- 36,625
- 72,102
- 304
Shandaar update and nice story
Nice update....
शानदार अपडेट राज भाई
Lovely update❤❤
Awesome update
Ab maza ayega
Update 148
let's Review Start
Teeno Information Badi Kaam ki Thee Neel Kamal Ke flower ke Bare mein itna Deep chale Gaye ki Kamal ko Hi Describe kar diya .
Capsure Ka machine Tilism ka Control keshwar Ne le liya Shayad Keshwar Ab capuse ke Order Na Maan Kar Khud Hi Decision Leta Hain Ya Jaigan Ki Team Mein Se ye Kaam Dekhta Ho
Keshwar ke Anusar Isme Agar Koi Ek Fasta Hain To Sab Mare Jayenge Iska MATLAB Tilism ke End Tak Ye Suyash and Company Jeetne Bache Jinda Rahege .
Cristi Ki Magic Pencil Shayad Tilism Mein Kaam Aaye Kyuki uska Pencil ki Powers Hamne Jyada Nahi Dekhe Hain .
Cristi ka Paul Wallet GAME yaha Kaam Aayega Shayad Shayad Isko Gymnastic bhi Aata Hain Issilye Pole vault aata Ho Kyuki Gymnastics Wale ki Body Lachili Rehti Hain .
Neel Kamal mein Shaffali Ka Dimag Chal Gaya Lekin Hamara Dimag Nahi chala ki Pehle Pankdi Ko Pehchane kese . MATLAB Simple Thaa ki Pehle wali Pankdi yani Outer Core Wali Pankdi Usme Jo badi Rahe Wahi simple Thaa lekin Yaha Pata Nahi Dimag mein aaya Hi Nahi .
Ab Ye Dravya wala mein reaserach kar decode karuga ki flower ko Todhe aur dravya Nikle Nahi .
free img host
Tilism ko Jiss Tarah Describe Kiya hain Isse Andaza Aagaya Ki Yaha Madness Level ki Cheeze Dhekne ko Milegi
Tilism No 4 Se mujhe Jyada Goosebumps ki Umeed Hain waha Se madness Milegi
I mean Indriyo Se Fight
Weather se Fight
Horoscope se Fight
Planet ke challenge ki Fight
Yaha Dimag Khapane wale Moment aayege Ju Apna Dimag To chalaoge Hi Sahi Sath Hi Read Ki Dimag Ka Dahi Kara Dene wale Ho .
Overall Shandaar Update
Waiting For More
Intezar rahega update ka
Bhut hi badhiya update Bhai
Tilism ki kahani shuru ho gayi hai
Suyash and team ko 28 dvar par karne hai vo bhi sabhi ko jinda
Dhekte hai ye sab kese tilism ko par karte hai
Besabari se intezaar rahega next update la Raj_sharma bhai....
nice update
Shaandar update
Nice update.....
Brilliant update and nice story
Hamesha ki tarah lajawab
Update ....
साधारण मनुष्य ने भी अखिर तिलस्मी द्वार के पहले पड़ाव को पार कर लिया.... अब बारी है आगे आने वाले दूसरे पड़ाव की
Nice update.....
Bahut hi shandar update he Raj_sharma Bhai
Is update se ek baat to clear ho gayi he ki apne dar se jo jit gaya vo manjil bhi jarur paa lega...........
Sabhi ke miljule efforts se ye pehla dwar to paar ho gaya.........
Keep posting Bro
Wonderful update brother!
Ek ungli kamjor hoti hai lekin jab sabhi ungli mil kar mutthi ban jati hai toh majbut nazar aati hai, yahan bhi bilkul wahi hua sabhi ki unity ne Tilism ke pahli dwar ko tod diya.
Mind Blowing update ❤❤❤
अरे मेरे भाई - ऐसा कुछ भी नहीं है।
आज कल एक व्यक्तिगत सरोकार के चलते बेहद व्यस्त हूँ। समय ही नहीं मिल रहा है।
ऐसी स्थिति आगे एक महीना तक रहने वाली लगती है।
न तो कुछ लिख रहे हैं और न ही पढ़ रहे हैं। ऐसा न सोचिए कि कोई नाराज़गी वाराज़गी है।
हाँ - संजू भाई का नहीं कह सकता।![]()
![]()
Bhut hi badhiya update Bhai
To sabhi ne apna dimag sath me use karke pahla dvar par kar liya
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
सुयश और टीम ने अपनी सुजबुझ दृढ इच्छाशक्ती और एक दुसरे के प्रति विश्वास साथ ही साथ अदम्य साहस से निलकमल को तोडकर तिलिस्मा के प्रथम व्दार पर विजय प्राप्त कर ली
बडा ही शानदार और जानदार अपडेट
ro
romanchak update..
Gaurav1969Besabari se intezaar rahega next update ka Raj_sharma bhai....
Nice update....#150.
एण्ड्रोवर्स आकाशगंगा:
(आज से 3 दिन पहले......13.01.02, रविवार, 16:30, फेरोना ग्रह, एण्ड्रोवर्स आकाशगंगा)
पृथ्वी से 2.5 मिलियन प्रकाशवर्ष दूर, एण्ड्रोवर्स आकाशगंगा।
फेरोना, एण्ड्रोवर्स आकाशगंगा का सबसे शक्तिशाली ग्रह था। यहां का विज्ञान यहां के 5 गुरुओं की वजह से बहुत ज्यादा उन्नत था।
इन 5 गुरुओं के समूह को ‘पेन्टाक्स’ कहते थे।
यहां के लोगों का मानना है कि पेन्टाक्स, आकाशगंगा के जन्म के समय से ही जीवित हैं, ये कौन हैं? कहां से आये हैं? कोई नहीं जानता? यहां के रहने वाले लोग देखने में लगभग पृथ्वी के ही लोगों के समान हैं, परंतु इनकी औसत आयु 10,000 वर्ष की होती है।
यहां के लोगों का शरीर हल्के नीले रंग का होता है।
यहां का राजा ‘एलान्का’ अपने महल में बैठा, अपनी खिड़की से अपनी आकाशगंगा की खूबसूरती को निहार रहा था, कि तभी एक सेवक ने आकर एलान्का का ध्यान भंग कर दिया।
“क्षमा चाहता हूं ग्रेट एलान्का, पर कमांडर ‘प्रीटेक्स’ आपसे इसी वक्त मिलना चाहते हैं।” सेवक ने कहा।
एलान्का ने हाथ हिलाकर सेवक को इजाजत दे दी।
कुछ ही देर में कमांडर प्रीटेक्स उनके कमरे में हाथ बांधे खड़ा था।
एलान्का के इशारा करते ही प्रीटेक्स ने बोलना शुरु कर दिया- “ग्रेट एलान्का, आप पिछले 4 दिन से बहुत व्यस्त थे, इसलिये मैं आपसे बता नहीं पाया, पर आज मैं आपका सपना साकार करने के बहुत करीब पहुंच गया हूं।”
“तुम्हारा मतलब.....तुम्हारा मतलब ‘ओरस’ मिल गया?” एलान्का ने खुशी व्यक्त करते हुए पूछा।
“हां ग्रेट एलान्का, पिछले 20 वर्षों से जिस युवराज ओरस की हमें तलाश थी, वो हमें यहां से 2.5 मिलियन प्रकाशवर्ष दूर एक हरे ग्रह पर मिल गया है।”
प्रीटेक्स ने एलान्का की ओर देखते हुए कहा- “आप तो जानते हैं कि जब से उसका ग्रह डेल्फानो तबाह हुआ है, तब से हम अपनी मशीनों के द्वारा उसे ढूंढने का प्रयास कर रहे थे, पर पिछले 20 वर्षों से उसका कहीं पता नहीं चल रहा था, पर अचानक 3 दिन पहले, उसने अपनी समय शक्ति का प्रयोग किया, जिसके सिग्नल हमें बहुत दूर से प्राप्त हुए, पर हमें उसके ग्रह का पता नहीं चल पाया था।
"इसलिये हमने ‘एण्ड्रोनिका’ स्पेश शिप को उस दिशा में भेज दिया था। एक दिन बाद ओरस ने फिर अपनी शक्तियों का प्रयोग किया, जिससे हम उसकी आकाशगंगा तक पहुंच गये और जब आज उसने फिर अपनी शक्तियों का प्रयोग किया, तो हमें उसके ग्रह का पता चल गया, जिससे मैंने एण्ड्रोनिका को उस ग्रह पर उतार दिया।
"अब वह जैसे ही अगली बार अपनी शक्तियों का प्रयोग करेगा, हमें उसकी वास्तविक स्थिति का पता चल जायेगा और हम उसे दबोच लेंगे। अब वह दिन ज्यादा दूर नहीं, जब समयचक्र आपके हाथ में होगा और फिर आप सभी मल्टीवर्स के अजेय सम्राट कहलायेंगे।”
“यह तो बहुत अच्छी खबर सुनाई तुमने प्रीटेक्स।” एलान्का ने खुश होते हुए कहा- “अच्छा ये बताओ कि ‘एण्ड्रोवर्स पावर’ इस समय कहां हैं? मुझे उनसे अभी मिलना है। मैं उनसे भविष्य के बारे में कुछ बात करना चा हता हूं?”
