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Incest मुझे प्यार करो,,,

rohnny4545

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बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है आज की रात अंकित के लिए अपनी नानी के साथ लास्ट रात होगी क्योंकि कल उसकी नानी जा रही है नानी ने अंकित को जो सिखाया है उसको आज अपनी नानी को दिखाने का वक्त आ गया है


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rohnny4545

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सारी मर्यादाओं की दीवार गिरा कर अपने संस्कारों को ताक पर रखकर सुगंधा अपने बदन की प्राथमिक जरूरत को पूरी कर रही थी और जो उसका हक भी था लेकिन तरीका गलत था क्योंकि वह अपने ही बेटे के साथ शारीरिक सुख भोग रही थी जो कि यह समाज के नजरिए से बिल्कुल गलत था लेकिन अब उसे समाज के परवाह नहीं थी ऐसा नहीं था कि वह समाज के प्रति बिल्कुल लापरवाह हो चुकी थी,,, अच्छी तरह से जानती थी की चारदीवारी के अंदर वह और उसका बेटा क्या कर रहे हैं यह किसी को पता नहीं था इसलिए समाज के नजर में तो वह दोनों मां बेटे ही थे लेकिन घर के चार दीवारी के अंदर वह दोनों मर्द और औरत का सुख भोग रहे थे। कुछ महीने पहले अंकित कभी सोचा भी नहीं था कि उसका जीवन इस तरह से बदल जाएगा इतना तो होता है ताकि एक मर्द होने के नाते एक औरत से उसे शरीर सुख जरूर मिलेगा लेकिन अपनी ही मां से मिलेगा यह कभी उसने सोचा नहीं था। इसलिए मां बेटे तृप्ति की गैर मौजूदगी में घर में जहां चाहे कहां चुदाई का खेल खेलना शुरू कर देते थे बाथरूम में बाथरूम के बाहर रसोई घर में कमरे में घर के पीछे या छत पर कोई भी जगह बची नहीं थी जहां दोनों की चुदाई के किस्से ना लिखे जाते हों,,,, ।


बाजार जातीहई सुगंधा

इन सबके बावजूद अंकित के मन में कुछ और अलग करने का कर रहा था जिसके बारे में उसने अपनी मां को का भी दिया था और जिस तरह का अनुभव उन लोगों का था उसे देखते हुए सुगंधा भी नानुकुर करते हुए इस खेल में शामिल हो चुकी थी अब वह दोनों दर्जी की आंखों के सामने चुदाई का सुख भोगना चाहते थे,,, सुगंधा भी इस खेल में शामिल हो चुकी थी उसे भी नए अनुभव की तलाश थी और इससे अच्छा अनुभव से मिलने वाला नहीं था क्योंकि दर्जी की दुकान का अनुभव उसे पहले ही मिल चुका था वह दर्जी की आंखों में अपनी जवानी के टपकते रस को पीने की चाहत देखी थी वह जानती थी कि उसकी मदहोश कर देने वाली जवान देखकर दर्जी की हालात पूरी तरह से खराब हो चुकी थी उम्र के ईस पड़ाव में दर्जी कुछ करने लायक बिल्कुल भी नहीं था लेकिन देख कर जिस तरह का सुख से मिल रहा था उसे देखकर सुगंधा भी मदहोश हो जाती थी। और यही अपनी मदहोशी का वह थोड़ा और बढ़ाना चाहती थी एक नए अनुभव के साथ वह देखना चाहती थी कि अनजान मर्द के सामने चुदवाने में कैसा महसूस होता है। वह इस अनुभव से पूरी तरह से गुजर जाना चाहती थी।




वह देखना चाहती थी कि अनजान मर्द के सामने उसका बेटा उसके साथ किस तरह की शारीरिक हरकत करता है। दर्जी की दुकान में जो कुछ भी हुआ था वह शारीरिक छेड़छाड़ से ज्यादा कुछ नहीं था। सुगंधा इस बात को अच्छी तरह से जानती थी लेकिन यह भी जानती थी कि औरतों की टांगों के बीच पहुंचने का रास्ता ही शारीरिक छेड़छाड़ से शुरू होता है अब तक का सफर तो दर्जी की आंखों के सामने एकदम सही था जिस तरह से उसका बेटा दर्जी की आंखों के सामने उसके अंगों से छेड़खानी कर रहा था दबा रहा था दो अर्थ वाली बातें कर रहा था वह सब कुछ दर्जी के सोच के परे था तू किधर जी कभी सोचा भी नहीं था कि एक अनजान लड़का एक अनजान औरतों के साथ पहली मुलाकात में इस तरह की छेड़छाड़ करने पर उतारू हो जाएगा और वह औरत भी उसे अनजान लड़के की छेड़छाड़ से इतना मजा लेगी,,,, अब ईसी छेड़खानी को अपने बेटे के कहे अनुसार एक घमासान चुदाई में बदलते हुए देखना चाहती थी वह देखना चाहती थी कि उसका बेटा एक अनजान मर्द के सामने कैसे उसके कपड़ों को उसके बदन से अलग करता है,,, कैसे उसकी आंखों के सामने ही अपने मर्दाना अंगों को उसके कोमल अंग में प्रवेश करने की हिम्मत दिखा सकता है और वह खुद कैसे एक अनजान मर्द के सामने उसके नजरिया में अनजान लड़के से चुदवाने के लिए तैयार हो जाती है यही सब देखने के लिए तो सुगंधा बेताब नजर आ रही थी और जब जब इस बारे में सोच रही थी तब तब उसकी बुर पानी छोड़ दे रही थी।




अंकित अपने मन में दर्जी की दुकान की सारी रूपरेखाएं तैयार कर लिया था उसे अच्छी तरह से मालूम था कि वहां क्या करना है बस उसकी मां को अंजान बने रहना है उसे दरजी के सामने यह बिल्कुल भी नहीं जताना है कि वह दोनों पहले से ही एक दूसरे को जानते हैं या दोनों के बीच में रिश्ता क्या है तभी इस खेल का मजा दुगना हो पाएगा,,,, इस बात से मां बेटे दोनों अवगत थे कि वह दर्जी से उन दोनों का दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं था ना ही वह उन दोनों को जानता था नाहीं यह दोनों उस दरजी को भली-भांति जानते थे,,, उस दर्जी से केवल उन दोनों का ग्राहक और अनजान लड़के का ही संबंध था। मां बेटे दोनों इस समय पर उसे दर्जी की दुकान पर पहुंच जाना चाहते थे क्योंकि उस समय पर उसकी दुकान में बिल्कुल भी ग्राहक नहीं रहते थे और यही समय इस जगह था एक नए अनुभव के लिए,,, मां बेटे दोनों जल्दी से तैयार हो चुके थे। वैसे तो सुगंधा साड़ी के नीचे चड्डी नहीं पहनना चाहती थी लेकिन अंकित नहीं उसे चड्डी पहनने के लिए बोला था, क्योंकि वह देखना चाहता था जब वह दर्जी के सामने उसकी चड्डी उतारता है तो दर्जी की क्या हालत होती है और अपने बेटे की बात मानकर सुगंधा ने भी चड्डी पहन ली थी। पीले रंग की साड़ी में सुगंधा कयामत लग रही थी बस अपने हाथों से पीछे ब्लाउज की डोरी नहीं बांध पा रही थी तो अंकित खुद आगे बढ़कर अपनी मां के ब्लाउज की डोरी को बांधने लगा,,, और इस दौरान वह अपनी मां के कंधों पर चुंबनों की बारिश भी करने लगा।




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ईस हरकत से अंकित के साथ-साथ सुगंधा भी मदहोश होने लगी,, उत्तेजना के वश होकर अंकित पीछे से अपनी मां को बाहों में भरकर ब्लाउज के ऊपर से ही उसके दोनों चूचियों को दबाना शुरू कर दिया था और अपने पेंट में बने तंबू को अपनी मां के पिछवाड़े से रगडना शुरू कर दिया था। जिस तरह के हालात थे उसे देखते हुए मां बेटे दोनों पूरी तरह से उत्तेजित होने लगे और अंकित अपने आप पर काबू नहीं कर पा रहा था । इसलिए वह किसी से मैं अपनी मां की साड़ी को ऊपर की तरफ उठाने लगा और सुगंधा का भी मन होने के बावजूद वह अपने बेटे का दोनों हाथ पकड़ कर उसे रोक दी और बोली,,,।

अगर यही सारा जोश दिखा देगा तो दर्जी की दुकान पर क्या करेगा,,, कहीं ऐसा ना हो कि दरजी की आंखों के सामने टांय-टांय फिश हो जाए,,,,‌

अरे ऐसा बिल्कुल भी नहीं होगा तुम साड़ी तो उठने दो,,,(ऐसा बोलते हुए अंकित फिर से अपनी मां की साड़ी को ऊपर की तरफ उठाने लगा तो फिर से उसकी मां उसे रोकते हुए बोली,,,)

नहीं अभी नहीं अब जो कुछ भी होगा दर्जी की दुकान में ही होगा इस तरह से तो मेरा जोश ठंडा पड़ जाएगा।

ओहहहहह इसका मतलब मेरी रानी दर्जी की आंखों के सामने चुदवाने के लिए बेताब है।

अब तू आग ही ऐसी लगा दिया है तो कर भी क्या सकती हूं,,,,,।

तो फिर चलो मेरी रानी दैर किस बात की है,,,।

तो चल मेरे राजा रोका किसने है,,, लेकिन 1 मिनट,,,

अब क्या हुआ,,,?

पहले अपने राजा को तो,,,,(उंगली से अपने बेटे की पेंट की तरफ इशारा करते हुए जिसमें अच्छा खासा तंबू बना हुआथा) बैठने के लिए बोल इस हाल में बाहर जाएगा तो कोई देख लेगा तो क्या सोचेगा,,,,




heads tails selector
अरे यार यह साला बैठने का नाम ही नहीं ले रहा है इसीलिए तो तुम्हारी बुर में डाल रहा था।

समझा इस कहानी सारा भेद न खोल दे,,,,।

रुको मैं अभी ठीक कर देता हूं,,,,(इतना का करो अपनी मां के कमरे से बाहर निकलने लगा तो सुगंध भी उसके साथ कमरे से बाहर आ गई और अंकित अपनी मां की आंखों के सामने ही बाथरूम के बाहर ही जहां पर पानी जाने के लिए नाली बना हुआ था जहां पर कभी-कभी सुगंधा ही बैठकर पेशाब कर लेती थी वही तो खड़े-खड़े पेशाब करने लगा,,, सुगंधा दोनों हाथ को आपस में बांधकर खड़ी होकर मुस्कुरा रही थी वह अपने बेटे के लंड को देख रही थी जो कि इस समय पूरी औकात में आकर खड़ा था और अंकित उसे हाथ में लेकर हिलाते हुए मुत रहा था,,,, अंकित अपनी मां की तरफ देखते हुए बोला,,,)

तुम्हारे साथ रहने पर यह बैठने का नाम ही नहीं लेता।

हां लग तो ऐसा ही रहा है इसकी ड्यूटी कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है,,,।

हां पहले सिर्फ मुतने के काम आता था,,,, लेकिन अब यह दिन रात तुम्हारी सेवा में लगा रहता है इसलिए इसका ऐसा हालत है।

चल कोई बात नहीं मेरे लिए दिन रात ड्यूटी करेगा तभी तो तनख्वाह भी बराबर मिलती रहेगी।

तनख्वाह के लिए ही तो ड्यूटी पर लगा हुआ है। (इतना कहते हुए अंकित पेशाब कर चुका था और अपने लंड को पकड़ कर झांकते हुए आखिरी पेशाब की बूंद को भी नीचे गिरा देना चाहता था,,, लेकिन अंकित के इस हरकत पर सुगंधा सिहर उठी थी अगर इस समय बाहर न जाना होता तो वह खुद अपने घुटनों के बल बैठकर उसके लंड को अपने मुंह में लेकर चूसना शुरू कर देती,,,,,,, थोड़ी देर में मां बेटे दोनों घर से बाहर निकाल कर और दरवाजे पर ताला लगा कर ऑटो का इंतजार कर रहे थे थोड़ी ही देर में उन दोनों को ऑटो भी मिल गया था अंकित जानबूझकर थोड़ा पहले घर से निकला था ताकि वह अपनी मां से पहले दर्जी की दुकान पर जा सके और कुछ बातचीत कर सके अंकित को पूरा यकीन था कि दरजी उसकी बात को मान जाएगा आखिरकार बुढ़ापे में कुछ कर नहीं सकता था तो अपनी आंखों से देख कर मजा तो ले सकता था। और यह भी देखता कि आजकल की औरतें कितनी बेशरम हो चुकी है। थोड़ी बहुत और बातें थी जिस मां बेटे ऑटो में बैठे-बैठे साझा कर रहे थे। थोड़ी ही देर में दोनों ऑटो से उसे दर्जी की दुकान से थोड़ा सा पहले एक चौराहे पर पहुंच गए जहां पर उन्होंने रिक्शा रुकवा कर वहीं पर उतर गए और प्लान के मुताबिक अंकित अपनी मां से पहले ही पैदल चलता हुआ उसे दुकान में पहुंच चुका था और यह देखकर उसके खुशी का ठिकाना न था कि आज भी इस समय पर दुकान में कोई नहीं था दुकान पर पहुंचते ही वह दुकान में दाखिल होते हुए दर्जी की तरफ देखकर मुस्कुराया और बोला।


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public vs private album settings
नमस्कार चाचा जी,,,,


अरे बेटा तुम आओ आओ,,,, आज कैसे आना हुआ,,,,(दर्जी भी अंकित की तरफ देखकर मुस्कुराया और उत्साहित होता हुआ बोला,,, अंकित भी बात को गोल-गोल घुमाए बिना ही बोला)

अरे भूल गए चाचा जी आज हुआ औरत आने वाली अपना ब्लाउज लेने,,,, कहीं वह आकर चली तो नहीं गई।
(अंकित की बात सुनकर वह दर्जी मुस्कुराया और मुस्कुराते हुए बोला)

नहीं नहीं बेटा अभी तक तो आई नहीं है हो सकता है अब आने वाली हो,,,,, लेकिन तुम्हें उससे क्या काम है,,,,(दर्जी भी उत्सुकता दिखाते हुए बोला)

भूल गए चाचा जी उस दिन क्या हुआ था कितना मजा आया था उस औरत का नाप लेने में,,,।
(अंकित की बात सुनकर दर्जी भी जैसे किसी ख्याल में खो गया था और उसे दिन की हरकत के बारे में सोचने लगा था उसके चेहरे पर उसे दिन की हरकत याद आते ही चमक बढ़ने लगी थी और वह मुस्कुराते हुए बोला)


कैसे भूल सकता हूं बेटा उसे औरत ने तो मेरी भी हालत खराब कर दी है दिन रात मेरे सपने में आती है।


क्या कह रहे हो चाचा वैसे तुम्हारा कहना भी ठीक है जब उसे औरत ने इस उम्र में तुम्हारी हालत खराब कर दी है तो सोचो मेरी क्या हालत कर दी होगी,,, अब तुमसे क्या छुपाना चाचा रात भर उसकी याद में लंड पकड़ कर हिलाना पड़ता है,,,, कसम से ऐसी औरत अगर बिस्तर पर मिल जाए तो मजा ही आ जाए।

लेकिन आज क्या करने आए हो बरखुदार,,,,


आज किस्मत आजमाने आया हूं,,,,, अगर आज किस्मत ने साथ दिया तो तुम्हारी इसी दुकान में आज उसकी चुदाई करूंगा और तुम्हारी आंखों के सामने।
(इतना सुनते ही वह दरजी जोर-जोर से हंसने लगा और हंसते हुए ही बोला,,,)


पागल हो गए हो क्या बेटा तुम्हें क्या लगता है कि वह औरत इस दुकान में मेरी आंखों के सामने तुम्हें करने देगी,,,,।




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हां बिल्कुल चाचा मुझे पूरा विश्वास है उसे दिन मैं उसके बदन की प्यास को समझ गया था वह अंदर से बहुत प्यासी है,,,,,।

चाहे जो भी हो बेटा इस तरह से कोई औरत अनजान लड़के से और अनजान आदमी के सामने यह सब करना बिल्कुल भी पसंद नहीं करेगी।

अगर मैं करके दिखा दिया तो,,,,।

अगर,,,, (थोड़ा सोचने के बाद) तुमने वाकई में ऐसा कर दिखाया तो जो बोलोगे वह हार जाऊंगा,,,,,

चलो फिर तय हुआ और अगर मैं ऐसा नहीं कर पाया तो मैं तुम्हें ₹500 दूंगा नगद,,,,,।

चलो मंजूर है,,, (फिर से वह हंसते हुए बोला अंकित उसके हंसने के मतलब को अच्छी तरह से समझ रहा था क्योंकि वह जानता था कि कोई भी औरत इस तरह से अपने जिस्म का सौदा नहीं करती किसी अनजान मर्द से अनजान दुकान में और अनजान आदमी के सामने चुदवाने के लिए कभी तैयार नहीं होगी,,, लेकिन यह तो सिर्फ दर्जी के नजरिए से था उसकी नजर में अंकित और सुगंधा तो अनजान ही थे और उसका कहना सत प्रतिशत सच था लेकिन इस बात से वह अनजान था कि यह खेल मां बेटे दोनों मिलकर खेल रहे थे इसलिए उसकी दुकान में चुदाई होना निश्चित था।)




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लेकिन थोड़ा बहुत तुम्हें मेरा साथ देना होगा बस मेरी हां में हां मिलाना है,,,,।

चलो कोई बात नहीं इतना तो मैं कर ही सकता हूं,,, (ऐसा कहते हुए वह धोती के ऊपर से अपने लंड को खुजलाने लगा था शायद वह आने वाले समय के बारे में सोच कर मस्त हो रहा था,,,,)

वैसे चाचा जी आज वह आएगी तो सही ना,,,,


आना तो चाहिए क्योंकि डिलीवरी आज ही देनी थी और वैसे भी मैं उसे जानता नहीं हूं नई-नई ग्राहक है। अगर पहले पता होता तो शायद मुफ्त में उसको ब्लाउज सी कर देता बदले में मैं भी उसकी चुदाई कर देता,,,,।

वह चाचा जी मान गए,,,, वैसे चाचा जी सच-सच बताना इस उम्र में खड़ा होता है कि नहीं।
(इतना सुनकर वह दर्जी फिर से हंसने लगा और हंसते हुए बोला)

हो तो जाता है लेकिन बहुत कोशिश करना पड़ता है।

चलो कोई बात नहीं अगर खड़ा हो गया तो तुम भी मजे ले लेना।

(इतना सुनकर वह फिर से जोर-जोर से हंसने लगा)

अच्छा चाचा जी आज भी ग्राहक नहीं है क्या बात है,,,?

तुम्हारी किस्मत बहुत तेज है तुम ऐसे समय पर आते हो जिस समय ग्राहक बिल्कुल भी नहीं रहते और तुम्हारी किस्मत का सितारा कितना बुलंद है यह भी देखना बाकी है अगर वह इस समय आ गई तो मैं भी समझ जाऊंगा कि तुम्हारी किस्मत का तारा बहुत बुलंद है।

लग तो ऐसा ही रहा है चाचा जी लेकिन एक और गुजारिश है,,,,।




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बोलो आज तो तुम्हारी हर एक हसरत को पूरा कर दूंगा जो कुछ भी मेरे बस में होगा।

है तो तुम्हारे ही बस में अगर वह आ गई तो दुकान का दरवाजा मैं बंद कर दूंगा अगर तुम्हें एतराज ना हो तो।


बिल्कुल बेटा इसमें एतराज वाली कौन सी बात है आखिरकार सब कुछ सही हुआ तो मुझे भी कुछ देखने को मिल जाएगा बरसों से आंखें तरस गई है।

बहुत बड़े उस्ताद हो चाचा जी,,, (इतना कहकर अंकित हंसने लगा,,,,, थोड़ी देर तक वह दोनों इधर-उधर की बातें करते रहे अंकित बार-बार दरवाजे की तरफ देख रहा था तकरीबन 20 मिनट गुजारने के बाद ही सुगंधा दुकान की सीढ़ियां चढ़ रही थी,,,, और उसे पर सबसे पहले नजर दर्जी की गई दरजी एकदम से उत्साहित हो गया और अंकित की तरफ देखते हुए बोला)

वह बेटा तुम्हारी तो किस्मत का तारा सच में बहुत बुलंद है,,,, अब आएगा मजा,,,।


बस चाचा जी इसी पल का तो इंतजार था,,,,,।

(दुकान में दाखिल होते हुए सुगंधा दर्जी की तरफ देखते हुए बोली,,,)

चाचा जी मेरा ब्लाउज तैयार है,,,,




बिल्कुल तैयार है तुम बैठो मैं लेकर आता हूं,,,, (इतना कह कर दरजी धीरे से कुर्सी पर से उठा और दरवाजा खोलकर अंदर की तरफ चला गया उसके जाते ही मां बेटे दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुराने लगे और अंकित अपना अंगूठा ऊपर करके सब कुछ ठीक है यह दर्शाने लगा,,,, और एक अच्छा सा ब्लाउज अपने हाथ में ले लिया जिसकी डिजाइन बहुत ही बेहतरीन थी और जैसे ही वह दर्जी सिल हुआ ब्लाउज लेकर आया उसे देखते ही अंकित दर्जी से बोला,,,)

उस्ताद मैडम को यह ब्लाउज पसंद आया है इसकी डिजाइन बहुत ही बेहतरीन लग रही है और मैडम जी इस तरह का ब्लाउज सिलवाना चाहती है।


तो क्या हुआ इसमें दिक्कत क्या है आखिर कल ब्लाउज सिलने के लिए तो हम लोग बैठे हैं यहां पर,,,,, (सिल्वर ब्लाउज को काउंटर पर रखता हुआ दरजी बोला और धीरे से कुर्सी पर बैठ गया,,,, और अंकित थोड़ा सा गंभीर होता हुआ दर्जी से बोला)

लेकिन उस्ताद मैडम जी का नाम और इस ब्लाउज का नाप अलग है और आप तो जानते हैं की नाप लेने के लिए अगर ऐसा ब्लाउज सिलवाना है तो क्या करना होता है,,,,।
(अंकित दर्जी की तरफ देख रहा था लेकिन दरजी समझ नहीं पा रहा था कि उसे क्या बोलना है लेकिन फिर भी और थोड़ा दिमाग लगाकर बोला)

हां तो सब कुछ बता दो अगर सिलवाना है तो,,,,
(दर्जी की बात सुनकर अंकित मुस्कुराने लगा और अपनी मां की तरफ देखकर बोला)



रसोई घर में काम करती हुई सुगंधा

देखिए मैडम अगर आपको इतनी बेहतरीन डिजाइन का ब्लाउज सिलवाना है जो कि एकदम नाप का हो तो इसका नाप देना होगा लेकिन कहते हुए मुझे थोड़ा शर्म आ रही है,,,,,।

शर्म कैसी शर्म,,, मैं कुछ समझी नहीं,,,,!

देखिए मैडम जी इस तरह का ब्लाउज हम दो-तीन कस्टमर के लिए ही सिलते हैं जो कि हमारे खास हैं और उनके कहने के मुताबिक ही इस तरह का ब्लाउज सिला जाता है अगर आपको भी ऐसा ब्लाउज सिलवाना है तो आपको अच्छी तरीके से नाप देना होगा ताकि ब्लाउज पहनने के बाद आपको कोई शिकायत ना रह जाए।


हां तो दिक्कत क्या है ले लो ना नाप ,नाप लिए बिना कैसे सिलोगे,,,,।

आप समझ नहीं रही है इसका नाम देने के लिए आपको अपना ब्लाउज उतरना होगा तभी ठीक से नाप ले पाऊंगा,,,,,,।
(अंकित की बात सुनकर दरजी के माथे से पसीना टपक रहा था उसकी हालत खराब हो रही थी,,,, सुगंधा दर्जी की तरफ सवालिया नजरों से देखने लगी। अंकित की हिम्मत देखकर दरजी भी थोड़ा जोश में आ गया था लेकिन थोड़ा घबरा भी रहा था लेकिन जिस तरह से सुगंध उसकी तरफ देख रही थी दरजी को बोलना ही पड़ गया,,, की)


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यह सच कह रहा है इसलिए हम यह ब्लाउज किसी और के लिए नहीं सिलते जिसके लिए अभी सिलते हैं उन्हें इस तरह का नाप देना पड़ता है और हम सामने से नहीं बोलते हैं किस तरह का ब्लाउज हम सिलना चाहेंगे यह सही कह रहा है हमारे पास दो-तीन ही ग्राहक ऐसे हैं जिनके पास इस तरह का ब्लाउज है,,, अगर तुम्हें भी इस तरह का ब्लाउज सिलवाना है तो ब्लाउज उतार कर ही नाप देना होगा,,,,, (ब्लाउज उतार कर बोलते हुए दर्जी की हालत खराब हो रही थी और वह अपने हाथ से अपने लंड को हल्के से मसलते हुए बोल रहा था और उसकी हालत को देखकर सुगंध मन ही मन प्रसन्न हो रही थी,,, लेकिन फिर भी वह सहज बनी रही वह अपने चेहरे पर हैरानी के भाव लाते हुए बोली)

क्या कह रहे हैं,,,,?

देखिए मैडम जी,,, यह ब्लाउज की डिजाइन है इतनी खास है कि जो कोई भी कस्टमर यहां ब्लाउज सिलवाने आती है उसकी नजर इस पर पड़ी ही जाती है लेकिन हम लोग खुद इनकार कर देते हैं हम आपको भी इंकार कर सकते थे लेकिन हमें मालूम है कि यह ब्लाउज आपके ऊपर और भी ज्यादा खूबसूरत लगेगा इसलिए हम सब यह बता रहे हैं वरना बात आई गई हो जाती है।


सच में डिजाइन तो बहुत अच्छी है लेकिन,,,,


लेकिन क्या मैडम जी मुझे मालूम है कि तुम्हारे शरीर पर यह ब्लाउज बहुत खूबसूरत लगेगा और तुम्हारी खूबसूरती भी और भी ज्यादा बढ़ जाएगी इसलिए हीचकीचाए बिना नाप दे दीजिए सिलवा लीजिए यह ब्लाउज,,,।

लेकिन ब्लाउज उतार कर,,,!




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तो इसमें क्या हो गया देखो ब्लाउज उतरवा कर हम लोग इसलिए नाप लेते हैं ताकि गोलाई का सही माप समझ में आ सके और तभी आरामदायक ब्लाउज हम लोग सी पाते हैं और अगर ब्लाउज के ऊपर दोगी तो दो-तीन डोर इधर-उधर हो जाएगा। तब आपको भी मजा नहीं आएगा पहनने में।

क्या सच में औरतें इस तरह से नाप देती है।(थोड़ा शंका जताते हुए वह बोली)



तो क्या मैडम जी,,,, जैसे डॉक्टर और वकील से कुछ नहीं छुपाना चाहिए इस तरह से दर्जी से भी कुछ नहीं छुपाना चाहिए तभी तो वह सही नाप का ब्लाउज सिलकर दे पाएगा,,,,

(अंकित और सुगंधा की बातों को सुनकर दरजी के माथे पर तो पसीना उपस आया था इस उम्र में उसकी हालत खराब हुई जा रही थी और सुगंधा के हाव-भाव को देखकर वह समझ गया था कि यह जल्द ही तैयार हो जाएगी नाप देने के लिए,,,, इसलिए आने वाले पल के बारे में सोचकर उसका दिल जोरो से धड़क रहा था। दर्जी को अंकित पर पूरा यकीन हो गया था कि वह अपनी बातों में उसे औरत को जाल में फंसा लेगा,,,, जबकि ऐसा होना निश्चित था क्योंकि दरजी नहीं जानता था कि यह दोनों केवल नाटक कर रहे हैं असल में दोनों मां बेटे हैं और अगर इस बात को वह जान लेता कि यह दोनों मां बेटे हैं तो उसके दिल पर क्या गुजरती वह तो कभी सोच भी नहीं सकता था की मां बेटे के बीच में इस तरह का रिश्ता भी हो सकता है क्योंकि वह उम्र दराज था और शायद इस अनुभव से वह गुजरा ना हो या यह भी हो सकता है कि, वह भी इस तरह का अनुभव ले चुका हूं खैर यह तो बात की बात थी लेकिन अभी जो हालात दुकान में बने हुए थे वह पूरी तरह से दरजी को गर्म किए हुए था,,, दर्जी क्या खुद मां बेटे की पूरी तरह से उत्तेजना के परम शिखर पर विराजमान हो चुके थे सुगंधा की बुर बार-बार पानी छोड़ रही थी तो अंकित का लंड पेंट में तंबू बना चुका था,,,, एक बार फिर से गहरी सांस लेते हुए सुगंधा अपनी सारी शंकाओं को दूर करते हुए बोली,,,)



क्या सच में ऐसा करना होगा,,,,!

देखो मैडम इस ब्लाउज के लिए हम सबको नहीं बताते जिन्हें यह डिजाइन पसंद आ भी जाती है तो उन्हें कभी भी हम इस तरह का ब्लाउज सिलकर नहीं देते क्योंकि हम भी शरीर का गठीलापन देखते हैं हमारी आंखों से पता चल जाता है कि यह ब्लाउज किसके बदन पर ज्यादा खूबसूरत लगेगा कहीं किसी को भी यह ब्लाउज पसंद आ गया और वह पहले हो लेकिन उसके ऊपर वह डिजाइन अच्छी ना लगती हो या उसके गोली के माफिक ना आती हो तब तो हम लोगों का धंधा खराब हो जाएगा इसलिए हम लोग इस ब्लाउज के बारे में उन्हें कस्टमर से बात करते हैं जो इस ब्लाउज के लायक होते हैं और इस समय तुम इस ब्लाउज के लायक हो तुम पहनोगी तो ऐसा लगेगा कि जैसे कोई अप्सरा ब्लाउज पहनी हुई हो।

धंधा करना कोई तुमसे सीखे कितनी चिकनी चुपड़ी बातेंकरते हो,,,,(सुगंधा मुस्कुराते हुए बोली)






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नहीं नहीं मैडम जी चिकनी चुपड़ी बातें मैं नहीं कर रहा हूं जो हकीकत है वही कह रहा हूं क्यों चाचा जी मैं ठीक कह रहा हूं ना मैडम किसी फिल्म की हीरोइन नहीं लगती है,,,,।

बात तो तुम एकदम ठीक कह रहे हो बेटा मैडम को देखते ही मुझे तो अपने जमाने की फिल्मों की हीरोइन याद आ जाती है।
(दर्जी एकदम मस्त होता हुआ बोला उधर जी की बात सुनकर सुगंधा मन ही मन खुश हो रही थी उसे एहसास हो रहा था कि दरजी उसकी जवानी के जाल में पूरी तरह से लपटता जा रहा है,,,, सुगंधा एक बार फिर से हल्के से मुस्कुराते हुए लेकिन दरवाजे की तरफ देखते हुए बोली,,,,)


मैं तैयार हूं लेकिन,,, क्या नाप यहीं पर देना होगा,,,,!

