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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
भाग 126 (मध्यांतर)
भाग 127 भाग 128 भाग 129 भाग 130 भाग 131 भाग 132
भाग 133 भाग 134 भाग 135 भाग 136 भाग 137 भाग 138
भाग 139 भाग 140 भाग141 भाग 142 भाग 143 भाग 144 भाग 145 भाग 146 भाग 147 भाग 148
 
Last edited:

ChaityBabu

New Member
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भाग 149

शायद पहले जोड़ियां मिलते समय भौतिक और सामाजिक मेल मिलाप को ज्यादा महत्व दिया जाता था । अंतर्मन और प्यार का कोई विशेष स्थान नहीं होता था ऐसा मान लिया जाता था कि एक बार जब दोनों एक ही खुद से बदले तो उनमें निश्चित ही प्यार हो जाएगा।
पर क्या ऐसा हों पाएगा…तब सुगना और सोनू के प्यार का क्या होगा। जो सुगना अपनी बुर पहले ही सोनू को दहेज में दे चुकी थी वह क्यों भला किसी और मर्द को अपनाएगी..
प्रश्न कई थे उत्तर भविष्य के गर्भ में दफन था।

सारी गुत्थियां सुलझाने वाली नियति खुद ही उलझ गई थी उसे विराम चाहिए था…

अब आगे..
मनोहर अपने गेस्ट हाउस वापस आ चुका था। बिस्तर पर आते ही आज लाली के घर हुए घटनाक्रमों को याद कर रहा था पर आज जो बात अनोखी थी वह थी सुगना से मुलाकात। क्या कोई स्त्री इतनी सरल इतनी चंचल और इतनी सुंदर हो सकती है.. चेहरे पर जैसे नूर बरस रहा हो.. कैसा अभागा था उसका पति जो इस कोहिनूर हीरे को छोड़कर न जाने किस संन्यासी के आश्रम में चला गया था.
क्या सुगना से अलग होना इतना सरल रहा होगा?
क्या अध्यात्म में इतनी ताकत है जो सुगना जैसी स्त्री को त्यागने की शक्ति देता है? मनोहर इस् बात से कतई संतुष्ट नहीं था कि रतन ने सही निर्णय लिया था पर मन ही मन विधाता को धन्यवाद दे रहा था कि आज वह सुगना के बारे में सोच पा रहा था।
बेचारे मनोहर को क्या पता था की सुगना अभिशप्त है उसे रतन के साथ संभोग में कभी सफलता प्राप्त न हुई और रतन जैसा गबरू मर्द भी उसे चरमसुख देने में नाकामयाब रहा।
सुगना को संतुष्ट करने वाले दोनों मर्द सरयू सिंह और सोनू से उसका खून का रिश्ता था। यद्यपि यह बात सुगना को अब भी ज्ञात न थी कि वह अभिशप्त है।
उधर लाली और सोनू का विवाह भी अनूठा था। यद्यपि लाली मनोहर के बुआ की लड़की यानी बहन थी फिर भी मनोहर यह भली-भांति जानता था कि सोनू जैसे काबिल मर्द को लाली से बेहतर स्त्री मिल सकती थी।
सोनू और लाली कैसे करीब आए होंगे और कैसे सोनू ने एक विधवा स्त्री से विवाह करना स्वीकार किया होगा? काश कि मनोहर स्वयं लाली के भूतकाल के पन्ने पलट पता तो उसे इस संबंध की आवश्यकता और अहमियत समझ आ जाती।

मनोहर अपने तेज दिमाग से भी इस गुत्थी को सुलझाने में नाकामयाब रहा। दूसरी तरफ लाली और सुगना का पूरा परिवार बेहद शालीन सभ्य और मेहमान नवाजी में अव्वल था किसी भी व्यक्ति के लिए उनके बारे में बुरा सोचना कठिन था।
मनोहर को सुगना और उसके परिवार में भूतकाल और वर्तमान में चल रहे कामुक संबंधों की कोई जानकारी नहीं थी और होती भी कैसे यह मनोहर की कल्पना के पार होती। सुगना जैसी दिव्य सुंदरी किसी और मर्द से संबंध बना सकती हो पर कभी वो अपने ही पिता (बायोलॉजिकल पिता) और भाई से संबंध बना सकती है यह सोचना कठिन था नामुमकिन था।
मनोहर जैसे-जैसे सुगना के बारे में सोचता गया वैसे-वैसे वह सुगना से आसक्त होता गया। दो बच्चों की मां होने के बावजूद सुगना उसे बेहद आकर्षक लगी थी। और आज पहली बार मनोहर ने अपनी दिवंगत पत्नी के अलावा किसी और स्त्री को इस भाव से देखा था।
उत्तेजना शालीनता छीन लेती है।

