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समय बीतते देर नहीं लगती। आज नियति सुगना और सोनू को पुनः याद कर रही थी। जहां उसने उन्हें रंगरलियां मनाने के लिए छोड़ा था वहां से जीवनधारा आगे बढ़ चुकी थी। बारह वर्षों से ऊपर का वक्त बीत चुका था। सुगना का परिवार भी अब बदल चुका था और बनारस का शहर भी।
गंगा किनारे एक खूबसूरत सी हवेली अपने पट खोल, अपनी कथा सुनने को तैयार थी। हवेली की खूबसूरती देखते ही बनती थी। सामने बड़ा सा घास का मैदान आधुनिक साज सज्जा से सुसज्जित पुष्प वाटिका हवेली की खूबसूरती में चार चांद लगा रही थी। विकास के पिता ने यह हवेली बड़ी लगन और मेहनत से अपने परिवार के लिए बनाई थी, लेकिन विधि का विधान ही कुछ ऐसा था कि वो उस हवेली का सुख नहीं भोग पाए ।
दरअसल उनका पूरा परिवार सड़क दुर्घटना में खत्म हो गया था शायद विधाता ने उन्हें अपने पास बुला लिया था, और उनकी पूरी दुनिया एक झटके में खत्म हो गई। बच गए तो सिर्फ विकास और सोनी।
यह संयोग कहिए या विडंबना इस हवेली को आने वाले समय में कई पापों का गवाह बनना था।, यह हवेली दो लोगों के लिए किसी किले से कम नहीं थी। सोनी को यह हवेली अकेले काटने दौड़ती थी। अंततः, विकास ने अपने मित्र सोनू, सुगना और लाली को अपनी हवेली में रहने के लिए सादर आमंत्रित किया। दरअसल, यह कहना ज्यादा उचित होगा कि वह अनुरोध था। और अंततः लाली और सुगना अपने परिवार के साथ हवेली में रहने आ गए। सोनू ने भी अपनी सहमति दे दी। विकास और सोनू अक्सर काम के सिलसिले में बाहर ही रहते पर परिवार को साथ रहने का अवसर मिला गया था।
आज कई वर्षों बाद, इस कहानी के पात्रों में स्वाभाविक बदलाव आ चुका था बच्चे जवान हो गए थे। दीपावली की छुट्टियों में आज परिवार के सभी बच्चे आए हुए थे। संयोग से आज विद्यानंद के आश्रम से एक उनके एक शिष्य हवेली में पधारे थे। पूरे परिवार ने उनका अभिवादन किया और आलीशान बैठक में उन्हें बैठने के लिए स्थान दिया गया। छुट्टी का दिन होने के कारण पूरा परिवार घर पर ही था और धीरे-धीरे सभी बैठक में उन शिष्य से मिलने के लिए एकत्रित हो गए।
सोनी, जो अब लगभग 36-37 वर्ष की अधेड़ महिला बन चुकी थी, हवेली की मालकिन तो थी ही, और इस समय घर की मुखिया भी बन चुकी थी। यद्यपि वह सुगना का बहुत आदर करती थी , लेकिन परिस्थितियाँ कुछ ऐसी बन गईं कि सुगना ने स्वेच्छा से परिवार के मुखिया के लिए सोनी को ही उत्तरदायित्व दे दिया था जो लाली को भी स्वीकार्य था। अब पूरे घर का दारोमदार सोनी पर आ चुका था, और वह इसे बखूबी निभा भी रही थी। सोनी कुछ कुछ आज की तमन्ना भाटिया की तरह दिखाई पड़ने लगी थी। उसकी गदर जवानी अब भी कामुक मर्दों में ताजगी भरने को तत्पर थी। पर विकास अब तृप्त हो चुका था और वासना से परे हो चुका था। अथक प्रयास करने के बावजूद वह सोनी को गर्भवती नहीं कर पाया था। और सोनी के गर्भ धारण के लिए उचित अनुचित सभी प्रयास विफल हो चुके थे।
