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Adultery गोकुलधाम सोसायटी की औरते जेल में

hazel_manace

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यह कहानी 'तारक मेहता का उल्टा चश्मा' नामक भारतीय सीरियल की महिला पात्रो पर आधारित हैं।
यह पूरी तरह काल्पनिक कहानी है जिसका वास्तविक जीवन से कोई लेना-देना नही हैं। यदि किसी पात्र के नाम, स्थान या लिंग में समानता हो तो यह महज एक संयोग हो सकता है।
 
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Update 1

हाथो में हथकड़ी और महिला पुलिसकर्मियों की निगरानी में जब गोकुलधाम सोसायटी मर्डर केस की सातो आरोपियों को वेन से नीचे उतारा गया तो उनके दिलों की धड़कने एकदम से तेज हो गई। सामने जेल की काली अँधेरी दुनिया थी जिसके पार की अनभिज्ञता उन्हें लगातार परेशान कर रही थी।

रास्ते भर उनके मन मे अनेको सवाल हिचकोले मार रहे थे। जेल कैसी होगी? कैसे लोग होंगे? कैसे पेश आयेंगे? कब तक रहना होगा? आदि। सवालों की इस उधेड़बुन में कोर्ट से जेल तक का रास्ता कैसे कट गया, पता ही नही चला।

वेन से उतरते ही उन्होंने देखा कि सामने एक विशालकाय लोहे का गेट था जिसके दोनो ओर ऊँची-ऊँची दीवारे थी। गेट के ऊपर बड़े-बड़े अक्षरों में “केंद्रीय महिला कारागार, मुंबई” लिखा हुआ था। गेट पर दो बंदूकधारी महिला सिपाही तैनात थी जबकि बाहर की ओर कुछ अन्य महिला पुलिसकर्मी भी जेल की सुरक्षा में अपना योगदान दे रही थी। जेल के बाहर कुछ पेड़ थे लेकिन उनकी पत्तियाँ सूखी और बेजान थी, मानो वे भी इस जगह की निराशा को महसूस कर रहे हो।

“लाइन में खड़े हो जाओ और एक-एक करके अंदर चलो।” उनके साथ मौजूद लेडी काँस्टेबल ने उन्हें आदेश दिया।

उनके कदम भारी थे और अंदर जाने का खौफ़ उनके चेहरों पर स्पष्ट नजर आ रहा था। हालाँकि काँस्टेबल का आदेश पाते ही वे सातो एक कतार में खड़ी हो गई और ना चाहते हुए भी अंदर जाने के लिए अपने कदम आगे बढ़ा दिए।

गेट पर तैनात महिला सिपाही ने नीचे की तरफ बने छोटे दरवाजे को खोला और उन्हें एक-एक कर जेल के भीतर धकेल दिया।

गेट से अंदर जाने पर सबसे पहले एक चौड़ा सा गलियारा था। इसी गलियारे में कुछ महिला काँस्टेबल्स कुर्सियाँ लगाकर बैठी हुई थी जो जेल में आने-जाने वाले आंगतुकों का लेखा-जोखा दर्ज करने में व्यस्त थी। एक तरह से उनका काम किसी बँगले में काम करने वाले चौकीदार की तरह था जो अपने रजिस्टर में सभी आने-जाने वाले लोगो का पूरा ब्यौरा दर्ज करता रहता हैं।

उन सातो को जेल लेकर आये पुलिसकर्मियों ने भी अपना नाम रजिस्टर में दर्ज करवाया और फिर उन महिला सिपाहियों के हाथों में कोर्ट के आदेश की कॉपी सौंप दी।

“थोड़ी देर वेट कीजिये सर।” उनमे से एक लेडी काँस्टेबल ने कहा।

यह एक महिला जेल थी जहाँ केवल महिला कैदियो को ही रखा जाता था। इस जेल में पुरुषों को बिना अनुमति भीतर आने की इजाजत नही थी। गेट के अंदर बने गलियारे के बाद एक बड़ा सा मैदान था जहाँ पर मुलाकात कक्ष व कुछ कमरे बने हुए थे। इस मैदान के आगे एक और बड़ा सा गेट था जिसके भीतर जाने पर एक तरफ जेलर का ऑफिस, रजिस्ट्रेशन कक्ष व अन्य महिला अधिकारियों के ऑफिस थे जबकि दूसरी ओर मुलाकात कक्ष का विपरीत भाग था।

कुछ ही देर में अंदर से दो महिला काँस्टेबल्स गलियारे में आई और पुलिसकर्मियों सहित सातो आरोपी महिलाओ को अंदर चलने को कहा। उनके निर्देशानुसार सातो महिलाओ को पुलिस की निगरानी में सीधे जेलर के ऑफिस में ले जाया गया।

“मे आई कम इन मैम?” उन्हें जेल लेकर आये इंस्पेक्टर रजनीश ने जेलर से पूछा।

इस जेल की जेलर का नाम अदिति चौधरी था। वह मूल रूप से दिल्ली के वसंत कुंज की रहने वाली थी। 38 वर्षीय अदिति एक बेहद सख्त, क्रूर व घमंडी महिला थी जो अपनी जेल में बंद कैदियों के साथ बेहद ही बुरा बर्ताव करती थी। वह दिखने में काफी खूबसूरत थी लेकिन उसका व्यवहार बिल्कुल इसके विपरीत था।

“आओ रजनीश।” उसने इंस्पेक्टर की ओर देखते हुए कहा।

“मैडम, ये रही नई कैदियों की फाइल। मर्डर केस हैं।” रजनीश अदिति के हाथों में फाइल थमाते हुए बोला।

अदिति ने फाइल खोली और एक-एक कर सभी कागजातों को ध्यान से पढ़ने लगी। उसके चेहरे पर कोई भाव नही था लेकिन उसकी आँखें हर विवरण को बारीकी से पढ़ रही थी। गोकुलधाम सोसायटी का यह मर्डर केस पिछले दो दिनों से काफी चर्चाओ में था। अदिति ने भी इस केस के बारे में पढ़ा था लेकिन उसे यह जानकारी नही थी कि इस केस की मुख्य आरोपी उसी सोसायटी में रहने वाली सात महिलाएँ थी।

“सीमा, उन्हें अंदर लेकर आओ।” अदिति ने बाहर तैनात एक महिला काँस्टेबल को सातो आरोपियों को अंदर लाने को कहा।

उन्हें अंदर लाया गया। उन सभी के हाथों में हथकड़ी थी और चेहरे पर जेल के दर्द को दर्शाती गहरी विवशता। अदिति ने उन पर नजर दौड़ाई। मासूम, सभ्य और सीधी-सादी दिखने वाली उन सातो महिलाओ को देखकर यकीन करना मुश्किल था कि उन पर दो हत्याओ का संगीन आरोप था।

“तो ये है वो शरीफजादियाँ जिन्होंने दो-दो मर्डर किये हैं…” अदिति ने उनके मासूम चेहरो के पीछे छिपी क्रूरता को भाँपते हुए कहा।

“जी मैडम। इनकी शकल के पीछे मत जाइए। बहुत ही बेरहमी से मर्डर किया है इन्होंने।” इंस्पेक्टर रजनीश उसकी बात का समर्थन करते हुए बोला।

“अब ये मेरी जेल में आ गई है रजनीश। तुम्हे पता है ना मेरी जेल में बड़ी से बड़ी क्रिमिनल की अकल ठिकाने आ जाती हैं।”

“वो तो हम सब जानते हैं मैडम।” रजनीश ने उसका गुणगान करते हुए कहा, “अच्छा, अब हम चलते हैं। आप सँभालिये अपनी कैदियों को।”

उसने सातो आरोपी महिलाओ को सौंपने की सारी औपचारिकताएँ पूरी की और फिर उन्हें जेल प्रशासन के हवाले कर अपने साथ आई महिला पुलिसकर्मियों के साथ वहाँ से चलता बना।

