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Adultery राजमाता कौशल्यादेवी

vakharia

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इस अनुभव से राजमाता इतनी थक गई थी कि वह वहीं पड़ी रही और गहरी नींद सो गई। जब उनकी आँखें खुली तब अँधेरा हो चुका था और वह अपने कक्ष में अकेली थी। उनका दिमाग यह तय नही कर पा रहा था की जो कुछ भी उन्होंने देखा, सुना या महसूस किया वह वास्तविकता थी या फिर केवल एक भ्रम था... उनका पूरा शरीर निढाल हो चुका था और मस्तिष्क हिल चुका था। इस अनुभव का आयोजन करने के लिए वह मन ही मन विद्याधर की आभारी हो गई। निःसंदेह विद्याधर भी बहुत खुश था कि वह राजमाता को ऐसा अद्वितीय अनुभव करवा सका और उनके चेहरे की खुशी, उसके लिए किसी इनाम से कम नही थी।

वह आदमी और नर्तकी और कुछ सप्ताह राजमहल में रुकें.. और उस समय के दौरान राजमाता ने वह सुख हासिल किया जो उन्होंने स्वप्न में भी कभी नही सोचा था। राजमाता की विनती पर वह तांत्रिक जोड़ी कभी कभार राजमहल में आते रहते। इस तरह शक्तिसिंह, विद्याधर और उस तांत्रिक जोड़ी के बीच राजमाता ने एक भरपूर संभोग से परिपूर्ण जीवन का आनंद लिया। नियमित जीवन में शक्तिसिंह और विद्याधर दोनों मन भरकर उन्हे चोदते... दोनों ही अलग अलग तरीके से राजमाता को तृप्त करते। दोनों ही राजमाता की वासना को संतुष्ट करने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते और जैसे यह पर्याप्त नहीं था... वह तांत्रिक जोड़ी भी उन्हे आश्चर्यचकित करने के लिए कभी भी आ टपकती।

इसका मतलब यह था कि अब वह संभोग-साथी ढूंढने की चिंता से मुक्त हो गई थी और अब वह अपने अंतिम लक्ष्य की और आगे बढ़ने के लिए मुक्त और तैयार थी और वह था अपने बढ़ते राज्या को एक मजबूत और स्थिर साम्राज्य में बदलना!!!
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पूर्ण समय पर महारानी पद्मिनी ने एक स्वस्थ राजकुमार को जन्म दिया.... पूरा राज्य इस समाचार को सुनकर आनंद में डूब गया... महाराज की उत्तेजना की कोई सीमा न थी... पूरे राजमहल को फूलों से सजाया गया... सभी सेवक-सेविकाओ को आभूषण भेट में दिए गए... उत्सव का आयोजन किया गया जिसमे महाराजा कमलसिंह ने मुठ्ठीयां भर भर कर सुवर्ण मुद्राएं नगर जनों में बांटी गई.. सारी प्रजा आपस में मिठाइयां बाँट रहे थे... सब की खुशी का कोई ठिकाना न था...

अपने प्रयोग मे सफल हुई राजमाता भी खुश थी... अब वह सूरजगढ़ की सीमाओ का विस्तार कर एक ऐसे साम्राज्य का गठन करना चाहती थी जिसे वह इस नई पीढ़ी को भेंट दे सके... और साथ ही साथ इतिहास के सुवर्ण पन्नों पर उनकी कामयाबी की गाथाएं लिखी जाएँ...

अगले ६ महीनों में राजमाता कौशल्यादेवी के सैन्य ने पड़ोसी मुल्कों को या तो अपने घुटने टेक देने पर मजबूर कर दिया या फिर कुचल दिया.. उनकी विशाल पैदल सेना अपने रास्ते में आने वाले हर रजवाड़े को तहस नहस कर आगे बढ़ रही थी... इस उद्देश्य मे महारानी पद्मिनी के पिता के राज्य का सैन्य भी जुड़ चुका था... राजमाता की अपने सैन्य को स्पष्ट सूचना थी की हमला सिर्फ प्रतिद्वंदी सैन्य पर किया जाए... उस नगर की प्रजा को या उनके घर और खेत को जरा सी भी आंच नही आनी चाहिए... आखिर उस राज्य को जीत लेने के बाद वह लोग उनके प्रजागण मे ही शामिल होने वाले थे। वह नही चाहती थी की वे उन्हे नफरत भरी निगाह से देखें।

राजमाता को इस अभियान के लिए तैयार कर विद्याधर ने उनसे इजाजत मांगी... वह हिमालय के उत्तुंग शिखरों मे बसे हुए गुरुओं से अपनी आगे की शिक्षा प्राप्त करने हेतु जाना चाहता था। ना चाहते हुए भी राजमाता को उसे जाने देना पड़ा... विद्याधर ने राजमाता को संभोग की उन ऊंचाइयों का अनुभव दिलाया था जिसके बारे मे उन्होंने कभी सोचा नही था... राजमाता के काफी समझाने के बावजूद विद्याधर न रुका और अपनी राह पर चल दिया... अपने इस अनोखे संभोग साथी को गँवाने पर राजमाता काफी व्यथित थी।

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पूरे दिन सैन्य की गतिविधियों पर नजर रखकर और आगे का आयोजन करते हुए, शाम ढलने तक राजमाता मानसिक थकान से चूर हो गई थी। उन्होंने महसूस किया की युद्ध के दौरान वह इतनी मशरूफ़ रही थी की अपने आप के लिए वक्त निकाल ही नही पा रही थी। विद्याधर के जाने के बाद वह तांत्रिक जोड़ी भी काफी महीनों से आई नही थी... और शक्तिसिंह को राजकुमार की सुरक्षा के लिए तैनात करने के बाद मिलना ही नही होता था... कभी कभार जब वह नवजात शिशु को देखने के लिए जाती तब द्वार पर खड़े शक्तिसिंह से नजरें चार हो जाती... अमूमन शक्तिसिंह का मन भी महारानी के कक्ष के इर्दगिर्द मंडराता रहता... वह नन्हा राजकुमार आखिर उसका पुत्र जो था...

राजमाता अपने कक्ष की ओर जा रही थी... उनका अंग-अंग आज संसर्ग के लिए बिलख रहा था... उनकी चुत को राजमाता की यह अनदेखी कतई बर्दाश्त नही हो रही थी... उनके विराट मदमस्त स्तन आज कुछ ज्यादा ही भारी लग रहे थे.. और उनकी निप्पलों ने कड़ी होकर चोली को फाड़ देने की धमकी सी दे रखी थी...

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अपने इन शारीरिक बदलावो को महसूस करते हुए राजमाता को इस समस्या का बस एक ही समाधान पता था... और वो था शक्तिसिंह!! काफी महीने बीत गए थे शक्तिसिंह से मिले... आज वह किसी भी सूरत मे अपने जिस्मानी आवेगों को रोकना नही चाहती थी। उन्होंने शक्तिसिंह को बुलावा भेजा...

