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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

Chalakmanus

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चार बूँद कडुवा तेल
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लेकिन इमरतिया, इमरतिया थी। चाशनी में डूबी, रस में पगी।

और देवर को तड़पाना जानती भी थी और चाहती भी थी, स्साला खुद अपने मुंह से मांगे, बुर बुर करे, तो बस अंगूठे और तर्जनी को तेल में चुपड़ के खूंटे के बेस पे, और सोच के मुस्कराने लगी, अभी थोड़ी देर पहले बुच्ची के हाथ में जो पकड़ाया था दोनों कैसे घबड़ा रहे थे,

यही शरम लाज झिझक तो खतम करवा के पक्का चोदू बना देना है इसे बरात जाने के पहले,

मरद की देह के एक एक नस का, एक एक बटन का पता था इमरतिया को।

कहाँ दबाने से झट्ट खड़ा होता है, कहाँ तेल लगाने से लोहे का खम्भा हो जाता है, और बस वहीँ वो तेल लगा रही थी, दबा रही थी और खूंटा एकदम कुतुबमीनार हो रहा था। लेकिन देवर था एकदम आज्ञाकारी, कल उसने सुपाड़ा खोल के जो हुकुम दिया था, 'एकदम खुला रखना उसको' तो एकदम खुला ही था, चोदने के लिए तैयार। बस गप्प से इमरतिया ने मोटे लाल सुपाड़ा को दबाया, उसने मुंह चियार दिया, और

टप्प, टप्प, टप्प, टप्प, चार बूँद कडुवा तेल की सीधे उसी खुले छेद में, और लुढ़कते पुढ़कते अंदर तक।
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लंड फड़फड़ाने लगा।

और फिर दोनों हथेलियों में तेल लगा के जैसे कोई ग्वालिन मथानी चलाये, उसी तरह और सीधे इमरतिया की मुस्कराती उकसाती आँखे सीधे सूरजु की आँखों में, उसे छेड रही थीं, चिढ़ा रही थी।

सूरजु की आँखें इमरतिया के भारी भारी ३६ साइज के जोबन से चिपकी थीं जो आधे से ज्यादा चोली से छलके पड़ रहे थे

" चाही का, अरे तोहरी महतारी का और बड़ा है, बहुते जोरदार, आज ललचा रहे थे न देख देख के, अरे मांग लो, पिलाय देंगी दूध "

इमरतिया ने सूरजु की माई का नाम लगा के चिढ़ाया लेकिन बातें दोनों सही थीं। सूरजु की माई का ३८ था, लेकिन था एकदम टनक कितनी बार इमरतिया और सूरजु की माई के बीच में दंगल होता था लेकिन जोबन की लड़ाई में सूरजु की माई हरदम बीस पड़ती थीं , अपनी बड़ी बड़ी चूँची से इमरतिया को कुचल देती थीं।

" बल्कि मांगने की बात भी नहीं, ले लेना चाहिए " इमरतिया ने और आग लगायी और सूरजु के दोनों हाथ पकड़ के अपनी चोली पे

और पहलवान के हाथ के बाद चुटपुटिया बटन कहाँ टिकती, चुटपुट चुटपुट चटक के खुल गयी।

ब्लाउज उसी खूंटी पे जहां सुरुजू का तौलिया और इमरतिया की साडी टंगी थीं, और दोनों बड़े बड़े कड़े जोबना सूरजु के हाथ में
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कुंवारे जवान मरद का हाथ पड़ते ही इमरतिया पिघलने लगी , लेकिन ये चाहती भी थी। अब सूरजु का दोनों हाथ लड्डू में फंसा था इमरतिया कोई बदमाशी करती, वो हाथ लगा के रोक नहीं पाता। लेकिन वो साथ साथ सूरजु को सिखा भी रही थीं की नयकी दुलहिनिया को कैसे कचरे।कैसे उसके चोली के अनार को पहली रात में ही मिस मिस के पिसान (आटा ) कर दे,

" अरे ऐसे हलके हलके नहीं , ये कउनो बुच्ची क टिकोरा नहीं है और उस की भी कस के रगड़ना। मेहरारू के मरद के हाथ में सख्ती पसंद है कैसे पहलवान हो ? कहीं तोहार महतारी तो कुल ताकत नहीं निचोड़ ली ?
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और अब सूरजु ने थोड़ा जोर लगा के चूँची मसलना शुरू किया और इमरतिया ने लंड को मुठियाना शुरू किया, लेकिन थोड़ी देर में ही सूरजु बाबू उचकने लगे,

" नहीं भौजी, मोर भौजी, छोड़ दा, छोड़ दा "

खूंटे पे हथेली का दबाव बढ़ाते इमरतिया ने चिढ़ाया, " क्या छोड़ दूँ ? स्साले मादरचोद, नाम लेने में तो तोहार गाँड़ फट रही है का दुलहिनिया को चोदोगे? बोल, का छोडूं, "

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अब सूरजु भी समझ गए थे और सुबह से तो गाँव की औरतें तो खुल के बोल रही थीं और सबसे बढ़ के उनकी माँ और बुआ और उन्ही का नाम ले के और माँ कभी बूआ की गारी का जवाब नहीं देती तो बूआ छेड़तीं,

" का सूरजु क माई,... मुंह में दुलहा क लंड भरा है का जो बोल नहीं निकल रहा है "

तो झिझकते हुए बोल दिया, " भौजी, लंड, हमार लंड, "

" तोहार न हो, हमार हो, तोहरी भौजी के कब्जे में है जहाँ जहाँ भौजी कहिये, वहां वहां घुसी, जेकरे जेकरे बिलिया में जैसे भौजी कहिये, बोलै मंजूर "


" एकदम भौजी " कस कस के चूँची मसलते सुरुजू बाबू बोले और अब वो भी मूड में आ रहे थे और जोड़ा, " लेकिन पहले, ...."

इमरतिया खुश नहीं महा खुस, सूरजु तैयार हैं लेकिन ऐसा इमरतिया के जोबन का जादू पहले यही मिठाई चाहिए देवर को, तो मिलेगी आज ही मिलेगी, दो इंच की चीज के लिए देवर को मना नहीं करेगी, बल्कि वो नहीं कहते खुद ऊपर चढ़ के पेल देती वो

बिन बोले इमरतिया के चेहरे की ओर देख के अपने मन की बात कह दी उन्होंने, और इमरतिया ने मुस्करा के हामी भर दी और खूंटा छोड़ भी दिया, वो डर समझ रही थीं, जो हर कुंवारे लड़के के मन में होता है, ' कहीं जल्दी न झड़ जाऊं " और वो जानती थीं की ये लम्बी रेस का घोडा है लेकिन उसे अभी खुद अपनी ताकत का अहसास नहीं है, किस स्पीड से दौड़ेगा, कितनी देर तक दौड़ेगा, दो चार पर इसे चढ़ाना जरूरी है ,


फिर भी खूंटा उसने छोड़ दिया लेकिन इमरतिया के तरकश में बहुत तीर थे।

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खूंटा छोड़ के उसने रसगुल्लों में तेल लगाना शुरू किया, मलाई का कारखाना यही तो थे, यही तो दुलहिनिया को पहली रात को गाभिन करेंगे और सबेरे चादर पर खून के साथ इसी की मलाई बहती मिलेगी, जब छोटी कुँवारी ननदें जाएंगी उठाने। और फिर हथेली से सुपाड़ी पे


असली खेल था सुपाड़े को एकदम तगड़ा, पत्थर ऐसा करना, भाला कितना लम्बा हो लेकिन अगर उसका फल भोथरा हो तो शिकार कैसे करेगा। और सूरजु देवर का सुपाड़ा तो एकदम ही मोटा, एकदम मुट्ठी ऐसा, बुच्चीया यही तो सोच के घबड़ा रही थीं, भैया क इतना मोत कैसे घुसी, और एक बार सुपाड़ा घुस जाए तो फिर लंड तो घुस ही जाता है।

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सूरजु सिसक रहे थे और इमरतिया ने बुच्ची की बात चलाई, " हे तोर बहिनिया, बुच्ची पकडे थीं तो कैसा लग रहा था ?

" अरे भौजी, आप जबरे उसकी मुट्ठी में पकड़ा दी थीं " हँसते हुए सूरजु बोले।

और एक बार फिर से हथेली में तेल चुपड़ के कस के खूंटा दबोच लिया, इमरतिया ने।

वास्तव में बहुत मोटा था, जब इमरतिया की मुट्ठी में नहीं समा रहा था तो नयकी दुलहिनिया की कोरी कच्ची बिलिया में कैसे धँसेगा ? इमरतिया मुस्करायी। चाहे जितनी रोई रोहट हो, चिल्ल पों करे, घोंटना तो पड़ेगा ही और वो भी जड़ तक। और ओकरे पहले बुच्ची ननदिया को।
Shadi se pehle 3-4 pe net practice..

Tab to pura trained ho jaiga apna saryu.
 

Chalakmanus

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गुरुआइन,

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" बोल स्साले, अपनी माई के भतार, पेलेगा न बुच्ची को आज तो वो खुदे हाँ कर के गयी है "

हलके हलके मुठियाते इमरतिया बोली। अब सूरजु की झिझक थोड़ी कम हो रही थीं, कस कस के इमरतिया की चूँची मसलते बोला,

" लेकिन भौजी बुच्चिया बोली थीं की पहले, ////और आप भी हाँ की थीं "

" तो चलो तुंही दोनों लोगों की बात रहेगी , उसके बाद तो नंबर लगाओगे न अपनी छुटकी बहिनिया पे, तो चलो सोचो बुच्चिया की बुरिया में पेल रहे हो, अरे जैसे उसकी कसी, टाइट है, वैसे तोहरे दुलहिनिया की भी कसी होगी और दरवजा बंद होने के घंटे भर के अंदर, फाड़ फूड़ के चिथड़ा करनी होगी, नहीं तो तोहार तो नाक कटी ही हमार और तोहरी माई की भी नाक कटेगी। तो समझो बुच्ची की बुरिया में पेलना है, लगाओ नीचे से धक्का कस के "


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और सच में सूरजु ने नीचे से कस के धक्का मारा।

इमरतिया ने पकड़ बढ़ा दी, और कसी कर दी, सूरजु ने और जोर लगाया / कभी इमरतिया कस के मुठियाती और कभी मुठियाना बंद कर के सूरजु को बोलती,

" पेल स्साले बुचिया की बुर में "

और सुरजू आँखे बंद कर के पूरी ताकत से चूतड़ के जोर से धक्का मारता लेकिन इमरतिया की पकड़, एकदम रगड़ते, घिसते



पांच दस मिनट में वो बोलने लगा,

" अरे भौजी छोड़ दो, गिर जाएगा, भौजी, मोर भौजी,.... रुकेगा नहीं "



इमरतिया सोच रही थीं स्साला और कितनी देर रुकेगा। हाथ कल्ला रहा था , दस पंद्रह मिनट से ऊपर हो गए थे पूरी ताकत से मुट्ठ मारते एक से एक कड़ियल जवान भी चुदाई में सात आठ मिनट के ऊपर नहीं रुकता और ये,

" तो झड़ जाने दे न, अरे हमरे देवर क लंड है। झड़ जाएगा तो फिर पानी भर उठेगा। आँख बंद कर के सोच बुच्ची क बुर में आपन पानी छोड़ रहा है " वो बोली और अपनी एक चूँची उसने सीधे सुरजू के मुंह में डाल दी और दूसरे को उसकी हाथ में पकड़ा के जोर जोर से बोलने लगी

" पेल न, और कस के चोद दे, झाड़ दे, झड़ जा बुच्ची की बुरिया में हाँ हाँ "



लग रहा था अब निकला तब निकला, इमरतिया तैयार थीं लेकिन तब भी चार पांच मिनट और मुठियाने के बाद, जैसे कोई फव्वारा छूटा हो,



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लेकिन इमरतिया पहले से तैयार थीं, मिटटी के सकोरे को लेकर और एक एक बूँद उसमे रोप लिया।

पर वो जानती थीं अभी बहुत मलाई बची है अंदर, तो सुपाड़े को हलके से दबा दबा के, फिर से जो बूँद बूँद निकला वो भी उसी में और फिर सुपाड़े और आसपास जो लगा था उसे हाथ से काँछ के उसी सकोरे में, और वो गाढ़ी सफ़ेद बूंदे लुढ़क के सकोरे के अंदर,




यही समय होता है सम्हालने का, और एक अनुभवी खिलाड़ी की तरह बिना कुछ बोले, बस हलके हलके सहलाते पुचकारते शेर को छोड़ दिया।

यह समय मरद का होता है चार पांच मिनट सुस्ताने के, उन पलों का मजा लेना का और उस समय वो सिर्फ हल्का स्पर्श सुख चाहता है तो बस इमरतिया सुरजू को पकडे रही और फिर पांच मिनट बाद, बिन बोले, बुकवा का कटोरा उठाया और पैर के पंजे के पास बस हलके हलके पंजो में पहले बुकवा लगाना शुरू किया फिर पैरों में और बात शुरू की, पहले अखाड़े के बारे में, सुरजू के दंगल जीतने के बारे में, सेक्स के बारे में एकदम नहीं, जिससे वो सहज हो जाए, और फिर बात धीरे धीरे मोड़ दी।


' देवर कभी किसी का पेटीकोट का नाडा खोले हो "?

