If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.
अब तक आपने पढ़ा: रेलवे स्टेशन आया और पैसे दे कर हमने रेलवे स्टेशन के भीतर प्रवेश किया| इस समय तक गाँव में अकेले रहने के डर के मारे मेरे हाथ-पाओं फूलने लगे थे| भैया आगे-आगे चल रहे थे और मैं डरी-सहमी सी उनके पीछे चल रही थी| उस समय मेरे दिमाग में कोई आईडिया नहीं सूझ रहा था की मैं ऐसा क्या करूँ की भैया गाँव जाने का प्लान कैंसिल कर दें!
अब आगे: चलते हुए हम दोनों रेलवे स्टेशन के सेकंड क्लास वाले वेटिंग रूम पहुँचे| बाहर बैठे आदमी को भैया ने सौ रुपये दिए और उस आदमी ने हमें अंदर जाने दिया| अंदर पहुँच कर भैया ने मुझे कुर्सी पर बैठने का इशारा किया और खुद भी मेरी बगल में बैठ गए| भैया ने अपने बैग को सामने की ओर अपनी छाती पर टाँगा और उसी पर सर रख कर सोने की कोशिश करने लगे| मेरे भीतर इतनी हिम्मत नहीं थी की मैं उनसे कुछ पूछूँ इसलिए मैंने भी वही किया जो वो कर रहे थे| मैंने भी बैग को अपने सीने की ओर रख कर उसे अपना तकिया बनाया और सोने की कोशिश करने लगी| थोड़ी देर लगी मगर मुझे भी बैठे-बैठे नींद आ गई!
अगली सुबह मेरे और आदि भैया के जीवन में एक नई उम्मीद की किरन ले कर आई| "कीर्ति?" आदि भैया ने मुझे पुकारा तो मेरी नींद खुली| नींद खुलते ही गाँव में अकेले रहने के डरने ने एक ज़ोरदार थप्पड़ मेरे गाल पर दे मारा| मुझे भैया से अलग नहीं होना था इसलिए मैंने अपनी पूरी हिम्मत बटोरी और भैया से अपने दिल की बात साफ़-साफ़ कह दी; "भैया, मैं गाँव नहीं जाऊँगी! मैं आपके साथ रहूँगी...जॉब करुँगी...मगर आप से दूर अकेली नहीं रहूँगी!" ये कहते हुए मेरी आँखें आँसूँ से छल-छला गईं!
"पगली! किसने कहा हम गाँव जा रहे हैं? गाँव में या रिश्तेदारी में अब हमारा रह कौन गया, जिसके पास मैं तुझे छोड़ दूँ?! अबतक तो पिताजी ने हमें मरा मानकर हमारा श्राद्ध तक कर दिया होगा तो अब कौन रिश्तेदार हमें पनाह देगा?
दरअसल मैं चाहता तो हम आराम से किसी होटल में रुक सकते थे पर रात में तुझे मैं रेलवे स्टेशन इसलिए लाया ताकि कोई हमें ले कर गन्दी-गन्दी बातें न करें| हमें बस यहाँ रात पार करनी थी जो हमने कर ली है| अभी थोड़ी देर पहले मैंने अपने टीम लीडर को फ़ोन कर के आज के लिए एक unplanned leave ले ली है| मेरा एक दोस्त है जो हमें घर ढूँढने में मदद करेगा, ताकि आज रात हमें फिर से रेलवे स्टेशन पर न बितानी पड़े! अब जल्दी से मुँह-हाथ धो ताकि हम जल्दी से निकलें!" आदि भैया का सारा प्लान सुन कर मैंने चैन की साँस ली| मुँह-हाथ धो कर मैंने अपनी कमर कस ली और निकल पड़ी भैया के साथ अपना नया आशियाना ढूँढने|
भैया ने अपने दोस्त अरुण को सारी बात बता दी थी और उनका भी यही कहना था की हमारे पिताजी के विचार गलत है, भैया ने जो भी किया वो कतई गलत नहीं था तथा मैं अगर शादी के बजाए जॉब करना चाहती हूँ तो ये कोई इतनी बड़ी बात नहीं की हम दोनों को घर से निकाल दिया जाए!
