Ajju Landwalia
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Teen sawaal: 1 muneem per hamla kisne kiya? 2. Aur ant me kya wo jeep chodhri ki thi? 3. jab chodhary itne rasookh wala hai to ab tak dusman ka pata kyu nahi lagwa paya? Awesome update again and superb writing#३३
मेरी निगाह बुआ पर बुआ की निगाह मुझ पर पड़ी, पर नजरो से जायदा मेरा ध्यान उस नजारे पर था .अफरातफरी में बुआ को समझ नहीं आया की वो क्या करे, सलवार को ऊपर करे तो चूची ढकने से रह जाये और ऊपर संभाले तो निचे का नजारा सामने आ जाये. बड़ी ही अजीब सी उलझन हो गयी थी हम दोनों के लिए. कायदे से मुझे नजरे नीची करके वहां से चले जाना चाहिए था पर मेरे मन के चोर ने ऐसा हरगिज नहीं किया. बुआ के हुस्न का नजारा लेते हुए मैं आगे बढ़ा और बुआ को अपने आगोश में भर लिया. वो कुछ नहीं कह पायी और मैंने बुआ के प्यासे होंठो को अपने तपते लबो से जोड़ लिया.
बेशक ये नीचता पूर्ण कार्य था पर फिर भी मुझे मजा बहुत आ रहा था बुआ के लबो को चूसने में . मेरे हाथ निचे गए और बुआ की नंगी गांड को मैंने कस कर दबाया. तड़पती जवानी की उफनती हसरते लिए बुआ का गर्म बदन मेरे आगोश में मचलने लगा था . नितम्बो के कपाट को हाथो से फैलाते हुए मैंने बुआ की गांड के छेद पर ऊँगली फिराई तो बुआ के मादक बदन ने झुरझुरी ली और वो भी लाज छोड़ कर मुझे चूमने लगी. पर इस से पहले की मामला कुछ आगे बढ़ पाता मेरे हाथ बुआ की चूत के बालो पर पहुंचे ही थे की तभी बाहर से कुछ आवाजे आने लगी तो हमारे उड़ते पर एक झटके में कतर कर धरती पर आ गिरे. मैंने आँगन में नजर मारी तो पाया लहू लुहान मुनीम बहनचोद पिताजी को पुकार रहा था .
दौड़ते हुए मैंने सीढिया उतरी और आँगन में पंहुचा .
“भाई जी, भाई जी ” कमजोर आवाज में बोला मुनीम
मैं- क्या हुआ मुनीम जी
“हमला ” इतना कहते ही मुनीम मेरी बाँहों में झूल गया . बहनचोद क्या ही चुतिया किस्मत थी कुछ देर पहले इन बाँहों में बुआ का गर्म बदन झूल रहा था और अब ये चुतिया मुनीम पर सोचने वाली बात थी की इसकी ये हालत कैसे हुई तभी पिताजी भी अपने कमरे से बाहर आ गए और मामले को तुरंत ही समझते हुए बोले - देव, गाडी निकाल
कुछ ही देर में जीप शहर की तरफ दौड़ी जा रही थी . मैंने जिन्दगी में पहली बार पिताजी के चेहरे पर चिंता की लकीरों को साफ़ साफ देखा. हॉस्पिटल पहुँचते ही मुनीम को भरती करवाया और मैं कुर्सी पर बैठ गया . पिताजी डॉक्टर लोगो से गहन चर्चा में दुबे थे . मालूम हुआ की मुनीम पर कई गहरे वार किये गए थे. हाल काफी ख़राब था मुनीम का . कुछ बोतल खून की चढ़ाई गयी , इलाज के लिए पिताजी ने आसमान एक कर दिया बहुत परेशां हो गए थे वो उस रात में , और साली रात भी बहुत लम्बी हो गयी . सुबह न जाने कितने बजे थे मेरी आँखों में नींद चढ़ी थी की डॉक्टर ने आकर बताया की जान तो बच गयी है पर हालात सुधरने में समय लगेगा.
