pankukipriya
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Ye piche le jaa ke chodega pakka,सूरज की किरणें धरती पर चारों तरफ फैल कर रोशनी भी कहती उससे पहले ही गांव की औरत राजा साहब के साथ संतुष्टि भरा संभोग करके और तय की हुई कीमत लेकर वहां से चली गई थी और वह इस बात से कुश्ती की राजा साहब को छोड़कर किसी और ने उसके चेहरे को नहीं देखा था,,,, और राजा साहब भी रात भर उस औरत की चुदाई करके ना तो खुद सोया था और नहीं उसे औरत को सोने दिया था इसलिए तो सुबह होने से पहले ही वह औरत अपने घर की तरफ रवाना हो गई थी और राजा साहब चुपचाप जाकर अपने कमरे में रानी के बगल में आकर लेट गए थे,,, लेकिन कमरे में प्रवेश करते हैं जिस तरह का अंधेरा कमरे में छाया हुआ था उसे देखकर थोड़ी बहुत हैरानी राजा साहब को हो रही थी कि कमरे में अंधेरा क्यों है,,, फिर मन में यह ख्याल आया कि शायद रानी पुरी तरह से निर्वस्त्र होकर सो रही थी इसलिए खुद ही रोशनी बुझा दी होगी,,, राजा को नींद नहीं आ रही थी क्योंकि कुछ देर पहले ही रात भर वह गैर औरत के साथ मस्ती भरी रात गुजार कर आया था,, राजा साहब को देखकर वाकई में घर की मुर्गी दाल बराबर वाली कहावत एकदम सही बैठ जाती है और यह कहावत शायद राजा साहब के लिए ही बनी हुई थी बगल में अप्सरा जैसी खूबसूरत औरत होने के बावजूद भी गांव की साधारण सी महिला के साथ रात गुजारने की आदत पड़ चुकी थी,,,।
और इसी आदत की वजह से राजा साहब जैसी शख्सियत की मुलाकात कल्लू जैसे बदमाश से हो गई थी,, जो आए दिन नई-नई औरतों का प्रबंध राजा साहब के लिए करता रहता था और अपने जीवन निर्वाह के लिए पैसे भी प्राप्त करता रहता था सही मायने में देखा जाए तो यही उसकी आजीविका बन चुकी थी,, और इसमें वह खुशभी था।
राजा साहब अपने कमरे में रानी के बगल में लेटे हुए रानी की बड़ी-बड़ी गांड पर अपनी हथेली रखकर सहला रहे थे उन्होंने कमरे में वापस रोशनी करने के बारे में नहीं सोचा क्योंकि थोड़ी ही देर में उजला होने वाला था लेकिन राजा साहब की हरकत से उनकी बीवी की आंख खुल गई और अपने नितंबों पर अपने पति के हथेली का स्पर्श पाकर वह फिर से उत्तेजित होने लगी रात वाली घटना अभी भी महारानी के जेहन में एकदम ताजा थी वह बहुत खुश थी की वर्षों के बाद उसके पति ने उसकी बुर पर अपने होठ रखे थे,,,, अपने पति की हथेली को महसूस करके महारानी के बदन में कसमसाहट बढ़ने लगी,,,, वह नींद से जागते हुए बड़े प्यार से अपने पति से बोली।
रात को आपने ऐसी चुदाई की है कि मैं एकदम गहरी नींद में सो गई लेकिन आप इतनी जल्दी क्यों उठ गए,,(बिना करवट लिए हुए ही वह राजा साहब की तरफ देखते हुए बोली वैसे तो कमरे में अभी भी अंधेरा था लेकिन खिड़कियों से अब हल्का-हल्का उजाला कमरे में महसूस होने लगा था अपनी पत्नी की बात सुनकर राजा साहब बोले)
हां आज जल्दी आंख खुल गई,,, तुम बिना कपड़े पहने ही सो गई,
आप कपड़े कहां पहनने देते हैं,,,,(रानी मुस्कुराते हुए बोली,,, और उसकी बात सुनकर राजा साहब उसका दिल रखने के लिए बोले)
क्या करूं मेरी रानी तुम्हारी जवानी मुझे पागल बना देती है तुम बिना कपड़ों की कुछ ज्यादा ही सुंदर लगती हो इसलिए तुम्हें कपड़े पहने नहीं देता,,,
ऊमममम,,, रहने दीजिए झूठी तारीफ करने को,,, लेकिन कल रात आप क्या खा लिए थे जो जमकर मेरी चुदाई किए हो,,,,।