“जी..एण्ड्रोवर्स पावर तो एण्ड्रोनिका में ही हैं, मैंने ही उन्हें वहां पर भेजा है।” प्रीटेक्स ने डरते-डरते कहा- “वो ओरस को कंट्रोल करने में उनकी जरुरत पड़ सकती है, इसीलिये मैंने उन्हें वहां भेजा है।”
“क्या?” एलान्का ने गुस्सा दिखाते हुए कहा- “तुमने एण्ड्रोवर्स पावर को उस हरे ग्रह पर भेज दिया, जबकि तुम्हें पता भी नहीं है कि उस हरे ग्रह पर किस प्रकार के खतरे हैं?”
“पर एण्ड्रोवर्स पावर तो हर खतरे से निपटने में सक्षम हैं ग्रेट एलान्का।” प्रीटेक्स ने बीच में टोकते हुए कहा।
“तुम मूर्ख हो प्रीटेक्स।” एलान्का अब हद से ज्यादा गुस्से में दिखाई दे रहा था- “अरे, मैं उन शक्तियों का उपयोग समय से पहले नहीं करना चाहता था, नहीं तो एरियन आकाशगंगा के लोग उसकी भी काट ढूंढ लेंगे, फिर हम महायुद्ध में किसका उपयोग करेंगे?”
“क्षमा चाहता हूं ग्रेट एलान्का, पर आपसे बात ना हो पाने के कारण मैंने एण्ड्रोवर्स पावर को उस हरे ग्रह पर भेज दिया है, पर आप चिंता ना करें, मैं उन्हें आज ही संदेश भेज देता हूं कि वह बिना बात के, कहीं भी
अपना शक्ति प्रदर्शन ना करें और चुपचाप युवराज ओरस को लेकर वहां से निकल जाएं।”
प्रीटेक्स, एलान्का का गुस्सा जानता था, इसलिये सावधानी से एक-एक शब्द नाप तौल कर बोल रहा था।
“ठीक है। तुम उन्हें ये संदेश भेज दो।” एलान्का ने कहा- “और ये बताओ कि एण्ड्रोवर्स पावर का प्रतिनिधित्व इस समय कौन कर रहा है?”
“ओरेना ! एण्ड्रोवर्स पावर का प्रतिनिधित्व, इस मिशन के लिये मैंने ओरेना के हाथ में दिया है।” प्रीटेक्स ने जवाब दिया।
“नहीं.....एण्ड्रोवर्स पावर का प्रतिनिधित्व तुरंत ‘रेने’ के हाथ में दे दो। ओरेना बहुत एग्रेसिव है, वह उस हरे ग्रह पर अपनी मनमानी करने लगेगी।” एलान्का ने अपना आदेश सुनाते हुए कहा- “और तुरंत चलकर
मुझे उस हरे ग्रह की सारी जानकारी दो, जितनी तुम्हारे पास है।”
प्रीटेक्स के विचार एलान्का से मैच नहीं खा रहे थे, पर राजा का आदेश तो मानना ही था, इसलिये प्रीटेक्स चुप रहा और एलान्का को ले आकाशगंगा के रिकार्ड रुम की ओर बढ़ गया।
त्रिशक्ति: (आज से 6,000 वर्ष पहले, उत्तर भारत के एक भयानक जंगल की गुफा)
जंगल में एक अजीब सा सन्नाटा बिखरा हुआ था, पर उस सन्नाटे का चीरती एक आवाज वातावरण में गूंज रही थी- “ऊँ नमः शि…य्...... ऊँ नमः..वा..य्....।”
ऐसे बियाबान जंगल की एक गुफा में, एक स्त्री महान देव के मंत्रों का जाप कर रही थी।
वैसे तो वह स्त्री बहुत सुंदर थी, पर वर्षों से जंगल में साधना करने की वजह से, उसके चेहरे के खूबसूरती थोड़ी मलिन हो गई थी।
उसके शरीर के निचले हिस्से में चींटियों ने अपनी बांबियां बना ली थीं, शरीर के ऊपरी हिस्से पर मकड़ियों ने जाले लगा लिये थे, पर उस स्त्री की साधना अनवरत् जारी थी।
आज उसे तपस्या करते हुए 10 वर्ष बीत चुके थे, इन बीते 10 वर्षों में उसने कुछ भी अन्न-जल ग्रहण नहीं किया था।
अब उस स्त्री के चेहरे के आसपास एक अजीब सा तेज आ चुका था।
उस स्त्री ने भारतीय वेषभूषा धारण करते हुए एक सफेद रंग की साड़ी पहन रखी थी।
आखिर उस स्त्री की कठिन तपस्या से देव खुश हो गये।
उस स्त्री के सम्मुख एक श्वेत प्रकाश सा जगमगाने लगा, उस श्वेत प्रकाश में देव का छाया शरीर भी था।
“मैं तुम्हारे कठोर तप से प्रसन्न हुआ पुत्री विद्युम्ना। अब तुम आँखें खोलकर मुझसे अपना इच्छित वर मांग सकती हो।”…देव की आवाज वातावरण में गूंजी।
महा.. की आवाज सुन विद्युम्ना ने अपनी आँखें खोल दीं।
देव को सामने देख विद्युम्ना ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया और बोली- “हे देव मेरे पिता एक दैत्य हैं और मेरी माता एक मनुष्य। दोनों के बीच इतना बड़ा अंतर होने के बाद भी दोनों में बहुत प्रेम है, पर उनके प्रेम को ना तो कोई दैत्य समझ पाता है और ना ही कोई मनुष्य, उनके प्रेम को स्वीकार करता है। मैंने अपना पूरा बचपन इन्हीं संघर्षों के बीच गुजारा है। अतः मैंने दैत्यगुरु शुक्राचार्य से इसका समाधान मांगा, तो दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने मुझे आपसे त्रिशक्ति का वरदान मांगने को कहा। उन्होंने कहा कि इसी त्रिशक्ति से मैं दैत्यों, राक्षसों और मनुष्यों के बीच संघर्ष विराम कर
सम्पूर्ण पृथ्वी पर संतुलन स्थापित कर सकती हूं। तो हे देव मुझे त्रिशक्ति प्रदान करें।”
“क्या तुम्हें पता भी है विद्युम्ना कि त्रिशक्ति क्या है?” देव ने विद्युम्ना से पूछा।
“हां देव, त्रिशक्ति, जल, बल और छल की शक्तियों से निर्मित एक त्रिसर्पमुखी दंड है, यह दंड जिसके पास रहता है, उसे कोई भी हरा नहीं सकता। इस सर्पदंड को छीना भी नहीं जा सकता और इसके पास रहते हुए इसके स्वामी को मारा भी नहीं जा सकता। मैं इसी महाशक्ति से इस समूची पृथ्वी पर संतुलन स्थापित करुंगी।” विद्युम्ना ने कहा।
“क्या शक्ति के प्रदर्शन से कभी पृथ्वी पर संतुलन स्थापित हो सकता है विद्युम्ना?” देव ने कहा- “या तुम ये समझती हो कि तुम स्वयं कभी पथ भ्रमित नहीं हो सकती?”
देव के शब्दों में एक सार छिपा था, जिसे विद्युम्ना ने एक क्षण में ही महसूस कर लिया।
“म…देव मैं आपके कथनों का अर्थ समझ गई।” विद्युम्ना ने हाथ जोड़कर कहा- “तो फिर मुझे ये भी आशीर्वाद दीजिये कि यदि भविष्य में मैं कभी पथभ्रमित हो भी गई, तो आपकी महाशक्ति के पंचभूत मुझे मार्ग दिखायेंगे।”
“तथास्तु।” देव, विद्युम्ना के कथन सुन मुस्कुरा उठे और विद्युम्ना को वरदान दे वहां से अंतर्ध्यान हो गये।
विद्युम्ना के हाथों में अब एक त्रिसर्पमुखी दंड था, जिसका ऊपरी सिरे पर 3 सर्पों के मुख बने थे।
विद्युम्ना ने वह सर्पदंड हवा में उठाकर, उसे गायब कर दिया और वापस जंगल से अपने घर की ओर चल दी।
देव के प्रभाव से विद्युम्ना के वस्त्र और शरीर साफ हो गये थे, अब वह फिर से बहुत सुंदर नजर आने लगी थी।
विद्युम्ना अब जंगल में आगे बढ़ रही थी कि तभी विद्युम्ना को जंगल में एक स्थान पर सफेद रंग का एक बहुत ही खूबसूरत मोर दिखाई दिया, जो कि अपने पंख फैलाकर एक स्थान पर नृत्य कर रहा था।
इतना खूबसूरत नजारा देखकर विद्युम्ना मंत्रमुग्ध हो कर उस दृश्य को देखने लगी।
विद्युम्ना झाड़ियों की ओट से इस दृश्य को निहार रही थी।
अभी तक उस मोर की निगाह विद्युम्ना पर नहीं पड़ी थी।
वह मोर ना जाने कितनी देर तक ऐसे ही नृत्य करता रहा, फिर अचानक उस मोर ने एक इंसानी शरीर धारण कर लिया।
अब वह मोर किसी देवता की भांति प्रतीत हो रहा था, परंतु उस मोर ने नृत्य अभी भी नहीं रोका था।
तभी आसमान से बारिश की नन्हीं बूंदें गिरने लगीं, अब वह इंसान उस बारिश के जल में पूरी तरह सराबोर हो गया था।
बारिश में सराबोर होने के बाद, शायद उस व्यक्ति की प्यास अब बुझ गई थी।
अब उसने नाचना बंद कर दिया और फिर एक दिशा की ओर जाने लगा।
यह देख विद्युम्ना ने भागकर उस व्यक्ति का रास्ता रोक लिया और बोली- “तुम तो देवताओं के समान नृत्य करते हो। हे मनुष्य तुम कौन हो?”