“किसने किया हमला ” मैंने पिताजी से पुछा
पिताजी- तुझे फ़िक्र करने की जरुरत नहीं हम देख लेंगे इस मामले को
मैं आगे कुछ नहीं कह सका. पिताजी ने हमेशा के जैसे इस बार भी बात टाल दी पर ये साफ़ था की कोई तो दुश्मन पीछे पड़ा था . दोपहर होते होते मैं घर के लिए चल पड़ा जीप मैंने पिताजी के लिए छोड़ दी और अपने गाँव की बस पकड़ने के लिए चौराहे की तरफ चल दिया. पर आज शायद किस्मत को कुछ और मंजूर था. मुझे मेरी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था सामने से पिस्ता चली आ रही थी , इस समय पिस्ता शहर में .कहीं मेरी आँखों का धोखा तो नहीं था पर नहीं वो ही थी . मैंने उसे आवाज दी , वो भी मुझे देख कर हैरान हो गयी .
“तू यहाँ क्या कर रहा है ” आँखे चढाते हुए वो बोली
मैं- तू बता तू यहाँ क्या कर रही है वो
वो- मैं तो मुसाफिर हु यारा, कभी इधर कभी उधर . खैर, मूझे न कुछ सूट लेने थे थे तो आज शहर का रुख कर लिया. तू बता
मैं- आया था किसी काम से अब तू मिल गयी करार आ गया.
पिस्ता- उफ़ तेरी ये नशीली बाते, रुक जा खसम कही यही नाडा न खोल दू मैं
मैं- कमीनी कहीं की
पिस्ता - सोमसे खायेगा
मैं- नहीं तुझे खाऊंगा
पिस्ता- मैं तो तेरी ही हु राजा , आ समोसे खाते है
उसने मेरा हाथ पकड़ा और हम सामने दूकान की तरफ बढ़ गए. समोसा खाते हुए मैंने देखा की पिस्ता की नजर सामने दिवार पर लगे पोस्टर पर पड़ी सलमान और रवीना की फिल्म लगी थी मोहिनी थिएटर में .
“देखेगी क्या फिल्म छोरी ” मैंने छेड़ा उसे
पिस्ता- रहने दे यारा, वैसे ही बदनाम हु, किसी को मालूम हुआ तो गाँव में और हवा बनेगी.
मैं- बदनाम जिसके लिए हुई उसके साथ थोड़ी और बदनाम हो ले फिर
पिस्ता- सच में
मैं- और नहीं तो क्या
पिस्ता- चल फिर , ढाई वाला शो ही देखेंगे .
मैं- जो हुकुम मेरी सरकार .
जिन्दगी में पहला अनुभव था ये सिनेमा देखने का इस से पहले गाँव में विडिओ ही देखा था पर इतने बड़े परदे पर फिलम देखने का जो मजा आया और उस मजे से जायदा मजे की बात ये की पिस्ता का हाथ थामे हुए बैठा था , मेरी नजरे रवीना की तरफ कम था और पिस्ता की तरफ जायदा
“अब यूँ भी न देख मुझे यार, की तेरे सिवा और कुछ दिखे ही न मुझे फिर ” उसने मुझे कहा
मैं बस मुस्कुरा दिया. पर हम कहाँ जानते थे की ये ख़ुशी ठोड़ी देर की ही थी . सिनेमाहाल से निकल कर हम दोनों बस पकड़ने के लिए चलते जा रहे थे की तभी मेरी नजर सामने से आती जीप पर पड़ी और सारी ख़ुशी, सारी मस्ती गांड में घुस गयी ..............
Bahut khub 1 naya twist zarur dete ho bhai#३३
मेरी निगाह बुआ पर बुआ की निगाह मुझ पर पड़ी, पर नजरो से जायदा मेरा ध्यान उस नजारे पर था .अफरातफरी में बुआ को समझ नहीं आया की वो क्या करे, सलवार को ऊपर करे तो चूची ढकने से रह जाये और ऊपर संभाले तो निचे का नजारा सामने आ जाये. बड़ी ही अजीब सी उलझन हो गयी थी हम दोनों के लिए. कायदे से मुझे नजरे नीची करके वहां से चले जाना चाहिए था पर मेरे मन के चोर ने ऐसा हरगिज नहीं किया. बुआ के हुस्न का नजारा लेते हुए मैं आगे बढ़ा और बुआ को अपने आगोश में भर लिया. वो कुछ नहीं कह पायी और मैंने बुआ के प्यासे होंठो को अपने तपते लबो से जोड़ लिया.
