#29
नाज के होंठ चुमते हुए मैं अपने हाथ को उसकी कमर से होते हुए उसके नितम्बो पर ले गया और कस कर उन ठोस मांस के गोलों को दबाया . बदन में उठी उत्तेजना की लहर इतनी ज्यादा थी की नाज ने अपनी चूत पर मेरे लंड की कठोरता को महसूस किया पर अगले ही पल वो मुझसे अलग हो गयी और बोली- औरत को जोर से हासिल नहीं किया जाता उसके मन को जीता जाता है देवा.
मैं- तुमने ही कहा था न कोई औरत ढूंढ लो मैंने तलाश ली
नाज- मुझे लगता है ये सब तुम्हे पिस्ता के साथ करना चाहिए
मैं- वो बस मेरी दोस्त है पर तुम्हारे साथ मैं इस रिश्ते को और आगे ले जाना चाहता हूँ
नाज- बड़ा मुश्किल सफ़र रहेगा फिर तो तुम्हारा , मैं किसी और की अमानत हूँ
मैं- अमानत में खयानत तो पेड़ के निचे हो ही रही थी
नाज- उस रात तुमने कहा था मासी तुम समझ नहीं पाओगी मैं समझा नहीं पाउँगा, आज मैं कहती हूँ तुम समझ नहीं पाओगे मैं समझा नहीं पाउंगी पर मैं परख जरुर लुंगी तुम्हारी मुझे लगेगा की तुम तैयार हो तो मैं तुम्हारी मनचाही जरुर करुँगी .
मैं - ये भी ठीक है मासी
नाज- तुम्हारा अहसान है की तुमने जबरदस्ती नहीं की , वर्ना इतना होने के बाद कोई भी मौका नहीं छोड़ता है
मैं- मौका क्या तलाशना जब तुम हो ही मेरी .
वो मुस्कुरा पड़ी मैंने उसे गले से लगा लिया. शरारत करते हुए मैंने एक बार फिर से उसकी गांड को मसल दिया , इस बार उसने पूरी आजादी दी मुझे और हम बैठक में आ गए.
“चौधरी साहब बड़े नाराज है तुमसे ” नाज ने कहा
मैं- किसे परवाह है
नाज- पिता है वो तुम्हारे
मैं- मैंने कहा न किसे परवाह है मुझे अपनी जिन्दगी जिनी है मैने सोच लिया कैसे जीनी है
नाज- और कैसे जी जाएगी ये जिन्दगी, एक बात बता दू तुम्हे , तुम जानते ही नहीं जिन्दगी क्या होती है कैसी होती है . चौधरी साहब के वजूद के बिना तुम इस काबिल भी नहीं की एक समय की रोटी खा सको . तुम्हे बुरा जरुर लगेगा पर कडवी हकीकत समझने की कोशिश करना
मैं- बात वो नहीं है मासी,मैं तंग आ गया हूँ उनके नियम कायदों से . ये मत करो वो मत करो आन बाण सान के आगे मेरी इंसानियत शर्मिंदा हो जाती है
.
मासी- आज मेरी कही बात को नहीं समझोगे तुम पर एक दिन आएगा जब तुम जान जाओगे ये दुनिया वैसी तो बिलकुल नहीं है जैसा तुमने सोचा है .
मैं- देखी जाएगी, और पिताजी भला कितना नाराज रहेंगे दो चार दिन में गुस्सा ठंडा हो ही जायेगा न फिलहाल मुझे जाना होगा और हाँ कुछ दिन मैं घर नहीं जाने वाला यही रहूँगा
नाज- तुम्हारा ही घर है पर मेरी सलाह मानो तो पिस्ता से दूर रहना कुछ दिन गाँव में तनाव है और बढ़ जायेगा.
मैं- उसी से मिलने जा रहा हूँ
“ये लड़का भी ना ” नाज ने मुस्कुराते हुए अपने माथे पर हाथ मारा और मैं बाहर गली में आ गया. पिस्ता के घर गया तो वो नहीं थी वहां पर . मैं जंगल की तरफ निकल गया . कुछ नहीं सूझा तो मैं जोगन की तरफ चला गया बेशक वो नहीं थी पर फिर भी क्यों मुझे तलब थी . मैंने दरवाजा खोला उसकी झोपडी का और बिस्तर पर औंधा पसर गया. आँख खुली तो शाम ढल रही थी , बदन में दर्द पसरा हुआ था हाथ मुह धोकर मैंने दिया जलाया और ठोड़ी देर वहीँ बैठ गया. दिल में ख्याल आया की उसी काले पत्थरों वाले घर में चला जाये पर फिर नहीं गया. वहां से चुराए पैसे अभी तक खर्च भी तो नहीं किये थे . वापसी में मुझे खेतो की तरफ पिस्ता बैठी मिल गयी.
