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Adultery पति का दोस्त

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रास्ते में राजा मेरी चुदाई के विषय में पूछने लगे।
मैंने सब बात बताई कि कैसे सुरेश ने चोदा और कैसे मैं चुदी।
तभी राजा कहा- रानी तुम्हारी चुदाई सुन कर मेरा भी पानी निकालने का मन करने लगा है। क्या तुम मेरा साथ नहीं दोगी?
मैं बोली- क्यों नहीं.. जो मेरे लिए इतना कर सकता है.. मैं तो घूमने आई थी, पर आपने चुदाई और पैसा दोनों दिला दिया।
इस समय कैसे चुदाई करें? ड्राइवर क्या कहेगा?
राजा बोला- तुम हाथ और मुँह के सहारे पानी निकाल दो।
मैं बोली- ठीक है.. पर आप आगे ड्राइवर पर निगाह रखना, कहीं वो देख ना ले।
जय बोले- ओके

मैंने राजा की जांघ को सहलाते हुए पैंट के ऊपर से ही लन्ड को सहलाते हुए जिप को आहिस्ता-आहिस्ता नीचे करते हुए खोल दिया।
अब उनके अंडरवियर में हाथ डाल कर लंड बाहर निकाल कर देखने लगी।
राजा का लंड बड़ा प्यारा था, एक बार फिर मुझे चुदने का मन करने लगा।
मैंने राजा के लंड को पकड़ कर ऊपर-नीचे करना शुरू किया।
कुछ समय बाद मैंने अपना सिर नीचे करके उस के तनतनाते हुए लंड को अपने मुँह में लिया। मैंने अपनी जीभ को उसके लंड के शिश्न-मुंड पर घुमा कर उसके पानी का स्वाद लिया।
फिर उसका लंड चूसते हुए, हाथों से बाबूराव को मेरा मुठ मारना लगातार चालू था।


राजा का एक हाथ मेरे पीठ से होते हुए मेरी लैगिंग्स और पैन्टी के अन्दर हाथ डाल मेरे चूतड़ों को सहलाते हुए मेरी चूत की तरफ बढ़ा, तो मैंने धीरे से अपने पैर थोड़े चौड़े कर लिए ताकि वो मेरी सफाचट, चिकनी चूत पर आराम से हाथ फिरा सके।
हाथ फिराते-फिराते उस की बीच की उंगली मेरी गीली फुद्दी के बीच की दरार में घुस गई।
वो अपनी उंगली मेरी चूत के बीच में ऊपर-नीचे मेरी चूत के दाने को मसलता हुआ घुमा रहा था और चूत में ऊँगली करवाने से मेरे मुँह से कामुक आवाजें निकल जातीं, पर मैं ड्राइवर की वजह से खुल कर आवाज नहीं कर सकती थी।
उसके मुँह में मेरा एक चूचुक और मेरे हाथ में उसका लंड था।
हम दोनों और कड़क हो गए।
मैं भी उस का लंड चूसते हुए बाबूराव को आगे-पीछे करती जा रही थी और एक बार तो मैंने सोची कि चुद ही लूँ मगर कार में यह संभव नहीं था।
मेरी चूत में राजा की ऊँगली लगातार घूम रही थी और मैं संतुष्टि के गंतव्य की तरफ बढ़ने लगी।
उसकी उंगली अब मेरी चूत में घुस कर चुदाई कर रही थी, मेरी फुद्दी को उसकी उंगली चोद रही थी।
मैं भी उसके लंड को चूस रही थी और एक हाथ से उसके अंडकोष को सहला रही थी।
हम दोनों दबी जुबान से कार में चुदाई का मजा ले रहे थे।
जैसे ही उसको पता चला कि मैं झड़ने के मुकाम पर पहुँचने वाली हूँ, उसने अपनी उंगली से जोर-जोर से मेरी चूत की चुदाई करनी शुरू कर दी।
वो मेरी चूत को अपनी उंगली से इतनी अच्छी तरह से कामुक अंदाज़ में चोद रहा था कि मैं झड़ने वाली थी और मेरी नंगी गांड अपने आप ही हिलने लगी।
मेरे मुँह से जोर से संतुष्टि की आवाज निकली और मैं झड़ गई।
मैंने उसकी उंगली को अपने पैर, गांड और चूत को भींच कर अपनी चूत में ही जकड़ लिया और झड़ने का मज़ा लेने लगी।
मैं झड़ने का मज़ा लेते हुए जय के लन्ड का सुपारा गले तक लेकर चाटते हुए लंड को आगे-पीछे किए जा रही थी।
अभी भी राजा का हाथ मेरी चूत और गाण्ड की दरार में घूम रहे थे और मैं राजा का लंड तेज-तेज मुठियाते हुए आगे-पीछे किए जा रही थी।
जय भी मस्ती की तरफ बढ़ रहा था, तभी राजा का बाबूराव मेरे मुँह में ढेर हो गया और उसने पानी छोड़ दिया।
जय के वीर्य से मेरा मुँह भर गया और मैंने तुरंत माल को गुटकते हुए मुँह हटा कर कहा- यार ये क्या किया.. अब मुँह कैसे धोऊँगी?
पर जय आँखें बंद किए झड़ने का मजा ले रहा था.. क्योंकि अभी भी मेरा हाथ राजा केलंड पर चल रहा था।

राजा ने अपने रुमाल से मेरा मुँह साफ किया और फिर अपना लंड साफ़ किया।
अब हम लोग अपने कपड़े ठीक कर आराम से बैठ गए।
जय बोला- थैंक्स भाभी..
मैं बोली- इसमे थैंक्स की क्या बात है.. यह तो मेरा फर्ज था।
कुछ ही देर में कार एक मकान के सामने रुकी।
मैं और राजा कार से बाहर निकले और ड्राईवर को बाय किया। फिर मैं राजा के पीछे चलते हुए बिल्डिंग में दाखिल होते हुए बोली- यहाँ कोई काम है क्या?
राजा बोलेाा- वो मैं आपको बताने वाला था.. पर ध्यान से उतर गया था। यहाँ पर मेरा एक बहुत ही ख़ास दोस्त रहता है.. उसी से आपको मिलाने ले जा रहा हूँ। यदि आप थकी न हो.. तो आप मिल लेतीं।
मैं बोली- अब तो यहाँ लाकर पूछना तो बेमानी है और आप उससे मिलाने लाए हो या चुदाने?
राजा बोला - यार नाराज हो गई क्या?
मैं हँस कर बोली- नहीं यार.. मैं तो यूं ही मजाक कर रही थी।
तभी राजा ने एक कमरे के बाहर लगी घंटी को दबाया।
करीब एक मिनट बाद कमरे का दरवाजा खुला और सामने एक साधारण कदकाठी का एकदम गोरा मर्द बाहर आया- अरे राजा, तुमने बताया भी नहीं यार.. कि तुम आ रहे हो?
राजा बोला- क्या नवीन भाई.. मुझे अब बता कर आना पड़ेगा क्या..?
नवीन बोला- नहीं यार.. मेरा कहने का यह मकसद नहीं है।
फिर नवीन मेरी तरफ देखने लगा.. तभी राजा ने मेरा परिचय करवाया।
‘भाई क्या देख रहे हो.. यह रचना जी हैं क्या इन्हें दरवाजे पर ही खड़ा किए रहोंगे?’
नवीन हड़बड़ा कर मुझे ‘हाय’ करके अन्दर आने को बोला।
हम लोगों ने कमरे में पहुँच कर देखा कि यह एक गेस्टरूम था.. उसमें दो सोफे और एक बेड लगा था।
मैं सोफे पर बैठी और मेरे बगल में
राजा नवीन जी से बोले- यार
मैंने सोचा कि इन्हें आपसे मिलवा दूँ।
नवीन बोला- अच्छा किया.
राजा बोला- क्यों यार.. ऐसी क्या दिक्कत है.. जो तू रचना जैसी हसीन लड़की को सामने पाकर भी मुश्किल कह रहा है।
नवीन बोला- अब तेरी भाभी है अन्दर.. तो कैसे क्या होगा?
तभी जय बोला- यार, भाभी को हम लोगों का आना पता ही नहीं है।भाभी जी को यहीं रहने दो.. तुम मेरे साथ अन्दर चलो। भाभी मुझे देख कर खुश हो जाएंगी और मैं उनको बातों में उलझाए रहूँगा, तुम कोई बहाना बनाकर भाभी के पास आकर आराम से मिलते रहना।
फिर राजा और नवीन अन्दर चले गए।

करीब दस मिनट बाद नवीन जी वापस आ गए।
मैं नवीन से बोली- अगर आपकी वाइफ यहाँ आ गईं तो?
नवीन मुस्कुराकर बोला- डॉली, देखो आपको और मेरे को पता है कि तुम मेरे पास क्यों आई हो।
मैं ‘हाँ’ बोली।
‘फिर भी मेरा और आपके मिलन में देर हो रही है.. लेकिन अन्दर राजा और मेरी वाइफ सेक्स शुरू भी कर चुके होंगे।’
मैं बोली- ओ माई गॉड.. क्या राजा को पता है कि तुम अपनी बीवी की चूत चुदाई के बारे में जानते हो?
नवीन जी बोले- नहीं राजा और मेरी वाइफ कुछ नहीं जानते.. में उन्हें चुदाई करते देख चुका हूँ.. बस राजा को मौका चाहिए था.. जो आज आपकी वजह से मिल गया।
‘क्या राजा आपकी वाइफ को बताएगा कि मैं यहाँ आपके साथ हूँ?’
‘नहीं रचना जी.. वह ऐसा नहीं करेगा.. क्योंकि उसने वाइफ के सामने मुझे दुकान जने की बात की है.. अगर मैं यहाँ हूँ.. वाइफ को पता चलेगा, तो वो राजा के साथ कुछ नहीं करेगी और सती सावित्री बनने का ढोंग करके आसमान पर सर पर उठा लेगी।’
बातों के दौरान ही मुझे नवीन ने बेड पर बैठाकर मेरी कुर्ती और लैगी को निकाल दिए थे और मैं पैन्टी और ब्रा में बैठी चूची और चूत मसलवा रही थी।
मैंने अपने होंठ नवीन के होंठों पर रख दिए, नवीन मेरे होंठों को चूसने लगे, नवीन अपने हाथों से मेरी चूचियाँ कस कर मसल रहे थे। हम दोनों करीब दो मिनट तक इस तरह ही एक-दूसरे के मुँह में मुँह डालकर चूमते रहे।
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कुछ मिनट बाद नवीन ने अपने कपड़े निकालने के लिए मेरे होंठ से अपने को अलग किए और कपड़े निकाल कर पूरी तरह निर्वस्त्र हो गए और इसी के साथ मेरी भी ब्रा-पैन्टी निकाल फेंके।
नवीन ने मेरी गर्दन को चूमते हुए कहा- रचना जी.. आपको सेक्स का लाईव सो दिखाता हूँ।
मैं कुछ कहती इससे पहले नवीन धीमे से अन्दर चले गए जहाँ राजा और नवीन की वाइफ थी।
कुछ देर में मुझे भी अन्दर आने का इशारा किया, मैं डरते हुए नवीन के पास गई।
इस वक्त मैं और राजा पूरी तरह निर्वस्त्र थे।
नवीन ने इशारे से खिड़की के अन्दर देखने को बोला, खिड़की की ओट से हम दोनों ने अन्दर देखा तो मेरे तो होश ही उड़ गए। नवीन की वाइफ पैर फैलाकर बिस्तर पर लेटी थी और
राजा उसकी चूत चाट रहा था।
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नवीन की वाइफ मजे लेकर चूत चटवाते हुए सिसकारी लेते हुए नवीन को गालियाँ बक रही थी- हाय जान.. मस्त है तुम्हारा लंड.. इसी लिए तो तुमको देख कर मेरी चूत छिनाल बन जाती है.. नवीन साले का लंड.. मुझे उसका बाबूराव कभी पसंद ही नहीं आया.. आज तक साला ठीक ढंग से मेरी चूत चौड़ी ही नहीं कर पाया।
राजा नवीन की वाइफ के ऊपर चढ़ कर और पैर उठा कर अपना लंड चूत पर लगा कर रगड़ने लगा।
नवीन की वाइफ पूरी मस्ती से ‘आआआह.. ऊऊ.. उईईई.. हाआ.. सि.. करते हुए अपना चूतड़ उछाल कर लंड को अन्दर कर लिया।
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इधर नवीन भी अपनी वाइफ की चुदाई देखकर उत्तेजित होकर पीछे से ही मेरी चूत पर लंड लगा कर ठेल दिया।
सही में नवीन का लण्ड बहुत छोटा तो नहीं था.. फिर भी मीडियम साइज था, पर राजा के लण्ड के आगे बच्चा ही था।
नवीन के एक ही झटके में मेरी चूत पूरा लण्ड खा गई।
नवीन की वाइफ की चुदाई देख कर मेरी भी चूत लण्ड लेने के लिए पानी छोड़ रही थी और मेरी गीली चूत में नवीन का लण्ड ‘सट.. सट..’ करते हुए अन्दर-बाहर हो रहा था।
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नवीन मेरी गर्दन.. कभी मेरी पीठ को.. और मेरी चूची को रगड़ते हुए अपने लण्ड को पेल रहा था।
‘आआहह..’ उसे चूमने और चूसने में मुझे भरपूर मज़ा आ रहा था।
मैं भी सिसियाते हुए धीमे से बोली- आह.. सिईसिआह.. बहुत मजा आ रहा है.. ऐसे ही चूसो.. चाटो.. ऊंऊऊहह.. हां… हां.. और मेरी चूत पेलो।
उधर नवीन की वाइफ कमरे में राजा के मोटे लण्ड से चीख-चीख कर और कमर उठाकर चुद रही थी, इधर मैं चुदाई देखते हुए चुदने का एक अलग ही मजा लेकर चुद रही थी। नवीन बड़े प्यार से मेरी चूत का मजा ले रहा था।

तभी कमरे से सिसकारियों की आवाज तेज हो गई और नवीन भी चोदते हुए अन्दर देखने लगा।
जय ‘गचा.. गच..’ लण्ड पेलते हुए बीच में उसकी चूचियाँ भी दबाता जा रहा था और हर एक धक्के पर चीख कर नवीन की वाइफ राजा को चूत में लण्ड पेलने को प्रोत्साहित कर रही थी।
‘आह्ह.. चोदो आह.. आआहह.. और मारो मेरी चूत.. आआहह.. ऊऊह.. उईई.. अहा..’
वो मजे करते हुए चूतड़ उछाल कर लण्ड खा रही थी।
इधर नवीन मेरी चूत पर शॉट पर शॉट मार कर मेरी चुदाई करता जा रहा था।
तभी मेरी निगाह अन्दर गई और मैंने देखा कि नवीन की वाइफ झड़ रही थी और राजा ने झटका मारते हुए नवीन की बीवी की चूत में ही पिचकारी छोड़ दी, वो अपना पूरे का पूरा लण्ड बुर में ठोक कर झड़ने लगा।

इधर नवीन राजा को झड़ता देख मेरी चूत में लण्ड चोदने की रफ्तार तेज करके मेरी चुदाई करते हुए छह-सात जोरदार धक्के लगाकर मुझे अपनी बाँहों से जकड़ कर मेरी चूत में भी पिचकारी छोड़ कर झड़ने लगा।
मैं सिसियाकर प्रश्न वाचक निगाहों से नवीन को झड़ते देखने लगी। नवीन समझ गया कि मैं प्यासी हूँ और सर झुकाकर मेरे पीठ पर वजन रख कर हाँफने लगा।
उधर नवीन की वाइफ भी जोरदार चुदाई से मस्त होकर आँखें बंद करके जय के सीने से चिपक कर लंबी-लंबी साँसें ले रही थी।
वे दोनों एक-दूसरे की बाँहों में ऐसे बेसुध होकर चिपके रहे, जैसे किसी से कोई शिकायत ही ना हो।
इधर मैं प्यासी ही रह गई।

मुझे नवीन के लण्ड से चूत हटाने का मन तो नहीं कर रहा था.. पर उससे पहले ही नवीन का लण्ड मुरझा कर चूत से बाहर निकल गया और उधर भी तूफान आकर चला गया था। नवीन की वाइफ और राजा कभी भी बाहर आ सकते थे। इसलिए वहाँ से हटना जरूरी था। मैं नवीन के साथ बाहर चली आई।
नवीन ने कहा- रचना जी सॉरी.. मैं ज्यादा उत्तेजित हो गया था.. इसलिए जल्दी झड़ गया।
मैं बोली- कोई बात नहीं।
तभी मेरे मोबाईल पर राजा का मैसेज आया कि अगर आप लोगों का काम हो गया हो.. तो आप और नवीन बाहर निकलो।
मैंने नवीन को यह बात बताई, नवीन मेरे साथ बाहर आ गया और हम लोग लिफ्ट पकड़ कर नीचे चले आए।
करीब दस मिनट बाद राजा भी नीचे आ गए। मैंने नवीन को नमस्ते की.. तभी जय बोला- क्यों नवीन भाई.. कैसा रहा भाभी का साथ.. मजा आया?
नवीन बोला- रचना का साथ हो तो मजा ना आए.. यह हो ही नहीं सकता।

फिर हम लोग ऑटो पकड़ कर घर पर आ गए।
अब रात के साढ़े दस का समय हो रहा था,
मयूर कमरे में सोया हुआ था।
राजा हाल समाचार करके.. सुबह आने को बोल चला गया, मैं बाथरूम जाकर फ्रेश होकर नाईटी पहन कर बाहर आई और ह्ज्बेंड के साथ खाना खाकर बिस्तर पर आराम करने लगी।
पर मेरी चूत अब भी पानी छोड़ रही थी और मुझे चुदाई की चाहत हो रही थी। मैं अपना एक पैर ह्ज्बेंड की जांघ पर चढ़ा कर अपनी बुर को कमर पर दाबने लगी।
तभी ह्ज्बेंड मुस्कुराकर बोले- मेरी जान.. बहुत प्यासी लग रही हो.. क्या बात है?
मैं नवीन और राजा के घर पर हुई चुदाई की सारी बातें बताने लगी। चुदाई की बात और मेरी चूत प्यासी रह गई सुन ह्ज्बेंड जोश में आकर मेरे चूचियाँ कसकर दबाते हुए मेरे होंठों को मुँह में ले कर चूसते हुए एक हाथ से मेरी बुर कस कर मसल कर मेरे ऊपर चढ़ गए।
बुर मसलते हुऐ ह्ज्बेंड की एक उंगली मेरी बुर में चली गई।
एक तो मेरी बुर पानी छोड़ रही थी, दूसरे मैं पैन्टी भी नहीं पहने हुई थी.. क्योंकि मैं जब बाथरूम गई थी तभी ब्रा-पैन्टी उतार आई थी।
फिर ह्ज्बेंड ने मुझे अपनी बाँहों में जकड़ कर बेतहाशा चूमना शुरू कर दिया। मैं ह्ज्बेंड का सर पकड़ कर अपने तने हुए चूचों पर उनका मुँह रख कर बोली- सैयां जी.. मेरी चूचियाँ चूसो।
मेरे ह्ज्बेंड तने हुए दोनों चुचों को दबाते हुए मुँह में भर कर मेरे निप्पल को खींच-खींच कर चूसते हुए बोले- कई दिन हो गए.. तेरी चूत मारे हुए.. आज तेरी चूत की सारी गर्मी और अकड़न दूर कर दूँगा।
वो बड़े ज़ोर-जोर से दोनों चूचों को भींचते हुए मेरे गले और होंठ और चूचियां चूसने लगे।
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मैं सिसकारी लेकर बोली- आह रे.. ऊहहआह.. सीई आह सीईईई सी आह.. अब मुझसे नहीं रहा जाता.. मेरे राजा.. मेरी चूत चोदकर मेरा सारा रस निकाल दो..

तभी ह्ज्बेंड ने मेरी चूची छोड़कर जल्दी से अपने सारे कपड़े उतार कर अपना लम्बा और मोटा लण्ड मेरे होंठों पर लगा कर बोले- मेरी जान.. बुर पेलवाने से पहले अपने प्यारे लण्ड को चाट तो लो।
मैं ह्ज्बेंड के लण्ड को हाथों से पकड़ कर बड़े प्यार से सुपारे को मुँह में लेकर चूसने लगी।
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मैंने प्यार से जीभ को लण्ड के चारों तरफ फिराते हुए.. चाट-चाट कर मोटे सुपारे को लाल कर डाला।
मैं समूचे लण्ड को गले तक लेकर चूसे जा रही थी।
मेरी इस तरह की चुसाई से ह्ज्बेंड मस्त होकर ‘आहें’ निकालने लगे और लण्ड चूसने के दौरान ह्ज्बेंड चूतड़ और मेरी बुर भी मसक रहे थे।
मैं पहले से ही प्यासी थी, एक तो ह्ज्बेंड के द्वारा चूतड़ और चूत सहलाने से मेरी चुदास अब पूरी तरह सवार हो चुकी थी और अब मैं मस्ती में मचलते हुए लण्ड चूसे जा रही थी।
तभी ह्ज्बेंड बोले- बस करो मेरी जान.. नहीं तो मेरा माल तेरे मुँह में ही निकल जाएगा।
मैं भी लण्ड पीना छोड़ कर बोली- हाँ मेरे सैयां.. बस अब जल्दी से चोद दो.. अब मैं इतनी गर्म हो गई कि मुझसे अब रहा नहीं जाता आआह… सीईईई सीआह.. ऊऊऊँ.. इइइसीसी.. बस राजा.. अब देर ना करो.. मेरे सईयां..
इतना सुनते ही ह्ज्बेंड ने मेरी बुर को अपनी गदोरी में भरते हुए कसकर भींच दिया और मेरी बुर ने ढेर सारा पानी छोड़ दिया।

एक तो मेरी बुर पहले से ही पनिया हुई थी और बुर दबाने से मेरा बदन कांपने लगा। मैं ‘आहें’ भरते हुए सिसियाने लगी और चुदाई की प्यास से व्याकुल होकर मैं पलटकर घोड़ी बनकर हिनहिनाते हुए लण्ड को बुर के मुँह पर लगा के.. बुर की फांकों को लण्ड के सुपारे से फैला कर चूतड़ों को पीछे को कर दिया।
‘फक्क..’ की आवाज के साथ सुपारा मेरी बुर में घुसता चला गया।
तभी ह्ज्बेंड ने बचा खुचा हुआ लण्ड भी सटाक से मार कर अन्दर कर दिया।
अब ह्ज्बेंड तेज़-तेज़ कमर हिलाते हुए मेरी ताबड़तोड़ चुदाई करने लगे। मैं कमर और चूतड़ हिला-हिला कर लण्ड बुर में पेलवाते जा रही थी।
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मैं मस्त हो कर बोलने लगी- आह्ह.. और चोदो.. मेरे राजा.. पेलो मेरी बुर.. फाड़ दो.. मेरी चूत.. हाय सीई हाय रे आहहह सी… और ज़ोर से मारो धक्का.. चोदो साली को.. बहुत प्यासी थी.. आहहह.. चोदते रहो
ह्ज्बेंड मेरी चूचियाँ जोर से मसलते हुए बोलने लगे- ले खा साली.. मेरे लण्ड को छिनाल साली.. खा मेरे लण्ड को..
‘हाँ मेरे जानू, मेरी चूत छिनाल हो गई है। पेलो साली को.. आहहह.. गइइई.. मेरे राजा.. मैं गइई.. आह सी..’
अकड़ते हुए मैं झड़ने लगी और मुझे झड़ता हुआ पाकर ह्ज्बेंड मेरी बुर पर ताबड़तोड़ धक्कों की बौछार करते हुए चोदते जा रहे थे।
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मेरी चूत से ‘फच.. फचा.. फच..’ की आवाजें आने लगी थीं।
लण्ड भी ‘सक.. सक..’ करके अन्दर- बाहर करते हुए ह्ज्बेंड मेरी बुर में लण्ड जड़ तक ठोक कर झड़ते हुए बोले- ले.. मैं भी गया.. तेरी चूत में… ले साली अपनी चूत में.. मेरे वीर्य को.. आह.. ले.. मैं झड़ रहा हूँ.. ततत..तेरी चूत में..
वे झड़ कर हाँफने लगे और हम दोनों एक मस्त चुदाई के बाद आराम से एक दूसरे को बाहों में लेकर सो गए।
Mast story hai bha
 
