• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery दिलवाले

park

Well-Known Member
13,164
15,529
228
#36

“तुम्हारी ये बात तुम्हारी ही तरह खोखली है ” मैंने कहा

भाभी- हमारे रस्ते भी अब अलग है कबीर, बहुत मुश्किल से मैंने संभाला है टूटे घर को और नहीं बिखरनी चाहिए ये जिन्दगी

मैं- रस्ते तो बरसो पहले अलग हो गए थे रिश्तो में अगर गाँठ पड़ जाये तो फिर पहले जैसा कुछ नहीं हो सकता . बेहतर होगा की न तुम मेरे रस्ते में आओ न मैं तुम्हारे रस्ते में. मैंने पहले भी कहा था मुझे कुछ नहीं चाहिए , अपने हिस्से का सुख मैं तलाश लूँगा. बस मेरे मन का सवाल है की पिताजी ने प्रोपर्टी तुम्हारे नाम क्यों की , भाई के नाम क्यों नहीं की .

भाभी- मेरी कभी भी जायदाद को लेकर कोई इच्छा नहीं रही, पिताजी ने जोर देकर कहा की मुझे संभालनी होगी ये जिम्मेदारी.

मैं- और तुम मान गयी

भाभी- मैंने कहा था पिताजी को की कबीर को बराबर का हिस्सा देना चाहिए पर उन्होंने कहा की कबीर को उसका हिस्सा जरुर मिलेगा.

मैं- बढ़िया है फिर तो .याद है उस रात तुमने हवेली में कहा था पैसा किसे ही चाहिए था .

भाभी- मैं आज भी कहती हु कबीर. दरअसल हम अपने अपने हिस्से की खुशियों को उस अतीत में तलाश रहे है जिसने हमारे आज को तबाह कर दिया है. परिवार कभी एक नहीं हो पायेगा ये वो सत्य है जिसे अगर सभी समझ ले तो जीना आसान हो जायेगा. इस जंगल में हम दोनों का होना कोई इत्तेफाक नहीं बल्कि हमारी अपनी अपनी वजह है .

भाभी ने मेरे माथे को चूमा और बोली- वक्त के किसी और हिस्से में अगर तुम यूँ मेरे साथ होते तो सीने से लगाती तुम्हे .

हलकी हलकी बूंदे गिरने लगी थी , भाभी अपने रस्ते पर चल पड़ी थी , मैं भी उसके पीछे चल दिया. भाभी की मटकती गांड और ये मौसम , बहनचोद कैसे अजीब से रिश्ते हो गए थे प्यार भी इन्ही से और नफरत भी इन्ही से. कुवे से थोड़ी दूर पहले भाभी ने अपने लहंगे को उठाया,गोरी कसी हुई जांघो को देख कर मेरा मन डोल गया , भाभी ने बड़ी ही नजाकत से कच्छी को निचे सरकाया और मूतने को बैठ गयी . बेहद ही मादक द्रश्य था वो जिसे मैंने जी भर कर देखा. मूतने के बाद वो थोड़ी देर वैसे ही बैठी रही शायद मुझे तरसना चाहती थी वो . जब तक मैं वहां पहुंचा वो अपने रस्ते बढ़ गयी थी और छोड़ गयी थी उस कच्छी को जो कुछ लम्हों के फासले से ही उस मदमस्त चूत के रस से भीगी थी. उंगलिया फेरते हुए मैंने महसूस किया की ये कच्छी भी ठीक वैसी ही थी जो मैंने अलमारी में तलाशी थी. इस बात से मुझे इतना यकीन तो हो गया था की घर में जो भी कुछ झोल था उसमे किरदार अपने ही थे.



खैर, गाँव आने के बाद जो भी हालात हुए थी मुझे जिस चीज की सबसे जायदा जरूरत थी वो था अपना घर, बेशक मैं ताई के घर रह सकता था , शिवाले में बाबा के साथ रह सकता था पर फिर भी मुझे घर तो चाहिए था ही , हालाँकि हवेली जा सकता था मैं पर भाभी ने जिस तरह से अपने हक़ का रौब दिखाया था मैं कतरा रहा था . रत्ना का जो रूप मेरे सामने आया था उसने मेरा मानसिक संबल तोड़ दिया था , वो रात किसी तरह काटी मैंने और सुबह ही उस शहर के लिए बस पकड़ ली जिसे मैं छोड़ आया था .

