेहा उनके बच्चे को लेकर गर्म हो रही थी। “पर, वर्मा जी,” नेहा ने शुरू किया। “ये सिर्फ़ हमारे बीच रहना चाहिए। समझे? अगर किसी को पता चला…”

“कोई नहीं जानेगा। हमारा छोटा सा राज़ मेरे साथ कब्र में जाएगा,” वर्मा जी ने पक्के तौर पर कहा। “मैंने तो अब तक अच्छा काम किया है ना, ये दिखाकर कि हमारा रिश्ता ‘मासूम’ है?”

नेहा धीरे-धीरे पलंग से उठी और अपनी ठुड्डी रगड़ी। “हम्म, सच में। अब जब आपने कहा तो आपने तो कमाल कर दिया… तूने मेरे पति को यकीन दिला दिया कि तू बस एक हानिरहित बूढ़ा है,” उसने मज़ाक में वर्मा जी के कंधे पर मुक्का मारते हुए कहा।

जैसे ही दोनों हल्के से हँसे, नेहा की भूरी आँखें वर्मा जी के फिर से सख्त होते लौड़े पर टिक गईं। “अरे? एक और राउंड के लिए तैयार हो?”

वर्मा जी ने सिर हिलाया और एक जानकार मुस्कान दी। “हाँ, तू तो जानती है, जान,” उन्होंने कॉन्फिडेंट जवाब दिया। नेहा ने भूखेपन से अपने होंठ चाटे। उसे इस बूढ़े की ताकत बहुत पसंद थी!

बिना एक और सेकंड बर्बाद किए, दोनों एक-दूसरे की ओर झपटे और ज़ोर-ज़ोर से चूमने लगे। जल्द ही, उनकी उत्तेजक सिसकारियों और देह के टकराने की आवाज़ वैवाहिक बेडरूम में गूँजने लगी, जबकि बाहर बारिश का तूफान बरस रहा था…
 

nitesh96

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Story mast hai par husband ke sath kuch jada nhi ho rha hain Mana sex ho gya par dhoka di uski wife par bacha wala jada hai pls uska husband neha ko Chhod Deaur usko usse jada bda dhoka de tab mja ayega aur ha par husband chhode to neha apni life ki jo sab se badi glti ki hai uska ehsas Ho usko please bhaiya
 

bekalol846

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Update 10


अगले कुछ दिनों तक, नेहा और वर्मा जी जंगली जानवरों की तरह चुदाई करते रहे। घर में भयंकर ठंड थी, तो उन्होंने अपनी हरकतें नेहा के बेडरूम तक सीमित रखीं। नेहा और वर्मा जी ने उनके पलंग को पूरा गंदा कर दिया। चादरें उनके रस से दागदार हो गई थीं, और पूरा कमरा सेक्स की गंध से भरा था; नेहा को मानव के घर लौटने से पहले अच्छे से सफाई करनी थी।

ये दो अनोखे प्रेमी प्रजनन की सबसे बुनियादी चाहत से चल रहे थे। हर बार जब वर्मा जी नेहा के अंदर अपना माल डाला, नेहा की भूख और बढ़ती गई। वो तृप्त होने का नाम ही नहीं ले रही थी! अपनी ज़िंदगी में उसने कभी प्रेग्नेंट होने की इतनी चाहत नहीं महसूस की थी, जितनी अब।

बाहर की बारिश ने उन्हें घर में कैद कर रखा था, जिससे नेहा अपनी सबसे गंदी ख्वाहिशों को आज़ाद कर पाई। वो वर्मा जी के मोटे लौड़े की पूरी रंडी बन गई थी। अगले कुछ दिनों में उसके पति का ख्याल भी उसके दिमाग में मुश्किल से आया। कमबख्त, जब मानव ने उसे WhatsApp पर मैसेज किए या कुछ बार कॉल करने की कोशिश की, तो उसने जवाब देने की ज़हमत भी नहीं उठाई: वो वर्मा जी के साथ चुदाई में इतनी डूबी थी कि उसे परवाह ही नहीं थी। वो उसका साँड़ था, भले ही बूढ़ा, और वो उसकी घोड़ी।