सुरुजू अभी भी शरमाते झिझकते थे लेकिन इमरतिया से धीरे धीरे खुल रहे थे, बोले,

" का भौजी, आप भी न। गुरु जी लंगोटे की, अखाड़े की कसम धराये थे, माई के अलावा कउनो औरत की परछाई से भी दूर रहना, मतलब छूना भी नहीं, तो जब बियाह तय हुआ तो माई बोलीं की पहले अपने गुरु जी से बोल के आवा तो वो हंस के बोले,

' माई का हुकुम, गुरु से भी ऊपर। मेरे लिए भी माई ही हैं तोहार माई। तो चलो आज से अपने कसम से तोहें आजाद किये और तिलक के एक दिन पहले आना, माई से बता देना वो समझ जाएंगी।"

तो तिलक के एक दिन पहले जो हम गए तो आखिर बार अखाड़े में उतरे, ओहि मिटटी से हमारा तिलक किये और एक लुंगी दिए, बोले

"अब लंगोट खोल के ये लुंगी पहन लो। आज से लंगोट से आजाद हो, लंगोट की शर्त से आजाद हो। लेकिन अब अखाड़े की ये मिटटी में उतर के दंगल नहीं लड़ सकते हो, हाँ तोहार घर है, आओ कुश्ती देखो, नए नए लौंडो को दांव पेंच समझाओ, पर लंगोट की कसम से आजाद हो। लेकिन हमारा आशीर्वाद है की जिस तरह इस अखाड़े में हर दंगल जीते हो, तुम्हारी माई की कृपा से जिंदगी के अखाड़े में भी हर दंगल जीतो, हाँ वहां के लिए तुन्हे अलग गुरु चाहिए होगा। "

" तो मिली कउनो गुरुआइन " आँखों से चिढ़ाते, उकसाते इमरतिया ने पुछा और अब बुकवा लगाते हाथ जाँघों तक पहुँच गए थे ,

"भौजाई से बड़ी कौन गुरुआइन, ऊपर से माई क हुकुम, भौजी क कुल बात मानना "


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हँसते हुए सूरजु ने मजाक किया। और इमरतिया फिर बात पेटीकोट के नाड़े पे ले आयी और बोली

" अइसन नौसिखिया अनाड़ी देवर, अब सिखाना तो पड़ेगा ही, तो ये समझ लो की कोहबर में सलहज कुल पहले यही जांचेगी की नन्दोई उन्हें पेटीकोट का नाड़ा खोल पाते हैं की नहीं। तो पहला काम तोहें ये देंगे की आँख बंद करके बाएं हाथ से एक गाँठ खोलो, नहीं खोलोगे तो बहिन महतारी कुल गरियाई जाएंगी "

लेकिन ये बाएं हाथ से काहें भौजी " सूरजु को भी अब मजा आ रहा था, थे वो क्विक लर्नर लेकिन इस सब बातों से अभी पाला नहीं पड़ा था वरना समझाने की जरूररत नहीं पड़ती।

" अरे हमार बुद्धू देवर कभी लौंडिया चोदे होते तो पूछते नहीं, अच्छा ये बताओ, हमार चोली कौन हाथे से खोले थे दाएं की बाएं "

" दाएं हाथ से भौजी " सूरजु बोले।

" बस तो पहली रात में तो दायें हाथ से तो दूल्हा दुल्हिन की चोली खोलने के चक्कर में रहता है और दुल्हन उसे खोलने नहीं देती। अपने दोनों हाथों से उसका दाए हाथ पकड़ के हटाती है। तो बस सोचो दूल्हा का करेगा ? "


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" बाएं हाथ से पेटीकोट क नाड़ा " हँसते हुए सुरजू देवर भौजी से बोले, और अब भौजी का हाथ क बुकवा हलके हलके खूंटा पे

" एकदम, चलो कुछ तो समझे, और दुल्हन का महतारी, भौजाई, तोहार सलहज कुल उसको सीखा के भेजेंगी की सात गाँठ लगा के पेटीकोट का नाड़ा बांधना, और वो भी न खाली बाएं हाथ से खोलना होगा बल्कि अँधेरे में। रौशनी में तोहार दुलहिनिया पास नहीं आने देगी। पहले बोलेगी की रौशनी एकदम बंद करो। इसलिए अँधेरे में बाएं हाथ से तो वही जांचने के लिए सलहज सब गाँठ बाँध के देंगी आँख बंद कर के बाये हाथ से खोलने के लिए "

इमरतिया एक एक दांव पेंच सूरजु देवर को समझा रही थी, पहले थ्योरी फिर प्रैक्टिकल, तभी तो देवर पक्का होगा, बिआइह के पहले नंबरी चोदू बनाना है इसको

" तो कैसे हो पायेगा " सुरजू के समझ में नहीं आया।

" अरे कैसी नहीं हो पायेगा, हमर देवर हो, मजाक है। चोद चोद के पहली रात को रख देगा उनकी ननद को। देखो एक तरीका तो यही है दाएं से चोली और बाएं से पेटीकोट लेकिन जब वो पेटीकोट का हाथ रोकने लगे तो बस पेटीकोट छोड़ के दोनों हाथ से चोली खोल दो।

फिर दस पन्दरह मिनट पे दोनों जुबना का रस लो, छू के सहला के चूम के , जब थोड़ी गरमा जाए तो एक साथ ही दोनों हाथ एक हाथ से पकड़ लो और कुछ देर तक और कुछ नहीं , वो छुड़ाने की कोशिश कर के थक जायेगी , फिर दूसरे हाथ से , बाएं हाथ पेटीकोट क नाड़ा, और नाड़ा खोलना नहीं सीधे निकाल के दूर फेंक दो। जिससे दुबारा पकड़ के चढ़ा के बाँध न ले।"

सुरजू बहुत ध्यान से बिस्तर के अखाड़े के दांव पेंच समझ रहा था, और इस खेल की जबरदस्त खिलाड़न इमरतिया उसको सब गुर सिखा रही थी।


" लेकिन ये मत समझो की भरतपुर इतनी आसानी से लूट लोगे। उसको भी उसकी भौजाई, घर की नाउन, माई मौसी सिखा रही होंगी। दोनों गोड़ में गोड़ फंसा के बाँध लेगी जिससे भले नाड़ा खुल जाए, लेकिन पेटीकोट उतर न पाए। फिर शहर वाली है तो पेटीकोट के नीचे भी का पता चड्ढी पहनती हो, या उस दिन जानबूझ के पहने। दूसरी बात, पेटीकोट की गाँठ, एक गाँठ नहीं भौजाई सब सिखा के भेजेंगी, सात सात गाँठ, और न खोल पाए, तो अगले दिन जब तोहार बहिनिया सब हाल चाल पूछेंगी न तो न हंस के वही चिढ़ाएगी,

' तोहार भाई तो पूरी रात लगा दिए, मुर्गा बोलने लगा, गाँठ खोलने में तो का कर पाते बेचारे। तुम सब कुछ सिखाये पढ़ाये नहीं थीं का।"

और उससे ज्यादा तोहार सास अपनी समधन का, तोहरी माई क चिढ़ाएँगी,

' बेटवा जिन्नगी भर पहलवानी करता रह गया और हमार बिटिया जाए के,... रात भर,.... नाड़ा क गाँठ ढूंढे में लग गयी, "


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अब भौजी सीने पे हाथ पे बुकवा लगी रही थीं फिर ढेर सारा बुकवा लेके जो थोड़ा सोया थोड़ा जाएगा मूसल था उसके ऊपर, और बस हलके हलके लें भौजाई की उँगलियों की छुअन लेकिन इतना काफी था, वो फिर से फुफकारने लगा।



सुरजू भौजी के गदराये जोबना को निहार रहा था, लालटेन की हलकी हलकी पीली रौशनी, जमीन पर छितरायी थी। गोरा चम्पई मुखा, छोटी सी नथ, बड़ी सी बिंदी, लाल लाल खूब भरे रसीले होंठ,



" क्यों खोलना है नाड़ा " भौजी एकदम उसके सीने पे चढ़ी, अपने पेटीकोट का नाड़ा दिखा रही थीं,
Aaj raat ke baad ek naya saryu ka janam hoga
 

Chalakmanus

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Komal g kuch sawal hai.

Kuch sikayat bhi.
Sawal ye hai ki

Aapne is story ki first part bohot hi fast forward ⏩ main ki.or isko slowly .🦥

Or sikayat to bohut hai
Pehle aapne story ko chhutki pe start Kia.pathan tola wali hinawa aayi.phir aapne pathan tolo ka jikra hi chhod diya
Phir chhutki ko side karke nanad ko gabhin karne main lag gayi.
Ab nanad ko side karke saryu or saryu ki bahu pe le aayi.
Or phir ab saryu or imritiya pe.
 

Premkumar65

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भाग १०७

बुच्ची और चुनिया
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२७,१०,२१४

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लेकिन तभी नीचे से बुच्ची की सहेलियों की आवाज आयी और वो छुड़ाकर, हँसते खिलखिलाते कमरे से बाहर।


और इमरतिया भी साथ साथ लेकिन निकलने के पहले सूरजु को हिदायत देना नहीं भूली

" स्साले, का लौंडिया की तरह शर्मा रहे थे, सांझ होते ही मैं आउंगी बुकवा लगाने, आज खाना भी जल्दी हो जाएगा।
यहीं छत पे नौ बजे से गाना बजाना होगा, तोहरी बहिन महतारी गरियाई जाएंगी। तो खाना आठ बजे और दो बात, पहली अब कउनो कपडा वपडा पहनने की जरूरत नहीं है, इसको तनी हवा लगने दो और ये नहीं की हम आये तो शर्मा के तोप ढांक के,
और दूसरे बुच्ची जब खाना खिलाती है तो अपने गोद में बैठाओ, ओकर हाथ तो थाली पकडे में खिलाने रहेगा , बस फ्राक उठा के दोनों कच्चे टिकोरों का स्वाद लो,"

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पर बात काट के सूरजु ने मन की बात कह दी,

" पर भौजी, हमार मन तो तोहार, लेवे का,….. "

" आज सांझ को, आउंगी न बुकवा लगाने, …चला तब तक सोय जा। "

मुस्कराकर जोर जोर से बड़े बड़े चूतड़ मटकाकर, मुड़ कर इमरतिया भौजी ने सूरजु देवर से वादा कर दिया .

