भाग 150
उधर मनोहर हमेशा इतवार के दिन का इंतजार किया करता था लाली के घर जाने का उसका आकर्षण अब सुगना बन चुकी थी। मनोहर का प्यार एक तरफा था सुगना जैसी पारखी स्त्री भी अब तक मनोहर की मनोदशा से अनजान थी। शायद मनोहर भी महिलाओं को समझता था और अपनी वासना भरी निगाहों पर उसका नियंत्रण कायम था..
सुगना उसके जीवन में एक सुगंध की तरह आ गई थी जिसकी खुशबू वह पूरे हफ्ते तक महसूस करता और जब उसकी यादें धूमिल पड़ती वह उन्हें तरोताजा करने फिर सुगना के घर पहुंच जाता..
सुगना स्वयं सोनू की चमकती गर्दन को दागदार करने के लिए स्वयं अधीर हो रही थी।
सुगना के घर फोन की घंटी बजी
“सुगना दीदी…प्रणाम , हम लोग दीपावली में बनारस आ रहे हैं” यह चहकती आवाज सोनी की थी। उनका इंडिया आने का टिकट कंफर्म हो चुका था और अगले महीने विकास और सोनी अमेरिका से बनारस आ रहे थे।
अब आगे….
बनारस में सुगना से मिलना सोनू के लिए कठिन हो रहा था। फिर भी सुगना सोनू को कभी भी खाली हाथ विदा नहीं करती थी.. और गर्दन के दाग को अक्सर जीवंत जरूर कर देती थी चाहे आकस्मिक हस्तमैथुन, त्वरित मुख मैथुन द्वारा हो या फिर कभी त्वरित संभोग द्वारा।
सुगना के पास सोनू को खुश करने के कई उपाय थे पर सबसे ज्यादा खुशी सोनू को अपने दहेज को देखने और चूमने चाटने में मिलती थी जिसके लिए एकांत आवश्यक था।
लाली को हमेशा से यह कंफ्यूजन बना रहता था की जौनपुर आने के बाद ऐसा क्या हो जाता है कि सोनू की गर्दन पर दाग उभर आता है। सोनू और सुगना के कामुक मिलन का संबंध इस दाग से था लाली इससे अनभिज्ञ थी।
पिछली बार की तरह सुगना के साथ सलेमपुर अकेले जाने दोबारा अवसर कभी प्राप्त नहीं हो रहा था…
सोनू तो सुगना को अपने घर सीतापुर ले जाने की फिराक में था परंतु उसकी मां पदमा ने अपने किसी रिश्तेदार को वहां रख छोड़ा था।
मनुष्य अपनी परिस्थितियों का निर्माता स्वयं होता है।
इस बार सोनू ने अपनी चाल चल दी…
सोनू ने सरयू सिंह का ट्रांसफर बनारस के पास के एक गांव में करवा दिया…यह काम उसने गुपचुप तरीके से किया जिससे सरयू सिंह मजबूरन बनारस आ जाए। सरयू सिंह के बनारस आगमन के कई फायदे थे।
एक तो जौनपुर जाने के पश्चात घर सुगना के घर में कोई मर्द नहीं रहता था सुगना और उसकी मां अकेले रहती थी और सोनू को हमेशा एक डर लगा रहता था। सरयू सिंह की उपस्थिति से घर में एक मर्द की कमी पूरी हो जाती जो गाहे बगाहे जरूरत पड़ने पर पूरे परिवार की मदद कर सकता था। यद्यपि सोनू यह कार्य अपने किसी साथी या मनोहर से भी करा सकता था परंतु अपना अपना होता है।
सरयू सिंह के लिहाज से भी यह अच्छा था क्योंकि उन्हें अक्सर अपने या कजरी के इलाज के लिए बनारस आना पड़ता था सो उनका भी काम आसान हो जाना था।
एक हफ्ते बाद सरयू सिंह कजरी के साथ बनारस शिफ्ट हो चुके थे और अपनी नई पोस्टिंग पर ज्वाइन कर चुके थे।
गांव में उनके दरवाजे पर ताला लटक चुका था। सोनू यही नहीं रुका। अपने घर सीतापुर में रह रहे रिश्तेदार को भी उसने जौनपुर बुला लिया और एक छोटी-मोटी नौकरी लगा दी वह रिश्तेदार अब शनिवार और रविवार के दिन सोनू के घर का ख्याल रखने लगा।
वैसे भी सोनू को पता था गांव में ऐसा कुछ था ही नहीं जिसे चोरी किया जा सके।
सोनू अपनी शतरंज की बिसात बिछा चुका था।
शतरंज की विसात सिर्फ सोनू ने नहीं बिछाई थी अपितू सरयू सिंह भी अपने मन की बात जो उन्होंने मनोहर को लेकर कजरी से की थी वही बात आज पदमा से कर रहे थे। कजरी सरयू सिंह और पदमा के बीच मध्यस्थ का काम कर रही थी उसने पदमा को समझाते हुए कहा
“ए बहिनी जैसे लाली के भाग्य खुल गईल ओकर दोसर बियाह हो गईल …का हमार सुगना के ना हो सकेला?