(अंकित अपनी मां के ईशारे को समझ गया था इसलिए वह एकदम से उत्साहित होता हुआ बोला,,)

जी बिल्कुल,,,,


लेकिन,,,,(फिर से दरवाजे की तरफ देखते हुए वह बोली तो अंकित एकदम से दर्जी की तरफ देखतेहुए बोला,,,)

मैं समझ गया मैडम आप चिंता ना करें मैं अभी दरवाजा बंद किए देता हूं,,,।

हां बेटा दरवाजा बंद कर दो वैसे भी इस समय कोई ग्राहक आता नहीं है,,,,,।
(गहरी सांस लेता हुआ वह दर्जी बोला क्योंकि अब उसकी भी हालत खराब होने वाली थी उसकी आंखों के सामने जो उसने अब तक नहीं देखा था ऐसा दृश्य दिखने वाला था,,, वैसे तो वह भी जीवन में संभोग सुख से वंचित नहीं होगा लेकिन यह निश्चित था के उसने अपनी जिंदगी में इतनी खूबसूरत औरत की नंगी चूचियों को नहीं देखा होगा और नहीं कभी अपनी आंखों के सामने इतनी खूबसूरत औरत को एक नौजवान लड़के से अपने ही बेटे की उम्र के लड़के से चुदवाते हुए देखा होगा इसलिए उसके तन बदन में भी उत्तेजना की लहर दौड़ रही थी या यूं कह लो कि उत्तेजना का तूफान आ रहा था,,,, अंकित भी बिल्कुल भी देर नहीं करना चाहता था इसलिए वह जल्दी से जाकर दरवाजा बंद कर दिया था इस बात का एहसास उसे अच्छी तरह से था कि दरवाजा बंद होने के बाद दुकान के अंदर केवल वह और उसकी मां के साथ-साथ केवल दर्जी ही होगा और कोई नहीं होगा क्योंकि वह दर्जी की हालत को अच्छी तरह से समझ रहा था,,,, उसे अच्छी तरह से मालूम था कि उन दोनों को संभोग रत देखकर दर्जी भी पूरी तरह से मदहोश हो जाएगा उत्तेजित हो जाएगा लेकिन वह कुछ कर सकते की स्थिति में नहीं होगा क्योंकि उम्र का तक आज जो है और वैसे भी अगर उसकी जगह कोई और होता तो शायद यह खतरा अंकित कभी सर मोल ना लेता क्योंकि एक खूबसूरत जवान से भरी हुई औरत को नंगी देखकर कोई कुछ भी कर सकता है।




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अंकित जल्दी से दरवाजा बंद करके वापस अपनी जगह पर आ चुका था सुगंधा की हालत खराब हो रही थी क्योंकि अब उसे वह कर रहा था जो उसने आज तक कभी नहीं की थी। अंकित बिल्कुल भी देर ना करते हुए वह सीधा मुद्दे की बात पर आते हुए बोला।

मैडम जी अब जल्दी से अपना ब्लाउज उतार दो,,,।

(अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा के तन बदन में मदहोशी का रस घुलने लगा,,, वह जानबूझकर दर्जी की तरफ सवालिया नजरों से देखने लगी तो अंकित ही बोला,,,)

आप बिल्कुल भी चिंता ना करें मैडम चाचा जी के देखरेख में ही नाप लिया जाता है ।

(उत्तेजना के हमारे सुगंधा का गला सूख रहा था वह अपने थूक से अपने गले को गिला करने की कोशिश करते हुए अपने दोनों हाथ उठाकर साड़ी के आड़ में ही अपने ब्लाउज का बटन खोलने लगी यह देखकर अंकित दर्जी की तरफ मुस्कुराता हुआ देखने लगा तो दर्जी भी आंखों से ही ईसारा किया कि मान गए उस्ताद असली उस्ताद तो तू ही है,,,, क्योंकि दर्जी ने कभी सोचा नहीं था कि वाकई में वह नौजवान लड़का है ऐसा कुछ कर पाएगा अब तो उसकी हालत और भी ज्यादा खराब होने लगी थी वह सुगंधा की तरफ देख रहा था सुगंध अपनी नाजुक उंगलियों से अपने ब्लाउज का बटन खोल रही थी,,, सच कहा जाए तो दर्जी को इस तरह का दृश्य देखे लगभग तीन दशक बीत चुके थे,,,, अपनी पत्नी के देहांत के बाद वह अपना सारा ध्यान सिर्फ अपने धंधे में ही लगाया था औरतों की तरफ उसका ध्यान गया ही नहीं था इसलिए तो आज अपनी आंखों के सामने इस तरह का दृश्य देखकर वह पागल हुआ जा रहा था लेकिन वह लाचार था कि उसकी मर्दाना अंग अब जवाब दे दिया था उम्र का तकाजा उसके मर्दाना अंग को शिथिल कर दिया था,,,,




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सुगंधा धीरे-धीरे ब्लाउज का बटन खोल रही थी और उसकी चूड़ियों की खनकी की आवाज से पूरी दुकान मदहोशी के रस में डुबी जा रही थी,,,, अंकित की हालत खराब हो रही थी अंकित भी अपनी मां को इस तरह से ब्लाउज का बटन खोलता हुआ देखकर अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव कर रहा था जबकि उसके लिए यह दृश्य कोई पहली बार का बिल्कुल भी नहीं था लेकिन फिर भी आज का माहौल ही कुछ ऐसा था कि अंकित को सब कुछ पहली बार जैसा लग रहा था वह एक अनजान आदमी के सामने अपनी मां को ब्लाउज का बटन खोलता हुआ देख रहा था इससे उसकी उत्तेजना और भी ज्यादा बढ़ गई थी उसका लंड पेंट में तंबू बना चुका था जिसे वह बार-बार अपने हाथ से दबाने की कोशिश कर रहा था और सुगंधा नजर नीचे का हुए धीरे-धीरे अपने ब्लाउज के सारे बटन को खोल चुकी थी,,,, सुगंधा को अच्छी तरह से महसूस हो रहा था कि उसकी पेंटि पूरी तरह से गीली हो चुकी थी,,, ब्लाउज का बटन खोलकर अंकित की तरफ देखने लगी और बोली।)

अब ठीक है,,,,!

इसे उतार तो दो तभी ना अच्छे तरीके से नाप ले पाऊंगा,,,,।
(सुगंधा के पास इनकार करने का कोई कारण नहीं था वह अंकित की बात मानते हुए अपने ब्लाउस को उतार दी और वही काउंटर पर रख दी और इस समय वह साड़ी के पल्लू की आड़ में अपनी दोनों जवान को छुपाने की नहीं बल्कि दिखाने की कोशिश कर रही थी लेकिन अपने हाथों से नहीं बल्कि अपनी पारदर्शी साड़ी से,,, दर्जी पागल हो जा रहा था क्योंकि पारदर्शी साड़ी से उसकी दोनों चूचियां पीले रंग की ब्रा में एकदम साफ दिखाई दे रही थी,,,,, और उस दरजी को यह भी एहसास हो रहा था कि उसकी बड़ी-बड़ी चूची है उसके छोटे से ब्रा में ठीक तरह से समा नहीं पा रही थी जिससे उसकी आदत से भी ज्यादा चूचियां बाहर दिखाई दे रही थी और यह देखकर वह मन ही मन दुआ कर रहा था कि काश वह अपनी साड़ी के पल्लू को हटा ले तो सब कुछ देखने को मिल जाए और ऐसा लग रहा था कि जैसे उसकी बात अंकित सुन रहा था और इस बार अंकित एकदम से अपना हाथ आगे बढ़ाया और अपने हाथ से ही उसका पल्लू हटाते हुए बोला,,,)




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पल्लू को तो हटा दो ताकि तेरी तरह से दिखाई दे और मैं अच्छे से नाप ले सकूं,,,,,,(अंकित पल्लू हटा दिया था और यह देखकर दर्जी की हालत खराब होने लगी थी उसे लग रहा था कि वह जरूर कुछ ना कुछ बोले की लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था वह अंकित को कुछ भी नहीं बोली थी बल्कि आगे बढ़ाने की इजाजत दे दी थी यह देखकर तो दर्जी और भी ज्यादा हैरान हो गया था दर्जी अपने मन में ही बोल रहा था कि पता नहीं साली यह सब सच में ब्लाउज सिलवाने के लिए कर रही है कि उसकी बुर में आग लगी हुई है,,, और आज उसकी ही दुकान में हुआ अपनी बुर की आग बुझाना चाहती है। सुगंधा गहरी गहरी सांस ले रही जिसके साथ उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां भी ऊपर नीचे हो रही थी यह देखकर दर्जी का ईमान डोल रहा था और अंकित पर उसे गुस्सा आ रहा था थोड़ी जलन हो रही थी कि काश वह अंकित की जगह होता तो कितना मजा आता,,,,, अंकित अपनी मां की भरी हुई चूचियों की तरफ देखते हुएबोला,,,)

चाचा जी फीता देना तो,,,,

यह लो बरखुदार,,,(अपने गले में लपेटे हुए फीता को अपने हाथ से निकलते हुए आगे बढ़कर अंकित के हाथ में थमाते हुए बोला,,,, अंकित तुरंत दरजी के हाथ में से वह फीता ले लिया,,,, और अपनी मां की चुचियों का नाप लेने के लिए उसके करीब पहुंच गया सुगंधा का दिल जोरो से धड़क रहा था वह बार-बार नज़रे नीचे करके दर्जी की तरफ देख ले रही थी ,दरजी की हालत उससे छुपी नहीं थी,,,, वह समझ सकती थी कि दरजी के दिल पर इस समय क्या गुजर रही होगी ,,,, क्योंकि वह देख रही थी कि बार-बार दर्जी का हाथ उसके दोनों टांगों के बीच पहुंच जा रहा था। अंकित मुस्कुराता हुआ अपनी मां की चूचियों की तरफ देखते हुए बोला,,,,)




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बहुत खूबसूरत और बड़े-बड़े गोलाई है आपके,,,,।
(अंकित की बात सुनकर दरजी एकदम सन्न रह गया उसे फिर लगा कि इस बार वह जरूर कुछ ना कुछ बोले की लेकिन वह कुछ बोली नहीं बस मुस्कुरा दी यह देखकर दरजी के तो होश उड़ गए क्योंकि अंकित खुले शब्दों में उसके कस्टमर से बात कर रहा था। और हैरानी वाली बात यह थी कि वह कुछ बोल नहीं रही थी वह मुस्कुरा रही थी जिसका मतलब साफ था कि उसकी बातें उसे अच्छी लग रही थी धीरे-धीरे दर्जी को यकीन होने लगा था कि यह नौजवान लड़का जिसे इरादे से यहां आया है वह अपना इरादा पूरा करके ही जाएगा,,,,,।)

दोनों हाथ फैलाओ,,,,,।

(अंकित की बात मानते हुए सुगंधा अपने दोनों हाथों को खोलकर फैला दी और अंकित एकदम से देखो उसके पीछे की तरफ लाकर उसकी दोनों चूचियों के बीच से वह फीता रखकर नाप लेने लगा वह बार-बार फाइट को कस दे रहा था जिससे सुगंधा एकदम से उसकी तरफ लड़खड़ा कर पहुंच जा रही थी और उसकी दोनों चूचियां अंकित की छाती से स्पर्श हो जा रही थी और यह सब अंकित दरजी को दिखाते हुए कर रहा था इसलिए तो दर्जी की आंखें फटी की फटी रह गई थी उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था थोड़ी देर तक फीते को उसी तरह से पकड़े रहने के बाद वह बोला,,,)

ब्रा का कपड़ा मोटा है ना,,,।

(अंकित के सवाल पर सुगंधा सिर्फ हां मै सिर हिला दी,,,,,)

तब तो मैडम आपको अपनी ब्रा भी उतरना पड़ेगा,,,,।

(यह सुनकर दरजी अपने मन में ही बोला बाप रे यह क्या कह रहा है रे अभी थप्पड़ मार देगी,,,,, लेकिन अपनी बात में उसे दरजी को भी शामिल करते हुए अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला)





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क्यों उस्ताद सही कह रहा हूं ना,,,,।
(दर्जी को तो समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या जवाब दे वह आश्चर्य से अंकित की तरफ तो कभी सुगंधा की तरफ देख रहा था तो अंकित ही बोला ,,)


अरे उस्ताद याद है ना अपनी वह बंगले वाली कस्टमर ब्रा पहनकर जिसे अपना नाप दी थी और उसका ब्लाउज खराब हो गया था तो कितनी बहस बाजी हुई थी हम लोगों में और उसके बीच फिर उसके बाद मेरी समझाने पर उसे अपनी ब्रा उतार कर फिर से अपनी नाप दी और तब जाकर उसका ब्लाउज सही से सिल पाए थे,,,,।

अरे हां याद आया,,,,, यह लड़का सही कह रहा है मैडम,,,,, अगर उसका कपड़ा मोटा है तो एक दो डोरा इधर-उधर हो जाएगा तब हमसे ना कहना कि अच्छा नहीं सिले हो,,,,।

(सुगंधा अपने बेटे की चालाकी पर हैरान थी जिसे वह पुत्र समझती थी वह धीरे-धीरे कितना चालाक हो चुका था उसकी चालाकी पर वह मंद मंद मुस्कुरा रही थी और दर्जी की तरफ देखकर मन ही मन उसे गाली देते हुए बोल रही थी,,, साला हरामजादा कितना हारामी है देखो तो सही एक औरत की नंगी चूचियों को देखने के लिए कितना झूठ बोल रहा है,,,,,,,,, फिर भी सुगंधा गहरी सांस लेते हुए बोली।)

क्या इसे भी उतारना होगा,,


बिल्कुल मैडम,,,,,, और थोड़ा जल्दी करिए कस्टमर के आने का समय हो जाएगा तो नाप भी नहीं ले पाऊंगा,,,,,(हाथ में फीता लिए हुए अंकित बोला,, अंकित के कहने के मतलब को सुगंधा अच्छी तरह से समझ रही थी, वह मौके की नजाकत को अच्छी तरह से समझ रही थी वह जानती थी कि उन दोनों के पास समय पर्याप्त नहीं है जो कुछ भी करना था जल्दी करना था अगर कोई कस्टमर आ गया तो पूरा मामला खराब हो जाएगा इसलिए तुरंत अपने हाथ पीछे की तरफ ले जा करके वह अपने ब्रा का हुक खोलने लगी वैसे तो वह बड़े आराम से यह काम कर लेती थी लेकिन इस समय उसके मन में भी कुछ चंचलता चल रही थी। उसके दिमाग में भी खुरापात चल रहा था इसलिए वह अंकित से बोली,,,,)

Sugandha ki madak aadaa



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देखना तो मेरा हुक नहीं खुल रहा है जरा,,,,,(इतना ही कह पाए थे कि अंकित एकदम से उत्साहित होता हुआ बोला)

जी मैडम अभी खोल देता हूं,,,(और इतना कहने के साथ है यह अपनी मां के पीछे जाकर खड़ा हो गया और उसके ब्रा का हुक खोलने लगा यह देखकर तो दर्जी की हालत खराब होने लगी उसे ऐसा महसूस होने लगा कि बिना खड़े हुए ही उसके लंड से पानी निकल जाएगा वह पूरी तरह से मदहोश हो चुका था माथे पर पसीना वापस आया था उसकी सांसे ऊपर नीचे हो रही थी उसे उम्मीद नहीं थी कि वह ऐसा कुछ बोल जाएगी,,,, और थोड़ी ही देर में अंकित अपनी मां की ब्रा का हुक खोल दिया था उसकी ब्रा एकदम से ठीक ही हो गई थी जिसे सुगंध अपने हाथों से बरा का कब पकड़ कर उसे अपनी चूचियों से जैसे किसी फल से उसका छिलका अलग करते हैं इस तरह से उसे अलग करते हुए उसे भी काउंटर पर रख दी उसकी नंगी चूचियां एकदम हाहाकार मचा रही थी दर्जी की नजर उसकी चूचियों पर पड़ी तो वह एकदम से पागल हो गया क्योंकि उसने कभी सोचा नहीं था की चूचियां इस तरह से भी तरासी हुई हो सकती है,,,,, एकदम तनी हुई गोलाकार जरा भी ढीलापन और लचक नहीं था इसलिए तो,,,, दर्जी ठीक तरह से देखने के लिए अपनी जगह से उठकर खड़ा हो गया था पानी पीने के बहाने और नजर भरकर सुगंधा की चूचियों को देखने के बाद में काउंटर पर पड़े ग्लास को अपने हाथ में ले लिया और पानी पीकर अपने सूखते हुए गले को गिला करने की कोशिश करने लगा,,,,, ब्रा का हुक खोलने के बाद अंकित फिर से अपनी जगह पर आ गया था और अपनी मां की चूचियों को देखकर मदहोश होता हुआ बोला,,,)

एक बात कहूं मैडम बुरा मत मानना,,,।

कहो,,,,,




मैंने अपनी जिंदगी में आज तक इतनी खूबसूरत और गोल-गोल चूचियां नहीं देखा,,,,, और शायद हमारी उस्ताद ने भी इतनी खूबसूरत चुची नहीं देखे होंगे,, क्यों उस्ताद,,,,(दर्जी की तरफ देखे बिना ही अंकित बोल और दर्जी अपने मन में ही बोला यह साला मुझे क्यों बीच में घसीट रहा है लेकिन यह बात सच थी दर्जी अपने मन में मान रहा था कि वाकई में उसने नौकरी इतनी खूबसूरत औरत अपनी जिंदगी में अपनी दुकान में देखा था और ना ही इतनी खूबसूरत नंगी चूचियों को देखा था इसलिए तो आश्चर्य से उसकी आंखें फटी पड़ी थी,,,,,, अंकित अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,) अब देखना मैडम ब्लाउज का नाप कितना फिट बैठता है आपकी गोलाईयो पर ना एक डोर आगे और ना एक डोर पीछे एकदम कैसा होगा एकदम आरामदायक पहनोगी तो तुम्हें भी लगेगा कि वहां कितना खूबसूरत ब्लाउज मैं आज पहनी हुं,,,।

सिर्फ बातें करने से कुछ नहीं होता एक बार सील कर दे दो और मैं पहन लूं तब जानू,,,,।

यह बात है,,,, इसका मतलब है मैडम की आप हम पर शक कर रही हैं कि हम लोग इतना अच्छा ब्लाउज सी पाएंगे कि नहीं,,,,।

वह तो है ही,,,,,।

तो लो अभी नाप ले लेता हूं,,,,,(इतना कहने के साथ ही अंकित फिर से पिता को उसके पीछे से घुमाया और फीते की किनारी को और नाप का फीता उसकी दोनों चूचियों के बीच रखते हुए,,, दर्जी की तरफ देखते हुए बोला,,,,)

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(और थूक को निगलते हुए दर्जी नाप नोट करने लगा,,,,,,,, और फिर अंकित कंधे से नीचे की तरफ उसकी चूची हो के नीचे तक नाप लेने लगा ऐसा करते हुए वह जानबूझकर अपनी हथेली का दबाव उसकी नंगी चूचियों पर बढ़ा दे रहा था वह केवल दरजी को दिखा रहा था और दर्जी देखकर हैरान भी था क्योंकि वह औरत कुछ बोल नहीं रही थी इस बात से दर्जी की आंखें आश्चर्य से फटी जा रही थी। तभी अंकीत अपनी मां से बोला,,)

अब मैडम थोड़ा पीछे घूम जाओ,,,,,।

(इतना सुनते ही सुगंधा पीछे की तरफ घूम गई और उसकी पीठ अंकित की तरफ थी और अंकित दर्जी की तरफ देखते हुए अपने दोनों हाथों की हथेलियां को गोल-गोल दबाते हुए इशारा कर रहा था कि अब उसकी चूची दबाएगा,,,, अंकित का इशारा समझते ही दरजी के पसीने छूटने लगे उसे डर था की कहीं ,ईस हरकत पर वह उसे थप्पड़ ना मार दे,,,,,, अंकित फिर से पिता लेकर के अपनी मां की दोनों चूचियों पर रख दिया और इस बार दोनों हाथों से हल्के से अपनी मां की चूची दबा दिया सुगंधा के तन बदन में मदहोशी जाने लगे उसके चेहरे का रंग सुर्ख लाल होने लगा और अपने बेटे की हरकत पर उसके मुंह से हल्की सी आह निकल गई,,,, और उसकी आहह की आवाज दर्जी के कानों तक बड़े आराम से पहुंच गई थी क्योंकि वह जानबूझकर इस तरह की आवाज निकाली थी। इस मदहोश कर देने वाली आवाज को सुनकर दो दर्जी का दिल बड़े जोरों से धड़कने लगा उसे डर लग रहा था कि कहीं उसे दिल का दोरा ना पड़ जाए,,,,,




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अभी इस बात को इस मामले को आगे बढ़ाने से कोई मतलब नहीं निकल रहा था,,,,, इसलिए वह दर्जी से बोला,,,,।


पूरा नाप हो गया ना उस्ताद,,,।

हां बिल्कुल तूने अच्छे से नाप ले लिया,,,,(गहरी सांस लेता हुआ वह दर्जी बोला)

तो अब मैं अपने कपड़े पहन लुं,,,,,

कुछ देर और ऐसे ही रहने दो मैडम,,,(और इतना कहने के साथ ही पीछे से ही वह अपने दोनों हाथों में अपनी मां की दोनों चूचियों को भरकर हल्के हल्के दबाने लगा और इस बार फिर से सुगंधा मस्त होते हुए हल्की-हल्की सिसकारी की आवाज लेते हुए बोली,,)


यह तुम क्या कर रहे हो,,,सहहहहह,आहहहहहह छोड़ो मुझे,,,,,।


तुम बहुत खूबसूरत हो मैडम मैं आज तक इतनी खूबसूरत औरत नहीं देखा,,,,।


नहीं देखा तो आज देख लिया ना अब मुझे जाने दो कोई देख लेगा तो गजब हो जाएगा,,,,।

(दर्जी यह सब देखकर मदहोश हुआ जा रहा था और जिस तरह से उसने कोई देख लेगा तो गजब हो जाएगा यह बात कही थी उसे देखकर दरजी को समझते देर नहीं लगी कि आप यह चारों खाने चित हो गई है,,,,)




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दरवाजा तो बंद है मैडम अंदर क्या हो रहा है किसी को पता नहीं चलेगा मैं तो पागल हो जाऊंगा तुम्हारी खूबसूरती में डूब जाऊंगा,,,,,,।

नहीं रहने दो ऐसा करना ठीक नहीं है,,,, तुम्हारे उस्ताद,,,(सुगंधा मदहोश होते हुए दर्जी की तरफ देखते हुए बोली)

वह कुछ नहीं बोलेंगे मैडम बस थोड़ी देर और मुझे दबा लेने दो,,,,,,।


सहहहहहवआहहहहह बस थोड़ी देर उसके बाद में चली जाऊंगी,,,,,।




बिल्कुल मैडम चली जाना,,,, लेकिन इतनी खूबसूरत चुची को मैं अपने हाथों से जाने नहीं देना चाहता इसे दबाने का सुख पूरी तरह से भोग लेना चाहता हूं,,,,आहहहहह कितनी बड़ी-बड़ी खरबूजे जैसी चूचियां है मैडम तुम्हारी,,,,, लगता है तुम्हारे पति बहुत मेहनत करते हैं,,,,,,,।

बहुत मेहनत करते हैं तभी तो ऐसी तनी हुई है,,,,,,।(सुगंधा भी मदहोश होते हुए बोली दरजी पूरी तरह से पस्त हुआ जा रहा था वह जानता था कि जिस इरादे से वह लड़का दुकान में आया था वह अपना इरादा पूरा कर लेगा और उसे अपने शर्त हारने का डर बिल्कुल भी नहीं था उसे इस बात की खुशी थी कि आज सब कुछ सही हुआ तो आज वह बेहद खूबसूरत औरत की चुदाई अपनी आंखों से देख पाएगा,,,,)

लेकिन फिर भी मैडम कौन से तेल से मालिश करती हो मुझे भी बता दो ताकि मैं भी मौका आने पर किसी को बता सकूं,,,,।

सरसों के तेल से मालिश करती हूं दिन में दो बार तभी तो एकदम गोल है,,,,,





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ओहहहहह मैडम तभी तो तुम एकदम हीरोइन की तरह लग रही हो,,,,(अंकित पागलों की तरह अपनी मां की दोनों चूचियों को दबाते हुए बोला उसके इस तरह से स्तन मर्दन से सुगंधा एकदम चुदवासी हुए जा रही थी,,,,,, उसकी बुर से लगातार मदन रस का बहाव हो रहा था,,,, अंकित जितना हो रहा था उतनी जोर-जोर से अपनी मां की चुचियों को दबा रहा था और दर्जी को ऐसा दिख रहा था कि वाकई में यह च उसके हाथ में पहली बार आई है कुछ देर तक इसी तरह से दबाने के बाद सुगंधा भी नाटक करते हुए बोली,,,)

बस अब हो गया ना अब मुझे कपड़े पहन लेने दो,,,(इतना कहते हुए सुगंधा खुद ही घूम गई और अंकित गहरी गहरी सांस लेता हुआ अपनी मां की चूचियों को ही देखता रह गया और खुश होता हुआ बोला)

बहुत मजा आया आज का दिन मुझे जिंदगी भर याद रहेगा,,,,,।

मुझे भी जिंदगी भर याद रहेगा की मुझे इस तरह के दरजी मिले थे,,,(ब्रा को अपने हाथ में लेकर उसे पहनना ही वाली थी कि अंकित बोला)

मैडम बुरा ना मानो तो क्या मैं एक बार इसे मुंह में लेकर पी सकता हूं,,,,,,,।(अंकित की बात सुनकर तो दरजी के होश उड़ गए उसकी सांस उखड़ रही थी उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसकी आंखों के सामने यह सब क्या हो रहा है लेकिन उसे भी बहुत मजा आ रहा था बस वह अपनी उम्र और शरीर को लेकर परेशान था वरना इस खेल में वह भी कूद गया होता अंकित की बात सुनकर सुगंधा अंकित की तरफ देखने लगी और फिर अपनी छातियो को उभारते हुए बोली,,,)




लो लेकिन ज्यादा देर तक नहीं,,,,।
(बस क्या था अंकित तो पूरी तरह से अपनी मां की दोनों चूचियों पर टूट पड़ा और बारी-बारी से दोनों चूचियों को मुंह में लेकर पीना शुरू कर दिया दर्जी अपने मन में ही कह रहा था कि वाकई में यह औरत एकदम चुडक्कड़ है यह नौजवान लड़का सही कह रहा था,,,, अंकित तो पागल हुआ जा रहा था लेकिन उसकी मां भी मदहोश हो चुकी थी एकदम छिनार बन चुकी थी एकदम रंडी की तरह एक अनजान आदमी के सामने अपने बेटे से अनजान बनकर मस्ती के सागर में डुबकी लगा रही थी। उसे भी बहुत मजा आ रहा था उसका बेटा सच कह रहा था कि इस खेल में बहुत मजा आएगा वह अपने मुंह से गरमा गरम शिकारी की आवाज निकाल कर दर्जी की हालत को और ज्यादा खराब कर रही थी,,,, तकरीबन 10 मिनट तक अपनी मां की चूचियों को पीने के बाद वह धीरे से अपना एक हाथ नीचे की तरफ लेकर और साड़ी के ऊपर से ही अपनी मां की बुर को मसलने लगा,,,, यह देख कर तू दरजी के बदन में आग लग गई अब बैठे-बैठे इस नजारे को देखना उचित नहीं खाऊंगा उठकर खड़ा हो गया था और खड़े-खड़े देख रहा था उसे समझ में आ गया था कि यह औरत वाकई में बहुत ज्यादा चुदवासी है वह अपने मन में ही सोचने लगा है तो बड़े घर की लेकिन शायद इसका पति से खुश नहीं कर पाता है इसीलिए इस तरह से मजा ले रही है,,,,, अंकित पागलों की तरह साड़ी के ऊपर से अपनी मां की बुर को दबा रहा था मसल रहा था अपनी हथेली में तो बोल रहा था जिससे सुगंधा पानी पानी हो रही थी लेकिन कुछ देर बाद वह जानबूझकर एकदम से अपने बेटे से अलग होते हुए बोली,,,,)




बस अब ज्यादा नहीं,,,,(गहरी सांस लेते हुए सुगंधा पूरी और धीरे से अपनी ब्रा को पहनने लगी इस बार वह खुद ही अपने दोनों हाथों को पीछे की तरफ ले जाकर के अपनी ब्रा के हक को बंद कर ले और अंकित अपनी मां का ब्लाउज लेकर उसके सामने खड़ा था उसे थमाने के लिए लेकिन प्लेान के मुताबिक दोनों एक दूसरे की तरफ देख रहे थे एक दूसरे की आंखों में देख रहे थे,,,,, दर्जी भी यह सब देख रहा था उसे लगने लगा था कि आज वह शर्त जीत जाएगा लेकिन शर्त जीतने की खुशी उसके चेहरे पर बिल्कुल भी नहीं थी क्योंकि उसका शर्त जीतने का मतलब था कि एक खूबसूरत नजारा अपनी आंखों से ओझल होता हुआ देखना जिसके लिए वह तैयार नहीं था लेकिन सुगंधा को देखकर वह समझ गया था कि अब यह खेल आगे बढ़ने वाला नहीं है,,,,, अंकित अपने हाथ में ब्लाउज लिए हुए ही किसी रोमांटिक हीरो की तरह अपनी मां से बोला,,,)


सच में आज का दिन मुझे जिंदगी भर याद रहेगा,,,।

और मुझे भी,,,(अपने ब्रा के कप को अच्छे से व्यवस्थित करते हुए सुगंधा बोली,,)

क्या आपका पता मिल सकेगा,,,,।




बिल्कुल भी नहीं घर पर मेरी जवान लड़की और जवान बेटा है,,,,,(और ऐसा कहकर अंकित की आंखों में देखने लगी अंकित भी अपनी मां की मदहोश भरी आंखों में पूरी तरह से डुबने लगा और दर्जी के आश्चर्य के बीच कुछ ऐसा हुआ जिसकी दर्जी को भी उम्मीद नहीं थी और ना ही अंकित को क्योंकि अंकित की आंखों में देखते हुए सुगंधा एकदम से अंकित के करीब पहुंच गई और उसके होठों पर चुंबन करने लगी दोनों के होंठ एकदम से आपस में भिड़ गए,,,,, अंकित पागलों की तरह अपनी मां को बाहों में भरकर उसके होठों का रसपान करते हुए साड़ी के ऊपर से उसकी बड़ी-बड़ी गांड को मसलना शुरू कर दिया उसे दबाना शुरू कर दिया यह देखकर दर्जी का पसीना छूटने लगा हुआ पागल हुआ जा रहा था वह भी इस खेल में कूदने की कोशिश कर सकता था लेकिन वह जानता था कि उससे कुछ होने वाला नहीं है,,,,

मदहोश होता हुआ अंकित है एक बार में ही अपनी मां के बराबर को फिर से को दिया और उसकी नंगी चूचियों को दोनों हाथों से दबाते हुए उसके होठों का रिस्पांस करने लगा दोनों पागल हुए जा रहे थे मदहोशी के सागर में डूबते चले जा रहे थे,,,, दोनों के मुंह से हल्की-हल्की कराहने और शिसकारी की आवाज आ रही थी,,,, सुगंधा पूरी तरह से बेशर्म बन चुकी थी वह कभी सोची नहीं थी कि अनजान मर्द के सामने खड़ी होकर वह अपने बेटे से इस तरह की हरकत करवाएगी और करेगी वह पूरी तरह से छिनार बन चुकी थी इस खेल में कितना मजा आ रहा था यह मां बेटे ही बता सकते थे वह पूरी तरह से मदहोशी के सागर में डूब के चले जा रहे थे और अपने साथ दर्जी की भी हालत खराब कर रहे थे,,,,,, मौके की नजाकत को अंकित अच्छी तरह से समझ रहा था इसलिए एकदम से अपनी मां को काउंटर की तरफ घुमा दिया और उसकी साड़ी को ऊपर की तरफ उठने लगा अब सुगंधा उसे रोकने की कोशिश बिल्कुल भी नहीं कर रही थी,,, क्योंकि वह अभी यही चाहती थी देखते ही देखते अंकित अपनी मां की साड़ी को कमर तक उठा दिया था उसकी नंगी गांड जो कि उसकी पैंटी में लिपटी हुई थी उसे देखकर अंकित की हालत तो खराब हो ही रही थी उसे दरजी को लग रहा था कि उसे दिन का दौरा पड़ जाएगा वह काउंटर की तरफ झुक कर सुगंधा की बड़ी-बड़ी गांड को देख रहा था और सुगंध टेबल पर घुटने दिखाकर अपनी आंखों को बंद करके इस पल में पूरी तरह से डूबने लगी थी,,,,,।



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उस्ताद औरत पूरी तैयार है क्या मस्त बड़ी बड़ी गांड है देखो तो सही,,,, इस औरत की बड़ी-बड़ी गांड देखकर तुम्हारा भी लंड खड़ा होने लगेगा,,,,,,(अंकित जोर-जोर से अपनी मां की गांड पर चपत लगाते हुए उसे अपनी हथेली में लेकर दबोच ले रहा था,,,,, और फिर एक झटके से अपनी मां की पेंटी को एकदम से नीचे की तरफ खींच दिया और उसके पैरों से बाहर निकाल दिया और दर्जी की हालत और ज्यादा खराब करने के लिए उसे पेंटिंग को काउंटर पर ही रख दिया जहां पर वह दर्जी खड़ा था,,,, कमर से नीचे और ऊपर सुगंधा पूरी तरह से नंगी हो चुकी थी बस कमर में उसकी साड़ी और पेटीकोट फसा हुआ था और अंकित बिल्कुल भी वक्त गवाई बिना अपने घुटनों के बल बैठ गया और अपनी मां की गांड में अपना मुंह डाल दिया और उसकी गुलाबी बुर को चाटना शुरू कर दिया,,,, सुगंधा एकदम से सिहर उठी और अपनी गांड को अपने बेटे की तरफ खेलने लगी अंकित अपनी मां की बड़ी-बड़ी गांड को दोनों हाथों से पकड़ कर पागलों की तरह उसकी बुर की चुदाई कर रहा था,,,,, यह देख कर दर्जी से रहा नहीं जा रहा था उसके पास में ही काउंटर पर उसे खूबसूरत औरत की पेंटी पड़ी थी जिसे वह अपने हाथों में ले लिया और उसे उलट पलट कर देखने लगा शायद उसके जीवन में उसने कभी भी पेंटिं को अपने हाथ में नहीं लिया था क्योंकि उसकी उम्र को देखते हुए ऐसा ही लग रहा था कि उसकी बीवी पेंटी पहनती नहीं थी,,,, सुगंधा अपनी आंखों को खोलकर दर्जी की तरफ देख रही थी उसकी आंखों में मदहोशी थी एक नशा था और दर्जी के हाथों में अपनी पैंटी देखकर उसकी उत्तेजना और ज्यादा बढ़ गई थी उसका गीलापन दर्जी देखकर पागल हो रहा था,,,, और पेंटी के उसे हिस्से को अपनी उंगलियों से दबा दबा कर देख रहा था जो हिस्सा सुगंधा के मदन रस से गिला हो चुका था और वह बोला,,,)