कायदे से मुझे सबसे पहले निशा से मिलना चाहिए था पर मैं जेल गया. मैंने गाजी से मिलने का सोचा था . और जब हमारी मुलाकात हुई तो वो बस घूरता रहा मुझे.

मैं- रत्ना के बारे में जानना है मुझे

गाजी- उसके साथ रह कर उसे नहीं जान सका तू

मैं- मैं तुम से जानना चाहता हु

गाजी- और मैं तुझे मारना चाहता हु

मैं- बेशक , दुआ करूँगा किसी दिन ये मौका जरुर मिले तुम्हे

गाजी- ये सलाखे ज्यादा दिन नहीं रोक पाएंगी मुझे

मैं- मर्द बहाने नहीं करते गाजी, मर्द बस कर देते है जो उन्हें करना होता है

गाजी ने गुस्से से अपना हाथ सलाखों पर मारा.

मैं- रत्ना के बारे में बता मुझे

गाजी- नागिन थी साली, डसने से पहले फन कुचल देना चाहिए था उसका, उसके पति के साथ ही उसको भी दफना देना था मुझे

मैं- एक मामूली औरत तेरी नाक के निचे तेरे किले की नींव ढीली कर गयी और तुझे भनक भी नहीं हुई ,इतना मुर्ख तो नहीं हो सकता तू.

गाजी- ये शहर समुन्द्र है , कब किस मछली को कौन निगल जाये किसको मालूम . उसने तुझे मोहरा बनाया और यहाँ तक पहुंचने के लिए तेरे जैसे कितने चूतिये मिले होंगे उसको . इस धंधे में जिसको मौका मिलता है वो चूकता नहीं

मैं- तू हीरे किस से खरीदता था

गाजी- हीरे, बहनचोद तुझे अभी भी समझ नहीं आया की मैं कौन हु , क्या हु .

मैं समझ गया था तो वहां से मैं सीधा वहां पहुंचा जहाँ किरायेदार बन कर रहा. घर पर ताला लगा था . मैंने ताला तोडा और अन्दर आया. देखने से ही लग रहा था की काफी दिन से वहां कोई नहीं आया था. मुझे ऐसी कोई कड़ी नहीं मिल रही थी जो ये समझा सके की रत्ना हीरे खरीदती किस से थी ? उसके पुरे सामान को मैंने तलाश कर लिया कुछ भी नहीं , हो क्या रहा था ये सब. खैर, अब निशा के पास ही जाना था मुझे. मैं बस्ती की दूकान पर रुका .

“ये रत्ना कहाँ गयी ” मैंने दुकानदार से पुछा

“जब से तुम गए तभी से वो भी चली गयी फिर आई नहीं ” उसने जवाब किया

मैं- किधर

“मालूम नहीं, तुम्हारे जाने के बाद एक आदमी आया था उसके साथ ही गयी ” उसने कहा

मैं- कौन आदमी

“वो तो नहीं मालूम पर तुम्हारे जाने के बाद वो आदमी बरोबर आया था ” उसने कहा.

अब ये आदमी कौन था ये नया सवाल मेरी जान पर आकर खड़ा हो गया था .

निशा के आवास पर जाकर मैंने उसका इंतज़ार किया.वो मुझे देख कर हैरान हो गयी.

“तुम यहाँ कबीर ” निशा ने चहकते हुए कहा

मैं- तुम्हे देखने का मन था

निशा- बहुत बढ़िया

निशा का मेरी बाँहों में होना यही सुख था इस जीवन का. मैंने उस से तमाम बाते बताई जो भी गाँव में हुआ था .