मैं- सब कही देख आया और तू यहाँ बैठी है
पिस्ता- मन नहीं लग रहा था तो आ गयी इस तरफ
मैं-मन तो मेरा भी नहीं लग रहा था तेरे बिना
पिस्ता- लाइन मारना बंद कर
मैं- फिर बोल जरा
पिस्ता- तू कभी सीरियस होगा के नहीं
मैं- अच्छा ठीक है . क्यों परेशां है
पिस्ता- सबको लगता है की मैंने दी है तुझे
मैं- क्या दी है
पिस्ता- समझता नहीं क्या
मैं- समझा फिर
पिस्ता-चूतिये, सबको लगता है की मैंने चूत दी है तुझे
चूत सुन कर मेरे कान खड़े हो गए .
मैं- पर तूने नहीं दी . कल तेरी माँ को समझाया तो था मैंने
पिस्ता- तुझे क्या जरुरत थी क्रांति का झंडा उठाने की , क्यों गाँव के सामने पुकार रहा था की तू आशिक है मेरा.
मैं- क्या हुआ फिर, नहीं हु तो हो जाऊंगा तू अगर चाहेगी तो .
पिस्ता- तू समझता नहीं क्यों देवा
मैं- भोसड़ी वाली मैं नहीं समझता , पगली दोस्त समझा है तुझे, और दोस्ती निभानी आती है , अगर वहां पर खड़ा ना होता तो तेरी मखमली पीठ उधेड़ देनी थी मेरे बाप ने. और फिर गलती तो तेरी हैं ही , क्यों भागी थी तू घर से बहन की लोडी . एक मिनट रुक कही सच में तेरा कोई आशिक तो नहीं
पिस्ता- कोई आशिक नहीं है मेरा और घर से भागी नहीं थी मैं ,
मैं- तो कहा गयी थी फिर तू
पिस्ता- अरे वो मैं हेरोइन बनना चाहती थी तो सोचा इस गाँव में अपना कुछ होना नहीं है निकल ले बम्बई पर तेरे बाप ने सपना तोड़ दिया, धर लिया रस्ते में ही .
मैं- कमीनी, कम से कम मुझे तो बता सकती थी न बड़ी आई माधुरी बनने वाली . जानती है तेरे बिना मेरा क्या हाल हुआ था . ऐसा कोई पल नहीं बीता जब मुझे तेरी फ़िक्र न हुई हो.
पिस्ता- गलती हु माफ़ी दे यार
मैं- माफ़ी तो दे दूंगा पर ये बता देगी कब, वैसे भी गाँव में बदनामी तो हो ही गयी है तो दे ही दे.
पिस्ता के गाल गुलाबी हो गए बोली- अच्छा जी, बड़ी हसरत हो रही है लेने की . ले भी लेगा कहीं ऐसा न हो की कच्छा उतरते ही सब गीला हो जाये तेरा
मैं- वो क्यों होगा भला
पिस्ता- तूने ली है कभी किसी की पहले
मैं- तूने दी है किसी को पहले
पिस्ता- तू बनेगा पहला मेरी लेने वाला.
मैं- वो ही तो बोल रहा हूँ देगी तो ले लूँगा.
पिस्ता- तूने देखी है कैसी होती है
मैं- तू दिखा दे
पिस्ता- सची में
मैं- और नहीं तो क्या .
“ठीक हो जा पहले कही जोश जोश में और दर्द न बढ़ जाए तेरा ” हस्ते हुए बोली वो
मैं भी मुस्कुरा दिया. बहुत देर तक हम दोनों वहां बैठे बाते करते रहे और फिर गाँव में आ गये. पिस्ता खुद के घर चली गयी मैं नाज के घर आ गया. मुनीम जी बैठक में ही थे तो मैं उनके पास चला गया .
“कुछ मालूम हुआ की फक्ट्री में हमला किसने किया ” मैंने पुछा
मुनीम- नहीं, अभी कोई सुराग नहीं मिला पर जल्दी ही तलाश लेंगे हम
मैं- किसी पे शक
मुनीम- भाई जी, किसी की कोई मजाल नहीं जो चौधरी साहब की तरफ आँख उठा सके
मैं- पिताजी ऐसे काम करते ही क्यों है की ये सब हो साफ़ सुथरे धंधे क्यों नहीं करते हम
मुनीम- भाई जी, जब आप कारोबार संभालेंगे तो समझ जायेंगे
फ़िलहाल खाने का समय हो रहा है खाना खाते है फिर मुझे जाना है .
मैं- रात तो घर पर रहने की होती है न
मुनीम- कई काम रात को ही होते है
खाना खाने के बाद मुनीम चला गया रह गए मैं और मासी.