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मैडम की बुर तो बहुत पानी छोड़ रही है बेटा,,,(वह भी ईस मौके का पूरा फायदा उठा लेना चाहता था भले कुछ करके ना सही लेकिन औरत के अंगों के बारे में खुले तौर पर बोलकर ही मजा ले रहा था और वैसे भी बुर शब्द बोलने में उसे बहुत मजा आ रहा था उसके चेहरे को देखकर सुगंधा समझ गई थी,,,,, और इससे भी उसे दर्जी का मन भरने वाला नहीं था वह सुगंधा की पेंटिंग को उसकी आंखों के सामने ही अपने चेहरे से लगा लिया और उसकी खुशबू को अपनी नाक से अंदर की तरफ खींचने लगा यह देखकर तो सुगंधा पानी पानी होने लगी,,,,,, पूरी दुकान में उसकी शिसकारी की आवाज गुंज रही थी। अंकित समझ गया था कि अब देर नहीं लगना चाहिए इसलिए वह तुरंत उठकर खड़ा हो गया और अपने पेंट की बटन खोलकर एकदम से अपनी पैंट और अंडरवियर दोनों घुटनों तक खींच दिया,,,, और उसका लंबा मोटा लंड एकदम से हवा में झूलने लगा जिसे देखकर दर्जी की भी हालत खराब हो गई,,,, और वह अपने आप पर काबू नहीं कर पाया और काउंटर पर खड़े हुए ही वह अपना हाथ आगे बढ़कर अंकित के लंड को अपने हाथ से पकड़ कर एक दो बार हिलाते हुए बोला,,,,)





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यह औरत तुम्हारे ही लायक है बेटा तुम ही इसकी गदराई जवानी का रस निकाल सकते हो,,,
(सर जी मैं जिस तरह से उसके लंड को पकड़ कर ही आया था अंकित एकदम से सिहर उठा था और यह हरकत सुगंधा ने भी अपनी आंखों से देखी थी। और वह दरजी के मन में क्या चल रहा था वह अच्छी तरह से समझ रही थी उसे एहसास हो रहा था कि समय दरजी अपने मन में यही सोच रहा था कि काश उसका भी इसकी तरह होता तो कितना मजा आ जाता और दर्जी की हरकत पर सुगंधा अपने बेटे की मर्दाना ताकत पर गदगद होने लगी दर्जी की बात सुनकर अंकित भी बोला,,,)

सही कह रहे हैं उस्ताद,ये औरत एकदम मस्ताई घोड़ी है,,, इस पर काबू पाने के लिए मेरे जैसे घोड़े की ही जरूरत है देख नहीं रहे,ये औरत कितना पानी छोड़ रही है,,,,,।

सही कह रहे हो बेटा में तो इसकी चड्डी देखकर ही अंदाजा लगा लिया,,,(चड्डी को अपने हाथ में लेकर अंकित की तरफ दिखाते हुए वह बोला, सुगंधा तो शर्म से मरी जा रही थी उत्तेजना से पानी पानी हुई जा रही थी,,,,,) अब जल्दी से इसकी बुर में अपना लंड डाल दो इससे रहा नहीं जा रहा है,,,,(इतना कहकर वह दर्जी काउंटर पर झुकते हुए अपना हाथ सुगंधा की गांड की तरफ लाया और उसकी टांगों के बीच से अपनी हथेली को उसकी बुर पर रखकर हल्के हल्के सहलाने लगा शायद इतने से ही वह पूरी तरह से मस्त हो चुका था सुगंधा भी उत्तेजना से सिहर उठी थी,,,,, दर्जी के हाथ लगाने के बाद तो वह और भी ज्यादा व्याकुल हो गई अपने बेटे के लंड को अपनी बुर में लेने के लिए,,,,,। कोई और वक्त होता तो शायद सुगंधा दरजी को कभी हाथ भी नहीं लगाने देती ,, लेकिन इस समय का हालात कुछ और ही था दर्जी की वजह सही है तो मां बेटे दोनों उत्तेजना के चरम शिखर पर विराजमान हो चुके थे और एक अद्भुत अविस्मरणीय अनुभव से गुजर रहे थे। और ऐसा सुगंधा ने दर्जी को करने भी थे शायद इसी से ही उसे आनंद प्राप्त हो रहा था।




अंकित चढ़ाई करने के लिए तैयार हो चुका था वह दर्जी की आंखों के सामने ही अपने मोटे तगड़े लंड को हाथ में लेकर हिलाते हुए अपनी मां की दोनों टांगों के बीच से उसे ले जाकर के उसके गुलाबी छेद से सटा दिया और दर्जी की उत्तेजना को और ज्यादा बढ़ाते हुए बोला,,,,।

आहहहह उस्ताद साली की बुर बहुत गर्म है,,,,।

डाल दे बेटा अंदर गम बुर वाली औरत ज्यादा मजा देती है,,,,।

बस उस्ताद धीरे-धीरे अंदर जा रहा है लेकिन इसकी बुर बहुत कसी हुई है,,,।

तब तो तू बहुत किस्मत वाला है क्योंकि कसी हुई बुर बहुत किस्मत वालों को ही मिलती है,,,।

क्यों मैडम जा रहा है ना लड़के का लंड,,,।
( दर्जी के इस बात पर सुगंधा शर्म से पानी पानी होने लगी लेकिन वह कुछ बोली नहीं बल्कि उसके इस बात का जवाब वहां अपने लाल-लाल होठों को अपने दांत से काट कर दी वह पूरी तरह से मदहोश हो गई थी क्योंकि उसे एहसास हो रहा था कि उसके बेटे का लैंड उसके बुर की गहराई तक घुस गया था और अंकित अपनी मां की कमर पकड़ कर अपनी कमर हिलाना शुरू कर दिया था वह दर्जी की आंखों के सामने अपनी मां की चुदाई कर रहा था उसे बहुत मजा आ रहा था आज उसका लंड कुछ ज्यादा ही कड़क महसूस हो रहा था ऐसा लग रहा था कि जैसे लोहे का रोड हो गया हो,,,, दर्जी को ललचाने के लिए सुगंधा अपने मुंह से सिसकारी की आवाज निकल रही थी।




सुगंधा की चुदाई

सहहहह आहहहह ऊईईईईई मां,,,,,ऊमममममम,,,, बहुत मोटा है रे तेरा आहहहहहह बहुत मजा आ रहा है,,,,आहहहहहह और जोर-जोर से चोद,,,,।

(सुगंधा के मुंह से इतना सुनकर दर्जी की हालत और ज्यादा खराब होगी और काउंटर पर पूरी तरह से झुकी हुई थी उसके दोनों खरबूजे काउंटर पर ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी थाली में सजा कर रखे गए हो जिसे देखकर दरजी के मुंह में पानी आ रहा था वह पूरी तरह से पागल हुआ जा रहा था और उसकी चूची को पकड़ने की लालच का वह रोक नहीं पाया वह धीरे से अपना हाथ आगे बढ़ाया और दोनों हाथों से सुगंधा की चूची पकड़ कर दबाना शुरू कर दिया इतने से ही दर्जी पूरी तरह से मस्त हो गया,,,,, सुगंधा भी मस्ती के सागर में पूरी तरह से डुबकी लगा रही थी उसे अच्छा लग रहा था उसने कभी सोचा नहीं थी कि कोई अनजान मर्द इस तरह से उसके अंगों से खेलेगा,,, लेकिन यह सब उसके बेटे की देन थी जो वह यह सब करने पर मजबूर हो चुकी थी और ऐसा करने में उसे मजा भी आ रहा था तभी सुगंधा को न जाने क्या सुझा वह अपना हाथ आगे बढ़ाकर,,, दर्जी की लूंगी के दोनों पट को खोलने लगी और अगले ही पल उस दर्जी का लंड एकदम से सुगंधा की आंखों के सामने आ गया,,, जिसमें तनाव आ चुका था और वह एकदम से झूल रहा था लेकिन उसे देखने के बाद सुगंधा इतना तो समझ गई थी की जवानी के दिनों में यह पूरी तरह से तबाही मचा दिया होगा,,,,, सुगंधा की इस तरह की हरकत से तो दर्जी पूरी तरह से बावला हो गया,,, और अपने दोनों हाथों का कसाव सुगंधा के खरबुजो पर बढ़ाने लगा,,,, सुगंधा अपने होशो हवास में ऐसा कभी नहीं करती लेकिन इस समय उसके दिमाग पर वासना पूरी तरह से हावी हो चुका था और वह धीरे से उसे दर्जी का लंड अपने हाथ में पकड़ ली और उसे धीरे-धीरे हिलाने लगी,,,,, और पीछे से अंकित ताबड तोड़ धक्के पर धक्का मार रहा था,,,, वह जमकर अपनी मां की चुदाई कर रहा था।



लेकिन सुगंधा की हरकत दर्जी सह नहीं पाया और उसके लंड से पिचकारी छूट गई जो सीधा सुगंधा के हथेली को भिगो दिया दर्जी की हालत देखने लायक थी वह पूरी तरह से पस्त हो चुका था लेकिन अभी भी सुगंधा की दोनों चुचियो को थामे हुए था। सुगंधा के मुंह से लगातार शिसकारी की आवाज निकल रही थी। वह चरम सुख के करीब पहुंच चुका था और धीरे से अपने हाथ को कमर पर से हटाकर अपनी मां के कंधों पर रख दिया और उसे किसी लगाम की तरह अपनी तरफ खींचते हुए अपनी कमर को जोर-जोर से आगे पीछे करके ही आने लगा और देखते ही देखते मां बेटे दोनों एक साथ झड़ने लगे,,,, अंकित अपने मन की कर चुका था यह अनुभव मां बेटे दोनों के लिए यादगार बन गया था,,,,, दरवाजे पर दस्तक हो रही थी बाहर शायद कस्टमर आ गया था यह देखकर मां बेटे दोनों जल्दबाजी दिखाने लगे और सुगंधा जल्दी-जल्दी अपने कपड़े पहने लगी अच्छा हुआ कि उसके बेटे ने उसकी साड़ी निकाल कर उसे पूरी तरह से नंगी नहीं किया था वरना हड़बड़ाहट में वह ठीक तरह से कपड़े भी नहीं पहन पाती,,,, अपने कपड़ों को दुरुस्त करने के बाद अंकित जाकर दरवाजा खोल दिया,,,, दो औरतें खड़ी थी अपना ब्लाउज सिलवाने के लिए वह दोनों के अंदर आते हैं अंकित और उसकी मां दोनों ब्लाउज वाला थैला लेकर दुकान से बाहर निकल गए और दर्जी कुर्सी पर बैठकर गहरी गहरी सांस ले रहा था। जल्दबाजी में सुगंधा ने सिले हुए ब्लाउज के पैसे भी नहीं चुकाई थी और अब शायद इसकी जरूरत भी नहीं थी।


कपड़े पहनती हुई सुगंधा

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सारी मर्यादाओं की दीवार गिरा कर अपने संस्कारों को ताक पर रखकर सुगंधा अपने बदन की प्राथमिक जरूरत को पूरी कर रही थी और जो उसका हक भी था लेकिन तरीका गलत था क्योंकि वह अपने ही बेटे के साथ शारीरिक सुख भोग रही थी जो कि यह समाज के नजरिए से बिल्कुल गलत था लेकिन अब उसे समाज के परवाह नहीं थी ऐसा नहीं था कि वह समाज के प्रति बिल्कुल लापरवाह हो चुकी थी,,, अच्छी तरह से जानती थी की चारदीवारी के अंदर वह और उसका बेटा क्या कर रहे हैं यह किसी को पता नहीं था इसलिए समाज के नजर में तो वह दोनों मां बेटे ही थे लेकिन घर के चार दीवारी के अंदर वह दोनों मर्द और औरत का सुख भोग रहे थे। कुछ महीने पहले अंकित कभी सोचा भी नहीं था कि उसका जीवन इस तरह से बदल जाएगा इतना तो होता है ताकि एक मर्द होने के नाते एक औरत से उसे शरीर सुख जरूर मिलेगा लेकिन अपनी ही मां से मिलेगा यह कभी उसने सोचा नहीं था। इसलिए मां बेटे तृप्ति की गैर मौजूदगी में घर में जहां चाहे कहां चुदाई का खेल खेलना शुरू कर देते थे बाथरूम में बाथरूम के बाहर रसोई घर में कमरे में घर के पीछे या छत पर कोई भी जगह बची नहीं थी जहां दोनों की चुदाई के किस्से ना लिखे जाते हों,,,, ।

इन सबके बावजूद अंकित के मन में कुछ और अलग करने का कर रहा था जिसके बारे में उसने अपनी मां को का भी दिया था और जिस तरह का अनुभव उन लोगों का था उसे देखते हुए सुगंधा भी नानुकुर करते हुए इस खेल में शामिल हो चुकी थी अब वह दोनों दर्जी की आंखों के सामने चुदाई का सुख भोगना चाहते थे,,, सुगंधा भी इस खेल में शामिल हो चुकी थी उसे भी नए अनुभव की तलाश थी और इससे अच्छा अनुभव से मिलने वाला नहीं था क्योंकि दर्जी की दुकान का अनुभव उसे पहले ही मिल चुका था वह दर्जी की आंखों में अपनी जवानी के टपकते रस को पीने की चाहत देखी थी वह जानती थी कि उसकी मदहोश कर देने वाली जवान देखकर दर्जी की हालात पूरी तरह से खराब हो चुकी थी उम्र के ईस पड़ाव में दर्जी कुछ करने लायक बिल्कुल भी नहीं था लेकिन देख कर जिस तरह का सुख से मिल रहा था उसे देखकर सुगंधा भी मदहोश हो जाती थी। और यही अपनी मदहोशी का वह थोड़ा और बढ़ाना चाहती थी एक नए अनुभव के साथ वह देखना चाहती थी कि अनजान मर्द के सामने चुदवाने में कैसा महसूस होता है। वह इस अनुभव से पूरी तरह से गुजर जाना चाहती थी।

वह देखना चाहती थी कि अनजान मर्द के सामने उसका बेटा उसके साथ किस तरह की शारीरिक हरकत करता है। दर्जी की दुकान में जो कुछ भी हुआ था वह शारीरिक छेड़छाड़ से ज्यादा कुछ नहीं था। सुगंधा इस बात को अच्छी तरह से जानती थी लेकिन यह भी जानती थी कि औरतों की टांगों के बीच पहुंचने का रास्ता ही शारीरिक छेड़छाड़ से शुरू होता है अब तक का सफर तो दर्जी की आंखों के सामने एकदम सही था जिस तरह से उसका बेटा दर्जी की आंखों के सामने उसके अंगों से छेड़खानी कर रहा था दबा रहा था दो अर्थ वाली बातें कर रहा था वह सब कुछ दर्जी के सोच के परे था तू किधर जी कभी सोचा भी नहीं था कि एक अनजान लड़का एक अनजान औरतों के साथ पहली मुलाकात में इस तरह की छेड़छाड़ करने पर उतारू हो जाएगा और वह औरत भी उसे अनजान लड़के की छेड़छाड़ से इतना मजा लेगी,,,, अब ईसी छेड़खानी को अपने बेटे के कहे अनुसार एक घमासान चुदाई में बदलते हुए देखना चाहती थी वह देखना चाहती थी कि उसका बेटा एक अनजान मर्द के सामने कैसे उसके कपड़ों को उसके बदन से अलग करता है,,, कैसे उसकी आंखों के सामने ही अपने मर्दाना अंगों को उसके कोमल अंग में प्रवेश करने की हिम्मत दिखा सकता है और वह खुद कैसे एक अनजान मर्द के सामने उसके नजरिया में अनजान लड़के से चुदवाने के लिए तैयार हो जाती है यही सब देखने के लिए तो सुगंधा बेताब नजर आ रही थी और जब जब इस बारे में सोच रही थी तब तब उसकी बुर पानी छोड़ दे रही थी।

अंकित अपने मन में दर्जी की दुकान की सारी रूपरेखाएं तैयार कर लिया था उसे अच्छी तरह से मालूम था कि वहां क्या करना है बस उसकी मां को अंजान बने रहना है उसे दरजी के सामने यह बिल्कुल भी नहीं जताना है कि वह दोनों पहले से ही एक दूसरे को जानते हैं या दोनों के बीच में रिश्ता क्या है तभी इस खेल का मजा दुगना हो पाएगा,,,, इस बात से मां बेटे दोनों अवगत थे कि वह दर्जी से उन दोनों का दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं था ना ही वह उन दोनों को जानता था नाहीं यह दोनों उस दरजी को भली-भांति जानते थे,,, उस दर्जी से केवल उन दोनों का ग्राहक और अनजान लड़के का ही संबंध था। मां बेटे दोनों इस समय पर उसे दर्जी की दुकान पर पहुंच जाना चाहते थे क्योंकि उस समय पर उसकी दुकान में बिल्कुल भी ग्राहक नहीं रहते थे और यही समय इस जगह था एक नए अनुभव के लिए,,, मां बेटे दोनों जल्दी से तैयार हो चुके थे। वैसे तो सुगंधा साड़ी के नीचे चड्डी नहीं पहनना चाहती थी लेकिन अंकित नहीं उसे चड्डी पहनने के लिए बोला था, क्योंकि वह देखना चाहता था जब वह दर्जी के सामने उसकी चड्डी उतारता है तो दर्जी की क्या हालत होती है और अपने बेटे की बात मानकर सुगंधा ने भी चड्डी पहन ली थी। पीले रंग की साड़ी में सुगंधा कयामत लग रही थी बस अपने हाथों से पीछे ब्लाउज की डोरी नहीं बांध पा रही थी तो अंकित खुद आगे बढ़कर अपनी मां के ब्लाउज की डोरी को बांधने लगा,,, और इस दौरान वह अपनी मां के कंधों पर चुंबनों की बारिश भी करने लगा।

ईस हरकत से अंकित के साथ-साथ सुगंधा भी मदहोश होने लगी,, उत्तेजना के वश होकर अंकित पीछे से अपनी मां को बाहों में भरकर ब्लाउज के ऊपर से ही उसके दोनों चूचियों को दबाना शुरू कर दिया था और अपने पेंट में बने तंबू को अपनी मां के पिछवाड़े से रगडना शुरू कर दिया था। जिस तरह के हालात थे उसे देखते हुए मां बेटे दोनों पूरी तरह से उत्तेजित होने लगे और अंकित अपने आप पर काबू नहीं कर पा रहा था । इसलिए वह किसी से मैं अपनी मां की साड़ी को ऊपर की तरफ उठाने लगा और सुगंधा का भी मन होने के बावजूद वह अपने बेटे का दोनों हाथ पकड़ कर उसे रोक दी और बोली,,,।

अगर यही सारा जोश दिखा देगा तो दर्जी की दुकान पर क्या करेगा,,, कहीं ऐसा ना हो कि दरजी की आंखों के सामने टांय-टांय फिश हो जाए,,,,‌

अरे ऐसा बिल्कुल भी नहीं होगा तुम साड़ी तो उठने दो,,,(ऐसा बोलते हुए अंकित फिर से अपनी मां की साड़ी को ऊपर की तरफ उठाने लगा तो फिर से उसकी मां उसे रोकते हुए बोली,,,)

नहीं अभी नहीं अब जो कुछ भी होगा दर्जी की दुकान में ही होगा इस तरह से तो मेरा जोश ठंडा पड़ जाएगा।

ओहहहहह इसका मतलब मेरी रानी दर्जी की आंखों के सामने चुदवाने के लिए बेताब है।

अब तू आग ही ऐसी लगा दिया है तो कर भी क्या सकती हूं,,,,,।

तो फिर चलो मेरी रानी दैर किस बात की है,,,।

तो चल मेरे राजा रोका किसने है,,, लेकिन 1 मिनट,,,

अब क्या हुआ,,,?

पहले अपने राजा को तो,,,,(उंगली से अपने बेटे की पेंट की तरफ इशारा करते हुए जिसमें अच्छा खासा तंबू बना हुआथा) बैठने के लिए बोल इस हाल में बाहर जाएगा तो कोई देख लेगा तो क्या सोचेगा,,,,

अरे यार यह साला बैठने का नाम ही नहीं ले रहा है इसीलिए तो तुम्हारी बुर में डाल रहा था।

समझा इस कहानी सारा भेद न खोल दे,,,,।

रुको मैं अभी ठीक कर देता हूं,,,,(इतना का करो अपनी मां के कमरे से बाहर निकलने लगा तो सुगंध भी उसके साथ कमरे से बाहर आ गई और अंकित अपनी मां की आंखों के सामने ही बाथरूम के बाहर ही जहां पर पानी जाने के लिए नाली बना हुआ था जहां पर कभी-कभी सुगंधा ही बैठकर पेशाब कर लेती थी वही तो खड़े-खड़े पेशाब करने लगा,,, सुगंधा दोनों हाथ को आपस में बांधकर खड़ी होकर मुस्कुरा रही थी वह अपने बेटे के लंड को देख रही थी जो कि इस समय पूरी औकात में आकर खड़ा था और अंकित उसे हाथ में लेकर हिलाते हुए मुत रहा था,,,, अंकित अपनी मां की तरफ देखते हुए बोला,,,)

तुम्हारे साथ रहने पर यह बैठने का नाम ही नहीं लेता।

हां लग तो ऐसा ही रहा है इसकी ड्यूटी कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है,,,।

हां पहले सिर्फ मुतने के काम आता था,,,, लेकिन अब यह दिन रात तुम्हारी सेवा में लगा रहता है इसलिए इसका ऐसा हालत है।

चल कोई बात नहीं मेरे लिए दिन रात ड्यूटी करेगा तभी तो तनख्वाह भी बराबर मिलती रहेगी।

तनख्वाह के लिए ही तो ड्यूटी पर लगा हुआ है। (इतना कहते हुए अंकित पेशाब कर चुका था और अपने लंड को पकड़ कर झांकते हुए आखिरी पेशाब की बूंद को भी नीचे गिरा देना चाहता था,,, लेकिन अंकित के इस हरकत पर सुगंधा सिहर उठी थी अगर इस समय बाहर न जाना होता तो वह खुद अपने घुटनों के बल बैठकर उसके लंड को अपने मुंह में लेकर चूसना शुरू कर देती,,,,,,, थोड़ी देर में मां बेटे दोनों घर से बाहर निकाल कर और दरवाजे पर ताला लगा कर ऑटो का इंतजार कर रहे थे थोड़ी ही देर में उन दोनों को ऑटो भी मिल गया था अंकित जानबूझकर थोड़ा पहले घर से निकला था ताकि वह अपनी मां से पहले दर्जी की दुकान पर जा सके और कुछ बातचीत कर सके अंकित को पूरा यकीन था कि दरजी उसकी बात को मान जाएगा आखिरकार बुढ़ापे में कुछ कर नहीं सकता था तो अपनी आंखों से देख कर मजा तो ले सकता था। और यह भी देखता कि आजकल की औरतें कितनी बेशरम हो चुकी है। थोड़ी बहुत और बातें थी जिस मां बेटे ऑटो में बैठे-बैठे साझा कर रहे थे। थोड़ी ही देर में दोनों ऑटो से उसे दर्जी की दुकान से थोड़ा सा पहले एक चौराहे पर पहुंच गए जहां पर उन्होंने रिक्शा रुकवा कर वहीं पर उतर गए और प्लान के मुताबिक अंकित अपनी मां से पहले ही पैदल चलता हुआ उसे दुकान में पहुंच चुका था और यह देखकर उसके खुशी का ठिकाना न था कि आज भी इस समय पर दुकान में कोई नहीं था दुकान पर पहुंचते ही वह दुकान में दाखिल होते हुए दर्जी की तरह देखकर मुस्कुराया और बोला।

नमस्कार चाचा जी,,,,


अरे बेटा तुम आओ आओ,,,, आज कैसे आना हुआ,,,,(दर्जी भी अंकित की तरफ देखकर मुस्कुराया और उत्साहित होता हुआ बोला,,, अंकित भी बात को गोल-गोल घुमाए बिना ही बोला)

अरे भूल गए चाचा जी आज हुआ औरत आने वाली अपना ब्लाउज लेने,,,, कहीं वह आकर चली तो नहीं गई।
(अंकित की बात सुनकर वह दर्जी मुस्कुराया और मुस्कुराते हुए बोला)

नहीं नहीं बेटा अभी तक तो आई नहीं है हो सकता है अब आने वाली हो,,,,, लेकिन तुम्हें उससे क्या काम है,,,,(दर्जी भी उत्सुकता दिखाते हुए बोला)

भूल गए चाचा जी उस दिन क्या हुआ था कितना मजा आया था उस औरत का नाप लेने में,,,।
(अंकित की बात सुनकर दर्जी भी जैसे किसी ख्याल में खो गया था और उसे दिन की हरकत के बारे में सोचने लगा था उसके चेहरे पर उसे दिन की हरकत याद आते ही चमक बढ़ने लगी थी और वह मुस्कुराते हुए बोला)


कैसे भूल सकता हूं बेटा उसे औरत ने तो मेरी भी हालत खराब कर दी है दिन रात मेरे सपने में आती है।


क्या कह रहे हो चाचा वैसे तुम्हारा कहना भी ठीक है जब उसे औरत ने इस उम्र में तुम्हारी हालत खराब कर दी है तो सोचो मेरी क्या हालत कर दी होगी,,, अब तुमसे क्या छुपाना चाचा रात भर उसकी याद में लंड पकड़ कर हिलाना पड़ता है,,,, कसम से ऐसी औरत अगर बिस्तर पर मिल जाए तो मजा ही आ जाए।

लेकिन आज क्या करने आए हो बरखुदार,,,,


आज किस्मत आजमाने आया हूं,,,,, अगर आज किस्मत ने साथ दिया तो तुम्हारी इसी दुकान में आज उसकी चुदाई करूंगा और तुम्हारी आंखों के सामने।
(इतना सुनते ही वह दरजी जोर-जोर से हंसने लगा और हंसते हुए ही बोला,,,)


पागल हो गए हो क्या बेटा तुम्हें क्या लगता है कि वह औरत इस दुकान में मेरी आंखों के सामने तुम्हें करने देगी,,,,।

हां बिल्कुल चाचा मुझे पूरा विश्वास है उसे दिन मैं उसके बदन की प्यास को समझ गया था वह अंदर से बहुत प्यासी है,,,,,।

चाहे जो भी हो बेटा इस तरह से कोई औरत अनजान लड़के से और अनजान आदमी के सामने यह सब करना बिल्कुल भी पसंद नहीं करेगी।

अगर मैं करके दिखा दिया तो,,,,।

अगर,,,, (थोड़ा सोचने के बाद) तुमने वाकई में ऐसा कर दिखाया तो जो बोलोगे वह हार जाऊंगा,,,,,

चलो फिर तय हुआ और अगर मैं ऐसा नहीं कर पाया तो मैं तुम्हें ₹500 दूंगा नगद,,,,,।

चलो मंजूर है,,, (फिर से वह हंसते हुए बोला अंकित उसके हंसने के मतलब को अच्छी तरह से समझ रहा था क्योंकि वह जानता था कि कोई भी औरत इस तरह से अपने जिस्म का सौदा नहीं करती किसी अनजान मर्द से अनजान दुकान में और अनजान आदमी के सामने चुदवाने के लिए कभी तैयार नहीं होगी,,, लेकिन यह तो सिर्फ दर्जी के नजरिए से था उसकी नजर में अंकित और सुगंधा तो अनजान ही थे और उसका कहना सत प्रतिशत सच था लेकिन इस बात से वह अनजान था कि यह खेल मां बेटे दोनों मिलकर खेल रहे थे इसलिए उसकी दुकान में चुदाई होना निश्चित था।)

लेकिन थोड़ा बहुत तुम्हें मेरा साथ देना होगा बस मेरी हां में हां मिलाना है,,,,।

चलो कोई बात नहीं इतना तो मैं कर ही सकता हूं,,, (ऐसा कहते हुए वह धोती के ऊपर से अपने लंड को खुजलाने लगा था शायद वह आने वाले समय के बारे में सोच कर मस्त हो रहा था,,,,)

वैसे चाचा जी आज वह आएगी तो सही ना,,,,


आना तो चाहिए क्योंकि डिलीवरी आज ही देनी थी और वैसे भी मैं उसे जानता नहीं हूं नई-नई ग्राहक है। अगर पहले पता होता तो शायद मुफ्त में उसको ब्लाउज सी कर देता बदले में मैं भी उसकी चुदाई कर देता,,,,।

वह चाचा जी मान गए,,,, वैसे चाचा जी सच-सच बताना इस उम्र में खड़ा होता है कि नहीं।
(इतना सुनकर वह दर्जी फिर से हंसने लगा और हंसते हुए बोला)

हो तो जाता है लेकिन बहुत कोशिश करना पड़ता है।

चलो कोई बात नहीं अगर खड़ा हो गया तो तुम भी मजे ले लेना।

(इतना सुनकर वह फिर से जोर-जोर से हंसने लगा)

अच्छा चाचा जी आज भी ग्राहक नहीं है क्या बात है,,,?

तुम्हारी किस्मत बहुत तेज है तुम ऐसे समय पर आते हो जिस समय ग्राहक बिल्कुल भी नहीं रहते और तुम्हारी किस्मत का सितारा कितना बुलंद है यह भी देखना बाकी है अगर वह इस समय आ गई तो मैं भी समझ जाऊंगा कि तुम्हारी किस्मत का तारा बहुत बुलंद है।

लग तो ऐसा ही रहा है चाचा जी लेकिन एक और गुजारिश है,,,,।

बोलो आज तो तुम्हारी हर एक हसरत को पूरा कर दूंगा जो कुछ भी मेरे बस में होगा।

है तो तुम्हारे ही बस में अगर वह आ गई तो दुकान का दरवाजा मैं बंद कर दूंगा अगर तुम्हें एतराज ना हो तो।


बिल्कुल बेटा इसमें एतराज वाली कौन सी बात है आखिरकार सब कुछ सही हुआ तो मुझे भी कुछ देखने को मिल जाएगा बरसों से आंखें तरस गई है।

बहुत बड़े उस्ताद हो चाचा जी,,, (इतना कहकर अंकित हंसने लगा,,,,, थोड़ी देर तक वह दोनों इधर-उधर की बातें करते रहे अंकित बार-बार दरवाजे की तरफ देख रहा था तकरीबन 20 मिनट गुजारने के बाद ही सुगंधा दुकान की सीढ़ियां चढ़ रही थी,,,, और उसे पर सबसे पहले नजर दर्जी की गई दरजी एकदम से उत्साहित हो गया और अंकित की तरफ देखते हुए बोला)

वह बेटा तुम्हारी तो किस्मत का तारा सच में बहुत बुलंद है,,,, अब आएगा मजा,,,।


बस चाचा जी इसी पल का तो इंतजार था,,,,,।

(दुकान में दाखिल होते हुए सुगंधा दर्जी की तरफ देखते हुए बोली,,,)

चाचा जी मेरा ब्लाउज तैयार है,,,,


बिल्कुल तैयार है तुम बैठो मैं लेकर आता हूं,,,, (इतना कह कर दरजी धीरे से कुर्सी पर से उठा और दरवाजा खोलकर अंदर की तरफ चला गया उसके जाते ही मां बेटे दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुराने लगे और अंकित अपना अंगूठा ऊपर करके सब कुछ ठीक है यह दर्शाने लगा,,,, और एक अच्छा सा ब्लाउज अपने हाथ में ले लिया जिसकी डिजाइन बहुत ही बेहतरीन थी और जैसे ही वह दर्जी सिल हुआ ब्लाउज लेकर आया उसे देखते ही अंकित दर्जी से बोला,,,)

उस्ताद मैडम को यह ब्लाउज पसंद आया है इसकी डिजाइन बहुत ही बेहतरीन लग रही है और मैडम जी इस तरह का ब्लाउज सिलवाना चाहती है।


तो क्या हुआ इसमें दिक्कत क्या है आखिर कल ब्लाउज सिलने के लिए तो हम लोग बैठे हैं यहां पर,,,,, (सिल्वर ब्लाउज को काउंटर पर रखता हुआ दरजी बोला और धीरे से कुर्सी पर बैठ गया,,,, और अंकित थोड़ा सा गंभीर होता हुआ दर्जी से बोला)

लेकिन उस्ताद मैडम जी का नाम और इस ब्लाउज का नाप अलग है और आप तो जानते हैं की नाप लेने के लिए अगर ऐसा ब्लाउज सिलवाना है तो क्या करना होता है,,,,।
(अंकित दर्जी की तरफ देख रहा था लेकिन दरजी समझ नहीं पा रहा था कि उसे क्या बोलना है लेकिन फिर भी और थोड़ा दिमाग लगाकर बोला)

हां तो सब कुछ बता दो अगर सिलवाना है तो,,,,
(दर्जी की बात सुनकर अंकित मुस्कुराने लगा और अपनी मां की तरफ देखकर बोला)

देखिए मैडम अगर आपको इतनी बेहतरीन डिजाइन का ब्लाउज सिलवाना है जो कि एकदम नाप का हो तो इसका नाप देना होगा लेकिन कहते हुए मुझे थोड़ा शर्म आ रही है,,,,,।

शर्म कैसी शर्म,,, मैं कुछ समझी नहीं,,,,!