मनोहर के मन मस्तिष्क के अलावा उसके जननांगों में भी आज हलचल हो रही थी निश्चित ही इसमें सुगना का योगदान था। जैसे-जैसे मनोहर सुगना के बारे में सोचता गया कब उसकी विचारधारा शालीनता से हटकर सुगना की नग्नता पर आ गई और सुगना मनोहर के ख्यालों में अपनी नग्नता के साथ दिखाई पड़ने लगी…
स्त्री शरीर की जितनी परिकल्पना अपने ख्वाबों खयालों में की जा सकती है मनोहर वही कर रहा था और हर बार सुगना अपना तेजस्वी और मुस्कुराता चेहरा लिए मनोहर की कल्पनाओं को साकार कर रही थी। आखिरकार मनोहर ने सफलतापूर्वक अपनी कल्पनाओं को अपने हाथों से मूर्त रूप दिया और सुगना को याद करते हुए अपने अंडकोषों में कई महीनो से संजोए हुए वीर्य को तकिए पर उड़ेल दिया जो अब तक उसकी जांघों के बीच लगातार रगड़ खा रहा था।
अप्राकृतिक स्खलन के उपरांत सिर्फ पश्चाताप ही होता है। मनोहर अपने कलुषित विचारों के लिए अपने ईष्ट से क्षमा मांग रहा था जिसमें उसने सुगना को बिना उसकी सहमति से नग्न किया था और मन ही मन उसे भोगा था।
मनोहर और सुगना की इस मुलाकात में मनोहर के मन में प्यार का अंकुर प्रस्फुटित कर दिया था। उधर सुगना बेपरवाह और बिंदास थी वह अपने में मगन थी और वक्त बेवक्त अपने सोनू की गर्दन पर दाग लगाने को आतुर थी जब अक्सर उसके दिलों दिमाग में रहा करता था।
आईये अब आपको अमेरिका लिए चलते हैं जहां सोनी की पूर्ण सहमति से विकास उसे गर्भवती करने में लगा हुआ था।
अपनी मां को किया गया वादा विकास को याद था और सोनी को भी। सोनी ने अपनी सास से एक वर्ष का वक्त उन्मुक्त जीवन के लिए मांगा था और उसके बाद गर्भवती होने का वचन दिया था।
विकास और सोनी को मेहनत करते 3 महीने बीत चुके थे। घर में टीवी पर अब कामुक फिल्मों की जगह बच्चा पैदा करने की सही सेक्स पोजीशन। गर्भधारण के लिए तरह-तरह की सलाह वाली किताबें और अन्य उपाय पढ़े जा रहे थे, समझे जा रहे थे। जब-जब सोनी रजस्वला होती ऐसा लगता की सोने की बुर से निकला वह लाल रक्त विकास और सोनी के जीवन में कालिमा बिखेर देता। सोनी और विकास दोनों निराश हो जाते।
सोनी और विकास के लिए सेक्स अब गौड़ हो चला था एक सूत्रीय कार्यक्रम था सोनी की बुर में वीर्य भरकर उसे देर तक अंदर संजोए रखना और उसे गर्भधारण करने में मदद करना।
कुछ महीने यूं बीत गए पर नतीजा सिफर रहा.
आखिरकार विकास ने सोनी को लेकर डॉक्टर से मिलने की सोची। दोनों पति-पत्नी अपने मन में कई तरह की आशंकाएं लिए अस्पताल पहुंच चुके थे दोनों ने सेक्स एक्सपर्ट से अपनी जांच कराई।
शाम को रिपोर्ट के लिए जाते वक्त विकास और सोनी का कलेजा धक धक कर रहा था मन में आशंकाएं प्रबल हो रही थी और डॉक्टर से मिलते वक्त उसका लटका हुआ चेहरा देखकर विकास को आशंका प्रबल हो गई..
“क्या हुआ डॉक्टर साहब रिपोर्ट ठीक तो है ना” विकास ने मन में उत्सुकता लिए हुए पूछा
सोनी जी की रिपोर्ट तो ठीक है पर आपके सीमन मैं शुक्राणुओं की संख्या कम है इस अवस्था में गर्भधारण संभव नहीं है। डॉक्टर ने बेहद संजीदगी से जवाब दिया
“तो क्या डॉक्टर स्पर्म काउंट बढ़ाने की कोई मेडिकेशन नहीं है?
“है तो जरूर पर उतनी कारगर नहीं है फिर भी हम सब प्रयास करेंगे मैं यह कुछ मेडिसिन लिख देता हूं आप इसे दो माह तक लेते रहिए ईश्वर करें यह आपको सूट कर जाए।”
डॉक्टर परचे पर दवाई या लिखने लगा और विकास ने सोनी की तरफ देखा जो अपना सर पकड़े कुछ सोच रही थी।
दोनों पति-पत्नी अस्पताल से बाहर आए ना तो सोनी का मन लग रहा था और ना विकास का। विकास ने कॉफी पीने के लिए सोनी को आमंत्रित किया और अपने सर में उठ रहे दर्द को शांत करने के लिए दोनों पास के एक कैफे में आकर बैठ गए।
विकास ने सोनी का हाथ अपने हाथों में ले लिया और बेहद संजीदगी से बोला..
“सोनी जो कुछ हुआ है यह क्यों हुआ मुझे नहीं पता मुझे तो ज्ञात भी नहीं कि ऐसा क्यों होता है। आशा है तुम मुझे मेरी इस कमी के लिए माफ कर दोगी”
सोनी ने विकास के हाथ को सहलाते हुए बोला हम दोनों का मिलन विधाता की इच्छा थी मैं आपसे बहुत प्यार करती हूं हम प्रयास करेंगे और करते रहेंगे विधाता कभी ना कभी हमारी जरूर सुनेगा.। शुक्राणुओं की संख्या कम ही सही पर कुछ है तो जरूर यदि विधाता चाहेंगे तो मेरी गोद भरने के लिए एक शुक्राणु ही काफी होगा।
सोनी और विकास एक दूसरे से दिलो जान से प्यार करते थे और एक दूसरे का पूरा ख्याल रखते थे यह अलग बात थी कि उन दोनों की कामुकता दक्षिण अफ्रीका के दौरान वासना के अतिरिक्त तक जा पहुंची थी और विकास ने सोनी के मन में उस दबी हुई इच्छा की पूर्ति के लिए वह सोनी को उसे अद्भुत मसाज के लिए न सिर्फ प्रेरित किया था अपित उसे अंजाम तक पहुंचा दिया था।
सोनी और विकास डॉक्टर द्वारा दी गई दवाइयां के सहारे एक बार फिर गर्भधारण की प्रक्रिया में लग गए सेक्स अब अपना रूप बदल चुका था सोनी कभी स्खलित होती कभी नहीं परंतु विकास का वीर्य हमेशा उसकी बुर में जितना गहरा जा सकता था उतने गहरे तक उतार दिया जाता और सोनी अपनी दोनों जांघें ऊंची कर कुछ देर इस अवस्था में रहती और अपनी बुर में विकास के वीर्य से अपने गर्भाशय को सिंचित होता महसूस करती परंतु रिजल्ट वही ढाक के तीन पात..
एक दिन सोनी दोपहर में अपने बिस्तर पर पड़ी अपने शादी का एल्बम देख रही थी। पन्ने पलटते पलटते उसके दिमाग में शादी की सुंदर यादें ताज होती गई और एक पृष्ठ पर सरयू सिंह की तस्वीर पर उसकी निगाहें रूक गई.. कैसे कोई 55 वर्ष की उम्र में भी एकदम चुस्त दुरुस्त रह सकता है। वह मर्दाना शरीर, तेजस्वी चेहरा और बलिष्ठ भुजाएं ऐसा लगता था जैसे प्राचीन काल का कोई ऋषि महर्षि इस धरती पर अब भी टहल रहा हो।
क्या सरयू चाचा ने अब तक ब्रह्मचर्य का पालन किया है? यह कैसे संभव हुआ होगा क्या उन में काम इच्छा नहीं होगी? क्या उन्होंने आज तक किसी स्त्री के तन को हाथ नहीं लगाया होगा? जब आज वह इस अद्भुत काया के धनी है तो अपनी युवावस्था में कैसे रहे होंगे..?
और उनका खूबसूरत लंड ….क्या कभी उसने वीर्य स्खलन का सुख महसूस नहीं किया होगा?
सोनी ने यह बराबर महसूस किया था की सरयू सिंह की निगाहें उस पर थी परंतु वह इस बात का निर्णय ले पाने में अक्षम थी की सरयू सिंह उससे वास्तव में कामुक संबंध बनाना चाहते हैं।
सरयू सिंह का व्यक्तित्व अनूठा था। सरयू सिंह के बारे में सोचते सोचते न जाने कब सोनी की आंख लग गई…
बर्फीले पहाड़ों के बीच एक छोटा सा गांव चारों तरफ बर्फ ही बर्फ…पर गांव में दो-चार छोटे-छोटे घर…ठंड से ठिठुरती कुछ महिलाओं ने अलाव जलाया हुआ था। मैं भी ठंड से बचने के लिए वहां अलाव तापने लगी। धीरे-धीरे अलाव की आज तेज होती जा रही थी और चारों तरफ फैल रही थी मैंने महसूस किया कि मैं चारों तरफ से आग़ से घिर चुकी हूँ..
बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं दिखाई पड़ रहा था.. मैं बेहद घबरा गई थी तभी उस आग में से कोई चिंगारी निकाल कर मेरे घागरे की तरफ आई और मेरे घागरे में आग पकड़ ली…मैं बेहद घबरा गई और अपना घाघरा निकाल कर दूर फेंक दिया जो कुछ ही देर में आग़ की भेंट चढ़ गया।
मेरी चोली न जाने कब मेरे बदन से गायब हो चुकी थी। मैं स्वयं आश्चर्यचकित थी कि इसे तो मैंने खोला भी नहीं था। मैं खुद को उस आग के बीच पूरी नंगी असहाय महसूस कर रही थी…नग्नता मेरे लिए गौड़ हो चुकी थी मेरे लिए जीवन मरण का प्रश्न था। मैं मदद की गुहार लगा रही थी परंतु मैंने महसूस किया कि मेरे लाख चिल्लाने के बाद भी मेरे मुख से आवाज बाहर नहीं निकल पा रही थी। यह क्या हो गया था ? मेरा बदन आग की गर्मी से तप रहा था..
तभी मैंने एक प्रौढ़ व्यक्ति को अपने पास आता हुआ महसूस किया वह श्वेत वस्त्र पहने हुए थे वह ऋषि मुनियों की भांति प्रतीत हो रहे थे.. वह उस आग को चीरकर मेरे पास आ चुके थे मैं मदद की गुहार लिए उनके समीप उनके आलिंगन में चली गई अपनी नग्नता का एहसास कुछ पलों के लिए गायब हो गया था..
उनकी मजबूत हथेलियां ने जब मेरी नंगी पीठ को छुआ तो मुझे अपनी नग्नता का एहसास हुआ।
उन्होंने मुझे अपनी गोद में उठा लिया और आग को चीरते हुए बाहर आ गए बाहर। आज की तपिश से बाहर आते ही मुझे शीतलता का एहसास होने लगा। मैं उन्हें पहचानने की लगातार कोशिश कर रही थी पर मेरे लिए यह मुमकिन नहीं था। अब मेरी नग्नता मुझे और शीतल कर रही थी वो मुझे एक बगीचे में ले आये।
फूलों के सुंदर उपवन में एक झूला लगा हुआ था। उन्होंने मुझे उस पर लिटा दिया और मेरे माथे पर चुंबन देते हुए कहा..
“देवी अब आप सुरक्षित हो…” मुझे लगा जैसे मैंने यह आवाज सुनी हुई है पर फिर भी उसे आवाज से उन ऋषि की पहचान करना कठिन था।
मैं अब ठंड से कांप रही थी…उन्होंने अपने सीने पर पहना हुआ अंग वस्त्र हटाया उनकी चौड़ी और नंगी छाती मेरी आंखों के सामने थी मैंने ऐसा दिव्य पुरुष कभी नहीं देखा था मैं एक टक उनके मांसल बदन को देखे जा रही थी उन्होंने अपना अंग वस्त्र मेरे बदन पर डालने की कोशिश की।
मेरा बदन अब भी कांप रहा था…. मैंने उन्हें अपने आलिंगन में लेने के लिए अपनी बाहें खोल दी.। वह मेरे ऊपर एक साये की तरह छाये जा रहे थे…
अचानक मैंने अपने बदन को उनसे सटते हुए महसूस किया। उनका मजबूत सीना मेरी नंगी चूचियों पर रगड़ खाने लगा। मेरी चूचियां जो ठंड की वजह से अकड़ कर तनी हुई थी उनके सीने का दबाव पाते ही सपाट होने लगी। वो मेरी आंखों में आंखें डाले लगातार मुझे देखे जा रहे थे परंतु मेरी उनसे नज़रें मिलाने की हिम्मत न थी।।

मैंने अपनी पलके बंद कर ली और उनके बदन की गर्मी को अपने बदन में महसूस करने लगी…
मेरी दोनों जांघें कब हवा में फैल गई मुझे पता भी ना चला और मुझे अपने वस्ति प्रदेश पर एक मजबूत लंड का स्पर्श महसूस हुआ जो अपनी दिशा तलाश रहा था। मैंने स्वयं अपनी जांघें हिलाकर उसे रास्ता देने की कोशिश की और वह मेरी योनि के भीतर गहरे और गहरे तक उतरता चला गया। क्या दिव्या एहसास था मेरी जांघों के बीच से बेहद गर्म शक्तिपुंज मेरे अंदर प्रवेश कर रहा था जो मुझे उत्तेजना के साथ-साथ गर्मी प्रदान कर रहा था उसकी तापिश से मेरे अंदरूनी अंग प्रत्यंग गर्म हो रहे थे।

कुछ ही देर में मैं दिव्य पुरुष से संभोगरत थी। वह बेहद हौले हौले से मेरा यौनिमर्दन कर रहे थे.. मेरी कंपकपाहट अब खत्म हो चली थी और पूरे बदन में एक गर्मी सी महसूस हो रही थी यह निश्चित थी उनके बदन की गर्मी से मिलने वाली गर्मी थी। मैं उसे व्यक्ति को पहचानने की कोशिश कर रही थी परंतु मेरे लिए यह कठिन हो रहा था परंतु जैसे-जैसे संभोग की गति बढ़ती गई और इस्खलन की बेला आ पहुंची..मुझे उसे व्यक्ति का चेहरा जाना पहचाना लगने लगा और जब उन्होंने मुझे मेरे नाम से पुकारा तो बरबस ही मेरे मुंह से निकल गया सरयू चाचा…