अचानक से सामने एक स्त्री को देख वह व्यक्ति पहले तो घबरा गया, फिर उसने ध्यान से विद्युम्ना के सौंदर्य को देखा और फिर बोल उठा-
“मैं मनुष्य नहीं, मैं राक्षस राज बाणकेतु हूं। मुझे प्रकृति और जीवों से बहुत लगाव है, इसलिये कभी-कभी मैं छिपकर इस जंगल में आता हूं और कुछ देर के लिये प्रकृति के इन रंगों और इस वातावरण में खो जाता हूं। पर आप कौन हो देवी? और आप इस भयानक जंगल में अकेले क्या कर रही हो?”
“अगर आप राक्षस हो, तो आप इतना सौंदर्यवान कैसे हो?” विद्युम्ना ने बाणकेतु के प्रश्न का उत्तर देने की जगह स्वयं उससे सवाल कर लिया।
“मैं एक मायावी राक्षस हूं, मैं कोई भी रुप धारण कर सकता हूं, असल में मैं ऐसा नहीं दिखता, यह रुप तो मैंने प्रकृति में खोने के लिये चुना था।” बाणकेतु ने कहा- “पर आप वास्तव में बहुत सुंदर हो। क्या मैं
आपका परिचय जान सकता हूं?”
“मेरा नाम विद्युम्ना है। मैं दैत्यराज इरवान की पुत्री हूं। मैं इस जंगल में तपस्या करने आयी थी।” विद्युम्ना ने कहा।
“क्या वरदान मांगा आपने देव से?” बाणकेतु ने विद्युम्ना से पूछा।
“मैंने मांगा कि कोई प्रकृति से प्रेम करने वाला, सुंदर सजीला नौजवान कल मेरे पिता के पास आकर मेरा हाथ मांगे और मुझसे विवाह कर मुझे अपने घर ले जाये।” विद्युम्ना ने यह शब्द मुस्कुरा कर कहे और
पलटकर वापस जंगल के दूसरी ओर चल दी।
विद्युम्ना के कुछ आगे बढ़ने के बाद विद्युम्ना के कानों में बाणकेतु की आवाज सुनाई दी- “मैं कल तुम्हारे पिता के पास तुम्हारा हाथ मांगने आ रहा हूं विद्युम्ना। मेरा इंतजार करना।”
यह सुन विद्युम्ना के चेहरे पर मुस्कान खिल गई, पर विद्युम्ना ने पीछे पलटकर नहीं देखा और आगे जाकर बाणकेतु की नजरों से ओझल हो गई।
अजीब प्रणय निवेदन था, पर जो भी हो बाणकेतु को विद्युम्ना भा गई थी।
बाणकेतु भी मुस्कुराकर अब एक दिशा की ओर चला दिया।
जारी रहेगा________![]()
Bahut hi shaandar update diya hai Raj_sharma bhai....#150.
एण्ड्रोवर्स आकाशगंगा:
(आज से 3 दिन पहले......13.01.02, रविवार, 16:30, फेरोना ग्रह, एण्ड्रोवर्स आकाशगंगा)
पृथ्वी से 2.5 मिलियन प्रकाशवर्ष दूर, एण्ड्रोवर्स आकाशगंगा।
फेरोना, एण्ड्रोवर्स आकाशगंगा का सबसे शक्तिशाली ग्रह था। यहां का विज्ञान यहां के 5 गुरुओं की वजह से बहुत ज्यादा उन्नत था।
इन 5 गुरुओं के समूह को ‘पेन्टाक्स’ कहते थे।
यहां के लोगों का मानना है कि पेन्टाक्स, आकाशगंगा के जन्म के समय से ही जीवित हैं, ये कौन हैं? कहां से आये हैं? कोई नहीं जानता? यहां के रहने वाले लोग देखने में लगभग पृथ्वी के ही लोगों के समान हैं, परंतु इनकी औसत आयु 10,000 वर्ष की होती है।
यहां के लोगों का शरीर हल्के नीले रंग का होता है।
यहां का राजा ‘एलान्का’ अपने महल में बैठा, अपनी खिड़की से अपनी आकाशगंगा की खूबसूरती को निहार रहा था, कि तभी एक सेवक ने आकर एलान्का का ध्यान भंग कर दिया।
“क्षमा चाहता हूं ग्रेट एलान्का, पर कमांडर ‘प्रीटेक्स’ आपसे इसी वक्त मिलना चाहते हैं।” सेवक ने कहा।
एलान्का ने हाथ हिलाकर सेवक को इजाजत दे दी।
कुछ ही देर में कमांडर प्रीटेक्स उनके कमरे में हाथ बांधे खड़ा था।
एलान्का के इशारा करते ही प्रीटेक्स ने बोलना शुरु कर दिया- “ग्रेट एलान्का, आप पिछले 4 दिन से बहुत व्यस्त थे, इसलिये मैं आपसे बता नहीं पाया, पर आज मैं आपका सपना साकार करने के बहुत करीब पहुंच गया हूं।”
“तुम्हारा मतलब.....तुम्हारा मतलब ‘ओरस’ मिल गया?” एलान्का ने खुशी व्यक्त करते हुए पूछा।
“हां ग्रेट एलान्का, पिछले 20 वर्षों से जिस युवराज ओरस की हमें तलाश थी, वो हमें यहां से 2.5 मिलियन प्रकाशवर्ष दूर एक हरे ग्रह पर मिल गया है।”
प्रीटेक्स ने एलान्का की ओर देखते हुए कहा- “आप तो जानते हैं कि जब से उसका ग्रह डेल्फानो तबाह हुआ है, तब से हम अपनी मशीनों के द्वारा उसे ढूंढने का प्रयास कर रहे थे, पर पिछले 20 वर्षों से उसका कहीं पता नहीं चल रहा था, पर अचानक 3 दिन पहले, उसने अपनी समय शक्ति का प्रयोग किया, जिसके सिग्नल हमें बहुत दूर से प्राप्त हुए, पर हमें उसके ग्रह का पता नहीं चल पाया था।
"इसलिये हमने ‘एण्ड्रोनिका’ स्पेश शिप को उस दिशा में भेज दिया था। एक दिन बाद ओरस ने फिर अपनी शक्तियों का प्रयोग किया, जिससे हम उसकी आकाशगंगा तक पहुंच गये और जब आज उसने फिर अपनी शक्तियों का प्रयोग किया, तो हमें उसके ग्रह का पता चल गया, जिससे मैंने एण्ड्रोनिका को उस ग्रह पर उतार दिया।
"अब वह जैसे ही अगली बार अपनी शक्तियों का प्रयोग करेगा, हमें उसकी वास्तविक स्थिति का पता चल जायेगा और हम उसे दबोच लेंगे। अब वह दिन ज्यादा दूर नहीं, जब समयचक्र आपके हाथ में होगा और फिर आप सभी मल्टीवर्स के अजेय सम्राट कहलायेंगे।”
“यह तो बहुत अच्छी खबर सुनाई तुमने प्रीटेक्स।” एलान्का ने खुश होते हुए कहा- “अच्छा ये बताओ कि ‘एण्ड्रोवर्स पावर’ इस समय कहां हैं? मुझे उनसे अभी मिलना है। मैं उनसे भविष्य के बारे में कुछ बात करना चा हता हूं?”
“जी..एण्ड्रोवर्स पावर तो एण्ड्रोनिका में ही हैं, मैंने ही उन्हें वहां पर भेजा है।” प्रीटेक्स ने डरते-डरते कहा- “वो ओरस को कंट्रोल करने में उनकी जरुरत पड़ सकती है, इसीलिये मैंने उन्हें वहां भेजा है।”
“क्या?” एलान्का ने गुस्सा दिखाते हुए कहा- “तुमने एण्ड्रोवर्स पावर को उस हरे ग्रह पर भेज दिया, जबकि तुम्हें पता भी नहीं है कि उस हरे ग्रह पर किस प्रकार के खतरे हैं?”
“पर एण्ड्रोवर्स पावर तो हर खतरे से निपटने में सक्षम हैं ग्रेट एलान्का।” प्रीटेक्स ने बीच में टोकते हुए कहा।
“तुम मूर्ख हो प्रीटेक्स।” एलान्का अब हद से ज्यादा गुस्से में दिखाई दे रहा था- “अरे, मैं उन शक्तियों का उपयोग समय से पहले नहीं करना चाहता था, नहीं तो एरियन आकाशगंगा के लोग उसकी भी काट ढूंढ लेंगे, फिर हम महायुद्ध में किसका उपयोग करेंगे?”