देखिए मैडम जी इस तरह का ब्लाउज हम दो-तीन कस्टमर के लिए ही सिलते हैं जो कि हमारे खास हैं और उनके कहने के मुताबिक ही इस तरह का ब्लाउज सिला जाता है अगर आपको भी ऐसा ब्लाउज सिलवाना है तो आपको अच्छी तरीके से नाप देना होगा ताकि ब्लाउज पहनने के बाद आपको कोई शिकायत ना रह जाए।


हां तो दिक्कत क्या है ले लो ना नाप ,नाप लिए बिना कैसे सिलोगे,,,,।

आप समझ नहीं रही है इसका नाम देने के लिए आपको अपना ब्लाउज उतरना होगा तभी ठीक से नाप ले पाऊंगा,,,,,,।
(अंकित की बात सुनकर दरजी के माथे से पसीना टपक रहा था उसकी हालत खराब हो रही थी,,,, सुगंधा दर्जी की तरफ सवालिया नजरों से देखने लगी। अंकित की हिम्मत देखकर दरजी भी थोड़ा जोश में आ गया था लेकिन थोड़ा घबरा भी रहा था लेकिन जिस तरह से सुगंध उसकी तरफ देख रही थी दरजी को बोलना ही पड़ गया,,, की)

यह सच कह रहा है इसलिए हम यह ब्लाउज किसी और के लिए नहीं सिलते जिसके लिए अभी सिलते हैं उन्हें इस तरह का नाप देना पड़ता है और हम सामने से नहीं बोलते हैं किस तरह का ब्लाउज हम सिलना चाहेंगे यह सही कह रहा है हमारे पास दो-तीन ही ग्राहक ऐसे हैं जिनके पास इस तरह का ब्लाउज है,,, अगर तुम्हें भी इस तरह का ब्लाउज सिलवाना है तो ब्लाउज उतार कर ही नाप देना होगा,,,,, (ब्लाउज उतार कर बोलते हुए दर्जी की हालत खराब हो रही थी और वह अपने हाथ से अपने लंड को हल्के से मसलते हुए बोल रहा था और उसकी हालत को देखकर सुगंध मन ही मन प्रसन्न हो रही थी,,, लेकिन फिर भी वह सहज बनी रही वह अपने चेहरे पर हैरानी के भाव लाते हुए बोली)

क्या कह रहे हैं,,,,?

देखिए मैडम जी,,, यह ब्लाउज की डिजाइन है इतनी खास है कि जो कोई भी कस्टमर यहां ब्लाउज सिलवाने आती है उसकी नजर इस पर पड़ी ही जाती है लेकिन हम लोग खुद इनकार कर देते हैं हम आपको भी इंकार कर सकते थे लेकिन हमें मालूम है कि यह ब्लाउज आपके ऊपर और भी ज्यादा खूबसूरत लगेगा इसलिए हम सब यह बता रहे हैं वरना बात आई गई हो जाती है।


सच में डिजाइन तो बहुत अच्छी है लेकिन,,,,


लेकिन क्या मैडम जी मुझे मालूम है कि तुम्हारे शरीर पर यह ब्लाउज बहुत खूबसूरत लगेगा और तुम्हारी खूबसूरती भी और भी ज्यादा बढ़ जाएगी इसलिए हीचकीचाए बिना नाप दे दीजिए सिलवा लीजिए यह ब्लाउज,,,।

लेकिन ब्लाउज उतार कर,,,!


तो इसमें क्या हो गया देखो ब्लाउज उतरवा कर हम लोग इसलिए नाप लेते हैं ताकि गोलाई का सही माप समझ में आ सके और तभी आरामदायक ब्लाउज हम लोग सी पाते हैं और अगर ब्लाउज के ऊपर दोगी तो दो-तीन डोर इधर-उधर हो जाएगा। तब आपको भी मजा नहीं आएगा पहनने में।

क्या सच में औरतें इस तरह से नाप देती है।(थोड़ा शंका जताते हुए वह बोली)



तो क्या मैडम जी,,,, जैसे डॉक्टर और वकील से कुछ नहीं छुपाना चाहिए इस तरह से दर्जी से भी कुछ नहीं छुपाना चाहिए तभी तो वह सही नाप का ब्लाउज सिलकर दे पाएगा,,,,

(अंकित और सुगंधा की बातों को सुनकर दरजी के माथे पर तो पसीना उपस आया था इस उम्र में उसकी हालत खराब हुई जा रही थी और सुगंधा के हाव-भाव को देखकर वह समझ गया था कि यह जल्द ही तैयार हो जाएगी नाप देने के लिए,,,, इसलिए आने वाले पल के बारे में सोचकर उसका दिल जोरो से धड़क रहा था। दर्जी को अंकित पर पूरा यकीन हो गया था कि वह अपनी बातों में उसे औरत को जाल में फंसा लेगा,,,, जबकि ऐसा होना निश्चित था क्योंकि दरजी नहीं जानता था कि यह दोनों केवल नाटक कर रहे हैं असल में दोनों मां बेटे हैं और अगर इस बात को वह जान लेता कि यह दोनों मां बेटे हैं तो उसके दिल पर क्या गुजरती वह तो कभी सोच भी नहीं सकता था की मां बेटे के बीच में इस तरह का रिश्ता भी हो सकता है क्योंकि वह उम्र दराज था और शायद इस अनुभव से वह गुजरा ना हो या यह भी हो सकता है कि, वह भी इस तरह का अनुभव ले चुका हूं खैर यह तो बात की बात थी लेकिन अभी जो हालात दुकान में बने हुए थे वह पूरी तरह से दरजी को गर्म किए हुए था,,, दर्जी क्या खुद मां बेटे की पूरी तरह से उत्तेजना के परम शिखर पर विराजमान हो चुके थे सुगंधा की बुर बार-बार पानी छोड़ रही थी तो अंकित का लंड पेंट में तंबू बना चुका था,,,, एक बार फिर से गहरी सांस लेते हुए सुगंधा अपनी सारी शंकाओं को दूर करते हुए बोली,,,)

क्या सच में ऐसा करना होगा,,,,!

देखो मैडम इस ब्लाउज के लिए हम सबको नहीं बताते जिन्हें यह डिजाइन पसंद आ भी जाती है तो उन्हें कभी भी हम इस तरह का ब्लाउज सिलकर नहीं देते क्योंकि हम भी शरीर का गठीलापन देखते हैं हमारी आंखों से पता चल जाता है कि यह ब्लाउज किसके बदन पर ज्यादा खूबसूरत लगेगा कहीं किसी को भी यह ब्लाउज पसंद आ गया और वह पहले हो लेकिन उसके ऊपर वह डिजाइन अच्छी ना लगती हो या उसके गोली के माफिक ना आती हो तब तो हम लोगों का धंधा खराब हो जाएगा इसलिए हम लोग इस ब्लाउज के बारे में उन्हें कस्टमर से बात करते हैं जो इस ब्लाउज के लायक होते हैं और इस समय तुम इस ब्लाउज के लायक हो तुम पहनोगी तो ऐसा लगेगा कि जैसे कोई अप्सरा ब्लाउज पहनी हुई हो।

धंधा करना कोई तुमसे सीखे कितनी चिकनी चुपड़ी बातेंकरते हो,,,,(सुगंधा मुस्कुराते हुए बोली)

नहीं नहीं मैडम जी चिकनी चुपड़ी बातें मैं नहीं कर रहा हूं जो हकीकत है वही कह रहा हूं क्यों चाचा जी मैं ठीक कह रहा हूं ना मैडम किसी फिल्म की हीरोइन नहीं लगती है,,,,।

बात तो तुम एकदम ठीक कह रहे हो बेटा मैडम को देखते ही मुझे तो अपने जमाने की फिल्मों की हीरोइन याद आ जाती है।
(दर्जी एकदम मस्त होता हुआ बोला उधर जी की बात सुनकर सुगंधा मन ही मन खुश हो रही थी उसे एहसास हो रहा था कि दरजी उसकी जवानी के जाल में पूरी तरह से लपटता जा रहा है,,,, सुगंधा एक बार फिर से हल्के से मुस्कुराते हुए लेकिन दरवाजे की तरफ देखते हुए बोली,,,,)


मैं तैयार हूं लेकिन,,, क्या नाप यहीं पर देना होगा,,,,!

(अंकित अपनी मां के ईशारे को समझ गया था इसलिए वह एकदम से उत्साहित होता हुआ बोला,,)

जी बिल्कुल,,,,


लेकिन,,,,(फिर से दरवाजे की तरफ देखते हुए वह बोली तो अंकित एकदम से दर्जी की तरफ देखतेहुए बोला,,,)

मैं समझ गया मैडम आप चिंता ना करें मैं अभी दरवाजा बंद किए देता हूं,,,।

हां बेटा दरवाजा बंद कर दो वैसे भी इस समय कोई ग्राहक आता नहीं है,,,,,।
(गहरी सांस लेता हुआ वह दर्जी बोला क्योंकि अब उसकी भी हालत खराब होने वाली थी उसकी आंखों के सामने जो उसने अब तक नहीं देखा था ऐसा दृश्य दिखने वाला था,,, वैसे तो वह भी जीवन में संभोग सुख से वंचित नहीं होगा लेकिन यह निश्चित था के उसने अपनी जिंदगी में इतनी खूबसूरत औरत की नंगी चूचियों को नहीं देखा होगा और नहीं कभी अपनी आंखों के सामने इतनी खूबसूरत औरत को एक नौजवान लड़के से अपने ही बेटे की उम्र के लड़के से चुदवाते हुए देखा होगा इसलिए उसके तन बदन में भी उत्तेजना की लहर दौड़ रही थी या यूं कह लो कि उत्तेजना का तूफान आ रहा था,,,, अंकित भी बिल्कुल भी देर नहीं करना चाहता था इसलिए वह जल्दी से जाकर दरवाजा बंद कर दिया था इस बात का एहसास उसे अच्छी तरह से था कि दरवाजा बंद होने के बाद दुकान के अंदर केवल वह और उसकी मां के साथ-साथ केवल दर्जी ही होगा और कोई नहीं होगा क्योंकि वह दर्जी की हालत को अच्छी तरह से समझ रहा था,,,, उसे अच्छी तरह से मालूम था कि उन दोनों को संभोग रत देखकर दर्जी भी पूरी तरह से मदहोश हो जाएगा उत्तेजित हो जाएगा लेकिन वह कुछ कर सकते की स्थिति में नहीं होगा क्योंकि उम्र का तक आज जो है और वैसे भी अगर उसकी जगह कोई और होता तो शायद यह खतरा अंकित कभी सर मोल ना लेता क्योंकि एक खूबसूरत जवान से भरी हुई औरत को नंगी देखकर कोई कुछ भी कर सकता है।

अंकित जल्दी से दरवाजा बंद करके वापस अपनी जगह पर आ चुका था सुगंधा की हालत खराब हो रही थी क्योंकि अब उसे वह कर रहा था जो उसने आज तक कभी नहीं की थी। अंकित बिल्कुल भी देर ना करते हुए वह सीधा मुद्दे की बात पर आते हुए बोला।

मैडम जी अब जल्दी से अपना ब्लाउज उतार दो,,,।

(अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा के तन बदन में मदहोशी का रस घुलने लगा,,, वह जानबूझकर दर्जी की तरफ सवालिया नजरों से देखने लगी तो अंकित ही बोला,,,)

आप बिल्कुल भी चिंता ना करें मैडम चाचा जी के देखरेख में ही नाप लिया जाता है ।

(उत्तेजना के हमारे सुगंधा का गला सूख रहा था वह अपने थूक से अपने गले को गिला करने की कोशिश करते हुए अपने दोनों हाथ उठाकर साड़ी के आड़ में ही अपने ब्लाउज का बटन खोलने लगी यह देखकर अंकित दर्जी की तरफ मुस्कुराता हुआ देखने लगा तो दर्जी भी आंखों से ही ईसारा किया कि मान गए उस्ताद असली उस्ताद तो तू ही है,,,, क्योंकि दर्जी ने कभी सोचा नहीं था कि वाकई में वह नौजवान लड़का है ऐसा कुछ कर पाएगा अब तो उसकी हालत और भी ज्यादा खराब होने लगी थी वह सुगंधा की तरफ देख रहा था सुगंध अपनी नाजुक उंगलियों से अपने ब्लाउज का बटन खोल रही थी,,, सच कहा जाए तो दर्जी को इस तरह का दृश्य देखे लगभग तीन दशक बीत चुके थे,,,, अपनी पत्नी के देहांत के बाद वह अपना सारा ध्यान सिर्फ अपने धंधे में ही लगाया था औरतों की तरफ उसका ध्यान गया ही नहीं था इसलिए तो आज अपनी आंखों के सामने इस तरह का दृश्य देखकर वह पागल हुआ जा रहा था लेकिन वह लाचार था कि उसकी मर्दाना अंग अब जवाब दे दिया था उम्र का तकाजा उसके मर्दाना अंग को शिथिल कर दिया था,,,,

सुगंधा धीरे-धीरे ब्लाउज का बटन खोल रही थी और उसकी चूड़ियों की खनकी की आवाज से पूरी दुकान मदहोशी के रस में डुबी जा रही थी,,,, अंकित की हालत खराब हो रही थी अंकित भी अपनी मां को इस तरह से ब्लाउज का बटन खोलता हुआ देखकर अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव कर रहा था जबकि उसके लिए यह दृश्य कोई पहली बार का बिल्कुल भी नहीं था लेकिन फिर भी आज का माहौल ही कुछ ऐसा था कि अंकित को सब कुछ पहली बार जैसा लग रहा था वह एक अनजान आदमी के सामने अपनी मां को ब्लाउज का बटन खोलता हुआ देख रहा था इससे उसकी उत्तेजना और भी ज्यादा बढ़ गई थी उसका लंड पेंट में तंबू बना चुका था जिसे वह बार-बार अपने हाथ से दबाने की कोशिश कर रहा था और सुगंधा नजर नीचे का हुए धीरे-धीरे अपने ब्लाउज के सारे बटन को खोल चुकी थी,,,, सुगंधा को अच्छी तरह से महसूस हो रहा था कि उसकी पेंटि पूरी तरह से गीली हो चुकी थी,,, ब्लाउज का बटन खोलकर अंकित की तरफ देखने लगी और बोली।)

अब ठीक है,,,,!

इसे उतार तो दो तभी ना अच्छे तरीके से नाप ले पाऊंगा,,,,।
(सुगंधा के पास इनकार करने का कोई कारण नहीं था वह अंकित की बात मानते हुए अपने ब्लाउस को उतार दी और वही काउंटर पर रख दी और इस समय वह साड़ी के पल्लू की आड़ में अपनी दोनों जवान को छुपाने की नहीं बल्कि दिखाने की कोशिश कर रही थी लेकिन अपने हाथों से नहीं बल्कि अपनी पारदर्शी साड़ी से,,, दर्जी पागल हो जा रहा था क्योंकि पारदर्शी साड़ी से उसकी दोनों चूचियां पीले रंग की ब्रा में एकदम साफ दिखाई दे रही थी,,,,, और उस दरजी को यह भी एहसास हो रहा था कि उसकी बड़ी-बड़ी चूची है उसके छोटे से ब्रा में ठीक तरह से समा नहीं पा रही थी जिससे उसकी आदत से भी ज्यादा चूचियां बाहर दिखाई दे रही थी और यह देखकर वह मन ही मन दुआ कर रहा था कि काश वह अपनी साड़ी के पल्लू को हटा ले तो सब कुछ देखने को मिल जाए और ऐसा लग रहा था कि जैसे उसकी बात अंकित सुन रहा था और इस बार अंकित एकदम से अपना हाथ आगे बढ़ाया और अपने हाथ से ही उसका पल्लू हटाते हुए बोला,,,)

पल्लू को तो हटा दो ताकि तेरी तरह से दिखाई दे और मैं अच्छे से नाप ले सकूं,,,,,,(अंकित पल्लू हटा दिया था और यह देखकर दर्जी की हालत खराब होने लगी थी उसे लग रहा था कि वह जरूर कुछ ना कुछ बोले की लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था वह अंकित को कुछ भी नहीं बोली थी बल्कि आगे बढ़ाने की इजाजत दे दी थी यह देखकर तो दर्जी और भी ज्यादा हैरान हो गया था दर्जी अपने मन में ही बोल रहा था कि पता नहीं साली यह सब सच में ब्लाउज सिलवाने के लिए कर रही है कि उसकी बुर में आग लगी हुई है,,, और आज उसकी ही दुकान में हुआ अपनी बुर की आग बुझाना चाहती है। सुगंधा गहरी गहरी सांस ले रही जिसके साथ उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां भी ऊपर नीचे हो रही थी यह देखकर दर्जी का ईमान डोल रहा था और अंकित पर उसे गुस्सा आ रहा था थोड़ी जलन हो रही थी कि काश वह अंकित की जगह होता तो कितना मजा आता,,,,, अंकित अपनी मां की भरी हुई चूचियों की तरफ देखते हुएबोला,,,)

चाचा जी फीता देना तो,,,,

यह लो बरखुदार,,,(अपने गले में लपेटे हुए फीता को अपने हाथ से निकलते हुए आगे बढ़कर अंकित के हाथ में थमाते हुए बोला,,,, अंकित तुरंत दरजी के हाथ में से वह फीता ले लिया,,,, और अपनी मां की चुचियों का नाप लेने के लिए उसके करीब पहुंच गया सुगंधा का दिल जोरो से धड़क रहा था वह बार-बार नज़रे नीचे करके दर्जी की तरफ देख ले रही थी ,दरजी की हालत उससे छुपी नहीं थी,,,, वह समझ सकती थी कि दरजी के दिल पर इस समय क्या गुजर रही होगी ,,,, क्योंकि वह देख रही थी कि बार-बार दर्जी का हाथ उसके दोनों टांगों के बीच पहुंच जा रहा था। अंकित मुस्कुराता हुआ अपनी मां की चूचियों की तरफ देखते हुए बोला,,,,)

बहुत खूबसूरत और बड़े-बड़े गोलाई है आपके,,,,।
(अंकित की बात सुनकर दरजी एकदम सन्न रह गया उसे फिर लगा कि इस बार वह जरूर कुछ ना कुछ बोले की लेकिन वह कुछ बोली नहीं बस मुस्कुरा दी यह देखकर दरजी के तो होश उड़ गए क्योंकि अंकित खुले शब्दों में उसके कस्टमर से बात कर रहा था। और हैरानी वाली बात यह थी कि वह कुछ बोल नहीं रही थी वह मुस्कुरा रही थी जिसका मतलब साफ था कि उसकी बातें उसे अच्छी लग रही थी धीरे-धीरे दर्जी को यकीन होने लगा था कि यह नौजवान लड़का जिसे इरादे से यहां आया है वह अपना इरादा पूरा करके ही जाएगा,,,,,।)

दोनों हाथ फैलाओ,,,,,।

(अंकित की बात मानते हुए सुगंधा अपने दोनों हाथों को खोलकर फैला दी और अंकित एकदम से देखो उसके पीछे की तरफ लाकर उसकी दोनों चूचियों के बीच से वह फीता रखकर नाप लेने लगा वह बार-बार फाइट को कस दे रहा था जिससे सुगंधा एकदम से उसकी तरफ लड़खड़ा कर पहुंच जा रही थी और उसकी दोनों चूचियां अंकित की छाती से स्पर्श हो जा रही थी और यह सब अंकित दरजी को दिखाते हुए कर रहा था इसलिए तो दर्जी की आंखें फटी की फटी रह गई थी उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था थोड़ी देर तक फीते को उसी तरह से पकड़े रहने के बाद वह बोला,,,)

ब्रा का कपड़ा मोटा है ना,,,।

(अंकित के सवाल पर सुगंधा सिर्फ हां मै सिर हिला दी,,,,,)

तब तो मैडम आपको अपनी ब्रा भी उतरना पड़ेगा,,,,।

(यह सुनकर दरजी अपने मन में ही बोला बाप रे यह क्या कह रहा है रे अभी थप्पड़ मार देगी,,,,, लेकिन अपनी बात में उसे दरजी को भी शामिल करते हुए अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला)

क्यों उस्ताद सही कह रहा हूं ना,,,,।
(दर्जी को तो समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या जवाब दे वह आश्चर्य से अंकित की तरफ तो कभी सुगंधा की तरफ देख रहा था तो अंकित ही बोला ,,)


अरे उस्ताद याद है ना अपनी वह बंगले वाली कस्टमर ब्रा पहनकर जिसे अपना नाप दी थी और उसका ब्लाउज खराब हो गया था तो कितनी बहस बाजी हुई थी हम लोगों में और उसके बीच फिर उसके बाद मेरी समझाने पर उसे अपनी ब्रा उतार कर फिर से अपनी नाप दी और तब जाकर उसका ब्लाउज सही से सिल पाए थे,,,,।

अरे हां याद आया,,,,, यह लड़का सही कह रहा है मैडम,,,,, अगर उसका कपड़ा मोटा है तो एक दो डोरा इधर-उधर हो जाएगा तब हमसे ना कहना कि अच्छा नहीं सिले हो,,,,।

(सुगंधा अपने बेटे की चालाकी पर हैरान थी जिसे वह पुत्र समझती थी वह धीरे-धीरे कितना चालाक हो चुका था उसकी चालाकी पर वह मंद मंद मुस्कुरा रही थी और दर्जी की तरफ देखकर मन ही मन उसे गाली देते हुए बोल रही थी,,, साला हरामजादा कितना हारामी है देखो तो सही एक औरत की नंगी चूचियों को देखने के लिए कितना झूठ बोल रहा है,,,,,,,,, फिर भी सुगंधा गहरी सांस लेते हुए बोली।)

क्या इसे भी उतारना होगा,,


बिल्कुल मैडम,,,,,, और थोड़ा जल्दी करिए कस्टमर के आने का समय हो जाएगा तो नाप भी नहीं ले पाऊंगा,,,,,(हाथ में फीता लिए हुए अंकित बोला,, अंकित के कहने के मतलब को सुगंधा अच्छी तरह से समझ रही थी, वह मौके की नजाकत को अच्छी तरह से समझ रही थी वह जानती थी कि उन दोनों के पास समय पर्याप्त नहीं है जो कुछ भी करना था जल्दी करना था अगर कोई कस्टमर आ गया तो पूरा मामला खराब हो जाएगा इसलिए तुरंत अपने हाथ पीछे की तरफ ले जा करके वह अपने ब्रा का हुक खोलने लगी वैसे तो वह बड़े आराम से यह काम कर लेती थी लेकिन इस समय उसके मन में भी कुछ चंचलता चल रही थी। उसके दिमाग में भी खुरापात चल रहा था इसलिए वह अंकित से बोली,,,,)


देखना तो मेरा हुक नहीं खुल रहा है जरा,,,,,(इतना ही कह पाए थे कि अंकित एकदम से उत्साहित होता हुआ बोला)

जी मैडम अभी खोल देता हूं,,,(और इतना कहने के साथ है यह अपनी मां के पीछे जाकर खड़ा हो गया और उसके ब्रा का हुक खोलने लगा यह देखकर तो दर्जी की हालत खराब होने लगी उसे ऐसा महसूस होने लगा कि बिना खड़े हुए ही उसके लंड से पानी निकल जाएगा वह पूरी तरह से मदहोश हो चुका था माथे पर पसीना वापस आया था उसकी सांसे ऊपर नीचे हो रही थी उसे उम्मीद नहीं थी कि वह ऐसा कुछ बोल जाएगी,,,, और थोड़ी ही देर में अंकित अपनी मां की ब्रा का हुक खोल दिया था उसकी ब्रा एकदम से ठीक ही हो गई थी जिसे सुगंध अपने हाथों से बरा का कब पकड़ कर उसे अपनी चूचियों से जैसे किसी फल से उसका छिलका अलग करते हैं इस तरह से उसे अलग करते हुए उसे भी काउंटर पर रख दी उसकी नंगी चूचियां एकदम हाहाकार मचा रही थी दर्जी की नजर उसकी चूचियों पर पड़ी तो वह एकदम से पागल हो गया क्योंकि उसने कभी सोचा नहीं था की चूचियां इस तरह से भी तरासी हुई हो सकती है,,,,, एकदम तनी हुई गोलाकार जरा भी ढीलापन और लचक नहीं था इसलिए तो,,,, दर्जी ठीक तरह से देखने के लिए अपनी जगह से उठकर खड़ा हो गया था पानी पीने के बहाने और नजर भरकर सुगंधा की चूचियों को देखने के बाद में काउंटर पर पड़े ग्लास को अपने हाथ में ले लिया और पानी पीकर अपने सूखते हुए गले को गिला करने की कोशिश करने लगा,,,,, ब्रा का हुक खोलने के बाद अंकित फिर से अपनी जगह पर आ गया था और अपनी मां की चूचियों को देखकर मदहोश होता हुआ बोला,,,)

एक बात कहूं मैडम बुरा मत मानना,,,।

कहो,,,,,


मैंने अपनी जिंदगी में आज तक इतनी खूबसूरत और गोल-गोल चूचियां नहीं देखा,,,,, और शायद हमारी उस्ताद ने भी इतनी खूबसूरत चुची नहीं देखे होंगे,, क्यों उस्ताद,,,,(दर्जी की तरफ देखे बिना ही अंकित बोल और दर्जी अपने मन में ही बोला यह साला मुझे क्यों बीच में घसीट रहा है लेकिन यह बात सच थी दर्जी अपने मन में मान रहा था कि वाकई में उसने नौकरी इतनी खूबसूरत औरत अपनी जिंदगी में अपनी दुकान में देखा था और ना ही इतनी खूबसूरत नंगी चूचियों को देखा था इसलिए तो आश्चर्य से उसकी आंखें फटी पड़ी थी,,,,,, अंकित अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,) अब देखना मैडम ब्लाउज का नाप कितना फिट बैठता है आपकी गोलाईयो पर ना एक डोर आगे और ना एक डोर पीछे एकदम कैसा होगा एकदम आरामदायक पहनोगी तो तुम्हें भी लगेगा कि वहां कितना खूबसूरत ब्लाउज मैं आज पहनी हुं,,,।

सिर्फ बातें करने से कुछ नहीं होता एक बार सील कर दे दो और मैं पहन लूं तब जानू,,,,।

यह बात है,,,, इसका मतलब है मैडम की आप हम पर शक कर रही हैं कि हम लोग इतना अच्छा ब्लाउज सी पाएंगे कि नहीं,,,,।

वह तो है ही,,,,,।

तो लो अभी नाप ले लेता हूं,,,,,(इतना कहने के साथ ही अंकित फिर से पिता को उसके पीछे से घुमाया और फीते की किनारी को और नाप का फीता उसकी दोनों चूचियों के बीच रखते हुए,,, दर्जी की तरफ देखते हुए बोला,,,,)

44,,,,,

(और थूक को निगलते हुए दर्जी नाप नोट करने लगा,,,,,,,, और फिर अंकित कंधे से नीचे की तरफ उसकी चूची हो के नीचे तक नाप लेने लगा ऐसा करते हुए वह जानबूझकर अपनी हथेली का दबाव उसकी नंगी चूचियों पर बढ़ा दे रहा था वह केवल दरजी को दिखा रहा था और दर्जी देखकर हैरान भी था क्योंकि वह औरत कुछ बोल नहीं रही थी इस बात से दर्जी की आंखें आश्चर्य से फटी जा रही थी। तभी अंकीत अपनी मां से बोला,,)

अब मैडम थोड़ा पीछे घूम जाओ,,,,,।

(इतना सुनते ही सुगंधा पीछे की तरफ घूम गई और उसकी पीठ अंकित की तरफ थी और अंकित दर्जी की तरफ देखते हुए अपने दोनों हाथों की हथेलियां को गोल-गोल दबाते हुए इशारा कर रहा था कि अब उसकी चूची दबाएगा,,,, अंकित का इशारा समझते ही दरजी के पसीने छूटने लगे उसे डर था की कहीं ,ईस हरकत पर वह उसे थप्पड़ ना मार दे,,,,,, अंकित फिर से पिता लेकर के अपनी मां की दोनों चूचियों पर रख दिया और इस बार दोनों हाथों से हल्के से अपनी मां की चूची दबा दिया सुगंधा के तन बदन में मदहोशी जाने लगे उसके चेहरे का रंग सुर्ख लाल होने लगा और अपने बेटे की हरकत पर उसके मुंह से हल्की सी आह निकल गई,,,, और उसकी आहह की आवाज दर्जी के कानों तक बड़े आराम से पहुंच गई थी क्योंकि वह जानबूझकर इस तरह की आवाज निकाली थी। इस मदहोश कर देने वाली आवाज को सुनकर दो दर्जी का दिल बड़े जोरों से धड़कने लगा उसे डर लग रहा था कि कहीं उसे दिल का दोरा ना पड़ जाए,,,,,

अभी इस बात को इस मामले को आगे बढ़ाने से कोई मतलब नहीं निकल रहा था,,,,, इसलिए वह दर्जी से बोला,,,,।


पूरा नाप हो गया ना उस्ताद,,,।

हां बिल्कुल तूने अच्छे से नाप ले लिया,,,,(गहरी सांस लेता हुआ वह दर्जी बोला)

तो अब मैं अपने कपड़े पहन लुं,,,,,

कुछ देर और ऐसे ही रहने दो मैडम,,,(और इतना कहने के साथ ही पीछे से ही वह अपने दोनों हाथों में अपनी मां की दोनों चूचियों को भरकर हल्के हल्के दबाने लगा और इस बार फिर से सुगंधा मस्त होते हुए हल्की-हल्की सिसकारी की आवाज लेते हुए बोली,,)


यह तुम क्या कर रहे हो,,,सहहहहह,आहहहहहह छोड़ो मुझे,,,,,।


तुम बहुत खूबसूरत हो मैडम मैं आज तक इतनी खूबसूरत औरत नहीं देखा,,,,।


नहीं देखा तो आज देख लिया ना अब मुझे जाने दो कोई देख लेगा तो गजब हो जाएगा,,,,।

(दर्जी यह सब देखकर मदहोश हुआ जा रहा था और जिस तरह से उसने कोई देख लेगा तो गजब हो जाएगा यह बात कही थी उसे देखकर दरजी को समझते देर नहीं लगी कि आप यह चारों खाने चित हो गई है,,,,)

दरवाजा तो बंद है मैडम अंदर क्या हो रहा है किसी को पता नहीं चलेगा मैं तो पागल हो जाऊंगा तुम्हारी खूबसूरती में डूब जाऊंगा,,,,,,।

नहीं रहने दो ऐसा करना ठीक नहीं है,,,, तुम्हारे उस्ताद,,,(सुगंधा मदहोश होते हुए दर्जी की तरफ देखते हुए बोली)

वह कुछ नहीं बोलेंगे मैडम बस थोड़ी देर और मुझे दबा लेने दो,,,,,,।


सहहहहहवआहहहहह बस थोड़ी देर उसके बाद में चली जाऊंगी,,,,,।

बिल्कुल मैडम चली जाना,,,, लेकिन इतनी खूबसूरत चुची को मैं अपने हाथों से जाने नहीं देना चाहता इसे दबाने का सुख पूरी तरह से भोग लेना चाहता हूं,,,,आहहहहह कितनी बड़ी-बड़ी खरबूजे जैसी चूचियां है मैडम तुम्हारी,,,,, लगता है तुम्हारे पति बहुत मेहनत करते हैं,,,,,,,।

बहुत मेहनत करते हैं तभी तो ऐसी तनी हुई है,,,,,,।(सुगंधा भी मदहोश होते हुए बोली दरजी पूरी तरह से पस्त हुआ जा रहा था वह जानता था कि जिस इरादे से वह लड़का दुकान में आया था वह अपना इरादा पूरा कर लेगा और उसे अपने शर्त हारने का डर बिल्कुल भी नहीं था उसे इस बात की खुशी थी कि आज सब कुछ सही हुआ तो आज वह बेहद खूबसूरत औरत की चुदाई अपनी आंखों से देख पाएगा,,,,)

लेकिन फिर भी मैडम कौन से तेल से मालिश करती हो मुझे भी बता दो ताकि मैं भी मौका आने पर किसी को बता सकूं,,,,।