कजरी ने तो जैसे पदमा के मन की बात कह दी थी अब जब सुगना की सास ने आगे बढ़कर या बात कही थी तो पद्मा ने तुरंत ही अपनी हामी भर दी. पर उसके मन में संशय था अपने संशय को मिटाने के उद्देश्य से उसने आतुरता से कहा..
“पर सुगना तो अभी सुहागन दिया दोसर ब्याह कैसे हो सकेला ?”
अब बारी सरयू सिंह की थी
“अईसन बियाह कौन काम के ? जब पति सन्यासी बैरागी हो होकर घर से भाग गईल बा. “
सरयू सिंह की बातें कजरी को थोड़ा नागवार गुजरी आखिर कुछ भी हो रतन उसका पुत्र था परंतु बात तो सच थी। कजरी ने सरयू सिंह की बात को आगे बढ़ते हुए कहा
अब रतन के भूल जायल ही ठीक बा। उ वापस ना लौटी सुगना सिंदूर जरूर लगावत दिया पर ओकर वापस आवे के अब कोनो उम्मीद नईखे।
पद्मा को उम्मीद की किरण दिखाई पड़ने लगी अब जब सरयू सिंह और कजरी दोनों जो सुगना के साथ ससुर की भूमिका निभा रहे थे जब उन्होंने ही फैसला कर लिया था। पद्मा ने कजरी का हाथ पकड़ते हुए कहा
“ देखा भगवान का चाहत बाड़े पर सुगना से ब्याह के करी “
तीनों के मन में ही एक ही उत्तर था पर कहने की जहमत कजरी ने ही उठाई
“ए बहिनी तहरा मनोहर कईसन लागेले?”
पदमा की अंतरात्मा खुश हो गई
“उ तो बहुत सुंदर लाइका बाड़े पर का ऊ भी ऐसन सोचत होगें”
“यदि तारा पसंद होखे तो उनका मन छुवल जाऊ । आखिर वह भी तो अकेले ही रहले । उनका भी इ दोसर बियाह होखी। सुगना और मनोहर के जोड़ी अच्छा लगी” कजरी ने पदमा से कहा
सरयू सिंह ने भी अपनी सहमति दी और घर के तीनों बुजुर्ग एक मत होकर सुगना के लिए मनोहर को पसंद कर चुके थे। अब बारी थी मनोहर का मन जानने की।
सरयू सिंह ने बेहद चतुराई और अपने अनुभव से कहा कि “सब काम में जल्दी बाजी नइखे करेके मनोहर के धीरे-धीरे आवे जावे द लोग यदि उनका मन में ऐसा कोई बात होगी तो धीरे-धीरे पता लाग ही जाए”
पद्मा ने अपनी बात रखते हुए कहा
“ हां लाली बुची मनोहर के मन छू सकेली..”