बेशक ये नीचता पूर्ण कार्य था पर फिर भी मुझे मजा बहुत आ रहा था बुआ के लबो को चूसने में . मेरे हाथ निचे गए और बुआ की नंगी गांड को मैंने कस कर दबाया. तड़पती जवानी की उफनती हसरते लिए बुआ का गर्म बदन मेरे आगोश में मचलने लगा था . नितम्बो के कपाट को हाथो से फैलाते हुए मैंने बुआ की गांड के छेद पर ऊँगली फिराई तो बुआ के मादक बदन ने झुरझुरी ली और वो भी लाज छोड़ कर मुझे चूमने लगी. पर इस से पहले की मामला कुछ आगे बढ़ पाता मेरे हाथ बुआ की चूत के बालो पर पहुंचे ही थे की तभी बाहर से कुछ आवाजे आने लगी तो हमारे उड़ते पर एक झटके में कतर कर धरती पर आ गिरे. मैंने आँगन में नजर मारी तो पाया लहू लुहान मुनीम बहनचोद पिताजी को पुकार रहा था .
दौड़ते हुए मैंने सीढिया उतरी और आँगन में पंहुचा .
“भाई जी, भाई जी ” कमजोर आवाज में बोला मुनीम
मैं- क्या हुआ मुनीम जी
“हमला ” इतना कहते ही मुनीम मेरी बाँहों में झूल गया . बहनचोद क्या ही चुतिया किस्मत थी कुछ देर पहले इन बाँहों में बुआ का गर्म बदन झूल रहा था और अब ये चुतिया मुनीम पर सोचने वाली बात थी की इसकी ये हालत कैसे हुई तभी पिताजी भी अपने कमरे से बाहर आ गए और मामले को तुरंत ही समझते हुए बोले - देव, गाडी निकाल
कुछ ही देर में जीप शहर की तरफ दौड़ी जा रही थी . मैंने जिन्दगी में पहली बार पिताजी के चेहरे पर चिंता की लकीरों को साफ़ साफ देखा. हॉस्पिटल पहुँचते ही मुनीम को भरती करवाया और मैं कुर्सी पर बैठ गया . पिताजी डॉक्टर लोगो से गहन चर्चा में दुबे थे . मालूम हुआ की मुनीम पर कई गहरे वार किये गए थे. हाल काफी ख़राब था मुनीम का . कुछ बोतल खून की चढ़ाई गयी , इलाज के लिए पिताजी ने आसमान एक कर दिया बहुत परेशां हो गए थे वो उस रात में , और साली रात भी बहुत लम्बी हो गयी . सुबह न जाने कितने बजे थे मेरी आँखों में नींद चढ़ी थी की डॉक्टर ने आकर बताया की जान तो बच गयी है पर हालात सुधरने में समय लगेगा.
“किसने किया हमला ” मैंने पिताजी से पुछा
पिताजी- तुझे फ़िक्र करने की जरुरत नहीं हम देख लेंगे इस मामले को
मैं आगे कुछ नहीं कह सका. पिताजी ने हमेशा के जैसे इस बार भी बात टाल दी पर ये साफ़ था की कोई तो दुश्मन पीछे पड़ा था . दोपहर होते होते मैं घर के लिए चल पड़ा जीप मैंने पिताजी के लिए छोड़ दी और अपने गाँव की बस पकड़ने के लिए चौराहे की तरफ चल दिया. पर आज शायद किस्मत को कुछ और मंजूर था. मुझे मेरी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था सामने से पिस्ता चली आ रही थी , इस समय पिस्ता शहर में .कहीं मेरी आँखों का धोखा तो नहीं था पर नहीं वो ही थी . मैंने उसे आवाज दी , वो भी मुझे देख कर हैरान हो गयी .
“तू यहाँ क्या कर रहा है ” आँखे चढाते हुए वो बोली
मैं- तू बता तू यहाँ क्या कर रही है वो
वो- मैं तो मुसाफिर हु यारा, कभी इधर कभी उधर . खैर, मूझे न कुछ सूट लेने थे थे तो आज शहर का रुख कर लिया. तू बता
मैं- आया था किसी काम से अब तू मिल गयी करार आ गया.