तुम्हारा प्यार,,(महारानी का दिल बहलाने के लिए राजा साहब बोले और अपने पति की बात सुनकर महारानी के तन-बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी,,, महारानी के अरमान मचलने लगे वह अपने मन में सोचने लगी की रात कुछ इस तरह का प्यार उसके पति ने किया है अगर इस समय भी वही प्यार मिल जाए तो पूरा दिन सुधर जाए और यही अपने मन में सोच कर रानी धीरे से उठकर बैठ गई और,,, राजा साहब कुछ समझ पाते इससे पहले ही घुटनों के बाल होकर वह एक घटना अपने पति के दाएं चेहरे पर और दूसरा घुटना बांए सिरे पर रख दी और दोनों हाथों से अपने पति के सर को पकड़ ली और उनके चेहरे पर अपनी बुर को रगड़ने लगी,,,, राजा साहब को समझ पाते इससे पहले ही उनकी बीवी दो-चार बार अपनी बुर को उनके होठों से रगड़ दी थी और एकदम से गर्म हो गई थी,,,, लेकिन जैसे ही राजा साहब को एहसास हुआ कि उनकी बीवी अपनी मनमानी कर रही है तो वह तुरंत दोनों हाथों से अपनी मद-मस्त बीवी को पकड़ कर अपने से अलग करती है और एकदम से क्रोधित होते हुए बोले,,,)
यह क्या बदतमीजी है तुम्हें अच्छी तरह से मालूम है कि मुझे यह नहीं पसंद है,,,।
लेकिन मेरे राजा रात को तुम कितने प्यार से मेरी चाट रहे थे,,,,।
पागल हो गई हो क्या कोई सपना तो नहीं देख रही हो बरसों बीत गए हैं तुम्हारी बुर से मैंने होठ नहीं लगाया,,,, आइंदा से यह बदतमीजी मेरे साथ मत करना मुझे यह बिल्कुल भी पसंद नहीं है,,,।।
लेकिन रात को तो,,,।
रात को मैंने सिर्फ तुम्हारी चुदाई किया था तुम्हारी बुर को चाटा नहीं था मुझे कोई शौक नहीं है तुम्हारी बुर को चाटने का,,,,, लगता है तुम सपना देख रही थी तभी गहरी नींद में सो रही हो,,,।
(अपने पति के इस बर्ताव से महारानी को एक बड़ा सा धक्का लगा था,,,, क्योंकि अपने पति के द्वारा यह एक तरह का अपमान ही था जिसे सहन कर पाना इस समय महारानी के लिए मुश्किल हुआ जा रहा था,,,, महारानी अपने मन में सोच रही थी कि क्या कमी है उसके में उसके जैसी आसपास की 25-50 गांव में भी खूबसूरत औरत नहीं है और उसका पति उसकी जवानी को इस तरह से धिक्कार दिया,,,, महारानी को यह बात दिल पर लग गई थी और राजा साहब इस समय अपना कच्छ छोड़कर बाहर निकल गए थे महारानी बिस्तर पर बैठे-बैठे रात की घटना के बारे में सोच रही थी,।
बहुत सोचने के बाद महारानी को एहसास हुआ कि वह सपना तो बिल्कुल भी नहीं था जो कुछ भी रात में हुआ था वह हकीकत था फिर वह अपने मन में सोचने लगी कि कहीं ऐसा तो नहीं राजा साहब की जगह कोई गैर मर्द कमरे में आ गया हो और उसके साथ मनमानी करके चला गया हो, इस तरह का विचार जैसे ही मन में आया रात वाली घटना उसकी आंखों के सामने एकदम तरोताजा होने लगी,,,, रात में उसके साथ जो कुछ भी हुआ था उसके बारे में वह गहरी सोच में पड़ गई थी,,, वह सोचने लगी कि रात को जिस तरह से अपनी बुर पर राजा साहब के होठों का स्पर्श महसूस की थी उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि राजा साहब ऐसा कर सकते हैं पल भर के लिए तो वह अपने आप में पूरी तरह से खो चुकी थी ऐसा लग रहा था की पूरी दुनिया उसकी बाहों में आ गई हो।
अब धीरे-धीरे महारानी को एहसास हो रहा था कि वाकई में उसके साथ कुछ गलत हुआ है उसे रात वाली गंध महसूस होने लगी जो उसके कमरे में से आ रही थी और वैसी गंध वह खेत में काम करने वाले मजदूरों के कपड़े में से आती हुई महसूस की थी,,,, धीरे-धीरे उसके दिमाग की बत्ती जलने लगी थी उसे समझ में आने लगा था कि रात को जिसे वह अपना पति समझ रही थी और कोई और इस बात का एहसास महारानी को हमसे ही उसके बदन में एक डर का भाव पैदा होने लगा,,,, उसे सब कुछ समझ में आने लगा वह समझ गई कि वाकई में रात को उसकी दोनों टांगों के बीच उसका पति नहीं बल्कि कोई गैर मर्द था वरना उसका पति उसकी बुर कभी नहीं चाटता,,,, इतना मजा उसे अपने पति के साथ नहीं मिला था जितना रात को उस गैर मर्द के साथ उसे आया था,,,,।