बुलावा मिलते ही शक्तिसिंह हाजिर हुआ... राजमाता ने सबसे पहेले उसे कक्ष का द्वार अंदर से पूर्णतः बंद करने का निर्देश दिया... जैसे ही शक्तिसिंह किवाड़ बंद कर आया, राजमाता ने उसे गिरहबान से पकड़कर अपने साथ बिस्तर पर सुला दिया...

कुछ पलों तक वह शक्तिसिंह को चूमती रही... उसके बलिष्ठ भुजाओं की मांसपेशियों को सहलाते हुए राजमाता बड़ा ही सुरक्षित महसूस कर रही थी... उनके होंठ शक्तिसिंह के होंठों से मिलकर एक घनिष्ठ चुंबन मे तब्दील हो चुके थे। शक्तिसिंह भी राजमाता की गर्दन को जकड़कर चूमे जा रहा था... उसने अपनी एक टांग को राजमाता की जांघों के ऊपर चढ़ा रखा था...

कुछ देर तक चले इस चुंबन के बाद राजमाता के होंठों ने शक्तिसिंह को मुक्त किया...

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"क्यों रे... तू तो जैसे मुझे भूल ही गया... " शिकायती स्वर मे राजमाता ने शक्तिसिंह से कहा

"राजमाता जी, आप युद्ध की व्यवस्था मे इतनी व्यस्त रहते है और मे राजकुमार की सुरक्षा मे... वैसे दिल तो बहुत करता था आप से मिलने का... पर क्या करता... अपने कर्तव्य के चलते मजबूर था... " शक्तिसिंह ने अपनी मजबूरी जाहीर की

"याद रहे शक्तिसिंह... तुम्हें वहाँ सिर्फ सुरक्षा के लिए स्थापित किया गया है.. अपने जज़्बातों को काबू मे ही रखना... इस राज को तुम्हें अपने दिल की किसी कोने मे दफन कर देना है... इसी मे इस राज्य की और तुम्हारी भलाई है... " थोड़े से तीखे सुर में राजमाता ने कहा

"यकीन मानिए राजमाता जी... इस सेवक पर आपने जो विश्वास रखा है... उसे मे हरगिज नही भूल सकता हूँ.. निश्चिंत रहिए.. इस तथ्य के बारे मे आपके, महारानी के और मेरे अलावा किसी को पता नही चलेगा... " आँखें झुकाए शक्तिसिंह ने उत्तर दिया

"हम्ममम... विश्वास तो मुझे पूरा है तुझ पर... बस कभी कभार तुझे याद दिलाने से अपने आप को नही रोक पाती... खैर छोड़ वो सब बातें... " शक्तिसिंह का हाथ अपने उन्नत स्तनों पर रखते हुए वह बोली "तुझे इनकी याद नही आई इतने महीनों मे?"

शक्तिसिंह के चेहरे पर मुस्कान आ गई...

"कैसे नही आती याद? इनकी यादों के सहारे तो मेरी रातें कटती है... "

"अच्छा... तो फिर रात को इन दोनों को याद करते हुए तू क्या करता था?" राजमाता का शरारती मन शक्तिसिंह के मजे ले रहा था

"जी... वो.. अब क्या बताऊँ... अकेला आदमी बिस्तर पर लेटे हुए, और क्या कर सकता है?" थोड़ा सा शर्मा गया शक्तिसिंह

"नही नही... तू बता मुझे... क्या करता था तू...?"

"जी मे बस... खुद ही.. अपने हाथों से.. "

राजमाता ठहाका लगाकर हंस दी... और शक्तिसिंह की धोती के ऊपर से उसके लंड को पकड़ लिया

"हाये... कितने वक्त बाद इसे हाथ मे लेने का मौका मिला है... यह तो पहले के मुकाबले मे बड़ा हो गया है!! लगता है रोज रात को तेरी मालिश और मर्दन के कारण इसका कद और परिधि दोनों ही बढ़ गए है... काफी मोटा तगड़ा हो गया है ये तो... " राजमाता कराहते हुए उसके लंड को वस्त्र के ऊपर से ही अपनी हथेली से दबाने लगी... शक्तिसिंह का लंड भी काफी समय बाद, स्त्री की गरम हथेली का स्पर्श पाकर धन्य हो गया... शक्तिसिंह के लंड की नसों मे तेजी से खून दौड़ने लगा... और लंड ने तुरंत ही कडा रूप अख्तियार कर लिया...

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शक्तिसिंह ने अपनी उँगलियाँ राजमाता की चोली में डालकर चूचियों के ऊपर उनकी निप्पल तक पहुंचा दी.. अब वह दो उंगलियों से उनकी निप्पल के साथ खेलने लगा... बहुत दिनों से प्यासी बैठी राजमाता इस छेड़छाड़ से उत्तेजित होने लगी...

वह बड़ी ही भारी आवाज मे शक्तिसिंह के कानों मे फुसफुसाई "आह बहुत दिन बाद मौका मिला है... जरा आराम से करना"

उन्होंने धीरे-धीरे एक-दूसरे को चूमा और इस हद तक सहलाया कि वे दोनों मुख्य कार्यक्रम के लिए तैयार हो गए।

शक्तिसिंह ने धीरे-धीरे राजमाता को निर्वस्त्र कर दिया और फिर अपने कपड़े भी उतार फेंके। उसने बड़े ही प्यार से राजमाता के स्तनों को चूमा, फिर उनके पेट को चाटते हुए उनकी टाँगे चौड़ी कर बीच मे पहुँच गया... अपनी जीभ फेरते हुए वह राजमाता की नाभि तक पहुंचा... गोलाकार मे जीभ घुमाकर वो राजमाता की आहें निकालने लगा... काफी देर तक वह राजमाता की नाभि मे जीभ घुमाता रहा... राजमाता तड़प रही थी... छटपटा रही थी... उत्तेजना के मारे अपने पैर बिस्तर पर पटक रही थी...

