आशीष सुबह की कसरत करके और अखाड़े में पसीना बहाने के बाद घर वापस आ रहा था। रास्ते में उसे राजू मिल गया। पूरे गाँव में राजू ही आशीष का खास दोस्त था या यूँ कहें इकलौता।
राजू: जन्मदिन बहुत-बहुत मुबारक मेरे यार! भगवान करे तुझे मेरी भी उम्र लग जाए।
आशीष: शुक्रिया मेरे यार। साले तुझे मालूम था कि आज मेरा जन्मदिन है?
राजू: कैसी बात करता है साले, मुझे नहीं पता होगा तो किसे पता होगा? वह छोड़, बता आज पार्टी कहाँ और कैसे देगा?
आशीष: अबे तू जो बोलेगा, जैसे बोलेगा वैसे पार्टी करेंगे। मगर आज नहीं कल। तुझे तो पता है आज घर पे नाना-नानी की बरसी होती है, तो उनका शोक मनाते हैं सब। ऐसे में मेरा जन्मदिन मनाना अच्छा नहीं लगता।
राजू: ठीक है, ठीक है, वह मैं जानता हूँ। मगर कल कोई बहाना नहीं चलेगा।
आशीष: हाँ हाँ, कल पार्टी पक्का। वैसे भी अभी तो छुट्टियाँ हैं, बोल कहाँ करनी है पार्टी?
राजू: गाँव में तो ढंग की कोई जगह है नहीं। मैं सोच रहा था कल सिनेमा देखने शहर चलें, उधर ही खा-पी के मौज करके वापस आ जाएंगे शाम तक।
आशीष: अबे साले मरवाएगा क्या? तुझे पता है माँ मुझे कहीं जाने नहीं देती और तू शहर जाने की बात करता है।
राजू: देख भाई, अब तू पलटी मत मार। साल में एक दिन तो आता है, उसपे भी तुझे बहाने सूझते हैं। मैं कुछ नहीं सुनूँगा, कल शहर चल रहे हैं तो बस चल रहे हैं।
आशीष: यार तू समझता नहीं, माँ से क्या कहूँगा क्यों जाना है शहर?
राजू: वह तू सोच, मुझे कुछ नहीं पता।
आशीष: चल कोई रास्ता निकालता हूँ। मगर अगर माँ ना मानी तो फिर मैं कुछ नहीं कर सकता, पहले ही बोल देता हूँ।
राजू: मुझे कुछ नहीं सुनना। अगर मुझे दिल से दोस्त मानता है तो तू कल शहर चलेगा, वरना मैं समझूँगा मेरी कोई कीमत नहीं तेरी नज़र में।
आशीष: एक झापड़ दूँगा मुँह पे, कुछ भी बकवास करता है। चल मैं करता हूँ कुछ।
राजू: हिहिहि... कसम से यार, तू जब ऐसे गुस्सा करता है बड़ा मज़ा आता है।
आशीष: दूँ क्या कान के नीचे? फुल मज़ा आएगा।
राजू: अबे नहीं नहीं पहलवान! मुझे अभी अपने लिए लड़की पटानी है। तू तो ब्रह्मचारी मरेगा मगर मुझे तो शादी करनी है, मेरा इतना ख्याल रखा कर।
आशीष: चल चल ड्रामा बंद कर, अब देर हो रही है घर भी जाना है। माँ रास्ता देख रही होगी।
राजू: ठीक है चल।
फिर दोनों घर की तरफ चल पड़ते हैं। दोनों के घर पास में ही हैं। थोड़ी देर में आशीष घर पहुँच जाता है। घर में सब तैयार बैठे थे और पंडित जी का इंतज़ार कर रहे थे। तीनों भाई सफ़ेद कुर्ते-पाजामे में थे। आज के दिन घर में पंडित जी से हवन करवाते हैं अपने माता-पिता की आत्मा की शांति के लिए।
आशीष चुप-चाप घर में घुसता है और जल्दी से बरामदे से साइड में निकल कर सीढ़ियां चढ़ कर अपने रूम में जाता है तैयार होने। अभी अखाड़े की मिट्टी और पसीने की बदबू उसके जिस्म से आ रही थी। जल्दी से रूम में जाकर कपड़े उतार कर बाथरूम में घुस जाता है नहाने के लिए। नहाने के बाद तौलिया बाँध कर रूम में आता है तो सामने बेड पर वाइट कुर्ता-पाजामा देख कर समझ जाता है कि यह माँ ने आज के लिए रखे हैं और जल्दी से कपड़े पहन कर रूम से बाहर निकलता है। सीधा लक्ष्मी के रूम में जाता है।
लक्ष्मी: आ गया मेरा लाल! (कहकर सीधा आशीष को गले लगा लेती है और अपनी ममता की बारिश उसपर करती हुई उसके माथे को चूमती है)।
लक्ष्मी: जुग-जुग जियो मेरे लाल, हमेशा खुश रहो। तुझे मेरी भी उम्र लग जाए। जन्मदिन मुबारक हो!
