भावना : (हसते) दीदी.. लखन भैयातो सृतीदीकी बडी सेवा कर रहे हे..
पुनम : (हसते धीरेसे कानमे) दीदी.. सेवा तो करते हे.. लेकीन रातमे वसुल भी करलेते हे.. हें..हें..हें..
भावना : (खुसीसे सोक्ट होते हसते धीरेसे) व्होट..? वसुल कर लेते हे..? मतलब..? आइ मीन.. दोनो रीलेशनमे..? कबसे..?
पुनम : (सरमाते धीरेसे) वैसे तो दोनो दश बाराह दीनसे रीलेशनमे आगये हे.. लेकीन दोनो पीछले तीन दिनसे मील रहे हे.. अब ये मेरी सौतन होने वाली हे.. तो जरा सम्हालके..
भावना : (हसते धीरेसे) दीदी.. लेकीन लखन भैयातो इनको भी दीदी.. दीदी.. कहेकर बुलाते हे..
पुनम : (हसते कानमे धीरेसे) दीदी.. लखन भैया हेना बहुत कमीने हे.. उनको अपनी बीवीसे ज्यादा बहेनको ठोकनेमे मजा आता हे.. बीलकुल हमारे बापुपे गये हे.. बडे भैया भी अैसे ही हे.. देखना उनकी अेक भी बहेन नही बचेगी.. कमीसी सब इनके पीछे पागल होजायेगी..
सृती : (बाथरुमसे थोडा जोरोसे) दीदी.. लखन भैया यहा हे क्या..? आइ अेम रेडी..
पुनम : (अंदर जाते) नही दी.. वो फ्रेस होने गये हे.. चलीये मे आपकी मदद करती हु.. चल सकोगी क्या..?
सृती : (मुस्कुराते कंधा पकडकर) हां.. बस थोडा सहारा दीजीये.. अब डोक्टरने भी थोडा थोडा चलनेको कहा हे.. तो मे वोकर लेकर चलती हु.. चलीये.. मेरे कपडे भी वहा हे..
लखन : (अंदर आते) दीदी.. ये लीजीये आपके कपडे.. आज ये पहेनीये.. मस्त लगोगी..
भावना : (जोरोसे हसते) अरे वाह.. ये भी आपको पता हे..? दीदीकी तो बडी सेवा हो रही हे..?
लखन : (हसते) भाभी.. कहोतो आपकी भी सेवा करदु..
भावना : (सृतीकी ओर देखते जोरोसे हसते) अरे ना बाबा नां.. मुजे पता हे आपकी सेवाके बारेमे.. हें..हें..हें.. मुजे नही करवानी सेवा आपसे.. अपनी बीवीओकी सेवा ही करीये..
पुनम : (सरमाते हसते) क्या दी आपभी.. मे तो हमेसा भाइके चोइसके कपडे ही पहेनती हु.. जब हम दोनो स्कुलमे पढते थे.. लाइअे बच्चीको.. आप फ्रेस होजाइअे..
कहा तो भावना बच्ची पुनमको देकर लखनकी ओर कातील स्माइल करते अंदर चली गइ.. लखन भी अपने कपडे लेकर वापस सृतीके रुममे चला गया.. तो पुनमने दरवाजा बंध करदीया ओर सृतीको कपडे पहेनानेमे हेल्प करने लगी.. फीर वो भी फ्रेस होकर कंपलीट होगइ.. सबलोग तैयार होगये तो लखन सृतीको वापस गोदमे उठाकर नीचे आगया ओर सृतीको सीधा डाइनींगपे बीठा दीया..
दया : (चाइ नास्ता बहार लाते) चलो चलो सबलोग आजाओ.. चाइ नास्ता रेडी हे.. फीर हमे भी तैयार होना हे..
पुनम : दीदी.. लाइअे मे नीकालती हु.. आप दोनो भी बैठ जाइअे.. फीर तैयार होजाना..
फीर सबलोग चाइ नास्ता कर लेते हे पुनम ओर भावना कीचनका काम देखती हे.. ओर दया रजीया तैयार होजाती हे.. लखन सबको लेकर घरको ताला लगाकर मार्केट चला जाता हे.. वहा अेक बडे मोलमे कारको पार्किंग कर देता हे.. तो लखन वहा सृतीको गोदमे उठाकर चलने लगता हे.. तो सृती बहुत ही सर्मसार होने लगी.. ओर कारमे बेठनेकी जीद करने लगी.. लेकीन लखनने उनकी अेक नही सुनी..