उनके वापस लौटते ही गोकुलधाम की सातो आरोपी महिलाएँ पूरी तरह जेल प्रशासन के अधीन हो चुकी थी। उनके पास ना तो अब आजादी थी और ना ही जेल से बाहर कदम रखने की अनुमति। वे लोग एक ऐसी नियति की शिकार थी जहाँ अब कैद ही उनका एकमात्र सत्य था।

“लेके जाओ इन्हें और प्रोसीजर पूरा करो।” अदिति ने ऑफिस में मौजूद महिला सिपाहियों को आदेश दिया।

जेलर के आदेशानुसार उन महिला सिपाहियों द्वारा सातो आरोपी महिलाओ को पकड़कर जेल के रजिस्ट्रेशन कक्ष में ले जाया गया। रजिस्ट्रेशन कक्ष जेल का वह कक्ष था जहाँ पर जेल में आने वाली नई कैदियों की जाँच व तलाशी ली जाती थी। उन सातो को इसी कक्ष के भीतर लाया गया और उनकी प्रवेश प्रक्रिया शुरू हुई।

“चलो-चलो एक लाइन बनाकर नीचे बैठो। जल्दी करो।” एक लेडी काँस्टेबल उन लोगो पर चिल्लाते हुए बोली।

उन सातो के लिए कमरे का माहौल डर से भरा हुआ था और उनके आसपास तैनात महिला सिपाहियों की मौजूदगी ने उसके अंदर एक दहशत पैदा कर रखी थी। वे लोग नीचे जमीन पर बैठ गई और अपनी-अपनी बारी का इंतजार करने लगी।

“ऐ, चल तू खड़ी हो।” उनके बगल में खड़ी एक लेडी काँस्टेबल ने बबिता की ओर देखते हुए कहा।

बबिता लाइन में सबसे आगे थी और उसके पीछे क्रमशः अंजली, दया, सोनू, माधवी, कोमल और रोशन बैठी हुई थी। काँस्टेबल के कहते ही बबिता अपनी जगह से उठी और पहली टेबल के सामने जाकर खड़ी हो गई।​
 
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Update 2

(बबिता की जाँच प्रक्रिया)


“नाम बोल?” पहली टेबल के पीछे बैठी महिला सिपाही ने पूछा।

“ब…बबिता…” बबिता ने लखखड़ाती जबान में जवाब दिया।

“अपने बाप की शादी में नही आई है इधर। पूरा नाम बोल?” उसने फिर कहा।

बबिता के अंतर्मन पर उसका यह व्यवहार गहरा आघात कर गया। ऐसी असभ्यता का सामना उसने पहले कभी नही किया था। उसकी आँखों से आँसूओ की धारा फूटने की वाली थी तभी उस काँस्टेबल ने वही सवाल दोबारा दोहराया।

“पूरा नाम बोल?” इस बार उसकी आवाज में और अधिक सख्ती थी।

“ब…बबिता अय्यर।”

“पति का नाम?”

‘कृष्णन अय्यर।’

“उमर कितनी है?”

‘थर्टी फाइव इयर्स।’

“कौन से केस में आई है?”​

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बबिता चुप हो गई। एकाएक उसका दिल तेजी से धड़कने लगा। इस सवाल की अपेक्षा तो बिल्कुल नही की थी उसने। वह इस सवाल जवाब नही देना चाहती थी लेकिन एक कैदी होने की वजह से वह जवाब देने को मजबूर थी।

“जी, मर्डर केस में।” उसने धीरे से कहा।

“क्या? कौन से केस में? मुँह में दही जमाके रखा है क्या? जोर से बोल।”

“मर्डर केस में।” बबिता ने अपनी आवाज थोड़ी भारी की।

उस काँस्टेबल ने उससे इसी तरह के कुछ और सवाल पूछे और उसकी सारी जानकारी रजिस्टर में दर्ज कर उस पर उसके साइन करवाये। उसके बाद उसे अगली टेबल पर बैठी काँस्टेबल के पास भेज दिया गया।

अगली टेबल पर जाने के बाद बबिता की हथकड़ी खोली गई और उसे उसके सारे गहने व सामान टेबल पर रखने को कहा गया। उसने अपने कान के बूंदे और अंगूठियाँ उतारकर टेबल पर रख दी जिसके बाद उसे आगे खड़ी दो लेडी काँस्टेबल्स के हवाले कर दिया गया।

उनमे से एक काँस्टेबल ने बबिता को खींचकर दीवार से सटाया और उसकी ऊँचाई की जाँच करने लगी। इसके बाद उसका वजन देखा गया और फिर उसे तलाशी व शारीरिक जाँच के लिए दूसरी काँस्टेबल के सामने खड़ा करवाया गया।

“चल कपड़े उतार..” काँस्टेबल ने कहा।

कपड़े उतारने की बात सुनकर बबिता एक पल के लिए तो बिल्कुल स्तब्ध रह गई लेकिन उसके पास कोई रास्ता नही था। वह एक कैदी के तौर पर जेल के जाँच कक्ष में खड़ी थी जहाँ का माहौल उसके लिए डर से भरा हुआ था। कमरे में किसी प्रकार की कोई गोपनीयता नही थी। वह जिस जगह पर खड़ी थी, वहाँ पर कमरे में मौजूद सभी महिला पुलिसकर्मी व कैदी औरते उसे सीधे देख सकती थी।

उसने थोड़ी हिम्मत की और काँस्टेबल से बोली, “मैडम, यहाँ सबके सामने कपड़े कैसे…’

उस काँस्टेबल ने उसे घूरा और बीच मे टोकते हुए कहा, “ऐ, क्या रे। सबके सामने कपड़े नही उतार सकती तू। हरामी साली। तेरे पास ऐसा क्या स्पेशल हैं जो हमारे पास नही हैं..।”

“अबे बूब्स देख ना साली के। पूरा पहाड़ है पहाड़।” पीछे खड़ी एक दूसरी काँस्टेबल ने उस पर व्यंग किया।

बबिता रुआँसी हो उठी। वे लोग उसका मजाक उड़ाने लगी और उस पर हँसने लगी। उन महिला सिपाहियो से ना तो उसका कोई संबंध था और ना ही कोई जान-पहचान। मजबूरन उसे चुप रहना पड़ा और काँस्टेबल के कहने पर अपने कपड़े उतारने पड़े।

उसने काँपते हाथों से अपना टॉप उतारा और काँस्टेबल के हाथों में थमा दिया। उसका चेहरा शर्म और भय से लाल हो चुका था। कमरे की ठंडी हवा ने उसके शरीर को छू लिया और वह सिहर उठी। उसने अंदर गुलाबी रंग की ब्रा पहनी हुई थी। टॉप के उतारते ही उसकी ब्रा में जकड़े उसके दोनों स्तन बाहर निकलने के लिए फुदकने लगे और उसका क्लीवेज दिखने लगा।​

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मगर यह तो सिर्फ शुरुआत भर थी। आगे उसकी इज्जत का नंगा नाच अभी बाकी था जिसकी कल्पना उसने सपने भी नही की थी। उसने अपने दोनों हाथों से अपने सीने को इस तरह ढक लिया, मानो उसकी आबरू उसके स्तनों में ही सिमटी हो।

“हाथ नीचे कर।” काँस्टेबल ने तीखे स्वर में कहा, “यहाँ कोई ड्रामा नहीं चलेगा।”

बबिता ने अनमने मन से अपने हाथ नीचे किए। उसकी साँसें तेज थी और उसका दिल जोरो से धड़क रहा था। उसने हाथो को नीचे किया ही था कि तभी उस काँस्टेबल ने पीछे से उसकी ब्रा का हुक खोल दिया।

बबिता अवाक रह गई। ब्रा के खुलते ही उसके दोनों स्तन फुदककर बाहर कूद पड़े। उसके स्तन बड़े आकार के थे जिन्हें संभालना उसके लिए आसान नही था। उसकी नजरे शर्म के मारे झुक गई लेकिन उस कक्ष में मौजूद महिला सिपाहियों के लिए यह कोई नई बात नही थी।

