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Incest मेरी संघर्ष गाथा (Completed)

Story Collector

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Note: I am not a Original Writer, It is c/p Story From Net.

Credit goes to original writer : Bindas11

I am thankful to original writer from XForum for writing such a best Incest story.

All credit's goes to him only.
I am just sharing it here.
I am sure you like it as much as i love it.

_______________________
 
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Story Collector

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परिचय-
मेरे पिताजी भानु प्रताप जी
मेरे जन्म के 2 वर्ष बाद ही एक एक्सीडेंट में मारे गए । लाश का भी पता नहीं चला
मेरी माँ- रेखा 42 वर्ष ।
जिन्होंने मुझे लाड प्यार से पाला । पिताजी का न होते हुए
भी बड़े संघर्ष से इस घर के लिए दो वक़्त की रोटी का इंतज़ाम किया।
मेरी दीदी-पूनम 24 वर्षीय हैं ।पैसे के अभाव में 12वीं के बाद
पढ़ाई नहीं कर पाई घर पर ही रहती हैं।
दूसरी दीदी- तनु 23 वर्षीय हैं। इन्होंने भी 11वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी पैसे के अभाव में ।
में सूरज 21 वर्षीय 11वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी।
पारवारिक जीवन खुशहाल रहे । दो वक़्त की रोटी का
इंतज़ाम के लिए खेतों में लकड़ी काट कर घर चलाने का प्रयास करता हूँ।
उत्तर प्रदेश के जिला शामली में बसा मेरा छोटा सा गाँव
किशनगढ़ बहुत खूबसूरत सा लगता है ।जितना खूबसूरत दीखता है
उतने खूबसूरत लोग नहीं हैं यहां के ।
चार पैसे जेब में आने के बाद घमंड इनको ब्याज के रूप में मिल जाता है ।
गाँव के गरीब मजलूम किसान या मेहनतकश लोग इनके यहां
गुलामी की जिंदगी जीने पर मजबूर रहते हैं ।
ये अमीर लोग पैसे से तो अमीर होतें हैं लेकिन दिल के बहुत गरीब होते हैं।
किशनगढ़ गाँव में एक परिवार रहता है सूरज का जो मेहनत कर
अपना गुज़ारा करता है ।
लेकिन किसी अमीर के घर गुलामी नहीं करता है ।
पैसे से भले ही सूरज का परिवार गरीब है लेकिन दिल के मामले में बहुत अमीर ।
इसी गाँव के चौधरी राम सिंह जी जिनका राज चलता है ।
गाँव के लोगों को ब्याज पर पैसा दे कर जीवन भर गाँव के
लोगों से गुलामी करबाता है ।
चौधरी साहब का हुकुम इस गाँव का कानून बन जाता है । लोग
इनके ख़ौफ़ से ही डरते हैं ।
सूरज के पिता भानु प्रताप चौधरी साहब के यहां मजदूरी करते थे
। जिसके चलते उन्होंने कुछ पैसा चौधरी साहब से क़र्ज़ के रूप में
लिया था। अब भानु प्रताप तो रहे नहीं । इसलिए अब ये पैसा
सूरज की माँ रेखा जंगलो में लकड़ियाँ काट कर गाँव में ही
बेचती है और जो पैसा मिलता है उससे पति का लिया हुआ
कर्ज़ा चुकाती है और घर भी चलाती है ।
रेखा अकेली इस घर का बोझ उठाती आई है । इसलिए अब सूरज
भी लकड़ियाँ काट कर चौधरी का कर्ज़ा उतारने में अपनी माँ
की मदद करता है ।
रेखा के परिवार पर गरीबी हटने का नाम ही नहीं ले रही थी ।
पूनम और तनु की बढ़ती उम्र और शादी की चिंता में ही उसका
पूरा दिन कट जाता है ।
सूरज का परिवार अपने टूटे फूटे घर में
रात्रि में सोने की तैयारी कर रहा था। दिन में लकड़ी काटने के
कारण इतनी थकावट हो जाती थी की शाम ढलते ही नीद आने लगती थी ।
शाम को खाना खा कर सूरज आँगन में जमीन पर चादर बिछा कर लेट गया ।
