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छुटकी - होली दीदी की ससुराल में भाग १०३ इमरतिया पृष्ठ १०७६
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बात तो सही कहे रही हो. क्या फायदा नाड़े से बंधे रखने का. या तो छुप के जाएगा. या फिर बस लार टपकाएगा. साला खुद ही जुगाड़ कर दो तो कही पकडे भी नहीं जाएगा और साथ ही रहेगा. उल्टा सारी बात मानेगा वो अलग. सही अपनी छुटकी का और अपनी ननंद का जुगाड़ कर दिया.भाग १०१ - मेरा मरद
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पता नहीं काहें, ये सब बातें, इन्सेस्ट विंसेस्ट वाली, महतारी बेटवा के साथे, बेटी बाप के साथे, और पता नहीं का , ककोल्ड, फाकोल्ड सब
लेकिन एक बात बताऊँ, अपने मन की और किसी औरत से पूछ के देख लीजिये, जहां मन और तन दोनों मिला हो, वहां की बात कर रही हूँ , जेतना मज़ा अपने मरद के साथ आता है न ओतना किसी के साथ नहीं। बाकी सब तो चटनी अचार हैं, स्वाद के लिए चख लिया, लेकिन असली पेट तो खाना खाने से ही भरता है,
लेकिन मरद को कभी पगहे से नहीं बांधना चाहिए, अरे सांड़ कभी खूंटे में बंधता है। लेकिन जैसे गाय गोरु चर के सांझे घर आ जाते हैं, वैसे ही मरद भी, सोयेगा खायेगा तो घर पे ही। कभी भी पेटीकोट के नाड़े से मरद को बाँधने की गलती नहीं करनी चाहिए, हाँ पेटीकोट सुंघा के पागल करने में कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए, और ज्यादा सवाल जवाब नहीं करो तो खुदे बताएगा, कहाँ कहाँ शिकार कर के आया।
और अगर किसी को देख के ज्यादा ललचा रहा हो तो खुद जुगाड़ कर के,… जब ननदोई से इनको बात करते मैंने सुना छुटकी के बारे में, मैं समझ गयी,… और माँ से बात कर के खुद ही, … ये अपनी दोनों सालियों पे लुहाए थे तो मैंने भी इन्हे होली में एकदम खुल के, ….अरे साली पे जिज्जा नहीं चढ़ेगा तो कौन ,
छुटकी थोड़ी हदसी थी, अरे इनका मोटा खूंटा, सांड़ ऐसा है तो कोई भी और वो तो एकदम कोरी कच्ची दर्जा नौ वाली, तो मैंने और इनकी सलहज ने मिल के अपने सामने इन्हे इनकी साली पे
और ये भी भुखाये थे और मैं भी, पिछले पांच छह दिन से, नन्दोई के साथ हॉस्पिटल में और फिर मेरी ननद के साथ और मैं भी,
वाह याद आ गई तुझे अपनी वाली रात. खूब रगड़ाई तू तो हम्म्म्म... और ऐसा मौका कौन नांदिया छिनार छोड़ेगी. वही सासु ठीक ही तो बोलती है. मांग मे सिंदूर और दोनों टांगो के बिच मलाई ना हो तो नई दुल्हनिया केसी.औरत मरद
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जितना कस के इन्होने मुझे दबोचा, उससे ज्यादा कस के मैंने
हम दोनों पागल हो गए थे, जैसे न जाने कब के बिछुड़े मिलें,
जैसे मरद कमा के लौटता है तो माई के लिए साड़ी, बहन के लिए कपडा, सबके लिए कुछ न कुछ, लेकिन औरत तो बस अपना मरद ढूंढती है, और रात में मिलने पर बस कस के भींच लेती है।
मरद परदेस का किस्सा सुनाता है, लेकिन औरत को तो बस उसकी आवाज सुननी होती है, क, ख,ग, घ, बोले तो भी वैसे ही मीठी,... इतने दिन बाद वो आवाज, और फिर प्रेम का रस कूप खोल देती है, जैसे माँ को मालूम होता है बेटे को खाने में क्या क्या अच्छा लगता है वैसे औरत को भी उसके देह का पहाड़ा, ककहरा,
बस एकदम उसी तरह हम दोनों एक दूसरे को भींचे, बिना कुछ किये बड़ी देर तक, फिर पहल मैंने ही की, पहला चुम्मा लेने की
लेकिन बात मैंने जो की बस वही, टर्म्स और कंडीशन अप्लाइड वाली, मन और तन दोनों का मेल हो, और हम दोनों के साथ तो गौने के बहुत पहले से जब मैंने इन्हे पहली बार देखा था, बीड़ा फेंकते समय, उस समय जयमाल का चक्कर तो था नहीं, बस तब से मैं समझ गयी थी
असल में नयी नयी दुल्हन की गंध, रूप, रस, रंग सब अलग ही क्यों लगता है,
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मरद के देह की गंध, .....जब पहली रात ही मरद उसे रौंद देता है, जैसे कुम्हार जब माटी रौंदता है तो माटी फिर ताल पोखरा की न होकर कुम्हार की हो जाती है, कुम्हार की उँगलियों का जादू उसमें रच जाता है बस उसी तरह मरद की देह की गंध, रोम रोम में बसी, नयी दुलहिनिया भी मद में जैसे चूर और उसकी देह से भी मद बरसता रहता है, महकता रहता है।