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जैसे उनके इशारे को भांप लिया हो वैसे शक्तिसिंह अब उनके शरीर के निचले हिस्से तक गई.. गरमाई हुई चुत के होंठ सिकुड़कर खुल रहे थे... जैसे भूख मुंह खाने को ताक रहा हो... शक्तिसिंह ने उनकी चुत के इर्दगिर्द सब जगह चूमा... योनि के ऊपर की चर्बी पर... जांघों पर.. जांघों के मूल पर... चूमते हुए वह अपनी जीभ से चाटने भी लगा... सब जगह चूमने और चाटने के बावजूद उसने राजमाता की तड़पती चुत को ही छोड़ दिया!! राजमाता कराह रही थी... उनकी चुत को अब शक्तिसिंह की लपलपाती जीभ की कड़ी आवश्यकता थी... पर शक्तिसिंह भी आज राजमाता के धैर्य की परीक्षा ले रहा था... ऐसी हरकतें करते हुए राजमाता को तड़पाने उसे बड़ा मज़ा आ रहा था।

"क्या कर रहा है कब से? डाल दे मेरे छत्ते मे तेरी जीभ... आह्हह.. !!" राजमाता के चेहरे की तड़प देखते ही बनती थी

शक्तिसिंह ने शैतानी मुस्कान के साथ राजमाता की आँखों मे देखा... और फिर अचानक बिस्तर पर खड़ा हो गया.. !! दो कदम चलकर वह राजमाता के मुख के ऊपर खड़ा हो गया... और धीरे से नीचे झुकते हुए अपने लँड को राजमाता के मुख के समक्ष पेश कर दिया। संकेत स्पष्ट था... बिना वक्त बर्बाद किए, उत्सुक राजमाता ने उसके लँड को लपक लिया... हाथ से उसका लंड पकड़े वह सुपाड़े को लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी... एक ही पल मे शक्तिसिंह धरती से सीधे स्वर्ग की यात्रा पर निकल गया... राजमाता के मुख के गरम अंदरूनी हिस्से का नरम स्पर्श होते ही वह खिल गया... थोड़ी देर तक लंड चूसते रहने के बाद राजमाता बेकरार हो गई।

उन्होंने फिर से धीरे-धीरे एक-दूसरे को चूमा और इस हद तक सहलाया कि वे दोनों मुख्य कार्यक्रम के लिए तैयार हो गए। शक्तिसिंह ने धीरे से और बड़े प्यार से अपनी जीभ से राजमाता की चुत को एक त्वरित स्खलन की भेंट दे दी। वह ठीक से जानता था कि किस समय राजमाता के भगांकुर को उकसाया जाए.. उनके चिकने योनि मार्ग में प्रवेश करते समय राजमाता की योनि के होठों को कैसे उत्तेजित किया जाए!!

धीरे-धीरे उसने अपने महीनों के अनुभव का उपयोग करते हुए, अपनी जीभ फेरने की गति को बढ़ाया, जब तक कि वह खुशी से चिल्लाने नहीं लगी। फिर जब वह ठीक हो गई तो उसने उस पर चढ़ने और अपना लंड उसकी उत्तेजित योनी में घुसाने में कोई समय बर्बाद नहीं किया, ठीक उसी तरह जैसे राजमाता को पसंद था।

आमने-सामने से वे विभिन्न आसनों में और कई स्खलनों के बाद उस पड़ाव तक पहुंचे, जो अब राजमाता का सबसे पसंदीदा तरीका बन गया था - पीछे से लेने का!!

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वह तुरंत उलटी घूम गई.. वह जानती थी कि आगे क्या होगा और उसके लिए तैयार भी थी। राजमाता के निर्दोष नितंबों का दृश्य हमेशा इतना उत्तेजक था की किसी को भी उनकी गांड को चोदने के लिए प्रेरित कर देता। अपने चूतड़ों को थोड़ा सा और ऊपर उठाने के उद्देश्य से वह अब अपने चार पैरों पर हो गई... किस जानवर की तरह!! वह अपने हाथों और घुटनों पर धैर्यपूर्वक इंतजार करती रही... शक्तिसिंह अपने लंड को लार से चिकना करने के बाद धीरे से लेकिन उद्देश्यपूर्ण तरीके से राजमाता की गांड के छिद्र के अंदर तब तक डालता गया जब तक कि वह पूरी तरह से अंदर समा न गया।

राजमाता के मदमस्त कूल्हों को पकड़कर शक्तिसिंह ने धीरे-धीरे अपने धक्कों की गति बढ़ा दी, उनके तने हुए गुलाबी नितंबों के दृश्य का आनंद लेते हुए... राजमाता के नितंब उसके धक्कों का सामना करने के लिए हर धक्के के साथ पीछे की ओर बढ़ जाते थे। इतना मज़ा आ रहा था शक्तिसिंह को की वह चाहता था की यह स्वर्गीय आनंद देने वाली गांड चुदाई बस चलती ही रहे!!!

लेकिन अफ़सोस, उसकी उत्तेजना उस पर हावी हो गई और वह ज़ोर से कराहने लगा और बड़ी मात्रा मे वीर्य राजमाता के पिछले मार्ग में जमा कर दिया। हमेशा की तरह एक बार की चुदाई उन दोनों के लिए पर्याप्त नहीं थी और वह रात भी कोई अपवाद नहीं थी। शक्तिसिंह ने विभिन्न स्थितियों में राजमाता की गांड को बार-बार चोदा!!

सुबह जब राजमाता उठी तो शक्तिसिंह का लिंग उनकी गांड में ही था और उन्हे अब भी परेशान कर रहा था। शक्तिसिंह को जगाकर राजमाता ने एक बार और अपनी गांड और चुत मरवाई और तब कहीं जाकर शक्तिसिंह का छुटकारा हुआ.. !!


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vakharia

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sunoanuj

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Bahut hee umda updates khani ko atyant tivr gati se aagey ki or badha diya … jabardast updates 👏🏻👏🏻👏🏻
 

Ek number

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इस अनुभव से राजमाता इतनी थक गई थी कि वह वहीं पड़ी रही और गहरी नींद सो गई। जब उनकी आँखें खुली तब अँधेरा हो चुका था और वह अपने कक्ष में अकेली थी। उनका दिमाग यह तय नही कर पा रहा था की जो कुछ भी उन्होंने देखा, सुना या महसूस किया वह वास्तविकता थी या फिर केवल एक भ्रम था... उनका पूरा शरीर निढाल हो चुका था और मस्तिष्क हिल चुका था। इस अनुभव का आयोजन करने के लिए वह मन ही मन विद्याधर की आभारी हो गई। निःसंदेह विद्याधर भी बहुत खुश था कि वह राजमाता को ऐसा अद्वितीय अनुभव करवा सका और उनके चेहरे की खुशी, उसके लिए किसी इनाम से कम नही थी।

वह आदमी और नर्तकी और कुछ सप्ताह राजमहल में रुकें.. और उस समय के दौरान राजमाता ने वह सुख हासिल किया जो उन्होंने स्वप्न में भी कभी नही सोचा था। राजमाता की विनती पर वह तांत्रिक जोड़ी कभी कभार राजमहल में आते रहते। इस तरह शक्तिसिंह, विद्याधर और उस तांत्रिक जोड़ी के बीच राजमाता ने एक भरपूर संभोग से परिपूर्ण जीवन का आनंद लिया। नियमित जीवन में शक्तिसिंह और विद्याधर दोनों मन भरकर उन्हे चोदते... दोनों ही अलग अलग तरीके से राजमाता को तृप्त करते। दोनों ही राजमाता की वासना को संतुष्ट करने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते और जैसे यह पर्याप्त नहीं था... वह तांत्रिक जोड़ी भी उन्हे आश्चर्यचकित करने के लिए कभी भी आ टपकती।