अब उसे सब कुछ समझ में आने लगा था जितनी देर तक उस गैर मर्द ने उसकी चुदाई किया था इतनी देर तक उसका पति नहीं कर पाता था रात को उसे गौर करने उसे चांद तारे दिखा दिया था ऐसा उसे अच्छी तरह से एहसास हो रहा था,,, उसे अब ख्याल आ रहा था कि रात को उसके कमरे में पूरी तरह से अंधेरा था बिल्कुल भी रोशनी नहीं थे जो कि उसे अनजान आदमी ने जानबूझकर रोशनी बुझा दिया था ताकि वह उसे पहचान ना सके उसके बारे में जान ना सके,,, अब महारानी पूरी तरह से हैरान हो चुकी थी क्योंकि आज तक ऐसा बिल्कुल भी नहीं हुआ था कोई गैर मत उसकी तरफ नजर उठा कर भी नहीं सकता था लेकिन रात भर में सब कुछ बदल गया था कोई अनजान मर्द जाकर उसकी जमकर चुदाई करके चला गया था उसे शक नहीं हुआ था तभी उसे ख्याल आया कि वह रात को बात भी कर रही थी लेकिन तभी उसे ख्याल आया कि उसके एक भी बात का जवाब वह नहीं दिया था वह खामोश था इसका मतलब साफ है।
रात को कोई गैर मर्द उसके कमरे में आकर उसकी चुदाई कर गया था अगर उसका पति होता तो उसकी बातों का वह जरूर जवाब देता और वह जवाब इसलिए नहीं दिया था क्योंकि अगर वह मुंह खोलता तो वह जान जाती ,,,, तभी उसे ख्याल आया कि जब वह गैर मर्द उसे पीठ के बल लिटा कर उसकी चुदाई कर रहा था तब बस की दोनों हथेलियां को अपने हाथों से पकड़ कर बिस्तर से सटा रखा था,,,, और वह भी इसलिए कि वह गैर अंजान मर्द जानता था किस तरह की मुद्रा में औरत मर्द को अपनी बाहों में भर लेती है अगर ऐसा हो जाता तो उसकी काया की बनावट को भी वह पहचान जाती इसलिए वह ऐसा नहीं करने दिया बड़ा ही साथ ही आदमी था,,,। लेकिन अब महारानी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था इस बारे में वह किसी को बता भी नहीं सकती थी अगर किसी तरह से भरोसा करके अपने पति को बताती है कि जो कुछ भी वह अनजाने में हुआ तो भी उसे पर बेशर्मी और रंडी होने का ठप्पा लग जाता जो अपने पति की गैर मौजूदगी में गैर मर्दों को अपने कमरे में बुलाकर अपनी हवस की आग बुझाती है।
इस बात का ख्याल मन में आते ही महारानी को अच्छी तरह से एहसास हो गया था कि इस बारे में किसी से ना कहने मे हीं भलाई है,,, और एक बात और उसके मन में कांटे की तरह चुभ रही थी कि अगर कमरे में उसके साथ कोई गैर मर्द सु उसे समय उसके पति कहां थे क्योंकि उसे गैर मर्द को कमरे में कुछ ज्यादा ही समय लग गया था और इतनी देर उसके पति क्या कर रहे थे इस बारे में भी सोच कर उसका दिमाग घूम रहा था।कुछ देर तक महारानी अपने बिस्तर पर बैठी रही तब तक पूरी तरह से उजाला हो चुका था और वह धीरे से अपनी बिस्तर से नीचे पैर रखी और कमरे से बाहर की तरफ जाने लगी लेकिन महारानी को अपनी कमर में दर्द का एहसास हो रहा था मीठा दर्द जिनके एहसास के लिए हर एक औरत तड़पती है रात को जिस मर्जी ने उसकी चुदाई किया था,,,वाकई में उसने पूरा जोर लगाया था और उसे बिस्तर के ऊपर औरत को किस तरह से खुश रखा जाता है उसे साड़ी कला मालूम थी संभोग की साड़ी कला में वह महारत हासिल किया था तभी तो वह महारानी को बोलने तक का मौका नहीं दिया था यही सब सोचते हुए वह अपने कमरे से बाहर निकल गई थी और बिना कुछ किसी को बताएं अपनी दिनचर्या में लग गई थी,,,,,।