सोनी अचकचा कर उठकर बैठ गई । उसकी सांसे तेज थी वह हॉफ रही थी। उसने महसूस किया कि उसकी जांघों के बीच गीलापन था। लगता है वह अपने स्वप्न में ही स्खलित हो गई थी।
सोनी मन ही मन मुस्कुराने लगी। अपने स्खलन का जो आनंद उसने स्वप्न में उठाया था वह भी अनूठा था उसने एक बार फिर अपनी पलके बंद कर उस दृश्य को याद करना चाहा परंतु वह पानी के बुलबुले की तरह गायब हो चुका था पर सोनी के दिमाग में मीठी यादें छोड़ गया था।
सोनी के दिमाग में ब्रह्मचारी का रूप धरे सरयू सिंह धीरे-धीरे सोनी के हीरो बन चुके थे। एक पल के लिए सोनी को लगा कि वह स्वयं मेनका बनकर उनका ब्रह्मचर्य तोड़ सकती है। पर वह अपनी इस अनोखी सोच पर खुद ही मुस्कुरा बैठी अपने पिता तुल्य व्यक्ति से संबंध सोनी की कल्पना से परे था पर सपनों में वह यह आनंद कई बार ले चुकी थी।
विकास की मां का फोन लगातार आ रहा था वह भी बार-बार अपने पोते का जिक्र सोनी से करती और सोनी उसे अपना वादा पूरा करने की बात दोहरा कर शांत कर देती। विकास की मां की आकांक्षाएं सोनी पर लगातार दबाव बनाए हुए थीं।
अमेरिकी डॉक्टर की दवाइयां से कोई फायदा होता हुआ न देख विकास ने अपने देश भारत जाने की सोची।
वैसे भी विकास और सोनी को अपने देश आए काफी वक्त बीत चुका था और अब दोनों ने अपने देश आने की तैयारी करने लगे। विकास को अपने देश में इस समस्या के इलाज का ज्यादा भरोसा था वह मन में उम्मीद लिए सोनी को लेकर अपने वतन आने की तैयारी में लग गया।
जब यह खबर सुगना तक पहुंची उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा। सोनी को देखे कई दिन हो गए थे और अब उसके आगमन की खबर ने सुगना के मन में खुशियों की लहर बिखेर दी थी। अगले शनिवार तक यह खबर सभी की जुबान पर थी छोटा सूरज भी न जाने क्यों खुश हो रहा था उसकी प्यारी मौसी घर आ रही थी वह बार-बार अपने अंगूठे को देखता और मुस्कुरा देता।
खबर सरयू सिंह तक भी पहुंची और वह भी सोनी का स्वागत करने के लिए अपने मन में कई तरह की कल्पनाएं करने लगे। क्या सोनी बदल चुकी होगी उसके विवाह को एक वर्ष से ज्यादा हो गया था। निश्चित ही उसमें बदलाव अपेक्षित था। सरयू सिंह सोनी को अपनी कल्पनाओं में देखने की कोशिश कर रहे थे परंतु बार-बार उनका दिमाग सोनी के गदराए नितंबों पर अटक जा रहा था वह उनके आकार और उनमें आ रहे परिवर्तनों के बारे में ज्यादा चिंतित थे।
इंतजार में दिन बीत रहे थे
उधर लाली के मन में आए शक ने लाली को चिंतित कर दिया था। यद्यपि सोनू के हाथों में इत्र का कारण सुगना और सोनू ने एक ही बताया था पर क्या यह एक संयोग था कि इत्र हाथों पर लगा और सोनू ने तुरंत ही उसे अपने लंड पर रगड़ दिया।

सुगना के सामने या उसकी उपस्थिति में अपने लंड को छूना यह बात लाली के गले नहीं उतर रही थी। लाली सोनू और सुगना के बीच हो रही गतिविधियों पर नजर रखना चाहती थी।
अक्सर जब-जब लाली और सोनू बनारस आते लाली मनोहर को फोन कर देती और वह भी उनसे मिलने उनके घर आ जाता। सोनू को मजबूरन मनोहर का साथ देना पड़ता और सोनू और सुगना के मिलन में निश्चित ही बाधा उत्पन्न होती। पहले तो सोनू सुगना के साथ एकांत का कुछ न कुछ वक्त निकाल ही लेता था और कभी-कभी उसके आलिंगन और चुंबन का सुख प्राप्त कर लेता था कभी-कभी तो वह मौका पाकर अपना दहेज भी चूम चाट भी लेता।
पर अब सुगना और सोनू के मिलन में मनोहर की उपस्थिति से बाधा उत्पन्न हो रही थी। सोनू बनारस सिर्फ और सिर्फ सुगना से मिलने आता था सुगना उसके जीवन में और उसके अंगों में जान भर देती थी और वह सुगना की याद लिए अगला एक हफ्ता लाली के साथ फिर उसके इंतजार में बिता लेता था।
इस बार उसका पूरा दिन मनोहर के साथ इधर-उधर की बातें करने में गुजर गया वह चाह कर भी सुगना से अंतरंग नहीं हो पाया सोनू की बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
उधर मनोहर भी सोनू का साथ सिर्फ इसलिए दे रहा था ताकि वह ज्यादा से ज्यादा समय लाली और सोनू के घर में व्यतीत कर सके जब-जब सुगना चाय पानी के लिए उसके समीप आती उसके शरीर में एक ताजगी भर जाती।
मनोहर एक समझदार व्यक्ति था और अपनी मर्यादा में रहना जानता था। मनोहर के व्यवहार से अब तक सुगना उसके मन में चल रही भावनाओं का अंदाज नहीं लगा पाई थी। मनोहर सुगना को देखता तो अवश्य था पर उसकी नज़रें बचा कर। जब-जब सुगना चाय पानी देने के बाद पीछे मुड़कर रसोई की तरफ जाती मनोहर की निगाहें उसके बदन के कटाव को देखती और उसके मन में सुगना की कल्पना और मूर्त रूप ले लेती। सोनू मनोहर के यहां लगातार रहने से अब थोड़ा विचलित हो रहा था।

दोपहर का खाना होने के पश्चात उसने लाली से कहा..
मनोहर जी के लिए बच्चों वाले कमरे में बिस्तर लगा दो थोड़ा आराम कर लेंगे तब तक मैं भी आराम कर लेता हूं हम सबको एक-दो दिन ही तो दोपहर की नींद लेने का अवसर प्राप्त होता है। मनोहर ने सोनू की हां में हां मिलाई और बच्चों के कमरे में लेट गया।
मनोहर को नींद कहां आ रही थी पर वह धीरे-धीरे बच्चों से घुल मिल गया सभी बच्चे मनोहर के पास बैठकर कुछ खेल खेलने लगे और मनोहर भी उनमें बच्चों की तरह खो गया। सुगना की मां पदमा मनोहर के व्यक्तित्व का आकलन कर रही थी। वह भी उनके पास बैठी मनोहर से बातें कर रही थी। धीरे-धीरे मनोहर पूरे घर परिवार का मन जीतता गया। परंतु सोनू को मनोहर की उपस्थिति अब खलने लगी थी।
पिछले दो-तीन हफ्तों से सुगना से अंतरंग न हो पाने के कारण सोनू के गर्दन का दाग पूरी तरह गायब था. लाली भी अब सोनू के गर्दन के दाग का रहस्य समझना चाहती थी आखिर ऐसा क्या हो जाता था जौनपुर में या सलेमपुर में जिससे सोनू के गर्दन का दाग ठीक उसी जगह उभर आता था।
सुगना के इत्र की खुशबू ने लाली को उन दोनों के बारे में सोचने पर विवश कर दिया था यद्यपि इसका कारण और प्रारब्ध लाली दोनों ही नहीं समझ पा रही थी।।।
लाली जितना ही इस बारे में सोचती उसका दिमाग उतना ही खराब होता। सोनू और सुगना के बीच जो उस दीपावली की काली रात को हुआ था उसका असर उसने घर में कई महीनो तक देखा था। वह स्वयं अपराध भाव से हमेशा के लिए ग्रस्त हो गई थी। लाली स्वयं अपने आप को उसे अपवित्र मिलन के लिए गुनाहगार मानती थी। आखिरकार सुगना जैसी संजीदा औरत क्यों कर ऐसे अपवित्र संबंध बनाएगी वह भी अपने सगे भाई से…. मेल मिलाप बातचीत कामुक बातें छेड़छाड़ सब अपनी जगह पर अपनी ही सगे भाई से अपनी बुर चुदवाना छी छी सुगना ऐसा कभी नहीं करेगी।
लाली का दिमाग कई दिशा में दौड़ रहा था परंतु सटीक उत्तर खोज पाना कठिन था उसे इतना तो एहसास था कि पहले सोनू सुगना के नाम से उत्साहित और उत्तेजित हो जाता है.. परंतु उसे सोनू से ज्यादा सुगना पर भरोसा था.
सोनू भी अब सुगना से मिलन के लिए तड़प रहा था तीन-चार हफ्ते बीत चुके थे और हर बार जाने अनजाने मनोहर लाली के घर में उपस्थित होकर सोनू और सुगना के मिलन में बाधा डाल देता था.
अगली बार जौनपुर से निकलते समय ही उसने लाली को सचेत कर दिया और बेहद सलीके से कहा
“मनोहर भैया को शाम को खाने पर बुलाना दोपहर में उनका भी अपना काम होता होगा.”.
“हां ठीक है .. सोनू की बात काटने की हिम्मत लाली में न थी उसने उसके सुर में सुर मिलाते हुए कहा..मैं भी यही सोच रही थी सुगना से आराम से बात नहीं हो पाती ज्यादातर समय मनोहर जी की खातेदारी में ही बीत जाता है इस बार शाम के लिए ही बोलूंगी…
उधर मनोहर हमेशा इतवार के दिन का इंतजार किया करता था लाली के घर जाने का उसका आकर्षण अब सुगना बन चुकी थी। मनोहर का प्यार एक तरफा था सुगना जैसी पारखी स्त्री भी अब तक मनोहर की मनोदशा से अनजान थी। शायद मनोहर भी महिलाओं को समझता था और अपनी वासना भरी निगाहों पर उसका नियंत्रण कायम था..
सुगना उसके जीवन में एक सुगंध की तरह आ गई थी जिसकी खुशबू वह पूरे हफ्ते तक महसूस करता और जब उसकी यादें धूमिल पड़ती वह उन्हें तरोताजा करने फिर सुगना के घर पहुंच जाता..
सुगना स्वयं सोनू की चमकती गर्दन को दागदार करने के लिए स्वयं अधीर हो रही थी।
सुगना के घर फोन की घंटी बजी
“सुगना दीदी…प्रणाम , हम लोग दीपावली में बनारस आ रहे हैं” यह चहकती आवाज सोनी की थी। उनका इंडिया आने का टिकट कंफर्म हो चुका था। दीपावली के पटाखे का इंतजार सबको था पाठकों को भी और नियति को भी..

