रोहित को उठाने के बाद ज्योति कुछ देर तक रोहित के कमरे में ही खड़े होकर कुछ सोचने लगी फिर धीरे से उसके कमरे से बाहर निकली और रीमा के कमरे की तरफ जाने लगे ज्योति का दिल बड़े जोरों से धड़क रहा था ऐसा नहीं था कि आज पहली बार लड़के वाले रीमा को देखने आ रहे थे आज 5वी बार कोई रिमा को देखने वाले आ रहे थे और ज्योति मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर रही थी कि इस बार उसका रिश्ता पक्का हो जाए तो गंगा नहाए उसे बहुत चिंता थी,,, पति के न होने की वजह से सारी जिम्मेदारी उसके ऊपर ही थी,, जैसे तैसे करके उसने अपने बच्चों को पढाया लिखाया ,,, वैसे तो ज्योति पति के जाने के बाद अपनी किस्मत से समाधान कर ली थी और अपने बच्चों में ही अपना सारा जीवन झोंक दी थी उसे उतनी परेशानी उनके लालन पोषण करने में बिल्कुल भी नहीं हुई थी,,, क्योंकि एक अच्छी सी ऑफिस में वह टाइप राइटर की नौकरी पर लगी हुई थी जिसकी तनख्वाह से उसका गुजारा हो जाता था उसकी सबसे बड़ी चिंता थी रीमा के विवाह को लेकर चार बार लड़के वाले ना कर चुके थे आज पांचवीं बार कोई लड़के वाले देखने आ रहे थे।
वैसे तो ज्यादा चिंता का विषय कुछ था नहीं रीमा पढ़ी लिखी थी b.ed कर चुकी थी उसे टीचर की नौकरी चाहिए थी जिसके लिए वह अग्रसर थी। वैसे तो रीमा पूरी तरह से समझदार और होशियार लड़की थी लेकिन ज्यादा चिंता के विषय ज्योति के लिए थी उसकी बढ़ती उम्र और हल्का सा सांवला रंग, वह 28 साल की हो चुकी थी, विवाह की उम्र निकाली जा रही थी, वैसे तो हल्का सा सांवला रंग अगर एक तरफ रख दिया जाए तो वह बला की खूबसूरत थी । ऐसा क्या नहीं था जो एक खूबसूरत लड़की में होता है,,, उसकी तरफ लड़के आकर्षित होते तो थे लेकिन जहां विवाह की बात आती थी वहां पर दो कदम पीछे हो जाते थे। इसी समस्या को लेकर रीमा अंदर ही अंदर टूट चुकी थी वैसे तो वह बेहद कड़े मनोबल की थी लेकिन अपने विवाह की बात जब आती थी तो उसका दिल टूट जाता था क्योंकि वह चार बार अपमान का घूंट पी चुकी थी इसलिए उसे यह सब रश्मे अच्छी नहीं लगती थी। लेकिन मजबूरन उसे इन सब बातों का सामना करना ही पड़ता था।
ज्योति सीधा अपनी बेटी के कमरे में गई थी। कमरे का दरवाजा खुला हुआ था इसका मतलब सरस्वती वह जाग रही थी ज्योति जब कमरे में दाखिल हुई तो वह बिस्तर पर बैठी हुई थी और शायद आज के बारे में ही सोच रही थी,,, कमरे में दाखिल होते ही वह रीमा से बोली।
क्या हुआ बेटा तू अभी तक बैठी है जल्दी से नहा कर तैयार हो जा।
मां मैं तुम्हें बहुत लगती हूं, (रीमा उसी तरह से पलक झपकाए बिना ही खुली हुई खिड़की से बाहर देखते हुए बोली,,,)
यह कैसी बातें कर रही है बेटा तू,,,(बिस्तर से नीचे गिरी चादर को अपने हाथ से उठाकर बिस्तर पर रखते हुए ज्योति बोली) बेटियां कभी बोझ होती है क्या,,,!
