• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
1,513
7,132
159
आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
भाग 126 (मध्यांतर)
भाग 127 भाग 128 भाग 129 भाग 130 भाग 131 भाग 132
भाग 133 भाग 134 भाग 135 भाग 136 भाग 137 भाग 138
भाग 139 भाग 140 भाग141 भाग 142 भाग 143 भाग 144 भाग 145 भाग 146 भाग 147 भाग 148
 
Last edited:

Sanju@

Well-Known Member
5,119
20,550
188
भाग 137


“ये अब सुगना दीदी पहनेंगी..” लाली ने वह लहंगा अपने हाथों से उठा लिया और उसे सुगना की कमर से लगा कर सोनू को दिखाते हुए पूछा.


“ अच्छा लग रहा है ना?”

सोनू क्या बोलता …उस लहंगे में सुगना की कल्पना कर उसका लंड अब खड़ा हो चुका था।

“अच्छा है…दीदी में वैसे भी सब कुछ अच्छा लगता है”

नियति ने निर्णय ले लिया था…


सुगना सोनू की पसंद का लहंगा उसके विवाह में पहनने को राजी हो गई थी…सोनू खुश था…और अब अपने विवाह का इंतजार बेसब्री से कर रहा था…

अब आगे..

उसी दोपहर में एकांत के पलों में सोनू ने सुगना को उसके कमरे में ही दबोच लिया और उसके होठों को चूमते हुए बोला “ सबके कपड़ा लत्ता त आ गैल एक बार हमार दहेज त देखा दा”

सुगना सोनू का इशारा पूरी तरह समझ रही थी उसका छोटा भाई सोनू जो अब शैतान हो चुका था उससे उसकी बुर देखने की मांग कर रहा था। पर घर में लाली भी थी और ऊपर से तीन-चार दिनों बाद उसका विवाह भी होने वाला था ऐसी स्थिति में सोनू के गले पर दाग लगाना सुगना को गवारा न था।

“अरे पागल हो गइल बाड़े का …तीन-चार दिन बाद ब्याह बा, गर्दन पर दाग लेकर जईबे गांव…? ” सुगना ने उसके सीने पर अपनी हथेलियो से दबाव बनाकर उससे दूर होने की कोशिश की।

सोनू सुगना के प्यार में पूरी तरह बावला हो गया था उसे कुछ भी समझ ना आ रहा था उसने सुगना को फिर से खींच कर अपने सीने से सटा लिया और उसके गालों से अपने गाल रगड़ते हुए उसके कानों में बोला

“ दीदी अभी तीन-चार दिन बा कब तक तो दाग कम हो जाए…”

“हट, जाए दे लाली बिया..” सुगना ने सोनू को लाली की उपस्थिति की याद दिलाई…पर सोनू मानने वाला नहीं था वह अब भी जिद पर अड़ा था

“अच्छा ठीक बा बियाह भइला के बाद..” सुगना ने उसे मनाने की कोशिश की

“काहे सुहागरात तू ही मनाईबू का?”

सोनू सुगना से झूठी नाराजगी दिखाते हुए बोला..वह अब भी उसे छोड़ने को तैयार न था..

बाहर लाली के कदमों की आहट सुनाई दी और सोनू की पकड़ ढीली हुई और सुगना सोनू से अलग हो गई। और मुस्कुराते हुए बोली

“अच्छा ठीक बा …. लाली छोड़ी तब नू “

सोनू मन मसोस कर रह गया…लाली पास आ चुकी थी।


शाम को सुगना ने सोनू को अपनी शेरवानी ट्राई करने के लिए कहा। सोनू सुगना की लाई शेरवानी में एकदम दूल्हे की तरह लग रहा था उस पर उसके गले में पड़ा मैरून कलर का दुपट्टा उसकी खूबसूरती को और भी निखार दे रहा था। गले में पड़ा यह दुपट्टा सोनू के उस स्थान को भी पूरी तरह ढक रहा था जहां कभी-कभी सोनू का दाग उभर आया करता था।

लाली ने यह नोटिस किया और तुरंत ही बोली..

“शेरवानी बहुत सुंदर है और दुपट्टा भी बहुत अच्छा है यदि कहीं गलती से दाग उभर भी आया तो भी उसको ढक लेगा।”

सोनू और सुगना ने एक दूसरे की तरफ देखा पर सुगना ने अपनी नज़रें नीचे झुका ली..

सोनू के मन में उम्मीद की किरण जाग उठी…

सोनू पुरी शाम सुगना के आगे पीछे घूमता रहा उसके लिए उसकी पसंद की चाट पकौड़ी और मनपसंद कुल्फी लाया बच्चों को घुमाने ले गया और उसने वह सारे कृत्य किये जिससे वह सुगना को प्रसन्न कर सकता थाआखिरकार सुगना पिघल गई उसने भी उसे निराश न किया ….

सुगना निराली थी. और अपने छोटे भाई सोनू को दिलोजान से प्यारी थी। सोनू खुश था…अगली सुबह सोनू जौनपुर के लिए निकल रहा था…और अपने गर्दन पर अपनी सुगना की याद दाग के रूप में लिये जा रहा था।

सोनू का यह दाग सुगना के प्यार की निशानी बन चुका था।

लाली और सोनू का विवाह कुछ ही दिनों में होने वाला था। सुगना इस विवाह की तैयारीयो में मशगूल हो गयी। सुगना ने विवाह का कार्यक्रम बेहद संक्षिप्त तरीके से करने का फैसला किया था वैसे भी यह विवाह कोर्ट मैरिज के रूप में होना था उसने अपने घर सीतापुर में एक पूजा रखी जिसमें अपने रिश्तेदारों को आमंत्रित किया और शाम को एक भोज का भी आयोजन किया। सारी तैयारी करने के बाद सुगना एक बार फिर बनारस में सोनू का इंतजार कर रही थी।

आखिरकार सोनू और लाली के विवाह का दिन आ गया। इस विवाह को लेकर सोनू बहुत ज्यादा उत्साहित नहीं था लाली से वह जितना करीब पहले था अब भी वह उतना ही करीब रहता।

उधर सुगना और लाली में उत्साह की कमी नहीं थी। लाली तो मन ही मन बेहद प्रसन्न थी । उसने सुगना द्वारा लाया हुआ लाल जोड़ा पहना और सज धज कर तैयार हो गई। सुगना ने लाली को तैयार होने में पूरी मदद की और उसे एक खूबसूरत दुल्हन की तरह तैयार कर दिया। लाली को देखकर ऐसा कतई नहीं लग रहा था कि वह दो बच्चों की मां है। उम्र को मात देने की कला जितना सुगना में थी लाली उससे कम कतई न थी। उसने भी अपने शरीर की बनावट और कसावट पर भरपूर ध्यान दिया था शायद इसलिए ही वह सोनू को अब तक अपनी जांघों के बीच बांधे रखने में कामयाब रही थी चार-पांच वर्षों तक सोनू को खुश करने के बाद भी सोनू की आसक्ति उसमें कम नहीं हुई थी।

लाली यदि सोनू के लिए वासना की भूख मिटाने का खाना थी तो सुगना उसके लिए अचार से कम न थी।


सोनू ने चाहे कितना भी लाली का मालपुआ खाया हो और उसकी वासना तृप्त हो गई हो पर सुगना का मालपुआ देखते ही उसकी जीभ फिर चटकारे लेने लगती और और लंड उछलने लगता।

सुगना ने भी सोनू द्वारा गुलाबी रंग का लाया लहंगा और चोली पहना और एक बार फिर नव विवाहिताओ के जैसे तैयार हो गई। न जाने ईश्वर ने सुगना को इतना खूबसूरत क्यों बनाया था। सुगना से मिलने वाला व्यक्ति या तो उससे कोई पवित्र रिश्ता बनाता या फिर वह उसकी वासना पर अपना अधिकार जमा लेती। जितना ही वह व्यक्ति कामुक होता सुगना उससे दोगुनी कामुकता के साथ उसके दिलों दिमाग पर छा जाती। सुगना को देखने के पश्चात उसे इग्नोर करना कठिन था। सोनू द्वारा पसंद किए गए इस गुलाबी जोड़े में सुगना सचमुच कयामत ढा रही थी।

ऐसा लग रहा था जैसे कोई नई नवेली दुल्हन अपने छोटे भाई की शादी में जा रही हो। सुगना स्वाभाविक रूप से बेहद खूबसूरत थी ना कोई मेकअप ना कोई विशेष प्रयास पर फिर भी जब वह तैयार हो जाती तो न जाने कितनी हीरोइनो को मात दे रही होती।

लाली और सुगना दोनों ही तैयार होकर अब कोर्ट जाने की तैयारी कर रही थी। सोनू अपनी दोनों अप्सराओं को अपने समक्ष देखकर खुश था।

कोर्ट मैरिज में वैसे भी ज्यादा रिश्तेदारों की आवश्यकता ना थी। फिर भी सरयू सिंह और पदमा कोर्ट परिसर में उपलब्ध थे।

सरयू सिंह ने पदमा का मन टटोलने के लिए पूछा

“लाली तारा पसंद बड़ी नू ?”

पदमा आज भी सरयू सिंह से नजरे नहीं मिलती थी और अब भी घुंघट रखती थी पूरा नहीं तो कम से कम एक चौथाई ही सही। उसने सर झुकाए झुकाए ही कहा

“अब जब सोनू के पसंद बाड़ी त हमरो पसंद बाड़ी “

वैसे भी लाली धीरे-धीरे सोनू की मां पदमा का मन जीत चुकी थी। लाली ने हमेशा पद्मा का ख्याल रखा था बाकी घर में ऐसा कोई नहीं था जो अब लाली का विरोध करता था या जिसे लाली स्वीकार्य नहीं थी। वैसे भी जब उसे सुगना का साथ मिल चुका था सब स्वतःउसकी तरफ आ चुके थे।


कोर्ट मैरिज की फॉर्मेलिटी कंप्लीट करने के बाद सोनू और लाली पति पत्नी हो चुके थे सुगना ने उन्हें बधाइयां दी…

सोनू और लाली दोनों ने उसके चरण छूने की कोशिश की। लाली ने शायद यह सोचकर ही सुगना के चरण छूने की कोशिश की क्योंकि वह सोनू की बड़ी बहन थी। सुगना ने सोनू को तो नहीं रोका पर लाली को बीच में ही रोक कर अपने गले लगा लिया और फिर सोनू के सर पर हाथ फिराकर बोली..

“लाली और ओकरा परिवार के के पूरा ध्यान दिहा और एक दूसरा के हमेशा खुश रखीह “

सोनू हाजिर जवाब था उसने सुगना का हाथ पकड़ते हुए कहा

“ दीदी तू भी एही परिवार के हिस्सा हऊ हम तहरों के बहुत खुश राख़ब”

“अच्छा चल ढेर बकबक मत कर हमरा पुराना मंदिर भी जाए के बा तोरा ब्याह के मन्नत मंगले बानी”

पदमा पास ही खड़ी थी उसने कहा

“ बेटा कहीं देर मत हो जाए”

“ना मा चिंता मत कर हो जाए” सुगना ने अपनी मां पदमा को आश्वस्त किया।

सोनू आगे पूरे परिवार को सीतापुर पहुंचने की प्लानिंग करने लगा उसके पास जो शासकीय गाड़ी थी शायद उसने पूरा परिवार आना संभव नहीं था।

घर पहुंच कर सब लोग अब सीतापुर जाने की तैयारी कर रहे थे। अब तक सोनू अपनी रणनीति बना चुका था।

कुछ ही देर बाद सभी सोनू की शासकीय गाड़ी में बैठकर सीतापुर जाने की तैयारी करने लगे। यह निर्धारित किया गया की सोनू सुगना और उसके दोनों बच्चे दूसरी ट्रिप में सीतापुर पहुंचेंगे। लाली भी सोनू के साथ रुकना चाहती थी परंतु सोनू की मां पदमा ने कहा

“लाली वहां सीतापुर में तोहरा पूजा पाठ में लगे के बा तू चला “

अपनी सास की बात काट पाना लाली के बस में न था l। वह चुपचाप गाड़ी में बैठ गई सुगना के दोनों बच्चे भी कजरी और सरयू सिंह से बेहद लगाव रखते थे वह दोनों भी सीतापुर जाने की जिद करने लगे और आखिरकार सरयू सिंह ने उन्हें भीअपने साथ ले लिया।

आखिरकार घर के सभी लोग सीतापुर के लिए निकल चुके थे और अब तय कार्यक्रम के अनुसार सोनू को सुगना को लेकर मंदिर जाना था तब तक सोनू की गाड़ी सभी परिवारजनों को सीतापुर छोड़कर वापस आ जाती और उसके बाद सोनू और सुगना इस गाड़ी से वापस सीतापुर चले जाते।

सोनू अब तक अपनी शेरवानी उतार चुका था परंतु सुगना ने अपना खूबसूरत लहंगा और चोली पहना हुआ था।

सुगना ने झटपट अपना पूजा का सामान लिया और सोनू से बोली

“चल हम तैयार बानी “

सोनू ने पड़ोस के किसी मित्र से मोटरसाइकिल उधार पर ली और अपनी बहन सुगना को पीछे बैठा कर पुराने मंदिर की तरफ निकल पड़ा।

सोनू कई दिनों बाद अपनी बहन सुगना को मोटरसाइकिल पर बैठाकर पुराने मंदिर की तरफ जा रहा था।

शहर की भीडभाड़ से बाहर निकल कर मोटरसाइकिल ने अपनी रफ्तार पकड़ ली। शुरुआत में सुगना को मोटरसाइकिल पर बैलेंस कायम रखने में परेशानी महसूस कर रही थी परंतु धीरे-धीरे वह सहज हो गई कुछ ही देर बाद मोटरसाइकिल बनारस की सड़कों पर तेजी से पुराने मंदिर की तरफ दौड़ रही थी। सोनू भी पूरे उत्साह में था।

सोनू को पुरानी बातें याद आने लगी जब वह पहली बार लाली को भी इस मंदिर में लाया था…उसे वह घटनाक्रम धीरे-धीरे याद आने लगा। पीछे बैठी सुगना पहले तो डर रही थी पर अब हवा के थपेड़ों का आनंद ले रही थी उसके बाल हवा में लहरा रहे थे वह बार-बार सोनू से धीरे चलने का अनुरोध कर रही थी परंतु सोनू डर और रोमांच का अंतर महसूस कर पा रहा था।। वह सुगना के कहने पर मोटरसाइकिल धीरे जरूर करता परंतु जल्द ही रफ्तार को कायम कर सुगना को रोमांचित कर देता।


सुगना अपने कोमल हाथ बढ़ाकर उसके पेट को तेजी से पकड़े हुए थी और अपनी चूचियां उसकी पीठ से सटाएं हुए थी। सोनू को यह अनुभूति बेहद पसंद आ रही थी।

एक हाथ में पूजा की टोकरी और दूसरे हाथ से सोनू को पकड़े सुगना अब मंदिर पहुंच चुकी थी।

सुगना और सोनू ने विधिवत पूजा की आज सोनू के लिए भी विशेष दिन था पूजा पाठ में विश्वास कम रखने वाला सोनू भी आज पूरे मन से पूजा कर रहा था पंडित ने दक्षिणा ली और पूजा का सिंदूर सुगना की पूजा की थाली में रख दिया…और बोला..

भगवान तुम दोनों पति-पत्नी को हमेशा खुश रखे।

सोनू मुस्कुरा रहा था सुगना के चेहरे पर हंसी के भाव थे। सुगना ने पंडित से बहस करना उचित नहीं समझा वह चुपचाप सोनू के साथ बाहर आ गई।

सुगना ने सोनू और लाली के सुखद वैवाहिक जीवन की कामना की और अपने पूरे परिवार के लिए खुशियां मांगी।

सोनू समझदार था उसने सिर्फ और सिर्फ अपने ईष्ट से सुगना को ही मांग लिया उसे पता था उसके इस जीवन में रंग भरने वाली सुगना यदि उसके साथ है तो उसके जीवन में सारे सुख और खुशियां स्वयं ही आ जाएंगी।

सुगना की मन्नत पूरी हो चुकी थी और अब सोनू की बारी थी। वापस आते समय मोटरसाइकिल पर बैठी सुगना से सोनू ने कहा..

“ए सोनू तू भी मेरे से हिंदी में बात किया कर”

“काहे दीदी ?”

“जबसे सोनी अमेरिका गई है फिर हम लोग का हिंदी बोलने का आदत छूट रहा है ते मदद करबे तो हिंदी सीखे में आसानी होई “

सुगना की हिंदी को परिमार्जित होने में अभी समय था।

“ठीक है मैडम जी जैसी आपकी आज्ञा मैं भी अब आपसे हिंदी में ही बात करूंगा” सोनू हंसते हुए बोला।

सुगना को मैडम शब्द कुछ अटपटा सा लगा पर उसने उस पर कोई रिएक्शन नहीं दी पर बात को बदलते हुए कहा

“लाली भी ए मंदिर में अक्सर आवत रहली”

“अरे अभी अभी तो हिंदी में बात हो रही थी फिर भोजपुरी चालू हो गइल “

सुगना झेंप गई पर उसने अपना प्रश्न और आसान करते हुए पूछा..

“तू लाली के भी बिकास के फटफटिया पर बैठा के ले आएल रहला ना? “

सोनू को वह दिन याद आ चुका था जब वह लाली को विकास की मोटरसाइकिल पर बैठकर इसी मंदिर में लाया था और पहली बार उसने लाली की बुर के दर्शन भी किए थे।

“तोहरा कैसे मालूम लाली बतावले रहली का?”