सोनी ने विद्यानंद के शिष्य से मुखातिब होते हुए कहा, "महाराज, आपका हमारे निवास पर स्वागत है। पहले मैं आपका परिचय अपने परिवार से करवा दूं।" शिष्य अब भी भवन की आलीशान सजावट से प्रभावित था और उसकी निगाहे एक बड़े आदमकद चित्र पर अटकी हुईं थी। पर अब उसने अपना ध्यान सोनी पर केंद्रित कर लिया।
सोनी एक खूबसूरत और प्रभावशाली महिला थी, जिसका दमकता हुआ चेहरा और अमीरों जैसा हाव-भाव उसे और भी प्रभावशाली बना रहे थे। सोनी ने शिष्य का ध्पास बैठी एक सौम्य महिला की और आकर्षत करते हुए कहा, "महाराज, यह मेरी दीदी सुगना हैं।"
शिष्य ने देखा, और उसे एक बेहद सुंदर, दमकती चेहरे पर बच्चों जैसी मासूमियत लिए श्वेत साड़ी में लिपटी सुगना दिखाई दी। सुगना, जो लगभग 40 वर्ष की उम्र में भी अब भी उतनी ही प्यारी और आकर्षक दिखाई पड़ रही थी। वो एक दिव्य आत्मा की तरह श्वेत वस्त्रों में सुसज्जित थी। पर चेहरा और शरीर उसकी उमर को धोखा देते हुए उसे अब भी युवा दर्शा रहे थे पर श्वेत पहनावा उसके व्यक्तित्व में वैराग्य का अंश अवश्य दिखा रहा था। उसका रूप लावण्य अब भी देखने लायक था। सुगना ने शालीनता से शिष्य को अभिवादन किया और चुप हो गई। शिष्य अब भी सुगना के बारे में सोच रहा था।
ये लाली दीदी है। शिष्य ने एक अधेड़ महिला की तरफ देखा जो सुगना के समीप बैठी थी।
लाली अब पूरी तरह से बदल चुकी थी। उसके भाव, चाल-ढाल, सब कुछ सेठानी जैसे हो चुके थे। उसने अपनी शारीरिक बनावट पर शायद उतना ध्यान नहीं दिया, जिससे उसकी खूबसूरती पर निश्चित तौर पर असर पड़ा था। लेकिन लाली के चेहरे पर खुशी की झलक थी, और इसमें कोई हैरानी की बात नहीं थी। सोनू के साथ बिताए गए पिछले कई वर्षों में उसे बहुत खुशी मिली थी, और अब वह अकेली ही सोनू के साथ समय बिता रही थी।
लेकिन सुगना और सोनू के बीच कुछ ऐसा था, जिसे किसी की नजर लग गई थी अन्यथा हरदम खुश और खिलखिलाती सुगना शायद इतनी संजीदा कभी ना होती।
अब बारी युवा पीढ़ी की थी सबसे पहले एक सुंदर सी तरुणी जो कुछ-कुछ आज की हीरोइन अन्नया पांडे की तरह दिखाई पड़ती थी। लंबी छरहरी और कमनिय काया लिए शिष्य की तरफ देख रही थी। रंग कुछ सांवला ही था उसने विद्यानंद के शिष्य को प्रणाम किया और बोला मैं “मालती”
पुत्री आपके पिता का नाम क्या है “जी रतन” पर अब वह यहां नहीं रहते न जाने क्यों उन्होंने संन्यास ले लिया है। शिष्य रतन को भी जानता था कि रतन उनके ही आश्रम में विद्यानंद का शिष्य बन चुका था। और अब आश्रम में एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा रहा था।
मालती के ठीक बगल रीमा बैठी हुई थी वह भी अब जवान हो चुकी थी वह कुछ-कुछ जानवी कपूर जैसे दिखाई पड़ रही थी। रीमा शायद सभी पाठकों को याद नहीं हो इसलिए बताना चाहूंगा कि यह कि वह लाली और स्वर्गीय राजेश (लाली के पूर्व पति) की पुत्री थी।