इसका मतलब यह था कि अब वह संभोग-साथी ढूंढने की चिंता से मुक्त हो गई थी और अब वह अपने अंतिम लक्ष्य की और आगे बढ़ने के लिए मुक्त और तैयार थी और वह था अपने बढ़ते राज्या को एक मजबूत और स्थिर साम्राज्य में बदलना!!!
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पूर्ण समय पर महारानी पद्मिनी ने एक स्वस्थ राजकुमार को जन्म दिया.... पूरा राज्य इस समाचार को सुनकर आनंद में डूब गया... महाराज की उत्तेजना की कोई सीमा न थी... पूरे राजमहल को फूलों से सजाया गया... सभी सेवक-सेविकाओ को आभूषण भेट में दिए गए... उत्सव का आयोजन किया गया जिसमे महाराजा कमलसिंह ने मुठ्ठीयां भर भर कर सुवर्ण मुद्राएं नगर जनों में बांटी गई.. सारी प्रजा आपस में मिठाइयां बाँट रहे थे... सब की खुशी का कोई ठिकाना न था...

अपने प्रयोग मे सफल हुई राजमाता भी खुश थी... अब वह सूरजगढ़ की सीमाओ का विस्तार कर एक ऐसे साम्राज्य का गठन करना चाहती थी जिसे वह इस नई पीढ़ी को भेंट दे सके... और साथ ही साथ इतिहास के सुवर्ण पन्नों पर उनकी कामयाबी की गाथाएं लिखी जाएँ...

अगले ६ महीनों में राजमाता कौशल्यादेवी के सैन्य ने पड़ोसी मुल्कों को या तो अपने घुटने टेक देने पर मजबूर कर दिया या फिर कुचल दिया.. उनकी विशाल पैदल सेना अपने रास्ते में आने वाले हर रजवाड़े को तहस नहस कर आगे बढ़ रही थी... इस उद्देश्य मे महारानी पद्मिनी के पिता के राज्य का सैन्य भी जुड़ चुका था... राजमाता की अपने सैन्य को स्पष्ट सूचना थी की हमला सिर्फ प्रतिद्वंदी सैन्य पर किया जाए... उस नगर की प्रजा को या उनके घर और खेत को जरा सी भी आंच नही आनी चाहिए... आखिर उस राज्य को जीत लेने के बाद वह लोग उनके प्रजागण मे ही शामिल होने वाले थे। वह नही चाहती थी की वे उन्हे नफरत भरी निगाह से देखें।

राजमाता को इस अभियान के लिए तैयार कर विद्याधर ने उनसे इजाजत मांगी... वह हिमालय के उत्तुंग शिखरों मे बसे हुए गुरुओं से अपनी आगे की शिक्षा प्राप्त करने हेतु जाना चाहता था। ना चाहते हुए भी राजमाता को उसे जाने देना पड़ा... विद्याधर ने राजमाता को संभोग की उन ऊंचाइयों का अनुभव दिलाया था जिसके बारे मे उन्होंने कभी सोचा नही था... राजमाता के काफी समझाने के बावजूद विद्याधर न रुका और अपनी राह पर चल दिया... अपने इस अनोखे संभोग साथी को गँवाने पर राजमाता काफी व्यथित थी।

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पूरे दिन सैन्य की गतिविधियों पर नजर रखकर और आगे का आयोजन करते हुए, शाम ढलने तक राजमाता मानसिक थकान से चूर हो गई थी। उन्होंने महसूस किया की युद्ध के दौरान वह इतनी मशरूफ़ रही थी की अपने आप के लिए वक्त निकाल ही नही पा रही थी। विद्याधर के जाने के बाद वह तांत्रिक जोड़ी भी काफी महीनों से आई नही थी... और शक्तिसिंह को राजकुमार की सुरक्षा के लिए तैनात करने के बाद मिलना ही नही होता था... कभी कभार जब वह नवजात शिशु को देखने के लिए जाती तब द्वार पर खड़े शक्तिसिंह से नजरें चार हो जाती... अमूमन शक्तिसिंह का मन भी महारानी के कक्ष के इर्दगिर्द मंडराता रहता... वह नन्हा राजकुमार आखिर उसका पुत्र जो था...

राजमाता अपने कक्ष की ओर जा रही थी... उनका अंग-अंग आज संसर्ग के लिए बिलख रहा था... उनकी चुत को राजमाता की यह अनदेखी कतई बर्दाश्त नही हो रही थी... उनके विराट मदमस्त स्तन आज कुछ ज्यादा ही भारी लग रहे थे.. और उनकी निप्पलों ने कड़ी होकर चोली को फाड़ देने की धमकी सी दे रखी थी...

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बुलावा मिलते ही शक्तिसिंह हाजिर हुआ... राजमाता ने सबसे पहेले उसे कक्ष का द्वार अंदर से पूर्णतः बंद करने का निर्देश दिया... जैसे ही शक्तिसिंह किवाड़ बंद कर आया, राजमाता ने उसे गिरहबान से पकड़कर अपने साथ बिस्तर पर सुला दिया...

कुछ पलों तक वह शक्तिसिंह को चूमती रही... उसके बलिष्ठ भुजाओं की मांसपेशियों को सहलाते हुए राजमाता बड़ा ही सुरक्षित महसूस कर रही थी... उनके होंठ शक्तिसिंह के होंठों से मिलकर एक घनिष्ठ चुंबन मे तब्दील हो चुके थे। शक्तिसिंह भी राजमाता की गर्दन को जकड़कर चूमे जा रहा था... उसने अपनी एक टांग को राजमाता की जांघों के ऊपर चढ़ा रखा था...

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"क्यों रे... तू तो जैसे मुझे भूल ही गया... " शिकायती स्वर मे राजमाता ने शक्तिसिंह से कहा

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"याद रहे शक्तिसिंह... तुम्हें वहाँ सिर्फ सुरक्षा के लिए स्थापित किया गया है.. अपने जज़्बातों को काबू मे ही रखना... इस राज को तुम्हें अपने दिल की किसी कोने मे दफन कर देना है... इसी मे इस राज्य की और तुम्हारी भलाई है... " थोड़े से तीखे सुर में राजमाता ने कहा

"यकीन मानिए राजमाता जी... इस सेवक पर आपने जो विश्वास रखा है... उसे मे हरगिज नही भूल सकता हूँ.. निश्चिंत रहिए.. इस तथ्य के बारे मे आपके, महारानी के और मेरे अलावा किसी को पता नही चलेगा... " आँखें झुकाए शक्तिसिंह ने उत्तर दिया

"हम्ममम... विश्वास तो मुझे पूरा है तुझ पर... बस कभी कभार तुझे याद दिलाने से अपने आप को नही रोक पाती... खैर छोड़ वो सब बातें... " शक्तिसिंह का हाथ अपने उन्नत स्तनों पर रखते हुए वह बोली "तुझे इनकी याद नही आई इतने महीनों मे?"

