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Mr. Unique

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100% लोन रिकवरी का रिकॉर्ड!!!!!

देखते है कि ये रिकॉर्ड कायम रहेगा या नहीं क्योंकि लग तो रहा नहीं कि कय्यूम कुछ देगा आसानी से..


कहानी अच्छी लग रही है बस फिर से बीच में मत छोड़ देना :hide1:
 
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andypndy

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100% लोन रिकवरी का रिकॉर्ड!!!!!

देखते है कि ये रिकॉर्ड कायम रहेगा या नहीं क्योंकि लग तो रहा नहीं कि कय्यूम कुछ देगा आसानी से..

कहानी अच्छी लग रही है बस फिर से बीच में मत छोड़ देना
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पूरी करूंगा दोस्त... Dont worry 😂
काया की माया देखते जाइये.
 

andypndy

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malikarman

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अगले दिन

"रोहित उठो ऑफिस नहीं जाना, नाश्ता टिफ़िन तैयार है "

काया एक आदर्श बीवी की तरह सुबह सब तैयारी कर दी थी.

थोड़ी ही देर मे रोहित तैयार डाइनिंग टेबल पर बैठा नाश्ता कर रहा था.

समय 9.00am

टिंग टोंग....

"शायद मकसूद होगा, उसने आने को कहा था " रोहित नाश्ता करते हुए बोला

काया दरवाजे की ओर बढ़ चली, वो अभी भी रात वाले गाउन मे ही थी, यहाँ कौन से सांस ससुर थे की सूट साड़ी पहननी है.

पल भर मे ही दरवाजा खुल गया

"नमस्ते ममम... म.. मैड... मैडम जी " दरवाजा खुलते से ही मकसूद का मुँह भी खुला ही रह गया
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काया के लिए ये सामान्य बात होंगी लेकिन गांव देहात के मकसूद के लिए ये सामन्य नहीं थस, उसे लगा शायद जन्नत का दरवाजा खोल कोई हर उसे अंदर बुला रही है.

"नमस्ते... नमस्ते मकसूद जी आईये" लेकिन मकसूद के कान पे जु भी ना रेंगी वो मुँह बाये कभी काया को देखता तो कभी अगल बगल झाकता

सामने गया हलके सफ़ेद गाउन मे खड़ी किसी अप्सरा से काम नहीं लग रही थी, एक एक अंग साफ नुमाया हो रहा था,

मकसूद की मनोदशा को भाम्प काया भी झेम्प गई, और दरवाजे से साइड हो गई.

"मै यही इंतज़ार कर लेता हूँ " मकसूद से और कुछ कहते नहीं बना,

"आ गए मकसूद, चलो चले"इतनी देर मे ही रोहित आपने बेग के साथ दरवाजे पर आ गया था.

रोहित मकसूद बाहर को निकलिए गए.

धाड़ से दरवाजा बंद कर काया उस से सट गई...

उफ्फ्फ्फ़.... मै भी क्या करती हूँ, मुझे ध्यान रखना चाहिए ये गांव देहात है.

काया आपने कामों मे व्यस्त हो गई,

बाहर कार मे

"हेलो हाँ मल्होत्रा सर, जी आज से ज्वाइन कर रहा हूँ, यस सर पहुंचने वाला हूँ " रोहित कार मे बैठा मल्होत्रा साहब से बात कर रहा था.

मल्होत्रा बैंक के हेड है, दिल्ली ब्रांच मे ही बैठते है,

इन्होने ही ख़ास रोहित के टैलेंट को पहचाना था.

दूसरी तरफ फ़ोन पर " देखो रोहित मन लगा के काम करना, सुमित मिलेगा वहा वो सब समझा देगा "

"ओके सर " पिक

फ़ोन कट हो गया

रोहित अपनी तरक्की से बेहद ख़ुश था.

लगभग 20 मिनट मे कार बैंक के सामने खड़ी थी.

बैंक गांव के बाहर ही स्थित था,

उसके बाजु मे सरकारी स्कूल, फिर पंचायत ऑफिस फिर बड़ा सा गांव मोहब्बतपुर.

"नाम तो बड़ा अच्छा है मकसूद गांव का "

"जी साब लोग भी अच्छे ही है " मकसूद मे कार का गेट खोल रोहित का बेग थाम लिया.

आइये आइये सर.... एक पतला सा सामान्य कद काठी का आदमी तुरंत भागता हुआ आया और फूलो की मला रोहित के गले मे डाल दी.

सर मै सुमित अभी तक मै ही ब्रांच को देख रहा था, अब आप आ गए है मै धन्य हुआ hehehehe.... सुमित थोड़ा मजाकिया लगा.

रोहित ने भी हाथ मिलाया.

सभी ब्रांच मे दाखिल हो चले.

बैंक मे कुल 4 लोगो का ही स्टाफ था, पाँचवा खुद रोहित.

चौकीदार रमेश तोमर जो की सेना मे सिपाही था, रिटायर होने के बाद बैंक मे चौकीदार है, कद काठी मे लबा चौड़ा, घनी मुछे रोबदार चेहरा,हेड केशियार कम अस्सिटेंट मैनेजर सुमित, चपरासी पांडे, और एक महिला क्लर्क आरती जो की विधवा थी और अपने पति के स्थान पर ही नौकरी पाई हुई थी.

आरती 40साल की महिला, पति बच्चा पैदा करने से पहले चल बसा, दिखने मे कोई खास नहीं, सवाली हष्ट पुष्ठ महिला, शरीर बिलकुल भरा हुआ, आम तौर पर साड़ी मे ही रहना पसंद करती थी.
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सभी ने रोहित का स्वागत किया और रोहित ने अभिवादन स्वीकार भी किया.

कुछ हूँ देर मे सभी मैनेजर रूम मे बैठे चाय की चुस्की ले रहे थे.

"सर ये लीजिये पेपर सिग्नेचर कर दीजिये और मुझे मुक्त कीजिये इस भार से " सुमित ने एक फ़ाइल आगे बड़ा दी जिसमे रोहित की जोइनिंग, बैंक और उसकी सम्पति का ब्यौरा लिखा था

"बड़ी जल्दी है भाई सुमित तुम्हे, रोहित ने हलके लहजे मे कहा और सिग्नेचर कर दिए.

तुरंत ही सुमित ने फाइल्स का एक पुलिंदा आगे बड़ा दिया

"ये क्या है?"

"यही तो समस्या है "

"क्या मतलब?" रोहित हैरान था

"मल्होत्रा साहब ने बताया होगा ना आपको "

"नहीं, उन्होंने कहा था सुमित बता देगा "

"अच्छा...." सुमित सर खुजाने लगा.

"बोलो... क्या बात है" रोहित फ़ाइल खोल के देखने लगा.

"लोन डिफाल्टीर्स " फ़ाइल के पहले पन्ने भी ही कोई 10, 15 नाम लिखें थे.

"सर यही समस्या है, हमारी ये ब्रांच लोन डिफाल्टर्स से परेशान है, कोई 60,70 लाख का लोन पिछले 3 सालो मे बाट दिया गया है, लेकिन एक नया पैसा वापस नहीं आया है.

रोहित फ़ाइल के पन्ने पलटे जा रहा था, सुमित हर पन्ने को समझाये जा रहा था.

सुमित के चेहरे पे सुकून बढ़ता जा रहा था वही रोहित के माथे पर परशानियों की लकीरें बनती जा रही थी.

कुल मिला सुमित ने अपने कंधे का सारा बोझ रोहित के सर पर लाद दिया था.

"उउउफ्फ्फ्फ़...... पहले ही दिन रोहित के दिमाग़ के फ्यूज उड़ गए थे.

ट्रिंग... ट्रिंग....तभी फ़ोन की घंटी बज उठी

"हेलो.... हेलो.... हर मल्होत्रा सर "

"उम्मीद है तुमने ब्रांच का कार्यभार सुमित से ले लिए होगा " फ़ोन पर मल्होत्रा

"जज... ज.. जी सर ले लिया लल... लेकिन?"

"क्या हुआ रोहित सब ठीक तो है ना?"

"सर यहाँ तो सब कुछ क्रेडिट पर चल रहा है, बैंक तो डूबने की हालत मे है " रोहित ने जैसे शिकायत की हो.

"तुमसे इस तरह की उम्मीद नहीं थी रोहित, तुम्हे प्रमोशन क्यों दिया गया? तुम्हारी सैलरी क्यों बड़ाई गई? काम मे तो चुनौती आती ही है समझो यही वो चुनौती है, वहा जयपुर मे तुम्हारा 100% लोन रिकवरी का रिकॉर्ड था इसलिए ही तो तुम्हे प्रमोट किया गया है. क्या बैठने की तनख्वाव्हा लोगे?

80% ही कवर कर दो वही बहुत है बैंक के लिए, और ना हो सके तो बता देना मुझे, ठाक से मल्होत्रा ने लम्बा चौड़ा भाषण दे कर फ़ोन काट दिया.

रोहित सोच मे था, गहरी सोच मे जयपुर उसका इलाका था वहा वो सबको जनता था, सभ्य समाज था, यहाँ तो कुछ नहीं पता? कैसे करे? क्या करे?

"सर क्या हुआ? सर... सर..." सुमित की आवाज़ से रोहित थोड़ा सा हड़बड़या

"हा.. हाँ.... कुछ नहीं "

एक बात बताओ सुमित इतने दिन तक तुम क्या कर रहे थे? तुमने क्या किया? " रोहित थोड़ा कड़क हो चला

अक्सर ऐसा ही होता है बॉस अपने से नीचे के इंसान पे ऐसे ही रोब झाड़ता है जैसे अभी मल्होत्रा ने रोहित को हड़काया था.

"सर... वो... वो... मुझे भी तो 5 महीने ही हुए है यहाँ आये, जो पहले के मैनेजर और केशियर थे ये उनकी करास्तानी है, साले खुद लोन बाट कर रिटायर हो गए बोझ हम पर डाल गए " सुमित ने बेचारा सा मुँह बना लिया.

रोहित भी समझ चूका था यहाँ किसी की गलती नहीं है.

"सुमित तुम यहाँ बैठो बाकि लोग अपना काम करे "

सुमित रोहित घंटो फाइल्स मे उलझे रहे.

दिन के 12 बज चुके थे.