और उन सबसे बढ़ के मरद की मलाई, गौने के अगले दिन जब मैं नहा रही थी, एक बूँद मलाई मेरे खजाने से लुढ़कती पुढ़कती बाहर निकली, इतना अच्छा लगा देख के, लेकिन अगले ही पल मैंने कस के भींच लिया और बोली,
' पड़ी रह चुप चाप अंदर, मेरे मरद की मलाई है ऐसे ही थोड़े छोड़ दूंगी, "
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और ऊपर से मेरी सास, और बूआ सास, मैं गाँव की औरतें सब, सास ,जेठानी, ननदें, ज्यादातर कुँवारी कुछ तो एकदम बच्चियां, और एक बूँद इनकी मलाई सरक के रेंगते रेंगते, मैं कुछ कर भी नहीं सकती थी और जब वो लहंगे के नीचे से, मेरे महावर लगे पैरों पे, सबसे पहले बूआ ने देखा तो वो जोर से मुस्करायीं, फिर मेरी जेठानी और बाकी नंदों ने भी, बोला किसी ने कुछ नहीं लेकिन सब जिस तरह से मुस्कायीं,
मेरे चेहरे पे जैसे किसी ने ढेर सारा ईंगुर पोत दिया। एकदम लजा गयी मैं और अब तो ननदों को मौका मिल गया, दो चार तो खिस्स खिस्स
बाद में मेरी सास और बूआ सास ने छेड़ा,
" काहें इतना लजा रही थी अरे सबको मालूम है गौने की रात का होता है " और फिर सास ने ठुड्डी पकड़ के प्यार से बोला,
" अरे नयी दुलहिनिया के तो मांग में सिन्दूर दमकता रहे और बुर में से मलाई छलकती रहे यही तो नयी दुल्हन का असली सिंगार है "।
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" इसका मतलब की मरद कचकचा के प्यार करता है " बूआ सास ने जोड़ा।
उसके बाद से तो मैं नहाते समय खूब ध्यान से, सब सफाई बस ऊपर ऊपर से और बुर की दोनों फांके कस के भींचे रहती थी और अपनी बचपन की सहेली को हड़काती भी थी,
' आएगा न रात को खोलने वाला, फ़ैलाने वाला, तब तक तुम दोनों गलबहिंया डाल के एकदम चिपकी रह "
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और रात का कौन इन्तजार करता है, तिझरिया को ही जेठानी मुझे मेरे कमरे में पहुंचा आयी और थोड़ी देर में अपने देवर को भी भेज दिया, फिर तो,… और एक दो दिन में शादी के मेहमान चले गए तो उसके बाद न दिन देखें न रात,… और ज्यादा देर हो जाए तो मैं खुद ही चकर मकर,… जैसे बछिया हुड़क रही हो, और सब लोग ये नजर पहचानने लगे थे, यहाँ तक की मेरी नौवें में पढ़ने वाली छुटकी की समौरिया ननद आँखे नचा के बोलती,
" भौजी, भेजती हूँ अभी भैया को, "
साल भर करीब हो गया था मुझे इस घर में आये लेकिन मेरे अंदर अभी भी वही हुड़क रहती थी,
अरे पगली. ऐसे तो तेरा पूरा परिवार एक नंबर का चाटोरा है. देखा नहीं तेरा मरद कैसे तेरी नांदिया की लेने से पहले चाट रहा था. जबरदस्त अपडेट.मेरी ननद और ननद का बदमास भाई
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अरे मेरी वही ननद, जो अभी ससुरे गयी हैं खुसी खुसी, वही, मुझको इस घर में लाने वाली, वही, ....सब उन्ही का चक्कर,
अपनी किसी सहेली के घर में देख लिया मुझे फिर एकदम मोहा गयीं और फिर अच्छी तरह से पीछे, पहली अपनी माँ, मेरी सास को, उसके बाद तो कभी मिश्राइन भाभी के जरिये, कभी दूबे भाभी से कहलवाती, और मेरी मम्मी हर बार , 'अरे अभी तो पढ़ रही है, अभी तो इंटर में है '
लेकिन मेरी ननद और मेरी सास एक दिन बस ऐसे ही बिना बताये, 'अरे बस ऐसे ही खाली मिलने आये हैं " और देखने के साथ ही सास ने अपना हार पहना दिया।
मेरी मम्मी ने समझाया भी मुझे की अरे अभी शादी थोड़ी, …लेकिन इंटर के इम्तहान के पहले ही शादी,
तब भी मम्मी बोलती रहतीं,
"अरे गाँव का रीत रिवाज, तीनसाल का गौना पडेगा, कौन जल्दी है, ....तुम बीस की हो जाओगी, "
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लेकिन अबकी दोनों समधन की मिली भगत और पीछे पड़ी मेरी यही ननद, होली के हफ्ते भर बाद, इंटर का आखिरी पेपर और उस के दो दिन बाद गौना, और मैं आ गयी,…
….
