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धन्यवाद बड़े भाई , आप जैसे महानुभावों से ही सीख रहें है।#151
भाई, ये नेवले का चक्कर लगाना थोड़ा थोड़ा यिन-यांग जैसा लगा। घड़ी का चक्र हमने अपने सहूलियत के लिए बनाया है - भौतिकी का वो नियम नहीं है।
लेकिन दोनों ने clockwise और anti-clockwise चक्कर लगा कर यिन-यांग या अनंत बना दिया।
जीवन-चक्र अनंत ही तो है।
बहुत बढ़िया लेख रहा नेवले का रहस्य सुलझाना।

भाई जब लम्बे अन्तराल के बाद अपनी नव विवाहिता से मिल रहा हो तो कंट्रोल नही हुआ होगा।#152
ऐसी अंतरंग घटना हुई हो और शलाका को उसकी याद भी न हो, तो ऐसा केवल एक ही कारण से हो सकता है।
वो लड़की शलाका नहीं, आकृति थी। उसने धोखे से वो अमृत बूँद पी ली रहेगी।
लेकिन यहाँ एक प्रश्न है -- कैसे वो अपनी प्रेमिका को पहचान नहीं सका? वो तो प्रकृति के संग एकाकार होने का बड़ा दम्भ भरता था।
चिड़ियों और तितलियों से बातें कर सकता था। तो फिर एक छल करने वाली लड़की की सच्चाई कैसे न जान सका वो?
ऐसे में बड़े बडों से चूक हो जाती हॅ।और एक बात, आकृती ने जान बूझ कर ही अमृत पिता था, बल्कि शलाका होती तो पहले आर्यन को पिलाती, फिर खुद पीती।

इसका जबाव मुझ से बेहतर आप ही दे सकते है सरकार#153
“इस समय शलाका को यही नहीं समझ में आ रहा था कि वह गलती किसकी माने, आकृति की जिसने आर्यन को धोखा दिया, आर्यन की ....जिसने एक माँ को उसके बालक से जुदा कर दिया या फिर स्वयं की ....जो उस समय आर्यन को बिना बताए, अपनी माँ का पार्थिव शरीर ले, अपने भाइयों के साथ एरियन आकाशगंगा चली गई थी, जिसकी वजह से आर्यन ने मृत्यु का वरण किया।”

ये हुई ना बात, 100% सहमतमेरे हिसाब से सबसे बड़ी गलती तो आकृति की है। वो अमृत लेने आई थी और उसके लिए उसने आर्यन से छल किया। संतान/बालक पाना उसका मकसद कभी था ही नहीं - वो उसको मिला। वो अपनी संतान की माता होने के योग्य नहीं है। इसलिए आर्यन का उस बालक को अपनी माँ से अलग करने में कोई बहुत बड़ा दोष नहीं (बस इतना ही कि वो शलाका के रूप में आकृति को पहचान नहीं सका)! कामाग्नि में वैसे भी मति मारी जाती है। कुछ गलती शलाका की भी हो सकती है - प्रेमियों में अगर संवाद न हो, तो सम्बन्ध के छिन्न भिन्न होने में समय नहीं लगता।
सो तो है। एक माॅ से उसकी संतान को दूर कर देना, सच में बोहोत बडा दंड है।वैसे आकृति को बहुत बड़ा दंड मिला है।
हास्य व्यंग्य भी बीच-बीच में जरूरी है भाई साहब , वरना सभी गाली देंगे। कहानी बोर हो जायेगी।#154
““यह कैश्वर तो कोई कविताकार लगता है, जहां देखो कविताएं लिख रखीं हैं।” ऐलेक्स ने हंसते हुए कहा।” -- हा हा हा हा हा! केश्वर है आशु कवि!![]()
कंकाल और ऑक्टोपस की लड़ाई! हा हा हा!