वहा घर पर काया घर के सभी काम निपटा कपडे बालकनी मे सूखने को डाल रही थी, अकस्मात ही उसकी नजर उसी कमरे पर जा पड़ी जहाँ कल रात वो लड़का निकला था, काया के दिमाग़ मे कोतुहाल सा मचने लगा, अँधेरी रात मे पेशाब की वो धार दिमाग़ मे जगमगाने लगी, काया ने उस धार का पीछा किया तो उसके स्त्रोत तक जा पहुंची... काला सा कुछ लम्बा सा था जहाँ से वो सफ़ेद चमकती धार निकल रही थी...

उफ्फ्फ.... क्या सोचने लगी मै, काया ने अपने दिमाग़ को झटक दिया,

"सब्जी... सब्जी.... ऐ सब्जी..." तभी काया के कान मे एक आवाज़ पड़ी सर उठा के देखा तो पाया बिल्डिंग के गेट के बाहर सब्जी के ठेला लिया आदमी खड़ा था.

"आज रात के लिए तो कुछ सब्जी लेनी पड़ेगी, अभी तो कोई बजार वगैरह भी पता नहीं कहा है?"

काया झट से बाहर की ओर दौड़ पड़ी कही वो चला ना जाये, नयी जगह है अब कहा मिलेगी कोई सब्जी,

काया ने नाहा धो कर एक टाइट लेगी और सूट पहना हुआ था, सोफे पे पड़ा दुपट्टा उठाया और बाहर को चल दी, बाल अभी भी भीगे हुए थे, बालो से पानी किसी मोटी की तरह रिस कर सूट को भिगो दे रहा था.



तुरंत ही काया गैलरी मे थी, लिफ्ट तक गई "ओफ़्फ़्फ़... हो... ये लिफ्ट तो बंद है, क्या yaar क्या जगह है" काया ने तेज़ कदमो से बाजु की सीढ़ी उतरना शुरू कर दिया.

लगभग 3मिनिट मे वो बिल्डिंग के गेट पे खड़ी थी

"अरे कहा गया, अभी तो यही था सब्जी वाला " काया जब तक पहुंची सब्जिवाला जा चूका था.

आस पास कही कोई नहीं था, सिर्फ कुछ मजदूर जो की यहाँ वहा काम मर रहे थे.

"क्या हुआ मैडम जी "

पीछे से आई आवाज़ से काया चौंक सी गई.

पीछे मूड देखा तो पीछे से एक औसत कद काठी का लड़का उसी तरफ बढ़ा चला आ रहा था.

"कककक.... कुछ नहीं "

"आप तो वही मैडम है ना जो कल ही यहाँ आई है " वो लड़का पास आ चूका था.

"आआ... आ. हाँ... कल ही आये है हम लोग "

"मै बाबू हूँ मैडम जी मतलब मेरा नाम बाबू है, यही इसी कमरे मे रहता हूँ, " बाबू ने उस कमरे की ओर इशारा कर दिया
बाबू दिखने मे छोटा सा, दुबला पतला, मासूम, गेहूए रंगत का लड़का था,
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काया उसके इशारे को देख थोड़ा सकते मे आ गई " यानि यही वो लड़का है रात वाला " चिंता की एक लकीर सी काया के माथे पर रेंग गई.

"क्या हुआ मैडम कुछ परेशान सी लग रही है आप? कोई काम है तो बताइये "

बाबू सहज़ लहजे मे ही बोला लेकिन चोर तो काया के मन मे था ना इसलिए वो हकला रही थी भले चोर सफाई से चोरी कर ले लेकिन डर हमेशा होता है किसी ने देखा तो नहीं ना, बस यही चोर काया के मन मे था कही बाबू ने उसे नीचे झाकते देखा तो नहीं ना?

"ससस.... सब्जी वो.. सब्जी लेने आई थी मै " काया ने जल्दी से जबाब दे दिया.

"लो इसमें इतना क्या मैडम जी बताइये क्या लाना है अभी ले आता हूँ, सब्जी वाला यही बाजु ही रहता है "

बाबू के सहज़ व्यवहार से काया का दिल दिमाग़ कुछ शांत हुआ. उसे यकीन हो चला कल रात बाबू ने उसे नहीं देखा था.



"आलू भिंडी, बेंगन, टमाटर.... बला.. बला... ले आना " काया ने फट से बैग से पैसे निकाल बाबू को थमा दिए.

"अभी आया मैडम जी यही रुकना "

बाबू हवा की तरह फुर्र हो गया.

"कितना अच्छा लड़का है " काया मंद मंद मुस्कुरा दी.

लें दोपहर की चिलचिलाती धुप काया को परेशान कर रही थी, इधर उधर देखने पर उसे कमरे की शेड की छाव दिखी, काया ने वही इंतज़ार करना भला समझा.

टाइट लेगी कुर्ती पसीने से सराबोर हो चली थी, काया को पसीना ही इतना आता था, "उफ्फ्फ.... ये गर्मी " काया ने दुपट्टा हटा चेहरा और गार्डन पोछ दुपट्टा कंधे पर एक तरफ लटका लिया,

गर्मी से राहत मिली या नहीं ये तो लता नहीं लेकिन काया की खूबसूरत मादक स्तन की दरार जरूर चमक उठी.

लगभग पांच मिनट हुए ही होंगे की "ये लीजिये मैडम आपकी सब्जी " बाबू सामने एक दम से प्रकट हो गया.

बाबू सामने खड़ी काया को देखता ही रह गया, पसीने से भीग कर कपडे जिस्म से लगभग चिपक ही गए थे, ऊपर से काया चुस्त कपडे ही पहनना पसंद करती थी.
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बाबू का सब्जी वाला हाथ आगे बढ़ गया लेकिन नजरें किसी खास जगह पर टिकी हुई थी,

काया ने देखा बभु के हाथ मे कोई 5 थेलिया था जिसमे अलग अलग सब्जियाँ थी, काया ने आगे हाथ बढ़ा के सब्जी लेनी चाही लेकिन बाबू सब्जी छोड़े तो सही.

काया ने बाबू की नजर का पीछा किया तो सकपका के रह गई, बाबू की नजर काया के सीने पे बानी कामुक दरार पर थी,

उसके पसीने ज़े भीगे स्तन सूट से बाहर झाँक रहे थे, दुप्पटा साइड मे कही अलग दुनिया मे था.

"बाबू... बाबू... लाओ सब्जी दो " काया ने तुरंत दुप्पटा ठीक कर लिया.

"हहह... आए..... हाँ... ये लो सब्जी मैडम जी " बाबू का मुँह ऐसे बना जैसे किसी बच्चे से उसकी लॉलीपॉप छीन ली हो.

ना जाने क्यों काया के चेहरे पे उसकी मासूमियत देख हसीं आ गई.

"चलिए मैडम मै सब्जी पंहुचा देता हूँ, इतना सारा आप कैसे ले जाएगी? " काया ने सहर्ष ऑफर स्वीकार कर लिया

ना जाने क्यों उसे बाबू अच्छा लगा था, मासूम, छोटा सा लड़का.

वैसे भी काया को अकेलापन सा लग रहा था, बाबू से मिल के उसे अच्छा लगा.

"दिखने मे तो छोटे से हो तुम, यहाँ नौकरी करने आ गए " काया ने चलते हुए पूछा

"का करे मैडम जी चाचा हमारे यही काम करते थे तो आ गए हम भी मज़बूरी देख के "

" अच्छा क्या उम्र है तुम्हारी अभी "

"18 का हो गए है मैडम जी, बस हाईट थोड़ा छोटा रह गया " बाबू ऐसे बोला जैसे खुद को बड़ा साबित करना चाह रहा हो.

"हाहाहाहा.... क्या बाबू तुम भी "काया उसकी मासूमियत पे हस पड़

तब तक लिफ्ट आ गई थी.

"आइये मैडम लिफ्ट से चलते है " बाबू लिफ्ट की तरफ बढ़ा

"लिफ्ट नहीं चल रही है, मै सीढ़ियों से ही नीचे आई थी " काया ने भी जानबूझ के मुँह बनाते हुए कहा.

असलम मे इंसान सामने वाले के हिसाब से ही बाट करता है, काया ने भी बाबू की मासूमियत के हिसाब से बात की.

"आई हो दादा.... मतलब आप सीढ़ी चढ़ के आई, आप जैसी शहरी मैडम सीढ़ी से आई " बाबू हैरान था

"इतना भी मत बोलो बाबू... ये शहरी क्या होता है इंसान ही हूँ मै, दूसरी दुनिया से नहीं हूँ, आओ सीढ़ी से चलते है "

"का मैडम... आप दूसरी दुनिया से ही तो हो, हमने तो आप जैसे सुंदर गोर मैडम आजतक नहीं देखी " बाबू मासूमियत मे बोल गया

काया सामने सीढ़ी चढ़ने लगी, पीछे बाबू हाथ मे सब्जी थामे

काया का सीढ़ी चढ़ना था की बाबू की सांसे भी चढ़ने लगी, सामने जन्नता का दरवाजा आपस मे रगड़ खा रहा था.
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काया की बड़ी सुन्दर गांड आपस मे लड़ झगड़ के सीढिया चढ़ रही थी, जैसे काया एक पैर उठती उसकी गांड का एक हिस्सा निकल के बाहर आ जाता, फिर दूसरा

उउउफ्फ्फ.... बाबू ने ये नजारा सपने मे भी नहीं सोचा होगा.

काया इन सब से बेफिक्र चढ़ी जा रही थी.

"और क्या नहीं देखा?" काया फ्लो मे बोल गई

बाबू का कोई जवाब नहीं.

"बताओ ना और क्या नहीं देखा आजतक?" काया स्त्री सुलभ व्यवहार के नाते अपनी और तारीफ सुनना चाहती थी शायद, तारीफ कोई भी करे कैसी भी करे स्त्री को पसंद आता ही है.



पीछे से जवाब ना पर कर काया ने पीछे मूड देखा बाबू मुँह बाये चला आ रहा था, लगता था सुनने समझने की क्षमता खो बैठा है.
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उसकी नजर गया की मदमस्त कर देने वाली गांड पर टिकी हुई थी.

"बाबू... बाबू...." काया ने जोर से कहा

"कक्क.... कक्क..क्या मैडम जी " बाबू चौंक गया, काया के चेहरे पे गुस्सा था

बाबू काया के बराबर आ चूका था,

"कहा ध्यान है तुम्हारा?" काया ने जानबूझ के ये सवाल किया जैसे कुछ जानना चाहती हो, ना जाने क्यों बाबू को परेशानी मे देख उसे अच्छा लग रहा था.

"कक्क... कही तो नहीं " बाबू ने सीधा सा जवाब दिया.

