परिचय-
मेरे पिताजी भानु प्रताप जी
मेरे जन्म के 2 वर्ष बाद ही एक एक्सीडेंट में मारे गए । लाश का भी पता नहीं चला
मेरी माँ- रेखा 42 वर्ष ।
जिन्होंने मुझे लाड प्यार से पाला । पिताजी का न होते हुए
भी बड़े संघर्ष से इस घर के लिए दो वक़्त की रोटी का इंतज़ाम किया।
मेरी दीदी-पूनम 24 वर्षीय हैं ।पैसे के अभाव में 12वीं के बाद
पढ़ाई नहीं कर पाई घर पर ही रहती हैं।
दूसरी दीदी- तनु 23 वर्षीय हैं। इन्होंने भी 11वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी पैसे के अभाव में ।
में सूरज 21 वर्षीय 11वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी।
पारवारिक जीवन खुशहाल रहे । दो वक़्त की रोटी का
इंतज़ाम के लिए खेतों में लकड़ी काट कर घर चलाने का प्रयास करता हूँ।
उत्तर प्रदेश के जिला शामली में बसा मेरा छोटा सा गाँव
किशनगढ़ बहुत खूबसूरत सा लगता है ।जितना खूबसूरत दीखता है
उतने खूबसूरत लोग नहीं हैं यहां के ।
चार पैसे जेब में आने के बाद घमंड इनको ब्याज के रूप में मिल जाता है ।
गाँव के गरीब मजलूम किसान या मेहनतकश लोग इनके यहां
गुलामी की जिंदगी जीने पर मजबूर रहते हैं ।
ये अमीर लोग पैसे से तो अमीर होतें हैं लेकिन दिल के बहुत गरीब होते हैं।
किशनगढ़ गाँव में एक परिवार रहता है सूरज का जो मेहनत कर
अपना गुज़ारा करता है ।
लेकिन किसी अमीर के घर गुलामी नहीं करता है ।
पैसे से भले ही सूरज का परिवार गरीब है लेकिन दिल के मामले में बहुत अमीर ।
इसी गाँव के चौधरी राम सिंह जी जिनका राज चलता है ।
गाँव के लोगों को ब्याज पर पैसा दे कर जीवन भर गाँव के
लोगों से गुलामी करबाता है ।
चौधरी साहब का हुकुम इस गाँव का कानून बन जाता है । लोग
इनके ख़ौफ़ से ही डरते हैं ।
सूरज के पिता भानु प्रताप चौधरी साहब के यहां मजदूरी करते थे
। जिसके चलते उन्होंने कुछ पैसा चौधरी साहब से क़र्ज़ के रूप में
लिया था। अब भानु प्रताप तो रहे नहीं । इसलिए अब ये पैसा
सूरज की माँ रेखा जंगलो में लकड़ियाँ काट कर गाँव में ही
बेचती है और जो पैसा मिलता है उससे पति का लिया हुआ
कर्ज़ा चुकाती है और घर भी चलाती है ।
रेखा अकेली इस घर का बोझ उठाती आई है । इसलिए अब सूरज
भी लकड़ियाँ काट कर चौधरी का कर्ज़ा उतारने में अपनी माँ
की मदद करता है ।
रेखा के परिवार पर गरीबी हटने का नाम ही नहीं ले रही थी ।
पूनम और तनु की बढ़ती उम्र और शादी की चिंता में ही उसका
पूरा दिन कट जाता है ।
सूरज का परिवार अपने टूटे फूटे घर में
रात्रि में सोने की तैयारी कर रहा था। दिन में लकड़ी काटने के
कारण इतनी थकावट हो जाती थी की शाम ढलते ही नीद आने लगती थी ।
शाम को खाना खा कर सूरज आँगन में जमीन पर चादर बिछा कर लेट गया ।
उसके घर में एक ही कमरा था जिसमे उसकी दोनों बहने पूनम और
तनु सोती थी और साथ में उनकी माँ रेखा भी ।
घर कुछ इस तरह से बना हुआ था ।
एक कच्ची ईंट से बना हुआ कमरा उसके बगल में बरामडा जिसकी
छत लोहे की टीन की बनी थी ।
कमरे के सामने बड़ा सा आँगन चार दिबारे खड़ी थी ।
लकड़ी का जर्जर दरबाजा जिसके बराबर में ईंटो से घिरा हुआ