“बतावले तो और भी कुछ रहली…” सुगना ने सोनू को छेड़ा


सोनू सुगना का चेहरा देखना चाह रहा था पर यह संभव नहीं था सोनू ने मुस्कुराते हुए पूछा …

“बताव ना लाली तोहर से का बतावले रहली”

“अच्छा चल जाए दे छोड़ दे कुछ खाए पिए के लेले अब भूख लग गैल बा”

“ठीक बा अगला चौराहा पर ले लेब लेकिन एक बार बता त द”

“ओकर चीजुइया एहीजे देखले रहल नू”

सोनू खुश हो रहा था सुगना खुल रही थी।

“कौन चिजुइया दीदी”

“मारब फालतू बात करब त “ सुगना ने बड़ी बहन के अंदाज में सोनू से कहा।

सोनू बार-बार आग्रह करता रहा सुगना टालती रही पर जब सोनू अधीर हो उठा सुगना ने कहा

“अरे उहे जवन तू हमरा से दहेज में लेले बाड़े “

सोनू ने फिर कहा

“ का ? साफ साफ बोला ना दीदी”

सुगना ने सोनू के माथे पर चपत लगाई और जोर से बोली “ललिया के पुआ…”

सुगना से जीतना मुश्किल था..

सोनू ने मोटरसाइकिल के ब्रेक लगा दिए…सुगना एक पल के लिए लड़खड़ा गई उसने सोनू को मजबूती से पकड़ लिया और सोनू की पीठ पर अपनी मदमस्त चूचियों को सटा दिया। उसका मनपसंद होटल आ चुका था सोनू और सुगना दोनों खुश थे।

सोनू और सुगना ने खाना खाया और दोनों घर पर वापस आ गए सोनू की शासकीय गाड़ी को आने में अभी वक्त था और यह वक्त सोनू के लिए बेहद कीमती था।

सोनू सुगना के साथ एकांत में हो और वह उसके आगे पीछे ना घूमें ऐसा संभव नहीं था। सोनू और सुगना के बीच की दूरी सिर्फ और सिर्फ उसके परिवार और समाज की वजह से थी वरना सोनू और सुगना शायद एक दूसरे के लिए ही बने थे उनकी जोड़ी बेहद खूबसूरत थी एक ही कोख से जन्म लिए दो नायाब नमूने मौका मिलते ही एक हो जाने के लिए तत्पर रहते। दोनों के बीच का चुंबकीय आकर्षण अनोखा था। सुगना भी अब अपना प्रतिरोध त्याग चुकी थी मिलन का सुख उसे भी अब रास आ रहा था।

सोनू के हाव-भाव और आंखों में ललक देखकर सुगना उसकी मंशा समझ गई थी।अब तक सुगना को भी यह अंदाजा हो चला था कि आज उसे खूबसूरत गुलाबी लहंगे का हक अदा करना था जिसे सोनू अपनी होने वाली पत्नी के लिए लाया था परंतु घटनाक्रम कुछ ऐसा बना था कि यह लहंगा सुगना के खाते में आ गया था।

सुगना ने भी सोनू को खुश करने की ठान ली। इधर सोनू अपना कुछ सामान रखने लाली के कमरे में गया उधर सुगना ने अपने बिस्तर पर नई चादर बिछाकर खुद को तैयार किया और एक नई दुल्हन की तरह बिस्तर पर बैठ गई…

सोनू झटपट अपना बैग पैक कर बाहर हाल में आया और सुगना को ढूंढने लगा.

सुगना के कमरे का दरवाजा खोलते ही सोनू की आंखें आश्चर्य से फैल गई। सुगना वज्रासन की मुद्रा में बैठी थी परंतु उसके नितंब उसके एड़ी पर नहीं थे अपितु.. दाहिनी तरफ बिस्तर पर बड़े सलीके से रखे हुए थे. उसकी मदमस्त गोरी जांघें गुलाबी लहंगे के नीचे छुपी तो जरूर थी परंतु उनके मादक जाकर को छुपा पाना असंभव था।

लहंगे के साथ आया दुपट्टा सुगना ने ओढ़ रखी था और घूंघट कर रखा था. सुगना की खूबसूरती को छुपा पाना उसे झीने घुंघट के बस का न था उल्टे उसने सुगना की सुंदरता और भी निखार दी थी।

तरह-तरह के रत्न जड़ित गुलाबी चोली ने सुगना की चूचियों को और भी गोल कर दिया था.. जो चोली से छलक छलक कर मानो अपनी मुक्ति की गुहार लगा रही थीं। सुगना का घाघरा बिस्तर पर करीने से फैल कर एक वृताकार आकर ले चुका था। बीच में सुगना किसी सुंदर मूर्ति की भांति बैठी हुई थी ऐसा लग रहा था जैसे कोई सुंदर नवयौवना सुहाग की सेज पर बैठे अपने पति का इंतजार कर रही हो।

अपने निचले होंठों को दांतों में दबाए सुगना अपनी पलकें झुकाए हुए थी और उसकी खूबसूरत पलकें उसकी आंखों की दरार को आवरण दिए हुए थी सुगना बिस्तर पर न जाने क्या देखे जा रही थी और सोनू सुगना को एक टक देखे जा रहा था । सुगना ने यह क्यों किया था यह तो वही जाने पर सोनू की आंखों के सामने उसकी कल्पना मूर्त रूप ले रही थी।


कुछ देर कमरे में मौन की स्थिति रही.. और फिर वासना का वो भूचाल आया जो सुगना और सोनू के जहां में एक अमित छाप छोड़ गया। यह मिलन उन दोनों के जेहन में ऐसी याद छोड़ गया जिसे वह जीवन भर याद कर रोमांचित हो सकते थे।

सोनू ने सुगना को इस रूप में पाने के लिए न जाने ईश्वर से कितनी मिन्नतें की होगी कितनी दुआएं मांगी होगी उसके बावजूद सोनू को शायद ही कभी यकीन होगा कि यह दिन उसके जीवन में आ सकता है जब सुगना स्वयं सुहागरात के लिए सज धज कर एक दुल्हन की भांति सोनू का इंतजार कर रही हो और मिलन में बिना किसी बंधन या पूर्वाग्रह के पूरी तरह समर्पित हो।

आज का दिन दोनों के लिए महत्वपूर्ण था आज सोनू ने सुगना को दिया वचन निभाया था और सुगना आज स्वयं को पूरी तरह सोनू को समर्पित कर देना चाहती थी.

आज सुगना ने सोनू को प्रसन्न करने के लिए अपनी कामकला जो उसमें सरयू सिंह के साथ सीखी थी उसका परिष्कृत रूप सोनू के समक्ष प्रस्तुत किया था और सोनू बाग बाग हो गया था।

सुगना ने काम कला और कामसूत्र के न जाने कितने आसन सोनू के साथ प्रयोग किए और सोनू को मालामाल कर दिया। सोनू के लिए यह आनंद की पराकाष्ठा थी।

यदि आज स्खलन के समय ईश्वर उसे एक तरफ जीवन और दूसरी तरफ इस स्खलन में से एक चुनने को कहते तो शायद सोनू अपने जीवन का परित्याग कर देता परंतु सुगना की कंपकपाती बुर में स्खलन का आनंद वह कतई नहीं त्यागता। सोनू और सुगना दोनों हाफ रहे थे.. वासना का भूचाल खत्म हो चुका था। अचानक सोनू का ध्यान सुगना की मांग की तरफ गया सोनू के ललाट पर मंदिर में सुगना द्वारा लगाया गया सिंदूर मिलन के समय चुम्मा चाटी के दौरान सुगना की मांग में लग गया था।

“सोनू ने सुगना को चूमते हुए बोला”

“दीदी उठ के शीशा में देख ना?

“का देखी? “

“एक बार उठा त”

सुगना अब भी आराम करना चाह रही थी वह पूरी तरह थक चुकी थी फिर भी सोनू के कहने पर उठकर उसने खुद को शीशे में देखा माथे पर सिंदूर देखकर वह सोनू की तरफ पलटी।

“अरे पागल ई का कईले?

“हम कहां कुछ करनी हां.. का जाने ई कैसे भईल “

सुगना और सोनू दोनों निरुत्तर थे परंतु जो हुआ था वह स्पष्ट था सोनू का सिंदूर सुगना की मांग में स्वत ही आ गया था। सुगना को भली भांति यह ज्ञात था कि यह सिंदूर सोनू ने जानबूझकर उसकी मांग में नहीं लगाया है अपितु यह संयोग उनके मिलन के दौरान अकस्मात रूप से हुआ है।

ऐसा नहीं था कि सुगना अपनी मांग में सिंदूर नहीं लगाती थी। वह अपनी मांग में सिर्फ अपने आप को विधवा नहीं दिखाने के लिए सिंदूर लगाया करती थी क्योंकि रतन अभी जीवित था। वैसे भी उसे सुहागन की तरह रहना और सजना पसंद था। परंतु आज उसकी मांग में जो सिंदूर लगा था वह अलग था अनूठा था।

सोनू और सुगना अब भी दोनों पूरी तरह नग्न एक दूसरे के समक्ष खड़े थे सुगना ने एक पल के लिए अपनी आंखें बंद की ईश्वर को अपने मन में याद किया और बाहें फैला कर सोनू को अपने आगोश में ले लिया और अपने सर को सोनू के कंधे से सटा दिया। सुगना का यह समर्पण अनूठा था।


दोनों के नग्न शरीर एक दूसरे से चिपकते चले गए। सोनू ने जो वीर्य सुगना की चुचियों और पेट पर गिराया था उसकी शीतलता और चिपचिपाहट अब सोनू ने भी महसूस की। वो कुछ पलों तक सुगना को अपने आगोश में लिया रहा फिर उसके गालों को चूमते हुए बोला

“दीदी चल नहा लिहल जाओ बहुत देर हो गइल बा गाड़ी भी आवते होई “

सोनू और सुगना में अब कोई भेद न था दोनों एक साथ ही गुशलखाने की तरफ चल पड़े और एक साथ स्नान का आनंद उठाने लगे यह आनंद धीरे धीरे कामांनंद में तब्दील हो गया, पहल किसने की यह तो नियति भी नहीं देख पाई पर दोनों प्रेमी युगल एक बार फिर एक दूसरे के कामांगो पर रजरस चढ़ाने में कामयाब रहे।

आज सोनू के विवाह का दिन था आखिरकार सोनू ने अपनी सुहागरात दिन में ही मना ली वैसे भी जब विवाह दिन में हुआ था तो सुहागरात के लिए रात का इंतजार क्यों?


पर हाय री सोनू की किस्मत…इधर उसका दिल बाग बाग हो गया था उधर गर्दन का दाग बढ़कर उसके पाप की गवाही देने लगा। आज दाग अपने विकराल रूप में था ऐसा लग रहा था अंदर के लहू को दाग की त्वचा अब काबू में रखने में सक्षम न थी लहू रिस रिस कर बाहर आने को तैयार था। सुगना और सोनू वासना में यदि और डूबे रहते तो निश्चित ही वह दाग एक जख्म का रूप लेकर फूट पड़ता।

सुगना अपने ईश्वर से सोनू का यह दाग हटाने का अनुनय विनय करती रही पर उसे भी पता था शायद ईश्वर उसकी यह बात न पहले मानते आए थे और न हीं अब मानने को तैयार थे।

अब प्रायश्चित करने से कोई फायदा न था। सोनू को इस दाग को अपने साथ लिए ही अपने गांव जाना था। सोनू को अब इस दाग की लगभग आदत सी हो चली थी पर आज दाग का यह रूप उसे भी डरा रहा था।

सोनू की कार को वापस आने में अप्रत्याशित देरी हो रही थी। सोनू को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था तो उसने सुगना के साथ मिले समय का भरपूर सदुपयोग किया था. पर सुगना चिंतित थी। दूल्हा उसके साथ था और सीतापुर में दूल्हे का इंतजार था।

सुगना के कहने पर सोनू ने एक बार फिर अपनी शेरवानी पहन ली और गले में शेरवानी के साथ आया दुपट्टा डालकर सुगना के साथ आज यह दुपट्टा जो लड़कियों का यौवन ढकने के काम आता था आज सोनू की आबरू ढकने का काम कर रहा था। सोनू और सुगना अपने गांव सीतापुर की ओर चल पड़े..

सोनू पूरी तरह तृप्त थका हुआ अपने गंतव्य की तरह जा रहा था। उसे अब और किसी सुहागरात का इंतजार न था उसकी सारी तमन्नाएं पूरी हो चुकी थी। उधर सुगना कार की खिड़कियों से लहलते धान के खेतों को देख रही थी। अपने माथे पर लगे सिंदूर के बारे में सोचते सोचते वह न जाने कब उसकी आंख लग गई और वह मन ही मां अपने विचारों में उलझने लगी…

क्या उसने लाली के साथ अन्याय किया था?

क्या सोनू को अपनी वासना की गिरफ्त में लेकर उसने लाली से विश्वासघात किया था?

सुगना अपने अंतर द्वंद से जूझ रही थी… एक तरफ वह लाली और सोनू को विवाह बंधन में बांधने का नेक काम कर खुद की पीठ थपथपा रही थी दूसरी तरफ लाली के हिस्से का सुहागरात स्वयं मना कर आत्मग्लानि से जूझ भी रही थी।


अचानक सुगना हड़बड़ा कर उठ गई… सोनू को अपने करीब पाकर वह खुश हो गई…उसने चैन की सांस ली पर वह अपने अंतर मन में फैसला कर चुकी थी…

शेष अगले भाग में…
बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है लाली और सोनू की शादी हो गई है लाली और सोनू की सुहागरात से पहले ही सोनू ने सुगना के साथ सुहागदिन मना लिया है सुगना भी सोनू को मना नहीं कर पाई है वह भी सोनू के साथ खुश हैं
 

Sanju@

Well-Known Member
5,119
20,550
188
भाग 138

क्या उसने लाली के साथ अन्याय किया था?

क्या सोनू को अपनी वासना की गिरफ्त में लेकर उसने लाली से विश्वासघात किया था?

सुगना अपने अंतर द्वंद से जूझ रही थी… एक तरफ वह लाली और सोनू को विवाह बंधन में बांधने का नेक काम कर खुद की पीठ थपथपा रही थी दूसरी तरफ लाली के हिस्से का सुहागरात स्वयं मना कर आत्मग्लानि से जूझ भी रही थी।


अचानक सुगना हड़बड़ा कर उठ गई… सोनू को अपने करीब पाकर वह खुश हो गई…उसने चैन की सांस ली पर वह अपने अंतर मन में फैसला कर चुकी थी…

अब आगे..

सुगना और सोनू अपने गांव सीतापुर की तरफ बढ़ रहे थे। जैसे-जैसे गांव करीब आ रहा था सुगना अपने बचपन को याद कर रही थी सोनू जब छोटा था वह उसका बेहद ख्याल रखती थी। कैसे पगडंडियों पर चलते समय वो इधर उधर भागा करता और वो उसे दौड़कर पकड़ती और वापस सही रास्ते पर चलने के लिए विवश करती कभी डांटती कभी फटकारती। जब सोनू गुस्सा होता उसे अपने आलिंगन में लेकर पुचकारती…

और आज वही छोटा सोनू आज एक पूर्ण मर्द बन चुका था। गांव का छोटा सा स्कूल आते ही सुगना ने चहकते हुए कहा.

“सोनू देख गांव के स्कूल”

“तोहरा पगला मास्टरवा याद बा…”

सोनू को पागल मास्टर भली भांति याद था जो उसे बचपन में बहुत परेशान किया करता था और वह सुगना ही थी जो अक्सर सोनू के बचाव में आकर उस पागल मास्टर से सोनू के पक्ष में लड़ाई किया करती थी।

सोनू और सुगना अपने बचपन की बातों में मशगुल हो गए…

बचपन की यादों की सबसे बड़ी खूबसूरती यह होती है कि वह आपको तनाव मुक्त कर देते हैं सुगना ने सोनू के साथ आज दोपहर में जो सुहागरात मनाई थी उसे कहीं ना कहीं यह लग रहा था जैसे उसने लाली के साथ अन्याय किया था और उसके दिमाग में इस बात का तनाव अवश्य था।

परंतु अब सुगना और सोनू दोनों सहज हो चुके थे। जैसे ही सोनू की गाड़ी ने गांव में प्रवेश किया गरीब घरों के बच्चे उसके पीछे-पीछे दौड़ने लगे अपनी सुगना दीदी को वह बखूबी पहचानते थे परंतु शायद यह दौड़ सुगना और गाड़ी को और करीब से देखने के लिए थी उसे छूने के लिए थी उसे महसूस करने के लिए थी।

घर में पदमा सोनू और सुगना का इंतजार कर रही थी जिन्होंने आने में जरूर से ज्यादा विलंब कर दिया था पदमा चाह कर भी अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं रख पाई और बोल उठी…

“का करें लागला हा लोग?

सुगना क्या उत्तर देती जो वह कर रही थी उसे वह स्वयं और अपने विधाता के अलावा किसी से बता भी नहीं सकती थी। सुगना के उत्तर देने से पहले ड्राइवर बोल पड़ा.

“वापस बनारस पहुंचते समय रास्ता में जाम लगा था इसीलिए पहुंचने में देर हो गया”

सोनू और सुगना दोनों ने पदमा के पैर छुए और मां का दिल गदगद हो गया पदमा को सोनू और सुगना दोनों पर गर्व था। सोनू के अपने पैर पर खड़े होने तक सुगना ने घर के मुखिया की जिम्मेदारी निभाई थी और अब धीरे-धीरे सुगना स्वयं समर्पण कर सोनू के अधिपत्य में आ चुकी थी। परंतु वह सोनू की नजरों में तब भी आदरणीय थी अब भी आदरणीय थी…

लाली गांव की अन्य महिलाओं के साथ बैठी हंसी ठिठोली का आनंद ले रही थी सोनू और सुगना के आगमन की सूचना उस तक भी पहुंची परंतु सभी महिलाओं के बीच से उठकर आना उसके लिए संभव नहीं था।

धीरे-धीरे पूरा परिवार निर्धारित कार्यक्रमों में लग गया शाम के भोज भात के कार्यक्रम में आसपास के गांव के कई लोग आए और सोनू और लाली की अनोखी शादी के जश्न में शामिल हुए। उनके मन में भले ही यह विचार आ रहा हो कि इस बेमेल शादी का मकसद क्या था परंतु किसी ने भी इस पर प्रश्न चिन्ह उठाने की हिम्मत नहीं दिखाई और दिखता भी कैसे जब सरयू सिंह और सोनू जैसा प्रभावशाली व्यक्तित्व इस रिश्ते को स्वीकार रहा था उस पर प्रश्न करने का अब कोई औचित्य नहीं था।

शाम होते होते सारे रिश्तेदार अपना अपना बिस्तर पकड़ने लगे और सुगना का आंगन खाली होता चला गया। सोनू स्वयं पूरी तरह थक चुका था वह भी बाहर पड़े दलान में एक और चुपचाप जाकर लेट गया और न जाने कब उसकी आंख लग गई।

उधर लाली की सुहाग सेज तैयार हो चुकी थी सुगना और उसकी एक दो सहेलियों को छोड़कर सभी लोग सो चुके थे।

सुगना ने और और देर नहीं की वह सोनू के पास के और उसके माथे पर हाथ फेरते हुए बोला…

“सोनू उठ चल लाली इंतजार करत बिया”

सोनू अब तक गहरी नींद में जा चुका था उसके कानों में सुगना की आवाज पड़ तो रही थी परंतु जैसे वह कुछ भी सुनने के मूड में नहीं था उसने करवट ली और अपनी पीठ सुगना की तरफ कर दी।

सुगना ने अपनी उंगलियों का दबाव और बढ़ाया और एक बार फिर बेहद प्यार से बोला..

