मासी का घर
अध्याय 15 - चिंगारी का उद्भव (spark emergence)
तृषा ने मेरे लंड को पूरी तरह से अपनी बांहों में भर लिया, फिर बाहर निकाला और मेरी गोद में कूदते हुए अपना ज़ोरदार डांस शुरू कर दिया। जैसे-जैसे वो तेज़ी से उछल रही थी, मेरे शरीर का तापमान तेजी से बढ़ रहा था। आखिरकार, मानना ही पड़ेगा कि उसका stamina बहुत ज्यादा था। जिस गति से वो कूद रही थी, वो अविश्वसनीय थी। तृषा के बाहरी रूप को देखकर हम अंदाज़ा नहीं लगा सकते कि उसमें कितनी वासना भरी हुई है, वो वासना से भरी हुई एक पूरा वोल्केनो थी।
मेरे पैरों के तलवे, जो फर्श को छू रहे थे, इतने गर्म हो गए थे कि नीचे फर्श पर पसीने की बूँदें दिखाई दे रही थी। मुझे नहीं पता था कि उसे कैसा लग रहा होगा, उसकी हालत क्या होगी, वो तो बस मज़े ले रही थी, पर मैं तो बुरी तरह से तप गया था.
'अह्ह्ह...... हम्म्म......'
उसकी गरम सिसकारियां जो पुरे माकन में गूंज रही थी, मेरे चेहरे से टकरा कर मेरे मनोरथ को और ज्यादा भड़का रहे थे. कार्रवाई की शुरुआत में, मैंने कभी भी तृषा भाभी के साथ अंतरंग होने की इच्छा नहीं की, यह सिर्फ एक समझौता था, एक संधि जो मेरी सच्चाई को छुपाया और ऐसा करना मेरी मजबूरी भी थी।
मैं चाहे अपनी मासी और उसकी बेटी को एक साथ प्यार करता था, लेकिन जैसे भी करता था सच्चाई से करता था, मेरी नजरे किसी और तरफ थी ही नहीं। लेकिन अब, तृषा के द्वारा उत्तेजित होकर, मुझे उसके गर्भाशय में प्रवेश करने की इच्छा हुई। मैंने मन ही मन सोच कि जब मैं घरेलू रिश्तों में ही ऐसे कांड कर सकता हूँ, तो ये तो बाहरी कुतिया है।
‘अह्ह्ह…….. हम्म्म….. उफ्फ्फ्फ़……’
उसने गर्म आहें भरी। मेरी आँखों में देखते हुए, सच्ची वासना भरी इच्छाओं के साथ उसने कहा,
तृषा: "साले बहनचोद! तेरा लंड कितना सख्त है!..... अपने मिस्टर हार्डी से मुझे और भी ज़ोर से चोद... फाड़ दे मेरी फुद्दी!"
इस क्षण मेरी कामवासना मुझ पर पूरी तरह से हावी हो गई है। उसकी बात मानकर मैंने अपने कूल्हे उसे धकेलने शुरू कर दिए, मैं अपना होश खो चुका था और पूरी तरह से मदहोशी के सागर में डूब चुका था। मेरा शरीर उसका प्रतिसाथ देने लग गया, उसकी गति धीमी हो गई, क्योंकि वह बहुत थक गई थी। मेरा शरीर कांपने लगा। खोई हुई, धीमी, भारी, थकी हुई आवाज़ में उसने कहा,
तृषा: "अब बस, बच्चेदानी में ही निकाल दे।"
तृषा भाभी की इस बात को सुनकर मैं थोड़ा आश्चर्यचकित हुआ, 'ये क्या कह रही है भाभी’, अगर मैंने मेरे माल अंदर ही निकाल दिया तो छोटी छोटी दिक्कत (छोटे बच्चे
) हो सकती है।
इससे पहले कि मैं और कुछ सोच पता, मैं अपने आप पर नियंत्रण न के सकता, मेरे हाथों से लगाम छूट गई, और घोड़े जा कर तृषा के तबेले में जा बैठे। मैंने मेरा पानी अंदर ही ज़ाद दिया। अत्यधिक थकान के कारण तृषा मेरी गोद से उठकर पास के काउच पर जाकर सो गई। थकान के कारण मेरी भी आंख कब लगी मुझे पता नहीं चला।