सिर्फ कहने की बात है मां तभी तो तुम इतनी जल्दबाजी दिख रही हो मुझे इस घर से बाहर भेजने के लिए,,,।
ऐसा बिल्कुल भी नहीं है बेटा,,(प्यार से रीमा के बगल में बैठते हुए ज्योति बोली,,,)
ऐसा ही है मां तभी तो तुम इतनी जल्दबाजी दिख रही हो चार बार लड़के वाले इनकार कर चुके हैं फिर भी।(इससे ज्यादा रीमा से बोला ना गया ज्योति अपनी बेटी के दर्द को अच्छी तरह से समझती थी, वह बड़े प्यार से रीमा के सर पर हाथ रखते हुए उसे प्यार दिखाते हुए बोली)
मेरा बस चले तो तुझे जिंदगी भर अपने पास रख लु सीने से लगा कर रखु लेकिन क्या करूं समाज की रीति रिवाज से मजबूर हूं लड़कियां वास्तव में पराया धन ही होती है।
लेकिन इस पराया धन को किसी को जरूरत नहीं है।(रीमा के इन शब्दों में उसका दर्द साफ दिखाई दे रहा था)
यह कैसी बातें कर रही है रीमा,,, अंधे हैं वह लोग जो इतना अनमोल हीरे को पहचान नहीं पा रहे हैं,,,,
यह सब बातें हैं मां,,,मैं कह रही हूं मुझे अभी और पढ़ने दो मुझे टीचर बन जाने दो मुझे अपने पैरों पर खड़े हो जाने दो,,,।
वह तो तू बन ही जाएगी बेटी,,,,इसमें कोई शक नहीं है लेकिन विवाह भी बहुत जरूरी है समय रहते विवाह हो जाए तो बहुत अच्छा होता है,,,, तू तो समझदार है फिर क्यों बेवकूफी भरी बातें करती है,,,, कल को तो टीचर बन जाएगी तो क्या यही सब कुछ सिखाएगी बच्चों को।
मैं तो यही सिखाऊंगी की लड़कियों को अपने पैर पर हमेशा खड़ा रहना चाहिए।
( अपनी बेटी की बात सुनकर ज्योति रीमा की तरफ देखकर मुस्कुराने लगी और रीमा भी मुस्कुरा दी,,,, और धीरे से बिस्तर से उठते हुए ज्योति बोली)
मेरी प्यारी बेटी,,,, जल्दी से तैयार हो जा,,,,
लेकिन यह लोग भी इंकार कर दिए तो,,,,!
अगर ऐसा है तो फिर इसके बाद जो तेरे मन में आए वह करना मैं कुछ नहीं कहूंगी,,,,।
(अपनी मां की बात सुनकर रीमा मुस्कुराने लगी और ज्योति भी मुस्कुराते हुए कमरे से बाहर चली गई,,,,
थोड़ी ही देर में रोहित नहा कर तैयार हो चुका था,,,,ज्योति भी अपने कमरे से बाहर आकर थोड़ा बहुत काम में हाथ बंटा रही थी क्योंकि मेहमान को आने में अभी बहुत समय था,,, रोहित अपनी मां से बोला ,,,,)
लाओ मुझे सामान की लिस्ट दो और पैसे दो जो भी लाना है मैं जल्दी लेकर आ जाऊं,,,,,।
रुक मैं तुझे लिस्ट बना कर दे देती हूं जल्दी जाना जल्दी लेकर आना।
क्या करती हो मम्मीतुम्हारी अभी तक लिस्ट तैयार नहीं है और इतनी जल्दबाजी दिखा रही हो, तुम्हारे कहते कहते मैं नहा कर तैयार हो गया।
हां हां मैं जानती हूं मेरे पर एहसान कर दिया है तु,, रुक जा बनाकर दे रही हूं।
(इतना कहकर ज्योति रसोई घर में गई और सामान की लिस्ट बनाने लगी और जल्द ही रोहित को पैसे और थैला देकर वह लिस्ट भी थमा दी,,, जिसे लेकर रोहित घर से बाहर निकल गया,,,,,,,
1 घंटे बाद पूरी तैयारी हो चुकी थी। बस थोड़े बहुत पकौड़े तलने रह गए थे,, पकोड़े तलते हुए ज्योति बोली,,)
दीदी आप जाकर देखिए ना रीमा तैयार हुई कि नहीं,,,,।
अरे तुम चिंता मत करो मैं पकोड़े पाल देता हूं पहले जाकर के तुम तैयार हो जाओ मैं शालू को भेज देती हुं,,,,,( इतना कहने के साथ अपनी बेटी को आवाज लगाते हुए बोली,,,)