“ए सोनू उठ जो”

सोनू ने अपनी आंखें खोली सुगना को देखकर वह सारा माजरा समझ गया उसने अपनी आंखें खींचते हुए सुगना से कहा..

“लाली के मना ले ना दीदी ई काम त बनारस में भी हो सकेला”

सोनू ने पहले भी सुगना को यह बात समझने की कोशिश की थी कि वह आज की सुहागरात के कार्यक्रम को टाल दे क्योंकि वह आज पूरी तरह तृप्त था।

“अभी चुपचाप चल, लाली का सोची आज घर के बहू के रूप में पूजा कईले बिया इ रसम तोरा निभावे के पड़ी”

सुगना की आवाज की खनक से सोनू ने अंदाज कर लिया कि सुगना को इनकार कर पाना अब उसके बस में नहीं था वह उठा और यंत्रवत उसके पीछे-पीछे चलने लगा। अब भी उसके शरीर में फुर्ती नहीं दिखाई पड़ रही थी।

सुगना ने अपनी चाल धीमी की और सोनू से मुखातिब होते हुए बोली..

“आज दिन में जवन सिखवले रहनी उ लाली के भी सिखा दीहे बाद में उ हे काम देही”

सुगना ने सोनू को आज दिन में मनाए गए सुहागरात का मंजर याद दिला दिया था सुगना का यह रूप उसने पहली बार देखा था उन खूबसूरत पलों को याद कर सोनू के लंड में एक बार फिर हरकत हुई और सोनू का हथियार एक बार फिर प्रेम युद्ध में उतरने के लिए तैयार हो गया।

पर जो उत्सुकता और ताजगी सुहागरात का इंतजार कर रहे पुरुष में होनी चाहिए शायद उसमें अब भी कुछ कमी थी।

कमरे के दरवाजे तक पहुंचते पहुंचते सुगना ने सोनू के दोनों मजबूत बुझाओ को अपने कोमल हाथों से पकड़ा और उसके कान में फुसफुसाते हुए बोला..

“अभीयो मन नईखे करत ता बत्ती बुझा दीहे और सोच लीहे कि बिस्तर पर हम ही बानी..”

सुगना यह बात बोल तो गई पर मारे शर्म के वह खुद ही लाल हो गई उसने अपनी हथेलियां अपनी आंखों पर रख ली और अपना चेहरा छुपाने की कोशिश की पर सुगना की इस अदा ने सोनू की उत्तेजना को पूरी तरह जागृत कर दिया सोनू ने सुगना के माथे को चूमना चाहा परंतु सुगना में इस समय अपने अधरों को सोनू के लिए प्रस्तुत कर दिया सोनू और सुगना के अधर एक दूसरे से सट गए..

इसके पहले कि यह चुंबन कामुक रूप ले पता सुगना ने अपने होंठ अलग किए और बोला

“ जो हमारा भाभी के खुश कर दे..”

लाली अब सुगना की भाभी बन चुकी थी।

अंदर लाली भी आज सोनू को खुश करने के लिए बेताब थी। अंदर हो रही हलचल सुगना महसूस कर रही थी। सुगना कुछ देर दरवाजे पर रही पर शायद अंदर हो रही हरकतों से वह अपने बदन में उठ रही उत्तेजना को महसूस कर रही थी उसने वहां से हट जाना ही उचित समझा।

सोनू और लाली की सुहागरात भी कम यादगार नहीं थी। लाली ने भी सोनू को खुश करने में कोई कमी नहीं रखी। सोनू की दोनों बहने आज उस पर मेहरबान थी। सोनू का दिन और रात आज दोनों गुलजार थे। सोनू को अपने निर्णय पर कोई अफसोस नहीं था उसे पता था उसका आने वाला समय बेहद शानदार था। दो रूप लावण्य से भरी हुई युवतियां उसे सहज ही प्राप्त हो चुकी थी वह भी पूरे दिल से आत्मीयता रखने वाली।

कुछ ही दिनों में लाली अपने बाल बच्चों समेत जौनपुर शिफ्ट हो गई। सुगना अपने बनारस के घर में अपने बच्चों के साथ अकेले रहने लगी। सोनू हर हफ्ते सुगना से मिलने बनारस आता परंतु लाली उसका पीछा नहीं छोड़ती वह भी उसके साथ-साथ बनारस आ जाती।

सोनू और सुगना का मिलन कठिन हो गया था। और तो और कुछ दिनों बाद सुगना ने सोनू से बात कर सीतापुर की गृहस्थी को बंद करने का निर्णय ले लिया और अपनी मां पदमा को भी बनारस बुला लिया।


वैसे भी बनारस में सुगना अकेले रह रही थी मां पदमा के आ जाने से उसे भी एक साथ मिल गया था। परंतु पदमा की उपस्थिति ने सोनू और सुगना के मिलन में और भी बाधाएं डाल दीं। दिन बीतने लगे सुगना को भूल पाना सोनू के लिए इतना आसान नहीं था सुगना के साथ बिताए गए अंतरंग पल सोनू को बेचैन किए हुए थे। गर्दन का दाग पूरी तरह गायब था और सोनू दाग लगवाने को आतुर।

सोनू और सुगना के मन में मिलन की कशिश बढ़ रही थी।

उधर आश्रम में रतन और माधवी दोनों उन अनोखे कूपे में अपनी काम पिपाशा मिटा रहे थे। रतन को पता चल चुका था कि मोनी अब तक कुंवारी थी और वह आज तक मनी से नहीं मिल पाया था।

मातहत कभी किसी एक के नहीं होते। माधवी ने जिस प्रकार रतन के लड़कों से मिलकर उसकी चाल बाजी को नाकाम कर दिया था और मोनी के लिए निर्धारित कूपे में स्वयं प्रस्तुत होती रहीं थी उसी प्रकार एक दिन रतन ने उसकी चाल बाजी को पकड़ लिया और माधवी इस बार किसी ऐसे कूपे में जा पहुंची जहां रतन की जगह एक अनजान लड़का था। रतन ने उस लड़के को अपने दिशानिर्देश दे दिए थे। उसका पारितोषिक कूपे में उसका इंतजार कर रहा था।

माधवी खूबसूरत बदन की मालकिन तो थी ही और वह लड़का बेहद प्यासा था। माधवी के गदराए बदन को देखकर वह अपनी सुध बुध खो बैठा .. वह बेझिझक माधवी के बदन से खेलने लगा। उसे न तो कुपे के नियमों का ध्यान रहा और न हीं पिट जाने का खतरा..

माधवी अब तक जान चुकी थी कि वह गलत कूपे में आ गई है। उसने एक बार लाल बत्ती दबाकर उसे रोकना चाहा पर वह लड़का नहीं रुका।

जैसे ही उसने अपना लंड माधवी की बुर में घुसाया माधवी ने एक बार फिर लाल बटन दबाया लड़का एक पल के लिए रुका जरूर पर अगले ही पल उसने अपनी कमर आगे की और उसका लंड माधवी की बुर में जड़ तक धंस गया।

माधवी चाहकर भी लाल बटन दो बार नहीं दबा सकी। उसे पता था दो बार बटन दबाने पर वह लड़का नियामानुसार दंडित होता परंतु माधवी की भी पहचान उजागर हो जाती। माधवी बेचैन थी वह लड़का उसे लगातार चोदे जा रहा था। वह उसकी चूचियों को बेदर्दी से मीसता और लंड को पूरी ताकत से आगे पीछे करता।

माधवी ने खुद को इतना लाचार पहले कभी नहीं महसूस किया था। इतने बड़े आश्रम में इतने प्रतिष्ठित पद पर होने के बावजूद आज वह कूपे में एक रंडी की भांति चुद रही थी। उसका स्वाभिमान तार तार हो रहा था। वह अपने ईश्वर से इस बुरे समय को शीघ्र बीतने के लिए उन्होंने विनय कर रही थी। परंतु जब तक कूपे का निर्धारित समय खत्म होता उसे लड़के ने उसकी बुर में वीर्य वर्षा कर दी।

खेल खत्म हो चुका था वह लड़का कूपे से बाहर जा चुका था माधवी अपनी जांघों से बहते हुए उसे घृणित वीर्य को देख रही थी। आज उसने जो महसूस किया था वह निश्चित ही उसके किसी पाप का दंड था।

उधर रतन आज अपनी अप्सरा के कूपे में पहुंचने में कामयाब हो गया था। एक तरफ माधवी नरक झेल रही थी दूसरी तरफ रतन स्वर्ग के मुहाने पर खड़ा था।

रतन मोनी की सुंदरता का कायल हो गया। अब तक तो वह सुगना की बदन की कोमलता और उसके कटाव से बेहद प्रभावित था परंतु मोनी जैसी कुंवारी, कमसिन और सांचे में ढली युवती को देखकर वो सुगना की खूबसूरती भूल गया। उसे मोनी सुगना से भी ज्यादा पसंद आने लगी वैसे भी रतन के मन में सुगना को लेकर थोड़ी जलन भी थी और अपनी नाकामयाबी को लेकर चिंता भी सुगना को संतुष्ट नहीं कर पाना उसकी मर्दानगी पर एक ऐसा प्रश्न चिन्ह था जिसने उसे झिंझोड़कर रख दिया था और उसे इस आश्रम में आने पर मजबूर कर दिया था

समय बीत रहा था और मोनी पुरुष स्पर्श का इंतजार कर रही थी। अब तक जब भी वह कूपे में आई थी पुरुषों के हाथ उसके बदन से खेलने लगते थे परंतु आज कुछ अलग हो रहा था मोनी स्वयं अधीर हो रही थी बेचैनी में वह अपना थूक गुटकने का प्रयास कर रही थी। वह बार-बार अपनी जांघों को आगे पीछे करती और उसके कमर में बल पड़ जाते। मोनी का बलखाता शरीर पुरुष स्पर्श को आमंत्रित कर रहा था । परंतु रतन अब भी उसकी चूचियों पर निगाह गड़ाए हुए था मोनी की चूचियां स्पर्श के इंतजार में और भी तन चुकी थी। जितना ही मोनी पुरुष स्पर्श के बारे में सोचती उसके निप्पल उतने ही खड़े हो जाते… माधवी ने मोनी की चूचियों की मालिश कर करके उसे सुडौल आकार में ला दिया था और वह इस समय उसके सीने पर सांची के स्तूपों की भांति रतन को आकर्षित कर रही थी। मोनी की दूधिया चूचियां और शहतूत के जैसे उसके निप्पल ने रतन के दांतों को आपस में रगड़ने पर मजबूर कर दिया। चूचियों के नीचे उसकी कटवादार कमर और बीच में गहरी नाभि देखने लायक थी।


मोनी के लव हैंडल रतन के हाथों को आमंत्रित कर रहे थे की आओ मुझे पकड़ो मुझे थाम लो …जब रतन का ध्यान मोनी के वस्ति प्रदेश पर गया एक पल के लिए उसने आंखें बंद कर ली। मोनी रतन की साली थी और उस उम्र में कई वर्ष छोटी थी।

जब रतन का विवाह हुआ था उस समय मोनी किशोरी थी आज मोनी को इस रूप में चोरी चोरी देखते हुए रतन को ग्लानि भी हो रही थी पर वासना में लिप्त आदमी की बुद्धि मंद हो जाती है।

रतन उसके कामुक बदन की तुलना उसकी किशोरावस्था से करना लगा। विधि का विधान अनूठा था छोटी अमिया अब आम बन चुकी थी। जागो के बीच की छोटी सी दरार अब फूल चुकी थी ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे अंदर खिल रही कली बाहरी होठों को फैला कर अपनी उपस्थिति का एहसास करना चाह रही थी।


मोनी के अंदर के होंठ स्वयं झांकने को तैयार थे और बाहरी होठों पर अपना दबाव लगातार बनाये हुए थे।

मोनी स्वयं अपनी बुर की कली को खिलने से रोकना चाहती थी। उसकी पुष्ट जांघें उस कली के ऊपर आवरण देने की नाकाम कोशिश कर रही थी।

मोनी का वस्ति प्रदेश पूरी तरह चिकना था सुनहरे बाल गायब थे।माधवी के दिव्य कुंड का वह स्नान अनोखा था जिसने मोनी की बुर के बाल हमेशा के लिए गायब कर दिए थे।


रतन से अब और बर्दाश्त ना हुआ वह आगे बढ़ा और उसने मोनी के कमर के दोनों तरफ अपना हाथ रख कर मोनी को थाम लिया।

मोनी का सारा बदन गनगना गया। यद्यपि वह पुरुष स्पर्श की प्रतीक्षा वह कुछ मिनट से कर रही थी पर अचानक मजबूत खुरदुरे हाथों ने जब उसके कोमल बदन को स्पर्श किया उसके शरीर में कपकपाहट सी हुई उसके रोंगटे खड़े हो गए। चूचियों के छुपे रोमकूप अचानक एक-एक करके तेजी से उभरने लगे। रतन ने मोनी के शरीर में हो रही इस उत्तेजना को महसूस किया और वह मोनी के बदन को सहलाकर उन रोमकूपों को वापस शांत करने की कोशिश करने लगा।

मोनी ने ऐसा पहले कभी महसूस नहीं किया था वह बेचैन हो रही थी और ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि निर्धारित समय जल्द से जल्द बीते और वह इस अद्भुत एहसास को अपने दिल में संजोए हुए वापस चले जाना चाहती थी। परंतु विधाता ने उसके भाग्य में और सुख लिखा था

रतन ने अपने स्पर्श का असर देख लिया था। उसके हाथ अब मोनी की पीठ को सहला रखे थे जैसे वह उसे सहज होने के लिए प्रेरित कर रहा हो। परंतु जैसे ही रतन का हाथ उसकी पीठ से सरकते हुए उसके नितंब्बों तक पहुंचा मोनी की उत्तेजना और बढ़ गई।


वह बार-बार अपने विधाता से इस पल को इसी अवस्था में रोक लेने की गुहार करती रही परंतु रतन के हाथ ना रुके उसने मोनी के नितंबों का जायजा लिया उसकी उंगलियां मोनी की गांड को छूते छूते रह गई.. मोनी स्वयं अपनी गांड को सिकोड कर रतन की उंगलियों के लिए अवरोध पैदा कर रही थी।

मोनी की सांसें तेज चल रही थीं .. समय तेजी से बीत रहा था रतन ने अपना चेहरा मोनी की जांघों से सटा दिया उसके बाल मोनी के प्रेम त्रिकोण पर पर गुदगुदी करने लगे। नाक लगभग मोनी की लिसलिसी दरारों से छू रही थी। रतन अपनी नासिका से अपनी साली के प्रेम रस को सूंघने की कोशिश कर रहा था। जैसे वह इस खुशबू से मोनी की सहमति का अंदाजा लगाना चाह रहा हो।

आज कई दिनों बाद मोनी की बुर लार टपकने को तैयार थी। जैसे ही रतन की नाक को मोनी की बुर से निकलती कामरस की बूंद का स्पर्श मिला उसने देर नहीं की और अपनी बड़ी सी जीभ निकाल कर मोनी की बुर के नीचे लगा दिया। जैसे वह इस अमृत की बूंद को व्यर्थ हो जाने से रोकना चाहता हो। रतन इतना अधीर हो गया था कि उसने बूंद के अपनी जीभ तक पहुंचाने का इंतजार ना किया परंतु अपनी लंबी जीभ से मोनी की बुर को फैलता हुआ स्वयं उस बूंद तक पहुंच गया।

मोनी की उत्तेजना बेकाबू हो रही थी काश वह अपना हाथ नीचे कर पाती। पर वह खुद भी यह तय नहीं कर पा रही थी कि वह उसे अनजान पुरुष को यह कार्य करने से रोके या प्रेरित करें। यह सुख अनोखा था।

रतन की जीभ पर अमृत की बूंद के अनोखे स्वाद ने रतन को बावला कर दिया। शेर के मुंह में खून लग चुका था। रतन मोनी की बुर से अमृत की बूंद खींचने के लिए अपने होठों से निर्वात कायम करने लगा जैसे वह मोनी की बुर का सारा रस खींच लेना चाहता हो वह कभी अपने होठों से बुर के कपाटों को फैलता और फिर अपनी जीभ से अंदर तक जाकर प्रेम रस की बूंदे चुराने को कोशिश करता।

उसकी जीभ को मोनी का कौमार्य प्रतिरोध दे रहा था.. वह पतली सी पारदर्शी झिल्ली अपनी स्वामिनी का कौमार्य बचाए रखने की पुरजोर कोशिश कर रही थी। रतन बार-बार अपनी जीभ से दस्तक देता पर वह कमजोरी सी झिल्ली उसके दस्तक को नकार देती।

वह मोनी की जादुई गुफा की प्रहरी थी। पर इस अपाधपी में मोनी बेहद उत्तेजित हो चुकी थी .. जब रतन की जीभ की दाल गुफा के अंदर ना गली तो उसने मोनी के सुनहरे दाने को अपनी लपेट में ले लिया…मोनी ने अपनी जांघों से रतन को दूर हटाने की कोशिश की पर रतन ने हार न मानी उसने अपनी जीभ उस सुनहरे दाने पर फिरानी शुरू कर दी।

मोनी का बदन कांपने लगा…नाभि के नीचे ऐंठन सी होने लगी। और फिर प्रेम रसधार फूट पड़ी पर रतन जिसने मटकी फोड़ने में जी तोड़ मेहनत की थी उसे अब रस पीने का भरपूर अवसर मिल रहा था..