सरसों के तेल से मालिश करती हूं दिन में दो बार तभी तो एकदम गोल है,,,,,


ओहहहहह मैडम तभी तो तुम एकदम हीरोइन की तरह लग रही हो,,,,(अंकित पागलों की तरह अपनी मां की दोनों चूचियों को दबाते हुए बोला उसके इस तरह से स्तन मर्दन से सुगंधा एकदम चुदवासी हुए जा रही थी,,,,,, उसकी बुर से लगातार मदन रस का बहाव हो रहा था,,,, अंकित जितना हो रहा था उतनी जोर-जोर से अपनी मां की चुचियों को दबा रहा था और दर्जी को ऐसा दिख रहा था कि वाकई में यह च उसके हाथ में पहली बार आई है कुछ देर तक इसी तरह से दबाने के बाद सुगंधा भी नाटक करते हुए बोली,,,)

बस अब हो गया ना अब मुझे कपड़े पहन लेने दो,,,(इतना कहते हुए सुगंधा खुद ही घूम गई और अंकित गहरी गहरी सांस लेता हुआ अपनी मां की चूचियों को ही देखता रह गया और खुश होता हुआ बोला)

बहुत मजा आया आज का दिन मुझे जिंदगी भर याद रहेगा,,,,,।

मुझे भी जिंदगी भर याद रहेगा की मुझे इस तरह के दरजी मिले थे,,,(ब्रा को अपने हाथ में लेकर उसे पहनना ही वाली थी कि अंकित बोला)

मैडम बुरा ना मानो तो क्या मैं एक बार इसे मुंह में लेकर पी सकता हूं,,,,,,,।(अंकित की बात सुनकर तो दरजी के होश उड़ गए उसकी सांस उखड़ रही थी उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसकी आंखों के सामने यह सब क्या हो रहा है लेकिन उसे भी बहुत मजा आ रहा था बस वह अपनी उम्र और शरीर को लेकर परेशान था वरना इस खेल में वह भी कूद गया होता अंकित की बात सुनकर सुगंधा अंकित की तरफ देखने लगी और फिर अपनी छातियो को उभारते हुए बोली,,,)

लो लेकिन ज्यादा देर तक नहीं,,,,।
(बस क्या था अंकित तो पूरी तरह से अपनी मां की दोनों चूचियों पर टूट पड़ा और बारी-बारी से दोनों चूचियों को मुंह में लेकर पीना शुरू कर दिया दर्जी अपने मन में ही कह रहा था कि वाकई में यह औरत एकदम चुडक्कड़ है यह नौजवान लड़का सही कह रहा था,,,, अंकित तो पागल हुआ जा रहा था लेकिन उसकी मां भी मदहोश हो चुकी थी एकदम छिनार बन चुकी थी एकदम रंडी की तरह एक अनजान आदमी के सामने अपने बेटे से अनजान बनकर मस्ती के सागर में डुबकी लगा रही थी। उसे भी बहुत मजा आ रहा था उसका बेटा सच कह रहा था कि इस खेल में बहुत मजा आएगा वह अपने मुंह से गरमा गरम शिकारी की आवाज निकाल कर दर्जी की हालत को और ज्यादा खराब कर रही थी,,,, तकरीबन 10 मिनट तक अपनी मां की चूचियों को पीने के बाद वह धीरे से अपना एक हाथ नीचे की तरफ लेकर और साड़ी के ऊपर से ही अपनी मां की बुर को मसलने लगा,,,, यह देख कर तू दरजी के बदन में आग लग गई अब बैठे-बैठे इस नजारे को देखना उचित नहीं खाऊंगा उठकर खड़ा हो गया था और खड़े-खड़े देख रहा था उसे समझ में आ गया था कि यह औरत वाकई में बहुत ज्यादा चुदवासी है वह अपने मन में ही सोचने लगा है तो बड़े घर की लेकिन शायद इसका पति से खुश नहीं कर पाता है इसीलिए इस तरह से मजा ले रही है,,,,, अंकित पागलों की तरह साड़ी के ऊपर से अपनी मां की बुर को दबा रहा था मसल रहा था अपनी हथेली में तो बोल रहा था जिससे सुगंधा पानी पानी हो रही थी लेकिन कुछ देर बाद वह जानबूझकर एकदम से अपने बेटे से अलग होते हुए बोली,,,,)


बस अब ज्यादा नहीं,,,,(गहरी सांस लेते हुए सुगंधा पूरी और धीरे से अपनी ब्रा को पहनने लगी इस बार वह खुद ही अपने दोनों हाथों को पीछे की तरफ ले जाकर के अपनी ब्रा के हक को बंद कर ले और अंकित अपनी मां का ब्लाउज लेकर उसके सामने खड़ा था उसे थमाने के लिए लेकिन प्लेान के मुताबिक दोनों एक दूसरे की तरफ देख रहे थे एक दूसरे की आंखों में देख रहे थे,,,,, दर्जी भी यह सब देख रहा था उसे लगने लगा था कि आज वह शर्त जीत जाएगा लेकिन शर्त जीतने की खुशी उसके चेहरे पर बिल्कुल भी नहीं थी क्योंकि उसका शर्त जीतने का मतलब था कि एक खूबसूरत नजारा अपनी आंखों से ओझल होता हुआ देखना जिसके लिए वह तैयार नहीं था लेकिन सुगंधा को देखकर वह समझ गया था कि अब यह खेल आगे बढ़ने वाला नहीं है,,,,, अंकित अपने हाथ में ब्लाउज लिए हुए ही किसी रोमांटिक हीरो की तरह अपनी मां से बोला,,,)


सच में आज का दिन मुझे जिंदगी भर याद रहेगा,,,।

और मुझे भी,,,(अपने ब्रा के कप को अच्छे से व्यवस्थित करते हुए सुगंधा बोली,,)

क्या आपका पता मिल सकेगा,,,,।

बिल्कुल भी नहीं घर पर मेरी जवान लड़की और जवान बेटा है,,,,,(और ऐसा कहकर अंकित की आंखों में देखने लगी अंकित भी अपनी मां की मदहोश भरी आंखों में पूरी तरह से डुबने लगा और दर्जी के आश्चर्य के बीच कुछ ऐसा हुआ जिसकी दर्जी को भी उम्मीद नहीं थी और ना ही अंकित को क्योंकि अंकित की आंखों में देखते हुए सुगंधा एकदम से अंकित के करीब पहुंच गई और उसके होठों पर चुंबन करने लगी दोनों के होंठ एकदम से आपस में भिड़ गए,,,,, अंकित पागलों की तरह अपनी मां को बाहों में भरकर उसके होठों का रसपान करते हुए साड़ी के ऊपर से उसकी बड़ी-बड़ी गांड को मसलना शुरू कर दिया उसे दबाना शुरू कर दिया यह देखकर दर्जी का पसीना छूटने लगा हुआ पागल हुआ जा रहा था वह भी इस खेल में कूदने की कोशिश कर सकता था लेकिन वह जानता था कि उससे कुछ होने वाला नहीं है,,,,

मदहोश होता हुआ अंकित है एक बार में ही अपनी मां के बराबर को फिर से को दिया और उसकी नंगी चूचियों को दोनों हाथों से दबाते हुए उसके होठों का रिस्पांस करने लगा दोनों पागल हुए जा रहे थे मदहोशी के सागर में डूबते चले जा रहे थे,,,, दोनों के मुंह से हल्की-हल्की कराहने और शिसकारी की आवाज आ रही थी,,,, सुगंधा पूरी तरह से बेशर्म बन चुकी थी वह कभी सोची नहीं थी कि अनजान मर्द के सामने खड़ी होकर वह अपने बेटे से इस तरह की हरकत करवाएगी और करेगी वह पूरी तरह से छिनार बन चुकी थी इस खेल में कितना मजा आ रहा था यह मां बेटे ही बता सकते थे वह पूरी तरह से मदहोशी के सागर में डूब के चले जा रहे थे और अपने साथ दर्जी की भी हालत खराब कर रहे थे,,,,,, मौके की नजाकत को अंकित अच्छी तरह से समझ रहा था इसलिए एकदम से अपनी मां को काउंटर की तरफ घुमा दिया और उसकी साड़ी को ऊपर की तरफ उठने लगा अब सुगंधा उसे रोकने की कोशिश बिल्कुल भी नहीं कर रही थी,,, क्योंकि वह अभी यही चाहती थी देखते ही देखते अंकित अपनी मां की साड़ी को कमर तक उठा दिया था उसकी नंगी गांड जो कि उसकी पैंटी में लिपटी हुई थी उसे देखकर अंकित की हालत तो खराब हो ही रही थी उसे दरजी को लग रहा था कि उसे दिन का दौरा पड़ जाएगा वह काउंटर की तरफ झुक कर सुगंधा की बड़ी-बड़ी गांड को देख रहा था और सुगंध टेबल पर घुटने दिखाकर अपनी आंखों को बंद करके इस पल में पूरी तरह से डूबने लगी थी,,,,,।

उस्ताद औरत पूरी तैयार है क्या मस्त बड़ी बड़ी गांड है देखो तो सही,,,, इस औरत की बड़ी-बड़ी गांड देखकर तुम्हारा भी लंड खड़ा होने लगेगा,,,,,,(अंकित जोर-जोर से अपनी मां की गांड पर चपत लगाते हुए उसे अपनी हथेली में लेकर दबोच ले रहा था,,,,, और फिर एक झटके से अपनी मां की पेंटी को एकदम से नीचे की तरफ खींच दिया और उसके पैरों से बाहर निकाल दिया और दर्जी की हालत और ज्यादा खराब करने के लिए उसे पेंटिंग को काउंटर पर ही रख दिया जहां पर वह दर्जी खड़ा था,,,, कमर से नीचे और ऊपर सुगंधा पूरी तरह से नंगी हो चुकी थी बस कमर में उसकी साड़ी और पेटीकोट फसा हुआ था और अंकित बिल्कुल भी वक्त गवाई बिना अपने घुटनों के बल बैठ गया और अपनी मां की गांड में अपना मुंह डाल दिया और उसकी गुलाबी बुर को चाटना शुरू कर दिया,,,, सुगंधा एकदम से सिहर उठी और अपनी गांड को अपने बेटे की तरफ खेलने लगी अंकित अपनी मां की बड़ी-बड़ी गांड को दोनों हाथों से पकड़ कर पागलों की तरह उसकी बुर की चुदाई कर रहा था,,,,, यह देख कर दर्जी से रहा नहीं जा रहा था उसके पास में ही काउंटर पर उसे खूबसूरत औरत की पेंटी पड़ी थी जिसे वह अपने हाथों में ले लिया और उसे उलट पलट कर देखने लगा शायद उसके जीवन में उसने कभी भी पेंटिं को अपने हाथ में नहीं लिया था क्योंकि उसकी उम्र को देखते हुए ऐसा ही लग रहा था कि उसकी बीवी पेंटी पहनती नहीं थी,,,, सुगंधा अपनी आंखों को खोलकर दर्जी की तरफ देख रही थी उसकी आंखों में मदहोशी थी एक नशा था और दर्जी के हाथों में अपनी पैंटी देखकर उसकी उत्तेजना और ज्यादा बढ़ गई थी उसका गीलापन दर्जी देखकर पागल हो रहा था,,,, और पेंटी के उसे हिस्से को अपनी उंगलियों से दबा दबा कर देख रहा था जो हिस्सा सुगंधा के मदन रस से गिला हो चुका था और वह बोला,,,)

मैडम की बुर तो बहुत पानी छोड़ रही है बेटा,,,(वह भी ईस मौके का पूरा फायदा उठा लेना चाहता था भले कुछ करके ना सही लेकिन औरत के अंगों के बारे में खुले तौर पर बोलकर ही मजा ले रहा था और वैसे भी बुर शब्द बोलने में उसे बहुत मजा आ रहा था उसके चेहरे को देखकर सुगंधा समझ गई थी,,,,, और इससे भी उसे दर्जी का मन भरने वाला नहीं था वह सुगंधा की पेंटिंग को उसकी आंखों के सामने ही अपने चेहरे से लगा लिया और उसकी खुशबू को अपनी नाक से अंदर की तरफ खींचने लगा यह देखकर तो सुगंधा पानी पानी होने लगी,,,,,, पूरी दुकान में उसकी शिसकारी की आवाज गुंज रही थी। अंकित समझ गया था कि अब देर नहीं लगना चाहिए इसलिए वह तुरंत उठकर खड़ा हो गया और अपने पेंट की बटन खोलकर एकदम से अपनी पैंट और अंडरवियर दोनों घुटनों तक खींच दिया,,,, और उसका लंबा मोटा लंड एकदम से हवा में झूलने लगा जिसे देखकर दर्जी की भी हालत खराब हो गई,,,, और वह अपने आप पर काबू नहीं कर पाया और काउंटर पर खड़े हुए ही वह अपना हाथ आगे बढ़कर अंकित के लंड को अपने हाथ से पकड़ कर एक दो बार हिलाते हुए बोला,,,,)


यह औरत तुम्हारे ही लायक है बेटा तुम ही इसकी गदराई जवानी का रस निकाल सकते हो,,,
(सर जी मैं जिस तरह से उसके लंड को पकड़ कर ही आया था अंकित एकदम से सिहर उठा था और यह हरकत सुगंधा ने भी अपनी आंखों से देखी थी। और वह दरजी के मन में क्या चल रहा था वह अच्छी तरह से समझ रही थी उसे एहसास हो रहा था कि समय दरजी अपने मन में यही सोच रहा था कि काश उसका भी इसकी तरह होता तो कितना मजा आ जाता और दर्जी की हरकत पर सुगंधा अपने बेटे की मर्दाना ताकत पर गदगद होने लगी दर्जी की बात सुनकर अंकित भी बोला,,,)

सही कह रहे हैं उस्ताद,ये औरत एकदम मस्ताई घोड़ी है,,, इस पर काबू पाने के लिए मेरे जैसे घोड़े की ही जरूरत है देख नहीं रहे,ये औरत कितना पानी छोड़ रही है,,,,,।

सही कह रहे हो बेटा में तो इसकी चड्डी देखकर ही अंदाजा लगा लिया,,,(चड्डी को अपने हाथ में लेकर अंकित की तरफ दिखाते हुए वह बोला, सुगंधा तो शर्म से मरी जा रही थी उत्तेजना से पानी पानी हुई जा रही थी,,,,,) अब जल्दी से इसकी बुर में अपना लंड डाल दो इससे रहा नहीं जा रहा है,,,,(इतना कहकर वह दर्जी काउंटर पर झुकते हुए अपना हाथ सुगंधा की गांड की तरफ लाया और उसकी टांगों के बीच से अपनी हथेली को उसकी बुर पर रखकर हल्के हल्के सहलाने लगा शायद इतने से ही वह पूरी तरह से मस्त हो चुका था सुगंधा भी उत्तेजना से सिहर उठी थी,,,,, दर्जी के हाथ लगाने के बाद तो वह और भी ज्यादा व्याकुल हो गई अपने बेटे के लंड को अपनी बुर में लेने के लिए,,,,,। कोई और वक्त होता तो शायद सुगंधा दरजी को कभी हाथ भी नहीं लगाने देती ,, लेकिन इस समय का हालात कुछ और ही था दर्जी की वजह सही है तो मां बेटे दोनों उत्तेजना के चरम शिखर पर विराजमान हो चुके थे और एक अद्भुत अविस्मरणीय अनुभव से गुजर रहे थे। और ऐसा सुगंधा ने दर्जी को करने भी थे शायद इसी से ही उसे आनंद प्राप्त हो रहा था।

अंकित चढ़ाई करने के लिए तैयार हो चुका था वह दर्जी की आंखों के सामने ही अपने मोटे तगड़े लंड को हाथ में लेकर हिलाते हुए अपनी मां की दोनों टांगों के बीच से उसे ले जाकर के उसके गुलाबी छेद से सटा दिया और दर्जी की उत्तेजना को और ज्यादा बढ़ाते हुए बोला,,,,।

आहहहह उस्ताद साली की बुर बहुत गर्म है,,,,।

डाल दे बेटा अंदर गम बुर वाली औरत ज्यादा मजा देती है,,,,।

बस उस्ताद धीरे-धीरे अंदर जा रहा है लेकिन इसकी बुर बहुत कसी हुई है,,,।

तब तो तू बहुत किस्मत वाला है क्योंकि कसी हुई बुर बहुत किस्मत वालों को ही मिलती है,,,।

क्यों मैडम जा रहा है ना लड़के का लंड,,,।
( दर्जी के इस बात पर सुगंधा शर्म से पानी पानी होने लगी लेकिन वह कुछ बोली नहीं बल्कि उसके इस बात का जवाब वहां अपने लाल-लाल होठों को अपने दांत से काट कर दी वह पूरी तरह से मदहोश हो गई थी क्योंकि उसे एहसास हो रहा था कि उसके बेटे का लैंड उसके बुर की गहराई तक घुस गया था और अंकित अपनी मां की कमर पकड़ कर अपनी कमर हिलाना शुरू कर दिया था वह दर्जी की आंखों के सामने अपनी मां की चुदाई कर रहा था उसे बहुत मजा आ रहा था आज उसका लंड कुछ ज्यादा ही कड़क महसूस हो रहा था ऐसा लग रहा था कि जैसे लोहे का रोड हो गया हो,,,, दर्जी को ललचाने के लिए सुगंधा अपने मुंह से सिसकारी की आवाज निकल रही थी।

सहहहह आहहहह ऊईईईईई मां,,,,,ऊमममममम,,,, बहुत मोटा है रे तेरा आहहहहहह बहुत मजा आ रहा है,,,,आहहहहहह और जोर-जोर से चोद,,,,।

(सुगंधा के मुंह से इतना सुनकर दर्जी की हालत और ज्यादा खराब होगी और काउंटर पर पूरी तरह से झुकी हुई थी उसके दोनों खरबूजे काउंटर पर ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी थाली में सजा कर रखे गए हो जिसे देखकर दरजी के मुंह में पानी आ रहा था वह पूरी तरह से पागल हुआ जा रहा था और उसकी चूची को पकड़ने की लालच का वह रोक नहीं पाया वह धीरे से अपना हाथ आगे बढ़ाया और दोनों हाथों से सुगंधा की चूची पकड़ कर दबाना शुरू कर दिया इतने से ही दर्जी पूरी तरह से मस्त हो गया,,,,, सुगंधा भी मस्ती के सागर में पूरी तरह से डुबकी लगा रही थी उसे अच्छा लग रहा था उसने कभी सोचा नहीं थी कि कोई अनजान मर्द इस तरह से उसके अंगों से खेलेगा,,, लेकिन यह सब उसके बेटे की देन थी जो वह यह सब करने पर मजबूर हो चुकी थी और ऐसा करने में उसे मजा भी आ रहा था तभी सुगंधा को न जाने क्या सुझा वह अपना हाथ आगे बढ़ाकर,,, दर्जी की लूंगी के दोनों पट को खोलने लगी और अगले ही पल उस दर्जी का लंड एकदम से सुगंधा की आंखों के सामने आ गया,,, जिसमें तनाव आ चुका था और वह एकदम से झूल रहा था लेकिन उसे देखने के बाद सुगंधा इतना तो समझ गई थी की जवानी के दिनों में यह पूरी तरह से तबाही मचा दिया होगा,,,,, सुगंधा की इस तरह की हरकत से तो दर्जी पूरी तरह से बावला हो गया,,, और अपने दोनों हाथों का कसाव सुगंधा के खरबुजो पर बढ़ाने लगा,,,, सुगंधा अपने होशो हवास में ऐसा कभी नहीं करती लेकिन इस समय उसके दिमाग पर वासना पूरी तरह से हावी हो चुका था और वह धीरे से उसे दर्जी का लंड अपने हाथ में पकड़ ली और उसे धीरे-धीरे हिलाने लगी,,,,, और पीछे से अंकित ताबड तोड़ धक्के पर धक्का मार रहा था,,,, वह जमकर अपनी मां की चुदाई कर रहा था।

लेकिन सुगंधा की हरकत दर्जी सह नहीं पाया और उसके लंड से पिचकारी छूट गई जो सीधा सुगंधा के हथेली को भिगो दिया दर्जी की हालत देखने लायक थी वह पूरी तरह से पस्त हो चुका था लेकिन अभी भी सुगंधा की दोनों चुचियो को थामे हुए था। सुगंधा के मुंह से लगातार शिसकारी की आवाज निकल रही थी। वह चरम सुख के करीब पहुंच चुका था और धीरे से अपने हाथ को कमर पर से हटाकर अपनी मां के कंधों पर रख दिया और उसे किसी लगाम की तरह अपनी तरफ खींचते हुए अपनी कमर को जोर-जोर से आगे पीछे करके ही आने लगा और देखते ही देखते मां बेटे दोनों एक साथ झड़ने लगे,,,, अंकित अपने मन की कर चुका था यह अनुभव मां बेटे दोनों के लिए यादगार बन गया था,,,,, दरवाजे पर दस्तक हो रही थी बाहर शायद कस्टमर आ गया था यह देखकर मां बेटे दोनों जल्दबाजी दिखाने लगे और सुगंधा जल्दी-जल्दी अपने कपड़े पहने लगी अच्छा हुआ कि उसके बेटे ने उसकी साड़ी निकाल कर उसे पूरी तरह से नंगी नहीं किया था वरना हड़बड़ाहट में वह ठीक तरह से कपड़े भी नहीं पहन पाती,,,, अपने कपड़ों को दुरुस्त करने के बाद अंकित जाकर दरवाजा खोल दिया,,,, दो औरतें खड़ी थी अपना ब्लाउज सिलवाने के लिए वह दोनों के अंदर आते हैं अंकित और उसकी मां दोनों ब्लाउज वाला थैला लेकर दुकान से बाहर निकल गए और दर्जी कुर्सी पर बैठकर गहरी गहरी सांस ले रहा था। जल्दबाजी में सुगंधा ने सिले हुए ब्लाउज के पैसे भी नहीं चुकाई थी और अब शायद इसकी जरूरत भी नहीं थी।
awesome
 

Ajju Landwalia

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सारी मर्यादाओं की दीवार गिरा कर अपने संस्कारों को ताक पर रखकर सुगंधा अपने बदन की प्राथमिक जरूरत को पूरी कर रही थी और जो उसका हक भी था लेकिन तरीका गलत था क्योंकि वह अपने ही बेटे के साथ शारीरिक सुख भोग रही थी जो कि यह समाज के नजरिए से बिल्कुल गलत था लेकिन अब उसे समाज के परवाह नहीं थी ऐसा नहीं था कि वह समाज के प्रति बिल्कुल लापरवाह हो चुकी थी,,, अच्छी तरह से जानती थी की चारदीवारी के अंदर वह और उसका बेटा क्या कर रहे हैं यह किसी को पता नहीं था इसलिए समाज के नजर में तो वह दोनों मां बेटे ही थे लेकिन घर के चार दीवारी के अंदर वह दोनों मर्द और औरत का सुख भोग रहे थे। कुछ महीने पहले अंकित कभी सोचा भी नहीं था कि उसका जीवन इस तरह से बदल जाएगा इतना तो होता है ताकि एक मर्द होने के नाते एक औरत से उसे शरीर सुख जरूर मिलेगा लेकिन अपनी ही मां से मिलेगा यह कभी उसने सोचा नहीं था। इसलिए मां बेटे तृप्ति की गैर मौजूदगी में घर में जहां चाहे कहां चुदाई का खेल खेलना शुरू कर देते थे बाथरूम में बाथरूम के बाहर रसोई घर में कमरे में घर के पीछे या छत पर कोई भी जगह बची नहीं थी जहां दोनों की चुदाई के किस्से ना लिखे जाते हों,,,, ।

इन सबके बावजूद अंकित के मन में कुछ और अलग करने का कर रहा था जिसके बारे में उसने अपनी मां को का भी दिया था और जिस तरह का अनुभव उन लोगों का था उसे देखते हुए सुगंधा भी नानुकुर करते हुए इस खेल में शामिल हो चुकी थी अब वह दोनों दर्जी की आंखों के सामने चुदाई का सुख भोगना चाहते थे,,, सुगंधा भी इस खेल में शामिल हो चुकी थी उसे भी नए अनुभव की तलाश थी और इससे अच्छा अनुभव से मिलने वाला नहीं था क्योंकि दर्जी की दुकान का अनुभव उसे पहले ही मिल चुका था वह दर्जी की आंखों में अपनी जवानी के टपकते रस को पीने की चाहत देखी थी वह जानती थी कि उसकी मदहोश कर देने वाली जवान देखकर दर्जी की हालात पूरी तरह से खराब हो चुकी थी उम्र के ईस पड़ाव में दर्जी कुछ करने लायक बिल्कुल भी नहीं था लेकिन देख कर जिस तरह का सुख से मिल रहा था उसे देखकर सुगंधा भी मदहोश हो जाती थी। और यही अपनी मदहोशी का वह थोड़ा और बढ़ाना चाहती थी एक नए अनुभव के साथ वह देखना चाहती थी कि अनजान मर्द के सामने चुदवाने में कैसा महसूस होता है। वह इस अनुभव से पूरी तरह से गुजर जाना चाहती थी।

वह देखना चाहती थी कि अनजान मर्द के सामने उसका बेटा उसके साथ किस तरह की शारीरिक हरकत करता है। दर्जी की दुकान में जो कुछ भी हुआ था वह शारीरिक छेड़छाड़ से ज्यादा कुछ नहीं था। सुगंधा इस बात को अच्छी तरह से जानती थी लेकिन यह भी जानती थी कि औरतों की टांगों के बीच पहुंचने का रास्ता ही शारीरिक छेड़छाड़ से शुरू होता है अब तक का सफर तो दर्जी की आंखों के सामने एकदम सही था जिस तरह से उसका बेटा दर्जी की आंखों के सामने उसके अंगों से छेड़खानी कर रहा था दबा रहा था दो अर्थ वाली बातें कर रहा था वह सब कुछ दर्जी के सोच के परे था तू किधर जी कभी सोचा भी नहीं था कि एक अनजान लड़का एक अनजान औरतों के साथ पहली मुलाकात में इस तरह की छेड़छाड़ करने पर उतारू हो जाएगा और वह औरत भी उसे अनजान लड़के की छेड़छाड़ से इतना मजा लेगी,,,, अब ईसी छेड़खानी को अपने बेटे के कहे अनुसार एक घमासान चुदाई में बदलते हुए देखना चाहती थी वह देखना चाहती थी कि उसका बेटा एक अनजान मर्द के सामने कैसे उसके कपड़ों को उसके बदन से अलग करता है,,, कैसे उसकी आंखों के सामने ही अपने मर्दाना अंगों को उसके कोमल अंग में प्रवेश करने की हिम्मत दिखा सकता है और वह खुद कैसे एक अनजान मर्द के सामने उसके नजरिया में अनजान लड़के से चुदवाने के लिए तैयार हो जाती है यही सब देखने के लिए तो सुगंधा बेताब नजर आ रही थी और जब जब इस बारे में सोच रही थी तब तब उसकी बुर पानी छोड़ दे रही थी।

अंकित अपने मन में दर्जी की दुकान की सारी रूपरेखाएं तैयार कर लिया था उसे अच्छी तरह से मालूम था कि वहां क्या करना है बस उसकी मां को अंजान बने रहना है उसे दरजी के सामने यह बिल्कुल भी नहीं जताना है कि वह दोनों पहले से ही एक दूसरे को जानते हैं या दोनों के बीच में रिश्ता क्या है तभी इस खेल का मजा दुगना हो पाएगा,,,, इस बात से मां बेटे दोनों अवगत थे कि वह दर्जी से उन दोनों का दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं था ना ही वह उन दोनों को जानता था नाहीं यह दोनों उस दरजी को भली-भांति जानते थे,,, उस दर्जी से केवल उन दोनों का ग्राहक और अनजान लड़के का ही संबंध था। मां बेटे दोनों इस समय पर उसे दर्जी की दुकान पर पहुंच जाना चाहते थे क्योंकि उस समय पर उसकी दुकान में बिल्कुल भी ग्राहक नहीं रहते थे और यही समय इस जगह था एक नए अनुभव के लिए,,, मां बेटे दोनों जल्दी से तैयार हो चुके थे। वैसे तो सुगंधा साड़ी के नीचे चड्डी नहीं पहनना चाहती थी लेकिन अंकित नहीं उसे चड्डी पहनने के लिए बोला था, क्योंकि वह देखना चाहता था जब वह दर्जी के सामने उसकी चड्डी उतारता है तो दर्जी की क्या हालत होती है और अपने बेटे की बात मानकर सुगंधा ने भी चड्डी पहन ली थी। पीले रंग की साड़ी में सुगंधा कयामत लग रही थी बस अपने हाथों से पीछे ब्लाउज की डोरी नहीं बांध पा रही थी तो अंकित खुद आगे बढ़कर अपनी मां के ब्लाउज की डोरी को बांधने लगा,,, और इस दौरान वह अपनी मां के कंधों पर चुंबनों की बारिश भी करने लगा।

ईस हरकत से अंकित के साथ-साथ सुगंधा भी मदहोश होने लगी,, उत्तेजना के वश होकर अंकित पीछे से अपनी मां को बाहों में भरकर ब्लाउज के ऊपर से ही उसके दोनों चूचियों को दबाना शुरू कर दिया था और अपने पेंट में बने तंबू को अपनी मां के पिछवाड़े से रगडना शुरू कर दिया था। जिस तरह के हालात थे उसे देखते हुए मां बेटे दोनों पूरी तरह से उत्तेजित होने लगे और अंकित अपने आप पर काबू नहीं कर पा रहा था । इसलिए वह किसी से मैं अपनी मां की साड़ी को ऊपर की तरफ उठाने लगा और सुगंधा का भी मन होने के बावजूद वह अपने बेटे का दोनों हाथ पकड़ कर उसे रोक दी और बोली,,,।

अगर यही सारा जोश दिखा देगा तो दर्जी की दुकान पर क्या करेगा,,, कहीं ऐसा ना हो कि दरजी की आंखों के सामने टांय-टांय फिश हो जाए,,,,‌

अरे ऐसा बिल्कुल भी नहीं होगा तुम साड़ी तो उठने दो,,,(ऐसा बोलते हुए अंकित फिर से अपनी मां की साड़ी को ऊपर की तरफ उठाने लगा तो फिर से उसकी मां उसे रोकते हुए बोली,,,)

नहीं अभी नहीं अब जो कुछ भी होगा दर्जी की दुकान में ही होगा इस तरह से तो मेरा जोश ठंडा पड़ जाएगा।

ओहहहहह इसका मतलब मेरी रानी दर्जी की आंखों के सामने चुदवाने के लिए बेताब है।

अब तू आग ही ऐसी लगा दिया है तो कर भी क्या सकती हूं,,,,,।

तो फिर चलो मेरी रानी दैर किस बात की है,,,।

तो चल मेरे राजा रोका किसने है,,, लेकिन 1 मिनट,,,

अब क्या हुआ,,,?