उसके घर में एक ही कमरा था जिसमे उसकी दोनों बहने पूनम और
तनु सोती थी और साथ में उनकी माँ रेखा भी ।
घर कुछ इस तरह से बना हुआ था ।
एक कच्ची ईंट से बना हुआ कमरा उसके बगल में बरामडा जिसकी
छत लोहे की टीन की बनी थी ।
कमरे के सामने बड़ा सा आँगन चार दिबारे खड़ी थी ।
लकड़ी का जर्जर दरबाजा जिसके बराबर में ईंटो से घिरा हुआ
बाथरूम स्नान के लिए जिसमे छत भी नहीं थी ।
बाथरूम में एक नल लगा हुआ था।
लेट्रीन के लिए जंगल में ही जाना होता था ।
पुरे गाँव में सबसे ज्यादा गरीब स्तिथि रेखा की ही थी चूँकि
उसपर बेहिसाब कर्ज़ा था जिसका न तो मूल का पता था और
न ही ब्याज का पता बस चौधरी साहब ने जैसा बता दिया
वैसा ही मान लिया ।
कई बार सूरज ने ये जानने का प्रयास भी किया कर्जे की मूल
रकम जान्ने की तो चौधरी 80 हज़ार बाँकी है इतना कह कर
टहला देता था ।
सूरज पैसो की भरपाई कैसे हो ।
कर्ज़ा कैसे उतरे और बहनो की शादी कैसे हो इन्ही बातों को
सोच कर सो जाता था और दिन निकलते ही फिर से बही काम
लकडी काटना और बेचना ।
जिंदगी बस ऐसे ही गुज़र रही थी ।
सूरज का परिवार गहरी नींद की आगोश में सोया हुआ था ।
तभी अचानक दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी ।
सूरज थकावट के कारण आलस्य में सोया रहा । लेकिन दरवाज़ा
जोर जोर से थपथपाने के कारण उठ कर गया ।
जैसे ही दरवाजे के नजदीक गया, सूरज ने पूछा "कौन हो,और
इतनी रात में क्यूं आए हो??
बहार खड़ा आदमी-"सूरज दरवाजा खोल में हरिया हूँ,चौधरी
साहब ने बुलाया है तुझे अभी"
हरिया चौधरी साहब का बफादार कुत्ता था । हरिया बड़ा
ही अय्यास और क्रूर प्रवर्ति का व्यक्ति था । चौधरी के इशारे
पर किसी को भी मारने पीटने पर तैयार हो जाता था।
सूरज घबरा सा गया इतनी रात में भला क्या काम है मुझे सोचने लगा|
सूरज ने दरवाजा खोला। हरिया के साथ एक और आदमी खड़ा था।
सूरज-" हरिया चाचा अभी रात में क्यूं बुलाया है,में सुबह होते
ही चौधरी साहब से मुलाक़ात कर लूंगा।
हरिया-' सूरज तू चौधरी साहब का हुकुम टाल रहा है । चुपचाप चल मेरे साथ।
अब सूरज में इतनी हिम्मत कहाँ थी वह अपनी माँ और बहनो को
बिना बताए ही चुपचाप घर से चल देता है ।
माँ और बहने तो गहरी नींद में सो रहीं थी उन्हें भनक तक न लगी ।
चौधरी साहब अपने शयनकक्ष में आराम से बैठे मदिरा पान का
आनंद ले रहे थे। सूरज को देखते ही चौधरी साहब बोले ।
चौधरी-" क्यूँ रे सूरज तूने इस महीने का भुगतान नहीं किया ।
कर्ज़ा लेकर वैठा है ।
इस महीने का भुगतान कब करेगा??
चौधरी साहब गुस्से से बोले ।
सूरज घबरा सा गया । हर महीने क़र्ज़ की रकम की क़िस्त भरनी
पड़ती थी । लेकिन इस महीने पैसे नहीं दे पाया ।
सूरज घबराता हुआ बोला-"मालिक कुछ दिन की मोहलत दे
दीजिए, पैसो का इंतज़ाम होते ही आपका कर्ज़ा चुका दूंगा ।
चौधरी-" एक सप्तेह के अंदर इस महीने की क़िस्त आ जानी
चाहिए । बरना गाँव में रहना दुस्बार कर दूंगा, जाकर अपनी माँ
रेखा से बोल दिए, अब तू जा सकता है"
सूरज चौधरी के पैर छू कर वापिस घर लौट आया ।
सूरज जैसे ही घर में घुसा तो देखा उसकी माँ रेखा और दोनों
दीदी पूनम और तनु घबराहट उनके चेहरे पर थी ।सूरज के जांने के बाद ।
रेखा जब पिसाब करने उठी तो उसने सूरज के बिस्तर की और
देखा,जब सूरज नही दिखा तो उसने दरबाजे की और देखा
दरवाजा खुला हुआ था तो घबरा गई थी उसने आनन् फानन में
पूनम और तनु से सूरज के न होने की बात कही तो दोनों बहने भी
घबरा गई ।
 