मोनी स्खलित हो रही थी.. आज पहली बार उसे पुरुषों की उपयोगिता समझ में आ रही थी…काश वह उसे पुरुष को देख पाती उसे समझ पाती और उसका तहे दिल से धन्यवाद अदा कर पाती…

कूपे में रहने का निर्धारित दस मिनट का समय पूरा हो चुका था।

मोनी उस दिव्य पुरुष से मिलना चाहती थी जिसने उसे यह अलौकिक सुख दिया था..

शेष अगले भाग में
बहुत ही कामुक गरमागरम और उत्तेजना से भरपूर अपडेट है सोनू का दिन और रात गुलजार हो गए दिन में सुगना और रात में लाली के साथ सुहागरात मनाई दोनों ही किसी से कम नहीं थी सुगना और सोनू के मिलने में बाधा आ गई है सोनू सुगना से मिलने आता है तो लाली साथ आ जाती है अब तो उसकी मां भी सुगना के साथ रहने लगी है बेचैनी दोनों तरफ ही बढ़ रही है
रतन ने माधवी की चालाकी को पकड़ लिया है और अपनी जगह एक ऐसे लड़के को भेज दिया है जिसने माधवी की दमदार चुदाई कर दी आज माधवी का स्वाभिमान तार तार हो गया उसे बहुत बुरा लग रहा है मोनी को आज पुरुष संसर्ग के सुख का एहसास हो गया है लगता है मोनी जल्दी ही आश्रम छोड़कर गृहस्थ जीवन में जाने वाली हैं
 

Lovely Anand

Love is life
1,513
7,132
159
बहुत ही कामुक गरमागरम और उत्तेजना से भरपूर अपडेट है सोनू का दिन और रात गुलजार हो गए दिन में सुगना और रात में लाली के साथ सुहागरात मनाई दोनों ही किसी से कम नहीं थी सुगना और सोनू के मिलने में बाधा आ गई है सोनू सुगना से मिलने आता है तो लाली साथ आ जाती है अब तो उसकी मां भी सुगना के साथ रहने लगी है बेचैनी दोनों तरफ ही बढ़ रही है
रतन ने माधवी की चालाकी को पकड़ लिया है और अपनी जगह एक ऐसे लड़के को भेज दिया है जिसने माधवी की दमदार चुदाई कर दी आज माधवी का स्वाभिमान तार तार हो गया उसे बहुत बुरा लग रहा है मोनी को आज पुरुष संसर्ग के सुख का एहसास हो गया है लगता है मोनी जल्दी ही आश्रम छोड़कर गृहस्थ जीवन में जाने वाली हैं
अच्छा लगा, आप भी कहानी मन लगाकर पढ़ते हैं

जुड़े रहें
 
Last edited:
  • Like
Reactions: Sanju@ and sunoanuj

sunoanuj

Well-Known Member
4,352
11,305
159
सुगना सोनू ही जायदा अच्छे लगते है! मनोहर का किरदार कुछ अलग ट्विस्ट लाने के लिये आया है कहानी में शायद ! देखते हैं नियति क्या नया गुल खिलाती है !!

बहुत ही खूबसूरत और बेहतरीन अपडेट दिया है
 

adanceofsparks

New Member
23
19
3
जब तक सुगना अपने बाबूजी को दूध पिलाने के लिए उनके पास पहुंचे सोनू का हाल चाल ले लेते है...

सोनू तेज कदमों से लाली के घर की तरफ भागता जा रहा था वह आइसक्रीम को रास्ते में पिघलने से रोकना चाहता था और उसे अपनी लाली दीदी के होठों में पिघलते हुए देखना चाहता था। कुछ ही देर में वह लाली के दरवाजे पर खड़ा दरवाजा खटखटा रहा था….

"2 मिनट रुक जाइए आ रहे हैं"


लाली के बाथरूम से पानी गिरने की आवाज आ रही थी.."

"ठीक है दीदी"

"दीदी" शब्द सुनकर लाली ने सोनू की आवाज पहचान ली परंतु वह इस स्थिति में नहीं थी कि जाकर तुरंत दरवाजा खोल दे पर लाली सोनू को इंतजार भी नहीं कराना चाहती थी।

लाली बाथरूम में पूर्ण नग्न होकर स्नान का आनंद ले रही थी सोनू के आने के बाद अचानक ही उसके शरीर में सिहरन बढ़ गई। चुचियों पर लगा साबुन साफ करते करते उसकी चूचियां तनाव में आने लगी निप्पल खड़े हो गए। चूचियों पर लगे साबुन का झाग नाभि को छूते हुए दोनों जांघों के बीच आ गया था लाली की हथेली जैसे उस साबुन के झाग के साथ साथ स्वतः ही जांघों के बीच आ गयी और उसने अपनी रसीली बुर को छू लिया। उसकी जांघों के जोड़ पर जितना पानी था उससे ज्यादा उस मखमली बुर के अंदर था। जो अब रिस रहा था।

सोनू के आगमन ने लाली को उत्तेजित कर दिया था।

लाली लाख प्रयास करने के बावजूद अपने शरीर पर लगा साबुन साफ नहीं कर पा रही थी आज वह इत्मीनान से स्नान करने के मूड में थी परंतु सोनू के आकस्मिक आगमन ने उसे जल्दी बाजी में नहाने पर मजबूर कर दिया था परंतु धन्य हो वह रेलवे का नल जिस पर पानी थोड़ा-थोड़ा ही आ रहा था।

अंततः लाली ने यह फैसला किया कि वह अपनी नाइटी पहन कर जाकर दरवाजा खोल देगी और वापस आकर इत्मीनान से स्नान करेगी।

लाली ने जल्दी-जल्दी अपना अर्ध स्नान पूरा किया और अपनी लाल रंग की बेहद खूबसूरत नाइटी पहन कर बाहर आ गई। एकमात्र वही वस्त्र था जिसे लेकर वह बाथरूम में गई थी जो उसके शरीर पोछने और ढकने दोनों के काम आता था। दरअसल राजेश नाइटी, गाउन और अंतर्वस्त्र का बेहद शौकीन था वह लाली के लिए तरह-तरह की नाइटी और नाइट गाउन लाया करता था आखिर वही उसके सपनों की रानी थी जिसे सजा धजा कर वह कामकला के विविध रंग देखता था।

लाली ने दरवाजा खोला …

सोनू लाली को लगभग भीगी हुई अवस्था में नाइटी पहने देखकर सन्न रह गया. उसका ध्यान लाली की चुचियों पर चला गया जो पूरी तरह भीगी हुई थी . लाल रंग की नाइटी उस पर चिपक कर उन्हें और भी आकर्षक रूप दे रही थी. लाली के कड़े निप्पल उस नाइटी का आवरण छेद कर बाहर आने को तैयार थे. सोनू कुछ बोल नहीं पाया जुबान उसके हलक में अटक गई जब तक वह कुछ सोच पाता तब तक लाली ने कहा…

"सोनू बाबू थोड़ी देर बैठो मैं नहा लेती हूँ "

सोनू कुछ बोला नहीं उसने सिर्फ अपनी गर्दन हिलाई और अपने सूखे मुख से थूक गटकने का प्रयास करने लगा लाली। धीमे कदमों से बाथरूम के अंदर प्रवेश कर गयी परंतु वापस जाते समय उसके गोल नितंब लय में हिलते हुए सोनू के मन में हलचल पैदा कर गए।

कुछ ही देर में बाथरूम से पानी गिरने की आवाज फिर से आने लगी सोनू बेचैन हो गया उसका ध्यान न चाहते हुए भी उस पानी की आवाज की तरफ जा रहा था जो उसकी नंगी लाली दीदी के शरीर पर गिर रहा होगा। क्या लाली दीदी नंगी होकर नहा रही होंगी? या उन्होंने वह नाइटी पहनी हुई होगी? सोनू अपनी उधेड़बुन में खोया हुआ था. पता नहीं भगवान ने उसे कौन सी शक्ति दी उसके कदम धीरे धीरे बाथरूम के दरवाजे की तरफ बढ़ने लगे. रेलवे का दरवाजा कितना अच्छा होगा यह आप अंदाजा लगा सकते हैं।

अंततः सोनू को वह दरार मिल गई जिससे उसे जन्नत के दर्शन होने थे। उसकी पुतलियां फैल गई और उस छोटे से दरार से उसने नारी का वह रूप देख लिया जो सोनू जैसे नवयुवक को मर्द बनने पर मजबूर कर देता।

लाली पूरी तरह नंगी होकर पीढ़े पर बैठकर नहा रही थी। लाली पूरी तरह नंगी थी परंतु दरवाजे की तरफ उसका दाहिना हिस्सा था उसकी दाहिनी चूँची उभरकर दिखाई पड़ रही थी तथा उसकी मुड़ी हुई जाँघे अपने खूबसूरत आकार का प्रदर्शन कर रही थीं।

लाली को यह आभास नहीं था की सोनू उसे नहाते हुए देखने की हिम्मत कर सकता है पर सोनू भी अब बड़ा हो चुका था और उसका लंड भी ।

लाली बेफिक्र होकर अपनी चुचियों पर लगा साबुन धो रही थी तथा अपनी जांघों के बीच उस अद्भुत गुफा को भी साफ कर रही थी जो हर मर्द की लालसा थी।

सोनू उत्तेजना से कांप रहा था वह डर कर वापस चौकी पर बैठ गया। कुछ देर बाद उसने फिर हिम्मत जुटाई और एक बार फिर दरवाजे पर जाकर उसी दरार पर अपनी आंख लगाने लगा तभी लाली ने दरवाजा खोल दिया सोनू की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई।

सोनू का मुंह खुला का खुला रह गया उसके हाव-भाव को देखकर लाली ने यह अंदाज लगाया की सोनू निश्चय ही उसे देखने के लिए यहां आया था लाली सब कुछ समझ गई पर उसने सोनू को शर्मसार न किया और बोली…..

"सोनू बाबू कुछ चाहिए क्या"

सोनू की जान में जान आई उसने अपना सिर झुका लिया और तेजी से भागते हुए आइसक्रीम के पैकेट की तरफ गया और उसे हाथ में लेकर बोला

"दीदी आइसक्रीम फ्रिज में रखना है पिघल जाएगी।"

लाली ने उसे किचन में रखें फ्रिज को दिखाया और मुस्कुराते हुए कहा " फ्रिज में रख दो मैं 5 मिनट में कपड़े बदल कर आती हूं"

सोनू ने लाली को अपने कमरे में जाते हुए देखा वह लाली के कामुक शरीर से बेहद प्रभावित हुआ था। उसके लंड में अब भी सिहरन कायम थी।

लाली के कमरे का दरवाजा आसानी से बंद नहीं होता था दरअसल कभी इसकी जरूरत भी नहीं पड़ती थी। परंतु आज लाली दरवाजे को बंद करना चाहती थी उसने प्रयास किया परंतु असफल रही।

कमरे के अंदर उसकी पुत्री रीमा सो रही थी। लाली ने दरवाजा सटा दिया और अपने शरीर पर पड़ी नाइटी को उतार कर पूर्ण रूप से नग्न हो गई उसने उसी नाइटी से अपने शरीर को पोछा। उसे सोनू का ध्यान आया क्या वह बाथरूम में उसे नंगा देखने के लिए आया था यह सोच कर उसका तन बदन सिहर उठा।

सोनू चौकी पर बैठे-बैठे लाली के कमरे की तरफ ही देख रहा था वह दोबारा दरवाजे पर जाकर अपनी बेइज्जती करवाने का इच्छुक नहीं था। वह मन मसोसकर अपनी कल्पनाओं में ही लाली को कपड़े बदलते हुए देखने लगा।

उधर लाली अलमारी पर रखे जैतून के तेल के डिब्बे को उठाने गई पर डिब्बा फिसल कर नीचे गिर पड़ा। अंदर हुई आवाज ने सोनू को मौका दे दिया और वह लाली के दरवाजे के करीब आकर अंदर झांकने लगा।

अंदर का दृश्य देखकर सोनू के सारे सपने एक पल में ही पूरे हो गए लाली पूरी तरह नीचे झुकी हुई थी और गिरे हुए जैतून के तेल के डिब्बे को उठा रही थी उसके भरे भरे गोल और गदराये नितंब सोनू की आंखों के ठीक सामने थे। लाली की गांड तो नितंबों ने छुपा ली थी परंतु लाली की बुर बालों के आवरण के पीछे से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही थी।

बाल उसे पूरी तरह ढकने में असमर्थ थे लाली की बुर् के दोनों होंठ उसकी बुर को सुनहरा आकार दे रहे थे और उन होठों के बीच से लाली का गुलाबी छेद सोनू को आकर्षित कर रहा था।

लाली की नजर अपने दोनों पैरों के बीच से दरवाजे पर पड़ी उसे वहां सोनू के होने का एहसास हुआ लाली तेजी से उठ खड़ी हुई उसने अपनी बुर तो छुपा ली पर अपने मदमस्त यौवन का अद्भुत नजारा सोनू की आंखों के सामने परोस दिया। भरे भरे गोल नितंब पतली कमर और भरा भरा सीना…..आह सोनू सिहर उठा। ऊपर वाले ने लाली को भरपूर जवानी थी जिसका नयन सुख उसका मुंह बोला भाई सोनू उठा रहा था।

लाली और सोनू दोनों उत्तेजना के शिकार हो चले थे अब जब सोनू ने लाली के नग्न शरीर का दर्शन कर लिया था और यह बात लाली जान चुकी थी उसमें सोनू को और उत्तेजित करने की सोची उसने अपना एक पैर बिस्तर पर रखा और अपने हाथों से अपनी जाँघों और पैरों पर जैतून का तेल मलने लगी। लाली यहां भी ना रुकी उसने अपनी चुचियों पर भी तेल मला तथा अपनी जाँघों के अंदरूनी भाग तक अपनी हथेलियों को ले गयी। एक पल के लिए उसके मन में आया की वह अपनी जांघों को फैलाकर अपनी बुर के दर्शन सोनू को करा दे परंतु उसे यह छिछोरापन लगा। बेचारी लाली को क्या पता था उसके खजाने का दर्शन सोनू अब से कुछ देर पहले कर चुका था।

स्वाभाविक रूप से ही आज लाली ने सोनू को भरपूर खुशियां प्रदान कर दी थीं। लाली ने अपने हाथ रोक लिए और अपने कपड़े पहनने शुरू कर दीये। सोनू अपनी लाली दीदी को देखकर भाव विभोर हो चुका था और अपने हाथों से अपने लंड को सहला रहा था।

लाली की नग्न काया पर एक-एक करके वस्त्रों के आवरण चढ़ते गए और उसकी सुंदर लाली दीदी हाल में आने के लिए कदम बढ़ाने लगी सोनू अपनी सांसों को नियंत्रण में किए हुए चौकी पर आकर बैठ गया।

लाली ने बड़ी आत्मीयता से कहा सोनू

"बाबू तुमको बहुत इंतजार करवा दिए"

"सुगना कहां चली गई"

सोनू ने हॉस्पिटल का पूरा वृतांत लाली को सुना दिया लाली और सोनू अब सामान्य हो चले थे उत्तेजना का दौर धीमा पढ़ रहा था। सोनू की सांसें भी अब सामान्य हो रही थीं।

लाली ने झटपट सोनू और अपने लिए लिए खाना निकाला और उसके बगल में बैठ कर खाना खाने लगी।

लाली ने बमुश्किल 1- 2 कौर खाए होंगे तभी उसकी बेटी रीमा रोने लगी हालांकि रीमा अब 2 वर्ष की हो चुकी थी परंतु उसे सुलाते समय लाली को अब भी अपनी चूचियां पकडानी पड़ती थीं। लाली अपना खाना छोड़कर रीमा की तरफ भागी और उसे अपनी चूचियां पिलाकर सुलाने लगी।

लाली को आने में देर हो रही थी उधर खाना ठंडा हो रहा था। सोनू ने आवाज दी

"दीदी खाना ठंडा हो रहा है रीमा को लेकर यहीं आ जाइए"


लाली ने रीमां को गोद में उठाया और अपनी चूचियां पकड़ाये हुए ही लेकर हाल में आ गई उसने अपनी चुचियों को आंचल से ढक रखा था।

लाली सोनू के बगल में बैठ गई और रीमा को सुलाने का प्रयास करने लगी परंतु उसके दोनों ही हाथ रीमा को सुलाने में व्यस्त थे अभी खाना खा पाना उसके बस में न था तभी सोनू ने एक निवाला लाली के मुंह में डालने की कोशिश की…

लाली ने अपना सुंदर मुंह खोला और उस निवाले को स्वीकार कर लिया उसे सोनू पर बेहद प्यार आया कितना अच्छा था सोनू।

सोनू बाबू तुम खाना खा लो मैं रीमा को सुला कर खा लूंगी

दीदी मैं अपने हाथ से खिला देता हूं ना खाना ठंडा हो जाएगा

लाली मुस्कुराने लगी और बोली…

आज अपनी लाली दीदी पर खूब प्यार आ रहा है होली के दिन तो मुझको पकड़ कर अपनी सुगना दीदी से रंग लगवा रहे थे

दीदी पकड़म पकड़ाई में तो आपको भी अच्छा लग रहा था क्या आप गुस्सा थीं ? सोनू ने मासूमियत से पूछा

नहीं पगले अपने सोनू बाबू से कोई गुस्सा होगा क्या तू तो इतना प्यार करता है मुझे। लाली ने उसके गालों को प्यार से चुम लिया।

लाली में इस बार निवाला लेते समय उसकी उंगलियों को चूस लिया था..