शेष अगले भाग में
WoW Reaching 150th Episode.....
Congrats in Advance....... Pl Make it Moni's Episode.........Nice Going.....
 

Dbj111

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एकदम सेक्सी अपडेट. बस अब लाली और सुगना एकसाथ बेड में आजाए तोह मजा आएगा
 

royalroy

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सोनी इंडिया वापस आने वाली है लगता है लवली भाई कुछ धमाका होने वाला है
 
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Shubham babu

Member
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भाग 149

शायद पहले जोड़ियां मिलते समय भौतिक और सामाजिक मेल मिलाप को ज्यादा महत्व दिया जाता था । अंतर्मन और प्यार का कोई विशेष स्थान नहीं होता था ऐसा मान लिया जाता था कि एक बार जब दोनों एक ही खुद से बदले तो उनमें निश्चित ही प्यार हो जाएगा।
पर क्या ऐसा हों पाएगा…तब सुगना और सोनू के प्यार का क्या होगा। जो सुगना अपनी बुर पहले ही सोनू को दहेज में दे चुकी थी वह क्यों भला किसी और मर्द को अपनाएगी..
प्रश्न कई थे उत्तर भविष्य के गर्भ में दफन था।

सारी गुत्थियां सुलझाने वाली नियति खुद ही उलझ गई थी उसे विराम चाहिए था…

अब आगे..
मनोहर अपने गेस्ट हाउस वापस आ चुका था। बिस्तर पर आते ही आज लाली के घर हुए घटनाक्रमों को याद कर रहा था पर आज जो बात अनोखी थी वह थी सुगना से मुलाकात। क्या कोई स्त्री इतनी सरल इतनी चंचल और इतनी सुंदर हो सकती है.. चेहरे पर जैसे नूर बरस रहा हो.. कैसा अभागा था उसका पति जो इस कोहिनूर हीरे को छोड़कर न जाने किस संन्यासी के आश्रम में चला गया था.
क्या सुगना से अलग होना इतना सरल रहा होगा?
क्या अध्यात्म में इतनी ताकत है जो सुगना जैसी स्त्री को त्यागने की शक्ति देता है? मनोहर इस् बात से कतई संतुष्ट नहीं था कि रतन ने सही निर्णय लिया था पर मन ही मन विधाता को धन्यवाद दे रहा था कि आज वह सुगना के बारे में सोच पा रहा था।
बेचारे मनोहर को क्या पता था की सुगना अभिशप्त है उसे रतन के साथ संभोग में कभी सफलता प्राप्त न हुई और रतन जैसा गबरू मर्द भी उसे चरमसुख देने में नाकामयाब रहा।
सुगना को संतुष्ट करने वाले दोनों मर्द सरयू सिंह और सोनू से उसका खून का रिश्ता था। यद्यपि यह बात सुगना को अब भी ज्ञात न थी कि वह अभिशप्त है।
उधर लाली और सोनू का विवाह भी अनूठा था। यद्यपि लाली मनोहर के बुआ की लड़की यानी बहन थी फिर भी मनोहर यह भली-भांति जानता था कि सोनू जैसे काबिल मर्द को लाली से बेहतर स्त्री मिल सकती थी।
सोनू और लाली कैसे करीब आए होंगे और कैसे सोनू ने एक विधवा स्त्री से विवाह करना स्वीकार किया होगा? काश कि मनोहर स्वयं लाली के भूतकाल के पन्ने पलट पता तो उसे इस संबंध की आवश्यकता और अहमियत समझ आ जाती।

मनोहर अपने तेज दिमाग से भी इस गुत्थी को सुलझाने में नाकामयाब रहा। दूसरी तरफ लाली और सुगना का पूरा परिवार बेहद शालीन सभ्य और मेहमान नवाजी में अव्वल था किसी भी व्यक्ति के लिए उनके बारे में बुरा सोचना कठिन था।
मनोहर को सुगना और उसके परिवार में भूतकाल और वर्तमान में चल रहे कामुक संबंधों की कोई जानकारी नहीं थी और होती भी कैसे यह मनोहर की कल्पना के पार होती। सुगना जैसी दिव्य सुंदरी किसी और मर्द से संबंध बना सकती हो पर कभी वो अपने ही पिता (बायोलॉजिकल पिता) और भाई से संबंध बना सकती है यह सोचना कठिन था नामुमकिन था।
मनोहर जैसे-जैसे सुगना के बारे में सोचता गया वैसे-वैसे वह सुगना से आसक्त होता गया। दो बच्चों की मां होने के बावजूद सुगना उसे बेहद आकर्षक लगी थी। और आज पहली बार मनोहर ने अपनी दिवंगत पत्नी के अलावा किसी और स्त्री को इस भाव से देखा था।
उत्तेजना शालीनता छीन लेती है।