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सूरज जैसे ही वापिस आया तो रेखा की जान में जान आई।
दोनों बहन भी सूरज को देख कर चैन की सांस ली ।
सूरज के घर पहुचते ही रेखा को बड़ा सुकून मिला लेकिन हज़ारो
सवाल उसके मन मव थे वह सोच रही थी की इतनी रात में सूरज कहाँ गया ।
रेखा को बड़ा डर सता रहा था की कहीं सूरज गलत रास्ते पर
तो नहीं चल पड़ा है ।
अपनी माँ और बहनो को परेसान देख सूरज बोला-" अरे माँ तुम
जाग रही हो सो जाओ"
रेखा -" तू इतनी रात कहाँ गया था सूरज।
जिसका बेटा देर रात घर से बहार बिना बताए कहीं चला जाए
तो एक माँ को नींद कैसे आ सकती है ।
अब तू इतना बड़ा हो गया है की बिना किसी को बताए ही
बहार चला जाता है"
रेखा गुस्से से बोली ।
सूरज-"अरे माँ में कहीं नहीं गया हरिया चाचा आए थे मुझे बुलाने
। उन्ही के साथ चौधरी साहब के घर गया था ।
कर्जे की रकम के लिए हरिया के हाथ संदेसा भेजा था । अब
नहीं जाता तो चौधरी हमारा जीना दुश्बार कर देता माँ""
सूरज ने बड़ी गंभीरता के साथ अपनी बात रखी जिसे सुनकर माँ
और बहने भी घबरा गई ।
रेखा-" बेटा मुझे बता कर तो जा सकता था । वह अच्छे लोग
नहीं हैं अगर तुझे कुछ हो जाता तो हम सब का क्या होता । एक
तू ही तो हमारा सहारा है ।
में जल्दी ही पैसो का कुछ इंतज़ाम करुँगी"
पूनम-"सूरज तू अकेला क्यूं गया माँ को साथ ले जाता"
माँ और पूनम की बात सुनकर सूरज बात को टालता हुआ बोला
सूरज-"माँ तू क्यों चिंता करती है अब में बड़ा हो गया हूँ,में जल्दी
ही पैसो के लिए ज्यादा लकड़ियाँ काट कर पैसे कमाऊँगा।
इतना बोल कर सूरज अपने बिस्तर पर लेट गया और माँ और दोनों
बहनो को सोने के लिए बोला
सूरज-"माँ अब सो जाओ सुबह काम पर जाना है ।
रेखा और दोनो दीदी बेफिक्र होकर सोने अपने कमरे में चली गई
सुबह प्रात: ही घर की चहल पहल के कारण सूरज की आँख खुली।
लकड़ी काटने के लिए सुबह से लेकर देर शाम हो जाती है इसी
कारण माँ बेटे घर से भोजन खा कर ही निकलते थे।
दोनों बहन पूनम और तनु प्रातः उठ कर माँ और अपने भाई के लिए
भोजन बनाने में जुट जाती हैं । यह रोज की दिनचर्या में शामिल था।
सूरज उठ कर सबसे पहले दैनिक क्रिया से निपटारा कर काम पर
जाने की तैयारी करने लगता है ।
वैसे तो सूरज और रेखा दोनों एक साथ ही लकड़ी काटने एक ही
जंगल में जाते हैं लेकिन कभी कभी ज्यादा मोठे पेड़ काटने के
लिए सूरज जंगल के एक कोने से दूसरे कोने तक चला जाता था ।
रेखा गाँव के समीप ही लकड़ी काटती थी क्योंकि ज्यादा दूर
लकड़ी का बोझ अपने सर पर उठाने में असमर्थ थी ।
जिंदगी बस ऐसे ही कठिन दौर से गुज़र रही थी ।
सूरज और रेखा दोनों एक साथ जंगल के लिए साथ साथ निकल चुके थे ।
दोनों माँ बेटे देर शाम तक लकड़ी को काट कर फिर गाँव के ही
जमीदारों को बेचते थे ।
जो पैसा मिलता उससे चौधरी का उधार और घर का राशन ले आते थे ।
यही क्रम अब तक चलता आ रहा था।
इधर दोनों बहन घर में अकेली रह कर घर की साफ़ सफाई व् शाम
के भोजन की तैयारी में जुट जाती थी ।