बाथरूम स्नान के लिए जिसमे छत भी नहीं थी ।
बाथरूम में एक नल लगा हुआ था।
लेट्रीन के लिए जंगल में ही जाना होता था ।
पुरे गाँव में सबसे ज्यादा गरीब स्तिथि रेखा की ही थी चूँकि
उसपर बेहिसाब कर्ज़ा था जिसका न तो मूल का पता था और
न ही ब्याज का पता बस चौधरी साहब ने जैसा बता दिया
वैसा ही मान लिया ।
कई बार सूरज ने ये जानने का प्रयास भी किया कर्जे की मूल
रकम जान्ने की तो चौधरी 80 हज़ार बाँकी है इतना कह कर
टहला देता था ।
सूरज पैसो की भरपाई कैसे हो ।
कर्ज़ा कैसे उतरे और बहनो की शादी कैसे हो इन्ही बातों को
सोच कर सो जाता था और दिन निकलते ही फिर से बही काम
लकडी काटना और बेचना ।
जिंदगी बस ऐसे ही गुज़र रही थी ।
सूरज का परिवार गहरी नींद की आगोश में सोया हुआ था ।
तभी अचानक दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी ।
सूरज थकावट के कारण आलस्य में सोया रहा । लेकिन दरवाज़ा
जोर जोर से थपथपाने के कारण उठ कर गया ।
जैसे ही दरवाजे के नजदीक गया, सूरज ने पूछा "कौन हो,और
इतनी रात में क्यूं आए हो??
बहार खड़ा आदमी-"सूरज दरवाजा खोल में हरिया हूँ,चौधरी
साहब ने बुलाया है तुझे अभी"
हरिया चौधरी साहब का बफादार कुत्ता था । हरिया बड़ा
ही अय्यास और क्रूर प्रवर्ति का व्यक्ति था । चौधरी के इशारे
पर किसी को भी मारने पीटने पर तैयार हो जाता था।
सूरज घबरा सा गया इतनी रात में भला क्या काम है मुझे सोचने लगा|
सूरज ने दरवाजा खोला। हरिया के साथ एक और आदमी खड़ा था।
सूरज-" हरिया चाचा अभी रात में क्यूं बुलाया है,में सुबह होते
ही चौधरी साहब से मुलाक़ात कर लूंगा।
हरिया-' सूरज तू चौधरी साहब का हुकुम टाल रहा है । चुपचाप चल मेरे साथ।
अब सूरज में इतनी हिम्मत कहाँ थी वह अपनी माँ और बहनो को
बिना बताए ही चुपचाप घर से चल देता है ।
माँ और बहने तो गहरी नींद में सो रहीं थी उन्हें भनक तक न लगी ।
चौधरी साहब अपने शयनकक्ष में आराम से बैठे मदिरा पान का
आनंद ले रहे थे। सूरज को देखते ही चौधरी साहब बोले ।
चौधरी-" क्यूँ रे सूरज तूने इस महीने का भुगतान नहीं किया ।
कर्ज़ा लेकर वैठा है ।
इस महीने का भुगतान कब करेगा??
चौधरी साहब गुस्से से बोले ।
सूरज घबरा सा गया । हर महीने क़र्ज़ की रकम की क़िस्त भरनी
पड़ती थी । लेकिन इस महीने पैसे नहीं दे पाया ।
सूरज घबराता हुआ बोला-"मालिक कुछ दिन की मोहलत दे
दीजिए, पैसो का इंतज़ाम होते ही आपका कर्ज़ा चुका दूंगा ।
चौधरी-" एक सप्तेह के अंदर इस महीने की क़िस्त आ जानी
चाहिए । बरना गाँव में रहना दुस्बार कर दूंगा, जाकर अपनी माँ
रेखा से बोल दिए, अब तू जा सकता है"
सूरज चौधरी के पैर छू कर वापिस घर लौट आया ।
सूरज जैसे ही घर में घुसा तो देखा उसकी माँ रेखा और दोनों
दीदी पूनम और तनु घबराहट उनके चेहरे पर थी ।सूरज के जांने के बाद ।
रेखा जब पिसाब करने उठी तो उसने सूरज के बिस्तर की और
देखा,जब सूरज नही दिखा तो उसने दरबाजे की और देखा
दरवाजा खुला हुआ था तो घबरा गई थी उसने आनन् फानन में
पूनम और तनु से सूरज के न होने की बात कही तो दोनों बहने भी
घबरा गई ।