इसके ठीक बगल दूसरे सोफे पर नवाजुद्दीन सिद्दीकी जैसा दिखाई पढ़ने वाला और चेहरे पर एक शातिर मुस्कान लिए अपनी नज़रें झुकाए अपने पैरों से मजबूत संगमरमर को कुरेदने की कोशिश करता हुआ राजा बैठा था। ऐसा प्रतीत होता था जैसे वह इस घर का ही नहीं था इस घर के बाकी सदस्य जितने शालीन और सुसंस्कृत दिखाई पड़ते थे राजा ठीक उनसे उलट था रंग रूप से और अपनी हरकतों से वह एक छपरी की भांति दिखाई पड़ता था फिर भी परिवार उसे बर्दाश्त करता आ रहा था। राजा वही था जो सुगना के गर्भ से ज़रूर जन्म लिया था पर उसके DNA में राजेश के अंश था। नियति स्वयं विस्मित थी कि फूल जैसी सुगना के गर्भ से यह कैसा पाप विधाता ने इस धरती पर लाया था।
राजा के ठीक बगल में रणबीर कपूर जैसी सुगठित शरीर और मासूम चेहरा लिए सूरज बैठा था। शिष्य ने एक नजर सूरज को देखा और अगले ही पल उसकी नज़रें एक बार फिर उसे आदम का चित्र की तरफ चली गई। सूरज हूबहू सरयू सिंह की तरह दिखाई पड़ने लगा था। शिष्य के मन में संशय उत्पन्न होता इससे पहले ही सोनी बोल उठी
“ वह सूरज के दादाजी हूं सरयू सिंह।”
शिष्य सूरज को एकटक देखता ही रह गया कितना सुंदर कितना मासूम और कितने तेजस्वी शरीर का मालिक था सूरज ईश्वर ने जैसे उसे बड़े सलीके से बनाया था और हो भी क्यों ना? सरयू सिंह जैसे तेजस्वी मर्द और फूल जैसी सुगना के गर्भ से जन्मा सूरज हर दिल अजीज था और सभी लड़कियों और युवतियों के लिए कामदेव का अवतार था।
इसी समय हवेली की बैठक में एक युवा युगल ने प्रवेश किया। लगभग 25 26 वर्ष की उम्र का हट्टा कट्टा मर्द , और साथ में बेहद शालीन और सुकुमार जवानी की दहलीज पर कदम रख रही किशोरी मधु। यह शख्स लाली और राजेश का पहला पुत्र राजू था और उसके साथ आई लड़की सुगना की पुत्री के रूप में पल रही मधु थी..
इस घर में युवा पीढ़ी में मधु शायद सबसे खूबसूरत थी अपने भाई सूरज से भी ज्यादा पर मर्द और औरत की खूबसूरती में तुलना करना कठिन था दोनों एक से बढ़कर एक थे। मधु सोनू और लाली के मिलन से जन्मी मधु ने यद्यपि लाली के गर्भ से जन्म लिया था परंतु वह शुरू से ही सुगना की पुत्री के रूप में पल रही थी। उसने सोनू की खूबसूरती पाई थी और सुगना के लालन-पालन से उसमें स्त्री सुलभ सारे गुण थे। अपनी कमनीय काया और मासूम चेहरे तथा कसे हुए बदन से वह एक आदर्श किशोरी की भांति दिखाई पड़ रही थी। मधु ने घर में अपरिचित व्यक्ति को देखकर तुरंत ही अपना दुपट्टा ठीक किया और तुरंत ही हाथ जोड़कर उनका अभिवादन किया।
सोनी ने एक बार फिर मधु और राजू का परिचय कराया धीरे-धीरे विद्यानंद के आश्रम से जुड़ी कई सारी बातें होने लगी पर शिष्य क्या ध्यान अब भी उस आदम का चित्र पर अटका हुआ था।
सरयू सिंह के आदमकद तस्वीर पर चढ़ी हुई रंग बिरंगी माला यह साबित कर रही थी कि वह अब इस दुनिया में नहीं है परंतु उनके जैसे तेजस्वी पुरुष की इस अवस्था में मृत्यु अकल्पनीय थी ऐसे बलिष्ठ और मर्दाना व्यक्तित्व के धनी सरयू सिंह की अकाल मृत्यु क्यों हुई यह प्रश्न बार-बार विद्यानंद के शिष्य को विचलित किए हुए था परंतु उसे पूछ अपने की हिम्मत शायद वह नहीं जुटा पा रहा था इधर परिवार के सदस्य बार-बार उसका ध्यान अपनी बातों से विद्यानंद के आश्रम के बारे में खींच लेते थे और वह मजबूरन अपनी जिज्ञासा को काबू कर सुगना और लाली के परिवार के बच्चों की जिज्ञासाओं को बुझाने में लग जाता।