पिस्ता- उफ़ तेरी ये नशीली बाते, रुक जा खसम कही यही नाडा न खोल दू मैं
मैं- कमीनी कहीं की
पिस्ता - सोमसे खायेगा
मैं- नहीं तुझे खाऊंगा
पिस्ता- मैं तो तेरी ही हु राजा , आ समोसे खाते है
उसने मेरा हाथ पकड़ा और हम सामने दूकान की तरफ बढ़ गए. समोसा खाते हुए मैंने देखा की पिस्ता की नजर सामने दिवार पर लगे पोस्टर पर पड़ी सलमान और रवीना की फिल्म लगी थी मोहिनी थिएटर में .
“देखेगी क्या फिल्म छोरी ” मैंने छेड़ा उसे
पिस्ता- रहने दे यारा, वैसे ही बदनाम हु, किसी को मालूम हुआ तो गाँव में और हवा बनेगी.
मैं- बदनाम जिसके लिए हुई उसके साथ थोड़ी और बदनाम हो ले फिर
पिस्ता- सच में
मैं- और नहीं तो क्या
पिस्ता- चल फिर , ढाई वाला शो ही देखेंगे .
मैं- जो हुकुम मेरी सरकार .
जिन्दगी में पहला अनुभव था ये सिनेमा देखने का इस से पहले गाँव में विडिओ ही देखा था पर इतने बड़े परदे पर फिलम देखने का जो मजा आया और उस मजे से जायदा मजे की बात ये की पिस्ता का हाथ थामे हुए बैठा था , मेरी नजरे रवीना की तरफ कम था और पिस्ता की तरफ जायदा
“अब यूँ भी न देख मुझे यार, की तेरे सिवा और कुछ दिखे ही न मुझे फिर ” उसने मुझे कहा
मैं बस मुस्कुरा दिया. पर हम कहाँ जानते थे की ये ख़ुशी ठोड़ी देर की ही थी . सिनेमाहाल से निकल कर हम दोनों बस पकड़ने के लिए चलते जा रहे थे की तभी मेरी नजर सामने से आती जीप पर पड़ी और सारी ख़ुशी, सारी मस्ती गांड में घुस गयी ..............
Nice and superb update....#३३
मेरी निगाह बुआ पर बुआ की निगाह मुझ पर पड़ी, पर नजरो से जायदा मेरा ध्यान उस नजारे पर था .अफरातफरी में बुआ को समझ नहीं आया की वो क्या करे, सलवार को ऊपर करे तो चूची ढकने से रह जाये और ऊपर संभाले तो निचे का नजारा सामने आ जाये. बड़ी ही अजीब सी उलझन हो गयी थी हम दोनों के लिए. कायदे से मुझे नजरे नीची करके वहां से चले जाना चाहिए था पर मेरे मन के चोर ने ऐसा हरगिज नहीं किया. बुआ के हुस्न का नजारा लेते हुए मैं आगे बढ़ा और बुआ को अपने आगोश में भर लिया. वो कुछ नहीं कह पायी और मैंने बुआ के प्यासे होंठो को अपने तपते लबो से जोड़ लिया.
बेशक ये नीचता पूर्ण कार्य था पर फिर भी मुझे मजा बहुत आ रहा था बुआ के लबो को चूसने में . मेरे हाथ निचे गए और बुआ की नंगी गांड को मैंने कस कर दबाया. तड़पती जवानी की उफनती हसरते लिए बुआ का गर्म बदन मेरे आगोश में मचलने लगा था . नितम्बो के कपाट को हाथो से फैलाते हुए मैंने बुआ की गांड के छेद पर ऊँगली फिराई तो बुआ के मादक बदन ने झुरझुरी ली और वो भी लाज छोड़ कर मुझे चूमने लगी. पर इस से पहले की मामला कुछ आगे बढ़ पाता मेरे हाथ बुआ की चूत के बालो पर पहुंचे ही थे की तभी बाहर से कुछ आवाजे आने लगी तो हमारे उड़ते पर एक झटके में कतर कर धरती पर आ गिरे. मैंने आँगन में नजर मारी तो पाया लहू लुहान मुनीम बहनचोद पिताजी को पुकार रहा था .
दौड़ते हुए मैंने सीढिया उतरी और आँगन में पंहुचा .