“हैरानी नहीं होनी चाहिए तुम्हे अपने परिवार के लक्षणों पर ” उसने कहा

मैं- कहती तो सही हो. फ़िलहाल तो मैं चाहता हु की घर होना चाहिए अपना

निशा- जमीन खरीद लेते है क्यों चिंता करते हो तुम

मैं- चिंता नहीं है ,हवेली का हक़ छुट गया वो दुःख है

निशा- घर इंसानों से बनता है , हम जहाँ रहेंगे वही घर हो जायेगा हमारा . फिलहाल तुम कुछ दिन मेरे साथ रहो

मैं- मन तो बहुत है पर कल ही जाना होगा , कुछ जरुरी काम है वो निपटा लू

निशा- चाहती तो मैं भी हु पर तुमने जो रायता फैलाया है बहुत दम लगाना पड़ रहा है उसे साफ़ करने के लिए

मैं- गाजी के बाद शहर की कमान और किसी से संभाल ली और तुम्हारे महकमे को मालूम ही नहीं

निशा- मैंने कहा ना तुम्हारे फैलाये रायते को समेंटने में दम बहुत लग रहा है वो भी तुम्हारी ही पाली हुई थी .

मैं- मारी गयी वो. अपने शहर में

निशा- ये कब हुआ

मैं- कुछ दिन पहले ही और शायद इसी वजह से मुझे लौटना पड़ा यहाँ

निशा- क्या करने की फ़िराक में हो

मैं- कुछ नहीं, कुछ जवाब चाहिये थे पर अब लगता है की सवालो के साथ ही जीना पड़ेगा.

अगले दिन मैं वापिस गाँव के लिए निकल पड़ा , एक बार फिर मैं उसी जोहरी की दूकान पर था ................................
Nice and superb update....
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
4,091
15,777
159
#36

“तुम्हारी ये बात तुम्हारी ही तरह खोखली है ” मैंने कहा

भाभी- हमारे रस्ते भी अब अलग है कबीर, बहुत मुश्किल से मैंने संभाला है टूटे घर को और नहीं बिखरनी चाहिए ये जिन्दगी

मैं- रस्ते तो बरसो पहले अलग हो गए थे रिश्तो में अगर गाँठ पड़ जाये तो फिर पहले जैसा कुछ नहीं हो सकता . बेहतर होगा की न तुम मेरे रस्ते में आओ न मैं तुम्हारे रस्ते में. मैंने पहले भी कहा था मुझे कुछ नहीं चाहिए , अपने हिस्से का सुख मैं तलाश लूँगा. बस मेरे मन का सवाल है की पिताजी ने प्रोपर्टी तुम्हारे नाम क्यों की , भाई के नाम क्यों नहीं की .

भाभी- मेरी कभी भी जायदाद को लेकर कोई इच्छा नहीं रही, पिताजी ने जोर देकर कहा की मुझे संभालनी होगी ये जिम्मेदारी.

मैं- और तुम मान गयी

भाभी- मैंने कहा था पिताजी को की कबीर को बराबर का हिस्सा देना चाहिए पर उन्होंने कहा की कबीर को उसका हिस्सा जरुर मिलेगा.

मैं- बढ़िया है फिर तो .याद है उस रात तुमने हवेली में कहा था पैसा किसे ही चाहिए था .

भाभी- मैं आज भी कहती हु कबीर. दरअसल हम अपने अपने हिस्से की खुशियों को उस अतीत में तलाश रहे है जिसने हमारे आज को तबाह कर दिया है. परिवार कभी एक नहीं हो पायेगा ये वो सत्य है जिसे अगर सभी समझ ले तो जीना आसान हो जायेगा. इस जंगल में हम दोनों का होना कोई इत्तेफाक नहीं बल्कि हमारी अपनी अपनी वजह है .

भाभी ने मेरे माथे को चूमा और बोली- वक्त के किसी और हिस्से में अगर तुम यूँ मेरे साथ होते तो सीने से लगाती तुम्हे .

हलकी हलकी बूंदे गिरने लगी थी , भाभी अपने रस्ते पर चल पड़ी थी , मैं भी उसके पीछे चल दिया. भाभी की मटकती गांड और ये मौसम , बहनचोद कैसे अजीब से रिश्ते हो गए थे प्यार भी इन्ही से और नफरत भी इन्ही से. कुवे से थोड़ी दूर पहले भाभी ने अपने लहंगे को उठाया,गोरी कसी हुई जांघो को देख कर मेरा मन डोल गया , भाभी ने बड़ी ही नजाकत से कच्छी को निचे सरकाया और मूतने को बैठ गयी . बेहद ही मादक द्रश्य था वो जिसे मैंने जी भर कर देखा. मूतने के बाद वो थोड़ी देर वैसे ही बैठी रही शायद मुझे तरसना चाहती थी वो . जब तक मैं वहां पहुंचा वो अपने रस्ते बढ़ गयी थी और छोड़ गयी थी उस कच्छी को जो कुछ लम्हों के फासले से ही उस मदमस्त चूत के रस से भीगी थी. उंगलिया फेरते हुए मैंने महसूस किया की ये कच्छी भी ठीक वैसी ही थी जो मैंने अलमारी में तलाशी थी. इस बात से मुझे इतना यकीन तो हो गया था की घर में जो भी कुछ झोल था उसमे किरदार अपने ही थे.