कामिनी,,अरे वो कामिनी,,,, कहां है यह लड़की भी ना,,,(इतना कहने के साथ ही वह ज्योति के हाथ से पकोड़े तलने वाली चमची लेली,,,, और धीरे से फिर से ज्योति से बोली,,,) तुम चिंता मत करो जाओ जल्दी जाकर तैयार हो जाओ,,,,
ठीक है दीदी,,,,, मैं जा रही हूं,,,, तुम संभाल लेना,,,(इतना कहकर ज्योति रसोई घर से निकल ही रही थी कि फिर से पीछे से आवाज लगाती हुई काोमल बोली)
सुनो ज्योति जाते हुए थोड़ा कामिनी को भेज देना तो,,,।
ठीक है दीदी,,,,।
(कोमल ज्योति की जेठानी थी जोकी उनकी बगल में ही रहती थी दोनों का मकान सटा हुआ था और कोमल की एक ही औलाद थी कामिनी जोकी रोहित कि हम उम्र थी,,, ज्योति रसोई घर से बाहर आते ही सीढीओ से ऊपर की तरफ जाने लगी,,, तभी उसे सीढीओ से उतरती हुई कामिनी दिखाई दी और उसे देखते ही ज्योति बोली,,)
कामिनी बेटी।
जी चाची,,,,।
रसोई घर में जाकर देखो दीदी तुम्हें बुला रही है,,,,
ठीक है चाची में जा रही हूं,,,,,
और हां भाई साहब नहीं आए,,,,।
पापा अभी थोड़ी देर में आ जाएंगे,,,
ठीक है,,,,।
(कामिनी रसोई घर में आई तो उसकी मां कोमल बोली)
कहां घूम रही है,,,?
कहीं तो नहीं मम्मी यहीं तो हूं
तुझे कुछ समझ में आता है जाकर अपनी बड़ी दीदी की मदद कर तैयार होने में,,,
ठीक है मम्मी मैं जा रही हूं,,,,।
(इतना कहकर कामिनी रीमा के कमरे की तरफ जल्दी उसे तैयार करने में मदद करने के लिए,,,और ज्योति अपने कमरे में तैयार होने लगी नहा तो वह कब से ली थी लेकिन अभी तैयार नहीं हुई थी और वह पहनी हुई साड़ी को उतारने लगी,,वैसे तो उसे पेटिकोट उतारते की कोई जरूरत नहीं होती क्योंकि वह साड़ी के नीचे ही रहने वाली थी लेकिन उसका घेराव थोड़ा ज्यादा था इसलिए उसे थोड़ा अजीब लग रहा था और वह उसे भी उतार दी और दूसरी पेटिकोट लेकर उसे नीचे से टांग में डालने लगी अभी वह अपनी पेटीकोट को अपनी जांघों तक लाई थी कि,, तभी भड़ाक की आवाज के साथ एकदम से दरवाजा खुला और रोहित अपनी मां के कमरे में दाखिलहुआ और अपनी आंखों के सामने जो नजारा देखा उसे देखते हुए अपनी आंखों को दूसरी तरफ घुमा लिया और एकदम से बोल पड़ा,,,,)
क्या मम्मी दरवाजे पर कुंडी तो लगा लिया करो,,,(रोहित दूसरी तरफ नजर करके बोला,,,, दरवाजा खुलने की आवाज के साथ ज्योति एकदम से घबरा गई थी और जल्दबाजी में पेटीकोट को कमर तक ऊपर उठा ली थी लेकिन तब तक रोहित अपनी मां की बड़ी-बड़ी गांड को देख चुका था बस एक झलक लेकिन उसके मन में कोई गलत भावना बिल्कुल भी नहीं थी उसे अपनी मां पर गुस्सा ही आ रहा था कि वह दरवाजा बंद क्यों नहीं की थीऔर इस बात पर भी गुस्सा था उसे अपने आप पर कि वह दरवाजा पर दस्तक किए बिना क्यों कमरे में घुस जाता है,,,, पेटिकोट की डोरी को बांधते हुए ज्योति अपने बेटे की तरफ देखे बिना ही बोली,,,)
जल्दबाजी में कुंडी लगाना भूल गई लेकिन क्या काम है,,,,।
बड़ी मम्मी पूछ रही है की मिठाई का डब्बा कहां है,,,,
अरे वही रसोई घर के कबाट में रखा हुआ है,,,,।
ठीक है,,,(इतना कहकर रोहित अपनी मां के कमरे से बाहर निकल गया,,,,, थोड़ी देर बाद ही रोहित के बड़े पापा भी वहां पर आ गए,,,, उन्होंने थोड़ा तैयारी का जायजा लिया और वही कुर्सी पर बैठ गए थोड़ी ही देर बाद मेहमान भी घर पर आ गए,)