खैर, अरुण भैया ने हमें एक प्रॉपर्टी डीलर से मिलवाया जिसने हमें भैया के ही ऑफिस के आस-पास घर दिखाए| करीब 9-10 घर देखने के बाद हमने एक घर फाइनल कर दिया| इस घर में थोड़ा फर्नीचर था जिस वजह से हमें कोई फर्नीचर खरीदने की जर्रूरत नहीं थी| परन्तु किराया 15000/- था और साथ में हमें 15000/- सिक्योरिटी डिपाजिट भी देना था| भैया के पास अभी इतने पैसे नहीं थे की वो एकदम से 30000/- दे सकें|
इस समय अरुण भैया ने अपनी दोस्ती निभाई और बिना कहे ही 30000/- दे दिए| अपने दोस्त की इस दरियादिली को देख भैया और मैं भाव विभोर हो गए| पैसे दे कर जब हम बाहर आये तो हम दोनों भाई-बहन की आँखें दोस्ती के एहसान तले दबे होने के कारण भर आईं| अरुण भैया ने जब हमारी आँखों में आँसूँ देखे तो उन्होंने एकदम से आदि भैया को गले लगा लिया| "साले तू दोस्त नहीं, भाई है मेरा इसलिए ये आँसूँ पोंछ दे! आज से तू नई ज़िंदगी शुरू कर रहा है इसलिए ख़ुशी-ख़ुशी नए घर में प्रवेश कर|" अरुण भैया की बात मानते हुए भैया ने अपने आँसूँ पोछे और बोले; "थैंक्स भाई! मैं तेरे पैसे जितना जल्दी होगा उतनी जल्दी वापस कर दूँगा|"
"आराम से कर दियो भाई, कोई जल्दी नहीं है|" अरुण भैया ने मुस्कुराते हुए आदि भैया से कहा|
"और आप कीर्ति, आप भी मुस्कुराओ! आपकी भी नई ज़िंदगी शुरू हो रही है| मैं देखूँगा अगर आपके लिए कोई जॉब निकली तो मैं आपको बता दूँगा|" अरुण भैया मुस्कुराते हुए मुझसे बोले|
"जी भैया|" मैंने अपने आँसूँ पोछते हुए कहा|
अरुण भैया के जाते ही आदि भैया मुझसे बोले; "कीर्ति, अभी क्या-क्या समान चाहिए उसकी लिस्ट बना लेते हैं|" ये कहते हुए भैया ने मेरा ध्यान इस नए घर को सजाने की ओर मोड़ा| हमने मिलकर गैस-चूल्हे से ले कर थोड़े बर्तन और खाने-पीने के समान की एक लिस्ट बना ली| फिर भैया ये समान लेने गए और तबतक मैंने घर की सफाई और अपना समान सजाना शुरू कर दिया|
कुछ देर में भैया सारा समान ले कर लौटे और मैंने हमारे नए घर में पहली रसोई बनाई| खाने का समान कम था इसलिए जल्दी में बस खिचड़ी ही बना पाई| जब मैं खाना परोस कर लाई तो आदि भैया ने बड़े चाव से मुझसे थाली ली और फर्श पर आलथी-पालथी मारकर बैठ गए| उनके चेहरे पर वैसी ही ख़ुशी झलक रही थी जैसे वो माँ के हाथों की बनी हुई खिचड़ी खाते समय खुश होते थे| मुझे आदि भैया के चेहरे पर आई ये ख़ुशी अजीब लग रही थी! ऐसा लगता था मानो उन्हें घर से निकाले जाने का कोई दुःख ही न हो?! जब भैया ने मुझे यूँ भर्मित देखा तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ नीचे बिठा लिया और अपने हाथों से मुझे खिचड़ी खिलाने लगे| भैया आज मुझे अपने हाथ से ऐसे खिला रहे थे जैसे वो मुझे मेरे बचपन में खिलाते थे| अपने बचपन की याद ताज़ा होते ही मेरे चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान झलक आई| अब जैसे ही भैया ने मेरे चेहरे पर मुस्कान देखि तो उनके चेहरे पर मौजूद मुस्कान हँसी में तब्दील हो गई!
खैर, खाना खा कर हम उठे और मैंने बर्तन धो कर रख दिए| इस घर में दो कमरे थे इसलिए हम दोनों ने अपने-अपने कमरे पहले ही चुन लिए थे| मेरे नए कमरे में एक पलंग था जो की खिड़की के साथ में था, कोने में एक लोहे की पुरानी अलमारी थी और एक छोटा सा टेबल तथा बेंत वाली एक कुर्सी थी| देखा जाए तो इस कमरे में इस्तेमाल करने वाली हर एक चीज़ थी परन्तु मुझे ये कमरा ‘मेरा कमरा’ नहीं लग रहा था! कमरे की दीवारों पर नया पेंट हो रखा था परन्तु फिर भी दीवारें सूनी थीं! वो यादें, वो तीखी-मीठी बातों के धब्बे इस कमरे में नहीं थे! शायद यही कारण था की मुझे ये कमरा भरा होने के बाद भी एकदम खाली लग रहा था और तभी मेरा मन इस कमरे में नहीं लग रहा था!