“क्षमा चाहता हूं ग्रेट एलान्का, पर आपसे बात ना हो पाने के कारण मैंने एण्ड्रोवर्स पावर को उस हरे ग्रह पर भेज दिया है, पर आप चिंता ना करें, मैं उन्हें आज ही संदेश भेज देता हूं कि वह बिना बात के, कहीं भी
अपना शक्ति प्रदर्शन ना करें और चुपचाप युवराज ओरस को लेकर वहां से निकल जाएं।”
प्रीटेक्स, एलान्का का गुस्सा जानता था, इसलिये सावधानी से एक-एक शब्द नाप तौल कर बोल रहा था।
“ठीक है। तुम उन्हें ये संदेश भेज दो।” एलान्का ने कहा- “और ये बताओ कि एण्ड्रोवर्स पावर का प्रतिनिधित्व इस समय कौन कर रहा है?”
“ओरेना ! एण्ड्रोवर्स पावर का प्रतिनिधित्व, इस मिशन के लिये मैंने ओरेना के हाथ में दिया है।” प्रीटेक्स ने जवाब दिया।
“नहीं.....एण्ड्रोवर्स पावर का प्रतिनिधित्व तुरंत ‘रेने’ के हाथ में दे दो। ओरेना बहुत एग्रेसिव है, वह उस हरे ग्रह पर अपनी मनमानी करने लगेगी।” एलान्का ने अपना आदेश सुनाते हुए कहा- “और तुरंत चलकर
मुझे उस हरे ग्रह की सारी जानकारी दो, जितनी तुम्हारे पास है।”
प्रीटेक्स के विचार एलान्का से मैच नहीं खा रहे थे, पर राजा का आदेश तो मानना ही था, इसलिये प्रीटेक्स चुप रहा और एलान्का को ले आकाशगंगा के रिकार्ड रुम की ओर बढ़ गया।
त्रिशक्ति: (आज से 6,000 वर्ष पहले, उत्तर भारत के एक भयानक जंगल की गुफा)
जंगल में एक अजीब सा सन्नाटा बिखरा हुआ था, पर उस सन्नाटे का चीरती एक आवाज वातावरण में गूंज रही थी- “ऊँ नमः शि…य्...... ऊँ नमः..वा..य्....।”
ऐसे बियाबान जंगल की एक गुफा में, एक स्त्री महान देव के मंत्रों का जाप कर रही थी।
वैसे तो वह स्त्री बहुत सुंदर थी, पर वर्षों से जंगल में साधना करने की वजह से, उसके चेहरे के खूबसूरती थोड़ी मलिन हो गई थी।
उसके शरीर के निचले हिस्से में चींटियों ने अपनी बांबियां बना ली थीं, शरीर के ऊपरी हिस्से पर मकड़ियों ने जाले लगा लिये थे, पर उस स्त्री की साधना अनवरत् जारी थी।
आज उसे तपस्या करते हुए 10 वर्ष बीत चुके थे, इन बीते 10 वर्षों में उसने कुछ भी अन्न-जल ग्रहण नहीं किया था।
अब उस स्त्री के चेहरे के आसपास एक अजीब सा तेज आ चुका था।
उस स्त्री ने भारतीय वेषभूषा धारण करते हुए एक सफेद रंग की साड़ी पहन रखी थी।
आखिर उस स्त्री की कठिन तपस्या से देव खुश हो गये।
उस स्त्री के सम्मुख एक श्वेत प्रकाश सा जगमगाने लगा, उस श्वेत प्रकाश में देव का छाया शरीर भी था।
“मैं तुम्हारे कठोर तप से प्रसन्न हुआ पुत्री विद्युम्ना। अब तुम आँखें खोलकर मुझसे अपना इच्छित वर मांग सकती हो।”…देव की आवाज वातावरण में गूंजी।
महा.. की आवाज सुन विद्युम्ना ने अपनी आँखें खोल दीं।
देव को सामने देख विद्युम्ना ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया और बोली- “हे देव मेरे पिता एक दैत्य हैं और मेरी माता एक मनुष्य। दोनों के बीच इतना बड़ा अंतर होने के बाद भी दोनों में बहुत प्रेम है, पर उनके प्रेम को ना तो कोई दैत्य समझ पाता है और ना ही कोई मनुष्य, उनके प्रेम को स्वीकार करता है। मैंने अपना पूरा बचपन इन्हीं संघर्षों के बीच गुजारा है। अतः मैंने दैत्यगुरु शुक्राचार्य से इसका समाधान मांगा, तो दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने मुझे आपसे त्रिशक्ति का वरदान मांगने को कहा। उन्होंने कहा कि इसी त्रिशक्ति से मैं दैत्यों, राक्षसों और मनुष्यों के बीच संघर्ष विराम कर
सम्पूर्ण पृथ्वी पर संतुलन स्थापित कर सकती हूं। तो हे देव मुझे त्रिशक्ति प्रदान करें।”
“क्या तुम्हें पता भी है विद्युम्ना कि त्रिशक्ति क्या है?” देव ने विद्युम्ना से पूछा।
“हां देव, त्रिशक्ति, जल, बल और छल की शक्तियों से निर्मित एक त्रिसर्पमुखी दंड है, यह दंड जिसके पास रहता है, उसे कोई भी हरा नहीं सकता। इस सर्पदंड को छीना भी नहीं जा सकता और इसके पास रहते हुए इसके स्वामी को मारा भी नहीं जा सकता। मैं इसी महाशक्ति से इस समूची पृथ्वी पर संतुलन स्थापित करुंगी।” विद्युम्ना ने कहा।
“क्या शक्ति के प्रदर्शन से कभी पृथ्वी पर संतुलन स्थापित हो सकता है विद्युम्ना?” देव ने कहा- “या तुम ये समझती हो कि तुम स्वयं कभी पथ भ्रमित नहीं हो सकती?”
देव के शब्दों में एक सार छिपा था, जिसे विद्युम्ना ने एक क्षण में ही महसूस कर लिया।
“म…देव मैं आपके कथनों का अर्थ समझ गई।” विद्युम्ना ने हाथ जोड़कर कहा- “तो फिर मुझे ये भी आशीर्वाद दीजिये कि यदि भविष्य में मैं कभी पथभ्रमित हो भी गई, तो आपकी महाशक्ति के पंचभूत मुझे मार्ग दिखायेंगे।”
“तथास्तु।” देव, विद्युम्ना के कथन सुन मुस्कुरा उठे और विद्युम्ना को वरदान दे वहां से अंतर्ध्यान हो गये।
विद्युम्ना के हाथों में अब एक त्रिसर्पमुखी दंड था, जिसका ऊपरी सिरे पर 3 सर्पों के मुख बने थे।
विद्युम्ना ने वह सर्पदंड हवा में उठाकर, उसे गायब कर दिया और वापस जंगल से अपने घर की ओर चल दी।
देव के प्रभाव से विद्युम्ना के वस्त्र और शरीर साफ हो गये थे, अब वह फिर से बहुत सुंदर नजर आने लगी थी।
विद्युम्ना अब जंगल में आगे बढ़ रही थी कि तभी विद्युम्ना को जंगल में एक स्थान पर सफेद रंग का एक बहुत ही खूबसूरत मोर दिखाई दिया, जो कि अपने पंख फैलाकर एक स्थान पर नृत्य कर रहा था।
इतना खूबसूरत नजारा देखकर विद्युम्ना मंत्रमुग्ध हो कर उस दृश्य को देखने लगी।
विद्युम्ना झाड़ियों की ओट से इस दृश्य को निहार रही थी।
अभी तक उस मोर की निगाह विद्युम्ना पर नहीं पड़ी थी।
वह मोर ना जाने कितनी देर तक ऐसे ही नृत्य करता रहा, फिर अचानक उस मोर ने एक इंसानी शरीर धारण कर लिया।
अब वह मोर किसी देवता की भांति प्रतीत हो रहा था, परंतु उस मोर ने नृत्य अभी भी नहीं रोका था।
तभी आसमान से बारिश की नन्हीं बूंदें गिरने लगीं, अब वह इंसान उस बारिश के जल में पूरी तरह सराबोर हो गया था।
बारिश में सराबोर होने के बाद, शायद उस व्यक्ति की प्यास अब बुझ गई थी।
अब उसने नाचना बंद कर दिया और फिर एक दिशा की ओर जाने लगा।
यह देख विद्युम्ना ने भागकर उस व्यक्ति का रास्ता रोक लिया और बोली- “तुम तो देवताओं के समान नृत्य करते हो। हे मनुष्य तुम कौन हो?”
अचानक से सामने एक स्त्री को देख वह व्यक्ति पहले तो घबरा गया, फिर उसने ध्यान से विद्युम्ना के सौंदर्य को देखा और फिर बोल उठा-
“मैं मनुष्य नहीं, मैं राक्षस राज बाणकेतु हूं। मुझे प्रकृति और जीवों से बहुत लगाव है, इसलिये कभी-कभी मैं छिपकर इस जंगल में आता हूं और कुछ देर के लिये प्रकृति के इन रंगों और इस वातावरण में खो जाता हूं। पर आप कौन हो देवी? और आप इस भयानक जंगल में अकेले क्या कर रही हो?”