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मैं यहाँ आपको बता दूँ कि मेरी छत पर दो तरफ से ऊँची दीवार है.. पर दो तरफ खुला है.. और जिस तरफ खुला है.. उसके एक तरफ सड़क है और उस तरफ छत पर लोहे की रेलिंग लगी है.. जिससे सब कुछ दिखता है.. और दूसरी तरफ एक मकान था.. जिस पर तीन फुट ऊँची दीवार है.. जो बिलकुल मेरी छत से सटी हुई है। मैं पूरे इत्मीनान से नंगी खड़ी हो कर लम्बी-लम्बी साँसें ले रही थी। इस हड़बड़ी में मैं यह भूल गई थी कि कोई भी बगल वाली छत से मुझे देख सकता है।
मैंने जैसे ही नीचे से जेठ के बुलाने की आवाज सुनी.. मैं अपने होश में आई और मेरे पास नाईटी तो थी.. जिसे मैंने झट से पहन ली.. पर ब्रा-पैन्टी नहीं पहनने की वजह से मेरा जिस्म पूरी तरह से खुला ही था।
तभी मेरा ध्यान बगल वाली छत पर गया.. उधर बगल वाले चाचा जी थे.. जो अक्सर सुबह के समय छत पर आकर कसरत करते थे। आज तो वह एकटक मुझे घूर रहे थे.. वो भी एक कच्छा पहने हुए थे।

मेरा ध्यान जैसे ही उनके कच्छे पर पड़ा.. उसमें में से उनका लण्ड बाहर को निकला हुआ था.. जो कि इस टाईम पूरा तन कर खड़ा था.. और वह एक गधे के लण्ड के समान झूल रहा था।
मैं उनके लण्ड को देखने में यह भूल गई कि वह भी मुझे देख रहे हैं.. शायद उन्होंने मुझे पूरी नंगी देख लिया था.. इसी लिए वह मुझे वासना भरी निगाहों से देख रहे थे। उनकी निगाहें मेरे पूरे जिस्म को निहार रही थीं.. और मैं यह सोचकर शर्म और डर से लज्जित हो उठी कि पता नहीं वे मुझे पूरी तरह से नंगी देख कर क्या सोच रहे होंगे।
कहीं वे इस बात को किसी से कह बैठे.. तो क्या होगा.. बस यही सोचते हुए मैं शर्म से गड़ी जा रही थी और अपने अधखुले जिस्म को ढंकने की नाकाम कोशिश करते हुए मैं नीचे जाने के लिए जैसे ही सीढ़ी की तरफ जाने लगी..
तभी चाचा जी की आवाज मेरे कानों में पड़ी.. और मेरे पैर वहीं जम गए।
जिन्होंने कभी मुझसे बात तक नहीं की है.. आज वह मेरा पूरा नंगा जिस्म ही देख चुके हैं और मेरे जिस्म को नंगा देख कर आज इनका लण्ड भी फड़फड़ा उठा है।
उन्होंने अपना लण्ड बाहर निकाल कर मुझे भी अपने लौड़े के दीदार करा दिया है और अब पता नहीं क्या कहेंगे कि बहू कोई बात है क्या.. जो तुम बिना कपड़ों के छत पर घूम रही हो.. और जो कुछ भी पहने हुए हो.. वह भी तुम्हारे हसीन शरीर को ढकने के लिए काफी नहीं है।
इस समय मेरा मुँह सीढ़ी की तरफ था और मेरी पीठ और चूतड़ चाचा जी की तरफ थे। मैं उनके मुँह से ऐसे शब्द सुन कर और यह सोच कर कि शायद वे इस समय मेरे चूतड़ और उसकी दरार में निगाह करके बोल रहे हैं.. और कहीं ना कहीं वह मुझे ऐसी हाल में देख कर उत्तेजित होकर खुले सेक्सी शब्द बोल रहे हैं।
पर मैंने उनकी बातों का कोई जबाब ना देते हुए नीचे को भाग आई.. पर नीचे एक और मुसीबत थी.. नायर से मेरा सामना हो गया। नायर ने मेरी तरफ बढ़कर मुझे पकड़ लिया और बोला- कहाँ गई थीं जानम.. इतनी सुबह छत पर कहीं और किसी से चुदने गई थीं क्या?
मैं नायर से बोली- रात में आपने जिस हालत में मुझे चोदकर छोड़ा था.. वैसे ही तो हूँ.. बस यूँ ही छत पर खुली हवा लेने चली गई थी।
यह बात मैं नायर से कह जरूर रही थी.. पर मेरी निगाह जेठ को खोज रही थी.. जिसे नायर ने ताड़ लिया कि मैं किसे देख रही हूँ।
‘आपके जेठ बाथरूम गए हैं.. इस समय मेरे और तुम्हारे सिवा कोई नहीं है..’
यह कहते हुए नायर ने मुझे खींच कर अपनी गोद में उठा कर कमरे में लेकर चला गया और मुझे बिस्तर पर पटक कर मेरी छाती को मुँह में भर कर चूसने लगा।
‘यह आप क्या कर रहे हो.. अगर भाई साहब आ गए तो क्या होगा..? छोड़ो मुझे..’
पर नायर मेरी चूचियों को आटा की तरह गूँथते हुए पी रहा था और एक हाथ से मेरी चूत पर रख कर भींचने लगा। छत पर घटी घटना से मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया था.. जिसमें नायर ने अपनी एक उंगली डाल दी और आगे-पीछे करने लगा। तभी बाहर से बाथरूम का दरवाजा खुलने की आवाज आई और नायर मुझे छोड़कर जाने लगा।

मैं नायर से गुस्से में बोली- जो आप अभी कर रहे थे.. ठीक नहीं था.. मैं आपको पहले भी मना कर चुकी हूँ.. यदि आप को मेरी इज्जत की कोई परवाह नहीं है.. तो मैं आपसे कोई रिश्ता नहीं रखूँगी..
‘सॉरी बेबी.. गलती हो गई.. अब नहीं करूँगा..’ यह कहते हुए नायर बाहर निकल गया और मैं बाथरूम में चली गई।
फिर मैं फ्रेश होकर नाईटी के नीचे ब्रा-पैन्टी पहन कर रसोई में चली गई और चाय बनाकर जेठ और नायर को दे कर और अपनी चाय लेकर अपने कमरे में आकर सोचने लगी कि आज जो हुआ ठीक हुआ कि नहीं.. पता नहीं क्या होगा।
तभी जेठ मेरे कमरे में आकर मेरे से बोले- डॉली, नायर को देख कर लग नहीं रहा कि यह साला तेरी बुर को चोद चुका है.. फिर भी उससे बच कर रहना..
यह कहते हुए उन्होंने मेरे होंठ का एक चुम्बन लिया.. फिर मेरी छाती दाबकर बोले- डॉली.. नाश्ता तैयार कर दो.. नायर मेरे साथ ही बाहर जाएगा।
‘ओके.. मैं अभी तैयार करती हूँ।’
फिर मैंने नाश्ता तैयार करके दोनों को करा दिया।
जेठ और नायर बाहर चले गए और अब मैं घर में अकेली थी। मेरे दिमाग में वही सब बातें और सीन चल रहा था और बगल वाले चाचा का गधा चाप लण्ड भी मेरी आँखों में घूम रहा था।
क्या मस्त लण्ड था..
चाचाजी की उम्र तो 55 की होगी.. पर लण्ड और कसरती जिस्म मस्त है.. एक बार फिर मैं मान-मर्यादा को भूल कर चूत में उनका लण्ड लेने का ख्वाब देखने लगी।
मैं नहा-धोकर अच्छी तरह तैयार होकर बिना ब्रा-पैन्टी के एक टॉप और स्कर्ट पहन कर फिर से छत पर चल दी.. यह देखने कि मेरे हुस्न को देख कर वह अब भी जरूर छत पर मेरी ताक में होंगे।
मैं गीले कपड़े लेकर छत पर गई ताकि ऐसा लगे कि मैं नहाकर कपड़े फैलाने आई हूँ। छत पर पहुँच कर मैंने बगल वाली छत पर निगाह दौड़ाई.. पर वह कहीं नहीं दिखे.. मैं थोड़ा दीवार की तरफ बढ़कर चारों तरफ देखने लगी.. पर वहाँ कोई नहीं था।
मैं मायूस होकर अपनी बुर दाबते हुए नीचे आने लगी, तभी मुझे बगल वाली छत पर बने कमरे के खुलने की आवाज आई।
मैं रूक कर देखने लगी.. वही चाचा थे, वह सीधे मेरी तरफ आ रहे थे।
मेरे जिस्म में थरथराहट होने लगी और जी घबड़ाने सा लगा।
तब तक वह मेरे पास आकर बोले- किसे खोज रही हो बहू?
मैं उनके इस सवाल से घबरा गई- कक्क्हाँ.. किस्स्स्सी.. को तो न्..न्..न्..नहीं..
‘लेकिन मैंने कमरे की खिड़की से देखा था कि तुम किसी को ढूँढ रही थीं?’
‘नहीं तो..’
ये सब बातें करते हुए चाचा दीवार फांद कर मेरी छत पर आ गए और बिल्कुल मेरे करीब आकर बोले- तुम मुझे ही देख रही थी ना.. मुझे पता है बहू.. अगर औरत प्यासी हो.. तो मन भटकता ही है.. और अगर कोई मेरा लौड़ा देख चुकी हो.. तो मैं समझ सकता हूँ कि उसके तन-बदन में आग लग गई होगी.. तुम चाहो तो तुम्हारी आग बुझ सकती है और मेरी भी..
‘छी:.. आप कैसी बातें कर रहे हैं कोई अपनी बहू समान औरत से ऐसी बातें करता है क्या? आप बहुत गंदे हो.. मैं वैसे ही देख रही थी.. इसका मतलब यह तो नहीं कि मैं आपको ही देख रही थी.. और सुबह मैं अपनी छत पर थी.. चाहे जैसे थी.. पर आप ही मुझे घूर कर देख रहे थे और अपना ‘वह’ निकाल कर दिखा रहे थे।’
‘तुम ठीक कह रही हो.. पर तुम्हारी वजह से मेरी सोई हुई वासना जाग गई है.. और तुम चाहे जो भी कहो.. तुम भी मेरा लण्ड देख कर चुदने के लिए व्याकुल तो हो..’ ये कहते हुए बुड्ढे ने मुझे पकड़ कर चिपका लिया।
मैं घबराते हुए बोली- ये क्या कर रहे हैं.. कोई देख लेगा.. क्या कर रहे हो.. छोड़ो मुझे..
‘मैं छोड़ दूँगा.. पर तुम एक बार जो अधूरा कहा है.. वो पूरा कहो.. मैं ‘वह’ क्या दिखा रहा था.. बोल दो.. तो अभी छोड़ दूँगा..’
मैं छटपटाती रही.. पर वह मुझे कस कर अपनी छाती से चिपकाए हुए बोले- जल्दी करो.. नहीं तो कोई देख लेगा।
मैं सर नीचे करके बोली- लण्ड.. अब छोड़ो..
वह बोले- कैसा लगा.. बता दो तो जरूर छोड़ दूँगा।
‘आप चीट कर रहे हैं..’
‘आपको जाना है.. तो बोलना पड़ेगा और वो भी सही-सही..’
मैं क्या करती.. मेरे पास उनकी बात मानने के सिवा कोई चारा नहीं था- ‘अच्छा लगा..’
‘एक बात और.. तुमको मेरे लण्ड को देख कर चुदने का मन कर रहा है ना?’
मैं छूटने के लिए भी और मेरे दिल में लण्ड भा गया था इसलिए भी बोल पड़ी- हाँ.. कर रहा है चुदने का मन..
तभी मैं चिहुँक उठी.. उन्होंने अपना एक हाथ ले जाकर मेरी बुर को दबा दिया था..
‘आउआह्ह..’
मेरी सीत्कार सुन कर उन्होंने मुझे छोड़ दिया.. मैं वहाँ से सीधे नीचे आते वक्त बोली- मैंने जो कहा है.. सब झूठ है.. मेरा कोई मन नहीं है..
पर उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझे एक किस उछाल दिया।

मैं वहाँ से भागकर अपने बेडरूम में जाकर उस पल को याद करने लगी कि क्या ठरकी बुढ्ढा है.. साला इतना जल्दी मेरे जोबन पर हाथ लगा देगा.. मुझे यह उम्मीद ही नहीं थी.. पर उसने जो हरकत की.. वह मेरी चूत के आग को भड़काने के लिए काफी थी।
चाचा बहुत रसिक मिजाज लग रहा है.. और उसका लण्ड भी बहुत हैवी है.. मेरे मन मस्तिष्क में अभी यह चल ही रहा था कि तभी घन्टी की आवाज सुनाई दी और मैंने गेट खोला तो सामने पति खड़े थे।
पति ने मुझे वहीं गले लगा कर चूम लिया, फिर अन्दर आकर गेट बन्द करके मुझे गोद में उठा लिया और अन्दर ले जाकर बिस्तर पर लिटाकर मेरी चूची को दबाते हुए बोले- कैसी कटी मेरी जान की रात मेरे बिना?
मैं मन ही मन बुदबुदाई कि बहुत ही मस्त.. काश आज भी नहीं आते.. तो दिन में बगल वाले ठरकी से कुछ और मजे ले लेती।
‘क्या सोच रही हो..?’
‘कुछ नहीं.. आप खुद ही देख लो मेरी रात कैसी रही.. आपके बिना मेरी मुनिया का क्या हाल हुआ है..’
मैंने जानबूझ कर दो अर्थी बात कही थी.. क्योंकि आप सभी तो जानते ही हैं रात में मेरी चूत कई बार चोदी गई।
तभी पति ने मेरी स्कर्ट को ऊपर करके मेरी चूत पर हाथ रख कर हल्का सा दबाकर पूछा- कैसी हो.. मेरे बिना कैसी रही रात?
पति चूत से बात कर रहे थे और फिर मेरी चूत की फांक को खोल कर देखने लगे।
‘यह क्या.. तुम तो आँसू बहा रही हो.. मेरी मुनिया को लण्ड चाहिए क्या?
उन्होंने पुचकारते हुए अपनी एक उंगली मेरी बुर में डाल दी।
‘आहह्ह्ह्.. सीईईई..’
मैं सुबह से ही चाचा की हरकतों से इतना गरम थी और चाचा के लण्ड के विषय में सोचकर मेरी चूत मदनरस छोड़ रही थी.. उस पर से पति के बुर में उंगली पेलने ने मेरी सिसकारी निकाल दी।

‘वाह मेरी जान.. मेरी मुनिया ही नहीं तुम भी चुदने को तड़प रही हो..’
मैं कैसे बताऊँ आपको कि मैं रात भर चुदी हूँ.. तब तो यह हाल है.. औऱ यह बगल वाले बुढ़ऊ का भी लण्ड लेने को उतावली है।
मैं मन में बुदबुदा रही थी।
फिर पति मेरे ऊपर लेट कर मेरे होंठों को चूसते हुए मेरी बुर मसकने लगे। मुझे लगा कि कुछ देर और चला तो हम लोग अभी चुदाई के गोते लगाने लगेंगे।
मैं पति से बोली- आप पहले नहा लो और कुछ खा लो.. फिर अपनी मुनिया की गरमी निकालना।
मेरी बात मान कर पति बाथरूम में नहाने चले गए और मैं रसोई में चली गई। मैं खाना गरम करके टेबल पर लगा कर पति के आने का वेट करने लगी। कुछ देर बाद बाथरूम का दरवाजा खुलने की आवाज आई और पति बेडरूम से पूरे नंगे ही बाहर निकल आए थे। टावेल से बाल सुखाते हुए मेरी बगल में आकर किस करके बैठ गए।
‘अरे.. यह क्या.. आप ऐसे ही नंगे ही खाना खाओगे?’
‘हाँ मेरी जान.. इसके बाद तो मुझे तुम्हारी चूत चोदनी है.. क्योंकि रात से आपके लण्ड महाराज भी बहुत उछल रहे हैं अपनी मुनिया की चुदाई करने के लिए।’
मैं बस मुस्कुरा दी।
तभी पति ने कहा- मैं सोचता हूँ कोई खाना बनाने वाले को रख लूँ और वह घर का काम भी कर लिया करेगा.. सारा काम तुमको करना पड़ता है।
‘मैं भी यही सोच रही थी.. पर मैंने कभी आपसे कहा नहीं.. बगल में एक खाना बनाने वाली आती है.. मैं उससे बात करूँ?’
‘नहीं.. आज मेरे पास एक लड़का आया था.. उसका नाम संतोष है.. उसे काम चाहिए.. वह कह रहा था कि वह हर प्रकार का खाना बना लेता है और इससे पहले वह एक साहब के यहाँ काम करता था। मेरे पूछने पर वह बोला सर मैं खाना पोंछा और घर का सब काम करूँगा.. मैंने उसे शाम को बुलाया है। तुम कहो तो कल से आ जाए.. या तुम एक बार खुद मिल कर डिसाईड कर लो कि कैसा है।’
‘ठीक है शाम को उसे घर का पता देकर भेज देना.. मैं बात कर लूँगी।’
फिर हम लोगों ने खाना खाया और मैं बर्तन आदि समेट कर रसोई में ले गई। तभी पति नंगे ही रसोई में आकर मुझे गोद में लेकर बेडरूम में चले आए।
‘मयूर अभी बहुत काम है.. छोड़ो बाद में..’
पर पति ने मेरी एक ना सुनी और मुझे भी नंगी करके बिस्तर पर लिटा कर खुद मेरे ऊपर चढ़ कर मेरे छाती और निप्पलों को मसकने लगे। एक तो मेरे चूचुक मिसवाने के लिए गैर मर्द के हाथ लगाने से सुबह से ही खूब तने हुए थे.. ऊपर से पति ने मेरे चूचुकों को कसके पकड़ लिया।
चूचुक दबाते हुए बोले- वाह जान.. आज तो तुम्हारी चूचियों में गजब का तनाव है.. ये भी तो फड़क रही हैं मसलवाने के लिए और तुम मना कर रही थीं। तभी पति ने मेरी घुंडियों को जोर से मसक दिया।
‘आहह्ह्ह.. सीईईई.. ओफ्फ्फ्फ..’
मैं पति के सीने से चिपक गई। मेरी हालत तो बगल वाले चाचा ने अपने लण्ड दिखाकर और मुझे अपने सीने से चिपका कर जो अश्लील शब्द मुझसे बुलवाए थे.. तभी से मेरी बुर चुदने के लिए मचल रही थी।
अब अचानक पति ने मुझे पकड़ करके झुका दिया और पति अपना गरम सुपाड़ा.. मेरे गुलाबी होंठों पर रगड़ने लगे- ले चूस इसे..
और मैंने अपने होंठ खोल कर सुपाड़े को मुँह में भर लिया। मैं अपने गुलाबी.. मखमली होंठों से पति के सुपाड़े को रगड़ते हुए लण्ड अन्दर ले रही थी साथ ही मैं सुपाड़े के निचले हिस्से को चाट भी रही थी।
थोड़ी देर तक मैं ऐसे ही पति के मोटे सुपाड़े को चूमती-चाटती रही। तभी पति ने उत्तेजित होकर मेरे सर को और जोर से अपने लण्ड पर दबाया और आधा लण्ड मेरे मुँह में घुसा दिया।
मैं अपनी गर्दन ऊपर-नीचे करके खूब कसके चूस रही थी।
कुछ देर चुसाने के बाद पति ने लण्ड मेरे मुँह से खींच कर बाहर निकाल लिया और मुझे बिस्तर के सहारे घोड़ी बना कर मेरे पीछे मेरी चूत और गाण्ड पर लण्ड घिसने लगे।
मेरी रस चूती बुर पर.. तो कभी रस लगे लण्ड से मेरी गुदा द्वार पर.. लण्ड दबा देते। थोड़ी देर चूत और गुदा के छेद की लण्ड से मालिश करने के बाद पति ने लण्ड मेरी चूत पर सटाया और एक झटके में सुपाड़ा अन्दर पेल दिया।
‘अह्ह्ह्हा आआइइइइइ इइइइइइ..’
मैं पति के लण्ड पेलने से खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाई और मेरे मुँह से तेज सिस्कारियों की आवाज निकलने लगी।
पति मुझे घोड़ी बनाए हुए थे.. इसलिए मेरी फूली हुई चूत बाहर को निकली हुई थी। ऐसे में पति के लण्ड का हर शॉट जब मेरी चूत पर कस-कस के पड़ता.. तो मेरी चूत निहाल हो उठती। पति का लण्ड मेरी चूत रगड़ता घिसता ही जा रहा था