उसकी तलाशी ले रही काँस्टेबल ने उसे दोबारा आदेश दिया, “जीन्स उतार।”

बबिता उस लेडी काँस्टेबल की बातों को मानने के लिए बाध्य थी। टॉप और ब्रा उतारने के बाद उसने अपनी जीन्स भी उतारकर नीचे रख दी। हालाँकि काँस्टेबल इतने में ही संतुष्ट नही थी। उसने उसे पैंटी भी उतारने को कहा और उसे पूरी तरह से नग्न करवाया।

अब वह पूरी तरह से नग्न थी। बदन पर एक भी कपड़े नही थे। उसका बदन भरा-भूरा व आकर्षक था और उसके बड़े-बड़े सुडौल स्तन गुब्बारो की तरह उसके सीने से लटक रहे थे। उसके कूल्हे उभरे हुए थे और कमर भी बहुत ज्यादा पतली नही थी। शरीर पर वसा का जमाव अधिक था जिसकी वजह से वह और भी ज्यादा सेक्सी लगती थी। काँस्टेबल ने उसे नग्न करवाने के बाद उसकी तलाशी व जाँच शुरू की।

जाँच की शुरुआत उसके बालो से हुई। उसने उसके बालो पर हाथ फेरा और उन्हें बिखेर दिया। उसके बाद उसके मुँह, कान, नाक, गले व गर्दन की जाँच की और फिर उसे दोनों हाथों को ऊपर करने को कहा। बबिता ने जैसे ही अपने दोनों हाथ ऊपर किये, वह काँस्टेबल उसके करीब आई और उसके स्तनों को दबाने लगी।

“ये क्या कर रही है आप?” बबिता ने झट से उसके हाथों को दूर करते हुए कहा।

“ऐ, चुपचाप खड़ी रह और हमे अपना काम करने दे।” काँस्टेबल ने उसे डाँट लगाई।

बबिता आगे कुछ न बोल सकी और शांत खड़ी रही। उस काँस्टेबल ने उसके स्तनों को अपने हाथो से ऊपर उठाया और उन्हें दबाकर अच्छी तरह से चेक करने लगी। इसके बाद उसने उसे दोनो टाँगे फैलाने को कहा। उसके कहने पर बबिता को अपनी दोनों टाँगे फैलानी पड़ी और वह टाँगे फैलाकर खड़ी हो गई। फिर काँस्टेबल ने अपने हाथों में दस्ताने पहने और उसकी योनि में अपनी ऊँगली डालकर चेक करने लगी कि उसने अपनी योनि में कुछ छुपाया तो नही हैं।​

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बबिता के लिए वह क्षण बहुत ही शर्मिंदगी भरा था और उसे ऐसा लग रहा था मानो किसी ने उसकी इज्जत ही लूट ली हो। काँस्टेबल यही नही रुकी। योनि की जाँच करने के बाद उसने उसे दीवार पर हाथ टिकाकर खड़े करवाया और उसके पीछे के छेद में ऊँगली घुसा दी। उसके लिए अब सब कुछ असहनीय होने लगा था और सहसा ही उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।

इस तरह का व्यवहार किसी भी इंसान को अंदर तक झकझोर देता हैं। उस वक़्त बबिता का वही हाल था। वह एक अच्छे परिवार की पढ़ी-लिखी महिला थी। पति वैज्ञनिक थे जबकि वह खुद एक हाउसवाइफ थी। उसका रहन-रहन, पहनावा और बोलचाल का तरीका पूरी तरह से मॉडर्न था।

खैर, शारीरिक जाँच और तलाशी के बाद उसे एक स्लेट दी गई जिस पर उसका नाम, उम्र, अपराध व कैदी नंबर लिखा हुआ था। उसे 2392 कैदी नंबर दिया गया। जाँच के बाद उसने अपने कपड़े पहने और फिर उसका मगशॉट (जेल के रिकॉर्ड के लिए कैदी की तस्वीर) लिया गया। चूँकि वह एक अंडरट्रायल कैदी थी इसलिए उसे जेल के कपड़े नही दिए गए। उसकी तस्वीर लेने के बाद उसे कुछ सामान दिया गया जिसमें एक थाली, मग, कंबल, टॉवेल व एक बाल्टी शामिल थी।

जाँच प्रक्रिया पूरी होने के बाद उसे एक तरफ दीवार से सटाकर खड़ा करवाया गया और तब तक खड़ा रखा गया जब तक उसके साथ लाई गई सभी कैदियों की जाँच पूरी नही हो गई।

बबिता के साथ उसी की सोसायटी की छः अन्य महिलाओ को भी जेल लाया गया था। इन आरोपी महिलाओं में अंजली मेहता, दया गढ़ा, रोशन कौर सोढ़ी, कोमल हाथी, माधवी भिड़े और उसकी बेटी सोनालिका भिड़े शामिल थी। इन सभी पर उन्ही की सोसायटी में हुई एक व्यक्ति और उसकी पत्नी की हत्या का आरोप था। एक दिन पहले ही सभी को उनके घरों से गिरफ्तार किया गया था जिसके बाद अदालत ने किसी को भी जमानत ना देते हुए सभी को 14 दिनों की ज्यूडिशियल कस्टडी में जेल भेज दिया।​
 
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Update 3

(अंजली की बारी)


बबिता की जाँच के बाद अगली बारी अंजली की थी। हाथो में हथकड़ी और पीले रंग की सलवार पहने अंजली जब पहले नंबर की टेबल के सामने खड़ी हुई तो काँस्टेबल ने सख्त लहजे में उससे पूछा, “नाम?”

“अंजली मेहता।” उसने जवाब दिया।

“पति का नाम?”

“जी...तारक मेहता।”

“उमर कितनी हैं?”

“छत्तीस साल।”

कुछ और जानकारियाँ पूछने के बाद उस काँस्टेबल ने रजिस्टर पर उसके साइन करवाये और उसे अगली टेबल पर जाने को कहा। प्रक्रिया के तहत, अगली टेबल पर उसके गहने उतरवाए गए और सारा सामान जमा करवाया गया। फिर उसकी ऊँचाई व वजन की जाँच कर उसे तलाशी के लिए आगे भेज दिया गया।​

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बबिता की तरह ही काँस्टेबल ने उसे उसके कपड़े उतारने को कहा। वह बबिता की तलाशी प्रक्रिया अपनी आँखों के सामने देख चुकी थी इसलिए उसने किसी भी तरह की कोई आनाकानी नही की। काँस्टेबल के कहते ही वह अपने कपड़े उतारने लगी।

उसने सबसे पहले अपना दुपट्टा सीने से हटाया और उसे नीचे जमीन पर रख दिया। फिर अपनी सलवार उतारी और पजामे का नाड़ा खोलकर उसे भी नीचे सरका दिया। उसने अंदर काले रंग की ब्रा-पैंटी पहन रखी थी जिसमे वह कमाल की खूबसूरत लग रही थी। फिर एक-एक करके उसने अपनी ब्रा व पैंटी भी उतार दी और पूर्ण नग्न अवस्था मे काँस्टेबल के सामने खड़ी हो गई।

काँस्टेबल ने उसके साथ भी वही प्रक्रिया दोहराई जो उसने बबिता के साथ की थी। उसके बालों से लेकर शरीर के प्रत्येक अंगों की जाँच की गई जिसके बाद काँस्टेबल ने उसकी योनि और गाँड़ के छेद में ऊँगली डालकर यह सुनिश्चित किया कि उसने अपने पास कुछ छुपाया ना हो। जब वह इस बात से पूरी तरह से आश्वस्त हो गई, तब उसने अंजली को छोड़ा।

इसके बाद उसका मगशॉट (जेल के रिकॉर्ड के लिए कैदी की तस्वीर) लिया गया। अंजली का कैदी नंबर 2393 था। मगशॉट लेने के बाद उसे जेल का सामान दिया गया और उसे बबिता के साथ ही एक तरफ खड़ा करवा दिया गया।