जब मेरी आंखें खुली तो मैने देखा कि तृषा नग्न अवतार में काउच पर पड़ी हुई है। मेरा दिमाग घूम रहा था और कुछ समझ नहीं पा रहा था, मैं तृषा के चिकने गोरे शरीर को एक नजर निहारता रह गया। फिर मुझे याद आया हो हमारे बीच हुआ था, शायद उसके कारण ही तृषा काफी थक गई होगी और अब सोई पड़ी है।
मैंने दीवार पे लटकी हुई घड़ी को देख, सुबह की दोपहर हो गई होगी। विशाखा और मासी मुझे ढूंढ रहे होगे, वे मेरे लिए चिंतित होंगे। मैं वहां से भाग कर फिर से घर पर आ गया।
जो भी हो, मुझे तृषा भाभी की सुखी चुत भरने में काफी मन आया। मैं उस संभोग के बाद काफी फ्रेश और निश्चिंत महसूस कर रहा था। मेरा तापमान भी फिर से ठीक हो गया था।
मैने घर की बेल बजाई, कुछ देर तक किसी ने दरवाजा नहीं खोला, फिर से बेल बजाने पर अंदर से मासी की आवाज आई,
मासी: “कौन है?”
मैं: “अरे मासी मैं हु।”
फिर मासी ने दरवाजा खोल और मैं अंदर दाखिल हुआ। अंदर पहुंचने पर मेरी नजर मासी पर पड़ती है, पता नहीं क्यों वे मुझे और आकर्षित और मोहक नजर आ रही थी। मगर असलियत में उनके चेहरे पर खामोशी थी, एक कमजोरी सी थी।
मासी (हल्के आवाज में): “बेटा तुम इतनी देर से कहां थे? खाना भी झी खाया तुमने!”
मैं: “मासी में जरा काम से बाहर गया था, मैंने बाहर ही कुछ खा लिया था तो मुझे भूख नहीं है।”
भूख भी कैसे रहती मुझे, तृषा भाभी ने जो मिटा दी। मासी अपने कमरे में चली गई और मैं वही सोफे पर बैठ गया। मैं जैसे ही ही बैठा और मेरे हाथ ने सोफे को स्पर्श किया, मुझे कुछ गिला महसूस हुआ। मैंने उसे पानी समझ कर इग्नोर किया।
कुछ देर बाद, विशाखा अपने कमरे से नीचे आगी। वो थोड़ी उदास, परेशान और मायूस नजर पड़ रही थी। मुझे देख कर वो भाग कर आई और मुझे गले से लगे के मेरे पास बैठ गई। थोड़ी रोने जैसी हालत मैं उसने हल्के से कहा,
विशाखा: “कहां थे तुम? मैने तुम्हे कितने कॉल्स किए, लेकिन तुमने एक का भी जवाब नहीं दिया।”
मैं: “अरे यार सारे, मैंने तुम्हें बताया नहीं, मुझे थोड़ा काम था तो में बाहर गया हुआ था। और मेरा फोन साइलेंट था तो मुझे आवाज नहीं आई। अब इतनी सी बात कौन रोता है!?”
विशाखा: “तुम नहीं जानते मैं कितनी बेचैन थी।”
मैं: “अरे यार, मैं छोटा बच्चा थोड़े ही हूं।”।
विशाखा: “चुप करो, और मुझे बताया बगैर इधर उधर भटका मत करो!!”
हमारी तो शादी भी नहीं हुई थी, लेकिन विशाखा ऐसे बर्ताव के रही थी जैसे मैं उसका पति हूं जो उसे बिना बताए कहीं चल गया हो। असलियत में तो आज कल की बीवियां भी अपने पति से इतना लगाव नहीं रखती, तृषा भाभी को देख लो। विशाखा लाखों में एक थी, मुझे सबसे ज्यादा चाहने वाली। मैं उनके प्रेम को धोखा दे कर शर्मिंदा तो था, मगर अब किया ही क्या जा सकता है।
मैं विशाखा को ऐसे तैसे शांत कर के अपने कमरे में ले आया। तभी नीचे से किसी के बाइक की आवाज आई, खिड़की से नीचे देखने पर पता चला यह मौसा जी है, थोड़ी हड़बड़ी में लग रहे थे। मौसा जी ऐसे तो इस समय घर नहीं लौटते लेकिन आज पता नहीं कैसे इतनी जल्दी आ गए।
मैं: “विशाखा, आज मौसा जी इतनी जल्दी कैसे आ गए घर?”