बात सच थी लाली सुगना की सहेली थी और मनोहर उसका ममेरा भाई वह बातों ही बातों में मनोहर के दूसरे विवाह और उस दौरान सुगरा का जिक्र कर मनोहर के अंतर्मन को पढ़ सकती थी।
यद्यपि अब तक लाली को ना तो कोई इसका अंदाजा था और नहीं अपने घर के वरिष्ठ सदस्यों के मन में चल रहे इस अनोखे विचार के बारे में कोई आभास।
उधर विकास सोनी का खेत जोत जोत कर थक चुका था परंतु सोनी गर्भधारण करने में अक्षम रही थी जब बीज में दम नहीं था तो फसल क्या खाक उगती..
सोनी की वासना पर ग्रहण लग चुका था। सेक्स अब एक काम की भांति लगता था किसका परिणाम सिफर था। पर सोनी की सपने बदस्तूर जारी थे। सरयू सिंह उसके अवचेतन मन के सपनों के हीरो थे सोनी को यह आभास था कि हकीकत में यह संभव न था। कैसे वह नग्न होकर पितातुल्य सरयू सिंह को उसे चोदने के लिए आमंत्रित करेगी। या सरयू सिंह कैसे उसे नग्न कर उसकी गोरी जांघें फैलाएंगे और उसकी मुनिया को अपनी आंखों से देखेंगे..
आह वह पल कैसा होगा जब वह अपना तना हुआ विशाल लंड अपनी हथेलियों से मसलते हुए उसकी बुर के भग्नाशे पर रगड़ेंगे और उसे धीरे धीरे…..
आह सोनी ने महसूस किया कि आज बाद जागती आंखों से स्वप्न देखने को कशिश कर रही है…बुर में संवेदना जाग चुकी थी…सोनी इस एहसास को और महसूस करना चाहती थी…सरयू सिंह का लंड न सही उसकी जगह उसकी अंगुलियों ने बुर में अपनी हलचल बढ़ा दी. दिमाग में सरयू सिंह के साथ सोनी ने वो सारी कल्पनाएं की जो उसका चेतन मन शायद कभी न कर पाता पर वासना ग्रसित सोनी स्वतंत्र थी और उसकी सोच भी…
आखिर कर सोनी ने हांफते हुए एक सफल स्खलन को पूर्ण किया और ….अपनी नींद लेने लगी।
दिन बीत रहे थे…
उधर रतन मोनी के करीब आने की कोशिश में लगा हुआ था। माधवी यह बात जान चुकी थी और वह मोनी को अपना संरक्षण दी हुए थी वह मोनी कोर्नटन से दूर ही रखना चाहती थी। रतन ने जब में माधवी को धोखे से कूपे में अपने किसी लड़के से बेरहमी से चुदवाया तब से उनमें एक दूरी सी आ गईं थी।
मोनी धीरे धीरे पूरे आश्रम में प्रसिद्ध हो चुकी थी…अपनी सुंदरता कटावदार बदन और चमकते चेहरे की वजह से अनूठी लगती थी। उपर से इतने दिन कूपे में जाने के बावजूद उसका कौमार्य सुरक्षित था।
कूपे में धीरे धीरे रेटिंग सिस्टम भी शुरू हो चुका था..