दूसरी तरफ सूरज के पिताजी और कल्लु भी सूरज निकलने से पहले वहां से निकल गए थे सूरज के पिताजी रात में जो कुछ भी हुआ था उसके बारे में कुछ भी कल्लू से कहना कुछ इतना नहीं समझ रहे थे क्योंकि वह जानते थे कि इसका कोई भरोसा नहीं है वह समय आने पर सब कुछ बता भी सकता है और ऐसे में लेने के देने पड़ जाएंगे और वैसे भी रात को जो कुछ भी हुआ था उसे बारे में बात कर कौन सा पुरस्कार हासिल करना है रात को जो कुछ भी सूरज के पिताजी को प्राप्त हुआ था वह किसी पुरस्कार से काम नहीं था जिसके बारे में उसने कभी कल्पना भी नहीं किया था। रानी के मखमली बदन का एहसास सूरज के पिताजी को अपने बदन में अच्छी तरह से महसूस हो रहा था वाकई में वह सोच रहे थे कि अगर औरत को तो महारानी की तरह जो बिस्तर पर मर्दों को चारों खाने चित कर दे,,,,।
दूसरी तरफ मुखिया के खेतों में काम बढ़ता जा रहा था और ऐसे में सूरज के पिताजी का कोई ठिकाना न था,,, सूरज के पिताजी का मुखिया के खेतों में होना बहुत ज्यादा जरूरी था मुखिया इस बात को अच्छी तरह से जानता था कि अगर वह रहता था तो खेतों का काम हुआ अच्छी तरह से संभाल लेता था लेकिन उसका कहीं भी अता-पता नहीं था इसलिए उसका पता लगाने के लिए मुखिया खुद चलते हुए सूरज के घर पर पहुंच गए और बाहर से ही आवाज लगाते हुए बोले।
भोला औ भोला,,, कहां हो भाई,,,,,।
(किसी अनजान आदमी की आवाज सुनकर सुनैना जो कि घर की सफाई कर रही थी वह एकदम से रुक गई और अपने मन में सोचने लगी कि यह कौन आ गया,,, तभी वह सूरज से बोली जो सामने खटिया पर बैठा हुआ था,,,,)
सूरज जरा देखकर बाहर कौन आया है तेरे बाबूजी को आवाज लगा रहा है,,,
ठीक है,,,(इतना कहकर सूरज खटिया पर छोड़कर खड़ा हो गया और दरवाजे की तरफ जाने लगा,,,,,, उसे भी नहीं मालूम था कि दरवाजे पर कौन खड़ा है और वह जैसे ही दरवाजे पर खड़ा तो सामने मुखिया जी को पाकर वह एकदम से हाथ जोड़ते हुए बोला।)
नमस्कार मुखिया जी आप यहां,,,, रुकिए में खटिया लाता हूं,,,।
अरे रहने दो उसकी कोई जरूरत नहीं है,,,।
जरूर कैसे नहीं है मालिक आप गांव के माई बाप हैं,,, पहली बार हमारे घर आए हैं रुकीए में अभी आता हूं,,,,(इतना कहने के साथ ही सूरज घर में चला गया और अपनी मां से बताया कि उसके घर पर मुखिया जी आए हैं इस बात को सुनकर सुनैना भी हैरान हो गई की ऐसी कौन सी बात हो गई की मुखिया जी को उसके घर पर आना पड़ा वह भी एकदम से हक्की रह गई और सूरज को बोली)
तो जल्दी से खटिया बाहर लेकर जा मैं चाय पानी का इंतजाम करती हूं,,,,।
ठीक है मां जल्दी करना,,,,(इतना कहना सूरज खटिया लेकर घर के बाहर की तरफ जाने लगा और उसकी मां चाय पानी का इंतजाम करने लगी,,,,,, थोड़ी देर में सूरज खटिया लेकर घर के बाहर पहुंच गया और पेड़ के नीचे खटिया लगा दिया,,, सूरज को इस तरह से खातिर भाव करते देखकर मुखिया जी बोले।)
अरे इसकी क्या जरूरत थी।
जरूर कैसे नहीं है मालिक आखिरकार आप हमारे मालिक हैं,, जितना हो सकता है उतना तो सेवा भाव बनता है आप इस पर बैठ जाइए तब तक चाय पानी का इंतजाम हो जाता है।
बिल्कुल अपने बाबूजी जैसे हो,,,,.(इतना कहकर मुखिया खटिया पर बैठ गए और अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोले,,) आजकल तुम्हारे बाबूजी नहीं दिखते उन्हीं के सिलसिले में मैं यहां पर आया हूं,,,,.