“भाई जी, भाई जी ” कमजोर आवाज में बोला मुनीम
मैं- क्या हुआ मुनीम जी
“हमला ” इतना कहते ही मुनीम मेरी बाँहों में झूल गया . बहनचोद क्या ही चुतिया किस्मत थी कुछ देर पहले इन बाँहों में बुआ का गर्म बदन झूल रहा था और अब ये चुतिया मुनीम पर सोचने वाली बात थी की इसकी ये हालत कैसे हुई तभी पिताजी भी अपने कमरे से बाहर आ गए और मामले को तुरंत ही समझते हुए बोले - देव, गाडी निकाल
कुछ ही देर में जीप शहर की तरफ दौड़ी जा रही थी . मैंने जिन्दगी में पहली बार पिताजी के चेहरे पर चिंता की लकीरों को साफ़ साफ देखा. हॉस्पिटल पहुँचते ही मुनीम को भरती करवाया और मैं कुर्सी पर बैठ गया . पिताजी डॉक्टर लोगो से गहन चर्चा में दुबे थे . मालूम हुआ की मुनीम पर कई गहरे वार किये गए थे. हाल काफी ख़राब था मुनीम का . कुछ बोतल खून की चढ़ाई गयी , इलाज के लिए पिताजी ने आसमान एक कर दिया बहुत परेशां हो गए थे वो उस रात में , और साली रात भी बहुत लम्बी हो गयी . सुबह न जाने कितने बजे थे मेरी आँखों में नींद चढ़ी थी की डॉक्टर ने आकर बताया की जान तो बच गयी है पर हालात सुधरने में समय लगेगा.
“किसने किया हमला ” मैंने पिताजी से पुछा
पिताजी- तुझे फ़िक्र करने की जरुरत नहीं हम देख लेंगे इस मामले को
मैं आगे कुछ नहीं कह सका. पिताजी ने हमेशा के जैसे इस बार भी बात टाल दी पर ये साफ़ था की कोई तो दुश्मन पीछे पड़ा था . दोपहर होते होते मैं घर के लिए चल पड़ा जीप मैंने पिताजी के लिए छोड़ दी और अपने गाँव की बस पकड़ने के लिए चौराहे की तरफ चल दिया. पर आज शायद किस्मत को कुछ और मंजूर था. मुझे मेरी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था सामने से पिस्ता चली आ रही थी , इस समय पिस्ता शहर में .कहीं मेरी आँखों का धोखा तो नहीं था पर नहीं वो ही थी . मैंने उसे आवाज दी , वो भी मुझे देख कर हैरान हो गयी .
“तू यहाँ क्या कर रहा है ” आँखे चढाते हुए वो बोली
मैं- तू बता तू यहाँ क्या कर रही है वो
वो- मैं तो मुसाफिर हु यारा, कभी इधर कभी उधर . खैर, मूझे न कुछ सूट लेने थे थे तो आज शहर का रुख कर लिया. तू बता
मैं- आया था किसी काम से अब तू मिल गयी करार आ गया.
पिस्ता- उफ़ तेरी ये नशीली बाते, रुक जा खसम कही यही नाडा न खोल दू मैं
मैं- कमीनी कहीं की
पिस्ता - सोमसे खायेगा
मैं- नहीं तुझे खाऊंगा
पिस्ता- मैं तो तेरी ही हु राजा , आ समोसे खाते है
उसने मेरा हाथ पकड़ा और हम सामने दूकान की तरफ बढ़ गए. समोसा खाते हुए मैंने देखा की पिस्ता की नजर सामने दिवार पर लगे पोस्टर पर पड़ी सलमान और रवीना की फिल्म लगी थी मोहिनी थिएटर में .
“देखेगी क्या फिल्म छोरी ” मैंने छेड़ा उसे
पिस्ता- रहने दे यारा, वैसे ही बदनाम हु, किसी को मालूम हुआ तो गाँव में और हवा बनेगी.
मैं- बदनाम जिसके लिए हुई उसके साथ थोड़ी और बदनाम हो ले फिर
पिस्ता- सच में
मैं- और नहीं तो क्या
पिस्ता- चल फिर , ढाई वाला शो ही देखेंगे .
मैं- जो हुकुम मेरी सरकार .
