भाग 148
इसी दौरान कई सारी किशोरियों अपनी वासना पर काबू न रख पाती और कूपे में लड़कों द्वारा संभोग की पहल करने पर खुद को नहीं रोक पाती और अपना कोमार्य खो बैठती।
कौमार्य परीक्षण के दौरान ऐसी लड़कियों को इस अनूठे कृत्य से बाहर कर दिया जाता। निश्चित ही कुंवारी लड़कियों को मिल रहा है यह विशेष काम सुख अधूरा था पर आश्रम में उन्हें काफी इज्जत की निगाह से देखा जाता था और उनके रहन-सहन का विशेष ख्याल रखा जाता था। मोनी अब तक इस आश्रम में कुंवारी लड़कियों के बीचअपनी जगह बनाई हुई थी। ऐसी भरी और मदमस्त जवानी लिए अब तक कुंवारे रहना एक एक अनोखी बात थी। नियति उसके कौमार्य भंग के लिए व्यूह रचना में लगी हुई थी…
अब आगे…
रतन अब तक दर्जनों पर अपनी साली मोनी की बुर चूस चुका था पर दुर्भाग्य मोनी ने अब तक उसके लंड को हाथ तक ना लगाया था। मोनी को तो यह ज्ञात भी नहीं था कि कूपे में उसे मुखमैथुन का सुख देने वाला कोई और नहीं उसका अपना जीजा रतन था।
आश्रम में रतन जब जब मोनी को देखता उसकी काम उत्तेजना जागृत हो जाती। ऐसी दिव्य सुंदरी को भोगने की इच्छा लिए वह उसके आसपास रहने की कोशिश करता परंतु मोनी निर्विकार भाव से उससे बात करती। उसे तो यह एहसास भी नहीं था कि उसकी छोटी सी अधखिली बुर को फूल बनाने के लिए उसका जीजा कब से तड़प रहा था। विद्यानंद ने भी मोनी को नोटिस कर लिया था पिछले कई महीनो से कुएं में जाने के बावजूद मोनी ने अपना कौमार्य बचा कर रखा था निश्चित ही यह एक संयम की बात थी। विद्यानंद कई बार उसे सबके बीच प्रोत्साहित और सम्मानित कर चुके थे। मोनी नई किशोरियों के लिए एक प्रेरणास्रोत थी।
नियति स्वयं आश्चर्य चकित थी कि एक बार मुखमैथुन का यौन सुख लेने के पश्चात क्या यह इतना सरल था की पुरुष की उंगलियों या लिंग को अपने योनि में प्रवेश होने से रोक लेना. कितना कठिन होगा मोनी के लिए उस समय लाल बटन को दबाना जब उसकी बुर स्वयं पुरुष स्पर्श को अपनी योनि में गहरे और गहरे तक महसूस करने के लिए लालायित हो रही होगी।
बहरहाल मोनी को इंतजार करना था…
उधर बनारस में सुगना और सरयू सिंह के अनूठे प्रेम से पैदा हुआ सूरज, सुगना के पास बैठा अपने नाखून कटा रहा था…सुगना उसके दिव्य अंगूठे को देखकर सोनी के बारे में सोचने लगी…
कैसे वह सूरज के अंगूठे को सहलाकर उसकी नून्नी को बड़ा कर देती थी और फिर उसे शांत करने के लिए उसे अपने होंठ लगाने पड़ते थे। विधाता ने न जाने सूरज को यह विशेष अंगूठा किसलिए दिया था…इधर सुगना की नजर अंगूठे पर थी उधर सूरज स्वयं बोल उठा जो शायद स्वयं भी यही बात सोच रहा था..
“मां…सोनी मौसी कब आएंगी?
“क्यों क्या बात है अभी उनकी क्यों याद आ रही है?”