मनोहर के मन मस्तिष्क के अलावा उसके जननांगों में भी आज हलचल हो रही थी निश्चित ही इसमें सुगना का योगदान था। जैसे-जैसे मनोहर सुगना के बारे में सोचता गया कब उसकी विचारधारा शालीनता से हटकर सुगना की नग्नता पर आ गई और सुगना मनोहर के ख्यालों में अपनी नग्नता के साथ दिखाई पड़ने लगी…
स्त्री शरीर की जितनी परिकल्पना अपने ख्वाबों खयालों में की जा सकती है मनोहर वही कर रहा था और हर बार सुगना अपना तेजस्वी और मुस्कुराता चेहरा लिए मनोहर की कल्पनाओं को साकार कर रही थी। आखिरकार मनोहर ने सफलतापूर्वक अपनी कल्पनाओं को अपने हाथों से मूर्त रूप दिया और सुगना को याद करते हुए अपने अंडकोषों में कई महीनो से संजोए हुए वीर्य को तकिए पर उड़ेल दिया जो अब तक उसकी जांघों के बीच लगातार रगड़ खा रहा था।
अप्राकृतिक स्खलन के उपरांत सिर्फ पश्चाताप ही होता है। मनोहर अपने कलुषित विचारों के लिए अपने ईष्ट से क्षमा मांग रहा था जिसमें उसने सुगना को बिना उसकी सहमति से नग्न किया था और मन ही मन उसे भोगा था।
मनोहर और सुगना की इस मुलाकात में मनोहर के मन में प्यार का अंकुर प्रस्फुटित कर दिया था। उधर सुगना बेपरवाह और बिंदास थी वह अपने में मगन थी और वक्त बेवक्त अपने सोनू की गर्दन पर दाग लगाने को आतुर थी जब अक्सर उसके दिलों दिमाग में रहा करता था।
आईये अब आपको अमेरिका लिए चलते हैं जहां सोनी की पूर्ण सहमति से विकास उसे गर्भवती करने में लगा हुआ था।
अपनी मां को किया गया वादा विकास को याद था और सोनी को भी। सोनी ने अपनी सास से एक वर्ष का वक्त उन्मुक्त जीवन के लिए मांगा था और उसके बाद गर्भवती होने का वचन दिया था।
विकास और सोनी को मेहनत करते 3 महीने बीत चुके थे। घर में टीवी पर अब कामुक फिल्मों की जगह बच्चा पैदा करने की सही सेक्स पोजीशन। गर्भधारण के लिए तरह-तरह की सलाह वाली किताबें और अन्य उपाय पढ़े जा रहे थे, समझे जा रहे थे। जब-जब सोनी रजस्वला होती ऐसा लगता की सोने की बुर से निकला वह लाल रक्त विकास और सोनी के जीवन में कालिमा बिखेर देता। सोनी और विकास दोनों निराश हो जाते।
सोनी और विकास के लिए सेक्स अब गौड़ हो चला था एक सूत्रीय कार्यक्रम था सोनी की बुर में वीर्य भरकर उसे देर तक अंदर संजोए रखना और उसे गर्भधारण करने में मदद करना।
कुछ महीने यूं बीत गए पर नतीजा सिफर रहा.
आखिरकार विकास ने सोनी को लेकर डॉक्टर से मिलने की सोची। दोनों पति-पत्नी अपने मन में कई तरह की आशंकाएं लिए अस्पताल पहुंच चुके थे दोनों ने सेक्स एक्सपर्ट से अपनी जांच कराई।
शाम को रिपोर्ट के लिए जाते वक्त विकास और सोनी का कलेजा धक धक कर रहा था मन में आशंकाएं प्रबल हो रही थी और डॉक्टर से मिलते वक्त उसका लटका हुआ चेहरा देखकर विकास को आशंका प्रबल हो गई..
“क्या हुआ डॉक्टर साहब रिपोर्ट ठीक तो है ना” विकास ने मन में उत्सुकता लिए हुए पूछा
सोनी जी की रिपोर्ट तो ठीक है पर आपके सीमन मैं शुक्राणुओं की संख्या कम है इस अवस्था में गर्भधारण संभव नहीं है। डॉक्टर ने बेहद संजीदगी से जवाब दिया
“तो क्या डॉक्टर स्पर्म काउंट बढ़ाने की कोई मेडिकेशन नहीं है?
“है तो जरूर पर उतनी कारगर नहीं है फिर भी हम सब प्रयास करेंगे मैं यह कुछ मेडिसिन लिख देता हूं आप इसे दो माह तक लेते रहिए ईश्वर करें यह आपको सूट कर जाए।”
डॉक्टर परचे पर दवाई या लिखने लगा और विकास ने सोनी की तरफ देखा जो अपना सर पकड़े कुछ सोच रही थी।
दोनों पति-पत्नी अस्पताल से बाहर आए ना तो सोनी का मन लग रहा था और ना विकास का। विकास ने कॉफी पीने के लिए सोनी को आमंत्रित किया और अपने सर में उठ रहे दर्द को शांत करने के लिए दोनों पास के एक कैफे में आकर बैठ गए।
विकास ने सोनी का हाथ अपने हाथों में ले लिया और बेहद संजीदगी से बोला..
“सोनी जो कुछ हुआ है यह क्यों हुआ मुझे नहीं पता मुझे तो ज्ञात भी नहीं कि ऐसा क्यों होता है। आशा है तुम मुझे मेरी इस कमी के लिए माफ कर दोगी”
सोनी ने विकास के हाथ को सहलाते हुए बोला हम दोनों का मिलन विधाता की इच्छा थी मैं आपसे बहुत प्यार करती हूं हम प्रयास करेंगे और करते रहेंगे विधाता कभी ना कभी हमारी जरूर सुनेगा.। शुक्राणुओं की संख्या कम ही सही पर कुछ है तो जरूर यदि विधाता चाहेंगे तो मेरी गोद भरने के लिए एक शुक्राणु ही काफी होगा।
सोनी और विकास एक दूसरे से दिलो जान से प्यार करते थे और एक दूसरे का पूरा ख्याल रखते थे यह अलग बात थी कि उन दोनों की कामुकता दक्षिण अफ्रीका के दौरान वासना के अतिरिक्त तक जा पहुंची थी और विकास ने सोनी के मन में उस दबी हुई इच्छा की पूर्ति के लिए वह सोनी को उसे अद्भुत मसाज के लिए न सिर्फ प्रेरित किया था अपित उसे अंजाम तक पहुंचा दिया था।
सोनी और विकास डॉक्टर द्वारा दी गई दवाइयां के सहारे एक बार फिर गर्भधारण की प्रक्रिया में लग गए सेक्स अब अपना रूप बदल चुका था सोनी कभी स्खलित होती कभी नहीं परंतु विकास का वीर्य हमेशा उसकी बुर में जितना गहरा जा सकता था उतने गहरे तक उतार दिया जाता और सोनी अपनी दोनों जांघें ऊंची कर कुछ देर इस अवस्था में रहती और अपनी बुर में विकास के वीर्य से अपने गर्भाशय को सिंचित होता महसूस करती परंतु रिजल्ट वही ढाक के तीन पात..
एक दिन सोनी दोपहर में अपने बिस्तर पर पड़ी अपने शादी का एल्बम देख रही थी। पन्ने पलटते पलटते उसके दिमाग में शादी की सुंदर यादें ताज होती गई और एक पृष्ठ पर सरयू सिंह की तस्वीर पर उसकी निगाहें रूक गई.. कैसे कोई 55 वर्ष की उम्र में भी एकदम चुस्त दुरुस्त रह सकता है। वह मर्दाना शरीर, तेजस्वी चेहरा और बलिष्ठ भुजाएं ऐसा लगता था जैसे प्राचीन काल का कोई ऋषि महर्षि इस धरती पर अब भी टहल रहा हो।
क्या सरयू चाचा ने अब तक ब्रह्मचर्य का पालन किया है? यह कैसे संभव हुआ होगा क्या उन में काम इच्छा नहीं होगी? क्या उन्होंने आज तक किसी स्त्री के तन को हाथ नहीं लगाया होगा? जब आज वह इस अद्भुत काया के धनी है तो अपनी युवावस्था में कैसे रहे होंगे..?
और उनका खूबसूरत लंड ….क्या कभी उसने वीर्य स्खलन का सुख महसूस नहीं किया होगा?
सोनी ने यह बराबर महसूस किया था की सरयू सिंह की निगाहें उस पर थी परंतु वह इस बात का निर्णय ले पाने में अक्षम थी की सरयू सिंह उससे वास्तव में कामुक संबंध बनाना चाहते हैं।
सरयू सिंह का व्यक्तित्व अनूठा था। सरयू सिंह के बारे में सोचते सोचते न जाने कब सोनी की आंख लग गई…
बर्फीले पहाड़ों के बीच एक छोटा सा गांव चारों तरफ बर्फ ही बर्फ…पर गांव में दो-चार छोटे-छोटे घर…ठंड से ठिठुरती कुछ महिलाओं ने अलाव जलाया हुआ था। मैं भी ठंड से बचने के लिए वहां अलाव तापने लगी। धीरे-धीरे अलाव की आज तेज होती जा रही थी और चारों तरफ फैल रही थी मैंने महसूस किया कि मैं चारों तरफ से आग़ से घिर चुकी हूँ..
बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं दिखाई पड़ रहा था.. मैं बेहद घबरा गई थी तभी उस आग में से कोई चिंगारी निकाल कर मेरे घागरे की तरफ आई और मेरे घागरे में आग पकड़ ली…मैं बेहद घबरा गई और अपना घाघरा निकाल कर दूर फेंक दिया जो कुछ ही देर में आग़ की भेंट चढ़ गया।
मेरी चोली न जाने कब मेरे बदन से गायब हो चुकी थी। मैं स्वयं आश्चर्यचकित थी कि इसे तो मैंने खोला भी नहीं था। मैं खुद को उस आग के बीच पूरी नंगी असहाय महसूस कर रही थी…नग्नता मेरे लिए गौड़ हो चुकी थी मेरे लिए जीवन मरण का प्रश्न था। मैं मदद की गुहार लगा रही थी परंतु मैंने महसूस किया कि मेरे लाख चिल्लाने के बाद भी मेरे मुख से आवाज बाहर नहीं निकल पा रही थी। यह क्या हो गया था ? मेरा बदन आग की गर्मी से तप रहा था..
तभी मैंने एक प्रौढ़ व्यक्ति को अपने पास आता हुआ महसूस किया वह श्वेत वस्त्र पहने हुए थे वह ऋषि मुनियों की भांति प्रतीत हो रहे थे.. वह उस आग को चीरकर मेरे पास आ चुके थे मैं मदद की गुहार लिए उनके समीप उनके आलिंगन में चली गई अपनी नग्नता का एहसास कुछ पलों के लिए गायब हो गया था..
उनकी मजबूत हथेलियां ने जब मेरी नंगी पीठ को छुआ तो मुझे अपनी नग्नता का एहसास हुआ।
उन्होंने मुझे अपनी गोद में उठा लिया और आग को चीरते हुए बाहर आ गए बाहर। आज की तपिश से बाहर आते ही मुझे शीतलता का एहसास होने लगा। मैं उन्हें पहचानने की लगातार कोशिश कर रही थी पर मेरे लिए यह मुमकिन नहीं था। अब मेरी नग्नता मुझे और शीतल कर रही थी वो मुझे एक बगीचे में ले आये।
फूलों के सुंदर उपवन में एक झूला लगा हुआ था। उन्होंने मुझे उस पर लिटा दिया और मेरे माथे पर चुंबन देते हुए कहा..
“देवी अब आप सुरक्षित हो…” मुझे लगा जैसे मैंने यह आवाज सुनी हुई है पर फिर भी उसे आवाज से उन ऋषि की पहचान करना कठिन था।
मैं अब ठंड से कांप रही थी…उन्होंने अपने सीने पर पहना हुआ अंग वस्त्र हटाया उनकी चौड़ी और नंगी छाती मेरी आंखों के सामने थी मैंने ऐसा दिव्य पुरुष कभी नहीं देखा था मैं एक टक उनके मांसल बदन को देखे जा रही थी उन्होंने अपना अंग वस्त्र मेरे बदन पर डालने की कोशिश की।
मेरा बदन अब भी कांप रहा था…. मैंने उन्हें अपने आलिंगन में लेने के लिए अपनी बाहें खोल दी.। वह मेरे ऊपर एक साये की तरह छाये जा रहे थे…
अचानक मैंने अपने बदन को उनसे सटते हुए महसूस किया। उनका मजबूत सीना मेरी नंगी चूचियों पर रगड़ खाने लगा। मेरी चूचियां जो ठंड की वजह से अकड़ कर तनी हुई थी उनके सीने का दबाव पाते ही सपाट होने लगी। वो मेरी आंखों में आंखें डाले लगातार मुझे देखे जा रहे थे परंतु मेरी उनसे नज़रें मिलाने की हिम्मत न थी।।

मैंने अपनी पलके बंद कर ली और उनके बदन की गर्मी को अपने बदन में महसूस करने लगी…
मेरी दोनों जांघें कब हवा में फैल गई मुझे पता भी ना चला और मुझे अपने वस्ति प्रदेश पर एक मजबूत लंड का स्पर्श महसूस हुआ जो अपनी दिशा तलाश रहा था। मैंने स्वयं अपनी जांघें हिलाकर उसे रास्ता देने की कोशिश की और वह मेरी योनि के भीतर गहरे और गहरे तक उतरता चला गया। क्या दिव्या एहसास था मेरी जांघों के बीच से बेहद गर्म शक्तिपुंज मेरे अंदर प्रवेश कर रहा था जो मुझे उत्तेजना के साथ-साथ गर्मी प्रदान कर रहा था उसकी तापिश से मेरे अंदरूनी अंग प्रत्यंग गर्म हो रहे थे।

कुछ ही देर में मैं दिव्य पुरुष से संभोगरत थी। वह बेहद हौले हौले से मेरा यौनिमर्दन कर रहे थे.. मेरी कंपकपाहट अब खत्म हो चली थी और पूरे बदन में एक गर्मी सी महसूस हो रही थी यह निश्चित थी उनके बदन की गर्मी से मिलने वाली गर्मी थी। मैं उसे व्यक्ति को पहचानने की कोशिश कर रही थी परंतु मेरे लिए यह कठिन हो रहा था परंतु जैसे-जैसे संभोग की गति बढ़ती गई और इस्खलन की बेला आ पहुंची..मुझे उसे व्यक्ति का चेहरा जाना पहचाना लगने लगा और जब उन्होंने मुझे मेरे नाम से पुकारा तो बरबस ही मेरे मुंह से निकल गया सरयू चाचा…