जिन्दगी में पहला अनुभव था ये सिनेमा देखने का इस से पहले गाँव में विडिओ ही देखा था पर इतने बड़े परदे पर फिलम देखने का जो मजा आया और उस मजे से जायदा मजे की बात ये की पिस्ता का हाथ थामे हुए बैठा था , मेरी नजरे रवीना की तरफ कम था और पिस्ता की तरफ जायदा
“अब यूँ भी न देख मुझे यार, की तेरे सिवा और कुछ दिखे ही न मुझे फिर ” उसने मुझे कहा
मैं बस मुस्कुरा दिया. पर हम कहाँ जानते थे की ये ख़ुशी ठोड़ी देर की ही थी . सिनेमाहाल से निकल कर हम दोनों बस पकड़ने के लिए चलते जा रहे थे की तभी मेरी नजर सामने से आती जीप पर पड़ी और सारी ख़ुशी, सारी मस्ती गांड में घुस गयी ..............
खसम कहते ही पिस्ता केपिस्ता- उफ़ तेरी ये नशीली बाते, रुक जा खसम कही यही नाडा न खोल दू मैं
मैं- कमीनी कहीं की

Bahut hi shaandar update diya hai HalfbludPrince bhai....#३३
मेरी निगाह बुआ पर बुआ की निगाह मुझ पर पड़ी, पर नजरो से जायदा मेरा ध्यान उस नजारे पर था .अफरातफरी में बुआ को समझ नहीं आया की वो क्या करे, सलवार को ऊपर करे तो चूची ढकने से रह जाये और ऊपर संभाले तो निचे का नजारा सामने आ जाये. बड़ी ही अजीब सी उलझन हो गयी थी हम दोनों के लिए. कायदे से मुझे नजरे नीची करके वहां से चले जाना चाहिए था पर मेरे मन के चोर ने ऐसा हरगिज नहीं किया. बुआ के हुस्न का नजारा लेते हुए मैं आगे बढ़ा और बुआ को अपने आगोश में भर लिया. वो कुछ नहीं कह पायी और मैंने बुआ के प्यासे होंठो को अपने तपते लबो से जोड़ लिया.
बेशक ये नीचता पूर्ण कार्य था पर फिर भी मुझे मजा बहुत आ रहा था बुआ के लबो को चूसने में . मेरे हाथ निचे गए और बुआ की नंगी गांड को मैंने कस कर दबाया. तड़पती जवानी की उफनती हसरते लिए बुआ का गर्म बदन मेरे आगोश में मचलने लगा था . नितम्बो के कपाट को हाथो से फैलाते हुए मैंने बुआ की गांड के छेद पर ऊँगली फिराई तो बुआ के मादक बदन ने झुरझुरी ली और वो भी लाज छोड़ कर मुझे चूमने लगी. पर इस से पहले की मामला कुछ आगे बढ़ पाता मेरे हाथ बुआ की चूत के बालो पर पहुंचे ही थे की तभी बाहर से कुछ आवाजे आने लगी तो हमारे उड़ते पर एक झटके में कतर कर धरती पर आ गिरे. मैंने आँगन में नजर मारी तो पाया लहू लुहान मुनीम बहनचोद पिताजी को पुकार रहा था .
दौड़ते हुए मैंने सीढिया उतरी और आँगन में पंहुचा .
“भाई जी, भाई जी ” कमजोर आवाज में बोला मुनीम
मैं- क्या हुआ मुनीम जी
“हमला ” इतना कहते ही मुनीम मेरी बाँहों में झूल गया . बहनचोद क्या ही चुतिया किस्मत थी कुछ देर पहले इन बाँहों में बुआ का गर्म बदन झूल रहा था और अब ये चुतिया मुनीम पर सोचने वाली बात थी की इसकी ये हालत कैसे हुई तभी पिताजी भी अपने कमरे से बाहर आ गए और मामले को तुरंत ही समझते हुए बोले - देव, गाडी निकाल
कुछ ही देर में जीप शहर की तरफ दौड़ी जा रही थी . मैंने जिन्दगी में पहली बार पिताजी के चेहरे पर चिंता की लकीरों को साफ़ साफ देखा. हॉस्पिटल पहुँचते ही मुनीम को भरती करवाया और मैं कुर्सी पर बैठ गया . पिताजी डॉक्टर लोगो से गहन चर्चा में दुबे थे . मालूम हुआ की मुनीम पर कई गहरे वार किये गए थे. हाल काफी ख़राब था मुनीम का . कुछ बोतल खून की चढ़ाई गयी , इलाज के लिए पिताजी ने आसमान एक कर दिया बहुत परेशां हो गए थे वो उस रात में , और साली रात भी बहुत लम्बी हो गयी . सुबह न जाने कितने बजे थे मेरी आँखों में नींद चढ़ी थी की डॉक्टर ने आकर बताया की जान तो बच गयी है पर हालात सुधरने में समय लगेगा.