सोनू की उंगलियों को लाली के सुंदर होठों का यह स्पर्श बेहद उत्तेजक और आकर्षक लगा वह बार-बार लाली से इसकी उम्मीद करने लगा लाली ने भी उसे निराश ना किया जब भी सोनू उसे खिलाता वह उसकी उंगलियों को चूम लेती कभी अपने होंठों के बीच लेकर चुम ला देती सोनू को लाली का वह स्पर्श सीधा अपने लंड पर प्रतीत हो रहा था जो अब पूरी तरह तन कर खड़ा था और जांघों के बीच उधार बनाए हुए था।

खाना समाप्त होने के पश्चात लाली ने कहा

सोनू बाबू अपने जीजा जी के लुंगी पहनकर आराम कर लो

सोनू ने मन ही मन अपनी तुलना अपने जीजा जी से कर ली और उनकी लुंगी पहनकर हॉल में लगी चौकी पर लेटने की तैयारी करने लगा लाली रीमा को लेकर अंदर अपने कमरे में आ गई।

सोनू बिस्तर पर लेट कर आराम करने लगा तभी उसे बिस्तर के नीचे कुछ गड़ने का एहसास उसने बिस्तर हटाकर देखा वहां पर कुछ पतली पतली किताबें पढ़ी हुई थी सोनू ने उत्सुकता बस किताब अपने हाथ में ले ली परंतु पन्ने पलटते ही उसके होश एक बार फिर उड़ गए।

वह किताब एक सचित्र कामुक कहानियों की पुस्तक की जिसमें देसी विदेशी लड़कियों को अलग-अलग सेक्स मुद्राओं में दिखाया गया था और कई तरीके की उत्तेजक कथाओं के मार्फत कामुक पुरुषों और युवतियों की उत्तेजना जागृत करने का प्रयास किया गया था।

सोनू ने अपने सिरहाने की दिशा बदल दी अब उसके पैर लाली के दरवाजे की तरफ से और वह लेट कर उस किताब को देखने लगा उसका लंड एक बार फिर तन कर खड़ा हो गया।

जैसे-जैसे सोनू के लंड में खून का प्रवाह बढ़ता गया उसका दिमाग शांत होता गया वह पूरी तन्मयता से किताब के अंदर बनी नंगी लड़कियों के अंदर खोता गया परंतु जो नग्नता उन्होंने अब से कुछ देर पहले देखी थी वह उसके दिलो-दिमाग पर चढ़ी हुई थी। फोटो में एक से एक सुंदर लड़कियां थी परंतु सोनू को लाली से ज्यादा कोई भी खूबसूरत नहीं दिखाई पड़ रही थी। परंतु अब अपना कच्छा खिसका कर लंड को सहलाने लगा बल्कि अपनी मुठीयों में भरकर उसे तेजी से आगे पीछे करने लगा। उसे इस बात का आभास न रहा की लाली कभी भी यहां आ सकती है। उत्तेजना के अतिरेक में लूंगी का पतला कपड़ा जाने कब लंड के ऊपर से हट गया।

नियति आज लाली और सोनू के बीच सारी दीवार गिरा देना चाहती थी अचानक लाली को पेशाब करने की इच्छा हुई और वह न चाहते हुए भी उठकर अपने दरवाजे के पास आ गई।

उसके कानों में "लाली दीदी" की कामुक कराह सुनाई पड़ रही थी उसने अपना सर दरवाजे से बाहर कर सोनू को देखा जो बेफिक्र होकर अपने सुकुमार पर सुदृढ़ लंड को मसल रहा था।


लाली की आंखें फटी रह गई अब से कुछ घंटों पहले उत्तेजना का जो खेल खेल उसने सोनू को दिखाया था नियति उसे प्रत्युत्तर में उसी खेल को दिखा रही थी। सोनू अपने लंड को लगातार आगे पीछे कर रहा था और उसके मुख से "लाली दीदी" का नाम धीमे स्वर में आ रहा था। सोनू का लंड नितांत ही कोमल पर बेहद खूबसूरत था लाली के होठों में एक मरोड़ से उत्पन्न हुई वह अपने पति राजेश का लंड तो कई बार चुसती थी परंतु सोनू का लंड चूसने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त था कितना सुंदर था वह बेहद मासूम कोमल और तना हुआ।

एक बार के लिए लाली के मन में इच्छा हुई कि वह अचानक ही कमरे में प्रवेश कर सोनू को रंगे हाथों पकड़ ले परंतु उसने अपने आप को रोक लिया वह भी उत्तेजना में डूब चुकी थी उसकी बुर पनिया गई थी।

सोनू के हाथों की गति बढ़ती गई और अचानक उसने अपनी कमर के नीचे से पीले रंग की पेंटी निकाली जो लाली अब से कुछ घंटों पहले नहाने के पश्चात सुखाने के लिए बाथरूम के सामने रस्सी पर डाली थी।

सोनू के लंड से वीर्य धारा फूट पड़ी और उसने लाली की पेंटी में अपना सारा माल भर लिया। लाली को अब जाकर यह बात समझ में आ रही थी कि सारे पुरुष स्त्रियों की पेंटी में जाने कौन सा रस पाते हैं। राजेश भी पेंटी का दीवाना था और अब यह छोटा सोनू भी उसकी पैंटी पर अपना वीर्य गिरा कर तृप्त हो गया था।

सोनू फटाफट बिस्तर से उठा और वह पेंटिं मोड़ कर खूंटी पर टंगे अपने पैंट की जेब में डाल ली और बिस्तर पर आ कर वापस लेट गया।

लाली ने दरवाजा खोला और हाल में प्रवेश कर गयी सोनू आंखें बंद कर लेटा हुआ था।

लाली बाथरूम गई और वापस आ गई तथा किचन में चाय बनाने लगी इसी दौरान जब सोनू बाथरूम गया तो लाली ने अपनी पेंटी उसकी जेब से निकालकर छुपा ली।

तभी दरवाजे पर घंटी बजी और लाली ने पुकारा

कौन है

दरवाजे पर राजेश खड़ा था….

सोनू ने राजेश की आवाज पहचान ली…

वह थोड़ा घबराया और आनन-फानन में जल्दी से हाल में आया।

उसने राजेश के चरण छुए और तभी उसकी निगाह चौकी पर रखी उस गंदी किताब पर गई उसने राजेश की नजर बचाकर उसे उसकी ही लूंगी से ढक दिया और राजेश के अंदर जाते ही उसे वापस उसी जगह पर रख दिया जहां से उसने वह किताब ली थी।


सोनू यथाशीघ्र वहां से निकल जाना चाहता था।

अब तक लाली चाय बना चुकी थी। चाय पीने के पश्चात सोनू ने लाली और राजेश से विदा ली और बाहर आने के बाद अपने पैंट की जेब चेक की जिसमें उसने अपनी लाली दीदी की चूत का आवरण अपने वीर्य से भिगोकर रखा हुआ था।

अपनी जेब पर हाथ जाते हैं वह सन्न रह गया जेब से पैंटी गायब थी वह घबरा गया वह पेंटी किसने निकाली? क्या लाली दीजिए ने? क्या उन्होंने उसे हस्तमैथुन करते हुए देख लिया?


हे भगवान यह क्या हो गया वह अपने मन में अफसोस और उत्तेजना लिए हॉस्टल की तरफ चलता जा रहा था.

उधर सुगना अपनी जांघों के बीच उत्तेजना लिए और अपने बाबूजी सरयू सिंह को खुश करने के लिए दूध और दवाइयां लेकर उनके कमरे में पहुंच गई राजेश और लाली से मिलने के पश्चात वह रह-रहकर कामूक ख्यालों में हो जाया करती थी।

"बाबूजी ली दूध पी ली"

सुगना ने अपनी मधुर आवाज में पुकारा परंतु सरयू सिह सो गए थे। शायद हॉस्पिटल में भी जा रहे दवाओं की वजह से वह थोड़ा सुस्त हो गये थे। अब से कुछ ही देर पहले अपना तना हुआ लंड लिए सुगना का इंतजार कर रहे थे पर अब उनके चेहरे पर सुकून भरी नींद थी।

सुगना ने अपनी उत्तेजना पर नियंत्रण कर लिया और सरयू सिंह के माथे को सहलाते हुए उन्हें उठाया दवाइयां खिलाई और दूध पिलाया।


वह कजरी का आग्रह पूरा न कर पाई । सरयू सिह की स्थिति उसकी जांघों के बीच रिस रहा शहद चाटने लायक न थी। सुगना ने पूरी आत्मीयता से उनके पैर दबाये और वो पुनः एक सुखद नींद सो गए।

अगले दिन सुगना की मां पदमा, सुगना की दोनों छोटी बहनों सोनी और मोनी के साथ सरयू सिंह के घर पर आ गई उनका यह आना अकस्मात न था। निश्चय ही वह सरयू सिंह को देखने के लिए यहां आई थीं।

सोनी और मोनी युवावस्था की दहलीज पर खड़ी थीं। प्रकृति के गूढ़ रहस्य उन्हें पता चल चुके थे। जांघो के बीच की दिव्य चीज का ज्ञान उन्हें ही चुका था और उसकी उपयोगिता भी यह अलग बात थी कि उन्होंने उसका उपयोग आज तक न किया था। भगवान ने उन्हें सुंदरता उसी प्रकार दी थी जैसे सुगना और पद्मा को। ऐसा प्रतीत होता था जैसे पदमा की फैक्ट्री से निकलने वाली कलाकृतियों का में कामुकता का सृजन नियति ने विशेष प्रयोजन के लिए किया था।

सुगना पुत्र सूरज को देखते ही सोनी ने उसे अपनी गोद में ले लिया सूरज वैसे भी बहुत प्यारा बच्चा था। सोनी जैसी सुंदरी की गोद में जाकर वह और भी खिल गया सोनी भी बड़ी आत्मीयता से उसे अपने सीने से लगाए हुए थी।

सूरज करते हुए अपने छोटे पैर सोनी के पेट पर मार रहा था तथा वह सोनी के हाथों पर बैठकर सोनी के सानिध्य का आनंद ले रहा था तभी सोनी का ध्यान सूरज के दाहिने अंगूठे पर गया उस अंगूठे पर नाखून लगभग नहीं के बराबर था और नाखून की जगह एक गुलगुला सा उभरा हुआ भाग था वह स्वता ही ध्यान आकर्षित कर रहा था।

सोनी उस विलक्षण अंगूठे को देखकर खुद को रोक न पाए और उसे अपने अंगूठे और तर्जनी से कौतूहल वश सहलाने लगी...

अचानक सोनी को अपनी चूँचियों पर कुछ गड़ने का एहसास हुआ। उसने सूरज को तुरंत अपने दोनों हाथों में उठाया और सुगना से बोला…

दीदी लगता है बाबू पेशाब करेगा

तो करा देना..

सोनी ने सूरज का कच्छा उतारा और अपने हाथों का सहारा देख कर उसे सु सु कराने लगी…

सूरज की मुन्नी तन गई थी पर वह सुसु नही कर रहा था..

अंत में सोनी ने परेशान होकर उसका कच्छा ऊपर किया और उसे सुगना की गोद में देकर सरयू सिह के पास चली गयी जहां उसकी माँ पद्मा घूंघट ओढ़े हुए बैठी हुई थी…

नियति आंगन में बैठी हुयी सोनी और सूरज को निहार रही थी सोनी ने सूरज के जिस अंगूठे को सहलाया था वह नियति ने किसी विशेष प्रयोजन के लिए बनाया था जिसे सोनी ने अनजाने में छू दिया था… नियति मुस्कुरा रही थी सोनी ने अनजाने में ही गलत उतार छेड़ दिया था जिस की सरगम उसे सुनाई पड़नी थी...


शेष अगले भाग में….
bohot hi Aala bohot hi zabrdast kahani hay bhai mujhe parh kar bohot maza Araha hy. Wish u best of luck:iambest::iambest::iambest::iambest::iambest::iambest::iambest:💝💝💝💝:heart::heart::heart:
 

Lovely Anand

Love is life
1,513
7,132
159
bohot hi Aala bohot hi zabrdast kahani hay bhai mujhe parh kar bohot maza Araha hy. Wish u best of luck:iambest::iambest::iambest::iambest::iambest::iambest::iambest:💝💝💝💝:heart::heart::heart:
Welcome to story...
Keep your views always I like to read comment of readers
 
  • Like
Reactions: Sanju@

Lovely Anand

Love is life
1,513
7,132
159
सुगना सोनू ही जायदा अच्छे लगते है! मनोहर का किरदार कुछ अलग ट्विस्ट लाने के लिये आया है कहानी में शायद ! देखते हैं नियति क्या नया गुल खिलाती है !!

बहुत ही खूबसूरत और बेहतरीन अपडेट दिया है
Sonu aur सुगना....sach unhe alag karna mushkil hai
 

Lovely Anand

Love is life
1,513
7,132
159
भाग 149

शायद पहले जोड़ियां मिलते समय भौतिक और सामाजिक मेल मिलाप को ज्यादा महत्व दिया जाता था । अंतर्मन और प्यार का कोई विशेष स्थान नहीं होता था ऐसा मान लिया जाता था कि एक बार जब दोनों एक ही खुद से बदले तो उनमें निश्चित ही प्यार हो जाएगा।
पर क्या ऐसा हों पाएगा…तब सुगना और सोनू के प्यार का क्या होगा। जो सुगना अपनी बुर पहले ही सोनू को दहेज में दे चुकी थी वह क्यों भला किसी और मर्द को अपनाएगी..
प्रश्न कई थे उत्तर भविष्य के गर्भ में दफन था।