सोनी अचकचा कर उठकर बैठ गई । उसकी सांसे तेज थी वह हॉफ रही थी। उसने महसूस किया कि उसकी जांघों के बीच गीलापन था। लगता है वह अपने स्वप्न में ही स्खलित हो गई थी।
सोनी मन ही मन मुस्कुराने लगी। अपने स्खलन का जो आनंद उसने स्वप्न में उठाया था वह भी अनूठा था उसने एक बार फिर अपनी पलके बंद कर उस दृश्य को याद करना चाहा परंतु वह पानी के बुलबुले की तरह गायब हो चुका था पर सोनी के दिमाग में मीठी यादें छोड़ गया था।
सोनी के दिमाग में ब्रह्मचारी का रूप धरे सरयू सिंह धीरे-धीरे सोनी के हीरो बन चुके थे। एक पल के लिए सोनी को लगा कि वह स्वयं मेनका बनकर उनका ब्रह्मचर्य तोड़ सकती है। पर वह अपनी इस अनोखी सोच पर खुद ही मुस्कुरा बैठी अपने पिता तुल्य व्यक्ति से संबंध सोनी की कल्पना से परे था पर सपनों में वह यह आनंद कई बार ले चुकी थी।
विकास की मां का फोन लगातार आ रहा था वह भी बार-बार अपने पोते का जिक्र सोनी से करती और सोनी उसे अपना वादा पूरा करने की बात दोहरा कर शांत कर देती। विकास की मां की आकांक्षाएं सोनी पर लगातार दबाव बनाए हुए थीं।
अमेरिकी डॉक्टर की दवाइयां से कोई फायदा होता हुआ न देख विकास ने अपने देश भारत जाने की सोची।
वैसे भी विकास और सोनी को अपने देश आए काफी वक्त बीत चुका था और अब दोनों ने अपने देश आने की तैयारी करने लगे। विकास को अपने देश में इस समस्या के इलाज का ज्यादा भरोसा था वह मन में उम्मीद लिए सोनी को लेकर अपने वतन आने की तैयारी में लग गया।
जब यह खबर सुगना तक पहुंची उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा। सोनी को देखे कई दिन हो गए थे और अब उसके आगमन की खबर ने सुगना के मन में खुशियों की लहर बिखेर दी थी। अगले शनिवार तक यह खबर सभी की जुबान पर थी छोटा सूरज भी न जाने क्यों खुश हो रहा था उसकी प्यारी मौसी घर आ रही थी वह बार-बार अपने अंगूठे को देखता और मुस्कुरा देता।
खबर सरयू सिंह तक भी पहुंची और वह भी सोनी का स्वागत करने के लिए अपने मन में कई तरह की कल्पनाएं करने लगे। क्या सोनी बदल चुकी होगी उसके विवाह को एक वर्ष से ज्यादा हो गया था। निश्चित ही उसमें बदलाव अपेक्षित था। सरयू सिंह सोनी को अपनी कल्पनाओं में देखने की कोशिश कर रहे थे परंतु बार-बार उनका दिमाग सोनी के गदराए नितंबों पर अटक जा रहा था वह उनके आकार और उनमें आ रहे परिवर्तनों के बारे में ज्यादा चिंतित थे।
इंतजार में दिन बीत रहे थे
उधर लाली के मन में आए शक ने लाली को चिंतित कर दिया था। यद्यपि सोनू के हाथों में इत्र का कारण सुगना और सोनू ने एक ही बताया था पर क्या यह एक संयोग था कि इत्र हाथों पर लगा और सोनू ने तुरंत ही उसे अपने लंड पर रगड़ दिया।

सुगना के सामने या उसकी उपस्थिति में अपने लंड को छूना यह बात लाली के गले नहीं उतर रही थी। लाली सोनू और सुगना के बीच हो रही गतिविधियों पर नजर रखना चाहती थी।
अक्सर जब-जब लाली और सोनू बनारस आते लाली मनोहर को फोन कर देती और वह भी उनसे मिलने उनके घर आ जाता। सोनू को मजबूरन मनोहर का साथ देना पड़ता और सोनू और सुगना के मिलन में निश्चित ही बाधा उत्पन्न होती। पहले तो सोनू सुगना के साथ एकांत का कुछ न कुछ वक्त निकाल ही लेता था और कभी-कभी उसके आलिंगन और चुंबन का सुख प्राप्त कर लेता था कभी-कभी तो वह मौका पाकर अपना दहेज भी चूम चाट भी लेता।
पर अब सुगना और सोनू के मिलन में मनोहर की उपस्थिति से बाधा उत्पन्न हो रही थी। सोनू बनारस सिर्फ और सिर्फ सुगना से मिलने आता था सुगना उसके जीवन में और उसके अंगों में जान भर देती थी और वह सुगना की याद लिए अगला एक हफ्ता लाली के साथ फिर उसके इंतजार में बिता लेता था।
इस बार उसका पूरा दिन मनोहर के साथ इधर-उधर की बातें करने में गुजर गया वह चाह कर भी सुगना से अंतरंग नहीं हो पाया सोनू की बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
उधर मनोहर भी सोनू का साथ सिर्फ इसलिए दे रहा था ताकि वह ज्यादा से ज्यादा समय लाली और सोनू के घर में व्यतीत कर सके जब-जब सुगना चाय पानी के लिए उसके समीप आती उसके शरीर में एक ताजगी भर जाती।
मनोहर एक समझदार व्यक्ति था और अपनी मर्यादा में रहना जानता था। मनोहर के व्यवहार से अब तक सुगना उसके मन में चल रही भावनाओं का अंदाज नहीं लगा पाई थी। मनोहर सुगना को देखता तो अवश्य था पर उसकी नज़रें बचा कर। जब-जब सुगना चाय पानी देने के बाद पीछे मुड़कर रसोई की तरफ जाती मनोहर की निगाहें उसके बदन के कटाव को देखती और उसके मन में सुगना की कल्पना और मूर्त रूप ले लेती। सोनू मनोहर के यहां लगातार रहने से अब थोड़ा विचलित हो रहा था।

दोपहर का खाना होने के पश्चात उसने लाली से कहा..
मनोहर जी के लिए बच्चों वाले कमरे में बिस्तर लगा दो थोड़ा आराम कर लेंगे तब तक मैं भी आराम कर लेता हूं हम सबको एक-दो दिन ही तो दोपहर की नींद लेने का अवसर प्राप्त होता है। मनोहर ने सोनू की हां में हां मिलाई और बच्चों के कमरे में लेट गया।
मनोहर को नींद कहां आ रही थी पर वह धीरे-धीरे बच्चों से घुल मिल गया सभी बच्चे मनोहर के पास बैठकर कुछ खेल खेलने लगे और मनोहर भी उनमें बच्चों की तरह खो गया। सुगना की मां पदमा मनोहर के व्यक्तित्व का आकलन कर रही थी। वह भी उनके पास बैठी मनोहर से बातें कर रही थी। धीरे-धीरे मनोहर पूरे घर परिवार का मन जीतता गया। परंतु सोनू को मनोहर की उपस्थिति अब खलने लगी थी।
पिछले दो-तीन हफ्तों से सुगना से अंतरंग न हो पाने के कारण सोनू के गर्दन का दाग पूरी तरह गायब था. लाली भी अब सोनू के गर्दन के दाग का रहस्य समझना चाहती थी आखिर ऐसा क्या हो जाता था जौनपुर में या सलेमपुर में जिससे सोनू के गर्दन का दाग ठीक उसी जगह उभर आता था।
सुगना के इत्र की खुशबू ने लाली को उन दोनों के बारे में सोचने पर विवश कर दिया था यद्यपि इसका कारण और प्रारब्ध लाली दोनों ही नहीं समझ पा रही थी।।।
लाली जितना ही इस बारे में सोचती उसका दिमाग उतना ही खराब होता। सोनू और सुगना के बीच जो उस दीपावली की काली रात को हुआ था उसका असर उसने घर में कई महीनो तक देखा था। वह स्वयं अपराध भाव से हमेशा के लिए ग्रस्त हो गई थी। लाली स्वयं अपने आप को उसे अपवित्र मिलन के लिए गुनाहगार मानती थी। आखिरकार सुगना जैसी संजीदा औरत क्यों कर ऐसे अपवित्र संबंध बनाएगी वह भी अपने सगे भाई से…. मेल मिलाप बातचीत कामुक बातें छेड़छाड़ सब अपनी जगह पर अपनी ही सगे भाई से अपनी बुर चुदवाना छी छी सुगना ऐसा कभी नहीं करेगी।
लाली का दिमाग कई दिशा में दौड़ रहा था परंतु सटीक उत्तर खोज पाना कठिन था उसे इतना तो एहसास था कि पहले सोनू सुगना के नाम से उत्साहित और उत्तेजित हो जाता है.. परंतु उसे सोनू से ज्यादा सुगना पर भरोसा था.
सोनू भी अब सुगना से मिलन के लिए तड़प रहा था तीन-चार हफ्ते बीत चुके थे और हर बार जाने अनजाने मनोहर लाली के घर में उपस्थित होकर सोनू और सुगना के मिलन में बाधा डाल देता था.
अगली बार जौनपुर से निकलते समय ही उसने लाली को सचेत कर दिया और बेहद सलीके से कहा
“मनोहर भैया को शाम को खाने पर बुलाना दोपहर में उनका भी अपना काम होता होगा.”.
“हां ठीक है .. सोनू की बात काटने की हिम्मत लाली में न थी उसने उसके सुर में सुर मिलाते हुए कहा..मैं भी यही सोच रही थी सुगना से आराम से बात नहीं हो पाती ज्यादातर समय मनोहर जी की खातेदारी में ही बीत जाता है इस बार शाम के लिए ही बोलूंगी…
उधर मनोहर हमेशा इतवार के दिन का इंतजार किया करता था लाली के घर जाने का उसका आकर्षण अब सुगना बन चुकी थी। मनोहर का प्यार एक तरफा था सुगना जैसी पारखी स्त्री भी अब तक मनोहर की मनोदशा से अनजान थी। शायद मनोहर भी महिलाओं को समझता था और अपनी वासना भरी निगाहों पर उसका नियंत्रण कायम था..
सुगना उसके जीवन में एक सुगंध की तरह आ गई थी जिसकी खुशबू वह पूरे हफ्ते तक महसूस करता और जब उसकी यादें धूमिल पड़ती वह उन्हें तरोताजा करने फिर सुगना के घर पहुंच जाता..
सुगना स्वयं सोनू की चमकती गर्दन को दागदार करने के लिए स्वयं अधीर हो रही थी।
सुगना के घर फोन की घंटी बजी
“सुगना दीदी…प्रणाम , हम लोग दीपावली में बनारस आ रहे हैं” यह चहकती आवाज सोनी की थी। उनका इंडिया आने का टिकट कंफर्म हो चुका था। दीपावली के पटाखे का इंतजार सबको था पाठकों को भी और नियति को भी..