उन्हें पकडे पकडे मैं जादू के उस शीश महल से बाहर आयी और एक जबरदस्त गाली दी उन्हें
लेकिन वो,…. खिड़की दरवाजा बंद करना तो उस लड़के ने सीखा नहीं था और मैं बाहर के कमरे में, पर वो मुझे गोद में उठा के सीधे मेरे कमरे में मेरे बिस्तर पर, जहाँ गौने की रात दुल्हन की तरह मिली थी मैंने उनसे,
उनके पहले कपडे आज मैंने उतारे,…. उनके भी और अपने भी और वो मेरी दोनों टांगों के बीच,
चूसम चुसाई , स्साले को मुझे तड़पाने में बहुत मजा आता था।
मन मेरा कर रहा था,.... स्साला रंडी का, हचक के पेल दे, फ़ुट भर का डंडा काहें नीचे लटका रखा है, अब तो स्साले बहनचोद की बहन, भौजाई भी नहीं है, मेरी महतारी ने मेरे इंटर पास करने के पहले ही इसके पास काहें बिदा कर दिया था की पेल पेल के उनकी कच्ची कोरी बिटिया की चूत का भोंसड़ा बनाये, ये लेकिन तड़पाने में,
" उह्ह्ह कर न , काहें तड़पा रहा है स्साले अब तो तेरी बहिनिया भी नहीं है, ओह्ह करो न "
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मैं तड़प रही थी, चूतड़ पटक रही थी, कस के दोनों हाथों से चददर पकडे थी, "
मेरे मरद को खाली चूसने और चाटने के पंद्रह तरीके आते थे, जीभ से बुर चोदना उसके अलावा था।
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और आज उस अपनी माँ के भतार ने क, ख , ग से शुरू किया था। दोनों जाघों पर चुम्मा ले ले के धीरे धीरे उसके होंठ मेरी प्यासी दुलहिनिया के चारो ओर चक्कर काट रहे थे जैसे लड़कियों के स्कूल की छुट्टी होने के पहले लौंडे चक्कर काटते हैं और फिर बाज की तरह झप्पटा मार के मेरी दोनों गुलाबी फांको को एक बार में गप्प,
" उईईई ओह्ह्ह्ह "
मेरी जोर से सिसकी निकल गयी, मस्ती में आँखे बंद हो गयीं, निपल पत्थर के हो गए।
पूरी देह कसमसा रही थी और वो, बस हलके हलके चूस चूस रहा था, मेरी दोनों फांको को मुंह में डाले, फिर जीभ से हलके से दोनों फांको को अलग किया जैसे आम की दो आपस में जुडी फांको को कोई अलग कर रहा ही और उस पतली सी कसी कसी दरार में मेरे साजन की जीभ ने सेंध लगाई, लेकिन जीभ से वो चोद नहीं रहा था।
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बस शुरू के एक दो इंच में उस प्रेम गली के, लव टनेल के, कहाँ मजे वाले प्वाइंट हैं , मेरी देह का रोम रोम पता था उस लड़के को ,
और उस की उँगलियाँ भी मैदान में आ गयीं। जैसे कोई बहुत दिनों से पड़े सरोद के तारों को छेड़ दे और पूरा कमरा राग रागनी से गूँज उठे, पहले तो उसने अपनी तर्जनी के टिप से हलके हलके मेरी फूली बौराई क्लिट को बस जरा सा दबाया, फिर छेड़ा
मेरी पूरी देह झंकार से भर गयी, मैं गिनगीना रही थी, काँप रही थी और जब उस बदमाश ने अंगूठे और तर्जनी के बीच लेकर रोल करना शुरू कर दिया और साथ ही जीभ अंदर तक, गोल गोल, क्या कोई लंड से चोदेगा जिस तरह से वो अपनी माँ का भतार जीभ से चोद रहा था
जैसे कुंए के अंदर से पानी अपने आप उछल के बेताब हो उसी तरह मेरे रस कूप से रस की धार निकलने को बेचैन थी बस लग रहा था अब झड़ी तब झड़ी, देह ढीली हो गयी थी , आँखे बंद हो गयी थीं
उह्ह्ह उह्ह्ह ओह्ह्ह्ह आह्हः अह्ह्ह बस मैं सिसक रही थी, हलके हलके चूतड़ पटक रही थी