इमरतिया का मन हर्षाय गया, कितने दिन से ये बड़का नाग लेने के चक्कर में थी और आज ये खुद,...
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बुच्ची सीढ़ी पर इमरतिया का इन्तजार कर रही थी.

सीढ़ी पर से नीचे उतरते हुए, इमरतिया ने बुच्ची की छोटी छोटी चूँची फ्राक के ऊपर से दबाते हुए बोली, " हमार देवर दबाय दबाय के इसको बड़ा कर देगा " और नीचे से फ्राक को उठा के चिकनी बिल के छेद पे ऊँगली रगड़ते हुए चिढ़ाया “ और इसको चोद चोद के "

अपने को छुड़ा के नीचे आंगन में दौड़ के पहुँचती हुयी सहेलियों के बीच से बुच्ची ने मुंह चिढ़ाते हुए कहा

" अरे भौजी, तोहरे मुंह में घी गुड़, भौजी क बात जल्द सही हो "

लेकिन एक भौजाई के चंगुल से छूटी थी तो यहाँ तो दर्जनों भौजाई मौजूद थीं, कच्ची उमर की ननद का रस लेने, एक बोली,

"आय गयी, हमरे देवर से चुदवा के. फ्राक उठा के देखो, बिल बजबजा रही होगी,… सफ़ेद मलाई से "

" अरे एक देवर से कहाँ काम चलेगा, देखना, देवरन से पेलवायेगी, उहो एक साथ, क्यों बुच्ची, बबुनी ,…एक बुरिया में एक गंडिया में, "

एक गाँव की कहारिन हँसते हुए बोली।


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सब को मालूम था की बुच्ची ऐसे मजाक से बहुत छनछनाती थी इसलिए और रगड़ाई होती थी उसकी।

" अरे खाली अपने भाई को दोगी की,... हमरे भाइयों को भी दोगी, "
चुनिया, रामपुर वाली भाभी की छोटी बहन बोली,

वो लोग अभी थोड़ी देर पहले आये थे, वो भी नौवें में पढ़ती थी और बुच्ची की पक्की सहेली।
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उसका भाई गप्पू बारहवें में था और बहुत दिन से बुच्ची के चक्कर में था।

रामपुर वाली भौजी का नाम रामपुर वाली कैसे पड़ गया?

असल में गाँव में भौजियों की कमी तो होती नहीं, तो कोई बड़की भौजी, कोई नयकी, कोई छोटकी, लेकिन फिर आगे लगाने वाले विशेषण कम पड़ जाते हैं, तो भौजी के मायके का नाम का जोड़ के, और रामपुर कोई ऐसी वैसी जगह भी नहीं थी, क़स्बा था, बड़ा कस्बा, समझिये छोटे मोटे शहर की टक्कर लेता, लड़कियों, लड़को का इंटर तक स्कूल, हॉस्पिटल, और सबसे बढ़कर सिनेमा हाल, और उससे भी बड़ी बात की वहां से बस चलती थी, जो सूरजु के ननिहाल, रामपुर वाली के ससुराल से दो मील पहले एक बजार थी, वहां तक, और गाँव के सब लोग कोई बड़ी खरीददारी करने हो, घूमने जाना हो तो रामपुर ही, तो बस भौजी रामपुर वाली हो गयी।
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रामपुर वाली से सूरजु की माई की बहुत दोस्ती थी, और भौजी के गौने उतरने से ही, असल में,


बताया तो था, सूरजु के बाबू को नवासा मिला था, सूरजु के माई के न कोई भाई न बहन, तो सूरजु के नाना ने सब कुछ, सूरज बली सिंह, अपने नाती के नाम लिख दिया था, १०० एकड़ जमीन पे तो खाली गन्ना होता था, ओहि गाँव में, बाकी धान, गेंहू, आम क दो बाग़ और अगल बगल के गाँव में भी कई जगह जमीन, सब सूरजु के नाम। तो सूरजु की माई और सूरजु दोनों, बोवाई, जुताई, कटाई और बीच बीच में जाते रहते, और रामपुर वाली भाभी का घर एकदम बगल में, तो कभी उन्ही के यहाँ टिक जाते,


मिजाज भी सूरजु की माई का और रामपुर वाली का बहुत मिलता था, खूब खुल के हंसी मजाक, छेड़छाड़ वाला, और सूरजु कभी अकेले जाते तो पक्का रामपुर वाली भौजी के यहाँ, अब एक आदमी के लिए क्या घर खोले।

एक बार पहुंचे वो तो भौजी उदास, असल में उनके पति शहर में कारोबार करते थे तो हफ्ते में पांच दिन तो शहर में, कभी कभी भौजी भी, लेकिन जुताई, बुआई, खेती के काम के टाइम वही रामपुर वाली मोर्चा सम्हालती, और जब सूरजु ने बहुत पूछा तो मुस्करा के चिढ़ा के बोलीं

" जब मरद घर नहीं होता तो उसकी सब जिम्मेदारी देवर की होती है, सब काम करना होता है मरद का, "

" एकदम मंजूर आप परेशानी बताइये न भौजी " बिना कुछ सोचे सूरजु बोले। आज तक उन्होंने भौजी को उदास नहीं देखा था

" अरे जुताई हुयी नहीं है, बड़का खेत में भी और पोखरा के बगल वाले में भी, और हफ्ता दस दिन में बुवाई का टाइम हो जाएगा हरवाह बीमार हैं दोनों और तोहार भैया कउनो कारोबार के चक्कर में बम्बई गए हैं,... दस दिन बाद आएंगे, "
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अपनी परेशानी भौजी ने देवर को बतायी,

" अरे देवर के रहते जुताई क कौन परेशानी, बात आपकी सही है, मरद न होने पे देवर क जिम्मेदारी, भैय्या नहीं है, आपका देवर तो है न "

बस अगले दो दिन में रामपुर वाली का सब खेत जुत गया, लेकिन रात में रामपुर वाली ने खुल के छेड़ा, सूरजु को,

" हे देवर, खाली बाहर के खेत क जुताई करते हो की घर के अंदर भी, "


सूरजु शर्मा गए, चेहरा लाल, " धत्त भौजी," धीमे से बोले, और भौजी ने सीधे देवर के लोवर की ओर हाथ बढ़ाया, बेचारा घबड़ा के पीछे हटा तो रामपुर वाली खिलखिला उठी,

"अरे तू तो इतना लजा रहे हो, इतना तो लौंडिया नहीं लजातीं, हम तो बस ये देख रहे हैं की कही देवर की जगह ननद तो नहीं है"
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और उस दिन से देवर भाभी की जोड़ी जम गयी,

लजाधुर, झिझक शर्म में कमी नहीं आयी लेकिन अपने मन की बात जो माई से नहीं कह पाते थे वो रामपुर वाली से, और रामपुर वाली की एक रट, हमें देवरानी चाहिए, उन्होंने समझाया भी कुश्ती छोड़ना पड़ेगा तो वो चिढ़ा के बोलतीं,

"अरे नहीं, हमरे देवरानी से लड़ना न कुश्ती, तोहें पटक देगी हमार गारंटी, और फिर साली, सलहज, कुश्ती लड़ने वालों की कमी नहीं होगी, कब तक बेचारे नीचे वाले पहलवान को बाँध छान के रखोगे "

और सूरजु रामपुर वाली से ही क़बूले,


"भौजी बस यह नागपंचमी को आखिरी कुश्ती, एक पहलवान पंजाब से आया है, हर जगह चैलेंज दिया है एक बार उसे पटक दें तो फिर जउन भौजी कहें वो कबूल "

और ये ख़ुशख़बरी जब रामपुर वाली ने सूरजु की माई को दी तो बस उन्होंने गले लगा लिया और बोलीं,

खाली बरात बिदा करे, देवरानी उतराने मत आना,जिस दिन से लग्न लगेगी, उस दिन से, तोहार देवर तोहार देवरानी तू जाना, मैं तो खाली चौके चढ़ के बैठी रहूंगी। और हाँ कुल जनी.

तो उन्ही रामपुर वाली भौजी क छोट बहिन चुनिया, बुच्ची क ख़ास सहेली और उन का छोटा भाई गप्पू, अभी बारहवें में गया, रेख क्या हल्की हलकी मूंछ भी आ रही थी, और सूरजु सिंह जैसा लजाधुर नहीं, लेकिन बहिन क ससुराल तो थोड़ा बहुत झिझक


लेकिन जितना रामपुर वाली भौजी सूरजु की माई के करीब उतना ही ये दोनों, और गरमी की छुटियों में, जाड़े में, कई बार सावन में राखी में वो आता चुनिया के साथ तो हफ़्तों,

और कई बार बुच्ची भी उसी समय सूरजु की माई के साथ पहुँच जाती तो बस, कभी आम के बाग़ में तीनो छुपा छिपाई खेलते तो कभी पेड़ पर चढ़कर कच्चे टिकोरे तोड़ते, और दोनों लड़किया मिल के अकेले लड़के को, गप्पू को छेड़ती भीं,

एक दिन चुनिया और बुच्ची दोनों एक आम के पेड़ की मोटी डाल पर बैठीं थी और नीचे गप्पू, वो दोनों टिकोरे तोड़ के फेंक रही थी, गप्पू बटोर रहा था, साल डेढ़ साल पहले की बात है।

" हे भैया एकदम खट्टी मीठी कच्ची अमिया चाहिए " मुस्कराते हुए बुच्ची के कंधे पर हाथ रख के चुनिया ने गप्पू को छेड़ा,
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गप्पू को पेड़ पर चढ़ने में डर लगता था पर ये दोनों, बुच्ची और चुनिया, दोनों सहेलियां, बंदरिया की तरह, एक डाल से दूसरी डाल पर चढ़ कर पूरा बाग़ नाप देतीं।

गप्पू कुछ बोलता उसके पहले बुच्ची के कंधे पर रखा चुनिया का हाथ नीचे सरका और अपनी सहेली की कच्ची अमिया दबाते बोली

" अरे पेड़ के टिकोरे नहीं, ....मेरी सहेली के बुच्ची के "

अब वो बेचारा झेंप गया और जो लड़के लजाते हैं लड़कियां और उनकी खिंचाई करती है और सहेली के भाई पर तो लड़कियां अपना पहला हक समझती हैं तो बुच्ची बोली,

" टिकोरे के लिए तो ऊपर चढ़ना पड़ता है,.... नीचे से तो खाली ललचाते रहो "


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लेकिन उस दिन से गप्पू और बुच्ची में जबरदस्त नैन मटक्का चालू हो गया, वो लाइन मारता था और ये न ना न हाँ, लेकिन कभी मुस्करा के कभी अदा से गाल पे आयी लट झटक के,
Uffff kya mast kachhi kachhi amiya lekar aati ho aap Komal ji. Kachkacha ke khane ka man karta hai.
 