चोबे जी चले थे छब्बे जी बनने, दूबे जी बन कर रह गये।#155
अरे बाबा - ये A1 और A7 ने तो चुटकियों में धरा और मयूर को ढेर कर दिया! नाहक ही पिट गए दोनों।
गोंजालो, मकोटा का एक सेवक है। जिसे तमराज की और मकोटा की सेवा के लिए रक्खा गया है।#156 और #157
आया मकोटा और तमराज जैगन! हा हा हा!
गोंजालो? कौन?
द्वार क्रमाँक 2.2 थोड़ा आसान रहा। लेकिन अच्छा है - कभी कभी पहेलियों का आसान होना भी आवश्यक है।
ये थोड़े ही कि हमेशा तकलीफ़ में ही जिया जाए!
हर पडाव एक समान तो हो ही नही सकता प्रभू

तय है भाई।#158
कैस्पर वारुणि विक्रम -- इनको तो भूल ही गया लगभग। इसीलिए कहानी के संग बने रहना चाहिए।
वॉर ऑफ़ द वर्ल्डस की भूमिका रखी जा रही है। ई तो ससुरा होना ही था!
धन्यवाद भाई#159
भाई वाह -- चींटियों के बारे में, और उनकी नस्ली विविधता के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला इस अपडेट में।

#160
सैंटाक्लॉस की तरह का बूढ़ा, टोबो -- बचपन में एक साइकिल आती थी, टोबू साइकिल!
टीवी में उसका ऐड देख कर मन में मैंने ठान लिया था कि लूँगा तो वही साइकिल। लेकिन घण्टा!
बहुत सालों बाद मिली तो वो एटलस साइकिल - जिसको दूध बेचने वाले इस्तेमाल करते थे। हा हा हा हा!![]()
इस महावृक्ष ने बोहोत सी लीला रचाई है भाईवेगा और युगाका की शक्तियों का स्रोत समझ में आया।
धन्यवाद भाई, गुगल पर भी भिल सकता है काफी कुछ, मैने टीवी पर डिस्कवरी प्रोग्राम मे देखा था एक बार, बोहोत कुछ बताया गया था।#161
चींटियों का किस्सा ख़तम!
बहुत कुछ जाना इस पूरे वाक़ये में! धन्यवाद।
सही कहा भाई भाई जी, मेरी नजर में मकोटा ओर उसमें कोई अंतर नही है।#162
विल्मर को क्या लाभ हुआ सुनहरी ढाल का? कुछ नहीं!
व्यक्ति को अपनी हैसियत के हिसाब से वरदान माँगना चाहिए - अपात्र या कुपात्र को जब अपनी हैसियत से ऊपर कोई अनुचित स्थान मिलता है, तो वो उसको सम्हाल नहीं पाता। वर्षों से भारत देश के लगभग सभी राजनेता, न्यायाधीश, दरोगा इत्यादि सब या तो अपात्र हैं या कुपात्र। इसीलिए देश का ऐसा बुरा हाल हो गया है।
वैसे, कहा था न - ये आकृति बेहद नीच है। उसका घुन्नापन ख़तम ही नहीं होता।

अब क्या हो सकता है भाई, झेल लीजिए मेरे खातिर , अगली कहानी मे ऐसा गलती नही करूंगा। हमका माफी दैदो#163
आर्टेमिस मेलाइट अपोलो ज़ीउस और ऐसे ही असंख्य ग्रीक रोमन देवी देवताओं के नाम से उलझन होने लग गई है।

आप तो पहुंचे हुए निकले सर, हम तो हिंदुस्तान से बाहर ही नहीं निकले कभी।मैंने देखी है स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी। खूब भीड़ जुटती है उसको देखने के लिए - नाव से जाना होता है उस टापू पर। स्टेचू से बेहतर वो टापू लगता है। मूर्ति अच्छी है, लेकिन बोर भी खूब लगता है वहाँ।
MDCCLXXVI --- बहुत दिनों बाद रोमन में कोई अंक लिखा हुआ देखा।
ऐसा मत बोलिए भाई साहब, जैसा आप लिख लेते है, वैसा तो हम लिख ही नही पाते।अद्भुत है आपका लेखन भाई! कितना कुछ जानने और सीखने को मिलता है। वाह!
अहोभाग्य हमारे कि ऐसी महागाथा पढ़ने का लाभ मिला। वाह भाई!
वैसे आपके इस अप्रतिम, और शानदार रिव्यू के लिए आपका बोहोत-बोहोत आभार भाई।
स्वागत है आपका फिर से।वैसे अब हम साथ आ गए वापस।![]()