पहले अपने राजा को तो,,,,(उंगली से अपने बेटे की पेंट की तरफ इशारा करते हुए जिसमें अच्छा खासा तंबू बना हुआथा) बैठने के लिए बोल इस हाल में बाहर जाएगा तो कोई देख लेगा तो क्या सोचेगा,,,,

अरे यार यह साला बैठने का नाम ही नहीं ले रहा है इसीलिए तो तुम्हारी बुर में डाल रहा था।

समझा इस कहानी सारा भेद न खोल दे,,,,।

रुको मैं अभी ठीक कर देता हूं,,,,(इतना का करो अपनी मां के कमरे से बाहर निकलने लगा तो सुगंध भी उसके साथ कमरे से बाहर आ गई और अंकित अपनी मां की आंखों के सामने ही बाथरूम के बाहर ही जहां पर पानी जाने के लिए नाली बना हुआ था जहां पर कभी-कभी सुगंधा ही बैठकर पेशाब कर लेती थी वही तो खड़े-खड़े पेशाब करने लगा,,, सुगंधा दोनों हाथ को आपस में बांधकर खड़ी होकर मुस्कुरा रही थी वह अपने बेटे के लंड को देख रही थी जो कि इस समय पूरी औकात में आकर खड़ा था और अंकित उसे हाथ में लेकर हिलाते हुए मुत रहा था,,,, अंकित अपनी मां की तरफ देखते हुए बोला,,,)

तुम्हारे साथ रहने पर यह बैठने का नाम ही नहीं लेता।

हां लग तो ऐसा ही रहा है इसकी ड्यूटी कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है,,,।

हां पहले सिर्फ मुतने के काम आता था,,,, लेकिन अब यह दिन रात तुम्हारी सेवा में लगा रहता है इसलिए इसका ऐसा हालत है।

चल कोई बात नहीं मेरे लिए दिन रात ड्यूटी करेगा तभी तो तनख्वाह भी बराबर मिलती रहेगी।

तनख्वाह के लिए ही तो ड्यूटी पर लगा हुआ है। (इतना कहते हुए अंकित पेशाब कर चुका था और अपने लंड को पकड़ कर झांकते हुए आखिरी पेशाब की बूंद को भी नीचे गिरा देना चाहता था,,, लेकिन अंकित के इस हरकत पर सुगंधा सिहर उठी थी अगर इस समय बाहर न जाना होता तो वह खुद अपने घुटनों के बल बैठकर उसके लंड को अपने मुंह में लेकर चूसना शुरू कर देती,,,,,,, थोड़ी देर में मां बेटे दोनों घर से बाहर निकाल कर और दरवाजे पर ताला लगा कर ऑटो का इंतजार कर रहे थे थोड़ी ही देर में उन दोनों को ऑटो भी मिल गया था अंकित जानबूझकर थोड़ा पहले घर से निकला था ताकि वह अपनी मां से पहले दर्जी की दुकान पर जा सके और कुछ बातचीत कर सके अंकित को पूरा यकीन था कि दरजी उसकी बात को मान जाएगा आखिरकार बुढ़ापे में कुछ कर नहीं सकता था तो अपनी आंखों से देख कर मजा तो ले सकता था। और यह भी देखता कि आजकल की औरतें कितनी बेशरम हो चुकी है। थोड़ी बहुत और बातें थी जिस मां बेटे ऑटो में बैठे-बैठे साझा कर रहे थे। थोड़ी ही देर में दोनों ऑटो से उसे दर्जी की दुकान से थोड़ा सा पहले एक चौराहे पर पहुंच गए जहां पर उन्होंने रिक्शा रुकवा कर वहीं पर उतर गए और प्लान के मुताबिक अंकित अपनी मां से पहले ही पैदल चलता हुआ उसे दुकान में पहुंच चुका था और यह देखकर उसके खुशी का ठिकाना न था कि आज भी इस समय पर दुकान में कोई नहीं था दुकान पर पहुंचते ही वह दुकान में दाखिल होते हुए दर्जी की तरह देखकर मुस्कुराया और बोला।

नमस्कार चाचा जी,,,,


अरे बेटा तुम आओ आओ,,,, आज कैसे आना हुआ,,,,(दर्जी भी अंकित की तरफ देखकर मुस्कुराया और उत्साहित होता हुआ बोला,,, अंकित भी बात को गोल-गोल घुमाए बिना ही बोला)

अरे भूल गए चाचा जी आज हुआ औरत आने वाली अपना ब्लाउज लेने,,,, कहीं वह आकर चली तो नहीं गई।
(अंकित की बात सुनकर वह दर्जी मुस्कुराया और मुस्कुराते हुए बोला)

नहीं नहीं बेटा अभी तक तो आई नहीं है हो सकता है अब आने वाली हो,,,,, लेकिन तुम्हें उससे क्या काम है,,,,(दर्जी भी उत्सुकता दिखाते हुए बोला)

भूल गए चाचा जी उस दिन क्या हुआ था कितना मजा आया था उस औरत का नाप लेने में,,,।
(अंकित की बात सुनकर दर्जी भी जैसे किसी ख्याल में खो गया था और उसे दिन की हरकत के बारे में सोचने लगा था उसके चेहरे पर उसे दिन की हरकत याद आते ही चमक बढ़ने लगी थी और वह मुस्कुराते हुए बोला)


कैसे भूल सकता हूं बेटा उसे औरत ने तो मेरी भी हालत खराब कर दी है दिन रात मेरे सपने में आती है।


क्या कह रहे हो चाचा वैसे तुम्हारा कहना भी ठीक है जब उसे औरत ने इस उम्र में तुम्हारी हालत खराब कर दी है तो सोचो मेरी क्या हालत कर दी होगी,,, अब तुमसे क्या छुपाना चाचा रात भर उसकी याद में लंड पकड़ कर हिलाना पड़ता है,,,, कसम से ऐसी औरत अगर बिस्तर पर मिल जाए तो मजा ही आ जाए।

लेकिन आज क्या करने आए हो बरखुदार,,,,


आज किस्मत आजमाने आया हूं,,,,, अगर आज किस्मत ने साथ दिया तो तुम्हारी इसी दुकान में आज उसकी चुदाई करूंगा और तुम्हारी आंखों के सामने।
(इतना सुनते ही वह दरजी जोर-जोर से हंसने लगा और हंसते हुए ही बोला,,,)


पागल हो गए हो क्या बेटा तुम्हें क्या लगता है कि वह औरत इस दुकान में मेरी आंखों के सामने तुम्हें करने देगी,,,,।

हां बिल्कुल चाचा मुझे पूरा विश्वास है उसे दिन मैं उसके बदन की प्यास को समझ गया था वह अंदर से बहुत प्यासी है,,,,,।

चाहे जो भी हो बेटा इस तरह से कोई औरत अनजान लड़के से और अनजान आदमी के सामने यह सब करना बिल्कुल भी पसंद नहीं करेगी।

अगर मैं करके दिखा दिया तो,,,,।

अगर,,,, (थोड़ा सोचने के बाद) तुमने वाकई में ऐसा कर दिखाया तो जो बोलोगे वह हार जाऊंगा,,,,,

चलो फिर तय हुआ और अगर मैं ऐसा नहीं कर पाया तो मैं तुम्हें ₹500 दूंगा नगद,,,,,।

चलो मंजूर है,,, (फिर से वह हंसते हुए बोला अंकित उसके हंसने के मतलब को अच्छी तरह से समझ रहा था क्योंकि वह जानता था कि कोई भी औरत इस तरह से अपने जिस्म का सौदा नहीं करती किसी अनजान मर्द से अनजान दुकान में और अनजान आदमी के सामने चुदवाने के लिए कभी तैयार नहीं होगी,,, लेकिन यह तो सिर्फ दर्जी के नजरिए से था उसकी नजर में अंकित और सुगंधा तो अनजान ही थे और उसका कहना सत प्रतिशत सच था लेकिन इस बात से वह अनजान था कि यह खेल मां बेटे दोनों मिलकर खेल रहे थे इसलिए उसकी दुकान में चुदाई होना निश्चित था।)

लेकिन थोड़ा बहुत तुम्हें मेरा साथ देना होगा बस मेरी हां में हां मिलाना है,,,,।

चलो कोई बात नहीं इतना तो मैं कर ही सकता हूं,,, (ऐसा कहते हुए वह धोती के ऊपर से अपने लंड को खुजलाने लगा था शायद वह आने वाले समय के बारे में सोच कर मस्त हो रहा था,,,,)

वैसे चाचा जी आज वह आएगी तो सही ना,,,,


आना तो चाहिए क्योंकि डिलीवरी आज ही देनी थी और वैसे भी मैं उसे जानता नहीं हूं नई-नई ग्राहक है। अगर पहले पता होता तो शायद मुफ्त में उसको ब्लाउज सी कर देता बदले में मैं भी उसकी चुदाई कर देता,,,,।

वह चाचा जी मान गए,,,, वैसे चाचा जी सच-सच बताना इस उम्र में खड़ा होता है कि नहीं।
(इतना सुनकर वह दर्जी फिर से हंसने लगा और हंसते हुए बोला)

हो तो जाता है लेकिन बहुत कोशिश करना पड़ता है।

चलो कोई बात नहीं अगर खड़ा हो गया तो तुम भी मजे ले लेना।

(इतना सुनकर वह फिर से जोर-जोर से हंसने लगा)

अच्छा चाचा जी आज भी ग्राहक नहीं है क्या बात है,,,?

तुम्हारी किस्मत बहुत तेज है तुम ऐसे समय पर आते हो जिस समय ग्राहक बिल्कुल भी नहीं रहते और तुम्हारी किस्मत का सितारा कितना बुलंद है यह भी देखना बाकी है अगर वह इस समय आ गई तो मैं भी समझ जाऊंगा कि तुम्हारी किस्मत का तारा बहुत बुलंद है।

लग तो ऐसा ही रहा है चाचा जी लेकिन एक और गुजारिश है,,,,।

बोलो आज तो तुम्हारी हर एक हसरत को पूरा कर दूंगा जो कुछ भी मेरे बस में होगा।

है तो तुम्हारे ही बस में अगर वह आ गई तो दुकान का दरवाजा मैं बंद कर दूंगा अगर तुम्हें एतराज ना हो तो।


बिल्कुल बेटा इसमें एतराज वाली कौन सी बात है आखिरकार सब कुछ सही हुआ तो मुझे भी कुछ देखने को मिल जाएगा बरसों से आंखें तरस गई है।

बहुत बड़े उस्ताद हो चाचा जी,,, (इतना कहकर अंकित हंसने लगा,,,,, थोड़ी देर तक वह दोनों इधर-उधर की बातें करते रहे अंकित बार-बार दरवाजे की तरफ देख रहा था तकरीबन 20 मिनट गुजारने के बाद ही सुगंधा दुकान की सीढ़ियां चढ़ रही थी,,,, और उसे पर सबसे पहले नजर दर्जी की गई दरजी एकदम से उत्साहित हो गया और अंकित की तरफ देखते हुए बोला)

वह बेटा तुम्हारी तो किस्मत का तारा सच में बहुत बुलंद है,,,, अब आएगा मजा,,,।


बस चाचा जी इसी पल का तो इंतजार था,,,,,।

(दुकान में दाखिल होते हुए सुगंधा दर्जी की तरफ देखते हुए बोली,,,)

चाचा जी मेरा ब्लाउज तैयार है,,,,


बिल्कुल तैयार है तुम बैठो मैं लेकर आता हूं,,,, (इतना कह कर दरजी धीरे से कुर्सी पर से उठा और दरवाजा खोलकर अंदर की तरफ चला गया उसके जाते ही मां बेटे दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुराने लगे और अंकित अपना अंगूठा ऊपर करके सब कुछ ठीक है यह दर्शाने लगा,,,, और एक अच्छा सा ब्लाउज अपने हाथ में ले लिया जिसकी डिजाइन बहुत ही बेहतरीन थी और जैसे ही वह दर्जी सिल हुआ ब्लाउज लेकर आया उसे देखते ही अंकित दर्जी से बोला,,,)

उस्ताद मैडम को यह ब्लाउज पसंद आया है इसकी डिजाइन बहुत ही बेहतरीन लग रही है और मैडम जी इस तरह का ब्लाउज सिलवाना चाहती है।


तो क्या हुआ इसमें दिक्कत क्या है आखिर कल ब्लाउज सिलने के लिए तो हम लोग बैठे हैं यहां पर,,,,, (सिल्वर ब्लाउज को काउंटर पर रखता हुआ दरजी बोला और धीरे से कुर्सी पर बैठ गया,,,, और अंकित थोड़ा सा गंभीर होता हुआ दर्जी से बोला)

लेकिन उस्ताद मैडम जी का नाम और इस ब्लाउज का नाप अलग है और आप तो जानते हैं की नाप लेने के लिए अगर ऐसा ब्लाउज सिलवाना है तो क्या करना होता है,,,,।
(अंकित दर्जी की तरफ देख रहा था लेकिन दरजी समझ नहीं पा रहा था कि उसे क्या बोलना है लेकिन फिर भी और थोड़ा दिमाग लगाकर बोला)

हां तो सब कुछ बता दो अगर सिलवाना है तो,,,,
(दर्जी की बात सुनकर अंकित मुस्कुराने लगा और अपनी मां की तरफ देखकर बोला)

देखिए मैडम अगर आपको इतनी बेहतरीन डिजाइन का ब्लाउज सिलवाना है जो कि एकदम नाप का हो तो इसका नाप देना होगा लेकिन कहते हुए मुझे थोड़ा शर्म आ रही है,,,,,।

शर्म कैसी शर्म,,, मैं कुछ समझी नहीं,,,,!

देखिए मैडम जी इस तरह का ब्लाउज हम दो-तीन कस्टमर के लिए ही सिलते हैं जो कि हमारे खास हैं और उनके कहने के मुताबिक ही इस तरह का ब्लाउज सिला जाता है अगर आपको भी ऐसा ब्लाउज सिलवाना है तो आपको अच्छी तरीके से नाप देना होगा ताकि ब्लाउज पहनने के बाद आपको कोई शिकायत ना रह जाए।


हां तो दिक्कत क्या है ले लो ना नाप ,नाप लिए बिना कैसे सिलोगे,,,,।

आप समझ नहीं रही है इसका नाम देने के लिए आपको अपना ब्लाउज उतरना होगा तभी ठीक से नाप ले पाऊंगा,,,,,,।
(अंकित की बात सुनकर दरजी के माथे से पसीना टपक रहा था उसकी हालत खराब हो रही थी,,,, सुगंधा दर्जी की तरफ सवालिया नजरों से देखने लगी। अंकित की हिम्मत देखकर दरजी भी थोड़ा जोश में आ गया था लेकिन थोड़ा घबरा भी रहा था लेकिन जिस तरह से सुगंध उसकी तरफ देख रही थी दरजी को बोलना ही पड़ गया,,, की)

यह सच कह रहा है इसलिए हम यह ब्लाउज किसी और के लिए नहीं सिलते जिसके लिए अभी सिलते हैं उन्हें इस तरह का नाप देना पड़ता है और हम सामने से नहीं बोलते हैं किस तरह का ब्लाउज हम सिलना चाहेंगे यह सही कह रहा है हमारे पास दो-तीन ही ग्राहक ऐसे हैं जिनके पास इस तरह का ब्लाउज है,,, अगर तुम्हें भी इस तरह का ब्लाउज सिलवाना है तो ब्लाउज उतार कर ही नाप देना होगा,,,,, (ब्लाउज उतार कर बोलते हुए दर्जी की हालत खराब हो रही थी और वह अपने हाथ से अपने लंड को हल्के से मसलते हुए बोल रहा था और उसकी हालत को देखकर सुगंध मन ही मन प्रसन्न हो रही थी,,, लेकिन फिर भी वह सहज बनी रही वह अपने चेहरे पर हैरानी के भाव लाते हुए बोली)

क्या कह रहे हैं,,,,?

देखिए मैडम जी,,, यह ब्लाउज की डिजाइन है इतनी खास है कि जो कोई भी कस्टमर यहां ब्लाउज सिलवाने आती है उसकी नजर इस पर पड़ी ही जाती है लेकिन हम लोग खुद इनकार कर देते हैं हम आपको भी इंकार कर सकते थे लेकिन हमें मालूम है कि यह ब्लाउज आपके ऊपर और भी ज्यादा खूबसूरत लगेगा इसलिए हम सब यह बता रहे हैं वरना बात आई गई हो जाती है।


सच में डिजाइन तो बहुत अच्छी है लेकिन,,,,


लेकिन क्या मैडम जी मुझे मालूम है कि तुम्हारे शरीर पर यह ब्लाउज बहुत खूबसूरत लगेगा और तुम्हारी खूबसूरती भी और भी ज्यादा बढ़ जाएगी इसलिए हीचकीचाए बिना नाप दे दीजिए सिलवा लीजिए यह ब्लाउज,,,।

लेकिन ब्लाउज उतार कर,,,!


तो इसमें क्या हो गया देखो ब्लाउज उतरवा कर हम लोग इसलिए नाप लेते हैं ताकि गोलाई का सही माप समझ में आ सके और तभी आरामदायक ब्लाउज हम लोग सी पाते हैं और अगर ब्लाउज के ऊपर दोगी तो दो-तीन डोर इधर-उधर हो जाएगा। तब आपको भी मजा नहीं आएगा पहनने में।

क्या सच में औरतें इस तरह से नाप देती है।(थोड़ा शंका जताते हुए वह बोली)



तो क्या मैडम जी,,,, जैसे डॉक्टर और वकील से कुछ नहीं छुपाना चाहिए इस तरह से दर्जी से भी कुछ नहीं छुपाना चाहिए तभी तो वह सही नाप का ब्लाउज सिलकर दे पाएगा,,,,

(अंकित और सुगंधा की बातों को सुनकर दरजी के माथे पर तो पसीना उपस आया था इस उम्र में उसकी हालत खराब हुई जा रही थी और सुगंधा के हाव-भाव को देखकर वह समझ गया था कि यह जल्द ही तैयार हो जाएगी नाप देने के लिए,,,, इसलिए आने वाले पल के बारे में सोचकर उसका दिल जोरो से धड़क रहा था। दर्जी को अंकित पर पूरा यकीन हो गया था कि वह अपनी बातों में उसे औरत को जाल में फंसा लेगा,,,, जबकि ऐसा होना निश्चित था क्योंकि दरजी नहीं जानता था कि यह दोनों केवल नाटक कर रहे हैं असल में दोनों मां बेटे हैं और अगर इस बात को वह जान लेता कि यह दोनों मां बेटे हैं तो उसके दिल पर क्या गुजरती वह तो कभी सोच भी नहीं सकता था की मां बेटे के बीच में इस तरह का रिश्ता भी हो सकता है क्योंकि वह उम्र दराज था और शायद इस अनुभव से वह गुजरा ना हो या यह भी हो सकता है कि, वह भी इस तरह का अनुभव ले चुका हूं खैर यह तो बात की बात थी लेकिन अभी जो हालात दुकान में बने हुए थे वह पूरी तरह से दरजी को गर्म किए हुए था,,, दर्जी क्या खुद मां बेटे की पूरी तरह से उत्तेजना के परम शिखर पर विराजमान हो चुके थे सुगंधा की बुर बार-बार पानी छोड़ रही थी तो अंकित का लंड पेंट में तंबू बना चुका था,,,, एक बार फिर से गहरी सांस लेते हुए सुगंधा अपनी सारी शंकाओं को दूर करते हुए बोली,,,)

क्या सच में ऐसा करना होगा,,,,!

देखो मैडम इस ब्लाउज के लिए हम सबको नहीं बताते जिन्हें यह डिजाइन पसंद आ भी जाती है तो उन्हें कभी भी हम इस तरह का ब्लाउज सिलकर नहीं देते क्योंकि हम भी शरीर का गठीलापन देखते हैं हमारी आंखों से पता चल जाता है कि यह ब्लाउज किसके बदन पर ज्यादा खूबसूरत लगेगा कहीं किसी को भी यह ब्लाउज पसंद आ गया और वह पहले हो लेकिन उसके ऊपर वह डिजाइन अच्छी ना लगती हो या उसके गोली के माफिक ना आती हो तब तो हम लोगों का धंधा खराब हो जाएगा इसलिए हम लोग इस ब्लाउज के बारे में उन्हें कस्टमर से बात करते हैं जो इस ब्लाउज के लायक होते हैं और इस समय तुम इस ब्लाउज के लायक हो तुम पहनोगी तो ऐसा लगेगा कि जैसे कोई अप्सरा ब्लाउज पहनी हुई हो।

धंधा करना कोई तुमसे सीखे कितनी चिकनी चुपड़ी बातेंकरते हो,,,,(सुगंधा मुस्कुराते हुए बोली)

नहीं नहीं मैडम जी चिकनी चुपड़ी बातें मैं नहीं कर रहा हूं जो हकीकत है वही कह रहा हूं क्यों चाचा जी मैं ठीक कह रहा हूं ना मैडम किसी फिल्म की हीरोइन नहीं लगती है,,,,।

बात तो तुम एकदम ठीक कह रहे हो बेटा मैडम को देखते ही मुझे तो अपने जमाने की फिल्मों की हीरोइन याद आ जाती है।
(दर्जी एकदम मस्त होता हुआ बोला उधर जी की बात सुनकर सुगंधा मन ही मन खुश हो रही थी उसे एहसास हो रहा था कि दरजी उसकी जवानी के जाल में पूरी तरह से लपटता जा रहा है,,,, सुगंधा एक बार फिर से हल्के से मुस्कुराते हुए लेकिन दरवाजे की तरफ देखते हुए बोली,,,,)


मैं तैयार हूं लेकिन,,, क्या नाप यहीं पर देना होगा,,,,!

(अंकित अपनी मां के ईशारे को समझ गया था इसलिए वह एकदम से उत्साहित होता हुआ बोला,,)

जी बिल्कुल,,,,


लेकिन,,,,(फिर से दरवाजे की तरफ देखते हुए वह बोली तो अंकित एकदम से दर्जी की तरफ देखतेहुए बोला,,,)

मैं समझ गया मैडम आप चिंता ना करें मैं अभी दरवाजा बंद किए देता हूं,,,।

हां बेटा दरवाजा बंद कर दो वैसे भी इस समय कोई ग्राहक आता नहीं है,,,,,।
(गहरी सांस लेता हुआ वह दर्जी बोला क्योंकि अब उसकी भी हालत खराब होने वाली थी उसकी आंखों के सामने जो उसने अब तक नहीं देखा था ऐसा दृश्य दिखने वाला था,,, वैसे तो वह भी जीवन में संभोग सुख से वंचित नहीं होगा लेकिन यह निश्चित था के उसने अपनी जिंदगी में इतनी खूबसूरत औरत की नंगी चूचियों को नहीं देखा होगा और नहीं कभी अपनी आंखों के सामने इतनी खूबसूरत औरत को एक नौजवान लड़के से अपने ही बेटे की उम्र के लड़के से चुदवाते हुए देखा होगा इसलिए उसके तन बदन में भी उत्तेजना की लहर दौड़ रही थी या यूं कह लो कि उत्तेजना का तूफान आ रहा था,,,, अंकित भी बिल्कुल भी देर नहीं करना चाहता था इसलिए वह जल्दी से जाकर दरवाजा बंद कर दिया था इस बात का एहसास उसे अच्छी तरह से था कि दरवाजा बंद होने के बाद दुकान के अंदर केवल वह और उसकी मां के साथ-साथ केवल दर्जी ही होगा और कोई नहीं होगा क्योंकि वह दर्जी की हालत को अच्छी तरह से समझ रहा था,,,, उसे अच्छी तरह से मालूम था कि उन दोनों को संभोग रत देखकर दर्जी भी पूरी तरह से मदहोश हो जाएगा उत्तेजित हो जाएगा लेकिन वह कुछ कर सकते की स्थिति में नहीं होगा क्योंकि उम्र का तक आज जो है और वैसे भी अगर उसकी जगह कोई और होता तो शायद यह खतरा अंकित कभी सर मोल ना लेता क्योंकि एक खूबसूरत जवान से भरी हुई औरत को नंगी देखकर कोई कुछ भी कर सकता है।

अंकित जल्दी से दरवाजा बंद करके वापस अपनी जगह पर आ चुका था सुगंधा की हालत खराब हो रही थी क्योंकि अब उसे वह कर रहा था जो उसने आज तक कभी नहीं की थी। अंकित बिल्कुल भी देर ना करते हुए वह सीधा मुद्दे की बात पर आते हुए बोला।

मैडम जी अब जल्दी से अपना ब्लाउज उतार दो,,,।

(अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा के तन बदन में मदहोशी का रस घुलने लगा,,, वह जानबूझकर दर्जी की तरफ सवालिया नजरों से देखने लगी तो अंकित ही बोला,,,)

आप बिल्कुल भी चिंता ना करें मैडम चाचा जी के देखरेख में ही नाप लिया जाता है ।

(उत्तेजना के हमारे सुगंधा का गला सूख रहा था वह अपने थूक से अपने गले को गिला करने की कोशिश करते हुए अपने दोनों हाथ उठाकर साड़ी के आड़ में ही अपने ब्लाउज का बटन खोलने लगी यह देखकर अंकित दर्जी की तरफ मुस्कुराता हुआ देखने लगा तो दर्जी भी आंखों से ही ईसारा किया कि मान गए उस्ताद असली उस्ताद तो तू ही है,,,, क्योंकि दर्जी ने कभी सोचा नहीं था कि वाकई में वह नौजवान लड़का है ऐसा कुछ कर पाएगा अब तो उसकी हालत और भी ज्यादा खराब होने लगी थी वह सुगंधा की तरफ देख रहा था सुगंध अपनी नाजुक उंगलियों से अपने ब्लाउज का बटन खोल रही थी,,, सच कहा जाए तो दर्जी को इस तरह का दृश्य देखे लगभग तीन दशक बीत चुके थे,,,, अपनी पत्नी के देहांत के बाद वह अपना सारा ध्यान सिर्फ अपने धंधे में ही लगाया था औरतों की तरफ उसका ध्यान गया ही नहीं था इसलिए तो आज अपनी आंखों के सामने इस तरह का दृश्य देखकर वह पागल हुआ जा रहा था लेकिन वह लाचार था कि उसकी मर्दाना अंग अब जवाब दे दिया था उम्र का तकाजा उसके मर्दाना अंग को शिथिल कर दिया था,,,,

सुगंधा धीरे-धीरे ब्लाउज का बटन खोल रही थी और उसकी चूड़ियों की खनकी की आवाज से पूरी दुकान मदहोशी के रस में डुबी जा रही थी,,,, अंकित की हालत खराब हो रही थी अंकित भी अपनी मां को इस तरह से ब्लाउज का बटन खोलता हुआ देखकर अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव कर रहा था जबकि उसके लिए यह दृश्य कोई पहली बार का बिल्कुल भी नहीं था लेकिन फिर भी आज का माहौल ही कुछ ऐसा था कि अंकित को सब कुछ पहली बार जैसा लग रहा था वह एक अनजान आदमी के सामने अपनी मां को ब्लाउज का बटन खोलता हुआ देख रहा था इससे उसकी उत्तेजना और भी ज्यादा बढ़ गई थी उसका लंड पेंट में तंबू बना चुका था जिसे वह बार-बार अपने हाथ से दबाने की कोशिश कर रहा था और सुगंधा नजर नीचे का हुए धीरे-धीरे अपने ब्लाउज के सारे बटन को खोल चुकी थी,,,, सुगंधा को अच्छी तरह से महसूस हो रहा था कि उसकी पेंटि पूरी तरह से गीली हो चुकी थी,,, ब्लाउज का बटन खोलकर अंकित की तरफ देखने लगी और बोली।)

अब ठीक है,,,,!

इसे उतार तो दो तभी ना अच्छे तरीके से नाप ले पाऊंगा,,,,।
(सुगंधा के पास इनकार करने का कोई कारण नहीं था वह अंकित की बात मानते हुए अपने ब्लाउस को उतार दी और वही काउंटर पर रख दी और इस समय वह साड़ी के पल्लू की आड़ में अपनी दोनों जवान को छुपाने की नहीं बल्कि दिखाने की कोशिश कर रही थी लेकिन अपने हाथों से नहीं बल्कि अपनी पारदर्शी साड़ी से,,, दर्जी पागल हो जा रहा था क्योंकि पारदर्शी साड़ी से उसकी दोनों चूचियां पीले रंग की ब्रा में एकदम साफ दिखाई दे रही थी,,,,, और उस दरजी को यह भी एहसास हो रहा था कि उसकी बड़ी-बड़ी चूची है उसके छोटे से ब्रा में ठीक तरह से समा नहीं पा रही थी जिससे उसकी आदत से भी ज्यादा चूचियां बाहर दिखाई दे रही थी और यह देखकर वह मन ही मन दुआ कर रहा था कि काश वह अपनी साड़ी के पल्लू को हटा ले तो सब कुछ देखने को मिल जाए और ऐसा लग रहा था कि जैसे उसकी बात अंकित सुन रहा था और इस बार अंकित एकदम से अपना हाथ आगे बढ़ाया और अपने हाथ से ही उसका पल्लू हटाते हुए बोला,,,)

पल्लू को तो हटा दो ताकि तेरी तरह से दिखाई दे और मैं अच्छे से नाप ले सकूं,,,,,,(अंकित पल्लू हटा दिया था और यह देखकर दर्जी की हालत खराब होने लगी थी उसे लग रहा था कि वह जरूर कुछ ना कुछ बोले की लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था वह अंकित को कुछ भी नहीं बोली थी बल्कि आगे बढ़ाने की इजाजत दे दी थी यह देखकर तो दर्जी और भी ज्यादा हैरान हो गया था दर्जी अपने मन में ही बोल रहा था कि पता नहीं साली यह सब सच में ब्लाउज सिलवाने के लिए कर रही है कि उसकी बुर में आग लगी हुई है,,, और आज उसकी ही दुकान में हुआ अपनी बुर की आग बुझाना चाहती है। सुगंधा गहरी गहरी सांस ले रही जिसके साथ उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां भी ऊपर नीचे हो रही थी यह देखकर दर्जी का ईमान डोल रहा था और अंकित पर उसे गुस्सा आ रहा था थोड़ी जलन हो रही थी कि काश वह अंकित की जगह होता तो कितना मजा आता,,,,, अंकित अपनी मां की भरी हुई चूचियों की तरफ देखते हुएबोला,,,)

चाचा जी फीता देना तो,,,,

यह लो बरखुदार,,,(अपने गले में लपेटे हुए फीता को अपने हाथ से निकलते हुए आगे बढ़कर अंकित के हाथ में थमाते हुए बोला,,,, अंकित तुरंत दरजी के हाथ में से वह फीता ले लिया,,,, और अपनी मां की चुचियों का नाप लेने के लिए उसके करीब पहुंच गया सुगंधा का दिल जोरो से धड़क रहा था वह बार-बार नज़रे नीचे करके दर्जी की तरफ देख ले रही थी ,दरजी की हालत उससे छुपी नहीं थी,,,, वह समझ सकती थी कि दरजी के दिल पर इस समय क्या गुजर रही होगी ,,,, क्योंकि वह देख रही थी कि बार-बार दर्जी का हाथ उसके दोनों टांगों के बीच पहुंच जा रहा था। अंकित मुस्कुराता हुआ अपनी मां की चूचियों की तरफ देखते हुए बोला,,,,)

बहुत खूबसूरत और बड़े-बड़े गोलाई है आपके,,,,।
(अंकित की बात सुनकर दरजी एकदम सन्न रह गया उसे फिर लगा कि इस बार वह जरूर कुछ ना कुछ बोले की लेकिन वह कुछ बोली नहीं बस मुस्कुरा दी यह देखकर दरजी के तो होश उड़ गए क्योंकि अंकित खुले शब्दों में उसके कस्टमर से बात कर रहा था। और हैरानी वाली बात यह थी कि वह कुछ बोल नहीं रही थी वह मुस्कुरा रही थी जिसका मतलब साफ था कि उसकी बातें उसे अच्छी लग रही थी धीरे-धीरे दर्जी को यकीन होने लगा था कि यह नौजवान लड़का जिसे इरादे से यहां आया है वह अपना इरादा पूरा करके ही जाएगा,,,,,।)

दोनों हाथ फैलाओ,,,,,।

(अंकित की बात मानते हुए सुगंधा अपने दोनों हाथों को खोलकर फैला दी और अंकित एकदम से देखो उसके पीछे की तरफ लाकर उसकी दोनों चूचियों के बीच से वह फीता रखकर नाप लेने लगा वह बार-बार फाइट को कस दे रहा था जिससे सुगंधा एकदम से उसकी तरफ लड़खड़ा कर पहुंच जा रही थी और उसकी दोनों चूचियां अंकित की छाती से स्पर्श हो जा रही थी और यह सब अंकित दरजी को दिखाते हुए कर रहा था इसलिए तो दर्जी की आंखें फटी की फटी रह गई थी उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था थोड़ी देर तक फीते को उसी तरह से पकड़े रहने के बाद वह बोला,,,)

ब्रा का कपड़ा मोटा है ना,,,।

(अंकित के सवाल पर सुगंधा सिर्फ हां मै सिर हिला दी,,,,,)

तब तो मैडम आपको अपनी ब्रा भी उतरना पड़ेगा,,,,।

(यह सुनकर दरजी अपने मन में ही बोला बाप रे यह क्या कह रहा है रे अभी थप्पड़ मार देगी,,,,, लेकिन अपनी बात में उसे दरजी को भी शामिल करते हुए अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला)

क्यों उस्ताद सही कह रहा हूं ना,,,,।
(दर्जी को तो समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या जवाब दे वह आश्चर्य से अंकित की तरफ तो कभी सुगंधा की तरफ देख रहा था तो अंकित ही बोला ,,)


अरे उस्ताद याद है ना अपनी वह बंगले वाली कस्टमर ब्रा पहनकर जिसे अपना नाप दी थी और उसका ब्लाउज खराब हो गया था तो कितनी बहस बाजी हुई थी हम लोगों में और उसके बीच फिर उसके बाद मेरी समझाने पर उसे अपनी ब्रा उतार कर फिर से अपनी नाप दी और तब जाकर उसका ब्लाउज सही से सिल पाए थे,,,,।

अरे हां याद आया,,,,, यह लड़का सही कह रहा है मैडम,,,,, अगर उसका कपड़ा मोटा है तो एक दो डोरा इधर-उधर हो जाएगा तब हमसे ना कहना कि अच्छा नहीं सिले हो,,,,।

(सुगंधा अपने बेटे की चालाकी पर हैरान थी जिसे वह पुत्र समझती थी वह धीरे-धीरे कितना चालाक हो चुका था उसकी चालाकी पर वह मंद मंद मुस्कुरा रही थी और दर्जी की तरफ देखकर मन ही मन उसे गाली देते हुए बोल रही थी,,, साला हरामजादा कितना हारामी है देखो तो सही एक औरत की नंगी चूचियों को देखने के लिए कितना झूठ बोल रहा है,,,,,,,,, फिर भी सुगंधा गहरी सांस लेते हुए बोली।)