(अपने पिताजी का जिक्र मुखिया के मुंह से सुनकर सूरज को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या बोले वह कैसे कह दे की उसके पिताजी पूरी तरह से शराबी हो गए हैं किसी गैर औरत के चक्कर में अपना घर बार छोड़ दिया ऐसा कहना उचित नहीं था इसलिए थोड़ी देर कुछ सोचने के बाद सूरज बोला)
हां पिताजी एक रिश्तेदार के साथ कहीं बाहर गए हैं,,,, कुछ काम के सिलसिले से और वैसे भी मुखिया जी अब गुजारा नहीं होता है आप तो जानते ही हैं मेरी एक बहन है उसका भी तो विवाह करना है कुछ जुटाना पड़ेगा तभी तो विवाह हो पाएगा,,,, और गांव में मजदूरी करके सिर्फ खाना पीना ही हो पता है बचत कुछ भी नहीं हो पाती,,,,
बात तो तुम ठीक कह रहे हो सूरज लेकिन फिर भी काफी दिन हो गया इसलिए पूछ रहा था और वैसे भी खेतों में कटाई का समय हो गया है तुम्हारे बाबूजी रहते थे तो सब संभाल लेते थे अब समझ में नहीं आ रहा था कि यह जिम्मेदारी किसको दूं,,,,।
(मुखिया जी की बातें और अपने बेटे की बातों को सुनैना दीवार के पीछे छुपकर सुन रही थी वह अपने बेटे की चालाकी पर बहुत खुश थी कि उसके बेटे ने सोच समझ कर जवाब दिया था और रही बात खेतों में कटाई की तो खेतों में काम करने से बहुत बिल्कुल भी पीछे नहीं हटती थी उसके खेतों में भी काम बाकी था लेकिन फिर भी वहां एकदम से हाथ में चाय का गिलास लेकर घर से बाहर घूंघट में आई और बोली)
मलिक अगर ऐसा है तो हम लोग खेतों में काम कर लेंगे,,,,।
तुम,,,?(आश्चर्य जताते हुए मुखिया जी बोले)
तो क्या मालिक खेतों में हम ही लोग तो काम करते हैं सूरज के बाबूजी तो आपके वहां काम करते हैं। बाकी अपने खेतों का काम हम खुद ही कर लेते हैं क्यों सूरज,।
जी मालिक मां ठीक कह रही है,,,, मैं और मां मिलकर आपके खेतों में काम कर लेंगे अगर और किसी मजदूर की जरूरत पड़ेगी तो वह भी इंतजाम में कर लूंगा आप बिल्कुल भी चिंता ना करें,,,,।
जब आप लोगों ने जुबान दे दिया है तो मुझे किसी बात की चिंता करने की जरूरत नहीं है और वैसे भी आप लोगों को मैं बरसों से जानता हूं,,, आप लोग मेहनती हो ईमानदार हो इसलिए खेतों की जिम्मेदारी देने में मुझे जरा भी हिचकीचाहट नहीं होगी,,,।(इतने में सूरज अपनी मां के हाथ में से चाय का गिलास लेकर खुद मुखिया को थमाने लगा मुखिया भी अपना हाथ आगे बढ़ाकर चाय का गिलास अपने हाथ में ले लिया और चाय की चुस्की लेने लगा चाय की चुस्की लेने के बाद एकदम प्रसन्न होते हुएबोला,,,)
बहुत दिनों बाद इतनी अच्छी चाय मिल रही है,,,।
मां बहुत अच्छी चाय बनाती है,,,(एकदम खुश होते हुए सूरज बोला,,,)
तब तो लगता है रोजा आना होगा,,।
आपका ही घर है जब मन करे तब आईए,,,,,,, (घूंघट को एक हाथ से पकड़े हुए सुनैना बोली,,,,,, उसकी बात सुनकर मुखिया जी बहुत खुश है इन सबके बावजूद सूरज आज एक नई बात पर ध्यान दे रहा था आज वह पहली बार अपनी मां को घूंघट में देख रहा हूं और अपनी मां को घूंघट में देखकर उसके बदन में अजीब सी उत्तेजना का लहर उठ रहा था, अपनी मां को घूंघट में देख कर ऐसा लग रहा था जैसे उसकी आंखों के सामने कोई नई नवेली दुल्हन खड़ी हो,,,,,, मुखिया दो-तीन दिन में काम शुरू करने का कहकर वहां से चले गए और सुनैना भी प्रसन्न मुद्रा में घर के अंदर प्रवेश कर गई,,, उसके पीछे-पीछे सूरज भी घर में दाखिल हो गया,,,सूरज बहुत खुश नजर आ रहा था मुखिया के खेतों में काम मिलने की खुशी में नहीं बल्कि उसकी खुशी का राज कुछ हो रही था और वह एकदम से अपनी मां से बोला,,,)
तुम तो आज घूंघट में नई नवेली दुल्हन लग रही हो मैं आज पहली बार तुम्हें घूंघट में देख रहा हूं और सच में तुम बहुत खूबसूरत लगरही हो,,,।
(सूरज का इतना कहना था कि उसकी बातों को सुनकर सुनैना शर्म से पानी पानी होने लगी,,, अपने बेटे के मुंह से अपनी खूबसूरती की तारीफ सुनकर उसके बदन में अजीब सी हलचल होने लगी थी अपनी उत्तेजना अपने हाव-भाव को छुपाते हुए वह बोली,,,)
यह कैसी बातें कर रहा है कोई अपनी मां की खूबसूरती की तारीफ करता है क्या,,,?