खैर, गाँव आने के बाद जो भी हालात हुए थी मुझे जिस चीज की सबसे जायदा जरूरत थी वो था अपना घर, बेशक मैं ताई के घर रह सकता था , शिवाले में बाबा के साथ रह सकता था पर फिर भी मुझे घर तो चाहिए था ही , हालाँकि हवेली जा सकता था मैं पर भाभी ने जिस तरह से अपने हक़ का रौब दिखाया था मैं कतरा रहा था . रत्ना का जो रूप मेरे सामने आया था उसने मेरा मानसिक संबल तोड़ दिया था , वो रात किसी तरह काटी मैंने और सुबह ही उस शहर के लिए बस पकड़ ली जिसे मैं छोड़ आया था .

कायदे से मुझे सबसे पहले निशा से मिलना चाहिए था पर मैं जेल गया. मैंने गाजी से मिलने का सोचा था . और जब हमारी मुलाकात हुई तो वो बस घूरता रहा मुझे.

मैं- रत्ना के बारे में जानना है मुझे

गाजी- उसके साथ रह कर उसे नहीं जान सका तू

मैं- मैं तुम से जानना चाहता हु

गाजी- और मैं तुझे मारना चाहता हु

मैं- बेशक , दुआ करूँगा किसी दिन ये मौका जरुर मिले तुम्हे

गाजी- ये सलाखे ज्यादा दिन नहीं रोक पाएंगी मुझे

मैं- मर्द बहाने नहीं करते गाजी, मर्द बस कर देते है जो उन्हें करना होता है

गाजी ने गुस्से से अपना हाथ सलाखों पर मारा.

मैं- रत्ना के बारे में बता मुझे

गाजी- नागिन थी साली, डसने से पहले फन कुचल देना चाहिए था उसका, उसके पति के साथ ही उसको भी दफना देना था मुझे

मैं- एक मामूली औरत तेरी नाक के निचे तेरे किले की नींव ढीली कर गयी और तुझे भनक भी नहीं हुई ,इतना मुर्ख तो नहीं हो सकता तू.

गाजी- ये शहर समुन्द्र है , कब किस मछली को कौन निगल जाये किसको मालूम . उसने तुझे मोहरा बनाया और यहाँ तक पहुंचने के लिए तेरे जैसे कितने चूतिये मिले होंगे उसको . इस धंधे में जिसको मौका मिलता है वो चूकता नहीं

मैं- तू हीरे किस से खरीदता था

गाजी- हीरे, बहनचोद तुझे अभी भी समझ नहीं आया की मैं कौन हु , क्या हु .

मैं समझ गया था तो वहां से मैं सीधा वहां पहुंचा जहाँ किरायेदार बन कर रहा. घर पर ताला लगा था . मैंने ताला तोडा और अन्दर आया. देखने से ही लग रहा था की काफी दिन से वहां कोई नहीं आया था. मुझे ऐसी कोई कड़ी नहीं मिल रही थी जो ये समझा सके की रत्ना हीरे खरीदती किस से थी ? उसके पुरे सामान को मैंने तलाश कर लिया कुछ भी नहीं , हो क्या रहा था ये सब. खैर, अब निशा के पास ही जाना था मुझे. मैं बस्ती की दूकान पर रुका .

“ये रत्ना कहाँ गयी ” मैंने दुकानदार से पुछा

“जब से तुम गए तभी से वो भी चली गयी फिर आई नहीं ” उसने जवाब किया

मैं- किधर

“मालूम नहीं, तुम्हारे जाने के बाद एक आदमी आया था उसके साथ ही गयी ” उसने कहा

मैं- कौन आदमी

“वो तो नहीं मालूम पर तुम्हारे जाने के बाद वो आदमी बरोबर आया था ” उसने कहा.