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मुझे एक नए किस्म का मजा मिल रहा था.. इसी तरह मुझे चोदते हुए पति ने मेरे गोल-गोल हिलते हुए मम्मों को पकड़ उन्हें दबा-दबा के कसके चोदते रहे। मैं चूत में लण्ड पाकर बेहाल होकर हर शॉट खुल कर ले रही थी। मैं फूली हुई चूत को पीछे करके लण्ड के हर शॉट को चूत पर लगवाती हुई कराहती रही ‘ओह.. उफ्फ आहह्ह्ह..’
पति मेरी चूची रगड़ते.. पीठ और गले पर चूमते.. कस-कस कर बुर से लण्ड सटाकर चोद रहे थे। मैं भी बुर में सटासट पति का लण्ड पेलवा रही थी। मेरी चूत शॉट लेते हुए झड़ने के करीब थी.. मेरा पानी गिरने ही वाला था।
अब पति भी चूत में लण्ड और तेजी से ठोक रहे थे। तभी पति ने मुझे किचकिचा कर चपका लिया और कसकर पकड़ लिया और पति के लण्ड से पिचकारी निकलने लगी।
‘ओह नहींईईई.. अह्ह्ह्ह्ह ह्ह्ह्ह्.. ह्ह्ह.. यह्हह्ह क्क्क्क्क्या किया.. मेरी चूत प्यासी है.. और चोदो ना.. नहींईईई ईईई.. ऐसा ना करो.. मेरी बुर मारो.. चोदो..’
मैं चिल्लाती रही.. पर पति झड़ कर मेरे ऊपर से उतर कर लम्बी-लम्बी साँसें लेते हुए बोले- ओह्ह्ह.. सॉरी.. मैं रात से इतना गरम था कि तुम्हारी गरम चूत में पिघल गया.. आज रात में जरूर पानी निकाल दूँगा।
मैं कर भी क्या सकती थी.. मैं प्यासी चूत लेकर पति के बगल में लेट गई। लेकिन मेरा तन-मन बैचेन था। इस टाइम मुझे कुछ सूझ ही नहीं रहा था। मैं कुछ भी ऊँच-नीच कर सकती थी.. मेरे ऊपर वासना का नशा हावी था। अभी मेरे दिमाग में यही सब चल रहा था और तब तक पति खर्राटे भरने लगे।
मैं बगल वाले चाचा से जो हुआ वह आगे नहीं होगा यही सोच थी कि चाहे अंजाने या जान कर जो भी हुआ.. वह अब नहीं होगा.. वह हैं तो मेरे पड़ोसी.. मैं उनसे अब कभी नहीं मिलूँगी.. ना ही उनकी तरफ देखूँगी.. पर मेरी वासना शायद अब मेरे बस में नहीं रह गई थी।
मुझे इस समय कोई मर्द नहीं दिख रहा था.. जो मेरी चूत को अपने लण्ड से कुचल कर शान्त कर सके.. बस मेरी निगाह में बगल वाले चाचा दिख रहे थे और मैं सेक्स के नशे में बिलकुल नंगी ही छत पर जाने का फैसला करके चल दी।
मैं पूरी तरह नंगी ही सीढ़ियाँ चढ़ती गई। मैंने सेक्स के नशे में चूर होकर यह भी नहीं सोचा कि इस वक्त वह होंगे कि नहीं.. कोई और होगा तो क्या होगा.. पर मेरी वासना मेरी चूत को पूरा यकीन था कि ऊपर आज जरूर किसी का लण्ड मिलेगा और मेरी चूत पक्का चुद जाएगी।
मैं वासना में अंधी पूरी तरह नंग-धड़ंग छत पर पहुँच कर देखने लगी। उधर कोई नहीं दिखा.. बगल वाली छत पर हर तरफ निगाह दौड़ाई.. पर चाचा कहीं नहीं दिखे।
मैं अपनी किस्मत को कोसते हुए दीवार से टेक लगाकर अपनी टपकती चूत और मम्मों को अपने हाथों से सहलाने लगी। मेरी फिंगर जैसे ही चूत की दरार में पहुँची.. मेरी आँखें मुंद गईं.. ‘ओफ्फ.. आहह्ह्ह्.. सिईईई..’
मेरे होंठ काँप रहे थे और मैं यह भी भूल गई थी कि अगर चाचा के सिवाए कोई और देख लेगा तो मुसीबत आ जाएगी.. पर मैं आँखें बंद करके अपने ही हाथों अपनी यौन पिपासा को कुचल रही थी। मैं जितनी चूत की आग को बुझाना चाहती थी.. आग उतना ही भड़क रही थी।
तभी मैं चाचा को याद करके चूत के लहसुन को रगड़ने लगी और यह सोचने लगी कि चाचा मेरी रस भरी चूत को चाट रहे हैं और मैं सेक्स में मतवाली होकर चूत चटा रही हूँ। मैं अपने दोनों हाथों से बिना किसी डर लाज शर्म के अपने मम्मे मसकते हुए सिसकारी ले-ले कर चूत को खुली छत पर नीलाम करती रही।
मैं जल्द से जल्द वासना के सागर में गहरे गोते लगना चाहती थी। मैं सेक्स के नशे में इतनी चूर थी कि मुझे कुछ ख्याल ही नहीं रह गया था, मैं कल्पनाओं में खोई हुई चूत में लण्ड लेना चाहती थी, मैं बाहरी दुनिया से बेखबर आँखें बंद किए हुए मुझे बस यही दिख रहा था कि मेरी चूत को चाचा अपने जीभ से चाटे जा रहे हैं।
मैं यही सोचती रही और मुझे मेरी कल्पना हकीकत लगने लगी, मुझे सच में लगने लगा कि चाचा मेरी चूत को चाटते हुए बुर की नरम और मुलायम पंखुड़ियों को अपने मुँह में भर कर चूसे जा रहे हैं। मैं उनसे चूत चटवाने का मजा लेती रही और चाचा का हाथ मेरी पूरे शरीर की मालिश करते हुए मेरी बुर में जीभ डालकर मेरी चूत की पोर-पोर को उत्तेजित करते हुए मुझे मेरी चरम सीमा के करीब लाते जा रहे थे।
‘आहह्ह.. उफ्फ.. सीसीसीइ इइइ.. ओह्ह्ह्ह्ह सीई..’
चाचा एक हाथ से मेरी चूचियों को पकड़ कर मसकते हुए मेरी चूत को कुत्ते की तरह चाटते जा रहे थे और मैं चाचा के सर को पकड़ कर अपनी बुर पर चांपते जा रही थी।
तभी चाचा का एक हाथ मेरे पिछवाड़े पर घूमने लगा। अब वे मेरे चूतड़ों की दरार को मसकते हुए मेरी गाण्ड के छेद में एक उंगली डाल कर मेरी चूत का रस पीते जा रहे थे।
मैं खुली छत पर सब कुछ भूली हुई.. बस अपनी बुर को राहत देना चाहती थी, मैं बस चाहती थी कि कब बुर में चाचा का मस्ताना लण्ड घुस जाए और मैं चाचा के लण्ड को बुर में लेते हुए भलभला कर झड़ जाऊँ ‘आहह्ह्ह सीसी सीसी स्स्स्स्सीइइ इई..’
चाचा का हाथ मेरे खुले जोबन को धीरे-धीरे सहला रहा था और होंठ मेरी बुर को चाट रहे थे।
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आहह्ह्ह..’
जब चाचा मेरे कड़े-कड़े चूचुकों को मसलते.. तो मेरी सिसकी निकल जाती। मेरी बुर हरपल झड़ने के करीब हो रही थी.. कभी भी मेरी चूत से रस निकल सकता था। कभी भी मेरी चूत पानी छोड़ सकती है।
तभी एकाएक मुझे महसूस हुआ कि कोई ने मेरी जाँघों पर अपना हाथ रख कर कसके दबोच लिया हो.. मुझे सेक्स की जगह जाँघ पर चिकोटी काटने से पीड़ा हुई.. और मुझे महसूस हुआ कि मेरी बुर पर अब कोई हरकत नहीं हो रही है। मैं कल्पना में जिस सर को पकड़ कर बुर पर दाब कर चटा रही थी.. वह हकीकत लगने लगा।
मेरे मन मस्तिष्क में बातें चलने लगीं क्या यह हकीकत में हो रहा था? सच में कोई है?
कोई है तो क्या हुआ.. मुझे मेरी मंजिल चाहिए.. चाहे जो हो.. है तो मर्द.. पर तभी दुबारा दबाव देते हुए उसने मुझे झकझोर दिया और अब मैं सेक्स से कांपते हुए ना चाहते हुए भी मैंने आँखें खोलीं..
मेरे दोनों जाँघों के बीच में चाचा बैठे थे.. यानी मेरी कल्पना हकीकत हो गई थी। मेरी चूत मेरी चूचियों और मेरे चूतड़ चाचा के हाथों से रोंदे जा रहे थे।
‘आअअअ अअआप?’
‘हाँ मेरी जान.. आपका दीवाना..’
यह कहते हुए चाचा ने एक बार फिर मेरी बुर पर मुँह लगा दिया..
मेरे ऊपर तो सेक्स हावी था ही.. मैं सिसकारी लेकर एक बार फिर सब भूल कर चाचा का सर चूत पर दाबने लगी ‘आहह्ह्ह.. सीईईई.. ऐसे ही चाटो.. मैं झड़ जाऊँगी.. आहह्ह्ह.. मेरी प्यास बुझा दो.. आहसीईईई.. आहह्ह्ह..’
एक बार फिर चाचा मेरी चूत पीना छोड़ कर खड़े हो गए और मुझे अपनी बाँहों में भर लिया।
‘चच्च्च्च्चाचा.. यय्य्य्य्ह कक्क्क्क्क्या.. कर रहे हो.. मेरी प्यासी चूत को चाटो न.. ऐसा ना करो!’
मैं चाचा के चूत पीना छोड़ने से पागल हो उठी थी.. मुझे सेक्स चाहिए था.. मुझे इस टाईम सेक्स के सिवा कुछ दिख सुन नहीं रहा था।
तभी चाचा मेरे होंठों के पास अपने होंठ सटाकर बोले- अच्छा.. सच-सच बताओ.. मेरी जान.. तुम्हारा भी मन कर रहा था कि नहीं मुझसे मिलने को.. मेरे लण्ड को अपनी चूत में लेने को.. बोलो ना? जब तुम खुल कर बोलोगी.. तभी मैं तेरी चूत की सारी गरमी को चोद कर ठंडी कर दूँगा… बोल मेरी जान..

चाचा मेरे तमतमाते होंठों को चूमने लगे और मैं सेक्स में मान-मर्यादा भूल कर अपने ससुर के समान बुढ्ढे से बेहया बन गई थी ‘हाँ.. कर रहा था.. बहुत कर रहा था.. इसी लिए मैं यहाँ आई थी.. आपका प्यार पाने..’
मैंने अपने मन की बात सच-सच बता दी।
चाचा के होंठ अब मेरे गालों पर थे- और क्या करवाने को कर रहा है?
मेरे गालों को काटते हुए चाचा ने पूछा।
‘वही सब करवाने को.. जो आप करने को आप यहाँ आए हैं..’
‘नहीं.. आज तुम्हारी सजा यही है कि आज तुम खुलकर बताओ कि तुम्हारा मन क्या कर रहा.. नहीं बोलना चाहती हो तो मैं चला जाऊँगा।’
‘नन्..न..नहीं.. रुको मैं बताती हूँ.. मेरा मन कर रहा था चुदवाने का.. तुमसे आज अपनी चूत चुदवाने ही तो आई हूँ!’
और यह कह कर मैंने भी चाचा के गालों पर कस के चुम्मी लेकर उन्हें अपनी बाँहों में भर लिया- तो अब चोदो ना.. अब तो मेरे मन की बात तो जान ली ना.. अब चोदो ना..
‘ले.. अभी चोदता हूँ.. अपनी रानी को..’
और चाचा वहीं बगल में ले जाकर के मुझे खड़े-खड़े ही मेरे जोबन को कसके रगड़ने.. मसलने और चूमने लगे और मेरी जवानी को चाचा हाथों से कस-कस कर रगड़ते जा रहे थे, मेरे चूचुकों को पकड़े हुए और मेरे उत्तेजित अंगूरों को कस-कस के चूसते लगे।
चाचा मेरी दोनों जांघों के बीच मेरी योनि प्रदेश पर अपना लण्ड नेकर से निकाल कर लगा करके मेरे भगनासे को लण्ड से रगड़ने लगे। चाचा के ऐसा करने से लण्ड मेरी योनि रस से भीग कर मेरी चूत पर फिसलने लगा।
मैं चाचा के लण्ड से चुदने के लिए व्याकुल हो कर सिसकारी लेते हुए बोली- प्लीज.. आहह्ह्ह् सीईईई.. चोदो ना.. मेरी बुर.. आहह्ह्ह् अब इन्तजार नहीं हो रहा.. डाल दो मेरी चूत में अपना लण्ड..
और मैं चूत चुदाने के नशे में अंधी होकर पूरी जांघें खोल कर लण्ड के अन्दर जाने का इन्तजार साँसें रोक कर करने लगी।
मैं जवानी के नशे में पागल हो रही थी ‘बस.. बस करो ना.. अब और कितना.. उह्ह्ह.. उह्ह्ह.. ओह्ह्ह.. बस्स्स्स.. और मत तड़पाओ.. डाल दो ना…’
शायद मेरी फरियाद सुन कर चाचा को मेरे ऊपर दया आ गई। मेरी फड़कती चूत को देखकर चाचा ने मेरी बुर में अपना लण्ड घुसाने के लिए मेरी चूत के मुहाने पे लण्ड लगा कर.. मेरी दोनों चूचियों को पकड़ कर पूरी ताकत से धक्का लगा दिया।
चाचा का सुपाड़ा मेरी चूत के अन्दर घुस गया था।
‘उह.. उफ्फ्फ उह आहह्ह्ह..’ करते हुए चाचा से लिपट कर पूरी चूत चाचा के हवाले करके मैं बुर को चाचा की तरफ करके दूसरे शॉट का इंतजार करने लगी।


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चाचा मेरी चूचियों को मुँह में भरकर लण्ड को चूत पर दबाने लगे।
तभी मेरे कानों में पति के बुलाने की आवाज सुनाई पड़ी- डॉली कहाँ हो.. मुझे जाना है.. मैं सो गया और तुमने जगाया भी नहीं.. डॉली कहाँ हो?
मेरी तो वासना काफूर हो गई.. अब क्या करूँ मैं?
मैंने चाचा को जाने को बोला.. पर चाचा छोड़ ही नहीं रहे थे।
‘प्लीज चाचा जाओ.. वोव्व्व्व्वो हह्हस्बेण्ड आ जाएंगे।’
तभी मुझे लगा कि पति सीढ़ी चढ़ रहे हैं ‘वो आ रहे हैं प्लीज छोड़ो.. नहीं तो बवाल हो जाएगा।’
यह कहते हुए पता नहीं कहाँ से मेरे अन्दर इतनी ताकत आ गई कि मैंने चाचा को दूर ढकेल दिया।
जैसे ही चाचा दूर हुए.. ‘फक्क’ की आवाज के साथ सुपारा बाहर निकल गया।
मैं बोली- जाओ आप.. मैं भी प्यासी हूँ व्याकुल हूँ.. आपसे चुदने को.. पर अभी आप भागो यहाँ से..
और चाचा तुरन्त दीवार फांद कर छत पर बने कमरे के पीछे चले गए। पर अब एक और मुसीबत थी.. मैं सेक्स के नशे में इतनी अंधी हो गई थी कि मैं बिना कपड़े पहने ही छत पर आ गई थी और पति एक-एक सीढ़ी चढ़ते हुए ऊपर आ रहे थे.. मेरी समझ नहीं आ रहा था कि मुझे ऐसी हालत में देख कर वे क्या सोचेगें और अब क्या होगा?
तभी शायद एक या दो बची हुई सीढ़ी से ही उन्होंने आवाज दी- डॉली कहाँ हो.. छत पर हो क्या?
तभी मुझे याद आई नाईटी तो मैं सूखने को डाली थी.. वही पहन लेती हूँ।
मैं यहाँ पति का जबाब देना उचित समझ कर बोल पड़ी- हाँ.. मैं यहाँ हूँ.. आई..!
ये कहते हुए मैं नाईटी लेने को लपकी और नाईटी लेकर बगल में होकर पहन कर.. मैं अपने घबड़ाहट पर कंट्रोल कर रही थी कि पति सामने आ गए।
‘तुम यहाँ क्या कर रही हो.. और यह क्या.. तुम्हारे कपड़े तो कमरे में पड़े है.. और तुम यहाँ नाईटी में क्या कर रही हो? कोई तुमको इस हालत में देख लेता तो..?’
‘मैं यहाँ चुदने आई थी.. पर यहाँ तो परिन्दा भी नहीं है, जो मेरी चुदाई कर सके.. शायद मेरी किस्मत में आज चुदाई लिखी ही नहीं है।

मैं पति से जानबूझ कर थोड़ा गुस्सा होकर बोली।
‘नहीं मेरी जान.. मैं ज्यादा गरम हो गया था.. इसलिए तुम्हारी चूत की गरमी सहन नहीं कर सका और मेरा पानी निकल गया.. पर तुम इस समय यहाँ से नीचे चलो.. कोई तुम्हारी जिस्म को देख लेगा तो मेरे ना रहने पर तुम्हारा बलात्कार कर बैठेगा और फिर मेरी बदनामी होगी सो अलग.. कि मेरी वाईफ नंगी ही छत पर घूमती है.. उसके जिस्म की आग नहीं बुझ रही है।’
अब पति मुझको पकड़ कर मनाते हुए नीचे लेकर चल दिए और मैं भी ज्यादा नखरा ना करते हुए पति के बाँहों में चिपक गई और नीचे आ गई, फिर मैंने रसोई में जाकर चाय बनाई।
चाय पीकर पति तैयार होकर आफिस के लिए निकल गए, जाते हुए मुझे समझाते गए- तुम अपने कपड़े ठीक कर लो और मैं यहाँ से जाते ही संतोष को भेजता हूँ तुम उससे बात करके डिसाईड कर लेना कि क्या करना है और मुझे फोन करके बता देना।
फिर पति मेरी चूचियों को दबाते हुए किस करके बोले- जान आज रात तुम्हारी चूत की सारी गरमी निकाल दूँगा.. वादा है.. अब तो हँस दो।
और मैं भी मुस्कुराते हुए पति के होंठों का किस करने लगी।
पति के जाने के बाद मैं मुख्य दरवाजा बन्द करके बेडरूम में आ गई। मैंने नाईटी को निकाल कर एक दूसरा टू-पीस की नाईटी पहन ली।
नाईटी के अन्दर सिर्फ ब्रा पहनी.. चूत बिना पैन्टी के ही रहने दी। फिर मैं बेड पर बैठ कर कुछ देर पहले बीते हुए पलों को याद करने लगी।
मैं भी क्या बेहया बन गई थी.. अपने पड़ोसी वो भी एक बुड्डे के लण्ड से मैं अपनी चूत लड़ा बैठी.. पर जो भी हो जैसा भी हो.. साले का लण्ड मस्त है.. और मैं तो गई भी नहीं थी.. वही खुद मेरे पास आया है.. इसका मतलब उसे भी एक चूत की आवश्यकता है। आज कुछ देर और पति नहीं जागे होते और ऊपर छत पर नहीं आते तो मैं आज पड़ोसी के लण्ड से चूत चुदवा कर संतुष्ट हो चुकी होती।
जब इतना सब हो गया तो अब शरमाना क्या.. मैं यही सोचते हुए नाईटी ऊपर करके बुर सहलाने लगी। मैंने जैसे ही बुर पर हाथ रखा.. मेरी गरम बुर एक बार फिर चुदने के लिए चुलबुला उठी, मेरी बुर से गरम-गरम भाप निकल रही थी।
अपने हाथों से बुर को रगड़ती रही.. पर मेरी बुर चुदने के लिए फूल के कुप्पा हो रही थी। मैं कुछ देर यूँ ही चूत और चूचियों से खेलती रही।
लेकिन मेरा मन शान्त होने के बजाए भड़कता रहा और मैं एक बार फिर से डिसाईड करके बुड्ढे से चुदने के लिए छत पर चली गई।
पर छत पर कोई भी नहीं था.. मैं कुछ देर चाचा का इन्तजार करती हुई.. इस आशा में एक हाथ बुर में डाल कर सहलाती रही कि जैसे हर बार अचानक से आकर मुझे दबोच लेते हैं वैसे ही फिर आकर मुझे दबोच कर फिर से मेरी चूत की भड़कती ज्वाला को शान्त कर देंगे।
काफी देर हो गई और शाम होने को हुई पर चाचा ना आए और ना ही दिखे।
चाचा के ना आने से मेरा मन बेचैन हो गया और मैं वासना के नशे में चाचा को देखने के लिए दीवार के उस पार गई और मैं धीमी गति से चारों तरफ देखते हुए मैं छत पर बने कमरे की तरफ गई।
कमरे के किवाड़ बंद थे, मैं कुछ देर वहाँ रूकी फिर दरवाजे पर जरा जोर दिया.. दरवाजा खुलता चला गया। मैं यह भी भूल गई कि छत और छत पर बना कमरा दूसरे का है। यहाँ कोई हो सकता है.. पर मैं चूत की काम-ज्वाला के नशे में सब कुछ भूल चुकी थी।
मेरी प्यासी चूत को लण्ड चाहिए था.. बस यही याद ऱह गया था।
जैसे ही दरवाजा खुला.. अन्दर कोई नहीं था, एक चौकी थी जिस पर गद्दा लगा था और एक पानी का जग.. गिलास रखा था। सामने हेंगर पर कुछ कपड़े टंगे थे जो चाचा के ही लग रहे थे।
मैं पूरे कमरे का मुआयना करके वहाँ चाचा को ना पाकर मायूस होकर कमरे से बाहर आ गई। फिर ना चाहते हुए मैं भारी कदमों से अपनी छत की तरफ बढ़ी ही थी कि तभी पीछे से चाचा के पुकारने की आवाज आई- बहू यहाँ क्या कर रही हो.. और किस को ढूँढ़ रही हो?
अभी मैं चाचा की तरफ घूमी भी नहीं थी.. चाचा की तरफ पीठ किए खड़ी रही। चाचा की आवाज मेरे नजदीक होती जा रही थी और जैसे-जैसे चाचा नजदीक आते जा रहे थे.. यह सोच कर मेरी चूत पानी-पानी हो रही थी कि अब मैं हुई चाचा की बाँहों में.. अब वह पीछे से मुझे पकड़ कर अपने शरीर से चिपका कर मेरी गुदा में अपना लण्ड गड़ाएंगे।
कुछ ही देर में चाचा ने खुली छत पर मुझे बाँहों में भर कर पूछा- किसी को खोज रही हो क्या जान?
चाचा एक हाथ मेरी गदराई चूची पर आ गया और उन्होंने दूसरा हाथ मेरी चूत पर ले जाकर दबा दिया।

आहह्ह्ह्…सीईईई.. तुम्म म्म्म्म बह्ह्ह्हुत जालिम हो.. एक तो मेरे जिस्म मेरी चूत में आग भड़का दी और ऊपर से पूछते हो कि मैं किसे ढूँढ रही हूँ। छोड़ो मैं आपसे नहीं बात करती.. आपको पता नहीं है कि मेरी प्यासी चूत इतनी रिस्क लेकर किसे खोज रही है। नीचे पति थे.. लेकिन में आपका लण्ड बुर में फंसाकर खड़ी थी और इस समय भी मैं यहाँ आपके लौड़े का और बुर का संगम कराने को खुद ही रिस्क लेकर इन कपड़ों में पड़ोसी के छत पर हूँ। जैसे आपने मुझे एकाएक आवाज दी है.. वैसै ही कोई और होता तो बदनामी मेरी होती.. आपकी नहीं..’
और मैं चाचा जी से छिटक कर दूर हो गई.. पर चाचा मेरे करीब आकर बोले- मैं मजाक कर रहा था.. मुझे पता है कि तुम मुझे अपनी चूत को चुदवाकर अपनी प्यास बुझावाने के लिए खोज रही थी.. चलो कमरे में चलते हैं।
फिर चाचा मुझे खींचते हुए कमरे में लेकर चले गए और मुझे लेकर चौकी पर बैठ गए।
‘यहाँ कोई और भी आ सकता है ना?’
‘नहीं आज कोई नहीं है.. सब एक शादी में गए है और दो दिन अभी कोई नहीं आएगा.. इसलिए मैं तुमको यहाँ लाया.. नहीं तो मैं पागल नहीं हूँ कि तेरी और अपनी बदनामी करवाऊँ।’
‘लेकिन आप पागल हो और आप दूसरों को भी पागल कर देते हो।’
‘वो कैसे बहू..?’
‘आप चूत के लिए पागल हो कि नहीं?’
‘हाँ बहू.. तुम सही कह रही हो.. पर मैं दूसरों को कैसे पागल करता हूँ?’
‘अपना लण्ड दिखाकर.. जैसे मैं आपके लण्ड देख कर उसे अपनी चूत में लेने के लिए पागल हो गई हूँ।’
चाचा हँसने लगे और मुझे वहीं चौकी पर लिटा कर मेरी नाईटी को ऊपर कर दी।
मेरी फूली हुई चूत को देख कर बोले- बहुत प्यासी है क्या बहू?
‘हाँ चाचा..’
मेरे ‘हाँ’ करते चाचा ने मेरी बुर पर मुँह लगा कर मेरी जाँघों को सहलाते हुए मेरी बुर को किस कर लिया।
मैं अपनी बुर पर चुम्मी पाकर सीत्कार कर उठी ‘ओह्ह्फ्फ ऊफ्फ्फ आई ईईसीई.. आहह्ह्ह्..’
पर चाचा मेरी चूत के चारों तरफ अपनी जीभ घुमा कर मेरी प्यास को भड़काने में लगे हुए थे। चाचा अपनी जीभ को लपलपाते हुए चूत के छेद में जीभ डाल कर मुँह से मेरी चूत मारने लगे।
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मेरी गरम चूत पर चाचा की जीभ चटाई से मैं अपनी सुधबुध खोकर सिसकारी लेने लगी ‘आहह्ह आहह मेरे राजा.. यसस्स्स स्स्सस्स.. चूसो मेरी चूत को अहह.. चाचा अपने मोटे लण्ड से मेरी चूत चोदो.. मैं प्यासी हूँ.. मेरी प्यास बुझा दे.. आहह्ह्ह्.. चाटो मेरी चूत को.. आहह्ह्ह् सीईईई..’
मैं सीत्कार करती हुई चूत उछाल कर चुसवाए जा रही थी।
तभी चाचा चूत पीना छोड़कर खड़े हो गए और अपनी लुंगी को निकाल कर फेंक दिया। उन्होंने मुझे इशारे से अपने लण्ड को चूसने को कहा और मैं चाचा के बम पिलाट लण्ड को मुँह में लेकर सुपारे पर जीभ फिरा कर पूरा लण्ड गले तक लील गई। चाचा भी मस्ती में मेरे मुँह में ही लण्ड पेलने लगे ‘ओह्ह बेबी.. आह.. चूस बेबी.. मेरे लण्ड को.. आहसीईई.. मैं भी प्यासा हूँ बेबी.. चूत के लिए.. एक तुम्हारी जैसी प्यासी औरत की जरूरत है.. आहह्ह सीईईई.. बेबी.. मैं तुम्हारी गरम चूत का गुलाम हूँ.. बेबी ले.. मेरे लण्ड को.. अपने मुँह में..’
मुँह चोदते हुए चाचा घपाघप लण्ड मेरी मुँह में पेलते रहे और मैं भी काफी देर चाचा के लण्ड से खेलती रही। फिर समय का ख्याल करके मैं चाचा का लण्ड मुँह से निकाल कर चौकी पर लेट कर चूत फैला कर चाचा के मोटे लण्ड को लेने के लिए अपनी छाती मींजने लगी।
चाचा मेरी चूत को जल्द से जल्द पेलना चाह रहे थे, चाचा मेरे पैरों के पास बैठकर मेरी जाँघ पर हाथ फेरकर मेरे ऊपर छा गए।
चाचा ने मेरी चूत अपना लण्ड लगा कर एक ही करारे धक्के में अन्दर धकेल दिया। मैं चाचा के लण्ड के इस अचानक से हुए हमले को सहन नहीं कर सकी ‘आआआ आअहह.. ओह.. चाआआआचाजी.. मेरी बुर.. आह.. थोथ्थ्थ्थ्थोड़ा.. धीमे पेलो.. आह