तनु की एक दो सहेलियां भी थी जिसके साथ एक दो घंटा उनके
साथ गप्पे लड़ाने में बिता देती थी लेकिन बड़ी बहन पूनम घर से
कम ही निकलती थी । ऐसा नहीं है की उसका बहार घूमने का
मन नहीं करता था वो बहार लोगों के ताने से डरती थी ।
उसकी कुछ सहेलियां भी थी जिनकी अब शादी हो चुकी थी
।लगभग उसके साथ की सभी लड़कियों की शादी हो चुकी थी
। पूनम भी 24 वर्ष की हो चुकी थी लेकिन उसके घर की माली
हालात इतने खराब थे की उसकी शादी के दहेज़ और नगद रकम
की व्यवस्था उनके पास नहीं थी । पूनम भी अपने घर के हालात
को अच्छी तरह समझती थी इसलिए उसने भी बिना शादी के
जीवन जीने की प्रतिज्ञा ले ली थी ।
हालांकि पूनम खुबसुरत थी उसका जिस्म ऐसा था की अच्छे
अच्छे को मात देदे ।
गाँव के काफी लोग उसकी बुरी नियत से देखते हैं उसकी गरीबी
का फायदा उठाने के षड्यंत्र भी रचते हैं लेकिन पूनम बहुत
होशियार और समझदार प्रवर्ती की लड़की है उसने आज तक
कोई गलत कदम नहीं उठाया । कई बार उसका भी मन चलता है
की शादी हो बच्चे हों,पारवारिक जीवन का आनंद उठाए
लेकिन उसने सभी इच्छाओ को अपने वश में कर लिया था ।
पूनम जब स्कूल में पढ़ती थी तब उसकी भी इच्छा थी एक
नोकारी मिले और कार बंगाल अच्छा पति हो वर्तमान जीवन
को खुल कर जिए।जैसे फिल्मो मे लड़कियों की जीवन शैली
होती है लेकिन उसकी सभी इच्छाएं गरीबी की भेंट चढ़ गई ।
अब तो उसने अपने मन को उसी प्रकार ढाल लिया था ।
चोका चूल्हे को ही अपनी असल जिंदगी की वास्तविकता
को स्वीकार कर चुकी थी । अपने सारे सपनो को आजीवन
तलाक दे चुकी थी ।
गरीबी इस प्रकार छाई थी की उसके पास मात्र दो जोड़ी ही
सलवार सूट थे उनमे भी कई जगह से फटे हुए थे जिन्हें सुई से टांका
मार कर उन्ही को पहना करती थी। जब कभी एक दो साल में
बाजार जाना होता था तो सिर्फ ब्रा और पेंटी ही खरीद
कर ले आती थी ।कभी मेकअप का सामान ला कर पैसे का
द्रुपयोग नहीं करती थी । लेकिन आज की स्थिति ये थी की
उसके पास मात्र एक ही पेंटी बची थी उसका प्रयोग तभी
करती थी जब उसको महावारी होती थी चूँकि महावारी के
दौरान सलवार खराब न हो इसलिए पेंटी के अंदर कपडा लगाना
पड़ता था । वाकी के दिनों में बिना पेंटी के ही सलवार पहन
कर घर में रहती थी ।
यह हाल सिर्फ पूनम का ही नहीं बल्कि उसकी माँ रेखा और तनु का भी था ।
ऐसा समझ लीजिए की यह परिवार सिर्फ जी रहा था ।
अपनी इच्छाओ को मारकर ।
कभी कभी अपने हालात पर रो भी लिया करती थी दोनों
बहने और रेखा भी लेकिन किसी के सामने नहीं ।
पूनम और तनु दोनों बहने घर की साफ़ सफाई कर रहीं थी । रेखा
और सूरज के जंगल जाने के पस्चात दोनों बहनो का रोज का
कार्य था ।शाम को रेखा और सूरज थके हुए तथा भूके होते हैं
इसलिए दोनों बहने उनके आने से पहले ही खाना तैयार रख लेती हैं ।
पूनम समझदार तथा कम बोलने वाली लड़की थी लेकिन तनु पुरे
दिन चपड़ चपड़ कुछ न कुछ बोलटी ही रहती थी।हालांकि तनु
वेहद समझदार थी । लेकिन थोड़ी चुलवली प्रवर्ती की थी ।
गरीबी की आंधी ने सपने तो तनु के भी ध्वस्त कर दिए थे परंतु वह