कमरे में मुझे घुटन महसूस हो रही थी इसलिए मैं हॉल में आ गई और वहाँ आ कर देखा की आदि भैया वहाँ पहले ही बैठे कुछ सोच रहे हैं! मुझे देखते ही उन्होंने एकदम से अपना ग़मगीन चेहरा धोया और मुस्कराहट से भरा मुखौटा पहन कर मुझसे बोले; "अरे, लगता है तुझे भी मेरी तरह 'हमारेनएघर' में नींद नहीं आ रही है?" आदि भैया ने जानबूझकर 'हमारे नए घर' पर ज़ोर देते हुए कहा| मेरे पास उनके सवाल का जवाब नहीं था इसलिए मैंने भी नक़ली मुस्कान लिया हाँ में सर हिला दिया|
"कोई बात नहीं, आज-आज की बात है कल से आदत हो जाएगी| इधर आ मेरे पास, आज तुझे में वैसे सुलाता हूँ जैसे मैं तुझे तेरे बचपन में सुलाता था|" आदि भैया ने मेरी बात को सच मानते हुए उपाए सुझाया| सच कहूँ तो, जैसे ही भैया ने मुझे सुलाने की बात कही मेरे मन की सारी चिंता झट से दूर हो गई! मेरे बचपन के समय जब मुझे शैतानी करने पर पिताजी से या माँ से डाँट पड़ती थी तब मैं मुँह फुला कर बैठ जाती थी| तब मुझे मनाने के लिए आदि भैया मुझे अपने पास बुलाते थे और मुझे अपनी गोद में सर रखने को कहते| मैं तुरंत ही सारा गुस्सा छोड़कर उनकी गोद में सर रख कर लेट जाती| फिर आदि भैया मेरा सर धीरे से थपथपाते और मेरे मस्तक को प्यार से चूमते| उनके प्यार से मेरा मस्तक चूमते ही मुझे एकदम से नींद आ जाती|
आज इतने सालों बाद जब आदि भैया ने मुझे फिर से उनकी गोद में सर रखने को कहा तो मैं फट से उनकी गोदी में सर रख कर लेट गई| मेरा ये बचपना देख आखिर आदि भैया के चेहरे पर असली मुस्कान आ ही गई और उन्होंने धीरे से मेरे बालों में अपना हाथ फेरना शुरू कर दिया| ये जादुई एहसास ऐसा था मानो मेरी सारी चिंताएँ, दुःख मेरे शरीर से निकल कर कहीं भागती जा रही हों| चिंता मुक्त होकर मैं निंदिया रानी के आगोश में जाने को तैयार थी इसलिए मैंने अपनी आँखें धीरे से मूँद ली|
लेकिन अगले ही पल ऐसा कुछ हुआ जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी! कुछ ऐसा घटित हुआ जिसने मेरे रोंगटे खड़े कर दिए! मेरा दिल इतनी ज़ोर से धड़का की लगा की छाती फाड़ के बाहर आ जायेगा!
अब तक आपने पढ़ा:
आज इतने सालों बाद जब आदि भैया ने मुझे फिर से उनकी गोद में सर रखने को कहा तो मैं फट से उनकी गोदी में सर रख कर लेट गई| मेरा ये बचपना देख आखिर आदि भैया के चेहरे पर असली मुस्कान आ ही गई और उन्होंने धीरे से मेरे बालों में अपना हाथ फेरना शुरू कर दिया| ये जादुई एहसास ऐसा था मानो मेरी सारी चिंताएँ, दुःख मेरे शरीर से निकल कर कहीं भागती जा रही हों| चिंता मुक्त होकर मैं निंदिया रानी के आगोश में जाने को तैयार थी इसलिए मैंने अपनी आँखें धीरे से मूँद ली|
लेकिन अगले ही पल ऐसा कुछ हुआ जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी! कुछ ऐसा घटित हुआ जिसने मेरे रोंगटे खड़े कर दिए! मेरा दिल इतनी ज़ोर से धड़का की लगा की छाती फाड़ के बाहर आ जायेगा! अब आगे: मेरे बालों में हाथ फेरते हुए आदि भैया ने झुक कर मेरे मस्तक को चूम लिया!
उनके लिए ये बड़ी ही स्वाभाविक प्रक्रिया था, आखिर मेरे बचपन से वो मेरे मस्तक को चूमते हुए आये हैं परन्तु आज उनके होठों की तपन मेरे जिस्म के लिए बहुत कामुक थी! आदि भैया के गर्म होठों की छुअन ने आज मेरे जिस्म में एक चिंगारी पैदा कर दी थी, ऐसी चिंगारी जो कहीं न कहीं मुझे सुखद महसूस हो रही थी! प्यार की इस चिंगारी ने मेरे मस्तक से ले कर मेरी 'मुनिया' की ओर पल भर में ही सफर तय कर लिया! जिस्म में अचानक उतपन्न हुई ये झनझनाहट कुछ-कुछ वैसी थी जैसी मुझे हस्तमैथुन करते समय स्खलन पर पहुँच कर होती थी! ऐसा लगता था मानो भैया की उँगलियाँ मेरी कुर्ती के अंदर से सरकते हुए, मेरी पैंटी के अंदर से होते हुए मेरी बुर को छू रही हों!
वो मादक स्पर्श महसूस होते ही मेरी बुर एकदम से गीली हो गई! इस मादक छुअन के बारे में सोचते ही मैं अलग खुमारी में खो गई और मेरे चेहरे की मुस्कान कई गुना बढ़ गई!
"क्या हुआ तुझे? इतना क्यों मुस्कुरा रही है?" आदि भैया ने मेरी मुस्कान पर टोक लगाते हुए सवाल पुछा? दरअसल, आदि भैया को मेरी बढ़ी हुई इस मुस्कान का कारण समझ नहीं आ रहा था| अब उन्हें क्या पता की मेरी बुर में कैसी गुदगुदी उठी हुई है?!