इसे हवेली में पल रहे युवा जैसे-जैसे जवान हो रहे थे उनमें कामुकता का आना भी स्वाभाविक था लाली और राजेश का पुत्र राजू जो घर में सबसे बड़ा था न जाने कब उसका दिल मालती पर आ गया था। मालती जो जो रतन और बबीता की पुत्री थी और इस समय सुगना के परिवार में उसकी पुत्री के रूप में पल रही थी। राजू धीरे-धीरे मालती की ओर आकर्षित होता गया और दोनों एक दूसरे के करीब आते गए यद्यपि उनके इन संबंधों की भनक किसी को भी नहीं थी और परिवार में अब भी सब एक दूसरे के समक्ष मुंहबोले भाई बहन की तरह ही थे परंतु मौका पाते ही राजू और मालती एक हो जाते। राजू और मालती एक दूसरे से अपने जिस्मानी प्यास भी बुझाने लगे थे। राजू सोनू की ही भांति सरकारी नौकरी के लिए तैयारी कर रहा था वह मालती को अपनी पत्नी बनने के लिए आतुर था परंतु बिना किसी उचित पद और अपने पैरों पर खड़े हुए वह यह बात अपने परिवार के समक्ष नहीं रख सकता था तब तक के लिए उसने मालती को मुंह बोली बहन जैसा ही रहने दिया पर वासना पूर्ति के दौरान दोनों एक दूसरे के लिए प्रेमी-प्रेमिका की तरह ही हो गए थे।
राजू और मालती का संबंध चाहे सबसे छिपा हो परंतु घर के सबसे हरामी इंसान राजा से छुपा रहना असंभव था उसे यह भनक लग चुकी थी।
सुगना और लाली बखूबी इस बात को जानते थे कि आग और फूंस एक दूसरे के समक्ष नहीं रखे जा सकते वह दोनों स्वयं ऐसे कामुक संबंधों की गवाह थी जो परिवार के बीच बड़ी आसानी से बन गए थे उन्हें इस बात का अंदेशा बखूबी था अतः उन्होंने घर की जो व्यवस्था बनाई थी उसके हिसाब से राजा और राजू को एक कमरा दिया गया था। ऐसा नहीं था कि घर में कमरों की कमी थी परंतु सुगना और लाली ने किसी को भी ऐसा एकांत नहीं देना चाहती थी जो उनके बीच कामुक संबंधों को बढ़ाने में मदद करें।
जहां एक तरफ राजू एक गंभीर और संजीदा व्यक्ति था वहीं दूसरी तरफ उसका छोटा भाई राजा अव्वल दर्जे का हरामि था उसका ना तो पढ़ाई में मन लगता और नहीं अपने व्यक्तित्व को निखारने में उसका तो जन्म जैसे छिछोरी हरकतें करने में के लिए ही हुआ था शायद सुगना और लाली ने राजू और राजा को साथ रखने का फैसला भी इसीलिए किया था ताकि राजा राजू से कुछ सीख सके और शायद पटरी पर वापस लौट सके।
इसी प्रकार मालती और राजू की बहन रीमा दोनों एक कमरे में रहती थी। मालती यह स्वीकार कर चुकी थी कि उसे आने वाले समय में एक ग्रहणी के रूप में ही रहना है और उसने अपनी पढ़ाई धीरे-धीरे कॉरेस्पोंडेंस कोर्स में कन्वर्ट कर ली थी वह अक्सर घर पर ही रहती और कॉलेज जाने के झंझट से बच चुकी थी दूसरी तरफ रीमा एक आधुनिक लड़की थी जो इस समय कॉलेज में पढ़ रही थी और अपनी जवानी को कॉलेज के लड़कों से बचाते हुए धीरे-धीरे और भी मादक बन रही थी रीमा अब तक पुरुष संसर्ग से अछूती थी परंतु स्त्री और पुरुष के बीच होने वाले समीकरण से पूरी तरह वाकिफ थी उसे पता था युवा और कामुक मर्दों से किस प्रकार डील करना है कितना समीप आना है और कितना दूर जाना है अपनी वासना पूर्ति के लिए उसने अभी खुद पर ही भरोसा कायम रखा था और उसके लिए हस्तमैथुन आम था वह अब अपने वांछित पुरुष की तलाश में अब भी भटक रही थी।