बबिता और अंजली की जाँच प्रक्रिया सभी के सामने ही की जा रही थी। वहाँ ना तो कोई पर्दा था और ना ही नग्न होने के दौरान अलग कमरे की व्यवस्था थी। उन्हें कमरे में मौजूद महिलाओ के सामने ही नंगा होना पड़ रहा था जो उनके जैसी सभ्य परिवारों की महिलाओं के लिए बेहद ही अपमानजनक व शर्मिंदगी भरी बात थी।

बबिता और अंजली ने अपने पतियों के अलावा किसी के भी सामने कभी अपने पूरे कपड़े नही उतारे थे। जेल में आने के बाद पहली बार था जब उन्हें किसी ने पूर्ण नग्न अवस्था मे देखा था। हालाँकि वहाँ पर केवल औरते ही औरते मौजूद थी लेकिन उन महिला पुलिसकर्मियों द्वारा उनके साथ किया जा रहा व्यवहार किसी उत्पीड़न से कम नही था। खैर, वे लोग अब आजाद नही थी और कैद में होने का अर्थ था कि वे जेल स्टॉफ की बातों व जेल के नियमो को मानने के लिए विवश थी।

बबिता और अंजली की जाँच के बाद क्रमशः दया, रोशन, कोमल, माधवी और अंत मे सोनू की जाँच की गई। उन सभी के कपड़े उतरवाए गए और पूर्ण नग्न अवस्था मे उनकी तलाशी ली गई। उन पाँचो के लिए भी यह बिल्कुल आसान नही था। दया और माधवी ने उस वक़्त साड़ी पहनी हुई थी जबकि रोशन ने वन पीस वेस्टर्न ड्रेस, कोमल ने ओवरसाइज कुर्ती पजामा तथा सोनू ने जीन्स टॉप पहन रखा था।

पाँचो को बारी-बारी से नंगा करवाया गया और उनकी तलाशी ली गई। तलाशी के बाद उनका मगशॉट लिया गया और उन्हें उनके कैदी नंबर दिए गए। उनके घरवाले उनके कपड़ो का बैग जेल में जमा करा चुके थे जिसकी अच्छी तरह से जाँच करने के बाद उनके बैग उन्हें सौंप दिए गए। उन्हें जेल का सामान दिया गया और सभी को एक कतार में पुनः जेलर के ऑफिस में ले जाया गया।​
 
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Update 4
(जेलर का ऑफिस)


“इधर खड़ी रहो।” काँस्टेबल ने उन सातो से कहा।

उनके हाथों में सामान था और चेहरे पर अपमान के अद्वितीय भाव जो उनकी मनोदशा को स्पष्ट बयाँ कर रहे थे। उन्हें जेलर की टेबल के सामने खड़े करवाया गया। जेलर अदिति उस वक़्त अपने मोबाईल पर कुछ वीडियोज देख रही थी लेकिन उन सातो को ऑफिस में लाये जाते ही उसने मोबाईल को बंद कर टेबल पर रख दिया। उसने टेबल पर रखी एक फाइल उठाई और उसमे उन सातो के नाम पढ़कर उनका परिचय लेने लगी।

“अंजली मेहता कौन है?” उसने सख्त लहजे में पूछा।

“मैं हूँ मैम।” अंजली ने जवाब दिया।

अदिति ने अंजली को ओर देखा। उसकी आँखों में एक पल को ठहराव सा आ गया। उसने धीरे-धीरे अंजली के बदन पर ऊपर से नीचे तक नजर दौड़ाई मानो जैसे किसी किताब के पन्ने पलट रही हो। अंजली के चेहरे पर थकान के बावजूद एक खास नरमी थी। उसकी बड़ी-बड़ी आँखें हल्की शर्म से झुकी हुई थी लेकिन उनमें एक ऐसी मासूमियत और गहराई थी जो तुरंत किसी का भी ध्यान अपनी ओर खींच सकती थी।

अदिति ने अगला नाम बबिता का लिया। उन सातो में बबिता ही एक ऐसी महिला थी जो बेहद स्टाइलिश, मॉडर्न और आधुनिक थी। उस वक़्त भी उसने जीन्स व टॉप पहन रखा था जिसमे वह बहुत ही सेक्सी लग रही थी। उसका वसायुक्त और छरहरा बदन काफी आकर्षक था और अदिति को ऐसी महिलाओं का जेल में आना बहुत पसंद था।

अदिति ने अंजली और बबिता के बाद क्रमशः दया, कोमल, माधवी, रोशन और अंत मे सोनू का परिचय लिया। सोनू जो मात्र 22 वर्ष की एक कॉलेज जाने वाली लड़की थी, आज जेल में एक कैदी के रूप में खड़ी थी। उसकी कमसिन जवानी को देखकर जेलर कुछ पल के लिए अपनी आँखें ना हटा सकी। सोनू बाकी औरतो की तरह ही सुंदर थी लेकिन उसका कुँवारापन उसे बाकी छः औरतो से अलग दर्शाता था।

“एज क्या है तेरी?” अदिति ने सोनू से पूछा।

“जी। ट्वेंटी तू इयर्स मैम।” सोनू ने डरते हुए कहा।

“कॉलेज में है?”

“यस मैम। लास्ट ईयर चल रहा हैं।”

तभी पीछे से माधवी उत्सुकतावश बोल पड़ी, “टॉपर है मैडम। सांग बाड़ा।”

“जी मैडम। टॉप…” सोनू आगे कुछ बोल पाती, उससे पहले ही जेलर ने उसे ऊँगली के इशारे से चुप करा दिया। उसे माधवी का यूँ बीच मे बोलना बिल्कुल पसंद नही आया और वह इतनी सी बात पर गुस्से से आग बबूला हो उठी। वह अपनी कुर्सी से उठकर माधवी के पास आई और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोली, "बीच मे बोलने का बहुत शौक हैं..."

जेलर की आवाज में गुस्सा था और माधवी को एहसास था कि वह उसके साथ कुछ भी कर सकती हैं। डर के मारे उसका दिल तेजी से धड़कने लगा लेकिन वह एक शब्द भी नही बोल पाई। जेलर उसे खींचते हुए आगे लेकर आई और सोनू के सामने खड़ा कर दिया।

“ऐ लड़की, सामान नीचे रख और एक थप्पड़ लगा इसको।” उसने सोनू को आदेश दिया।

सोनू चौंक गई। उसके चेहरे पर मानो सन्नाटा सा छा गया। माधवी उसकी माँ थी और भला वह अपनी माँ को थप्पड़ कैसे मार सकती थी। उसकी आँखें एकदम नम हो गई और होंठ काँपने लगे। सामने खड़ी माधवी के चेहरे पर भी हल्की सी भय और वेदना की रेखा थी।

“मैम। ये…ये मेरी आई है।” सोनू ने धीरे से कहा, मानो उसकी आवाज़ खुद भी शर्म से लरज रही हो।

लेकिन अदिति की आँखों में न तो दया थी और न ही कोई नरमी। उसका चेहरा कठोर हो चुका था। “यह जेल है। माँ-बेटी का ड्रामा नहीं चलेगा यहाँ। जो कहा है, वो करो। या फिर…” अदिति ने एक हाथ से बेल्ट खोलने का नाटक करते हुए कहा।

उसे बेल्ट खोलते देख मानो उन सातो महिलाओ के होश उड़ गए। प्रत्याशित रूप से वे लोग समझ चुकी थी कि अदिति का इरादा नेक नही था। बेल्ट निकालने का सीधा अर्थ था कि वह उनके साथ मारपीट करना चाहती थी। डर और घबराहट के मारे उन्हें पसीना आने लगा। उनकी चिंता वाजिब थी। अदिति उस महिला जेल की जेलर थी और वे सातो उसकी कैदी।

