- 15,898
- 40,805
- 259
सुबह जब सूरज की नींद खुली तो उसके चेहरे पर एक अलग ही मुस्कान तैर रही थी,,,, क्योंकि अब उसे पूरा यकीन हो गया था कि उसकी मां भी उसके लिए तड़प रही है यह एक अच्छी शुरुआत थी अब उसे लगने लगा था कि उसकी मां जल्द ही उसकी बाहों में आने वाली है और जल्द ही उसके नीचे आने वाली है क्योंकि धीरे-धीरे उसकी मां की तड़प बढ़ रही थी जैसे-जैसे पति का वियोग उसके मन में घर कर रहा था वैसे-वैसे मर्द के लिए उसकी तरफ बढ़ती जा रही थी और वह मर्द कोई और नहीं था बल्कि वह खुद था इस बात का एहसास उसके तन बदन में एक अलग ही उत्तेजना का संचार भर रही थी। जिसे वह दिलो जान से चाहता था जिसे पाने के लिए रोज नए तरकट रचता था,,, अब वह दिन ज्यादा दूर नहीं था जब उसकी मंशा पूरी होने वाली थी वह अपनी मां के बारे में सोच करना जाने कितनी बार अपने हाथ से हिला कर काम चलाया था लेकिन वह अच्छी तरह से जानता था कि जिस तरह से उसकी मां की बेलगाम जवानी है उसे पूरी तरह से भोगने में ही असली सुख प्राप्त होगा। खाली ख्यालों में अपनी मां के बारे में सोच कर हाथ से हिला कर अब कोई फायदा नहीं था।

सूरज नींद से जागकर अपनी खटिया पर बैठ गया था तभी उसे रात वाली घटना याद आने लगी जब वह सोनू के घर गया था,,, सोनू के घर तो वह किसी और काम के लिए गया था किसी और से मिलने की चाह में गया था लेकिन वहां पहुंचने पर कुछ और ही हो गया थाऔर रात वाली घटना याद आते ही अपने आप ही उसके चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी क्योंकि उसे लगने लगा था कि अब एक और चिड़िया उसकी जाल में पूरी तरह से फंस चुकी है वह कभी सोचा नहीं था कि सोनू की मां उसके लंड को देखकर पागल हो जाएगी और जो कुछ भी हुआ था जाने में हुआ था वह तो पेशाब करने के लिए उसके घर के पीछे चला गया था लेकिन उसे नहीं मालूम था कि वही थोड़ी दूर पर सोनू की मां बैठकर सोच कर रही थी और उसे पेशाब करते हुए देख रही थी सोनू इस बात से ज्यादा खुश था कि उस समय अच्छा हुआ कि उसका लंड पूरी तरह से अपनी औकात में आकर खड़ा था और खड़े लंड को देखकर ही सोनू की मां का ईमान डोल गया था,, पहले तो वह सोनू की मां को देखकर एकदम से घबरा गया था और अपने मन में सोच रहा था कि का सोनू की मां की जगह सोनू की चाची होती तो मजा आ जाता लेकिन फिर भी जिस तरह से उसने एकदम से उसके लंड पर हाथ रख दी थी सूरज के तन बदन में मदहोशी का रस घुलने लगा था और उसे यकीन हो गया था कि एक और चिड़िया उसके जाल में फंस गई है अगर सही समय पर सोनू वहां ना आ गया होता तो शायद बात और कुछ आगे बढ़ जाती।

सूरज के मन में अब सोनू की चाची के साथ-साथ सोनू की मां का भी ख्याल घूमने लगा था। सूरज अपने कमरे से बाहर निकल आया था और आंगन में रानी झाड़ू लगा रही थी उसकी गोलाकार गांड को देखकर सूरज मुस्कुराने लगा क्योंकि रात भर उसने जमकर उसकी लिया था और वह रोज ही लेता था लेकिन हर एक बार उसे नया ही एहसास प्राप्त होता था पास में ही पानी से भर लोटा उठाकर वह पानी पीने लगा और पानी पीने के बाद दोबारा रानी से बोला,,,
मां कहां गई,,,,,?