बेवकूफ होते हैं वह लोग जो अपनी मां की खूबसूरती की तारीफ नहीं करते मैं तो जो कुछ भी है सच कह रहा हूं आज सच में तुम्हें घूंघट में देख कर मुझे तुम्हारे अंदर एक नई औरत देखने को मिल रही है,,,,,,,,,,
कैसीऔरत,,,,(एकदम प्रसन्न होते हुए सुनैना बोली)
एक नई नवेली औरत जो अपने जीवन का शुरुआत करने जा रही है,,,,(सूरज जानबूझकर अपनी मां से इस तरह की बातें कर रहा था,,, क्योंकि वह जानता था कि उसकी मां अंदर ही अंदर एकदम प्यासी औरत है उसे एक मर्द की जरूरत है और वह कमी वह खुद पूरी कर सकता है और वैसे भी उसे वहां पर अच्छी तरह से याद था जब वह एक रात घर से गया था और सुबह में पहुंचने पर उसकी भाव से एकदम से अपने गले से लगा ली थी और एकदम से भाव भीबोर हो गई थी और एकदम से उत्तेजित भी होने लगी थी जिसके चलते वह खुद अपनी मां की गांड को दोनों हाथों से पकड़ कर उसे ज़ोर से दबाया था उसकी मां पूरी तरह से उत्तेजना के सागर में डूबती चली जा रही थी यह उसके प्यासेपन का ही नतीजा था उसे दिन तो रानी के आ जाने की वजह से आगे का कार्यक्रम स्थगित हो गया था लेकिन सूरज को लगने लगा था कि अब इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाया जाना चाहिए,,,,, इसलिए वह अपनी मां से इस तरह की बातें कर रहा था क्योंकि वह जानता था की औरतों से इस तरह से बातें करने पर वह बहुत जल्दी पिघलती है। अपने बेटे की बात सुनकर वह बोली)
जीवन की शुरुआत तू सच में पागल हो गया है अनाप शनाप बकते रहता है,,,, घूंघट में देख लिया तो मेरे अंदर कोई और औरत आ गई वह तो मुखिया जीत है इसलिए घूंघट में आनाजरूरी था,,,।
लेकिन फिर भी मन तुम बहुत खूबसूरत लग रही थी,,,,।
चल इन सब बातों को रहने दे दो दिन बाद मुखिया के खेतों में काम शुरू करना है याद रखना,,,,।
ठीक है हो जाएगा,,,,।
(सुनैना अपने बेटे के करीब रहने से डरने लगी थी एक अजीब सा डर उसके मन में बैठ गया था क्योंकि उसे भी वह दिन याद था जब अपने बेटे को गले लगाई थी और उसके बेटे ने उस पल का गलत मतलब निकालते हुए उसके नितंबो पर अपना हाथ रख दिया था जिसके चलते वह खुद उत्तेजित हो गई थी,,,, बेटे के द्वारा इस तरह की हरकत उसे अच्छी तो नहीं लगी थी लेकिन उसकी हरकत उसके बदन में पूरी तरह से मदहोशी भर दी थी जिससे वह इनकार नहीं कर सकती थी,,,,,, सुनैना फिर से घर की सफाई में लग गई थी लेकिन सूरज उसे ही देख रहा था वह झाड़ू लगाते समय झुक जाती थी तो उसके नितंबों को प्यासी नजरों से देखा था क्योंकि कई हुई साड़ी में उसके नितंबों का आकार कुछ ज्यादा ही बढ़ जाता था और तिरछी नजर से अपने बेटे की हरकत को सुनैना भी देख रही थी और उसकी नजर को अच्छी तरह से समझ कर उसके बदन में भी उत्तेजना की लहर उठ रही थी उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें,,,,,,।