“तो तू अपनी माँ को थप्पड़ नही मारेगी?” उसने सोनू को ओर देखते हुए कहा।

सोनू कुछ न बोल पाई और अपना सर झुककर शांत खड़ी रही।

“अब अगर तू नही मारेगी तो तेरा काम मुझे करना पड़ेगा।” अदिति ने उसे धमकाया।

वह अपनी कुर्सी से उठी और माधवी के बगल में जाकर उसके बालो को जोर से खींचने लगी। माधवी दर्द से कराह उठी और अपने आपको छुड़ाने की कोशिश करने लगी।

“आँह, मैडम प्लीज छोड़िये। दर्द हो रहा हैं।” माधवी ने विनती की।

मगर अदिति कहाँ मानने वाली थी। जेल की दहलीज के भीतर कदम रखते ही उन सातो महिलाओ के अधिकार पूरी तरह नगण्य हो चुके थे। वे लोग अब अदिति के अधीन थी और अदिति उन सातो के साथ जो चाहे वो कर सकती थी।

“दर्द हो रहा है साली रांड। जब दो-दो मर्डर कर रही थी, तब दर्द नही हुआ तुझे। हाँ?” अदिति गुस्से से तमतमाते हुए बोली।

माधवी के साथ इस तरह का अपमानजनक बर्ताव होते देखने के बावजूद बाकी औरते कुछ भी बोलने की हिम्मत नही कर पाई। उस कक्ष का माहौल उनके लिए डर से भरा हुआ था जहाँ उन अजनबी महिला पुलिसकर्मियों की मौजूदगी उनकी बेचैनी को और भी ज्यादा बढ़ा रही थी। सभी औरते चुपचाप गर्दन झुकाए एक-दूसरे की ओर अनिश्चय भरी निगाहों से देख रही थी। किसी की आँखों में डर था तो किसी की पलको पर आँसू अटके हुए थे।

अदिति ने पास खड़ी एक लेडी काँस्टेबल की ओर देखा और बोली, “अरे प्रमिला, तूने देखा इन कमिनियो को? साली शकल से तो इतनी शरीफ लग रही है जैसे कुछ किया ही ना हो।”

“हाँ मैडम जी। सब की सब पढ़ी-लिखी ही लग रही हैं।” काँस्टेबल प्रमिला ने उसकी हाँ में हाँ मिलाई।

“पर अब पढ़ाई-लिखाई का क्या करेगी प्रमिला? जेल में कौन सी पढ़ाई लिखाई काम आने वाली है।”

“मैडम जी, जेल में जो चीज काम आएगी, वो भी तो भरपूर है इनके पास।”

प्रमिला की बात सुनकर अदिति हल्के से मुस्कुराई लेकिन उस मुस्कान में भी एक तरह की दरिंदगी और सत्ता का गर्व छुपा हुआ था। उसने बबिता, अंजली और बाकी महिलाओ को बारी-बारी से देखा और फिर उन्हें चेतावनी देते हुए कहने लगी,

“तुम लोग मेरी बात कान खोलकर सुन लो। आज से अपना घर, फैमिली, बच्चे सब भूल जाओ। अब से ये जेल ही तुम्हारी दुनिया है और यहाँ के नियम-कायदे तुम्हारी जिंदगी।”

उसने एक पल सांस ली और फिर बोली, “यहाँ पर वही होता है जो मैं चाहती हूँ। मेरी मर्जी के बिना यहाँ पर एक पत्ता भी नही हिलता। तो मैं जो कहूँ, वो आँख बंद करके करना। बिना कोई सवाल पूछे। समझे?”

उन सातो ने अपना-अपना सर हिलाकर उसकी बातो में हामी भरी।

उसने उन सभी को नियमो का पालन करने, सीनियर कैदियों की बाते मानने, जेल स्टॉफ से बदतमीजी ना करने व कुछ अन्य बातो के लिए सख्त चेतावनी दी और साथ ही यह भी कहा कि यदि वे लोग एक भी नियम तोड़ती हैं तो उन्हें कड़ी सजा दी जाएगी। इसके बाद उसने कमरे में मौजूद काँस्टेबल्स से उन सभी को अंदर ले जाने को कहा। जेलर के आदेशानुसार उन लोगो को एक कतार में अंदर सर्कल की ओर ले जाया गया।​
 
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(सर्कल 1)


जेलर के ऑफिस से अंदर जाने पर रास्ते के दोनों तरफ ऊँची-ऊँची दीवारे थी। इन्ही दीवारों के कुछ दूर आगे जाते ही एक बड़ा सा गेट था जिसके सामने कुछ बंदूकधारी महिला सिपाही तैनात थी। कैदियों के लिए यही गेट एक तरह से जेल का अंतिम गेट था क्योंकि एक बार अंदर जाने पर किसी भी कैदी को बिना अनुमति के इस गेट से बाहर आने की इजाजत नही होती थी। बबिता और बाकी सभी को गेट से अंदर ले जाया गया।

जब वे लोग गेट के दूसरी तरफ पहुँची तो उन्होंने देखा कि दूसरी तरफ भी कुछ महिला पुलिसकर्मी बंदूक और डंडे थामे पहरा दे रही थी। उन लोगो की धड़कने तेज होने लगी और उन्हें घबराहट सी महसूस होने लगी। ऐसा होना स्वाभाविक भी था। आखिरकार वे लोग हत्या जैसे संगीन आरोप में जेल में थी और उन्हें ज़रा भी अंदाजा नही था कि आगे उनकी जिंदगी कितनी कठिन होने वाली थी।

जेल में कैदियों को रखे जाने के लिए दो सर्कल बने हुए थे। इन्ही सर्कलों के भीतर सेल व बैरकों की व्यवस्था थी तथा दोनो सर्कलों की बनावट व क्षमता एक समान थी। गेट से अंदर जाने के बाद उन सातो को सर्कल 1 में ले जाया गया।

“मैडम, ये नई कैदी लोग हैं।” उन्हें सर्कल तक लेकर गई काँस्टेबल ने सर्कल इंचार्ज मनीषा से कहा।

मनीषा शुक्ला सर्कल 1 की इंचार्ज थी। दिखने में खूबसूरत थी लेकिन स्वभाव से उतनी ही ज्यादा सख्त व क्रूर। वैसे तो जेल में तैनात ज्यादातर महिला पुलिसकर्मी स्वभाव से सख्त व क्रूर ही थी लेकिन कैदियों को ग़ुलाम और नौकर समझने की प्रवत्ति उन्हें और भी ज्यादा अत्याचारी बना देती थी। जेल स्टॉफ की महिलाओं के अंदर कैदियों के प्रति एक अलग ही नफरत थी। उनकी नजर में कैदी औरते इंसान नही बल्कि जानवरो की तरह थी। मनीषा की मानसिकता भी कुछ इसी तरह की थी। उसकी उम्र 50 साल से अधिक थी और वह कई सालों से जेल डिपार्टमेंट में नौकरी कर रही थी।

बबिता और बाकी औरतो को मनीषा के हवाले कर दिया गया और उन्हें लेकर आई काँस्टेबल्स वहाँ से वापस लौट गई।

शाम के साढ़े चार बज चुके थे। जेल में बंद सैकड़ो अंडरट्रायल कैदी औरते मैदान परिसर में समय व्यतीत कर रही थी जबकि सभी सज़ायाफ्ता कैदी महिलाएँ भी काम से वापस लौटने लगी थी। सर्कल के अंदर बने मैदान में औरतो व लड़कियों की अत्याधिक भीड़ थी। उन सातो के लिए जेल का माहौल बहुत ही घुटन भरा था और सर्कल के बड़े से गेट से जब उन्हें अंदर लाया गया तो एकाएक सैकड़ो औरतो और लड़कियों को सामने देखकर वे लोग बेहद घबरा गई।

“अरे देखो देखो। नई तितलियाँ आई है।” एक कैदी महिला ने उन पर तंज कसा, “क्यूँ रे, क्या किया है तुम लोगो ने? साली शकल से गुलाब और हरकते काँटो वाली…” मैदान में मौजूद पुरानी कैदियों ने उन्हें देखते ही उस पर फब्तियाँ कसनी शुरू कर दी।