शक्तिसिंह के चेहरे पर मुस्कान आ गई...

"कैसे नही आती याद? इनकी यादों के सहारे तो मेरी रातें कटती है... "

"अच्छा... तो फिर रात को इन दोनों को याद करते हुए तू क्या करता था?" राजमाता का शरारती मन शक्तिसिंह के मजे ले रहा था

"जी... वो.. अब क्या बताऊँ... अकेला आदमी बिस्तर पर लेटे हुए, और क्या कर सकता है?" थोड़ा सा शर्मा गया शक्तिसिंह

"नही नही... तू बता मुझे... क्या करता था तू...?"

"जी मे बस... खुद ही.. अपने हाथों से.. "

राजमाता ठहाका लगाकर हंस दी... और शक्तिसिंह की धोती के ऊपर से उसके लंड को पकड़ लिया

"हाये... कितने वक्त बाद इसे हाथ मे लेने का मौका मिला है... यह तो पहले के मुकाबले मे बड़ा हो गया है!! लगता है रोज रात को तेरी मालिश और मर्दन के कारण इसका कद और परिधि दोनों ही बढ़ गए है... काफी मोटा तगड़ा हो गया है ये तो... " राजमाता कराहते हुए उसके लंड को वस्त्र के ऊपर से ही अपनी हथेली से दबाने लगी... शक्तिसिंह का लंड भी काफी समय बाद, स्त्री की गरम हथेली का स्पर्श पाकर धन्य हो गया... शक्तिसिंह के लंड की नसों मे तेजी से खून दौड़ने लगा... और लंड ने तुरंत ही कडा रूप अख्तियार कर लिया...

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शक्तिसिंह ने अपनी उँगलियाँ राजमाता की चोली में डालकर चूचियों के ऊपर उनकी निप्पल तक पहुंचा दी.. अब वह दो उंगलियों से उनकी निप्पल के साथ खेलने लगा... बहुत दिनों से प्यासी बैठी राजमाता इस छेड़छाड़ से उत्तेजित होने लगी...

वह बड़ी ही भारी आवाज मे शक्तिसिंह के कानों मे फुसफुसाई "आह बहुत दिन बाद मौका मिला है... जरा आराम से करना"

उन्होंने धीरे-धीरे एक-दूसरे को चूमा और इस हद तक सहलाया कि वे दोनों मुख्य कार्यक्रम के लिए तैयार हो गए।

शक्तिसिंह ने धीरे-धीरे राजमाता को निर्वस्त्र कर दिया और फिर अपने कपड़े भी उतार फेंके। उसने बड़े ही प्यार से राजमाता के स्तनों को चूमा, फिर उनके पेट को चाटते हुए उनकी टाँगे चौड़ी कर बीच मे पहुँच गया... अपनी जीभ फेरते हुए वह राजमाता की नाभि तक पहुंचा... गोलाकार मे जीभ घुमाकर वो राजमाता की आहें निकालने लगा... काफी देर तक वह राजमाता की नाभि मे जीभ घुमाता रहा... राजमाता तड़प रही थी... छटपटा रही थी... उत्तेजना के मारे अपने पैर बिस्तर पर पटक रही थी...

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जैसे उनके इशारे को भांप लिया हो वैसे शक्तिसिंह अब उनके शरीर के निचले हिस्से तक गई.. गरमाई हुई चुत के होंठ सिकुड़कर खुल रहे थे... जैसे भूख मुंह खाने को ताक रहा हो... शक्तिसिंह ने उनकी चुत के इर्दगिर्द सब जगह चूमा... योनि के ऊपर की चर्बी पर... जांघों पर.. जांघों के मूल पर... चूमते हुए वह अपनी जीभ से चाटने भी लगा... सब जगह चूमने और चाटने के बावजूद उसने राजमाता की तड़पती चुत को ही छोड़ दिया!! राजमाता कराह रही थी... उनकी चुत को अब शक्तिसिंह की लपलपाती जीभ की कड़ी आवश्यकता थी... पर शक्तिसिंह भी आज राजमाता के धैर्य की परीक्षा ले रहा था... ऐसी हरकतें करते हुए राजमाता को तड़पाने उसे बड़ा मज़ा आ रहा था।

"क्या कर रहा है कब से? डाल दे मेरे छत्ते मे तेरी जीभ... आह्हह.. !!" राजमाता के चेहरे की तड़प देखते ही बनती थी

शक्तिसिंह ने शैतानी मुस्कान के साथ राजमाता की आँखों मे देखा... और फिर अचानक बिस्तर पर खड़ा हो गया.. !! दो कदम चलकर वह राजमाता के मुख के ऊपर खड़ा हो गया... और धीरे से नीचे झुकते हुए अपने लँड को राजमाता के मुख के समक्ष पेश कर दिया। संकेत स्पष्ट था... बिना वक्त बर्बाद किए, उत्सुक राजमाता ने उसके लँड को लपक लिया... हाथ से उसका लंड पकड़े वह सुपाड़े को लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी... एक ही पल मे शक्तिसिंह धरती से सीधे स्वर्ग की यात्रा पर निकल गया... राजमाता के मुख के गरम अंदरूनी हिस्से का नरम स्पर्श होते ही वह खिल गया... थोड़ी देर तक लंड चूसते रहने के बाद राजमाता बेकरार हो गई।

उन्होंने फिर से धीरे-धीरे एक-दूसरे को चूमा और इस हद तक सहलाया कि वे दोनों मुख्य कार्यक्रम के लिए तैयार हो गए। शक्तिसिंह ने धीरे से और बड़े प्यार से अपनी जीभ से राजमाता की चुत को एक त्वरित स्खलन की भेंट दे दी। वह ठीक से जानता था कि किस समय राजमाता के भगांकुर को उकसाया जाए.. उनके चिकने योनि मार्ग में प्रवेश करते समय राजमाता की योनि के होठों को कैसे उत्तेजित किया जाए!!

धीरे-धीरे उसने अपने महीनों के अनुभव का उपयोग करते हुए, अपनी जीभ फेरने की गति को बढ़ाया, जब तक कि वह खुशी से चिल्लाने नहीं लगी। फिर जब वह ठीक हो गई तो उसने उस पर चढ़ने और अपना लंड उसकी उत्तेजित योनी में घुसाने में कोई समय बर्बाद नहीं किया, ठीक उसी तरह जैसे राजमाता को पसंद था।

आमने-सामने से वे विभिन्न आसनों में और कई स्खलनों के बाद उस पड़ाव तक पहुंचे, जो अब राजमाता का सबसे पसंदीदा तरीका बन गया था - पीछे से लेने का!!