नेहा आने वाले वक्त को लेकर उत्साहित भी थी और घबराई भी। इस छोटे से चक्कर के खत्म होने तक, ये लगभग पक्का था कि वो वर्मा जी के बच्चे की माँ बनने वाली थी। अब बस वक्त की बात थी…

मानव एयरपोर्ट की बेंच पर लुढ़क गया और चिढ़कर आह भरी। उसकी कनेक्टिंग फ्लाइट दूसरी बार डिले हो गई थी। पता चला कि घर पर बारिश अभी भी ज़ोरों पर थी, और अथॉरिटीज़ ने उड़ान को बहुत रिस्की माना था।

नेहा के साथ अपने WhatsApp चैट चेक करते हुए, उसने पिछले कुछ दिनों में भेजे गए सारे अनपढ़े मैसेज स्क्रॉल किए। उसे किसी भी तरह का शक होने की कोई वजह नहीं थी; आखिर, वो बस अपनी ‘दयालु’ बूढ़े पड़ोसी के साथ थी। इसलिए, उसने यही सोचा कि बारिश की वजह से उसका नेटवर्क खराब हो रहा होगा।

सोचकर कि एक बार फिर कॉल करने में कोई हर्ज नहीं, मानव ने दोबारा कोशिश की। उसका फोन बार-बार बजा, फिर आखिरकार नेहा का फोन स्विच ऑफ हो गया, शायद बारिश में बिजली गुल होने की वजह से बैटरी खत्म हो गई थी। एक और आह भरते हुए, अनजान पति ने कंधे उचकाए और अपनी बोरिंग इंतज़ारी फिर से शुरू कर दी।

“मुझे यकीन है वो वर्मा जी के साथ ठीक होगी,” उसने खुद से कहा, जितना वो समझता था उससे कहीं ज़्यादा सही।

इधर, घर के मेन बाथरूम में सिसकारियों और शॉवर से गिरते पानी की आवाज़ गूँज रही थी। नेहा के हाथ और उभरे हुए चूचे भाप से भरे शीशे की खिड़की पर दबे हुए थे, जबकि वर्मा जी पीछे से उसे पेल रहे थे। उनके गीले बदनों पर ढेर सारे हिक्की और काटने के निशान थे, जो उनकी पहले की तीखी चुदाई सेशन्स की कहानी बयान कर रहे थे।

“वहीं, बाबूलाल जी… ऐसे ही पेलते रहिए…” नेहा ने भारी साँसों में गिड़गिड़ाई।

वर्मा जी ने कराहते हुए अपनी पतली कमर को नेहा की गोल-मटोल गांड से ज़ोर से टकराया, जिससे उसकी देह में उत्तेजक लहरें उठने लगीं। उसकी घड़ी की तरह बनी कमर को पकड़कर, उनकी आँखें नेहा के गीले नंगे बदन को ऊपर-नीचे देख रही थीं। उसकी बिल्कुल सही ढली पीठ और रसीली गांड को देखकर बूढ़े लुच्चे का मन और भड़क गया। नेहा के लंबे काले बाल उसकी त्वचा से चिपके हुए थे, जो इस हॉट सीन को और शानदार बना रहा था।

नेहा ने अपने हाथ शीशे से हटाए और वर्मा जी की कलाइयाँ पकड़ लीं, जो उसकी बार-बार इस्तेमाल हुई चूत में गहरे पेल रहे थे। वो सिसकी, क्योंकि उनके लटकते टट्टे उसकी त्वचा से टकरा रहे थे। उसे हैरानी थी कि इतनी चुदाई के बाद भी बूढ़े का जोश खत्म नहीं हुआ था। फिर भी, नेहा उसे घर में रहने के दौरान पौष्टिक खाना खिला रही थी, ताकि उसकी ताकत बनी रहे।