खैर, आदि भैया के पूछे सवाल से मेरी तंद्रा भंग हुई और मैं असल ज़िन्दगी में लौटी| मैंने आँखें खोल कर देखा तो सामने आदि भैया का चेहरा था और उस चेहरे को देखते ही मेरे दिल में एक अजीब सी हलचल हुई!
"अरे, बताना क्या सोच कर मुस्कुरा रही थी?" आदि भैया ने फिर से अपना सवाल दोहराया| आदि भैया के सवाल से मैं निरुत्तर हो गई थी इसलिए अपनी आँखें बड़ी कर के उन्हें देखने लगी और समझने की कोशिश करने लगी की जो प्यार की चिंगारी मेरे भीतर अभी फूटी थी क्या वही चिंगारी अभी आदि भैया के भीतर भी फूटी होगी?!
इधर मुझे यूँ खामोश और हैरान देख आदि भैया ने मेरी मनोदशा का कुछ और ही अर्थ निकाला; "हम्म्म...समझा...मेरी 'छुटकी' को आज सालों बाद अपने आदि भैया की गोदी में सर रख कर सोने में मज़ा आ रहा है|" आदि भैया मुस्कुराते हुए बोले| कभी-कभी जब आदि भैया बहुत खुश होते थे तो मुझे 'छुटकी' कह कर बुलाते थे|
खैर, अब मैं क्या कहती?! मैंने उनकी हाँ में हाँ मिलाते हुए अपना सर हाँ में हिला दिया|
"चल फिर आज ऐसे ही सोते हैं|" मेरा सर अपनी गोदी में लिए हुए ही आदि भैया ने अपनी पीठ दिवार से लगा ली और आँख बंद कर के सो गए|
इधर मैं चूँकि अपनी खुमारी से बाहर आ चुकी थी तो मेरे मन ने मुझे जायज़ और नाजायज़ की कश्मकश के बीच में खड़ा कर दिया;
'आदि भैया तेरे सगे भाई हैं, बचपन से ले कर अभी तक उन्होंने तुझे सँभाला है, तेरी हर ख़ुशी के लिए उन्होंने कभी झूठ बोला तो कभी पिताजी से लड़ाई की है मगर तुझे हर ख़ुशी दी है| मत भूल ये तेरे आदि भैया ही हैं जिन्होंने तुझे शादी के बँधन से बचाने के लिए पिताजी से टक्कर ली जिसके फल स्वरूप आज तुम दोनों का हुक्का-पानी बंद हो गया! वरना सोच कर देख की उन्हें क्या पड़ी थी तेरी शादी रुकवाने की?! तू खुश रहे इसलिए बेचारे आदि भैया इतना कुछ सह रहे हैं और तू है की अपने भैया के बारे में ये सोच रही है?! उनके साथ सेक्स करने की गन्दी बात तेरे ज़हन में भी कैसे आई?! छी..छी...छी!!! इतना गन्दा सोचने से पहले तो तुझे मर जाना चाहिए!’ मेरा पाक़ साफ़ मन जो हमेशा मुझे सही फैसला लेने के लिए उकसाता था वो बोला| गौर करने वाली बात ये है की भैया के मेरे मस्तक पर ,किये चुंबन से बीएस मेरे भीतर प्यार की चिंगारी जली थी जिसे की मेरे मन ने सेक्स की भूख का रूप दे दिया था!
'अरे सगी भाई हैं तो क्या? तुझे कौनसा उनसे शादी करनी है? तेरी मुनिया में जो खुजली उठी है उसे ही तो शांत करना है? एक बार मुनिया शांत हो गई तो क्या फर्क पड़ेगा? इतने सालों से जो तूने अपना कुंवारापन सँभाल कर रखा है, उसे अपना सगे भाई को सौंप देगी तो वो खुश नहीं होगा क्या? हर भाई यही तो चाहता है की उसे एक कुँवारी लड़की मिले भोगने के लिए तो क्या आदि भैया नहीं चाहते होंगें? तेरी वजह से बेचारे को घर से निकाला गया! न तू शादी से इंकार करती, न नौकरी करने की ज़िद्द करती और न ही तुम दोनों को घर से निकाला जाता?! इतनी बड़ी सजा आदि भैया भोग रहे हैं, अगर तेरी कुँवारी बुर को चोद कर उन्हें थोड़ी ख़ुशी मिल जाएगी तो तेरा क्या जायेगा? तूने कभी न कभी, किसी न किसी लड़के से चुदवाना तो है ही, तो अपने भैया से ही चुद ले न?!' मेरे मन में बैठी वासना मुझे उकसाते हुए बोली| यहाँ गौर करने वाली बात ये है की जहाँ थोड़ी देर पहले मेरे मन के पाक़ हिस्से ने मेरी भावनाओं को केवल 'सेक्स' का नाम दिया था वहीं मेरे मन के जिस हिस्से में वासना बसी थी उसने सीधा ही मेरी भावनाओं को एक सीधा ही 'भैया से चुदवाने' की इच्छा का नाम दे दिया!
