आप तो जानती ही हैं, जो ननदें जितना शर्माती हैं, बुरा मानती है, झिझकती हैंक्या बात है. क्या बात है. वो ब्याह ही क्या. जिसमे दूल्हे की बहन को भौजाई पार्टी छेड़े नहीं. गरियाए नहीं. और यहाँ तो खुलम खुल्ला. शिराह भी पुलवाने की बात चली तो ठंड भागने के लिए लंड लेने की. बेचारी बुचि. माझा बहोत आया.
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और वही बेचारे दूल्हे सूरजबली. शर्म के मारे हालत ख़राब हो गई.अब माझा आएगा. सुना सूरजबली की महतारी ने क्या कहा. अब तू अपनी भौजी के हवाले. वो जो कहे वही करना.
अब माझा आएगा. इमरतीय छोड़ना नहीं री अपने देवर को.
मैं कोशिश करुँगी की शादी की जितनी रस्मो और उनसे जुड़े गानों का जिक्र कर सकूँ, मानर आने से लेकर, कोहबर लिखने, सांझ जगाने, भोर जगाने, से लेकर हल्दी, चुमावन, मटकोर, सब और शादी में गारियां तो चलती ही रहती हैं, हाँ अधिकार समय गाने वाली और सुनने वाली खाली औरतें होती हैं और फिर बदलते समय के साथ एक दिन की शहरी शादी में सब बिसर गया हैंमान गए कोमलजी. जिस तरह शादी का माहोल आप दिखाती हो. जताती हो. वैसा तो कोई नहीं जाता सकता. और खास कर गाउ की शादी का माहोल. नाच गाना, गरियाना, लोक गीत, रिस्तो मे मज़ाक और छेड़ छाड़. खुशियाँ बयान करने का तरीका जो आप मे है. वो किसी और मे नहीं.
सूरजबली तो बहोत सीधे है. गांव की भौजी जिस तरह उन्हें सत्ता रही है. वो तो सब सच मान कर परेशानी मे डूब गए. इमरती ने तेल मालिश करते हाथ घुमाते खूब सताया. खास कर बहन और महतारी के नाम पार. वहां बुचि तो भौजाईयो के कब्जे मे ही है. कोई मस्त सीन क्रिएट होने वाला है लगता है.
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फिर तो सुगना की जुबानी भी ससुर के साथ पहले आकर्षण का किस्सा लिख ही दो. हलाकि पहले भी किखा था. पर वो राइटर के नजरिये से था. सुगना के मुँह से नहीं.मैं कोशिश करुँगी की शादी की जितनी रस्मो और उनसे जुड़े गानों का जिक्र कर सकूँ, मानर आने से लेकर, कोहबर लिखने, सांझ जगाने, भोर जगाने, से लेकर हल्दी, चुमावन, मटकोर, सब और शादी में गारियां तो चलती ही रहती हैं, हाँ अधिकार समय गाने वाली और सुनने वाली खाली औरतें होती हैं और फिर बदलते समय के साथ एक दिन की शहरी शादी में सब बिसर गया हैं
हाँ एक बात और ये शादी सुगना के ससुर की हैं यानी सुगना की शादी के पच्चीस तीस साल पहले, करीब साठ के दशक की, तो उसी तरह का माहौल,
एक बार फिर से
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आएगा, आएगा वो भी आएगा, असली किस्सा तो सूरजबली सिंह और उनकी बहू सुगना का ही है
आगे आगे देखिये होता है क्या,अरे मान गए कोमलजी. इमरतिया, मुन्ना भौजी, और मंजू भौजी ने तो छिनार नांदिया बुचि और उसकी सहेली शिला सबकी सिर्फ बातो से ही हालत ख़राब कर दी.