सिर झुकाकर, उसने अपनी गांड को वर्मा जी की ओर और पीछे किया। बूढ़े ने उसकी हिलती कमर को संभालने के लिए थोड़ा पीछे हट लिया। उसे हमेशा हैरानी होती थी कि नेहा कितनी आसानी से उसे इधर-उधर हिला देती थी। उसकी कमर को और ज़ोर से पकड़कर, वो अपना बैलेंस बनाए रखने में कामयाब रहा।

वर्मा जी ने उसकी गर्म, स्वागत करने वाली चूत में धक्के मारना जारी रखा। इतनी चुदाई के बावजूद, उसकी चूत अब भी उतनी ही टाइट थी। दोनों के बीच कोई बात नहीं हो रही थी। बस गर्म पानी की बौछार, उनकी भारी साँसें, और हल्की सिसकारियाँ ही सुनाई दे रही थीं।

बूढ़े ने एक धीमा और स्थिर लय बनाए रखी, उसे गहरे और अच्छे धक्के दिए। उनकी गीली देहों के टकराने की आवाज़ पानी की आवाज़ को चीर रही थी। वर्मा जी अपने दिमाग में खोए हुए थे। उन्हें नहीं पता था कि वो शॉवर में कितनी देर से थे। बस इतना मायने रखता था कि वो अपनी सेक्सी पड़ोसन के साथ चुदाई कर रहे थे।

नेहा का दिमाग सुन्न हो चुका था; उसके दिमाग के तार इस सेशन में वर्मा जी के बार-बार उसे चरम पर लाने से जल चुके थे। साँस लेने के अलावा, वो बस सेक्स के बारे में सोच रही थी। उसकी टाँगें उस अनंत मज़े से काँप रही थीं, जो उसे वर्मा जी की शॉवर में चुदाई से मिल रहा था। गर्म और भाप भरा माहौल उनकी जंगली चुदाई को और आदिम बना रहा था। उनकी पकड़ती उंगलियों और उनके लौड़े का अंदर-बाहर होना शुद्ध आनंद था।

उसने मानव के साथ कभी शॉवर में सेक्स नहीं किया था, बल्कि उसके साथ तो शॉवर लिया भी नहीं था। तो वर्मा जी के साथ पहली बार ऐसा करना उसे और गंदा लग रहा था। यहाँ वो फिर से वही कर रही थी, जो उसका पति उसके साथ करना चाहिए था।

नेहा की चूत में पूरा गहरा डूबकर, वर्मा जी ने अपनी कमर को हिलाया और घुमाया, अपने टोपे को उसकी बच्चेदानी के मुँह में ठोकते हुए। नेहा ने गहरी सिसकारी छोड़ी, क्योंकि उसकी चूत उनके पेलते लौड़े के चारों ओर ज़ोर से फड़क रही थी।

“पलट जा,” वर्मा जी ने हुक्म दिया, नेहा की दाहिनी गांड पर एक ज़ोरदार थप्पड़ मारते हुए। नेहा ने बस एक शरारती सिसकारी छोड़ी और जैसा कहा गया, वैसा कर लिया।

पलटते ही, वर्मा जी की आक्रामक पहल ने उसे चौंका दिया। वो सीधे उसकी गीली चूचियों पर झपटे, उसे शीशे की खिड़की से दबाते हुए, और फिर ऐसे चूसने और चाटने लगे जैसे कोई भूखा शैतान। साथ ही, उन्होंने उसकी बायीं टाँग के नीचे हाथ डाला और उसे ऊपर उठा लिया।

“हाय… हम्म, हाँ, बाबूलाल जी…” नेहा ने सिसकते हुए कहा, इस छोटे कद के मर्द को अपनी मर्ज़ी करने देने में।