विशाखा: “अरे वो दुकान के काम के सिलसिले में उन्हें मां को कही ले जाना है। पापा का सारा कारोबार मां के नाम पर है न।”
हमारी बातें चल ही रही थी कि तभी हमें मासी ने आवाज लगाई। विशाखा ने अपना चेहरा सुधार ताकि वह रोई थी ऐसा न लगे, और फिर हम दोनों नीचे हॉल में चले गए। मासी और मौसा जी वही सोफे पर बैठ कर हमारा इंतजार कर रहे थे।
मासी अब व्हाइट साड़ी और लाल ब्लाउज पहना था, जिसने उनके उरोज काफी उभर कर दिख रहे थे। उनके कड़क हो चुके निपल्स तो ऐसे खड़े थे कि उन्हें देखने वाला उन्हें दबाने के विचार के अलावा कोई विचार ही न कर पाए।
मौसी: “बेटा हम कुछ काम से बाहर जा रहे है, श्याम तक वापिस आ जाएंगे। तब तक तुम दोनों दुकान संभाल सकते हो?”
मेरे मौसा जी थे तो बड़े लालची इंसान। आदमी को काम से चैन नहीं है, और अगर कोई दूसरा काम आ पड़े तो भी दिन की कमाई बर्बाद नहीं जानी चाहिए। रुकने के लिए तो वे हमें घर पर ही रुकने को बोल सकते थे, लेकिन लालची की गांडमस्ती तो देखो।
मासी और मौसा के साथ ही विशाखा और मैं घर के बाहर निकले, घर को ताला लगा कर हम दोनों दुकान की ओर निकले और वे दोनों दूसरी ओर।
“अगर हम थोड़ी देर से निकलते हो क्या फर्क पड़ता था उस मोटे बुड्ढे (मौसा जी) को! जब हम दोनों घर में अकेले होते और पूरा घर हमारा होता तो पता नहीं क्या क्या हो सकता था।” ऐसा सोचते हुए मैं मन ही मन मौसा जी को बड़ी बुरी खोटी सुना रहा था।
मैं कार चला था था, मेरे मन में कुछ और ही विचार चालू थे, जिस वजह से मैने एक टर्न मिस कर दिया।
विशाखा: “अरे रुको रुको! पीछे वाले मोड से मुड़ना था। तुम्हे याद तो है न रस्ता?”
मैं: “अच्छा! अरे वो बहुत दिन होगे ना… इसलिए।”
विशाखा: "अच्छा कोई बात नहीं, मैं तुम्हें नेविगेट कर दूँगी।"
विशाखा मुझे रास्ता दिखाने लगी और मैं गाड़ी चलाने लगा, पर मेरे मन में अभी भी एक विचार था। मासी के बारे में, बहुत दिनों बाद उसकी खूबसूरत, सेक्सी, हॉट झलक देखी थी, जिसने मुझे अपनी ओर खींच लिया। उसके तीखे निप्पल, कसे हुए स्तन, उसकी गोलाइयाँ, चिकनी कमर और चेहरे पर चरम सुन्दरता, ये सब मेरे दिमाग से निकल ही नहीं रहा था, मैं अभी भी विचलित था।
मुझे इतना विचलित देखकर विशाखा ने कहा,
विशाखा: "क्या हुआ, तुम्हारा ध्यान कहाँ है? किन विचारों में डूबे हुए हो?"
मैं: "कहाँ, कुछ नहीं!"