अब ये आदमी कौन था ये नया सवाल मेरी जान पर आकर खड़ा हो गया था .

निशा के आवास पर जाकर मैंने उसका इंतज़ार किया.वो मुझे देख कर हैरान हो गयी.

“तुम यहाँ कबीर ” निशा ने चहकते हुए कहा

मैं- तुम्हे देखने का मन था

निशा- बहुत बढ़िया

निशा का मेरी बाँहों में होना यही सुख था इस जीवन का. मैंने उस से तमाम बाते बताई जो भी गाँव में हुआ था .

“हैरानी नहीं होनी चाहिए तुम्हे अपने परिवार के लक्षणों पर ” उसने कहा

मैं- कहती तो सही हो. फ़िलहाल तो मैं चाहता हु की घर होना चाहिए अपना

निशा- जमीन खरीद लेते है क्यों चिंता करते हो तुम

मैं- चिंता नहीं है ,हवेली का हक़ छुट गया वो दुःख है

निशा- घर इंसानों से बनता है , हम जहाँ रहेंगे वही घर हो जायेगा हमारा . फिलहाल तुम कुछ दिन मेरे साथ रहो

मैं- मन तो बहुत है पर कल ही जाना होगा , कुछ जरुरी काम है वो निपटा लू

निशा- चाहती तो मैं भी हु पर तुमने जो रायता फैलाया है बहुत दम लगाना पड़ रहा है उसे साफ़ करने के लिए

मैं- गाजी के बाद शहर की कमान और किसी से संभाल ली और तुम्हारे महकमे को मालूम ही नहीं

निशा- मैंने कहा ना तुम्हारे फैलाये रायते को समेंटने में दम बहुत लग रहा है वो भी तुम्हारी ही पाली हुई थी .

मैं- मारी गयी वो. अपने शहर में

निशा- ये कब हुआ

मैं- कुछ दिन पहले ही और शायद इसी वजह से मुझे लौटना पड़ा यहाँ

निशा- क्या करने की फ़िराक में हो

मैं- कुछ नहीं, कुछ जवाब चाहिये थे पर अब लगता है की सवालो के साथ ही जीना पड़ेगा.

अगले दिन मैं वापिस गाँव के लिए निकल पड़ा , एक बार फिर मैं उसी जोहरी की दूकान पर था ................................

Bahut hi gazab ki update he HalfbludPrince Fauji Bhai,

Kabir ke sawalo ka jawab na bhabhi ke pass mila aur na hi gafur ke pass...........

Kuch sawal aise rah gaye he, jinka jawab shayad waqt aane par khud hi mil jayega kabir ko............

Keep posting Bhai
 

R_Raj

Engineering the Dream Life
159
537
109
#36

“तुम्हारी ये बात तुम्हारी ही तरह खोखली है ” मैंने कहा

भाभी- हमारे रस्ते भी अब अलग है कबीर, बहुत मुश्किल से मैंने संभाला है टूटे घर को और नहीं बिखरनी चाहिए ये जिन्दगी

मैं- रस्ते तो बरसो पहले अलग हो गए थे रिश्तो में अगर गाँठ पड़ जाये तो फिर पहले जैसा कुछ नहीं हो सकता . बेहतर होगा की न तुम मेरे रस्ते में आओ न मैं तुम्हारे रस्ते में. मैंने पहले भी कहा था मुझे कुछ नहीं चाहिए , अपने हिस्से का सुख मैं तलाश लूँगा. बस मेरे मन का सवाल है की पिताजी ने प्रोपर्टी तुम्हारे नाम क्यों की , भाई के नाम क्यों नहीं की .

भाभी- मेरी कभी भी जायदाद को लेकर कोई इच्छा नहीं रही, पिताजी ने जोर देकर कहा की मुझे संभालनी होगी ये जिम्मेदारी.

मैं- और तुम मान गयी

भाभी- मैंने कहा था पिताजी को की कबीर को बराबर का हिस्सा देना चाहिए पर उन्होंने कहा की कबीर को उसका हिस्सा जरुर मिलेगा.

मैं- बढ़िया है फिर तो .याद है उस रात तुमने हवेली में कहा था पैसा किसे ही चाहिए था .