Premkumar65

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इमरतिया की पाठशाला


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इमरतिया, अच्छा खासा कद, भरा भरा बदन, जो देखे देखता रह जाये, गोरा चम्पई रंग, बड़ी बड़ी आँखे, पान के रंग से रंगे लाल लाल भरे भरे होंठ,

और जब से गौने उतरी थी तब से और गदरा गयी थी।

कड़े कड़े ३६ के जोबन, ३४ की टाइट, खूब लो कट चोली में जबरदस्ती बाँध के चलती थी, जवानी छलकती रहती थी, लाल लाल ब्लाउज में गोरी गोरी गदरायी उभरी कड़ी गोलाइयाँ, और उनके बीच में मंगलसूत्र सीधे गहराई में धंसा, ३२ की कटीली पतली कमर पर ३६ के जोबन और ग़दर मचाते थे, और उस से कातिल थे उसके चौड़े कूल्हे, और पैरों में छनछन करती पायल, हरदम महावर लगे पाँव, दूर से आवाज सुन के कोई समझ जाए इमरतिया है।
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जब गौने उतरी थी तो बस जवानी चढ़ ही रही थी, कुछ ही दिन पहले जाँघों के बीच केसर क्यारी उगना शुरू हुयी थी, जोबन बस ऐसे की मुट्ठी में ले लो, लेकिन मरद ने महीने भर में कचर के रख दिया, न दिन देखता था न रात, और ससुरार में न टोकने वाली सास थी न ताने देने वाली ननद। ससुर था वो बाहर, पर जब महीने भर बाद मरद को पंजाब जाना पड़ा, कटनी का टाइम आ गया था फिर कही होजरी में नौकरी मिल गयी,


सास नहीं थीं लेकिन दुल्हिन उतारने पूरा नाऊ टोला और उससे भी आगे बड़की ठकुराइन खुद, उन्ही की जजमानी थी।


और बोलीं भी सास समझो, जेठान समझो, कउनो बात हो तो बिना बुलाये आना,

और इमरतिया को जब अकेलापन काटने लगा तो उन्ही के पास और उन्होंने अच्छी तरह समझाया, फिर तो बेर सबेर कभी भी,

और ये भी बोला की जवानी और जोबन जा के नहीं लौटते तो मरद को तो कमाने जाना ही पड़ता है इसका ये मतलब थोड़े ही है,....


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आगे का मतलब वो समझ गयी, लेकिन और भी बात उन्होंने ही सिखा दिया, मर्जी तेरी पसंद तेरी।

तो जब कुछ दिन बाद ससुर भी नहीं रहे और मरद को फिर पंजाब जाना पड़ा, इधर उधर के बाबू साहेब लोग रात बिरात चक्कर काटने लगे, तो इमरतिया ने साफ़ कह दिया बिन बोले और ऊपर से बड़की ठकुराइन,.... बेर सबेर सूरजु सिंह को भेज देतीं बुलाने


छह हाथ के सूरजु सिंह, आठ हाथ की लाठी, और बीस गाँव में मशहूर उनकी लाठी का जोर, कसरती देह, एक दंगल नहीं हारे, और कब वो पहुँच जाएँ ठिकाना नहीं, बस वो डर भय भी खत्म, किसी की हिम्मत नहीं की कभी जबरदस्ती हाथ भी पकड़ ले, रात बिरात कहीं आये जाए नाउन का काम, अकेले पूरी जजमानी सम्हाल ली।

लेकिन वही सूरज सिंह, इमरतिया के आगे एकदम मक्खन, भौजी के अलावा कुछ मुंह से नहीं निकलता, हाँ ललचाते भी थे।


वैसा रूप और जोबन देख के किसका मन नहीं हिलेगा, फिर भौजी का रिश्ता और भौजी भी इमरतिया जैसे, बिना मजाक के वो भी एकदम खुल के कभी छू भी देती, कभी चिकोटी काट लेती, कभी गिर पड़ती और उठाने के बहाने जोबन का बोझ, और सूरज सिंह की हालत देख के उसे बहुत मजा आता
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ये नहीं था की इमरतिया ने कभी अपने मर्द के अलावा किसी के सामने आपन लहंगा न पसारा हो, नाड़ा न खोला हो, बहुतों के सामने,

लेकिन दो बातें थी पहली बात मन मिले, मर्जी उसकी



और दूसरी बात मर्द देह का तगड़ा हो रगड़ के कुचल के रख दे, और फिर तो इमरतिया खुद,

और एक बात और अपनी जजमानी में एकदम नहीं, गाँव में भी बहुत कम, लेकिन बड़की ठकुराइन साल में तीन चार चक्कर महीने भर के लिए सूरजु सिंह के ननिहाल, इतना बड़ा नवासा, १०० बीघा का तो गन्ने का ही खेत थे, तो बुआई कटाई, तो सूरजु भी अक्सर जाते और इमरतिया तो पक्का बड़की ठकुराइन की छाया, और फिर इमरतिया का मायका भी बड़की ठकुराइन के मायके से बस पांच दस कोस, तो वहां भी कभी आना जाना, और जब तक नवासे में खेत की कटाई, बुआई होती, रोपनी होती, इमरतिया के खेत की भी जुताई होती, बिना नागा।



और इमरतिया को देह सुख की सारी कलाएं मालुम थीं, चाहे एकदम कच्चा नौसिखीया, बस जिसकी रेख आ रही हो ऐसा लौंडा हो या कड़ियल जवान, औरत को तीन बार झाड़ के झड़ने वाला, चाहे लम्बा मोटा हो चाहे एकदम,,… इमरतिया सब मजे लेना भी जानती थी और देना भी।



जैसे चाशनी से निकली ताज़ी ताज़ी छनी, रस से डूबी इमरती हो, वैसे ही टप टप रस टपकता रहता इमरतिया से, और वो तैयार हो रही थी सूरजु बाबू को बुकवा लगाने और सोच रही थी नयकी दुलहिनिया के बारे में।

और मुस्किया रही थी, लड़की से ज्यादा लड़की क महतारी के बारे में सोच के,

दो चीज के बारे में केतना घमंड,लड़की वाले तो हरदम थोड़ा झुक के ही रहते हैं लेकिन वो और खाली दो बात पर,

इमरतिया थी उस समय, बड़की ठकुराइन के साथ। उनकी भौजाई, सुरजू की मामी, ऐसी हंसमुख ,

सुरजू की माई को तो छोड़िये, इमरतिया से जबकि वो तो बिटिया -बहू की तरह लगी, बिना चिढ़ाए, छेड़े, गरियाये बात नहीं करती, की उनकी ननद के ससुरार की थी, तो वो और एक दो सुरजू की माई के मायके की। ये लोग उनके नवासे में ही थी, सुरजू के ननिहाल में


वैसे तो बियाह शादी की बात, अगुआ, नहीं तो नाऊ या घर के बड़े मरद,

लेकिन एक तो बात सारी तय हो गयी थी दूसरे सुरजू के घर में मरद कहो , मेहरारू कहो, बस सुरजू क माई, बहुत दिन से बाप माई दोनों क जिमेदारी निभा रही थीं। और समधन बोलीं की हम पास के गाँव में आये थे तो मिलना चाहते हैं तो सुरजू क माई हाँ बोल दी।



लेकिन थोड़ी देर में दुल्हिन क माई आपन गठरी खोल दीं, दो ही बात शहर और पढ़ाई।
" हमार बिटिया शहर में रही बढ़ी है तो गाँव क रंग ढंग और फिर पढ़ी है, हाईस्कूल क इम्तिहान दिया है, तो पढ़ी लिखी लड़की तो आप जानती हैं,"

' ये तो बहुत अच्छी बात है, हम लोग ठहरे गाँव वाले कोई शहर क आएगा तो और अच्छा है, फिर हमरे घर क लछमी है पढ़ी लिखी है तो लछमी सरस्वती दोनों, आप बहुत अच्छे से बिटिया को पाली पढ़ाई हैं, अब आप क बिटिया हमार बिटिया, आप कोई चिंता न करिये "

सुरजू की माई ने अपनी समधन को पान थमाते हुए कहा।

लेकिन लड़की की माई अब एकदम खुल के बोलीं,

" नहीं मेरा मतलब है, उसे एक काम धाम ज्यादा पता नहीं है, आप तो जानती हैं पढ़ने वाली लड़की तो हरदम किताब, पढ़ाई, तो घर का काम और गाँव में तो और भी ढेर सारा काम.,...
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अबकी सुरजू की माई के गाँव की पंडिताइन बैठी थीं, उन्होंने बात सम्हाली,

" अरे हमरे बिटिया के घरे में पचासो काम करने वाले है , वो राज करेगी, बस खटिया पे बैठे बैठे, इन लोगो के पास वहां इतनी बड़ी खेती बाड़ी, बाग़ और उतना ही बड़ा नवासा, अकेला बेटा है हमार सुरजू।"



लेकिन करीब पांच छह बातों पे उन्होंने हामी भरवाई की उनकी बेटी ये नहीं करेगी, वो नहीं करेगी,

लेकिन सुरजू की मामी से नहीं रहा गया और वैसे भी सामने समधन हो और मजाक न हो छेड़ा न जाए तो वो हँसते हुए बोली,


" अब ये मत कहियेगा की,... टांग भी नहीं फैलाएगी आपकी बिटिया, "
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और सब हंसने लगे, लेकिन लड़की की माँ को शायद ऐसा मजाक बुरा लगा

थोड़ा चिढ गयीं,

" अब ये शायद बात, ऐसे देखिये वो भी, अब ऐसे मजाक किसी पढ़ी लिखी लड़की के साथ, हमर बिटिया हाईस्कूल तक तो थोड़ा उस का भी ख़याल रखियेगा, "



सुरजू क माई ने बात सम्हाला, " अरे हमार भौजाई हैं, ….आप की भी समधन हैं तो समधन के साथ हंसी मजाक तो चलता है, आप एकदम चिंता न करिये "



लेकिन दुल्हिन क माई के जाने के बाद माहौल एकदम बदल गया, फिर वही एकदम खुले हंसी मजाक और वही

सुरजू क मामी, " हमार बेटवा असली अपने मामा क जना, इनकी बिटिया के टांग फ़ैलाने का इंतजार थोड़े करेगा, अपने असली बाप की तरह, अपने मामा की तरह पकड़ के चीर देगा, "

हँसते हुए अपनी ननद को, सुरजू की माई को छेड़ा।

" अरे हमार बेटवा पहलवान है कचर के रख देगा, " सुरजू क माई बोली और बात इमरतिया के पाले में डाल दी,

" इमरतिया, सुन तुहि असल भौजाई हो सुरजू क तो तोहार जिम्मेदारी। अब ये तो बोल के गयीं है की वो टांग नहीं फैलाएगी, तो ओकर गोड़ अगले दिन जमीन पर न पड़ने पाए और उनकी महतारी को भी मालूम हो जाए की कौन गाँव बिटिया भेजी हैं "



तब से ये मजाक चल पड़ा था की सुरजू की दुल्हन पढ़ी लिखी है, टांग पता नहीं फैलाएंगी की नहीं।
Superb update Komal ji
 

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सुरजू इमरतिया के हवाले
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और अब सुरजू इमरतिया के हवाले,

जो तेल आज वो कडुवा तेल में डाल के, और जड़ी बूटी जोड़ के ख़ास तेल बनायी थी मालिश के लिए, लोग कहते हैं की पांच दिन में केंचुआ क सांड बना दे,

और जो पहले से सांड़ हो,

कल जब खोल के ' वहां' मालिश की तो इमरतिया की ऊपर की सांस ऊपर नीचे की नीचे, और ऐसा नहीं की वो इससे पहले पकड़ी न हो घोंटी न हो, ...बीसो पच्चीसो,... और अब तो वो गिनती करब छोड़ दी थी, उसके मरद का भी कम जबरदस्त बांस नहीं था, लेकिन सुरजू के आगे कुल झूठ,

जो सबसे लम्बा मोटा देखी थी, उससे भी दो अंगुल आगे, और कड़ा कितना,

लेकिन ये भी बात साफ़ थी की एक तो एकदम नौसिखिया, दूसरे उनसे केहू क दरद नहीं देखा जा सकता और बिना जोर जबरदस्ती के कुँवारी लड़की चुदती नहीं, और चुदवाने का मन भी करे तो छिनरपन में टांग सिकोड़े रहेगी।
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जांगर की कोई कमी नहीं, लेकिन मन,

और खीर में जो जड़ी बूटी डालने को महराजिन को दी है उसका असर तो यही है, बाल ब्रम्हचारी भी नम्बरी चोदू हो जाए, सामने बहिन महतारी भी हो खाली चूत नजर आये,