"अच्छा तो मेरी बात का जवाब क्यों नहीं दिया "

"क्या... कक्क... क्या पूछा आपने "

"जाने दो... चलो अब... गर्मी बहुत है " काया अगर बढ़ गई

बाबू वैसे ही उसकी गांड निहारता पीछे पीछे चल पड़ा.

काया जानती थी वो क्या देख रहा है, जानते हुए बहुत उसकी चाल ने एक मादकता आ गई थी.

किसी के मजे ले लेने मे क्या दिक्कत है, वैसे भी काया जानती थी हर मर्द उसकी गांड ही देखता है लेकिन उसे पता नहीं था बाबू जैसे छोटे उम्र के लड़को का भी यही हाल होगा.

खेर... कुछ ही देर मे काया का घर आ गया था.

दरवाजा खुला....

"Wow मैडम जी आपका घर कितना अच्छा है, और एक हम है टुटा फूटा सा झोपडी जैसा कमरा मिला है " बाबू सरल स्वाभाव का था कहा क्या बोलना है पता नहीं बस दिल की बात बोल गया.

शायद काया को यही सरल सुलभ व्यवहार पसंद आया था बाबू का.

"ऐसा नहीं बोलते बाबू, मेहनत से सब मिलता है तुम भी करना"

"सब्जी कहा रख दू मैडम जी "

"वहा किचन मे "

तब तक काया दो glass पानी ले आई, "लो बाबू पी लो "

बाबू एकटक काया को देखे जा रहा था

"क्या देख रहे हो पियो, प्यास नहीं लगी है " काया मुस्कुरा दी

"आप कितनी अच्छी है मैडम जी, वरना हम जैसे को कौन पूछता है, नीचे आरती मैडम रहती है वो तो हमेशा डांट देती है, गुटूक गुटूक गुटूक... बाबू एक सांस मे पानी पी गया.

कौन आरती?

"नीचे वाले फ्लोर पर रहती है, काली मोटी "

"ऐसा नहीं बोलते किसी के लिए बाबू "

काया को जानकारी हुई की ओर भी लोग रहते हे यहाँ

"अच्छा मैडम चलता हुआ मै, ये आपके बाकि पैसे " बाबू ने सब्जी मे से बचे पैसे काया की तरफ बढ़ा दिए.

"रख लो बाबू काम आएंगे " काया मे एक सादगी थी, एक अपनापन था जिस से मिलती वो उसका दीवाना हो जाता उसका व्यवहार ही ऐसा था

बाबू भी प्रभावित था.

"थन्कु मैडम जी "

बाबू चल दिया ...

काया मन ही मन मुस्कुरा उठी, बाबू उसे भला लड़का लगा.



वही दूसरी ओर बैंक मे रोहित और सुमित घंटो फाइल्स मे सर खापा के उठे, 4,5 कप चाय के खाली हो चुके थे.

"सुमित ये तो बहुत बहुत बढ़ा अमाउंट है पुरे 50 लाख रिकवर करने होंगे हमें "

"जी सर "

"और ये कय्यूम खान कौन है बैंक ने अकेले इसे 30लाख दिए है, ये मोटा बकरा है इसे ही पकड़ के पैसे निकाल ले तो काम हो जायेगा "

"सर यही तो मैन समस्या है, कय्यूम खान इस गांव का रसूखदार व्यपारी है, व्यापार के नाम पर 15, 10,5 लाख कर ले लोन उठाया था, अब बोलता है धंधा डूब गया, पैसे देने को राज़ी नहीं है "

सुमित ने तुरंत दुखड़ा रो दिया

"ऐसे कैसे चलेगा सुमित, एक बार बात करनी पड़ेगी ना "

टंग... टंग.... टंग.... मकसूद...

रोहित ने ऑफिस की बेल बजा मकसूद को बुलावा भेजा

"जी... साब..." मकसूद फ़ौरन हाजिर

"तुम तो यहाँ के लोकल आदमी हो, ये कय्यूम को जानते हो?"

"साब कय्यूम नहीं कय्यूम दादा बोलिये "

"ओह शटअप मकसूद, ये दादा क्या होता है?" रोहित ने अफसरगिरी दिखाते हुए तुरंत मकसूद को झाड़ दिया.

"साब इस गांव के दूसरी तरफ कय्यूम खान का ठीकाना है, "

"क्या धंधा करता है वो"

"साब... वो... वो..."

"बोलो भी... दिन भर का समय नहीं है मेरे पास "

"साब वो बुचड़खाना चलता है, मांस का धंधा करता है, बकरा मुर्गा काटने और बेचने का धंधा है उसका "

"हम्म्म्म..... रोहित सोच मे पड़ गया, अब ओखल मे सर दे दिया है तो मुसल से क्या डरना, वैसे भी उसने ऐसे टेड़े आदमियों को हैंडल किया ही था.

"चलो सुमित बात कर के आते है, मकसूद गाड़ी निकालो "

"मममम.... मै... मै... कैसे... मै कैसे जा सकता हूँ " सुमित कुर्सी पर पीछे की ओर जा बैठा जैसे की रोहित ना हो कोई भूत हो.

"क्यों तुम बैंक के कर्मचारी नहीं हो? तुम सैलरी नहीं लेते? तुम्हारी जिम्मेदारी नहीं है?"

"हहह.... है... है... सर लेकिन वो कय्यूम खान का बुचड़ खान बदबू और खून से भरा रहता है, मै शुद्ध शाकाहारी आदमी हूँ सर, एक बार गया था उल्टिया करता वापस आया हूँ"

सुमित ने साफ तौर पर असमर्थता जाता दी.

अब मरता क्या ना करता " चलो मकसूद " रोहित अकेला ही चल पड़ा.

20मिनट मे ही कार कय्यूम के बुचड़खाने के सामने खड़ी थी.

रोहित आस पास के लोगो के कोतुहाल का विषय बना हुआ था, सफ़ेद साफ सुथरे कपडे, टाई पहना शहरी बाबू....

"कय्यूम दादा अंदर है क्या?" मकसूद ने गेट पर खड़े आदमी से पूछा.

"बोलो क्या काम है " गेट लार खड़ा काला भद्दा सा आदमी ने कड़की से सवाल दागा

"बोलो बैंक से नये बड़े साब आये है "

तुरंत ही आदेश का पालन हुआ, गेट खोल दिया गया.

गेट से चल कर कोई 100 मीटर की दुरी पर एक घर नुमा आकृति बनी हुई थी,

पुरे रास्ते बकरे, मुर्गीयो के दबडे, कीचड़ भरा पड़ा था.

मकसूद और रोहित को पैदल ही वहा तक जाना पड़ा. इमारट की दहलीज पर दोनों के पैर थिठक गए.

" आप मकसूद आओ.... कौन बड़े साब आये है इस बार? "

एक भारी कड़क रोबदार आवाज़ ने रोहित के पैर वही थाम लिए.

सामने एक 6फीट का काला बिलकुल काला, भद्दा सा मोटा आदमी खड़ा मुस्कुरा रहा था.

गंदी सी लुंगी पहने, मैली बनियान शायद सफ़ेद बनियान रही होंगी कभी आज खून और मेल से लाल काली हुई पड़ी थी.

काले पसीने से तर गले मे भारी सी सोने की चैन लटक रही थी, उसके नीचे गंदे से, पसीने से भरे बालो का गुच्छा बनियान से बाहर झाँक रहा था.

पसीने की इतनी बदबू गंध ना जाने कब से नहीं नहाया था कय्यूम.

"तुम ही ही कय्यूम खान " रोहित ने हिम्मत दीखते हुए सवाल तलब किया.

"हाँ साब मै ही हूँ कय्यूम दादा" रोबदार भारी आवाज़ गूंज उठी.


पति पत्नी दोनी के पहले दिन मे अंतर था, दोनों ही किसी अनजान शख्स से मिले थे.

अनजान इंसान से मिल के काया के चेहरे पे मुस्कान थी तो वही रोहित के माथे पर पसीना और दिल मे खौफ ने जगह बन ली थी.

क्या रोहित लोन रिकवर कर पायेगा?

रोहित और काया का जीवन जल्द ही बदलने वाला है शायद.

बने रहिये कथा जारी है....
Waah
Mazedar update
Lagta hai kaya bahut logon se chudegi
देखते है काया की माया के कौन कौन दर्शन कर पायेगा ❤️
Sabko kara do darshan
 
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andypndy

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काया की माया


"हाँ मै कय्यूम दादा बताइये, कैसे आना हुआ " एक भारी मर्दाना आवाज़ गूंज उठी.

रोहित के सामने एक राक्षसनुमा इंसान खड़ा था, भीमकाय, लम्बा चौड़ा, काला गच इंसान,

"मै... मममम... मै.... रोहित हूँ बैंक का नया मैनेजर " रोहित ने खुद मे आत्मविश्वास पैदा करते हुए कहा.

हालांकि कय्यूम को देख लेने के बाद ये शब्द रोहित के हलक से निकल पाए बहुत बड़ी बात थी.

"आइये आइये साहब अंदर आइये, इस गरीब की कुटिया मे आइये " कय्यूम तुरंत हाथ जोड़ झुक गया

जैसा दीखता था शायद वैसा नहीं था कय्यूम

या फिर रोहित के बड़े साहब होने की इज़्ज़त बक्श रहा था.

रोहित नाक भो सिकोड़ता कमरे मे दाखिल हो गया

"साब अब धंधा ऐसा है ना क्या करे, आप शहरी बाबू है ये गांव ये बीहड़ यहाँ के धंधे आपको कहा समझ आएंगे " कय्यूम ने एक कुर्सी आगे कर दी और खुद सामने पलंग पर जा धसा.

रोहित ने देखा बाहर के मुक़ाबले अंदर का कमरा ज्यादा अच्छा था, साफ सुथरा सजाया हुआ.

एक बढ़ा सा गद्देदार पलंग था जिस पर कय्यूम फसा हुआ सा बैठा था, सामने गद्देदार सोफा जिस पर रोहित बैठा था.

"बताइये साब क्या सेवा करे आपकी "

जवाब मे रोहित ने फ़ाइल आगे टेबल पर दे मारी " ये क्या है कय्यूम? "

रोहित ने बिना किसी प्रस्तावना के बिना इज़्ज़त के उसका नाम ले लिया था, कोई इज़्ज़त नहीं.

"साब... साब.... " मकसूद ने पीछे से टोकना चाहा.

" जाने दे मकसूद हम गरीब लोग कर्जदार है साब के " कय्यूम ने हाथ के इशारे से महसूद को रोक दिया.