क्या इसे भी उतारना होगा,,


बिल्कुल मैडम,,,,,, और थोड़ा जल्दी करिए कस्टमर के आने का समय हो जाएगा तो नाप भी नहीं ले पाऊंगा,,,,,(हाथ में फीता लिए हुए अंकित बोला,, अंकित के कहने के मतलब को सुगंधा अच्छी तरह से समझ रही थी, वह मौके की नजाकत को अच्छी तरह से समझ रही थी वह जानती थी कि उन दोनों के पास समय पर्याप्त नहीं है जो कुछ भी करना था जल्दी करना था अगर कोई कस्टमर आ गया तो पूरा मामला खराब हो जाएगा इसलिए तुरंत अपने हाथ पीछे की तरफ ले जा करके वह अपने ब्रा का हुक खोलने लगी वैसे तो वह बड़े आराम से यह काम कर लेती थी लेकिन इस समय उसके मन में भी कुछ चंचलता चल रही थी। उसके दिमाग में भी खुरापात चल रहा था इसलिए वह अंकित से बोली,,,,)


देखना तो मेरा हुक नहीं खुल रहा है जरा,,,,,(इतना ही कह पाए थे कि अंकित एकदम से उत्साहित होता हुआ बोला)

जी मैडम अभी खोल देता हूं,,,(और इतना कहने के साथ है यह अपनी मां के पीछे जाकर खड़ा हो गया और उसके ब्रा का हुक खोलने लगा यह देखकर तो दर्जी की हालत खराब होने लगी उसे ऐसा महसूस होने लगा कि बिना खड़े हुए ही उसके लंड से पानी निकल जाएगा वह पूरी तरह से मदहोश हो चुका था माथे पर पसीना वापस आया था उसकी सांसे ऊपर नीचे हो रही थी उसे उम्मीद नहीं थी कि वह ऐसा कुछ बोल जाएगी,,,, और थोड़ी ही देर में अंकित अपनी मां की ब्रा का हुक खोल दिया था उसकी ब्रा एकदम से ठीक ही हो गई थी जिसे सुगंध अपने हाथों से बरा का कब पकड़ कर उसे अपनी चूचियों से जैसे किसी फल से उसका छिलका अलग करते हैं इस तरह से उसे अलग करते हुए उसे भी काउंटर पर रख दी उसकी नंगी चूचियां एकदम हाहाकार मचा रही थी दर्जी की नजर उसकी चूचियों पर पड़ी तो वह एकदम से पागल हो गया क्योंकि उसने कभी सोचा नहीं था की चूचियां इस तरह से भी तरासी हुई हो सकती है,,,,, एकदम तनी हुई गोलाकार जरा भी ढीलापन और लचक नहीं था इसलिए तो,,,, दर्जी ठीक तरह से देखने के लिए अपनी जगह से उठकर खड़ा हो गया था पानी पीने के बहाने और नजर भरकर सुगंधा की चूचियों को देखने के बाद में काउंटर पर पड़े ग्लास को अपने हाथ में ले लिया और पानी पीकर अपने सूखते हुए गले को गिला करने की कोशिश करने लगा,,,,, ब्रा का हुक खोलने के बाद अंकित फिर से अपनी जगह पर आ गया था और अपनी मां की चूचियों को देखकर मदहोश होता हुआ बोला,,,)

एक बात कहूं मैडम बुरा मत मानना,,,।

कहो,,,,,


मैंने अपनी जिंदगी में आज तक इतनी खूबसूरत और गोल-गोल चूचियां नहीं देखा,,,,, और शायद हमारी उस्ताद ने भी इतनी खूबसूरत चुची नहीं देखे होंगे,, क्यों उस्ताद,,,,(दर्जी की तरफ देखे बिना ही अंकित बोल और दर्जी अपने मन में ही बोला यह साला मुझे क्यों बीच में घसीट रहा है लेकिन यह बात सच थी दर्जी अपने मन में मान रहा था कि वाकई में उसने नौकरी इतनी खूबसूरत औरत अपनी जिंदगी में अपनी दुकान में देखा था और ना ही इतनी खूबसूरत नंगी चूचियों को देखा था इसलिए तो आश्चर्य से उसकी आंखें फटी पड़ी थी,,,,,, अंकित अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,) अब देखना मैडम ब्लाउज का नाप कितना फिट बैठता है आपकी गोलाईयो पर ना एक डोर आगे और ना एक डोर पीछे एकदम कैसा होगा एकदम आरामदायक पहनोगी तो तुम्हें भी लगेगा कि वहां कितना खूबसूरत ब्लाउज मैं आज पहनी हुं,,,।

सिर्फ बातें करने से कुछ नहीं होता एक बार सील कर दे दो और मैं पहन लूं तब जानू,,,,।

यह बात है,,,, इसका मतलब है मैडम की आप हम पर शक कर रही हैं कि हम लोग इतना अच्छा ब्लाउज सी पाएंगे कि नहीं,,,,।

वह तो है ही,,,,,।

तो लो अभी नाप ले लेता हूं,,,,,(इतना कहने के साथ ही अंकित फिर से पिता को उसके पीछे से घुमाया और फीते की किनारी को और नाप का फीता उसकी दोनों चूचियों के बीच रखते हुए,,, दर्जी की तरफ देखते हुए बोला,,,,)

44,,,,,

(और थूक को निगलते हुए दर्जी नाप नोट करने लगा,,,,,,,, और फिर अंकित कंधे से नीचे की तरफ उसकी चूची हो के नीचे तक नाप लेने लगा ऐसा करते हुए वह जानबूझकर अपनी हथेली का दबाव उसकी नंगी चूचियों पर बढ़ा दे रहा था वह केवल दरजी को दिखा रहा था और दर्जी देखकर हैरान भी था क्योंकि वह औरत कुछ बोल नहीं रही थी इस बात से दर्जी की आंखें आश्चर्य से फटी जा रही थी। तभी अंकीत अपनी मां से बोला,,)

अब मैडम थोड़ा पीछे घूम जाओ,,,,,।

(इतना सुनते ही सुगंधा पीछे की तरफ घूम गई और उसकी पीठ अंकित की तरफ थी और अंकित दर्जी की तरफ देखते हुए अपने दोनों हाथों की हथेलियां को गोल-गोल दबाते हुए इशारा कर रहा था कि अब उसकी चूची दबाएगा,,,, अंकित का इशारा समझते ही दरजी के पसीने छूटने लगे उसे डर था की कहीं ,ईस हरकत पर वह उसे थप्पड़ ना मार दे,,,,,, अंकित फिर से पिता लेकर के अपनी मां की दोनों चूचियों पर रख दिया और इस बार दोनों हाथों से हल्के से अपनी मां की चूची दबा दिया सुगंधा के तन बदन में मदहोशी जाने लगे उसके चेहरे का रंग सुर्ख लाल होने लगा और अपने बेटे की हरकत पर उसके मुंह से हल्की सी आह निकल गई,,,, और उसकी आहह की आवाज दर्जी के कानों तक बड़े आराम से पहुंच गई थी क्योंकि वह जानबूझकर इस तरह की आवाज निकाली थी। इस मदहोश कर देने वाली आवाज को सुनकर दो दर्जी का दिल बड़े जोरों से धड़कने लगा उसे डर लग रहा था कि कहीं उसे दिल का दोरा ना पड़ जाए,,,,,

अभी इस बात को इस मामले को आगे बढ़ाने से कोई मतलब नहीं निकल रहा था,,,,, इसलिए वह दर्जी से बोला,,,,।


पूरा नाप हो गया ना उस्ताद,,,।

हां बिल्कुल तूने अच्छे से नाप ले लिया,,,,(गहरी सांस लेता हुआ वह दर्जी बोला)

तो अब मैं अपने कपड़े पहन लुं,,,,,

कुछ देर और ऐसे ही रहने दो मैडम,,,(और इतना कहने के साथ ही पीछे से ही वह अपने दोनों हाथों में अपनी मां की दोनों चूचियों को भरकर हल्के हल्के दबाने लगा और इस बार फिर से सुगंधा मस्त होते हुए हल्की-हल्की सिसकारी की आवाज लेते हुए बोली,,)


यह तुम क्या कर रहे हो,,,सहहहहह,आहहहहहह छोड़ो मुझे,,,,,।


तुम बहुत खूबसूरत हो मैडम मैं आज तक इतनी खूबसूरत औरत नहीं देखा,,,,।


नहीं देखा तो आज देख लिया ना अब मुझे जाने दो कोई देख लेगा तो गजब हो जाएगा,,,,।

(दर्जी यह सब देखकर मदहोश हुआ जा रहा था और जिस तरह से उसने कोई देख लेगा तो गजब हो जाएगा यह बात कही थी उसे देखकर दरजी को समझते देर नहीं लगी कि आप यह चारों खाने चित हो गई है,,,,)

दरवाजा तो बंद है मैडम अंदर क्या हो रहा है किसी को पता नहीं चलेगा मैं तो पागल हो जाऊंगा तुम्हारी खूबसूरती में डूब जाऊंगा,,,,,,।

नहीं रहने दो ऐसा करना ठीक नहीं है,,,, तुम्हारे उस्ताद,,,(सुगंधा मदहोश होते हुए दर्जी की तरफ देखते हुए बोली)

वह कुछ नहीं बोलेंगे मैडम बस थोड़ी देर और मुझे दबा लेने दो,,,,,,।


सहहहहहवआहहहहह बस थोड़ी देर उसके बाद में चली जाऊंगी,,,,,।

बिल्कुल मैडम चली जाना,,,, लेकिन इतनी खूबसूरत चुची को मैं अपने हाथों से जाने नहीं देना चाहता इसे दबाने का सुख पूरी तरह से भोग लेना चाहता हूं,,,,आहहहहह कितनी बड़ी-बड़ी खरबूजे जैसी चूचियां है मैडम तुम्हारी,,,,, लगता है तुम्हारे पति बहुत मेहनत करते हैं,,,,,,,।

बहुत मेहनत करते हैं तभी तो ऐसी तनी हुई है,,,,,,।(सुगंधा भी मदहोश होते हुए बोली दरजी पूरी तरह से पस्त हुआ जा रहा था वह जानता था कि जिस इरादे से वह लड़का दुकान में आया था वह अपना इरादा पूरा कर लेगा और उसे अपने शर्त हारने का डर बिल्कुल भी नहीं था उसे इस बात की खुशी थी कि आज सब कुछ सही हुआ तो आज वह बेहद खूबसूरत औरत की चुदाई अपनी आंखों से देख पाएगा,,,,)

लेकिन फिर भी मैडम कौन से तेल से मालिश करती हो मुझे भी बता दो ताकि मैं भी मौका आने पर किसी को बता सकूं,,,,।

सरसों के तेल से मालिश करती हूं दिन में दो बार तभी तो एकदम गोल है,,,,,


ओहहहहह मैडम तभी तो तुम एकदम हीरोइन की तरह लग रही हो,,,,(अंकित पागलों की तरह अपनी मां की दोनों चूचियों को दबाते हुए बोला उसके इस तरह से स्तन मर्दन से सुगंधा एकदम चुदवासी हुए जा रही थी,,,,,, उसकी बुर से लगातार मदन रस का बहाव हो रहा था,,,, अंकित जितना हो रहा था उतनी जोर-जोर से अपनी मां की चुचियों को दबा रहा था और दर्जी को ऐसा दिख रहा था कि वाकई में यह च उसके हाथ में पहली बार आई है कुछ देर तक इसी तरह से दबाने के बाद सुगंधा भी नाटक करते हुए बोली,,,)

बस अब हो गया ना अब मुझे कपड़े पहन लेने दो,,,(इतना कहते हुए सुगंधा खुद ही घूम गई और अंकित गहरी गहरी सांस लेता हुआ अपनी मां की चूचियों को ही देखता रह गया और खुश होता हुआ बोला)

बहुत मजा आया आज का दिन मुझे जिंदगी भर याद रहेगा,,,,,।

मुझे भी जिंदगी भर याद रहेगा की मुझे इस तरह के दरजी मिले थे,,,(ब्रा को अपने हाथ में लेकर उसे पहनना ही वाली थी कि अंकित बोला)

मैडम बुरा ना मानो तो क्या मैं एक बार इसे मुंह में लेकर पी सकता हूं,,,,,,,।(अंकित की बात सुनकर तो दरजी के होश उड़ गए उसकी सांस उखड़ रही थी उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसकी आंखों के सामने यह सब क्या हो रहा है लेकिन उसे भी बहुत मजा आ रहा था बस वह अपनी उम्र और शरीर को लेकर परेशान था वरना इस खेल में वह भी कूद गया होता अंकित की बात सुनकर सुगंधा अंकित की तरफ देखने लगी और फिर अपनी छातियो को उभारते हुए बोली,,,)

लो लेकिन ज्यादा देर तक नहीं,,,,।
(बस क्या था अंकित तो पूरी तरह से अपनी मां की दोनों चूचियों पर टूट पड़ा और बारी-बारी से दोनों चूचियों को मुंह में लेकर पीना शुरू कर दिया दर्जी अपने मन में ही कह रहा था कि वाकई में यह औरत एकदम चुडक्कड़ है यह नौजवान लड़का सही कह रहा था,,,, अंकित तो पागल हुआ जा रहा था लेकिन उसकी मां भी मदहोश हो चुकी थी एकदम छिनार बन चुकी थी एकदम रंडी की तरह एक अनजान आदमी के सामने अपने बेटे से अनजान बनकर मस्ती के सागर में डुबकी लगा रही थी। उसे भी बहुत मजा आ रहा था उसका बेटा सच कह रहा था कि इस खेल में बहुत मजा आएगा वह अपने मुंह से गरमा गरम शिकारी की आवाज निकाल कर दर्जी की हालत को और ज्यादा खराब कर रही थी,,,, तकरीबन 10 मिनट तक अपनी मां की चूचियों को पीने के बाद वह धीरे से अपना एक हाथ नीचे की तरफ लेकर और साड़ी के ऊपर से ही अपनी मां की बुर को मसलने लगा,,,, यह देख कर तू दरजी के बदन में आग लग गई अब बैठे-बैठे इस नजारे को देखना उचित नहीं खाऊंगा उठकर खड़ा हो गया था और खड़े-खड़े देख रहा था उसे समझ में आ गया था कि यह औरत वाकई में बहुत ज्यादा चुदवासी है वह अपने मन में ही सोचने लगा है तो बड़े घर की लेकिन शायद इसका पति से खुश नहीं कर पाता है इसीलिए इस तरह से मजा ले रही है,,,,, अंकित पागलों की तरह साड़ी के ऊपर से अपनी मां की बुर को दबा रहा था मसल रहा था अपनी हथेली में तो बोल रहा था जिससे सुगंधा पानी पानी हो रही थी लेकिन कुछ देर बाद वह जानबूझकर एकदम से अपने बेटे से अलग होते हुए बोली,,,,)


बस अब ज्यादा नहीं,,,,(गहरी सांस लेते हुए सुगंधा पूरी और धीरे से अपनी ब्रा को पहनने लगी इस बार वह खुद ही अपने दोनों हाथों को पीछे की तरफ ले जाकर के अपनी ब्रा के हक को बंद कर ले और अंकित अपनी मां का ब्लाउज लेकर उसके सामने खड़ा था उसे थमाने के लिए लेकिन प्लेान के मुताबिक दोनों एक दूसरे की तरफ देख रहे थे एक दूसरे की आंखों में देख रहे थे,,,,, दर्जी भी यह सब देख रहा था उसे लगने लगा था कि आज वह शर्त जीत जाएगा लेकिन शर्त जीतने की खुशी उसके चेहरे पर बिल्कुल भी नहीं थी क्योंकि उसका शर्त जीतने का मतलब था कि एक खूबसूरत नजारा अपनी आंखों से ओझल होता हुआ देखना जिसके लिए वह तैयार नहीं था लेकिन सुगंधा को देखकर वह समझ गया था कि अब यह खेल आगे बढ़ने वाला नहीं है,,,,, अंकित अपने हाथ में ब्लाउज लिए हुए ही किसी रोमांटिक हीरो की तरह अपनी मां से बोला,,,)


सच में आज का दिन मुझे जिंदगी भर याद रहेगा,,,।

और मुझे भी,,,(अपने ब्रा के कप को अच्छे से व्यवस्थित करते हुए सुगंधा बोली,,)

क्या आपका पता मिल सकेगा,,,,।

बिल्कुल भी नहीं घर पर मेरी जवान लड़की और जवान बेटा है,,,,,(और ऐसा कहकर अंकित की आंखों में देखने लगी अंकित भी अपनी मां की मदहोश भरी आंखों में पूरी तरह से डुबने लगा और दर्जी के आश्चर्य के बीच कुछ ऐसा हुआ जिसकी दर्जी को भी उम्मीद नहीं थी और ना ही अंकित को क्योंकि अंकित की आंखों में देखते हुए सुगंधा एकदम से अंकित के करीब पहुंच गई और उसके होठों पर चुंबन करने लगी दोनों के होंठ एकदम से आपस में भिड़ गए,,,,, अंकित पागलों की तरह अपनी मां को बाहों में भरकर उसके होठों का रसपान करते हुए साड़ी के ऊपर से उसकी बड़ी-बड़ी गांड को मसलना शुरू कर दिया उसे दबाना शुरू कर दिया यह देखकर दर्जी का पसीना छूटने लगा हुआ पागल हुआ जा रहा था वह भी इस खेल में कूदने की कोशिश कर सकता था लेकिन वह जानता था कि उससे कुछ होने वाला नहीं है,,,,

मदहोश होता हुआ अंकित है एक बार में ही अपनी मां के बराबर को फिर से को दिया और उसकी नंगी चूचियों को दोनों हाथों से दबाते हुए उसके होठों का रिस्पांस करने लगा दोनों पागल हुए जा रहे थे मदहोशी के सागर में डूबते चले जा रहे थे,,,, दोनों के मुंह से हल्की-हल्की कराहने और शिसकारी की आवाज आ रही थी,,,, सुगंधा पूरी तरह से बेशर्म बन चुकी थी वह कभी सोची नहीं थी कि अनजान मर्द के सामने खड़ी होकर वह अपने बेटे से इस तरह की हरकत करवाएगी और करेगी वह पूरी तरह से छिनार बन चुकी थी इस खेल में कितना मजा आ रहा था यह मां बेटे ही बता सकते थे वह पूरी तरह से मदहोशी के सागर में डूब के चले जा रहे थे और अपने साथ दर्जी की भी हालत खराब कर रहे थे,,,,,, मौके की नजाकत को अंकित अच्छी तरह से समझ रहा था इसलिए एकदम से अपनी मां को काउंटर की तरफ घुमा दिया और उसकी साड़ी को ऊपर की तरफ उठने लगा अब सुगंधा उसे रोकने की कोशिश बिल्कुल भी नहीं कर रही थी,,, क्योंकि वह अभी यही चाहती थी देखते ही देखते अंकित अपनी मां की साड़ी को कमर तक उठा दिया था उसकी नंगी गांड जो कि उसकी पैंटी में लिपटी हुई थी उसे देखकर अंकित की हालत तो खराब हो ही रही थी उसे दरजी को लग रहा था कि उसे दिन का दौरा पड़ जाएगा वह काउंटर की तरफ झुक कर सुगंधा की बड़ी-बड़ी गांड को देख रहा था और सुगंध टेबल पर घुटने दिखाकर अपनी आंखों को बंद करके इस पल में पूरी तरह से डूबने लगी थी,,,,,।

उस्ताद औरत पूरी तैयार है क्या मस्त बड़ी बड़ी गांड है देखो तो सही,,,, इस औरत की बड़ी-बड़ी गांड देखकर तुम्हारा भी लंड खड़ा होने लगेगा,,,,,,(अंकित जोर-जोर से अपनी मां की गांड पर चपत लगाते हुए उसे अपनी हथेली में लेकर दबोच ले रहा था,,,,, और फिर एक झटके से अपनी मां की पेंटी को एकदम से नीचे की तरफ खींच दिया और उसके पैरों से बाहर निकाल दिया और दर्जी की हालत और ज्यादा खराब करने के लिए उसे पेंटिंग को काउंटर पर ही रख दिया जहां पर वह दर्जी खड़ा था,,,, कमर से नीचे और ऊपर सुगंधा पूरी तरह से नंगी हो चुकी थी बस कमर में उसकी साड़ी और पेटीकोट फसा हुआ था और अंकित बिल्कुल भी वक्त गवाई बिना अपने घुटनों के बल बैठ गया और अपनी मां की गांड में अपना मुंह डाल दिया और उसकी गुलाबी बुर को चाटना शुरू कर दिया,,,, सुगंधा एकदम से सिहर उठी और अपनी गांड को अपने बेटे की तरफ खेलने लगी अंकित अपनी मां की बड़ी-बड़ी गांड को दोनों हाथों से पकड़ कर पागलों की तरह उसकी बुर की चुदाई कर रहा था,,,,, यह देख कर दर्जी से रहा नहीं जा रहा था उसके पास में ही काउंटर पर उसे खूबसूरत औरत की पेंटी पड़ी थी जिसे वह अपने हाथों में ले लिया और उसे उलट पलट कर देखने लगा शायद उसके जीवन में उसने कभी भी पेंटिं को अपने हाथ में नहीं लिया था क्योंकि उसकी उम्र को देखते हुए ऐसा ही लग रहा था कि उसकी बीवी पेंटी पहनती नहीं थी,,,, सुगंधा अपनी आंखों को खोलकर दर्जी की तरफ देख रही थी उसकी आंखों में मदहोशी थी एक नशा था और दर्जी के हाथों में अपनी पैंटी देखकर उसकी उत्तेजना और ज्यादा बढ़ गई थी उसका गीलापन दर्जी देखकर पागल हो रहा था,,,, और पेंटी के उसे हिस्से को अपनी उंगलियों से दबा दबा कर देख रहा था जो हिस्सा सुगंधा के मदन रस से गिला हो चुका था और वह बोला,,,)

मैडम की बुर तो बहुत पानी छोड़ रही है बेटा,,,(वह भी ईस मौके का पूरा फायदा उठा लेना चाहता था भले कुछ करके ना सही लेकिन औरत के अंगों के बारे में खुले तौर पर बोलकर ही मजा ले रहा था और वैसे भी बुर शब्द बोलने में उसे बहुत मजा आ रहा था उसके चेहरे को देखकर सुगंधा समझ गई थी,,,,, और इससे भी उसे दर्जी का मन भरने वाला नहीं था वह सुगंधा की पेंटिंग को उसकी आंखों के सामने ही अपने चेहरे से लगा लिया और उसकी खुशबू को अपनी नाक से अंदर की तरफ खींचने लगा यह देखकर तो सुगंधा पानी पानी होने लगी,,,,,, पूरी दुकान में उसकी शिसकारी की आवाज गुंज रही थी। अंकित समझ गया था कि अब देर नहीं लगना चाहिए इसलिए वह तुरंत उठकर खड़ा हो गया और अपने पेंट की बटन खोलकर एकदम से अपनी पैंट और अंडरवियर दोनों घुटनों तक खींच दिया,,,, और उसका लंबा मोटा लंड एकदम से हवा में झूलने लगा जिसे देखकर दर्जी की भी हालत खराब हो गई,,,, और वह अपने आप पर काबू नहीं कर पाया और काउंटर पर खड़े हुए ही वह अपना हाथ आगे बढ़कर अंकित के लंड को अपने हाथ से पकड़ कर एक दो बार हिलाते हुए बोला,,,,)


यह औरत तुम्हारे ही लायक है बेटा तुम ही इसकी गदराई जवानी का रस निकाल सकते हो,,,
(सर जी मैं जिस तरह से उसके लंड को पकड़ कर ही आया था अंकित एकदम से सिहर उठा था और यह हरकत सुगंधा ने भी अपनी आंखों से देखी थी। और वह दरजी के मन में क्या चल रहा था वह अच्छी तरह से समझ रही थी उसे एहसास हो रहा था कि समय दरजी अपने मन में यही सोच रहा था कि काश उसका भी इसकी तरह होता तो कितना मजा आ जाता और दर्जी की हरकत पर सुगंधा अपने बेटे की मर्दाना ताकत पर गदगद होने लगी दर्जी की बात सुनकर अंकित भी बोला,,,)

सही कह रहे हैं उस्ताद,ये औरत एकदम मस्ताई घोड़ी है,,, इस पर काबू पाने के लिए मेरे जैसे घोड़े की ही जरूरत है देख नहीं रहे,ये औरत कितना पानी छोड़ रही है,,,,,।

सही कह रहे हो बेटा में तो इसकी चड्डी देखकर ही अंदाजा लगा लिया,,,(चड्डी को अपने हाथ में लेकर अंकित की तरफ दिखाते हुए वह बोला, सुगंधा तो शर्म से मरी जा रही थी उत्तेजना से पानी पानी हुई जा रही थी,,,,,) अब जल्दी से इसकी बुर में अपना लंड डाल दो इससे रहा नहीं जा रहा है,,,,(इतना कहकर वह दर्जी काउंटर पर झुकते हुए अपना हाथ सुगंधा की गांड की तरफ लाया और उसकी टांगों के बीच से अपनी हथेली को उसकी बुर पर रखकर हल्के हल्के सहलाने लगा शायद इतने से ही वह पूरी तरह से मस्त हो चुका था सुगंधा भी उत्तेजना से सिहर उठी थी,,,,, दर्जी के हाथ लगाने के बाद तो वह और भी ज्यादा व्याकुल हो गई अपने बेटे के लंड को अपनी बुर में लेने के लिए,,,,,। कोई और वक्त होता तो शायद सुगंधा दरजी को कभी हाथ भी नहीं लगाने देती ,, लेकिन इस समय का हालात कुछ और ही था दर्जी की वजह सही है तो मां बेटे दोनों उत्तेजना के चरम शिखर पर विराजमान हो चुके थे और एक अद्भुत अविस्मरणीय अनुभव से गुजर रहे थे। और ऐसा सुगंधा ने दर्जी को करने भी थे शायद इसी से ही उसे आनंद प्राप्त हो रहा था।

अंकित चढ़ाई करने के लिए तैयार हो चुका था वह दर्जी की आंखों के सामने ही अपने मोटे तगड़े लंड को हाथ में लेकर हिलाते हुए अपनी मां की दोनों टांगों के बीच से उसे ले जाकर के उसके गुलाबी छेद से सटा दिया और दर्जी की उत्तेजना को और ज्यादा बढ़ाते हुए बोला,,,,।

आहहहह उस्ताद साली की बुर बहुत गर्म है,,,,।

डाल दे बेटा अंदर गम बुर वाली औरत ज्यादा मजा देती है,,,,।

बस उस्ताद धीरे-धीरे अंदर जा रहा है लेकिन इसकी बुर बहुत कसी हुई है,,,।

तब तो तू बहुत किस्मत वाला है क्योंकि कसी हुई बुर बहुत किस्मत वालों को ही मिलती है,,,।

क्यों मैडम जा रहा है ना लड़के का लंड,,,।
( दर्जी के इस बात पर सुगंधा शर्म से पानी पानी होने लगी लेकिन वह कुछ बोली नहीं बल्कि उसके इस बात का जवाब वहां अपने लाल-लाल होठों को अपने दांत से काट कर दी वह पूरी तरह से मदहोश हो गई थी क्योंकि उसे एहसास हो रहा था कि उसके बेटे का लैंड उसके बुर की गहराई तक घुस गया था और अंकित अपनी मां की कमर पकड़ कर अपनी कमर हिलाना शुरू कर दिया था वह दर्जी की आंखों के सामने अपनी मां की चुदाई कर रहा था उसे बहुत मजा आ रहा था आज उसका लंड कुछ ज्यादा ही कड़क महसूस हो रहा था ऐसा लग रहा था कि जैसे लोहे का रोड हो गया हो,,,, दर्जी को ललचाने के लिए सुगंधा अपने मुंह से सिसकारी की आवाज निकल रही थी।

सहहहह आहहहह ऊईईईईई मां,,,,,ऊमममममम,,,, बहुत मोटा है रे तेरा आहहहहहह बहुत मजा आ रहा है,,,,आहहहहहह और जोर-जोर से चोद,,,,।

(सुगंधा के मुंह से इतना सुनकर दर्जी की हालत और ज्यादा खराब होगी और काउंटर पर पूरी तरह से झुकी हुई थी उसके दोनों खरबूजे काउंटर पर ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी थाली में सजा कर रखे गए हो जिसे देखकर दरजी के मुंह में पानी आ रहा था वह पूरी तरह से पागल हुआ जा रहा था और उसकी चूची को पकड़ने की लालच का वह रोक नहीं पाया वह धीरे से अपना हाथ आगे बढ़ाया और दोनों हाथों से सुगंधा की चूची पकड़ कर दबाना शुरू कर दिया इतने से ही दर्जी पूरी तरह से मस्त हो गया,,,,, सुगंधा भी मस्ती के सागर में पूरी तरह से डुबकी लगा रही थी उसे अच्छा लग रहा था उसने कभी सोचा नहीं थी कि कोई अनजान मर्द इस तरह से उसके अंगों से खेलेगा,,, लेकिन यह सब उसके बेटे की देन थी जो वह यह सब करने पर मजबूर हो चुकी थी और ऐसा करने में उसे मजा भी आ रहा था तभी सुगंधा को न जाने क्या सुझा वह अपना हाथ आगे बढ़ाकर,,, दर्जी की लूंगी के दोनों पट को खोलने लगी और अगले ही पल उस दर्जी का लंड एकदम से सुगंधा की आंखों के सामने आ गया,,, जिसमें तनाव आ चुका था और वह एकदम से झूल रहा था लेकिन उसे देखने के बाद सुगंधा इतना तो समझ गई थी की जवानी के दिनों में यह पूरी तरह से तबाही मचा दिया होगा,,,,, सुगंधा की इस तरह की हरकत से तो दर्जी पूरी तरह से बावला हो गया,,, और अपने दोनों हाथों का कसाव सुगंधा के खरबुजो पर बढ़ाने लगा,,,, सुगंधा अपने होशो हवास में ऐसा कभी नहीं करती लेकिन इस समय उसके दिमाग पर वासना पूरी तरह से हावी हो चुका था और वह धीरे से उसे दर्जी का लंड अपने हाथ में पकड़ ली और उसे धीरे-धीरे हिलाने लगी,,,,, और पीछे से अंकित ताबड तोड़ धक्के पर धक्का मार रहा था,,,, वह जमकर अपनी मां की चुदाई कर रहा था।

लेकिन सुगंधा की हरकत दर्जी सह नहीं पाया और उसके लंड से पिचकारी छूट गई जो सीधा सुगंधा के हथेली को भिगो दिया दर्जी की हालत देखने लायक थी वह पूरी तरह से पस्त हो चुका था लेकिन अभी भी सुगंधा की दोनों चुचियो को थामे हुए था। सुगंधा के मुंह से लगातार शिसकारी की आवाज निकल रही थी। वह चरम सुख के करीब पहुंच चुका था और धीरे से अपने हाथ को कमर पर से हटाकर अपनी मां के कंधों पर रख दिया और उसे किसी लगाम की तरह अपनी तरफ खींचते हुए अपनी कमर को जोर-जोर से आगे पीछे करके ही आने लगा और देखते ही देखते मां बेटे दोनों एक साथ झड़ने लगे,,,, अंकित अपने मन की कर चुका था यह अनुभव मां बेटे दोनों के लिए यादगार बन गया था,,,,, दरवाजे पर दस्तक हो रही थी बाहर शायद कस्टमर आ गया था यह देखकर मां बेटे दोनों जल्दबाजी दिखाने लगे और सुगंधा जल्दी-जल्दी अपने कपड़े पहने लगी अच्छा हुआ कि उसके बेटे ने उसकी साड़ी निकाल कर उसे पूरी तरह से नंगी नहीं किया था वरना हड़बड़ाहट में वह ठीक तरह से कपड़े भी नहीं पहन पाती,,,, अपने कपड़ों को दुरुस्त करने के बाद अंकित जाकर दरवाजा खोल दिया,,,, दो औरतें खड़ी थी अपना ब्लाउज सिलवाने के लिए वह दोनों के अंदर आते हैं अंकित और उसकी मां दोनों ब्लाउज वाला थैला लेकर दुकान से बाहर निकल गए और दर्जी कुर्सी पर बैठकर गहरी गहरी सांस ले रहा था। जल्दबाजी में सुगंधा ने सिले हुए ब्लाउज के पैसे भी नहीं चुकाई थी और अब शायद इसकी जरूरत भी नहीं थी।

Gazah ki garamagaram update he rohnny4545 Bro

Aag hi laga di...........