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फिर चाचा मेरी चूची को मुँह में भर कर दूसरा शॉट लगा कर अपने बचे-खुचे लण्ड को पूरा अन्दर करके मेरी बुर की चुदाई शुरू कर दी। मैं भी चाचा के लण्ड को बुर उठा अन्दर ले रही थी।
चाचा मेरी चिकनी चूत में लण्ड फिसला रहे थे और मेरी चूचियों को मसकते हुए शॉट लगाते जा रहे थे।
चाचा के हर धक्के से मेरी चूत में नशा छा जाता। चाचा का लंबा, मोटा लण्ड एक ही बार में दनदनाता हुआ मेरी फूली गद्देदार चूत में घुसता चला जाता।
इस तरह से तो आज तक मेरे पति से भी मुझे ऐसी चुदाई का सुख नहीं मिल पाया था। इसलिए आज मैं इस मजे को जी भरकर लेना चाहती थी। मैं हर धक्के के साथ अपनी कमर उचका कर चाचा के लण्ड की हर चोट चूत पर ले रही थी। मेरी चुदाई के हर ठप्पे से मैं चुदने के लिए बेकरार होती जा रही थी।
तभी मेरे मोबाईल पर रिंग बज उठी।
मैं चाचा को रुकने का इशारा करके फोन उठाकर बोली- हैलो?
‘कहाँ हो तुम.. आधे घण्टे से संतोष गेट और बेल बजा रहा है..’
‘मैं तो यही हूँ.. शायद सो गई थी.. आप फोन रखो.. मैं देख रही हूँ।’
यह कह कर मैंने फोन कट कर दिया।
मुझे तो संतोष के आने का ध्यान ही नहीं रहा।
मेरे फोन रखते चाचा ने चूत चोदना चालू कर दिया।
मैं चाचा से बोली- हटो.. मैं बाद में आती हूँ..
पर चाचा ताबड़तोड़ मेरी चूत मारते हुए मेरी चूत में झड़ने लगे। चाचा को मेरी बातों का एहसास हो चुका था।
मैं किसी तरह चाचा को ढकेल कर प्यासी और वीर्य से भरी चूत को अनमने से ना चाहते मैं अपनी छत पर जाकर सीढ़ी से नीचे उतर गई।
मैंने जाकर गेट खोला.. सामने एक नाटे कद का काला सा लड़का खड़ा था। मैं चुदाई के कारण कुछ हांफ सी रही थी और मेरी जाँघ से वीर्य गिर रहा था।
मैं चुदाई के कारण कुछ हांफ सी रही थी और मेरी जाँघ से वीर्य गिर रहा था.. जिससे एक महक सी आ रही थी।
मेरे अस्त-व्यस्त कपड़े और मेरी बदहाशी की हालत देख कर वह केवल एकटक मुझे देख रहा था और मैं भी उसके शरीर की बनावट को देखे जा रही थी।
एक तो पहले से ही आज मेरी बुर की प्यास हर बार किसी ना किसी कारण अधूरी रहे जा रही थी। मैं भी सब कुछ भूल कर उसको देख रही थी।
मुझे होश तब आया.. जब उसने कहा- मेम.. मुझे साहब ने भेजा है।
‘ओह्ह..ह्ह्ह.. आओ अन्दर..’
वह मेरे पीछे-पीछे वह मेरी लचकते चूतड़ों को देखते हुए अन्दर आ गया। मैं अन्दर आते समय यही सोच रही थी कि आज इसका पहला दिन है और आज ही इसने मेरी गदराई जवानी को जिस हाल में देखा है.. इससे तो जरूर इसका लण्ड खड़ा हो गया होगा।
फिर मैं सोफे पर बैठ गई और मैं अपने एक पैर को दूसरे पैर पर रख कर आराम से सोफे पर बैठ गई। मैंने जब उसकी तरफ देखा.. तो वह अपनी आँखों से मेरी जांघ और मेरी चूचियों का मुआयना कर रहा था।
मैं अपने शरीर के अंगों को संतोष को घूरते देख कर उससे पूछने लगी- तो मिस्टर आप का नाम?
वह जैसे नींद से जागा हो- जी..ज्ज्ज्जी संस्स्स्स्न्तोष है..
‘तुम क्या-क्या कर लेते हो?’
‘मेम.. मैं सब कुछ..’
‘अच्छा.. तो आप सब कुछ कर लेते हो..’
‘जी.. मेमसाहब..’
‘मैं कुछ जान सकती हूँ कि आप क्या क्या कर सकते हो..?’ ये कहते हुए मैंने अपने पैर नीचे कर लिए और दोनों पैरों को छितरा लिया। मेरे ऐसा करते मेरी जाँघ के बीच से वीर्य की एक तीखी गंध आने लगी। मेरी चूत और जाँघें चाचा के वीर्य से सनी हुई थीं।
शायद संतोष को भी महक आने लगी, वह बोला- मेम साहब, कुछ अजीब सी महक आ रही है?
‘कैसी महक?’
‘पता नहीं.. पर लग रहा है कि कुछ महक रहा है।’
‘तुमको कभी और ऐसी महक आई है.. कि आज ही आ रही है?’
‘मुझे याद नहीं आ रहा..’
‘चलो याद आ जाए कि यह महक किस चीज की है.. तो मुझे भी बताना.. क्योंकि मैं भी नहीं समझ पा रही हूँ कि यह महक किस चीज की है। खैर.. तुमने बताया नहीं कि क्या- क्या कर लेते हो?’
‘जी मेमसाहब.. मैं खाना बनाऊँगा.. और घर के सभी काम करूँगा.. जो भी आप या साहब करते हैं।’
‘अच्छा तो तुम साहब के भी सारे काम करोगे?’
‘जी मेम साहब..’
वह मेरी दो अर्थी बातों को नहीं समझ पा रहा था। मैं तो उस समय सेक्स में मतवाली थी, मैं वासना के नशे में चूर होकर हर बात कर रही थी, मैं यह भी भूल गई थी कि यह मेरे बारे में क्या सोचेगा।

तुम्हारी उम्र क्या है?’
‘जी.. 19 साल और 3 महीने..’
‘गाँव कहाँ है?’
‘मोतीहारी.. बिहार का हूँ।’
‘ओके.. तुम को यहाँ रहना पड़ेगा..’
‘जी मेम साहब..’
वह बात के दौरान मेरी जाँघ के बीच में निगाह लगाए हुए ज्यादा से ज्यादा अन्दर देखने की कोशिश में था। वह बिल्कुल मेरे सामने खड़ा था.. जहाँ जाँघ से अन्दर का नजारा दिख रहा था.. पर शायद उसे मेरी चूत के दीदार नहीं हो पा रहे थे.. इसलिए वह कोशिश कर रहा था कि मेरी मुनिया दिखे.. और मैंने भी संतोष की यह कोशिश जरा आसान कर दी।
मैंने पूरी तरह सोफे पर लेटकर पैरों को चौड़ा कर दिया। मेरा ऐसा करने से मानो संतोष के लिए किसी जन्नत का दरवाजा खुल गया हो.. वह आँखें फाड़े मेरी मुनिया को देखने लगा।
‘वेतन क्या लोगे?’
मेरी चूत के दीदार से संतोष का हलक सूख रहा था। वह हकलाते हुए बोला- जो..ज्ज्ज्जो आअअप दे दें..
‘मैं जो दूँगी.. वह तुम ले लेगो?’
‘जरूर मैडम..’
‘और कुछ और नहीं माँगेगा?’
मैं यह वाक्य बोलते हुए पैर मोड़ कर बैठ गई।
मैंने गौर किया कि जैसे कोई फिल्म अधूरी रह गई हो.. ठीक वैसे ही उसका मन उदास हो गया था।
‘अच्छा.. तो मैं तुमको 5000 हजार दूँगी।
‘ठीक है मेम साहब..’
‘फिर तुम काम करने को तैयार हो?’
‘जी मेमसाब..’
‘अभी तुम रसोई में जाओ और अपने हाथ की पहली चाय पिलाओ।
मैंने उसे रसोई में ले जाकर सब सामान दिखा दिया।
‘तुम दो कप चाय बना कर ले आओ..’
मैं उसे कहकर बेडरूम में चली गई और मैं अपने बेडरूम में पहुँच कर कपड़े निकाल कर बाथरूम में घुस गई और सूसू करने बैठी। मेरी फड़कती और चुदाई के लिए तड़पती चूत से जब सूसू निकली.. तो ‘सीसी सीस्स्स्स्सीइ..’ की तेज आवाज करती हुई मेरी मुनिया मूत्र त्याग करने लगी।
सूसू करने से मुझे काफी राहत मिली और फिर मैं फुव्वारा खोल कर नहाने लगी.. जिससे मेरे तन की गरमी से कुछ राहत मिली। मैंने नीचे हाथ ले जाकर चूत और जाँघ पर लगे वीर्य को साफ किया और चूत को हल्का सा सहलाते हुए मैं बीते हुए पल को याद करने लगी।
आह.. क्या लौड़ा है चाचा का.. मजा आ गया.. आज रात तो जरूर चुदूँगी.. चाहे जो हो जाए.. हाय क्या कसा-कसा सा मेरी चूत में जा रहा था। अगर चाचा मेरी फोन पर बात ना सुनते और जल्दबाजी में अपना पानी ना निकालते.. तो मैं भी अपना पानी निकाल कर ही आती।
यही सब सोचते हुए मैंने एक उंगली बुर में डाल दी और बड़बड़ाने लगी ‘आहह्ह्ह् सीईईई.. चाचा.. आह क्या माल झड़ा था.. चाचा के लण्ड से आहह्ह्ह्.. सीईईई काफी समय बाद लग रहा था कि चाचा को बुर मिली है.. इसलिए मेरी बुर को अपने पानी से भर दिया।’
मैंने अपनी बुर में उंगली करना चालू रखी थी कि बाहर से संतोष की आवाज आई- मेम साहब चाय ले आया हूँ।

मैंने बुर से उंगली निकाल कर चाटते हुए तौलिया लपेटकर बाहर आ गई। मुझे ऐसी हाल देख कर संतोष आँखें फाड़ कर मुझे देखने लगा।
मैंने बेड पर बैठ कर संतोष की तरफ देखा, वह अब भी वहीं खड़ा था और मेरी अधखुली चूचियों को घूर रहा था।
‘संतोष चाय दोगे कि यूँ ही खड़े रहोगे?’
‘हह्ह्ह्ह्हा.. मेम्म्म्म सास्साब..’
उसने चौंकते हुए मेरी तरफ चाय बढ़ा दी। मैं कप उठाया और चाय पीते हुए.. दूसरे कप की चाय उसे पीने को बोल कर मैं पति को फोन करने लगी।
‘हैलो.. हाँ जी.. बात हो गई संतोष से.. वह आज से ही काम पर है।
‘ओके.. ठीक है जानू..’
मैंने फोन कट कर दिया.. फिर मैं संतोष को बाहर बने सर्वेन्ट क्वार्टर को दिखा कर बोली- तुमको यहीं रहना है और जो भी जरूरत हो.. तुम मुझसे ले लेना.. और मेन गेट खुला है.. ध्यान रखना।
फिर मैं वहाँ से चली आई और मैं कुछ देर आराम कर ही रही थी कि जेठ जी मुझे पुकारते हुए अन्दर मेरे कमरे में आ गए और मुझे किस करके बोले- जानू कोई लड़का आया है क्या?
‘हाँ.. वह आज से घर का सब काम करेगा..’
‘वाह वैरी गुड.. इसका मतलब अब मेरी जान मुझसे बुर चुदाने के लिए बिल्कुल खाली रहेगी।’
‘हटिए आप भी.. जब देखो इसी ताक में रहते हो.. चलो हटो नहीं तो नायर देख लेगा..’
‘वह साला अभी कहाँ आया है.. वह रात तक आएगा.. उसे कुछ काम था। मेरा मन नहीं लग रहा था इसलिए चला आया।’
जेठ जी ने मुझे बाँहों में कस कर मेरे होंठ चूसने लगे.. साथ में ब्रा के कप में हाथ घुसा कर मेरी छाती को दबाने लगे।
मैं तो पहले से ही सेक्स में मतवाली थी, जेठ जी के आगोश में जाते मैं चुदने के लिए बेकरार हो कर जेठ से लिपट गई।
‘यह हुई ना बात..’
‘हाय मसल डालो मेरे राजा.. मेरी चूचियों को.. और मेरे सारे बदन अच्छी तरह से दबाकर चोद दो.. कि मेरी गरमी निकल जाए।’
‘हाय मेरी जान.. तेरे जैसी औरत को कौन मर्द चोदना नहीं चाहेगा..!’
‘हाँ मेरी जान जमकर चोद दो.. और किसी के आने से पहले मेरी बुर को झाड़ दो..’
बस फिर क्या था.. जेठ ने पीठ पर हाथ ले जाकर ब्रा का हुक खोल दिया। वे मेरी चूचियों को दबाते हुए चाटने लगे और मैंने भी जेठ के सर को पकड़ कर अपनी छातियों पर भींच लिया।
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जेठ जी ने मेरे सारे कपड़े निकाल कर मुझे चूमते हुए मेरी टांगों को खोल दिया और अपनी जुबान को मेरी चूत पर रगड़ने लगे।
जेठ मेरी चूत में अपनी जुबान घुसा कर मेरी चूत चाटते और कभी मेरे भगनासे को अपने होंठों और जीभ से रगड़ते.. तो मैं सिसकारी लेने लगती ‘आहह्ह्ह् सीईईई..’
मेरी सिसकारी को सुन कर जेठ मेरी फुद्दी को कस कर चाटने लगे। एक पल तो लगा कि सारे दिन की गरमी जेठ जी चाटकर ही निकाल देगें।
मैं झड़ने करीब पहुँच कर जेठ से बोली- आहह्ह्ह् उईईसीई आह.. क्या आप मेरी चूत को अपने मुँह से ही झाड़ दोगे.. घुसा दो अपना टूल.. और मेरी मुनियाँ को फाड़ दो.. आहह्ह्ह..
तभी जेठ मुझे खींच कर बिस्तर के किनारे लाए और मुझे पलटकर मेरे चूतड़ों की तरफ से खड़े-खड़े ही अपने लण्ड को मेरी चूत में घुसाने लगे।
आज दिन भर से लंड ले-लेकर बस मैं तड़पी थी.. इसलिए मेरी फुद्दी काफी पानी छोड़ कर चुदने के लिए मचल रही थी।
तभी जेठ ने मेरी चूत पर शॉट लगा कर अपने लण्ड को मेरी चूत में उतार दिया।
देखते ही देखते जेठ का पूरा लंड मेरे अन्दर था और वे झटके देकर मेरी चूत का बाजा बजाने लगे। मैं घोड़ी बनी हुई पीछे को चूतड़ और चूत धकेल कर अपनी बुर मराने लगी।
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गपागप्प..’ जेठ का लण्ड मेरी चूत में अन्दर-बाहर हो रहा था। मैं ज़ोर से चुदने का मजा ले रही थी ‘आआआ.. सस्स्स्स स्स्सस्स.. ओह्ह.. हाय.. उम्म्म्मम.. सस्सस्स ज़ोर से.. अहह अहह.. चोदो आहह्ह्ह्.. मैं गई आहह्ह्ह!’
मेरी कामुक सिसकारी सुनकर जेठ जबरदस्त तरीके से चूत की कुटाई करने लगे और मैं भी ताबड़तोड़ लण्ड के झटके पाकर निहाल हो उठी।
मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया ‘आहह्ह्ह् सीईईई.. मेरी चूत आपके लण्ड की रगड़ पाकर झड़ रही है.. मेरे प्रीतम.. आह्ह..’
जेठ के मस्त झटकों से चूत झड़ने लगी.. पर जेठ का लण्ड अब भी मेरी चूत को ‘भचाभच’ चोद रहा था।
जेठ मेरे छातियों को मसकते हुए मेरी फुद्दी की अपने लण्ड से ताबड़तोड़ चुदाई करते जा रहे थे, मेरी झड़ी हुई चूत में जेठ का लौड़ा ‘फ़च-फ़च’ की आवाज करता मुझे चोदता जा रहा था।
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तभी जेठ सिसियाकर बोले- बहू मेरा लण्ड भी.. हाय रे.. गया.. मेरा लौड़ा निकला.. माल.. हाय रे.. निकला।’
अपना वीर्य निकलने से पहले ही जेठ ने अपना लण्ड बाहर खींच लिया और लण्ड मेरे मुँह तक लाकर तेज-तेज हाथ से हिलाते हुए मेरे मुँह पर माल की पिचकारी मारने लगे।
‘आह.. बहू लो पी लो.. मेरे वीर्य को.. आहह्ह्ह् बह्ह्ह्हू..’
उन्होंने मेरे होंठ पर जैसे ही वीर्य गिराया.. मैंने मुँह खोल कर जेठ का लौड़ा अपने मुँह में ले लिया। जेठ जी मेरे मुँह के अन्दर ही पानी छोड़ने लगे और मैं उनका सारा वीर्य पी गई और जेठ का लण्ड पूरा चाट कर साफ़ कर दिया।
फिर मैंने अपने होंठों से चेहरे का वीर्य भी जीभ निकाल कर चाट लिया। हम दोनों की वासना का सैलाब आकर जा चुका था। सुबह से मेरी प्यासी चूत को राहत मिल चुकी थी।
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तभी मुझे संतोष का ध्यान आया कि वो भी तो घर में ही है। मैं जेठ से बोली- भाई साहब मैं तो चूत चुदवाने के नशे में भूल गई थी.. पर आप भी भूल गए कि संतोष घर में ही है। उसने हम लोगों को देख लिया होगा तो क्या होगा.. आप जाईए और देखिए कि वह कहाँ है?
जेठ जी के जाने के बाद मैं भी बाथरूम जाकर फ्रेश हुई और बाहर आई तो देखा कि जेठ जी बाहर ही बैठे हैं..
मुझे देखकर बोले- सब ठीक है।
मैं भी संतोष के कमरे की तरफ गई.. संतोष अपने कमरे में नहीं था, मैं बाथरूम से आती आवाज सुनकर बाथरूम की तरफ चली गई और ध्यान से आवाज सुनने की कोशिश करने लगी शायद अन्दर संतोष कुछ कर रहा था। यह देखने के लिए कि वह कर क्या रहा है.. मैं दरवाजे के बगल में बने रोशनदान से संतोष को देखने के लिए वहाँ रखी चेयर के ऊपर चढ़कर देखने लगी।
यह क्या..! बाथरूम के अन्दर के हालात को देखकर मैं चौंक गई.. संतोष पूरी तरह नंगा था और अपने हाथ से अपने लण्ड को हिलाते हुए मेरे नाम की मुठ्ठ मारते मेरी चूत और चूचियों का नाम ले कर लण्ड सौंट रहा था। संतोष का लण्ड भी काफी फूला और मोटा लग रहा था।
सुपारा तो देखने में ऐसा लग रहा था जैसे लवड़े के मुहाने पर कुछ मोटा सा टोपा रखा हो। लेकिन ज्यादा चौंकने की वजह यह थी कि एक 19 साल का लड़के का इतना फौलादी लण्ड.. बाप रे बाप..
आइए मैं आपको सुनाती हूँ कि कैसे मेरा नाम लेकर मेरा ही नौकर अपना लण्ड सौंट रहा था।
‘आहह्ह्ह.. डॉली मेम्म्म् साहब.. क्या तेरी चूत है.. क्या तेरे मस्त लचकते चूतड़ हैं.. और हाय तेरी चूचियाँ.. तो मेरी जान ही ले रही हैं.. आहह्ह.. ले खा मेरे लौड़े को अपनी चूत में.. आहह्ह.. डॉली मेम्म्म्म्म साससाब.. गया मेरा लौड़ा.. तेरी चूत में.. आह सीईईई.. मैं गया.. आह.. मेम्म्म्म्म साब.. तेरी चूत में मेरा लौड़ा पानी छोड़ रहा है..

यह कहते हुए संतोष का लण्ड वीर्य उगलने लगा।
फिर मैं वहाँ से हट कर संतोष के सोने के लिए जो चौकी थी.. उसी पर बैठ कर संतोष की प्रतीक्षा करने लगी।
कुछ देर बाद संतोष ने बाथरूम का जैसे ही दरवाजा खोला.. मेरी और उसके निगाहों का आमना-सामना हो गया, वह मुझे देखकर उछल उठा- आअअअप यय..हाँ मेम साहब जी..!
संतोष बाथरूम से अंडरवियर में ही बाहर आ गया था, वह मुझे सामने पाकर घबराने लगा।
‘संतोष मैं आई तो तुम यहाँ नहीं थे.. मैं जाने लगी.. तो बाथरूम से मुझे तुम्हारी कुछ आवाजें सुनाई दीं.. तो मैं रूक कर इन्तजार करने लगी। कुछ तबियत वगैरह सही नहीं है क्या संतोष?’
‘ननन…नहीं तो..’
‘तो.. फिर तुम्हारी आवाज कुछ सही नहीं लग रही थी.. क्या बात है?’
‘वो कुछ नहीं मेम्म.. बस ऐसे ही..’
‘लेकिन तुम क्यों अंडरवियर में ही खड़े हो.. कपड़े पहनो..’
‘मेम्म.. मेरे कपड़ों पर आप बैठी हैं..’
मैं भी चौंकते हुए- ओह्ह.. वो मैंने देखा ही नहीं.. मैं चलती हूँ.. तुम तुरन्त आओ काम है..
मैं वहाँ से हॉल में आकर बैठ गई।
जेठ जी रूम में थे.. तभी संतोष आ गया।
‘जी मेम साहब.. क्या काम है?’
‘तुम चाय बना लाओ और भाई साहब के साथ जाकर मार्केट देख भी लो और सब्जी भी ले लेना..’
‘ठीक है मेम साहब..’
फिर संतोष ने चाय बना कर दी। मैंने और जेठ ने एक साथ ही चाय पी और फिर संतोष के साथ मार्केट चले गए। मैं अकेली बैठी थी.. कुछ देर बाद मैं भी छत पर घूमने चली गई।
मैं छत पर टहल ही रही थी कि चाचा की आवाज सुनाई दी ‘हाय मेरी जान.. कैसी हो?’
यह कहते हुए चाचा मेरी छत पर आकर मुझसे सटकर खड़े हो कर मेरी छाती पर हाथ रखकर मेरी चूचियों को दबाने लगे।
मैं गनगना उठी- आहह्ह्ह.. थोड़ा धीमे दबाओ ना.. बुढ़ौती में जवानी दिखा रहे हो..
‘हाँ मेरी जान.. जब लौड़ा चूत में गया था.. कैसा लगा था? बुड्ढे का कि जवान मर्द का?’
ये कहते हुए वे मेरी बुर पर हाथ ले जाकर सहलाने लगा।
‘यह क्या कर रहे हो.. कोई आ गया तो..!’
‘इतने अंधेरे में हम तुम सही से दिख नहीं रहे.. कोई आकर ही क्या देख लेगा..’
चाचा ने मुझे बाँहों में भर लिया। अपने लौड़े का दबाव मेरी बुर पर देते हुए मेरे होंठों को किस करने लगे।
मैं भी चाचा को तड़फाने का सोच कर बोली- वह देखो कोई आ गया है..
और जैसे ही चाचा चौंक कर उधर देखने लगे.. मैं चाचा से छुड़ाकर दूर भागी.. ‘आप क्या उखाड़ोगे मेरी चूत का.. अब यह काम आपके बस का नहीं है.. यह काम किसी जवान मर्द का है।’

मैं यह सब चाचा को चिड़ाने और उकसाने के लिए कर रही थी और हुआ भी यही.. चाचा मेरी तरफ लपके.. पर मैं छत पर भागने लगी। चाचा मेरे पीछे और मैं आगे.. दाएं-बाएं करते हुए चाचा को चिड़ाती रही।
‘अरे चचा काहे को मेरे पीछे भाग रहे हो.. बुढ़ौती है, थक जाओगे.. अब आप वह सांड नहीं रहे.. जो कभी हम जैसी गरम औरतों की चूत पर चढ़कर गरमी निकाल देते थे.. अब वह जोश कहाँ है आप में..’
तभी चाचा ने मुझे दबोच लिया, मुझे दबोचते हुए बोले- अब देख साली.. मैं तेरा और तेरी इस बुर और गांड का क्या हाल करता हूँ। तेरी बुर को तो मैं आज अपने इस लौड़े से चोद कर कचूमर निकाल दूँगा.. और तेरी गदराई गांड को भी आज फाड़ कर तुमको अपने लण्ड का परिचय दूँगा.. अभी तेरी ऐसी चुदाई करता हूँ.. कि हफ्ता भर तू सीधी तरह चल भी ना सकेगी..
और मुझे चाचा वहीं छत पर ही पटक कर नंगी करने लगे।
मैं मन ही मन बड़बड़ाई कि यह तो मेरा ही दांव उलटा पड़ रहा है.. इस टाईम अगर यह मेरी चुदाई चालू कर देगा.. तो ठीक नहीं रहेगा। कोई आ गया तो इसका क्या यह मर्द है.. साला निकल लेगा.. फसूंगी मैं.. किसी तरह चाचा को रोकूँ।
‘चाच्चचाचा.. छोड़ो.. कोई आ जाएगा..!’
‘बस मेरी रानी.. बस एक मिनट रूको अभी मैं दिखाता हूँ कि बुढ्ढा किसे कहा है..’
‘मममममैं.. मजाक कर रही थी.. आप तो मर्दों के मर्द हो.. बाबा अब तो छोड़ो.. मैं रात को आऊँगी.. तब दिखाना अपनी मर्दानगी.. मैं आपको अपनी वासना दिखाऊँगी..’
पर चाचा मेरी चूचियों और चूतड़ों को भींचते हुए मुझे अपनी बाँहों में क़ैद करके मेरे होंठों का रस पान करने लगे। मैं चाचा की बाँहों में बस मचलती हुई चाचा की हरकतों को पाकर गरम होने लगी थी। मेरी बुर चुदने के लिए एक बार फिर फड़कने लगी और मैं चाचा की ताल से ताल बजाने लगी।