“अगर आप राक्षस हो, तो आप इतना सौंदर्यवान कैसे हो?” विद्युम्ना ने बाणकेतु के प्रश्न का उत्तर देने की जगह स्वयं उससे सवाल कर लिया।
“मैं एक मायावी राक्षस हूं, मैं कोई भी रुप धारण कर सकता हूं, असल में मैं ऐसा नहीं दिखता, यह रुप तो मैंने प्रकृति में खोने के लिये चुना था।” बाणकेतु ने कहा- “पर आप वास्तव में बहुत सुंदर हो। क्या मैं
आपका परिचय जान सकता हूं?”
“मेरा नाम विद्युम्ना है। मैं दैत्यराज इरवान की पुत्री हूं। मैं इस जंगल में तपस्या करने आयी थी।” विद्युम्ना ने कहा।
“क्या वरदान मांगा आपने देव से?” बाणकेतु ने विद्युम्ना से पूछा।
“मैंने मांगा कि कोई प्रकृति से प्रेम करने वाला, सुंदर सजीला नौजवान कल मेरे पिता के पास आकर मेरा हाथ मांगे और मुझसे विवाह कर मुझे अपने घर ले जाये।” विद्युम्ना ने यह शब्द मुस्कुरा कर कहे और
पलटकर वापस जंगल के दूसरी ओर चल दी।
विद्युम्ना के कुछ आगे बढ़ने के बाद विद्युम्ना के कानों में बाणकेतु की आवाज सुनाई दी- “मैं कल तुम्हारे पिता के पास तुम्हारा हाथ मांगने आ रहा हूं विद्युम्ना। मेरा इंतजार करना।”
यह सुन विद्युम्ना के चेहरे पर मुस्कान खिल गई, पर विद्युम्ना ने पीछे पलटकर नहीं देखा और आगे जाकर बाणकेतु की नजरों से ओझल हो गई।
अजीब प्रणय निवेदन था, पर जो भी हो बाणकेतु को विद्युम्ना भा गई थी।
बाणकेतु भी मुस्कुराकर अब एक दिशा की ओर चला दिया।
जारी रहेगा________![]()
Lovely update and awesome story#150.
एण्ड्रोवर्स आकाशगंगा:
(आज से 3 दिन पहले......13.01.02, रविवार, 16:30, फेरोना ग्रह, एण्ड्रोवर्स आकाशगंगा)
पृथ्वी से 2.5 मिलियन प्रकाशवर्ष दूर, एण्ड्रोवर्स आकाशगंगा।
फेरोना, एण्ड्रोवर्स आकाशगंगा का सबसे शक्तिशाली ग्रह था। यहां का विज्ञान यहां के 5 गुरुओं की वजह से बहुत ज्यादा उन्नत था।
इन 5 गुरुओं के समूह को ‘पेन्टाक्स’ कहते थे।
यहां के लोगों का मानना है कि पेन्टाक्स, आकाशगंगा के जन्म के समय से ही जीवित हैं, ये कौन हैं? कहां से आये हैं? कोई नहीं जानता? यहां के रहने वाले लोग देखने में लगभग पृथ्वी के ही लोगों के समान हैं, परंतु इनकी औसत आयु 10,000 वर्ष की होती है।
यहां के लोगों का शरीर हल्के नीले रंग का होता है।
यहां का राजा ‘एलान्का’ अपने महल में बैठा, अपनी खिड़की से अपनी आकाशगंगा की खूबसूरती को निहार रहा था, कि तभी एक सेवक ने आकर एलान्का का ध्यान भंग कर दिया।
“क्षमा चाहता हूं ग्रेट एलान्का, पर कमांडर ‘प्रीटेक्स’ आपसे इसी वक्त मिलना चाहते हैं।” सेवक ने कहा।
एलान्का ने हाथ हिलाकर सेवक को इजाजत दे दी।
कुछ ही देर में कमांडर प्रीटेक्स उनके कमरे में हाथ बांधे खड़ा था।
एलान्का के इशारा करते ही प्रीटेक्स ने बोलना शुरु कर दिया- “ग्रेट एलान्का, आप पिछले 4 दिन से बहुत व्यस्त थे, इसलिये मैं आपसे बता नहीं पाया, पर आज मैं आपका सपना साकार करने के बहुत करीब पहुंच गया हूं।”
“तुम्हारा मतलब.....तुम्हारा मतलब ‘ओरस’ मिल गया?” एलान्का ने खुशी व्यक्त करते हुए पूछा।
“हां ग्रेट एलान्का, पिछले 20 वर्षों से जिस युवराज ओरस की हमें तलाश थी, वो हमें यहां से 2.5 मिलियन प्रकाशवर्ष दूर एक हरे ग्रह पर मिल गया है।”
प्रीटेक्स ने एलान्का की ओर देखते हुए कहा- “आप तो जानते हैं कि जब से उसका ग्रह डेल्फानो तबाह हुआ है, तब से हम अपनी मशीनों के द्वारा उसे ढूंढने का प्रयास कर रहे थे, पर पिछले 20 वर्षों से उसका कहीं पता नहीं चल रहा था, पर अचानक 3 दिन पहले, उसने अपनी समय शक्ति का प्रयोग किया, जिसके सिग्नल हमें बहुत दूर से प्राप्त हुए, पर हमें उसके ग्रह का पता नहीं चल पाया था।
"इसलिये हमने ‘एण्ड्रोनिका’ स्पेश शिप को उस दिशा में भेज दिया था। एक दिन बाद ओरस ने फिर अपनी शक्तियों का प्रयोग किया, जिससे हम उसकी आकाशगंगा तक पहुंच गये और जब आज उसने फिर अपनी शक्तियों का प्रयोग किया, तो हमें उसके ग्रह का पता चल गया, जिससे मैंने एण्ड्रोनिका को उस ग्रह पर उतार दिया।
"अब वह जैसे ही अगली बार अपनी शक्तियों का प्रयोग करेगा, हमें उसकी वास्तविक स्थिति का पता चल जायेगा और हम उसे दबोच लेंगे। अब वह दिन ज्यादा दूर नहीं, जब समयचक्र आपके हाथ में होगा और फिर आप सभी मल्टीवर्स के अजेय सम्राट कहलायेंगे।”
“यह तो बहुत अच्छी खबर सुनाई तुमने प्रीटेक्स।” एलान्का ने खुश होते हुए कहा- “अच्छा ये बताओ कि ‘एण्ड्रोवर्स पावर’ इस समय कहां हैं? मुझे उनसे अभी मिलना है। मैं उनसे भविष्य के बारे में कुछ बात करना चा हता हूं?”
“जी..एण्ड्रोवर्स पावर तो एण्ड्रोनिका में ही हैं, मैंने ही उन्हें वहां पर भेजा है।” प्रीटेक्स ने डरते-डरते कहा- “वो ओरस को कंट्रोल करने में उनकी जरुरत पड़ सकती है, इसीलिये मैंने उन्हें वहां भेजा है।”
“क्या?” एलान्का ने गुस्सा दिखाते हुए कहा- “तुमने एण्ड्रोवर्स पावर को उस हरे ग्रह पर भेज दिया, जबकि तुम्हें पता भी नहीं है कि उस हरे ग्रह पर किस प्रकार के खतरे हैं?”
“पर एण्ड्रोवर्स पावर तो हर खतरे से निपटने में सक्षम हैं ग्रेट एलान्का।” प्रीटेक्स ने बीच में टोकते हुए कहा।
“तुम मूर्ख हो प्रीटेक्स।” एलान्का अब हद से ज्यादा गुस्से में दिखाई दे रहा था- “अरे, मैं उन शक्तियों का उपयोग समय से पहले नहीं करना चाहता था, नहीं तो एरियन आकाशगंगा के लोग उसकी भी काट ढूंढ लेंगे, फिर हम महायुद्ध में किसका उपयोग करेंगे?”
“क्षमा चाहता हूं ग्रेट एलान्का, पर आपसे बात ना हो पाने के कारण मैंने एण्ड्रोवर्स पावर को उस हरे ग्रह पर भेज दिया है, पर आप चिंता ना करें, मैं उन्हें आज ही संदेश भेज देता हूं कि वह बिना बात के, कहीं भी
अपना शक्ति प्रदर्शन ना करें और चुपचाप युवराज ओरस को लेकर वहां से निकल जाएं।”
प्रीटेक्स, एलान्का का गुस्सा जानता था, इसलिये सावधानी से एक-एक शब्द नाप तौल कर बोल रहा था।
“ठीक है। तुम उन्हें ये संदेश भेज दो।” एलान्का ने कहा- “और ये बताओ कि एण्ड्रोवर्स पावर का प्रतिनिधित्व इस समय कौन कर रहा है?”