रोहित को अफसरगिरी झाड़नी ही थी, सो झाड ही दी.

"हाँ तो कय्यूम सीधा मुद्दे पे आते है, ये इतने रुपये का क्या किया तुमने?" रोहित सीधा बात करने के मूड मे था.

पीछे मकसूद का दिल धाड धाड़ कर बज रहा था,

"रोहित साब ये क्या बोल रहे है?"

"मकसूद साब के लिए ठंडा पकड़ ला जरा " कय्यूम ने जैसे ऑर्डर मारा हो.

मकसूद बैंक का मुलाजिम था लेकिन कय्यूम के एक ऑर्डर पर "जी दादा अभी... अभी लाया"
लेकिन मकसूद वहा से गया नहीं, ना जाने क्या डर सताए जा रहा था उसे.

"हाँ तो साब आप क्या कह रहे थे " कय्यूम बड़ा ही सबर से भरा इंसान मालूम होता था.

शांत दिल और मुस्कुराहट के साथ उसने रोहित से पूछा.

"क्या किया इतने रुपये का?, कोई हिसाब है? " रोहित वैसे ही अकड़पन मे कय्यूम पर धौंस जमाये जा रहा था.

"साब वो धंधा करने के लिए पैसा लिया था "

"तो पैसे भी तो वापस देने होते है?"

"कहाँ से दू?"

"अरे बड़े अजीब आदमी हो, मै देख रहा हूँ इतना बड़ा घर है, जमीन है, बकरी मुर्गीया है फिर भी कहते हो कहाँ से दू पैसा?" रोहित कुर्सी पर आगे को सरक गया.

"साब मै तो दिवालिया हूँ, ये सब तो मेरी बीवी के पैसे से है, चाहे तो आप चेक कर ले " कय्यूम वैसे ही प्यार और इज़्ज़त से ही बोल रहा था.

रोहित ने कभी ऐसा व्यक्ति नहीं देखा था, वो उस से इतना बेरुखी से पेश आ रहा था और कय्यूम सफाई पे सफाई दिए जा रहा था, जैसा मकसूद ने कहाँ था वैसा तो नहीं ये आदमी?

"लेकिन पैसा लिया है तो चुकाना तो होगा ना " रोहित ने फ़ाइल खोल उसका नाम और उसके नाम पर दिए गए लोन का पन्ना आगे कर दिया.

"साब कागज़ का क्या है, अब पैसा नहीं है तो क्या करू? "

"बेच के चूका दो "

"क्या बेच दू अपनी औरत को बेच दू, तौबा तौबा साब कैसी बात करते हो " कय्यूम पलंग से उठ खड़ा हुआ

"ममम.. मममम.... मेरा वो मतलब नहीं था "

"तो क्या मतलब था साब?" कय्यूम बात का पतंगड़ बना रहा था.

"देखो कय्यूम, तुमने बैंक का पैसा लिया है वापस तो करना पड़ेगा, 5 साल होने को आये एक नया पैसा ब्याज भी नहीं दिया, मजबूरन बैंक को तुम्हारी सम्पत्ति नीलाम करनी पड़ेगी " रोहित ने आधिकारिक बात कह सुनाई.

"लेकिन ये सब मेरा नहीं है, मै तो दिवालिया हूँ ये सब मेरे बाप और बीवी के नाम पर है मेरा कुछ नहीं साब "

रोहित का दिमाग़ अब गरम हो चला था.

"कय्यूम तुम जैसो को मै अच्छे से जनता हु, बैंक का पैसा खा कर बहाने करते हो, पाई पाई निकलवा लूंगा तुमसे "

"आप कही धमकी तो नहीं दे रहे मुझे " कय्यूम का चेहरा अब बिगड़ने लगा था.

मकसूद ठंडा नहीं लाया अभी तक, जा जल्दी ला शहरी बाबू गर्म हो रहे है.

मकसूद अभी भी वही खड़ा था,

"साब.... साब..... आज के लिए बहुत है चलते है " मकसूद ने गजब की हिम्मत दिखाते हुए रोहित का हाथ पकड़ उसे कुर्सी से उठा दिया.

"मकसूद क्या कर रहे हो...."

"साब.... आप नये है, मै समझा दूंगा, माफ़ी कय्यूम दादा, साब नये आये है " मकसूद लगभग रोहित को घसीटाता बाहर ले गया.

आनन फानन मे मकसूद ने रोहित को कार मे बैठा दिया, कार गॉव के बाहर दौड़ा दी.

"मकसूद गाड़ी रोको.... रोको.. गाड़ी.... रोहित चिल्लाया "

चररररररर....करती गांव के कच्चे रास्ते पर जा रुकी.

"ये क्या हरकत थी मकसूद मै बात कर रहा था ना?"

"साब आप समझ नहीं रहे है, वो कय्यूम, दादा है यहाँ का, मै उसी मोहल्ले मे रहता हूँ मै खूब जानता हूँ उसे, मुझे ताज्जुम है की आपकी बदतमीज़ी के बाद भी हम सही सलामत बाहर आ गए "

"क्या बकते हो, तुम मुझे डरा रहे हो "

"डरा नहीं रहा साब जानकारी दे रहा हूँ, आज तक कय्यूम ने इतनी तमीज़ से किसी से बात नहीं की, उसके सामने ऊँची आवाज़ मे कोई बोल भी नहीं सकता "

"तुम मुझे डरपोक समझते हो?"

"कौन कहता है आप डरपोक है, ये आपका काम है साब लेकिन समझदारी भी कोई चीज होती है ना "

मकसूद की बाते कुछ कुछ समझ आ रही थी रोहित को.

"आपको आये अभी 2 दिन भी नहीं हुआ और आप सीधा शेर की मांद मे घुस गए थे, कय्यूम की बहुत इज़्ज़त है यहाँ, बहुत रसूख वाला इंसान है"

"पुलिस वगैरह सब उसी के पैसो पे पलते है, आपको लगता है वो बैंक के पैसे लोटायेगा?"

रोहित मूड कर सडक के साइड खेतो की तरफ चल पड़ा, दिमाग़ सांय सांय कर रहा था, अब उसके दिल मे हल्का हल्का खौफ जगने लगा था, उसके सामने कय्यूम का भयानक चेहरा मोहरा छाने लगा था.

"तालाब मे रह के मगरमछ से बैर नहीं लेती साब, और तरीका सोचिये "

मकसूद की बाते रोहित के दिल दिमाग़ मे अच्छे से बैठ गई थी, ये जयपुर नहीं था की 5,10 लाख का लोन रिकवर कर लिया बन गए शेर. पुलिस और नीलामी की धमकी दी और काम बन गया.

"हाँ.... हम्म्म्म.... मकसूद तुम ठीक कहते हो मुझे ठन्डे दिमाग़ से काम लेना होगा,.

रोहित कार मे जा बैठा, पीछे पीछे मकसूद भी,

"बैंक चले साब?"

रोहित ने घड़ी देखी, 5 बज गए थे " घर ही ले लो बैंक मे क्या काम अब "

कार कच्चे रास्ते पर दौड़ चली.

5मिनट बाद ही " मकसूद.... रोको... रोको.... जरा "

"क्या हुआ साब?"

"वो सामने से एक बोत्तल ले आओ " रोहित ने एक दुकान की तरफ इशारा कर दिया

सामने रोड के किनारे दुकान थी " देसी वो अंग्रेजी शराब की दुकान "

"ये लो पैसे, और ballantine ले आना " रोहित ने पैसे मकसूद को थमा दिया

"सा....साब ये कौनसी चीज है "

"दारू है yaar उसका नाम है "

"ये तो कोई विलायती जान पड़ती है, यहाँ नहीं मिलेगी " माकसूद ने 3000rs देख अंदाजा लगा लिया था रोहित कोई महंगी दारू मंगा रहा है.

"तो क्या मिलेगा?"

"700 रूपए तक मे मिल जाएगी कोई अंग्रेजी"

"ठीक है वही ले आ " रोहित आमतौर पे नहीं पिता था बस कभी कभी ज्यादा वर्क लोड होने पर पी लेता था, आज वैसे ही उसके दिमाग़ का दही हो ही चूका था पहले दिन ही नाकामी हाथ लगी थी.

मकसूद जाने लगा.

"अच्छा सुनो अपने लिए भी कुछ ले लेना "

"जनन.... जी... जी... साब " मकसूद का चेहरा खील उठा पहली बार किसी साब मे उसे दारू को पूछा था.

थोड़ी ही देर मे, मकसूद एक विदेशी और एक देसी दारू के साथ कार मे मौजूद था.

रोहित ने बोत्तल को देखा, एक ठंडी सांस भरी " चलो मकसूद घर छोड़ दो आज सर भारी है थोड़ा "

चररररर...... सससससरर..... कार धूल उड़ाती दौड़ पड़ी.

शाम 6. 00pm

टिंग टोंग

फ्लैट नंबर 51 की डोर बेल बज उठी.

काया दौड़ती हुई सामने प्रकट थी.

"कैसा रहा रोहित आपका पहला दिन?" काया ने रोहित का बेग और हाथ मे थमी थैली सँभालते हुए कहाँ.

"क्या खाक दिन काया, बहुत चैलेंज है मेरे लिए यहाँ, पूरा बैंक डूबा हुआ है " रोहित धम्म से वही सोफे पर बैठ गया.

"क्या हुआ रोहित बहुत परेशान लग रहे हो " काया पानी का glass ले आई थी,

रोहित एक सांस मे गटागट पानी पी गया "हम्म्म्म काया नौकरी ऐसे ही होती है तरक्की के साथ जिम्मेदारी भी आ जाती है "

काया कुछ नहीं बोली, सीधा किचन मे चली गई.

बाहर रोहित फ्रेश हो सोफे पर धसा पेग बना चूका था,

काया साइड किचन मे खाना बना रही थी,

रोहित एक के बाद एक पेग पिए जा रहा था, सामने टीवी चल रही थी लेकिन उसका ध्यान उधर कतई नहीं था.

"क्या हुआ रोहित इतना क्यों पी रहे हो " याकायाक सामने काया खड़ी थी खूबसूरत white गाउन पहने, पीछे से आती रौशनी मे काया का जिस्म साफ नुमाया हो रहा था.
काया का जिस्म इतना भरा था की गाउन उसके जिस्म से चिपका बदन का एक एक हिस्सा उजागर कर रहा था, काया आम तौर पे घर पे ब्रा पहनना सही नहीं समझती थी.
नतीजा boobs की खूसूरती उभर के रोहित को ललचा रही थी, गाऊन के कपडे से झाकते निप्पल रोहित को बुला रहे थे.
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ना जाने रोहित को क्या हुआ, सीधा उठ खड़ा हुआ काया को अपने आगोश मे भर लिया.