लड़के कूपे में आई लड़की के सौन्दर्य और उसके कामुक अंगों के आधार पर अपनी रेटिंग देते। मोनी उसमें भी नंबर वन थी।
और इसी प्रकार मोनी ने अपने 11 महीने पूर्ण कर लिए।
विद्यानंद का यह अनूठा विश्वास था की स्त्री योनि को पुरुष यदि लगातार कामुकता के साथ स्पर्श चुंबन और स्पर्श करते रहे तो स्त्री को अपना काउमरीय सुरक्षित करना संभव था उसे संभोग के लालसा निश्चित ही उत्पन्न होती और वह संभोगरत हो ही जाती।
इस अनोखे कूपे का निर्माण भी शायद विद्यानंद ने अपने इसी विश्वास को मूर्त रूप देने करने के लिए बनवाया था। और वह काफी हद तक इसमें सफल भी रहा था। लगभग लड़किया कूपे में जाने के बाद अपना सुरक्षित रखने में नाकामयाब रहीं थी। कोई एक महीना तो कोई दो महीना कुछ चार पांच महीने तक तक भी अपना कौमार्य सुरक्षित रखने में कामयाब रहीं थीं। परंतु मोनी अनूठी थी उसने विद्यानंद की परीक्षा पास कर ली थी और 11 महीने बाद भी उसका कौमार्य सुरक्षित था।
आखिरकार विद्यानंद ने स्वयं मोर्चा संभाला। मोनी की अगली परीक्षा के लिए एक विशेष दिन निर्धारित किया गया। आश्रम में उत्सव का दिन था।
मोनी को आज के दिन होने वाली गतिविधियों का कोई भी पूर्वानुमान नहीं था बस उसे इतना पता था कि आज आश्रम में एक विशेष दिन है जिसमें उसकी अहम भूमिका है।
प्रातः काल नित्य कर्म के बाद उसे एक बार फिर कुंवारी लड़कियों के साथ उपवन भ्रमण के लिए भेज दिया गया सुबह के 10:00 बजे मोनी ने दुग्ध स्नान किया और तत्पश्चात सुगंधित इत्र और विशेष प्रकार की सुगंध से बहे कुंड में स्नान कराया गया।
मोनी का रोम रोम खिल चुका था। उसकी चमकती त्वचा और भी निखर गई थी पूरे शरीर में एक अलग किस्म की संवेदना थी त्वचा का निखार और चमक अद्भुत थी। त्वचा की कोमलता अफगान के सिल्क से भी मुलायम और कोमल थी।
मोनी को श्वेत सिल्क से बने गाउन को पहनाया गया और धीरे-धीरे मोनी आश्रम के उस विशेष कक्ष में उपस्थित हो गई।
विशेष कक्ष को करीने से सजाया गया था। राजा महाराजा के शयन कक्ष भी शायद इतने खूबसूरत नहीं होते होंगे जितना सुंदर आश्रम का यह खूबसूरत कमरा था।
बेहद खूबसूरत आलीशान पलंग पर लाल मखमली चादर बिछी हुई थी। सिरहाने पर मसलंद और तकिया करीने से सजाए गए थे। शयनकश की दीवारें खूबसूरत पेंटिंग और तरह-तरह की मूर्तियों से सुसज्जित थीं। कमरे से ताजे फूलों की भीनी भीनी खुशबू आ रही थी ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे यह संयनकक्ष किसी बाग के अंदर निर्मित किया गया हो।
मोनी भव्यता और सुंदरता दोनों से अभिभूत थी…उसे स्वयं किसी राजमहल की रानी होने का अनुमान हो रहा था धीरे-धीरे उसकी मातहत उसे उसे वैभवशाली पलंग तक ले आई और बेहद विनम्रता से कहा आप पलंग पर बैठ जाइए थोड़ी ही देर में आगे की दिशा निर्देश दिए जाएंगे।
मोनी आश्चर्य से होने वाली घटनाक्रम को अंदाज रही थी। तभी कमरे में एक गंभीर आवाज गूंजी
देवी आप धन्य है.. आप शायद आश्रम की ऐसी पहली युवती है जिसने पिछले 11 महीनो से लगातार पुरुष प्रजाति की सेवा करने के पश्चात भी अपना कौमार्य सुरक्षित रखा है। मैं आपसे काफी प्रभावित हूं। इस आश्रम के नियमों के अनुसार आपको अंतिम परीक्षा से गुजरना होगा। इस परीक्षा में सफल होने के पश्चात आपको भविष्य में किसी कूपे में जाने की आवश्यकता नहीं होगी परंतु यदि आप चाहे तो स्वेच्छा से अवश्य जा सकती है..