भाभी- मैं आज भी कहती हु कबीर. दरअसल हम अपने अपने हिस्से की खुशियों को उस अतीत में तलाश रहे है जिसने हमारे आज को तबाह कर दिया है. परिवार कभी एक नहीं हो पायेगा ये वो सत्य है जिसे अगर सभी समझ ले तो जीना आसान हो जायेगा. इस जंगल में हम दोनों का होना कोई इत्तेफाक नहीं बल्कि हमारी अपनी अपनी वजह है .

भाभी ने मेरे माथे को चूमा और बोली- वक्त के किसी और हिस्से में अगर तुम यूँ मेरे साथ होते तो सीने से लगाती तुम्हे .

हलकी हलकी बूंदे गिरने लगी थी , भाभी अपने रस्ते पर चल पड़ी थी , मैं भी उसके पीछे चल दिया. भाभी की मटकती गांड और ये मौसम , बहनचोद कैसे अजीब से रिश्ते हो गए थे प्यार भी इन्ही से और नफरत भी इन्ही से. कुवे से थोड़ी दूर पहले भाभी ने अपने लहंगे को उठाया,गोरी कसी हुई जांघो को देख कर मेरा मन डोल गया , भाभी ने बड़ी ही नजाकत से कच्छी को निचे सरकाया और मूतने को बैठ गयी . बेहद ही मादक द्रश्य था वो जिसे मैंने जी भर कर देखा. मूतने के बाद वो थोड़ी देर वैसे ही बैठी रही शायद मुझे तरसना चाहती थी वो . जब तक मैं वहां पहुंचा वो अपने रस्ते बढ़ गयी थी और छोड़ गयी थी उस कच्छी को जो कुछ लम्हों के फासले से ही उस मदमस्त चूत के रस से भीगी थी. उंगलिया फेरते हुए मैंने महसूस किया की ये कच्छी भी ठीक वैसी ही थी जो मैंने अलमारी में तलाशी थी. इस बात से मुझे इतना यकीन तो हो गया था की घर में जो भी कुछ झोल था उसमे किरदार अपने ही थे.



खैर, गाँव आने के बाद जो भी हालात हुए थी मुझे जिस चीज की सबसे जायदा जरूरत थी वो था अपना घर, बेशक मैं ताई के घर रह सकता था , शिवाले में बाबा के साथ रह सकता था पर फिर भी मुझे घर तो चाहिए था ही , हालाँकि हवेली जा सकता था मैं पर भाभी ने जिस तरह से अपने हक़ का रौब दिखाया था मैं कतरा रहा था . रत्ना का जो रूप मेरे सामने आया था उसने मेरा मानसिक संबल तोड़ दिया था , वो रात किसी तरह काटी मैंने और सुबह ही उस शहर के लिए बस पकड़ ली जिसे मैं छोड़ आया था .

कायदे से मुझे सबसे पहले निशा से मिलना चाहिए था पर मैं जेल गया. मैंने गाजी से मिलने का सोचा था . और जब हमारी मुलाकात हुई तो वो बस घूरता रहा मुझे.

मैं- रत्ना के बारे में जानना है मुझे

गाजी- उसके साथ रह कर उसे नहीं जान सका तू

मैं- मैं तुम से जानना चाहता हु

गाजी- और मैं तुझे मारना चाहता हु

मैं- बेशक , दुआ करूँगा किसी दिन ये मौका जरुर मिले तुम्हे

गाजी- ये सलाखे ज्यादा दिन नहीं रोक पाएंगी मुझे

मैं- मर्द बहाने नहीं करते गाजी, मर्द बस कर देते है जो उन्हें करना होता है

गाजी ने गुस्से से अपना हाथ सलाखों पर मारा.

मैं- रत्ना के बारे में बता मुझे

गाजी- नागिन थी साली, डसने से पहले फन कुचल देना चाहिए था उसका, उसके पति के साथ ही उसको भी दफना देना था मुझे

मैं- एक मामूली औरत तेरी नाक के निचे तेरे किले की नींव ढीली कर गयी और तुझे भनक भी नहीं हुई ,इतना मुर्ख तो नहीं हो सकता तू.