सारी गुत्थियां सुलझाने वाली नियति खुद ही उलझ गई थी उसे विराम चाहिए था…

अब आगे..
मनोहर अपने गेस्ट हाउस वापस आ चुका था। बिस्तर पर आते ही आज लाली के घर हुए घटनाक्रमों को याद कर रहा था पर आज जो बात अनोखी थी वह थी सुगना से मुलाकात। क्या कोई स्त्री इतनी सरल इतनी चंचल और इतनी सुंदर हो सकती है.. चेहरे पर जैसे नूर बरस रहा हो.. कैसा अभागा था उसका पति जो इस कोहिनूर हीरे को छोड़कर न जाने किस संन्यासी के आश्रम में चला गया था.
क्या सुगना से अलग होना इतना सरल रहा होगा?
क्या अध्यात्म में इतनी ताकत है जो सुगना जैसी स्त्री को त्यागने की शक्ति देता है? मनोहर इस् बात से कतई संतुष्ट नहीं था कि रतन ने सही निर्णय लिया था पर मन ही मन विधाता को धन्यवाद दे रहा था कि आज वह सुगना के बारे में सोच पा रहा था।
बेचारे मनोहर को क्या पता था की सुगना अभिशप्त है उसे रतन के साथ संभोग में कभी सफलता प्राप्त न हुई और रतन जैसा गबरू मर्द भी उसे चरमसुख देने में नाकामयाब रहा।
सुगना को संतुष्ट करने वाले दोनों मर्द सरयू सिंह और सोनू से उसका खून का रिश्ता था। यद्यपि यह बात सुगना को अब भी ज्ञात न थी कि वह अभिशप्त है।
उधर लाली और सोनू का विवाह भी अनूठा था। यद्यपि लाली मनोहर के बुआ की लड़की यानी बहन थी फिर भी मनोहर यह भली-भांति जानता था कि सोनू जैसे काबिल मर्द को लाली से बेहतर स्त्री मिल सकती थी।
सोनू और लाली कैसे करीब आए होंगे और कैसे सोनू ने एक विधवा स्त्री से विवाह करना स्वीकार किया होगा? काश कि मनोहर स्वयं लाली के भूतकाल के पन्ने पलट पता तो उसे इस संबंध की आवश्यकता और अहमियत समझ आ जाती।
मनोहर अपने तेज दिमाग से भी इस गुत्थी को सुलझाने में नाकामयाब रहा। दूसरी तरफ लाली और सुगना का पूरा परिवार बेहद शालीन सभ्य और मेहमान नवाजी में अव्वल था किसी भी व्यक्ति के लिए उनके बारे में बुरा सोचना कठिन था।
मनोहर को सुगना और उसके परिवार में भूतकाल और वर्तमान में चल रहे कामुक संबंधों की कोई जानकारी नहीं थी और होती भी कैसे यह मनोहर की कल्पना के पार होती। सुगना जैसी दिव्य सुंदरी किसी और मर्द से संबंध बना सकती हो पर कभी वो अपने ही पिता (बायोलॉजिकल पिता) और भाई से संबंध बना सकती है यह सोचना कठिन था नामुमकिन था।
मनोहर जैसे-जैसे सुगना के बारे में सोचता गया वैसे-वैसे वह सुगना से आसक्त होता गया। दो बच्चों की मां होने के बावजूद सुगना उसे बेहद आकर्षक लगी थी। और आज पहली बार मनोहर ने अपनी दिवंगत पत्नी के अलावा किसी और स्त्री को इस भाव से देखा था।
उत्तेजना शालीनता छीन लेती है।
मनोहर के मन मस्तिष्क के अलावा उसके जननांगों में भी आज हलचल हो रही थी निश्चित ही इसमें सुगना का योगदान था। जैसे-जैसे मनोहर सुगना के बारे में सोचता गया कब उसकी विचारधारा शालीनता से हटकर सुगना की नग्नता पर आ गई और सुगना मनोहर के ख्यालों में अपनी नग्नता के साथ दिखाई पड़ने लगी…
स्त्री शरीर की जितनी परिकल्पना अपने ख्वाबों खयालों में की जा सकती है मनोहर वही कर रहा था और हर बार सुगना अपना तेजस्वी और मुस्कुराता चेहरा लिए मनोहर की कल्पनाओं को साकार कर रही थी। आखिरकार मनोहर ने सफलतापूर्वक अपनी कल्पनाओं को अपने हाथों से मूर्त रूप दिया और सुगना को याद करते हुए अपने अंडकोषों में कई महीनो से संजोए हुए वीर्य को तकिए पर उड़ेल दिया जो अब तक उसकी जांघों के बीच लगातार रगड़ खा रहा था।
अप्राकृतिक स्खलन के उपरांत सिर्फ पश्चाताप ही होता है। मनोहर अपने कलुषित विचारों के लिए अपने ईष्ट से क्षमा मांग रहा था जिसमें उसने सुगना को बिना उसकी सहमति से नग्न किया था और मन ही मन उसे भोगा था।
मनोहर और सुगना की इस मुलाकात में मनोहर के मन में प्यार का अंकुर प्रस्फुटित कर दिया था। उधर सुगना बेपरवाह और बिंदास थी वह अपने में मगन थी और वक्त बेवक्त अपने सोनू की गर्दन पर दाग लगाने को आतुर थी जब अक्सर उसके दिलों दिमाग में रहा करता था।
आईये अब आपको अमेरिका लिए चलते हैं जहां सोनी की पूर्ण सहमति से विकास उसे गर्भवती करने में लगा हुआ था।
अपनी मां को किया गया वादा विकास को याद था और सोनी को भी। सोनी ने अपनी सास से एक वर्ष का वक्त उन्मुक्त जीवन के लिए मांगा था और उसके बाद गर्भवती होने का वचन दिया था।
विकास और सोनी को मेहनत करते 3 महीने बीत चुके थे। घर में टीवी पर अब कामुक फिल्मों की जगह बच्चा पैदा करने की सही सेक्स पोजीशन। गर्भधारण के लिए तरह-तरह की सलाह वाली किताबें और अन्य उपाय पढ़े जा रहे थे, समझे जा रहे थे। जब-जब सोनी रजस्वला होती ऐसा लगता की सोने की बुर से निकला वह लाल रक्त विकास और सोनी के जीवन में कालिमा बिखेर देता। सोनी और विकास दोनों निराश हो जाते।
सोनी और विकास के लिए सेक्स अब गौड़ हो चला था एक सूत्रीय कार्यक्रम था सोनी की बुर में वीर्य भरकर उसे देर तक अंदर संजोए रखना और उसे गर्भधारण करने में मदद करना।
कुछ महीने यूं बीत गए पर नतीजा सिफर रहा.
आखिरकार विकास ने सोनी को लेकर डॉक्टर से मिलने की सोची। दोनों पति-पत्नी अपने मन में कई तरह की आशंकाएं लिए अस्पताल पहुंच चुके थे दोनों ने सेक्स एक्सपर्ट से अपनी जांच कराई।
शाम को रिपोर्ट के लिए जाते वक्त विकास और सोनी का कलेजा धक धक कर रहा था मन में आशंकाएं प्रबल हो रही थी और डॉक्टर से मिलते वक्त उसका लटका हुआ चेहरा देखकर विकास को आशंका प्रबल हो गई..
“क्या हुआ डॉक्टर साहब रिपोर्ट ठीक तो है ना” विकास ने मन में उत्सुकता लिए हुए पूछा
सोनी जी की रिपोर्ट तो ठीक है पर आपके सीमन मैं शुक्राणुओं की संख्या कम है इस अवस्था में गर्भधारण संभव नहीं है। डॉक्टर ने बेहद संजीदगी से जवाब दिया
“तो क्या डॉक्टर स्पर्म काउंट बढ़ाने की कोई मेडिकेशन नहीं है?
“है तो जरूर पर उतनी कारगर नहीं है फिर भी हम सब प्रयास करेंगे मैं यह कुछ मेडिसिन लिख देता हूं आप इसे दो माह तक लेते रहिए ईश्वर करें यह आपको सूट कर जाए।”
डॉक्टर परचे पर दवाई या लिखने लगा और विकास ने सोनी की तरफ देखा जो अपना सर पकड़े कुछ सोच रही थी।
दोनों पति-पत्नी अस्पताल से बाहर आए ना तो सोनी का मन लग रहा था और ना विकास का। विकास ने कॉफी पीने के लिए सोनी को आमंत्रित किया और अपने सर में उठ रहे दर्द को शांत करने के लिए दोनों पास के एक कैफे में आकर बैठ गए।
विकास ने सोनी का हाथ अपने हाथों में ले लिया और बेहद संजीदगी से बोला..
“सोनी जो कुछ हुआ है यह क्यों हुआ मुझे नहीं पता मुझे तो ज्ञात भी नहीं कि ऐसा क्यों होता है। आशा है तुम मुझे मेरी इस कमी के लिए माफ कर दोगी”
सोनी ने विकास के हाथ को सहलाते हुए बोला हम दोनों का मिलन विधाता की इच्छा थी मैं आपसे बहुत प्यार करती हूं हम प्रयास करेंगे और करते रहेंगे विधाता कभी ना कभी हमारी जरूर सुनेगा.। शुक्राणुओं की संख्या कम ही सही पर कुछ है तो जरूर यदि विधाता चाहेंगे तो मेरी गोद भरने के लिए एक शुक्राणु ही काफी होगा।
सोनी और विकास एक दूसरे से दिलो जान से प्यार करते थे और एक दूसरे का पूरा ख्याल रखते थे यह अलग बात थी कि उन दोनों की कामुकता दक्षिण अफ्रीका के दौरान वासना के अतिरिक्त तक जा पहुंची थी और विकास ने सोनी के मन में उस दबी हुई इच्छा की पूर्ति के लिए वह सोनी को उसे अद्भुत मसाज के लिए न सिर्फ प्रेरित किया था अपित उसे अंजाम तक पहुंचा दिया था।
सोनी और विकास डॉक्टर द्वारा दी गई दवाइयां के सहारे एक बार फिर गर्भधारण की प्रक्रिया में लग गए सेक्स अब अपना रूप बदल चुका था सोनी कभी स्खलित होती कभी नहीं परंतु विकास का वीर्य हमेशा उसकी बुर में जितना गहरा जा सकता था उतने गहरे तक उतार दिया जाता और सोनी अपनी दोनों जांघें ऊंची कर कुछ देर इस अवस्था में रहती और अपनी बुर में विकास के वीर्य से अपने गर्भाशय को सिंचित होता महसूस करती परंतु रिजल्ट वही ढाक के तीन पात..
एक दिन सोनी दोपहर में अपने बिस्तर पर पड़ी अपने शादी का एल्बम देख रही थी। पन्ने पलटते पलटते उसके दिमाग में शादी की सुंदर यादें ताज होती गई और एक पृष्ठ पर सरयू सिंह की तस्वीर पर उसकी निगाहें रूक गई.. कैसे कोई 55 वर्ष की उम्र में भी एकदम चुस्त दुरुस्त रह सकता है। वह मर्दाना शरीर, तेजस्वी चेहरा और बलिष्ठ भुजाएं ऐसा लगता था जैसे प्राचीन काल का कोई ऋषि महर्षि इस धरती पर अब भी टहल रहा हो।
क्या सरयू चाचा ने अब तक ब्रह्मचर्य का पालन किया है? यह कैसे संभव हुआ होगा क्या उन में काम इच्छा नहीं होगी? क्या उन्होंने आज तक किसी स्त्री के तन को हाथ नहीं लगाया होगा? जब आज वह इस अद्भुत काया के धनी है तो अपनी युवावस्था में कैसे रहे होंगे..?
और उनका खूबसूरत लंड ….क्या कभी उसने वीर्य स्खलन का सुख महसूस नहीं किया होगा?
सोनी ने यह बराबर महसूस किया था की सरयू सिंह की निगाहें उस पर थी परंतु वह इस बात का निर्णय ले पाने में अक्षम थी की सरयू सिंह उससे वास्तव में कामुक संबंध बनाना चाहते हैं।
सरयू सिंह का व्यक्तित्व अनूठा था। सरयू सिंह के बारे में सोचते सोचते न जाने कब सोनी की आंख लग गई…
बर्फीले पहाड़ों के बीच एक छोटा सा गांव चारों तरफ बर्फ ही बर्फ…पर गांव में दो-चार छोटे-छोटे घर…ठंड से ठिठुरती कुछ महिलाओं ने अलाव जलाया हुआ था। मैं भी ठंड से बचने के लिए वहां अलाव तापने लगी। धीरे-धीरे अलाव की आज तेज होती जा रही थी और चारों तरफ फैल रही थी मैंने महसूस किया कि मैं चारों तरफ से आग़ से घिर चुकी हूँ..
बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं दिखाई पड़ रहा था.. मैं बेहद घबरा गई थी तभी उस आग में से कोई चिंगारी निकाल कर मेरे घागरे की तरफ आई और मेरे घागरे में आग पकड़ ली…मैं बेहद घबरा गई और अपना घाघरा निकाल कर दूर फेंक दिया जो कुछ ही देर में आग़ की भेंट चढ़ गया।
मेरी चोली न जाने कब मेरे बदन से गायब हो चुकी थी। मैं स्वयं आश्चर्यचकित थी कि इसे तो मैंने खोला भी नहीं था। मैं खुद को उस आग के बीच पूरी नंगी असहाय महसूस कर रही थी…नग्नता मेरे लिए गौड़ हो चुकी थी मेरे लिए जीवन मरण का प्रश्न था। मैं मदद की गुहार लगा रही थी परंतु मैंने महसूस किया कि मेरे लाख चिल्लाने के बाद भी मेरे मुख से आवाज बाहर नहीं निकल पा रही थी। यह क्या हो गया था ? मेरा बदन आग की गर्मी से तप रहा था..
तभी मैंने एक प्रौढ़ व्यक्ति को अपने पास आता हुआ महसूस किया वह श्वेत वस्त्र पहने हुए थे वह ऋषि मुनियों की भांति प्रतीत हो रहे थे.. वह उस आग को चीरकर मेरे पास आ चुके थे मैं मदद की गुहार लिए उनके समीप उनके आलिंगन में चली गई अपनी नग्नता का एहसास कुछ पलों के लिए गायब हो गया था..
उनकी मजबूत हथेलियां ने जब मेरी नंगी पीठ को छुआ तो मुझे अपनी नग्नता का एहसास हुआ।
उन्होंने मुझे अपनी गोद में उठा लिया और आग को चीरते हुए बाहर आ गए बाहर। आज की तपिश से बाहर आते ही मुझे शीतलता का एहसास होने लगा। मैं उन्हें पहचानने की लगातार कोशिश कर रही थी पर मेरे लिए यह मुमकिन नहीं था। अब मेरी नग्नता मुझे और शीतल कर रही थी वो मुझे एक बगीचे में ले आये।
फूलों के सुंदर उपवन में एक झूला लगा हुआ था। उन्होंने मुझे उस पर लिटा दिया और मेरे माथे पर चुंबन देते हुए कहा..
“देवी अब आप सुरक्षित हो…” मुझे लगा जैसे मैंने यह आवाज सुनी हुई है पर फिर भी उसे आवाज से उन ऋषि की पहचान करना कठिन था।
मैं अब ठंड से कांप रही थी…उन्होंने अपने सीने पर पहना हुआ अंग वस्त्र हटाया उनकी चौड़ी और नंगी छाती मेरी आंखों के सामने थी मैंने ऐसा दिव्य पुरुष कभी नहीं देखा था मैं एक टक उनके मांसल बदन को देखे जा रही थी उन्होंने अपना अंग वस्त्र मेरे बदन पर डालने की कोशिश की।
मेरा बदन अब भी कांप रहा था…. मैंने उन्हें अपने आलिंगन में लेने के लिए अपनी बाहें खोल दी.। वह मेरे ऊपर एक साये की तरह छाये जा रहे थे…
अचानक मैंने अपने बदन को उनसे सटते हुए महसूस किया। उनका मजबूत सीना मेरी नंगी चूचियों पर रगड़ खाने लगा। मेरी चूचियां जो ठंड की वजह से अकड़ कर तनी हुई थी उनके सीने का दबाव पाते ही सपाट होने लगी। वो मेरी आंखों में आंखें डाले लगातार मुझे देखे जा रहे थे परंतु मेरी उनसे नज़रें मिलाने की हिम्मत न थी।।
मैंने अपनी पलके बंद कर ली और उनके बदन की गर्मी को अपने बदन में महसूस करने लगी…
मेरी दोनों जांघें कब हवा में फैल गई मुझे पता भी ना चला और मुझे अपने वस्ति प्रदेश पर एक मजबूत लंड का स्पर्श महसूस हुआ जो अपनी दिशा तलाश रहा था। मैंने स्वयं अपनी जांघें हिलाकर उसे रास्ता देने की कोशिश की और वह मेरी योनि के भीतर गहरे और गहरे तक उतरता चला गया। क्या दिव्या एहसास था मेरी जांघों के बीच से बेहद गर्म शक्तिपुंज मेरे अंदर प्रवेश कर रहा था जो मुझे उत्तेजना के साथ-साथ गर्मी प्रदान कर रहा था उसकी तापिश से मेरे अंदरूनी अंग प्रत्यंग गर्म हो रहे थे।
कुछ ही देर में मैं दिव्य पुरुष से संभोगरत थी। वह बेहद हौले हौले से मेरा यौनिमर्दन कर रहे थे.. मेरी कंपकपाहट अब खत्म हो चली थी और पूरे बदन में एक गर्मी सी महसूस हो रही थी यह निश्चित थी उनके बदन की गर्मी से मिलने वाली गर्मी थी। मैं उसे व्यक्ति को पहचानने की कोशिश कर रही थी परंतु मेरे लिए यह कठिन हो रहा था परंतु जैसे-जैसे संभोग की गति बढ़ती गई और इस्खलन की बेला आ पहुंची..मुझे उसे व्यक्ति का चेहरा जाना पहचाना लगने लगा और जब उन्होंने मुझे मेरे नाम से पुकारा तो बरबस ही मेरे मुंह से निकल गया सरयू चाचा…