“ओरेना ! एण्ड्रोवर्स पावर का प्रतिनिधित्व, इस मिशन के लिये मैंने ओरेना के हाथ में दिया है।” प्रीटेक्स ने जवाब दिया।
“नहीं.....एण्ड्रोवर्स पावर का प्रतिनिधित्व तुरंत ‘रेने’ के हाथ में दे दो। ओरेना बहुत एग्रेसिव है, वह उस हरे ग्रह पर अपनी मनमानी करने लगेगी।” एलान्का ने अपना आदेश सुनाते हुए कहा- “और तुरंत चलकर
मुझे उस हरे ग्रह की सारी जानकारी दो, जितनी तुम्हारे पास है।”
प्रीटेक्स के विचार एलान्का से मैच नहीं खा रहे थे, पर राजा का आदेश तो मानना ही था, इसलिये प्रीटेक्स चुप रहा और एलान्का को ले आकाशगंगा के रिकार्ड रुम की ओर बढ़ गया।
त्रिशक्ति: (आज से 6,000 वर्ष पहले, उत्तर भारत के एक भयानक जंगल की गुफा)
जंगल में एक अजीब सा सन्नाटा बिखरा हुआ था, पर उस सन्नाटे का चीरती एक आवाज वातावरण में गूंज रही थी- “ऊँ नमः शि…य्...... ऊँ नमः..वा..य्....।”
ऐसे बियाबान जंगल की एक गुफा में, एक स्त्री महान देव के मंत्रों का जाप कर रही थी।
वैसे तो वह स्त्री बहुत सुंदर थी, पर वर्षों से जंगल में साधना करने की वजह से, उसके चेहरे के खूबसूरती थोड़ी मलिन हो गई थी।
उसके शरीर के निचले हिस्से में चींटियों ने अपनी बांबियां बना ली थीं, शरीर के ऊपरी हिस्से पर मकड़ियों ने जाले लगा लिये थे, पर उस स्त्री की साधना अनवरत् जारी थी।
आज उसे तपस्या करते हुए 10 वर्ष बीत चुके थे, इन बीते 10 वर्षों में उसने कुछ भी अन्न-जल ग्रहण नहीं किया था।
अब उस स्त्री के चेहरे के आसपास एक अजीब सा तेज आ चुका था।
उस स्त्री ने भारतीय वेषभूषा धारण करते हुए एक सफेद रंग की साड़ी पहन रखी थी।
आखिर उस स्त्री की कठिन तपस्या से देव खुश हो गये।
उस स्त्री के सम्मुख एक श्वेत प्रकाश सा जगमगाने लगा, उस श्वेत प्रकाश में देव का छाया शरीर भी था।
“मैं तुम्हारे कठोर तप से प्रसन्न हुआ पुत्री विद्युम्ना। अब तुम आँखें खोलकर मुझसे अपना इच्छित वर मांग सकती हो।”…देव की आवाज वातावरण में गूंजी।
महा.. की आवाज सुन विद्युम्ना ने अपनी आँखें खोल दीं।
देव को सामने देख विद्युम्ना ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया और बोली- “हे देव मेरे पिता एक दैत्य हैं और मेरी माता एक मनुष्य। दोनों के बीच इतना बड़ा अंतर होने के बाद भी दोनों में बहुत प्रेम है, पर उनके प्रेम को ना तो कोई दैत्य समझ पाता है और ना ही कोई मनुष्य, उनके प्रेम को स्वीकार करता है। मैंने अपना पूरा बचपन इन्हीं संघर्षों के बीच गुजारा है। अतः मैंने दैत्यगुरु शुक्राचार्य से इसका समाधान मांगा, तो दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने मुझे आपसे त्रिशक्ति का वरदान मांगने को कहा। उन्होंने कहा कि इसी त्रिशक्ति से मैं दैत्यों, राक्षसों और मनुष्यों के बीच संघर्ष विराम कर
सम्पूर्ण पृथ्वी पर संतुलन स्थापित कर सकती हूं। तो हे देव मुझे त्रिशक्ति प्रदान करें।”
“क्या तुम्हें पता भी है विद्युम्ना कि त्रिशक्ति क्या है?” देव ने विद्युम्ना से पूछा।
“हां देव, त्रिशक्ति, जल, बल और छल की शक्तियों से निर्मित एक त्रिसर्पमुखी दंड है, यह दंड जिसके पास रहता है, उसे कोई भी हरा नहीं सकता। इस सर्पदंड को छीना भी नहीं जा सकता और इसके पास रहते हुए इसके स्वामी को मारा भी नहीं जा सकता। मैं इसी महाशक्ति से इस समूची पृथ्वी पर संतुलन स्थापित करुंगी।” विद्युम्ना ने कहा।
“क्या शक्ति के प्रदर्शन से कभी पृथ्वी पर संतुलन स्थापित हो सकता है विद्युम्ना?” देव ने कहा- “या तुम ये समझती हो कि तुम स्वयं कभी पथ भ्रमित नहीं हो सकती?”
देव के शब्दों में एक सार छिपा था, जिसे विद्युम्ना ने एक क्षण में ही महसूस कर लिया।
“म…देव मैं आपके कथनों का अर्थ समझ गई।” विद्युम्ना ने हाथ जोड़कर कहा- “तो फिर मुझे ये भी आशीर्वाद दीजिये कि यदि भविष्य में मैं कभी पथभ्रमित हो भी गई, तो आपकी महाशक्ति के पंचभूत मुझे मार्ग दिखायेंगे।”
“तथास्तु।” देव, विद्युम्ना के कथन सुन मुस्कुरा उठे और विद्युम्ना को वरदान दे वहां से अंतर्ध्यान हो गये।
विद्युम्ना के हाथों में अब एक त्रिसर्पमुखी दंड था, जिसका ऊपरी सिरे पर 3 सर्पों के मुख बने थे।
विद्युम्ना ने वह सर्पदंड हवा में उठाकर, उसे गायब कर दिया और वापस जंगल से अपने घर की ओर चल दी।
देव के प्रभाव से विद्युम्ना के वस्त्र और शरीर साफ हो गये थे, अब वह फिर से बहुत सुंदर नजर आने लगी थी।
विद्युम्ना अब जंगल में आगे बढ़ रही थी कि तभी विद्युम्ना को जंगल में एक स्थान पर सफेद रंग का एक बहुत ही खूबसूरत मोर दिखाई दिया, जो कि अपने पंख फैलाकर एक स्थान पर नृत्य कर रहा था।
इतना खूबसूरत नजारा देखकर विद्युम्ना मंत्रमुग्ध हो कर उस दृश्य को देखने लगी।
विद्युम्ना झाड़ियों की ओट से इस दृश्य को निहार रही थी।
अभी तक उस मोर की निगाह विद्युम्ना पर नहीं पड़ी थी।
वह मोर ना जाने कितनी देर तक ऐसे ही नृत्य करता रहा, फिर अचानक उस मोर ने एक इंसानी शरीर धारण कर लिया।
अब वह मोर किसी देवता की भांति प्रतीत हो रहा था, परंतु उस मोर ने नृत्य अभी भी नहीं रोका था।
तभी आसमान से बारिश की नन्हीं बूंदें गिरने लगीं, अब वह इंसान उस बारिश के जल में पूरी तरह सराबोर हो गया था।
बारिश में सराबोर होने के बाद, शायद उस व्यक्ति की प्यास अब बुझ गई थी।
अब उसने नाचना बंद कर दिया और फिर एक दिशा की ओर जाने लगा।
यह देख विद्युम्ना ने भागकर उस व्यक्ति का रास्ता रोक लिया और बोली- “तुम तो देवताओं के समान नृत्य करते हो। हे मनुष्य तुम कौन हो?”
अचानक से सामने एक स्त्री को देख वह व्यक्ति पहले तो घबरा गया, फिर उसने ध्यान से विद्युम्ना के सौंदर्य को देखा और फिर बोल उठा-
“मैं मनुष्य नहीं, मैं राक्षस राज बाणकेतु हूं। मुझे प्रकृति और जीवों से बहुत लगाव है, इसलिये कभी-कभी मैं छिपकर इस जंगल में आता हूं और कुछ देर के लिये प्रकृति के इन रंगों और इस वातावरण में खो जाता हूं। पर आप कौन हो देवी? और आप इस भयानक जंगल में अकेले क्या कर रही हो?”
“अगर आप राक्षस हो, तो आप इतना सौंदर्यवान कैसे हो?” विद्युम्ना ने बाणकेतु के प्रश्न का उत्तर देने की जगह स्वयं उससे सवाल कर लिया।
“मैं एक मायावी राक्षस हूं, मैं कोई भी रुप धारण कर सकता हूं, असल में मैं ऐसा नहीं दिखता, यह रुप तो मैंने प्रकृति में खोने के लिये चुना था।” बाणकेतु ने कहा- “पर आप वास्तव में बहुत सुंदर हो। क्या मैं
आपका परिचय जान सकता हूं?”