वो चौंकी जब उनके टोपे ने उसकी चूत को छेड़ा। वर्मा जी ने अपनी कमर को बेतरतीब ऊपर धकेला, उसे फिर से अंदर घुसाने की कोशिश में, पर बार-बार चूक रहे थे। हँसते हुए, नेहा ने नीचे हाथ बढ़ाया और उन्हें वापस अपनी चूत में ठीक जगह पर ले आई, जहाँ उनकी जगह थी।

“हाय, हाय, हाय, उह, उह, उह, हाँ… आप तो रुकते ही नहीं, बाबूलाल जी…” नेहा ने मादक आवाज़ में कहा, अपने नाज़ुक हाथों को उनकी गीली पीठ पर ऊपर-नीचे फेरते हुए।

उसकी टाँग को अपनी बाँह में फँसाकर, वर्मा जी ने अपने खाली हाथ से उसकी मुलायम गांड को पकड़ लिया। चूँकि नेहा उनसे लंबी थी, उन्हें अपने पंजों पर खड़ा होना पड़ा ताकि उसे ठीक से पेल सकें। उनका लौड़ा उसकी गीली चूत में अंदर-बाहर हो रहा था, उसके हर कमज़ोर पॉइंट को छू रहा था।

नेहा को बहुत मज़ा आ रहा था कि वो उसे शीशे से टिकाकर ऐसे चोद रहे थे। भले ही उनका कद छोटा था, ये बूढ़ा सच्चा स्टड था। वो बस सोच सकती थी कि जवानी में वो कितना आग उगलता होगा।

नीचे देखते हुए, नेहा ने बूढ़े को अपनी प्यारी गुलाबी चूचियों को मुँह में लेते और बच्चे की तरह चूसते देखा। उसने अपने होंठ काटे, सोचते हुए कि प्रेग्नेंसी में उसकी चूचियाँ फूल जाएँगी और उसका होने वाला बच्चा इन्हें चूसेगा। वर्मा जी ने दोनों चूचियों को बराबर ध्यान दिया, ये सुनिश्चित करते हुए कि दोनों को बराबर प्यार मिले।

“हम्म, मेरी चूचियाँ चूसो, हम्म, ऐसे ही, वर्मा जी… हाय…”

उनकी जीभ का उसके निप्पलों को चाटना और गुदगुदाना उसके सीने में मज़े की बिजलियाँ भेज रहा था। इसके साथ, उनका लौड़ा उसकी चूत को भर रहा था, उसे जन्नत का एहसास दे रहा था।

पर जितना वो इस भाप भरे माहौल में हमेशा रहना चाहती थी, हर किसी की एक हद होती है।

उसकी चूची को मुँह से निकालते हुए, वर्मा जी ने ऐलान किया, “मैं झड़ने वाला हूँ!” नेहा की भूरी आँखें उत्साह से फैल गईं।

“हम्म, कर दो। फिर से मुझे भर दो…” नेहा ने भूखी आवाज़ में कहा। “हाय… अब तो मुझे बच्चा दे दो…”

सिर हिलाते हुए, वर्मा जी ने सिर उठाया और अपने होंठ चूमने के लिए सिकोड़े। पर उनकी लंबाई की वजह से, वो अपनी देवी के रसीले होंठों तक नहीं पहुँच पाए। खुशकिस्मती से, नेहा ने झुककर अपनी मर्ज़ी से उनके होंठों तक पहुँच बनाई।

थोड़ी देर बाद, वर्मा जी ने अपनी देवी की चूत में गहराई तक पेला और एक और भारी माल से उसे भर दिया। नेहा की पलकें तेज़ी से फड़फड़ाईं और उसकी आँखें पीछे लुढ़क गईं, क्योंकि उसने उनके गाढ़े माल को अपनी बच्चेदानी में भरते हुए महसूस किया, हर कतरा उसकी फर्टाइल ज़मीन में जड़ पकड़ने की कोशिश में…