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वह तुरंत उलटी घूम गई.. वह जानती थी कि आगे क्या होगा और उसके लिए तैयार भी थी। राजमाता के निर्दोष नितंबों का दृश्य हमेशा इतना उत्तेजक था की किसी को भी उनकी गांड को चोदने के लिए प्रेरित कर देता। अपने चूतड़ों को थोड़ा सा और ऊपर उठाने के उद्देश्य से वह अब अपने चार पैरों पर हो गई... किस जानवर की तरह!! वह अपने हाथों और घुटनों पर धैर्यपूर्वक इंतजार करती रही... शक्तिसिंह अपने लंड को लार से चिकना करने के बाद धीरे से लेकिन उद्देश्यपूर्ण तरीके से राजमाता की गांड के छिद्र के अंदर तब तक डालता गया जब तक कि वह पूरी तरह से अंदर समा न गया।

राजमाता के मदमस्त कूल्हों को पकड़कर शक्तिसिंह ने धीरे-धीरे अपने धक्कों की गति बढ़ा दी, उनके तने हुए गुलाबी नितंबों के दृश्य का आनंद लेते हुए... राजमाता के नितंब उसके धक्कों का सामना करने के लिए हर धक्के के साथ पीछे की ओर बढ़ जाते थे। इतना मज़ा आ रहा था शक्तिसिंह को की वह चाहता था की यह स्वर्गीय आनंद देने वाली गांड चुदाई बस चलती ही रहे!!!

लेकिन अफ़सोस, उसकी उत्तेजना उस पर हावी हो गई और वह ज़ोर से कराहने लगा और बड़ी मात्रा मे वीर्य राजमाता के पिछले मार्ग में जमा कर दिया। हमेशा की तरह एक बार की चुदाई उन दोनों के लिए पर्याप्त नहीं थी और वह रात भी कोई अपवाद नहीं थी। शक्तिसिंह ने विभिन्न स्थितियों में राजमाता की गांड को बार-बार चोदा!!


सुबह जब राजमाता उठी तो शक्तिसिंह का लिंग उनकी गांड में ही था और उन्हे अब भी परेशान कर रहा था। शक्तिसिंह को जगाकर राजमाता ने एक बार और अपनी गांड और चुत मरवाई और तब कहीं जाकर शक्तिसिंह का छुटकारा हुआ.. !!


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Shandaar update
 

U.and.me

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इस अनुभव से राजमाता इतनी थक गई थी कि वह वहीं पड़ी रही और गहरी नींद सो गई। जब उनकी आँखें खुली तब अँधेरा हो चुका था और वह अपने कक्ष में अकेली थी। उनका दिमाग यह तय नही कर पा रहा था की जो कुछ भी उन्होंने देखा, सुना या महसूस किया वह वास्तविकता थी या फिर केवल एक भ्रम था... उनका पूरा शरीर निढाल हो चुका था और मस्तिष्क हिल चुका था। इस अनुभव का आयोजन करने के लिए वह मन ही मन विद्याधर की आभारी हो गई। निःसंदेह विद्याधर भी बहुत खुश था कि वह राजमाता को ऐसा अद्वितीय अनुभव करवा सका और उनके चेहरे की खुशी, उसके लिए किसी इनाम से कम नही थी।

वह आदमी और नर्तकी और कुछ सप्ताह राजमहल में रुकें.. और उस समय के दौरान राजमाता ने वह सुख हासिल किया जो उन्होंने स्वप्न में भी कभी नही सोचा था। राजमाता की विनती पर वह तांत्रिक जोड़ी कभी कभार राजमहल में आते रहते। इस तरह शक्तिसिंह, विद्याधर और उस तांत्रिक जोड़ी के बीच राजमाता ने एक भरपूर संभोग से परिपूर्ण जीवन का आनंद लिया। नियमित जीवन में शक्तिसिंह और विद्याधर दोनों मन भरकर उन्हे चोदते... दोनों ही अलग अलग तरीके से राजमाता को तृप्त करते। दोनों ही राजमाता की वासना को संतुष्ट करने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते और जैसे यह पर्याप्त नहीं था... वह तांत्रिक जोड़ी भी उन्हे आश्चर्यचकित करने के लिए कभी भी आ टपकती।

इसका मतलब यह था कि अब वह संभोग-साथी ढूंढने की चिंता से मुक्त हो गई थी और अब वह अपने अंतिम लक्ष्य की और आगे बढ़ने के लिए मुक्त और तैयार थी और वह था अपने बढ़ते राज्या को एक मजबूत और स्थिर साम्राज्य में बदलना!!!
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पूर्ण समय पर महारानी पद्मिनी ने एक स्वस्थ राजकुमार को जन्म दिया.... पूरा राज्य इस समाचार को सुनकर आनंद में डूब गया... महाराज की उत्तेजना की कोई सीमा न थी... पूरे राजमहल को फूलों से सजाया गया... सभी सेवक-सेविकाओ को आभूषण भेट में दिए गए... उत्सव का आयोजन किया गया जिसमे महाराजा कमलसिंह ने मुठ्ठीयां भर भर कर सुवर्ण मुद्राएं नगर जनों में बांटी गई.. सारी प्रजा आपस में मिठाइयां बाँट रहे थे... सब की खुशी का कोई ठिकाना न था...

अपने प्रयोग मे सफल हुई राजमाता भी खुश थी... अब वह सूरजगढ़ की सीमाओ का विस्तार कर एक ऐसे साम्राज्य का गठन करना चाहती थी जिसे वह इस नई पीढ़ी को भेंट दे सके... और साथ ही साथ इतिहास के सुवर्ण पन्नों पर उनकी कामयाबी की गाथाएं लिखी जाएँ...

अगले ६ महीनों में राजमाता कौशल्यादेवी के सैन्य ने पड़ोसी मुल्कों को या तो अपने घुटने टेक देने पर मजबूर कर दिया या फिर कुचल दिया.. उनकी विशाल पैदल सेना अपने रास्ते में आने वाले हर रजवाड़े को तहस नहस कर आगे बढ़ रही थी... इस उद्देश्य मे महारानी पद्मिनी के पिता के राज्य का सैन्य भी जुड़ चुका था... राजमाता की अपने सैन्य को स्पष्ट सूचना थी की हमला सिर्फ प्रतिद्वंदी सैन्य पर किया जाए... उस नगर की प्रजा को या उनके घर और खेत को जरा सी भी आंच नही आनी चाहिए... आखिर उस राज्य को जीत लेने के बाद वह लोग उनके प्रजागण मे ही शामिल होने वाले थे। वह नही चाहती थी की वे उन्हे नफरत भरी निगाह से देखें।

राजमाता को इस अभियान के लिए तैयार कर विद्याधर ने उनसे इजाजत मांगी... वह हिमालय के उत्तुंग शिखरों मे बसे हुए गुरुओं से अपनी आगे की शिक्षा प्राप्त करने हेतु जाना चाहता था। ना चाहते हुए भी राजमाता को उसे जाने देना पड़ा... विद्याधर ने राजमाता को संभोग की उन ऊंचाइयों का अनुभव दिलाया था जिसके बारे मे उन्होंने कभी सोचा नही था... राजमाता के काफी समझाने के बावजूद विद्याधर न रुका और अपनी राह पर चल दिया... अपने इस अनोखे संभोग साथी को गँवाने पर राजमाता काफी व्यथित थी।