जिस अंगूठे को देखकर सुगना ने सोनी को याद किया था शायद सूरज को भी वही बातें याद आ गई थी वह चुप ही रहा। छोटे सूरज ने अपना अंगूठा हिला कर दिखाया और मुस्कुराने लगा। सुगना समझ चुकी थी उसने सूरज की गाल पर एक मीठी चपत लगाई और बोली..
“बेटा ई ठीक ना ह अपना अंगूठा बचाकर रखना भगवान ने इसे विशेष काम के लिए बनाया है…”
शायद सुगना के पास इस समस्या का निदान नहीं था वह सूरज को समझने के लिए और इस प्रक्रिया से दूर रहने के लिए भगवान और धर्म का सहारा ले रही थी।
तभी लाली सुगना के पास आई और मचिया खींचकर उसके बगल बैठ गई। नाखून कट जाने के बाद सूरज खेलने भाग गया… तभी लाली ने सुगना से बात शुरू करते हुए पूछा…
“मां बाबूजी कैसे हैं?
“बिल्कुल ठीक है तुम्हारे लिए कुछ बनाकर भेजा था खिलाई नहीं क्या था उसमें”
लाली खुश हो गई वह तुरंत ही उठकर जाने लगी परंतु सुगना ने रोक लिया…और बोली
“ठीक बा बाद में खिलाना”
“ए सुगना उस दिन उतना देर क्यों हो गया था..अपने गांव सीतापुर भी गईं थी क्या..”
लाली असल में देरी का कारण जानना चाह रही थी पर शायद सीधे-सीधे पूछने में घबरा रही थी।
सुगना की छठी इंद्री काम करने लगी उसे न जाने क्यों ऐसा एहसास हुआ कि कहीं लाली को शक तो नहीं हो गया है उसने बड़ी चतुराई से पूछा
“सोनूवा से ना पूछले हां का?”
“ तू हिंदी कभी ना सीख पईबू हम हिंदी बोला तानी तब फिर भोजपुरी शुरू हो गईलु “
“ठीक है बाबा सॉरी …अब हिंदी ही बोलूंगी”
सुगना ने अपने चेहरे पर कातिल मुस्कान बिखेर दी और अपने हाथों से अपने कान पकड़ लिए। ऐसा लग रहा था.. जैसे वह सलेमपुर में सोनू के साथ किए गए कृत्य के लिए उसकी पत्नी लाली से माफी मांग रही थी। सुगना की यह अदा इतनी खूबसूरत थी की मर्द तो क्या लाली स्वयं उस पर आसक्त हो जाती थी कितनी सुंदर कितनी प्यारी थी सुगना। उस पर नाराज होना या उससे रुष्ट होना बेहद कठिन था। दोनों सहेलियां इधर-उधर की बातें करने लगी पर लाली के मन में शक का कीड़ा धीरे-धीरे और बड़ा हो रहा था। लाली को यह पता था कि उस इत्र का प्रयोग विशेष अवसरों पर ही किया जाता है वह भी कामुक गतिविधियों की तैयारी करते समय।
स्त्रियां उसे पुरुषों को लुभाने के लिए अपने जननागों पर लगाती हैं और पुरुष उसकी मादक खुशबू में अपना सर और होंठ उनकी जांघों के बीच ले आते हैं।
तभी फोन की घंटी बज उठी…फोन सुगना के पास ही था उसने अपने हाथ बढ़ाए और फोन का रिसीवर अपने कानों में लगाकर अपनी मधुर आवाज में बोली
“हेलो…”
“लाली घर पर है क्या?” सामने से एक भारी आवाज आई
“आप कौन” सुगना उस अजनबी को नहीं पहचान पा रही थी..
“लाली यही रहती है ना?” उस अजनबी ने पूछा..
“पर आप कौन?” सुगना ने अपना प्रश्न दोहराया।
“आप लाली को फोन दीजिए ना?” वह मुझे पहचान जाएगी..
“कौन है” लाली नेपूछा
सुगना ने फोन लाली को पकड़ा दिया..