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और दो चार दिन में जबरदस्त असर शरू हो जाता है, ऊपर से इमरतिया की ट्रेनिंग, दो कटोरी बुकवा ( उबटन ) एक छोटी शीशी में 'वो वाला तेल' और कडुवा तेल,

रस्ते में मंजू भाभी और मुन्ना बहू कहारिन से मिटटी के कुल्हड़ सकोरा ले के गिनवा के रख रही थीं तो इमरतिया उन से मिटटी के दो सकोरे भी ले ली, देवर का शीरा बच्ची के लिए।

इमरतिया आज देवर की कोठरी में सोलहो सिंगार कर के,


लेकिन उसके मालूम हो था की उसका देवर कौन दूनो हवा मिठाई देख ललचाता है तो आज गौने क रात चो चोली पहनी थी, अब तो एकदम ही टाइट और वो भी बस चुटपुटिया बटन, हाथ लगाओ तो चुटपुट चुटपुट खुल जाए, हलके से सांकल खटखटाया और दरवाजा झटके से खोल दिया।

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अइसन लजाधुर,

इमरतिया जोर से मुस्करायी,। वो जैसे बोल के गयी थी, की थोड़ा देह को हवा पानी देखाओ तो वो एकदम निसुते चद्दर ओढ़े, लेकिन इमरतिया को देखते मारे लाज के और झट से तौलिया लपेट के खड़ा हो गया।

इमरतिया ने आराम से पहले सुरजू को दिखाते हुए अंदर से सांकल बंद किया, अपनी साड़ी उतारी, खूंटी पे टांगी, बुकवा का कटोरा जमीन पे रख के, चटाई बिछाई के चिढ़ा के बोली,

" अरे अब कपड़ा उतारने वाला दिन आ गया है, ....और खाली आपन नहीं दुलहिनिया का भी खोलना पड़ेगा, चलो लेटो "
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और हल्का सा धक्का देके सुरजू को लिटा के दोनों हाथ में तेल लगा के सुरजू के देह पे, कुछ इमरतिया की हाथ का असर, कुछ जिस तरह से चोली फाड़ रहे दोनों जोबन एकदम सुरजू के मुंह के पास, जैसे ही इमरतिया झुकती, और थोड़ी देर में तौलिये का तम्बू खड़ा हो गया, पूरे एक बित्ते,


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लेकिन इमरतिया के ऊपर असर नहीं था। वो दोनों पैरों के बाद हाथ और कंधे पे तेल लगा रही थी और अब उसकी चोली की गहराई, उभार सब दिख रहे थे और वो जान के सुरजू के चेहरे पे रगड़ दे रही थी।


" खोलो, अब बहुत चोर सिपाही हो गया " मुस्करा के वो बोली, और एक झटके में इमरतिया ने तौलिया जो उठा के खींचा और फेंका सीधे उसकी साड़ी के ऊपर, खूंटी पे।
Ab to imratiya Sarju ki lekar rahegi.
 

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चार बूँद कडुवा तेल
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लेकिन इमरतिया, इमरतिया थी। चाशनी में डूबी, रस में पगी।

और देवर को तड़पाना जानती भी थी और चाहती भी थी, स्साला खुद अपने मुंह से मांगे, बुर बुर करे, तो बस अंगूठे और तर्जनी को तेल में चुपड़ के खूंटे के बेस पे, और सोच के मुस्कराने लगी, अभी थोड़ी देर पहले बुच्ची के हाथ में जो पकड़ाया था दोनों कैसे घबड़ा रहे थे,

यही शरम लाज झिझक तो खतम करवा के पक्का चोदू बना देना है इसे बरात जाने के पहले,

मरद की देह के एक एक नस का, एक एक बटन का पता था इमरतिया को।

कहाँ दबाने से झट्ट खड़ा होता है, कहाँ तेल लगाने से लोहे का खम्भा हो जाता है, और बस वहीँ वो तेल लगा रही थी, दबा रही थी और खूंटा एकदम कुतुबमीनार हो रहा था। लेकिन देवर था एकदम आज्ञाकारी, कल उसने सुपाड़ा खोल के जो हुकुम दिया था, 'एकदम खुला रखना उसको' तो एकदम खुला ही था, चोदने के लिए तैयार। बस गप्प से इमरतिया ने मोटे लाल सुपाड़ा को दबाया, उसने मुंह चियार दिया, और

टप्प, टप्प, टप्प, टप्प, चार बूँद कडुवा तेल की सीधे उसी खुले छेद में, और लुढ़कते पुढ़कते अंदर तक।
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लंड फड़फड़ाने लगा।

और फिर दोनों हथेलियों में तेल लगा के जैसे कोई ग्वालिन मथानी चलाये, उसी तरह और सीधे इमरतिया की मुस्कराती उकसाती आँखे सीधे सूरजु की आँखों में, उसे छेड रही थीं, चिढ़ा रही थी।

सूरजु की आँखें इमरतिया के भारी भारी ३६ साइज के जोबन से चिपकी थीं जो आधे से ज्यादा चोली से छलके पड़ रहे थे

" चाही का, अरे तोहरी महतारी का और बड़ा है, बहुते जोरदार, आज ललचा रहे थे न देख देख के, अरे मांग लो, पिलाय देंगी दूध "

इमरतिया ने सूरजु की माई का नाम लगा के चिढ़ाया लेकिन बातें दोनों सही थीं। सूरजु की माई का ३८ था, लेकिन था एकदम टनक कितनी बार इमरतिया और सूरजु की माई के बीच में दंगल होता था लेकिन जोबन की लड़ाई में सूरजु की माई हरदम बीस पड़ती थीं , अपनी बड़ी बड़ी चूँची से इमरतिया को कुचल देती थीं।

" बल्कि मांगने की बात भी नहीं, ले लेना चाहिए " इमरतिया ने और आग लगायी और सूरजु के दोनों हाथ पकड़ के अपनी चोली पे

और पहलवान के हाथ के बाद चुटपुटिया बटन कहाँ टिकती, चुटपुट चुटपुट चटक के खुल गयी।

ब्लाउज उसी खूंटी पे जहां सुरुजू का तौलिया और इमरतिया की साडी टंगी थीं, और दोनों बड़े बड़े कड़े जोबना सूरजु के हाथ में
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कुंवारे जवान मरद का हाथ पड़ते ही इमरतिया पिघलने लगी , लेकिन ये चाहती भी थी। अब सूरजु का दोनों हाथ लड्डू में फंसा था इमरतिया कोई बदमाशी करती, वो हाथ लगा के रोक नहीं पाता। लेकिन वो साथ साथ सूरजु को सिखा भी रही थीं की नयकी दुलहिनिया को कैसे कचरे।कैसे उसके चोली के अनार को पहली रात में ही मिस मिस के पिसान (आटा ) कर दे,

" अरे ऐसे हलके हलके नहीं , ये कउनो बुच्ची क टिकोरा नहीं है और उस की भी कस के रगड़ना। मेहरारू के मरद के हाथ में सख्ती पसंद है कैसे पहलवान हो ? कहीं तोहार महतारी तो कुल ताकत नहीं निचोड़ ली ?
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और अब सूरजु ने थोड़ा जोर लगा के चूँची मसलना शुरू किया और इमरतिया ने लंड को मुठियाना शुरू किया, लेकिन थोड़ी देर में ही सूरजु बाबू उचकने लगे,

" नहीं भौजी, मोर भौजी, छोड़ दा, छोड़ दा "

खूंटे पे हथेली का दबाव बढ़ाते इमरतिया ने चिढ़ाया, " क्या छोड़ दूँ ? स्साले मादरचोद, नाम लेने में तो तोहार गाँड़ फट रही है का दुलहिनिया को चोदोगे? बोल, का छोडूं, "

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अब सूरजु भी समझ गए थे और सुबह से तो गाँव की औरतें तो खुल के बोल रही थीं और सबसे बढ़ के उनकी माँ और बुआ और उन्ही का नाम ले के और माँ कभी बूआ की गारी का जवाब नहीं देती तो बूआ छेड़तीं,

" का सूरजु क माई,... मुंह में दुलहा क लंड भरा है का जो बोल नहीं निकल रहा है "

तो झिझकते हुए बोल दिया, " भौजी, लंड, हमार लंड, "

" तोहार न हो, हमार हो, तोहरी भौजी के कब्जे में है जहाँ जहाँ भौजी कहिये, वहां वहां घुसी, जेकरे जेकरे बिलिया में जैसे भौजी कहिये, बोलै मंजूर "


" एकदम भौजी " कस कस के चूँची मसलते सुरुजू बाबू बोले और अब वो भी मूड में आ रहे थे और जोड़ा, " लेकिन पहले, ...."

इमरतिया खुश नहीं महा खुस, सूरजु तैयार हैं लेकिन ऐसा इमरतिया के जोबन का जादू पहले यही मिठाई चाहिए देवर को, तो मिलेगी आज ही मिलेगी, दो इंच की चीज के लिए देवर को मना नहीं करेगी, बल्कि वो नहीं कहते खुद ऊपर चढ़ के पेल देती वो

बिन बोले इमरतिया के चेहरे की ओर देख के अपने मन की बात कह दी उन्होंने, और इमरतिया ने मुस्करा के हामी भर दी और खूंटा छोड़ भी दिया, वो डर समझ रही थीं, जो हर कुंवारे लड़के के मन में होता है, ' कहीं जल्दी न झड़ जाऊं " और वो जानती थीं की ये लम्बी रेस का घोडा है लेकिन उसे अभी खुद अपनी ताकत का अहसास नहीं है, किस स्पीड से दौड़ेगा, कितनी देर तक दौड़ेगा, दो चार पर इसे चढ़ाना जरूरी है ,


फिर भी खूंटा उसने छोड़ दिया लेकिन इमरतिया के तरकश में बहुत तीर थे।

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खूंटा छोड़ के उसने रसगुल्लों में तेल लगाना शुरू किया, मलाई का कारखाना यही तो थे, यही तो दुलहिनिया को पहली रात को गाभिन करेंगे और सबेरे चादर पर खून के साथ इसी की मलाई बहती मिलेगी, जब छोटी कुँवारी ननदें जाएंगी उठाने। और फिर हथेली से सुपाड़ी पे


असली खेल था सुपाड़े को एकदम तगड़ा, पत्थर ऐसा करना, भाला कितना लम्बा हो लेकिन अगर उसका फल भोथरा हो तो शिकार कैसे करेगा। और सूरजु देवर का सुपाड़ा तो एकदम ही मोटा, एकदम मुट्ठी ऐसा, बुच्चीया यही तो सोच के घबड़ा रही थीं, भैया क इतना मोत कैसे घुसी, और एक बार सुपाड़ा घुस जाए तो फिर लंड तो घुस ही जाता है।

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सूरजु सिसक रहे थे और इमरतिया ने बुच्ची की बात चलाई, " हे तोर बहिनिया, बुच्ची पकडे थीं तो कैसा लग रहा था ?

" अरे भौजी, आप जबरे उसकी मुट्ठी में पकड़ा दी थीं " हँसते हुए सूरजु बोले।

और एक बार फिर से हथेली में तेल चुपड़ के कस के खूंटा दबोच लिया, इमरतिया ने।

वास्तव में बहुत मोटा था, जब इमरतिया की मुट्ठी में नहीं समा रहा था तो नयकी दुलहिनिया की कोरी कच्ची बिलिया में कैसे धँसेगा ? इमरतिया मुस्करायी। चाहे जितनी रोई रोहट हो, चिल्ल पों करे, घोंटना तो पड़ेगा ही और वो भी जड़ तक। और ओकरे पहले बुच्ची ननदिया को।
Woww kya mast Naun hai. Surj ki sahi training ho rahi hai.
 