“किसने किया हमला ” मैंने पिताजी से पुछा
पिताजी- तुझे फ़िक्र करने की जरुरत नहीं हम देख लेंगे इस मामले को
मैं आगे कुछ नहीं कह सका. पिताजी ने हमेशा के जैसे इस बार भी बात टाल दी पर ये साफ़ था की कोई तो दुश्मन पीछे पड़ा था . दोपहर होते होते मैं घर के लिए चल पड़ा जीप मैंने पिताजी के लिए छोड़ दी और अपने गाँव की बस पकड़ने के लिए चौराहे की तरफ चल दिया. पर आज शायद किस्मत को कुछ और मंजूर था. मुझे मेरी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था सामने से पिस्ता चली आ रही थी , इस समय पिस्ता शहर में .कहीं मेरी आँखों का धोखा तो नहीं था पर नहीं वो ही थी . मैंने उसे आवाज दी , वो भी मुझे देख कर हैरान हो गयी .
“तू यहाँ क्या कर रहा है ” आँखे चढाते हुए वो बोली
मैं- तू बता तू यहाँ क्या कर रही है वो
वो- मैं तो मुसाफिर हु यारा, कभी इधर कभी उधर . खैर, मूझे न कुछ सूट लेने थे थे तो आज शहर का रुख कर लिया. तू बता
मैं- आया था किसी काम से अब तू मिल गयी करार आ गया.
पिस्ता- उफ़ तेरी ये नशीली बाते, रुक जा खसम कही यही नाडा न खोल दू मैं
मैं- कमीनी कहीं की
पिस्ता - सोमसे खायेगा
मैं- नहीं तुझे खाऊंगा
पिस्ता- मैं तो तेरी ही हु राजा , आ समोसे खाते है
उसने मेरा हाथ पकड़ा और हम सामने दूकान की तरफ बढ़ गए. समोसा खाते हुए मैंने देखा की पिस्ता की नजर सामने दिवार पर लगे पोस्टर पर पड़ी सलमान और रवीना की फिल्म लगी थी मोहिनी थिएटर में .
“देखेगी क्या फिल्म छोरी ” मैंने छेड़ा उसे
पिस्ता- रहने दे यारा, वैसे ही बदनाम हु, किसी को मालूम हुआ तो गाँव में और हवा बनेगी.
मैं- बदनाम जिसके लिए हुई उसके साथ थोड़ी और बदनाम हो ले फिर
पिस्ता- सच में
मैं- और नहीं तो क्या
पिस्ता- चल फिर , ढाई वाला शो ही देखेंगे .
मैं- जो हुकुम मेरी सरकार .
जिन्दगी में पहला अनुभव था ये सिनेमा देखने का इस से पहले गाँव में विडिओ ही देखा था पर इतने बड़े परदे पर फिलम देखने का जो मजा आया और उस मजे से जायदा मजे की बात ये की पिस्ता का हाथ थामे हुए बैठा था , मेरी नजरे रवीना की तरफ कम था और पिस्ता की तरफ जायदा
“अब यूँ भी न देख मुझे यार, की तेरे सिवा और कुछ दिखे ही न मुझे फिर ” उसने मुझे कहा
मैं बस मुस्कुरा दिया. पर हम कहाँ जानते थे की ये ख़ुशी ठोड़ी देर की ही थी . सिनेमाहाल से निकल कर हम दोनों बस पकड़ने के लिए चलते जा रहे थे की तभी मेरी नजर सामने से आती जीप पर पड़ी और सारी ख़ुशी, सारी मस्ती गांड में घुस गयी ..............