“मेरा नाम विद्युम्ना है। मैं दैत्यराज इरवान की पुत्री हूं। मैं इस जंगल में तपस्या करने आयी थी।” विद्युम्ना ने कहा।
“क्या वरदान मांगा आपने देव से?” बाणकेतु ने विद्युम्ना से पूछा।
“मैंने मांगा कि कोई प्रकृति से प्रेम करने वाला, सुंदर सजीला नौजवान कल मेरे पिता के पास आकर मेरा हाथ मांगे और मुझसे विवाह कर मुझे अपने घर ले जाये।” विद्युम्ना ने यह शब्द मुस्कुरा कर कहे और
पलटकर वापस जंगल के दूसरी ओर चल दी।
विद्युम्ना के कुछ आगे बढ़ने के बाद विद्युम्ना के कानों में बाणकेतु की आवाज सुनाई दी- “मैं कल तुम्हारे पिता के पास तुम्हारा हाथ मांगने आ रहा हूं विद्युम्ना। मेरा इंतजार करना।”
यह सुन विद्युम्ना के चेहरे पर मुस्कान खिल गई, पर विद्युम्ना ने पीछे पलटकर नहीं देखा और आगे जाकर बाणकेतु की नजरों से ओझल हो गई।
अजीब प्रणय निवेदन था, पर जो भी हो बाणकेतु को विद्युम्ना भा गई थी।
बाणकेतु भी मुस्कुराकर अब एक दिशा की ओर चला दिया।
जारी रहेगा________![]()
Nice update....#150.
एण्ड्रोवर्स आकाशगंगा:
(आज से 3 दिन पहले......13.01.02, रविवार, 16:30, फेरोना ग्रह, एण्ड्रोवर्स आकाशगंगा)
पृथ्वी से 2.5 मिलियन प्रकाशवर्ष दूर, एण्ड्रोवर्स आकाशगंगा।
फेरोना, एण्ड्रोवर्स आकाशगंगा का सबसे शक्तिशाली ग्रह था। यहां का विज्ञान यहां के 5 गुरुओं की वजह से बहुत ज्यादा उन्नत था।
इन 5 गुरुओं के समूह को ‘पेन्टाक्स’ कहते थे।
यहां के लोगों का मानना है कि पेन्टाक्स, आकाशगंगा के जन्म के समय से ही जीवित हैं, ये कौन हैं? कहां से आये हैं? कोई नहीं जानता? यहां के रहने वाले लोग देखने में लगभग पृथ्वी के ही लोगों के समान हैं, परंतु इनकी औसत आयु 10,000 वर्ष की होती है।
यहां के लोगों का शरीर हल्के नीले रंग का होता है।
यहां का राजा ‘एलान्का’ अपने महल में बैठा, अपनी खिड़की से अपनी आकाशगंगा की खूबसूरती को निहार रहा था, कि तभी एक सेवक ने आकर एलान्का का ध्यान भंग कर दिया।
“क्षमा चाहता हूं ग्रेट एलान्का, पर कमांडर ‘प्रीटेक्स’ आपसे इसी वक्त मिलना चाहते हैं।” सेवक ने कहा।
एलान्का ने हाथ हिलाकर सेवक को इजाजत दे दी।
कुछ ही देर में कमांडर प्रीटेक्स उनके कमरे में हाथ बांधे खड़ा था।
एलान्का के इशारा करते ही प्रीटेक्स ने बोलना शुरु कर दिया- “ग्रेट एलान्का, आप पिछले 4 दिन से बहुत व्यस्त थे, इसलिये मैं आपसे बता नहीं पाया, पर आज मैं आपका सपना साकार करने के बहुत करीब पहुंच गया हूं।”
“तुम्हारा मतलब.....तुम्हारा मतलब ‘ओरस’ मिल गया?” एलान्का ने खुशी व्यक्त करते हुए पूछा।
“हां ग्रेट एलान्का, पिछले 20 वर्षों से जिस युवराज ओरस की हमें तलाश थी, वो हमें यहां से 2.5 मिलियन प्रकाशवर्ष दूर एक हरे ग्रह पर मिल गया है।”
प्रीटेक्स ने एलान्का की ओर देखते हुए कहा- “आप तो जानते हैं कि जब से उसका ग्रह डेल्फानो तबाह हुआ है, तब से हम अपनी मशीनों के द्वारा उसे ढूंढने का प्रयास कर रहे थे, पर पिछले 20 वर्षों से उसका कहीं पता नहीं चल रहा था, पर अचानक 3 दिन पहले, उसने अपनी समय शक्ति का प्रयोग किया, जिसके सिग्नल हमें बहुत दूर से प्राप्त हुए, पर हमें उसके ग्रह का पता नहीं चल पाया था।
"इसलिये हमने ‘एण्ड्रोनिका’ स्पेश शिप को उस दिशा में भेज दिया था। एक दिन बाद ओरस ने फिर अपनी शक्तियों का प्रयोग किया, जिससे हम उसकी आकाशगंगा तक पहुंच गये और जब आज उसने फिर अपनी शक्तियों का प्रयोग किया, तो हमें उसके ग्रह का पता चल गया, जिससे मैंने एण्ड्रोनिका को उस ग्रह पर उतार दिया।
"अब वह जैसे ही अगली बार अपनी शक्तियों का प्रयोग करेगा, हमें उसकी वास्तविक स्थिति का पता चल जायेगा और हम उसे दबोच लेंगे। अब वह दिन ज्यादा दूर नहीं, जब समयचक्र आपके हाथ में होगा और फिर आप सभी मल्टीवर्स के अजेय सम्राट कहलायेंगे।”
“यह तो बहुत अच्छी खबर सुनाई तुमने प्रीटेक्स।” एलान्का ने खुश होते हुए कहा- “अच्छा ये बताओ कि ‘एण्ड्रोवर्स पावर’ इस समय कहां हैं? मुझे उनसे अभी मिलना है। मैं उनसे भविष्य के बारे में कुछ बात करना चा हता हूं?”
“जी..एण्ड्रोवर्स पावर तो एण्ड्रोनिका में ही हैं, मैंने ही उन्हें वहां पर भेजा है।” प्रीटेक्स ने डरते-डरते कहा- “वो ओरस को कंट्रोल करने में उनकी जरुरत पड़ सकती है, इसीलिये मैंने उन्हें वहां भेजा है।”
“क्या?” एलान्का ने गुस्सा दिखाते हुए कहा- “तुमने एण्ड्रोवर्स पावर को उस हरे ग्रह पर भेज दिया, जबकि तुम्हें पता भी नहीं है कि उस हरे ग्रह पर किस प्रकार के खतरे हैं?”
“पर एण्ड्रोवर्स पावर तो हर खतरे से निपटने में सक्षम हैं ग्रेट एलान्का।” प्रीटेक्स ने बीच में टोकते हुए कहा।
“तुम मूर्ख हो प्रीटेक्स।” एलान्का अब हद से ज्यादा गुस्से में दिखाई दे रहा था- “अरे, मैं उन शक्तियों का उपयोग समय से पहले नहीं करना चाहता था, नहीं तो एरियन आकाशगंगा के लोग उसकी भी काट ढूंढ लेंगे, फिर हम महायुद्ध में किसका उपयोग करेंगे?”
“क्षमा चाहता हूं ग्रेट एलान्का, पर आपसे बात ना हो पाने के कारण मैंने एण्ड्रोवर्स पावर को उस हरे ग्रह पर भेज दिया है, पर आप चिंता ना करें, मैं उन्हें आज ही संदेश भेज देता हूं कि वह बिना बात के, कहीं भी
अपना शक्ति प्रदर्शन ना करें और चुपचाप युवराज ओरस को लेकर वहां से निकल जाएं।”
प्रीटेक्स, एलान्का का गुस्सा जानता था, इसलिये सावधानी से एक-एक शब्द नाप तौल कर बोल रहा था।
“ठीक है। तुम उन्हें ये संदेश भेज दो।” एलान्का ने कहा- “और ये बताओ कि एण्ड्रोवर्स पावर का प्रतिनिधित्व इस समय कौन कर रहा है?”