"क्या कर रहे हो रोहित, छोडो, बहुत काम है अभी " काया ने खुद को छुड़ाना चाहा.

तब तक देर हो चुकी थी, रोहित के होंठ काया के होंठ से जा मिले थे,

शायद दारू का शुरूर था, ऊपर से काया का मादक मदमस्त जिस्म.

रोहित लगातार काया के होंठो को चूसे जा रहा था.

गूगगग.... गु.... गु.... रोहित रुको.. "

लेकिन रोहित कहाँ सुनने वाला था.

रोहित हमेशा जल्दी मे होता रहा लेकिन जैसे आज उसके जल्दीपने मे गुस्सा भी घुला हुआ था.

काया साफ महसूस कर सकती थी,

रोहित किसी जानवर की तरह काया के होंठ चबा रहा था, काया दर्द से परेशान थी, इस चुम्बन मे प्यार तो कतई नहीं था बिलकुल भी नहीं.

"रोहित..... रोहित.... क्या हो गया है तुम्हे " काया ने खुद को छुड़ाते हुए कहाँ

"तुम बहुत सुन्दर ही मेरी जान " रोहित ने काया को धकेलते हुए वही सोफे पर लेटा दिया,

काया कुछ समझ पाती की रोहित का पजामा नीचे धरती चाट रहा था, तुरंत ही काया के पैर फैला रोहित जंग-ऐ -मैदान मे कूद पड़ा.

काया ने लाल कलर की पैंटी पहनी थी, एक पतली सी पट्टी काया की खूबसूरत फूली हुई चुत को ढके हुए थी जिसे रोहित ने ऊँगली से साइड कर अपना औसत लम्बाई का लंड अंदर ठेल दिया.

"आआहहहह.... रोहित.... उउउफ्फ्फ...." काया बिलकुल भी उत्तेजित नहीं थी, बस समझ नहीं पा रही थी रोहित कर क्या रहा है.

रोहित को कहाँ परवाह थी, वो कभी सम्भोग मे कोई भूमिका नहीं निभाता था, बस सीधा लंड को चुत मे डाल देने को ही sex समझता था.

आज भी यही किया.. धच धच.... फच.... करता लंड ठेलने लगा,
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दारू के नशे से लंड मे वो कठोरता भी नहीं जान पडती थी.

पहले सम्भोग मे प्यार था, उतावलापन हुआ करता था, हालांकि आज भी जल्दी मे था रोहित लेकिन प्यार कही नहीं था, रोहित का चेहरा ऐसा था जैसे गुस्से मे हो.

"काया आजी छोडूंगा नहीं तुम्हे , ले और ले..... फच... फच.....
देखो मै किसी से नहीं डरता, पाई पाई वसूल कर लूंगा.
रोहित नशे और गुस्से मे ना जाने क्या बड़बड़ा रहा था काया अनजान थी.
रोहित पूरी ताकत से धक्के मार रहा था, जो की काया की चुत से रगड़ खाता सा लग रहा था.

उउउफ्फ्फ..... रोहित.... काया भी हथियार डाल चुकी थी, रोहित की मर्ज़ी ही उसकी मर्ज़ी हुआ करती थी, उसने भी अपने जिस्म को ढीला छोड़ दिया.

काया का जिस्म रिस्पांस करने लगा था.

परन्तु रोहित पहले से बहुत तेज़ हो चूका था.

"आअह्ह्ह..... रोहित आराम से धीरे.... आअह्ह्ह...."

काया के मुँह से ये शब्द निकले ही थे की फच... फच... फचक.... करता रोहित झड़ गया, रोहित sex के वक़्त थोड़ी समझदारी ये दिखता था की वीर्य निकलने से पहले लंड बाहर निकाल लेता था, आज भी वही किया, रोहित के लंड ने 2बून्द वीर्य काया के गाउन पर टपका दिया.

जयपुर मे रोहित कंडोम का इस्तेमाल करता था, लेकिन अभी तक उसे ऐसा मौका नहीं मिला था वो अभी बच्चा नहीं चाहते थे.

" हम्म्म्मफ़्फ़्फ़.... Hummffff.... काया " रोहित पूरी तरह निढाल साइड मे बैठ गया, उसके चेहरे पे अब शांति थी, गुस्से का नामोनिशान नहीं था.

काया भी एक अच्छी बीवी की तरह उठ बैठी, "क्या हुआ है रोहित आज "

काया ने प्यार से रोहित के सर पर हाथ फेर पूछा.

रोहित कितना लकी था जो उसे ऐसी बीवी मिली थी, ना कोई शिकायत, ना कोई गुस्सा बस प्यार, पति की मर्ज़ी ही खुद की मर्ज़ी मान लेती थी.

"कुछ नहीं काया वो... वो... बैंक मे आज...." रोहित ने कय्यूम के साथ का किस्सा कह सुनाया.

"लो इतनी सी बात पर ऐसे गुस्से मे बैठे थे, हो जायेगा रोहित " काया की आवाज़ मे जादू सा था बोलती ही इतना मीठा थी.

डिनर खत्म कर दोनों बिस्तर के हवाले हो गए.

रात के 11 बज गए थे.

रोहित खर्राटे भर रहा था तो वही काया की आँखों से नींद ओझल थी.

शाम को हुए वाक्य से उसका ध्यान ही नहीं हट रहा था, प्यार की एक कमी सी खल रही थी जैसे.

रोहित का ये रूप आज से पहले उसने कभी नहीं देखा था, गुस्से मे उसका लंड अंदर बाहर करना बर्दाश्त के बाहर था.

काया के जिस्म मे झुरझुरी सी चल रही थी, आधे अधूरे सम्भोग से उसका जिस्म जल रहा था, करवटे बदलती काया को अपनी जांघो के बीच कुछ चुभता सा महसूस हो रहा था.

काया ने जाँचना चाहा तो पाया की पैंटी का बीच का हिस्सा कड़क, और आस पास गिलापन है. काया की ऊँगली पैंटी के बीच उभरी गीली लकीर पे जा लगी, जैसे कुछ टटोल रही हो, आअह्ह्ह.... ऊँगली उस नाजुक अंग पे छूते ही काया के मुँह से कामुक आह फुट पड़ी, काया को कुछ सुकून सा अहसास हुआ, आज से पहले उसने कभी ऐसा नहीं किया था, गिलापन काया को परेशान कर रहा था उसने पैंटी को साइड किया तो पाया चुत से एक पतली तार नुमा लकीर पैंटी के साथ खींचती चली गई,

उउउफ्फ्फ..... ये क्या? काया खुद हैरान थी, उसकी उंगलियां जैसे उसके काबू मे नहीं थी, नंगी फूली हुई चिकनी चुत लार से भीगी ऊँगली कुरेदने लगी, आआहहहह..... कमाल का अहसास था, जो बर्दाश्त भी नहीं हो रहा था काया की जाँघे आपस मे चिपक गई, या फिर काया खुद से शर्मा गई थी.

काया को अच्छा तो लगा था, लेकिन शायद मन गवाह नहीं दे रहा था, नींद आँखों से पूरी तरह ओझल थी
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कैसे नींद आती भला, काया उठ के बालकनी मे चली आई, ठंडी हवा के थपेड़े सुकून दे रहे थे फिर भी चुभन और गिलापन बारकरारा था, काया ने गाउन हल्का सा ऊपर कर हाथ अंदर डाल पैंटी को नीचे सरकाते हुए खोल दिया.
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लाल रंग की पैंटी पसीने और चुत रस से सरोबर थी.

"उउउफ्फ्फ..... ये पसीना " काया कभी कभी अपने इस पसीने से परेशान सी हो जाया करती थी.

हालांकि अब ठंडी हवा जांघो के बीच सुकून दे रही थी, लेकिन जिस्म मे सुकून नहीं था.

काया खुद मे खोई हुई थी की अचानक उसके हाथ से पैंटी छूट कर बालकनी से नीचे जा गिरी...

"ओह... गॉड... ये... ये क्या हुआ " काया हक्की बक्की खड़ी नीचे देख ही रही थी की नीचे कमरे का गेट खुल गया, लाइट की रौशनी से कमरे के आगे का हिस्सा जगमगा गया.

कल रात भी इसी टाइम पर बाबू बाहर आया था, तो क्या.. आज... आज... भी काया का दिल धाड धाड़ कर बज रहा था, अब तक उसकी लाल पैंटी जमीन चाट चुकी थी.

नीचे बाबू कमरे के बाहर तक आ चूका था, काया के जहन मे कल रात की घटना दौड़ गई, कल अनजाने मे हुआ था आज काया को वापस चले जाना चाहिए था,

लेकिन ऐसा नहीं हुआ, काया का जिस्म पहले से गर्म था अब उस पल के इंतज़ार मे सुलगने सा लगा था.

जिस बात का इंतज़ार था हुआ भी वही, बाबू कुछ दुरी पर जा कर पजामा नीचे कर खड़ा हो गया,

आज ऐसे खड़ा था की रौशनी मे लंड जगमगा रहा था,
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आज उसका आकर प्रकार साफ नजर आ रहा था. काया उस अंग को देख हैरान थी, बाबू मासूम सा नजर आता था, छोटा बच्चा दीखता था लेकिन, उसका ये.... ये.... तो कुछ बड़ा सा लग रहा है.

हालांकि इतनी ऊपर से साइज का अंदाजा लगा पाना मुश्किल ही था, पर क्या करे काम की इच्छा पाले इंसान को कामुक अंग साफ नजर आते है, काया की नजर बरबस बाबू के लंड पर ठीठक गई की तभी.....

ससससससरररर....... पप्पापिस्स्स...... तेज़ धार फुट पड़ी दूर तक, काया धार का पीछा करती गई तो पाया की जिस जगह बाबू का पेशाब गिर रहा है उससे कुछ दुरी पर ही उसकी लाल पसीने से भीगी पैंटी पेशाब के छिंटो का आनन्द उठा रही है.

बाबू मस्ती मे मस्त खुली हवा मे लंड निकाले मूत रहा था,

ऊपर काया जैसे बूत बनी हुई थी कभी अपनी पैंटी को देखती तो कभी बाबू के लंड को.

सुंदर चिकना, लम्बा सा बड़ा ही मनमोहक प्रतीत होता था.