दूसरों के सामने खुश रहने का नाटक करती थी । उसका भी बहुत
मन था की दुनिया के ऐसोआराम मिले बड़े बड़े स्कूल में पढ़े।
लेकिन आर्थिक तंगी के कारण बिच में ही पढ़ाई छोड़ना उसके
लिए बहुत आघात पहुचाने जैसा था।परिवार के हालात और दो
वक़्त की रोटी नसीब होती रहे इसलिए उसने भी अपने मन को समझा लिया था।
तनु और पूनम घर की सफाई कर थोड़ी देर के लिए आराम करने के
लिए चारपाई पर लेट जाती हैं ।
तभी तनु पूनम से बोलती है ।
तनु-"दीदी अगर चौधरी का कर्जा नहीं उतरा तो क्या चौधरी
भैया और माँ को मारेंगे?
तनु की मासूमियत में माँ और भैया के लिए भय दिखाई दिया।
पूनम भी जानती थी की चौधरी बहुत हरामी और नालायक
किस्म का व्यक्ति है । वह कुछ भी कर सकता है ।
पूनम-" तू क्यूं चिंता करती है पगली।माँ और सूरज दोनों मिल कर
जल्दी ही चौधरी का कर्जा चुका देंगे फिर हमें कोई परेसानी नहीं होगी ।
तनु-"लेकिन दीदी बहार कई लड़कियां बोलती हैं की चौधरी
बहुत मक्कार इंसान है ।कई लोगो को कर्जा न चुकाने के कारण
मौत के घात उतार चुका है ।
पूनम-"ऐसा कुछ भी नहीं करेगा चौधरी । तू ये चिंता छोड़ दे तनु।
दोनों बहने असमय आने वाले इस डर से भयभीत थे । लेकिन एक दूसरे
को चिंतामुक्त होने की सलाह दे कर ईश्वर पर छोड़ देते हैं ।
चौधरी का भय और उसकी क्रूरता का के बारे में पुरे गाँव
जानता था। कर्जा तो वह जानबूझ कर देता था ताकि कर्जे
की आढ़ में भोले भाले लोगों को डरा धमका कर उनकी औरतें
और लड़कियों को भोगता था।इसी लालच में चौधरी सूरज की
माँ रेखा और पूनम,तनु के जिस्म को भी पाना चाहता था ।
गाँव के लोग भी चौधरी के इस छिछोरेपन से परिचित थे । पूरा
गाँव इस बात को भी जानता था की चौधरी की नियत रेखा
और पूनम,तनु दोनों बहनो पर है । रेखा भी इस बात को
भलीभात जानती थी की चौधरी उसको आँखे फाड़-फाड़ कर
देखता है लेकिन रेखा उसको घास भी नहीं डालती थी।उसके
सामने कितनी भी बड़ी समस्या क्यूं न हो लेकिन उसने आज तक
अपनी अस्मत पर आंच नहीं आने दी ।
हालांकि रेखा भरे जवानी में विधवा हो गई थी। उसको भी
अपने पति की कमी का अहसास होता था । लेकिन अपनी
मान मर्यादा की हमेसा हिफाजत की ।
रेखा बहुत शांत स्वाभाव की महिला थी ।
कुछ हालात ने उसे शांत रहने पर मजबूर कर दिया था। गाँव की
औरतो में कम उठना बैठना था उसका ।एक दो बार वह गाँव की
औरतो में वैठी भी है तो गाँव की औरते अपने साडी और महंगे
जेवर दिखा कर उसे जलाती थी। कई औरते उसकी फटी साडी
का मजाक भी उड़ाती थी ।इसलिए शर्म और ह्या के कारण
उसने अपने जीवन को जंगल और लकडियो के बीच ढाल लिया था।
जंगल का दृश्य
 

hamza123

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Maine Dekha Nahin Shayad Story ka naam change karke post karne se pata nahin Chala Ek Bar check karke dekhta hun.
Thanks for the Giving info.....


Ye xossip ki storie hai be prda behan ke name se is ka pdf b hai mery pass
 
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