इंसान जब मन के बजाए अपने यौन अंग से सोचने लगता है तो उसका विवेक मर जाता है, ये ही मेरे साथ हुआ| अंततः अपनी वासना के वशीभूत होते हुए मैं धीरे से उठी और सीधा बाथरूम में घुस गई| अपनी पजामी उतारकर जब मैंने नीचे देखा तो पाया की मेरी पूरी पैंटी गीली हो चुकी है!
मैंने फटाफट पैंटी उतारी और सीधा ही अपनी दोनों उँगलियाँ मैंने अपनी बुर के भीतर प्रवेश करवा दी| जैसे ही मेरी दोनों उँगलियों ने मेरी बुर के भीतर प्रवेश किया तो मेरी आँखें स्वतः बंद हो गईं और वासना से भरे मेरे मन ने तुरंत एक कल्पना शुरू कर दी की एक लंड धीरे से मेरी बुर में प्रवेश कर रहा है! बस इस छोटी सी कल्पना का ऐसा जबरदस्त असर हुआ मेरे ऊपर की मुझे एकदम से तीव्र स्खलन हुआ और मैं लघभग लड़खड़ा सी गई!
किसी तरह से हाँफते हुए मैंने खुद पर काबू पाया और लम्बी-लम्बी साँसें ले कर खुद को सँभालनेकी कोशिश करने लगी| गहरी साँसें लेते हुए मैंने मेरी नज़र आईने पर गई जिसमें मुझे मेरा अक्स दिखाई दिया और अपना ही अक्स देख कर न जाने क्यों मुझे शर्म आने लगी?! आजतक कभी ऐसा नहीं हुआ की मैं आईने में खुद से नज़र नहीं मिला पाई क्योंकि मैंने आजतक ऐसा कोई काम ही नहीं किया था की मुझे खुद पर शर्म आये! परन्तु आज मुझे अजीब सी ग्लानि हो रही थी! अब अगर मैं कुछ देर और बाथरूम में रूकती तो मुझे अपनी सूरत और आईने में दिखाई देती इसलिए मुँह-हाथ धो कर मैं फट से बाथरूम से बाहर आ गई| बाथरूम से बाहर आ कर मेरी नज़र पड़ी आदि भैया पर जिनकी आँख लग चुकी थी| उन्हें देखते ही मुझे फिर से ग्लानि होने लगी की आखिर क्यों मेरे मन में उनके प्रति ऐसे गलत विचार आये इसलिए मेरी हिम्मत नहीं हुई की मैं फिर से उनकी गोद में सर रख कर लेटूँ| शर्म की मारी मैं वापस अपने कमरे में आ गई और बिस्तर पर लेट गई| चूँकि मैं स्खलित हो चुकी थी इसलिए मुझे जल्दी ही नींद आ गई और मैं ज्यादा ग्लानि महसूस करने से बच गई!
अब आगे: अगली सुबह मैं जल्दी से उठी और आदि भैया के लिए चाय-नाश्ता बनाने में लग गई| आदि भैया उठ चुके थे और बाथरूम में नहा रहे थे| जब मैं आखरी पराठा सेंक रही थी तभी आदि भैया बाथरूम से नाहा कर टॉवल लपेटे हुए निकले! इस समय भैया ने टॉवल के ऊपर कुछ नहीं पहना था, जिस कारण आज मुझे कई दिनों बाद भैया का गठीला बदन नज़र आया| वैसे मेरे आदि भैया कोई बॉडी बिल्डर नहीं हैं मगर वो इतने फिट हैं की बिना ऊपर के कपड़े पहने वो बड़े कामुक लगते हैं! आदि भैया को यूँ चलते हुए उनके कमरे तक जाते हुए देखते हुए मैं जैसे साँस लेना ही भूल गई थी! मेरी आँखें उनपर इस कदर चिपकी हुई थीं मानों मेरे हाथ उनके जिस्म से चिपके हों! इस छोटे से दृश्य ने मेरे मन में फिरसे वासना जगा दी थी, नतीजन मेरी बुर में पानी उतर आया था! अब बुर गीली हो रही हो तो कौन खाना बनाता है?! बस यही सोच कर मैं बाथरूम में घुसने ही वाली थी की तभी मेरी नज़र पड़ी तवे पर जिस पर पड़ा पराठा लगभग जल कर ख़ाख़ हो चूका था! ऐसा लगता था मानो आदि भैया के जिस्म को देख कर मैं ही नहीं मेरा पराठा भी गर्म हो कर सिक चूका था!