बाहर ही होगी बाहर झाड़ू लगा रही थी,,,
ठीक है,,,,(इतना कहकर सूरज लोटा वही नीचे रख दिया और घर के बाहर आ गया लेकिन बाहर उसकी मां कहीं दिखाई नहीं दे रही थी,,,, सोनू अच्छी तरह से जानता था कि बाजार जाते समय जिस तरह से उसने अपने पिताजी का जिक्र किया था और यह भी कहा था कि हो सकता है कि उसके पिताजी का किसी दूसरी औरत के साथ चक्कर चल रहा हो इस बात को सुनकर उसकी मां के चेहरे पर जिस तरह की क्रोध की भावना आई थी वह सूरज के लिए आशा की किरण थी और इसीलिए वह अपने पिताजी के चरित्र को अपनी मां के सामने पूरी तरह से गिरा देना चाहता था ताकि उसकी मां के मन में उसके लिए जगह बन सके वह घर के बाहर खड़ा होकर इधर-उधर देखने लगा तो कहीं भी उसकी मां उसे नजर नहीं आई और उसे बड़े जोरों की पेशाब भी लगी हुई थी इसलिए वह धीरे से घर के पीछे की तरफ जाने लगा,,,,, और जैसे ही घर के पीछे पहुंचा तो आंखों के सामने झाड़ियों के बीच का नजारा देखकर एक बार फिर से उसके पजामे में हरकत होने लगी क्योंकि झाड़ियों में उसकी मां बैठकर पेशाब कर रही थी लेकिन उसे अहसास तक नहीं हुआ था कि पीछे उसका बेटा आ चुका था,,,, अपनी मां की नंगी गांड देखकर उसकी उत्तेजना फिर से चरम शिखर पर पहुंच चुकी थी वह झाड़ियां के बीच बैठी थी उसकी साड़ी कमर तक उठी हुई थी और उसकी बुर से सिटी की आवाज एकदम साफ तौर पर उसके कानों में पड़ रही थी जिसकी मधुर ध्वनि सुनकर उसकी उत्तेजना और भी ज्यादा बढ़ रही थी। अपनी मां को पेशाब करता हुआ देखकर उसके मन में कुछ और सुझने लगा और वह तुरंत दबे पांव पीछे आने लगा और अपने घर के घूम कर दूसरी तरफ से जाने लगा क्योंकि अब वह कुछ और करने के फिराक में था।

दूसरी तरफ से घर के पीछे आने मेंउसे बिल्कुल भी समय नहीं लगा हुआ तुरंत घर के पीछे पहुंच चुका था और झाड़ियों के पास पहुंच चुका था,,,, उसने देख लिया था कि उसकी मां अभी भी बैठकर पेशाब कर रही थी और वह सीधा वहीं पर पहुंच चुका था जहां पर उसकी मां झाड़ियां में बैठकर पेशाब कर रही थी और वह झाड़ियों की दूसरी तरफ था उसे अच्छी तरह से मालूम था कि उसकी मां की नजर उसके ऊपर जरूर पड़ेगी वह घनी झाड़ियां के बीच खड़ा हो गया था झाड़ियां इतनी घनी थी की झाड़ियां के पीछे बहुत ध्यान देने पर ही दिखाई देता था और इसी का फायदा उठाते हुए वह ठीक अपनी मां के सामने तकरीबन डेढ़ मीटर की दूरी पर खड़ा हो चुका था और जैसा वह अपने मन में सोच रहा था वैसा ही हुआ सुनैना को भी उसका बेटा झाड़ियां के बीच दूसरी तरफ खड़ा दिखाई दिया तो उसके दिल की धड़कन बढ़ने लगी क्योंकि वह अपने कुर्ते को ऊपर करके अपने पजामे को नीचे करने जा रहा था। और यह एहसास होते ही की उसका बेटा पेशाब करने वाला है और कुछ ही क्षण में उसे उसके बेटे का लंबा मोटा लंड एकदम पास से देखने को मिलेगा इस बात की खुशी से उसकी बुर उत्तेजना के मारे फूलने पिचकने लगी,,,, सुनैना का दिल जोरो से धड़कने लगा अब सूरज अपनी मां को देखने की बिल्कुल भी कोशिश नहीं कर रहा था क्योंकि वह जानता था कि अब उसकी मां उसे देखने की पूरी कोशिश करेगी और उसे इस बात की खुशी थी कि उसकी मां अभी भी अपनी जगह पर ही बैठी हुई थी।