आशीष: नहीं माँ, आपकी उम्र नहीं चाहिए मुझे। मैं तो सारी उम्र आपके पास रहना चाहता हूँ।
लक्ष्मी: खुश रहो बेटा। आज इतनी देर कहाँ लगा आया? मैं कब से तेरा इंतज़ार कर रही थी। तुझे तो पता ही है आज घर पे हवन-पूजा भी है। और बता आज तुझे क्या चाहिए जन्मदिन पर?
आशीष: अरे माँ मुझे सब याद है, वह बस रास्ते में राजू मिल गया था बस बातों में थोड़ा लेट हो गया। और मुझे कुछ नहीं चाहिए जन्मदिन पर, सब तो है मेरे पास फिर क्या माँगूँ?
लक्ष्मी: बेटा तू आज 18 साल का हो गया है। कुछ तो तेरे दिल में आता होगा, कोई तो ख्वाहिश होगी तेरी, बता क्या चाहिए तुझे?
आशीष: नहीं माँ, मुझे कुछ नहीं चाहिए। बस आपका प्यार चाहिए हमेशा-हमेशा।
लक्ष्मी इतना सुनकर फिर से गले लगा लेती है आशीष को। उसकी आँखें नम हो जाती हैं और दिल में सोचती है कि भगवान ने शायद इसी लिए उसे माँ नहीं बनाया क्योंकि आशीष मेरे लिए ही तो भेजा है भगवान ने।
लक्ष्मी: चल जल्दी कर पंडित जी आने वाले हैं। और जा कर पहले अपने बाबा से बाकी सब से मिल ले, सबका आशीर्वाद ले ले।
आशीष: जी माँ, मैं अभी जा रहा हूँ।
फिर आशीष अपने बाबा यानी विजय शंकर के पास जाता है।
आशीष: बाबा पाँव लागे, आशीर्वाद दीजिये मुझे कि आप का नाम रोशन करूँ।
विजय: आ गया मेरा शेर! जुग-जुग जियो, खूब तरक्की करो। तुझे देखता हूँ तो सीना चौड़ा हो जाता है मेरा गर्व से। पूरे गाँव में क्या, आस-पास के किसी भी गाँव में तुम्हारे जैसा होनहार संस्कारी लड़का कोई नहीं।
आशीष: बाबा यह सब आपका और माँ का आशीर्वाद है। मैं जो भी हूँ सब आपकी ही तपस्या और आशीर्वाद है।
विजय: जीते रहो बेटा। बता आज क्या चाहिए मेरे शेर को जन्मदिन पर?
आशीष: अरे नहीं बाबा, सब तो है मेरे पास फिर क्या माँगूँ? मुझे कुछ नहीं चाहिए बस आप मेरे सर पर अपना हाथ रखो और कुछ नहीं चाहिए।
विजय: मुझे पता है तू यही कहता रहेगा मगर मैंने जो सोचा है वह मैं ज़रूर दूँगा।
आशीष: बाबा आप यूँही सोच रहे हैं, मुझे कुछ नहीं चाहिए।
विजय: वह छोड़, जा जल्दी पहले सब से मिल ले। पंडित जी बस आ रहे हैं फिर हवन में बैठना है तुझे हमारे साथ।
आशीष: जी बाबा, मैं अभी जाता हूँ।
फिर आशीष अपने मंझले मामा अजय के पास जाता है जो हवन की व्यवस्था कर रहे थे।
आशीष: पाँव लागे मामा जी।
अजय: अरे आ गया बेटा। जीते रहो, सदा खुश रहो। बता क्या चाहिए तुझे जन्मदिन पर?
आशीष: अरे मामा जी बस आपका आशीर्वाद ही काफी है और कुछ नहीं चाहिए।
अजय: ऐसे कैसे नहीं चाहिए!
इतना कहकर अपनी जेब से कुछ रुपये निकाल कर आशीष की जेब में डाल देते हैं। आशीष मना करता है मगर अजय ज़बरदस्ती पैसे दे देते हैं। फिर आशीष अपने छोटे मामा कमलेश के पास जाता है जो कि अभी अपने रूम में ही था।
आशीष: पाँव लागे मामा जी।
कमलेश: आ गया मेरा शेर! जन्मदिन मुबारक हो। बोल आज क्या तोहफा चाहिए तुझे?