बारिश की कैद में चली उनकी चुदाई मैराथन अब खत्म होने को थी। नेहा अपने घर के दरवाजे पर वर्मा जी को विदा कर रही थी।
“वाह, ये तो कुछ और ही था…” वर्मा जी ने हैरानी और मज़े के मिक्स में कहा।
नेहा की गालों पर लाली छा गई, उनकी बात दिल में उतर रही थी। “हाँ… सच में…” उनके बीच एक अजीब सा सन्नाटा छा गया, जैसे दोनों किसी ज़रूरी बात को उठाने का इंतज़ार कर रहे हों। लेकिन वर्मा जी ने पहले चुप्पी तोड़ी।
“तो, तू मुझे अपडेट देगी ना… उस बारे में…” उन्होंने इशारा करते हुए कहा, थोड़ा झेंपते हुए, क्योंकि ये पहली बार था जब उन्हें ऐसी बात करनी पड़ रही थी।
नेहा ने शर्मिंदगी से अपनी बायीं बाँह पकड़ ली। उसके गाल लाल और गर्म हो गए थे। “हाँ… मैं बता दूँगी कि क्या होता है, ठीक है? पर अभी के लिए, कुछ दिन दूरी बनाए रखते हैं। बस मोहल्ले के मज़ेदार बूढ़े पड़ोसी बनकर रहना।”
वर्मा जी ने शक भरी नज़रों से देखा, लेकिन अनमने से सिर हिलाकर सहमति दी। शायद यही सही था। “तो, अपने पति से कैसे निपटेगी?” वर्मा जी ने साफ़-साफ़ पूछा। नेहा ने आह भरी और बेचैनी से अपना माथा रगड़ा।

अगर नेहा वर्मा जी के बच्चे से प्रेग्नेंट हो गई, जो अब तक लगभग पक्का था, तो उसे ये दिखाना था कि बच्चा मानव का है। इसका मतलब था कि उसे जल्दी ही मानव के साथ सेक्स करना होगा। पर ये आसान नहीं था, क्योंकि मानव को अब सेक्स में कोई दिलचस्पी नहीं थी। फिर भी, नेहा को यकीन था कि वो कोई ना कोई रास्ता निकाल लेगी।
उसे पता था कि वो जो कर रही थी, वो बहुत गलत था, लेकिन अब वो इतनी गहरी डूब चुकी थी कि वापसी का रास्ता नहीं था। और उसका गंदा दिमाग उसकी हरकतों को जायज़ ठहराने का रास्ता निकाल लेता था; मानव उसे वो नहीं दे रहा था, जो वो डिज़र्व करती थी, तो किसी और मर्द को उसकी ज़िम्मेदारी लेनी पड़ी।
“वो हिस्सा मैं खुद संभाल लूँगी। तुम्हें इसकी फिक्र नहीं करनी,” नेहा ने कॉन्फिडेंटली यकीन दिलाया। फिर, उनके कान के पास झुककर फुसफुसाई, “मैं पूरी कोशिश करूँगी कि उसे लगे हमारा छोटा सा राज़ उसका है…”

खड़े होकर, नेहा को थोड़ा अनिश्चित सा महसूस हुआ। “अगर हमें फिर से कोशिश करनी पड़ी तो?” उसने सावधानी से पूछा। वर्मा जी ने अपनी झाड़ीदार भौंहें हैरानी से उठाईं। पिछले कुछ दिनों में उन्होंने इतनी मेहनत की थी उसे प्रेग्नेंट करने के लिए। उनकी बात ने उन्हें थोड़ा चिढ़ा दिया।
आगे बढ़कर, उन्होंने सावधानी से उसका निचला पेट छुआ। “अरे, हमें फिर से कोशिश नहीं करनी पड़ेगी। मुझ पर भरोसा कर, नेहा,” उन्होंने कॉन्फिडेंटली कहा। नेहा बस मुस्कराई। उनका हाथ उसके पेट पर इतने प्यार से था कि उसका पेट फड़फड़ा उठा। वो पहले से ही अपने पेट में उनके बच्चे को फूलते हुए सोच रही थी।