खैर, जले हुए पराठे को देख कर मेरा ध्यान भंग हो गया था जिस कारण मन में जली वासना की आग ठंडी पड़ गई| अब जब वासना की आग शांत हुई तो पेट में भूख की आग जल पड़ी| आदि भैया का लंच पैक कर मैंने हम दोनों के लिए नाश्ता परोसा, इतने में आदि भैया भी तैयार हो कर आ गए|
नाश्ता करते समय सबकुछ सामान्य था, न भैया ने मुझसे कोई बात की और न ही मैंने कोई बात छेड़ी| अब मैं बात छेड़ती भी कैसे, कुछ देर पहले मेरी मुनिया में आग जो लगी थी! खैर, नाश्ता करके आदि भैया ऑफिस के लिए निकल गए और मैं घर पर साफ़-सफाई करके दोपहर का खाना बनाने लगी| जब आप घर में अकेले हो तो मन इधर-उधर भटकने लगता है| अब सुबह-सुबह मैंने जो भैया का मादक जिस्म दिखा था उसे याद कर के एक बार फिर मेरी बुर गीली हो गई! मैंने फौरन गैस बंद की और अपने कमरे में पहुँच गई| अपने कपडे मैंने नोच कर फेंक दिए और नंगी हो कर पलंग पर लेट गई| अपनी दोनों टांगें फैला कर जब मैंने अपनी बुर को छुआ तो पाया की वो इतनी गीली हो गई है की
मेरा 'शहद' बहते हुए मेरे दूसरे छेद (गांड) की तरफ बढ़ रहा है! अपने शहद में ऊँगली डुबो कर मैंने अपने भगनासे को अंगूठे से छेड़ा
तो मेरे बदन में जैसे 440 वाट का करंट दौड़ गया और एकदम से सिंहर उठी! मेरे तन-बदन में सेक्स की आग भड़क उठी थी और अब उसे शांत करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता न था इसलिए मैंने अपनी तर्जनी और माध्यम ऊँगली बुर के भीतर ठूँस दी!
मेरी बुर के भीतर का तापमान मेरी सोच से कई ज्यादा गर्म था!
आँखें बदन किये हुए मुझे बस आदि भैया का चेहरा नज़र आ रहा था, पता नहीं क्यों पर उन्हें देखते ही मैंने अपनी सोचने-समझने की ताक़त जैसे खो सी दी! मैं सही गलत का कोई बोध नहीं था, बोध था तो बस ये की मुझे अपना स्खलन प्राप्त करना है परन्तु इतनी जल्दी नहीं| मैं चूँकि घर में अकेली थी तो मुझे जल्दीबाज़ी करने की कोई जर्रूरत न थी इसलिए मैंने सोचा की क्यों न अपनी कामाग्नि को और भड़काया जाए?!
मेरी कल्पना में आदि भैया मेरे साथ थे और इस एहसास ने मेरे बदन में आग लगा दी थी!
मेरी कल्पना:
मैं आदि भैया को अपना सारा जिस्म अच्छे से दिखाना चाहती थी| "ससस...आदि...भैया!!!" मैं बुदबुदाई और मेरा बायाँ हाथ मेरे बाएँ उरोज पर आ गया| तभी मेरी नज़र आदि भैया से मिली जो की हैरान नज़रों से मुझे देख रहे थे| उनसे नजरें मिलते ही मैंने अपना निचला होंठ दाँतों तले दबा लिया तथा अपने बाएँ हाथ से अपना बायाँ उरोज़ हलके से मीस दिया!
फिर मेरा दायाँ हाथ फिसलते हुए नीचे मेरी बुर पर आ चूका था और अब समय था मेरे प्यार आदि भैया को मेरी बुर के दर्शन करवाने का! अपनी तर्जनी और मध्यमा ऊँगली की सहयता से मैंने अपनी बुर को फैला कर आदि भैया को उनकी छोटी बहना के बुर के दर्शन करवाए|
परन्तु मुझे अपने आदि भैया को थोड़ा तड़पना भी था इसलिए मैंने मध्धम मुस्कान के साथ अपनी दोनों उँगलियों को बंद करते हुए बुर के छेद को पुनः बंद कर अपनी दोनों उँगलियों से पल भर के लिए ढक लिया| मुझे आदि भैया को इस तरह तड़पाने में बहुत मज़ा आ रहा था इसलिए मैंने धीरे-धीरे अपनी दोनों उँगलियों से अपनी बुर के गुलाबी छेद को खोलना-बंद कर ढकने का खेल शुरू कर दिया|
आदि भैया से अपनी प्यारी बहना द्वारा दी जा रही ये प्यारभरी यातना सहन न हुई और उन्होंने आगे बढ़ कर अपनी लाड़ली बहना की बुर को छू लिया! अपनी मध्यमा ऊँगली को मेरी बुर में थोड़ा सा अंदर धकेलते हुए आदि भैया ने धीरे-धीरे मेरी बुर की खुदाई शुरू कर दी!
"उफ्फ्फ..ममम..!!!" एक मादक सिसकी के साथ मेरी सांसें तेज़ होने लगी जिससे मेरी छातियाँ ऊपर-नीचे होने लगीं!
"उम्म्म...आदि..भैया...अब..और..मत तड़पाओ..." मैं धीरे से बुदबुदाई| मेरी आवाज़ में मेरी तड़प महसूस कर आदि भैया को अपनी छुटकी पर तरस आ गया और उन्होंने अपनी तर्जनी और मध्यमा ऊँगली एक साथ मेरी बुर के भीतर पिरो दी तथा धीरे-धीरे अंदर-बाहर करने लगे|
आदि भैया मेरी बुर को अपनी ऊँगली से चोद रहे हैं इस एहसास ने मुझे चर्मोंतकर्ष की ओर धकेल दिया!