“ हां बोलिए.. कौन हैं आप…” लाली ने पूछा
“आवाज से पहचानो”
लाली को यह आवाज पहचानी पहचानी सी लग रही थी पर मन में संशय था..
“बनारस आ गइल बानी हम ” उस अजनबी ने आगे कहा।
लाली उस अनजान व्यक्ति को थोड़ा थोड़ा पहचान रही थी फिर उसने तुक्का लगाया और बोला..
“मनोहर भैया ?”
“हां और कैसी हो…”
अब जब लाली पहचान ही चुकी थी तो उन दोनों की बातें शुरू हो गई सुगना कुछ देर तक तो लाली की बात सुनती रही और उनकी बातचीत से उस अनजान व्यक्ति को पहचानने की कोशिश करती रही परंतु सफल न रही…
“ठीक बा शाम के आवा…” लाली ने बात समाप्त की और फोन रख दिया उसके चेहरे पर खुशी थी।
कौन था लाली? सुगना ने उत्सुकता वश पूछा..
अरे मनोहर भैया उनका ट्रांसफर बनारस हो गया है…
“कौन ?” सुगना उस अजनबी को नाम से नहीं पहचान पा रही थी।
अरे वही मनोहर भैया मेरे मामा के लड़के जिनका पूरा परिवार एक एक्सीडेंट में मारा गया था…
लाली के चेहरे पर खुशी से उदासी के भाव आ गए। उसे वह दिन याद आ गया जब मनोहर के परिवार के सारे सदस्य एक साथ एक कर दुर्घटना में मारे गए थे और वह अपने मांमा के घर में मनोहर को रोते बिलखते देख रही थी। घर में पड़ी पांच लाशें देखकर सभी का कलेजा मुंह को आ रहा था।
इस दुर्घटना ने मनोहर को पूरी तरह अकेला कर दिया था। उसकी पत्नी उसके दोनों बच्चे और उसकी मां और उसका छोटा भाई सभी उसे कर दुर्घटना में मारे गए थे।
मनोहर जो लाली से उम्र में लगभग 4 , 5 साल बड़ा था इस दुर्घटना के बाद पूरी तरह अकेला हो गया था। क्योंकि वह एक सरकारी नौकरी में था इसलिए वह अक्सर बाहर दिल्ली ही रहता था। यह तो भला हो फोन का जिससे वह वह लाली के संपर्क में आ गया था। वरना लाली से उसका मिलना कम ही हो पता था जब वह गांव जाता तो लाली बनारस में अपने पति पूर्व राजेश के साथ रहती थी।
बहरहाल लाली मनोहर के आगमन की तैयारी में लग गई सुगना ने भी स्वाभाविक रूप से अपनी सहेली का साथ दिया और आज शाम के खाने के लिए तरह-तरह के पकवान बनाए जाने लगे मेहमानों का स्वागत लाली और सुगना दोनों को पसंद था वैसे भी यह मेहमान अनूठा था।
शाम को पूरा परिवार नए मेहमान का इंतजार कर रहा था। बाहर गाड़ी की आवाज से लाली को एहसास हो गया कि उसके मनोहर भैया आ चुके हैं वह दरवाजा खोलने के लिए आगे बढ़ी
मनोहर गाड़ी से उतर रहा था। कद लगभग 5 फुट 11 इंच कसरती बदन और सुंदर सुडौल काया लिए वह लाली की तरफ बढ़ा। लाली ने झुककर उसके चरण छुए और उसे अंदर बुला लिया..
अंदर पूरा परिवार उसका इंतजार कर रहा था सोनू ने आगे बढ़कर उसे हाथ मिलाया। मनोहर आगे बढ़ा उसने सरयू सिंह और कजरी के पैर छुए पदमा को वह पहचानता तो नहीं था परंतु उम्र के कारण उसने पदमा के भी पैर छुए। पदमा के पैर छूकर वह जैसे ही उठा उसे सुगना के दर्शन हो गए।
मनोहर खूबसूरत सुगना को देखते ही रह गया हे भगवान यह अप्सरा जैसी युवती कौन है? इससे पहले की मनोहर इधर-उधर देखता लाली बोल पड़ी..