सूरज को जब-जब वह देखती उसे अपना आदर्श पुरुष दिखाई पड़ता पर सूरज उम्र में उससे छोटा था और घर में तीनों बहनों का प्यार था। पर दिल का क्या रीमा की कामुक कल्पनाओं में सूरज बरबस ही आ टपकता और वासना के उन्माद में रीमा उसे नहीं रोकती और न जाने क्यों उसका स्खलन पूरे उन्माद और आनंद के साथ पूर्ण होता।
रीमा को इस बात के लिए कोई आत्मग्लानि नहीं थी आखिर यह एक कल्पना थी वैसे भी सूरज उसका अपना सगा भाई नहीं था इसलिए कम से कम वह अपनी कल्पनाओं में इस काल्पनिक सुख को जी रही थी। वैसे उसका व्यवहार सूरज के प्रति एक हम उम्र छोटे भाई की तरह ही था। सूरज बात को इस बात का कतई इल्म नहीं था कि रीमा दीदी उसके बारे में ऐसा कुछ सोचती है।
मधु जो सुगना की सबसे लाडली थी और भविष्य में विद्यानंद की कही गई बातों के अनुसार सूरज की मुक्ति का मार्ग थी उसे सुगना ने बड़े नाजों से पाला था वह हमेशा उसे अपने साथ सुलाती और अपने साथ ही रखती मधु धीरे-धीरे जवान हो रही थी सुगना जब-जब मधु को देखती उसे आने वाले समय की कल्पना बरबस ही करनी पड़ती जब उसे अपने पुत्र सूरज और मधु के बीच होने वाले संभोग की गवाह बनना था शायद यही सूरज की मुक्ति का मार्ग था। सुगना ने न जाने मधु को पाने के लिए कितनी मिन्नतें की थी और कितनी मनौतिया मांगी थी।
सुगना भली भांति यह जानती थी की यह दुष्कर कार्य उसे सफल करना था अन्यथा सूरज की मृत्यु के लिए उसे स्वयं घृणित पाप से गुजरना होगा जो वह कतई नहीं चाहती थी। अपने पुत्र से साथ संभोग………सुगना यह बात सोच भी नहीं सकती थी पर विधि के विधान को पढ़ने में वह अक्षम थी मधु उसकी पहली और आखिरी उम्मीद थी जिससे वह अपने पुत्र कॉल शाप मुक्त कर सकती थी।
बहरहाल नियति ने अपनी भी साथना बढ़ा दी थी आने वाले समय में उसे विधाता द्वारा लिखी गई लिखे गए सुगना के परिवार के भाग्य को मूर्त रूप लेते हुए देखना था।
लाली और सोनी का अपना अलग-अलग कमरा था वह दोनों अपने पतियों के साथ रहती थी पर अक्सर उन दोनों के पति बाहर ही रहते थे सोनू की पोस्टिंग बनारस से हटकर इलाहाबाद में थी और विकास अक्सर अपने व्यवसाय के सिलसिले में उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में घूमता रहता था।
घर में सिर्फ सूरज ही था जिसे एक अलग कमरा दिया गया था शायद सबका विश्वास सूरज पर था और इस पर किसी ने आपत्ति भी नहीं की थी। सूरज डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहा था वह एक होनहार लड़का था और सर्वगुण संपन्न था पर हाय रे दुर्भाग्य न जाने उसे कौन सा शाप लगा था युवावस्था की दहलीज पर पहुंचने के बावजूद भी उसके कामांग में कोई हलचल नहीं थी। सूरज खुद डॉक्टरी की पढ़ाई पढ़ने के बावजूद इस बात का उत्तर ढूंढ नहीं पा रहा था कि क्यों उसके लिंग में कोई उत्तेजना क्यों नहीं होती? ऐसा नहीं था कि उसका लण्ङ सामान्य नहीं था अपितु उसका लंड बेहद ही आकर्षक और सुडौल था पर उसमें तनाव नहीं आता था। शायद यह शाप का ही असर था । परंतु सूरज इस शाप से कतई अनजान था । लिंग में तनाव नहीं आने से बात उसे बार-बार खा जा रही थी।