“क्या रे छिनालो। क्या करके आई हो?” एक दूसरी औरत ने उनके करीब आकर कहा।

वह औरत लगभग 40 साल से अधिक उम्र की एक अधेड़ महिला थी जिसे अपने करीब जानकर वे लोग बहुत ही डर गई। वे कुछ बोल पाती, उससे पहले ही उसने अंजली और माधवी के कूल्हों पर एक हाथ दे मारा और उनके बदन को छूने की कोशिश करने लगी। तभी मनीषा (सर्कल इंचार्ज) ने उस औरत पर चिल्लाते हुए कहा,

“ऐ, चल छोड़ उनको। साली नई औरते आई नही और कमिनियाँ मक्खियों की तरह भिनभनाने लगती हैं।”

“क्या मैडम आप भी। जेल में रहके साली जिंदगी झंड हो गई है। नया माल दिखता है तो मन मे हरियाली छा जाती हैं।”

“अच्छा। तो फिर अपनी माँ चुदाने के लिए पति का मर्डर की थी।”

“अरे मैडम, गलती हो गई मेरे से। साला दारू पीके बहुत मारता था। निपटा दी साले हराम के पिल्ले को।”

“हाँ तो अब सड़ जेल में।” इतना कहते ही मनीषा ने वहाँ मौजूद कुछ लेडी काँस्टेबल्स को अपने पास बुलाया और उन्हें गोकुलधाम की सातो आरोपियों को वार्ड नंबर 4 में ले जाने को कहा। उसके आदेशानुसार काँस्टेबल्स उन सातो को लेकर सीधे वार्ड नंबर 4 की ओर बढ़ गई। मनीषा भी उनके पीछे-पीछे वार्ड तक चली आई।

गलियारे से गुजरते हुए वे लोग वार्ड 4 के सामने पहुँची। वार्ड के सामने जाने पर एक लोहे का दरवाजा लगा हुआ था। यह दरवाजा केवल लोहे की सलाखों से बना हुआ था जो ठीक वैसा ही था जैसी किसी हवालात की सलाखें होती हैं। दरवाजे के बाहर तैनात सिपाही आसानी से इसके अंदर यानि कोठरियों (सेल) पर नजर रख सकती थी।

मनीषा के बाद उनका अगला सामना हुआ वार्ड 4 की वार्डन शोभना ठाकुर से। दिखने में बेहद खूबसूरत और हट्टे-कट्टे शरीर की मालकिन शोभना पिछले तेरह सालो से इसी जेल में वार्डन के पद पर तैनात थी। वह जेल की सबसे क्रूर वार्डनों में से एक थी जिसे उसके वार्ड की कैदियों का अनुशासनहीनता करना बिल्कुल पसंद नही था। कैदियों के साथ वह जानवरो की तरह बर्ताव करती थी और अपने से बड़ी उम्र की कैदियों के साथ भी मारपीट करने में बिल्कुल संकोच नही करती थी। उन सातो की बुरी किस्मत ही थी कि उन्हें शोभना के वार्ड में भेजा गया।

“ले शोभना। नया माल आया है तेरे लिए।” मनीषा ने शोभना की ओर देखते हुए कहा।

शोभना ने उन सातो को ऊपर से नीचे तक देखा और एकाएक बोल पड़ी, “कहाँ से लाये है रे इन मालो को? सब की सब टोटा है साली।"

“अरे वो गोकुलधाम मर्डर केस पढ़ा था ना तूने?” मनीषा ने कहा।

“हाँ।”

“उसी केस में आई है।”

“क्या बात कर रही है? एक आदमी को सात औरतो ने मिलकर निपटा दिया। माँ की आँख। ऐ, ठुकाई करता था क्या तुम लोगो की?” वह उनका मजाक उड़ाते हुए बोली।

“एक थोड़ी ना हैं। उसकी बीवी को भी निपटाया है।” मनीषा ने बताया।

"हाँ तो बराबर है ना। उसको पता चल गया होगा कि उसका पति इन रंडियों को ठोकता है। मारी गई बेचारी फोकट में।"

“सही कह रही है तू। आजकल की औरतो का कोई भरोसा नही हैं। अब इन कमिनियो को देखकर कोई बोल सकता है क्या कि इन्होंने दो-दो मर्डर किये है।”

मनीषा की बातों में सच्चाई थी। उन सातो को देखकर कल्पना करना मुश्किल था कि उन पर दो हत्याओ का संगीन आरोप था। उनके मासूम और भोले-भाले चेहरों के पीछे छिपा वह खौफनाक सच किसी को भी हैरान कर सकता था। उनकी शांत आँखों में एक बेबसी थी जो उनके निर्दोष होने की मूक गवाही दे रही थी। हालाँकि यह साबित होना अभी बाकी था कि वे सातो वाकई निर्दोष है या उनके मासूम चेहरो के पीछे कोई दरिंदगी छुपी हुई थी।

थोड़ी देर बाद उन्हें वार्ड के अंदर ले जाया गया और शोभना के आदेशानुसर सभी को सेल नंबर 9 में डाल दिया गया। वार्ड के भीतर कुल 15 सेल थी और उन्हें सेल आवंटित करने का फैसला पूरी तरह शोभना पर निर्भर था। हालाँकि उन लोगो के साथ एक बात अच्छी जरूर हुई कि उन्हें अलग-अलग सेलो में ना डालते हुए एक साथ एक ही सेल में रखा गया जो जेल जैसी जगह पर उनके लिए राहत की बात थी। उन्हें सेल में डालने के बाद मनीषा और शोभना वहाँ से वापस लौट गई और वे सातो अन्य अपराधी महिलाओ के साथ सेल के अंदर कैद हो गई।​
 
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(सेल नंबर 9)


“आइये आइये…मैडम जी। आइये।” उन सातो ने सेल के भीतर कदम रखा ही था कि तभी सेल में बंद पुरानी कैदियों ने उन्हें तंग करना शुरू कर दिया। उनमे से दो औरते एकदम से उनके करीब आई और उन्हें अचरज भरी निगाहों से देखने लगी।

“अरे वाह! इस बार तो बड़ा जबरदस्त माल आया है।” उनमे से एक औरत ने बबिता के बालों को बिखेरते हुए कहा।

तभी दूसरी औरत ने माधवी के कूल्हों पर एक थपेड़ लगाई और उसे घूरते हुए बोली, “कौन सा केस?’

वे लोग शांत खड़ी रही और उनमे से किसी ने भी उस औरत की बातों पर कोई प्रतिक्रिया नही दी। लेकिन उनकी चुप्पी ने मानो उस औरत के सख्त मिजाज को एकदम से जागृत कर दिया और उसने दोबारा सख्त लहजे में कहा, “सुनाई नही दिया बहनचोद? मैने पूछा कौन सा केस?”

तभी बाहर तैनात एक महिला सिपाही ने उसकी बात का जवाब देते हुए कहा, “मर्डर केस है। वो भी दो-दो।”

मर्डर का नाम सुनते ही सेल की उन पाँचो कैदियों की नजरें एकाएक उन सातो पर आकर टिक गई। जेल में किसी औरत का मर्डर केस में आना कोई आश्चर्य वाली बात नही थी लेकिन सात सभ्य, पढ़ी-लिखी और अच्छे घरो की महिलाओ का एक साथ जेल आना जाहिर तौर पर थोड़ा दिलचस्प जरूर था।

इस सेल की हेड कैदी का नाम रेणुका था। रेणुका लगभग 52 साल की एक हत्यारोपित कैदी थी जो चार हत्याओ के आरोप में उम्रकैद की सजा काट रही थी। वह दिखने में औसत थी लेकिन उसका शरीर भारी-भरकम और मजबूत था। वह एक बेहद ही खतरनाक और शातिर अपराधी थी, साथ ही उसका स्वभाव भी काफी गुस्सैल था। यही कारण था उसे सेल की हेड बनाया गया था ताकि वह अपनी सेल की अन्य कैदियों को डराकर काबू में रख सके।

“माल तो एकदम चिकना है प्रमिला। लेकिन इन रंडियों के लिए इधर जगह कहाँ हैं?” रेणुका ने उनकी ओर देखते हुए कहा।

“जगह बना लेंगे ना दीदी। वैसे भी बहुत टाइम से किसी को अपनी सेल में रखे ही नही है।” प्रमिला बोली।

तभी सेल में बंद एक अन्य कैदी नीलिमा ने उसकी बात का विरोध करते हुए कहा, “कहाँ जगह बनाएगी तू? साला इधर अपने को ही जगह नही होती। इन हरामियों को कहाँ रखेगी?”