इसके अतिरिक्त आपको आश्रम में एक विशेष दर्जा प्राप्त होगा जो निश्चित ही आपके लिए सम्मान का विषय होगा।
यह परीक्षा आपके यौन संयम की ही परीक्षा है जिसमें अब तक आप सफल होती आई है। यदि आप इस परीक्षा में स्वेच्छा से भाग लेना चाहती हैं तो अपने दोनों हाथ जोड़कर खड़े हो जाए और अपना श्वेत वस्त्र स्वयं निकालकर पास पड़ी टेबल पर रख दें। उसी टेबल पर एक रुमाल नुमा कपड़ा रखा होगा उसे स्वयं अपनी आंखों पर बांध ले। आपकी परीक्षा लेने वाला पुरुष शायद आपसे नजरे नहीं मिल पाएगा और आपको भी उसे देखने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए यह नियमों के विरुद्ध होगा।
कूपे की भांति इस समय भी आपके पास लाल बटन उपलब्ध रहेगा जो की पलंग के सिरहाने रखा हुआ है आप जब चाहे उसे दबाकर उस व्यक्ति को अपनी गतिविधियां रोकने के लिए इशारा कर सकती है।
ध्यान रहे लाल बटन का प्रयोग सिर्फ तभी करना है जब पुरुष आपसे ज्यादती कर रहा हो…
मुझे विश्वास है कि आप नियम पूरी तरह समझ चुकी होगी। मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं..
वह गंभीर आवाज अचानक ही शांत हो गई. मोनी को यह आवाज कुछ जानी पहचानी लग रही थी परंतु लाउडस्पीकर से आने की वजह से वह पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो पा रही थी।
मोनी ने मन ही मन इस परीक्षा में भाग लेने की ठान ली। वैसे भी वह अब तक आश्रम में विशेष सम्मान पाती आई थी उसके मन में और भी ऊपर उठने की लालसा प्रबल थी। मोनी उठकर अपना श्वेत रंग का गाउन उतरने लगी जैसे-जैसे वह गांव उसके बदन का साथ छोड़ता गया मोनी की मादक और चमकती काया नग्न होने लगी। सामने आदमकद दर्पण में अपनी खूबसूरत बदन को निहारती मोनी स्वयं अपनी सुंदरता से अभीभूत हो रही थी।
तरासे हुए उरोज, पतली गठीली कमर.. मादक और भरी-भरी जांघें और उनके जोड़ पर बरमूडा ट्रायंगल की तरह खूबसूरत त्रिकोण जिस पर कुदरत का लगाया वह अद्भुत चीरा जिसके अंदर प्रकृति का सार छुपा हुआ था। मोनी का यह रहस्य अब तक उजागर नहीं हुआ था। वह स्खलित तो कई बार हुई थी पर अपने कौमार्य को बचाने में सफल रहीं थी…
मोनी अपने पैर आगे पीछे कर अपने गदराए नितंबों को देखने का लालच नहीं रोक पा रही थी। वह पीछे पलटी और अपनी गर्दन घूमाकर दर्पण में अपने बदन के पिछले भाग को देखने लगी मोनी के नितंब बेहद आकर्षक थे वह अपनी हथेलियां से उसे छूती और उसकी कोमलता और कसाव दोनों को महसूस करती।
वह मन ही मन ईश्वर को इतनी सुंदर काया देने के लिए धन्यवाद कर रही थी । आखिरकार उसने अपनी आंखों पर सफेद रुमाल को लपेटकर जैसे ही मोनी ने गांठ बंधी उसकी आंखों के सामने के दृश्य ओझल होते गए। उसे इतना तो एहसास हो रहा था कि कमरे में अब भी रोशनी थी परंतु आंखों से कुछ दिखाई पड़ना संभव नहीं था।
वह चुपचाप बिस्तर पर बैठ गई अपनी जांघें एक दूसरे से सटाए वह अपने परीक्षक का इंतजार कर रही थी।
शेष अगले भाग में..