Keep posting bro
 

sunoanuj

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एक बार फिर से अंकित मौके का फायदा उठाते हुए सुमन की मां की चुदाई कर चुका था वैसे तो सुमन सबसे पहले लाइन में थी लेकिन सुमन की चुदाई अभी तक उसने नहीं किया था लेकिन उसकी मां की चुदाई वह तीन बार कर चुका था और तीनों बार उसे तृप्त कर चुका था भले ही वह उचित समय उसकी मां को नहीं दे पाया था लेकिन कम समय में ही सुमन की मां अंकित की चुदाई से तृप्त हो चुकी थी और बार-बार उसे एहसास होता था कि जैसे अभी भी उसके गुलाबी गली में अंकित का लंड चहलकदमी कर रहा हो,,, सुमन की मा जा चुकी थी लेकिन जाते-जाते एक अद्भुत अनुभव और आनंद अपने जेहन में समेटे गई थी,,, ।




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लेकिन वह इस बात से हैरान थी कि अंकित वाकई में जैसा दिखता है वैसा बिलकुल भी नहीं है वह अंकित को बेहद सीधा-साधा लड़का समझती थी लेकिन तीन मुलाकातों में ही उसकी सोच पूरी तरह से बदल चुकी थी उसे समझ में आ गया था कि अंकित भले ही दिखता सीधा-साधा है लेकिन अंदर से तो एक मर्द ही है और एक मर्द औरत को किस तरह से खुश रखता है उसका हुनर वह बेखुबी जानता था,,, सुमन की महेश बात से भी हैरान थी कि उसने कभी भी अंकित के मुंह से असली शब्द नहीं सुने थे लेकिन वह कैसा बेशर्मों की तरह उसके सामने चुदाई की बातें कर रहा था लंड की बातें कर रहा था उसे बिल्कुल भी परवाह नहीं था कि वह क्या सोचेगी,, और शायद इसलिए भी की अंकित उसकी दो बार चुदाई कर चुका था और वाकई में जब औरत की चुदाई कोई मर्द करने लगता है तो उसे औरत के सामने वह पूरी तरह से बेशर्म बन जाता है और उसके सामने कुछ भी कहने से बिल्कुल भी नहीं हीचकीचाता,,,, और वही हाल अंकित का हो गया था। सुमन की मां अंकित की हिम्मत की मां ही मन दादा दे रही थी क्योंकि वह कभी सोची नहीं थी कि अपनी मां की उपस्थिति में वह इस तरह की हरकत कर बैठेगा जबकि वह खुद डर रही थी,,, एक औरत होने के नाते इस तरह के कदम उठाने में वह बेहद घबरा रही थी और उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जिसके कैमरे में वह चाय पीने के लिए जा रही है उसी के कमरे में उसकी चुदाई होने वाली है जबकि वह अंकित से चुदवाने ही आई थी,, लेकिन सुगंधा की उपस्थिति में वह हिम्मत नहीं कर पाई थी। और अपने अरमानों के पंख को वह समेट चुकी थी,,,, वह थोड़े गुस्से में थी वह घर से निकल जाना चाहती थी लेकिन जिस तरह से सुगंधा ने उसे चाय पीने के लिए रोक ली थी वह जा भी नहीं सकती थी।





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लेकिन जितना वह अंकित को समझती थी उससे कहीं ज्यादा वह चालक और औरतों के मामले में एकदम लंपट था,,,, उसे अच्छी तरह से याद था कि जब वहां का उसके घर आया था सुमन से परीक्षा के बारे में कुछ सलाह लेने के लिए तो वह बाथरूम का दरवाजा खोलकर एकदम नंगी नहा रही थी और उसकी नजर उसे पर पड़ गई थी तो वह एकदम से शर्मा गया था लेकिन वह यह नहीं जानती थी कि इस एक पल के दीदार के बदले में अंकित बेझिजक उसकी चुदाई करने लगेगा,,,, सुमन की मां अपने मन में यह सोचकर हैरान हो रही थी कि कैसे अपनी मां के सामने सीधा-साधा बनाकर चाय और नाश्ते की प्लेट को लेकर के वह उसे चाय पिलाने के लिए अपने कमरे में लेकर गया था और बड़ी चालाकी दिखाते हुए दरवाजे को बंद करने के बाद उसने कड़ी भी नहीं लगाया था शायद इस बात को वह जानता था कि अगर दरवाजा अंदर से बंद रहेगा तो उसकी मां को शक होगा कि ऐसा क्या हो रहा है जो अंकित ने दरवाजा बंद कर लिया है क्योंकि वह तो चाय पिलाने के लिए अपने कमरे में लेकर गया था। और जब अंकित अपनी मनमानी करने पर उतारू हो गया था तो सुमन की वॉइस बात से डर रही थी कि कमरे का दरवाजा तो खुल ही है अगर सुगंधा आ गई तो गजब हो जाएगा,,, लेकिन उसकी बात ना मानते हुए अंकित अपने ही मन की कर रहा था वह दरवाजे पर कड़ी नहीं लगाया था और अपनी हरकतों से उसे पूरी तरह से मदहोश कर दिया था जबकि वह इसके लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थी और वह भी सुगंधा की उपस्थिति में,,,।




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पर वह गलत थी की अंकित नादान है दो बार उसने जरूर उसकी चुदाई किया था उसे ऐसा लग रहा था कि उसके कहने पर उसकी प्यास को देखते हुए अंकित ने ऐसा किया था लेकिन उसका भ्रम एकदम से टूट गया था जब उसके ना चाहने के बावजूद भी उसके इनकार करते हुए भी अंकित अपनी हरकतों से उसे पूरी तरह से मदद कर दिया था जो कि इस बात का सबूत था कि अंकित औरतों को खुश करने का हुनर अच्छी तरह से जानता था और उसकी हरकतों से मदहोश होकर सुमन की मां इनकार नहीं कर पाई थी। और कमरे का दरवाजा खुला होने के बावजूद भी उसके हाथों की कठपुतली बनकर वह उससे चुदवाने लगी थी,,, और वह हैरानी इस बात से भी थी कि इन सबके बावजूद भी उसे अद्भुत आनंद की प्राप्ति हो रही थी अंकित ने जिस तरह से उसे दीवार से सटाकर पीछे से उसकी चुदाई किया था और फिर थोड़ी ही देर बाद उसे बिस्तर पर लेट कर जमकर अपनी कमर हिला कर उसे अद्भुत सुख की प्राप्ति करवाया था वह काबिले तारीफ थी इसलिए मन ही मन वह अंकित को धन्यवाद देते हुए सुगंधा के घर से चली गई थी और इस बात की भनक घर में होने के बावजूद भी सुगंधा को बिल्कुल भी नहीं हो पाई थी।




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मां बेटे दोनों घर में काम लीला का प्रचंड खेल खेल रहे थे जिसकी कोई सीमा नहीं थी जब भी दोनों को मौका मिलता दोनों एक दूसरे में समाने की पूरी कोशिश करते थे और कामयाब हो जाते थे, क्योंकि घर में उन दोनों के सिवा कोई था भी नहीं उन दोनों को रोकने रोकने वाला कोई नहीं था इसलिए दोनों को किसी बात का डर भी नहीं था। और कभी-कभी तो मां बेटे दोनों घर में नंगे ही घूमते थे खाना बनाना,,, खाना खाने से लेकर के दिनचर्या के हर जरूरत को वह बिना कपड़ों के ही पूरा करते थे और उन्हें बिना कपड़ों में घर में रहना बहुत अच्छा भी लगता था लेकिन अंकित कोई बात की तकलीफ हो जाती थी कि बार-बार उसका लंड अपनी मां की जवानी देखकर खड़ा हो जाता था। और फिर अपनी मां की बुर में डालने के नाम से से रहा नहीं जाता था इस बात से सुगंधा भी परेशान थी लेकिन उसे बहुत मजा आता था। अंकित पूरी तरह से स्वर्ग का शुख भोग रहा था और वाकई में उसे ऐसा लगता था कि जीवन में इससे बड़ा सुख कोई हो ही नहीं सकता और कुछ हद तक यह बात सही ही थी क्योंकि कुछ महीने पहले वहां औरत के साथ संभोग रत होने की सिर्फ कल्पना किया करता था,,, और आज वह जब चाहे तब अपनी मां की बुर में लंड डालकर अपनी जवानी की प्यास बुझा सकता था लेकिन धीरे-धीरे यह प्यास बढ़ने लगी थी।





ब्लाउज की डिलीवरी लेने से पहले एक दिन शाम को मां बेटे दोनों बैठकर चाय पी रहे थे अंकित के मन में कुछ और चल रहा था वह चाय की चुस्की लेते हुए कुछ सोच रहा था यह देखकर सुगंधा बोली।

क्या सोच रहा है,,,,?


मैं सोच रहा था कि कुछ अलग करते हैं,,,,।

अब जो कुछ भी हम लोग कर रहे हैं इससे अलग क्या होगा,,,।

करना तो यही है लेकिन कुछ अलग तरीके से,,, अच्छा एक बात बताओ उस दिन दर्जी की दुकान में तुम्हें मजा आया था कि नहीं।

बिल्कुल आया था उसे दिन तो मेरी बुर बार-बार पानी छोड़ रही थी,,, खासकर के दर्जी की आंखों के सामने जो कुछ भी हो रहा था उससे तो मेरी हालत और ज्यादा खराब हो रही थी।

और दर्जी की हालत,,,!

सच कहूं तो वह तो पागल हुआ जा रहा था मेरी जवानी देखकर हालांकि वह कुछ करने लायक तो था नहीं लेकिन फिर भी उसके भी अरमान मचल रहे थे यह उसका चेहरा देखकर साफ पता चल रहा था।

और सोचो मम्मी अगर उसे दिन में उसे दरजी के सामने तुम्हारी साड़ी उठाकर तुम्हारी चुदाई करने लगता तो,,,।




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हाए हाए काश ऐसा हो पाता कितना मजा आता ,,,,(सुगंधा एकदम से रंगीन ख्यालों में खोते हुए बोली)

बस यही तो मैं कहना चाहता हूं,,,,।

क्या कहना चाहता हैं,,,,!(सुगंधा आश्चर्य से हाथ में चाय का कप लिए हुए अंकित की तरफ देखते हुए बोली)

अच्छा एक बात बताओ तुम उस दरजी को पहले से जानती हो।


बिल्कुल भी नहीं मैं तो पहली बार उसकी दुकान पर गई थी इसके बारे में कुछ महीने पहले एक औरत ने मुझे बताई थी,,,।

इसका मतलब है कि उस दर्जी से कोई मेलजोल नहीं है वह ना तो तुम्हें जानता है और ना ही तुम उसे जानती हो और वह यह भी नहीं जानता कि तुम कौन हो कहां रहती हो क्या करती हो।


हां बिल्कुल,,,, ना तो मैं उसके बारे में कुछ जानती हो नहीं वह मेरे बारे में कुछ जानता है और तूने देखा तो वह दुकान भी कितनी दूर है वहां पर हम लोगों का आना-जाना भी नहीं होता।

बस तब तो बात बन गई,,,(अंकित एकदम से खुश होता हुआ बोला)

यह तु क्या बोल रहा है,,,, मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है,,,,।


मैं तुम्हें समझता हूं जब मर्द और औरत के बीच शारीरिक संबंध स्थापित हो जाता है और वह दोनों बार-बार चुदाई का सुख भोगते हैं तो मर्द और औरत अपने यह सुख को और भी बढ़ाने की सोचते हैं,,,, अच्छा सच बताना तुम भी इस मजे को और भी ज्यादा बढ़ाना चाहती हो कि नहीं ताकि और ज्यादा मजा आए,,,।


हां क्यों नहीं मैं क्या कोई भी औरत इस मजे को बढ़ाना ही चाहिए बल्कि कम थोड़ी ना करना चाहेगी।


बस यही तो मैं कहना चाहता था और अभी-अभी तुम कहीं की अगर मैं उसे दिन दरजी के सामने तुम्हारी साड़ी उठाकर तुम्हारी चुदाई करने लगता तो तुम्हें और भी ज्यादा मजा आता।

हां तो,,,?(सुगंधा फिर से हैरान होते हुए अपने बेटे की तरह देखते हुए बोली,,,,)


मैं चाहता हूं कि तुम्हें मैं वह सुख दूं,,,,,।
(अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा कुछ देर सोचने लगी और जैसे ही अपने बेटे की बात के कहने का मतलब को वह समझ पाई हो एकदम से हैरान हो गई और तपाक से बोली)


पागल हो गया क्या तू मैं किसी अनजान के सामने साड़ी उठाकर तुझसे चुदवाऊं,,,,, नहीं नहीं यह मुझे बिल्कुल भी नहीं होने वाला और अपने इस घटिया से युक्ति को अपने मन में ही रख।



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मेरी बात समझने की कोशिश करो अनजान के सामने चुदवाने के लिए बोल रहा हूं किसी अनजान से चुदवाने के लिए नहीं मेरे से चुदवाने के लिए बोल रहा हूं।


नहीं नहीं मुझे यह बिल्कुल भी नहीं हो पाएगा पागल हो गया है क्या तू किसी ने हमें देख लिया तो गजब हो जाएगा और वह दर्जी अगर वह दर्जी कुछ करने लगा तो।


तुम्हें लगता है वह कुछ कर पाएगा बल्कि वह तो मजा ले रहा था उसे भी देखने में मजा आएगा,,,,, मम्मी मान जाओ ना बहुत मजा आएगा सारी जिम्मेदारी मेरी रहेगी।
(अपने बेटे की बात सुनकर जहां एक तरफ वह हैरान हो रही थी वहीं दूसरी तरफ उसकी युक्ति से उसके मन में भी गुदगुदी होने लगी थी वह तो अपने मन में कल्पना भी करने लगी थी कि कैसे सब कुछ होगा उसे कल्पना में सबको साथ दिखाई दे रहा था कि वह दर्जी की दुकान में है और उसका बेटा उसकी साड़ी कमर तक उठाकर काउंटर पर झुककर पीछे से उसकी चुदाई कर रहा है और वह दर्जी पागलों की तरह उसे देखकर अपने धोती के ऊपर से अपने लंड को मसाला है जो की बेजान सा पड़ा हुआ था। इस तरह की कल्पना से उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर उठने लगी थी लेकिन फिर भी इसमें डर भी बहुत था किसी के देखे जाने का डर था किसी के द्वारा पकड़े जाने का डर था समझ में बदनामी का डर था इन सब के बावजूद भी अंकित अपनी मां को मनाने की पूरी कोशिश कर रहा था और बोला।)




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कुछ नहीं होगा मम्मी तुम एक बार मान तो जाओ,,, देखी थी ना कितनी देर तक हम दोनों उसके दुकान में थे लेकिन एक भी ग्राहक नहीं था। एकदम खाली दुकान थी और वह दर्जी भी कुछ नहीं कर पाएगा


अरे जरूरी है,,,, कि उस दिन भी दुकान में कोई ना हो,,,,, अगर कोई दुकान में हुआ तब क्या करेंगे,,,,।

(अपनी मां की यह बात सुनकर अंकित के चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी थी क्योंकि उसने जिस तरह से यह बात की थी कि अगर कोई दुकान में हुआ तब क्या करेंगे इसका मतलब साफ था कि वह भी मन ही मन तैयार थी,,,, इसलिए अंकित खुश होता हुआ अपनी मां से बोला,,,)

तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो अगर दुकान में कोई हुआ तो हम दोनों जैसा बिल्कुल भी नहीं करेंगे बस मौका मिलेगा तो ही यह सब करना है जरूरी नहीं है कि जो काम की मन में ठान कर जा रहे हैं उसे किसी भी हालत में पूरा ही करना है,,,,।

लेकिन यह सब होगा कैसे,,,,,(कुछ देर सोचने के बाद वहां हाथ में लिया हुआ कप टेबल पर रखते हुए बोली,,,) मेरा मतलब है कि हम दोनों साथ में जाएंगे तो क्या उसे शक नहीं होगा...?

मैं जानता था तुम यही कहोगी मैं अपने मन में सब सोच रखा हूं हम दोनों साथ में जाएंगे ही नहीं मैं तकरीबन अर्धा घंटा पहले ही दुकान पर पहुंच जाऊंगा और दर्जी को सबकुछ समझा दूंगा,,,, कोई दिक्कत नहीं होगी,,,,।




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मुझे तो बहुत डर लग रहा है,,,!

इसमें डरने की कोई जरूरत नहीं है जरा यह सोचो अगर हम दोनों सफल हो गए तो कितना मस्त अनुभव होगा जिंदगी भर याद रहेगा और यह भी तो सोचो तुम अपनी गर्म जवानी से उस दर्जी की हालत खराब कर दोगी,,,,,।


अगर वह भी कुछ करने की कोशिश किया तो।

साले का मुंह तोड़ दूंगा तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो,,,,। कल ही डिलीवरी लेने जाना है कुछ में मन में फिट कर लिया हूं कैसे क्या करना है तुम बस एक ग्राहक के तौर पर ही वहां जाना बाकी सब कुछ में संभाल लूंगा,,,।


अंकित मुझे तो डर लग रहा है तो कुछ ज्यादा ही नहीं हवा में उड़ रहा है।


कल तुम्हें पता चलेगा की हवा में उड़ने में कितना मजा आता है तुम्हारी जवानी का जोश ही मुझे पागल बना रहा है,,,(अंकित एकदम से हाथ आगे बढ़कर अपनी मां की चूची को ब्लाउज के ऊपर से दबाते हुए बोला)

तू सच में बहुत पागल हो गया है,,,,।


क्या करूं तुम्हारी गदराई जवानी का नशा ही कुछ ऐसा है कि एक बार दिमाग पर चढ़ जाता है तो उतरने का नाम ही नहीं लेता,,,,,।
(अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा हंसने लगी उसे इस बात की खुशी थी कि उसका बेटा पूरी तरह से उसकी जवानी की कैद में गिरफ्त हो चुका था,,, उम्र के ईस पड़ाव पर पहुंच चुकी औरत को और क्या चाहिए जब एक जवान लड़का पूरी तरह से उसकी जवानी के नशे में डूब गया हो दिन रात उसे पाने की कोशिश करता हो और उसमें अपना सुख ढूंढता हो यही तो सुगंधा को भी चाहिए था,,,,,,,, अपने बेटे की बात सुनकर सुगंध चाय का खाली कप टेबल पर से उठाते हुए और खुद भी कुर्सी से उठते हुए बोली,,,)


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चल अच्छा रहने दे जब देखो तब अपनी मनमानी पर उतारू रहता है,,,,, किसी दिन किसी को पता चल गया ना तो लेने के देने पड़ जाएंगे।

किसी को कुछ भी पता नहीं चलेगा,,,,

(सुगंधा हाथ में चाय का खाली कब लिए हुए उसे घर के पीछे की तरफ ले जाने लगी क्योंकि कुछ बर्तन वहां भी रखे हुए थे धोने के लिए,,,,, लेकिन वहां पर पहुंचते ही वह,,,, झूठे बर्तन में चाय का कप रखते हुए अपनी साड़ी उठाकर पेशाब करने के लिए बैठ गई तब तक पीछे से अंकित भी पहुंच गया था अपनी मां को पेशाब करते हुए देखकर उसकी बड़ी-बड़ी गांड देखते ही उसकी आंखों में मदहोशी छाने लगी और वह एकदम से, अपनी मां के पीछे पहुंच गया और अपना एक हाथ उसकी दोनों टांगों के बीच से ले जाते हुए अपनी हथेली को एकदम से उसकी बुर पर रख दिया जिससे उसकी पेशाब रुक गई और पेशाब की धार उसकी हथेली को पूरी तरह से भिगो दी अंकित की ईस हरकत पर सुगंधा एकदम से चौंक गई और बोली,,,)


तू सच में एकदम हरामी हो गया है क्या कर रहा है मेरी पैसाब रोक दिया,,,, हटा अपनी हथेली,,,,।

मुझे बताई क्यों नहीं कि तुम मुतने जा रही हो,,,।

पागल हो गया क्या आप सब कुछ तुझसे बता कर करूंगी,,,,।

करना चाहिए था ना क्योंकि मेरा बड़ा मन कर रहा था तुम्हारी बुर चाटने को,,,,।

तो चाट लिया होता,,,, (सुगंधा भी अपने बेटे की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए बोली) इस तरह से पेशाब रोकने की जरूरत क्या है और अब हाथ हटा मुझे पेशाब करना है,,,,.





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ऐसे नहीं पहले बताओ की बुर चटवाओगी कि नहीं,,,,

तू सच में पागल हो गया है मैंने कभी इंकार की हूं क्या,,,,?

यह हुई ना बात,,, (इतना कहने के साथ ही अंकित अपनी मां की बुर पर से अपनी हथेली को हटा लिया लेकिन अपनी हथेली को अपनी मां की बुर के सिधान से बिल्कुल भी नहीं हटाया,,,,, और बोला,,,) अब मुतो,,,

(अपने बेटे की हरकत से उसकी बातों से सुगंधा उत्तेजना से गदगद हो गई थी उससे बड़े जोरों की पेशाब लगी थी जिसे उसके बेटे ने ही रोक दिया था इसलिए वह चाहते हुए भी अपनी पेशाब को नहीं रोक पाई और उसकी बुर से फिर से पेशाब की धार फूटने लगी क्योंकि उसके बेटे की हथेली पर पड़ने लगी सुगंध को समझ में नहीं आ रहा था कि इतने में उसके बेटे को कौन सा मजा मिल रहा है लेकिन यह तो अंकित ही जानता था कि अपनी मां की बुर से निकलने वाली पेशाब की धार को अपनी हथेली पर महसूस करके उसे कितना उत्तेजना का अनुभव हो रहा था उसका लंड खड़ा हो गया था,,,,, वह पूरी तरह से मस्त हो गया था,,, लेकिन सुगंधा शर्म से पानी पानी हुई जा रही थी,,,, वह पूरी तरह से पेशाब नहीं कर पाई थी और अपनी पेशाब को रोक दी थी , क्योंकि उसे शर्म महसूस हो रही थी और वह अपने बेटे की हथेली पर मुतना नहीं चाहती थी,,, इसलिए अधूरे पर ही वह उठकर खड़ी हो गई,,,,, लेकिन अंकित का मन कहां मानने वाला था वह अपनी मां की बुर से पेशाब की बुंदो को चखना चाहता था उसके स्वाद का मजा लेना चाहता था,,,,, और जैसे ही उसकी मां उठ कर खड़ी हुई वह अपनी साड़ी को नीचे गिराती ईससे पहले ही अंकित अपनी मां की साड़ी को कमर से ही पकड़ लिया और उसे इस स्थिति में एकदम से दीवार से सटा दीया जहां पर उसकी मां पेशाब कर रही थी,,,,,
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शाम का समय था घर के पीछे बड़ा सा मैदान था जो कि निचले स्तर पर था वहां पर कुछ बच्चे खेल रहे थे,,,,, जिनका शोर उन दोनों को एकदम साफ सुनाई दे रहा था लेकिन जिस तरह से अंकित ने अपनी मां की कमर पर ही उसकी साड़ी पकड़कर उसे दीवार से सटाया था,,, सुगंधा की सांसें ऊपर नीचे हो गई थी,,, वैसे भी इस समय वहां साड़ी के अंदर चड्डी नहीं पहनी थी इसलिए सारा काम आसान नजर आ रहा था सुगंधा की सांसों पर नीचे हो रही थी वह बेहद गहरी चल रही थी और गहरी जल्दी सांसों के साथ ही उसके ब्लाउज में तने हुए उसकी दोनों चूचियां भी ऊपर नीचे हो रही थी और जिस तरह से वहां अपने बेटे की तरफ देख रही थी उसकी आंखों में भी मदहोशी और जवानी का नशा एकदम साफ दिखाई दे रहा था। वह जानती थी कि इस समय उसका बेटा क्या करने वाला है लेकिन इस बात को भी अच्छी तरह से जानती थी कि उसकी बुर पर उसकी पेशाब की बूंदे अभी भी लगी हुई है और अगर उसका बेटा उसकी बुर चाटेगा तो उसकी पेशाब की बुंद को भी चाट जाएगा,,,, लेकिन वह ईस समय अपने बेटे को रोक नहीं सकती थी,,,,, और देखते ही देखते अंकित अपने घुटनों के बल बैठकर,,, अपने होठों को अपनी मां की गुलाबी बुर से सटा दिया,,।


और उसे चाटना शुरू कर दिया, अंकित विश्वास को अच्छी तरह से जानता था कि उसकी मां की बुर पर पेशाब की बुंद लगी हुई है और वह खुद उसका स्वाद लेना चाहता था इसलिए वह पूरी तरह से आनंद के सागर में डूबने लगा क्योंकि उसकी मां की बुर पर लगे हुए पेशाब की बूंद का स्वाद एकदम खारा नमकीन था वह तो पागलों की तरह अपनी मां की बुर को चाटना शुरू कर दिया अपने दोनों हाथों को उसकी बड़ी-बड़ी गांड पर रखकर उसे दबाते हुए उसकी बुर चाट रहा था अपने बेटे की बुर चटाई से सुगंधा एकदम आनंदित हो उठी और तुरंत अपनी टांग उठा कर उसके कंधे पर रख दे और वह भी अपने दोनों हाथों से अपने बेटे का कर पकड़ कर उसे अपनी बुर पर दबाना शुरू कर दी,,,,, अपनी मां का जोश देखकर अंकित की हालत खराब हो रही थी और उसकी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी वह भी पागलों की तरह अपनी मां की बुर को चाटना शुरू कर दिया था जितना हो सकता था उतना अपना जीभ अंदर की तरफ ले जाकर उसकी मलाई चाट रहा था।

लेकिन तभी सुगंधा के बदन में सनसनाहट फैलने लगी उसे महसूस होने लगा कि वह अपने पेशाब को अधूरा ही छोड़ दी थी जो कि इस समय जोर मार रहा था उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें और जिस तरह से उसका बेटा उसकी बुर चाट रहा था पूरी तरह से बेकाबू हो चुकी थी,,,,, और उसे महसूस होने लगा था कि उसकी पेशाब अब हुई तब हुई ऐसे हालात पर पहुंच चुकी थी वह अपने आप पर बहुत काबू करने की कोशिश कर रही थी लेकिन ऐसा हो नहीं रहा था क्योंकि उसके बेटे की थी उसकी बुर में सनसनी फैला रहा था जिससे वह बेकाबू हुई जा रही थी। और लाख रोकने के बावजूद भी वह अपने पेशाब के जोर को रोक नहीं पाई और अगले ही पल भर भला कर उसकी बुर से पेशाब की बार फूटने लगी जो सीधा उसके बेटे के मुंह में गिर रही थी,,,,, शुरू में तो अंकित को समझ में ही नहीं आया कि यह क्या हो रहा है लेकिन जैसे उसे इस बात का एहसास हुआ कि उसकी मां की बुर से पेशाब की धार फुट रही है तो वह एकदम से तर गया वह एकदम से मदहोश हो गया और अपने मुंह को पूरी तरह से खोल दिया,,,,, और अपनी मां की बुर से निकलने वाली नमकीन धार को अपने गले के अंदर उतरने लगा यह सब सुगंधा अपनी आंखों से देख रही थी उसकी आंखों में मदहोशी खुमारी छा रही थी वह पूरी तरह से पागल हुए जा रही थी,,,,,

वह पूरी कोशिश की थी अपनी बुर से निकलने वाली पेशाब की धार को रोकने के लिए और उसकी यह कोशिश कुछ हद तक पेशाब की धार को रोकने में कामयाब होती नजर आ रही थी लेकिन धार इतनी बेकाबू थी कि वह सफल नहीं हो पाई रुक-रुक के उसके बेटे के मुंह में गिरती रही और जब उसे लगने लगा कि अब उससे नहीं संभल पाएगा तो वह एकदम से छूट गई और गहरी सांस लेते हुए अपनी पेशाब की धार को अपने बेटे के मुंह में गिरने लगी और उसका बेटा उसे अमृत की धार समझ कर अपनी गले के नीचे लेने लगा वह पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका था मदहोश हो चुका था आज पहली बार उसे इस तरह से आनंद प्राप्त हो रहा था वरना वह अपने मां की बुर की चटाई तो बहुत बार कर चुका था लेकिन पहली बार उसके पेशाब का स्वाद ले रहा था और यह अनुभव सुगंधा के लिए भी पहली बार का था। मां बेटे दोनों पूरी तरह से मदहोश हो चुके थे सुगंधा के मुंह से तो शिसकारी की आवाज फूट रही थी,, और बड़े तेजी से फूट रही थी क्योंकि वह जानती थी कि इस समय उसकी शिसकारी की आवाज बच्चों के खेल के शोर में दब जाएगा,,,, इसलिए को खुलकर मजा ले रही थी।

पूरी तरह से तृप्त होने के बाद अंकित अपनी मां की बुर पर से अपने होठों को हटाया और गहरी सांस लेता हूं अपनी मां की तरफ देखने का मां बेटे दोनों की नजर आपस में टकराई और सुगंध शर्मा से पानी पानी होने लगी,,,, अपनी मां की दोनों जांघों को कस के पकडते हुए अंकित उठकर खड़ा हो गया,,,,, उसकी आंखों में चार बोतलों का नशा दिखाई दे रहा था,,,, वह पूरी तरह से उत्तेजना के परम शिखर पर पहुंच चुका था जिसका एहसास सुगंधा को हो रहा था क्योंकि इस समय उसका हाथ उसके पेंट के आगे वाले भाग पर था ,जिसमें विशाल तंबू बना हुआ था,,,, अंकित अपनी मां के मुंह को अपने हाथ से पकडते हुए बोला,,,।


आज क्या पिला दी मेरी रंडी मेरा लंड पागल हुआ जा रहा है,,,, चल घूम जा,,,, (उसके कंधे पकड़कर उसे घूमाते हुए बोला सुगंधा भी बिल्कुल भी देर नहीं की दीवार की तरफ मुंह करके खड़ी होने में क्योंकि वह जानती थी कि आप उसका बेटा क्या करने वाला है उसकी बुर में भी आग लगी हुई थी,,, वह दीवार पकड़कर खड़ी हो गई थी उसकी साड़ी कमर तक उठी हुई थी जिससे उसकी नंगी गांड एकदम से उजागर दिखाई दे रही थी और अंकित उस पर दो-चार चपत लगाता हुआ बोला,,,)

साली भोसड़ा चोदी तेरी गांड मुझे पागल बना देती है पता नहीं क्या हो जाता है मुझे,,,,,, (गांड पर चपत पर चपत लगाता हुआ अंकित बोले जा रहा था और सुगंधा नजर पीछे घूमर अपनी गांड की तरफ देखते हुए,, आहहहह आहहहहह,, ऊहहहहहह मां बोले जा रही थी,,,,,,, सुगंधा समझ गई थी कि उसका बेटा पूरी तरह से मदहोश हो चुका है आज उसकी जमकर चुदाई करने वाला है इसीलिए वह पीछे नजर घुमा कर अच्छी रही थी और अंकित अपने पेट की बटन खोलकर एक साथ अपनी अंडरवियर और पेंट को घुटनों तक नीचे खींच दिया,,,,, और उसका विशाल लंड फुंफकारने लगा,,,,, जिसे वह हाथ में पकड़ कर किसी हथौड़े की भांति अपनी मां की बड़ी-बड़ी गांड पर पटकने लगा जो कि इस समय चपत लगाने की वजह से टमाटर की तरह लाल हो चुकी थी,,,, अंकित जिस तरह से अपने मोटे लंड को अपनी मां की गांड पर पटक रहा था सुगंधा को अपनी गांड पर किसी हथोड़े के ही माफिक चलने का एहसास हो रहा था,,, वह मस्त हुए जा रही थी।

और फिर देखते ही देखते अंकित अपनी मां की गांड की एक भाग को पड़कर थोड़ा सा खींचते हुए उसके गुलाबी छेद को देखने लगा और जैसे ही उसकी गुलाबी गली नजर आई,, अंकित अपने मतवाले सांड को गली में घुसने के लिए उसे रास्ता दिखा दिया,,, और अगले ही पर गली गीली पाकर अंकित का लंड पहले प्रयास नहीं अंदर तक घुस गया और अंकित अपनी मां की कमर पकड़ कर उसे चोदना शुरू कर दिया,,,, एक बार फिर से अंकित घर के पीछे खुले में उजाले में अपनी मां की चुदाई कर रहा था क्योंकि वह जानता था कि यहां पर भी उसे देखने वाला कोई नहीं था क्योंकि घर के पीछे बड़ा मैदान था और उसमें बच्चे खेल रहे थे उन बच्चों का शोर सुगंधा की मदमस्त शिसकारी की आवाज को दबा दे रही थी।

अंकित अपनी मां को हुमच हुमच कर चोद रहा था,,,, उसे बहुत मजा आ रहा था अपनी मां की जवानी का स्वाद उसके होठों पर अभी भी लगा हुआ था जिसे वह बार-बार अपनी जीभ बाहर निकाल कर अपने होठों से चाट ले रहा था। अंकित अपनी जवानी के जैसे अपनी मां को पूरी तरह से हिला दे रहा था, सुगंधा को भी मजा आ रहा था अपने बेटे का जोश देखकर वह भी अपनी बड़ी-बड़ी गांड को पीछे की तरफ दे मार रही थी,,,, तकरीबन 20 मिनट की जबरदस्त चुदाई के बाद मां बेटे दोनों झड़ने लगे,,,,,, दोनों मस्त हो चुके थे। दोनों संतुष्ट होने के बाद साथ में बैठकर बर्तन भी मांज रहे थे,,,, सुगंधा और उसका बेटा कल के दिन के लिए बेताब नजर आ रहे थे एक अलग अनुभव के लिए।

Bahut hee badhiya update diya hai …
 
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