Welcome back komal ji, Bahut shandar update, ab next update me maa beta aur bahu ka threesome karwaiye pleaseमेरी ससुरार का गांव -
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घर घर की कहानी
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और फिर गाँव का हर किस्सा, मेरे जमाने का ही नहीं उनके ज़माने का,
यानी उनकी गाँव के रिश्ते की ननदें, मेरी बुआ सास, उनकी जेठानिया, मेरी चचिया सास सब, लेकिन ज्यादातर उनकी ननदों का और एक से एक हॉट किस्से, और गाँव के मर्दो के भी
एक दिन मैंने उन्हें ककोल्ड टाइप कोई बात बतायी, कुछ मरद होते हैं की उनके सामने कोई दूसरा मरद उनकी औरत पे चढ़े तो उन्हें अच्छा लगता है, कई तो अपने हाथ से पकड़ के अपनी मेहरारू की बिल में
मेरी सास हँसते हुए लहालोट, मुझे दबोच के कस के चूमते हुए बोलीं
" अरे तुम तो पढ़ी लिखी, पढ़ी बात कह रही हो, मैं तो आँखों देखी, तुम भी उनको देखी हो मिली हो और जो अपने मरद के सामने दूसरे मर्द के बीज से जुड़वाँ तोहार ननद है उनहू से, "
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और जब उन्होंने नाम बताया तो मेरे तो पैरों से जमीन निकल गयी, दोनों जुड़वा बहने मेरी मंझली की उम्र की, इस साल दोनों का दसवा था
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हम सब भौजाइयां उन दोनों को छुई मुई कहते थे, लजाती इतनी थीं और गुदगुदी भी दोनों को खूब लगती थी, वैसे तो कहीं शहर में , लखनऊ, इलाहाबाद कही, लेकिन दोनों अपने ननिहाल गर्मी की छुट्टी में महीने भर और जाड़े में भी दस पंद्रह दिन, तो सबसे खूब घुली मिली और उसके अलावा, शादी बियाह तीज त्यौहार,
और गाँव हो या शहर, ननदें जितनी छिड़ती हैं, लजाती हैं मजाक से उछलती है भौजाइयां उतनी ही ज्यादा और गाँव में तो और ज्यादा खुल के ही
कोई नाउन कहारीन उन दोनों को देख के चिढ़ा के गाना शुरू कर देती है
" बिन्नो तेरी अरे बिन्नो तेरी भो, बिन्नो तेरी भो, "
और वो दोनों चिढ के अपनी माँ से शिकायत करतीं, ' मम्मी देखिये भौजी छेड़ रही हैं "
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तो कोई भौजाई और आग लगाती , " तो तुम दोनों को मालूम है क्या, भो से क्या, "
और वो कहारिन छेड़ती " अरे अभी से भोंसड़ा हो गया है क्या, जो भो से,... और फिर गाना पूरा कराती
" बिन्नो तेरी भोली सुरतिया, बिन्नो तेरी बू , बिन्नो तेरी बु "
एक बार मैं और पीछे पड़ गयी, मैंने गुलबिया के इशारा किया और उसने फ्राक उठा दी और मैंने चड्ढी पकड़ के, सर सररर , नीचे और गुलाबी दरवाजा दिख गया '
" अरे झूठे तुम लोग भोंसड़ा कह रही थी देख अभी तो झांटे भी ठीक से नहीं आयी हैं " दोनों को चिढ़ाते मैं बोली। ननद तो ननद। ननद की उम्र थोड़े ही देखि जाती है
अगले दिन दोनों शलवार पहन के आयीं तो बस एक भौजाई ने एक हाथ पकड़ा और दूसरे ने दूसरा और आराम से मैंने धीरे धीरे शलवार का नाडा खोल दिया।
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वो बेचारी अपनी माँ से शिकायत करतीं लेकिन हम सब की बुआ सास, उलटे हम सब का साथ देतीं, बोलतीं
" अरे तुम सब क भौजाई बहुत सोझ हैं, हम लोगन क भौजाई तो दो दो ऊँगली एक साथ सीधे अंदर तक डाल के हाल चाल लेती थीं, मलाई चेक करती थीं। तुम सब क भाई रोज तोहरे भौजाई क नाड़ा खोलते हैं,... तो उन सब का भी तो हक़ है "