सोनी अचकचा कर उठकर बैठ गई । उसकी सांसे तेज थी वह हॉफ रही थी। उसने महसूस किया कि उसकी जांघों के बीच गीलापन था। लगता है वह अपने स्वप्न में ही स्खलित हो गई थी।
सोनी मन ही मन मुस्कुराने लगी। अपने स्खलन का जो आनंद उसने स्वप्न में उठाया था वह भी अनूठा था उसने एक बार फिर अपनी पलके बंद कर उस दृश्य को याद करना चाहा परंतु वह पानी के बुलबुले की तरह गायब हो चुका था पर सोनी के दिमाग में मीठी यादें छोड़ गया था।
सोनी के दिमाग में ब्रह्मचारी का रूप धरे सरयू सिंह धीरे-धीरे सोनी के हीरो बन चुके थे। एक पल के लिए सोनी को लगा कि वह स्वयं मेनका बनकर उनका ब्रह्मचर्य तोड़ सकती है। पर वह अपनी इस अनोखी सोच पर खुद ही मुस्कुरा बैठी अपने पिता तुल्य व्यक्ति से संबंध सोनी की कल्पना से परे था पर सपनों में वह यह आनंद कई बार ले चुकी थी।
विकास की मां का फोन लगातार आ रहा था वह भी बार-बार अपने पोते का जिक्र सोनी से करती और सोनी उसे अपना वादा पूरा करने की बात दोहरा कर शांत कर देती। विकास की मां की आकांक्षाएं सोनी पर लगातार दबाव बनाए हुए थीं।
अमेरिकी डॉक्टर की दवाइयां से कोई फायदा होता हुआ न देख विकास ने अपने देश भारत जाने की सोची।
वैसे भी विकास और सोनी को अपने देश आए काफी वक्त बीत चुका था और अब दोनों ने अपने देश आने की तैयारी करने लगे। विकास को अपने देश में इस समस्या के इलाज का ज्यादा भरोसा था वह मन में उम्मीद लिए सोनी को लेकर अपने वतन आने की तैयारी में लग गया।
जब यह खबर सुगना तक पहुंची उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा। सोनी को देखे कई दिन हो गए थे और अब उसके आगमन की खबर ने सुगना के मन में खुशियों की लहर बिखेर दी थी। अगले शनिवार तक यह खबर सभी की जुबान पर थी छोटा सूरज भी न जाने क्यों खुश हो रहा था उसकी प्यारी मौसी घर आ रही थी वह बार-बार अपने अंगूठे को देखता और मुस्कुरा देता।
खबर सरयू सिंह तक भी पहुंची और वह भी सोनी का स्वागत करने के लिए अपने मन में कई तरह की कल्पनाएं करने लगे। क्या सोनी बदल चुकी होगी उसके विवाह को एक वर्ष से ज्यादा हो गया था। निश्चित ही उसमें बदलाव अपेक्षित था। सरयू सिंह सोनी को अपनी कल्पनाओं में देखने की कोशिश कर रहे थे परंतु बार-बार उनका दिमाग सोनी के गदराए नितंबों पर अटक जा रहा था वह उनके आकार और उनमें आ रहे परिवर्तनों के बारे में ज्यादा चिंतित थे।
इंतजार में दिन बीत रहे थे
उधर लाली के मन में आए शक ने लाली को चिंतित कर दिया था। यद्यपि सोनू के हाथों में इत्र का कारण सुगना और सोनू ने एक ही बताया था पर क्या यह एक संयोग था कि इत्र हाथों पर लगा और सोनू ने तुरंत ही उसे अपने लंड पर रगड़ दिया।
सुगना के सामने या उसकी उपस्थिति में अपने लंड को छूना यह बात लाली के गले नहीं उतर रही थी। लाली सोनू और सुगना के बीच हो रही गतिविधियों पर नजर रखना चाहती थी।
अक्सर जब-जब लाली और सोनू बनारस आते लाली मनोहर को फोन कर देती और वह भी उनसे मिलने उनके घर आ जाता। सोनू को मजबूरन मनोहर का साथ देना पड़ता और सोनू और सुगना के मिलन में निश्चित ही बाधा उत्पन्न होती। पहले तो सोनू सुगना के साथ एकांत का कुछ न कुछ वक्त निकाल ही लेता था और कभी-कभी उसके आलिंगन और चुंबन का सुख प्राप्त कर लेता था कभी-कभी तो वह मौका पाकर अपना दहेज भी चूम चाट भी लेता।
पर अब सुगना और सोनू के मिलन में मनोहर की उपस्थिति से बाधा उत्पन्न हो रही थी। सोनू बनारस सिर्फ और सिर्फ सुगना से मिलने आता था सुगना उसके जीवन में और उसके अंगों में जान भर देती थी और वह सुगना की याद लिए अगला एक हफ्ता लाली के साथ फिर उसके इंतजार में बिता लेता था।
इस बार उसका पूरा दिन मनोहर के साथ इधर-उधर की बातें करने में गुजर गया वह चाह कर भी सुगना से अंतरंग नहीं हो पाया सोनू की बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
उधर मनोहर भी सोनू का साथ सिर्फ इसलिए दे रहा था ताकि वह ज्यादा से ज्यादा समय लाली और सोनू के घर में व्यतीत कर सके जब-जब सुगना चाय पानी के लिए उसके समीप आती उसके शरीर में एक ताजगी भर जाती।
मनोहर एक समझदार व्यक्ति था और अपनी मर्यादा में रहना जानता था। मनोहर के व्यवहार से अब तक सुगना उसके मन में चल रही भावनाओं का अंदाज नहीं लगा पाई थी। मनोहर सुगना को देखता तो अवश्य था पर उसकी नज़रें बचा कर। जब-जब सुगना चाय पानी देने के बाद पीछे मुड़कर रसोई की तरफ जाती मनोहर की निगाहें उसके बदन के कटाव को देखती और उसके मन में सुगना की कल्पना और मूर्त रूप ले लेती। सोनू मनोहर के यहां लगातार रहने से अब थोड़ा विचलित हो रहा था।
दोपहर का खाना होने के पश्चात उसने लाली से कहा..
मनोहर जी के लिए बच्चों वाले कमरे में बिस्तर लगा दो थोड़ा आराम कर लेंगे तब तक मैं भी आराम कर लेता हूं हम सबको एक-दो दिन ही तो दोपहर की नींद लेने का अवसर प्राप्त होता है। मनोहर ने सोनू की हां में हां मिलाई और बच्चों के कमरे में लेट गया।
मनोहर को नींद कहां आ रही थी पर वह धीरे-धीरे बच्चों से घुल मिल गया सभी बच्चे मनोहर के पास बैठकर कुछ खेल खेलने लगे और मनोहर भी उनमें बच्चों की तरह खो गया। सुगना की मां पदमा मनोहर के व्यक्तित्व का आकलन कर रही थी। वह भी उनके पास बैठी मनोहर से बातें कर रही थी। धीरे-धीरे मनोहर पूरे घर परिवार का मन जीतता गया। परंतु सोनू को मनोहर की उपस्थिति अब खलने लगी थी।
पिछले दो-तीन हफ्तों से सुगना से अंतरंग न हो पाने के कारण सोनू के गर्दन का दाग पूरी तरह गायब था. लाली भी अब सोनू के गर्दन के दाग का रहस्य समझना चाहती थी आखिर ऐसा क्या हो जाता था जौनपुर में या सलेमपुर में जिससे सोनू के गर्दन का दाग ठीक उसी जगह उभर आता था।
सुगना के इत्र की खुशबू ने लाली को उन दोनों के बारे में सोचने पर विवश कर दिया था यद्यपि इसका कारण और प्रारब्ध लाली दोनों ही नहीं समझ पा रही थी।।।
लाली जितना ही इस बारे में सोचती उसका दिमाग उतना ही खराब होता। सोनू और सुगना के बीच जो उस दीपावली की काली रात को हुआ था उसका असर उसने घर में कई महीनो तक देखा था। वह स्वयं अपराध भाव से हमेशा के लिए ग्रस्त हो गई थी। लाली स्वयं अपने आप को उसे अपवित्र मिलन के लिए गुनाहगार मानती थी। आखिरकार सुगना जैसी संजीदा औरत क्यों कर ऐसे अपवित्र संबंध बनाएगी वह भी अपने सगे भाई से…. मेल मिलाप बातचीत कामुक बातें छेड़छाड़ सब अपनी जगह पर अपनी ही सगे भाई से अपनी बुर चुदवाना छी छी सुगना ऐसा कभी नहीं करेगी।
लाली का दिमाग कई दिशा में दौड़ रहा था परंतु सटीक उत्तर खोज पाना कठिन था उसे इतना तो एहसास था कि पहले सोनू सुगना के नाम से उत्साहित और उत्तेजित हो जाता है.. परंतु उसे सोनू से ज्यादा सुगना पर भरोसा था.
सोनू भी अब सुगना से मिलन के लिए तड़प रहा था तीन-चार हफ्ते बीत चुके थे और हर बार जाने अनजाने मनोहर लाली के घर में उपस्थित होकर सोनू और सुगना के मिलन में बाधा डाल देता था.
अगली बार जौनपुर से निकलते समय ही उसने लाली को सचेत कर दिया और बेहद सलीके से कहा
“मनोहर भैया को शाम को खाने पर बुलाना दोपहर में उनका भी अपना काम होता होगा.”.
“हां ठीक है .. सोनू की बात काटने की हिम्मत लाली में न थी उसने उसके सुर में सुर मिलाते हुए कहा..मैं भी यही सोच रही थी सुगना से आराम से बात नहीं हो पाती ज्यादातर समय मनोहर जी की खातेदारी में ही बीत जाता है इस बार शाम के लिए ही बोलूंगी…
उधर मनोहर हमेशा इतवार के दिन का इंतजार किया करता था लाली के घर जाने का उसका आकर्षण अब सुगना बन चुकी थी। मनोहर का प्यार एक तरफा था सुगना जैसी पारखी स्त्री भी अब तक मनोहर की मनोदशा से अनजान थी। शायद मनोहर भी महिलाओं को समझता था और अपनी वासना भरी निगाहों पर उसका नियंत्रण कायम था..
सुगना उसके जीवन में एक सुगंध की तरह आ गई थी जिसकी खुशबू वह पूरे हफ्ते तक महसूस करता और जब उसकी यादें धूमिल पड़ती वह उन्हें तरोताजा करने फिर सुगना के घर पहुंच जाता..
सुगना स्वयं सोनू की चमकती गर्दन को दागदार करने के लिए स्वयं अधीर हो रही थी।
सुगना के घर फोन की घंटी बजी
“सुगना दीदी…प्रणाम , हम लोग दीपावली में बनारस आ रहे हैं” यह चहकती आवाज सोनी की थी। उनका इंडिया आने का टिकट कंफर्म हो चुका था। दीपावली के पटाखे का इंतजार सबको था पाठकों को भी और नियति को भी..

शेष अगले भाग में
 

Chalakmanus

Member
324
602
94
भाग 149

शायद पहले जोड़ियां मिलते समय भौतिक और सामाजिक मेल मिलाप को ज्यादा महत्व दिया जाता था । अंतर्मन और प्यार का कोई विशेष स्थान नहीं होता था ऐसा मान लिया जाता था कि एक बार जब दोनों एक ही खुद से बदले तो उनमें निश्चित ही प्यार हो जाएगा।
पर क्या ऐसा हों पाएगा…तब सुगना और सोनू के प्यार का क्या होगा। जो सुगना अपनी बुर पहले ही सोनू को दहेज में दे चुकी थी वह क्यों भला किसी और मर्द को अपनाएगी..
प्रश्न कई थे उत्तर भविष्य के गर्भ में दफन था।

सारी गुत्थियां सुलझाने वाली नियति खुद ही उलझ गई थी उसे विराम चाहिए था…

अब आगे..
मनोहर अपने गेस्ट हाउस वापस आ चुका था। बिस्तर पर आते ही आज लाली के घर हुए घटनाक्रमों को याद कर रहा था पर आज जो बात अनोखी थी वह थी सुगना से मुलाकात। क्या कोई स्त्री इतनी सरल इतनी चंचल और इतनी सुंदर हो सकती है.. चेहरे पर जैसे नूर बरस रहा हो.. कैसा अभागा था उसका पति जो इस कोहिनूर हीरे को छोड़कर न जाने किस संन्यासी के आश्रम में चला गया था.
क्या सुगना से अलग होना इतना सरल रहा होगा?
क्या अध्यात्म में इतनी ताकत है जो सुगना जैसी स्त्री को त्यागने की शक्ति देता है? मनोहर इस् बात से कतई संतुष्ट नहीं था कि रतन ने सही निर्णय लिया था पर मन ही मन विधाता को धन्यवाद दे रहा था कि आज वह सुगना के बारे में सोच पा रहा था।
बेचारे मनोहर को क्या पता था की सुगना अभिशप्त है उसे रतन के साथ संभोग में कभी सफलता प्राप्त न हुई और रतन जैसा गबरू मर्द भी उसे चरमसुख देने में नाकामयाब रहा।
सुगना को संतुष्ट करने वाले दोनों मर्द सरयू सिंह और सोनू से उसका खून का रिश्ता था। यद्यपि यह बात सुगना को अब भी ज्ञात न थी कि वह अभिशप्त है।
उधर लाली और सोनू का विवाह भी अनूठा था। यद्यपि लाली मनोहर के बुआ की लड़की यानी बहन थी फिर भी मनोहर यह भली-भांति जानता था कि सोनू जैसे काबिल मर्द को लाली से बेहतर स्त्री मिल सकती थी।
सोनू और लाली कैसे करीब आए होंगे और कैसे सोनू ने एक विधवा स्त्री से विवाह करना स्वीकार किया होगा? काश कि मनोहर स्वयं लाली के भूतकाल के पन्ने पलट पता तो उसे इस संबंध की आवश्यकता और अहमियत समझ आ जाती।

मनोहर अपने तेज दिमाग से भी इस गुत्थी को सुलझाने में नाकामयाब रहा। दूसरी तरफ लाली और सुगना का पूरा परिवार बेहद शालीन सभ्य और मेहमान नवाजी में अव्वल था किसी भी व्यक्ति के लिए उनके बारे में बुरा सोचना कठिन था।
मनोहर को सुगना और उसके परिवार में भूतकाल और वर्तमान में चल रहे कामुक संबंधों की कोई जानकारी नहीं थी और होती भी कैसे यह मनोहर की कल्पना के पार होती। सुगना जैसी दिव्य सुंदरी किसी और मर्द से संबंध बना सकती हो पर कभी वो अपने ही पिता (बायोलॉजिकल पिता) और भाई से संबंध बना सकती है यह सोचना कठिन था नामुमकिन था।
मनोहर जैसे-जैसे सुगना के बारे में सोचता गया वैसे-वैसे वह सुगना से आसक्त होता गया। दो बच्चों की मां होने के बावजूद सुगना उसे बेहद आकर्षक लगी थी। और आज पहली बार मनोहर ने अपनी दिवंगत पत्नी के अलावा किसी और स्त्री को इस भाव से देखा था।
उत्तेजना शालीनता छीन लेती है।

मनोहर के मन मस्तिष्क के अलावा उसके जननांगों में भी आज हलचल हो रही थी निश्चित ही इसमें सुगना का योगदान था। जैसे-जैसे मनोहर सुगना के बारे में सोचता गया कब उसकी विचारधारा शालीनता से हटकर सुगना की नग्नता पर आ गई और सुगना मनोहर के ख्यालों में अपनी नग्नता के साथ दिखाई पड़ने लगी…
स्त्री शरीर की जितनी परिकल्पना अपने ख्वाबों खयालों में की जा सकती है मनोहर वही कर रहा था और हर बार सुगना अपना तेजस्वी और मुस्कुराता चेहरा लिए मनोहर की कल्पनाओं को साकार कर रही थी। आखिरकार मनोहर ने सफलतापूर्वक अपनी कल्पनाओं को अपने हाथों से मूर्त रूप दिया और सुगना को याद करते हुए अपने अंडकोषों में कई महीनो से संजोए हुए वीर्य को तकिए पर उड़ेल दिया जो अब तक उसकी जांघों के बीच लगातार रगड़ खा रहा था।
अप्राकृतिक स्खलन के उपरांत सिर्फ पश्चाताप ही होता है। मनोहर अपने कलुषित विचारों के लिए अपने ईष्ट से क्षमा मांग रहा था जिसमें उसने सुगना को बिना उसकी सहमति से नग्न किया था और मन ही मन उसे भोगा था।
मनोहर और सुगना की इस मुलाकात में मनोहर के मन में प्यार का अंकुर प्रस्फुटित कर दिया था। उधर सुगना बेपरवाह और बिंदास थी वह अपने में मगन थी और वक्त बेवक्त अपने सोनू की गर्दन पर दाग लगाने को आतुर थी जब अक्सर उसके दिलों दिमाग में रहा करता था।
आईये अब आपको अमेरिका लिए चलते हैं जहां सोनी की पूर्ण सहमति से विकास उसे गर्भवती करने में लगा हुआ था।
अपनी मां को किया गया वादा विकास को याद था और सोनी को भी। सोनी ने अपनी सास से एक वर्ष का वक्त उन्मुक्त जीवन के लिए मांगा था और उसके बाद गर्भवती होने का वचन दिया था।
विकास और सोनी को मेहनत करते 3 महीने बीत चुके थे। घर में टीवी पर अब कामुक फिल्मों की जगह बच्चा पैदा करने की सही सेक्स पोजीशन। गर्भधारण के लिए तरह-तरह की सलाह वाली किताबें और अन्य उपाय पढ़े जा रहे थे, समझे जा रहे थे। जब-जब सोनी रजस्वला होती ऐसा लगता की सोने की बुर से निकला वह लाल रक्त विकास और सोनी के जीवन में कालिमा बिखेर देता। सोनी और विकास दोनों निराश हो जाते।
सोनी और विकास के लिए सेक्स अब गौड़ हो चला था एक सूत्रीय कार्यक्रम था सोनी की बुर में वीर्य भरकर उसे देर तक अंदर संजोए रखना और उसे गर्भधारण करने में मदद करना।
कुछ महीने यूं बीत गए पर नतीजा सिफर रहा.
आखिरकार विकास ने सोनी को लेकर डॉक्टर से मिलने की सोची। दोनों पति-पत्नी अपने मन में कई तरह की आशंकाएं लिए अस्पताल पहुंच चुके थे दोनों ने सेक्स एक्सपर्ट से अपनी जांच कराई।
शाम को रिपोर्ट के लिए जाते वक्त विकास और सोनी का कलेजा धक धक कर रहा था मन में आशंकाएं प्रबल हो रही थी और डॉक्टर से मिलते वक्त उसका लटका हुआ चेहरा देखकर विकास को आशंका प्रबल हो गई..
“क्या हुआ डॉक्टर साहब रिपोर्ट ठीक तो है ना” विकास ने मन में उत्सुकता लिए हुए पूछा
सोनी जी की रिपोर्ट तो ठीक है पर आपके सीमन मैं शुक्राणुओं की संख्या कम है इस अवस्था में गर्भधारण संभव नहीं है। डॉक्टर ने बेहद संजीदगी से जवाब दिया
“तो क्या डॉक्टर स्पर्म काउंट बढ़ाने की कोई मेडिकेशन नहीं है?
“है तो जरूर पर उतनी कारगर नहीं है फिर भी हम सब प्रयास करेंगे मैं यह कुछ मेडिसिन लिख देता हूं आप इसे दो माह तक लेते रहिए ईश्वर करें यह आपको सूट कर जाए।”
डॉक्टर परचे पर दवाई या लिखने लगा और विकास ने सोनी की तरफ देखा जो अपना सर पकड़े कुछ सोच रही थी।
दोनों पति-पत्नी अस्पताल से बाहर आए ना तो सोनी का मन लग रहा था और ना विकास का। विकास ने कॉफी पीने के लिए सोनी को आमंत्रित किया और अपने सर में उठ रहे दर्द को शांत करने के लिए दोनों पास के एक कैफे में आकर बैठ गए।
विकास ने सोनी का हाथ अपने हाथों में ले लिया और बेहद संजीदगी से बोला..
“सोनी जो कुछ हुआ है यह क्यों हुआ मुझे नहीं पता मुझे तो ज्ञात भी नहीं कि ऐसा क्यों होता है। आशा है तुम मुझे मेरी इस कमी के लिए माफ कर दोगी”
सोनी ने विकास के हाथ को सहलाते हुए बोला हम दोनों का मिलन विधाता की इच्छा थी मैं आपसे बहुत प्यार करती हूं हम प्रयास करेंगे और करते रहेंगे विधाता कभी ना कभी हमारी जरूर सुनेगा.। शुक्राणुओं की संख्या कम ही सही पर कुछ है तो जरूर यदि विधाता चाहेंगे तो मेरी गोद भरने के लिए एक शुक्राणु ही काफी होगा।
सोनी और विकास एक दूसरे से दिलो जान से प्यार करते थे और एक दूसरे का पूरा ख्याल रखते थे यह अलग बात थी कि उन दोनों की कामुकता दक्षिण अफ्रीका के दौरान वासना के अतिरिक्त तक जा पहुंची थी और विकास ने सोनी के मन में उस दबी हुई इच्छा की पूर्ति के लिए वह सोनी को उसे अद्भुत मसाज के लिए न सिर्फ प्रेरित किया था अपित उसे अंजाम तक पहुंचा दिया था।
सोनी और विकास डॉक्टर द्वारा दी गई दवाइयां के सहारे एक बार फिर गर्भधारण की प्रक्रिया में लग गए सेक्स अब अपना रूप बदल चुका था सोनी कभी स्खलित होती कभी नहीं परंतु विकास का वीर्य हमेशा उसकी बुर में जितना गहरा जा सकता था उतने गहरे तक उतार दिया जाता और सोनी अपनी दोनों जांघें ऊंची कर कुछ देर इस अवस्था में रहती और अपनी बुर में विकास के वीर्य से अपने गर्भाशय को सिंचित होता महसूस करती परंतु रिजल्ट वही ढाक के तीन पात..
एक दिन सोनी दोपहर में अपने बिस्तर पर पड़ी अपने शादी का एल्बम देख रही थी। पन्ने पलटते पलटते उसके दिमाग में शादी की सुंदर यादें ताज होती गई और एक पृष्ठ पर सरयू सिंह की तस्वीर पर उसकी निगाहें रूक गई.. कैसे कोई 55 वर्ष की उम्र में भी एकदम चुस्त दुरुस्त रह सकता है। वह मर्दाना शरीर, तेजस्वी चेहरा और बलिष्ठ भुजाएं ऐसा लगता था जैसे प्राचीन काल का कोई ऋषि महर्षि इस धरती पर अब भी टहल रहा हो।
क्या सरयू चाचा ने अब तक ब्रह्मचर्य का पालन किया है? यह कैसे संभव हुआ होगा क्या उन में काम इच्छा नहीं होगी? क्या उन्होंने आज तक किसी स्त्री के तन को हाथ नहीं लगाया होगा? जब आज वह इस अद्भुत काया के धनी है तो अपनी युवावस्था में कैसे रहे होंगे..?
और उनका खूबसूरत लंड ….क्या कभी उसने वीर्य स्खलन का सुख महसूस नहीं किया होगा?
सोनी ने यह बराबर महसूस किया था की सरयू सिंह की निगाहें उस पर थी परंतु वह इस बात का निर्णय ले पाने में अक्षम थी की सरयू सिंह उससे वास्तव में कामुक संबंध बनाना चाहते हैं।
सरयू सिंह का व्यक्तित्व अनूठा था। सरयू सिंह के बारे में सोचते सोचते न जाने कब सोनी की आंख लग गई…
बर्फीले पहाड़ों के बीच एक छोटा सा गांव चारों तरफ बर्फ ही बर्फ…पर गांव में दो-चार छोटे-छोटे घर…ठंड से ठिठुरती कुछ महिलाओं ने अलाव जलाया हुआ था। मैं भी ठंड से बचने के लिए वहां अलाव तापने लगी। धीरे-धीरे अलाव की आज तेज होती जा रही थी और चारों तरफ फैल रही थी मैंने महसूस किया कि मैं चारों तरफ से आग़ से घिर चुकी हूँ..
बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं दिखाई पड़ रहा था.. मैं बेहद घबरा गई थी तभी उस आग में से कोई चिंगारी निकाल कर मेरे घागरे की तरफ आई और मेरे घागरे में आग पकड़ ली…मैं बेहद घबरा गई और अपना घाघरा निकाल कर दूर फेंक दिया जो कुछ ही देर में आग़ की भेंट चढ़ गया।
मेरी चोली न जाने कब मेरे बदन से गायब हो चुकी थी। मैं स्वयं आश्चर्यचकित थी कि इसे तो मैंने खोला भी नहीं था। मैं खुद को उस आग के बीच पूरी नंगी असहाय महसूस कर रही थी…नग्नता मेरे लिए गौड़ हो चुकी थी मेरे लिए जीवन मरण का प्रश्न था। मैं मदद की गुहार लगा रही थी परंतु मैंने महसूस किया कि मेरे लाख चिल्लाने के बाद भी मेरे मुख से आवाज बाहर नहीं निकल पा रही थी। यह क्या हो गया था ? मेरा बदन आग की गर्मी से तप रहा था..
तभी मैंने एक प्रौढ़ व्यक्ति को अपने पास आता हुआ महसूस किया वह श्वेत वस्त्र पहने हुए थे वह ऋषि मुनियों की भांति प्रतीत हो रहे थे.. वह उस आग को चीरकर मेरे पास आ चुके थे मैं मदद की गुहार लिए उनके समीप उनके आलिंगन में चली गई अपनी नग्नता का एहसास कुछ पलों के लिए गायब हो गया था..
उनकी मजबूत हथेलियां ने जब मेरी नंगी पीठ को छुआ तो मुझे अपनी नग्नता का एहसास हुआ।
उन्होंने मुझे अपनी गोद में उठा लिया और आग को चीरते हुए बाहर आ गए बाहर। आज की तपिश से बाहर आते ही मुझे शीतलता का एहसास होने लगा। मैं उन्हें पहचानने की लगातार कोशिश कर रही थी पर मेरे लिए यह मुमकिन नहीं था। अब मेरी नग्नता मुझे और शीतल कर रही थी वो मुझे एक बगीचे में ले आये।
फूलों के सुंदर उपवन में एक झूला लगा हुआ था। उन्होंने मुझे उस पर लिटा दिया और मेरे माथे पर चुंबन देते हुए कहा..
“देवी अब आप सुरक्षित हो…” मुझे लगा जैसे मैंने यह आवाज सुनी हुई है पर फिर भी उसे आवाज से उन ऋषि की पहचान करना कठिन था।
मैं अब ठंड से कांप रही थी…उन्होंने अपने सीने पर पहना हुआ अंग वस्त्र हटाया उनकी चौड़ी और नंगी छाती मेरी आंखों के सामने थी मैंने ऐसा दिव्य पुरुष कभी नहीं देखा था मैं एक टक उनके मांसल बदन को देखे जा रही थी उन्होंने अपना अंग वस्त्र मेरे बदन पर डालने की कोशिश की।
मेरा बदन अब भी कांप रहा था…. मैंने उन्हें अपने आलिंगन में लेने के लिए अपनी बाहें खोल दी.। वह मेरे ऊपर एक साये की तरह छाये जा रहे थे…
अचानक मैंने अपने बदन को उनसे सटते हुए महसूस किया। उनका मजबूत सीना मेरी नंगी चूचियों पर रगड़ खाने लगा। मेरी चूचियां जो ठंड की वजह से अकड़ कर तनी हुई थी उनके सीने का दबाव पाते ही सपाट होने लगी। वो मेरी आंखों में आंखें डाले लगातार मुझे देखे जा रहे थे परंतु मेरी उनसे नज़रें मिलाने की हिम्मत न थी।।