वास्तविकता
मेरी इस कोरी कल्पना ने मेरे जिस्म में वासना का ज्वालामुखी इस कदर भड़का दिया था की मेरी बुर में मेरी उँगलियों की गति तेज़ हो चुकी थी!
कुछ पल लगे होंगे की हस्तमैथुन करते हुए मेरा जिस्म एकदम से ऐंठने लगा| बाएँ हाथ से अपने उरोज मीस्ते हुए और दाएँ हाथ की उँगलियों से अपनी बुर की चुदाई करते हुए मेरा जिस्म अंततः स्खलन पर पहुँच गया!
और फिर वो पल आया जब मैं पहलीबार अपने आदि भैया को अपनी कल्पना में जोड़ कर स्खलित हो गई!!!!
मेरे जिस्म पर ऐसी खुमारी चढ़ी की स्खलित हो कर मैं एकदम से पस्त हो गयी और कुछ देर के लिए मेरी आँख लग गई!
जब मेरी आँख खुली तो शाम के 5 बज रहे थे और उठते ही सबसे पहले मेरी नज़र आईने पर पड़ी जिसमें मेरा नंगा जिस्म मुझे साफ़ दिखाई दे रहा था| खुद को देख कर मुझे मेरी कल्पना याद आई और मेरी कल्पना में मैंने आदि भैया से क्या-क्या करवाया उसे याद करते ही मैं शर्म से पानी-पानी हो गई!
अब तक आपने पढ़ा: मेरे जिस्म पर ऐसी खुमारी चढ़ी की स्खलित हो कर मैं एकदम से पस्त हो गयी और कुछ देर के लिए मेरी आँख लग गई!
जब मेरी आँख खुली तो शाम के 5 बज रहे थे और उठते ही सबसे पहले मेरी नज़र आईने पर पड़ी जिसमें मेरा नंगा जिस्म मुझे साफ़ दिखाई दे रहा था| खुद को देख कर मुझे मेरी कल्पना याद आई और मेरी कल्पना में मैंने आदि भैया से क्या-क्या करवाया उसे याद करते ही मैं शर्म से पानी-पानी हो गई! अब आगे: ये गिल्ट...ये ग्लानि...मेरे लिए कोई नई बात नहीं थी, पहले जब भी मैं हस्तमैथुन करती थी तब भी मुझे ये ग्लानि होती थी मगर तब ये ग्लानि पल दो पल की होती थी| परन्तु आज पहलीबार मैंने अपनी कल्पना में अपने आदि भैया को शामिल किया था, जिस कारण मुझे इतनी ज्यादा ग्लानि हो रही थी की मैं शर्म के मारे ज़मीन में गडी जा रही थी|
खैर, इस ग्लानि से बचने के लिए मैंने कपडे पहने और घर से बाहर सब्जी खरीदने के लिए निकल गई| घर के बाहर आकर आवो-हवा बदली और मेरा मन भटक गया| कुछ ही दूर पर सब्जी का यह ठेला था तो मैं वहां सब्जी लेने लगी| तभी वहाँ मोहल्ले की 2-3 ऑन्टीयाँ सब्जी लेने आ गईं| मुझे...एक अनजान को सब्जी खरीदते देख उन्होंने मुझसे बात-चीत शुरू की| मैंने उन्हें बताया की मैं यहाँ नई हूँ और अपने बड़े भाई के साथ रहती हूँ|
"और बेटा तुम्हारे माँ-बाप?" एक आंटी ने सवाल पुछा| पता नहीं क्यों पर उनके इस सवाल को सुन कर मेरे तन-बदन में गुस्से की आग भड़क गई!
"जी वो नहीं हैं! एरा मतलब यहाँ नहीं हैं...गॉँव में रहते हैं| यहाँ बस मैं और मेरे भैया ही रहते हैं| भैया को तो नौकरी मिल गई थी पर मैं यहाँ नौकरी ढूँढ रही हूँ| वैसे पहले मैं पहली से ले कर बारहवीं तक के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी तो उससे थोड़ी आमदनी हो जाती थी|" मैंने अपना गुस्सा छुपाते हुए किसी तरह बात सँभाली और बातों-बातों में अपने मतलब की बात भी छेड़ दी, इस उम्मीद में की शायद इन ऑन्टीयों में से किसी का बच्चा हो जिसे पढ़ाने का मुझे मौका मिल जाये और मैं घर पर रहकर कुछ पैसे कमाने लगूँ और आदि भैया का बोझ थोड़ा हल्का हो जाए|
अब जैसा की होता है, हम महिलाओं को कोई चीज़ भले ही न खरीदनी हो मगर हम दाम जर्रूर पूछती हैं! वही कुछ उस दिन हुआ, मेरे ट्यूशन पढ़ाने की बात सुनते ही सब ने एक साथ कोरस में मुझसे पुछा की मैं एक बच्चे को पढ़ाने के कितने पैसे लेती हूँ?