“ओरेना ! एण्ड्रोवर्स पावर का प्रतिनिधित्व, इस मिशन के लिये मैंने ओरेना के हाथ में दिया है।” प्रीटेक्स ने जवाब दिया।
“नहीं.....एण्ड्रोवर्स पावर का प्रतिनिधित्व तुरंत ‘रेने’ के हाथ में दे दो। ओरेना बहुत एग्रेसिव है, वह उस हरे ग्रह पर अपनी मनमानी करने लगेगी।” एलान्का ने अपना आदेश सुनाते हुए कहा- “और तुरंत चलकर
मुझे उस हरे ग्रह की सारी जानकारी दो, जितनी तुम्हारे पास है।”
प्रीटेक्स के विचार एलान्का से मैच नहीं खा रहे थे, पर राजा का आदेश तो मानना ही था, इसलिये प्रीटेक्स चुप रहा और एलान्का को ले आकाशगंगा के रिकार्ड रुम की ओर बढ़ गया।
त्रिशक्ति: (आज से 6,000 वर्ष पहले, उत्तर भारत के एक भयानक जंगल की गुफा)
जंगल में एक अजीब सा सन्नाटा बिखरा हुआ था, पर उस सन्नाटे का चीरती एक आवाज वातावरण में गूंज रही थी- “ऊँ नमः शि…य्...... ऊँ नमः..वा..य्....।”
ऐसे बियाबान जंगल की एक गुफा में, एक स्त्री महान देव के मंत्रों का जाप कर रही थी।
वैसे तो वह स्त्री बहुत सुंदर थी, पर वर्षों से जंगल में साधना करने की वजह से, उसके चेहरे के खूबसूरती थोड़ी मलिन हो गई थी।
उसके शरीर के निचले हिस्से में चींटियों ने अपनी बांबियां बना ली थीं, शरीर के ऊपरी हिस्से पर मकड़ियों ने जाले लगा लिये थे, पर उस स्त्री की साधना अनवरत् जारी थी।
आज उसे तपस्या करते हुए 10 वर्ष बीत चुके थे, इन बीते 10 वर्षों में उसने कुछ भी अन्न-जल ग्रहण नहीं किया था।
अब उस स्त्री के चेहरे के आसपास एक अजीब सा तेज आ चुका था।
उस स्त्री ने भारतीय वेषभूषा धारण करते हुए एक सफेद रंग की साड़ी पहन रखी थी।
आखिर उस स्त्री की कठिन तपस्या से देव खुश हो गये।
उस स्त्री के सम्मुख एक श्वेत प्रकाश सा जगमगाने लगा, उस श्वेत प्रकाश में देव का छाया शरीर भी था।
“मैं तुम्हारे कठोर तप से प्रसन्न हुआ पुत्री विद्युम्ना। अब तुम आँखें खोलकर मुझसे अपना इच्छित वर मांग सकती हो।”…देव की आवाज वातावरण में गूंजी।
महा.. की आवाज सुन विद्युम्ना ने अपनी आँखें खोल दीं।
देव को सामने देख विद्युम्ना ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया और बोली- “हे देव मेरे पिता एक दैत्य हैं और मेरी माता एक मनुष्य। दोनों के बीच इतना बड़ा अंतर होने के बाद भी दोनों में बहुत प्रेम है, पर उनके प्रेम को ना तो कोई दैत्य समझ पाता है और ना ही कोई मनुष्य, उनके प्रेम को स्वीकार करता है। मैंने अपना पूरा बचपन इन्हीं संघर्षों के बीच गुजारा है। अतः मैंने दैत्यगुरु शुक्राचार्य से इसका समाधान मांगा, तो दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने मुझे आपसे त्रिशक्ति का वरदान मांगने को कहा। उन्होंने कहा कि इसी त्रिशक्ति से मैं दैत्यों, राक्षसों और मनुष्यों के बीच संघर्ष विराम कर
सम्पूर्ण पृथ्वी पर संतुलन स्थापित कर सकती हूं। तो हे देव मुझे त्रिशक्ति प्रदान करें।”
“क्या तुम्हें पता भी है विद्युम्ना कि त्रिशक्ति क्या है?” देव ने विद्युम्ना से पूछा।
“हां देव, त्रिशक्ति, जल, बल और छल की शक्तियों से निर्मित एक त्रिसर्पमुखी दंड है, यह दंड जिसके पास रहता है, उसे कोई भी हरा नहीं सकता। इस सर्पदंड को छीना भी नहीं जा सकता और इसके पास रहते हुए इसके स्वामी को मारा भी नहीं जा सकता। मैं इसी महाशक्ति से इस समूची पृथ्वी पर संतुलन स्थापित करुंगी।” विद्युम्ना ने कहा।
“क्या शक्ति के प्रदर्शन से कभी पृथ्वी पर संतुलन स्थापित हो सकता है विद्युम्ना?” देव ने कहा- “या तुम ये समझती हो कि तुम स्वयं कभी पथ भ्रमित नहीं हो सकती?”
देव के शब्दों में एक सार छिपा था, जिसे विद्युम्ना ने एक क्षण में ही महसूस कर लिया।
“म…देव मैं आपके कथनों का अर्थ समझ गई।” विद्युम्ना ने हाथ जोड़कर कहा- “तो फिर मुझे ये भी आशीर्वाद दीजिये कि यदि भविष्य में मैं कभी पथभ्रमित हो भी गई, तो आपकी महाशक्ति के पंचभूत मुझे मार्ग दिखायेंगे।”
“तथास्तु।” देव, विद्युम्ना के कथन सुन मुस्कुरा उठे और विद्युम्ना को वरदान दे वहां से अंतर्ध्यान हो गये।
विद्युम्ना के हाथों में अब एक त्रिसर्पमुखी दंड था, जिसका ऊपरी सिरे पर 3 सर्पों के मुख बने थे।
विद्युम्ना ने वह सर्पदंड हवा में उठाकर, उसे गायब कर दिया और वापस जंगल से अपने घर की ओर चल दी।
देव के प्रभाव से विद्युम्ना के वस्त्र और शरीर साफ हो गये थे, अब वह फिर से बहुत सुंदर नजर आने लगी थी।
विद्युम्ना अब जंगल में आगे बढ़ रही थी कि तभी विद्युम्ना को जंगल में एक स्थान पर सफेद रंग का एक बहुत ही खूबसूरत मोर दिखाई दिया, जो कि अपने पंख फैलाकर एक स्थान पर नृत्य कर रहा था।
इतना खूबसूरत नजारा देखकर विद्युम्ना मंत्रमुग्ध हो कर उस दृश्य को देखने लगी।
विद्युम्ना झाड़ियों की ओट से इस दृश्य को निहार रही थी।
अभी तक उस मोर की निगाह विद्युम्ना पर नहीं पड़ी थी।
वह मोर ना जाने कितनी देर तक ऐसे ही नृत्य करता रहा, फिर अचानक उस मोर ने एक इंसानी शरीर धारण कर लिया।
अब वह मोर किसी देवता की भांति प्रतीत हो रहा था, परंतु उस मोर ने नृत्य अभी भी नहीं रोका था।
तभी आसमान से बारिश की नन्हीं बूंदें गिरने लगीं, अब वह इंसान उस बारिश के जल में पूरी तरह सराबोर हो गया था।
बारिश में सराबोर होने के बाद, शायद उस व्यक्ति की प्यास अब बुझ गई थी।
अब उसने नाचना बंद कर दिया और फिर एक दिशा की ओर जाने लगा।
यह देख विद्युम्ना ने भागकर उस व्यक्ति का रास्ता रोक लिया और बोली- “तुम तो देवताओं के समान नृत्य करते हो। हे मनुष्य तुम कौन हो?”
अचानक से सामने एक स्त्री को देख वह व्यक्ति पहले तो घबरा गया, फिर उसने ध्यान से विद्युम्ना के सौंदर्य को देखा और फिर बोल उठा-
“मैं मनुष्य नहीं, मैं राक्षस राज बाणकेतु हूं। मुझे प्रकृति और जीवों से बहुत लगाव है, इसलिये कभी-कभी मैं छिपकर इस जंगल में आता हूं और कुछ देर के लिये प्रकृति के इन रंगों और इस वातावरण में खो जाता हूं। पर आप कौन हो देवी? और आप इस भयानक जंगल में अकेले क्या कर रही हो?”
“अगर आप राक्षस हो, तो आप इतना सौंदर्यवान कैसे हो?” विद्युम्ना ने बाणकेतु के प्रश्न का उत्तर देने की जगह स्वयं उससे सवाल कर लिया।
“मैं एक मायावी राक्षस हूं, मैं कोई भी रुप धारण कर सकता हूं, असल में मैं ऐसा नहीं दिखता, यह रुप तो मैंने प्रकृति में खोने के लिये चुना था।” बाणकेतु ने कहा- “पर आप वास्तव में बहुत सुंदर हो। क्या मैं
आपका परिचय जान सकता हूं?”
“मेरा नाम विद्युम्ना है। मैं दैत्यराज इरवान की पुत्री हूं। मैं इस जंगल में तपस्या करने आयी थी।” विद्युम्ना ने कहा।
“क्या वरदान मांगा आपने देव से?” बाणकेतु ने विद्युम्ना से पूछा।
“मैंने मांगा कि कोई प्रकृति से प्रेम करने वाला, सुंदर सजीला नौजवान कल मेरे पिता के पास आकर मेरा हाथ मांगे और मुझसे विवाह कर मुझे अपने घर ले जाये।” विद्युम्ना ने यह शब्द मुस्कुरा कर कहे और
पलटकर वापस जंगल के दूसरी ओर चल दी।
विद्युम्ना के कुछ आगे बढ़ने के बाद विद्युम्ना के कानों में बाणकेतु की आवाज सुनाई दी- “मैं कल तुम्हारे पिता के पास तुम्हारा हाथ मांगने आ रहा हूं विद्युम्ना। मेरा इंतजार करना।”
यह सुन विद्युम्ना के चेहरे पर मुस्कान खिल गई, पर विद्युम्ना ने पीछे पलटकर नहीं देखा और आगे जाकर बाणकेतु की नजरों से ओझल हो गई।
अजीब प्रणय निवेदन था, पर जो भी हो बाणकेतु को विद्युम्ना भा गई थी।
बाणकेतु भी मुस्कुराकर अब एक दिशा की ओर चला दिया।
जारी रहेगा________![]()