वहीं छत पर चाचा मेरी चूचियों को निकाल कर मुँह में लेकर चूसने लगे और अपने मोटे लण्ड के सुपारे को मेरी बुर पर चांप कर मेरी आग को भड़काने लगे।
मैं होश सम्हालते हुए बोली- चाचा कोई आ सकता है.. नीचे का गेट भी बंद नहीं है.. आज रात मेरी जमकर चूत मारना.. मैं भी आपसे चुदने को तड़प रही हूँ।
तभी चाचा बोले- बहू छत पर अंधेरा है कोई आ गया तो भी हम दोनों को देख नहीं पाएगा.. हम लोग पूरी तरह तो नहीं ऊपरी तरह से तो मजा ले सकते हैं। प्लीज बहू साथ दो ना.. मैं हूँ ना..
अब मैं भी चाचा के सीने की गरमी पाकर चिपक गई।
‘बहू तुम मेरे लण्ड को तो चूस ही सकती हो..’
‘जी बाबू जी.. लेकिन एक बार आप मेरी बुर चूस दो.. कोई आ जाए.. इससे पहले मैं मजा ले लूँ.. आप तो अपना काम कर चुके हो..’
मेरा इतना कहना था कि चाचा मेरी जाँघों के बीच मुँह डाल कर मेरी मुनियाँ को चाटने लगे। अपनी चूत चाचा की जीभ का स्पर्श पाकर मैं गनगना उठी, मेरे मुँह से सिसकारी फूट पड़ी- आई सीईईई.. ईईईई..
चाचा मेरी बुर की फांकों को फैलाकर मेरी चूत चाटने लगे। वे अपनी जीभ और होंठों से मेरी चूत के अंदरूनी हिस्से को चूसते हुए चाचा मुझे थोड़ी ही देर में जन्नत दिखाने लगे। मैं भी कमर उठाकर सब कुछ भूल कर अपनी चूत फैलाकर चटवाने लगी।
तभी चाचा मेरी चूत पीना छोड़कर खड़े होकर अपना हलब्बी लण्ड निकाल कर मुझसे बोले- बहू अब तुम इसकी सेवा कर दो..
मैं भी उठकर चाचा के लण्ड को मुँह में लेकर सुपारे पर जीभ फिराने लगी।
चाचा मेरे सर को पकड़ कर मेरे मुँह में सटासट लण्ड आगे-पीछे करते हुए मेरे मुँह की चुदाई करते रहे और मैंने जी भर कर चाचा के लण्ड को चूसा।
फिर चाचा ने मुझे वहीं दीवार के सहारे झुकाकर बोले- रानी अब चूत मार लेने दो.. रहा नहीं जाता।
‘नहीं.. अभी नहीं.. आप तो अपना माल गिरा लोगे.. और मैं प्यासी रह जाऊँगी.. अभी यह समय बुर मारने का नहीं है।’
‘अरे मेरी जान.. मैं पूरी तरह से नहीं कह रहा.. बस थोड़ा रगड़ आनन्द लेने को ही तो कह रहा हूँ.. और मेरे खयाल से तुम भी लेना चाहती हो.. क्यों ना सही कहा ना?’
‘जी आप बिल्कुल सही कह रहे हैं.. पर कोई आ सकता है..’
चाचा बोले- अगर कोई आया तो मैं यहीं रह जाऊँगा.. और तुम आगे बढ़ जाना..’
मेरी तरफ से कोई उत्तर न पाकर चाचा ने पीछे मेरी मिनी स्कर्ट उठा कर लण्ड मेरी चूत पर लगा दिया। अब वे एक हाथ से कूल्हों को और चूचियों मसल रहे थे और दूसरे हाथ से चूतड़ों की दरार और चूत पर लण्ड का सुपारे को दबाते हुए रगड़ने लगे।
चाचा के ऐसा करने से मैं तड़प कर सीत्कार उठी- अह्ह ह्ह्ह्ह्ह ह्ह्ह.. स्स्स्स्स स्स्स्स्स्स.. उम्म्म्म.. आहह्ह्ह.. सीईईई..
मैं सीत्कार हुए सिसक रही थी और चाचा मेरे चूत और गाण्ड वाले हिस्से को लंड से रगड़ते जा रहे थे। मैं बैचेन होकर चूतड़ पीछे करके लण्ड को अन्दर लेना चाहती थी ‘जल्दी करो ना चाचा.. कोई आ जाए.. इससे पहले आप मेरी चूत में एक बार लण्ड उतार कर मुझे मस्ती से सराबोर कर दो..’
मेरा इतना कहना सुनते ही चाचा ने मेरे कूल्हे को पकड़ कर मेरी बुर के छेद पर लण्ड लगा कर.. एक जोरदार धक्का मारा।
‘आहह्ह्ह.. माआआ.. अहह.. मररररर गई.. आपके लण्ड ने तो मेरी बच्चेदानी को ठोकर मार दी रे.. आहह्ह्ह..’
इधर लण्ड चूत में और उधर किसी की आहट लगी.. पर चाचा ने एक और शॉट लगा दिया.. और मैं आहट पर ध्यान ना देकर चूत पर लगे शॉट को पाकर.. फिर सीत्कार उठी- उईईई माँ.. आह्हह ह्हह.. सीईईई ईईईई.. आहह्ह्ह..
अब वो आहट मेरे करीब होती जा रही थी।
‘चचाचा.. ककोई.. आ रहा है।
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चूत में ही लण्ड डाले हुए चाचा ने उधर देखा जिधर वह साया था और चाचा मेरे कान में फुसफुसा कर बोले- कौन हो सकता है बहू?
मैं बोली- चाचा घर में दो ही लोग हैं.. एक जेठ जी.. दूसरे आज मैंने एक नया नौकर रखा है.. इन्हीं दोनों में से कोई हो सकता है। वैसे भी चाचा चाहे जो भी हो.. पर आपकी चुदाई में खलल डाल दिया है।
तभी उस शख्स ने आवाज दी- डॉली तुम कहाँ हो.. इतने अंधेरे में तुम छत पर क्या करने आई.?
‘यह तो जेठ जी की आवाज है..’ मैं हड़बड़ा कर थोड़ा आगे हुई और सटाक की आवाज के साथ चाचा का लण्ड चूत से बाहर हो गया।
‘जी.. मैं यहाँ हूँ.. अभी आई..’
लेकिन मुझे चाचा ने पकड़ कर एक बार फिर मेरी चूत में लण्ड घुसा दिया और शॉट लगाने लगे। जैसे उनको जेठ से कोई मतलब ही ना हो।
उधर जेठ जी मेरी तरफ बढ़ने लगे, इधर चाचा मेरी चूत में लण्ड डाले पड़े थे।
मैं कसमसाते हुए बोली- चाचा छोड़ो..
‘मेरी जान, मैं तो छोड़ ही दूँगा.. पर वादा करो.. रात में मेरी मरजी से सब कुछ होगा..’
‘हाँ हाँ हाँ.. आप अभी तो जाओ..’
‘लो.. मैं जा रहा हूँ..’ ये कहते हुए मेरी चूत पर चाचा ने दो कड़क शॉट लगाकर लण्ड को बुर से खींच लिया और अंधेरे में गायब हो गए।
इधर जेठ जी मेरे करीब आ चुके थे.. चाचा ऐसे समय पर मुझे छोड़ कर हटे कि मैं अपनी चूत को ढक भी नहीं पाई थी कि जेठ जी मेरे पास आ गए।
मैंने चारों तरफ निगाह दौड़ाई पर चाचा अंधेरे की वजह से कहीं नजर नहीं आ रहे थे।
जेठ मेरे करीब आकर मुझे इस हाल में देख कर कुछ कहने ही जा रहे थे कि मैं जेठ को खींच कर उनके होंठों को किस करने लगी।
मैं यह सब मैंने जानबूझ किया क्योंकि मैं ऐसा नहीं करती और जेठ बोल पड़ते तो चाचा को शक हो जाता.. जो कि वो भी अभी छत पर ही थे।
मैं किस करते हुए बोली- मैंने आपको सरप्राइस देने के लिए ऐसा किया है.. मैं कैसी लगी.. वैसे भी आपकी चुदाई पाकर मेरी मुनिया आजकल कुछ ज्यादा ही मचल रही है और खुली छत पर आपकी याद में मुझे यह सब करना अच्छा लग रहा था।
तभी जेठ मेरी चूत को अपने हाथ भींच कर बोले- तू कहे तो जान अभी तेरी चुदाई शुरू कर दूँ?
मैंने कहा- अभी नहीं.. क्योंकि नीचे संतोष है और हम लोगों को भी चलना चाहिए।

हम दोनों नीचे आ गए, नीचे संतोष खाना बना रहा था और कुछ ही देर में पति भी आ गए।
हम सबने एक साथ खाना खाया और फिर सब लोग सोने चल दिए।
मैं जब हाल की लाईट बंद करने गई.. तो जेठ ने मुझसे कहा- मैं इन्तजार करूँगा।
मैं बोली- नहीं.. आज आपके भाई मूड में हैं और मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहती। अब सब कुछ दोपहर में होगा.. सबके जाने के बाद..
और मैं अपने बेडरूम में चली गई और जाकर पति से चिपक गई।
मेरे ऐसा करने से पति समझ गए कि मैं चुदाई चाह रही हूँ।
वह बोले- जान चूत कुछ ज्यादा मचल रही हो तो चोद देते हैं… नहीं तो मैं बहुत थक गया हूँ.. सोते हैं।
मैं बोली- नहीं जानू.. मैं तो आपके लिए यह सब कर रही थी कि आपको मेरी चुदाई का मन होगा।
मैंने भी ज्यादा प्रेस नहीं किया.. क्योंकि आज रात मुझे चाचा से चूत चुदानी है.. चाहे जो हो जाए।
इसलिए सबका सोना जरूरी था। करीब आधी रात को मैं उठी और बेडरूम की लाईट जलाकर देखा कि पति बहुत गहरी नींद में थे। मैं लाईट बंद करके बाहर निकल आई और हॉल में मद्धिम प्रकाश में मैंने टोह लिया.. जेठ के कमरे से भी कोई आहट नहीं मिली।
अब मैं पैर दबाकर सीधे छत पर पहुँच कर सारे कपड़े निकाल कर वहीं दीवार पर रख दिए और मैं दीवार फांद कर उस पार बिल्कुल नंगी अंधेरे में चलती हुई चाचा के कमरे तक पहुँची।
मैंने जैसे ही रूम खोलना चाहा.. किसी ने मुझे दबोच लिया और एक हाथ से मेरे मुँह को दाबकर वह मुझे खींचकर छत के दूसरी छोर पर ले जाकर बोला- मैं तुम्हारे मुँह को खोल रहा हूँ.. अगर तुम चिल्लाई, तो बदनामी भी तुम्हारी होगी।
वह बात भी सही कह रहा था मैं बिलकुल नंगी किसी दूसरे की छत पर क्या कर रही हूँ.. मेरी हया और हालत इस बात की चीख-चीख कर गवाही दे रही थी कि मैं चुदने आई हूँ।
तभी उसने मुझसे कहा- तुम इस हाल में उस कमरे में क्या करने जा रही थीं?
मैं हकलाते हुए बोली- कुछ नहीं.. आप मुझे जाने दो प्लीज..
‘मैं जाने दूँगा तुमको.. जब तुम यह बता दोगी कि तुम यहाँ क्या करने आई थीं.. कमरे में चाचा जी हैं और तुम उस कमरे में क्यों जा रही थीं?
मैंने बहुत मिन्नतें कीं.. पर उस शख्स ने मेरी एक ना सुनी।
अंत में मुझे बताना पड़ा कि मैं यहाँ चुदने आई थी चाचा से..
यह जान कर उसने मुझे बाँहों में भर लिया और बोला- उस बुढ्ढे के साथ अपनी जवानी क्यों बरबाद कर रही हो मेरी जान.. तुम्हारी जवानी मेरे जैसे मर्दों के लिए है।
‘पर आप ने कहा था.. कि आप मुझे जाने दोगे.

मैंने ये कहते हुए भागना चाहा.. लेकिन उसने मुझे पकड़ कर बिस्तर पर पटक दिया और मेरे ऊपर चढ़कर बोला- आपके जैसा माल पाकर छोड़ने वाला बहुत बड़ा बेवकूफ ही होगा और तुमको एतराज भी क्या है.. जब कि तुम एक बुड्ढे से चूत मराने आई थी और तुम्हारा तो भाग्य ही है कि यहाँ एक जवान गबरू मर्द से पाला पड़ गया।
लेकिन मेरा वजूद यह करने को मना कर रहा था.. मैं छटपटाती रही.. पर वह मेरे ऊपर पूरा हावी था। उसके सामने मेरी एक नहीं चली और मैं उसकी बाँहों और छाती में छटपटा कर रह गई।
‘आप कौन हो और यहाँ छत पर क्या कर रहे हो..?’
‘मैं किराएदार हूँ और यहाँ तुम्हारा इन्तजार कर रहा था..’
‘क्क्या..क्या मतलब आपका..? मेरा इन्तजार?’
‘हाँ जान.. मैं तुम्हारा ही इन्तजार कर रहा था.. मैं तुम्हारी और चाचा की सारी बातें सुन चुका था.. आज मैं यहाँ सो रहा हूँ। चाचा को पता भी नहीं है।’
मैं उसकी बात सुनकर अवाक रह गई।
तभी उसने मेरी चूचियों को मुँह में भर लिया और चूसने लगा।
‘आआआअह्ह ह्ह्ह… प्लीज मत करो.. मुझे जाने दो..’
पर वह मेरी बात सुन ही नहीं रहा था। मुझे वहीं बाँहों में कस कर मेरे होंठ चूसने लगा.. मेरी नंगी चूचियाँ दबाने लगा और उसकी हरकतों से मैं भी पागल होने लगी।
मैं कब तक अपनी इच्छाओं का गला घोंटती.. आखिर आई तो थी चुदाने ही.. लण्ड बदल गया.. तो क्या हुआ.. चूत यही है.. और लण्ड… लण्ड होता है। मैं अपनी कामवासना में पागल हो रही थी। मेरी चूत से पानी निकल रहा था और एक अजनबी मेरी दोनों चूचियों को बारी-बारी से मसल रहा था और चूस रहा था।
मैं उसकी दूध चुसाई से पागल सी हो गई और उसका एक हाथ पकड़ कर अपनी चूत पर ले गई और उसी के साथ सीत्कार उठी ‘आहह्ह्ह् सीईईई..’
उसने भी मेरी चूत को मुठ्ठी में भींच लिया ‘आहह्ह्ह्.. आया मजा ना जान.. तुम जाने को कह रही थीं।’
वो अपने तौलिए को खोल चुका था और मेरे हाथ को ले जाकर अपने लण्ड पर रख दिया। जैसे ही मेरा हाथ उसके लण्ड को छुआ.. मैं चौक गई.. बहुत अजीब तरह का लण्ड था.. सुपारा बहुत ही मोटा था.. जैसे कुछ अलग से लगा हो। यह तो मेरी बुर में जाकर फंस जाएगा और खूब चुदाई होगी। मैं उस अजनबी की बाँहों को पाकर.. चुदने को बेकरार हो रही थी। यही हाल उसका भी था.. वह भी मेरी चूत को जल्द चोद लेना चाहता था।

मैं बड़बड़ाते हुए बोलने लगी- ओह.. आहह्ह्ह.. अब अपनी भाभी को चोद दे.. अब नहीं रुका जा रहा.. अपने लण्ड को मेरी चूत में घुसा दे.. पेल दे अपने लंड को मेरी चूत में.. प्लीज़ अब चोदो ना..
तभी वह मेरी टांगों के बीच आ गया और अपने लण्ड का सुपारा मेरी चूत के मुँह पर रख कर धक्का लगाने लगा।
लेकिन उसके लण्ड का सुपारा बहुत मोटा था। सही से मेरी चूत में जा ही नहीं रहा था।
मैंने खुद ही अपना हाथ ले जाकर चूत को छितरा कर उसके लण्ड के सुपारे को बुर की दरार में लगा कर जैसे ही कमर उठाई.. वह मेरा इशारा समझ गया।
उसने मेरी चूत पर एक जोर का शॉट खींच कर लगाया। उसका लण्ड मेरी चूत को चीरता हुआ लण्ड अन्दर घुसता चला गया.. मेरी चीख निकल गई।
मेरी चीख इतनी तेज थी रात सन्नाटे को चीरती दूर तक गई होगी। उसने भी घबड़ाहट में एक शॉट और लगा दिया और पूरा लण्ड चूत में समा गया।
मैं कराहते हुए बोली- हाय.. मैं मर गई.. आहह्ह्ह..
वह मेरी कराह देख कर काफी देर तक चूत में लण्ड डाले पड़ा रहा।
मुझे ही कहना पड़ा- चोदो ना.. मेरी चूत.. बहुत उछल रहे थे.. क्या हुआ..


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मेरी बात सुन कर उसने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू कर दिए। मुझे मज़ा आने लगा और मैं भी अपने चूतड़ों को हिला-हिला कर उसका साथ देने लगी। मेरे मुँह से बड़ी ही मादक आवाजें निकल रही थीं।
मैं सिसकारी लेकर कहने लगी- आहह्ह्ह सीईईई.. उफ्फ्फफ्फ.. आहह्ह्ह् सीईईई प्लीज़.. ज़ोर से धक्का लगाओ और मेरी चूत का जम कर बाजा बजाओ।
उसके मोटे लण्ड का सुपारा मेरी बुर में पूरा कसा हुआ जा रहा था।
मेरे मुँह से ‘स्स्स्स्स आह.. आहह्ह्ह् ईईईसीई..’ जैसी मादक आवाजें निकल रही थीं। वह मेरी चूत पर खींच-खींच कर शॉट लगा कर मेरी चुदाई करता जा रहा था।
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मैं उसके शॉट और उसके मजबूत लण्ड की चुदाई पाकर झड़ने के करीब पहुँच गई। मैं चूतड़ उठा-उठा कर उसके हर शॉट को जवाब देने लगी। वह अपनी स्पीड और बढ़ा कर मेरी चूत चोदने लगा।
‘आहह्ह उईईई.. न.. ईईईई.. स.. ईईईई मम्म्मग्ग्ग्ग्गईईईई.. आहह्ह्ह..’
उसके हर शॉट पर मेरी चूत भलभला कर झड़ने लगी ‘आहह्ह्ह्.. मेरा हो गया.. तेरा लण्ड मस्त है रे.. मेरी चूत तू अच्छी तरह से बजा रहा है.. आहह्ह्ह् सीईईई..’
वह भी तीसेक शॉट मार कर अपने लण्ड का पानी मेरी बुर की गहराई में छोड़ने लगा।
वह भी 20-25 शॉट मार कर अपने लण्ड का पानी मेरी बुर की गहराई में छोड़ने लगा.. जिस तरह दाने-दाने पर खाने वाले का नाम लिखा होता है.. उसी तरह हर चूत पर चोदने वाले का नाम लिखा होता है।
अब आप ही खुद देखो.. आई थी किससे चुदने.. और चुद किससे गई..
यह भी बिल्कुल सही होता है जिसके भाग्य में जो लिखा होता है.. वह मिलता ही है.. मेरी मुनिया के भाग्य में एक अजनबी का लण्ड लिखा था.. जो उसे मिला।
अब मैं आपको आगे की कहानी बताती हूँ।
उस रात उसने मेरी चूत का जम कर बाजा बजाया और मैं भी खुलकर उसका साथ देकर खूब चुदी.. ना उसने मुझे जाने दिया और ना ही मेरी चूत को उससे अलग होने का मन हुआ।
मैं सारा डर निकाल कर छत पर पूरी रात चुदती रही.. लण्ड और चूत एक लय में ताल मिला कर चुदते रहे.. उसने आखरी बार मेरी गाण्ड को बजाया.. मैं पूरी तरह उसकी होकर चूत और गाण्ड में लण्ड लेती रही। उस रात भोर तक उसने तीन बार मेरी चुदाई की
मैं पूरी तरह उसके वीर्य से नहाकर.. चूत जम कर मरवा कर.. छत से नीचे चली आई और मैं सीधे बेडरूम में जाकर बाथरूम में घुस गई और अपने बदन पर लगे वीर्य को साफ करके मैं पति के बगल में सो गई।
मेरी नींद पति के जगाने पर खुली, फिर मैंने बाथरूम जाकर नहाकर कपड़े पहन लिए। तब तक पति और जेठ नाश्ता कर चुके थे। मैं भी चाय पीकर पति के ऑफिस जाने के लिए तैयारी में हाथ बंटाने लगी।
तभी पति ने कहा- रात में मेरी नींद खुली.. तुम नहीं थीं.. कहाँ चली गई थीं?
पति के ऐसा पूछने पर मैं सकपका गई।
अब क्या जबाब दूँ.. लेकिन मैंने बात को बनाकर जबाब दे दिया- मुझे नींद नहीं आ रही थी.. इसलिए मैं छत पर चली गई थी और वहीं जमीन पर लेट गई थी.. क्यों कोई काम था क्या?
‘नहीं काम नहीं था.. बस नींद खुली तो तुमको ना साथ पाकर पूछ लिया।’
‘ओह जनाब का इरादा क्या है.. कहीं यह तो नहीं कह रहे हो कि मैं चुदने चली गई थी। आप तो मेरी चूत देखकर बता देते हो कि चुदी है या नहीं.. देखो चुदी है या नहीं..’
‘नहीं जान.. मुझे भरोसा है.. जब भी कोई तेरी चूत लेगा या तुम्हारा दिल किसी पर आ गया और तुम चुदा लोगी तो मुझे बता दोगी। मेरे तुम्हारे बीच छुपा ही क्या है।’
इस बात पर मैं और पति एक साथ हँस दिए।
फिर पति ने कहा- मुझे कुछ काम से इलाहाबाद जाना है.. मैं भाई साहब को ऑफिस का काम देखने के लिए साथ लेकर जा रहा हूँ.. हो सकता है.. कि आने में रात हो जाए..
यह कहते हुए पति और जेठ जी चले गए.. मैं रात भर तबीयत से चुदी थी.. मेरी चूत फुलकर कुप्पा हो चुकी थी.. मुझे थकान महसूस हो रही थी इसलिए मैं भी नाश्ता करके और संतोष को काम समझा कर बेडरूम में आराम करने चली गई।
घर में मेरे और संतोष के सिवा कोई भी नहीं था.. इसी लिए मैंने एक शार्ट स्कर्ट पहन ली.. ऊपर एक बड़े गले का टॉप डाल कर.. बिस्तर पर लेटकर.. रात भर हुई चुदाई के विषय में सोचते हुए मुझे नींद आ गई।
मेरी नींद संतोष के जगाने से खुली ‘मेम साहब आप खाना खा लो..’
मैंने बेड पर लेटे हुए ही घड़ी देखी.. दो बज रहे थे। तभी मेरा ध्यान संतोष के पहने तौलिए पर गया.. तौलिए के अंदर उसका लण्ड का उभार साफ दिख रहा था। संतोष का लण्ड इस टाईम पूरे उफान पर था। इसका मतलब संतोष यहाँ मेरे कमरे में काफी समय से था और इसने कुछ देखा जरूर है। मैं भी आजकल पैन्टी नहीं पहनती थी.. एक तो मेरी स्कर्ट भी जाँघ को पूरी तरह ढकने में सक्षम नहीं थी।
तभी मैंने गौर किया कि संतोष की निगाहें मेरी जाँघ के पास ही है- और उसका लण्ड तौलिए में उठ-बैठ रहा है। मैं अपने एक पैर को मोड़े हुए थी..
शायद इसी वजह से मेरी चूत या चूतड़ दिख रहे हों। मैंने एक चीज पर और गौर किया कि वह केवल तौलिए में था। शायद नीचे अंडरवियर भी नहीं पहने हुए था और वो ऊपर बनियान भी नहीं पहने था।
तभी मैं संतोष से पूछ बैठी- क्या तुम नहा चुके हो संतोष?
‘ज..ज्ज्ज्जी मेम्म्म.. स्स्स्साह्ह्हब..’
संतोष का खड़ा लण्ड देखने से मेरी चूत एक बार फिर चुदने को मचल उठी और मैं ‘तबियत ठीक नहीं है’ का बहाना करके बोली- संतोष तुम खा लो.. मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है.. मैं नहीं खाऊंगी।
‘क्या हुआ.. मेम साहब आपको..?’
‘बदन में बहुत दर्द है संतोष..’
‘क्या मैं दवा ला दूँ?’
‘नहीं रे..’ मैं अगड़ाई लेते हुए बोली।
‘दवा की जरूरत नहीं.. फिर क्या चाहिए मेम?’
‘तेरा लण्ड..’ मेरे मन में आया ऐसा कह दूँ..
‘नहीं रे.. तू जा.. खाकर सो जा.. थक गया होगा।’
बोला- मैं क्या कर सकता हूँ.. मेम साहब आपके लिए और आप दवा नहीं लोगी तो ठीक कैसे होगी?
‘मेरे बदन का पोर-पोर दु:ख रहा है.. आहह्ह्ह्.. कोई मालिश कर देता तो कुछ राहत मिलती।’
कुछ देर चुप रहने के बाद वह बोला- आप कहें तो मैं कर दूँ मालिश?’
‘तुमको करना आता है.. क्या रे?’
“हाँ मेम साब.. मैं बहुत बढ़िया मालिश करता हूँ।’ संतोष चहकते हुए बोला।
‘चल तब तू ही कर दे.. पर बिस्तर पर नहीं.. चादर गंदी हो जाएगी। वहाँ हाल में लगी चौकी पर एक दूसरी चादर बिछा.. मैं वहीं आती हूँ।’
संतोष ने जल्दी से एक चादर लेकर चौकी पर डाल दी।