काया अभी अभी नाकाम सम्भोग से गुजरी थी, ये पल किसी भी काम पिपशु स्त्री के लिए सुख देने वाला ही था.

काया भी उस दृश्य को देखती रही ना जाने क्या उत्तेजना थी इसमें.

कुछ ही पलो मे बाबू ने काम खत्म कर पजामा उठाना चाहा की, उसकी नजर सामने पड़ी, सामने कुछ तो था नीचे जमीन पे पड़ा हुआ.

बाबू पजामा कस नजदीक जाने लगा.

"ओह... गॉड.... उफ्फ्फ.... नहीं... बाबू plz नहीं " काया मन ही मन भगवान से खेर मना रही थी.

लेकिन भगवान तो खुद मजे लेने के मूड मे बैठा था, बाबू दो कदम चल उस कपडे को उठा लिया.

काया ये सब होते देख रही थी, एक बाबू ही तो था जिस से वो घुली मिली थी, क्या सोचेगा मेरे बारे मे उफ्फ्फ्फ़....

बाबू ने पैंटी उठा ली, आस पास देखा, कोई नहीं था अलट पलट देखा, ना जाने क्या देख रहा था.

ना जाने बाबू को क्या सूझी पैंटी को अपनी नाक के नजदीक ले गया सससन्नन्नफ्फफ्फ्फ़..... एक लम्बी सांस खिंच फिर इधर उधर देखा.

"छी... ईई..... ये बाबू क्या कर रहा है " काया के लिए ये घृणा से भरा था, उसके पति ने भी आजतक ऐसा नहीं किया था,

काया को याद आया शादी के बाद रोहित ने एक दो बार उसकी चुत चाटने की कोशिश जरूर की थी, लेकिन कभी कर ना सका, उसका कहना था काया तुम्हे पसीना बहुत आता है, स्मेल आती है तुम्हारी उस से.

उसके बाद काया ने भी कभी इच्छा नहीं की वो जानती भी नहीं थी की सम्भोग मे ऐसा भी होता है.

खेर बाबू की हरकत से काया का मन घिन्न तो हुआ लेकिन एक अजीब से लहर भी नाभि से जांघो के बीच दौड़ पड़ी, जैसे किसी ने नंगा तार छुवा दिया हो.

नीचे बाबू झट से पैंटी को जेब मे रख उल्टे पैर भाग खड़ा हुआ "bhaddakkkk" से कमरे का दरवाजा बंद हो गया.

सांय... साय..... सी हवा काया के जिस्म को पार कर जा रही थी, माथे पर पसीना था.

"हे भगवान अब क्या होगा, बाबू से कभी मिलना हुआ तो कैसे आंख मिलाएगी "

काया बैडरूम की ओर बढ़ चली, पैर और जांघो का ऊपरी हिस्सा भारी था.

"बाबू को कैसे मालूम पड़ेगा की किसकी है? बहुत लोग काम करते है, नीचे के फ्लोर पर भी कोई रहता ही होगा,. मै बेवजह ही चिंता कर रही हूँ " काया ने खुद की चिंता को अपने तर्क से समाप्त कर लिया था.

बेचैन दिल और जलता जिस्म लिए काया बिस्तर मे समा गई.

हर भारतीय नारी की यही कहानी है, सम्भोग मे संतुष्टि किस्मत से ही मिलती है,

नाकाम सम्भोग ही हर नारी के जीवन का हिस्सा है, तो शिकायत कैसी?

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malikarman

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काया की माया


"हाँ मै कय्यूम दादा बताइये, कैसे आना हुआ " एक भारी मर्दाना आवाज़ गूंज उठी.

रोहित के सामने एक राक्षसनुमा इंसान खड़ा था, भीमकाय, लम्बा चौड़ा, काला गच इंसान,

"मै... मममम... मै.... रोहित हूँ बैंक का नया मैनेजर " रोहित ने खुद मे आत्मविश्वास पैदा करते हुए कहा.

हालांकि कय्यूम को देख लेने के बाद ये शब्द रोहित के हलक से निकल पाए बहुत बड़ी बात थी.

"आइये आइये साहब अंदर आइये, इस गरीब की कुटिया मे आइये " कय्यूम तुरंत हाथ जोड़ झुक गया

जैसा दीखता था शायद वैसा नहीं था कय्यूम

या फिर रोहित के बड़े साहब होने की इज़्ज़त बक्श रहा था.

रोहित नाक भो सिकोड़ता कमरे मे दाखिल हो गया

"साब अब धंधा ऐसा है ना क्या करे, आप शहरी बाबू है ये गांव ये बीहड़ यहाँ के धंधे आपको कहा समझ आएंगे " कय्यूम ने एक कुर्सी आगे कर दी और खुद सामने पलंग पर जा धसा.

रोहित ने देखा बाहर के मुक़ाबले अंदर का कमरा ज्यादा अच्छा था, साफ सुथरा सजाया हुआ.

एक बढ़ा सा गद्देदार पलंग था जिस पर कय्यूम फसा हुआ सा बैठा था, सामने गद्देदार सोफा जिस पर रोहित बैठा था.

"बताइये साब क्या सेवा करे आपकी "

जवाब मे रोहित ने फ़ाइल आगे टेबल पर दे मारी " ये क्या है कय्यूम? "

रोहित ने बिना किसी प्रस्तावना के बिना इज़्ज़त के उसका नाम ले लिया था, कोई इज़्ज़त नहीं.

"साब... साब.... " मकसूद ने पीछे से टोकना चाहा.

" जाने दे मकसूद हम गरीब लोग कर्जदार है साब के " कय्यूम ने हाथ के इशारे से महसूद को रोक दिया.

रोहित को अफसरगिरी झाड़नी ही थी, सो झाड ही दी.

"हाँ तो कय्यूम सीधा मुद्दे पे आते है, ये इतने रुपये का क्या किया तुमने?" रोहित सीधा बात करने के मूड मे था.

पीछे मकसूद का दिल धाड धाड़ कर बज रहा था,

"रोहित साब ये क्या बोल रहे है?"

"मकसूद साब के लिए ठंडा पकड़ ला जरा " कय्यूम ने जैसे ऑर्डर मारा हो.

मकसूद बैंक का मुलाजिम था लेकिन कय्यूम के एक ऑर्डर पर "जी दादा अभी... अभी लाया"
लेकिन मकसूद वहा से गया नहीं, ना जाने क्या डर सताए जा रहा था उसे.

"हाँ तो साब आप क्या कह रहे थे " कय्यूम बड़ा ही सबर से भरा इंसान मालूम होता था.

शांत दिल और मुस्कुराहट के साथ उसने रोहित से पूछा.

"क्या किया इतने रुपये का?, कोई हिसाब है? " रोहित वैसे ही अकड़पन मे कय्यूम पर धौंस जमाये जा रहा था.

"साब वो धंधा करने के लिए पैसा लिया था "

"तो पैसे भी तो वापस देने होते है?"

"कहाँ से दू?"

"अरे बड़े अजीब आदमी हो, मै देख रहा हूँ इतना बड़ा घर है, जमीन है, बकरी मुर्गीया है फिर भी कहते हो कहाँ से दू पैसा?" रोहित कुर्सी पर आगे को सरक गया.

"साब मै तो दिवालिया हूँ, ये सब तो मेरी बीवी के पैसे से है, चाहे तो आप चेक कर ले " कय्यूम वैसे ही प्यार और इज़्ज़त से ही बोल रहा था.

रोहित ने कभी ऐसा व्यक्ति नहीं देखा था, वो उस से इतना बेरुखी से पेश आ रहा था और कय्यूम सफाई पे सफाई दिए जा रहा था, जैसा मकसूद ने कहाँ था वैसा तो नहीं ये आदमी?

"लेकिन पैसा लिया है तो चुकाना तो होगा ना " रोहित ने फ़ाइल खोल उसका नाम और उसके नाम पर दिए गए लोन का पन्ना आगे कर दिया.

"साब कागज़ का क्या है, अब पैसा नहीं है तो क्या करू? "

"बेच के चूका दो "

"क्या बेच दू अपनी औरत को बेच दू, तौबा तौबा साब कैसी बात करते हो " कय्यूम पलंग से उठ खड़ा हुआ

"ममम.. मममम.... मेरा वो मतलब नहीं था "

"तो क्या मतलब था साब?" कय्यूम बात का पतंगड़ बना रहा था.

"देखो कय्यूम, तुमने बैंक का पैसा लिया है वापस तो करना पड़ेगा, 5 साल होने को आये एक नया पैसा ब्याज भी नहीं दिया, मजबूरन बैंक को तुम्हारी सम्पत्ति नीलाम करनी पड़ेगी " रोहित ने आधिकारिक बात कह सुनाई.

"लेकिन ये सब मेरा नहीं है, मै तो दिवालिया हूँ ये सब मेरे बाप और बीवी के नाम पर है मेरा कुछ नहीं साब "

रोहित का दिमाग़ अब गरम हो चला था.

"कय्यूम तुम जैसो को मै अच्छे से जनता हु, बैंक का पैसा खा कर बहाने करते हो, पाई पाई निकलवा लूंगा तुमसे "

"आप कही धमकी तो नहीं दे रहे मुझे " कय्यूम का चेहरा अब बिगड़ने लगा था.

मकसूद ठंडा नहीं लाया अभी तक, जा जल्दी ला शहरी बाबू गर्म हो रहे है.

मकसूद अभी भी वही खड़ा था,

"साब.... साब..... आज के लिए बहुत है चलते है " मकसूद ने गजब की हिम्मत दिखाते हुए रोहित का हाथ पकड़ उसे कुर्सी से उठा दिया.

"मकसूद क्या कर रहे हो...."

"साब.... आप नये है, मै समझा दूंगा, माफ़ी कय्यूम दादा, साब नये आये है " मकसूद लगभग रोहित को घसीटाता बाहर ले गया.

आनन फानन मे मकसूद ने रोहित को कार मे बैठा दिया, कार गॉव के बाहर दौड़ा दी.

"मकसूद गाड़ी रोको.... रोको.. गाड़ी.... रोहित चिल्लाया "

चररररररर....करती गांव के कच्चे रास्ते पर जा रुकी.

"ये क्या हरकत थी मकसूद मै बात कर रहा था ना?"