उसका कहना वाजिब था। सेल में केवल चार कैदियों के रहने लायक ही पर्याप्त जगह थी लेकिन अब वे लोग बारह औरते थी जिन्हें इसी एक सेल में रहना था। यह आसान नही था लेकिन वे लोग विवश थी। उन सातो को इस सेल में रखने का फैसला वार्डन का था जो अपनी सख्ती के लिए जानी जाती थी।

सेल के अंदर किसी तरह की कोई साधन-सुविधा नही थी। सामने की ओर लोहे ही सलाखें लगी हुई थी जबकि तीन तरफ केवल दीवारे थी। इन्ही सलाखों के बीच मे लोहे का एक दरवाजा बना था जिसमे केवल बाहर से ताला लगाया जा सकता था। सेल के अंदर गर्मी के लिए एक पंखा तथा रोशनी के लिए एक पीले रंग का बल्ब लगा हुआ था। पीने के पानी के लिए एक मटका रखा था जबकि शौच के लिए सेल के अंदर ही एक कोने में टॉयलेट शीट लगी हुई थी। गोपनीयता के लिए टॉयलेट शीट के आसपास छोटी सी दीवार बना दी गई थी।

सेल की दीवारो की हालत भी बहुत ज्यादा अच्छी नही थी। उनका पेंट उखड़ने लगा था और ऐसा लग रहा था जैसे कई सालों से दीवारों पर पेंट नही किया गया हो। हालाँकि फर्श अच्छी अवस्था मे थी लेकिन उस पर सोना किसी भी इंसान के लिए बेहद मुश्किल था।

‘नाम क्या तुम लोगो के?” रेणुका ने उन सातो से पूछा।

वे लोग बेहद घबराई हुई थी लेकिन एक-दूसरे के साथ ने उनके अंदर थोड़ी हिम्मत पैदा कर रखी थी। रेणुका के पूछने पर उन्होंने अपने-अपने नाम बताये और फिर सलाखों के पास एक कोने में जाकर बैठने लगी। लेकिन यह क्या? वे लोग नीचे बैठ पाती, उससे पहले ही रेणुका ने दया की जाँघ पर एक जोर की लात मारी।

“साली कमिनियो। मैंने बैठने को कहा? कहा बैठने को?”

रेणुका के चेहरे पर एक क्षण में ही गुस्से का गुबार फुट पड़ा और उसकी आँखों मे क्रोध के तीखे भाव उभर आये। आखिरकार वह अपनी सेल की हेड कैदी थी जो अप्रत्यक्ष तौर पर इस सेल की रानी से कम नही थी।

उसने उन सभी को तब तक खड़े रहने को कहा, जब तक उन्हें बैठने को ना कहा जाये। बबिता और बाकी औरते मजबूर थी। नई जगह थी, नए लोग थे। ना तो उन्हें जेल के नियमो की जानकारी थी और ना ही जेल में रहने का सलीका पता था। भले ही उन पर हत्या का आरोप था लेकिन आखिर वे लोग शरीफ घरो से ही ताल्लुक रखती थी।

डर और घबराहट के मारे उन्हें कुछ समझ नही आ रहा था। रेणुका द्वारा दया को लात मारे जाने के बाद वे लोग बहुत ज्यादा डर गई और डर के मारे खड़ी ही रही। रेणुका यही नही रुकी। उसने बबिता के बालों को जोर से पकड़ा और उसे खींचते हुए इधर-उधर घुमाने लगी।

“आँ...क्या कर रही हैं आप? छोड़ो। आँह!” बबिता ने उससे गुहार लगाते हुए कहा।

बबिता लगातार अपने आपको छुड़ाने की कोशिश करती रही लेकिन वह ऐसा करने में सफल नही हुई। बाकी औरते भी रेणुका से बबिता को छोड़ने की विनती करती रही लेकिन उसने किसी की एक नही सुनी। उसने बबिता की गर्दन को हाथो से पकड़ा और उसे घुटनो पर बिठाते हुए उसकी गर्दन को नीचे जमीन पर दबा दिया।

बबिता के लिए दर्द असहनीय हो रहा था और उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे। रेणुका उसे छोड़ने का नाम नही ले रही थी लेकिन तभी पीछे से सुधा ने उसे आवाज लगाई, “अरे छोड़ दे रेणुका। अभी-अभी तो आई है बेचारी। अब क्या जान लेगी उसकी।”

“तेरे को पता है ना काकी। मेरी सेल में मेरे से पूछे बिना कोई काम नही होता। और ये साली हरामजादियाँ मेरे बोले बिना बैठ कैसे गई।” रेणुका ने गुस्से में कहा।

“उनको थोड़ी ना पता है कि तू सेल की हेड हैं। धीरे-धीरे पता चल जायेगा। चल अब छोड़ उसको। जो करना है रात में कर लेना।”

रेणुका सुधा की बात को मना नही कर पाई। उसने बबिता को छोड़ दिया और अपनी थाली लेकर सेल से बाहर निकल गई। उसके साथ ही नीलिमा, प्रमिला और रेहाना भी सेल से बाहर चली गई। उनके जाते ही सुधा ने उन सातो को अपने पास बुलाया और बैठने को कहा।

“तुम लोग लगती नही हो अपराधी। कौन से केस में आई हो?” उसने पूछा।

वे सातो एक-दूसरे की तरफ देखने लगी, मानो किसी ने उनकी डूबती रग पर हाथ रख दिया हो। हालाँकि सुधा ने उनकी मनोस्थिति भाँप ली और उन्हें सहज करते हुए बोली,

“घबराओ नही। ये जेल हैं। यहाँ सब किसी ना किसी अपराध में बंद हैं। चलो बताओ। कौन से केस में लाये है तुमको?”

“जी, मर्डर केस में।” अंजली ने जवाब दिया।

“आप कौन से केस में हो आँटी?” बबिता ने पूछा।

“मैं भी हत्या के केस में ही अंदर हूँ बेटा। अपने बेटे को मारा था मैंने।”

वे लोग स्तब्ध रह गई। आखिर कोई माँ अपने बेटे को कैसे मार सकती हैं? सुधा की आवाज में दर्द था लेकिन उसे अपने किये का कोई पछतावा नही था। वह 74 साल की एक बूढ़ी औरत थी जो अब शारीरिक रूप से कमजोर हो चुकी थी। हालाँकि जेल में उसे किसी तरह की कोई सहूलियत नही थी और उसके साथ अन्य कैदियों की तरह ही बर्ताव किया जाता था।

“आपने अपने बेटे को क्यूँ मारा काकी?” दया ने पूछा।

“मेरी कहानी फिर कभी बताऊँगी बेटा। खाने का समय होने वाला हैं। अपना सामान रख दो और थाली लेकर बाहर चलो। टाइम ओर नही गए तो रात भर भूखे रहना पड़ेगा”

सुधा के कहते ही एक तेज सायरन की आवाज आई। यह सायरन खाने के समय का था। शाम के पाँच बज चुके थे और रात के खाने का समय हो चुका था। जेल में कैदियों को रात का खाना पाँच बजे ही दे दिया जाता था। हालाँकि कैदी चाहे तो खाने को सेल में ले जा सकते थे और रात में किसी भी वक़्त खा सकते थे। सायरन के बजते ही बबिता और बाकी औरतो ने अपनी-अपनी थालियाँ उठाई और खाने के लिए अन्य कैदियों के साथ सेल से बाहर चली आई।​
 