मैं धीमे-धीमे चलते हुए चौकी पर लेटने से पहले अपने टॉप को निकाल कर केवल ब्रा और स्कर्ट में लेट गई। मेरी ब्रा में कसी चूचियों को देख कर संतोष एकटक मुझे देखने लगा।
‘क्या देख रहे हो संतोष.. जल्दी से मेरी मालिश कर.. मेरा अंग-अंग टूट रहा है रे..’
मेरा इतना कहना था कि संतोष दौड़कर गया और तेल की शीशी ले आया और मुझसे बोला- मेम साहब सबसे ज्यादा दर्द कहाँ है?
‘हर जगह है रे.. तू सब जगह मालिश कर दे.. अच्छा रूक मैं ब्रा भी निकाल दूँ.. नहीं तो तेल लग जाएगा।’
और मैं ब्रा खोल कर निकाल कर संतोष को देते बोली- ले.. इसे उधर रख दे।
मैं एकदम लापरवाह बन रही थी.. जैसे संतोष की मौजूदगी से और मेरी नंगी चूचियों से कोई फर्क नहीं पड़ता है। मैं पेट के बल लेट गई. संतोष अब भी वैसे ही खड़ा था।
‘कर ना मालिश!’
तभी संतोष का हाथ मेरी पीठ पर पड़ा मेरा शरीर गनगना उठा। वह धीमे से हाथ चलाते हुए मालिश करने लगा। वह मेरी पूरी पीठ पर हाथ फिराते हुए मालिश करने लगा।
जब मैंने देखा कि वह मेरे पीठ और कमर के आगे नहीं बढ़ रहा है.. तो मैं बोली- संतोष मेरे पैर और जाँघ में भी मालिश कर न..
तभी वह अपने हाथ पर ढेर सारा तेल लेकर धीरे-धीरे मेरे पैरों की ओर से जाँघों तक मालिश करता रहा।
मैं बोली- संतोष तू मेरे लिए कुछ गलत तो नहीं सोच रहा है.. मालिश पूरी तरह नंगे होकर ही कराई जाती है।
‘नहीं मेम..’
‘फिर तू इतना काहे डर रहा है.. मेरे पूरे शरीर की मालिश कर ना..’
मेरा इतना कहना था कि वह मेरी जाँघों से होता हुआ स्कर्ट के नीचे से ले जाकर मेरे चूतड़ और बुर की दरार.. सब जगह हाथ ले जाकर मुझे मसलने लगा।
काफी देर तक मेरी जाँघों और चूतड़ों पर मालिश करता रहा। संतोष के हाथ से बार बार चूतड़ और बुर छूने से मेरी चुदास बढ़ गई और मैं मादक अंगड़ाई लेते हुए सिसकने लगी।

आहह्ह्ह उउईईईईई आहह..’
‘क्या हुआ मेम साहब?’
‘कुछ नहीं संतोष.. मेरे बदन में दर्द है इसी से कराह निकल रही है।’ मैं यह कहते हुए पलट गई।
अब मेरी चूचियाँ और नाभि संतोष की आँखों के सामने थे, वह मालिश रोक कर एकटक मुझे देख रहा था।
‘संतोष मालिश करो ना आहह्ह्ह..’ और मैंने संतोष का हाथ खींच कर अपनी छाती पर रख दिया।
‘इसे मसलो.. इसमें कुछ ज्यादा दर्द है.. संतोष आई ईईईई.. सीईईई..’
संतोष मेरी छातियों को भींचने लगा, मैं सिसकती रही और अब संतोष की भी सांसें कुछ तेज हो चुकी थीं।
संतोष का एक हाथ मेरी चूचियों पर था.. दूसरा मेरी नाभि और पेट पर घूम रहा था।
संतोष मेरी चूचियों की मालिश में इतना खो गया था कि उसका तौलिया खुल गया था और उसमें से उसका लण्ड बाहर दिख रहा था।
ने सन्तोष का एक हाथ अपनी जाँघ पर रखा और उसे दबाने को कहा। साथ ही मैंने अपना हाथ कुछ ऐसा फैला दिया कि सन्तोष का लंड मेरे हाथ से छुए।
अब मेरे मुख से सिसकारी फूट रही थी, मैंने आँखें बंद लीं, और संतोष भी ज्यादा ही खुल कर मालिश करने लगा था।
मैंने अपना हाथ धीमे धीमे संतोष के लण्ड के करीब करते हुए लण्ड से सटा दिया, संतोष के लण्ड का सुपारा मेरे हाथ से छू रहा था, मैं आँखें मूँदे हुए संतोष के सुपारे को स्पर्श कर रही थी।
संतोष मेरे बदन की गर्मी पाकर कर बेहाल होते हुए मेरी चूचियों और नाभि के साथ चूत के आसपास के हिस्से पर हाथ फिरा कर मालिश कर रहा था।

तभी मैंने अपना एक हाथ ले जाकर संतोष के हाथ पर रख कर उसको अपने पेट से सहलाते हुए स्कर्ट के अंदर कर दिया।

उसने उसका लंड मेरे हाथ मे पकडा दिया और मै लंड को सहलाने लगी. उसने पुछा कैसा लग रहा है मेरा लंड. मैने उसीके अंदाज मे उसको जबाब दिया अभी तुमने मेरी चुत के दर्शन कहा लिये है. उसने कहा कहो तो कर लु दर्शन. मैने कहा रोका ही कब है.

संतोष की वासना जाग चुकी थी, वह मेरी चूत को मुठी में भर कर दबा देता और कभी मेरी चूचियों को भींचता!
संतोष अब यह सब खुलकर कर रहा था।
तभी संतोष ने मेरे स्कर्ट को खींचकर निकाल दिया, अब मैं मादर जात नंगी थी अपने नौकर के सामने और नौकर भी पूरा नंगा हो चुका था।
संतोष मेरी चूत पर तेल गिरा कर मालिश करते हुए कभी एक अंगुली अंदर सरका देता और कभी फांकों को रगड़ रहा था।
मैं चुपचाप लेट कर संतोष के हाथ का मजा ले रही थी और संतोष भी मेरे जिस्म को देख कर बहक चुका था। वह नौकर और मालिक के रिश्ते को भूल चुका था, यही हाल मेरा भी था, मैं भी सब कुछ भूल आगे की एक नई चुदाई का इन्तज़ाम कर चुकी थी।
संतोष के हाथ मेरे शरीर पर फ़िसलने लगे, उसकी हरकतें मुझे उत्तेजित करने के लिए काफी थी, मुझे स्वयं ही चुदने की बेचैनी होने लगी।
जैसे ही वो मेरे चेहरे की ओर आया, मैंने ही पहल कर दी… उसके लण्ड को अपनी एक अंगुली से दबा दिया, मैं यह जाहिर नहीं करना
चाह रही थी कि मैं कुछ और चाहती हूँ!
मैं इतनी जल्दी नौकर की बाहों में समाना भी नहीं चाह रही थी, मेरा इरादा बस उसे आगे होने वाली चुदाई के लिए तैयार करना था।
पर मैं संतोष का साथ पाक फ़िसल रही थी।
तभी संतोष ने मेरी बुर की फांकों को मुठ्ठी में भर कर दबाया और मेरे मुख से एक तेज सिसकारी निकली- आहह्ह्ह उईईईई सीईई…
संतोष- क्या हुआ मैम… दर्द कुछ ज्यादा है क्या?
मैं कुछ नहीं बोली।
तभी मुझे महसूस हुआ कि मेरी चूत पर जैसे कोई गर्म-गर्म सांस छोड़ रहा हो, मैंने थोड़ी आँख खोल कर देखा…
यह क्या?
संतोष तो मेरी चूत के बिल्कुल करीब है और मेरी चूत चाटने जा रहा है!
मैंने अनजान बन कर आँखें मूँद ली।
और तभी बाहर से बेल बज उठी, मैं चौंक कर बोली- संतोष कौन होगा? मैं अंदर जा रही हूँ, तुम कपड़े ठीक करो और जाकर देखो कि कौन है!
मैं वहाँ से नंगी हालत में ही रूम में भागी, रूम में पहुँच कर मैं दरवाजे को बंद करके दरार में आँख लगा कर देखने लगी कि कौन है।
तब तक संतोष भी कपड़े सही करके दरवाजा खोलने गया।
जब वह हाल में पहुँचा तो उसके साथ एक हट्टा कट्टा मर्द साथ आया जिसे वह सोफे पर बैठने को बोल कर किचन में गया और पानी का गलास भर कर उस अजनबी के सामने रख कर कुछ कहा और फिर मेरी तरफ बढ़ा।
मैं दरवाजे से हट गई, संतोष अंदर आकर बोला- मैम, वह आप से मिलने आया है, अपना नाम बबलू बताया है और बोला आप से ही
काम है।
मैं बोली- मैं तो उसे जानती तक नहीं… कौन है, कहाँ से आया है और क्या काम है?
‘वह कह रहा था कि यही बगल में रहता है, आप उसे जानती हो यही बोला’
मैंने इसके आगे कुछ और बोलना ठीक नहीं समझा, मैंने एक चीज ध्यान दी संतोष की नजर झुकी थी।
‘संतोष, तुम एक काम करो, उसे बोलो कि वेट करे, मैं आती हूँ।’
‘और एक बात संतोष… तुम्हारे हाथों में जादू है रे… मेरे बदन का सारा दर्द दूर कर दिया रे तूने- मुझे नहीं पता था कि तू मसाज भी कर लेता है!मेरे इतना कहने से संतोष एक बार फिर मेरी चूचियों और चूत को घूर रहा था, मैं अब भी नंगी थी।
वह कुछ देर घूरता रहा और जैसे जाने को हुआ, मैंने बुलाया उसे- संतोष सुन तो जरा यहाँ आ!
और करीब वह मेरे से बिल्कुल सटकर खड़ा हो गया, मैंने उसके हाथ को ले जाकर चूत पर रख दिया और बोली- थोडी दर्द यहाँ रह गई है रे!
संतोष ने भी मौके का पूरा फायदा उठाया, उसने कसकर मेरी चूत को दबाकर चूत की दरार में एक अंगुली डाल दी।
‘आहह्ह्ह सीईईई… संतोष जाओ तुम चाय बनाओ… मैं आती हूँ!’ कहते हुए चूत पर से संतोष का हाथ हटा कर शरीर पर लगे तेल को साफ करने बाथरूम चली गई।
मैं सीधे बाथरूम में जाकर शावर चला कर मस्ती से अपने शरीर और चूत पर साबुन लगा कर मल मल कर धोने के बाद नंगी ही बेडरूम में आकर शीशे के सामने खड़े होकर मैं अपने नंगे बदन को निहारने लगी।
तभी मुझे ध्यान आया कि कोई मेरा इन्तजार कर रहा है!
मैं पहले से ही संतोष से मालिश करा कर पूरी गर्म थी, मुझे चुदाई चाह रही थी, संतोष से बूर और चूचियाँ मसलवा कर मेरे ऊपर वासना हावी हो चुकी थी, मैं दरवाजे से उस हट्टे कट्टे इन्सान को पहले ही देख कर मस्त हो गई थी।
तभी मेरे दिमाग में एक शरारत आई कि क्यों न थोड़ा और मजा लूँ!
मैंने अपनी चिकनी चूत पर एक बहुत ही छोटी स्कर्ट पहन कर और ऊपर एक बिना बांह की बनियान पहन ली।
मैंने अपनी आदत के अनुसार ब्रा पहनी लेकिन पेंटी नहीं पहनी।
मेरी स्कर्ट जो मेरी जांघ नहीं ढक सकती थी, बिना पेंटी के चूत दिखाने को काफी थी।

मैं तैयार होकर बाहर आई तो देखा कि वह चाय पी रहा था।
मैं नमस्ते कह कर उसके सामने बैठ गई।
एक झलक में लगा कि मैंने कहीं देखा है इसे पर मुझे याद नहीं आया।
‘कहिये क्या काम है आपको?’
वह इधर उधर देखकर बोला- चूत का रसपान करने आया हूँ।
मैं उसकी बात सुनकर चौंक गई, कहाँ मैं इसे रिझाने आई थी, कहाँ यह खुला आमंत्रण!
लेकिन सीधे सीधे ऐसी बात बोलने की इसकी हिम्मत कैसे हुई, मैं थोड़ा गुस्से में चौंकने का अभिनय करके बोली- क्या? आप इतनी गन्दी बात और बिना डरे मेरे ही घर में बैठ कर कर रहे हो? आपकी इतनी हिम्मत?
तभी वह फिर बोला- हाँ जान, मैं यहाँ सिर्फ आपकी चूत चोदने आया हूँ, आपकी चाहत मुझे यहाँ खींच लाई है, मैं आपकी जवानी का रस पीने आया हूँ।
उसने दूसरी बार खुली चुदाई की बात बोल कर मेरी बोलती ही बंद कर दी, इस तरह बिना डरे अगर यह खुली चुदाई की दावत दे रहा है मेरे ही घर में बैठकर… तो जरूर कुछ बात है।
मैं फिर भी गुस्से में उसके ऊपर बिफर पड़ी, चल उठ यहाँ से भाग… तेरी इतनी हिम्मत? मेरे सामने इतनी बेहूदगी!
मैं कहते हुए उठ खड़ी हो गई, वह मेरे साथ ही उठ गया पर उसके चेहरे को देखकर नहीं लग रहा था कि वह मेरी बातों से डरा हो या कुछ ऐसा नहीं दिखा।
बल्कि वह एक झटके से मेरे करीब आकर, मुझे बाहों में भर कर मेरी चूचियों को भींच कर मेरे होटों का रसपान करने लगा।
घबराना उसे चाहिए… घबरा मैं रही थी!
अगर संतोष ने देख लिया तो क्या सोचेगा कि मैं कितनी गन्दी हूँ।
मैं उसकी बाहों से छूटने के लिए छटपटाने लगी पर उसने एक हाथ मेरी स्कर्ट डाल कर मेरी खुली चूत को भींच लिया।
तभी मुझे संतोष के आने की आहट हुई और मैं उससे बोली- छोड़ो… मेरा नौकर आ रहा है, मुझे ऐसे देखेगा तो क्या समझेगा!
मेरा इतना कहना था कि उसने मुझे छोड़ दिया और जाकर निडरता से सोफे पर बैठ गया।
मैंने उससे पूछा- आप इतनी गन्दी बात बोल रहे हो, वो भी एक अनजान घर में आकर और एक अनजान औरत के सामने… आपकी हिम्मत यह सब बोलने की कैसे हो गई, आप मुझे समझ क्या रहे हो, मैं लास्ट वार्निंग देती हूँ, चले जाओ नहीं तो अपने पति को फ़ोन करती हूँ।
तभी वह बोला- जी डार्लिंग, बड़े शौक से फ़ोन करना, लेकिन जरा आप अपने नौकर को बुला देती!
मैंने आवाज लगा कर संतोष को बुलाया।
संतोष जैसे ही आया, वह बोला- तुम बाहर दुकान से यह सामान लेकर आओ!
उसके पास एक लिस्ट थी जिसे उसने संतोष को थमा दिया और कुछ पैसे भी।
मैं बैठी देखती रही, तभी संतोष चला गया।
यह क्या… मुझे संतोष को जाने नहीं देना चाहिए था।
जिसकी हिम्मत इतनी है कि मेरे से गन्दी और खुली चुदाई की बात कर रहा है वह अकेले में क्या करेगा।
मैं यही सोच ही रही थी कि तभी वह एक झटके से उठ कर मेरे करीब आया, मुझे अपनी गोद में उठा लिया और मुझे बेडरूम को ओर ले चला।
 
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वो मुझे किस करने लगा और मैं भी उसका साथ देने लगी फिर उस ने मेरी साड़ी एक झटके में खींचकर उतार दी और पीछे से मेरी ब्लाउज के हुक तोड़ दिए। अब वो मेरी ब्रा के ऊपर से मेरी चूचीयों को अपने दातों में दबाने लगा था, मुझे भी अपनी चूचियों को उसके दांतो के कटवाने पर बहुत मज़ा आ रहा था और मेरे मुँह से सिसकारियां निकलने लगी।

हायययययी क्याबताऊँ कितना मजा आ रहा था? आअह्ह्ह्हह वो आराम से चुसो मेरी चूचियों को मैंने इठलाते हुए बोला। अब में अपना हाथ उसके लंड पर उसकी पेंट के ऊपर से ही फेरने लगी थी।उसका लंड खड़ा हो गया था ,
उसका का लंड बहुत ही बड़ा था, और उसके मोटे लंड से मुझे अपनी चूत को चुदवाना था।

ऊफफ़फ़फ़फ़फ़, अब मेरी रंडी चूत को तो मानो रुकना ही नहीं था, मेरी चुत पानी छोड़ने लगी। फिर मैं उसके निप्पल्स को चूसने और अपनी जीभ से चाटने लगी ,उसके निप्पल्स चूसते चूसते मैंने उसकी शर्ट को उतरना शुरू किया। धीरे धीरे मैंने उसके के पुरे कपडे उतार दिए और अब वो अंडरवियर में था और मेरी चूचियों को मसल रहा था मुझे भी बहुत मज़ा आने लगा था।
मैंने उस से पूछा कौन हो तुम
उसने बताया मे चाचा का किरदार अरविंद हु।

फिर मैंने उसे से कहा बेड पे चलते हैं उसने मुझे गोद में उठाया और बेड पे ले आया और मुझे बेड पे रख दिया। बेड पे लेटते वक़्त मैंने अरविन्द की अंडरवियर को झटके से निचे खींच कर उतार दिया। उसका लौकी जैसा मोटा लंड मेरे सामने हिचकोले मार रहा था। मैं एकटक उसके लंड को देखती ही रह गयी और मैं अरविन्द के अपने हाथ में पकड़कर सहलाते हुए अरविन्द से कहा “अरविन्द मुझे तुम्हारे इस मोटे लंड से चुदवाना है, प्लीज़ इसे मेरी चूत में घुसा दो और मुझे चोदो प्लीज।

मेरे मुँह से अपनी चूत चुदवाने की बात सुनकर वो हँसने लगा और मेरे बालों को ज़ोर से पकड़कर मुझे पीछे किया और बोला “रंडी आज तो तुझे ऐसा चोदूंगा कि इस शहर की टॉप की रंडीयों की चूत भी तेरे आगे शर्मा जाएगी, तुझे तो मैं तेरी सुहागरात से ही चोदना चाहता था। अरविन्द ने मुझे एक थप्पड़ मारकर पीछे की ओर गिरा दिया। अरविन्द ने एक ही झटके में मेरी ब्रा और पैंटी उतार फेंकी।

अरविन्द मेरे पूरे नंगे बदन को अपनी गरम जीभ से चाटने और अपने दांतो से मेरी बेली को काटने लगा। मेरी चूत से मनो बाढ़ आ गया हो। मेरे पेट को अपनी जीभ से चाटते हुए वो निचे की ओर जाने लगा और मेरी चूत पे किस किया व मेरी चूत का पानी चाटने लगा। मेरी चूत चाटते चाटते अरविन्द ने अपनी उंगलियाो को मेरी चूत के अंदर डालकर अंदर बाहर करने लगा।

अब मुझे बहुत मज़ा आ रहा था, कई दिनों के बाद मेरी चूत को मर्द का एहसास हो रहा था। मैं सिसकियां लेने लगी थी, आह आहह ह उम्म्म एमम आअहह एयेए आहह हह एसस्सस्स बोली आअह्ह्ह्हह अरविन्द और ज़ोर से चाटो मेरी छूट को करो बहुत अच्छा लग रहा है, प्लीज़ और चाटो उम्म्म एम्म्म एम्म्म यअहह आअहहहह।
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अरविन्द की उँगलियाँ मेरी चूत मेँ ज़ोर-जोर से चलने लगी थी, अया आहहहहहह मैं फिर से झड़ने वाली हु आअह्हह्ह्ह्ह। अरविन्द अचानक से 69 पोज़िशन में आ गया और उसने अपना मोटा लंड झटके से मेरे मुँह में डाल दिया। मेरी तो साँस ही रुक गयी थी, लेकिन जो मज़ा आ रहा था ऊम्म्म्ममहहह। मैं उसके लंड को पूरा अपने मुँह में लेकर मज़े से चूसने लगी थी उसके बॉल्स को अपने हाथों से सहलाने लगी।

वो मेरी चूत को कुत्ते की तरह से चाट रहा था, क्या मज़ा आ रहा था उम्म एमम एमममममममम मैं बता नहीं सकती। अरविन्द काफी देर तक मेरी चूत को चाटता रहा और में उसके लंड को लपक लपक कर चूसती रही उम्म्ममममम । उसका लंड मेरे गले में उतर गया था ,अरविन्द मेरी चूत में अपनी जीभ डालकर अंदर बाहर करने लगा था आअहह हह उम्म्म एममममम ।
आधा घंटा अपनी चूत चटवाने के मैं तीसरी बार झड़ने वाली थी , लेकिन अरविन्द ने मुझे झड़ने नहीं दिया और उठ गया पक्का चोदू इंसान था। अब मेरी चूत में कीड़े कूदने लगे थे और मुझे चुदना था। मैं बहुत बेताब हो रही थी और अरविन्द से बोली “अरविन्द मुझे चोदो प्लीज़ , मेरी रंडी चूत में अपना लंड डालो ना, आज फाड़ दो मेरी रंडी चूत को प्लीज़।

यह सब सुनकर वो हरामजादा हँसने लगा और अरविन्द ने मुझे एक झटके से उल्टा कर दिया। मैं पेट के बल लेट गयी और अरविन्द के लंड का इंतज़ार करने लगी। देर न करते हुए अरविन्द ने बड़ी ही बेरहमी से अपना लंबा मोटा लंड मेरी चूत में घुसा दिया हउम्म्मममममम आह आह ऑश हह उम्म मज़ा आ रहा था उम्म्म। मेरी चीख निकल गयी लेकिन मज़ा भी बहुत आ रहा था।
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अब वो मुझे एक कुतिया की तरह चोदने लगा था, मुझे तो बड़ा मज़ा आ रहा था मैंने सीत्कारिया लेते हुए कहा “उम्मममममम अहह चोदो मुझे रंडी की तरह उम्म्म अहह और ज़ोर से अहह फाड़ दो मेरी चूत को आआआआहह उम्म्म्मम “। अरविन्द मुझे ऐसे ही आधे घंटे तक चोदता रहा, फिर उसने मुझे अपने ऊपर आने के लिए कहा तो मैं झट से अरविन्द ऊपर आ गई और झटके उसके लंड पे बैठ गयी उम्म्म्म मज़ा आ गया।

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मैं भी मज़े लेते हुए अरविन्द के लंड पर उछलने लगी आहह्ह्ह्हह्ह्ह्ह कितना मज़ा आ रहा था? अरविन्द मेरी चूचीयों को ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा और मेरी उछलने की स्पीड कम न हो जाए इसलिए मेरी गांड पर ज़ोर जोर से थप्पड़ मारने लगा। मैं और ज़ोर जोर से अरविन्द के लंड पर उछल उछल कर अपनी चुत चुदवाने लगी अहहह्ह्हह्ह्ह्ह उम्म्ममममममम एस्ससससससस उम्म्ममममममम
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अरविन्द के लंड पर उछलते उछलते मैंने अरविन्द से कहा – अरविन्द अब में झड़ने वाली हूँ आआहह एस्स आअहह अया आहह फक्ककक मी आहहहहहहह हहह और फिर कुछ देर के बाद में झड़ गई। पर अरविन्द मुझे वैसे ही काफ़ी देर तक मुझे चोदता रहा, फिर बहुत देर तक ऐसे ही चोदने के बाद उसने मुझे लेटा दिया और मेरी दोनों टाँगे एक साईड में करके फिर से चोदना शुरू किया।

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अब मेरी चूत का चुद-चुदकर बुरा हाल हो गया था, लेकिन ऐसा मजा मुझे कभी नहीं आया था। अब वो मुझे ऐसे ही ज़ोर-ज़ोर से चोदने लगा और अपने एक हाथ से मेरी चूत पर मसाज करने लगा था, आह क्या मजा आ रहा था उम्ममममममम ? मैंने अरविन्द से कहा “मुझे फिर झड़ना है आअहहह्ह्हह्हह और ज़ोर से करो, मेरी चूत को फाड़ दो आहहहहहहह उम्म्मममममम बहुत मजा आ रहा है आआहहह, मेरी चूत चाट, मेरी रंडी चूत को जोर-जोर से चाट आआ आहहह
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अब वो और ज़ोर-जोर से करने लगा था, मुझे बहुत मज़ा आ रहा था और मैं चिल्लाई “उम्म अरविन्द अब मैं झड़ रही हूँ तुम भी मेरी चूत में अपना पानी छोड़ो , मेरी चूत की प्यास बुझा दो उम्म्ममममम आहहहहहहह । अब अरविन्द भी झड़ने वाला था तो उसने मेरी चूत चुदाई और तेज़ कर दी।

मैं चीखने लगी थी और मुझे बहुत मज़ा आ रहा था आहह आहएस्स फक्कक मी आहहहहहहह अहहहहहह उम्ममममम और मैं फिर से झड़ गई और अरविन्द ने भी मेरी चूत में अपने लंड का पूरा पानी छोड़ दिया, जाने न वक़्त उसने दरवाज़े पर पूछा ” भाभी – क्यों प्यास बुझ गई? तो मैंने मुस्कुराते हुए कहा कि हाँ अब तक कि तो बुझ गई, लेकिन आगे का ध्यान रख लेना ज़ोर से हंस पड़ी।
 

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कुछ देर बाद संतोष आया और गौर से मेरा नंगा बदन देखने लगा।

मैं मुश्कुराई और बोली- “कैसा लगा मेरा बदन...”