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ऑफर भी तगड़े तगड़े. नाऊन भौजी निचे के बाल साफ कर के तेल भर देगी. फिर देवर चढ़ाओ या भउजीयो के भाई चढ़े गचा गच जाएगा. बेचारी घबरा गई सुनकर. पार छिनार नांदिया को ऐसे थोड़ी बोलते है. बस नेक लेगी. और भौजी की बात मान ने का फायदा. माझा आ गया.
इमरतिया नाऊन भौजी ने लंगोट के पक्के सूरजबली को चुदकड़ बना ने का बीड़ा उठा ही लिया.
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आपकी बात सौ फीसदी सहीवाह भौजी हो तो ऐसी. वो भौजी ही क्या. जो अपने देवर के खुटे का बखान ना करें. ऊपर से इमरतिया ने तो सूरजबली के खुटे को पूरा उजागर ही कर दिया. खूब हाथो से मला. एक बार तो इमरतिया भी डर गई. तो बखान गलत नहीं बिलकुल सही है. मगर बेचारे सूरजबली. उनके देवर. लज्जाते बहोत है. लेकिन इमरतिया ने समझा भी दिया. अपनी महतारी से डरते है ना. इस लिए मान गए. देवर का खुटा मथ ते हुए बुचि उनकी महतारी का नाम जरूर लिया. यह तो भउजीयो का हक़ है. अपने मरद हो या देवर. उनकी बहन महतारी को गरियाने का. माझा आ गया.
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बहुत बहुत आभार कई बार तो आपके रसीले कमेंट, पूरी पोस्ट पर भारी पड़ते हैं, कमेंट में निचोड़ निकाल के रख देती हैं।वाह री इमरतिया. देवर को मुठियाते पूरा खोल दिया. दोस्ती कर ली. अब तो खुल के बोल रहा है. सबसे ज्यादा वह कन्वर्सेशन पसब्द आया जब मुठियाते वक्त सूरजबली बोलता है.
हमार लंड छोड़ दा ना भौजी.
ना छोड़ब.
क्या जबरदस्त मस्ती थी. इन डायलॉग मे. अमेज़िंग इरोटिक. ओर तो ओर देवर ने भौजी को गुरु भी बना लिया. अब असली चुदकड़ बनाएगी इमरतिया.सीखा भी तो दिया. बहन हो या महतारी सीधा पहले जोबन देखेगा. नजर भी सीधी गुरु भौजी के जोबन पर. भौजी ने भी हाथ अपने जोबन पर रख ही दिया. ओर सिख. मांगना नहीं. सीधा हमला.
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अरे भौजी की का गलती,अरे मान गए कोमलजी. आज तक ऐसा तो किसी ने भी नहीं लिखा होगा. मतलब लिखा भी तो एरिटीका मे डर्टी. जिसे पढ़ने मे घिन आए. पर आप ने तो डर्टीनेस मे इरोटिका लिख दिया. जिसे पढ़ने मे मस्ती रोमांच आए.
देवर का सिराह कुल्लाड़ मे. मंजू भौजी तो दंग रहे गई. इतना सारा. कुल्हड़ आधे से ज्यादा भरा मिला. अब उसमे रस गुल्ला. जो बुचि शिला ओर उसकी सहेली खाएगी.
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एकदम सही कहा आपने, अरे बहन खुद कह रही है भाई का शीरा पीने को तो भौजाई कौन उसे रोकने वाली,यही तो चाहिये था. मान गए री इमरतिया. देवर का शिराह जो कुल्लाड़ मे भर के लाई थी. वो पीला दिया बुचि नांदिया छिनार को. वैसे भी कहे रही थी ना की उसे शिराह बहोत पसंद है. अब अपने भैया का शिराह गट गट पि गई. अब रस मलाई भी खिला दे अपने भैया को.
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आपके इन रसभरे कमेंट्स की जितनी तारीफ़ करूँ कम है,बहोत बहोत धन्यवाद. मेरी पूरी कोसिस रहती है की रिडर्स का एंटरटेनमेंट होता रहे.
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