"साब आप समझ नहीं रहे है, वो कय्यूम, दादा है यहाँ का, मै उसी मोहल्ले मे रहता हूँ मै खूब जानता हूँ उसे, मुझे ताज्जुम है की आपकी बदतमीज़ी के बाद भी हम सही सलामत बाहर आ गए "

"क्या बकते हो, तुम मुझे डरा रहे हो "

"डरा नहीं रहा साब जानकारी दे रहा हूँ, आज तक कय्यूम ने इतनी तमीज़ से किसी से बात नहीं की, उसके सामने ऊँची आवाज़ मे कोई बोल भी नहीं सकता "

"तुम मुझे डरपोक समझते हो?"

"कौन कहता है आप डरपोक है, ये आपका काम है साब लेकिन समझदारी भी कोई चीज होती है ना "

मकसूद की बाते कुछ कुछ समझ आ रही थी रोहित को.

"आपको आये अभी 2 दिन भी नहीं हुआ और आप सीधा शेर की मांद मे घुस गए थे, कय्यूम की बहुत इज़्ज़त है यहाँ, बहुत रसूख वाला इंसान है"

"पुलिस वगैरह सब उसी के पैसो पे पलते है, आपको लगता है वो बैंक के पैसे लोटायेगा?"

रोहित मूड कर सडक के साइड खेतो की तरफ चल पड़ा, दिमाग़ सांय सांय कर रहा था, अब उसके दिल मे हल्का हल्का खौफ जगने लगा था, उसके सामने कय्यूम का भयानक चेहरा मोहरा छाने लगा था.

"तालाब मे रह के मगरमछ से बैर नहीं लेती साब, और तरीका सोचिये "

मकसूद की बाते रोहित के दिल दिमाग़ मे अच्छे से बैठ गई थी, ये जयपुर नहीं था की 5,10 लाख का लोन रिकवर कर लिया बन गए शेर. पुलिस और नीलामी की धमकी दी और काम बन गया.

"हाँ.... हम्म्म्म.... मकसूद तुम ठीक कहते हो मुझे ठन्डे दिमाग़ से काम लेना होगा,.

रोहित कार मे जा बैठा, पीछे पीछे मकसूद भी,

"बैंक चले साब?"

रोहित ने घड़ी देखी, 5 बज गए थे " घर ही ले लो बैंक मे क्या काम अब "

कार कच्चे रास्ते पर दौड़ चली.

5मिनट बाद ही " मकसूद.... रोको... रोको.... जरा "

"क्या हुआ साब?"

"वो सामने से एक बोत्तल ले आओ " रोहित ने एक दुकान की तरफ इशारा कर दिया

सामने रोड के किनारे दुकान थी " देसी वो अंग्रेजी शराब की दुकान "

"ये लो पैसे, और ballantine ले आना " रोहित ने पैसे मकसूद को थमा दिया

"सा....साब ये कौनसी चीज है "

"दारू है yaar उसका नाम है "

"ये तो कोई विलायती जान पड़ती है, यहाँ नहीं मिलेगी " माकसूद ने 3000rs देख अंदाजा लगा लिया था रोहित कोई महंगी दारू मंगा रहा है.

"तो क्या मिलेगा?"

"700 रूपए तक मे मिल जाएगी कोई अंग्रेजी"

"ठीक है वही ले आ " रोहित आमतौर पे नहीं पिता था बस कभी कभी ज्यादा वर्क लोड होने पर पी लेता था, आज वैसे ही उसके दिमाग़ का दही हो ही चूका था पहले दिन ही नाकामी हाथ लगी थी.

मकसूद जाने लगा.

"अच्छा सुनो अपने लिए भी कुछ ले लेना "

"जनन.... जी... जी... साब " मकसूद का चेहरा खील उठा पहली बार किसी साब मे उसे दारू को पूछा था.

थोड़ी ही देर मे, मकसूद एक विदेशी और एक देसी दारू के साथ कार मे मौजूद था.

रोहित ने बोत्तल को देखा, एक ठंडी सांस भरी " चलो मकसूद घर छोड़ दो आज सर भारी है थोड़ा "

चररररर...... सससससरर..... कार धूल उड़ाती दौड़ पड़ी.

शाम 6. 00pm

टिंग टोंग

फ्लैट नंबर 51 की डोर बेल बज उठी.

काया दौड़ती हुई सामने प्रकट थी.

"कैसा रहा रोहित आपका पहला दिन?" काया ने रोहित का बेग और हाथ मे थमी थैली सँभालते हुए कहाँ.

"क्या खाक दिन काया, बहुत चैलेंज है मेरे लिए यहाँ, पूरा बैंक डूबा हुआ है " रोहित धम्म से वही सोफे पर बैठ गया.

"क्या हुआ रोहित बहुत परेशान लग रहे हो " काया पानी का glass ले आई थी,

रोहित एक सांस मे गटागट पानी पी गया "हम्म्म्म काया नौकरी ऐसे ही होती है तरक्की के साथ जिम्मेदारी भी आ जाती है "

काया कुछ नहीं बोली, सीधा किचन मे चली गई.

बाहर रोहित फ्रेश हो सोफे पर धसा पेग बना चूका था,

काया साइड किचन मे खाना बना रही थी,

रोहित एक के बाद एक पेग पिए जा रहा था, सामने टीवी चल रही थी लेकिन उसका ध्यान उधर कतई नहीं था.

"क्या हुआ रोहित इतना क्यों पी रहे हो " याकायाक सामने काया खड़ी थी खूबसूरत white गाउन पहने, पीछे से आती रौशनी मे काया का जिस्म साफ नुमाया हो रहा था.
काया का जिस्म इतना भरा था की गाउन उसके जिस्म से चिपका बदन का एक एक हिस्सा उजागर कर रहा था, काया आम तौर पे घर पे ब्रा पहनना सही नहीं समझती थी.
नतीजा boobs की खूसूरती उभर के रोहित को ललचा रही थी, गाऊन के कपडे से झाकते निप्पल रोहित को बुला रहे थे.
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ना जाने रोहित को क्या हुआ, सीधा उठ खड़ा हुआ काया को अपने आगोश मे भर लिया.

"क्या कर रहे हो रोहित, छोडो, बहुत काम है अभी " काया ने खुद को छुड़ाना चाहा.

तब तक देर हो चुकी थी, रोहित के होंठ काया के होंठ से जा मिले थे,

शायद दारू का शुरूर था, ऊपर से काया का मादक मदमस्त जिस्म.

रोहित लगातार काया के होंठो को चूसे जा रहा था.

गूगगग.... गु.... गु.... रोहित रुको.. "

लेकिन रोहित कहाँ सुनने वाला था.

रोहित हमेशा जल्दी मे होता रहा लेकिन जैसे आज उसके जल्दीपने मे गुस्सा भी घुला हुआ था.

काया साफ महसूस कर सकती थी,

रोहित किसी जानवर की तरह काया के होंठ चबा रहा था, काया दर्द से परेशान थी, इस चुम्बन मे प्यार तो कतई नहीं था बिलकुल भी नहीं.

"रोहित..... रोहित.... क्या हो गया है तुम्हे " काया ने खुद को छुड़ाते हुए कहाँ

"तुम बहुत सुन्दर ही मेरी जान " रोहित ने काया को धकेलते हुए वही सोफे पर लेटा दिया,

काया कुछ समझ पाती की रोहित का पजामा नीचे धरती चाट रहा था, तुरंत ही काया के पैर फैला रोहित जंग-ऐ -मैदान मे कूद पड़ा.

काया ने लाल कलर की पैंटी पहनी थी, एक पतली सी पट्टी काया की खूबसूरत फूली हुई चुत को ढके हुए थी जिसे रोहित ने ऊँगली से साइड कर अपना औसत लम्बाई का लंड अंदर ठेल दिया.

"आआहहहह.... रोहित.... उउउफ्फ्फ...." काया बिलकुल भी उत्तेजित नहीं थी, बस समझ नहीं पा रही थी रोहित कर क्या रहा है.

रोहित को कहाँ परवाह थी, वो कभी सम्भोग मे कोई भूमिका नहीं निभाता था, बस सीधा लंड को चुत मे डाल देने को ही sex समझता था.

आज भी यही किया.. धच धच.... फच.... करता लंड ठेलने लगा,
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दारू के नशे से लंड मे वो कठोरता भी नहीं जान पडती थी.

पहले सम्भोग मे प्यार था, उतावलापन हुआ करता था, हालांकि आज भी जल्दी मे था रोहित लेकिन प्यार कही नहीं था, रोहित का चेहरा ऐसा था जैसे गुस्से मे हो.

"काया आजी छोडूंगा नहीं तुम्हे , ले और ले..... फच... फच.....
देखो मै किसी से नहीं डरता, पाई पाई वसूल कर लूंगा.
रोहित नशे और गुस्से मे ना जाने क्या बड़बड़ा रहा था काया अनजान थी.
रोहित पूरी ताकत से धक्के मार रहा था, जो की काया की चुत से रगड़ खाता सा लग रहा था.

उउउफ्फ्फ..... रोहित.... काया भी हथियार डाल चुकी थी, रोहित की मर्ज़ी ही उसकी मर्ज़ी हुआ करती थी, उसने भी अपने जिस्म को ढीला छोड़ दिया.

काया का जिस्म रिस्पांस करने लगा था.

परन्तु रोहित पहले से बहुत तेज़ हो चूका था.

"आअह्ह्ह..... रोहित आराम से धीरे.... आअह्ह्ह...."

काया के मुँह से ये शब्द निकले ही थे की फच... फच... फचक.... करता रोहित झड़ गया, रोहित sex के वक़्त थोड़ी समझदारी ये दिखता था की वीर्य निकलने से पहले लंड बाहर निकाल लेता था, आज भी वही किया, रोहित के लंड ने 2बून्द वीर्य काया के गाउन पर टपका दिया.

जयपुर मे रोहित कंडोम का इस्तेमाल करता था, लेकिन अभी तक उसे ऐसा मौका नहीं मिला था वो अभी बच्चा नहीं चाहते थे.

" हम्म्म्मफ़्फ़्फ़.... Hummffff.... काया " रोहित पूरी तरह निढाल साइड मे बैठ गया, उसके चेहरे पे अब शांति थी, गुस्से का नामोनिशान नहीं था.

काया भी एक अच्छी बीवी की तरह उठ बैठी, "क्या हुआ है रोहित आज "

काया ने प्यार से रोहित के सर पर हाथ फेर पूछा.

रोहित कितना लकी था जो उसे ऐसी बीवी मिली थी, ना कोई शिकायत, ना कोई गुस्सा बस प्यार, पति की मर्ज़ी ही खुद की मर्ज़ी मान लेती थी.

"कुछ नहीं काया वो... वो... बैंक मे आज...." रोहित ने कय्यूम के साथ का किस्सा कह सुनाया.