संतोष भी मुश्कुराकर बोला- “बहुत खूबसूरत है."

मैं कहने लगी- “क्या इस खूबसूरत बदन को प्यार नहीं करोगे...”

अंधे को क्या चाहिए दो आँखें, मेरी खुली आफर का तनवीर ने फौरन फायदा उठाया और वो मेरे बदन पर टूट पड़ा। मुझे बहुत मजा आ रहा था और मैं मजे से सिसकारियां लेने लगी। तनवीर मेरे पूरे बदन को चाट रहा था जिससे मुझे बहुत मजा आ रहा था,
जिससे मुझे बहुत मजा आ रहा था, थोड़ी देर बाद ही वो मेरी चूत को चाटने लगा और मैं लज़्ज़त से तड़पने । लगी, कुछ ही देर में उसने मेरी चूत में अपने हाथ की उंगली डाल दी और अंदर बाहर करने लगा। थोड़ी ही देर में मेरी चूत से पानी निकल पड़ा।
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मैं धीरे धीरे आवाज़ करने लगी वो बोला मेडम आपकी तो अभी भी टाइट है। मैने बोला संतोष तुम ढीली कर दो.

संतोष मेरे दोनों मोटी मोटी जांधों के बीच छिप गया था. वो मस्ती से मेरी बुर पी रहा था. मैं सुख के सातवे आसमान पर थी. वो एक हाथ से मेरी चूत में बड़ी जल्दी जल्दी ऊँगली भी कर रहा था. वो किसी मशीन की तरह मेरी चूत में ऊँगली कर रहा था. सच में दोस्तों, मुझे बहुत मजा मिल रहा था.

मैं अब जोश से एकदम बेकाबू हो रही थी। वो मेरी चूत को चाटने और चूसने लगा। मेरी चूत को चाटने के साथ साथ वो एक हाथ से मेरे मम्मों को भी दबा रहा था। मेरे मुँह से सिसकारियां निकल रही थीं- ऊओह... आअहह... सस्स्स्स्स्स्स स्स... तरह की।
वो मेरी चुचियो को चूसने लगा और काट भी लेता था।
कुछ देर तक मेरी चूत को चूसने के बाद वो हट गया वो बोला- “डार्लिंग अब तुम मेरा लण्ड चूसोगी। फिर वो मेरे सीने पर बैठ गया और अपना लण्ड मेरे मुँह के पास कर दिया। मैं एकदम जोश में थी और मैंने उसके लण्ड पर अपनी जुबान को फिराना शुरू कर दिया। वो आहें भरने लगा। मैं उसका लण्ड मुँह में लेकर चूसना चाटने लगी थी। उसका लण्ड बहुत मोटा था और मेरे मुँह में थोड़ा सा ही गया।
मैने उसका लंड लेकर चूसने लगी और कभी उसके लंड को दबाती और कभी उसके लंड को अपने हाथ से ऊपर नीचे करती। 10 मिंनट तक चूसने के बाद
उसने अपना लण्ड मेरे मुँह से निकाल लिया और मेरे पैरों के बीच आ गया। मैं समझ की गई अब मेरे दिल की मुराद पूरी होने वाली है। लेकिन में उसके लण्ड के साइज को देखकर घबरा भी रही थी।

उसने मेरे चूतड़ों के नीचे दो तकिये रख दिए। मेरी चूत एकदम ऊपर उठ गई। उसने मेरी टाँगों को पकड़ कर फैला दिया। अब उसने अपने लण्ड की टोपी को मेरी चूत के बीच में रखा और धीरे धीरे अंदर दबाने लगा। मुझे दर्द होने लगा और मेरे मुँह से चीख निकल गई आह्ह्ह..
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वो बोला- “थोड़ा बर्दाश्त करो, फिर बहुत मजा आएगा...” वो अपना लण्ड मेरी चूत में धीरे धीरे घुसाने लगा। उसने अपना लण्ड धीरे धीरे अंदर बाहर करना शुरू कर दिया। वो अपना पूरा लण्ड मेरी चूत में डाले बिना मुझे चोदने लगा।

थोड़ी ही देर में मुझे मजा आने लगा और मैं आहें भरने लगी ऊऊओह... ऊऊह्ह... ऊओह... उफफ्फ़... उफफ्फ़... हाआंन्णणन्... उऊहह...

उसने जब देखा की मुझे मजा आ रहा है और मेरी चूत को उसके लण्ड के साइज की आदत पड़ना शुरू हो गई है।

तो उसने एक धक्का तेज लगा दिया।
मैं फिर से चीख उठी।
फिर उसने अपना लंड बाहर निकाला ओर फिर उसने अपने लंड को मेरी चूत पर फेरने लगा। मेरी चूत अब ओर गर्म ओ गयी. मेरी चूत उसके लंड को डालने के लिय बेताब हो रही ती। फिर मोहन ने आपना लंड मेरी चूत मे डाल दीया। उसने धक्के लगाने चालू किया और बोला मोना मेडम आप बड़ी मस्त हो. ओर अपने लंड को मेरी चूत मे अन्दर बाहर करने लगा।
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शाबाश संतोष!! शाबास! मैं अगले महीने से तुम्हारी पगार १००० बढा दूंगी! मैंने कहा. मेरा वफादार नौकर मुझको चोदने लगा. मेरे मम्मो को वो अपने जवान हाथों से मसल रहा था. मुझे बहुत सुख मिल रहा था.

और तेज संतोष !! मुझे और तेज चोदो !! मेरी चीखे निकाल दो ! मैंने कहा

रे रंडी!! तू भी क्या याद करेगी !! वो बोला और जोर जोर से मुझे पेलने लगा. उसके जबरदस्त धक्को से पूरा बेड चरमराने लगा. कुछ देर बाद उसने शताब्दी ट्रेन जैसी रफ्तार पकड़ ली. मुझको घचाघच पेलने लगा. अब मेरी चीखें निकलने लगी.

मैंने अपनी आँखें बंद कर ली. वो मुझे बहुत अच्छे से चोद रहा था.

ले रंडी !! आज तेरा पति नही है तो नौकर का लंड खा ले जी भरके !! संतोष बड़ी उत्तेजना में आ गया. मुझे बड़ी खुसी हुई. मैं इसी तरह गाली खा खाके चुदवाना चाहती थी.

चोद मुझे कसके! तुझे तेरे मरे बाप की कसम !! मैंने कहा

संतोष थोडा गुस्से में आ गया. वो मुझे रंडियों के जैसे चोदने लगा. चुदास की उत्तेजना में उसने मुझे ५ ६ तमाचे भी जड़ दिए. मुझे मार मार कर चोदने लगा. फिर उसकी तेज बहुत तेज हो गयी. कुछ सेकंड में उसने मुझे कई सौ बार चोद दिया. वो मुझे इसी तरह चोदता रहा। 35 मिनट तक चोदने के बाद ही वो मेरी चूत में छूट गया। इस बीच मैं भी तीन बार छूट चुकी थी।

उसने अपना लण्ड मेरी चूत से बाहर निकाला और मेरे मुँह के पास कर दिया। मैं उसे फिर से चूसने लगी। थोड़ी ही देर में उसका लण्ड फिर से तन गया। उसने मुझे अब घोड़ी की तरह कर दिया (डागी स्टाइल) और मेरे पीछे आ गया। उसने मेरी चूत को फैलाकर बीच में अपने लण्ड को हँसा दिया और बोला- “अभी तक मैंने तुम्हें बहुत आराम के साथ चोदा है। अब तुम कितना भी चिल्लाओ, मैं कोई परवाह नहीं करूंगा.” उसने मेरी कमर को जोर से पकड़ लिया।

मैंने दिल में खुद से कहा तू तो गई आज काम से, आज तेरी खैर नहीं है। उसने और एक जोरदार धक्का मारा तो उसका सारे का सारा लण्ड मेरी चूत में घुस गया। मैं चिल्लाने लगी लेकिन उसने कोई परवाह नहीं की और बहुत ही ताकत के साथ धक्के मारने लगा। मेरी चूत में बहुत तेज दर्द हुआ और फिर ठीक हो गया। मैं पसीने से एकदम तर हो गई। वो रुका नहीं और पूरी ताकत के साथ मेरी चुदाई शुरू कर द।
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फिर वो दो मिनट के लिए रुका और बोला- “डार्लिंग अब बर्दाश्त करना मेरे झटकों को...”

फिर उसने अपने हाथों से मेरी कमर को जोर से फिर पकड़ लिया और मेरी चुदाई करने लगा। अब तनवीर मुझे तूफानी रफ़्तार से चोद रहा था और मुझे अब बहुत मजा आने लगा था। वो मुझे बारौं बेदर्दी से चोद रहा था। लगभग 20 मिनट की चुदाई के बीच में तीन बार फारिघ् हो चुकी थी पर वो रुकने का नाम नहीं ले रहा था। वो अभी छूटा ही नहीं था।

।।।
उसने अपना लण्ड बाहर निकाला और मेरी गाण्ड के छेद पर रख दिया। मैं डर के मारे थर-थर काँपने लगी। गाण्ड में इतना बड़ारा लण्ड तो मैंने ख्वाब में भी कभी नहीं लिया था। मैंने उससे बहुत मिन्नतें की की मेरी गाण्ड को छोड़ दो, लेकिन वो माना नहीं। उसका लण्ड मेरी चूत के पानी से एकदम गीला था। उसने मेरी गाण्ड में अपना लण्ड घुसाना शुरू कर दिया। मैं दर्द से तड़पने लगी लेकिन वो रुकने का नाम नहीं ले रहा था।

वो बोला- “अब मैं तम्हारी गाण्ड के छेद को भी खोल देंगा..."
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मैं चिल्लाती रही और वो मेरी गाण्ड में अपना लण्ड घुसाता रहा। 5 मिनट की कोशिश के बाद आखिर उसने अपना 9 इंच लंबा और तीन इंच मोटा लण्ड पूरा का पूरा मेरी गाण्ड में घुसा ही दिया। मैं अभी भी चिल्ला रही

थी और रो रही थी लेकिन वो रुक नहीं रहा था और तेजी के साथ अपने लण्ड को मेरी गाण्ड में अंदर बाहर कर रहा था। उसने लगभग 5 मिनट तक मेरी गाण्ड मारी लेकिन वो फिर भी फारिघु नहीं हुआ।

मैंने पूछा- “और कितनी देर चोदोगे मुझे...”

वो बोला- मैंने बहुत चुदाई की है। मेरा दोबारा इतनी जल्दी नहीं छूटने वाला। अभी तो मैंने तुम्हें लगभग एक घंटा 20 मिनट ही चोदा है और अभी लगभग एक घंटे तक और चोदूंगा, तब जाकर मेरे लण्ड से पानी निकलेगा...”

मैं घबरा गई। मैंने कहा- “तुम अब रहने दो, बाद में अपनी हवस पूरी कर लेना...”
वो नहीं माना। उसने अपना लण्ड मेरी गाण्ड से बाहर निकाला और मेरी चूत में घुसा दिया। चूत में लण्ड घुसाने के बाद उसने बहुत तेजी के साथ मेरी चुदाई शुरू कर दी। 5 मिनट बाद ही उसने मेरी चूत से लण्ड को । निकालकर वापस मेरी गाण्ड में डाल दिया और चोदने लगा। वो इसी तरह हर 5 मिनट के बाद मेरी चूत और गाण्ड की चुदाई करता रहा।

लगभग 10 मिनट तक इसी तरह चोदने के बाद वो बोला- “मैं अब छूटने वाला हूँ। तुम बताओ की मेरे लण्ड का पानी कहाँ लेना चाहती हो, अपनी चूत में, गाण्ड में या अपने मुँह में..”

मैंने कहा- “तुम मेरी गाण्ड में ही पानी निकाल दो, चूत में तो तुम पहले भी निकल चुके हो..."

उसने अपना लण्ड मेरी चूत से निकाला और कहा- “नहीं जान-ए-मान अब मैं अपने लण्ड का पानी तुम्हारे मुँह में निकालूंगा...” ये कहकर उसने मुझे बालों से पकड़कर अपनी तरफ घुमाया और बड़ी बेदर्दी से अपना पूरा का पूरा
लण्ड मेरे मुँह में घुसा दिया और जोर जोर से अपना लण्ड मेरे मुँह में अंदर बाहर करने लगा। उसके छूटने का। वक़्त नजदीक आ गया था और वो अब एक तूफान की तरह मेरे मुँह को चोद रहा था। उसके झटकों से मेरा मुँह दुखने लगा था।

फिर उसके लण्ड ने झटका खाया और उसके लण्ड से मनी एक धार की सूरत में निकलकर मेरे हलाक से टकराई और मेरा पूरा मुँह मनी से भर गया। मैं मनी को पीने लगी मगर उसके लण्ड से बहुत मनी निकल रही थी जो मुझसे पूरी नहीं पी गई और वो मेरे मुँह से बहने लगी।
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संतोष ने मेरा सिर पकड़कर अपने लण्ड पर दबाया हुवा था जिसकी वजह से मैं अपना मुँह हटा नहीं सकती थी। सारी मनी मेरे मुँह में निकालकर वो थक कर लेट गया। मैं भी थक चुकी थी और मैं भी उसके साथ ही लेट गई। थोड़ी देर हम दोनों इसी तरह लेटे रहे।
 
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उस रात चाचा खुद ही हमारे घर आ गये कियोकी उनहे पता था की आज हमारे घर कोई नहीं है।
आते ही उन्होंने मुझे बेड पर लिटा दिया और मेरे चेहरे को अपनी जबान से चाटने लगे। उनकी जबान गालों पर और माथे पर चल रही थी। फिर उन्होंने मेरे होंठों को चूसना शुरू कर दिया। मैंने भी पूरा जवाब दिया उनके फ्रेंच किस का, तीन मिनट के बाद हमारी जबाने एक दूसरे की जबानों को छू रही थी और एक दूसरे को खींच रही थीं। मैंने चाचा को बता दिया की मुझे पूरी तरह बहकने के बाद ही मजा आता है इसलिए उन्होंने मुझे बहकाने की पूरी प्लानिंग कर ली थी। मेरी जबान को छोड़कर अब वो मेरी गर्दन चाट रहे थे और और फिर वो धीरे से मेरी चूचियों पर आ गये और ऊपर से दबाने लगे।
मेरी हालत अजीब थी। मैंने चाचा को इशारा दिया की कमीज उतार दें। मैं अब गरम होना शुरू हो गई थी। मैं उठकर बैठ गई और अपने हाथ ऊपर कर दिए। अंकल ने फटाफट मेरी टी-शर्ट उतार के दूर फेंक दी। मेरे चूचियां इस वक़्त पूरा टाइट थी और निपल खड़े थे। मैं खुद ही फिर लेट गई और चाचा ने अपने अंगूठे से मेरे निपल्स को गोल-गोल घिसना शुरू कर दिया और मेरे मुँह से बेअक्टियार सीसकारियां निकलने लगी- “आहहह। ककककक..." और मेरी आँखें लज्जत की वजह से बंद हो चुकी थीं। अब अंकल का एक हाथ मेरी बायीं चूची पर था और दायीं चूची के निपल को चूसते जाते और निपल पर हल्के से काट भी लेते। ये सिलसिला 5-7 मिनट तक चलता रहा।

फिर उनकी जबान मेरे चूचियों से हटकर नीचे आनी शुरू हो गई, जैसे कुलफी को चाटते हैं इस तरह। मैंने खुदबा-खुद अपने चूतड़ों को ऊपर कर दिया ताकी चाचा मेरी कैप्री उतार दें। चाचा ने ये देखके मुझे नीचे से भी। नंगा कर दिया। मैं बहुत गरम हो चुकी थी और मेरी हालत अजीब थी। मेरी चूत गीली हो चुकी थी। चाचा मेरे ऊपर से हट गये और मेरा सिर से पैर तक नंगा जिश्म देखने लगे।

और फिर बोले की- बहु आज मैं तुम्हें खूब बहका करके चोदूंगा। तुम्हारी सिर्फ़ चूत ही नहीं तुम्हारे जिश्म की हर चीज हसीन और सेक्सी है। मैं तुम्हारे जिश्म का पूरा मजा लूंगा...” ये कहकर उन्होंने मेरे पैर चाटने शुरू कर दिये।

मुझे गुदगुदी हो रही थी और साथ में नशा भी... मैं अपने ही हाथ से अपनी चूत मसलने लगी तो चाचा कहने लगे की फिकर ना करो इसकी बारी भी आयेगी। ये कहकर चाचा ने फिर से मेरे पैर चाटना शुरू कर दिये और अब वो आहिस्ता आहिस्ता ऊपर आ रही थे। जब वो मेरी रानों तक पहुँचे तो मैं फारिग हो गई और गहरी-गहरी साँसाइन ले रही थी। मुझे फारिग होता देखके वो रुके और हँस दिये। मैं उठी और मैंने
चाचा के कपड़े उतार दिये। अब वो भी नंगे थे और उनका मोटा लण्ड पूरा खड़ा था। मैंने चाचा से कहा की मैं आपका लण्ड चूसती हूँ, ये कहके मैं नीचे घुटनों के बल बैठकर एक हाथ से उनका लण्ड पकड़कर चूमने लगी और उसको चूमते-घूमते मैं मदहोश होकरके उनका लण्ड भी अपनी चूचियों पर और अपने गालों पर घिसने लगी। फिर उसे चूसने लगी।

चाचा के मुँह से आहें निकल रही थी- मेरी जान और ओह प्लीज़... मैं पागल हो रहा हूँ...
आअह्ह...”

फिर मैंने उनकी बाल्स को चूमतु हुइ ऊपर आती और फिर मुँह में घुसा लेती। मेरे चूसने से चाचा को बहुत मजा आ रहा था और उन्होंने अपने लण्ड को मेरे मुँह में आगे पीछे करना शुरू कर दिया। मैंने चाचा की शक्ल से अंदाजा कर लिया था की वो रिलीस होने वाले हैं इसलिए जल्दी से उनका लण्ड मुँह से निकाल लिया और वैसे ही उनके लण्ड से एक पिचकारी निकली और नीचे गिर गई। और चाचा गहरी गहरी सांसें ले रहे थे। मैंने उनकी मनी मुँह में तो नहीं ली मगर चाट-चाटकर उनका लण्ड अच्छी तरह साफ कर दिया।

फिर चाचा कर मेरी चूत के नीचे तक बेतहाशा बोसे दिए। फिर वो मेरी चूत पर अपनी जबान फेरने लगे। उसके बाद उन्होंने बारी-बारी मेरी चूत के दोनों लबों को मुँह में लेकर चूसा और उसके बाद उन्होंने अपने दोनों हाथों की उंगलियों से मेरी चूत को चीरा और अपनी जबान मेरी चूत के अंदर तक डालकर अपनी जबान से मेरी चूत को चोदने लगे। मैं मेजे में उड़ रही थी और मेरे हलाक से काफी तेज सिसकारियां निकल रही थीं और मैं उनका सर अपनी चूत पर दबा रही थी।
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काफी देर तक मेरी चूत को अंदर तक चूसने के बाद उन्होंने मेरी चूत के लबों को दाँतों में लेकर काटना शुरू कर दिया और मेरे सिसकारियां और तेज हो गईं। अंकल ने 10-12 मिनट तक बहुत बुरी तरह से मेरी चूत को काटा

और मैं आखीरकार में झड़ गई। अब हम दोनों पूरी तरह सेक्स के लिए तैयार थे। अंकल ने मेरे ऊपर झुक कर अपने लण्ड की टोपी मेरी चूत के सुराख पर फिट करी और अंकल ने दो झटकों में पूरा का पूरा लण्ड मेरी चूत में घुसा दिया।

और मैं मस्ती में आकर चिल्ला पड़ी- “आहह्ह... ऊऊओह... हहाअ...”

चाचा मुश्कुराये और बोले- “क्यों मजा आया

बहु... अब एक और लो..” ये कहकर उन्होंने पहले से भी ज्यादा जोरदार झटका मारा।

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और मेरे हलाक से पहले से भी ज्यादा तेज सिसकारी निकली- “आहहह... आह्ह्ह..”

5 मिनट के झटकों के बाद अब अंकल जोर-जोर से मेरी चूत चोद रहे थे। वो अब अपना लण्ड मेरी चूत से निकालकर पूरा का पूरा मेरी चूत में एक ही झटके में डाल देते और मैं फिर चिल्ला उठती।
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दो मिनट बाद मैं झड़ गई मगर चाचा मुझे चोदते ही रहे और अब चाचा की रफ्तार भी बहुत तेज हो गई थी और 5-6 मिनट के बाद उन्होंने लण्ड निकाला और मेरी चूत के बाहर अपना माल छोड़ दिया,

चाचा की सास फूल रही थी और मेरी भी, 3-4 मिनट बाद चाचा एक बार फिर तैयार थे और इस दौरान मैं अपनी चूत में उंलगी करके एक बार फिर झड़ गई थी। तकरीबन 5 मिनट के बाद हमारी हालत नार्मल हो गई और हम दोनों फिर से चुदाई के लिए तैयार थे। फिर चाचा ने मुझे नीचे कार्पेट पर चारों हाथ पैरों पर डागी स्टाइल में खड़ा कर दिया। फिर वो मेरे पीछे आये और वो अपना लण्ड मेरी चूत पर रगड़ने लगे।

मैं तड़प कर बोली- “उफफ्फ़...चाचा क्यों तड़पा रहे हैं, जल्दी से अपना लण्ड मेरी चूत में डालें...”