अगले ही पल सूरज अपने पजामे को नीचे करके अपने टनटनाए लंड को बाहर निकाल लिया जोकी उसकी मां की वजह से ही उसका लंड पूरी तरह से अपनी औकात में आकर खड़ा था,,, अगले ही पल सूरज अपने लंड को हाथ में पकड़ कर ही जाते हुए पेशाब करना शुरू कर दिया था और यह देखकर सुनैना का दिल एकदम से धड़कना बंद कर दिया था वह आंखें फाड़े अपने बेटे के लंड को बेहद करीब से देख रही थी,,,, उस दिन तो दोनों के बीच थोड़ी दूरी थी लेकिन आज ठीक आमने-सामने दोनों थे झाड़ियों के उस पार उसकी मां बैठकर पेशाब कर रही थी और झाड़ी के इस पार सूरज खड़ा होकर पेशाब कर रहा था,,,,, सूरज को तो उसकी मां की बुरे नहीं दिखाई दे रही थी लेकिन उसकी मां को उसके बेटे का लंड एकदम साफ दिखाई दे रहा था अपने बेटे के लंड से निकलने वाली पेशाब की धार को देखकर उसकी बुर पनीया रही थी,,,, सूरज जानबूझकर अपने लंड को ऊपर नीचे करके हिला रहा था वह अपनी मां को दिखा रहा था कि उसका मर्दाना अंग कितना जानदार और शानदार है जो एक बार अगर वह अपनी बुर में ले लेगी तो महीनो की प्यास एक ही बार में बुझ जाएगी,,,, ऐसा करते हुए सूरज की भी हालात पूरी तरह से खराब हो रही थी क्योंकि वह अपने सपनों की रानी की आंखों के सामने अपने लंड को हिला रहा था जिसकी बुर में वह अपना लंड डालना चाहता था जिसे अपनी बाहों में भरकर जोर-जोर से अपनी कमर हिला कर अपने मन की तड़प बुझाना चाहता था।
दूसरी तरफ सुनैना की हालत एकदम खराब होती जा रही थी अपने बेटे के लंड को वह ललचाई आंखों से देख रही थी उसकी बुर से पेशाब निकलना बंद हो चुका था लेकिन फिर भी वह बैठी हुई थी अपने बेटे के लंड को देखकर मदहोश हो रही थी,,, सूरज यह हरकत जानबूझकर किया था लेकिन सुनैना को ऐसा ही लग रहा था कि जो कुछ भी हो रहा है वह अनजाने में हो रहा है वह पेशाब करने के लिए झाड़ियां में खाना है उसे क्या मालूम कि उसकी मां ठीक उसके सामने बैठी है ,,,,,, सुनैना बड़ी मासूमियत से यह सोच रही थी जबकि उसे इस बात की भनक तक नहीं थी कि इसी मौके का फायदा उठाकर उसका बेटा उसकी आंखों के सामने पेशाब करने के बहाने उसे अपने लंड के दर्शन करा रहा है और अनजान बनने की कोशिश कर रहा है। अपनी मां की तड़प और ज्यादा बढ़ाने के उद्देश्य से सूरज अपने लंड को अपनी मुट्ठी में भर लिया, और मुठीयाना शुरू कर दिया,,,, लंड को हाथ में पकड़ कर पेशाब करना और मुट्ठी में भरकर मथियाना दोनों अलग-अलग क्रिया है इस बात को सुनैना अच्छी तरह से समझती थी,,,, लंड को हाथ में पकड़ कर पेशाब करना साहजिक होता है लेकिन लंड को मुठ्ठी में भर कर मुठीयाना यह मर्दों की उत्तेजना को दर्शाता है और इस समय सुनैना अच्छी तरह से समझ रही थी कि उसका बेटा पूरी तरह से मस्त हो चुका था ना जाने किस ख्यालों में खोया हुआ था कि उसका लंड पूरी तरह से अपनी औकात में आकर खड़ा था,,,,।
सूरज जानबूझकर अपनी मां की उत्तेजना को उसकी तरफ को बढ़ा रहा था उसे अच्छी तरह से मालूम था कि उसकी मां उसके लंड के लिए तड़प रही थी रात को ही उसे इस बात का एहसास हुआ था जब उसकी मां उसका नाम लेकर अपनी बुर में उंगली अंदर बाहर कर रही थी। सूरज अपनी मां की तड़प को बढ़ा रहा था सुनैना को अपने बेटे के लंड का मोटा सुपाड़ा एकदम साफ दिखाई दे रहा था जब जब वह उत्तेजना से उसे मुठीयाता तो उसका सुपाड़ा पूरी तरह से ढंक जाता और फिर पीछे हथेली लेने पर फिर से खुल जाता यह नजारा देखकर तो सुनैना की बुर पानी फेंक रही थी,,, अपनी आंखों के सामने इस तरह का उत्तेजना से भरा हुआ मदहोश कर देने वाला नजारा देखकर सुनैना का ईमान डोल रहा था। और अपने आप ही उसकी हथेली उसकी बुर पर पहुंच गई थी जिसे वह हल्के हल्के मसल रही थी। लेकिन यह नजारा ज्यादा देर तक देख पाना शायद इस समय सुनैना की किस्मत में नहीं था क्योंकि सूरज पेशाब कर चुका था और अपनी मां की तड़प को और ज्यादा बढ़ाने के लिए उसकी उत्सुकता को ज्यादा बढ़ाने के लिए वह तुरंत अपने पजामे को ऊपर चढ़ा लिया और वहां से चलता बना,,,, सुनैना केतन बदन में उत्तेजना का तूफान उठ रहा था वह धीरे से अपनी एक उंगली को बैठी अवस्था में ही अपनी बुर में डालकर और उसे अंदर बाहर करने लगी ताकि उसकी जवानी की गर्मी शांत हो सके और थोड़ी देर में अपनी जवानी की गर्मी शांत करने के बाद वह फिर से घर में आ गई,,,,।