Premkumar65

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गुरुआइन,

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" बोल स्साले, अपनी माई के भतार, पेलेगा न बुच्ची को आज तो वो खुदे हाँ कर के गयी है "

हलके हलके मुठियाते इमरतिया बोली। अब सूरजु की झिझक थोड़ी कम हो रही थीं, कस कस के इमरतिया की चूँची मसलते बोला,

" लेकिन भौजी बुच्चिया बोली थीं की पहले, ////और आप भी हाँ की थीं "

" तो चलो तुंही दोनों लोगों की बात रहेगी , उसके बाद तो नंबर लगाओगे न अपनी छुटकी बहिनिया पे, तो चलो सोचो बुच्चिया की बुरिया में पेल रहे हो, अरे जैसे उसकी कसी, टाइट है, वैसे तोहरे दुलहिनिया की भी कसी होगी और दरवजा बंद होने के घंटे भर के अंदर, फाड़ फूड़ के चिथड़ा करनी होगी, नहीं तो तोहार तो नाक कटी ही हमार और तोहरी माई की भी नाक कटेगी। तो समझो बुच्ची की बुरिया में पेलना है, लगाओ नीचे से धक्का कस के "


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और सच में सूरजु ने नीचे से कस के धक्का मारा।

इमरतिया ने पकड़ बढ़ा दी, और कसी कर दी, सूरजु ने और जोर लगाया / कभी इमरतिया कस के मुठियाती और कभी मुठियाना बंद कर के सूरजु को बोलती,

" पेल स्साले बुचिया की बुर में "

और सुरजू आँखे बंद कर के पूरी ताकत से चूतड़ के जोर से धक्का मारता लेकिन इमरतिया की पकड़, एकदम रगड़ते, घिसते



पांच दस मिनट में वो बोलने लगा,

" अरे भौजी छोड़ दो, गिर जाएगा, भौजी, मोर भौजी,.... रुकेगा नहीं "



इमरतिया सोच रही थीं स्साला और कितनी देर रुकेगा। हाथ कल्ला रहा था , दस पंद्रह मिनट से ऊपर हो गए थे पूरी ताकत से मुट्ठ मारते एक से एक कड़ियल जवान भी चुदाई में सात आठ मिनट के ऊपर नहीं रुकता और ये,

" तो झड़ जाने दे न, अरे हमरे देवर क लंड है। झड़ जाएगा तो फिर पानी भर उठेगा। आँख बंद कर के सोच बुच्ची क बुर में आपन पानी छोड़ रहा है " वो बोली और अपनी एक चूँची उसने सीधे सुरजू के मुंह में डाल दी और दूसरे को उसकी हाथ में पकड़ा के जोर जोर से बोलने लगी

" पेल न, और कस के चोद दे, झाड़ दे, झड़ जा बुच्ची की बुरिया में हाँ हाँ "



लग रहा था अब निकला तब निकला, इमरतिया तैयार थीं लेकिन तब भी चार पांच मिनट और मुठियाने के बाद, जैसे कोई फव्वारा छूटा हो,



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लेकिन इमरतिया पहले से तैयार थीं, मिटटी के सकोरे को लेकर और एक एक बूँद उसमे रोप लिया।

पर वो जानती थीं अभी बहुत मलाई बची है अंदर, तो सुपाड़े को हलके से दबा दबा के, फिर से जो बूँद बूँद निकला वो भी उसी में और फिर सुपाड़े और आसपास जो लगा था उसे हाथ से काँछ के उसी सकोरे में, और वो गाढ़ी सफ़ेद बूंदे लुढ़क के सकोरे के अंदर,




यही समय होता है सम्हालने का, और एक अनुभवी खिलाड़ी की तरह बिना कुछ बोले, बस हलके हलके सहलाते पुचकारते शेर को छोड़ दिया।

यह समय मरद का होता है चार पांच मिनट सुस्ताने के, उन पलों का मजा लेना का और उस समय वो सिर्फ हल्का स्पर्श सुख चाहता है तो बस इमरतिया सुरजू को पकडे रही और फिर पांच मिनट बाद, बिन बोले, बुकवा का कटोरा उठाया और पैर के पंजे के पास बस हलके हलके पंजो में पहले बुकवा लगाना शुरू किया फिर पैरों में और बात शुरू की, पहले अखाड़े के बारे में, सुरजू के दंगल जीतने के बारे में, सेक्स के बारे में एकदम नहीं, जिससे वो सहज हो जाए, और फिर बात धीरे धीरे मोड़ दी।


' देवर कभी किसी का पेटीकोट का नाडा खोले हो "?

सुरुजू अभी भी शरमाते झिझकते थे लेकिन इमरतिया से धीरे धीरे खुल रहे थे, बोले,

" का भौजी, आप भी न। गुरु जी लंगोटे की, अखाड़े की कसम धराये थे, माई के अलावा कउनो औरत की परछाई से भी दूर रहना, मतलब छूना भी नहीं, तो जब बियाह तय हुआ तो माई बोलीं की पहले अपने गुरु जी से बोल के आवा तो वो हंस के बोले,

' माई का हुकुम, गुरु से भी ऊपर। मेरे लिए भी माई ही हैं तोहार माई। तो चलो आज से अपने कसम से तोहें आजाद किये और तिलक के एक दिन पहले आना, माई से बता देना वो समझ जाएंगी।"

तो तिलक के एक दिन पहले जो हम गए तो आखिर बार अखाड़े में उतरे, ओहि मिटटी से हमारा तिलक किये और एक लुंगी दिए, बोले

"अब लंगोट खोल के ये लुंगी पहन लो। आज से लंगोट से आजाद हो, लंगोट की शर्त से आजाद हो। लेकिन अब अखाड़े की ये मिटटी में उतर के दंगल नहीं लड़ सकते हो, हाँ तोहार घर है, आओ कुश्ती देखो, नए नए लौंडो को दांव पेंच समझाओ, पर लंगोट की कसम से आजाद हो। लेकिन हमारा आशीर्वाद है की जिस तरह इस अखाड़े में हर दंगल जीते हो, तुम्हारी माई की कृपा से जिंदगी के अखाड़े में भी हर दंगल जीतो, हाँ वहां के लिए तुन्हे अलग गुरु चाहिए होगा। "

" तो मिली कउनो गुरुआइन " आँखों से चिढ़ाते, उकसाते इमरतिया ने पुछा और अब बुकवा लगाते हाथ जाँघों तक पहुँच गए थे ,

"भौजाई से बड़ी कौन गुरुआइन, ऊपर से माई क हुकुम, भौजी क कुल बात मानना "


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हँसते हुए सूरजु ने मजाक किया। और इमरतिया फिर बात पेटीकोट के नाड़े पे ले आयी और बोली

" अइसन नौसिखिया अनाड़ी देवर, अब सिखाना तो पड़ेगा ही, तो ये समझ लो की कोहबर में सलहज कुल पहले यही जांचेगी की नन्दोई उन्हें पेटीकोट का नाड़ा खोल पाते हैं की नहीं। तो पहला काम तोहें ये देंगे की आँख बंद करके बाएं हाथ से एक गाँठ खोलो, नहीं खोलोगे तो बहिन महतारी कुल गरियाई जाएंगी "

लेकिन ये बाएं हाथ से काहें भौजी " सूरजु को भी अब मजा आ रहा था, थे वो क्विक लर्नर लेकिन इस सब बातों से अभी पाला नहीं पड़ा था वरना समझाने की जरूररत नहीं पड़ती।

" अरे हमार बुद्धू देवर कभी लौंडिया चोदे होते तो पूछते नहीं, अच्छा ये बताओ, हमार चोली कौन हाथे से खोले थे दाएं की बाएं "

" दाएं हाथ से भौजी " सूरजु बोले।

" बस तो पहली रात में तो दायें हाथ से तो दूल्हा दुल्हिन की चोली खोलने के चक्कर में रहता है और दुल्हन उसे खोलने नहीं देती। अपने दोनों हाथों से उसका दाए हाथ पकड़ के हटाती है। तो बस सोचो दूल्हा का करेगा ? "


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" बाएं हाथ से पेटीकोट क नाड़ा " हँसते हुए सुरजू देवर भौजी से बोले, और अब भौजी का हाथ क बुकवा हलके हलके खूंटा पे

" एकदम, चलो कुछ तो समझे, और दुल्हन का महतारी, भौजाई, तोहार सलहज कुल उसको सीखा के भेजेंगी की सात गाँठ लगा के पेटीकोट का नाड़ा बांधना, और वो भी न खाली बाएं हाथ से खोलना होगा बल्कि अँधेरे में। रौशनी में तोहार दुलहिनिया पास नहीं आने देगी। पहले बोलेगी की रौशनी एकदम बंद करो। इसलिए अँधेरे में बाएं हाथ से तो वही जांचने के लिए सलहज सब गाँठ बाँध के देंगी आँख बंद कर के बाये हाथ से खोलने के लिए "

इमरतिया एक एक दांव पेंच सूरजु देवर को समझा रही थी, पहले थ्योरी फिर प्रैक्टिकल, तभी तो देवर पक्का होगा, बिआइह के पहले नंबरी चोदू बनाना है इसको

" तो कैसे हो पायेगा " सुरजू के समझ में नहीं आया।

" अरे कैसी नहीं हो पायेगा, हमर देवर हो, मजाक है। चोद चोद के पहली रात को रख देगा उनकी ननद को। देखो एक तरीका तो यही है दाएं से चोली और बाएं से पेटीकोट लेकिन जब वो पेटीकोट का हाथ रोकने लगे तो बस पेटीकोट छोड़ के दोनों हाथ से चोली खोल दो।

फिर दस पन्दरह मिनट पे दोनों जुबना का रस लो, छू के सहला के चूम के , जब थोड़ी गरमा जाए तो एक साथ ही दोनों हाथ एक हाथ से पकड़ लो और कुछ देर तक और कुछ नहीं , वो छुड़ाने की कोशिश कर के थक जायेगी , फिर दूसरे हाथ से , बाएं हाथ पेटीकोट क नाड़ा, और नाड़ा खोलना नहीं सीधे निकाल के दूर फेंक दो। जिससे दुबारा पकड़ के चढ़ा के बाँध न ले।"

सुरजू बहुत ध्यान से बिस्तर के अखाड़े के दांव पेंच समझ रहा था, और इस खेल की जबरदस्त खिलाड़न इमरतिया उसको सब गुर सिखा रही थी।


" लेकिन ये मत समझो की भरतपुर इतनी आसानी से लूट लोगे। उसको भी उसकी भौजाई, घर की नाउन, माई मौसी सिखा रही होंगी। दोनों गोड़ में गोड़ फंसा के बाँध लेगी जिससे भले नाड़ा खुल जाए, लेकिन पेटीकोट उतर न पाए। फिर शहर वाली है तो पेटीकोट के नीचे भी का पता चड्ढी पहनती हो, या उस दिन जानबूझ के पहने। दूसरी बात, पेटीकोट की गाँठ, एक गाँठ नहीं भौजाई सब सिखा के भेजेंगी, सात सात गाँठ, और न खोल पाए, तो अगले दिन जब तोहार बहिनिया सब हाल चाल पूछेंगी न तो न हंस के वही चिढ़ाएगी,

' तोहार भाई तो पूरी रात लगा दिए, मुर्गा बोलने लगा, गाँठ खोलने में तो का कर पाते बेचारे। तुम सब कुछ सिखाये पढ़ाये नहीं थीं का।"

और उससे ज्यादा तोहार सास अपनी समधन का, तोहरी माई क चिढ़ाएँगी,

' बेटवा जिन्नगी भर पहलवानी करता रह गया और हमार बिटिया जाए के,... रात भर,.... नाड़ा क गाँठ ढूंढे में लग गयी, "


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अब भौजी सीने पे हाथ पे बुकवा लगी रही थीं फिर ढेर सारा बुकवा लेके जो थोड़ा सोया थोड़ा जाएगा मूसल था उसके ऊपर, और बस हलके हलके लें भौजाई की उँगलियों की छुअन लेकिन इतना काफी था, वो फिर से फुफकारने लगा।



सुरजू भौजी के गदराये जोबना को निहार रहा था, लालटेन की हलकी हलकी पीली रौशनी, जमीन पर छितरायी थी। गोरा चम्पई मुखा, छोटी सी नथ, बड़ी सी बिंदी, लाल लाल खूब भरे रसीले होंठ,



" क्यों खोलना है नाड़ा " भौजी एकदम उसके सीने पे चढ़ी, अपने पेटीकोट का नाड़ा दिखा रही थीं,
Uffff Komal ji. What an erotic way to teach a teenager to fuck his young bride.
 