इस बात से वह भी इनकार नहीं कर सकती थी अगर उसे दिन सही समय पर उसकी बेटी ना आ जाती तो जरूर कुछ ना कुछ दोनों के बीच हो जाता,,,, इसलिए तो वह अपने बेटे से दूरी बनाकर रहने लगी थी,,,, लेकिन इस समय उसकी बातों ने उसके बदन में उत्तेजना का रस घोल दिया था,,,, ना चाहते हुए भी न जाने क्यों अपने आप ही हो अपने बेटे की आंखों के सामने अपनी गांड मटका मटका कर झाड़ू लगा रही थी वह एक तरह से अपने बेटे को अपनी तरफ आकर्षित कर रही थी और ऐसा वह कब करने लगी उसे खुद समझ में नहीं आ रहा था जब उसे इस बात का एहसास हुआ तो वह मारे शर्म से पानी पानी होने लगी,,, खैर जैसे तैसे करके वह पूरे घर में झाड़ू लगाकर घर की सफाई कर दी और फिर खाना बनाने लगी,,, सूरज का तो जाने का मन नहीं कर रहा था लेकिन फिर भी वह घर से बाहर चला गया,,,, इस बात की खुशी उसके चेहरे पर साफ दिखाई दे रही थी कि दो दिन बाद मां खेतों में अपनी मां के साथ अकेले ही काम करेगा,,,,।
और इस बात का डर सुनैना के मन में था कि दो दिन बाद उसे अपने बेटे के साथ खेतों में काम करना होगा अगर उसके बेटे की हरकत इसी तरह से जारी नहीं तो वह अपने आप पर काबू नहीं कर पाएगी और जो नहीं होना चाहिए वह हो जाएगा,,,, क्योंकि कहीं ना कहीं उसे भी अपने बेटे की बातें अच्छी लगती थी, उसकी हरकतें उसकी नज़रें उसके बदन में उत्तेजना का नशा घोल देता था,,,, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि दो दिन बाद जब अपने बेटे के साथ खेत में अकेले काम करेगी तब वह उसके सामने कैसे रह पाएगी क्योंकि वह अपने बेटे की नजरों को समझ गई थी अब वह खुले तौर पर उसके अंगों को घूरने लगा था और उसका इस तरह से घूरना एक अजीब सी हलचल उसके बदन में पैदा कर देता था।
इन सब बातों को सोचते हुए सुनैना खाना बनाने लगी थी,,,, और सूरज खेतों की तरफ निकल गया था,,,, और वही सामने से उसे रानी आती हुई दिखाई दी,,,, रानी को देखकर सूरज समझ गया था कि वह सोच जाकर आ रही है इसलिए उसके करीब पहुंचने के बाद बोला,,,,।
अभी आ रही है,,,, कहां थी अब तक कितनी देर लगा दी,,,।
क्यों क्या हो गया भैया ऐसे क्यों बोल रहे हो,,,?