मैंने अपनी पलके बंद कर ली और उनके बदन की गर्मी को अपने बदन में महसूस करने लगी…
मेरी दोनों जांघें कब हवा में फैल गई मुझे पता भी ना चला और मुझे अपने वस्ति प्रदेश पर एक मजबूत लंड का स्पर्श महसूस हुआ जो अपनी दिशा तलाश रहा था। मैंने स्वयं अपनी जांघें हिलाकर उसे रास्ता देने की कोशिश की और वह मेरी योनि के भीतर गहरे और गहरे तक उतरता चला गया। क्या दिव्या एहसास था मेरी जांघों के बीच से बेहद गर्म शक्तिपुंज मेरे अंदर प्रवेश कर रहा था जो मुझे उत्तेजना के साथ-साथ गर्मी प्रदान कर रहा था उसकी तापिश से मेरे अंदरूनी अंग प्रत्यंग गर्म हो रहे थे।

कुछ ही देर में मैं दिव्य पुरुष से संभोगरत थी। वह बेहद हौले हौले से मेरा यौनिमर्दन कर रहे थे.. मेरी कंपकपाहट अब खत्म हो चली थी और पूरे बदन में एक गर्मी सी महसूस हो रही थी यह निश्चित थी उनके बदन की गर्मी से मिलने वाली गर्मी थी। मैं उसे व्यक्ति को पहचानने की कोशिश कर रही थी परंतु मेरे लिए यह कठिन हो रहा था परंतु जैसे-जैसे संभोग की गति बढ़ती गई और इस्खलन की बेला आ पहुंची..मुझे उसे व्यक्ति का चेहरा जाना पहचाना लगने लगा और जब उन्होंने मुझे मेरे नाम से पुकारा तो बरबस ही मेरे मुंह से निकल गया सरयू चाचा…

सोनी अचकचा कर उठकर बैठ गई । उसकी सांसे तेज थी वह हॉफ रही थी। उसने महसूस किया कि उसकी जांघों के बीच गीलापन था। लगता है वह अपने स्वप्न में ही स्खलित हो गई थी।
सोनी मन ही मन मुस्कुराने लगी। अपने स्खलन का जो आनंद उसने स्वप्न में उठाया था वह भी अनूठा था उसने एक बार फिर अपनी पलके बंद कर उस दृश्य को याद करना चाहा परंतु वह पानी के बुलबुले की तरह गायब हो चुका था पर सोनी के दिमाग में मीठी यादें छोड़ गया था।
सोनी के दिमाग में ब्रह्मचारी का रूप धरे सरयू सिंह धीरे-धीरे सोनी के हीरो बन चुके थे। एक पल के लिए सोनी को लगा कि वह स्वयं मेनका बनकर उनका ब्रह्मचर्य तोड़ सकती है। पर वह अपनी इस अनोखी सोच पर खुद ही मुस्कुरा बैठी अपने पिता तुल्य व्यक्ति से संबंध सोनी की कल्पना से परे था पर सपनों में वह यह आनंद कई बार ले चुकी थी।
विकास की मां का फोन लगातार आ रहा था वह भी बार-बार अपने पोते का जिक्र सोनी से करती और सोनी उसे अपना वादा पूरा करने की बात दोहरा कर शांत कर देती। विकास की मां की आकांक्षाएं सोनी पर लगातार दबाव बनाए हुए थीं।
अमेरिकी डॉक्टर की दवाइयां से कोई फायदा होता हुआ न देख विकास ने अपने देश भारत जाने की सोची।
वैसे भी विकास और सोनी को अपने देश आए काफी वक्त बीत चुका था और अब दोनों ने अपने देश आने की तैयारी करने लगे। विकास को अपने देश में इस समस्या के इलाज का ज्यादा भरोसा था वह मन में उम्मीद लिए सोनी को लेकर अपने वतन आने की तैयारी में लग गया।
जब यह खबर सुगना तक पहुंची उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा। सोनी को देखे कई दिन हो गए थे और अब उसके आगमन की खबर ने सुगना के मन में खुशियों की लहर बिखेर दी थी। अगले शनिवार तक यह खबर सभी की जुबान पर थी छोटा सूरज भी न जाने क्यों खुश हो रहा था उसकी प्यारी मौसी घर आ रही थी वह बार-बार अपने अंगूठे को देखता और मुस्कुरा देता।
खबर सरयू सिंह तक भी पहुंची और वह भी सोनी का स्वागत करने के लिए अपने मन में कई तरह की कल्पनाएं करने लगे। क्या सोनी बदल चुकी होगी उसके विवाह को एक वर्ष से ज्यादा हो गया था। निश्चित ही उसमें बदलाव अपेक्षित था। सरयू सिंह सोनी को अपनी कल्पनाओं में देखने की कोशिश कर रहे थे परंतु बार-बार उनका दिमाग सोनी के गदराए नितंबों पर अटक जा रहा था वह उनके आकार और उनमें आ रहे परिवर्तनों के बारे में ज्यादा चिंतित थे।
इंतजार में दिन बीत रहे थे
उधर लाली के मन में आए शक ने लाली को चिंतित कर दिया था। यद्यपि सोनू के हाथों में इत्र का कारण सुगना और सोनू ने एक ही बताया था पर क्या यह एक संयोग था कि इत्र हाथों पर लगा और सोनू ने तुरंत ही उसे अपने लंड पर रगड़ दिया।

सुगना के सामने या उसकी उपस्थिति में अपने लंड को छूना यह बात लाली के गले नहीं उतर रही थी। लाली सोनू और सुगना के बीच हो रही गतिविधियों पर नजर रखना चाहती थी।
अक्सर जब-जब लाली और सोनू बनारस आते लाली मनोहर को फोन कर देती और वह भी उनसे मिलने उनके घर आ जाता। सोनू को मजबूरन मनोहर का साथ देना पड़ता और सोनू और सुगना के मिलन में निश्चित ही बाधा उत्पन्न होती। पहले तो सोनू सुगना के साथ एकांत का कुछ न कुछ वक्त निकाल ही लेता था और कभी-कभी उसके आलिंगन और चुंबन का सुख प्राप्त कर लेता था कभी-कभी तो वह मौका पाकर अपना दहेज भी चूम चाट भी लेता।
पर अब सुगना और सोनू के मिलन में मनोहर की उपस्थिति से बाधा उत्पन्न हो रही थी। सोनू बनारस सिर्फ और सिर्फ सुगना से मिलने आता था सुगना उसके जीवन में और उसके अंगों में जान भर देती थी और वह सुगना की याद लिए अगला एक हफ्ता लाली के साथ फिर उसके इंतजार में बिता लेता था।
इस बार उसका पूरा दिन मनोहर के साथ इधर-उधर की बातें करने में गुजर गया वह चाह कर भी सुगना से अंतरंग नहीं हो पाया सोनू की बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
उधर मनोहर भी सोनू का साथ सिर्फ इसलिए दे रहा था ताकि वह ज्यादा से ज्यादा समय लाली और सोनू के घर में व्यतीत कर सके जब-जब सुगना चाय पानी के लिए उसके समीप आती उसके शरीर में एक ताजगी भर जाती।
मनोहर एक समझदार व्यक्ति था और अपनी मर्यादा में रहना जानता था। मनोहर के व्यवहार से अब तक सुगना उसके मन में चल रही भावनाओं का अंदाज नहीं लगा पाई थी। मनोहर सुगना को देखता तो अवश्य था पर उसकी नज़रें बचा कर। जब-जब सुगना चाय पानी देने के बाद पीछे मुड़कर रसोई की तरफ जाती मनोहर की निगाहें उसके बदन के कटाव को देखती और उसके मन में सुगना की कल्पना और मूर्त रूप ले लेती। सोनू मनोहर के यहां लगातार रहने से अब थोड़ा विचलित हो रहा था।

दोपहर का खाना होने के पश्चात उसने लाली से कहा..
मनोहर जी के लिए बच्चों वाले कमरे में बिस्तर लगा दो थोड़ा आराम कर लेंगे तब तक मैं भी आराम कर लेता हूं हम सबको एक-दो दिन ही तो दोपहर की नींद लेने का अवसर प्राप्त होता है। मनोहर ने सोनू की हां में हां मिलाई और बच्चों के कमरे में लेट गया।
मनोहर को नींद कहां आ रही थी पर वह धीरे-धीरे बच्चों से घुल मिल गया सभी बच्चे मनोहर के पास बैठकर कुछ खेल खेलने लगे और मनोहर भी उनमें बच्चों की तरह खो गया। सुगना की मां पदमा मनोहर के व्यक्तित्व का आकलन कर रही थी। वह भी उनके पास बैठी मनोहर से बातें कर रही थी। धीरे-धीरे मनोहर पूरे घर परिवार का मन जीतता गया। परंतु सोनू को मनोहर की उपस्थिति अब खलने लगी थी।
पिछले दो-तीन हफ्तों से सुगना से अंतरंग न हो पाने के कारण सोनू के गर्दन का दाग पूरी तरह गायब था. लाली भी अब सोनू के गर्दन के दाग का रहस्य समझना चाहती थी आखिर ऐसा क्या हो जाता था जौनपुर में या सलेमपुर में जिससे सोनू के गर्दन का दाग ठीक उसी जगह उभर आता था।
सुगना के इत्र की खुशबू ने लाली को उन दोनों के बारे में सोचने पर विवश कर दिया था यद्यपि इसका कारण और प्रारब्ध लाली दोनों ही नहीं समझ पा रही थी।।।
लाली जितना ही इस बारे में सोचती उसका दिमाग उतना ही खराब होता। सोनू और सुगना के बीच जो उस दीपावली की काली रात को हुआ था उसका असर उसने घर में कई महीनो तक देखा था। वह स्वयं अपराध भाव से हमेशा के लिए ग्रस्त हो गई थी। लाली स्वयं अपने आप को उसे अपवित्र मिलन के लिए गुनाहगार मानती थी। आखिरकार सुगना जैसी संजीदा औरत क्यों कर ऐसे अपवित्र संबंध बनाएगी वह भी अपने सगे भाई से…. मेल मिलाप बातचीत कामुक बातें छेड़छाड़ सब अपनी जगह पर अपनी ही सगे भाई से अपनी बुर चुदवाना छी छी सुगना ऐसा कभी नहीं करेगी।
लाली का दिमाग कई दिशा में दौड़ रहा था परंतु सटीक उत्तर खोज पाना कठिन था उसे इतना तो एहसास था कि पहले सोनू सुगना के नाम से उत्साहित और उत्तेजित हो जाता है.. परंतु उसे सोनू से ज्यादा सुगना पर भरोसा था.
सोनू भी अब सुगना से मिलन के लिए तड़प रहा था तीन-चार हफ्ते बीत चुके थे और हर बार जाने अनजाने मनोहर लाली के घर में उपस्थित होकर सोनू और सुगना के मिलन में बाधा डाल देता था.
अगली बार जौनपुर से निकलते समय ही उसने लाली को सचेत कर दिया और बेहद सलीके से कहा
“मनोहर भैया को शाम को खाने पर बुलाना दोपहर में उनका भी अपना काम होता होगा.”.
“हां ठीक है .. सोनू की बात काटने की हिम्मत लाली में न थी उसने उसके सुर में सुर मिलाते हुए कहा..मैं भी यही सोच रही थी सुगना से आराम से बात नहीं हो पाती ज्यादातर समय मनोहर जी की खातेदारी में ही बीत जाता है इस बार शाम के लिए ही बोलूंगी…
उधर मनोहर हमेशा इतवार के दिन का इंतजार किया करता था लाली के घर जाने का उसका आकर्षण अब सुगना बन चुकी थी। मनोहर का प्यार एक तरफा था सुगना जैसी पारखी स्त्री भी अब तक मनोहर की मनोदशा से अनजान थी। शायद मनोहर भी महिलाओं को समझता था और अपनी वासना भरी निगाहों पर उसका नियंत्रण कायम था..
सुगना उसके जीवन में एक सुगंध की तरह आ गई थी जिसकी खुशबू वह पूरे हफ्ते तक महसूस करता और जब उसकी यादें धूमिल पड़ती वह उन्हें तरोताजा करने फिर सुगना के घर पहुंच जाता..
सुगना स्वयं सोनू की चमकती गर्दन को दागदार करने के लिए स्वयं अधीर हो रही थी।
सुगना के घर फोन की घंटी बजी
“सुगना दीदी…प्रणाम , हम लोग दीपावली में बनारस आ रहे हैं” यह चहकती आवाज सोनी की थी। उनका इंडिया आने का टिकट कंफर्म हो चुका था। दीपावली के पटाखे का इंतजार सबको था पाठकों को भी और नियति को भी..

शेष अगले भाग में
Waah gajab ka update tha .ab sarayu singh ki chandi hojaigi
 
  • Like
Reactions: Lovely Anand
Top