शेष अगले भाग में
Kahani badhiya chal rahi hai all the best 👍👍👍👍
 

chantu

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आप का कथानक एक नई दुनिया का एहसास देता हैं
 

Lovely Anand

Love is life
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भाग 150

उधर मनोहर हमेशा इतवार के दिन का इंतजार किया करता था लाली के घर जाने का उसका आकर्षण अब सुगना बन चुकी थी। मनोहर का प्यार एक तरफा था सुगना जैसी पारखी स्त्री भी अब तक मनोहर की मनोदशा से अनजान थी। शायद मनोहर भी महिलाओं को समझता था और अपनी वासना भरी निगाहों पर उसका नियंत्रण कायम था..
सुगना उसके जीवन में एक सुगंध की तरह आ गई थी जिसकी खुशबू वह पूरे हफ्ते तक महसूस करता और जब उसकी यादें धूमिल पड़ती वह उन्हें तरोताजा करने फिर सुगना के घर पहुंच जाता..
सुगना स्वयं सोनू की चमकती गर्दन को दागदार करने के लिए स्वयं अधीर हो रही थी।
सुगना के घर फोन की घंटी बजी
“सुगना दीदी…प्रणाम , हम लोग दीपावली में बनारस आ रहे हैं” यह चहकती आवाज सोनी की थी। उनका इंडिया आने का टिकट कंफर्म हो चुका था और अगले महीने विकास और सोनी अमेरिका से बनारस आ रहे थे।