हाथ हटाकर, वर्मा जी ने अपनी प्रेमिका को अलविदा कहा, एक आखिरी जोशीला चुम्बन देकर अपने घर लौट गए।

जब मानव घर लौटा, ज़िंदगी वैसी ही लगने लगी जैसे चक्कर शुरू होने से पहले थी। वर्मा जी को थोड़ा गुस्सा आया कि नेहा ने बारिश वाले हादसे के बाद हर तरह की नजदीकी बंद कर दी, लेकिन उन्हें अहसास था कि इस पर बहस का कोई फायदा नहीं। वो बस शुक्रगुज़ार थे कि नेहा ने उनके माल को इतनी उदारता से कबूल किया था।

पर दिन-ब-दिन बीतते गए, और नेहा से कोई अपडेट नहीं आया। जब वो मोहल्ले वाले अंदाज़ में मिलते, तो बातचीत छोटी और बहुत कैज़ुअल रहती, पहले से भी ज़्यादा। वर्मा जी के मन में बेचैनी बढ़ने लगी। उन्हें अपने चक्कर का रोमांच याद आ रहा था। और पिछले कई महीनों से उनकी आदत बनी चुदाई के बिना, वो तनाव महसूस करने लगे थे।

हर रात वर्मा जी अपने पलंग पर लेटे, छत को खाली-खाली ताकते, ये सोचते कि नेहा कब उन्हें वो बड़ी खबर देगी जिसका वो बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे।

लगभग एक हफ्ते तक कुछ न होने पर, उनकी सेक्स की भूख उन्हें सचमुच परेशान करने लगी। उससे भी ज़्यादा, उन्हें ये जानना था कि उनकी देवी प्रेग्नेंट है या नहीं। नेहा का इतना बेफिक्र और कैज़ुअल बर्ताव, जैसे कुछ हुआ ही न हो, उन्हें चिढ़ा रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे वो उन्हें उलझाने की कोशिश कर रही हो। क्या उसका दिल अचानक बदल गया था?

वर्मा जी घबरा और बेचैन हो गए थे। उन्होंने इस पूरे ब्रेक में सब्र से अपनी ज़ुबान बंद रखी थी, लेकिन अब उनकी हद हो रही थी। वो बस साफ-साफ पूछना चाहते थे कि माजरा क्या है।

और इंतज़ार से तंग आकर, वर्मा जी ने आखिरकार मामला अपने हाथ में लिया। उन्होंने नेहा को कुछ WhatsApp मैसेज भेजे, पूछते हुए कि सब कैसा चल रहा है। लेकिन उनकी निराशा के लिए, सारे मैसेज बस ‘रीड’ स्टेटस पर चले गए। इससे वर्मा जी भड़क गए। अब उनका अगला कदम था नेहा से आमने-सामने बात करना।

अगली सुबह, वर्मा जी ने तब तक इंतज़ार किया जब तक मानव अपनी रूटीन के मुताबिक ऑफिस के लिए नहीं निकल गया। जैसे ही वो गया, वर्मा जी गुस्से और चिढ़ से भरे अपने घर से निकले और नेहा के घर की ओर बढ़े। उसके दरवाजे पर पहुँचकर, बूढ़े ने अपनी कॉलर ठीक की और खुद को उस तूफान के लिए तैयार किया जो वो नेहा पर बरपाने वाला था।

पर जैसे ही वो डोरबेल बजाने वाला था, दरवाजा अचानक खुला और नेहा अपनी पूरी खूबसूरती के साथ सामने खड़ी थी। “अरे?!” वो थोड़ा चौंककर बोली। वर्मा जी भी हैरान रह गए, उनका गुस्सा एक पल के लिए काफूर हो गया और वो भूल गए कि वो नाराज़ क्यों थे।