थोड़ी देर बाद सूरज भी घर पहुंच गया,,और देखा तो उसकी मां सब्जी काट रही थी,,,, वहां रानी मौजूद नहीं थी और यही सही समय था अपनी मां से बात करने का,,,, वह तुरंत अपनी मां के पास गया और बोला।
कहां चली गई थी मां में कब से तुम्हें ढूंढ रहा था,,,,,
(अपने बेटे की तरफ देख कर उसकी आंखों के सामने उसका खड़ा लंड लहराने लगा और वह एकदम से अपनी नजर को नीचे झुका ली और बोली,,,,)
यही तो थी मैं कहां चली गई थी। (सब्जी काटते हुए सुनैना बोली,,,)
यहां तो तुम बिल्कुल नहीं थी कब से तो तुम्हें ढूंढ रहा था,,,
हां बस ऐसे ही पड़ोस में चली गई थी।
(अपनी मां की बात सुनकर सूरज अपनी मम्मी ने बोला कितना झूठ बोल रही है कितने मजे लेकर मेरा लंड देख रही थी,,, तभी वह अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,) लेकिन तू क्यों मुझे ढूंढ रहा था।
तुमसे एक काम था,,,
मुझसे लेकिन मुझसे क्या काम था,,,,,।
(इतना कहना था कि तभी रानी वहां पर आ गई और सूरज अपने मन की बात अपनी मां को नहीं बता पाया,,,, रानी के वहां पहुंच जाने पर सुनैना भी कुछ पूछ नहीं पाई उसके दिमाग से वह बात ही निकल गई और वह खाना बनाने में व्यस्त हो गई,,, थोड़ी देर में मां बेटे दोनों खेत में कटाई करने के लिए निकल गए और वैसे भी अब खेत में ज्यादा काम नहीं रह गया था दो-तीन दिन का काम और बचा था,,,, काम करते समय सुनैना की आंखों के सामने बार-बार उसके बेटे का खड़ा लंड लहराने लगता था,,,, वह कभी सपने में भी नहीं सोची थी कि इतना मोटा और लंबा लंड भी किसी का हो सकता है और किसी का क्यों उसके बेटे का ही,,, और इस बात से वह गर्म महसूस करने लगी थी कि उसके घर में पूरा मर्द मौजूद है जो किसी भी औरत की प्यास बुझा सकता है। सुनैना कटाई करते समय अपने बेटे के बारे में ही सोचती रह गई और सूरज बाजार से लाई हुई चूड़ियां अपनी मां को अपने हाथ से पहनाना चाहता था लेकिन मौका नहीं मिल पा रहा था।
दोपहर हो चुकी थी मां बेटे दोनों पेड़ के नीचे बैठकर खाना खा रहे थे और खाना खाते समय सूरज अपनी मां से बोला,,,,।
तुम्हारा हाथ खाली खाली अच्छा नहीं लगता,,,,।
ऐसा क्यों,,,?
जब तक तुम्हारे चूड़ियों की खनकने की आवाज नहीं आती तब तक कुछ अच्छा नहीं लगता,,,।
(अपने बेटे की बात सुनकर सुनैना शर्मा गई लेकिन कुछ बोल नहीं पाई बस शर्म से अपनी नज़रें नीचे झुका कर रोटी और सब्जी मुंह में भरकर चबाती रही धीरे से अपने बेटे को जवाब देते हुए बोली,,,)
अब इसमें मैं क्या कर सकती हूं काम करते-करते चूड़ियां टूट जाती है,,, और फिर चूड़ियां खरीदने का पैसा भी तो नहीं है।
इसीलिए तो,,,,
क्या इसीलिए तो,,,, (हैरानी से सूरज की तरफ देखते हुए सुनैना बोली)
मैं कह रहा हूं कि इसीलिए तो मैं तुम्हारे लिए कल बाजार से चूड़ियां खरीदा था,,,, (इतना कहने के साथ ही सूरज अंदर झोपड़ी में गया और अंदर से चूड़ियां ले आया जिसे वह खेत में काम करने से पहले अंदर रख दिया था ताकि चूड़ियां टूटे ना और चूड़ियां ला करके अपनी मां के सामने बैठ गया और उसे चूड़ियां दिखाने लगा लाल हरी चूड़ियां देखकर उसकी मां की आंखों में चमक आ गई वह खुश होने लगी,,, और बोली,,)
तूने कब खरीद लिया और तेरे पास पैसे आए कहां से,,?