"जी ज्यादा नहीं बस 1,500/- रुपये|" मैंने बड़ी हलीमी से जवाब दिया| आज के समय में जहाँ ट्यूशन वाले 3,000/- प्रति विषय से कम नहीं लेते, वहीं मेरी आधी फीस की बात सुनते ही 2 ऑन्टीयाँ एक साथ बोलीं की वो कल ही से अपनी बेटियों को मेरे पास पढ़ने भेज देंगी! उन ऑन्टीयों का मेरी बात में जल्दी आ जाने का कारण ये था की मैं खुद एक लड़की हूँ तो मेरे पास उनकी लड़कियाँ ज्यादा सुरक्षित और मन लगा कर पढ़ सकेंगी|
खैर, मेरी महीने की आमदनी कम से कम 3,000/- हज़ार होगी ये सोचकर ही मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा! सब्जियाँ ले कर मैं घर पहुँची और आदि भैया को ये खुशखबरी देने के लिए उनकी मन पसंद 'संतुला' बनाने में लग गई| संतुला एक ओड़िया डिश है जिसमें कच्चा पपीता, बैगन, आलू, सहजन आदि सब्जियों को भून कर एक रसेदार सब्जी बनाई जाती है| इसमें तेल-मसाला कम होता है जिस कारण ये स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छी होती है|
शाम को आदि भैया जब घर लौटे तो उन्हें मेरे चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान नज़र आई पर इससे पहले वो कुछ पूछ पाते मैं ही अपने उत्साह में बोल पड़ी; "कल से मेरे पास दो लड़कियाँ ट्यूशन पढ़ने आएँगी और मुझे पूरे 3,000/- रुपये फीस मिलेगी!” आदि भैया को 3,000/- रुपये सुन कर इतनी ख़ुशी नहीं हुई जितनी ख़ुशी उन्हें अपनी लाड़ली बहना को खुश होते हुए देख कर हो रही थी| अपनी ख़ुशी को व्यक्त करने के लिए आदि भैया ने मुझे अपने गले लगा लिया!जैसे ही आदि भैया ने मुझे अपने गले लगाया, मेरे स्तन उनकी छाती से चिपक कर थोड़े दब गए! ‘सससस’ मैं मन ही मन सीसियाई! इस एहसास ने में वासना की आग को हवा दे दी और मेरी कल्पना के घोड़े फिर से दौड़ने लगे!
मैंने आदि भैया को अपनी बाहों में कस लिया और कल्पना करने लगी की आदि भैया मुझे अपनी प्रियतमा समझ कर अपनी बाहें कसते जा रहे हैं! इस कल्पना का नतीजा ये हुआ की मेरी बुर में पानी उतर आया जो धीरे-धीरे मेरी पैंटी को भीगाता जा रहा था!
वहीं जब मैंने आदि भैया को अपनी बाहों में कसा तो आदि भैया की भी पकड़ मेरी जिस्म पर बढ़ने लगी! अब मेरा हाल ऐसा था की मैं हर पल आदि भैया की बाहों में पिघलती जा रही थी!
"अच्छा अब क्या सूखे-सूखे ही ये ख़ुशी मनानी है?" आदि भैया के मुख से निकले इन शब्दों ने मेरी तंद्रा भंग की और मैं अपनी कल्पना की दुनिया से बाहर निकली|
"नहीं भैया, मैंने आपकी पसंदीदा संतुला बनाई है!" मैंने खुद को सहज दिखाते हुए कहा, जबकि मेरा तो मन ही नहीं था की मैं आदि भैया से अलग हूँ! मेरा तो मन था की उनकी बाहों में ही मैं स्खलित हो जाऊँ!
बहहरहाल, मैंने खाना परोसा और हम दोनों भाई-बहन खाना खाने बैठ गए| अपनी पसंदीदा तरकारी देख कर आदि भैया के मुँह में पानी आ गया और वो खाने पर टूट पड़े! मैंने भी दोपहर को खाना नहीं खाया था इसलिए मुझे भी बड़ी ज़ोरदार भूख लगी थी| खाना खाते हुए मैंने आदि भैया से अपनी नौकरी की बात शुरू की; “भैया, आपके ऑफिस में मुझे नौकरी नहीं मिल सकती?”
“मैंने आज ही अपने मैनेजर से बात की है, वो कह रहे थे की वो कोशिश करेंगे की ऑफिस में तुझे कोई छोटी-मोटी नौकरी मिल जाए पर इसमें थोड़ा टाइम लगेगा, तबतक तू घर से अपना ट्यूशन सेण्टर चला| क्या पता ये काम ही तेरा चल निकले तो हम तेरे लिए किराए पर एक जगह ले लेंगे जहाँ तू आराम से 15-20 बच्चों को एक साथ पढ़ा सके|” आदि भैया ने मुझे उम्मीद की दो किरण एक साथ दिखा दी थीं और मेरे लिए ये ही काफी था|
बस इसी तरह दिन काटने लगे, आदि भैया को देख कर मैं कभी-कभी उत्तेजित हो जाती थी और अपनी ऊँगली की सहयता से खुद को शांत कर लिया करती थी| लगभग महीना बीता होगा की एक शाम को आदि भैया मेरे लिए खुशखबरी ले कर लौटे|