उसके मन में अब यह धीरे-धीरे तनाव का कारण बन रहा था परंतु यह बात ऐसी थी कि उसे वह किसी से साझा भी नहीं कर सकता था अपने मृदुल स्वभाव गठीले शरीर और सुंदर तेजस्वी चेहरे से कई लड़कियों काचहेता था परंतु वह अपनी कमी को जानता था और किसी भी लड़की के समीप आने से घबराता था यद्यपि इस समय उसे पढ़ाई का सहारा था जिसके सहारे वह अपना समय व्यतीत करता परंतु मन के होने किसी ने किसी कोने में यह बात उसे खा जा रही थी।
बैठक कक्ष से बच्चे एक-एक करके अपने अपने कार्यों में तल्लीन हो गए और विद्यानंद के शिष्य से बात करने के लिए अब सिर्फ सोनी और सुगना ही कमरे में बच गए थे लाली चाय पान के प्रबंध के लिए रसोई कक्ष में थी।
शिष्य विद्यानंद के शिष्य से अब और उत्सुकता बर्दाश्त नहीं हुई उसने अपना ध्यान एक बार फिर सरयू सिंह के चित्र की तरफ किया और पूरी संगीदगी से सुगना से पूछा
इन दिव्य पुरुष की अकाल मृत्यु कैसे हुई …कृपया मुझे सच बताइएगा। सुगना और सोनी को शिष्य से अंतिम शब्द की उम्मीद नहीं थी उसने सच शब्द पर विशेष जोर दिया था।
कमरे में जैसे सन्नाटा पसर गया सोनी और सुगना एक दूसरे को देख रहे थे उनके होंठ अचानक सूख गए…
इस प्रश्न का उत्तर देना कठिन था जो उत्तर अब तक परिवार बाकी सब को देता आया था वह बात न जाने क्यों आज सोनी और सुगना के मुख से नहीं निकल रही थी।
दोनों एक दूसरे को क्यों किमकर्तव्य विमूढ़ भाव से देख रहे थे हलक से आवाज निकलने को तैयार न थी तभी लाली कमरे में अपने हाथों में छाया की तश्तरी लिए हुए अंदर आई और सोनी और सुगना को इस विषम स्थिति से बचा लिया विद्यानंद के शिष्य को चाय देते हुए कहा…
महाराज रतन जी के बारे में बताइए कैसे हैं वह। विद्यानंद का शिष्य लाली के प्रश्न में उलझा गया। उधर सुगना का कलेजा धक-धक कर रहा था उसे दीपावली का वह कल दिन याद आ रहा था जब सरयू सिंह ने अंतिम सांस ली थी सुगना का कलेजा मुंह को आने लगा। सोनी की भी हालत खराब थी सुगना से और बर्दाश्त नहीं हुआ वह बैठक कब से उठकर अपने कक्ष की ओर जाने लगी उसने शिष्य से अनुमति लेना भी उचित न समझा । लाली ने सुगना की स्थिति को महसूस कर सोनी से पूछा क्यों क्या हुआ सुगना की तबीयत ठीक तो है ना। सोनी ने लाली के प्रश्न का फायदा उठाया और वह स्वयं उठती हुई बोली देखकर आती हूं ….सोनी सुगना के पीछे-पीछे उसके कक्ष में आ गई।
लाली के प्रश्न का उत्तर देने के बाद शिष्य ने जो प्रश्न सुगना और सोने से किया था उसने वही प्रश्न लाली के समक्ष दोहरा दिया।
लाली मैं इधर-उधर देखा और धीमे स्वर में सरयू सिंह के निधन का कारण शिष्य को बताने लगे..
लाली सच्चाई से अनभिज्ञ थी उसे उतना ही ज्ञात था जितना सभ्य समाज के लिए जरूरी था सरयू सिंह के पाप सोनी और सुगना के हृदय में दफन थे.. जो अपनी यादों में कोई उस काले दिन को याद कर रही थी। जिसने उनका पूरा जीवन ही बदल दिया था।
शेष अगले भाग में…