क्यों मैं कमाने नहीं लगा मैं बहुत दिनों से देख रहा था तुम्हारे कलाइयों को एकदम सुनी थी मुझे अच्छा नहीं लग रहा था इसलिए मैंने कुछ पैसे बचा कर कल बाजार से खरीद लिए,,,।
ओहहह तू मेरा कितना ख्याल लगता है सच में तेरे बाबूजी मेरा बिल्कुल ऐसा ही ख्याल रखते थे। लेकिन न जाने किसकी नजर लग गई।
वह सब छोड़ो,,,,, जल्दी से जो हाथ धोकर आओ मैं तुम्हें चूड़ियां पहना देता हूं,,,,।
अरे नहीं घर पर मैंपहन लूंगी,,,, (एकदम से शरमाते हुए सुनैना बोली)
नहीं नहीं जाओ जल्दी से हाथ धोकर आओ मैं पहन देता हूं इसलिए तो खरीद कर लाया हूं ताकि मैं अपने हाथ से तुम्हें चूड़ी पहना सकूं,,,,,।
(अपने बेटे की जीद देखकर सुनैना कीर्तन बदन में अजीब सी लहर उठने लगी क्योंकि जिस तरह की वाजिद कर रहा था उस तरह की जीद सुनैना का पति ही करता था इसलिए अपने बेटे की जीद देखकर वह शर्म से पानी पानी हो रही थी लेकिन वह कुछ कर भी नहीं पाई और धीरे से अपने हाथ धोने लगी उसका दिल जोरो से धड़क रहा था अपने बेटे के हाथों से चूड़ी पहनने के एहसास से ही उसकी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार में न जाने कैसी हलचल हो रही थी)

सूरज नींद से जागकर अपनी खटिया पर बैठ गया था तभी उसे रात वाली घटना याद आने लगी जब वह सोनू के घर गया था,,, सोनू के घर तो वह किसी और काम के लिए गया था किसी और से मिलने की चाह में गया था लेकिन वहां पहुंचने पर कुछ और ही हो गया थाऔर रात वाली घटना याद आते ही अपने आप ही उसके चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी क्योंकि उसे लगने लगा था कि अब एक और चिड़िया उसकी जाल में पूरी तरह से फंस चुकी है वह कभी सोचा नहीं था कि सोनू की मां उसके लंड को देखकर पागल हो जाएगी और जो कुछ भी हुआ था जाने में हुआ था वह तो पेशाब करने के लिए उसके घर के पीछे चला गया था लेकिन उसे नहीं मालूम था कि वही थोड़ी दूर पर सोनू की मां बैठकर सोच कर रही थी और उसे पेशाब करते हुए देख रही थी सोनू इस बात से ज्यादा खुश था कि उस समय अच्छा हुआ कि उसका लंड पूरी तरह से अपनी औकात में आकर खड़ा था और खड़े लंड को देखकर ही सोनू की मां का ईमान डोल गया था,, पहले तो वह सोनू की मां को देखकर एकदम से घबरा गया था और अपने मन में सोच रहा था कि का सोनू की मां की जगह सोनू की चाची होती तो मजा आ जाता लेकिन फिर भी जिस तरह से उसने एकदम से उसके लंड पर हाथ रख दी थी सूरज के तन बदन में मदहोशी का रस घुलने लगा था और उसे यकीन हो गया था कि एक और चिड़िया उसके जाल में फंस गई है अगर सही समय पर सोनू वहां ना आ गया होता तो शायद बात और कुछ आगे बढ़ जाती।

सूरज के मन में अब सोनू की चाची के साथ-साथ सोनू की मां का भी ख्याल घूमने लगा था। सूरज अपने कमरे से बाहर निकल आया था और आंगन में रानी झाड़ू लगा रही थी उसकी गोलाकार गांड को देखकर सूरज मुस्कुराने लगा क्योंकि रात भर उसने जमकर उसकी लिया था और वह रोज ही लेता था लेकिन हर एक बार उसे नया ही एहसास प्राप्त होता था पास में ही पानी से भर लोटा उठाकर वह पानी पीने लगा और पानी पीने के बाद दोबारा रानी से बोला,,,
मां कहां गई,,,,,?
बाहर ही होगी बाहर झाड़ू लगा रही थी,,,
ठीक है,,,,(इतना कहकर सूरज लोटा वही नीचे रख दिया और घर के बाहर आ गया लेकिन बाहर उसकी मां कहीं दिखाई नहीं दे रही थी,,,, सोनू अच्छी तरह से जानता था कि बाजार जाते समय जिस तरह से उसने अपने पिताजी का जिक्र किया था और यह भी कहा था कि हो सकता है कि उसके पिताजी का किसी दूसरी औरत के साथ चक्कर चल रहा हो इस बात को सुनकर उसकी मां के चेहरे पर जिस तरह की क्रोध की भावना आई थी वह सूरज के लिए आशा की किरण थी और इसीलिए वह अपने पिताजी के चरित्र को अपनी मां के सामने पूरी तरह से गिरा देना चाहता