'कुछ नहीं!' कहकर मैंने उसे चुप करा दिया, लेकिन मासी को जितना मैंने देखा था, उससे कहीं अधिक सेक्सी कल्पना करते हुए, मेरा बड़ा लंड लोहे के खंभे की तरह सख्त हो गया। वह मेरी जींस फाड़ के भागने की कोशिश कर रहा था, जिसे बाहर से भी साफ देखा जा सकता है।
ऐसे वक्त में लंड के खड़े हो जाने पर मैं बेचैन हो गया, और विशाखा ने मेरी बेचैनी को नोटिस कर लिया है। उसकी नज़र मेरे खड़े पप्पू पर भी पड़ी। मैंने देखा कि वो मुझे देख रही है, हमारे बीच कोई आवाज़ नहीं हुई। थोड़ी दूर और चलने पर हम दुकान पर पहुंच गए।
विशाखा ने शटर खोला और हम दुकान में दाखिल हुए। हमारे बीच बस सन्नाटा था, कोई शब्द नहीं। मुझे पता है कि उसने मेरा खड़ा हुआ लिंग देख लिया है, पर वो ऐसे बर्ताव कर रही थी जैसे उसने कुछ देखा ही न हो। विशाखा ने सारे लाइट्स ऑन किए और गल्ले पर बैठ गई। मैं मंद मंद कदम चल कर दुकान का मुआयना करने लगा। मेरी जूतों की आहट और पंखे की शोर के अलावा वह कुछ नहीं था।
दुकान बड़ी थी, चलते चलते मैं दूसरे कोने में जा पहुंचा, विशाखा हिसाब की किताब उठाकर कुछ पन्ने पलटने लगी। मैं ऐसी जगह खड़ा था जहां से मुझे बाहर का कोई व्यक्ति देख नहीं सकता। विशाखा को अकेली बैठी देख बाहर से एक अनजान आदमी दुकान की अंदर घुसा।
आदमी: “आज पापा नहीं है?”
विशाखा: “जी नहीं है। क्या चाहिए आपको?”
आदमी: “तो तुम अकेले ही दुकान संभाल रही हो?”
उस आदमी के हाव भाव मुझे ठीक नहीं लग रहे थे, मैं दबे कदमों से उसके पीछे आ गया, उसे बिना पता चले
विशाखा: “जी, आपको क्या चाहिए?”
आदमी: “चाहिए तो बहुत कुछ है…”
विशाखा: “जी?”
वह आदमी एक अजीब तरीके से हंसने लगा, मैं उसके नजदीक गया और उसके कंधे पे हाथ रख कर कहा,
मैं: “हा भाई? क्या चाहिए तुझे?”
मुझे देख वह थोड़ा डर गया।
आदमी: “कुछ नी भैया… वो मिठाई लेने आया था।”
मैं: “साले, मच्छर की झाट, तुझे ये हलवाई की दुकान नजर आ रही है!? भोसडीके भाग जा यहां से, नहीं तो तेरी पूरी मिठास निकाल दूंगा।”
आदमी वहां से चला जाता है, मेरी गलियां सुन विशाखा को हल्की हंसी आ रही थी। मैं भी वही उसके बाजू में एक कुर्सी पर बैठ हो जाता हूं। मैं फिर से अपनी सोच में डूब गया, मुझे ऐसा देख विशाखा के मन में जिज्ञासा आई और उसने मुझे मेरी सोच में डूबा हुआ देख, कारण पूछते हुए कहा,
विशाखा: “क्या हुआ… तुम आज कड़ी खोए खोए हो?”
मैं (मजाक में): “मैं? अरे नहीं, तुम्हारे रहते भला मैं किसी और के बारे में कैसे सोचूं!”
विशाखा: “ज्यादा चंट मत बनो, बताओ क्या हुआ?”
मैं: “अरे अब मुझे क्या हुआ?”
विशाखा ने मेरी जांघों के ऊपर अपने हाथ को रखा और मेरी आंखों में आंखें डाल कर उसने कहा,
विशाखा: “देखो तुम मुझे नहीं बताया तब भी मुझे पता लग जाता है…”
मैं अब इस वाक्य को एक्सेप्ट नहीं कर रहा, ये वही डायलॉग होता है जो टीवी सीरियल्स में किसी रोमांटिक सीन की शुरुआत होती है। मगर सच कहूं तो अब भी मासी के बारे में सोच रहा था, और विशाखा शायद कुछ और ही समझ रही थी
मैं: “क्या… क्या पता चला तुम्हें?”