अब आगे….
बनारस में सुगना से मिलना सोनू के लिए कठिन हो रहा था। फिर भी सुगना सोनू को कभी भी खाली हाथ विदा नहीं करती थी.. और गर्दन के दाग को अक्सर जीवंत जरूर कर देती थी चाहे आकस्मिक हस्तमैथुन, त्वरित मुख मैथुन द्वारा हो या फिर कभी त्वरित संभोग द्वारा।
सुगना के पास सोनू को खुश करने के कई उपाय थे पर सबसे ज्यादा खुशी सोनू को अपने दहेज को देखने और चूमने चाटने में मिलती थी जिसके लिए एकांत आवश्यक था।
लाली को हमेशा से यह कंफ्यूजन बना रहता था की जौनपुर आने के बाद ऐसा क्या हो जाता है कि सोनू की गर्दन पर दाग उभर आता है। सोनू और सुगना के कामुक मिलन का संबंध इस दाग से था लाली इससे अनभिज्ञ थी।
पिछली बार की तरह सुगना के साथ सलेमपुर अकेले जाने दोबारा अवसर कभी प्राप्त नहीं हो रहा था…
सोनू तो सुगना को अपने घर सीतापुर ले जाने की फिराक में था परंतु उसकी मां पदमा ने अपने किसी रिश्तेदार को वहां रख छोड़ा था।
मनुष्य अपनी परिस्थितियों का निर्माता स्वयं होता है।
इस बार सोनू ने अपनी चाल चल दी…
सोनू ने सरयू सिंह का ट्रांसफर बनारस के पास के एक गांव में करवा दिया…यह काम उसने गुपचुप तरीके से किया जिससे सरयू सिंह मजबूरन बनारस आ जाए। सरयू सिंह के बनारस आगमन के कई फायदे थे।
एक तो जौनपुर जाने के पश्चात घर सुगना के घर में कोई मर्द नहीं रहता था सुगना और उसकी मां अकेले रहती थी और सोनू को हमेशा एक डर लगा रहता था। सरयू सिंह की उपस्थिति से घर में एक मर्द की कमी पूरी हो जाती जो गाहे बगाहे जरूरत पड़ने पर पूरे परिवार की मदद कर सकता था। यद्यपि सोनू यह कार्य अपने किसी साथी या मनोहर से भी करा सकता था परंतु अपना अपना होता है।
सरयू सिंह के लिहाज से भी यह अच्छा था क्योंकि उन्हें अक्सर अपने या कजरी के इलाज के लिए बनारस आना पड़ता था सो उनका भी काम आसान हो जाना था।
एक हफ्ते बाद सरयू सिंह कजरी के साथ बनारस शिफ्ट हो चुके थे और अपनी नई पोस्टिंग पर ज्वाइन कर चुके थे।
गांव में उनके दरवाजे पर ताला लटक चुका था। सोनू यही नहीं रुका। अपने घर सीतापुर में रह रहे रिश्तेदार को भी उसने जौनपुर बुला लिया और एक छोटी-मोटी नौकरी लगा दी वह रिश्तेदार अब शनिवार और रविवार के दिन सोनू के घर का ख्याल रखने लगा।
वैसे भी सोनू को पता था गांव में ऐसा कुछ था ही नहीं जिसे चोरी किया जा सके।
सोनू अपनी शतरंज की बिसात बिछा चुका था।
शतरंज की विसात सिर्फ सोनू ने नहीं बिछाई थी अपितू सरयू सिंह भी अपने मन की बात जो उन्होंने मनोहर को लेकर कजरी से की थी वही बात आज पदमा से कर रहे थे। कजरी सरयू सिंह और पदमा के बीच मध्यस्थ का काम कर रही थी उसने पदमा को समझाते हुए कहा
“ए बहिनी जैसे लाली के भाग्य खुल गईल ओकर दोसर बियाह हो गईल …का हमार सुगना के ना हो सकेला?
कजरी ने तो जैसे पदमा के मन की बात कह दी थी अब जब सुगना की सास ने आगे बढ़कर या बात कही थी तो पद्मा ने तुरंत ही अपनी हामी भर दी. पर उसके मन में संशय था अपने संशय को मिटाने के उद्देश्य से उसने आतुरता से कहा..
“पर सुगना तो अभी सुहागन दिया दोसर ब्याह कैसे हो सकेला ?”
अब बारी सरयू सिंह की थी
“अईसन बियाह कौन काम के ? जब पति सन्यासी बैरागी हो होकर घर से भाग गईल बा. “
सरयू सिंह की बातें कजरी को थोड़ा नागवार गुजरी आखिर कुछ भी हो रतन उसका पुत्र था परंतु बात तो सच थी। कजरी ने सरयू सिंह की बात को आगे बढ़ते हुए कहा
अब रतन के भूल जायल ही ठीक बा। उ वापस ना लौटी सुगना सिंदूर जरूर लगावत दिया पर ओकर वापस आवे के अब कोनो उम्मीद नईखे।
पद्मा को उम्मीद की किरण दिखाई पड़ने लगी अब जब सरयू सिंह और कजरी दोनों जो सुगना के साथ ससुर की भूमिका निभा रहे थे जब उन्होंने ही फैसला कर लिया था। पद्मा ने कजरी का हाथ पकड़ते हुए कहा
“ देखा भगवान का चाहत बाड़े पर सुगना से ब्याह के करी “
तीनों के मन में ही एक ही उत्तर था पर कहने की जहमत कजरी ने ही उठाई
“ए बहिनी तहरा मनोहर कईसन लागेले?”
पदमा की अंतरात्मा खुश हो गई
“उ तो बहुत सुंदर लाइका बाड़े पर का ऊ भी ऐसन सोचत होगें”
“यदि तारा पसंद होखे तो उनका मन छुवल जाऊ । आखिर वह भी तो अकेले ही रहले । उनका भी इ दोसर बियाह होखी। सुगना और मनोहर के जोड़ी अच्छा लगी” कजरी ने पदमा से कहा
सरयू सिंह ने भी अपनी सहमति दी और घर के तीनों बुजुर्ग एक मत होकर सुगना के लिए मनोहर को पसंद कर चुके थे। अब बारी थी मनोहर का मन जानने की।
सरयू सिंह ने बेहद चतुराई और अपने अनुभव से कहा कि “सब काम में जल्दी बाजी नइखे करेके मनोहर के धीरे-धीरे आवे जावे द लोग यदि उनका मन में ऐसा कोई बात होगी तो धीरे-धीरे पता लाग ही जाए”
पद्मा ने अपनी बात रखते हुए कहा
“ हां लाली बुची मनोहर के मन छू सकेली..”
बात सच थी लाली सुगना की सहेली थी और मनोहर उसका ममेरा भाई वह बातों ही बातों में मनोहर के दूसरे विवाह और उस दौरान सुगरा का जिक्र कर मनोहर के अंतर्मन को पढ़ सकती थी।
यद्यपि अब तक लाली को ना तो कोई इसका अंदाजा था और नहीं अपने घर के वरिष्ठ सदस्यों के मन में चल रहे इस अनोखे विचार के बारे में कोई आभास।
उधर विकास सोनी का खेत जोत जोत कर थक चुका था परंतु सोनी गर्भधारण करने में अक्षम रही थी जब बीज में दम नहीं था तो फसल क्या खाक उगती..
सोनी की वासना पर ग्रहण लग चुका था। सेक्स अब एक काम की भांति लगता था किसका परिणाम सिफर था। पर सोनी की सपने बदस्तूर जारी थे। सरयू सिंह उसके अवचेतन मन के सपनों के हीरो थे सोनी को यह आभास था कि हकीकत में यह संभव न था। कैसे वह नग्न होकर पितातुल्य सरयू सिंह को उसे चोदने के लिए आमंत्रित करेगी। या सरयू सिंह कैसे उसे नग्न कर उसकी गोरी जांघें फैलाएंगे और उसकी मुनिया को अपनी आंखों से देखेंगे..
आह वह पल कैसा होगा जब वह अपना तना हुआ विशाल लंड अपनी हथेलियों से मसलते हुए उसकी बुर के भग्नाशे पर रगड़ेंगे और उसे धीरे धीरे…..
आह सोनी ने महसूस किया कि आज बाद जागती आंखों से स्वप्न देखने को कशिश कर रही है…बुर में संवेदना जाग चुकी थी…सोनी इस एहसास को और महसूस करना चाहती थी…सरयू सिंह का लंड न सही उसकी जगह उसकी अंगुलियों ने बुर में अपनी हलचल बढ़ा दी. दिमाग में सरयू सिंह के साथ सोनी ने वो सारी कल्पनाएं की जो उसका चेतन मन शायद कभी न कर पाता पर वासना ग्रसित सोनी स्वतंत्र थी और उसकी सोच भी…
आखिर कर सोनी ने हांफते हुए एक सफल स्खलन को पूर्ण किया और ….अपनी नींद लेने लगी।
दिन बीत रहे थे…
उधर रतन मोनी के करीब आने की कोशिश में लगा हुआ था। माधवी यह बात जान चुकी थी और वह मोनी को अपना संरक्षण दी हुए थी वह मोनी कोर्नटन से दूर ही रखना चाहती थी। रतन ने जब में माधवी को धोखे से कूपे में अपने किसी लड़के से बेरहमी से चुदवाया तब से उनमें एक दूरी सी आ गईं थी।
मोनी धीरे धीरे पूरे आश्रम में प्रसिद्ध हो चुकी थी…अपनी सुंदरता कटावदार बदन और चमकते चेहरे की वजह से अनूठी लगती थी। उपर से इतने दिन कूपे में जाने के बावजूद उसका कौमार्य सुरक्षित था।
कूपे में धीरे धीरे रेटिंग सिस्टम भी शुरू हो चुका था..
लड़के कूपे में आई लड़की के सौन्दर्य और उसके कामुक अंगों के आधार पर अपनी रेटिंग देते। मोनी उसमें भी नंबर वन थी।
और इसी प्रकार मोनी ने अपने 11 महीने पूर्ण कर लिए।
विद्यानंद का यह अनूठा विश्वास था की स्त्री योनि को पुरुष यदि लगातार कामुकता के साथ स्पर्श चुंबन और स्पर्श करते रहे तो स्त्री को अपना काउमरीय सुरक्षित करना संभव था उसे संभोग के लालसा निश्चित ही उत्पन्न होती और वह संभोगरत हो ही जाती।
इस अनोखे कूपे का निर्माण भी शायद विद्यानंद ने अपने इसी विश्वास को मूर्त रूप देने करने के लिए बनवाया था। और वह काफी हद तक इसमें सफल भी रहा था। लगभग लड़किया कूपे में जाने के बाद अपना सुरक्षित रखने में नाकामयाब रहीं थी। कोई एक महीना तो कोई दो महीना कुछ चार पांच महीने तक तक भी अपना कौमार्य सुरक्षित रखने में कामयाब रहीं थीं। परंतु मोनी अनूठी थी उसने विद्यानंद की परीक्षा पास कर ली थी और 11 महीने बाद भी उसका कौमार्य सुरक्षित था।
आखिरकार विद्यानंद ने स्वयं मोर्चा संभाला। मोनी की अगली परीक्षा के लिए एक विशेष दिन निर्धारित किया गया। आश्रम में उत्सव का दिन था।
मोनी को आज के दिन होने वाली गतिविधियों का कोई भी पूर्वानुमान नहीं था बस उसे इतना पता था कि आज आश्रम में एक विशेष दिन है जिसमें उसकी अहम भूमिका है।
प्रातः काल नित्य कर्म के बाद उसे एक बार फिर कुंवारी लड़कियों के साथ उपवन भ्रमण के लिए भेज दिया गया सुबह के 10:00 बजे मोनी ने दुग्ध स्नान किया और तत्पश्चात सुगंधित इत्र और विशेष प्रकार की सुगंध से बहे कुंड में स्नान कराया गया।
मोनी का रोम रोम खिल चुका था। उसकी चमकती त्वचा और भी निखर गई थी पूरे शरीर में एक अलग किस्म की संवेदना थी त्वचा का निखार और चमक अद्भुत थी। त्वचा की कोमलता अफगान के सिल्क से भी मुलायम और कोमल थी।
मोनी को श्वेत सिल्क से बने गाउन को पहनाया गया और धीरे-धीरे मोनी आश्रम के उस विशेष कक्ष में उपस्थित हो गई।
विशेष कक्ष को करीने से सजाया गया था। राजा महाराजा के शयन कक्ष भी शायद इतने खूबसूरत नहीं होते होंगे जितना सुंदर आश्रम का यह खूबसूरत कमरा था।
बेहद खूबसूरत आलीशान पलंग पर लाल मखमली चादर बिछी हुई थी। सिरहाने पर मसलंद और तकिया करीने से सजाए गए थे। शयनकश की दीवारें खूबसूरत पेंटिंग और तरह-तरह की मूर्तियों से सुसज्जित थीं। कमरे से ताजे फूलों की भीनी भीनी खुशबू आ रही थी ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे यह संयनकक्ष किसी बाग के अंदर निर्मित किया गया हो।
मोनी भव्यता और सुंदरता दोनों से अभिभूत थी…उसे स्वयं किसी राजमहल की रानी होने का अनुमान हो रहा था धीरे-धीरे उसकी मातहत उसे उसे वैभवशाली पलंग तक ले आई और बेहद विनम्रता से कहा आप पलंग पर बैठ जाइए थोड़ी ही देर में आगे की दिशा निर्देश दिए जाएंगे।
मोनी आश्चर्य से होने वाली घटनाक्रम को अंदाज रही थी। तभी कमरे में एक गंभीर आवाज गूंजी
देवी आप धन्य है.. आप शायद आश्रम की ऐसी पहली युवती है जिसने पिछले 11 महीनो से लगातार पुरुष प्रजाति की सेवा करने के पश्चात भी अपना कौमार्य सुरक्षित रखा है। मैं आपसे काफी प्रभावित हूं। इस आश्रम के नियमों के अनुसार आपको अंतिम परीक्षा से गुजरना होगा। इस परीक्षा में सफल होने के पश्चात आपको भविष्य में किसी कूपे में जाने की आवश्यकता नहीं होगी परंतु यदि आप चाहे तो स्वेच्छा से अवश्य जा सकती है..
इसके अतिरिक्त आपको आश्रम में एक विशेष दर्जा प्राप्त होगा जो निश्चित ही आपके लिए सम्मान का विषय होगा।
यह परीक्षा आपके यौन संयम की ही परीक्षा है जिसमें अब तक आप सफल होती आई है। यदि आप इस परीक्षा में स्वेच्छा से भाग लेना चाहती हैं तो अपने दोनों हाथ जोड़कर खड़े हो जाए और अपना श्वेत वस्त्र स्वयं निकालकर पास पड़ी टेबल पर रख दें। उसी टेबल पर एक रुमाल नुमा कपड़ा रखा होगा उसे स्वयं अपनी आंखों पर बांध ले। आपकी परीक्षा लेने वाला पुरुष शायद आपसे नजरे नहीं मिल पाएगा और आपको भी उसे देखने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए यह नियमों के विरुद्ध होगा।
कूपे की भांति इस समय भी आपके पास लाल बटन उपलब्ध रहेगा जो की पलंग के सिरहाने रखा हुआ है आप जब चाहे उसे दबाकर उस व्यक्ति को अपनी गतिविधियां रोकने के लिए इशारा कर सकती है।
ध्यान रहे लाल बटन का प्रयोग सिर्फ तभी करना है जब पुरुष आपसे ज्यादती कर रहा हो…
मुझे विश्वास है कि आप नियम पूरी तरह समझ चुकी होगी। मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं..
वह गंभीर आवाज अचानक ही शांत हो गई. मोनी को यह आवाज कुछ जानी पहचानी लग रही थी परंतु लाउडस्पीकर से आने की वजह से वह पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो पा रही थी।
मोनी ने मन ही मन इस परीक्षा में भाग लेने की ठान ली। वैसे भी वह अब तक आश्रम में विशेष सम्मान पाती आई थी उसके मन में और भी ऊपर उठने की लालसा प्रबल थी। मोनी उठकर अपना श्वेत रंग का गाउन उतरने लगी जैसे-जैसे वह गांव उसके बदन का साथ छोड़ता गया मोनी की मादक और चमकती काया नग्न होने लगी। सामने आदमकद दर्पण में अपनी खूबसूरत बदन को निहारती मोनी स्वयं अपनी सुंदरता से अभीभूत हो रही थी।
तरासे हुए उरोज, पतली गठीली कमर.. मादक और भरी-भरी जांघें और उनके जोड़ पर बरमूडा ट्रायंगल की तरह खूबसूरत त्रिकोण जिस पर कुदरत का लगाया वह अद्भुत चीरा जिसके अंदर प्रकृति का सार छुपा हुआ था। मोनी का यह रहस्य अब तक उजागर नहीं हुआ था। वह स्खलित तो कई बार हुई थी पर अपने कौमार्य को बचाने में सफल रहीं थी…
मोनी अपने पैर आगे पीछे कर अपने गदराए नितंबों को देखने का लालच नहीं रोक पा रही थी। वह पीछे पलटी और अपनी गर्दन घूमाकर दर्पण में अपने बदन के पिछले भाग को देखने लगी मोनी के नितंब बेहद आकर्षक थे वह अपनी हथेलियां से उसे छूती और उसकी कोमलता और कसाव दोनों को महसूस करती।
वह मन ही मन ईश्वर को इतनी सुंदर काया देने के लिए धन्यवाद कर रही थी । आखिरकार उसने अपनी आंखों पर सफेद रुमाल को लपेटकर जैसे ही मोनी ने गांठ बंधी उसकी आंखों के सामने के दृश्य ओझल होते गए। उसे इतना तो एहसास हो रहा था कि कमरे में अब भी रोशनी थी परंतु आंखों से कुछ दिखाई पड़ना संभव नहीं था।
वह चुपचाप बिस्तर पर बैठ गई अपनी जांघें एक दूसरे से सटाए वह अपने परीक्षक का इंतजार कर रही थी।
शेष अगले भाग में..
 
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