गाजी- ये शहर समुन्द्र है , कब किस मछली को कौन निगल जाये किसको मालूम . उसने तुझे मोहरा बनाया और यहाँ तक पहुंचने के लिए तेरे जैसे कितने चूतिये मिले होंगे उसको . इस धंधे में जिसको मौका मिलता है वो चूकता नहीं

मैं- तू हीरे किस से खरीदता था

गाजी- हीरे, बहनचोद तुझे अभी भी समझ नहीं आया की मैं कौन हु , क्या हु .

मैं समझ गया था तो वहां से मैं सीधा वहां पहुंचा जहाँ किरायेदार बन कर रहा. घर पर ताला लगा था . मैंने ताला तोडा और अन्दर आया. देखने से ही लग रहा था की काफी दिन से वहां कोई नहीं आया था. मुझे ऐसी कोई कड़ी नहीं मिल रही थी जो ये समझा सके की रत्ना हीरे खरीदती किस से थी ? उसके पुरे सामान को मैंने तलाश कर लिया कुछ भी नहीं , हो क्या रहा था ये सब. खैर, अब निशा के पास ही जाना था मुझे. मैं बस्ती की दूकान पर रुका .

“ये रत्ना कहाँ गयी ” मैंने दुकानदार से पुछा

“जब से तुम गए तभी से वो भी चली गयी फिर आई नहीं ” उसने जवाब किया

मैं- किधर

“मालूम नहीं, तुम्हारे जाने के बाद एक आदमी आया था उसके साथ ही गयी ” उसने कहा

मैं- कौन आदमी

“वो तो नहीं मालूम पर तुम्हारे जाने के बाद वो आदमी बरोबर आया था ” उसने कहा.

अब ये आदमी कौन था ये नया सवाल मेरी जान पर आकर खड़ा हो गया था .

निशा के आवास पर जाकर मैंने उसका इंतज़ार किया.वो मुझे देख कर हैरान हो गयी.

“तुम यहाँ कबीर ” निशा ने चहकते हुए कहा

मैं- तुम्हे देखने का मन था

निशा- बहुत बढ़िया

निशा का मेरी बाँहों में होना यही सुख था इस जीवन का. मैंने उस से तमाम बाते बताई जो भी गाँव में हुआ था .

“हैरानी नहीं होनी चाहिए तुम्हे अपने परिवार के लक्षणों पर ” उसने कहा

मैं- कहती तो सही हो. फ़िलहाल तो मैं चाहता हु की घर होना चाहिए अपना

निशा- जमीन खरीद लेते है क्यों चिंता करते हो तुम

मैं- चिंता नहीं है ,हवेली का हक़ छुट गया वो दुःख है

निशा- घर इंसानों से बनता है , हम जहाँ रहेंगे वही घर हो जायेगा हमारा . फिलहाल तुम कुछ दिन मेरे साथ रहो

मैं- मन तो बहुत है पर कल ही जाना होगा , कुछ जरुरी काम है वो निपटा लू

निशा- चाहती तो मैं भी हु पर तुमने जो रायता फैलाया है बहुत दम लगाना पड़ रहा है उसे साफ़ करने के लिए

मैं- गाजी के बाद शहर की कमान और किसी से संभाल ली और तुम्हारे महकमे को मालूम ही नहीं

निशा- मैंने कहा ना तुम्हारे फैलाये रायते को समेंटने में दम बहुत लग रहा है वो भी तुम्हारी ही पाली हुई थी .

मैं- मारी गयी वो. अपने शहर में

निशा- ये कब हुआ

मैं- कुछ दिन पहले ही और शायद इसी वजह से मुझे लौटना पड़ा यहाँ

निशा- क्या करने की फ़िराक में हो

मैं- कुछ नहीं, कुछ जवाब चाहिये थे पर अब लगता है की सवालो के साथ ही जीना पड़ेगा.

अगले दिन मैं वापिस गाँव के लिए निकल पड़ा , एक बार फिर मैं उसी जोहरी की दूकान पर था ................................

Nice Update Bro !

Lagta hai gaji bahubali tha bas hire se uska koi lena dena nahi tha
Wo aadmi aur wo jauhari ki dukan yahi 2 bachhe huye hai
jaha se pta lag sakta hai hire kaun bech raha hai

Aur Bhabhi ka kya hi kehna
apne purane aashiq ke aarmano pe mut gyi
aur kachhii bhi chhor gyi
 
Top