विशाखा: “देखो अब इतने भी भोले मत बनो, तुम वह चाहते हो ना…!?”
अब तो ये बात मेरे सिर के ऊपर से जा रही थी, मुझे सच में इन फिल्मी वाक्यों की समझ नहीं थी, मैं समझ नहीं पाया वह क्या कहना चाहती है।
मैं: “अरे यार, मेरी दिमाग की बुर्जी हो रही है… इन बातों को घुमा कर बताना जरूरी होता है क्या?”
विशाखा: “अच्छा, छोड़ो, तुमने दुकान देखा?”
मैं: “हां देखा, जब मैं पिछली बार इधर आया था तब से काफी बदल चुका।”
विशाखा: “जनाब तुम पिछली बार आए भी सालों पहले थे।”
हमारी ऐसी ही बातें शुरू होगयी, उसका हाथ अब भी मेरे जांघ पर था, और बातों बातों में ऐसी ही हमारे काफी स्पर्श हो रहे थे। हास्य मजाक में छूने वाला ये स्पर्श सिर्फ स्पर्श नहीं था, यह एक चिंगारी थी जो किसी विशालकाय जंगल को भी जला सकती थी। ये मेरी अंदर की अंदर की काम वासना को जगा रही थी… उसके चुने मेरे बदन में करेंट बह रहा था और मेरे हार्मोन्स ने काक़बू हो रहे थे।
मेरा लंड मेरी जींस में कस कर कड़क हो गया, कमबख्त उसे ओर गया जिस जगह विशाखा का हाथ था। विशाखा को अचानक से बढ़ी गर्मी का एहसास हुआ, जहां उसका हाथ था वह उसे कुछ महसूस हुआ। उसने अपने हाथ को मेरी लैंड से नहीं हटाया, मैं उसकी ओर गुनहगार की नजरों से देख रहा था लेकिन अब विशाखा की आंखें कुछ और कह रही थी।
मैं शर्म के मारे लाल हो गया था। मेरे पास विशाखा को बताने के लिए कोई बहाना न था। मेरे कुछ कहने की हिम्मत नहीं थी, लेकिन उसकी यह कातिल निगाहें मुझे शांत भी रहने नहीं दे रही थी, वह मुझे भूखी नज़रों से ताक रही थी मानो अभी शेरनी शिकार करने निकलती हो।
मैं (अटक अटक के): “विशाखा वो… वो…”
विशाखा ने मुझे अपने सीने से लगा लिया, उसके स्तन काफी मुलायम थे, ऐसा लग रहा था जैसे मैंने किसी गर्म तकिए के ऊपर अपना सिर रखा हो। उसने मेरे बालों को सहलाते हुए कहा,
विशाखा: “मैं तुम्हें बेइंतहा प्यार करती हु, तुम्हे समझ सकती हूं।”
उनके ऐसा कहने पर मैने अपनी नजरों को ऊपर, उसकी और किया। उसने मेरे होंठों को ऐसे चूमा जैसे मधुमक्खी किसी फूल से मध का सेवन करती है। मैंने अपने दोनों हाथों से उसके सिर पकड़ा और अपनी जुबान को उसके मुंह में प्रवेश करवाया।
उसकी मुंह की मीठी लार मेरे मुंह के साथ मिश्रित हो गया। विशाखा ने अपने दूसरे हाथ से मेरे लंड को बाहर से ही सहला चालू किया। मेरी लैंड अत्यधिक गर्म हो गया था। मेरे हाथ उसके सूट की जिप और बड़े और उन्हें खोल ही रहे थे कि तभी…
तभी वहां मध्यम-आयु की एक milf महिला आई, दिखने में वह शरीफ घर की लग रही थी। हरि साड़ी में उसका curvy बदन निखर के दिख रहा था।
AHH... I know I'm late, I am sorry for that and also thankyou for your patience and support.
This update is a spark point of Vishakha and Vishal's physical realtionship.
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