था ताकि उसकी मां के मन में उसके लिए जगह बन सके वह घर के बाहर खड़ा होकर इधर-उधर देखने लगा तो कहीं भी उसकी मां उसे नजर नहीं आई और उसे बड़े जोरों की पेशाब भी लगी हुई थी इसलिए वह धीरे से घर के पीछे की तरफ जाने लगा,,,,, और जैसे ही घर के पीछे पहुंचा तो आंखों के सामने झाड़ियों के बीच का नजारा देखकर एक बार फिर से उसके पजामे में हरकत होने लगी क्योंकि झाड़ियों में उसकी मां बैठकर पेशाब कर रही थी लेकिन उसे अहसास तक नहीं हुआ था कि पीछे उसका बेटा आ चुका था,,,, अपनी मां की नंगी गांड देखकर उसकी उत्तेजना फिर से चरम शिखर पर पहुंच चुकी थी वह झाड़ियां के बीच बैठी थी उसकी साड़ी कमर तक उठी हुई थी और उसकी बुर से सिटी की आवाज एकदम साफ तौर पर उसके कानों में पड़ रही थी जिसकी मधुर ध्वनि सुनकर उसकी उत्तेजना और भी ज्यादा बढ़ रही थी। अपनी मां को पेशाब करता हुआ देखकर उसके मन में कुछ और सुझने लगा और वह तुरंत दबे पांव पीछे आने लगा और अपने घर के घूम कर दूसरी तरफ से जाने लगा क्योंकि अब वह कुछ और करने के फिराक में था।

दूसरी तरफ से घर के पीछे आने मेंउसे बिल्कुल भी समय नहीं लगा हुआ तुरंत घर के पीछे पहुंच चुका था और झाड़ियों के पास पहुंच चुका था,,,, उसने देख लिया था कि उसकी मां अभी भी बैठकर पेशाब कर रही थी और वह सीधा वहीं पर पहुंच चुका था जहां पर उसकी मां झाड़ियां में बैठकर पेशाब कर रही थी और वह झाड़ियों की दूसरी तरफ था उसे अच्छी तरह से मालूम था कि उसकी मां की नजर उसके ऊपर जरूर पड़ेगी वह घनी झाड़ियां के बीच खड़ा हो गया था झाड़ियां इतनी घनी थी की झाड़ियां के पीछे बहुत ध्यान देने पर ही दिखाई देता था और इसी का फायदा उठाते हुए वह ठीक अपनी मां के सामने तकरीबन डेढ़ मीटर की दूरी पर खड़ा हो चुका था और जैसा वह अपने मन में सोच रहा था वैसा ही हुआ सुनैना को भी उसका बेटा झाड़ियां के बीच दूसरी तरफ खड़ा दिखाई दिया तो उसके दिल की धड़कन बढ़ने लगी क्योंकि वह अपने कुर्ते को ऊपर करके अपने पजामे को नीचे करने जा रहा था। और यह एहसास होते ही की उसका बेटा पेशाब करने वाला है और कुछ ही क्षण में उसे उसके बेटे का लंबा मोटा लंड एकदम पास से देखने को मिलेगा इस बात की खुशी से उसकी बुर उत्तेजना के मारे फूलने पिचकने लगी,,,, सुनैना का दिल जोरो से धड़कने लगा अब सूरज अपनी मां को देखने की बिल्कुल भी कोशिश नहीं कर रहा था क्योंकि वह जानता था कि अब उसकी मां उसे देखने की पूरी कोशिश करेगी और उसे इस बात की खुशी थी कि उसकी मां अभी भी अपनी जगह पर ही बैठी हुई थी।
अगले ही पल सूरज अपने पजामे को नीचे करके अपने टनटनाए लंड को बाहर निकाल लिया जोकी उसकी मां की वजह से ही उसका लंड पूरी तरह से अपनी औकात में आकर खड़ा था,,, अगले ही पल सूरज अपने लंड को हाथ में पकड़ कर ही जाते हुए पेशाब करना शुरू कर दिया था और यह देखकर सुनैना का दिल एकदम से धड़कना बंद कर दिया था वह आंखें फाड़े अपने बेटे के लंड को बेहद करीब से देख रही थी,,,, उस दिन तो दोनों के बीच थोड़ी दूरी थी लेकिन आज ठीक आमने-सामने दोनों थे झाड़ियों के उस पार उसकी मां बैठकर पेशाब कर रही थी और झाड़ी के इस पार सूरज खड़ा होकर पेशाब कर रहा था,,,,, सूरज को तो उसकी मां की बुरे नहीं दिखाई दे रही थी लेकिन उसकी मां को उसके बेटे का लंड एकदम साफ दिखाई दे रहा था अपने बेटे के लंड से निकलने वाली पेशाब की धार को देखकर उसकी बुर पनीया रही थी,,,, सूरज जानबूझकर अपने लंड को ऊपर नीचे करके हिला रहा था वह अपनी मां को दिखा रहा था कि उसका मर्दाना अंग कितना जानदार और शानदार है जो एक बार अगर वह अपनी बुर में ले लेगी तो महीनो की प्यास एक ही बार में बुझ जाएगी,,,, ऐसा करते हुए सूरज की भी हालात पूरी तरह से खराब हो रही थी क्योंकि वह अपने सपनों की रानी की आंखों के सामने अपने लंड को हिला रहा था जिसकी बुर में वह अपना लंड डालना चाहता था जिसे अपनी बाहों में भरकर जोर-जोर से अपनी कमर हिला कर अपने मन की तड़प बुझाना चाहता था।