खुद को संभालते हुए, वर्मा जी ने फिर से अपनी चिढ़ भरी मुद्रा बनाई और कुछ कहने को मुँह खोला। लेकिन नेहा ने उनसे पहले बोल लिया। “मैं तो अभी तुमसे मिलने तुम्हारे घर जा रही थी, वर्मा जी,” उसने कहा, अपनी उत्साह भरी मुस्कान को दबाने की कोशिश करते हुए।

“क्या?” वर्मा जी ने हैरानी से कहा, उसके इस गर्मजोशी भरे बर्ताव ने उन्हें ऑफ गार्ड कर दिया।

उनके पीछे देखते हुए, नेहा ने आसपास का जायजा लिया। “अंदर आओ, जल्दी!” उसने उत्साह में कहा और बूढ़े को जल्दबाजी में घर के अंदर खींच लिया।

वर्मा जी कन्फ्यूज हो गए। उन्हें तो नेहा पर गुस्सा होना था उसकी इतनी दूरी बनाने के लिए! दरवाजा बंद होते ही, नेहा ने वर्मा जी का बूढ़ा चेहरा पकड़ा और उसे एक जोशीला चुम्बन दे दिया।

उनकी बूढ़ी आँखें फैल गईं। वो भूल ही गए थे कि उनकी इस खूबसूरत देवी को चूमना कितना मज़ा देता है। अलग होते ही, वर्मा जी उस अचानक आए प्यार भरे जेस्चर से दंग रह गए। “ये क्या हो रहा है?” वो चक्कर में पड़कर बोले।

नेहा ने शरारती मुस्कान दी और निराशा में सिर हिलाया। गहरी साँस लेते हुए, उसने पीछे हाथ बढ़ाया और अपनी पीछे की जेब से कुछ निकाला। एक अजीब सी प्लास्टिक की स्टिक दिखाते हुए, उसने अपने यार को दी।

वर्मा जी ने उस अनजान चीज़ को गौर से देखा। जब उन्हें समझ आया कि ये क्या हो सकता है, उनका बूढ़ा दिल धड़कने लगा और दिमाग दौड़ने लगा। “क्या ये…” वो कहने की कोशिश करने लगे।

“हाँ! मैं प्रेग्नेंट हूँ!” नेहा ने उत्साह से खुलासा किया।

प्रेग्नेंसी टेस्ट को उसके हाथ से सावधानी से लेते हुए, वर्मा जी ने उसे गौर से देखा, ये पक्का करने की कोशिश में कि उसका दावा सच है। अनजाने में उनकी मुस्कान कानों तक फैल गई जब उन्हें यकीन हो गया कि टेस्ट पॉजिटिव था।

“ये तो कमाल है!” वो चिल्लाए, नेहा की ओर दौड़ते हुए और उसे गर्मजोशी से गले लगा लिया। बूढ़ा खुशी से भरा हुआ था। वो अपनी ज़िंदगी में पहली बार बाप बनने वाला था। और जो बात इसे और बेहतर बना रही थी, वो ये कि उनकी बच्ची की माँ उनके पड़ोसी की हॉट बीवी थी।

दोनों शुद्ध खुशी में झूम रहे थे, एक-दूसरे की बाहों में खोए हुए। नेहा और वर्मा जी को यकीन नहीं हो रहा था कि ये सचमुच हो रहा था। वो एक बच्चा पैदा करने वाले थे। भले ही ये चक्कर का बच्चा था, उनकी गैरकानूनी बेवफाई का नतीजा, फिर भी ये खुशी की बात थी।

“पिछले हफ्ते मेरे बर्ताव के लिए सॉरी। मैं चाहती थी कि पहले सब पक्का हो जाए। मुझे लगा कि अच्छी खबर ऐसे ज़्यादा मज़ा देगी,” नेहा ने गले मिलने के बाद माफी माँगी।

वर्मा जी का गुस्सा उसकी बात सुनकर धुल गया। भले ही उसने उन्हें चिढ़ाया था, लेकिन अब उसे लग रहा था कि उसका जानबूझकर इंतज़ार करना, जब तक कि वो पक्का सबूत दे सके कि वो प्रेग्नेंट है, ने इस खबर को और बेहतर बना दिया। वो खुशी से कहीं ज़्यादा हैरान थे। उनकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी फंतासी सच हो रही थी!