यह मेरी सहेली है सुगना…पर अब ननद बन चुकी है.. लाली चहकते हुए बोली..
सुगना ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया और प्रति उत्तर में मनोहर ने भी। मनोहर की आंखें सुगना पर कुछ फलों के लिए टिकी रह गई।
चाय का दौर चला और मनोहर के बारे में अब सब विस्तार पूर्वक जान चुके थे। मनोहर एक राजस्व अधिकारी था वह पहले दिल्ली में पोस्टेड था उसका गांव आना-जाना काम ही होता था वैसे भी पूरे परिवार के देहांत के बाद गांव आने का कोई औचित्य भी नहीं था। अभी कुछ दिनों पहले उसका कैडर चेंज हुआ और उसकी नई पोस्टिंग बनारस में मिली और वह ज्वाइन करने के बाद सीधा लाली से मिलने आ गया था।
मनोहर द्वारा लाई गई विविध प्रकार की मिठाइयां और फल बच्चे बड़े प्रेम से खा रहे थे। लाली ने सभी बच्चों से भी मनोहर का परिचय कराया और कुछ ही देर में मनोहर परिवार के एक सदस्य के रूप में सबसे घुल मिल गया सिर्फ सुगना ही एक ऐसी थी जिससे वह नजरे नहीं मिल पा रहा था पता नहीं उसके मन में क्या कसक थी…और सुगना स्वयं किसी अजनबी से अपने परिवार वालों की उपस्थिति में इतनी जल्दी खुल जाए यह मुमकिन नहीं था।
परंतु बातों के दौरान सुगना का भी जिक्र आया और उसके भगोड़े पति रतन का भी। मनोहर सुगना के लिए सोच कर दुखी हो रहा था इस छोटी उम्र में ही सुगना को विधवा सा जीवन व्यतीत करना पड़ रहा था। विधाता ने सच में उसके साथ अन्याय किया था। मनोहर की सोच एक सामान्य व्यक्ति की सोच थी पर विधाता के लिखे को टाल पाने की शक्ति शायद किसी में न थी।
मनोहर कुछ ही घंटे में पूरे परिवार के साथ दूध में पानी की तरह मिल गया। खाना खिलाने वक्त सुगना भी उससे कुछ हद तक रूबरू हुई और मनोहर के कानों में सुगना की मधुर आवाज सुनाई पड़ी जो उसके जेहन में रच बस गई।
कुल मिलाकर मनोहर एक प्रभावशाली व्यक्तित्व का स्वामी था और काबिल था। वह लाली के परिवार से नजदीकियां बढ़ाना चाहता था। कारण स्पष्ट था उसके जीवन में परिवार के नाम पर कुछ भी ना था और अब बनारस आने के बाद उसे ईश्वर की कृपा से एक परिवार मिल रहा था। सोनू और मनोहर भी अपने शासकीय कार्यों के बारे में बात करते-करते कुछ हद तक दोस्त बन रहे थे।
“सरयू सिंह ने मनोहर से कहा रात हो गई है
बेटा यहीं रुक जाते।”
मनोहर रुकना तो चाहता था परंतु वह इस तैयारी के साथ नहीं आया था उसने हाथ जोड़कर क्षमा मांगी और फिर कभी कह कर परिवार से विदा लिया और अपनी घड़ी में बैठकर अपने गेस्ट हाउस की तरफ निकल पड़ा।
मनोहर सभी के दिलों दिमाग पर एक अच्छी और अमित छवि छोड़ गया था।
अगली सुबह लाली और सोनू अपने बच्चों के साथ जौनपुर के लिए निकल रहे थे। लाली अपने कमरे में तैयार हो रही थी उधर सुगना झटपट सबके लिए नाश्ता बना रही थी एकांत पाकर सोनू रसोई में चला गया…
उसने सुगना को पीछे से अपने आगोश में भर लिया और सुगना कि याद में तने हुए अपने लंड को उसके नितंबों से सटाते हुए उसके गर्दन को चूमने लगा और बोला.