"लो इतनी सी बात पर ऐसे गुस्से मे बैठे थे, हो जायेगा रोहित " काया की आवाज़ मे जादू सा था बोलती ही इतना मीठा थी.

डिनर खत्म कर दोनों बिस्तर के हवाले हो गए.

रात के 11 बज गए थे.

रोहित खर्राटे भर रहा था तो वही काया की आँखों से नींद ओझल थी.

शाम को हुए वाक्य से उसका ध्यान ही नहीं हट रहा था, प्यार की एक कमी सी खल रही थी जैसे.

रोहित का ये रूप आज से पहले उसने कभी नहीं देखा था, गुस्से मे उसका लंड अंदर बाहर करना बर्दाश्त के बाहर था.

काया के जिस्म मे झुरझुरी सी चल रही थी, आधे अधूरे सम्भोग से उसका जिस्म जल रहा था, करवटे बदलती काया को अपनी जांघो के बीच कुछ चुभता सा महसूस हो रहा था.

काया ने जाँचना चाहा तो पाया की पैंटी का बीच का हिस्सा कड़क, और आस पास गिलापन है. काया की ऊँगली पैंटी के बीच उभरी गीली लकीर पे जा लगी, जैसे कुछ टटोल रही हो, आअह्ह्ह.... ऊँगली उस नाजुक अंग पे छूते ही काया के मुँह से कामुक आह फुट पड़ी, काया को कुछ सुकून सा अहसास हुआ, आज से पहले उसने कभी ऐसा नहीं किया था, गिलापन काया को परेशान कर रहा था उसने पैंटी को साइड किया तो पाया चुत से एक पतली तार नुमा लकीर पैंटी के साथ खींचती चली गई,

उउउफ्फ्फ..... ये क्या? काया खुद हैरान थी, उसकी उंगलियां जैसे उसके काबू मे नहीं थी, नंगी फूली हुई चिकनी चुत लार से भीगी ऊँगली कुरेदने लगी, आआहहहह..... कमाल का अहसास था, जो बर्दाश्त भी नहीं हो रहा था काया की जाँघे आपस मे चिपक गई, या फिर काया खुद से शर्मा गई थी.

काया को अच्छा तो लगा था, लेकिन शायद मन गवाह नहीं दे रहा था, नींद आँखों से पूरी तरह ओझल थी
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कैसे नींद आती भला, काया उठ के बालकनी मे चली आई, ठंडी हवा के थपेड़े सुकून दे रहे थे फिर भी चुभन और गिलापन बारकरारा था, काया ने गाउन हल्का सा ऊपर कर हाथ अंदर डाल पैंटी को नीचे सरकाते हुए खोल दिया.
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लाल रंग की पैंटी पसीने और चुत रस से सरोबर थी.

"उउउफ्फ्फ..... ये पसीना " काया कभी कभी अपने इस पसीने से परेशान सी हो जाया करती थी.

हालांकि अब ठंडी हवा जांघो के बीच सुकून दे रही थी, लेकिन जिस्म मे सुकून नहीं था.

काया खुद मे खोई हुई थी की अचानक उसके हाथ से पैंटी छूट कर बालकनी से नीचे जा गिरी...

"ओह... गॉड... ये... ये क्या हुआ " काया हक्की बक्की खड़ी नीचे देख ही रही थी की नीचे कमरे का गेट खुल गया, लाइट की रौशनी से कमरे के आगे का हिस्सा जगमगा गया.

कल रात भी इसी टाइम पर बाबू बाहर आया था, तो क्या.. आज... आज... भी काया का दिल धाड धाड़ कर बज रहा था, अब तक उसकी लाल पैंटी जमीन चाट चुकी थी.

नीचे बाबू कमरे के बाहर तक आ चूका था, काया के जहन मे कल रात की घटना दौड़ गई, कल अनजाने मे हुआ था आज काया को वापस चले जाना चाहिए था,

लेकिन ऐसा नहीं हुआ, काया का जिस्म पहले से गर्म था अब उस पल के इंतज़ार मे सुलगने सा लगा था.

जिस बात का इंतज़ार था हुआ भी वही, बाबू कुछ दुरी पर जा कर पजामा नीचे कर खड़ा हो गया,

आज ऐसे खड़ा था की रौशनी मे लंड जगमगा रहा था,
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आज उसका आकर प्रकार साफ नजर आ रहा था. काया उस अंग को देख हैरान थी, बाबू मासूम सा नजर आता था, छोटा बच्चा दीखता था लेकिन, उसका ये.... ये.... तो कुछ बड़ा सा लग रहा है.

हालांकि इतनी ऊपर से साइज का अंदाजा लगा पाना मुश्किल ही था, पर क्या करे काम की इच्छा पाले इंसान को कामुक अंग साफ नजर आते है, काया की नजर बरबस बाबू के लंड पर ठीठक गई की तभी.....

ससससससरररर....... पप्पापिस्स्स...... तेज़ धार फुट पड़ी दूर तक, काया धार का पीछा करती गई तो पाया की जिस जगह बाबू का पेशाब गिर रहा है उससे कुछ दुरी पर ही उसकी लाल पसीने से भीगी पैंटी पेशाब के छिंटो का आनन्द उठा रही है.

बाबू मस्ती मे मस्त खुली हवा मे लंड निकाले मूत रहा था,

ऊपर काया जैसे बूत बनी हुई थी कभी अपनी पैंटी को देखती तो कभी बाबू के लंड को.

सुंदर चिकना, लम्बा सा बड़ा ही मनमोहक प्रतीत होता था.

काया अभी अभी नाकाम सम्भोग से गुजरी थी, ये पल किसी भी काम पिपशु स्त्री के लिए सुख देने वाला ही था.

काया भी उस दृश्य को देखती रही ना जाने क्या उत्तेजना थी इसमें.

कुछ ही पलो मे बाबू ने काम खत्म कर पजामा उठाना चाहा की, उसकी नजर सामने पड़ी, सामने कुछ तो था नीचे जमीन पे पड़ा हुआ.

बाबू पजामा कस नजदीक जाने लगा.

"ओह... गॉड.... उफ्फ्फ.... नहीं... बाबू plz नहीं " काया मन ही मन भगवान से खेर मना रही थी.

लेकिन भगवान तो खुद मजे लेने के मूड मे बैठा था, बाबू दो कदम चल उस कपडे को उठा लिया.

काया ये सब होते देख रही थी, एक बाबू ही तो था जिस से वो घुली मिली थी, क्या सोचेगा मेरे बारे मे उफ्फ्फ्फ़....

बाबू ने पैंटी उठा ली, आस पास देखा, कोई नहीं था अलट पलट देखा, ना जाने क्या देख रहा था.

ना जाने बाबू को क्या सूझी पैंटी को अपनी नाक के नजदीक ले गया सससन्नन्नफ्फफ्फ्फ़..... एक लम्बी सांस खिंच फिर इधर उधर देखा.

"छी... ईई..... ये बाबू क्या कर रहा है " काया के लिए ये घृणा से भरा था, उसके पति ने भी आजतक ऐसा नहीं किया था,

काया को याद आया शादी के बाद रोहित ने एक दो बार उसकी चुत चाटने की कोशिश जरूर की थी, लेकिन कभी कर ना सका, उसका कहना था काया तुम्हे पसीना बहुत आता है, स्मेल आती है तुम्हारी उस से.

उसके बाद काया ने भी कभी इच्छा नहीं की वो जानती भी नहीं थी की सम्भोग मे ऐसा भी होता है.

खेर बाबू की हरकत से काया का मन घिन्न तो हुआ लेकिन एक अजीब से लहर भी नाभि से जांघो के बीच दौड़ पड़ी, जैसे किसी ने नंगा तार छुवा दिया हो.

नीचे बाबू झट से पैंटी को जेब मे रख उल्टे पैर भाग खड़ा हुआ "bhaddakkkk" से कमरे का दरवाजा बंद हो गया.

सांय... साय..... सी हवा काया के जिस्म को पार कर जा रही थी, माथे पर पसीना था.

"हे भगवान अब क्या होगा, बाबू से कभी मिलना हुआ तो कैसे आंख मिलाएगी "

काया बैडरूम की ओर बढ़ चली, पैर और जांघो का ऊपरी हिस्सा भारी था.

"बाबू को कैसे मालूम पड़ेगा की किसकी है? बहुत लोग काम करते है, नीचे के फ्लोर पर भी कोई रहता ही होगा,. मै बेवजह ही चिंता कर रही हूँ " काया ने खुद की चिंता को अपने तर्क से समाप्त कर लिया था.

बेचैन दिल और जलता जिस्म लिए काया बिस्तर मे समा गई.

हर भारतीय नारी की यही कहानी है, सम्भोग मे संतुष्टि किस्मत से ही मिलती है,

नाकाम सम्भोग ही हर नारी के जीवन का हिस्सा है, तो शिकायत कैसी?

Contd...
Nice update
Aur update chahiye
 
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Mr. Unique

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हर भारतीय नारी की यही कहानी है, सम्भोग मे संतुष्टि किस्मत से ही मिलती है।
इस बात से मैं पूरी तरह सहमत हूं ज्यादातर भारतीय पुरुषों को पता ही नही संभोग क्या है इनको लगता है कि टांग उठाकर घचा घच पेलना और 9 महीने बाद औरत के हाथ में बच्चा पकड़ा देना ही संभोग है और बच्चा होने के बाद तो दोनो की रामकहानी बस वही जाने। इस चक्कर में भारतीय नारियां बेचारी कामवासना की धधकती ज्वाला लेकर फिरती है और यह ज्वाला जब जागती है तो फिर वो "अनुश्री" बनने में देर नहीं लगाती। :DD:
 

andypndy

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इस बात से मैं पूरी तरह सहमत हूं ज्यादातर भारतीय पुरुषों को पता ही नही संभोग क्या है इनको लगता है कि टांग उठाकर घचा घच पेलना और 9 महीने बाद औरत के हाथ में बच्चा पकड़ा देना ही संभोग है और बच्चा होने के बाद तो दोनो की रामकहानी बस वही जाने। इस चक्कर में भारतीय नारियां बेचारी कामवासना की धधकती ज्वाला लेकर फिरती है और यह ज्वाला जब जागती है तो फिर वो "अनुश्री" बनने में देर नहीं लगाती। :DD:
बिलकुल सही.... वैसे अनुश्री पर जोर दे कर आप अनुश्री को पूरा लिखवा के ही मानोगे 😂
 
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