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पूरे दिन सैन्य की गतिविधियों पर नजर रखकर और आगे का आयोजन करते हुए, शाम ढलने तक राजमाता मानसिक थकान से चूर हो गई थी। उन्होंने महसूस किया की युद्ध के दौरान वह इतनी मशरूफ़ रही थी की अपने आप के लिए वक्त निकाल ही नही पा रही थी। विद्याधर के जाने के बाद वह तांत्रिक जोड़ी भी काफी महीनों से आई नही थी... और शक्तिसिंह को राजकुमार की सुरक्षा के लिए तैनात करने के बाद मिलना ही नही होता था... कभी कभार जब वह नवजात शिशु को देखने के लिए जाती तब द्वार पर खड़े शक्तिसिंह से नजरें चार हो जाती... अमूमन शक्तिसिंह का मन भी महारानी के कक्ष के इर्दगिर्द मंडराता रहता... वह नन्हा राजकुमार आखिर उसका पुत्र जो था...

राजमाता अपने कक्ष की ओर जा रही थी... उनका अंग-अंग आज संसर्ग के लिए बिलख रहा था... उनकी चुत को राजमाता की यह अनदेखी कतई बर्दाश्त नही हो रही थी... उनके विराट मदमस्त स्तन आज कुछ ज्यादा ही भारी लग रहे थे.. और उनकी निप्पलों ने कड़ी होकर चोली को फाड़ देने की धमकी सी दे रखी थी...

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अपने इन शारीरिक बदलावो को महसूस करते हुए राजमाता को इस समस्या का बस एक ही समाधान पता था... और वो था शक्तिसिंह!! काफी महीने बीत गए थे शक्तिसिंह से मिले... आज वह किसी भी सूरत मे अपने जिस्मानी आवेगों को रोकना नही चाहती थी। उन्होंने शक्तिसिंह को बुलावा भेजा...

बुलावा मिलते ही शक्तिसिंह हाजिर हुआ... राजमाता ने सबसे पहेले उसे कक्ष का द्वार अंदर से पूर्णतः बंद करने का निर्देश दिया... जैसे ही शक्तिसिंह किवाड़ बंद कर आया, राजमाता ने उसे गिरहबान से पकड़कर अपने साथ बिस्तर पर सुला दिया...

कुछ पलों तक वह शक्तिसिंह को चूमती रही... उसके बलिष्ठ भुजाओं की मांसपेशियों को सहलाते हुए राजमाता बड़ा ही सुरक्षित महसूस कर रही थी... उनके होंठ शक्तिसिंह के होंठों से मिलकर एक घनिष्ठ चुंबन मे तब्दील हो चुके थे। शक्तिसिंह भी राजमाता की गर्दन को जकड़कर चूमे जा रहा था... उसने अपनी एक टांग को राजमाता की जांघों के ऊपर चढ़ा रखा था...

कुछ देर तक चले इस चुंबन के बाद राजमाता के होंठों ने शक्तिसिंह को मुक्त किया...

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"क्यों रे... तू तो जैसे मुझे भूल ही गया... " शिकायती स्वर मे राजमाता ने शक्तिसिंह से कहा

"राजमाता जी, आप युद्ध की व्यवस्था मे इतनी व्यस्त रहते है और मे राजकुमार की सुरक्षा मे... वैसे दिल तो बहुत करता था आप से मिलने का... पर क्या करता... अपने कर्तव्य के चलते मजबूर था... " शक्तिसिंह ने अपनी मजबूरी जाहीर की

"याद रहे शक्तिसिंह... तुम्हें वहाँ सिर्फ सुरक्षा के लिए स्थापित किया गया है.. अपने जज़्बातों को काबू मे ही रखना... इस राज को तुम्हें अपने दिल की किसी कोने मे दफन कर देना है... इसी मे इस राज्य की और तुम्हारी भलाई है... " थोड़े से तीखे सुर में राजमाता ने कहा

"यकीन मानिए राजमाता जी... इस सेवक पर आपने जो विश्वास रखा है... उसे मे हरगिज नही भूल सकता हूँ.. निश्चिंत रहिए.. इस तथ्य के बारे मे आपके, महारानी के और मेरे अलावा किसी को पता नही चलेगा... " आँखें झुकाए शक्तिसिंह ने उत्तर दिया

"हम्ममम... विश्वास तो मुझे पूरा है तुझ पर... बस कभी कभार तुझे याद दिलाने से अपने आप को नही रोक पाती... खैर छोड़ वो सब बातें... " शक्तिसिंह का हाथ अपने उन्नत स्तनों पर रखते हुए वह बोली "तुझे इनकी याद नही आई इतने महीनों मे?"

शक्तिसिंह के चेहरे पर मुस्कान आ गई...

"कैसे नही आती याद? इनकी यादों के सहारे तो मेरी रातें कटती है... "

"अच्छा... तो फिर रात को इन दोनों को याद करते हुए तू क्या करता था?" राजमाता का शरारती मन शक्तिसिंह के मजे ले रहा था

"जी... वो.. अब क्या बताऊँ... अकेला आदमी बिस्तर पर लेटे हुए, और क्या कर सकता है?" थोड़ा सा शर्मा गया शक्तिसिंह

"नही नही... तू बता मुझे... क्या करता था तू...?"

"जी मे बस... खुद ही.. अपने हाथों से.. "

राजमाता ठहाका लगाकर हंस दी... और शक्तिसिंह की धोती के ऊपर से उसके लंड को पकड़ लिया

"हाये... कितने वक्त बाद इसे हाथ मे लेने का मौका मिला है... यह तो पहले के मुकाबले मे बड़ा हो गया है!! लगता है रोज रात को तेरी मालिश और मर्दन के कारण इसका कद और परिधि दोनों ही बढ़ गए है... काफी मोटा तगड़ा हो गया है ये तो... " राजमाता कराहते हुए उसके लंड को वस्त्र के ऊपर से ही अपनी हथेली से दबाने लगी... शक्तिसिंह का लंड भी काफी समय बाद, स्त्री की गरम हथेली का स्पर्श पाकर धन्य हो गया... शक्तिसिंह के लंड की नसों मे तेजी से खून दौड़ने लगा... और लंड ने तुरंत ही कडा रूप अख्तियार कर लिया...

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शक्तिसिंह ने अपनी उँगलियाँ राजमाता की चोली में डालकर चूचियों के ऊपर उनकी निप्पल तक पहुंचा दी.. अब वह दो उंगलियों से उनकी निप्पल के साथ खेलने लगा... बहुत दिनों से प्यासी बैठी राजमाता इस छेड़छाड़ से उत्तेजित होने लगी...