“दीदी कल के दिन हमेशा याद रही “
“हमरो..” सुगना का अंतर्मन मुस्कुरा रहा था
“दीदी सावधान रहिह लाली तोहरा इत्र के खुशबू सूंघ ले ले बिया…”
सुगना सोनू का इशारा समझ चुकी थी उसने पूछा
“तब तू का कहल?”
“कह देनी की दीदी अपन बक्सा ठीक करत रहे ओहि में इत्र देखनी और हमारा हाथ में लग गईल”
अब तक लाली भी रसोई में पहुंच चुकी थी उसने उन दोनों की बातें ज्यादा तो न सुनी पर इत्र का जिक्र वह सुन चुकी थी अंदर आते ही उसने बोला..
“लगता अपना सुगना दीदी के इत्र तोहरा ज्यादा पसंद आ गइल बा..”
सोनू और सुगना दोनों सतर्क हो गए…सुगना ने पाला बदला और लाली का साथ देते हुए बोली…
“इकरा अपने बहिनिया के खुशबू पसंद आवेला…ते भी त पहिले लाली दीदी ही रहले…”
सुगना ने जो कहा वह सोनू और लाली दोनों अपने-अपने हिसाब से सोच रहे थे..पर लाली सुगना की बातों में खुद ही उलझ गई थी…
बात सच ही थी जो सोनू पहले लाली की बुर के पीछे दीवाना रहता था अब अपनी बहन सुगना के घाघरे में अपनी जन्नत तलाश रहा था।
सुगना का भरा पूरा घर कुछ ही देर में खाली हो गया..
लाली और सोनू जौनपुर के लिए निकल चुके थे कुछ ही देर बाद सरयू सिंह और कजरी भी अस्पताल के लिए निकल गए। बच्चे स्कूल के लिए जा चुके थे
घर में सिर्फ सुगना और उसकी मां पदमा ही बचे थे। घरेलू कार्य निपटाने ने के बाद दोनों मां बेटी बैठे बातें कर रहे थे। पदमा की मां ने मनोहर की बात छेड़ दी। पदमा उसकी तारीफ करते हुए नहीं थक रही थी और ईश्वर द्वारा उसके साथ किए गए अन्याय के लिए उससे सहानुभूति दिख रही थी। सुगना भी उसकी बातें सुन तो रही थी परंतु कोई विशेष प्रतिक्रिया नहीं दे रही थी।
उधर सरयू सिंह और कजरी हॉस्पिटल में डॉक्टर का इंतजार कर रहे थे तभी सरयू सिंह ने कहा..
“लाली का तो भाग्य ही बदल गया सोनू से विवाह करने के बाद लाली और उसका परिवार बेहद खुश है मुझे लगता है सोनू भी खुश है भगवान दोनों की जोड़ी बनाए रखें”
“हां सच में यह शादी पहले तो बेमेल लग रही थी पर दोनों को देखकर लगता है कि यह निर्णय सही ही रहा सुगना सच में समझदार और सबका ख्याल रखने वाली है” कजरी ने सरयू सिंह के समर्थन में कहा.
“पर बेचारी सुगना के भाग्य में भगवान ने ऐसा क्यों लिखा?”
सुगना कजरी की पुत्रवधू थी और उसे बेहद प्यारी थी उन दोनों ने सरयू सिंह को अपने जीवन में एक साथ साझा किया था यहां तक कि अपनी पुरी यात्रा के दौरान सरयू सिंह के साथ बिस्तर भी साझा किया था..