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कोहबर


एक के बाद दूसरी रस्म शुरू हो गयी थी और उसके बाद कोहबर पूजा जाना था , कोहबर लिखने का काम बुआ का था।

वही कांती बूआ आगे आगे सीढ़ी पे चढ़ के साथ में दूल्हे क माई, हँसत बिहँसत, पीछे पीछे गाँव क सुहागिन, सूरजु क भौजाई, बिटिहनि सब,... और सुरजू के साथे, इमरतिया और बुच्ची।


दस पांच गाँव में कोहबर लिखे में कांती बूआ ऐसा कोई कोहबर नहीं लिखता था ,
और आज अकेले दो बार रस्ते में बस बदल के,आयीं वो, घर में उनके खुद काम काज था लेकिन,


सुरजू की माई ने एक बार फोन किया था बस बात पूरी होने के पहले वो बोल दीं, हमरे भतीजा क बियाह बा, कैसे न आइब, …कोहबर के लिखे?

सुरुजू क माई बीस साल पहले की याद में खो गयीं, जब वो गौने उतरी थीं और यही सुरजू क बूआ, कांती, अरे उस समय जो आज बुच्ची क उम्र है उससे भी साल दो साल छोट रही होंगी। उनकी न कोई सगी ननद न देवर, न कोई जेठानी सबसे नजदीक की यही कांती।


पहली रात ही सुरजू क बाबू, जैसे एकदम उधरा गए थे, कचर के रख दिए।


और सुरजू की माईकी उम्र भी ज्यादा तो थी नहीं, हालांकि महतारी खूब समझाय के भेजी थी, लेकिन और अगले दिन सबेरे बहुत कोशिश की लेकिन उठा नहीं जा रहा था, यही कांती आ के कपडा वपडा ठीक की, दो और ननदें थी, किसी तरह पकड़ के सहारे दे के,

और अगले दिन शाम को जब यही कांती आयी, चला भौजी,वो मुस्करा के बोलीं लेकिन सुरजू की माई को बात जहर लगी, लेकिन ननद क मीठ बोली,

समझा के बोलीं तब अपनी बात सुरजू क माई बोल दीं,

" ननदी तोहार भैया बहुत जुल्मी है, हम चीख रखे थे वो एक मिनट रुके नहीं, बहुत दर्द हुआ, अब तक चिल्ख रहा है। पैर जमीन पर नहीं पड़ रहा है "


" अरे भौजी, जब नौ महीना बाद हमार भतीजा खिलाओगी न गोद में तब पूछब , ....चला आज बस ननद क बात मान ला, कल से न कहब। "


वो किसी तरह से उठीं लेकिन ननद ने फिर रोक दिया, और खुद अपने हाथ से उनकी चुनमुनिया पे कडुआ तेल, पहले ऊपर से फिर दोनों फांक पूरी ताकत से फैला के जबरदस्ती, टप टप करते पन्दरह बीस बूंदे सरसों के तेल की भौजी के बिल में, लुढ़कते पुढ़कते, जब कडुवा तेल बिल के अंदर गया, बहुत जोर से छरछराया।


कल मोटे लौंड़े के धक्के खा के बुर जहाँ जहाँ अंदर तक छिली थी, जहाँ झिल्ली फटी थी और उसके बाद बार रगड़ता हुआ मोटा खूंटा घुसा, अब फिर छरछरा, रहा था। लेकिन थोड़ी देर बाद खूब ठंडा लगा,

बुर खूब सूजी हुयी थी, धक्के पड़ पड़ के गोरी बुर लाल हो गयी।

" देखो तोहार भैया का हाल किहे हैं "

किसी तरह से मुस्कराते हुए उन्होंने अपनी छोटी ननद से शिकायत की, खुद अपना लहंगा सीधा किया और छोटी ननद का हाथ पकड़ के किसी तरह उठीं और सेज की ओर,

अगली सुबह, फिर यही ननद

उस रात तो और जम के कचरी गयीं थी, पूरे पांच बार, सारी रात टाँगे उठी रही,




लेकिन वो धीरे धीरे मजा लेना सीख गयी थीं, पति का साथ भी देने की कोशिश कर रही थीं।

और अगली शाम उन्हें लग रहा था की कांती कहाँ रह गयी, दिया जलने से ही पहले लहंगा पहन के सब सिंगार कर के, और कांती के आते ही चिढ़ा के बोलीं,

" कउनो हमार नया ननदोई ढूंढ ली थी का,... की गन्ना के खेत में उरझी रहु, कितने बार हमार नयका नन्दोई ठोंके हमरी नंनदिया के। अब चला तोहार भैया अगोरत होंगे "


" अरे भौजी अब तो बड़ा जोर जोर से चींटा काट रहे हैं तोहरी बिलिया में, ....हम कह रहे थे न एक रात हमरे भैया के साथे "



उनकी बात काटते सुरजू की माई बोलीं,
" अरे चौथी लेके हमर भाई आएंगे न परसो, तैयार रहना, सुलाउंगी उनके साथ .तब पता चला की बिल में एकबार घोंट लेने के बाद केतना चींटा काटता है "



चौथी के बाद नयी बहू भी सास के साथ रसोई में घर का काम काज धीरे धीरे, शुरू कर देती है लेकिन सुरजू की दादी ने साफ़ मना कर दिया

" हे दुल्हिन, जउन काम के लिए तोहार महतारी भेजी हैं अभी कुछ समय वही काम करा, ....काम करने वाले बहुत हैं लेकिन, "

उनकी बात काटते हुए गेंहू पछोरती एक काम वाली बोली,
" लेकिन टांग उठावे वाले कम, ....काम वाम हम लोग और तोहार सास देख लेंगी "

और पूरे महीने तक सास ने उनको सिर्फ अपने बेटे के पास,

और यही ननद बिना नागा, सुबह शाम, सगी बहन, बचपन की सहेली झुठ और उनकी सास भी जितना ख्याल माँ नहीं कर सकती उससे ज्यादा, चार पांच दिनके बात तो दिन दहाड़े भी , यही कांती आके बोलती,

" भैया पानी मांग रहे हैं, अपनी कोठरी में हैं। "

और जिस तरह से मुस्करा के चिढ़ा के वो बोलती,... जैसे उसको भी पता हो की उसके भैया को किस चीज की प्यास है



और दस दिन के अंदर ही जब सुरजू की माई ने उलटी शुरू की तो सबसे पहले उन्होंने अपने अपनी इन्ही प्यारी ननद को खबर सुनाई और गले लगते हुए वो बोली, जबरदस्त नेग लूंगी भतीजे को काजर लगवाई

छठी के दिन जोड़ा सोने का कंगन अपने हाथ से ननद को उन्होंने पहनाया जब सुरजू को उन्होंने काजल लगाया और उसी समय वो बोलीं

"यही जोड़ा कंगन लूंगी कोहबर लिखने का "




और आज कोहबर लिखने के बाद जैसे ही वो मुड़ी बिना कहे एकदम ननद के हाथ के कंगन का जोड़ा, सुरजू की माई ने अपने हाथ से पहनाया



" भौजी,... तोहे याद था " बूआ भेंट पड़ी अपने भौजाई को।

देर तक बस दोनों की आँख से गंगा जमुना

आँचर से आँख की कोर पौंछती सुरजू की माई ने कुछ बोलना चाहा,... पर आवाज नहीं निकली।



अब सब लोग एक बार नीचे आंगन में, सिवाय सूरज को छोड़ के। और उनके साथ इमरतिया और बुच्ची।



" हे मुन्ना को ठीक से खियाय देना नीचे से खाना लिया के "

सुरजू की माई बुच्ची और इमरतिया से बोलीं और अपनी ननद और अबकी औरतों के साथ नीचे।

और मेहमान आ गए थे, सबका खाना पीना, इंतजाम।
Very hot and erotic flash back
 

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बुच्ची,...इमरतिया भौजी


ब्याह शादी में दो तरह की औरतें बहुत गर्माती हैं, एक तो वो कुँवारी लड़कियां, कच्ची कलियाँ जिन्होंने कभी लंड घोंटा नहीं होता

और दूसरे वो थोड़ी बड़ी उम्र की औरतें जिन्होंने एक ज़माने में तो बहुत लंड घोंटा होता है लेकिन अब बहुत दिनों से नीचे सूखा पड़ा रहता है। तो वो छनछनाती भी रहती हैं और मजाक भी करने के मौके ढूंढती हैं।

पहली कैटगरी में बुच्ची जिसकी चूँचिया तो आनी शुरू हो गयीं थी लेकिन अभी तक किसी लौंडे का उस पे हाथ नहीं पड़ा था और

दूसरे में थीं सूरजु की माई, जिनके मजाक गाली से शुरू होक तुरंत देह पर आ जात्ते थे और वैसे भी ब्याह शादी में लड़के के घर में सबसे ज्यादा लड़के की बहिनिया और महतारी गरियाई जाती हैं।




गाने और रस्म रिवाज, पहले नीचे आंगन में फिर ऊपर कोहबर में चल रहे थे और बुच्ची लगतार अपने ममेरे भाई सूरजु से चिपकी, कभी कान में कुछ कहने के बहाने उसके कान की लर को जीभ की टिप से छू देती थी, कभी अपनी कच्ची अमिया से सूरजु की पीठ रगड़ देती।

इमरतिया देख रही थी, रस ले रही थी और बुच्ची को उकसा भी रही थी

लड़कियों, औरतों की बदमाशियों को देख देख के, कभी आँचल गिरा के, जुबना दिखा के, कभी जाने अनजाने में धक्के मार के, कभी चिकोटियां काट के, ....