कुछ नहीं मुखिया जी घर पर आए थे पिताजी को ढूंढते-ढुढते लेकिन पिताजी तो ना जाने कहां है,,।
लेकिन पिताजी को क्यों ढूंढते हुए मुखिया जी आए थे,,,।
अरे पगली पिताजी मुखिया के खेतों में काम करते थे और काम करवाते थे और इस बार पिताजी है नहीं इसलिए उनको ढूंढते हुए आए थे मैंने तो मुखिया जी से कह दिया कि पिताजी किसी रिश्तेदार के साथ बाहर कमाने के लिए गए हैं,,,।
कमाने के लिए लेकिन तुम्हें कैसे पता चला भाई,,,।
अरे बुद्धु मैं तो मुखिया जी से झूठ कहां हूं,,, और क्या कहते हैं मुखिया जी से कि हम लोगों को पता नहीं की पिताजी कहां चले गए ऐसा कहना भी तो ठीक नहीं था मैं तो कह दिया कि,,, इतनी सी कमाई में पूरा नहीं पड़ता है और वैसे भी रानी की शादी करना है पैसे इकट्ठा करना है,,,।
(अपनी शादी की बात अपने भाई के मुंह से सुनकर रानी शर्मा गई और शरमाते हुए बोली,,,)
धत् भैया ऐसा क्यों बोले,,, ऐसी तो कोई बात नहीं है,,,।
अरे लेकिन बात तो सही है ना तेरी शादी तो करना पड़ेगा ना अब तो पूरी तरह से जवान हो गई है,,,।
(इस बात को सुनकर रानी एकदम से शर्मा गई और वहां से भाग चली ,,, सूरज उसे आवाज लगता रहा लेकिन वह रुकी नहीं,,,।
दिन भर रानी के दिमाग में उसके भाई की ही बात घूम रही उसका भाई एकदम खुले तौर पर उसके सामने कह रहा था कि वह पूरी तरह से जवान हो चुकी है जिसका मतलब साफ था कि वह सच में शादी के लायक हो गई है और छुपे शब्दों में कहो तो अब वह पूरी तरह से चुदवाने के लिए तैयार हो गई है,,, यह ख्याल मन में आते ही रानी की दोनों टांगों के पीछे अजीब सी हलचल होने लगती थी,,,, खाना खाने के बाद वह अपने कमरे में सुनने के लिए गई थी उसकी आंखों में नहीं थी पर करवट पर करवट बदल रही थी उसके भाई की हरकत उसकी बातें एक-एक करके उसे याद आ रही थी जो उसके तन बदन में आग लगा रहा था उसकी हालत को खराब कर रहा था,,,,। यही हाल सूरज कभी था सूरज अपनी बहन से इस तरह की बातें जान-दूर किया था वह उसके चेहरे के हाव भाव को देखना चाहता था,,, और अपनी बहन के चेहरे के हवाओं को देखकर सूरज समझ गया था कि वह भी पूरी तरह से तैयार है। उसे भी नींद नहीं आ रही थी,,,, रानी को बड़े जोरों की पेशाब लगी थी लेकिन राज ज्यादा होने की वजह से उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें लेकिन जब पेशाब की तीव्रता बढ़ने लगी तो उसे रहने की जरूरत धीरे से उठकर खड़ी हो गई और दरवाजा कोखोलने लगी,,, पास वाले ही कमरे में सूरज भी बेचैन नजर आ रहा था उसकी आंखों में नींद नहीं थी जब उसे एहसास हुआ कि उसकी बहन के कमरे का दरवाजा खुला तो वह भी धीरे से उठकर खड़ा हो गया और अपने भी कमरे का दरवाजा खोलकर आंगन में आ गया आंगन में देखा तो उसकी बहन खड़ी थी कमर पर हाथ रखकर उसे तरह से खड़े देखकर वह बोला,,।
क्या हुआ इतनी रात गए यहां क्यों खड़ी है,,,,?
मुझे बाहर जाना है,,,
तो चली जाना खड़ी क्यों है,,,,।
(सूरज सारा मामला समझ गया था इसलिए देखना चाहता था कि उसकी बहन क्या करती है इसलिए वह इससे ज्यादा कुछ बोला नहीं और उसकी बात सुनकर रानी कसमसाते हुए बोली,,,)
रात ज्यादा हो गई है इसलिए अकेले बाहर जाने में डर लग रहा है अगर तुम भी साथ चलते तो,,,।
लेकिन बाहर करने क्या जाना यह तो बता,,,,(सूरज अच्छी तरह से जानता था कि उसकी बहन बाहर इतनी रात को क्यों जा रही है लेकिन फिर भी वह उसके मुंह से सुनना चाहता था... रानी भी अच्छी तरह से समझ रही थी कि उसका भाई अनजान बनने की कोशिश कर रहा है उसे भी सब कुछ मालूम है लेकिन फिर भी उसके मुंह से सुनना चाहता है लेकिन अपने भाई से यह बात कहने में उसे शर्म महसूस हो रही थी इसलिए वह बोली)
तुम चलो तो भाई,,,, मुझसे रहा नहीं जा रहा है,,,,।
(ऐसा कहते हुए वह पेशाब की तीव्रता को रोक नहीं पा रही थी और उसे किसी भी तरह रोकने की कोशिश करते हुए अपने पैर के पंजों पर खड़ी हो जा रही थी उसकी हालत को देखकर सूरज मुस्कुराने लगा और बोला)
अच्छा तो तुझे पेशाब लगी है तो ठीक से कहती क्यों नहीं इसमें शर्माने वाली कौन सी बात है,,,, चल मैं भी चलता हूं,,,(मन ही मन में खुश होते हुए सूरज आगे आगे चलने लगा और पीछे-पीछे रानी दोनों थोड़ी देर में घर के बाहर निकल गए)