वह बड़ी ही भारी आवाज मे शक्तिसिंह के कानों मे फुसफुसाई "आह बहुत दिन बाद मौका मिला है... जरा आराम से करना"

उन्होंने धीरे-धीरे एक-दूसरे को चूमा और इस हद तक सहलाया कि वे दोनों मुख्य कार्यक्रम के लिए तैयार हो गए।

शक्तिसिंह ने धीरे-धीरे राजमाता को निर्वस्त्र कर दिया और फिर अपने कपड़े भी उतार फेंके। उसने बड़े ही प्यार से राजमाता के स्तनों को चूमा, फिर उनके पेट को चाटते हुए उनकी टाँगे चौड़ी कर बीच मे पहुँच गया... अपनी जीभ फेरते हुए वह राजमाता की नाभि तक पहुंचा... गोलाकार मे जीभ घुमाकर वो राजमाता की आहें निकालने लगा... काफी देर तक वह राजमाता की नाभि मे जीभ घुमाता रहा... राजमाता तड़प रही थी... छटपटा रही थी... उत्तेजना के मारे अपने पैर बिस्तर पर पटक रही थी...

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जैसे उनके इशारे को भांप लिया हो वैसे शक्तिसिंह अब उनके शरीर के निचले हिस्से तक गई.. गरमाई हुई चुत के होंठ सिकुड़कर खुल रहे थे... जैसे भूख मुंह खाने को ताक रहा हो... शक्तिसिंह ने उनकी चुत के इर्दगिर्द सब जगह चूमा... योनि के ऊपर की चर्बी पर... जांघों पर.. जांघों के मूल पर... चूमते हुए वह अपनी जीभ से चाटने भी लगा... सब जगह चूमने और चाटने के बावजूद उसने राजमाता की तड़पती चुत को ही छोड़ दिया!! राजमाता कराह रही थी... उनकी चुत को अब शक्तिसिंह की लपलपाती जीभ की कड़ी आवश्यकता थी... पर शक्तिसिंह भी आज राजमाता के धैर्य की परीक्षा ले रहा था... ऐसी हरकतें करते हुए राजमाता को तड़पाने उसे बड़ा मज़ा आ रहा था।

"क्या कर रहा है कब से? डाल दे मेरे छत्ते मे तेरी जीभ... आह्हह.. !!" राजमाता के चेहरे की तड़प देखते ही बनती थी

शक्तिसिंह ने शैतानी मुस्कान के साथ राजमाता की आँखों मे देखा... और फिर अचानक बिस्तर पर खड़ा हो गया.. !! दो कदम चलकर वह राजमाता के मुख के ऊपर खड़ा हो गया... और धीरे से नीचे झुकते हुए अपने लँड को राजमाता के मुख के समक्ष पेश कर दिया। संकेत स्पष्ट था... बिना वक्त बर्बाद किए, उत्सुक राजमाता ने उसके लँड को लपक लिया... हाथ से उसका लंड पकड़े वह सुपाड़े को लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी... एक ही पल मे शक्तिसिंह धरती से सीधे स्वर्ग की यात्रा पर निकल गया... राजमाता के मुख के गरम अंदरूनी हिस्से का नरम स्पर्श होते ही वह खिल गया... थोड़ी देर तक लंड चूसते रहने के बाद राजमाता बेकरार हो गई।

उन्होंने फिर से धीरे-धीरे एक-दूसरे को चूमा और इस हद तक सहलाया कि वे दोनों मुख्य कार्यक्रम के लिए तैयार हो गए। शक्तिसिंह ने धीरे से और बड़े प्यार से अपनी जीभ से राजमाता की चुत को एक त्वरित स्खलन की भेंट दे दी। वह ठीक से जानता था कि किस समय राजमाता के भगांकुर को उकसाया जाए.. उनके चिकने योनि मार्ग में प्रवेश करते समय राजमाता की योनि के होठों को कैसे उत्तेजित किया जाए!!

धीरे-धीरे उसने अपने महीनों के अनुभव का उपयोग करते हुए, अपनी जीभ फेरने की गति को बढ़ाया, जब तक कि वह खुशी से चिल्लाने नहीं लगी। फिर जब वह ठीक हो गई तो उसने उस पर चढ़ने और अपना लंड उसकी उत्तेजित योनी में घुसाने में कोई समय बर्बाद नहीं किया, ठीक उसी तरह जैसे राजमाता को पसंद था।

आमने-सामने से वे विभिन्न आसनों में और कई स्खलनों के बाद उस पड़ाव तक पहुंचे, जो अब राजमाता का सबसे पसंदीदा तरीका बन गया था - पीछे से लेने का!!

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वह तुरंत उलटी घूम गई.. वह जानती थी कि आगे क्या होगा और उसके लिए तैयार भी थी। राजमाता के निर्दोष नितंबों का दृश्य हमेशा इतना उत्तेजक था की किसी को भी उनकी गांड को चोदने के लिए प्रेरित कर देता। अपने चूतड़ों को थोड़ा सा और ऊपर उठाने के उद्देश्य से वह अब अपने चार पैरों पर हो गई... किस जानवर की तरह!! वह अपने हाथों और घुटनों पर धैर्यपूर्वक इंतजार करती रही... शक्तिसिंह अपने लंड को लार से चिकना करने के बाद धीरे से लेकिन उद्देश्यपूर्ण तरीके से राजमाता की गांड के छिद्र के अंदर तब तक डालता गया जब तक कि वह पूरी तरह से अंदर समा न गया।

राजमाता के मदमस्त कूल्हों को पकड़कर शक्तिसिंह ने धीरे-धीरे अपने धक्कों की गति बढ़ा दी, उनके तने हुए गुलाबी नितंबों के दृश्य का आनंद लेते हुए... राजमाता के नितंब उसके धक्कों का सामना करने के लिए हर धक्के के साथ पीछे की ओर बढ़ जाते थे। इतना मज़ा आ रहा था शक्तिसिंह को की वह चाहता था की यह स्वर्गीय आनंद देने वाली गांड चुदाई बस चलती ही रहे!!!

लेकिन अफ़सोस, उसकी उत्तेजना उस पर हावी हो गई और वह ज़ोर से कराहने लगा और बड़ी मात्रा मे वीर्य राजमाता के पिछले मार्ग में जमा कर दिया। हमेशा की तरह एक बार की चुदाई उन दोनों के लिए पर्याप्त नहीं थी और वह रात भी कोई अपवाद नहीं थी। शक्तिसिंह ने विभिन्न स्थितियों में राजमाता की गांड को बार-बार चोदा!!


सुबह जब राजमाता उठी तो शक्तिसिंह का लिंग उनकी गांड में ही था और उन्हे अब भी परेशान कर रहा था। शक्तिसिंह को जगाकर राजमाता ने एक बार और अपनी गांड और चुत मरवाई और तब कहीं जाकर शक्तिसिंह का छुटकारा हुआ.. !!


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Lajawab 🔥🤤

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