*क्यों अब क्या हुआ…? कजरी ने बातचीत के क्रम को आगे बढ़ाया।
“क्या सुगना अपना आगे का जीवन अकेले व्यतीत करेगी? रतनवा तो अब आने वाला नहीं है?
कजरी के कलेजे में हूक उठी अपने पुत्र के बिछड़ने का गम उसे भी था उसकी उम्मीद भी अब धीरे-धीरे खत्म हो रही थी यह तय था की रतन अब वापस नहीं आएगा .. दोबारा सुगना को स्वीकार करने के बाद उसे छोड़कर जाने वाले रत्न से अब कोई उम्मीद नहीं थी..
“हां बात तो सही है पर क्या किया जा सकता है?”
“क्या लाली के जैसे सुगना पुनर्विवाह नहीं कर सकती? सरयू सिंह ने अपने मन की बात कह दी..
कजरी कोई उत्तर दे पाती इससे पहले अस्पताल के अटेंडेंट ने आवाज लगाई “सरयू सिंह ..सरयू सिंह”
सरयू सिंह का नंबर आ चुका था वह अपना झोला झंडी लेकर खड़े हो गए…कजरी भी उनके पीछे हो ली।
कजरी के दिमाग में सरयू सिंह द्वारा कही गई बातें घूम रही थी सुगना का पुनर्विवाह …यदि ऐसा हुआ तो…
क्या अब सुगना उसकी पुत्र वधु नहीं रहेगी। यह विधाता पहले पुत्र गया तो क्या अब सुगना भी चली जाएगी मैं अपना बुढ़ापा किसके सहारे काटूंगी? नहीं नहीं मुझे स्वार्थी नहीं होना चाहिए…सच में लाली कितना खुश है यदि सुगना का पुनर्विवाह होता है तो क्या वो और खुश हो जाएगी? पर अभी भी तो वह खुश ही रहती है? कई तरह की बातें कजरी के दिमाग में चलने लगीं।
सरयू सिंह कजरी को भंवर जाल में छोड़कर बिस्तर पर लेकर अपना चेकअप कर रहे थे। चेकअप की गतिविधियों में वह कुछ पलों के लिए सभी को भूल अपने चेकअप पर ध्यान दे रहे थे।
शाम होते होते सरयू सिंह और कजरी वापस सलेमपुर के रास्ते में थे।
कजरी ने अपनी स्वार्थी भावनाओं पर विजय पाई और उसने सुगना के भले की ही सोची।
“आप ठीक ही कह रहे थे सुगना के विवाह हो जाए तो ठीक ही रहल हा” कोई मन में बा का?
“तोहरा मनोहर कैसन लागल हा? ओकर भी कोई परिवार नईखे?”
कजरी अब सारी बात समझ आ चुकी थी सरयू सिंह के दिमाग में यह विचार क्यों आया..
सरयू सिंह की भांति कजरी भी अब मनोहर और सुगना को एक साथ देखने लगी। सुगना और मनोहर की जोड़ी में कोई भी कमी दिखाई नहीं पड़ रही थी दोनों एक दूसरे के लिए सर्वथा उपयुक्त थे।
शायद पहले जोड़ियां मिलते समय भौतिक और सामाजिक मेल मिलाप को ज्यादा महत्व दिया जाता था । अंतर्मन और प्यार का कोई विशेष स्थान नहीं होता था ऐसा मान लिया जाता था कि एक बार जब दोनों एक ही खुद से बदले तो उनमें निश्चित ही प्यार हो जाएगा।
पर क्या ऐसा हों पाएगा…तब सुगना और सोनू के प्यार का क्या होगा। जो सुगना अपनी बुर पहले ही सोनू को दहेज में दे चुकी थी वह क्यों भला किसी और मर्द को अपनाएगी..
प्रश्न कई थे उत्तर भविष्य के गर्भ में दफन था।
सारी गुत्थियां सुलझाने वाली नियति खुद ही उलझ गई थी उसे विराम चाहिए था…
शेष अगले भाग में…