सूरजु बाबू की हालत खराब थी और अब औजार लंगोट की कैद में भी नहीं थ। और इमरतिया भौजी ने जानबूझ के ऐसी नेकर छोटी सी बित्ते भर की पहनाई थी जिसमे से बित्ते भर का तना मोटा खूंटा फाड़ के बाहर सब को ललचा रहा था, कोई औरत या लड़की नहीं बची थी, जिसके ऊपर और नीचे वाले मुंह दोनों में पानी नहीं आ रहा था।

सूरजु पहलवान ने इतने दिनों से अपने को रोक के रखा था, लेकिन कल जब से इमरतिया भौजी ने उसे पिजंडे से बाहर निकाला, खूब मस्ती से उसे रगड़ा और ऊपर से बुच्ची, एक तो इमरतिया भौजी ने जिस तरह से बोला था, '

“हे अब कउनो लौडिया हो या औरत, ....चाहे बुच्ची हों या तोहार महतारी,.... सीधे जोबना पे नजर रखना और सोचना की सीधे मुट्ठी में लेकर दबा रहे हो मसल रहे हो,"


और दूसरे कल जब से मुठिया के झाड़ते हुए बोलीं,

" हे देवर आँख बंद,.... और सोचो की बुच्ची की दोनों कसी कसी फांको के बीच, पूरी ताकत से पेल रहे हो, ....अरे तोहार दुलहिनिया भी तो बुच्ची से थोड़िके बड़ी होगी, उसकी भी वैसी ही कसी कसी, एकदम चिपटी सटी फांक होगी, बुच्ची की तरह। "

और ऊपर से बुच्ची की बदमाशी, फिर सबेरे सबेरे इमरतिया भौजी, बुच्ची की फ्राक उठा के दरशन करा दीं, सच में एकदम चिपकी थी, खूब कसी और गोरी गोरी फूली फूली, देख के मन करने लगा, मिल जाए तो छोड़ू नहीं।

और इमरतिया भौजी कौन कम, जब माई भेजती थी बुलाने तो ऐसे देखती थी ललचा के बस खा जाएंगी, कभी आँचल गिरा के जोबना झलकाती कभी उससे कहती, " देवर गोदी में उठा लो " कभी पीछे से धक्का मार देती,

मन तो बहुत करता था लेकिन अखाड़े की कसम, पर अब एक तो गुरु जी उसके खुदे आजाद कर दिए जब उसकी शादी की बात चली, बोले, खूब खुश हो के, " जाओ अब जिंदगी के अखाड़े में नाम रोशन करो , वो भी तुम्हारी जिम्मेदारी है, एकलौते लड़के हो अब वो सब बंधन नहीं है बस मजे लो "

और माई भी रोज लुहाती थी, और उनकी एक बात टालने को तो वो सपने में भी नहीं सोच सकता, गुरु से भी ज्यादा, और वो खुद कल हंस के बोलीं

" इमरतिया भौजी की बात मानना अब कोहबर में, घरे बहरे तोहरे ऊपर इमरतिया क ही हुकुम चले, जैसे कहे वैसे रहो '।

और सच में मन तो उसका कब से कर रहा था, इमरतिया भौजी के साथ,





लेकिन बस हिम्मत नहीं पड़ रही थी, और अब,



ऊपर से बूआ और माई, उन लोगो का मजाक तो एकदम से ही,.... लेकिन आज तो सीधे उसको लगा के, बूआ माई क चिढ़ा रही थीं,

" हमरे भतीजा को जोबना दिखा के, अंचरा गिरा के ललचा रही हो "


और माई क आँचल एकदम से गिर गया, टाइट चोली, एकदम से नीचे तक कटी, पूरा गोर गोर बड़ा बड़ा, और खूब टाइट


और उनकी निगाह वहीँ अटक गयी, लेकिन बुआ की निगाह से कैसे बचती, खिलखिला के बोलीं,

" अरे का लुभा रहे हो, अरे अब लजाने क दिन खतम हो गया। यही पकड़ के हमर भैया,दबाय के मसल के चोदे थे हचक के तो पहली रात के इनके पेट में आ गए थे और तब से वैसे ही टनाटन है, मस्त गदराया, देख लो पकड़ के "

और अपनी भौजी को, माई को चिढ़ाया, " हे हमरे भतीजा का खूंटा देख के पनिया रही हो, ....तो ले लो अंदर तक "




और माई और, कौन पीछे हटने वाली, बोलीं " अरे हमरे मुन्ना क है , ...ले लुंगी और पूरा लुंगी। तोहार झांट काहें सुलगत है , तोहूँ को दिया दूंगी। ओकर बाप बियाहे के पहले से तोहें, अपनी बहिनिया के, पेलत रहे तो उहो, ….यहाँ का तो रिवाज है "



और पीछे से बुच्ची अपने कच्चे टिकोरे गड़ा रही थी, रगड़ रही थी।



सूरजु की हालत ख़राब थी ये सब सोच सोच के,.... और उसी समय दरवाजा खुला और हंसती बिहँसती इमरती भौजी और पीछे खाने की थाली लिए बुच्ची हाजिर।

" आज ये देंगी तुमको, मन भर के लेना, "

इमरतिया ने आँखे नचाते हुए, थाली पकडे बुच्ची की ओर इशारा करके सुरजू को छेड़ा, लेकिन जवाब झुक के जमीन पर थाली रखते हुए बुच्ची ने ही सीधे अपने ममेरे भाई की आँख में आँख डाल के दिया

" एकदम दूंगी, मन भर के दूंगी, और मेरा भाई है क्यों नहीं लेगा, बोलो भैया, "



लेकिन सुरजू की निगाहें तो उस दर्जा नौ वाली के छोट छोट जोबना पे टिकी थीं, जो टाइट फ्राक फाड़ रहा था।

अब सुरजू की नेकर और टाइट हो गयी। उसने खाने के लिए हाथ बढ़ाया, तो फिर जोर की डांट पड़ गयी, इमरतिया भौजी की

" मना किया था न हम ननद भौजाई के होते हुए अपने हाथ क इस्तेमाल नहीं करोगे, और लेकिन नहीं।। सामने इतने जबरदंग जोबन वाली लौंडिया देने को तैयार बैठी है, लेकिन नहीं "




बुच्ची जोर से मुस्करायी, सुरजू जोर से झेंपे। दोनों समझ रहे थे ' किस बात के लिए हाथ के इस्तेमाल ' की बात हो रही है। इमरतिया से बुच्ची बोली,

" अरे भौजी तोहार देवर ऐसे बुद्धू हैं, आपने उन्हें कुछ समझाया नहीं ठीक से। नयकी भौजी जो आएँगी दस बारह दिन में उनके सामने भी नाक कटायेंगे " और अपने हाथ से सुरजू को खिलाना शुरू किया,

" भैया, बड़ा सा मुंह खोल न "

" जैसा बुच्ची खोलेगी अपना नीचे वाला मुंह, तेरा लौंड़ा घोंटने के लिए, है न बुच्ची। अरे सीधे से नहीं खोलेगी तो मैं हूँ न और मंजू भाभी , बाकी भौजाइयां, जबरदस्ती खोलवाएंगी।" हँसते हुए इमरतिया बोली



बुच्ची और सुरजू थोड़ा झेंप गए लेकिन बुच्ची जो दो दिन पहले ऐसे मजाक का बुरा मान जाती थी अब धीरे धीरे बदल रही थी। बात बदल के सुरजू से बोली

" भैया ठीक से खाओ, थोड़ा ताकत वाकत बढ़ाओ वरना दस बारह दिन में नयकी भौजी आएँगी तो हमें ही बोलेंगी की अपने भैया को तैयार करके नहीं रखी "


" एकदम , देवर जी, नयी कच्ची कली के साथ बहुत ताकत लगती है, एकदम चिपकी फांक और नयी बछेड़ी हाथ पैर भी बहुत फेंकती है। लेकिन ये तोहार छिनार बहिनिया, ...हमरे आनेवाली देवरानी के लिए नहीं, अपने लिए कह रही है। बहुत उसकी चूत में चींटे काट रहे हैं, पनिया रही है। अरे छिनार भाई चोद, ....यह गाँव क तो कुल लड़की भाई चोद होती हैं तो तोहरो मन ललचा रहा है तो कोई नहीं बात नहीं। लेकिन समझ लो, रात में छत क ताला बंद हो जाता है और चाभी तोहरे इमरतिया भौजी के पास, हमार ये देवर अइसन हचक के फाड़ेंगे न , चूत क भोंसड़ा हो जाएगा, बियाहे के पहले।
बोल साफ़ साफ़ चुदवाना है, मुंह खोल के बोल न "


इमरतिया ने गियर आगे बढ़ाया और अब बात एकदम साफ़ साफ़ कह दी।



लेकिन बुच्ची सच में गरमाई थी, थाली लेकर निकलते हुए दरवाजे पे ठिठक गयी, बड़ी अदा से अपनी कजरारी आँखों से सुरजू भैया को देखा जैसे कह उन्ही से रही हो, बात चाहे जिससे कर रही हो और इमरतिया से रस घोलकर मीठे अंदाज में बोली,


" भौजी, आप बड़ी है, पहले आप नंबर लगवाइये, "




इमरतिया ख़ुशी से निहाल, बांछे खिल गयीं, छमिया सच में पेलवाने के लिए तैयार है, वो बुच्ची से बोली,


" अरे हमार ललमुनिया, चलो तो मान गयी न। और हमार बात तो मत करा, हम तो असली भौजी हैं, खड़े खड़े अपने देवर को पेल देंगे , ये तोहार भाई का चोदिहे हम्मे, हम इनको खड़े खड़े पेल देंगे। लेकिन हमरे बाद तोहें चुदवाना होगा, हमरे देवर से। पर भैया के तो सोने क थारी में जोबना परोस दी, खिआय दी , मुहँवा के साफ़ करी। "


" हम करब भौजी, तोहार असली नन्द हैं, सात जन्म क" खिलखिलाती बुच्ची बोली और झट से सूरजु भईया को पकड़ के कस के अपने होंठों को उनके होंठों पे रगड़ दिया।

पीछे से इमरतिया ने सूरजु के नेकर को खींचा, जैसे बटन दबाने से स्प्रिंग वाला चाक़ू बाहर आ जाता है, खूब टनटनाया, फनफनाया, बुच्ची की कलाई से भी मोटा, कड़ा एकदम लोहे की रॉड जैसा,

" पकड़ स्साली कस के, देख कितना मस्त है, हमरे देवर क लंड " इमरतिया हड़काते, फुसफुसाते उस दर्जा नौ वाली टीनेजर के कान में बोली और बुच्ची की मुट्ठी के ऊपर से पकड़ के जबरदस्ती पकड़ा दिया।




बेचारी कल की लौंडी की हालत खराब, कलेजा मुंह को आ गया, मुट्ठी में समा ही नहीं रहा था, वो छुड़ाने की कोशिश करती लेकिन इमरतिया ने कस के उसके हाथ को अपने हाथ से, भैय्या के लंड के ऊपर दबोच रखा था। वो पहले छुड़ाने की कोशिश करती रही, फिर धीरे धीरे भैया के लंड का मजा लेने लगी।

'अबे स्साली ये न सोच की जो मुट्ठी में नहीं समा रहा है, वो उस छेद में जिसमे कोशिश करके भी ऊँगली नहीं जाती, कैसे जाएगा। अरे तुझे बस टाँगे फैलानी है , आगे का काम मेरा देवर करेगा, हाँ चीखना चिल्लाना चाहे जितना, छत का ताला तो बंद ही रहेगा । "


एक बार फिर इमरतिया ने अपनी ननद के कान में बोला।

होंठ उसके अभी भी सूरजु के होंठों से चिपके थे और अब हिम्मत कर के सूरजु ने भी बुच्ची के होंठों को हलके हलके चूसना शुरू कर दिया।


लेकिन तभी नीचे से बुच्ची की सहेलियों की आवाज आयी और वो छुड़ाकर, हँसते खिलखिलाते कमरे से बाहर।



और इमरतिया भी साथ साथ लेकिन निकलने के पहले सूरजु को हिदायत देना नहीं भूली

" स्साले, का लौंडिया की तरह शर्मा रहे थे, सांझ होते ही मैं आउंगी बुकवा लगाने, आज खाना भी जल्दी हो जाएगा। यहीं छत पे नौ बजे से गाना बजाना होगा, तोहरी बहिन महतारी गरियाई जाएंगी। तो खाना आठ बजे और दो बात, पहली अब कउनो कपडा वपडा पहनने की जरूरत नहीं है, इसको तानी हवा लगने दो और ये नहीं की हम आये तो शर्मा के तोप ढांक के, और दूसरे बुच्ची जब खाना खिलाती है तो अपने गोद में बैठाओ, ओकर हाथ तो थाली पकडे में खिलाने रहेगा , बस फ्राक उठा के दोनों कच्चे टिकोरों का स्वाद लो, "



पर बात काट के सूरजु ने मन की बात कह दी, " पर भौजी, हमार मन तो तोहार, लेवे का,….. "

" आज सांझ को, आउंगी न बुकवा लगाने, चला तब तक सोय जा। "

इमरतिया का मन हर्षाय गया, कितने दिन से ये बड़का नाग लेने के चक्कर में थी और आज ये खुद,
Very hot update komal ji. Ab to agle part ka intejar hai jab emaratiya ki emaeti ka ras nichoda jayega
 
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