दूसरी तरफ सुनैना की हालत एकदम खराब होती जा रही थी अपने बेटे के लंड को वह ललचाई आंखों से देख रही थी उसकी बुर से पेशाब निकलना बंद हो चुका था लेकिन फिर भी वह बैठी हुई थी अपने बेटे के लंड को देखकर मदहोश हो रही थी,,, सूरज यह हरकत जानबूझकर किया था लेकिन सुनैना को ऐसा ही लग रहा था कि जो कुछ भी हो रहा है वह अनजाने में हो रहा है वह पेशाब करने के लिए झाड़ियां में खाना है उसे क्या मालूम कि उसकी मां ठीक उसके सामने बैठी है ,,,,,, सुनैना बड़ी मासूमियत से यह सोच रही थी जबकि उसे इस बात की भनक तक नहीं थी कि इसी मौके का फायदा उठाकर उसका बेटा उसकी आंखों के सामने पेशाब करने के बहाने उसे अपने लंड के दर्शन करा रहा है और अनजान बनने की कोशिश कर रहा है। अपनी मां की तड़प और ज्यादा बढ़ाने के उद्देश्य से सूरज अपने लंड को अपनी मुट्ठी में भर लिया, और मुठीयाना शुरू कर दिया,,,, लंड को हाथ में पकड़ कर पेशाब करना और मुट्ठी में भरकर मथियाना दोनों अलग-अलग क्रिया है इस बात को सुनैना अच्छी तरह से समझती थी,,,, लंड को हाथ में पकड़ कर पेशाब करना साहजिक होता है लेकिन लंड को मुठ्ठी में भर कर मुठीयाना यह मर्दों की उत्तेजना को दर्शाता है और इस समय सुनैना अच्छी तरह से समझ रही थी कि उसका बेटा पूरी तरह से मस्त हो चुका था ना जाने किस ख्यालों में खोया हुआ था कि उसका लंड पूरी तरह से अपनी औकात में आकर खड़ा था,,,,।
सूरज जानबूझकर अपनी मां की उत्तेजना को उसकी तरफ को बढ़ा रहा था उसे अच्छी तरह से मालूम था कि उसकी मां उसके लंड के लिए तड़प रही थी रात को ही उसे इस बात का एहसास हुआ था जब उसकी मां उसका नाम लेकर अपनी बुर में उंगली अंदर बाहर कर रही थी। सूरज अपनी मां की तड़प को बढ़ा रहा था सुनैना को अपने बेटे के लंड का मोटा सुपाड़ा एकदम साफ दिखाई दे रहा था जब जब वह उत्तेजना से उसे मुठीयाता तो उसका सुपाड़ा पूरी तरह से ढंक जाता और फिर पीछे हथेली लेने पर फिर से खुल जाता यह नजारा देखकर तो सुनैना की बुर पानी फेंक रही थी,,, अपनी आंखों के सामने इस तरह का उत्तेजना से भरा हुआ मदहोश कर देने वाला नजारा देखकर सुनैना का ईमान डोल रहा था। और अपने आप ही उसकी हथेली उसकी बुर पर पहुंच गई थी जिसे वह हल्के हल्के मसल रही थी। लेकिन यह नजारा ज्यादा देर तक देख पाना शायद इस समय सुनैना की किस्मत में नहीं था क्योंकि सूरज पेशाब कर चुका था और अपनी मां की तड़प को और ज्यादा बढ़ाने के लिए उसकी उत्सुकता को ज्यादा बढ़ाने के लिए वह तुरंत अपने पजामे को ऊपर चढ़ा लिया और वहां से चलता बना,,,, सुनैना केतन बदन में उत्तेजना का तूफान उठ रहा था वह धीरे से अपनी एक उंगली को बैठी अवस्था में ही अपनी बुर में डालकर और उसे अंदर बाहर करने लगी ताकि उसकी जवानी की गर्मी शांत हो सके और थोड़ी देर में अपनी जवानी की गर्मी शांत करने के बाद वह फिर से घर में आ गई,,,,।
थोड़ी देर बाद सूरज भी घर पहुंच गया,,और देखा तो उसकी मां सब्जी काट रही थी,,,, वहां रानी मौजूद नहीं थी और यही सही समय था अपनी मां से बात करने का,,,, वह तुरंत अपनी मां के पास गया और बोला।
कहां चली गई थी मां में कब से तुम्हें ढूंढ रहा था,,,,,
(अपने बेटे की तरफ देख कर उसकी आंखों के सामने उसका खड़ा लंड लहराने लगा और वह एकदम से अपनी नजर को नीचे झुका ली और बोली,,,,)
यही तो थी मैं कहां चली गई थी। (सब्जी काटते हुए सुनैना बोली,,,)
यहां तो तुम बिल्कुल नहीं थी कब से तो तुम्हें ढूंढ रहा था,,,
हां बस ऐसे ही पड़ोस में चली गई थी।