आशीष: अरे मामा जी, क्या पहले आपने कोई कमी रखी है जो माँगूँ कुछ?
कमलेश: अरे अब तू जवान हो गया है, आज 18 साल का हो गया है। बता क्या चाहिए? कुछ भी माँग ले।
आशीष: अरे नहीं मामा जी, कितना भी बड़ा हो जाऊँ रहूँगा तो आपका बच्चा ही।
तब भी कमलेश की बीवी यानी कि दीपिका आ जाती है और हँसते हुए कहती है।
छोटी मामी: आज तो गाँव की सब लड़कियां मर ही जाएंगी हमारे हीरो को देखकर। खैर नहीं किसी की आज! मैं तो कहती हूँ आज आप आशीष को घर से बाहर ही ना जाने देना, क्या पता किसी की लड़की इसे देखकर बेहोश हो गयी। आज तो आप को ही बोलेंगे सब गाँव वाले कि भांजे को संभाल कर रखो।
छोटी मामी: हैप्पी बर्थडे आशीष! मेनी मेनी हैप्पी रिटर्न्स ऑफ द डे। और तू अपने मामा की जेब ढीली करवा दिल खोल कर। तुझसे खर्च नहीं होंगे तो मैं कर लूँगी हिहिहिहि।
आशीष: थैंक्स मामी जी, मगर आप ऐसे ही मेरी टांग खींचती रहती हो लड़कियों की बात कर के। मुझे नहीं देखना किसी को। और पैसे मेरे पास पहले ही हैं, आप सब देते रहते हैं मगर मैं खर्च करूँ भी तो कहाँ? ऐसे ही पड़े रहते हैं।
छोटी मामी: (हैरानी से) क्याaa... तू पैसे खर्च नहीं करता? अरे बुद्धू, हम तुझे देते हैं खर्च करने को और तू ऐसे रखे रहता है। चल बच्चू अब मैं बताती हूँ तुझे कि खर्च कैसे करते हैं। अगले हफ्ते मैं तुझे शहर लेजाकर शॉपिंग करवाती हूँ।
कमलेश: ले जाना ले जाना, और जितना पैसा चाहिए हो मेरी जेब से ले जाना। मगर अभी बातें छोड़ो, पंडित जी आ रहे होंगे चलो जल्दी।
फिर तीनों रूम से निकल कर बरामदे में आने लगते हैं तो आशीष कामिनी मामी से मिलने का बोलकर उनके रूम की तरफ निकल जाता है। रूम का दरवाज़ा खुला था। आशीष जैसे ही रूम में घुसने लगता है अचानक वह कामिनी से टकरा जाता है जिससे कामिनी गिर जाती है। कामिनी के हाथ में बर्तन पकड़े थे जो कामिनी के ऊपर ही गिर जाते हैं और उसकी साड़ी गंदी हो जाती है। कामिनी इस सब से अचानक गुस्से में आ जाती है और कहती है।
कामिनी: अंधा है क्या? देखकर नहीं चल सकता? मेरे कपड़े खराब कर दिए। कितनी बार कहा है सुबह-सुबह मेरे सामने मत आया कर! जब भी सामने आता है कुछ ना कुछ नुकसान हो जाता है। पता नहीं कब पीछा छूटेगा तुझसे!
आशीष यह सुनकर दुखी हो जाता है। वह तो आशीर्वाद लेने आया था और यह क्या हो गया? उसकी अपनी गलती है, क्यों इतनी जल्दी में आया? क्या हो जाता देखकर आराम से चलना चाहिए था।
आशीष: मामी जी गलती हो गयी, माफ़ कर दीजिये। मैं तो आप से आशीर्वाद लेने आया था, आज जन्मदिन है मेरा।
कामिनी: (गुस्से से) गलती हो गयी... अरे गलती तो हमसे हुई है कि तुझे इस घर में ले आये, ज़िन्दगी नरक बना दी तूने मेरी। और कौन सा जन्मदिन, कैसा आशीर्वाद? अपने जन्मदिन पर ही अपने नाना-नानी को और अपने माँ-बाप को खा गया और मुझसे आशीर्वाद माँग रहा है!