“हाय, मैं थोड़ा गुस्सा था, पर अब वो बात गई। मैं बस खुश हूँ कि मैंने तुझे प्रेग्नेंट कर दिया!” रिटायर्ड बिज़नेसमैन ने विजयी मुस्कान के साथ कहा। “मैंने कहा था ना, बस एक बार पूरी मेहनत करने की ज़रूरत थी।”

नेहा ने अपनी भूरी आँखें घुमाईं। “हाँ, तुमने कर दिखाया। विश्वास नहीं होता तुमने मुझे सचमुच प्रेग्नेंट कर दिया, बूढ़े कमीने,” उसने मज़ाक में कहा।

“हम्म, तुझे पक्का है ना कि ये मेरा है?” वर्मा जी ने अचानक पूछा। नेहा का चेहरा हैरानी से भर गया।

“ये कैसा सवाल है? बिल्कुल तुम्हारा है। और किसका होगा?”

“हाय, हो सकता है तेरे पति का…” वो बेचैनी से बड़बड़ाए। “जब तक कि तूने उसके साथ सेक्स नहीं किया…”

नेहा ने आह भरी और अपनी नाक के बीच को दबाया। “नहीं, मैंने अभी तक उसके साथ सेक्स नहीं किया। मैं तब तक कोई कोशिश नहीं करने वाली थी जब तक मुझे पक्का नहीं हो जाता कि मैं प्रेग्नेंट हूँ,” उसने जवाब दिया। “ये तुम्हारा है, वर्मा जी।”

“बस पक्का कर रहा था, सेक्सी। इतना सोचने के लिए थैंक्स,” वर्मा जी ने खुशी से कहा। “हाह, तू कितनी गंदी रंडी है। तूने ये सुनिश्चित करना चाहा कि तू मेरे बच्चे से प्रेग्नेंट हो, इससे पहले कि तू अपने पति के साथ ‘कोशिश’ करे…”

नेहा हँसी और एक शरारती मुस्कान दी। “हम्म, मैं पूरी तरह पक्का करना चाहती थी कि मैं अपने मोटे लौड़े वाले पड़ोसी के बच्चे से प्रेग्नेंट हूँ…” उसने धीमी आवाज़ में कहा, वर्मा जी की आँखों में देखने के लिए झुकते हुए। “खुश हो ना कि तुम बाप बनने वाले हो?” वर्मा जी ने पक्के तौर पर सिर हिलाया।

“मुझे लगता है हमें सेलिब्रेट करना चाहिए,” बूढ़े ने सुझाव दिया।

“हम्म? कोई आइडिया कि कैसे करें?” नेहा ने शरारत भरे अंदाज़ में जवाब दिया।

“ओह, मेरे दिमाग में कुछ आइडियाज़ ‘कंसीव’ हो रहे हैं…” वर्मा जी ने लुच्ची हँसी के साथ कहा।

आगे झुककर, उन्होंने अपनी प्रेग्नेंट प्रेमिका के साथ होंठ जोड़ लिए। जब नेहा उन्हें सीढ़ियों की ओर बेडरूम की तरफ ले गई, वर्मा जी को पूरी तरह खुशी और संतुष्टि का एहसास हो रहा था। उनके पास वो सब था जो वो कभी चाहते थे। वो सचमुच दुनिया के सबसे भाग्यशाली बूढ़े कमीने थे।
 
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