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Update 7

(जेल का खाना)


बाहर आते ही उन्होंने देखा कि मैदान में कैदी औरतो की भारी भीड़ थी। खाने के लिए लंबी-लंबी लाइने लगी हुई थी और औरते लाइन में लगने के लिए धक्का-मुक्की करने से भी पीछे नही हट रही थी।

“हे काय आहे? ऐसे कैसे हम लोग खाना लेंगे?” माधवी ने टेंशन भरी आवाज में कहा।

अंजली ने एक गहरी साँस ली और बोली, “लेना तो पड़ेगा माधवी भाभी। भूखे तो नही रह सकते ना।”

“हाँ, अंजली भाभी सही कह रही है। खाना तो लेना पड़ेगा माधवी भाभी।” दया ने भी उसकी बात का समर्थन करते हुए कहा।

मजबूरन वे लोग एक लाइन में जाकर खड़ी हो गई। लाइन लंबी थी और वे लोग किसी को जानती भी नही थी। खाना बाँटने का काम कैदी औरते ही कर रही थी और वे लोग कैदियों को ऐसे खाना परोस रही थी जैसे किसी जानवर को खाना दे रही हो।

काफी देर तक लाइन में लगने के बाद आखिरकार उनकी बारी आई। उन्होंने बारी-बारी से अपनी थालियाँ आगे बढ़ाई और खाना लेने लगी। उन्होंने देखा कि खाने की क्वालिटी बहुत ही बेकार थी। कच्चे चावल, जली हुई रोटियाँ, पानी जैसी दाल और अजीब तरह के पत्तो की सब्जियाँ। थाली में खाना पड़ते ही पूरी दाल पानी की तरह थाली में तैरने लगी। खाना देखकर उन्हें खाना खाने का बिल्कुल भी मन नही हुआ लेकिन भूख की वजह से उनके पेट मे चूहे दौड़ने लगे थे।

“आई, मेरा बिल्कुल मन नही कर रहा हैं खाने का।” सोनू ने कहा।

“खा ले बाड़ा, तूने सुबह से कुछ नही खाया हैं।” माधवी ने उसे समझाया।

“ये कैसा खाना है आई। ऐसा खाना कोई कैसे खा सकता हैं।”

माधवी का दिल पसीज गया। उन लोगो के लिए वह खाना बहुत ही बेकार था और माधवी खुद भी उस खाने को नही खाना चाहती थी। उसने नम आँखो से सोनू की ओर देखा और उसके गालो को दुलारते हुए बोली,

“मैं खिला देती हूँ सोनू। खाना नही खाएगी तो तबियत बिगड़ जाएगी बाड़ा।”

माधवी एक माँ थी और एक माँ का अपनी बेटी के लिए चिंतित होना स्वाभाविक था। वह सोनू को ऐसी हालत में नही देख सकती थी लेकिन उसकी विवशता थी कि वह चाहकर भी उसकी कोई मदद नही कर सकती थी। खाना लेने के बाद वे सातो नीचे जमीन पर बैठ गई और उसी बेस्वाद खाने को खाने लगी।

वे लोग खाना खा ही रही थी कि तभी कैदियों की निगरानी में तैनात एक महिला सिपाही की नजर माधवी और सोनू पर पड़ी। उसने देखा कि माधवी सोनू को अपने हाथों से खाना खिला रही थी। वह तुरंत ही उनके पास आई और अपने डंडे को माधवी की कमर पर चुभाते हुए बोली,

“क्या रे मदर इंडिया। इसके हाथ नही है क्या जो तू अपने हाथ से खिला रही हैं।”

“मेरी बेटी है मैडम। इसे खाने का मन नही था इसलिए खिला रही हूँ।” माधवी ने जवाब दिया।

माधवी की बात सुनकर उस काँस्टेबल ने सोनू की ओर गुस्से से देखा और उसके गालो को जोर से दबाते हुए बोली, “खाने का मन नही है तेरा? टेस्टी खाना चाहिए साली हरामजादी?”

“न…न...नही मैम…” सोनू ने डरते हुए कहा।

“ये पूरा खाना खत्म होना चाहिए। वरना वो हाल करूँगी कि दोबारा खाना खाने लायक नही रहेगी। ना जाने कहाँ-कहाँ से आ जाती हैं साली रंडियाँ।” इतना कहते ही वह काँस्टेबल पुनः कैदियों की निगरानी करने में व्यस्त हो गई।

सोनू रुआँसी हो उठी। जेल के कर्मचारियों का व्यवहार उनके प्रति बहुत ही असभ्य और कठोर था। दो दिन पहले तक जहाँ वे लोग अपने-अपने घरों में पूर्ण सुख-सुविधाओं में रहा करती थी, वही जेल में उन्हें किसी भी तरह की सुविधा का मिलना लगभग नामुमकिन था।

“कैसे लोग है? अपनी बेटी को भी खाना खिलाने के लिए भी मना कर रहे हैं।” माधवी ने बेबसी और क्रोध के मिश्रित भाव से कहा।

“कोई बात नही माधवी भाभी। बस कुछ दिनों की बात है। फिर हम पहले की तरह साथ मे खाना खायेंगे।” दया उसे ढाँढस बँधाते हुए बोली।

“हाँ माधवी भाभी। आप छोड़िये उस काँस्टेबल की बात को। सोनू, अब जैसा भी है, हमें यही खाना खाना पड़ेगा।” अंजली ने माधवी और सोनू, दोनो को समझाया।

माधवी : “पता नही कौन सा पाप हो गया है हमसे जो ऐसी जगह पर रहना पड़ रहा हैं। मैं पूरी जिंदगी जेल में रह लूँगी पर सोनू को यहाँ नही रहने दे सकती।”

बबिता : “डोंट वरी माधवी भाभी। हम सब यहाँ से एक साथ बाहर निकलेंगे।”

वे लोग भले ही माधवी और सोनू को दिलासा दे रही थी लेकिन उन सभी को इस बात का अच्छी तरह एहसास था कि कानून के दलदल से बाहर निकलना इतना आसान नही हैं। उन पर दो हत्याओ का संगीन आरोप था जो कोई साधारण अपराध नही था। यह एक ऐसा अपराध था जिसके लिए उन्हें कम से कम चौदह साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती थी।

उनकी परेशानी स्वाभाविक थी। किसी भी नए कैदी के लिए जेल का पहला दिन मानसिक तनाव और काफी परेशान करने वाला होता हैं। एकाएक आजादी छीन जाना और नई दुनिया व नए लोगो के बीच रहना किसी भी इंसान को अंदर तक झकझोर देता हैं। उन सातो की हालत भी कुछ ऐसी ही थी। उन्हें जेल में बिल्कुल अच्छा नही लग रहा था लेकिन वे लोग चाहकर भी जेल से बाहर नही जा सकती थी।

सबसे ज्यादा मुश्किल सोनू के लिए थी। मात्र बाईस साल की छोटी सी उम्र में उसे हत्या जैसे संगीन आरोप में जेल आना पड़ा था। जेल का माहौल बहुत ही खराब था और अपराधी औरतो के बीच मे रहना उनके लिए कतई भी आसान नही था।

खैर, जो भी था लेकिन अब वे लोग कैद में थी और बाहर के लोगो की तरह आजाद नही थी। उन्हें जेल में आये हुए एक घंटा भी नही बिता था कि उन्हें घुटन सी महसूस होने लगी थी। जेल की ऊँची-ऊँची दीवारे और दीवारों से पार जाने की लालसा उन्हें बेचैन कर रही थी। बड़ी मुश्किल से उन्होंने जैसे-तैसे खाना खाया और फिर वापस अपनी सेल में चली आई।​
 
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