यह बात सुनकर मानो आशीष का कलेजा फट गया। जैसे उसके कानों में किसी ने जलता हुआ तेल डाल दिया हो। उसकी आँखों से आँसू बहने लगते हैं, मुँह से एक शब्द नहीं निकलता। उसकी टांगें मानो उसका अपना ही वज़न उठाने में नाकामयाब हो रही थी। उसका दिल किया कि अभी उसे धरती निगल ले। यह सब बातें आशीष के इलावा किसी और ने भी सुन ली थी जो आशीष के पीछे ही आ रही थी—वह थी आशीष की छोटी मामी दीपिका, जो कामिनी को लेने ही आ रही थी। दरअसल उसे पता था कि सुबह-सुबह कामिनी को आशीष का चेहरा देखना पसंद नहीं। आज आशीष का जन्मदिन है कहीं कामिनी कुछ उल्टा-सीधा ना कह दे, और वही हुआ जो वह नहीं चाहती थी कि हो। दीपिका भाग कर कामिनी को शांत करवाती है।
दीपिका: दीदी शांत हो जाइये प्लीज। घर में हवन है, पंडित जी आ गए हैं। किसी ने सुन लिया तो खमखा घर का माहौल बिगड़ जाएगा। आप प्लीज शांत हो जाइये। आशीष तू चल मेरे साथ और दीदी आप जल्दी आइये बाहर।
दीपिका जानती थी कि कामिनी की बातें सुनकर आशीष के दिल पर क्या बीत रही होगी। बेचारा बिना किसी कसूर के कामिनी से ऐसी जली-कटी सुनता रहता है, मगर अभी फिलहाल इसे किसी भी तरह संभालना होगा। आशीष को लेके अपने रूम में जाती है।
दीपिका: आशीष चुप हो जा, अब तू छोटा बच्चा नहीं पूरा गबरू जवान हो गया है। क्या अच्छा लगता है तेरे जैसे हट्टे-कट्टे पहलवान की आँखों में आँसू? चुप हो जा।
आशीष तो बस आँखों से आँसू बहाये जा रहा था, मुँह से एक सांस नहीं निकल रहा था उसका। उसके कानों में कामिनी के शब्द गूँज रहे थे।
दीपिका: देख आज तेरा जन्मदिन है, आज के दिन कोई रोता है क्या? जल्दी से चुप हो जा, अपना हुलिया ठीक कर। दीदी ने देख लिया तो पता नहीं क्या होगा, प्लीज चुप हो जा।
मगर आशीष तो जैसे अभी भी उन्हीं शब्दों के जाल में फंसा हुआ था, उसे छोटी मामी की कोई बात सुन ही नहीं रही थी। फिर दीपिका आशीष को पानी का गिलास पिलाती है।
छोटी मामी: आशीष प्लीज कंट्रोल योरसेल्फ। अगर दीदी ने देख लिया तो उनके दिल पे क्या बीतेगी? मेरी नहीं तो दीदी की परवाह करले थोड़ी सी। क्या बीतेगी उनके दिल पर तुझे यूँ रोता देखकर? तुझे दीदी की कसम चुप हो जा।
इतना सुनते ही जैसे आशीष नींद से जागता है और अपने आँसू पोंछता हुआ कहता है।
आशीष: नहीं मामी जी, मैं बिल्कुल नहीं रोऊँगा। माँ को मैं दुखी नहीं देख सकता, वह तो मेरा सबकुछ हैं।
छोटी मामी: (थोड़ा हँसकर) अच्छाaa... मतलब मैं कुछ नहीं? वाह भाई वाह, हम तो यूँही समझ रहे थे कि हम भी उनके अपने हैं और वह हमें अजनबी कर गए।
इतना सुनते ही आशीष के चेहरे पर एक स्माइल आ जाती है। वह जानता था कि मामी ऐसे ही हँसी-मज़ाक करती है सब से, इस लिए आशीष मुस्कुरा के कहता है।
आशीष: ऐसे मत कहो मामी जी, आप तो मेरी सब से खास हैं। बिल्कुल मेरी दोस्त की तरह! माँ के बाद आप ही तो हैं जो मेरा इतना ख्याल रखती है।
छोटी मामी: बस बस मक्खन मत लगा। जल्दी हुलिया ठीक कर, पंडित जी आ गए हैं। जल्दी चल वरना तेरे साथ मुझे भी डांट पड़ेगी, चल जल्दी।
फिर हुलिया ठीक कर के आशीष और दीपिका पंडित जी के पास आ जाते हैं जहाँ सब पहले ही बैठे थे, कामिनी को छोड़ कर।
लक्ष्मी: अरे छोटी, कामिनी कहाँ रह गयी? उसे बुला तो जल्दी पूजा शुरू होनेवाली है।
इतने में कामिनी भी आ जाती है। पंडित जी हवन करते हैं और चले जाते हैं। उसके साथ ही आशीष सिर दर्द का बहाना बना कर अपने रूम में चला जाता है सोने।