और रतजगे में हम सब की सास लोग बुआ की खूब, सब से पहले उन्ही का पेटीकोट खुलता था।
लेकिन वो खूब हंसमुख, खुल के मजाक वाली, तो मेरी सास ने उन के कुंवारेपन से लेकर कैसे उनके मरद को दूसरे को उनके ऊपर चढ़ाने का
.....सुनाऊँगी, वो सब किस्सा भी सुनाऊँगी और मेरी सास ने न सिर्फ अपनी ननदों का बल्कि गाँव के मर्दो का भी
एक दिन मैंने उनसे सुगना के ससुर का , हम दोनों सब्जी काट रहे थे, तो एक एक किस्सा और तभी ग्वालिन चाची आ गयीं और गुलबिया की सास तो और, सुगना के ससुर सूरजबली सिंह का जिससे, इमरतिया, उस का भी पूरा किस्सा
तो गाँव के एक एक मरद का, ....पठान टोली के सैय्यद लोगो का भी
मेरी सास के साथ एक बहुत अच्छी बात थी, कोई टोला हो कोई पुरवा, कोई बिरादरी, बरात बिदा करनी हो, दुल्हिन उतारनी हो या बेटी क बिदाई , वो सबसे आगे, और अब उनके साथ मैं भी। भले मैं साल भर पहले की ही गौने की उतरी लेकिन हर जगह, सुख दुःख में सास के साथ मैं भी
और सास की सहेलियां थीं, ग्वालिन चाची, गुलबिया क सास, बड़की नाउन, हों या पंडाइन चची सब पुरवा में , सब से मेरी भी तो सास के सामने वो लोग खुल के बात करतीं, और मुझे भी गाँव भर के मर्दो का औरतों का हाल और पांच दिन में बहुत कुछ पता चला
तो पांच दिन के बाद मेरे सास का बेटा आया और फिर,....
बताउंगी, वो सब किस्सा भी
लेकिन उसके पहले दो बातें एक तो अब तक कहानी काफी कुछ क्रमानुसार चल रही थी एक एक दिन की हाल चाल जैसी लेकिन अब एक प्रकरण शुरू करुँगी तो उसके कुछ हिस्से मेरे गाँव में आने के पहले के होंगे तो कुछ बाद के लेकिन वो सब एक साथ ही और एक किस्सा ख़त्म होने के बाद दूसरा और छुटकी वाला सबसे बाद में जब वो बैंगलोर से लौट आएगी तो
और दूसरी बात
अगला किस्सा होगा सुगना और उनके ससुर का,
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कुछ झलक तो पहले मिल गयी थी बस बात वहीँ से शुरू करुँगी
Thank you so much, and after a brief interlude, the story has started again. please do share your views.Komal, itna achha likh ke bhi readers se do chaar line ki request kar rahi ho.
Jinko apne comment dene hai, wo jarur denge jinhe nahi wo ........
Is tarah ki post daal ke apni garima se samjhauta nahi karen.
I just declare, you are the best, in this forum.
आभार नमन, एक छोटे से अंतराल के बाद कहानी फिर से चल पड़ी है। आप के कमेंट का इन्तजार रहेगाअत्यंत मार्मिक और लाजवाब वर्णन। आपकी लेखनी में बहुत ताकत है। ऐसे ही लिखते रहिये।
आभार नमन, एक छोटे से अंतराल के बाद कहानी फिर से चल पड़ी है। आप के कमेंट का इन्तजार रहेगाVery nice & informative update
(lagta hai hamare liye kuch bhi nhi chhoda sab kuch bta diya, less count & less motility bagaira)
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update post ho gaya part 101 page 1067Yaha wale update ka wait to sare log kar rahe h.
Update Posted on all three storiesKahain ka the end to abhi bahut door hai, bahut kuch baki hai abhi. Or pause krne ke bajaye , update 2-3 week me ek baad de do. Baki intejar rahega