इस पर वो हँसे और फिर उन्होंने अपना लण्ड मेरी चूत में घुसाया, हुदाप की तेज आवाज मेरी चूत से निकली और लज़्ज़त की शिद्दत से मैंने सिसकारी लेकर अपनी आँखें बंद कर लीं। मेरे ऊपर झुक कर उन्होंने मेरे दोनों मम्मों को पकड़ लिया। और उन्होंने फिर टाफानी रफ़्तार से झटके मारकर मुझे चोदना शुरू कर दिया। जब की मैं बुरी तरह से चीखने लगी- “चोद दो, फाड़ दो आह्ह्ह... उउइईई... मारो धक्केई जोर सेई अ...”
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अंंंंंंंंंं

चाचा के जोरदार झटके इस तरह 5-7 मिनट तक चलते रहे।
उसके बाद उन्होंने मुझे टेबल पर हाथ रखकर झुक जाने को बोला। मैं अपने दोनों हाथ टेबल पर रखकर घोड़ी की तरह झुक कर खड़ी हो गई। अंकल मेरे पीछे आ गये और अपना लण्ड पीछे से मेरी चूत में डाला और फिर झुक कर मेरे दोनों ममममों को पकड़ लिया और मेरे मम्मों को जोर-जोर से दबाते हुये जोर-जोर से मुझे चोदने लगे। मुझे इस स्टाइल में बहुत मजा आ रहा था और मैं लज़्ज़त के मारे बुरी तरह से सिसकने लगी। मचलने । लगी, तड़पने लगी।
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चाचा को भी शायद इस स्टाइल में मुझे चोदकर बहुत मजा मिल रहा था। चाचा पहले एक बार फारिग हो चुकी थी इसलिए उनका स्टेमिना बढ़ चुका था, 5 मिनट तक चाचा मुझे इस तरह चोदते रहे। फिर उन्होंने मुझे नीचे कालीन पर लिटा दिया और फिर मेरी टांगें उठाकर मेरे ही तरफ कर दीं और मेरे ऊपर झुक कर अपना लण्ड । मेरी चूत में डाल दिया और पूरी ताकत से झटके मारकर मुझे चोदने लगे। थोड़ी देर के बाद मैं झड़ने वाली थी
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और मैं चाचा से कहने लगी- “उफफ्फ़... आअह्ह... चाचा मैं झड़ रही हूँ... जान-जोर से चूत मारो मेरी और जोर से कम ओन फकक मी...”

मैं इतनी मदहोश थी की मुँह से अल्फ़ाज सही से नहीं निकल रहे थे और चाचा भी जोर जोर से धक्के पर धक्का मारते हुये बोले- “ओह .. बहु मैं भी छूट रहा हूँ..” ये कहके उन्होंने लण्ड चूत से निकाला और मेरी चूचियां पर ये कहते हुये- “आह्ह्ह... आश मेरीई जान्न ल्लो...” और हाँफते हुये मेरे बराबर में लेट गये। हम दोनों अब बुरी तरह थक गये थे
 

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मैं नहा कर कपड़े ही पहन रही थी कि इतने में एक सब्जी वाला बाहर मेरे दरवाजे पर आवाज़ दे रहा था.
“मैडम सब्जी ले लो … हरी ताज़ी सब्जी है.”

मैंने साड़ी पहन कर बाहर जाकर देखा तो एक बड़ा मस्त मर्द सब्जी बेच रहा था. इसे मैंने पहले कभी अपने एरिया में नहीं देखा था. शायद नया सब्जी वाला था.

मैंने इधर-उधर देख कर उसको अपने पास बुलाया.
वो करीब आया तो मैंने पूछा- भैया आपकी उसका क्या रेट है?

मेरी इस दो अर्थी बात सुनकर वो मुझे ध्यान से देखने लगा. वो मैडम से सीधे भाभी पर आया और बोला- भाभी जी, आपके लिए तो सब रेट कम ही हैं.. आप तो बस बोलो कि क्या लोगी.
मैंने इठलाते हुए अपने चूचे हिलाए और बोला कहा- बड़े बड़े से वो दे दो.
वो बोला- क्या दे दूँ बड़े बड़े से?
मैंने- आलू दे दो … दो किलो.

उसने भी अपनी लुंगी में अपना लंड जरा सा सहलाया और मेरी तरफ देखता हुआ बोला- कैसे लोगी भाभी जी?
मैंने मन ने सोचा कि कह दूँ कि जैसे तुम देना चाहो.
फिर मैंने पूछा- कैसे लोगी से … तुम्हारा क्या मतलब है भैया?
वो बोला- मतलब कुछ डलिया वगैरह में लोगी.. या मैं थैली में दे दूँ?
मैंने कहा- थैली में ही दे दो.

उसने आलू तौल दिए, मैंने उससे आलू ले लिए. उससे आलू लेते वक्त मैं जरा झुक गई, जिससे उसको मेरे गहरे गले वाले ब्लाउज में से मेरी मस्त चूचियों की भरपूर झलक दिख गई. मेरी निगाह उसकी लुंगी पर थी, उसकी लुंगी ने उठना शुरू कर दिया था.
फिर मैंने उसको ध्यान से देखा. वो एक 40 साल का हट्टा-कट्टा पहलवान टाइप का मर्द दिख रहा था.

उससे सब्जी लेकर मैं घर के अन्दर जाने लगी, तो वो मुझसे बोला- भाभी जी पैसे?
मैंने कहा- भैया अभी अन्दर से लाकर देती हूँ.
वो बोला- ठीक है.
मैं अन्दर जाने लगी, तभी मैंने पलट कर देखा, वो मेरे पिछवाड़े को बड़ी मस्त निगाहों से देख रहा था.
मैं मन ही मन मुस्कुरा दी और अपनी गांड हिलाते हुए अन्दर चली गई.

जब मैं वापस आई, तो मैंने देखा कि उसकी कामुक नज़र मेरे गदराए हुए जिस्म पर टिकी थीं और वो मेरे मम्मों को बड़ी ध्यान से देख रहा था.

मैंने उसको पैसे दिये और अन्दर जाने के लिए मुड़ी तो उसी समय न जाने कैसे मेरे पैर में मोच आ गई और मैं वहीं गिर पड़ी. मुझे गिरता देख कर वो सब्जी वाला मुझे उठाने लगा. मैंने उसको मना किया, लेकिन वो नहीं माना. वो मुझे उठा कर घर के अन्दर ले आया. जब उसने मुझे अपनी गोद में उठाया हुआ था, उस वक़्त मैंने महसूस किया था कि उसका फौलादी लंड मेरी गांड के ऊपरी हिस्से में मतलब मेरी कमर को टच कर रहा है. उसने मुझे कसके पकड़ा हुआ था

वो मुझे बेड के नजदीक लाया और मुझे बड़े हौले से बेड पर लिटा दिया. फिर वो मुझसे बोला- भाभी जी … मूव किधर रखी है, बता दीजिए … मैं आपके पैर में मूव लगा देता हूँ.
मैंने उससे बोला- तुम रहने दो … तुम बाहर चले जाओ, तुम्हारा ठेला बाहर खड़ा है … मैं अपने आप मूव लगा लूँगी.
वो बोला- नहीं … आपको दर्द है … मैं आपको इस हालत में ऐसे छोड़ कर नहीं जा सकता … मेरे ठेले की चिंता आप न करें.

मेरे कई बार मना करने के बाद भी वो खुद से सामने की टेबल पर रखी मूव उठा लाया और मेरी साड़ी को थोड़ा ऊपर करके पैर में मूव लगाने लगा.

उसके हाथों में बड़ी नफासत थी … मुझे थोड़ा अच्छा लगने लगा. उसके हाथों से थोड़ी ही देर में मुझे आराम मिल गया और मैं पैर फैला कर लेट गई. वो अब और भी अच्छे से मेरे पैर की मालिश करने लगा.

थोड़ी देर में मैंने महसूस किया कि वो साड़ी को कुछ और ऊपर कर रहा था. अब वो अपना हाथ मेरी जांघों तक ले जा रहा. मैं आंखें खोल कर उठ कर बैठ गई.

पहले तो मैंने सोचा कि शायद ये मालिश से भी कुछ आगे बढ़ेगा, तो हो सकता है कि आज मुझे शान्ति मिल जाए.

मैं उसकी मर्दाना छाती देख कर बड़ी चुदासी हुई जा रही थी. साथ ही मेरा दिमाग काम करने लगा था कि कैसे भी करके इसे फंसाना ही है. ये मुझे मस्त चोद सकता है. मैं मन ही मन खुश हो रही थी कि अगर आज ये सैट हो गया तो इसके लंड की चुदाई से मेरी चुत की आग शांत हो जाएगी

मैंने उससे कहा- यह क्या कर रहे हो तुम?
वो बोला- भाभी जी … मैं मालिश कर रहा हूँ.
मैं बोली- मोच तो नीचे वाले हिस्से में आई थी, तो तुम ऊपर क्यों मालिश कर रहे हो?
वो बोला- अरे मोच को मालिश करने के बाद पूरे पैर को अच्छे से मालिश करना पड़ता है … नहीं तो दर्द नहीं जाएगा.
मैं बोली- तुम रहने दो … अब जाओ. मुझे लगता है कि तुम कुछ ज्यादा ही मुझे सहला रहे हो.
वो बोला- नहीं भाभी जी, मैं आपकी मालिश कर रहा हूँ.

मैंने उसे उकसाया- कहीं तुम मुझे अकेली पाकर मेरे साथ गलत काम तो नहीं कर दोगे.
ये कहते हुए मैंने उठने की कोशिश की और अपना पल्लू ढलक जाने दिया. मेरे गहरे गले के ब्लाउज से उसको मेरी अधनंगी चूचियां गर्म करने लगी थीं. मैं देख रही थी कि उसका लंड फूलने लगा था.

वो मेरी चूचियों की तरफ देख कर बोला- अगर आप मुझसे कुछ गलत काम करने के लिए कहेंगी, तो मैं जरूर कर दूंगा. वैसे आप अपनी गेंदें दिखा कर मुझे भड़का रही हैं.
मैंने पूछा- गेंदें मतलब?
वो लंड सहला कर मुझसे बोला- भाभी जी गेंदें नहीं समझती हो. मैं आपके दूधों की बात कर रहा हूँ.

यह कहते हुए उसने अपना एक हाथ मेरे सीने से लगा कर मुझे बिस्तर पर गिरा दिया. साथ ही मेरी साड़ी भी खींच दी थी. हालांकि मेरी साड़ी अब भी मेरे बदन से लिपटी हुई थी. मैं समझ गई कि लंड काबू में आ गया है. अब मैंने नाटक करना शुरू किया.

“ये क्या कर रहे हो तुम … इधर से चले जाओ तुम!”
वो- एक तो तेरे लिए इतनी मेहनत की और बिना कुछ दिए बोल रही हो कि अब जाओ.
मैं घबरा कर बोली- ये तुम क्या बोल रहे हो … तुम तुम्हारा दिमाग़ खराब है क्या?
वो बोला- हां तुझे देख कर मेरा दिमाग़ और हालत दोनों खराब हो गए हैं. अब तुझे पहले जी भर कर चोदूंगा, फिर मेरा दिमाग सही होगा.

मैंने उसको भगाने की कोशिश की नौटंकी की लेकिन मैं नाकामयाब रही.

वो मेरे साथ जबरदस्ती करने लगा. पहले तो उसने मेरी साड़ी पूरी तरह से खींच कर मेरे जिस्म से अलग कर दी. मैं उसके सामने रोने का ड्रामा रही थी- प्लीज़ मुझे छोड़ दो.

लेकिन उसकी आंखों में अलग ही चमक थी. वो मुझको देख कर बोला- साली तुम चुदासी औरतें ऐसे गांड मटका मटका कर चलती हो कि हम लोगों का लंड खड़ा हो जाता होता. जब चोदने की बारी आती है, तो साली नखरे दिखाने लगती हो … एकमद चुप रह साली रंडी … आज तेरी चुत का मैं भोसड़ा बना दूँगा. आज अपने फौलादी लंड से तेरी चुत के चिथड़े उड़ा दूँगा … तू बस आज देखती जा.

उसने मेरी साड़ी तो खींच ही दी थी. अब मैं उसके सामने ब्लाउज पेटीकोट में रह गई थी.

मुझे इस हालत में देख कर वो अपना लौड़ा सहला कर बोला- साली कितनी बड़ी रांड लग रही है तू … तेरी चुचियां कितनी बड़ी हैं. आज में इनका सारा रस पी जाऊंगा.

मैं उसके सामने छोड़ देने की कहती रही, लेकिन उस पर कोई असर नहीं पड़ने वाला था. उसने एक झटके में मेरा साया भी फाड़ कर अलग कर दिया और अगले झपट्टे में मेरा ब्लाउज भी मेरी चुचियों का साथ छोड़ चुका था. अब मैं उसके सामने ब्रा और पेंटी में थी और उसे मना कर रही थी.

फिर उसने अपने कपड़े उतारे और मेरा सामने पूरा नंगा हो गया. उसका लंड देख कर मैं हैरान हो गई. मैंने आज तक जीवन में कभी लंड के इतना बड़ा होने की कल्पना ही नहीं की थी. उसका 8 इंच लंबा था और गोलाई में 3 इंच मोटा था. मुझे तो ऐसा लगा कि ये तो गधे का लंड लगवा कर पैदा हुआ है और आज तो यह कमीना मेरी चुत को सचमुच फाड़ ही देगा.

उसने मेरी तरफ आते हुए मेरी मेरी ब्रा और पेंटी को उतार फेंका और मेरी चूचियों को तेज़ी से दबाने लगा.

मेरी धीरे से दर्द भरी आवाज़ निकलने लगी और मैं उससे कहती रही- मुझे छोड़ दो प्लीज़.
लेकिन वो मुझसे बोला- चुप साली कमीनी … आज बस तू मेरे लंड का मजा ले … मैं तुझे जन्नत की सैर करवाऊंगा … चुप रह रंडी कहीं की.

थोड़ी देर बाद मेरा विरोध कम होने लगा और मैं उसके सामने शांत होने लगी. मुझे भी मजा आने लगा था.

वो मेरे मम्मों को अपनी बड़ी बड़ी हथेलियों में भींच कर पूरी दम से मसल और रगड़ रहा था. वो इतनी तेज़ी से मेरे मम्मों का मलीदा बना रहा था, जैसे कोई राक्षस हो. वो मेरे ऊपर लदा हुआ था और मैं अपने नीचे उसका लंड महसूस कर रही थी.

कोई 15 मिनट बाद वो मम्मों को अच्छे से रगड़ने के बाद मुझसे बोला- चल साली रंडी … मेरा लंड मुँह में लेकर इसे चूस.

पहले तो मैंने मना किया लेकिन उसने जबरदस्ती अपना लंड मेरे मुँह में डाल दिया. थोड़ी देर में उसके लंड का साइज़ और भी ज्यादा बढ़ने लगा और मुँह से बाहर आने लगा. जब उसका लंड अच्छे से बड़ा हो गया तब उसने अपने लंड को मेरे मुँह से निकाल लिया.मैं उसके पूरी तरह से खड़े लंड को देख कर गहरा गई लेकिन मुझे मेरी चुत की आग लगातार गर्म कर रही थी.

वो लंड को मेरी चुत पर ले गया और सुपारा घिसते हुए बोला- साली रंडी कितनी मस्त है तेरी चुत … लगता है तेरा पति तुझे अच्छे चोद नहीं पाता … चल कोई बात नहीं … आज मैं इसको भोसड़ा बना दूँगा … तू चिंता मत कर.

वो अपना लंबा लंड मेरी चूत की फांकों में फंसा कर मुझे चोदने के लिए तैयार हो गया. उसने मेरी तरफ देखा मैं घबरा कर अपनी आंखें बंद कर ली थीं. मुझे मालूम था कि जैसे ही इसका लंड अन्दर जाएगा मेरी चुत एक कबाड़खाना बन जाएगी.
लेकिन चुत की सारी आग भी ठंडी करवाने की ललक मुझे उसके लंड से चुदवाने के लिए उकसा रही थी.

उसने लंड चुत पर रख कर एक ज़ोर से धक्का दे मारा. उसका लंड मेरी चुत में अन्दर घुसा और उसी पल मेरे मुँह से एक चीख निकल पड़ी- अया … उम्म्ह… अहह… हय… याह… आह … मर गई.
वो मुझे डांटता हुआ बोला- चुप साली रंडी … अभी थोड़ी देर में तुझको भी मजा आने लगेगा.

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इसके बाद उसने एक और धक्का मारा तो उसका आधा लंड मेरी चुत के अन्दर चला गया. मैं फिर से दर्द से चीख उठी- आह मर गई … प्लीज़ प्लीज़ … अब रहने दो … बहुत दर्द हो रहा है … आ … अया … अया.

वो कमीना मेरी एक ना सुनने वाला था. दूसरे ही पल उसने एक और धक्का दे मारा. इस बार उसका लंड पूरा मेरी चुत में चला गया. मुझे बहुत तेज़ दर्द हो रहा था. क्योंकि पहली बार मैंने इतना बड़ा लंड अपनी चुत में लिया था.
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वो थोड़ी देर उसी पोज़िशन में रुका रहा. फिर धीरे धीरे धक्के लगाने लगा. अब मुझे भी दर्द कम होने लगा था और मैं मजे लेने लगी थी. वो अब अपना पूरा लंड मेरी चुत में पेल कर चुदाई कर रहा था. वो अपने हाथों से मेरे मम्मों को अब भी जानवरों की तरह रगड़ रहा था.
मुझे मजा आने लगा और मेरे मुँह से आनन्द भरी सिसकारियां निकलने लगी थी- आह … ससस्स … आहह. … सस्सस्स.

फिर वो मुझसे बोला- साली रंडी पहले तो नखरे दिखा रही थी और अब लंड के मज़े ले रही है. आज तू देख … तेरी चुत का में गड्डा बना दूँगा.
तब मैं बोली- चोद कमीने … और ज़ोर से चोद … फाड़ दे मेरी चुत को मादरचोद … आज मुझे रगड़ रगड़ कर चोद ताकि मैं 2 दिन तक सही से चल ना पाऊं.
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वो धक्के देते हुए बोला- साली रंडी आज तुझको ऐसे ही चोदूंगा … तू देखती जा बस … आज के बाद तू मुझसे ही चुदाएगी रोज … ले रंडी ले.

और उसने धक्कों की स्पीड तेज़ कर कर दी और मेरे मुँह से ‘स्सा … आ … अया … इस्स … इस्स्स्स.’ की आवाज़ तेज़ी से आने लगी और मैं कमर उठा उठा कर उससे चुदवाने लगी. मैं भी चुदाई की जन्नत की सैर का मजा लेने लगी- आह चोद दे साले कमीने … आ … आह … ऐसे … ही … पेल पूरा … हां … ऐसे चोद मादरचोद मुझे … फाड़ दे मेरी चुत को!
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फिर दस मिनट के बाद उसका लंड वैसे ही तन गया और मुझे इस बार अपने ऊपर बैठने को बोला. वो बेड पर चित लेट गया. मैं उसके खड़े लंड के ऊपर चुत फंसा कर बैठ गई. मैंने उसके मूसल लंड को अपने अन्दर ले लिया.
अब वो मुझे हवा में उठा उठा कर चोद रहा था. अपने हाथों से मेरे मम्मों को मसल रहा था.

मुझे उसके लंड से चुदने में बहुत मजा आ रहा था. मैं लगातार 20 मिनट तक ऐसे ही चुदती रही. फिर हम दोनों झड़ गए और ऐसे ही 20 मिनट तक पड़े रहे. आज उसने मुझे जन्नत की सैर करवा दी थी. आज मैं बहुत खुश थी.

मैं उससे बोली- तुम मुझे ऐसे ही रोज चोदा करो … मेरा नामर्द पति कुछ नहीं कर पाता.
वो मेरी चूची दबा कर बोला- तू चिंता मत मेरी रांड … मैं अब तेरी चुत को भोसड़ा बना दूँगा. मैं अपने साथ अपने दोस्तों से भी तुझे चुदवाऊंगा और तेरी चुत को चबूतरा बना दूँगा.
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उसकी बात से मैं पहले तो डर गई और बोली- नहीं तुम अकेले ही आना … किसी और को मत लाना … कहीं मेरे पति को पता चल गया, तो उन्हें बहुत गुस्सा आएगा.
वो बोला- साली रांड मुझसे चुदवा रही है, तब तेरा पति क्या तेरी आरती उतारेगा. होने दो भोसड़ी वाले को गुस्सा. अब चुपचाप जो मैं बोलूं, वही करना. मैं जिसको भी तेरी चुत चुदाई के लिए लाऊंगा, तुम बस उससे अपनी चुत चुदवा लेना.
aish-shar
 

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मैं एक बार को तो खुश हो गई कि अब तो बदल बदल कर लंड मिलेंगे.

वो कहता जा रहा था- जो भी तुमको चोदना चाहेगा … उससे हजार रूपए भी वसूल लेना. समझो अब तुम मेरी रंडी हो गई हो.
मैं कुछ नहीं बोली और वो मुझे किस करके चला गया.

मेरी पुरानी ब्रा और पेंटी पूरी तरह से फट चुकी थी।मैंने सोचा की शाम को पास के माल वी मार्ट से अपने लिए ब्रा और पेंटी ले आउंगी, पर दोपहर के २ बजे ही एक ब्रा पेंटी वाला आदमी आ गया और आवाज लगाने लगा। मैंने उसे रुकवाया और घर के बाहर के बारामदे में उसे बिठाया।

“क्या दिखाऊ मेमसाब???” वो बोला

“३६” साईज में २ जोड़ी ब्रा और पेंटी दिखा दो” मैंने कहा

वो बेचने वाला लड़का काफी जवान था, अपने बड़े से गट्ठर से वो मेरे लिए ब्रा और पेंटी निकालने लगा। इसी बीच मेरी नजर उसकी जींस पर पड़ गयी। असल में वो जमीन पर पंथी मारकर बैठा हुआ था, उनकी आसमानी जींस में मुझे उसका मोटा लौड़ा दिख गया। बाप रे, कितना मोटा लंड है इसका, मैंने खुद से कहा। जो लड़की इससे चुदवाएगी, बड़ा मजा पाएगी वो। मैंने सोचा। वो देखने में भी काफी हैंडसम था।

“लो मेमसाब!!” वो जवान लड़का बोला। उसने मुझे ८ जोड़ी नई नई डिसाईन की ब्रा पेंटी दिखा दी। मुझे काफी पसंद आ रही थी। समझ नही आ रहा था कौन सी लूँ

“कितने की है???” मैंने पूछा

“600 में 2 जोड़ी!!” वो बोला

“बड़ी महंगी है भैया…..ये तो, कुछ कम तो करो!” मैंने हँसते हुए उसे लाइन मारते हुए कहा। जानबुझकर मैंने अपनी साड़ी का पल्लू नीचे सरका दिया। मैंने नीला गहरे गले का ब्लाउस पहन रखा था। उस लड़के को मेरे सुडौल, गोल और रसीले मम्मो के दर्शन हो गए। पैसे कम करवाने के लिए मैंने ये चाल चली थी। मेरा ब्लाउस काफी गहरा था। काफी जादा मम्मे मेरे दिख रहे थे। मेरा क्लीवेज (छातियों के बीच का रास्ता) उसे साफ़ साफ़ दिख रहा था। लड़के की नजर कुछ पल के लिए मेरे ब्लाउस में कैद मेरे रसीले मम्मो पर टिक गयी, वो ताड़ने लगा। मेरे गोरे गोरे सुडौल मम्मे जैसे उसे बुला रहे थे। मेरा पतला सुराही जैसा गला बड़ा खूबसूरत था।

“बताओ न भैया ….कितना पैसा लोगे ब्रा पेंटी का???” मैंने कातिल मुस्कान के साथ पूछा तो समझ लो उस लौंडे का कत्ल हो गया

“मेमसाब, इसमें कोई मार्जिन नही है, पर चलो आप इतने प्यार से कह रही है मैंने कैसे मना कर सकता हूँ….आप 500 दे देना २ जोड़ी ब्रा पेंटी के लिए” वो मुस्कुराकर बोला

“पर….भैया…मैं कौन सा लूँ ?? कुछ समझ नही आ रहा है??” मैंने दुबारा कत्ल कर देने वाली अदा से पूछा

“मेमसाब आप अंदर जाकर ट्राई कर लो। लो फिट हो जाए उसे ले लेना…” वो लड़का बोला

मैं ब्रा और पेंटी लेकर अंदर चली गयी। वो बाहर बरामदे में ही बैठा था। मैं घर में अंदर गयी, दरवाजा मैंने बंद नही किया। मैंने अपना ब्लाउस खोलना शुरू कर दिया, फिर साडी निकाल दी, फिर मैं नई ब्रा पेंटी पहनकर ट्राई करने लगी, कुछ फिट हो रही थी, कुछ नही। एक ब्रा पेंटी मैं पहनती, फिर उसे निकालकर दूसरी पहनती। मैं देख नही पायी पर वो लड़का सायद मुझे चोदना चाहता था, मेरे कमरे के बाहर खड़ा था और वहीँ से छिपकर मेरे नंगे जिस्म का मजा ले रहा था। कुछ देर में मैंने दूसरी ब्रा और पेंटी पहनने के लिए पहली वाली निकाली, मैं पूरी तरह से नंगी थी, वो लड़का अंदर मेरे कमरे में आ गया और उसने मुझे पकड़ लिया।
 
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