(अपनी मां की बात सुनकर सूरज अपनी मम्मी ने बोला कितना झूठ बोल रही है कितने मजे लेकर मेरा लंड देख रही थी,,, तभी वह अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,) लेकिन तू क्यों मुझे ढूंढ रहा था।
तुमसे एक काम था,,,
मुझसे लेकिन मुझसे क्या काम था,,,,,।
(इतना कहना था कि तभी रानी वहां पर आ गई और सूरज अपने मन की बात अपनी मां को नहीं बता पाया,,,, रानी के वहां पहुंच जाने पर सुनैना भी कुछ पूछ नहीं पाई उसके दिमाग से वह बात ही निकल गई और वह खाना बनाने में व्यस्त हो गई,,, थोड़ी देर में मां बेटे दोनों खेत में कटाई करने के लिए निकल गए और वैसे भी अब खेत में ज्यादा काम नहीं रह गया था दो-तीन दिन का काम और बचा था,,,, काम करते समय सुनैना की आंखों के सामने बार-बार उसके बेटे का खड़ा लंड लहराने लगता था,,,, वह कभी सपने में भी नहीं सोची थी कि इतना मोटा और लंबा लंड भी किसी का हो सकता है और किसी का क्यों उसके बेटे का ही,,, और इस बात से वह गर्म महसूस करने लगी थी कि उसके घर में पूरा मर्द मौजूद है जो किसी भी औरत की प्यास बुझा सकता है। सुनैना कटाई करते समय अपने बेटे के बारे में ही सोचती रह गई और सूरज बाजार से लाई हुई चूड़ियां अपनी मां को अपने हाथ से पहनाना चाहता था लेकिन मौका नहीं मिल पा रहा था।
दोपहर हो चुकी थी मां बेटे दोनों पेड़ के नीचे बैठकर खाना खा रहे थे और खाना खाते समय सूरज अपनी मां से बोला,,,,।
तुम्हारा हाथ खाली खाली अच्छा नहीं लगता,,,,।
ऐसा क्यों,,,?
जब तक तुम्हारे चूड़ियों की खनकने की आवाज नहीं आती तब तक कुछ अच्छा नहीं लगता,,,।
(अपने बेटे की बात सुनकर सुनैना शर्मा गई लेकिन कुछ बोल नहीं पाई बस शर्म से अपनी नज़रें नीचे झुका कर रोटी और सब्जी मुंह में भरकर चबाती रही धीरे से अपने बेटे को जवाब देते हुए बोली,,,)
अब इसमें मैं क्या कर सकती हूं काम करते-करते चूड़ियां टूट जाती है,,, और फिर चूड़ियां खरीदने का पैसा भी तो नहीं है।
इसीलिए तो,,,,
क्या इसीलिए तो,,,, (हैरानी से सूरज की तरफ देखते हुए सुनैना बोली)
मैं कह रहा हूं कि इसीलिए तो मैं तुम्हारे लिए कल बाजार से चूड़ियां खरीदा था,,,, (इतना कहने के साथ ही सूरज अंदर झोपड़ी में गया और अंदर से चूड़ियां ले आया जिसे वह खेत में काम करने से पहले अंदर रख दिया था ताकि चूड़ियां टूटे ना और चूड़ियां ला करके अपनी मां के सामने बैठ गया और उसे चूड़ियां दिखाने लगा लाल हरी चूड़ियां देखकर उसकी मां की आंखों में चमक आ गई वह खुश होने लगी,,, और बोली,,)
तूने कब खरीद लिया और तेरे पास पैसे आए कहां से,,?
क्यों मैं कमाने नहीं लगा मैं बहुत दिनों से देख रहा था तुम्हारे कलाइयों को एकदम सुनी थी मुझे अच्छा नहीं लग रहा था इसलिए मैंने कुछ पैसे बचा कर कल बाजार से खरीद लिए,,,।
ओहहह तू मेरा कितना ख्याल लगता है सच में तेरे बाबूजी मेरा बिल्कुल ऐसा ही ख्याल रखते थे। लेकिन न जाने किसकी नजर लग गई।
वह सब छोड़ो,,,,, जल्दी से जो हाथ धोकर आओ मैं तुम्हें चूड़ियां पहना देता हूं,,,,।
अरे नहीं घर पर मैंपहन लूंगी,,,, (एकदम से शरमाते हुए सुनैना बोली)
नहीं नहीं जाओ जल्दी से हाथ धोकर आओ मैं पहन देता हूं इसलिए तो खरीद कर लाया हूं ताकि मैं अपने हाथ से तुम्हें चूड़ी पहना सकूं,,,,,।
(अपने बेटे की जीद देखकर सुनैना कीर्तन बदन में अजीब सी लहर उठने लगी क्योंकि जिस तरह की वाजिद कर रहा था उस तरह की जीद सुनैना का पति ही करता था इसलिए अपने बेटे की जीद देखकर वह शर्म से पानी पानी हो रही थी लेकिन वह कुछ कर भी नहीं पाई और धीरे से अपने हाथ धोने लगी उसका दिल जोरो से धड़क रहा था अपने बेटे के हाथों से चूड़ी पहनने के एहसास से ही उसकी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार में न जाने कैसी हलचल हो रही थी)
Last edited:








