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Adultery गुजारिश 2 (Completed)

BlooDBath175

Bhagwaan se bhi bada!!!!
Supreme
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#१

“मैं जिस दिन भुला दू , तेरा प्यार दिल से वो दिन आखिरी हो मेरी जिन्दगी का ” फूली सांसो के बीच हौले हौले इस गाने को गुनगुनाते हुए मैं तेजी से साइकिल के पेडल मारते हुए अपनी मस्ती में चले जा रहा था .होंठो पर जीभ फेरी तो पाया की अभी तक बर्फी- जलेबियो की मिठास चिपकी हुई थी . मौसम में वैसे तो कोई ख़ास बात नहीं थी पर मई की गर्म रात में पसीने से भीगी मेरी पीठ से चिपकी शर्ट परेशान करने लगी थी .

“न जाने कितना समय हुआ होगा ” मैंने अपने आप से कहा और दो चार गालिया अपने दोस्तों को दी जो मुझे छोड़ कर न जाने कहाँ गायब हो गए थे . दरसल हम लोग पडोसी गाँव में दावत में आये थे.

“सुबह हरामखोरो को दो चार बाते तो सुना ही दूंगा. ” कहते हुए मैंने गाँव की तरफ जाने वाला दोराहा पार ही किया था की पट की तेज आवाज ने मेरे माथे पर बल डाल दिए.

“इसे भी अभी धोखा देना था. ” मैंने साइकिल से निचे उतरते हुए कहा टायर पंक्चर हो गया था . एक पल में मूड ख़राब हो गया . कहने को तो गाँव की दुरी कोई दो - तीन कोस ही थी पर अचानक से दुरी न जाने कितनी ज्यादा लगने लगी थी . पैदल घसीटते हुए साइकिल को मैं चांदनी रात में गाँव की तरफ चल रहा था .

धीमी चलती हवा में कच्चे सेर के दोनों तरफ लगे सीटे किसी लम्बे कद वाले आदमियों की तरह लहरा रहे थे .दूर कहीं कुत्ते भोंक रहे थे . ऐसे ही चलते चलते मैं नाहर के पुल को पार कर गया था .मेरी खड खड करती साइकिल और गुनगुनाते हुए मैं दोनों चले जा रहे थे की तभी अचानक से मेरे पैर रुक गए .अजीब सी बात थी ये इतनी रात में मेरे कानो में इकतारे की आवाज आ रही थी .इस बियाबान में इकतारे की आवाज , जैसे बिलकुल मेरे पास से आ रही हो . मुझे कोतुहल हुआ .



मैंने कान लगाये और ध्यान से सुनने लगा. ये इकतारे की ही आवाज थी . बेशक मुझे संगीत का इतना ज्ञान नहीं था पर इस गर्म लू वाली रात में किसी शर्बत सी ठंडक मिल जाना ऐसी लगी वो ध्वनी मुझे . जैसे किसी अद्रश्य डोर ने मुझे खींच लिया हो . मेरे पैर अपने आप उस दिशा में ले जाने लगे जो मेरे गाँव से दूर जाती थी . हवाओ ने जैसे मुझ से आँख मिचोली खेलना शुरू कर दिया था . कभी वो आवाज बिलकुल पास लगती , इतनी पास की जैसे मेरे दिल में ही हो और कभी लगता की कहीं दूर कोई इकतारा बजा रहा था .

पथरीला रास्ता कब का पीछे छुट गया था . नर्म घास पर पैर घसीटते हुए मैं पेड़ो के उस गुच्छे के पास पहुँच गया था जिस पर वो बड़ा सा चबूतरा बना था जिसके सहारे से पहाड़ काट कर बनाई सीढिया ऊपर की तरफ जाती थी .साइकिल को वही खड़ी करके मैं सीढिया चढ़ कर ऊपर पहुंचा तो देखा की सब कुछ शांत था ,ख़ामोशी इतनी की मैं अपनी उखड़ी साँसों को खूब सुन पा रहा था . मेरे सामने बुझता धुना था जिसमे शायद ही कोई लौ अब बची थी . सीढिया चढ़ने की वजह से गला सूख गया था तो मैं टंकी के पास पानी पीने गया ही था की मेरे कानो से वो आवाज टकराई जिसे मैं लाखो में भी पहचान सकता था .



“उसमे खारा पानी है , ले मेरी बोतल से पी ले. ”

मैं पलटा हम दोनों की नजरे मिली और होंठो पर गहरी मुस्कान आ गयी .

“तू यहाँ कैसे ” मैंने उसके हाथ से पानी की बोतल लेते हुए कहा .

“आज पूर्णमासी है न तो नानी के साथ कीर्तन में आई थी . अभी ख़तम ही हुआ है , मेरी नजर तुझ पर पड़ी तो इधर आई पर तू इधर कैसे ” उसने कहा

मैंने उसे बताया . मेरी बात सुनकर वो बोली- कीर्तन तो दो- ढाई घंटे से हो रहा पर इकतारा कोई नहीं बजा रहा था .मुझे मालूम है ये तेरा बहाना ही होगा वैसे भी तू तो भटकता ही रहता है इधर उधर

मैं- तुझे जो ठीक लगे तू समझ

“रुक मैं तेरे लिए प्रसाद लाती हूँ , ये बोतल पकड़ तब तक ” उसने कहा और तेजी से मुड गयी . मैंने बोतल का ढक्कन खोला और पानी से गले को तर करने लगा .

आसमान में पूनम का चाँद शोखियो से लहरा रहा था . काली रात और चमकता चाँद कोई शायर होता तो अब तक न जाने क्या लिख चूका होता , ये तो मैं था जो कुछ कह नहीं पाया.

“अब ऊपर क्या ताक रहा है , चलना नहीं है क्या ” उसने एक बार मेरे ख्यालो पर दस्तक दी .

मैं- हाँ चलते है .

उसने एक मुट्टी प्रसाद मेरी हथेली पर रखा और हम सीढियों की तरफ चलने लगे.

मैं- नानी कहा है तेरी .

वो- आ रही है मोहल्ले की औरतो संग , मैंने बोल दिया की तेरे संग जा रही हूँ .

मैं- ठीक किया.

“बैठ ” मैंने साइकिल पर चढ़ते हुए कहा

वो- पैदल ही चलते है न

मैं- जैसा तू कहे

वो मुस्कुरा पड़ी , बोली- कभी तो टाल दिया कर मेरी बात को .

मैं- टाल जो दी तो फिर वो बात, बात कहाँ रहेगी .

“बातो में कोई नहीं जीत सकता तुझसे ” वो बोली.

मैं- ऐसा बस तुझे ही लगता है.

बाते करते करते हम लोग अपनी राह चले जा रहे थे. कच्चे रस्ते पर झूलते पेड़ अब अजीब नहीं लग रहे थे. न ही खामोश हवा में कोई शरारत थी .

“बोल कुछ , कब से चुपचाप चले जा रहा है ” उसने कहा

मैं- क्या बोलू, कुछ है भी तो नहीं

वो- क्लास में तो इतना शोर मचाते रहता है , अभी कोई देखे तो माने ही न की वो तू है .

मैं मुस्कुरा दिया .

“बर्फी खाएगी ” मैंने पूछा उससे

“बर्फी , कहाँ से लाया तू ” उसने कहा

मैं- पड़ोस के गाँव में दावत थी , दो चार टुकड़े जेब में रख लिए थे .

वो- पक्का कमीना है तू . मुझे नहीं खानी कहीं रात में कोई भूत न लग जाये मुझे

मैं- तू खुद भूतनी से कम है क्या

कहके जोर जोर से हंस पड़ा मैं

वो- रुक जरा तुझे बताती हूँ .

मेरी पीठ पर एक धौल जमाई उसने .

मैंने जेब से बर्फी के टुकड़े निकाले और उसकी हथेली पर रख दिए.

“अच्छी है , ” उसने चख कर कहा .

मैं- वो तेरे मामा से बात की तूने

वो- तू खुद ही कर ले न

मैं- मेरी हिम्मत कहाँ उस खूसट के आगे मुह खोलने की

वो- कितनी बार कहा है मामा को खूसट मत बोला कर .

मैं- ठीक है बाबा. पर तू बात कर न .

वो- मैंने तुझसे कहा तो है , बाजार चल मेरे साथ .

मैं- तू जानती है न , वैसे ही तू बहुत करती है मेरे लिए .

वो- तो ये भी करने दे न ,

मैं- इसलिए तो कह रहा हूँ, तेरे मामा से बोल दे , कैंटीन में रेडियो थोडा सस्ता मिल जायेगा. कुछ पैसे है मेरे पास कुछ का जुगाड़ कर लूँगा.

“पर मुझसे पैसे नहीं लेगा. हैं न , कभी तो अपना मानता है और कभी एक पल में इतना पराया कर देता है . जा मैं नहीं करती तुझसे बात ” उसने नाराजगी से कहा .


फिर मैंने कुछ नहीं कहा. जानता था एक बार ये रूस गयी तो फिर सहज नहीं मांगेगी. हालाँकि हम दोनों जानते थे हालात को , ऐसे ही ख़ामोशी में चलते चलते गाँव आ गया. मैंने उसे उसके घर के दरवाजे पर छोड़ा और अपने घर की तरफ साइकिल को मोड़ दिया. घर, अपना घर ............................. .
Bhai tera sirf ek update padha aur kasam se bhai tera fan ho gaya....mere ko 15 min upar lage padhne mein Kyunki Hindi hai isliye par bhai likhta mast hai tu....👏👏👏👏👏
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#48



“इधर से गुजर रहा था, पानी की हौदी देखि तो सोचा प्यास बुझाता चलू, ठंडी पवन चल रही थी दो घडी बैठ गया सुस्ताने को ” उसने कहा

मैं- पहले कभी देखा नहीं इस तरफ

आदमी- व्यापारी आदमी हूँ,एक गाँव से दुसरे गाँव घूमता फिरता रहता हूँ.

मैं- किस चीज़ का व्यापर करते हो तुम

आदमी- किसानी का काम है मेरा जमीने जोतता हूँ .

मुझे ये था की कहीं ये जब्बर का आदमी तो नहीं , क्योंकि आजकल अंजानो पर भरोसा करना उचित नहीं था खासकर इन हालातो में. मैं उस से खोद खोद कर पूछ रहा था .

“मैं भी कोशिश कर रहा हूँ इस जमीन को उपजाऊ बनाने की पर बंजर जमीन जिद पर अड़ गयी है . रोज़ मेहनत करता हूँ पर फायदा नहीं होता ” मैंने कहा

आदमी- जमीन बुजुर्गो सी होती है, उन्हें मानना पड़ता है .

मैं- तुम्हे तो बड़ा अनुभव रहा होगा किसानी का तुम देखो जरा

मेरे इशारे पर वो आदमी खड़ा हुआ और उस जगह जाकर खड़ा हो गया जहाँ पर मैंने खुदाई चालू की थी. मिटटी के ढेलो को उसने अपने हाथो में लिया और देखने लगा . कुछ देर बाद वो मेरे पास आ गया.



आदमी- काफी पुराणी पकड़ है मिटटी की. आसान नहीं है इसे उपजाऊ करना

मैं- ये तो मैं भी जानता हूँ नया बताओ कुछ .

आदमी- खूब भीगने को इस धरा को , उम्मीद का अंकुर जरुर फूटेगा. अच्छा मैं चलता हूँ देर हुई तो अपनी मंजिल पर नहीं पहुँच पाउँगा आपका आभार , आपका पानी पिया है , इश्वर की कृपा बनी रहे आप पर.

उसने मेरे सामने हाथ जोड़े और अपने रस्ते बढ़ गया . मैंने अपने कपडे उतारे और हौदी में कूद गया. बहती पवन संग नहाना बड़ा सुख दे रहा था . थोड़ी देर में मीता भी आ पहुंची.

मीता-वाह क्या बात है

मैं- बड़ा मजा आ रहा है इस मौसम में ठन्डे पानी का,

मीता- कहीं तबियत ख़राब ना हो जाये तेरी.

तबियत से मेरा ध्यान जख्म पर गया और मैं तुरंत पानी से बाहर निकल कर तौलिये से कच्चे टांको को साफ़ करने लगा.

मीता- क्या हुआ ये

मैंने उसे पूरी बात बताई

मीता- तुझे जिन्दगी से जरा भी प्यार नहीं है . हैं न

मैं- मैं क्या बताऊ तुझे क्या है मेरे हालत

मीता- सब को अपना दुःख कम ही लगता है .

मैं- चल बाबा माफ़ कर दे अब .

मीता- आजा फिर, आज मुर्गा बना कर लायी हूँ तेरे लिए

मैं- अरे गजब,

मीता- परोस दू

मैं- बैठते है थोड़ी देर. कितने दिन हुए बाते नहीं की हमने

मीता- हुन्म्म, कल परसों तो मिले ही थे हम लोग.

मैं- मेरा बस चले तो तुझे जाने ही ना दू. यही पर रख लू

मीता- ये मुमकिन नहीं तू भी जानता है

मैं- तू जाने तेरे सितारे जाने.

मैंने मीता के काँधे पर सर टिकाया और उसके हाथ को पकड़ लिया.

मैं- ये चाँद देख रही है न, तेरी मुलाकातों का गवाह है ये

मीता- कभी सोचा नहीं था तू मेरी जिन्दगी में आएगा. और ऐसे आएगा.

मैं- पर मैं हमेशा से चाहता था की कोई आये, कोई ऐसा जो मुझे, मुझसे ज्यादा समझे, कोई ऐसा आये जिसके साथ मैं दो कदम चल सकू. जब तू चूल्हे पर रोटी सेंकती है तो आग की तपिश में तुझे देखना मेरे लिए किसी कबूल हुई दुआ से कम नहीं है . तुझे दूर से आते हुए देखना ऐसा है जिसे की आसमान से गिरी बूँद को ताकती है ये धरती .

मीता- मैं इस तारीफ लायक नहीं

मैं- सच कहना कोई गुनाह तो नहीं .

मीता- सच उस झूठ से भी बड़ा रोचक और खतरनाक होता जिसे बार बार कहा गया हो

मैं- क्या तुझे मुझ पर यकीन नहीं

मीता- मुझे मेरे नसीब पर यकीन नहीं है, अब बाते कम कर आ खाना परोसती हूँ

मैं - तू भी आ साथ ही खाते है .

मीता ने एक ही थाली में खाना लगा दिया. चांदनी रात में हम दोनों एक दुसरे के साथ बस वक्त बिता ही नहीं रहे थे हम दोनों उस वक्त को जी रहे थे .

मैं- मेरी इच्छा है की मैं तुझे चुडिया ला दू

मीता- तेरी इच्छा है तू जाने

मैं- जल्दी ही घर बनाना शुरू करूँगा इधर, तू बता तुझे कैसा घर चाहिए.

मीता- तेरा घर तू जाने मुझसे क्या पूछता है

मैं- तेरे होने से ही तो घर , घर होगा मेरा. ,

मीता- मत कर ये सब , इन सपनो का कोई मिल नहीं मेरे दोस्त, जब ये सपने टूटते है तो फिर दर्द बड़ा होता है

मैं- जब तक तूने मुझे थामा हुआ है मुझे परवाह नहीं

मीता खामोश रही .

मैं- एक बात पुछू

मीता- हाँ

मैं- तेरे गाँव के शिवाले में उस पानी वाली रेत का क्या रहस्य है तू तो जानती ही होगी न

मीता-किस्सा है या कहानी है , लोग कहते है की एक प्यासे आदमी का श्राप है बरसो पहले वो बावड़ी हर आने जाने वाले की प्यास बुझाती थी , पर फिर उसका पानी छलावा हो गया . तुम हथेली भर के पियो और वो रेत हो जाता .

मैं- ये कोई किस्सा , कहानी नहीं सच है . और सच है तो इसकी कोई वजह भी रही होगी.

मीता- तुझे क्या दिलचस्पी है इन सब में

मैं- तेरे आने से पहले एक आदमी मिला था उसने कहा मुझसे की उसने मेरा पानी पिया है .

मीता ने हाथ में लिया रोटी का टुकड़ा वापिस थाली में रखा और बोली- हौदी में न जाने कितने आदमी, पशु पानी पीते है ये इत्तेफाक भी हो सकता है .

मैं- मुझे जो लगा तुझे बताया. पर मीता तू चाहे मुझसे छुपा पर मैं जानता हूँ तू और मैं एक ही सिक्के के दो पहलु है . मैं अपनी पीढ़ी के अतीत को तलाश कर रहा हूँ तू भी कुछ तलाश रही है .

मीता- तू मुझसे क्या जानना चाहता है

मैं- यही की तेरी मेरी कहानी का अंजाम क्या होगा

मीता- ये सवाल तो आगाज़ से पहले पूछना था .

मैं- मेरे दिल पर एक बोझ है मैं जोरावर और उन बाकि लडको के परिवारों के लिए कुछ करना चाहता हूँ, मेरी वजह से उन्होंने अपने बेटे खोये है . अगर मैं उनके लिए कुछ कर पाया तो .......

मीता- फालतू का बोझ है ये. उनको अपने कर्मो का फल मिला

मैं- पर उनके माँ बाप का क्या दोष

मीता- सब समय का चक्र है , नसीब में दुःख है तो भोगना पड़े. सुख है तो भी भोगना पड़े.

मैं- मेरे नसीब में क्या है

मीता- तू जानता है

मै- जानता ही तो नहीं

मीता- आज की रात मैं तेरे पास ही रुकुंगी, फिर मैं रक्षा बंधन के बाद ही आउंगी तुझसे मिलने

मैं- और इस दुरी की क्या वजह भला

मीता- बस ऐसे ही .

वो बर्तन धोने चली गयी मैं इधर उधर टहलने चला गया . मेरे वापिस आने तक मीता अपना काम निबटा चुकी थी .

“बिस्तर लगा ले और दो चादर रखना , आज की रात ठंडी होगी. मैं तब तक नहा कर आती हूँ ” उसने कहा

मैं- ठीक है

मैं बिस्तर लगाने लगा, सोचा की वो नहाकर आये इतने लेट जाता हूँ पर कमर टिकाई ही थी चारपाई से की मीता की चीख ने मेरे कानो के परदे सुन्न कर दिए..................................
 

Tiger 786

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#48



“इधर से गुजर रहा था, पानी की हौदी देखि तो सोचा प्यास बुझाता चलू, ठंडी पवन चल रही थी दो घडी बैठ गया सुस्ताने को ” उसने कहा

मैं- पहले कभी देखा नहीं इस तरफ

आदमी- व्यापारी आदमी हूँ,एक गाँव से दुसरे गाँव घूमता फिरता रहता हूँ.

मैं- किस चीज़ का व्यापर करते हो तुम

आदमी- किसानी का काम है मेरा जमीने जोतता हूँ .

मुझे ये था की कहीं ये जब्बर का आदमी तो नहीं , क्योंकि आजकल अंजानो पर भरोसा करना उचित नहीं था खासकर इन हालातो में. मैं उस से खोद खोद कर पूछ रहा था .

“मैं भी कोशिश कर रहा हूँ इस जमीन को उपजाऊ बनाने की पर बंजर जमीन जिद पर अड़ गयी है . रोज़ मेहनत करता हूँ पर फायदा नहीं होता ” मैंने कहा

आदमी- जमीन बुजुर्गो सी होती है, उन्हें मानना पड़ता है .

मैं- तुम्हे तो बड़ा अनुभव रहा होगा किसानी का तुम देखो जरा

मेरे इशारे पर वो आदमी खड़ा हुआ और उस जगह जाकर खड़ा हो गया जहाँ पर मैंने खुदाई चालू की थी. मिटटी के ढेलो को उसने अपने हाथो में लिया और देखने लगा . कुछ देर बाद वो मेरे पास आ गया.



आदमी- काफी पुराणी पकड़ है मिटटी की. आसान नहीं है इसे उपजाऊ करना

मैं- ये तो मैं भी जानता हूँ नया बताओ कुछ .

आदमी- खूब भीगने को इस धरा को , उम्मीद का अंकुर जरुर फूटेगा. अच्छा मैं चलता हूँ देर हुई तो अपनी मंजिल पर नहीं पहुँच पाउँगा आपका आभार , आपका पानी पिया है , इश्वर की कृपा बनी रहे आप पर.

उसने मेरे सामने हाथ जोड़े और अपने रस्ते बढ़ गया . मैंने अपने कपडे उतारे और हौदी में कूद गया. बहती पवन संग नहाना बड़ा सुख दे रहा था . थोड़ी देर में मीता भी आ पहुंची.

मीता-वाह क्या बात है

मैं- बड़ा मजा आ रहा है इस मौसम में ठन्डे पानी का,

मीता- कहीं तबियत ख़राब ना हो जाये तेरी.

तबियत से मेरा ध्यान जख्म पर गया और मैं तुरंत पानी से बाहर निकल कर तौलिये से कच्चे टांको को साफ़ करने लगा.

मीता- क्या हुआ ये

मैंने उसे पूरी बात बताई

मीता- तुझे जिन्दगी से जरा भी प्यार नहीं है . हैं न

मैं- मैं क्या बताऊ तुझे क्या है मेरे हालत

मीता- सब को अपना दुःख कम ही लगता है .

मैं- चल बाबा माफ़ कर दे अब .

मीता- आजा फिर, आज मुर्गा बना कर लायी हूँ तेरे लिए

मैं- अरे गजब,

मीता- परोस दू

मैं- बैठते है थोड़ी देर. कितने दिन हुए बाते नहीं की हमने

मीता- हुन्म्म, कल परसों तो मिले ही थे हम लोग.

मैं- मेरा बस चले तो तुझे जाने ही ना दू. यही पर रख लू

मीता- ये मुमकिन नहीं तू भी जानता है

मैं- तू जाने तेरे सितारे जाने.

मैंने मीता के काँधे पर सर टिकाया और उसके हाथ को पकड़ लिया.

मैं- ये चाँद देख रही है न, तेरी मुलाकातों का गवाह है ये

मीता- कभी सोचा नहीं था तू मेरी जिन्दगी में आएगा. और ऐसे आएगा.

मैं- पर मैं हमेशा से चाहता था की कोई आये, कोई ऐसा जो मुझे, मुझसे ज्यादा समझे, कोई ऐसा आये जिसके साथ मैं दो कदम चल सकू. जब तू चूल्हे पर रोटी सेंकती है तो आग की तपिश में तुझे देखना मेरे लिए किसी कबूल हुई दुआ से कम नहीं है . तुझे दूर से आते हुए देखना ऐसा है जिसे की आसमान से गिरी बूँद को ताकती है ये धरती .

मीता- मैं इस तारीफ लायक नहीं

मैं- सच कहना कोई गुनाह तो नहीं .

मीता- सच उस झूठ से भी बड़ा रोचक और खतरनाक होता जिसे बार बार कहा गया हो

मैं- क्या तुझे मुझ पर यकीन नहीं

मीता- मुझे मेरे नसीब पर यकीन नहीं है, अब बाते कम कर आ खाना परोसती हूँ

मैं - तू भी आ साथ ही खाते है .

मीता ने एक ही थाली में खाना लगा दिया. चांदनी रात में हम दोनों एक दुसरे के साथ बस वक्त बिता ही नहीं रहे थे हम दोनों उस वक्त को जी रहे थे .

मैं- मेरी इच्छा है की मैं तुझे चुडिया ला दू

मीता- तेरी इच्छा है तू जाने

मैं- जल्दी ही घर बनाना शुरू करूँगा इधर, तू बता तुझे कैसा घर चाहिए.

मीता- तेरा घर तू जाने मुझसे क्या पूछता है

मैं- तेरे होने से ही तो घर , घर होगा मेरा. ,

मीता- मत कर ये सब , इन सपनो का कोई मिल नहीं मेरे दोस्त, जब ये सपने टूटते है तो फिर दर्द बड़ा होता है

मैं- जब तक तूने मुझे थामा हुआ है मुझे परवाह नहीं

मीता खामोश रही .

मैं- एक बात पुछू

मीता- हाँ

मैं- तेरे गाँव के शिवाले में उस पानी वाली रेत का क्या रहस्य है तू तो जानती ही होगी न

मीता-किस्सा है या कहानी है , लोग कहते है की एक प्यासे आदमी का श्राप है बरसो पहले वो बावड़ी हर आने जाने वाले की प्यास बुझाती थी , पर फिर उसका पानी छलावा हो गया . तुम हथेली भर के पियो और वो रेत हो जाता .

मैं- ये कोई किस्सा , कहानी नहीं सच है . और सच है तो इसकी कोई वजह भी रही होगी.

मीता- तुझे क्या दिलचस्पी है इन सब में

मैं- तेरे आने से पहले एक आदमी मिला था उसने कहा मुझसे की उसने मेरा पानी पिया है .

मीता ने हाथ में लिया रोटी का टुकड़ा वापिस थाली में रखा और बोली- हौदी में न जाने कितने आदमी, पशु पानी पीते है ये इत्तेफाक भी हो सकता है .

मैं- मुझे जो लगा तुझे बताया. पर मीता तू चाहे मुझसे छुपा पर मैं जानता हूँ तू और मैं एक ही सिक्के के दो पहलु है . मैं अपनी पीढ़ी के अतीत को तलाश कर रहा हूँ तू भी कुछ तलाश रही है .

मीता- तू मुझसे क्या जानना चाहता है

मैं- यही की तेरी मेरी कहानी का अंजाम क्या होगा

मीता- ये सवाल तो आगाज़ से पहले पूछना था .

मैं- मेरे दिल पर एक बोझ है मैं जोरावर और उन बाकि लडको के परिवारों के लिए कुछ करना चाहता हूँ, मेरी वजह से उन्होंने अपने बेटे खोये है . अगर मैं उनके लिए कुछ कर पाया तो .......

मीता- फालतू का बोझ है ये. उनको अपने कर्मो का फल मिला

मैं- पर उनके माँ बाप का क्या दोष

मीता- सब समय का चक्र है , नसीब में दुःख है तो भोगना पड़े. सुख है तो भी भोगना पड़े.

मैं- मेरे नसीब में क्या है

मीता- तू जानता है

मै- जानता ही तो नहीं

मीता- आज की रात मैं तेरे पास ही रुकुंगी, फिर मैं रक्षा बंधन के बाद ही आउंगी तुझसे मिलने

मैं- और इस दुरी की क्या वजह भला

मीता- बस ऐसे ही .

वो बर्तन धोने चली गयी मैं इधर उधर टहलने चला गया . मेरे वापिस आने तक मीता अपना काम निबटा चुकी थी .

“बिस्तर लगा ले और दो चादर रखना , आज की रात ठंडी होगी. मैं तब तक नहा कर आती हूँ ” उसने कहा

मैं- ठीक है


मैं बिस्तर लगाने लगा, सोचा की वो नहाकर आये इतने लेट जाता हूँ पर कमर टिकाई ही थी चारपाई से की मीता की चीख ने मेरे कानो के परदे सुन्न कर दिए..................................
Awesome update
 

tanesh

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“इधर से गुजर रहा था, पानी की हौदी देखि तो सोचा प्यास बुझाता चलू, ठंडी पवन चल रही थी दो घडी बैठ गया सुस्ताने को ” उसने कहा

मैं- पहले कभी देखा नहीं इस तरफ

आदमी- व्यापारी आदमी हूँ,एक गाँव से दुसरे गाँव घूमता फिरता रहता हूँ.

मैं- किस चीज़ का व्यापर करते हो तुम

आदमी- किसानी का काम है मेरा जमीने जोतता हूँ .

मुझे ये था की कहीं ये जब्बर का आदमी तो नहीं , क्योंकि आजकल अंजानो पर भरोसा करना उचित नहीं था खासकर इन हालातो में. मैं उस से खोद खोद कर पूछ रहा था .

“मैं भी कोशिश कर रहा हूँ इस जमीन को उपजाऊ बनाने की पर बंजर जमीन जिद पर अड़ गयी है . रोज़ मेहनत करता हूँ पर फायदा नहीं होता ” मैंने कहा

आदमी- जमीन बुजुर्गो सी होती है, उन्हें मानना पड़ता है .

मैं- तुम्हे तो बड़ा अनुभव रहा होगा किसानी का तुम देखो जरा

मेरे इशारे पर वो आदमी खड़ा हुआ और उस जगह जाकर खड़ा हो गया जहाँ पर मैंने खुदाई चालू की थी. मिटटी के ढेलो को उसने अपने हाथो में लिया और देखने लगा . कुछ देर बाद वो मेरे पास आ गया.



आदमी- काफी पुराणी पकड़ है मिटटी की. आसान नहीं है इसे उपजाऊ करना

मैं- ये तो मैं भी जानता हूँ नया बताओ कुछ .

आदमी- खूब भीगने को इस धरा को , उम्मीद का अंकुर जरुर फूटेगा. अच्छा मैं चलता हूँ देर हुई तो अपनी मंजिल पर नहीं पहुँच पाउँगा आपका आभार , आपका पानी पिया है , इश्वर की कृपा बनी रहे आप पर.

उसने मेरे सामने हाथ जोड़े और अपने रस्ते बढ़ गया . मैंने अपने कपडे उतारे और हौदी में कूद गया. बहती पवन संग नहाना बड़ा सुख दे रहा था . थोड़ी देर में मीता भी आ पहुंची.

मीता-वाह क्या बात है

मैं- बड़ा मजा आ रहा है इस मौसम में ठन्डे पानी का,

मीता- कहीं तबियत ख़राब ना हो जाये तेरी.

तबियत से मेरा ध्यान जख्म पर गया और मैं तुरंत पानी से बाहर निकल कर तौलिये से कच्चे टांको को साफ़ करने लगा.

मीता- क्या हुआ ये

मैंने उसे पूरी बात बताई

मीता- तुझे जिन्दगी से जरा भी प्यार नहीं है . हैं न

मैं- मैं क्या बताऊ तुझे क्या है मेरे हालत

मीता- सब को अपना दुःख कम ही लगता है .

मैं- चल बाबा माफ़ कर दे अब .

मीता- आजा फिर, आज मुर्गा बना कर लायी हूँ तेरे लिए

मैं- अरे गजब,

मीता- परोस दू

मैं- बैठते है थोड़ी देर. कितने दिन हुए बाते नहीं की हमने

मीता- हुन्म्म, कल परसों तो मिले ही थे हम लोग.

मैं- मेरा बस चले तो तुझे जाने ही ना दू. यही पर रख लू

मीता- ये मुमकिन नहीं तू भी जानता है

मैं- तू जाने तेरे सितारे जाने.

मैंने मीता के काँधे पर सर टिकाया और उसके हाथ को पकड़ लिया.

मैं- ये चाँद देख रही है न, तेरी मुलाकातों का गवाह है ये

मीता- कभी सोचा नहीं था तू मेरी जिन्दगी में आएगा. और ऐसे आएगा.

मैं- पर मैं हमेशा से चाहता था की कोई आये, कोई ऐसा जो मुझे, मुझसे ज्यादा समझे, कोई ऐसा आये जिसके साथ मैं दो कदम चल सकू. जब तू चूल्हे पर रोटी सेंकती है तो आग की तपिश में तुझे देखना मेरे लिए किसी कबूल हुई दुआ से कम नहीं है . तुझे दूर से आते हुए देखना ऐसा है जिसे की आसमान से गिरी बूँद को ताकती है ये धरती .

मीता- मैं इस तारीफ लायक नहीं

मैं- सच कहना कोई गुनाह तो नहीं .

मीता- सच उस झूठ से भी बड़ा रोचक और खतरनाक होता जिसे बार बार कहा गया हो

मैं- क्या तुझे मुझ पर यकीन नहीं

मीता- मुझे मेरे नसीब पर यकीन नहीं है, अब बाते कम कर आ खाना परोसती हूँ

मैं - तू भी आ साथ ही खाते है .

मीता ने एक ही थाली में खाना लगा दिया. चांदनी रात में हम दोनों एक दुसरे के साथ बस वक्त बिता ही नहीं रहे थे हम दोनों उस वक्त को जी रहे थे .

मैं- मेरी इच्छा है की मैं तुझे चुडिया ला दू

मीता- तेरी इच्छा है तू जाने

मैं- जल्दी ही घर बनाना शुरू करूँगा इधर, तू बता तुझे कैसा घर चाहिए.

मीता- तेरा घर तू जाने मुझसे क्या पूछता है

मैं- तेरे होने से ही तो घर , घर होगा मेरा. ,

मीता- मत कर ये सब , इन सपनो का कोई मिल नहीं मेरे दोस्त, जब ये सपने टूटते है तो फिर दर्द बड़ा होता है

मैं- जब तक तूने मुझे थामा हुआ है मुझे परवाह नहीं

मीता खामोश रही .

मैं- एक बात पुछू

मीता- हाँ

मैं- तेरे गाँव के शिवाले में उस पानी वाली रेत का क्या रहस्य है तू तो जानती ही होगी न

मीता-किस्सा है या कहानी है , लोग कहते है की एक प्यासे आदमी का श्राप है बरसो पहले वो बावड़ी हर आने जाने वाले की प्यास बुझाती थी , पर फिर उसका पानी छलावा हो गया . तुम हथेली भर के पियो और वो रेत हो जाता .

मैं- ये कोई किस्सा , कहानी नहीं सच है . और सच है तो इसकी कोई वजह भी रही होगी.

मीता- तुझे क्या दिलचस्पी है इन सब में

मैं- तेरे आने से पहले एक आदमी मिला था उसने कहा मुझसे की उसने मेरा पानी पिया है .

मीता ने हाथ में लिया रोटी का टुकड़ा वापिस थाली में रखा और बोली- हौदी में न जाने कितने आदमी, पशु पानी पीते है ये इत्तेफाक भी हो सकता है .

मैं- मुझे जो लगा तुझे बताया. पर मीता तू चाहे मुझसे छुपा पर मैं जानता हूँ तू और मैं एक ही सिक्के के दो पहलु है . मैं अपनी पीढ़ी के अतीत को तलाश कर रहा हूँ तू भी कुछ तलाश रही है .

मीता- तू मुझसे क्या जानना चाहता है

मैं- यही की तेरी मेरी कहानी का अंजाम क्या होगा

मीता- ये सवाल तो आगाज़ से पहले पूछना था .

मैं- मेरे दिल पर एक बोझ है मैं जोरावर और उन बाकि लडको के परिवारों के लिए कुछ करना चाहता हूँ, मेरी वजह से उन्होंने अपने बेटे खोये है . अगर मैं उनके लिए कुछ कर पाया तो .......

मीता- फालतू का बोझ है ये. उनको अपने कर्मो का फल मिला

मैं- पर उनके माँ बाप का क्या दोष

मीता- सब समय का चक्र है , नसीब में दुःख है तो भोगना पड़े. सुख है तो भी भोगना पड़े.

मैं- मेरे नसीब में क्या है

मीता- तू जानता है

मै- जानता ही तो नहीं

मीता- आज की रात मैं तेरे पास ही रुकुंगी, फिर मैं रक्षा बंधन के बाद ही आउंगी तुझसे मिलने

मैं- और इस दुरी की क्या वजह भला

मीता- बस ऐसे ही .

वो बर्तन धोने चली गयी मैं इधर उधर टहलने चला गया . मेरे वापिस आने तक मीता अपना काम निबटा चुकी थी .

“बिस्तर लगा ले और दो चादर रखना , आज की रात ठंडी होगी. मैं तब तक नहा कर आती हूँ ” उसने कहा

मैं- ठीक है


मैं बिस्तर लगाने लगा, सोचा की वो नहाकर आये इतने लेट जाता हूँ पर कमर टिकाई ही थी चारपाई से की मीता की चीख ने मेरे कानो के परदे सुन्न कर दिए..................................
शानदार भाग भाई, परंतु ऐसा क्या हो गया जो मीता की चीख निकल गयी अगले भाग का बेसब्री से इंतजार रहेगा भाई
 
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